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आप्तवाणी-६
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प्रश्नकर्ता : बुद्धि का। दादाश्री : बुद्धि क्या करती है? प्रश्नकर्ता : बुद्धि सार-असार का भेद बताती है। दादाश्री : बुद्धि की इच्छा अनुसार होता है? प्रश्नकर्ता : नहीं होता। दादाश्री : बुद्धि के ऊपर किसका नियंत्रण है? प्रश्नकर्ता : उसका पता नहीं। दादाश्री : अहंकार का, और किसका?
मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार, ये चार अंत:करण के भाग हैं। इन चार जनों का इस शरीर पर नियंत्रण है, और इन चार जनों का नियंत्रण है, इसलिए भ्रांति खडी है। 'खुद के' हाथ में नियंत्रण आ जाए तो फिर यह माथापच्ची नहीं रहेगी, फिर पुरुषार्थ उत्पन्न होगा।
प्रश्नकर्ता : वह हाथ में आ जाए, उसके लिए क्या करें?
दादाश्री : वह सब 'ज्ञानीपुरुष' कर देते हैं। जो खुद बंधनमुक्त हो चुके हों, वे हमें मुक्त कर सकते हैं। जो खुद बंधा हुआ हो, वह दूसरों को किस तरह मुक्त कर सकेगा? और फिर कलियुग के मनुष्यों में इतनी शक्ति नहीं है कि अपने आप कर सकें। इस कलियुग के मनुष्य कैसे हैं? ये तो फिसलते-फिसलते आए हैं, फिसल गए इसलिए अब उनसे अपने आप चढ़ा जा सके, ऐसा है ही नहीं, इसलिए 'ज्ञानीपुरुष' की हेल्प लेनी पड़ेगी।
जहाँ इन्टरेस्ट, वहीं एकाग्रता प्रश्नकर्ता : दादा, मुझे भगवान में एकाग्रता नहीं रहती।
दादाश्री : आप सब्जी लेने या साड़ी लेने जाती हो, उसमें एकाग्रता रहती है या नहीं?
प्रश्नकर्ता : हाँ, रहती है। मोह होता है इसलिए रहती है।