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नव पदार्थ
३१. जीव जिन-जिन भावों में परिणमन करता है, वे सब भिन्न-भिन्न हैं। वे सभी पारिणामिक हैं। परिणाम के अनुसार उनके नाम हैं।
३२. कर्म के उदय से उदय-भाव होता है, वह भाव जीव है। कर्म के उपशान्त होने से उपशम-भाव होता है। इस न्याय से वह उपशम भाव जीव है।
३३. कर्म का क्षय होने से क्षायिक-भाव होता है, वह भी भाव जीव है। कर्म का क्षयोपशम होने से क्षयोपशम भाव होता है, इस न्याय से वह भी भाव जीव है।
३४. ये चारों (उदय, उपशम, क्षायक और क्षयापेशम) ही भाव पारिणामिक हैं। यह पारिणामिक भाव भी भाव जीव है। अन्य जीव, अजीव अनेक पदार्थ हैं। वे भी पारिणामिक भाव हैं।
३५. इन पांचों ही भावों को भाव जीव जानो। उनको अच्छी तरह पहचानो। वे उत्पन्न होते हैं और विलीन हो जाते हैं, इस न्याय से वे भाव जीव हैं।
३६. ये भाव जीव कर्मों के संयोग-वियोग से निष्पन्न होते हैं। चार भाव तो होकर निश्चय ही परिवर्तित हो जाते हैं। क्षायिक भाव परिवर्तित नहीं होता।
३७. द्रव्य तीनों कालों में शाश्वत होता है। उसका विलय (नाश) नहीं होता। वह द्रव्य रूप में सदा ज्यों-का-त्यों रहता है।
३८. वह छेदन करने पर नहीं छिदता (अच्छेद्य है), भेदन करने पर नहीं भिदता (अभेद्य है), और जलाने से जलता नहीं है और अग्नि में बालने से बलता भी नहीं है (अदाह्य है)।
३९. वह काटने पर नहीं कटता, गलाने पर नहीं गलता, बांटने पर नहीं बंटता और न घिसने पर घिसता है।