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अंनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८० प्रतिपक्षनामनिरूपणम् एवायं विज्ञेयोऽतारवचनबादिति। एनानि नामानि मतिपक्षपदेन बोध्यानि । ननु नोगौणादस्य को भेदः? इति चेदाह-नोगौणं हि कुन्तादिपत्तिनिमित्ताभावं. मात्रमादाय प्रवर्तते, इदं तु प्रतिपक्षधर्मवाचकत्वमादायेत्यनयोभंद इति नास्ति दोषः । इदमुपसंहरबाह-तदेतत् प्रतिपक्षपदेनेति । अथ किं तत् प्रधानतया? प्रधानस्य भावः प्रधानता तया यन्नाम निष्पद्यते तत् किं-किं विधम् ? इति प्रश्नः । उत्तरयति-प्रधानतया-'अशोकवनम्' इत्यारभ्य 'शालिवनम्' इत्यन्तं जो व्यक्ति बहुत ही अधिक असंबद्ध बोलता है, लोग उसे 'अभाषक' कहते हैं, क्योंकि इस के वचन सारविहीन होते हैं। ये नाम प्रतिपक्ष पद से जानना चाहिये।
शंका-नो गौण पद से इस में क्या अन्तर है ?
उत्तर--नोगौण जो पद है, वह कुन्तादि की प्रवृत्ति के निमित्त के अभाव मात्र को लेकर प्रवृत्त होता है। परन्तु यह प्रतिपक्ष के धर्म का वाचक जो शब्द है उसको लेकर प्रवृत्त होता है। इस प्रकार से इन दोनों में भेद है। (से तं पडिवक्खपएणं) इस प्रकार यह प्रतिपक्षपद से निष्पन्न हुआ नाम है। (से किं तं पाहण्णयाए) हे भदन्त ! प्रधानता से जो नाम निष्पन्न होता है, वह किस प्रकार होता है ?
उत्तर-(पाहण्णयाए) प्रधानता से जो नाम निष्पन्न होता है, वह इस प्रकार का होता है-(असोगवणे सत्तपण्गवणे चंपगवणे चुभवणे नागवणे पुन्नागवणे उच्छुवणे दक्खवणे सालिवणे-से तं पाहण्णयाए) અસંબદ્ધ બોલે છે, જો કે તેને “અભાષક' કહે છે. કેમકે એના વચન અર્થ વિહીન હોય છે, એ નામે પ્રતિપક્ષ પરથી જાણવાં જોઈએ.
શંકા–ને ગૌણ પદ કરતાં આમાં શું તફાવત છે.
ઉત્તર–ને ગૌણ જે પદ છે, તે કુન્તાદિ-પ્રવૃત્તિ-નિમિત્તના અભાવ. માત્રને લઈને પ્રવૃત્ત થાય છે. પણ આ પ્રતિપક્ષના ધર્મને વાચક જે શબg छ तर प्रवृत्त डाय छे. ॥ प्रभार तसा भन्नेमा १२४ छे. (सेतं पडिवक्खपएण) मा प्रभारी प्रतिपक्षपाथी निन थये नाम छ. (से कि तं पाहण्णयाए) 8 महन्त ! प्रधानताथी २ नाम (न०५न्न थाय छ તે કેવા પ્રકાર હોય છે?
उत्तर-(पाहण्णयाए) प्रधानताथा २ नाम निपन्न याय छ, त । प्राय छ-(असोगवणे खत्तपण्णवणे चंपगवणे चुअवणे नागवणे पुन्नागवणे उच्छुवणे. दक्खवणे सालिवणे से तं पाहण्णयाए). Aqन, सपना