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आप्तवाणी-६
है, पर-परिणाम नहीं होते। जिनके वाणी, वर्तन, विनय मनोहर होते है, आर्तध्यान और रौद्रध्यान सर्वांश रूप से नहीं होते और अहंकार शून्य हो जाने से, टेन्शन नहीं होने से, निरंतर मुक्त हास्य रहता है, अनंत गुणों के भंडार होते हैं, वे 'ज्ञानीपुरुष' कहलाते हैं।
प्रतिक्रमण, ज्ञानी के आप बिस्तर पर सो गए हों तो जहाँ-जहाँ कंकड़ चुभे, वहाँ से आप निकाल दोगे या नहीं निकालोगे? यह प्रतिक्रमण तो, जहाँ-जहाँ चुभ रहा हो वहीं पर करने हैं। आपको जहाँ चुभता है, वहाँ से आप निकाल दोगे
और जहाँ इन्हें चुभता है, वहाँ से वे निकाल देंगे! प्रतिक्रमण हर एक व्यक्ति के अलग-अलग होते हैं।
अभी कोई व्यक्ति किसी पर उपकार कर रहा हो फिर भी उसके घर पर अनाचार हो, ऐसे केस हो जाते हैं, तो वहाँ पर प्रतिक्रमण करने ही पड़ेंगे। प्रतिक्रमण तो, जहाँ चुभे वहाँ सभी जगह पर करना पड़ेगा, परंतु हर एक के प्रतिक्रमण अलग-अलग होते हैं।
मुझे भी प्रतिक्रमण करने होते हैं। मेरे अलग प्रकार के और आपके भी अलग प्रकार के होते हैं। मेरी भूल आपको बुद्धि से पता नहीं चल सके, ऐसी होती है। यानी कि वे सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम होती हैं। उसके हमें प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं। हमें तो उपयोग चूकने का भी प्रतिक्रमण करना पड़ता है। उपयोग चूक गए, वह हमें तो पुसाएगा ही नहीं न? हमें इन सबके साथ बातें भी करनी पड़ती है, सवालों के जवाब भी देने पड़ते हैं, इसके बावजूद हमें हमारे उपयोग में ही रहना होता है।
जब तक हममें साहजिकता होती है, तब तक हमें प्रतिक्रमण की आवश्यकता नहीं होती। साहजिकता में प्रतिक्रमण आपको भी नहीं करने पड़ते। साहजिकता में फर्क पड़ा कि प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। हमें आप जब देखोगे तब साहजिकता में ही देखोगे। जब देखो तब हम वैसे ही स्वभाव में दिखते हैं। हमारी साहजिकता में बदलाव नहीं आता!