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आप्तवाणी-६
दादाश्री : खाली हो जाएगा। खाली हो जाएगा ऐसा मानकर हमें चलते रहना है, लेकिन फिर से वैसी भूल नहीं होनी चाहिए। नहीं तो वह पाइप बंद हो जाएगा। फिर यदि भूल होने को हो तो तीन उपवास करना, परंतु विराधना मत होने देना!
ज्ञानी के राजीपे की चाबी प्रश्नकर्ता : दादा भगवान, आपकी सच्ची पहचान प्राप्त करने के लिए हमें क्या करना चाहिए? और आपका राजीपा (गुरुजनों की कृपा और प्रसन्नता) प्राप्त करने के लिए हमें किस प्रकार पात्रता प्राप्त करनी चाहिए?
दादाश्री : राजीपा प्राप्त करने के लिए तो 'परम विनय' की ही ज़रूरत है। दूसरी किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। ‘परम विनय' से ही राजीपा मिलता है। ऐसा कुछ है ही नहीं कि पैर दबाने से राजीपा मिलता है। मुझे गाड़ियों में घुमाओ तो भी राजीपा नहीं मिलेगा। 'परम विनय' से ही मिलेगा।
प्रश्नकर्ता : ‘परम विनय' समझाइए।
दादाश्री : जिसमें विशेषरूप से 'सिन्सियारिटी' और 'मॉरेलिटी' (नैतिकता) हो और जिसे हमारे साथ एकता रहे, जुदाई नहीं लगे, 'मैं और दादा एक ही हैं' ऐसा लगता रहे, वहाँ सभी शक्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। 'परम विनय' का अर्थ तो बहुत बड़ा होता है। अपने यहाँ सत्संग में इतने लोग आते हैं, लेकिन यहाँ पर 'परम विनय' के कारण बिना नियम के सब चलता है। ‘परम विनय' है, इसलिए नियम की ज़रूरत नहीं पड़ी।
जो हमारी आज्ञा में विशेष रूप से रहें, उन्हें परिणाम अच्छा मिलता है। उन्हें हमारा राजीपा प्राप्त हो जाता है। आप ऐसा परिणाम बताओ कि मुझे आपको मेरे पास बिठाने का मन हो।