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आप्तवाणी-६
से किसी को थोड़ा भी दुःख होता है, तो उसका असर आप पर ही पड़ेगा। और वह हिसाब आपको पूरा करना पड़ेगा, इसलिए सचेत रहो।।
आप ऑफिस में आसिस्टेन्ट को झिड़को तो उसका असर आप पर पड़े बगैर रहेगा या नहीं? पड़ेगा ही। बोलो अब जगत् दुःख में से मुक्त किस तरह हो पाएगा? जिससे किसी को भी किंचित्मात्र दुःख नहीं होता हो, वह खुद सुखी होता है। उसमें दो मत हैं ही नहीं। हम जो आज्ञा देते हैं वह, 'आप सब दु:ख में से मुक्त हो जाओ', ऐसी आज्ञा देते हैं। और आज्ञा पालन करने में आपको कुछ भी परेशानी नहीं आती। खाने-पीने की, घूमने-फिरने की सभी छूट। सिनेमा देखने जाना हो, तो उसकी भी छूट! कोई कहे कि मुझे तीन बाल्टियों से नहाना है, तो हम कहें कि चार बाल्टियों से नहा। हमारी आज्ञा बगैर किसी परेशानी की हैं।
इस तरह किसी का असर छोड़ता नहीं है और बच्चे को सुधारने जाओ, लेकिन इससे उसे दुःख हो जाए तो उसका असर आप पर पड़ेगा। इसलिए ऐसा कहो कि जिससे उस पर असर नहीं पड़े और वह सुधरे। तांबे में और काँच के बरतन में फर्क नहीं होता? आप तांबे के और काँच के बरतन को एक समझते हो? तांबे के बरतन में गड्ढा पड़े तो निकाला जा सकता है। लेकिन काँच का तो टूट जाएगा। बच्चे की तो पूरी जिंदगी खत्म हो जाएगी।
इस अज्ञानता से ही मार पड़ती है। इसे सुधारने के लिए आप कहते हो, उसे सुधारने के लिए आप कहते हो, परंतु कहने से उसे जो दु:ख हुआ, उसका असर आप पर पड़ेगा।
प्रश्नकर्ता : इस काल में बच्चों को तो कहना पड़ता है न?
दादाश्री : कहने में हर्ज नहीं है, परंतु ऐसा कहो कि उसे दुःख नहीं हो और उसके प्रतिस्पंदन वापस आप पर नहीं आएँ। आपको तय कर लेना है कि मुझे किसी को किंचित्मात्र दुःख नहीं देना है।
याद-शिकायतों का निवारण याद कहाँ से आती है? याद से कहें, हमें कुछ लेना-देना नहीं है, कुछ