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अनेकान्त 65/2, अप्रैल-जून 2012
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पंच कणवीर सिहरे दु ति बारेगासिंहरं वा । । ६४ ।।
अर्थात् मंदिर के चारों कोनों पर चार स्तम्भ, चारों दिशाओं में चार द्वार और चार तोरण, चारों ओर छज्जा और कनेर के जैसा शिखर करना चाहिए। मंदिर द्वार या दो द्वार या तीन द्वार वाला और एक शिखर वाला बना सकते हैं।
तोरण में मकर मुख से निकलती हुई अनेक पत्र लताएँ कलात्मक रूप में अंकित की गई हैं। कई जगह इन मणियों व लताओं का अपहरण करने के लिए यक्ष व मकर का संघर्ष भी चित्रित किया गया है। मकर जो कि पूर्व समुद्र की संपत्ति के रतक थे बाद में देवनदी गंगा के वाहन बन गये थे। इन्हें पवित्रता के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया है।
उज्जैन में जैन मन्दिर
उज्जैन में बहुत अधिक संख्या में जैन मंदिर स्थित है, परन्तु ऐसे मंदिर जो कि वास्तुकला के आधार पर बनाये गये हैं उनकी संख्या निम्नानुसार है -
१. श्री शीतलनाथ जी श्वेताम्बर जैन मंदिर, फ्रीगंज, २. श्री अजितनाथ जी श्वेताम्बर जैन मंदिर, सराफा, ३. श्री चन्द्रप्रभु जैन मंदिर नमकमण्डी, ४. श्री आदीश्वर ज्ञान मंदिर, खाराकुआ, ५. श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर, खाराकुआ, ६. श्री अवंतिपार्श्वनाथ जैन मंदिर, दानीगेट, ७. श्री महावीर जैन मंदिर, दानीगेट एवं ८. श्री आदिश्वर जैन श्वेताम्बर तीर्थ, नदीपार । १. श्री शीतलनाथ जी श्वेताम्बर जैन मंदिर, फ्रीगंज
इस मंदिर की स्थापना १०.२.१९८८ में हुई थी। इस मंदिर में सफेद संगमरमर का बना हुआ सजीला तोरण द्वार है जिसमें मकरमुख से निकलते हुए तोरण को दिखाया गया है। इसके साथ ही अलंकृत खम्बे बनाये गये हैं जिसमें वाद्य बजाती हुई नारी आकृतियाँ उत्कीर्ण
गई हैं। वेशभूषा में ये आकृतियाँ यक्षों जैसी दिखाई देतीं हैं। एक नारी आकृति के हाथ में मृदंग व एक के हाथ में वेणु लिये हुए तथा उसे बजाते हुए बताया गया है। ये स्वर्ग की अप्सराएं या गंधर्व जान पड़ती हैं। यह तोरण इलिकाकार तोरण है अर्थात् जिस प्रकार इल्ली रेंगती है उसी प्रकार यह तोरण लहराता हुआ बनाया गया है। तोरण में मध्य में अलंकरण करने के लिये कमल दल को चक्राकार रूप में व्यवस्थित करके छोटे-छोटे चक्रों को एक के बाद एक व्यवस्थित किया गया है। बड़े ही आकर्षक रूप में इस तोरण को बनाया गया है इस तोरण में वक्राकारों के मध्य छोटे छोटे चक्रों को व्यवस्थित किया गया है। दो वक्रों को जोड़ने वाले व स्थान पर घंटिका रूप से एक वक्र आकार अंकित है जो किसी लटकती हुई घंटिका का आभास देता है, जिसके ऊपरी भाग में अलग तरह की चार पत्तियों वाले पुष्पों को बनाया गया है जो कि दो वक्र इलिकाओं के मध्य के वक्र अलंकरण को जोड़ते हैं। तोरण के उदगम स्थान मकरमुख को भी बहुत अलंकृत व आकर्षक बनाया गया है। मकर के तोरण के दोनों तरफ के स्तम्भों पर जो अलंकरण है उस पर गुप्त काल का प्रभाव साफ स्पष्ट दिखाई देता है। नीचे से मध्यभाग सपाट है जबकि तोरण के नीचे या ऊपरी भाग में अलंकरण है। तोरण के निचले भाग व मध्यभाग के ऊपर यह स्तम्भ गोल हो गया है, जिस पर नीचे के भाग में चतुष्कोणों को एक-एक खांचों में बनाकर अलंकरण दिया है, जबकि उसके ऊपर का