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अनेकान्त 65/2, अप्रैल-जून 2012 नामक है। यह कृति सार्ध पूर्णिमा गच्छ के अभयदेव के शिष्य रामचन्द्र द्वारा वि.सं. ४९० में लिखी गई थी। यह एकलधुकृति है। इसकी अनेक प्रतियां विभिन्न भण्डारों में उपलब्ध हैं। वेबर ने इसे १८७७ में वर्लिन से इसे प्रकाशित भी किया है।
५. पञ्चदण्डात्मक विक्रमचरित्र नामक अज्ञात लेखक की एक अन्य कृति भी मिलती है। इसका रचना काल १२९० या १२९४ है।
६. पञ्चदण्ड छत्र प्रबन्ध नामक ग्रंथ एक अन्य विक्रमचरित्र भी उपलब्ध होता है, जिसके कर्त्ता पूर्णचन्द्र बताये गये हैं।
७. श्री जिनरत्नकोश की सूचनानुसार - सिद्धसेन दिवाकर का एक विक्रमचरित्र भी मिलता है। यदि ऐसा है तो निश्चय ही विक्रमादित्य के अस्तित्व को सिद्ध करने वाली यह प्राचीनतम रचना होगी। केटलॉग केटा गोरम भाग प्रथम के पृष्ठ सं. ७१७ पर इसका निर्देश उपलब्ध है।
८. विक्रम नृपकथा, कृति के कान्तिविजय भण्डार बड़ौदा में एवं 'विक्रम प्रबन्ध' और विक्रम प्रबन्ध कथा नामक दो अन्य ग्रंथों की और सूचना प्राप्त होती है। इसमें विक्रम प्रबन्ध कथा के लेखक श्रुतसागर बताये गये हैं। यह ग्रंथ जयपुर के किसी जैन भण्डार में उपलब्ध है।
९.विक्रमसेनचरित नामक एक अन्य प्राकृत भाषा में निबद्ध ग्रंथ की भी सूचना उपलब होती है। यह ग्रंथ पद्मचन्द्र किसी जैनमुनि के शिष्य द्वारा लिखित है। पाटन केटलाग भाग १ के पृष्ठ १७३ पर इसका उल्लेख है।
१०. पूर्णचन्द्रसूरि के द्वारा रचित विक्रमादित्य पञ्चदण्ड छत्र प्रबन्ध नामक एक अन्य कृति का उल्लेख भी जिन रत्न कोश' में हुआ है।
११. 'विक्रमादित्य धर्मलाभादि प्रबन्ध' के कर्ता मेगेरूतुंगसूरि बताये गये हैं। इसे भी कान्ति विजय भण्डार बडौदा में होने की सूचना प्राप्त होती है।
१२. जिनरत्नकोश में विद्यापति के विक्रमादित्य प्रबन्ध' की सूचना भी प्राप्त है।
१३. 'विक्रमार्कविजय' नामक एक कृति भी प्राप्त होती है। इसके लेखक के रूप में 'गुणार्णाव' का उल्लेख हुआ है।
इस प्रकार जैन भण्डारों से विक्रमादित्य से संबन्धित पन्द्रह से अधिक कृतियों के होने की सूचना प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त मरूगुर्जर और पुरानी हिन्दी में भी विक्रमादित्य पर कृतियों की रचना हुई है। इसमें तपागच्छ के हर्षविमल ने वि.सं. १६१० के आस-पास विक्रम रास की रचना की थी। इसी प्रकार उदय भानु में वि. सं. १५६५ में विक्रम सेन रास की रचना की। प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर में भी विक्रमादित्य की चौपाई की अपूर्ण प्रति उपलब्ध है। इस प्रकार जैनाचार्यों ने प्राकृत संस्कृत, मरूगुर्जर और पुरानी हिन्दी में विक्रमादित्य पर अनेक कृतियों की रचना की है।
- प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर (मध्यप्रदेश)