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अनेकान्त 65/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2012
भीमराव अम्बेडकर स्वयं बौद्ध बने तथा भारतीय दलितवर्ग को विशाल स्तर पर बौद्धधर्म से जोड़ा। इक्कीसवीं सदी में अनेक विश्वविद्यालयों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की योजना के अन्तर्गत बौद्ध अध्ययन केन्द्रों की स्थापना हो रही है।
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बुद्ध की वाणी जितनी मूलरूप में सुरक्षित रही है, उतनी महावीर की वाणी सुरक्षित नहीं रह सकी । बुद्ध की वाणी के संरक्षण हेतु चार माह में ही प्रथम संगीति हो गई थी, जबकि महावीर की वाणी के संरक्षण हेतु उनके निर्वाण के १६० वर्ष पश्चात् प्रथम वाचना हुई। अभी विपश्यना विशोधन विन्यास, इगतपुरी से त्रिपिटकसाहित्य के १४० भाग प्रकाशित हुए हैं, जिनमें अट्ठकथा आदि व्याख्यासाहित्य भी सम्मिलित है । सम्पूर्ण त्रिपिटकसाहित्य पालिभाषा में लिखा गया है। महायान परम्परा का बौद्ध साहित्य संस्कृत में लिखा गया है। संस्कृत में लिखित बौद्ध साहित्य का बहुभाग चीनी, तिब्बती आदि भाषाओं में अनूदित हुआ । उसका बहुत अंश संस्कृत में आज भी अप्राप्य बना हुआ है।
बौद्धदर्शन में करुणा का विशेष प्रतिपादन हुआ है। महायान बौद्ध में महाकरुणा के रूप में करुणा को व्यापकता प्रदान करता है । वहाँ माना गया है कि बोधिसत्त्व में इतना करुणाभाव होता है कि वह संसार के समस्त प्राणियों को दुःखमुक्त करके बाद में स्वयं मुक्त होना चाहता है।
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यदि मनोविज्ञान की दृष्टि से विचार किया जाये तो बौद्धदर्शन में उसका जैनदर्शन की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म विवेचन हुआ है। बौद्ध मनोविज्ञान में चित्त की विभिन्न दशाओं का विस्तृत वर्णन हुआ है। लोभ, मोह और द्वेष से युक्त चित्त किस प्रकार अनेक दोषों को उत्पन्न करता है तथा उसकी विभिन्न अवस्थाएं किस प्रकार परिवर्तित होती रहती हैं, इसका विवेचन बौद्धग्रन्थों में विस्तार से प्राप्त होता है । चित्त और चैतसिक का विवेचन बौद्धर्शन का वैशिष्ट्य है। इसमें रागादि चैतसिकों के अनेक भेद प्रतिपादित हैं।
जैनधर्म का वैशिष्ट्य -
जैन धर्म-दर्शन में प्रभु महावीर के द्वारा उन प्रश्नों का भी समीचीन समाधान किया गया है, जिन्हें बुद्ध ने अव्याकृत कहकर टाल दिया था । उदाहरण के लिए-लोक शाश्वत है अथवा अशाश्वत ? लोक अन्तवान है या अनन्त ? जीव और शरीर एक है या भिन्न ? तथागत देह त्याग के बाद भी विद्यमान रहते हैं या नहीं ? इत्यादि प्रश्न बुद्ध के द्वारा अनुर हैं। वे इन प्रश्नों का उत्तर देना आवश्यक नहीं समझते थे तथा उन्हें शाश्वतवाद और उच्छेदवाद के आक्षेप की सम्भावना रहती थी, किन्तु भगवान महावीर ने इन प्रश्नों का भी सम्यक् समाधान किया है। उनके समक्ष जब यह प्रश्न आया कि लोक शाश्वत है या अशाश्वत तो प्रभु ने इसका उत्तर देते हुए फरमाया कि लोक स्यात् शाश्वत है, एवं स्यात् अशाश्वत। त्रिकाल में एक भी समय ऐसा नहीं मिल सकता, जब लोक न हो, अतः लोक शाश्वत है। परन्तु लोक सदा एक सा नहीं रहता । कालक्रम से उसमें उन्नति, अवनति होती रहती है, अतः वह अनित्य और परिवर्तनशील होने के कारण अशाश्वत है । ५
इसी प्रकार लोक की सान्तता और अनन्तता के संबंध में भी भगवान् महावीर ने भगवतीसूत्र में द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव के आधार पर उत्तर देते हुए कहा है कि द्रव्य की अपेक्षा से लोक एक है, अतः सान्त है। क्षेत्र की अपेक्षा भी लोक सान्त है, किन्तु काल एवं