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णवकार मंत्र माहात्म्य
१५. यह नवकार जैन पुर के कृतार्थ से अर्थात् जैनकुल में जन्म लेने से प्राप्त हुआ है। वह देवलोक जाने के लिए समर्थ होता है उसे भी परमपद प्राप्त होता है।
१६. यह अनादि काल, अनादि जीव एवं अनादि जिनधर्म है जब से है तब से यह जिन नमस्कार पढ़ा जाता है। जो पढ़ते वे ही परम पद प्राप्त करते हैं।
१७. जो कोई भी मोक्ष गए, मोक्ष जाते हैं वे सभी जिन नवकार के भाव से संपूर्ण कर्मों के क्षय से मुक्त हुए हैं।
१८. इस प्रकार यह नवकार सुर, सिद्ध, एवं खेचर विद्याधर आदि से भक्ति युक्त पढ़ा गया, जो पढ़ता है वही तो शाश्वत स्थान पाता है।
१९. अटवि, गिरिराज के मध्य में भय नष्ट करता है। चित्त शांत करता है। जैसे माता पुत्र एवं शिशु की रक्षा करती है वैसे ही यह अनेक भव्यों की रक्षा करता है।
२०. चिंतन मात्र से जिन नमस्कार जल एवं ज्वलन को हटाता है। अरि, चोर, मारि, रावल, एवं घोर उपसर्ग को नाश करता है।
२१. डाकिनी, बेताल, राक्षस, मारि आदि भय जो कुछ भी है या नहीं है वे नवकार के प्रभाव से समग्र पाप नाश कर देते हैं।
२२. सकल भय, व्याधि, तस्कर, हरि, करि, संग्राम, विषधर आदि के भय जिन नवकार तत्क्षण प्रभाव से नाश कर देते हैं।
२३. जिसके हृदय गुफा में नवकार केशरी नित्य स्थित होता वे अष्ट कर्म रूप ग्रंथी गत घंटिकाओं की ध्वनियों को नष्ट कर देते हैं।
२४. तप, संयम, नियम रूपी रथ है, पंच नमस्कार सारथी कहा गया। यह ज्ञान तुरंग युक्त है। जिससे परम निर्वाण शीघ्र प्राप्त होता है।
२५. जो जिनशासन का सार एवं चौदह पूर्व समुद्धार है। जिसके मन में यह नवकार है उसका संसार क्या कर सकता है ?
संदर्भ :
१. (क) छक्खंडागम- १/१
२. (क) मूलाचार- ११२३
३. धवला १/१ / पृ.४४
४. मूलाचार १३५८
५. संस्कृत- प्राकृत-हिन्दी एवं अंग्रेजी शब्दकोश १/पृ. १९४५
६. वही पृष्ठ- १९५
७. णवकार मंत्र माहात्म्य गाथा - १
८. (क) भगवती आराधना
९. पुरुषार्थ सिद्धियुपाय -१
१०. सर्वोपयोगि श्लोक संग्रह - पृ. १४-१५
११. नवकार मंत्र माहात्म्य गाथा १३-१४
१२ . वही
गाथा - २५ ९-१२
१३. वही
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(ख) धवला १/१ / १६.८
(ख) कल्पसूत्र ८५५
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(ख) धवला - १/१ पृष्ठ ४६
-८६१. अरविंदनगर, उदयपुर (राजस्थान)