Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 串串部部部串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串串帮
१. आचारांग २. सूयगडांग-सूत्रकृतांग ३. ठाणांग-स्थानांग ४. समवायांग ५. विवाहपण्णत्तीव्याख्याप्रज्ञप्ति-भगवती ६. णायाधम्मकहाओ-ज्ञाताधर्मकथा ७. उवासगदसाओ-उपासकदशा ८. अंतगडदसाओ-अन्तकृद्दशा ६. अणुत्तरोववाइयदसाओ-अनुत्तरौपपातिकदशा १०. पण्हवागरणाइंप्रश्नव्याकरण ११. विवागसुयं-विपाकश्रुत १२. दिट्ठिवाओ-दृष्टिवाद।
इनमें बारहवां दृष्टिवाद वर्तमान में उपलब्ध नहीं है।
महापुरुषों के द्वारा सेवन की गई ज्ञान, दर्शन, चारित्र के आराधन की विधि को आचार कहते हैं। आचार को प्रतिपादन करने वाला सूत्र आचारांग कहा जाता है। आचारांग सूत्र में साधुओं की चर्या से संबंध रखने वाली सभी बातों का वर्णन किया गया है। इसमें दो श्रुतस्कंध हैं। पहले श्रुतस्कंध में नौ अध्ययन हैं और दूसरे श्रुतस्कंध में सोलह अध्ययन हैं। दोनों श्रुतस्कंधों में कुल पच्चीस अध्ययन हैं और उनमें ८५ उद्देशक हैं। पठमो उद्देसओ - प्रथम उद्देशक
(१) प्रथम श्रुतस्कंध के शस्त्र परिज्ञा नामक प्रथम अध्ययन के प्रथम उद्देशक का प्रथम सूत्र इस प्रकार हैं -
सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एंवमक्खायं।
कठिन शब्दार्थ - सुर्य - सुना है, मे - मैंने, आउसं - हे आयुष्मन्! तेणं - उन, भगवया - भगवान् ने, एवं - इस प्रकार, अक्खायं - फरमाया।
भावार्थ - श्री सुधर्मास्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैं कि हे आयुष्मन् शिष्य! मैंने सुना है, उन भगवान् महावीर स्वामी ने यह कहा है।
विवेचन - आचारांग सूत्र के प्रथम अध्ययन का नाम शस्त्र परिज्ञा है। जीवों की हिंसा के कारण को 'शस्त्र' कहते हैं। इसके दो भेद हैं- १. द्रव्य शस्त्र और २. भाव शस्त्र। तलवार आदि द्रव्य शस्त्र हैं और अशुभ योग, राग द्वेष युक्त कलुषित परिणाम भाव-शस्त्र हैं। परिज्ञा का अर्थ है - जानकारी (ज्ञान) अथवा चेतना। परिज्ञा दो प्रकार की होती हैं - १. ज्ञ परिज्ञा अर्थात् अशुभ योग, कलुषित परिणाम आदि कर्म बन्धन के कारणों को जानना और
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