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आप्तवाणी-६
इसमें हमें जैसा पसंद है, वैसा बोलना चाहिए। ऐसा प्रोजेक्ट करो कि आपको पसंद आए। यह सारा आपका ही प्रोजेक्शन है। इसमें भगवान ने कोई दख़ल नहीं की है।
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दुनिया में किसी को बेअक्ल मत कहना । अक्लवाला ही कहना। तू समझदार है, ऐसा ही कहोगे तब तुम्हारा काम होगा । एक आदमी उसकी भैंस से कह रहा था कि 'तू बहुत समझदार है बा, बहुत अक्लवाली है, समझदार है।' मैंने उससे पूछा, 'भैंस को तू ऐसा क्यों कहता है?' तब उसने कहा कि, ‘ऐसा नहीं कहूँ तो भैंस तो दूध देना ही बंद कर दे।' भैंस यदि इतना समझती है तो क्या मनुष्य नहीं समझेंगे?
बुद्धि की दखल से हुई डखलामण
यह जगत् ‘रिलेटिव' है, व्यवहारिक है । हम सामनेवाले से एक अक्षर भी नहीं कह सकते। और यदि 'परम विनय' में हों तो कमियाँ भी नहीं निकाल सकते । इस जगत् में किसी की कमियाँ निकालने जैसा नहीं है। 'कमी निकालने से कैसा दोष लगेगा', उसका पता कमी निकालनेवाले को नहीं है।
प्रश्नकर्ता : कमी नहीं निकालते हम लोग, लेकिन सामनेवाले की प्रगति हो, इसलिए बोलते हैं ।
दादाश्री : उसके आगे बढ़ने का हिसाब आपको नहीं लगाना है। आगे बढ़ाने का काम तो कुदरत अपने आप करती रहती है। आपको सामनेवाले को आगे बढ़ाने की इच्छा नहीं करनी है। कुदरत कुदरत का काम करती ही रहती है । हमें अपनी तरफ से सभी फ़र्ज़ निभाते रहना है
बुद्धि आपको परेशान करे कि ऐसा करेंगे तो ऐसा होगा और वैसा करेंगे तो वैसा होगा। कुछ भी नहीं होता । कोई कुछ कर सके ऐसा है ही नहीं । कुदरत कुदरत का काम करती ही रहती है । कोई किसी से सलाह माँगने नहीं आता। फिर भी यह तो बिन माँगी सलाह परोसते ही जाते हैं ।
इस बुद्धि का मानने जाएँ न तो यहाँ पर सत्संग में सब से पहले