Book Title: Anekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 253
________________ अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012 यह जानती है कि बच्चे के दाँत नहीं, उसका पेट कैसे भरेगा? जीवन- संरक्षण, प्रकृति के साथ चलता है। आन्तरिक पर्यावरण प्रदूषण - जल, वायु, ध्वनि एवं पृथ्वी पर बढ़ रहे अन्य प्रदूषणों से भी ज्यादा खतरनाक व्यक्ति का मानसिक या आन्तरिक प्रदूषण है। व्यक्ति, आज मानसिक तनाव, हिंसा की बढ़ती प्रवृत्तियों ने जघन्य अपराधों को ही नहीं बढ़ाया, वरन् आत्म-हत्या की घटनाएँ एवं आतंकवाद को भी बढ़ाया है। मनुष्य की संग्रह प्रवृत्ति व जमाखोरी की लालसा - मनुष्य की संग्रह प्रवृत्ति ने वर्ग-शोषण को जन्म दिया है। मनुष्य की लालसाआकाश के क्षैतिज बिन्दु को पाने के लिए बेतहाशा दौड़ लगा रहा है पर क्या क्षैतिज बिन्दु कभी पाया जा सकता है? इससे सामाजिक समरसता-संतुलन व सौजन्य तीनों बिगड़ रहे हैं। जैनधर्म इसे ‘परिग्रह' की संज्ञा देता है। यानी वस्तुओं के प्रति अतिलगाव। आदमी जितना जोड़ता है वह उतना ही संवेदन शून्य जड़ होता जाता है। भगवान् महावीर ने इसका समाधान दिया- 'अपरिग्रह' या ‘परिग्रह परिमाण' यानी अपनी आवश्यकताओं व इच्छाओं को सीमित करना/ कम करना। अनावश्यक संग्रह प्रकृति के दोहन व मनुष्य के शोषण के बिना संभव नहीं है। यही सामाजिक-प्रदूषण है।। व्यक्ति अपने काषायिक भावों के कारण भी मानसिक तनाव, ईर्ष्या, द्वेष, अशान्त-मन, उद्वेग एवं उत्पीड़न में बना रहता है। चार प्रकार के कषाय भाव जैनधर्म में कहे हैं- क्रोध, मान, माया और लोभ। इन्हीं चारों के कारण वह अपनी आत्मा को कलुषित करता रहता है। इस आंतरिक-प्रदूषण को कम किया जा सकता- क्रोध के उद्वेग को क्षमा भाव से, मान या अहंकार भाव को विनम्रता से, माया को सरल व निष्कपट भावों से तथा लोभ-मल को संतोष जल से दूर किया जा सकता है। पर्यावरण-संरक्षण में शाकाहार संबन्धी अन्तर्राष्ट्रीय मान्यताओं के संदर्भ नोबेल पुरस्कार विजेता (सम्मानित) डॉ. अर्तुरी वर्तुनेन (जीव-रसायनिक शोध संस्थान, फिनलैण्ड के निदेशक) ने शाकाहार को पर्यावरण संरक्षण का मौलिक कारक (घटक) माना है। इन्होंने विश्वास प्रकट किया कि शाकाहारियों को जीवन ऊर्जा के आवश्यक पोषक तत्त्व, नैसर्गिक रूप से प्राप्त हो जाते हैं। आज शाकाहार के बढ़ते निरापद प्रभाव से विश्व के ७३ से अधिक देश, विश्व शाकाहार काँग्रेस (World Vegetarian Congress) के सदस्य बन चुके हैं। इस संगठन ने शाकाहार की वैज्ञानिकता को स्वीकार कर इससे कैन्सर व हृदय-रोग जैसे असाध्य रोगों से निदान में सहमति व्यक्ति की है। इंग्लैण्ड की वेजीटिरियन सोसाइटी (१८४७) ने वेजीटेरियन शब्द का व्यापक अर्थ दिया- “संपूर्ण निर्दोष, स्वस्थ, ताजा और जीवन बनाये रखने वाला”। इसी प्रकार "All India Animal Welfare Association" ने जीव-जंतुओं के मौलिक अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में शाकाहार को एक नया आयाम दिये जाने की बात दुहराई है और देश के पर्यावरण की रक्षा के लिए जागरूकता का निर्माण करने का संकल्प लिया है। आवश्यकता है कि पर्यावरण संरक्षक

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