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आप्तवाणी-६
आपको दिखाते भी हैं कि यह आपमें मोह भरा हुआ है और आपको उन्हें है
'हाँ' कहना पड़ता
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यहाँ पर आज भगवान खुद आए हों और कोई पूछे कि भगवान ! ये ‘महात्मा' आलू की सब्ज़ी क्यों बार - बार माँगते रहते हैं? क्या इनका यह मोह गया नहीं है?
तब भगवान उन्हें क्या कहेंगे, पता है? भगवान कहेंगे, "यह मोह है, लेकिन यह चारित्रमोह है, 'डिस्चार्ज' मोह है । उनकी ऐसी इच्छा नहीं है, परंतु आ पड़ा है, इसलिए यह सारा मोह उत्पन्न हो रहा है और यह खा लेने के बाद उन्हें ऐसा कुछ भी नहीं रहेगा !" खाने में ज़रा विशेषता हुई, वह 'चारित्रमोह' है। और सिर्फ भूख के लिए ही खाया, उसे चारित्रमोह नहीं कहा जाता। भूख के लिए खाने से पहले कहे कि, 'सब्ज़ी लाओ, चटनी लाओ', तो हम नहीं समझ जाएँगे कि इसका मोह है ? और खातेखाते दाल ज़रा बचा ली हो तो वह भी चारित्रमोह है । हम उन्हें पूछें कि यह दाल क्यों नहीं खाई ? तब वे कहते हैं कि, 'नहीं, ज़रा ठीक नहीं लगी । ' वह भी एक प्रकार का मोह ही है न? खाना रहने दिया वह भी मोह और अधिक खा गया, वह भी मोह ।
और जिसे राग-द्वेष नहीं हैं, कोई मोह नहीं है, उसके सामने तो जो भी आए, वह ले लेता है । दूसरी कुछ झंझट ही नहीं रहती, उसे तो मोह नहीं कहते। परंतु इस मोह की क़ीमत नहीं है । यह मोह तो लाखों मन (वज़न) का होता है, लेकिन यह मोह निकाली मोह होने की वजह से इसकी कोई क़ीमत ही नहीं है | दर्शनमोह जाने के बाद, जो मोह बचता है, वह चारित्रमोह। उसकी कोई क़ीमत ही नहीं है, वह 'डिस्चार्ज मोह' है और जिसका दर्शनमोह अभी तक गया नहीं है, ऐसे बड़े त्यागी हों, परंतु वे यदि कभी ज़रा सी सब्ज़ी अधिक माँग लें, तो भी उस मोह की बहुत क़ीमत है ! 'अरे, भाई, हम रोज़ अधिक सब्ज़ी माँगते हैं, फिर भी हमें कुछ नहीं मिलता और इन्हें एक दिन में ही इतना सबकुछ मिल गया?'
तब कहे, ‘हाँ, एक दिन में बहुत भयंकर दोष लग जाते हैं', क्योंकि