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अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012 दिया कि मेरे पास श्रम करने के बाद कुछ पैसे आ गए थे, उससे मैंने एक रोटी खरीदी थी। आधी रोट मैंने कल खायी थी और आधी रोटी आज के लिए रखी है। राजकन्या की आँखों से आँसू गिरने लगे। उसे रोते देखकर युवक ने कहा कि मैं पहले ही समझता था कि आप राजकन्या हैं, मेरी गरीबी के साथ नहीं चल सकेंगी। आखिर मेरी गरीबी को देखकर आपकी आंखों से आंसू निकलने ही लगे। उसने जवाब दिया कि तुम्हारी गरीबी को देखकर मेरी आंखों से आंसू नहीं निकले, किन्तु इसका कारण यह है कि मेरे पिता ने कहा था कि तुम नितान्त अपरिग्रही हो, लेकिन जो व्यक्ति एक रोटी, जो उसे कल मिली थी, वह आज के लिए बचाकर रखे, वह अपरिग्रही कैसा? हमारे पिता ने कहा था, किन्तु तुम नितान्त अपरिग्रही नहीं हो। यह आदर्श ऐसे समाज में था, जो समाज परिग्रही समझा जाता है। उस समाज में जाकर जैन मुनियों ने अपने प्रचार द्वारा भावनायें पैदा की, विचार पैदा किए, जिन्होंने उस संस्कृति को नया रूप दिया।
इसी तरह सबसे बड़ा प्रभाव वहां के एक मुसलमान श्रीमन्त के ऊपर पड़ा। उनकी १४ बड़ी कोठियां विभिन्न देशों में थी। भारत में एक कोठी थी। उनकी कोठियां स्पेन तक फैली हुई थीं। उनका करोड़ों रूपयों का व्यवसाय था, किन्तु जैसे ही वे जैनधर्म में दीक्षित हुए, उन्होंने अपना सारा धन, महल, कोठी आदि दान कर दिया। एक लँगोटी रह गई, सोचा उसका आकर्षण क्यों ? उसका भी दान कर दिया और दिगम्बर मुनि बन गए। वे धर्म और प्रेम, अहिंसा सत्य तथा अपरिग्रह की चर्चा करते हुए भारत आए। भारत आकर वे दिल्ली पहुंचे। दिल्ली में औरंगजेब से भेंट हुई। उनका प्रचार और प्रसार देखकर भारत की जनता उनके प्रति बहुत आकर्षित हुई। हजारों उनके भक्त हो गए। औरंगजेब ने जब उनसे पूछा कि तुम नंगे क्यों रहते हो? तो उस सरमद ने कहा - 'तन की उरयानी से बेहतर कोई लिवास नहीं (नग्नपन से बेहतर नहीं है कोई लिवास) यह वह जामा है, जिसका कोई नहीं उल्टा सीधा।'
उनसे पूछा कि अल्लाह और उसके पैगम्बर रसूल को छोड़कर पार्श्वनाथ और महावीर की तरफ तुम्हारी आस्था क्यों जागी? तो उसने उत्तर दिया- पार्श्वनाथ और महावीर में मुझको वह भक्ति, वह प्रेम, वह अपरिग्रह की भावना दिखाई दी, जिससे आकर्षित होकर मैंने पार्श्वनाथ और महावीर की शरण ली। औरंगजेब ने कहा - तुम खुदा को नहीं मानते हो? तो सरमद ने जबाव दिया - यदि कोई खुदा है तो खुद मेरी खबर लेगा। मुझे उसकी खबर लेने से क्या मतलब? चूंकि इस्लाम धर्म को उसने तिलांजलि दी थी, फिर वह मूर्तिपूजा की ओर आया था, इसीलिए उसको औरंगजेब की ओर से फाँसी की सजा मिली।
दिल्ली की जामा मस्जिद के बाहर एक छोटा सा मकबरा बना हुआ है, जहां वह श्रेष्ठ जैन सरमद अनन्त निद्रा में विश्राम कर रहा है। जैन उस रास्ते से निकलते होंगे, किन्तु किसी को भी यह भान नहीं होता कि यह टूटी फूटी कब्र एक महान् करोड़पति व्यवसायी की है, जो जैनधर्म में दीक्षित हुआ और जिसने दीक्षा के कारण अपने प्राण त्याग दिये।३ संदर्भ : १. डॉ. सत्यपाल रुहेला : भारतीय समाज संरचना और परिवर्तन, पृष्ठ-५३ उत्तरप्रदेश हिन्दी ग्रंथ __ अकादमी, लखनऊ, १९७३ ई. R. The Illustrated weekly of India- Dec. 14,19, 69.