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आप्तवाणी-६
प्रश्नकर्ता : वह कार्य-कारण भाव का है?
दादाश्री : हाँ। इफेक्ट तो कार्य है और कार्य में बदलाव नहीं होता। यह जो इफेक्ट है, वह डिस्चार्ज है, और भीतर चार्ज होता रहता है। चार्ज बंद किया जा सकता है। डिस्चार्ज बंद नहीं किया जा सकता।
अकर्तापद से अबंध दशा प्रश्नकर्ता : कॉज़ेज़ बंद करने की प्रक्रिया क्या है?
दादाश्री : 'मैं यह करता हूँ' वह भान टूटा, तब से कॉज़ेज़ बंद हो गए। फिर नये कॉज़ेज़ उत्पन्न नहीं होंगे और पुराना माल है, वह डिस्चार्ज होता रहेगा। अब पुराना माल किस तरह डिस्चार्ज होता है, वह आपको समझाऊँ।
यहाँ से चालीस मील की दूरी पर एक इरिगेशन टेन्क में से बड़े पाइप के द्वारा यहाँ अहमदाबाद में तालाब भरने के लिए पानी आता हो, तो वह तालाब भर जाने के बाद फिर हम वहाँ फोन करें कि अब पानी देना बंद कर दो। तब वे लोग तुरंत बंद कर देते हैं, फिर भी कुछ समय तक यहाँ तो पानी आता ही रहेगा, क्योंकि चालीस मील की पाइप में पानी अंदर है तो उसे आने देना पड़ेगा न? उसे क्या कहा जाता है? हम उसे डिस्चार्ज कहते हैं। उसी प्रकार हमसे ज्ञान लिए हुए व्यक्ति का चार्ज बंद हो जाता है। मैं करता हूँ' वह भान टूट जाता है, 'व्यवस्थित' करता है
और 'शुद्धात्मा' ज्ञाता-दृष्टा रहता है। फिर जो भी हो, उसे 'देखते' रहना है अर्थात् कर्तापद पूरा उड़ जाता है कि जिससे चार्ज होता था। फिर जो डिस्चार्ज बचा, उसका निकाल करना बाकी रहता है।
प्रारब्ध बना पुराना, 'व्यवस्थित' से ज्ञान समाया
प्रश्नकर्ता : आप 'व्यवस्थित' शक्ति को प्रभुशक्ति कहते हैं या प्रारब्ध कहते हैं?
दादाश्री : नहीं, इस 'व्यवस्थित शक्ति' और प्रारब्ध का कुछ भी लेना-देना नहीं है। कोई भी व्यक्ति यदि प्रारब्ध को माने तो लोग आकर