________________
64
अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012 और चमड़े का व्यवहार भी नहीं करते थे। पशु-पक्षियों के लिए भी उनके मन में दया थी। वे ब्रह्मचर्य और यतिवृत्ति का भी पालन करते थे।
इस्लाम की मान्यता है कि जगत में जितने भी प्राणी हैं, वे सभी खुदा के ही बन्दे और पुत्र हैं। कुरान शरीफ के प्रारंभ में अल्लाताला का विशेषण 'विस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीमि' है, जिसका अर्थ है 'खुदा दयामय है अर्थात् खुदा के मन के कोने-कोने में दया का निवास है।
मुहम्मदसाहब के उत्तराधिकारी हजरत अली ने मानवों को संबोधित करते हुए कहा - “हे मानव! तू पशु-पक्षियों की कब्र अपने पेट में मत बना।” अर्थात् तू माँस का भक्षण मत कर। इसी प्रकार 'दीन-ए-एलाही विचारधारा के प्रवर्तक सम्राट अकबर ने कहा – “मैं अपने पेट को दूसरे जीवों का कब्रिस्तान नहीं बनाना चाहता।" यदि किसी की जान बचाई तो मानों उसने सारे इन्सानों की जिन्दगी बख्शी है। कुरान शरीफ का वाक्य है - ‘व मन् अह्या हा फकअन्नम् अन्नास जमी अनः'। कुरआन में अहिंसा सम्बन्धी आयतें -
मुझे कुरआन देखने एवं पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। मक्तबा अल-हसनात, रामपुर (उ.प्र.) से सन् १९६८ में हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित कुरआन मजीद, जिनके मूल संदर्भो का प्रयोग मैंने किया है, को ही मैंने पढ़ा है। इसी ग्रन्थ से मैंने कुछ आयतें चयनित की हैं जो अहिंसा की भावना को व्यक्त करती हैं। प्रस्तुत हैं वे चयनित आयतें - १. अल्लाह ने काबा को शान्ति का स्थान बनाया है। (२८:५७) २. नाहक खून न बहाओ और लोगों को घर से बेघर मत करो। (२:८४) ३. दूसरे के उपास्यों को बुरा न कहो। (६:१०८) । ४. निर्धनता के भय से औलाद का कत्ल न करो। (१७:३१) ५. नाहक किसी को कत्ल न करो। मानव के प्राण लेना हराम है। (१७:३३) ६. यतीम पर क्रोध न करो। (९३:९) ७. गुस्सा पी जाया करो और लोगों को क्षमा कर दिया करो। (२:१३४), (२४:२२) ८. बुराई का तोड़ भलाई से करो। (१३:२२), (२८:५४,५५), (४१:३५) ९. कृतज्ञता दिखलाते रहो। (१४:७) १०. सब्र करना और अपराध को क्षमा करना बड़े साहस के काम हैं। (४२:४३) ११. दो लड़ पड़ें तो उनमें सुलह-सफाई करा दो। (४९:९,१०) १२. दुश्मन समझौता करना चाहे तो तुम भी समझौते के लिए तैयार हो जाओ (८:६१) १३. जो तुमसे न लड़े और हानि न पहुँचाये उससे, उसके साथ भलाई से व्यवहार करो। (६०:८) अहिंसा के प्रायोगिक रूप -
मुस्लिम समाज में मांसाहार आम बात है। किन्तु ऐसे अनेक उदाहरण भी देखने में आये हैं जहाँ इस्लाम के द्वारा ही इसका निषेध किया गया है। इसका सर्वोत्कृष्ट आदर्शयुक्त उदाहरण हज की यात्रा है। मैंने अपने कई मुस्लिम मित्रों से इसका वर्णन साक्षात् सुना है तथा कई स्थानों पर पढ़ा है कि जब कोई व्यक्ति हज करने जाता है तो इहराम (सिर पर बाँधने का सफेद कपड़ा) बाँध कर जाता है। इहराम की स्थिति में वह न तो पशु-पक्षी को मार सकता है न किसी जीवधारी पर ढेला फेंक सकता है और न घास नोंच सकता है। यहाँ तक कि वह