________________
आप्तवाणी-६
तो अच्छा। अभी यह कलियुग है, दूषमकाल है, इसलिए घर में दो-चार 'थर्मामीटर' होते ही हैं, एक नहीं होता ! नहीं तो हमें कौन नापेगा? किसी को किराए पर रखें, तो भी नहीं करेगा ! किरायेवाला अपना अपमान करेगा, लेकिन उसका मुँह फूला हुआ नहीं होगा, इसलिए हम समझ जाएँगे कि यह बनावटी है! और यह तो 'एक्ज़ेक्ट' ! मुँह - मुँह फूला हुआ, आँखें लाल, पैसे खर्च करने पर भी ऐसा नहीं हो सकता जबकि यह तो हमें मुफ्त में मिलता है !
१०४
यह संसार आँखों से दिखने में सुंदर लगे ऐसा है । वह छूटे किस तरह? मार खाए और चोट लगे, फिर भी वापस भूल जाता है। ये लोग कहते हैं न कि बैराग नहीं रहता, लेकिन वह रहेगा किस तरह?
वास्तव में संयोगों और शुद्धात्मा के सिवा दूसरा कुछ है ही नहीं । फिर संयोग भी दो प्रकार के हैं - प्रतिकूल और अनुकूल। उनमें, अनुकूल में कोई परेशानी नहीं आती, प्रतिकूल ही परेशान करते हैं। उतने ही संयोगों को हमें सँभाल लेना है, और फिर संयोग वियोगी स्वभाव के होते हैं । इसलिए उसका समय हो जाएगा, तब चलता बनेगा। हम उसे 'बैठ-बैठ' कहें, फिर भी खड़ा नहीं रहेगा !
खराब संयोग अधिक नहीं रहते। लोग दु:खी क्यों है? क्योंकि खराब संयोगों को याद कर-करके दुःखी होते हैं । वह गया, अब किस लिए रोनाधोना मचाया है? जले उस समय रोए तो बात अलग है । पर अब तो तेरे ठीक होने की तैयारी हुई है, फिर भी शोर मचाता है कि देखो, 'मैं जल गया, मैं जल गया!' करता रहता है।
I
आपके भी अब सिर्फ संयोग ही बचे हैं । मीठे संयोगों का आपको उपयोग करना नहीं आता । मीठे संयोगों का आप वेदन करते हो, इसलिए कड़वों का भी वेदन करना पड़ता है । परंतु यदि मीठे को ‘जानो’, तो कड़वे में भी ‘जानपना' रहेगा ! लेकिन आपकी अभी पहले की आदतें जाती नहीं, इसलिए वेदन करने जाते हो । आत्मा वेदन करता ही नहीं, आत्मा जानता ही रहता है। जो वेदन करता है वह भ्राँत आत्मा है, प्रतिष्ठित आत्मा है।