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न्यायाचार्य महेन्द्रकुमार जैन और उनके द्वारा सम्पादित सिद्धिविनिश्चय टीका तत्त्वार्थसूत्र, समन्तभद्र के देवागम स्तोत्र और बृहत्स्वयम्भू स्तोत्र, अकलंङ्कदेव की न्यायविनिश्चय वृत्ति, हरिभद्र के योगबिन्दु, विद्यानंद की अष्टसहस्री तथा यशस्तिलक चम्पू जैसे जैन ग्रन्थों के उद्धरण लिए गए हैं। इन सबका प्रामाणिक विवरण पं. महेन्द्रकुमार जैन सिद्धिविनिश्चय टीका की प्रस्तावना में दिया है। उपर्युक्त अनन्तवीर्य रविभद्रपादोपजीवी थे। अनेक प्रकार से ऊहापोह करते हुए पण्डित जी ने इनका समय ९५०-९९० ई. निर्धारित किया है। प्रमेयरत्नमाला के कर्ता अनन्तवीर्य ११वीं शताब्दी ई. में हुए।अनन्त वीर्य आचार्य ने सिद्धिविनिश्चय टीका के साथ प्रमाण संग्रहभाष्य या प्रमाण संग्रहालंड्.कार नामक ग्रन्थ की रचना की थी। स्याद्वाद रत्नाकार और सर्वदर्शन संग्रह में अनन्तवीर्य के नाम से जो वाक्य और श्लोक उद्धृत मिलते हैं, वे संभरवतः प्रमाण संग्रह भाष्य के ही हों।
सिद्धिविनिश्चय में १२ प्रस्ताव हैं। इनमें प्रमाण, नय और निक्षेप का विवेचन है। बारह प्रस्ताव ये हैं - १. प्रत्यक्ष सिद्धि २. सविकल्प सिद्धि ३. प्रमाणान्तर सिद्धि ४. जीव सिद्धि ५. जल्पसिद्धि ६. हेतुलक्षण सिद्धि ७. शास्त्रसिद्धि ८. सर्वज्ञसिद्धि ९. शब्दसिद्धि १०. अर्थनय सिद्धि ११. शब्दनयसिद्धि तथा १२. निक्षेप सिद्धि।
आचार्य अनन्तवीर्य ने टीका में मूल अभिप्राय को विशद और पल्लवित करने हेतु अपनी सारी शक्ति लगाकर विशिष्ट स्थान बनाया है। आचार्य प्रभाचन्द्र अकलङ्कदेव की सरणि को प्राप्त करने के लिए इन्हीं की युक्तियों और उक्तियों का अभ्यास करते हैं तथा उनका विवेचन करने की बात बड़ी श्रद्धा से लिखते हैं -
त्रैलोक्योदखर्तिवस्तुविषयज्ञानप्रभावोदयः। दुष्प्रापोप्यकलङ्कदेवसरणिः प्राप्तो %त्र पुण्योदयात्। स्वभ्यास्तश्च विवेचितश्च सततं सोनन्तवीर्योक्ति,
भूयान्मे नयनीतिदत्तमनसः तद्बोधसिद्धिप्रदः॥ अर्थात् अकलंङ्कदेव की समस्त प्रमेयों से समद्ध सरणि बड़े पुण्योदय से प्राप्त हुई, उसका मैंने अनन्तवीर्य की उक्तियों से सैकड़ों बार अभ्यास किया और विवेचन किया।
१८००० श्लोक प्रमाण टीका रचकर भी उस सिद्धिविनिश्चय ग्रन्थ का पार पाने का अनन्तवीर्य दावा नहीं करते। पण्डित महेन्द्रकुमार जैन ने इस ग्रन्थ का संपादन कर समाज का बड़ा उपकार किया है।
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संदर्भ :१. महामहोपाध्याय डॉ. गोपीनाथ कविराज, वाराणसी द्वारा लिखित सिद्धिविनिश्चय का
प्राक्कथन। २. सिद्धिविनिश्चय टीका की पं. महेन्द्रकुमार जैन लिखित प्रस्तावना, पृ. ७
- मुहल्ला-कुँवर बालगोविन्द, बिजनौर (उ.प्र.)