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[४] प्रतिस्पंदन से दुःख परिणाम अपने से दूसरों को दुःख होता है, ऐसा जो हमें दिखता है, वह हमारा सेन्सिटिवनेस का गुण है। सेन्सिटिवनेस एक प्रकार का अपना इगोइज़म है। वह इगोइज़म जैसे-जैसे विलय होता जाएगा, वैसे-वैसे हमसे सामनेवाले को दुःख नहीं होगा। जब तक अपना इगोइज़म हो तब तक सामानेवाले को दुःख होता ही है।
प्रश्नकर्ता : वह तो आपकी अवस्था की बात हुई! अब हमारे लिए प्रश्नों का हल आना चाहिए न?
दादाश्री : हाँ, आना ही चाहिए।
प्रश्नकर्ता : परंतु इससे तो सिर्फ खुद के लिए ही हल आएगा न?
दादाश्री : खुद के लिए ही नहीं, हर एक के लिए धीरे-धीरे हल आना ही चाहिए। खुद के हल आ जाएँ तभी सामनेवाले का भी हल आएगा, ऐसा है। लेकिन खुद का इगोइज़म है तब तक सामनेवाले को नियम से असर होता ही रहेगा। वह इगोइज़म विलय हो ही जाना चाहिए।
ये तो इफेक्ट्स हैं सिर्फ! दुनिया में दुःख जैसी वस्तु ही नहीं है। यह तो रोंग बिलीफ़ है सिर्फ। उसे सच्चा मानता है। अब उसकी दृष्टि से तो वह वास्तव में वैसा ही है न? इसलिए किसी भी प्रकार के असर हों ही नहीं, उसके लिए हमें कैसा बनना चाहिए? हमें चोखा (खरा, अच्छा, शुद्ध, साफ) हो जाना चाहिए। हम चोखे हो गए तो बाकी का सब चोखा हुए बगैर रहेगा ही नहीं।