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अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012
प्राच्यविद्यामहार्णव श्री नगेन्द्रनाथ वसु ने भी 'हिन्दी विश्व कोश' भाग ३, पृष्ठ १२८ पर रूसी-पर्यटक विद्वान् डॉ. नोटोविच की कृति 'Unknown life of Christ' का संदर्भ देते हुए सिद्ध किया है कि ईसा मसीह अपने ६ माह के अज्ञातवास काल में भारत और भोट देश में आकर जैन एवं बौद्ध साधुओं के साथ रहे थे।
दिनांक २० नवम्बर २०११ को हिन्दी दैनिक पत्र 'अमर उजाला' के दिल्ली संस्करण में भी इसी आशय का एक समाचार 'हॉलिवुड में बनेगा करोड़ों की लागत से फिल्म, अब देखिए ईसा मसीह की भारत यात्रा' शीर्षक से प्रकाशित हुआ था -
__ "लंदन। हॉलीवुड में जल्द ही ईसा मसीह के भारत आगमन पर फिल्म बनाई जाएगी। यानी अब आप ईसा मसीह की भारत यात्रा को देख सकते हैं। यह फिल्म ईसा मसीह के जीवन के उन वर्षों पर आधारित होगी, जिनका बाइबिल में जिक्र नहीं किया गया है। इसके तहत यह दिखाया जाएगा कि १३ से ३० सालों के समय में जीसस भारत आए थे। यही नहीं, वे यहाँ बौद्ध मठों में ठहरे थे। बताया जा रहा है कि इस फिल्म के निर्माताओं ने फिल्म बनाने से पहले काफी शोध किया है। फिल्म में जीसस की पूर्व की ओर यात्रा के बारे में बताया जाएगा। इसमें वे कई धर्मों के बारे में जानते हुए एक धर्म की स्थापना करते दिखेंगे। ... ईसा मसीह ने अपना काफी समय अरब के रास्ते आकर भारत में बिताया था।"
इस प्रकार उक्त सभी उद्धरणों से यह अत्यन्त स्पष्ट होता है कि ईसा मसीह ने जैन-बौद्ध आदि अनेक धर्मों को निष्पक्षता, उदारता एवं सूक्ष्मतापूर्वक समझने का प्रयत्न किया था और लोगों को भी इसी प्रकार धर्म का असली सार तत्त्व समझने के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने बाह्य आडम्बरों से दूर आत्मशुद्धि या मनशुद्धि को ही धर्म के रूप में समझाने का भरसक प्रयत्न किया था।
यही कारण है कि ईसा मसीह के विचार अनेक स्थानों पर जैनधर्म से बहुत अधिक मिलते-जुलते हैं। जैसे कि जैनधर्म एक उच्चकोटि का आध्यात्मिक धर्म होने से आत्मज्ञान पर बहुत अधिक जोर देता है। वह कहता है कि जिसने आत्मा को जाना उसने सब कुछ जाना, सब कुछ किया और जिसने आत्मा को नहीं जाना उसने कुछ नहीं जाना, कुछ नहीं किया। आत्मा ही विश्व में सबसे सुन्दर और उपादेय है, इत्यादि; जिसका वर्णन समयसारादि ग्रंथों में देखा जा सकता है।
ईसा मसीह ने भी बारम्बार आत्मज्ञान पर बहुत अधिक बल प्रदान किया है। उनके तीन प्रमुख सिद्धान्तों में प्रारम्भ के दो विशुद्ध आत्मा से सम्बन्धित है - १. आत्मविश्वास (Self Reliance) और आत्मज्ञान (Know Thyself) इनके द्वारा उन्होंने आत्मा को जानने और समझने की ही विशेष बात रेखांकित की है। आत्मज्ञान पर जोर देते हुए एक स्थान पर तो वे यहाँ तक कहते हैं कि
___ “यदि आदमी अपनी आत्मा को खो बैठे और सारी दुनिया उसे मिल जाए तो भी उसे क्या फायदा? आत्मा के मोल की दूसरी चीज इसे क्या मिल सकती है?"
इसी प्रकार एक अन्य स्थल पर कहा है कि- “उसकी चिन्ता मत करो जो तुम्हारे शरीर को मारता है किन्तु आत्मा का नाश करने में समर्थ नहीं है। बल्कि उससे डरो जो नर्क में शरीर और आत्मा दोनों को नष्ट कर सकता है।"