________________
उज्जयिनी के मंदिरों में सजीले तोरण द्वारों का ऐतिहासिक परिचय
- श्रीमती अंजलि मुकेश विजयवर्गीय महाकालेश्वर और जगत् ईश श्रीकृष्ण की अध्ययन स्थली उज्जयिनी अपने आप में गौरवमयी तथा प्राचीन नगरी है। इसे मध्यप्रदेश का ही नहीं अपितु संपूर्ण भारत का हृदय कहा जाता है। मालवा के पठार पर स्थित यह नगर पुण्य सलिल क्षिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ है। पुराणों के अनुसार इसे सप्तपुरि में से एक माना जाता है तथा कई प्राचीन नामों से पुकारा जाता था जिनमें उज्जयिनी, अवंतिका, प्रतिकल्पा, पद्मावती तथा विशाला प्रमुख है।
इस पवित्र तीर्थ में सभी धर्मों के अनुयायी तथा सभी धर्मों के धार्मिक स्थान है। इतिहास के अनुसार महात्मा बुद्ध के समय इस स्थान के प्रद्योत नामक राजा शासक थे। ईसा की चौथी शताब्दी के पूर्व इस नगर पर मौर्य सम्राटों का शासन था उसके बाद अशोक, शुंग वंश व शकों का शासन आया। उसके पश्चात् विक्रमादित्य ने इस नगरी को कई महान स्थापत्य कला के नमूने दिए जिसमें से कुछ आज भी इस शहर की शोभा बढ़ा रहे हैं। मुगलों के शासनकाल में इसे हानि भी हुई। जैन साहित्य का इतिहास भी उज्जैन से जुड़ा हुआहै। कई पुराने जैन साहित्यिक ग्रंथों जैसे चतुर्विशंतिप्रबंध, कथाकोष, चसहरचरित्र, करकरडू, आदि में जैनधर्म के उज्जयिनी में प्रचार-प्रसार के प्रमाण मिलते हैं। जैनधर्म मतानुसार प्रथम तीर्थकर वृषभदेव ने इंद्र को आज्ञा देकर इस अवंति देश की रचना कराई थी।
जैन धर्म का मूलाधार अहिंसा है। भगवान् महावीर की तपस्या के बाद जैन धर्म को और अधिक विकसित होने का अवसर प्राप्त हुआ। दिगम्बर व श्वेताम्बर दोनों ही धर्मावलंबियों के मंदिर प्रचुर मात्रा में उज्जैन में मिलते हैं।
मंदिर शब्द का अर्थ है वासस्थान। अंग्रेजी में इसे टेम्पल कहते हैं। जिसका मूल अर्थ आयताकार देवालय से है। भारतीय धारणा के अनुसार मंदिर वस्तुतः देवस्थान नहीं स्वयं देवता है। इसी धारणा के अनुसार इसे पाद, जंघा, कटि, उर्ध्व, स्कन्ध व शीर्ष आदि भागों में बांटा गया है तथा गुप्तकाल में इसी के आधार पर मंदिरों में अलंकरण हुआ था। प्रत्येक शैली की अलग छाप उस काल की वास्तुकला में हमें दिखायी देती है तथा कई जगहों पर दो शैलियों का संगम भी दिखाई देता है।
प्रसिद्ध ग्रंथ “सगरांगण सूत्रधार" के अनुसार जैन मंदिरों का निर्माण भी शैव व वैष्णव मंदिरों के समान ही हुआ है तथा उनमें कई समानताएँ पाई गई हैं। मंदिर को ३ भागों में बांटा गया है- १. पीठ या अधिष्ठान २. मंडोवर ३. शिखर।
अधिष्ठान के जाड्यकुम्भ, कर्णक, अंतर्प व ग्रासपट्टिका आदि कई भाग होते हैं जिनको अलंकरण के आधार पर पहचाना जा सकता है। मंडोवर के ३ प्रमुख भाग हैंवेदीबन्ध, जड्या, वरण्डिका। गर्भग्रह में प्रमुख मूर्ति का निवास होता है। शिखर भी अलंकरण