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आप्तवाणी-६
प्रश्नकर्ता : परंतु उस समय प्रकृति थोड़ा-बहुत ज़ोर लगाती है न फिर से? प्रकृति का स्वभाव निकलता तो है न?
दादाश्री : सबकुछ निकलेगा, फिर भी हमें' 'देखते' रहना है। वह सारा अपना ही हिसाब है।
प्रश्नकर्ता : प्रकृति का हिसाब तो पूरा करना है न?
दादाश्री : उसमें हमें कुछ भी नहीं करना है। अपने आप ही होता रहेगा। 'हमें' तो 'देखते' रहना है कि कितना हिसाब बाकी रहा! 'हम' ज्ञाता-दृष्टा, परमानंदी, 'हमें' सभी कुछ पता चलता है।
प्रतिक्रमण कर रहे हैं, तो 'चंदूभाई' करते हैं। उससे 'हमें' क्या लेना-देना? 'हमें' 'देखते' रहना है कि 'चंदूभाई' ने प्रतिक्रमण किया या नहीं किया? या वापस आगे धकेला? धकेला हो तो, वह भी पता चल जाएगा!
'चंदूभाई' क्या करते हैं, क्या क्या करते हैं उसे 'हमें' 'देखते' रहना है, वह पुरुषार्थ कहलाता है। 'देखना' चूक गए, वह प्रमाद।
प्रश्नकर्ता : ‘देखते' रहना वह शुद्धात्मा का काम है?
दादाश्री : स्वरूप का ज्ञान होने के बाद वह काम होता है, उसके बिना नहीं होता।
याद क्यों आया? बिना कारण के याद नहीं आता है, उसकी कोई भी शिकायत होगी तभी आएगा। हमें क्यों कुछ याद नहीं आता? इसलिए जो-जो याद आता है, उसके प्रतिक्रमण करते रहना।
प्रश्नकर्ता : जो पुराना भरा हुआ माल है, वह याद आना चाहिए। ऐसा है क्या?
दादाश्री : आता ही है वह। जो माल खपनेवाला है या कर्म का बंधन करनेवाला है वह याद आता ही है। स्वरूप का ज्ञान हो तो माल खप जाता है और अज्ञान हो तो उसी माल से कर्म का बंधन होगा! माल