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विषय-प्रवेश
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women who have conquared their lower nature and who have by means all through victory over all attachments and antipathies realised the highest."
___ भगवान महावीर की तरह सभी तीर्थंकरों ने इंद्रियों को जीतकर मनोनिग्रह के द्वारा सम्यक् ज्ञान (Real Knowledge) सम्यक् दर्शन (Real observation) और सम्यक चरित्र्य (Real Conduct) के द्वारा 'केवल ज्ञान' प्राप्त कर संसार के सामने एक अनुपम आदर्श प्रस्तुत किया था। सबके प्रति समभाव तथा समता भाव धारण कर 'वीतराग' का सर्वोच्च बिरुद यथार्थतः पाया था। राग-द्वेष से रहित होकर समभाव से मनुष्य अनन्त शक्ति प्राप्त कर सकता है। जैन धर्म के तीर्थंकरों ने अपनी सहृदयता, पवित्रता और सदुपदेश से जैन समाज को ही नहीं, पूरे भारतवर्ष को उपकृत करते हुए जैन-शासन की कीर्ति पताका फहराई। प्रमुख तत्व :
यहां उन्हीं तत्वों की चर्चा अभिप्रेत हैं, जिन्हें साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में समाविष्ट किया है। 'जियो और जीने दो' के मूल मन्त्र पर ही जैन धर्म का महान अहिंसा-तत्व आधारित है। इसके साथ-साथ आत्म बल, आत्मनिग्रह, तपस्या, अपरिग्रह, अचौर्यत्व, अनेकान्तवाद, ब्रह्मचर्य तथा समानता के तत्वों पर जैन धर्म में विशेष महत्त्व दिया गया है। जैन दर्शन ने आत्मवाद, कर्मवाद, लोकवाद और क्रियावाद पर अधिक बल दिया है। इसलिए जैन दर्शन को ‘अस्तित्ववादी' कहा जा सकता है। स्वयं भगवान महावीर ने कहा है कि-'लोक-अलोक, जीव-अजीव, धर्म-अधर्म, बन्ध-मोक्ष, पुण्य-पाप, क्रिया-अक्रिया नहीं है, ऐसी संज्ञा मत रखो, किन्तु ये सब हैं, ऐसी संज्ञा रखो।' ऐसी मान्यतानुसार अनेकान्तवाद को जैन धर्म में काफी महत्व मिला है। जैन विचारधारा का सौम्यदर्शन भारतीय विचार परम्परा और संस्कृति के साथ पूर्णतः तादात्म्य स्थापित कर सकता है। डा. बन्दोपाध्याय के मतानुसार “Jain philosophy is no exception to the pro-dominently spiritual outlook of traditional climate of Indian thinking. It accepts ‘Mokşa’ as a goal of human life and is convienced that it is possible to attain it, but it curves out of distircitive place for it self by its strong learning to experiementism and realism”. 1. डा. राधाकृष्णन्-इंडियन फिलासफी-पृ. 286. 2. देखिए-आचार्य द. वा. जोग-भारतीय दर्शन संग्रह-पृ॰ 231 (चित्रशाला प्रकाशन
पूणे)। 3. Dr. S.P. Bandopadhyay-Jain Journal 'July-76.