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आप्तवाणी-६
यदि आपके आशय का नहीं होता तो आपको रात को नींद ही नहीं आती । लुटेरे का पुरुष को लूटने का आशय हो तो उसे स्त्री मिलती ही नहीं। आशय के अनुसार बुद्धि होती है, विचार होते हैं और पूरी जिंदगी आशय के अनुसार गुज़रती है। अब वहाँ एडजस्टमेन्ट क्यों नहीं हो पाता ? पहले के आशय के अनुसार सबकुछ मिलता है। अभी के ज्ञान के अनुसार वह एडजस्ट नहीं होता। इसके बावजूद आशय में हो वही पसंद आता है आशय में चेन्ज नहीं हो सकता। सिर्फ नई ग्रंथि नहीं डलती और पुरानी खत्म हो जाती है। फिर निर्ग्रथ हो जाता है । अब ज्ञान मिलने के बाद नया आशय नहीं बंधता और पिछला विलय होता जाता है ।
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प्रश्नकर्ता : निर्ग्रथ होने के लिए क्या करें?
दादाश्री : अपने यहाँ करवाते हैं वैसी सामायिक करना । सामायिक से जो बहुत बड़ी ग्रंथि होती है, जो बहुत परेशान करती हो, वह विलय हो जाती है।
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प्रश्नकर्ता : खुद की भूलें सामायिक में प्रयत्न करके देखनी चाहिए? सामायिक में तो प्रयत्न करना पड़ता है न?
दादाश्री : नहीं प्रयत्न अर्थात् तो मन को क्रिया में ले जाना। मन क्रियाशील करना वह प्रयत्न, जब कि 'देखना', वह क्रिया में नहीं
आता।
पहले जो भूलें नहीं दिखती थीं, वे ही भूलें अब दिखती हैं । क्रिया में फर्क नहीं है। जो दिखता है, वह ज्ञान के प्रताप से !
प्रतिष्ठा से पुतला
प्रश्नकर्ता : 'प्रतिष्ठित आत्मा' यानी क्या?
दादाश्री : जब तक ‘मैं खुद कौन हूँ' वह नहीं जान लें, तब तक जिसे हम आत्मा मानते हैं कि 'यह चंदूभाई मैं ही हूँ', वही ‘प्रतिष्ठित आत्मा' है। आत्मा यानी क्या? खुद का 'सेल्फ' । हम एक मूर्ति में प्रतिष्ठा करते हैं वैसे, यह प्रतिष्ठा की हुई है, इसलिए हमें यह फल देती रहती है। मूल