Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०२ अप्कायिके पृथ्वीकायादीनामुत्पत्तिः ५१ कोऽपि जीवः अग्निकायिकेभ्य आगत्य पृथिवीकायिके उत्पद्यते तदा तेजस्कायिकानां जीवानामपि एषेव-अकायिकमकरणपठितव वक्तव्यता बोद्धव्या, पकायिकवत् तेजस्काविकानामपि व्यवस्थाऽवगन्तव्या। अकायिकापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तदाह-'नवर' इत्यादि, 'नवरं णवसु वि गमएसु तिनि लेस्साओ' नवरम् केवसं पूर्व लेश्याचतुष्टयमुक्तम् अकायिकेषु देवोत्पत्तेरपि सद्भावात् देवानां च तेजो. लेश्याया अपि सद्भावाद्देवेभ्य आगतानां चतस्रो लेश्याः, इह तेजस्कायिकपक रणे तु तिस्र एव-कृष्ण-नील-कापोतिकाख्या एव लेश्याः तेजस्कायिकेषु देवो. त्पत्तेरनभ्युपगमादिति । 'ते उक्काइया ण मईकलावसंठिया' तेजस्कायिकाः खलु सूचीकलापसंस्थिताः, 'ठिई जाणियधा' स्थितिर्ज्ञातव्या तेजस्कायिकानाम् स्थितिरिह तेजस्कायिकस्थिति ज्ञेया, तथाहि-तेजस्कायिकानां जघन्या स्थितियहां तेजस्काथिकों के सम्बन्ध की भी कहनी चाहिये, परन्तु अपका. यिक की अपेक्षा जो इस वक्तव्यता में भिन्नता है वह इस प्रकार से है-'नवरं वस्तु वि गमएसु तिन्नि लेस्साओ' यहां नौ ही गमों में लेश्याएं तीन ही होती हैं पूर्व में लेश्या चतुष्टय कहा है क्योंकि अपू. कायिकों में देवों की उत्पत्ति भी होती है, और देवों को तेजोलेश्या का भी सद्भाव रहता है, इसलिये वहां देवोंसे आये हुए के चार लेश्याएं कही गई हैं। पर यहां तेजस्कायिक के प्रकरण में जो तीन लेश्याए कही गई हैं-सो' उसका प्रकरण ऐसा है कि तेजस्कायिकों में देवों की उत्पत्ति नहीं होती है । 'तेउकाइयाणं सुइकलावसंठिया' तेज. स्कायिकों का संस्थान सुईयों के समूह के जैसा होता है, 'ठिई जाणि. यन्या' तेजस्कायिक जीवों की स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की होती है और उत्कृष्ट से तीन अहोरात की होती है, પણ કહેવું જોઈએ. પરંતુ અપ્રકાયિકના કથન કરતાં આ કથનમાં જે જુદા पाछे, ते मारीत,-'नवर जवसु वि गमएसु तिन्नि लेस्साओ' मडियां ન ગમમાં ત્રણ લેક્ષાઓ હેય છે. પહેલાના કથનમાં બધે ઠેકાણે ચાર લેશ્યા હોવાનું કહ્યું છે. કેમકે-અપ્રકાયિ કેમ દેવેની ઉત્પત્તિ પણ થાય છે. અને દેવને તેજલેશ્યાને પણ સદૂભાવ રહે છે, તેથી ત્યાં ચાર લેશ્યા હોવાનું કહ્યું છે. પણ અહિયાં આ તેજરકાયિકના પ્રકારમાં જે ત્રણ લેશ્યાઓ કહેવામાં આવી છે તેનું કારણ એ છે કે-તેજસ્કાચિકેમાં દેવેની ઉત્પત્તિ थती नयी. 'तेउकाइयाण सुईकलावसंठिया' ते यान संस्थान से. योना समूड (ना) २. डाय छे. 'ठिई जाणियव्या' ते४४ायि वानी રિથતિ જઘન્યથી એક અંતર્મુહૂર્તની હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ બહેરા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫