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आप्तवाणी-६
दोष हो जाए उसमें हर्ज नहीं है। उस पर उपयोग रखना है। उपयोग रखा तो दोष दिखते ही रहेंगे। और कुछ भी नहीं करना है।
चंदूभाई से 'आपको' इतना ही कहना पड़ेगा कि प्रतिक्रमण करते रहो। आपके घर के सभी लोगों के साथ आपको, 'मुझसे पहले कुछ भी मनदुःख हुआ हो, इस भव में, संख्यात या असंख्यात भवों में जो-जो रागद्वेष, विषय-कषाय से दोष किए हों मैं उनकी क्षमा माँगता हूँ।' इस तरह रोज़ एक-एक घंटा निकालना। घर के हरएक व्यक्ति के, आसपास के सर्कल के, हरएक को लेकर, उपयोग रखकर प्रतिक्रमण करते रहना चाहिए। ऐसा करने के बाद ये सारे बोझ हल्के हो जाएंगे। वर्ना यों ही हल्का नहीं हुआ जाता। हमने पूरे जगत् के साथ इस तरह निवारण किया है, तभी तो यह छुटकारा हुआ।
जब तक सामनेवाले का दोष खुद के मन में है, तब तक चैन नहीं पड़ने देता। प्रतिक्रमण करो तो वह खत्म हो जाएगा। राग-द्वेषवाली हर एक चीकणी फाइल (गाढ़ ऋणानुबंधवाले व्यक्ति अथवा संयोग) को उपयोग रखकर प्रतिक्रमण करके शुद्ध करना है। राग की फाइल हो, उसके तो खास प्रतिक्रमण करने चाहिए।
प्रतिक्रमण हो गए यानी चाहे जितना बैर हो, फिर भी इस भव में ही छूट जाएँगे। प्रतिक्रमण ही एक उपाय है। भगवान महावीर का सिद्धांत, आलोचना, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान का है। जहाँ पर आलोचना, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान नहीं है, वहाँ पर मोक्षमार्ग ही नहीं है।
हममें स्थूल दोष या सूक्ष्म दोष नहीं होते हैं। ज्ञानी के सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम दोष होते हैं। जो अन्य किसी को किंचित्मात्र भी अड़चनरूप नहीं होते। हमारे सूक्ष्म से सूक्ष्म, अति सूक्ष्म दोष भी हमारी दृष्टि से बाहर नहीं जा सकते। और किसी को पता नहीं चलता कि हमारा दोष हुआ है।
आपके दोष भी हमें दिखते हैं, परंतु हमारी दृष्टि आपके शुद्धात्मा की तरफ होती है, उदयकर्म की तरफ दृष्टि नहीं होती। हमें सभी के दोषों