Book Title: Anekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 254
________________ AL अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012 के लिए “एक विचार क्रान्ति” की जो मांसाहार की वीभत्सता को उजागर करे और इसके निरसन के लिए ठोस प्रयास हों। जैनधर्म- “पर्यावरण-संरक्षण" की मूल भावना से घनिष्ठतः जुड़ा हुआ है। वह केवल राष्ट्र एवं राजा को धार्मिक व नैतिक बने रहने की बात ही नहीं करता, वरन् समय पर वर्षा होने, दुर्भिक्ष न होने, संक्रामक रोगों के न फैलने आदि भावनाओं के द्वारा भाव-शुद्धि व समाज-सुख की बात दुहराता है क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु बलवान धार्मिको भूमि पालः, काले काले च सम्यक् विकिरतु मघवा व्याधयोयान्तु नाशम्। दुर्भिक्षं चौरमारी क्षणमपि जगतां मास्मभूज्जीवलोके, जैनेन्द्रं धर्मचक्र प्रभवतु सततां सर्व सौख्य प्रदायी।। श्रमणाचार एवं पर्यावरण संरक्षण जैन साधु (श्रमण) की आचार-संहिता में, महाव्रतों का पालन एवं षड्आवश्यकों का नियमन-पर्यावरण संरक्षण में सहयोगी है। उनका जलपात्र-शुद्धि के लिए होता है जिसकी संरचना इस तरह होती है कि जल ग्रहण करने का मुँह बड़ा व जल निकास का मुँह बहुत छोटा रहने से, जल का निकास बहुत नियंत्रित रहता है। जीवनोपयोगी वस्तुओं का देखभाल कर केवल सीमित वस्तुओं का ही उपयोग करते हैं। स्वाध्याय हेतु शास्त्र, सूक्ष्म जीवों के संरक्षण के लिए पिच्छी एवं शुद्धि के लिए जलपात्र (कमण्डलु) के अलावा उनका कोई परिग्रह नहीं होता है। दिगम्बर साधु व जैन साध्वी आहार चर्या २४ घण्टे में केवल एक बार करते हैं ताकि शरीर में शक्ति, बनी रहे और उनकी साधना निरावाध संपन्न हो सके। प्रकृति जिस प्रकार निरावरण है, उसी प्रकार प्रकृति से तादात्म्य स्थापित कर दिगम्बर श्रमण बिना आवरण के रहता है। भू-शयन करता है। पद-गामी होता है। उनका आंतरिक पर्यावरण भी राग-द्वेष से रहित स्वच्छ एवं निर्मल रहता है। उनकी साधना का एक आयाम, सामाजिक-शुद्धि एवं सौहार्द का वातावरण निर्मित करने में सहायक होता है। इस प्रकार जैनधर्म की अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त-दृष्टि, बाह्य एवं आंतरिक पर्यावरण के संरक्षण के लिए मनुष्य-मनुष्य के बीच समता, दया और शोषण रहित सामाजिक ढाँचा तैयार करता है। अनेकान्त दृष्टि-सर्वधर्म समभाव की उदारता पर आधारित धार्मिक सहिष्णुता का बीजारोपण करता है। अहिंसा-लोकमाता है, जो पर्यावरण संरक्षण का मूल मंत्र है और सामाजिक पैथोलॉजी को दृढ़ संबल प्रदान करता है। इक्कीसवीं सदी में पर्यावरण-प्रदूषण' एक ज्वलन्त समस्या है, जिसका समाधान खोजती- श्रमण संस्कृति, राष्ट्र के विकास में अत्यन्त सहयोगी है। *** ** - निदेशक, वीर सेवा मन्दिर, २१, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-२

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