________________
[६] विश्वकोर्ट में से निर्दोष छुटकारा कब? हमसे किसी को किंचित्मात्र दुःख हो जाए, तब कोर्ट में फिर केस चलता रहेगा! जब तक कोर्ट में झगड़े हैं, तब तक छूटेंगे नहीं। ये कोर्ट के झगड़े में आए हुए लोग हैं। अब कोर्ट के झगड़े मिटाने हों, तो हमें किसीने गाली दी हो तो उसे छोड़ देना है और हमें किसी को भी गाली नहीं देनी है। क्योंकि यदि हम दावा करेंगे, तब भी फिर केस चलता रहेगा! हम फौजदारी करेंगे तो वापस वकील ढूँढने जाना पड़ेगा। अब हम यहाँ से मुक्त हो जाना है। यहाँ अच्छा नहीं लगता, इसलिए हमें रास्ता निकालना है, सबकुछ छोड़ देना है!
किसी को किंचित्मात्र दुःख हो तो कोई जीव मोक्ष में नहीं जा सकता। फिर वे साधु महाराज हों या चाहे जो हों। सिर्फ शिष्य को ही दु:ख होता हो, तब भी महाराज को यहाँ पर रुके रहना पड़ेगा, चलेगा ही नहीं!
जब कि अज्ञानी तो सभी को दुःख ही देता है। दुःख नहीं देता हो फिर भी भाव तो भीतर दु:ख के ही बरतते रहते हैं। 'अज्ञानता है वही हिंसा है और ज्ञान, वह अहिंसक भाव है।'
किसी को दुःख देने की इच्छा तुझे होती नहीं है न अब?
प्रश्नकर्ता : कभी-कभी दे दिया जाता है। दादाश्री : दुःख दे दिया जाए तो क्या करते हो? प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण।