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अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012
___ हमारे देश के ४१वें संविधान संशोधन द्वारा, प्रत्येक नागरिक का मूल कर्त्तव्य है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण (वन, झील, वन्य-प्राणी, भूमि) की रक्षा करें, उसका संवर्द्धन करे, प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखे तथा अवैध शिकार से बचे। संविधान की उक्त धारा में पर्यावरण के दोनों घटकों का संरक्षण आ जाता है।
१- लाखों गरीब व्यक्ति या वनाश्रित आदिवासी जन, अपने जानवरों के पालन-पोषण एवं स्वयं की अनेक जरूरतों के लिए वनों पर आश्रित रहते हैं। जंगल- न केवल वन-सम्पदा, औषधि, जड़ी बूटी व इमारती लकड़ी की आवश्यकता की पूर्ति करता है, अपितु यह भूमिक्षरण को रोकता है। जलवायु नियंत्रित होकर वर्षा होने में वनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। लेकिन हमने विगत ३०० वर्षों में हजारों वर्षों की संचित खनिज व वन संपदा का उपभोग कर समाप्त कर दिया। विगत एक सर्वेक्षण के अनुसार प्रतिवर्ष १७० लाख हेक्टेयर जंगल, जो जापान देश के क्षेत्रफल के बराबर होता है, नष्ट कर देते हैं। वृक्षों का महत्त्व, इसी बात से आंका जा सकता है कि एक व्यक्ति को प्रतिदिन औसत १६किग्रा. ऑक्सीजन चाहिए। इसके लिए ५० वर्ष की आयु और ५० टन वाले ५-६ वृक्ष चाहिए। यानी ५-६ वृक्षों को काटना, एक आदमी को प्राणवायु से वंचित कर देना है।
____ जलाभाव (Water Stress) - शुद्ध पेयजल की समस्या गंभीर होती जा रही है। भू-जल-स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। १९५० से २०१२ तक पेयजल की मांग तीन गुनी बढ़ गयी है। Human Development Report के अनुसार २० देशों के १३२ मिलियन व्यक्ति जलाभाव की समस्या से जूझ रहे हैं। यदि यही हालत रही तो २०५० तक २५ और देश इस सूची में जुड़ जायेंगे। इसके साथ ही नगरीकरण औद्यौगीकरण, जैविक व रसायनिक कचरा, मांसाहार आदि पर्यावरण प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं।
२. रासायनिक परिवर्तन - औद्यौगीकरण के कारण दो खतरे उत्पन्न हो गये हैं। (i) Global Warming का (ii) ओजॉन गैस (O, gas) की सतह का क्षीण होना।
वायुमण्डल की Ultravoilet और Cosmicrays पृथ्वी तक आने में ओजॉन गैस की परत, एक परावर्तक के रूप में कार्य करती है और उन्हें पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश नहीं करने देती। ओजोन गैस की परत पतली होने का कारण Co, है, जिससे उक्त Ultravoiletrays पृथ्वी पर आने से Cancer जैसी बीमारी का कारण बनती है। ३. Bio Diversity Loss -
यानी वनस्पतिक और जीवधारियों की प्रजातियों का विलुप्त होना- १९७२ से इस पृथ्वी पर वनस्पतिक व अन्य जीवधारियों की लगभग १० हजार प्रजातियाँ विलुप्त हो गयी हैं। ऐसा अनुमान है कि २०२० तक इनकी संख्या एक करोड़ तक पहुंचने की सम्भावना है। एक बार जो प्रजाति समाप्त हो जाती है, उसका पुनः अभ्युदय कभी नहीं हो पाता जैसेडायनासोर आदि। यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि पर्यावरण में जितनी अधिक प्रजातियाँ रहेंगी, उतना अधिक मनुष्य के जीवन का अस्तित्व सुरक्षित रहेगा। प्रत्येक प्रजाति, मानव-विकास के लिए अद्भुत वरदान सिद्ध होती है। ४. सामाजिक पैथोलॉजी -
भगवान् महावीर - पर्यावरण संरक्षण के महान पुरोधा थे। उन्होंने कहा कि सामाजिक पुनर्निर्माण में- अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त का बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान है।