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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८० प्रतिपक्षनार्मानरूपणम् अनादिसिद्धान्तेन ? अमनम्-अन्तः-अग्नम् अम-गतौ' इत्यस्माद-ल्युट् वाच्यवाचकरूपतया परिच्छेदः, अनादिसिद्धश्चासौ अन्तश्चेति कर्मधारयस्तेन, अर्थात्अनादिकालादारभ्येदं वाचकम् इदं वाच्यमित्येवं सिद्धः प्रतिष्ठितो योऽन्तः परि च्छेदो-निर्णयस्तेन यन्नाम निष्पश्यते तत् किंकि विधम् ? इति शिष्यमश्नः । उत्तरयति-अनादिसिद्धान्तेन यन्नाम निष्पद्यते तदेवं विज्ञेयम् । तथाहि-धर्मास्तिकायाद्यारम्यादासमयपर्यन्तानि षड् नामानि अनादिसिद्धान्तनिष्पन्नानि बोध्या: नि । धर्मास्तिकायादयः प्राग्व्याख्याताः । गौणनाम्नोऽस्य भेद एवं विज्ञेयः । अशोक आदिकों को सामस्त्धेन व्याप्ति नहीं है। इस प्रकार गुण निष्पन्न नाम से इस प्रधानता निष्पन्न नाम में बहुत अन्तर है। इस प्रकार से यह प्रधानता से निष्पन्न नाम है । (से किं तं अणाइसिद्धतेणं) हे भदन्त ! अनादिसिद्धान्त से निष्पन्न नाम किस प्रकार का होता है ?
उत्तर-(अणादिसिद्धतेणं) अनादिमिद्धान्त से निष्पन्न नाम इस प्रकार का होता है-शब्दवाचक है और उसका अर्थ वाच्य है, इस प्रकार का जो वाच्य वाचकल्प से ज्ञान होता है, वह 'अन्त' है। यह अन्त अनादिकाल से सिद्ध है-अर्थात् अनादि काल से लेकर यह वोचक है और यह वाच्य है-इस रूप से सिद्ध प्रतिष्ठित है-इस अनादि सिद्ध अन्त-निर्णय-से जो नाम निष्पन्न-उत्पन्न होता है वह अनादिसिद्धान्त निष्पन्न नाम है-वह इस प्रकार से जानना चाहिये(धम्मस्थिकाए, अधम्मस्थिकाए, आगालस्थिकाए, जीवस्थिकाए, पुग्गलस्थिकाए, अद्धासमए) धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकार्य; નથી આ રીતે ગુણ નિષ્પન્ન નામથી આ પ્રધાનતા નિષ્પન્ન નામમાં બહુજ म.तर छे. माम मा प्रधानतायी निष्पन्न नाम छ. (से कि त अणाइसिद्धतेणं) હે ભદંત! અનાદિ સિદ્ધાન્તથી નિષ્પન્ન નામ કેવા પ્રકારનું હોય છે?
उत्तर-(अणादिविद्धतण) सन सिद्धान्तथी नि०पन्न नाम मा પ્રકારનું હોય છે–શબ્દવાચક છે અને તેને અર્થ વાચ્ય છે, આ પ્રમાણે જે વાચ્યવાચક રૂપનું જ્ઞાન થાય છે તે “અંત' છે. આ “અંત” અનાદિકાલથી સિદ્ધ છે. એટલે કે અનાદિ કાલથી જ આ વાચક છે અને આ વાચ્ય છે. આ રૂપથી સિદ્ધ પ્રતિષ્ઠિત છે. આ અનાદિ સિદ્ધ અંતનિર્ણયથી જે નામ નિષ્પન્ન-ઉત્પન થાય છે તે અનાદિ સિદ્ધાન્ત નિષ્પન નામ છે–તે આ प्रमाणे यदुन्न, (धम्मस्थिकाए, अधम्मस्थिकाए, आगासस्थिकाए, जीवत्थिकाए, पुग्गलत्थिकाए, अद्धासमए) परताय, मस्तिय, मस्ति .