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उज्जयिनी के मंदिरों में सजीले तोरण द्वारों का ऐतिहासिक परिचय युक्त होता है। प्रमुख प्रवेश द्वार पर स्तंभों का अलंकरण कई प्रकार से होता है जिनमें पशु पत्तियों, वनस्पति, वल्लरियों, कमल व घंटिकओं द्वारा अलंकरण होता है और जिस पर तोरण का निर्माण होता है।
तोरण का अर्थ 'मेहराब' या परिकर से है। तोरण का अर्थ मुख्य प्रवेश द्वार के अलंकरण से माना जाता है। मंदिरों में इसका निर्माण दैवीय शक्ति को बल देने व आसुरी शक्तियों के प्रवेश निषेध के लिए किया जाता है। तोरण की उत्पत्ति मकर मुख मानी जाती है। अतः इसका निर्माण मकर मुख से निकलते हुए ही किया जाता है। अलंकरण मुख्यतः तीन प्रकार का होता है-१. रेखाकृति प्रधान २. पत्रवल्लरी प्रधान ३. कल्पना प्रसूल पशु पक्षियों की आकृति या ईहामृग। इसका निर्माण मुख्यतः दो कारणों से होता है- १. मंगल के लिए २. विशेष अर्थों की अभिव्यक्ति के लिए (मांगलिक चिन्ह जैसे पूर्ण घट, कमल आदि) उस स्थान की आसुरी शक्तियों से रक्षा करते हैं ऐसा मानकर उनका निर्माण किया जाता है।
गुप्तकाल में पत्र लता व पत्र पुष्पों को अलंकरण हेतु मुख्यरूप से प्रयुक्त किया जाता था जबकि कुषाणकाल में ईहामृग का उत्कीर्णन अधिक हुआ है। अलंकरण के आधार पर तोरण को ४ प्रकारों में बांटा गया है।
१. पत्र तोरण - प्रमुख अलंकरण पत्तियों द्वारा। २. पुष्प तोरण - प्रमुख अलंकरण पुष्पों द्वारा। ३. रत्न तोरण - प्रमुख अलंकरण रत्नों द्वारा। ४. चित्र तोरण- प्रमुख अलंकरण विभिन्न प्रकार के चित्रों द्वारा।
इन सभी के अलावा भी एक और मुख्य विभाजन माना जाता है जो निम्नानुसार है। मुख्यतः तीन प्रकार के तोरण हैं- १. इलिका (रेंगती हुई इमली के समान) तोरण- इसके भी कई प्रकार हैं। २. राथिका तोरण २. इलिकाकार तोरण ३. त्रिरथिका द्विरथिका तोरण या वलितोदरा तोरण।
त्रिरथिका तोरण से तात्पर्य है कि मंदिर का निर्माण त्रिरथ योजना के अनुसार हुआ है। जो निम्न भागों में बांटा गया है।
१. षीष्ठ/ नीचे का भाग २. ऊपर वाला ३. शिखर या गण्डी ४. आमलक (मस्तिष्क) पाभाग/पदभाग, इसके बाद जंघा, वरण्ड।
इसी प्रकार इन्हीं भागों को उपभागों में बांटकर पंचरथ व सप्तरथ योजनानुसार मंदिर निर्माण होता है। इसी के आधार पर तोरण के भी नाम रखे गए हैं। १. पंचराथिका - चतुइलिका तोरण/ श्री पुंज, २. सप्तराथिका- पट्दलिका तोरण/नंदीवर्धन, ३. गवाक्षयुक्त तोरण, ४. हिण्डोलक तोरण- अर्थात् हिण्डोले के समान तोरण का निर्माण किया जाता है। वस्तुसारे प्रकरण के अनुसार -
चउ थंभ चउदुवारं, चउ तोरण चउ दिसेहिं छज्जउडं।