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आप्तवाणी-६
का पता चल जाता है, परंतु उसका हम पर असर नहीं होता। इसलिए ही कवि ने लिखा है कि,
'मा कदी खोड काढे नहीं,
दादाने य दोष कोईना देखाय नहीं।' आपकी निर्बलता हम जानते हैं और निर्बलता होती ही है। इसलिए हमारी सहज क्षमा होती है। क्षमा देनी नहीं पड़ती, मिल जाती है, सहज रूप से। सहज क्षमा गुण तो अंतिम दशा का गुण कहलाता है। हमारी सहज क्षमा होती है। इतना ही नहीं, परंतु आपके प्रति हमें एक सरीखा प्रेम रहता है। जो बढ़े-घटे, वह प्रेम नहीं होता, वह आसक्ति है। हमारा प्रेम बढ़ता नहीं और घटता भी नहीं। वही शुद्ध प्रेम, परमात्म प्रेम है!
दोष हुआ कि तुरंत ही आपको शूट एट साइट प्रतिक्रमण करना चाहिए। आपको' 'चंदूभाई' से कहना है, 'चलो चंदूभाई, प्रतिक्रमण करो।' चंदूभाई कहें कि, 'ये बुढ़ापा आ गया, अब नहीं होता।' तब आपको उसे कहना है कि, 'हम आपको शक्ति देंगे।' फिर बुलवाना कि बोलो, 'मैं अनंत शक्तिवाला हूँ' तब फिर शक्ति आ जाएगी।
जिसे दोष दिखने लगे, पाँच दिखे तब से ही समझना कि अब निबेड़ा आनेवाला है।
जितने दोष दिखे, वे दोष गए! तब कोई कहेगा, वैसा का वैसा दोष फिर से दिखता है। वास्तव में वही दोष फिर से नहीं आता। यह तो एकएक दोष प्याज की परतों की तरह अनेक परतोंवाले होते हैं। यानी जब एक परत उखड़े, तब हम प्रतिक्रमण करके निकाल देते हैं, तब दूसरी परत आकर खड़ी रहती है, वही की वही परत फिर से नहीं आती। तीस परतें थीं, उनमें से उनतीस रही। उनतीस में से एक परत जाएगी तब अट्ठाइस रहेंगी। ऐसे घटती जाएँगी और अंत में वह दोष खत्म हो जाएगा!