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जैन संस्कृत आध्यात्मिक टीकाकार एक सर्वेक्षण
- डॉ. रमेशचन्द जैन
जैनधर्म में आगम और अध्यात्म दो कथन शैलियाँ हैं जो समस्त दोषों से रहित तथा केवलज्ञान आदि परम वैभव सहित हैं, वे परमात्मा हैं इनसे विपरीत परमात्मा नहीं हैं। उस परमात्मा के मुख से निकले हुए वचन जो पूर्वापर दोष रहित और शुद्ध हैं, वही आगम है। उस आगम में कहे गए ही तत्त्वार्थ हैं । आगम का क्षेत्र जीव, पुद्गलकाय, धर्म, अधर्म, काल और आकाश है। इन्हीं का नाम तत्त्वार्थ है । ये गुण और पर्यायों से संयुक्त हैं। आगम में समस्त द्रव्यों के निरूपण के साथ आत्मा का भी निरूपण है और आत्मा की स्वाभाविक अवस्था, सिद्ध अवस्था का भी इसमें निरूपण है। इस प्रकार आत्मा की समस्त संयोगी पर्यायों का निरूपण कर अन्त में उसकी सिद्ध पर्याय का निरूपण होने के कारण ही आगम को सिद्धांत शब्द से भी कहते हैं ।
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अध्यात्म शब्द की परिभाषा देते हुए द्रव्यसंग्रह के टीकाकार ब्रह्मदेव ने कहा हैमिथ्यात्वरागादिरूप समस्त विकल्पजाल रूप परिहारेण,
स्वशुद्ध आत्माने आद्ये यदनुष्ठानं तदध्यात्ममिति ।
अर्थात् मिथ्यात्व रागादि रूप समस्त विकल्प समूह के त्याग द्वारा निज शुद्ध आत्मा में जो अनुष्ठान (प्रवृत्ति का करना) उसको अध्यात्म कहते हैं।
सोना खान में मिट्टी के साथ पड़ा है, प्रयास यही होता है कि सोना निकल जाय। अध्यात्म कहता है कि कर्म है ही नहीं । आगम आत्मा और कर्मों को मिलाकर वर्णन करता है । अध्यात्म कहता है कि आत्मा अपने में है, इसके साथ अन्य द्रव्य की आवश्यकता नहीं। आगम में छः द्रव्यों की चर्चा होती है। अध्यात्म में स्वद्रव्य की चर्चा होती है।
जैन अध्यात्म का वर्णन करने वाले आचार्यों में आचार्य कुन्दकुन्द का नाम सर्वोपरि है। परवर्ती आचार्यों के निरूपण के लिए आचार्य कुन्दकुन्द की रचनायें दीपतुल्य हैं। इन रचनाओं में समयसार प्रमुख रूप से अध्यात्म को दृष्टि में रखकर लिखा गया है। यही कारण है कि उस पर संस्कृत, हिन्दी और कन्नड़ में अनेक टीकायें प्राप्त हैं। इन टीकाओं में आचार्य अमृतचन्द्र नाम सर्वोपरि है।
आचार्य अमृतचन्द्र
ये आचार्य कुन्दकुन्द (विक्रम संवत् ४९ ) के प्रमुख ग्रंथों समयसार, प्रवचनसार और पञ्चास्तिकाय के आद्य टीकाकार माने जाते हैं। इनका समय विक्रम की दसवीं सदी का पूर्वार्द्ध माना जाता है। ये जाति के ठाकुर थे, क्योंकि पं. आशाधर जी (तेरहवीं विक्रम सदी) ने “ठक्कुरामृत' चन्द्रसूरि ”" नामक उल्लेख किया है। इन्होंने आचार्य कुन्दकुन्द के प्रमुख ग्रन्थ
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