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जैन कथा साहित्य : एक समीक्षात्मक सर्वेक्षण पर स्वमत का पोषण करना ३. मिथ्यात्व के स्वरूप की समीक्षा कर फिर सम्यक्त्व का स्वरूप बताना और ४. सम्यक्त्व का स्वरूप बताकर फिर मिथ्यात्व का स्वरूप बताना।
(स) संवेगिनी कथा के चार भेद हैं - १. शरीर की अशुचिता, २. संसार की दुःखमयता ३. संयोगो का वियोग अवश्यमभावी है - ऐसा चित्रण कर ४. वैराग्य की ओर उन्मुख करना।
(द) निवेदनी कथा का स्वरूप है - आत्मा के अनन्त चतुष्टय का वर्णनकर व्यक्ति में ज्ञाता दृष्टाभाव या साक्षीभाव उत्पन्न करना। विभिन्न भाषाओं में रचित जैन कथा साहित्य - ___भाषाओं की दृष्टि से विचार करे तो जैन कथा साहित्य प्राकृत, संस्कृत, कन्नड, तमिल, अपभ्रंश, मरूगुर्जर हिन्दी, मराठी, गुजराती और क्वचित रूप में बंगला में भी लिखा गया है। मात्र यही नहीं प्राकृत और अपभ्रंश में भी उन भाषाओं के अपने विविध रूपों में वह मिलता है। उदाहरण के रूप में प्राकृत के भी अनेक रूपों यथा अर्धमागधी, जैन शौरसेनी, महाराष्ट्री आदि में जैन कथा साहित्य लिखा गया है और बहुत कुछ रूप में आज भी उपलब्ध है। गुणाढय ने अपनी बृहत्कथा पैशाची प्राकृत में लिखी थी, यद्यपि दुर्भाग्य से आज वह उपलब्ध नहीं है। आज जो जैन कथा साहित्य विभिन्न प्राकृत-भाषाओं में उपलब्ध है उनमें सबसे कम शौरसेनी में मिलता है, उसकी अपेक्षा अर्धमागधी या महाराष्ट्री प्रभावित अर्धमागधी में अधिक है, क्योंकि उपलब्ध आगम और प्राचीन आगमिक व्याख्याएँ इसी भाषा में लिखित हैं। महाराष्ट्री प्राकृत में जैन कथा साहित्य उन दोषों भाषाओं की अपेक्षा भी विपुल मात्रा में प्राप्त होता है और इसके लेखन में श्वेताम्बर जैनाचार्यों एवं मुनियों का योगदान अधिक है। दिगम्बर आचार्यों की रूचि अध्यात्म और कर्म साहित्य में अधिक रही फलतः भगवती आराधना में संल्लेखना के साधक कुछ व्यक्त्यिों के नाम निर्देश को छोड़कर उसमें अधिक कुछ नहीं मिलता है। यद्यपि कुछ जैन नाटकों में शौरसेनी का प्रयोग अवश्य देखा जाता है, इस परम्परा में हरिषेण का बृहत्कथाकोश ही एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जा सकता है, इसके अतिरिक्त आराधना कथाकोश भी है। अर्धमागधी और महाराष्ट्री के मिश्रित रूप वाले आगमों और आगमिक व्याख्याओं में जैन कथाओं की विपुलता है, किन्तु उनकी ये कथाएं मूलतः चरित्र-चित्रण रूप तथा उपदेशात्मक ही है, साथ ही वे नैतिक एवं आध्यात्मिक विकार करने की दृष्टि से लिखी गई है। आगमिक व्याख्याओं में नियुक्ति साहित्य में मात्र कथा का नाम-निर्देश या कथा-नायक के नाम का निर्देश ही मिलता है। इस दृष्टि से नियुक्तियों की स्थिति भगवती आराधना के समान ही है, जिनमें हमें कथा निर्देश तो मिलते हैं किन्तु कथाएँ नहीं है। कथाओं का विस्तृत रूप भाष्यों की अपेक्षा भी चूर्णि या टीका साहित्य में ही अधिक मिलता है। चूर्णियाँ जैन कथाओं का भण्डार कही जा सकती है। चूर्णि साहित्य की कथाएँ उपदेशात्मक तो है ही, किन्तु वे आचार नियमों के उत्सर्ग और अपवाद की स्थितियों को स्पष्ट करने की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, किन परिस्थितियों में कौन आचरणीय नियम अनाचरणीय बन जाता है इसका स्पष्टीकरण चूर्णी की कथाओं में ही मिलता है। इस प्रकार विभिन्न परिस्थितियों में किस अपराध का क्या प्रायश्चित होगा, इसकी भी सम्यक् समझ