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व्यवहार में उलझनें प्रश्नकर्ता : व्यवहार में जो गाँठे फूटती हैं, वे ऐसी-ऐसी फूटती हैं कि उनमें समाधान लेना कठिन हो जाता है?
दादाश्री : अपने ये 'पाँच वाक्य' हैं, वे आख़िर में समाधान ले आएँ, ऐसे हैं। जल्दी या देर से परंतु वे समाधान ले आते हैं। बाकी और किसी भी प्रकार से समाधान नहीं हो सकता। इसलिए ही यह जगत् गुह्य पहेली है। 'द वर्ल्ड इज़ द पज़ल इटसेल्फ।' वह कभी भी सोल्व होती ही नहीं। पूरे दिन खुद व्यवहार में उलझा हुआ ही होता है, फिर किस तरह वह आगे प्रगति करेगा? कोई न कोई पहेलियाँ खड़ी होती ही रहेगी। सामने कोई मिला कि पहेली खड़ी हुई।
प्रश्नकर्ता : एक पहेली पूरी की हो, वहाँ दूसरी पहेली मुँह फाड़कर खड़ी ही होती है।
दादाश्री : हाँ, यह तो पहेलियों का संग्रहस्थान है। परंतु यदि तू अपने आपको पहचान जाए तो हो गया तेरा कल्याण! वर्ना ये पहेलियाँ तो हैं ही डूबने के लिए! यह सब पराई पीड़ा है, ऐसा समझ में आ जाए, तो वह भी अनुभवज्ञान है। अनुभव में आए कि यह पीड़ा मेरी नहीं है, पराई है, तब भी कल्याण हो जाएगा।
'क' की करामात अंदर सभी तरह-तरह के 'क' बैठे हुए हैं। 'क' अर्थात् करवानेवाले। लोभक, मोहक, क्रोधक, चेतक... मोहक मोह करवाता है। हमें मोह नहीं करना हो, फिर भी करवाता है!