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कषायों की शुरूआत प्रश्नकर्ता : 'चार्ज' कषाय और 'डिस्चार्ज' कषाय के बारे में मुझे जानना है।
दादाश्री : अभी आपको जो कषाय हो रहे हैं, आप यदि किसी के साथ अभी गुस्सा हो जाओ, तो वह कषाय 'डिस्चार्ज' है। परंतु यदि उसके अंदर आपका भाव है, तो फिर से 'चार्ज' का बीज डलेगा।
प्रश्नकर्ता : कोई भी 'डिस्चार्ज' होता है तो, उसमें 'चार्ज' तो होगा न? भावकर्म आएँगे न?
दादाश्री : नहीं, जब 'डिस्चार्ज' होता है तब यदि 'चार्ज' नहीं करना हो, तो जिसने हमारे पास ज्ञान लिया है, उसे 'चार्ज' होता ही नहीं। फिर कर्म चिपकता ही नहीं।
__ प्रश्नकर्ता : उसका कोई टेस्ट है कि यह 'डिस्चार्ज' है और यह 'चार्ज' है?
दादाश्री : हाँ, सभी टेस्ट हैं। खुद को सब पता चलता है। यदि चार्ज होता हो, तो उसके साथ अशांति होती है। अंदर समाधि टूट जाती है। और चार्ज नहीं होता हो उसमें तो समाधि जाती ही नहीं!
प्रश्नकर्ता : समाधि हो फिर भी क्रोध आता है?
दादाश्री : क्रोध आता है वह 'डिस्चार्ज' क्रोध है, परंतु अंदर क्रोध करने का भाव हो तो उसमें समाधि नहीं रहती।
प्रश्नकर्ता : लोभ का भी उसी तरह होता है?