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अनेकान्त 65/3, जुलाई-सितम्बर
10 विधाओं की अपेक्षा से अपनी-अपनी विशेषताएं भी है। आगे हम इन खण्डों के कथा साहित्य की विशेषताओं को लेकर ही कुछ चर्चा करेंगें
प्रथम काल खण्ड में मुख्यतः अर्धमागधी प्राचीन आगमों की कथाएं आती हैं- ये कथाएं मुख्यतः आध्यात्मिक उपदेशों से सम्बन्धित है और अर्धमागधीप्राकृत में लिखी गई हैं। दूसरे ये कथाएं संक्षिप्त और रूपक के रूप में लिखी गई है। जैसे- आचारांग में शैवाल छिद्र और कछुवे द्वारा चांदनी दर्शन के रूपक द्वारा सद्धर्म और मानवजीवन की दुर्लभता का संकेत है। सूत्रकृतांग में श्वेतकमल के रूपक से अनासक्त व्यक्ति द्वारा मोक्ष की उपलब्धि का संकेत है। स्थानांगसूत्र में वृक्षों, फलों आदि के विविध रूपकों द्वारा मानव-व्यक्तित्व के विभिन्न प्रकारों को समझाया गया है। समवायाग के परिशिष्ट में चौबीस तीर्थकरों के कथासूत्रों का नाम-निर्देश है। इसी प्रकार भगवती में अनेक कथा रूप संवादों के माध्यम से दार्शनिक समस्याओं के निराकरण है। इसके अतिरिक्त आचारांग के दोनों श्रुतस्कन्धों के अंतिम भागों में सूत्रकृतांग के षष्टम अध्ययन में और भगवती में महावीर के जीवनवृत्त के कुछ अंशों को उल्लेखित किया गया है। इनके कल्पसूत्र और उसकी टीकाओं के साथ तुलनात्मक अध्ययन से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि महावीर के जीवन के कथानकों में अतिशयों का प्रवेश कैसे-कैसे हुआ है।
जैन कथा साहित्य की अपेक्षा से ज्ञाताधर्मकथा की कथाएं अति महत्त्वपूर्ण है, इसमें संक्षेप रूप से अनेक कथाएं वर्णित है। प्रथम मेधकुमार नामक अध्ययन में वर्तमान मुनि जीवन के कष्ट अल्प है और उपलब्धियां अधिक है, यह बात समझायी गयी है। दूसरे अध्ययन में धन्ना सेठ द्वारा विजयचोर को दिये गये सहयोग के माध्यम से अपवाद में अकरणीय करणीय हो जाता है यह समझाया गया है। कछुवे के कथानक के माध्यम से संयमी जीवन की सुरक्षा के लिए विषयों के प्रति उन्मुख इन्द्रियों के संयम की महत्ता को बताया गया है। उपासकदशा में श्रावकों के कथानकों के माध्यम से न केवल श्रावकाचार को स्पष्ट किया गया है, अपितु साधना के क्षेत्र में उपसर्गों में अविचलित रहने का संकेत भी दिया गया है। अंतकृतदशा, औपपातिकदशा और विपाकदशा में विविध प्रकार की तप साधनाओं के स्वरूप को और उनके सुपरिणामों को समझाया गया है।
उपांग साहित्य में रायपसेनीयसुत्त में अनेक रूपकों के माध्यम से आत्मा के अस्तित्त्व को सिद्ध किया गया है। इसी प्रकार उत्तराध्ययन, दशवैकालिक आदि में भी उपदेशप्रद कुछ कथानक वर्णित है। नन्दीसुत्र में औपपातिकी बुद्धि के अंतर्गत रोहक की १४ और अन्य की २६ ऐसी कुल ४० कथाओं, वैनियकी बुद्धि की १५, कर्मजाबुद्धि की १२ और पारिणामिकी बुद्धि की २१ कथाओं, इस प्रकार कुल ८८ कथाओं का नाम संकेत है उसकी टीका में इन कथाओं के नाम संकेत से यह तो ज्ञात हो जाता है कि नन्दीसूत्र के कर्ता को उन संपूर्ण कथाओं की जानकारी थी। इस काल की जैन कथाएं विशेष रूप से चरित्र चित्रण संबन्धी कथाएं ऐतिहासिक कम और पौराणिक अधिक प्रतीत होती है। यद्यपि उनको सर्वथा काल्पनिक भी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि उनमें वर्णित कुछ व्यक्ति ऐतिहासिक भी है। आगमयुग की कथाओं में कुछ चरित नायको के ही पूर्व जन्मों की चर्चा है उनमें अधिकांश की या तो मुक्ति दिखाई गई