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अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012
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इच्छुक है, वह न शोक करता है न हर्ष, क्योंकि मुकुट बन जाने के बाद भी सोना उसमें कायम है; अतः वस्तु त्रयात्मक है।
“पयोव्रतो न दध्यति न पयोऽत्ति दधिव्रतः । अगोरसव्रतो नोभे तस्मात्तत्त्वं त्रयात्मकम्।।
जिसने केवल दूध की खाने का व्रत लिया है, वह दही नहीं खाता । जिसने केवल दही खाने का व्रत लिया है वह दूध नहीं खाता और जिसने गोरस मात्र न खाने का व्रत लिया है वह न दूध खाता है और न दही, क्योंकि दूध और दही दोनों गोरस की दो पर्याय हैं, अतः गोरसत्व दोनों में है। इससे सिद्ध है कि वस्तु त्रयात्मक - उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक है। मीमांसादर्शन के आचार्य कुमारिल भट्ट मीमांसाश्लोकवार्तिक में लिखते हैं
“वर्धमारकभंगे च रुचकः क्रियते यदा। तदा पूर्वार्थिनः शोकः प्रीतिश्चाप्युत्तरार्थिनः।।”७ “हेमार्थिनस्तु माध्यस्थं तस्माद्वस्तु त्रयात्मकम्। नोत्पादस्थितिभंगानामभावे स्यान्मतित्रयम् ॥८ “न नाशेन विना शोको नोत्पादेन विना सुखम् । स्थित्या बिना न माध्यस्थ्यं तेन सामान्यनित्यता।।”९
अर्थात्- जब सोने के प्याले को तोड़कर उसकी माला बनाई जाती है तब जिसको प्याले की जरूरत है, उसको शोक होतां है, जिसे माला की आवश्यकता है उसे हर्ष होता है और जिसे सोने की आवश्यकता है उसे न हर्ष होता है और न शोक । अतः वस्तु त्रयात्मक है। यदि, उत्पाद, स्थिति और व्यय न होते तो तीन व्यक्तियों के तीन प्रकार के भाव न होते, क्योंकि प्याले के नाश के बिना प्याले की आवश्यकता वाले को शोक नहीं हो सकता और सोने की स्थिरता के बिना सोने के इच्छुक को प्याले के विनाश और माला के उत्पाद में माध् यस्थ्य नहीं रह सकता । अतः वस्तु सामान्य से नित्य है और विशेष अर्थात् पर्याय रूप से अनित्य है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि किसी अंश में मीमांसा दर्शन अनेकान्तवादी है। इस अपेक्षा से जैनदर्शन व मीमांसादर्शन तुल्य है। और भी अन्य कई विषयों में जैनदर्शन व मीमांसादर्शन में भेद व तुल्यता है। जैसे दोनों ही जरायुज, अण्डज व स्वेदज (संमूर्च्छन) शरीरों को पांच भौतिक स्वीकार करते हैं। दोनों की इन्द्रिय विषयों के त्याग आदि को मोक्ष का साधन मानते हैं। दोनों ही शरीरादि की आत्यन्तिक निवृत्ति को मोक्ष मानते हैं । इस प्रकार दोनों दर्शनों में तुल्यता है। परन्तु जैन दार्शनिकों की भांति मीमांसक सर्वज्ञत्व का अस्तिव नहीं मानते, आत्मा को स्वसंवेदनगम्य नहीं मानते।
संदर्भ :
१. तत्त्वार्थसूत्र, १/१, २. वही, १/९, ३. वही, ५/२९, ४. वही, ५/३०, ५. आप्तमीमांसा, श्लोक-५९,
६. वही, - ६०, ७. मीमांसाश्लोकवार्तिक, श्लोक - २१, ८. वही, - २२, ९. वही, - २३
- वरिष्ठ व्याख्याता, जैनदर्शन विभाग, श्री ला. ब. शा. रा. संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली- १६