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अनेकान्त 65/2, अप्रैल-जून 2012
कारण भी होती है। अन्त में यही कहा जा सकता है कि विद्या पढ़ने का फल है हेयोपादेय (कर्त्तव्य - अकर्त्तव्य की जानकारी प्राप्त करना) का परिज्ञान होना । किन्तु पढ़-लिखकर भी यदि हेयोपादेय का ज्ञान नहीं हो तो विद्याभ्यास करना विफल ही समझना चाहिए। अतः स्पष्ट है कि जैन धर्म में शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी का महत्व विस्तार से, अनेक ग्रन्थों में वर्णित है। लेखक का यह जैन धर्म में शिक्षा व्यवस्था जानने की जिज्ञासा को शान्त करने का एक विनम्र प्रयास है।
संदर्भ :
१. आधुनिक भारतीय शिक्षा और उसकी समस्यायें पृष्ठ -१ एवं ३
२.
संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान पृष्ठ-५५५ शैक्षिक चिंतन एवं प्रयोग पृष्ठ - १६५
३.
४.
शाखा मृगा यत्र गृहीतशिक्षा नैसर्गिकं चापलमुत्सृजन्तः ।
कृषन्ति मार्गाय नियोगदृष्ट्या तपोभृतामन्धकहस्तयष्टी ॥ द्विजैरहयाध्ययनस्य पश्चादनन्तरं पंजर वासितानाम् ।
यत्रानुवादः शुकशारिकाणामाकर्ण्यते कर्णरसायन श्रीः । पार्श्वनाथचरित २ / ७६-७७ संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान पृष्ठ-५५९
अथ विद्यागृहकञ्चदासाद्य सखिमण्डितः।
पण्डिताद्विश्वविद्यायामध्यगीष्टाति पण्डितः । क्षत्रचूडामणि २/१
६.
७. शान्तिनाथ चरित १ / १११
८.
९.
पार्श्वनाथ चरित का समीक्षात्मक अध्ययन पृष्ठ- २६५ सुतविद्यार्थमत्यर्थ पार्थिवस्तमयाचत ।
आराधनैक सम्पाद्या, विद्या न हयन्यसाधना ॥ क्षत्रचूडामणि- ७ / ७४
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१०. क्षत्रचूडामणि : एक अध्ययन पृष्ठ- १५२
११. मुमुदे गुणमालापि दृष्टवा पत्रेण पत्रिणाम्।
स्वस्यैव सफलो यत्नः प्रीतये हि विशेषतः । क्षत्रचूडामणि ४/४३
१२. शैक्षिक चिन्तन एवं प्रयोग पृष्ठ- १६६
१३. पार्श्वनाथ चरित - ५/४
१४. क्षत्रचूडामणि १/११२
१५. पार्श्वनाथ चरित २ / ७७
१६. क्षत्रचूडामणि २३/६-२८
१७. नेमि निर्वाण ६ / १२
१८. गुरुभक्तो भवाद्भीतो विनीतो धार्मिकः सुधीः ।
शान्त-स्वान्तो तन्द्रालुः शिष्ट शिष्यो वमिष्यते ॥ क्षत्रचूडामणि २/३१
१९. आदि पुराण में प्रतिपादित भारत पृष्ठ- २६४
२०. पार्श्वनाथ चरित - ४ / २७
२१. वही ४ / २८
२२. शैक्षिक चिन्तन एवं प्रयोग पृष्ठ - १६८
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