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आप्तवाणी-६
से थोड़ा भी टकराए तो खतम! सामनेवाला टकराए तो हमें संयमपूर्वक रहना चाहिए! टकराव तो होना ही नहीं चाहिए। फिर यह देह खत्म होना हो तो हो जाए, परंतु टकराव में नहीं आना चाहिए।
देह तो किसी के कहने से चला नहीं जाता। देह तो व्यवस्थित के ताबे में है!
इस जगत् में बैर से घर्षण होता है। संसार का मूल बीज, बैर है। जिसके बैर और घर्षण, दोनों बंद हो गए उसका मोक्ष हो गया ! प्रेम बाधक नहीं है, बैर जाए तब प्रेम उत्पन्न होता है।
मेरा किसी के खास घर्षण नहीं होता। मुझे कोमनसेन्स ज़बरदस्त है इसलिए आप क्या कहना चाहते हो, वह तुरंत ही समझ में आ जाता है। लोगों को ऐसा लगता है कि ये दादा का अहित कर रहे हैं, परंतु मुझे तुरंत समझ में आ जाता है कि यह अहित, अहित नहीं है। सांसारिक अहित नहीं है और धार्मिक अहित भी नहीं है, और आत्मा संबंध में अहित है ही नहीं। लोगों को ऐसा लगता है कि आत्मा का अहित कर रहे हैं, परंतु हमें उसमें हित समझ में आता है। इतना इस कोमनसेन्स का प्रभाव है। इसलिए हमने कोमनसेन्स का अर्थ लिखा है कि 'एवरीव्हेर एप्लीकेबल।'
आजकल की जनरेशन में कोमनसेन्स जैसी वस्तु है ही नहीं। जनरेशन टु जनरेशन कोमनसेन्स कम होता गया है।
पूरा जगत् घर्षण और संघर्षण में पड़ा हुआ है। यह दिवाली के दिन सब नक्की करते हैं कि आज घर्षण नहीं करना है, इसलिए उस दिन अच्छा-अच्छा खाने को मिलता है, अच्छे-अच्छे कपड़े पहनने को मिलते हैं, सबकुछ ही अच्छा-अच्छा मिलता है। जहाँ जाओ वहाँ आओ, आओ' करें, वैसा प्रेम मिलता है। संघर्ष नहीं हो तो प्रेम रहता है। सही-गलत देखने की ज़रूरत ही नहीं है। व्यवहारिक बुद्धि व्यवहार में तो काम आती ही है, परंतु वह तो अपने आप एडजस्ट है ही। परंतु दूसरी विशेष बुद्धि है, वही हमेशा संघर्ष करवाती है!