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अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012 किन्तु जो क्षमा नहीं करेगा, उसे पिता भी क्षमा नहीं करेगा। बुराई को भलाई से जीतो, सदैव क्षमा करते चलो।
(८) दान - दान को जीवन का आवश्यक कार्य बताया गया है, किन्तु दान में अहंकार की भावना नहीं होनी चाहिए “दान कर तो इस प्रकार कि बायां हाथ भी नहीं जान सके।"
उपर्युक्त संक्षिप्त बिन्दुओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ईसाई धर्म साररूप में ईश्वर की सत्ता, उसके न्याय, शुद्ध एवं पवित्र जीवन, नैतिकता और सदाचार में विश्वास व्यक्त करता है और अहिंसात्मक जीवन पद्धति का समर्थक है। २. इस्लाम धर्म (५७१ ई.):
'इस्लाम' पैगम्बर मुहम्मद द्वारा संस्थापित धर्म है। यह अरबी शब्द 'अल इस्लाम' अथवा 'इस्लाम' का ही रूप है, जिसका अर्थ है समर्पण अथवा शान्ति। इसके अनुयायी मुस्लिम कहलाते हैं, जिसका तात्पर्य है समपर्णकर्ता।
पैगम्बर मुहम्मद का जन्म मक्का में २३ अप्रैल, ५७१ ई. को हुआ। जन्म से पूर्व ही पिता (अब्दुल्लाह) की मृत्यु हो जाने के कारण इनका प्रारंभिक जीवन माता (आमीना), दादा (अब्दुल मुत्तालिब) और चाचा (अबुतालिब) की देखरेख में गुजरा। २५ वर्ष की आयु में बेगम खदीजा से विवाह के पश्चात् अगले १५ वर्षों तक वे सामान्य रूप से सरल और पवित्र जीवन यापन करते रहे। ४० वर्ष की आयु में हर वर्ष की तरह पवित्र रमजान के महीने में जब वे 'हिरापर्वत' की गुफा में साधना हेतु गए, जीवन-मृत्यु एवं दुनियाँ की उत्पत्ति विषयक चिन्तन करते हुए उन्हें एक रात्रि अल्लाह का सन्देश सुनाई दिया- "इकरा पढ़" इस अप्रत्याशित घटना से चिन्तित पैगम्बर मुहम्मद ने जब घर लौटकर बेगम खदीजा को जानकारी दी तो उन्होंने पूर्ण विश्वास किया और उन्हें कुरेश सम्प्रदाय के ९० वर्षीय धर्माधिकारी अबू बक (बरका) के पास पुष्टि हेतु ले गई, जिन्होंने पैगम्बर मुहम्मद में आस्था एवं विश्वास व्यक्त करते हुए बताया कि अल्लाह ने उन्हें 'मूसा' की तरह अपना संदेशवाहक चुना है और यह सन्देश अन्य कोई नहीं वरन् वही देवदूत नमुस (जिब्राईल) लाया था।
__आधार ग्रन्थ - इस्लाम का एकमात्र धर्मग्रन्थ पैगम्बर मुहम्मद को अल्लाह द्वारा आदिष्ट अलकुरआन अथवा कुरान है।
मूलभूत तत्त्व :
(१) अल्लाह - इस्लामधर्म में अल्लाह' ईश्वर, परमात्मा, गॉड का समानान्तर शब्द है। पवित्र कुरआन में अल्लाह के ९९ अन्य नाम भी उल्लिखित हैं।
(२) अल्लाह की किताब - पवित्र कुरआन अल्लाह की वाणी है, जो अन्तिम रूप से पैगम्बर मुहम्मद के माध्यम से आदेशित हुई। कुरआन का समग्र सार उसके प्रथम अध्याय सूरा ‘फातिहा' में माना जाता है।
(३) कलमा - प्रत्येक मुस्लिम अनुयायी के लिए कलमा पढ़ना आवश्यक है। 'ला इलाह-इल्लल्लाह' (अल्लाह के सिवाय कोई पूज्य नहीं है) तथा मुहम्मदुर, रसूलिल्लाह (मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं) यह पढ़ना चाहिए।