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आप्तवाणी-६
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प्रश्नकर्ता: नहीं, परंतु किसी से मौन रखा गया तो?
दादाश्री : किस तरह रहेगा? बुद्धि इमोनशनल ही रखती है। मोशन में रखती ही नहीं। शांति से घड़ीभर के लिए आपको बैठने ही नहीं देगी। बुद्धि रात को दो बजे उठा देगी ! धमाचौकड़ी ! धमाचौकड़ी ! चैन से आराम भी नहीं करने देगी !
प्रश्नकर्ता : जब ज्ञाता - दृष्टा रहें, तब ही बुद्धि का उपयोग नहीं होगा?
दादाश्री : ज्ञाता-दृष्टा रहें, फिर बुद्धि का हर्ज नहीं है, फिर तो बुद्धि का उपयोग होगा ही कैसे ? फिर तो अंतिम 'स्टेशन' आ जाएगा ! पर बुद्धि ज्ञाता-दृष्टा रहने ही नहीं देती।
सब्ज़ी लेने मार्केट गए हों और आपको सत्संग में जाने की जल्दी हो, तब भी यह बुद्धि चार दुकानों पर घुमाती है ! तब जाकर छोड़ती है! बुद्धि भटकाती ही रहती है !
प्रश्नकर्ता : जहाँ पर जो मिला, सख्त भिंडी लेकर घर आए, यानी बुद्धि नहीं दौड़ी ऐसा?
दादाश्री : आपको क्या भरोसा है कि सख्त आएगी या नरम आएगी? कई तो दुकान पर जाकर सिर्फ बोलते हैं कि भिंडी तौल दो और अच्छी भिंडी आ जाती है !
और सख्त आए, तब भी क्या कुछ बिगड़ गया? संसार में तो ऐसा चलता ही रहेगा। रोज़ सख्त नहीं आएँगी । कभी ही आती है। लेकिन फिर उसका पुण्य होता है न? भले मनुष्यों के तो पुण्य भी सब भले ही होते । वे आगे से आगे तैयार ही होते हैं । और खटपट करनेवाले का ही सारा पुण्य खटपटवाला होता है।
अहंकार के उदय में 'एडजस्टमेन्ट'
प्रश्नकर्ता : यह अहंकार, वह क्या वस्तु है?
दादाश्री : अहंकार, वह कोई वस्तु नहीं है । किसीने कहा कि