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अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012 जैन परम्परा में मद्य, मांस और मधु का, त्याग प्रत्येक जैनी के लिए अनिवार्य है। इनका सेवन करने वाला श्रावक कहलाने का अधिकारी नहीं है।
___ कुरआन का कहना है- “अपनी पसन्द की औरत से विवाह कर दो, तीन अथवा चार, परन्तु यदि तुम्हें भय हो कि तुम उनके मध्य समान न्याय नहीं कर सकते तो तुम केवल एक (औरत) से विवाह करो।” कुरआन ४:३ ।
आमतौर पर लोग यह समझते हैं कि पर्दे का सम्बन्ध केवल स्त्रियों से है। हालांकि कुरआन में अल्लाह ने औरतों से पहले मर्दो के पर्दे का वर्णन किया है
___ "ईमान वालों से कह दो कि वे अपनी नजरें नीची रखें और अपनी पाकदामिनी की सुरक्षा करें। यह उनको अधिक पवित्र, बनाएगा और अल्लाह खूब परिचित हैं, हर उस कार्य से जो वे करते हैं।” (कुरआन २४.३०)
जैनधर्म में ब्रह्मचर्य व्रत के धारण करने वालों को तन्मनोहरांग निरीक्षण त्याग का उपेदश दिया गया है।
कुरआन की सूरा निसा में कहा गया है- “और अल्लाह पर ईमान रखने वाली औरतों से कह दो कि वे अपनी निगाह नीची रखें और पाकदामिनी की सुरक्षा करें और वे अपने बनाव-श्रृंगार और आभूषणों को न दिखायें, इसमें कोई आपत्ति नहीं, जो सामान्य रूप से नज़र आता है और उन्हें चाहिए कि वे अपने सीनों पर अपनी ओढ़नियाँ ओढ़ लें और अपने पतियों, बापों, अपने बेटों.... के अतिरिक्त किसी के सामने अपने बनाव-श्रृंगार प्रकट न करें।" (कुरआन २४.३१)
जैनधर्म में उपर्युक्त उद्देश्य की पूर्ति हेतु ही ब्रह्मचारी को (और ब्रह्मचारिणी को भी) स्वशरीर संस्कार त्याग का उपदेश तत्त्वार्थसूत्र में दिया गया है।
कुरआन में कहा गया है - "धर्म में कोई जोर - जबर्दस्ती न करे, सत्य, असत्य से साफ भिन्न दिखाई देता है।” (कुरआन २.२५६)
“लोगों को अल्लाह के मार्ग की तरफ बुलाओ, परन्तु बुद्धिमत्ता और सदुपदेश के साथ और उनसे वाद-विवाद करो, उस तरीके से जो सबसे अच्छा और निर्मल हो ।” (कुरआन १६: १२५) जैनधर्म में भी कहा गया है -
पक्षपातो न मे वीरो न द्वेषः कपिलादिषु।
युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्य परीषहः।। अर्थात् मुझे वीर से कोई पक्षपात नहीं है, कपिल आदि के प्रति कोई द्वेष नहीं है, जो वचन युक्तियुक्त हैं, उनका पालन करना चाहिए। आप्तमीमांसा में आचार्य समन्तभद्र ने कहा है
स त्वमेवासि निर्दोषो युक्ति शास्त्राविरोधि वाक्।
अविरोधो यदिष्टं ते प्रसिद्धेन न बाध्यते।। अर्थात् आप ही निर्दोष हैं, क्योंकि आपके वचन, युक्ति और शास्त्र के विरोधी नहीं है। अविरोधी इसलिए हैं; क्योंकि जो आपको इष्ट है, वह प्रसिद्ध से बाधित नहीं होता है।