Book Title: Anekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 255
________________ अहिंसा, जैनधर्म और इस्लाम - डॉ. अनेकान्त कुमार जैन 'इस्लाम' अरबी भाषा का शब्द है। मुहम्मद अली की पुस्तक 'Religion of Islam' में इस शब्द की व्याख्या बताई गई है। इस्लाम शब्द का अर्थ है- 'शान्ति में प्रवेश करना'। अतः मुस्लिम व्यक्ति वह है, जो ‘परमात्मा पर विश्वास और मनुष्यमात्र के साथ पूर्ण शांति का संबन्ध' रखता हो। इस्लाम शब्द का लाक्षणिक अर्थ होगा- वह धर्म, जिसके द्वारा मनुष्य भगवान की शरण लेता है और मनुष्यों के प्रति अहिंसा एवं प्रेम का व्यवहार करता है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' में इस्लामधर्म की विशेषताओं पर व्यापक प्रकाश डाला है। ___ इस्लाम के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद साहब माने जाते हैं, जिनका जन्म अरब देश के मक्का शहर में सन् ५७० ई. में हुआ था और मृत्यु सन् ६३२ ई. में हुई। इस्लामधर्म के मूल कुरान, सुन्नत और हदीस नामक ग्रन्थ हैं। कुरान वह ग्रन्थ है, जिसमें मुहम्मद साहब के पास खुदा के द्वारा भेजे गये संदेश संकलित हैं। सुन्नत वह है, जिसमें मुहम्मद साहब के कार्यों का उल्लेख है और हदीस वह किताब है, जिसमें उनके उपदेश संकलित हैं। ___ कुरान में प्रेम और अहिंसा से सम्बन्धित अनेक सन्देश हैं। इकबाल की पुस्तक 'Secret of the Self2 की भूमिका में लिखा है- “नबी ने कहा है, 'तखल्लिक्-बि-इखलाकिल्लाह' अर्थात् अपने भीतर परमेश्वर के गुणों का विकास कर। खुदा बन्दों को प्यार करता है और वे उसे प्यार करते हैं, इसलिए उसका एक नाम वदूद (प्रेमी) भी है।" - यह कुरान का ही वचन है। हदीस का वचन है कि "ईमान की ७० शाखाएँ हैं। सबसे ऊँची यह कि अल्लाह को छोड़कर किसी की इबादत मत करो और सबसे नीची यह कि जिन बातों से किसी का नुकसान होता हो, उन्हें छोड़ दो।' कुरान का फातिहा नामक अध्याय बहुत महत्त्वपूर्ण है। एक तरह से यह कर्मफल के विवेचन का अध्याय है, इसमें प्रत्येक मुसलमान का ध्यान हर रोज पांच बार दिलाया जाता है। उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि कर्मफल पर विश्वास दृढ़ होने पर आदमी दुष्कर्मों को छोड़ देता है। कुरान कहता है-“अच्छे और बुरे कर्मों के परिणाम अवश्य मिलेंगे। जिसने भी, कण मात्र भी सुकर्म किया है, वह उसे अपनी आंखों से देखेगा; जिसने कण मात्र भी दुष्कर्म किया है, वह भी उसे अपनी आँखों से देखेगा।" इस्लाम दर्शन में ग्यारहवीं शती में एक प्रख्यात चिंतक हुए ‘अबुल अरा' (सन् १०५७)। अबुल अरा आवागमन के सिद्धान्त के विश्वासी थे। शाकाहारी तो थे ही, दूध, मधु

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