Book Title: Vasudevhindi Part 1
Author(s): Sanghdas Gani, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीआत्मानन्द-जैनग्रन्थरत्नमालाया अर्श पूज्यश्रीसङ्घदासगणि-वाचकविनिर्मितं वसुदेवहिण्डिप्रथमखण्डम् । तस्याऽयं प्रथमोऽशः। (धम्मिल्लहिण्डिगर्भितः) सम्पादकौ संशोधको चबृहत्तपागच्छान्तर्गतसंविग्नशाखाया आद्याचार्य-न्यायाम्भोनिधिमंविनमूडामणि-सिद्धान्तोदधिपारगामि-श्रीमद्विजयानन्दसूरीशशिष्यरत्नप्रवर्तकश्रीमत्कान्तिविजयमुनिपुङ्गवानां शिष्यप्रशिष्यौ चतुरविजय-पुण्यविजयौ । प्रकाशयित्री भावनगरस्था श्रीजैन-आत्मानन्दसभा। वीरसंवत्-२४५६. । मूल्यम्- [ विक्रमसंवत्-१९८६. आत्मसंवत्-३४. J सार्धरूप्यकत्रयम् । । ईस्वीसन् १९३०. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the Nirnaya Sagar Press, 26-28, Kolbhat Lane, Bombay. Published by Vallabhadas Tribhuvandas Gandhi, Secretary Shri Jain Atmanand Sabha, Bhavnagar, Kathiawar. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रास्ताविक निवेदन. प्रकाशन-प्रस्तुत वसुदेवहिंडी ग्रन्थने “श्रेष्टिवर्य श्रीमान् देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंड" तरफथी प्रसिद्ध करवाना इरादाथी तेना कार्यवाहकोए न्याय-व्याकरणतीर्थ पं० बेचरदास जीवराज भाई दोसीने पसंद करी तेना संपादनने लगतुं सर्व कार्य तेमने सोंप्यं हतुं. परन्तु पाछळथी र्थिक प्रश्नने कारणे ते कार्य उपरोक्त फंड तरफथी पडतुं मूकाता सं० १९८२ मां अमे तेनी तयार थएल कॉपी पं० बेचरभाई पासेथी लइ लीधी, अने तेना सम्पादननो सर्व भार अमे स्वीकारी लीधो. आजे चार वर्षने अंते अमे तेना प्रथम खंडना प्रथम अंशने विद्वानोना करकमलमां अपीए छीप. वसुदेवहिंडी अने तेना कर्ता-प्रस्तुत ग्रंथ बे खंड, सो (१००) लंभक अने तेना अंतमां उल्लिखित ग्रन्थाग्रं (श्लोकसंख्या) ने आधारे २८००० श्लंकमां समाप्त थाय छे पहेलो खंड २९ लंभक अने ११००० श्लोक प्रमाण छे तथा बीजो खंड ७१ लंभक अने १७००० श्लोक परिमित छे. बन्ने य खंड एक आचार्यना रचेला नथी परन्तु जुदा जुदा आचार्ये रच्या छे. प्रथम खंडना कर्ता श्रीसंघदास गणि वाचक छे अने द्वितीय खंडना कर्ता श्रीधर्मसेनगणि महत्तर छे. अत्यार सुधीना अमारा अवलोकनने आधारे एम जणाय छे के-प्रथम खंड वचमा तेम ज अंतमा खंडित थइ गयो छे. प्रथम खंडना अंतमा जे ११००० श्लोकसंख्या नोंधवामां आवेल छे ते अमारी अक्षर अक्षर गणीने करेल नवीन गणतरी प्रमाणे लगभग १००० श्लोक जेटली ओछी थशे. आ उपरथी एम अनुमान करी शकाय के--प्रथम खंडमां खूटतो भाग तेटलो ज होवो जोइए जेटलो अमारी नवीन गणतरीमा तूटशे. अत्यारे प्रसिद्ध करातो प्रथम अंश श्रीसंघदासगणिवाचककृत प्रथम खंडनो अंश छे. आ खंडनो तेम ज तेना कर्तानो परिचय द्वितीय अंशमां आपवानो अमारो संकल्प छे. अहीं टुंकमां फक्त एटलुं ज निवेदन करीए छीए के-प्रस्तुत प्रथम खंडना कर्त्ता आचार्य, भाष्यकार पूज्य श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण पहेला थइ गया छे. आ वात आपणे भाष्यकार विरचित विदोषणवती ग्रन्थमां आवता प्रस्तुत ग्रन्थना उल्लेखने जोइने जाणी शकीए छीए. प्रथम अंश-अत्यारे प्रकट करातो प्रथम अंश सात लम्भक सुधीनो छे. अर्थात् अन्धकारे प्रस्तुत ग्रन्थना आरम्भमां (पृष्ठ १ पंक्ति १७) जे मुख्य छ विभागो पाड्या छे ते पैकी कहुप्पत्ती पेढिया मुहं अने पडिमुहं आ चार विभागो पूरा थई पांचमा सरीर विभागना २९ लभक पैकी सात लम्भकोनो आ अंशमा समावेश थाय छे. धम्मिहिंडी-प्रस्तुत ग्रन्थy नाम वसुदेवहिंडी छे छतां आमां धम्मिल्लहिंडी अने वसुदेवहिंडी एम बे हिंडीओ वर्णवायली छे. कहुप्पत्ती पूर्ण थया पछी लागली ज धम्मिल्लहिण्डी चालु थाय छे. छतां ग्रन्थनो वधारे भाग वसुदेव हिण्डीए रोकेल होवाथी आ ग्रन्थनुं नाम वसुदेवहिण्डी कहेवामां आवे छे. प्रतिओ-आ ग्रन्थना संशोधनमा अमे नीचेनी प्रतिओनो उपयोग करेल छ १ लीम्बडीना संघना भंडारनी ली० संज्ञक. २ त्रिस्तुतिक उपाध्यायजी श्रीमान् यतीन्द्रविजसजी महाराजनी य० संज्ञक. ३ अमदावादना डेलाना भंडारनी डे संज्ञक. . आत्रण प्रतिओ परस्पर समान होवाथी पाठांतर लेती वेळा वारंवार ली० य० डे० लखवू में पडे माटे एनी टुंकी संज्ञा अमे ली ३ राखी छे. १,प्रवर्तक प्रज्ञांश श्रीमान् लाभविजयजी महाराजनी क० संज्ञक. २ पाटणना मोदीना भंडारनी मो० संज्ञक. ३ पाढणना संघना भंडारनी सं० संज्ञक. आ अण प्रतोनी टुकी संज्ञा के ३ राखवामां आवी छे. १ गोघाना संघना भंडारनी गो० संज्ञक. २ पाटणना वाडीपार्श्वनाथना भंडारनी वा० संज्ञक. ३ खंभातना शेठ अम्बालाल पानाचन्दनी धर्मशालाना पुस्तकसंग्रहनी खं० संज्ञक. आत्रण प्रतिनी टुंकी संज्ञा मो ३ सखेल छे. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8 १ अमदावादना शेठ उमाभाईना भडारनी उ० संज्ञक. भंडारनी शां० संज्ञक. आ प्रतोनी टुंकी संज्ञा उ २ राखेल छे. २ खभातना शांतिनाथना ताडपत्रीय १ लीम्बडी संघाडाना स्थानकवासी मुनि श्री मेघजी स्वामिनी मे० संज्ञक. उपर जणावेल बार प्रतो पैकी खंभातना शांतिनाथना भंडारनी प्रति ताडपत्रीय छे अने संवत् १३८६ मां लखायेल छे. ते सिवायनी बीजी बधीये प्रतो कागळ उपर लखायेल तेमज उपरोक्त ताडपत्रीय प्रति करतां अर्वाचीन छे. आ सर्व प्रतिओनो परिचय, पाठान्तरोनो क्रम, ग्रंथमां वधती अशुद्धिओ तथा पाठान्तरोना प्रकाशे अने कारणो आदि बाबतो अमे प्रथम खंडना द्वितीय अंशमां आपीशुं. अमारा संकेतो - १ प्रस्तुत ग्रन्थमां अमने ज्यां ज्यां प्रतोमां अशुद्ध ज पाठो मळ्या छे कल्पनाथी ते ते पाठोने सुधारीने ( आवा गोळ कोष्ठकमां मूक्या छे. १०- २०-२७, पृ० १५ पं० १३-१४ -२० इत्यादि. २ मूळ प्रतोमां ज्यां ज्यां पाठो खण्डित मळ्या छे तेवे स्थळे सम्बन्ध जोडवामाटे दाखल करेल पाठो अमे [ ] आवा कोष्टकमां आपेल छे. जुओ पृष्ठ १० पंक्ति २२, पृ १३ २८, पृ ३४ पं १. त्यां त्यां अमे अमारी मतिजुओ पृष्ठ ९ पंक्ति २ ३ लिखित प्रतोमां जे पाठो अमने लेखकना प्रमादधी पेसी गएल जणाया छे ते पाठो अमे प्रारम्भमां [ ] आवा कोष्ठकमां आपी टिप्पणीमां "कोष्टान्तर्गतमिदं प्रामादिकम्" एम जणाव्युं छे, जुओ पृष्ठ १६ पं २४, पृ २५ पं ९, परंतु आगळ चालतां आ पद्धतिने जती करी तेवा पाठोने अमे [ * ] आवा फूलडी सहित कोष्टकमां मूक्या छे. जुओ पृ ४२ पं १६, पृ ५० पं २०. * ४ जे जे स्थळे अमने पाठो संदेहवाळा जणाया छे त्यां अमे आवुं ( ? ) चिह्न मूकेल छे. अने ज्यां लांबा फकराओ अस्तव्यस्त जणाया छे त्यां तेना आरम्भ अने अंतमां आवुं (??) चिह्न मूकेल छे. ५ पाठान्तरोमां प्रतिओनां नाम साधे ज्यां सं० जोडायेल होय, जेम के-कसं० संसं० गोसं० आदि, त्यां समजवुं के ते पाठो ते ते प्रतिना विद्वान् वाचके मार्जिनमां अगर अंदर सुधारेला छे. ६ प्रस्तुत प्रकाशनमां घणे य स्थळे (.) कोष्टकमां आपेल मींडारूप पूर्णविराम नजरे पडशे. ते अमे एटलामाटे पसंद करेल छे के – “वसुदेवेण भणियं-" "मए भणियं" इत्यादि स्थळोमां ते ते व्यक्तिनुं कथन क्यां समाप्त थाय छे ए स्पष्ट रीते जाणी शकाय अर्थात् एक व्यक्तिनुं कथन पांच के दस वाक्यमा पूर्ण थतुं होय ते दरेक वाक्यने अंते । आवुं पूर्णविराम करवाथी केटलीक वार जे गोटा ळानो संभव रहे छे ते आ चिह्नथी दूर थाय छे. ज्यां एक व्यक्तिना कथनमां बीजी बीजी व्यक्तिओनां कथनो घणे ज दूर सुधी चालतां होय त्यां अमे पारेग्राफ पाडी चालु । आ जातनां ज पूर्णविराम मूक्यां छे. ७ दरेक पानाना मार्जिनमां जे इंग्लीश अंको आपवामां आव्या छे ते पंक्तिओनी गणतरीमाटे छे. ८ प्रस्तुत ग्रन्थमां स्थाने स्थाने जे लोकसंख्या नोंधवामां आवी छे ते हस्तलिखित प्रतोमां नथी, किन्तु अमारी अक्षर अक्षर गणीने करेल नवीन गणतरीने आधारे नोंधेल छे. प्रस्तुत ग्रन्थना संशोधनमां तेमज पाठान्तरो लेवामां अमे गुरु शिष्ये सविशेष सावधानी राखी छे, छतां य अमारा प्रज्ञादोषने कारणे स्खलनाओ थयेली कोइ वाचकोनी नजरे आवे तेओ अमने तृभावे सूचना करे. तेनो अभे द्वितीय अंशमां योग्य रीते उल्लेख करवा चूकीशुं नहि. निवेदको पूज्यपाद प्रवर्त्तक श्रीकान्तिविजयजी शिष्य-प्रशिष्य मुनि चतुरविजय - पुण्यविजय. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रास्ताविक निवेदनम् । प्रकाशनम्-प्रकृतोऽयं वसुदेवहिण्डिग्रन्थः “श्रेष्टिवर्य देवचन्द्र लालभाई जैनपुस्तकोद्धार फण्ड" द्वारा प्रकाशनेच्छया तत्कार्यवाहकैः "न्यायव्याकरणतीर्थ पण्डित बेचरदास जीवराज दोसी" महाशयाय सम्पादनार्थ समर्पित आसीत् । किञ्चाधिकद्रव्यव्ययादिकारणैस्तैरेतत्प्रकाशनं परित्यक्तमित्यस्माभिः पण्डितश्रीबेचरदासपार्थात् तत्प्रतिकृति (प्रेसकॉपी) गृहीत्वा तत्सम्पादनादिकः समस्तोऽपि कार्यभारः स्वीकृतः। अद्य वर्षचतुष्टयान्ते वयं तस्य प्रथमखण्डस्य प्रथममंशं विद्वत्करकमलेपु समर्प्य कृतार्थीभवामः । __ वसुदेवहिण्डिस्तत्कारश्च-ग्रन्थोऽयं खण्डद्वयेन लम्भकशतेन तत्प्रान्तोल्लिखितश्लोकसङ्ग्यानुसारेणाष्टाविंशतिसहस्रप्रमितः श्लोकैश्च पूर्णो भवति । आद्यखण्ड एकोनत्रिंशल्लम्भकात्मक एकादशसहस्रश्लोकप्रमितश्च । द्वितीयः पुनरेकसप्ततिलम्भकात्मकः सप्तदशसहस्रश्लोकप्रमाणश्च । ग्रन्थस्यास्य खण्ड. द्वयं नैकाचार्यविनिर्मितं किन्तु पृथक्पृथगाचार्यसूत्रितम् । आद्यखण्डः श्रीसङ्घदासगणिवाचकसन्दृब्धः, द्वितीयः पुनः श्रीधर्मसेनगणिमहत्तरविहितः । अद्यावधिकृतास्मदवलोकनाधारेणैतज्ज्ञायते यत्-आद्यखण्डो मध्ये प्रान्ते च त्रुटितः। एतत्खण्डप्रान्ते या एकादशसहस्रमिता श्लोकसङ्ख्योल्लिखिता वरीवृत्यते सा प्रत्यक्षरगणनाविहितारमच्छोकसङ्ख्यानुसारेण सहस्रश्लोकमिता न्यूना भविष्यतीत्येतदनुमीयते यत्-प्रथमखण्डमध्ये त्रुटितोंऽश एतावानेव स्याद् यावानस्सद्गणनायां त्रुटिष्यति । साम्प्रतं प्रकाश्यमानोऽयं प्रथमोऽशः श्रीसङ्घदासगणिवाचकविनिर्मितस्याद्यखण्डस्यांशः । एतखण्डस्यास्य कर्तश्च सविशेष परिचयं द्वितीयेंऽशे कारयिष्यामः। अत्र तावत् संक्षेपेणैतदेवावेदयामः, यत्-प्रथमखण्डविनिर्माताऽऽचार्यो भाष्यकारश्रीजिनभद्गगणिक्षमाश्रमणाच्चिरन्तन इति । एतच्च भाष्यकृद्विरचितविशेषणवतिग्रन्थान्तर्गतेनैतन्थाभिधानोल्लेखदर्शनेनावबुध्यते ।। प्रथमोऽश:-अधुना प्रसिद्धि प्राप्यमाणोऽयमंशो लम्भकसप्तकान्तो वर्तते। अर्थाद ग्रन्थारम्भे (पृष्ठ १ पंक्तिः १७) ग्रन्थकृद्भिः प्राधान्येन निर्दिष्टा ये षडाधिकारा दरीदृश्यन्ते तानाश्रित्य 'कहप्पत्ती पेढिया मुहं पडिमुहं' इत्येते चत्वारोऽर्थाधिकाराः, एकोनत्रिंशल्लम्भकात्मकस्य पञ्चमस्य 'सरीरा'ऽऽख्यस्यार्थाधिकारस्य सप्त लम्भका अस्मिन् समावेशिताः सन्ति । धम्मिलुहिण्डि:-यद्यपि ग्रन्थस्यास्याभिधानं वसुदेवहिण्डिरित्यस्ति तथाप्यस्मिन् धम्मिल्लहिण्डिर्वसुदेवहिण्डिरित्येवं हिण्डियुग्मं व्यावर्णितं दृश्यते । कहुप्पत्तीवर्णनानन्तरं सद्य एव धम्मिल्लाहिण्डिवर्तते । किन महान ग्रन्थसन्दर्भो वसुदेवहिण्डिसम्बद्ध इति ग्रन्थस्यास्याभिधा वसुदेवहिण्डिरिति । सञ्चिताः प्रतयः-ग्रन्थस्यास्य संशोधनकर्मणि निम्नोद्धृताः प्रतयः सञ्चिता वर्तन्ते १ लीम्बडी-सङ्घभाण्डागारसत्का ली० संज्ञका । २ त्रिस्तुतिकोपाध्यायश्रीयतीन्द्रधिजयजित्सत्का य० संज्ञका । ३ राजनगरीय (अमदावाद) डेलाभाण्डागारसत्का डे० संज्ञका । एतास्तिस्रः प्रतयः परस्परमतिसमाना इति पाठान्तरग्रहणावसरे मा भूत् ली य० डे० इति पुनःपुनर्लेखनश्रम इत्यस्माभिरासां तिसृणां प्रतीनां संक्षिप्ताऽभिधा ली ३ कृतास्ति । प्रवर्तक-प्रज्ञांशश्रीलाभविजयजित्सत्का क० संज्ञका । २ पत्तनीय-मोदीसत्कज्ञानकोशगता मो० संज्ञका । ३ पत्तनश्रीसङ्खभाण्डागारसत्का सं० संज्ञका। आसां प्रतीनां संक्षिप्ताऽभिधा क३ विहितास्ति। गोधा-श्रीसङ्घभाण्डागारसत्का गो० संज्ञका । २ पत्तनस्थवाडीपार्श्वनाथभाण्डागारसत्का वा० संज्ञका। ३ स्तम्भतीर्थीय (खम्भात) श्रेष्टिअम्बालालपानाचंदसत्कधर्मशालापुस्तकसंग्रहगता खं०संज्ञका। आसां संक्षिप्ताऽऽख्या गो ३ विहिताऽस्ति । Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ राजनगरीयश्रेष्ठिउभाभाईभाण्डागारसत्का उ० संज्ञका । २ स्तम्भतीर्थीयश्रीशान्तिनाथभएकताडपत्रीयभाण्डागारगता शां० संज्ञका । अनयोः संक्षिप्ताऽभिधा उ२ कृतास्ति । १लीम्बडीसङ्घाटकान्तर्गतस्थानकवासिमुनिश्रीमेघजीऋषिसत्का मे० संज्ञका । उपरि निर्दिष्टासु प्रतिषु मध्ये स्तम्भतीर्थीयश्रीशान्तिनाथभाण्डागारसत्का प्रतिस्ताडपत्रीया मं.. १३८६ मितेऽब्दे लिखिताऽस्ति । एतदतिरिक्ता अन्याःप्रतयः कद्गलोपरि लिखितास्ताडपत्रीयप्रतेराचीनतराश्च वर्तन्ते । आसां विशिष्टः परिचयः, पाठान्तराणां क्रमः, ग्रन्थेपु वर्द्धमानानामशुद्धीनां पाठान्तराणां च प्रकाराः कारणानि चेत्यादिकं द्वितीयांशप्रकाशनावसरे सविस्तरं दास्यामः । अस्माकं संकेता: १ अन्थेऽस्मिन्नस्माभिर्यत्र यत्र लिखितप्रतिष्वशुद्धा एव पाठा उपलब्धास्तत्र तत्र ते पाठाः स्वकल्पनया संशोध्य ( ) एतादृग्वृत्तकोष्ठान्तः स्थापिताः सन्ति-पृष्ठं ९ पंक्तिः २-१०-२०.२७, पृष्ठं १५ पंक्ति १३-१४ २० इत्यादि। २ हस्तलिखितप्रतिषु यत्र यत्र खण्डिताः पाठा आसादितास्तत्र तत्र सम्बन्धयोजनार्थ निवेशिताः पाठाः एताहकोष्ठान्तर्मुक्तस्सान्त-पृ० १. पं० २२, पृ० १३ पं० २८, पृ०२४ पं० १५ आदि। ३ हस्तलिखितप्रतिषु ये पाठा लेखकप्रमादादन्तः प्रविष्टा ज्ञातास्तान् यद्यपि प्रारम्भे [ ] एतादृक्कोष्ठान्तर्निवेश्य टिप्पण्यां "कोष्ठान्तर्गतमिदं प्रामादिकम्" इत्यस्माभिमपितम्-पृ० १६ पं० २४, पृ. २५ पं. ९ किन्वनन्तरमेवैनां पद्धतिं विहाय तादृक्षाः पाठा अस्माभिः [ *] ईदृक्षसफुल्लिककोष्ठान्तर्दर्शितास्सन्ति-पृ० ४२ पं. १६ आदि । ४ ग्रन्थेऽस्मिन् ये सन्दिग्धार्थाः पाठास्तदप्रेऽस्माभिः एतचिह्न (?) विहितम् । यत्र च कियांश्चिइन्थसन्दर्भ एव सन्दिग्धार्थस्तत्राऽऽदावन्ते चापि एतच्चिह्न (? ? ) विहितमिति । ५पाठान्तरेषु प्रतिनामभिः साधं यत्र सं० योजितः स्याद्, यथा-कसं० संसं० गोसं० आदि, तत्र ज्ञातव्यम् , यत्-ते पाठास्तस्यास्तस्याः प्रतेः केनचिद्विदुषा वाचकेन मार्जनेऽन्तर्वा संशोधिता इति । ६ मुद्रितेऽस्मिन ग्रन्थे भूरिस्थलेषु (.) कोष्ठकान्तर्दर्शितो बिन्द्वाकारः पूर्णविरामो द्रक्ष्यते, स चास्माभिरेतदर्थमङ्गीकृतो यत्-“वसुदेवेण भणियं" "मए भणियं" इत्यादिकेषु स्थानेषु तत्तद्वक्तुर्वक्तव्यं क्व समाप्यत इति स्पष्टं ज्ञायेत । अर्थादेकस्या व्यक्तेर्वक्तव्यं पञ्चसु दशसु अधिकेपु वा वाक्येषु यत्र पूर्यते तत्र प्रतिवाक्यं । एतादृपूर्णविरामकरणे क्वचित्क्वचित् भ्रान्तिः सम्भवति साऽनेनाऽपाकृतेति । यत्र पुनरेकस्या व्यक्तेर्वक्तव्यान्तरपरापरव्यक्तिवक्तव्यं दूरं यावत् स्यात् तत्र भ्रान्तिनिवारणार्थ विभागं (पारिग्राफ) कृत्वा । एतादृक्प्रसिद्ध एव पूर्णविरामो विहित इति । ७ प्रतिपत्रं मार्जने ये आङ्गा अङ्का दृश्यन्ते ते तत्तत्पत्रगतपतिसङ्ख्याद्योतनार्थमिति ज्ञेयम् । ८ ग्रन्थेऽस्मिन् स्थाने स्थाने या श्लोकसङ्ख्या निर्दिष्टास्ति सा न हस्तलिखितपुस्तकादर्शगता किन्तु प्रत्यक्षरगणनाविहितास्मद्गणनानुसारिणीति । ग्रन्थस्यास्य संशोधनं पाठान्तरसंग्रहणं चाप्यावाभ्यां गुरु-शिष्याभ्यामतिसावधानतया कृतमस्ति तथाप्यस्मत्प्रज्ञादोषेण सञ्जाताः स्खलना यैः कैश्चिदपि वाचकैदृश्येरन ते ज्ञापयन्त्वस्मान भ्रातृभावेन । द्वितीयेऽशे तदुल्लेखविधानमावां न विस्मरिष्याव इति । निवेदकोपूज्यपाद प्रवर्तकश्रीमत्कान्तिविजय शिष्य-प्रशिष्यो मुनी चतुरविजय-पुण्यविजयौ । Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आभार प्रदर्शन. वडोदरा आ वसुदेवहिंडी ग्रंथ जैनोना प्राचीनमां प्राचीन कथासाहित्यमांनुं एक अणमोलुं रत्न छे. तेनुं संपादनकार्य पूज्य प्रवर्तक श्रीमत्कान्तिविजयजी महाराजना विद्वान् शिष्यप्रशिष्य मुनि श्रीचतुरविजयजी महाराज तथा मुनि श्रीपुण्यविजयजी महाराजे पोताना अमूल्य वखतनो भोग आपी अनेक प्रतिओ मेळवी घणी ज महेनते कयुं छे. आ संपूर्ण ग्रंथ छपावतां जे खर्च थवानो छे तेना प्रमाणमां अमोने जे सद्गृहस्थो तरफथी आर्थिक सहाय मळी छे ते ओछी छे. अने आजना समयमां वधारे मदद माटे कोइने कहेवू घणुं अयोग्य लागवाथी सहायकोनी आज्ञाथी आ ग्रंथना उत्तरोत्तर भागो छपाय एवा उद्देशथी आ प्रथम खंडना प्रथम अंशनी पूरेपूरी किंमत राखवामां आवी छे. जे जे सखी सद्गृहस्थोए आ कार्यमां उदारता बतावी छे तेओनी शुभ नामावली नीचे आपीए छीए नामने नहिं इच्छनार एक सद्गृहस्थे कागळोनो खर्च आप्यो छे. १००० नामने नहिं इच्छनार एक सखी | ५०० शा० जीवणलाल कीशोरदास गृहस्थ १००० ५०० झवेरी मोहनलाल मोतीचंद पाटण. २५० श्रीज्ञानवर्धक सभा वेरावल. ह. १२०० पूज्यपाद आचार्य श्री १०८ श्रीवि शेठ खुशालचंद करमचंद. जयकमलसूरीश्वरना शिष्य मुनि. २५० शा० गोपालजी दयाळ सीहोर. वर्य श्रीनेमविजयजी तथा मुनि २०० संघवी नगीनदास करमचंद पाटण. श्रीउत्तमविजयजीना उपदेशथी २०० संघवी मणिलाल करमचंद पाटण. कपडवंजना शेठ मीठाभाई कल्या २०० शा० मोहनलाल चुनीलालनी णचंदना उपाश्रय तरफथी. ह० पत्नी बेन समुबाइ पाटण. शेठ प्रेमचंद रतनचंद तथा शा० १०० झवेरी बापुलाल चुनीलाल पाटण. न्यहालचंद केवळचंद. | १०० सौभाग्यवती बेन पार्वतीबाई ५०० शा० हिम्मतलाल दलसुख नसवाडी. जामनगर. आ प्रथम अंशने उंचा कागळोमा ( क्रॉक्स्ली लायन लेजर) अने निर्णयसागर जेवा जगत्प्रसिद्ध मुद्रालयमां छपावी प्रगटकरी विद्वद्वर्गना करकमलमां मूकवा अमो भाग्यशाली थया छीए तेनो बधो जस पूज्य संपादको अने सहायदाता उदार सद्गृहस्थोने ज घटे छे. ली. सेक्रेटरीश्रीजैन आत्मानंद सभा भावनगर. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क विषयः धम्मिल्लहिंडी पेढिया मुहं पडिमुहं सरीरं १ सामाविजयालंभो पत्रम् १६ २४ २६ २७ ३९ १५६ १६० १८२ पंक्ति २३-२४ २९ १० २६ २१-२२ 20 30 19 १६ १९ ३२ प्रथमांशस्यानुक्रमः । पत्रम् PERKS १ २७ ७७ १०५ ११० ११४ ११४ विषयः २ सामलीलंभो ३ गंधवदत्तालभो ४ नीलजसालभो ५ सोमसिरिलंभो ६ मित्तसिरी- धणसिरीलंभो ७ कविलालभो प्रथमांशस्य शुद्धिपत्रम् अशुद्धम् [ सोऊण ] अजुत्ता 'भविस्सं "धम्मिल्ल" इति चिंतियं - एयं प सत्यं... को नीलजलसा' गारु पूर्वमग्रे शुद्धम् ० उ जुत्ता 'भविस्संति "धम्मिल" इति चितियं एयं. एस थक्को नीलजसा गा एवम पत्रम् १२२ १२६ १५६ १८१ १९५ १९८ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अर्हम् ॥ ॥ णमो त्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स ॥ सिरिसंघदासगणिवायगविरइआ वसुदेवहिंडी । | पढमं खंडं । । ॥ ॐ नमो सुदेवयाए । नमो वीतरागाय ॥ *जयइ नवनलिणिकुवलय-वियसियसयवत्तपंत्तलदलत्थो उसभी गईंदमयगल - सुललियगयविक्कमो भयवं ॥ १ ॥ नमो विणयपणयसुरिंदैविंदवंदियकमारविंदाणं अरहंताणं । नमो परिसुद्धाणदंसणसमिद्धाणं सिद्धाणं । नमो जिर्णेपणीयायारविहिवियक्खणाणं आयरियाणं । नमो सीसगणपरमसुयसंपयऽज्झायाणं उवज्झायाणं । नमो सिद्धिवसहिगमणकारणजोगसाहँगाणं साहूणं । तत्थ इमे अहिगारा, तं जहा - कहुप्पत्ती १, पेढिया २, मुहं ३, पडिमुहं ४, सरीरं ५, उपसंहारो ६ | पत्थावणा एवं पंचनमोक्कारपरममंगलविहिविवड्डिउच्छाहो अणुओगधरे सिरसा पणमिणं विन्न- 15 बेमि-- अणुजाणंतु मं, गुरुपरंपरागयं वसुदेवचरियं णाम संगहं वन्नइस्सं । १ पत्तलडहच्छो कसं ० ॥ २च्छो कसं ० सं०ली० रा० ॥ ३°रिंदवंदिय क ३ ॥ ४णप्प उ० ॥ ५ हणाणं उ० विना ॥ ६ 'लबलवि° ली ३ विना ॥ * उ० पुस्तके नास्तीयं मङ्गलगाथा । अस्माकमप्येषा प्रक्षिप्तैवाऽऽभाति, “एवं पंचनमोक्कारपरममंगल - " इत्यादिग्रन्थकृदुल्लेखदर्शनात्, ऋषभमङ्गलानन्तरं पञ्चनमस्कारमङ्गलोपन्यासस्यानौचित्यात् । बहुष्वादर्शेषु दृश्यत इति मूल आदृता । मङ्गलगाथा चेयं “उसभो” इति -स्थाने "वीरो” इति परावर्तनमात्रा पादलिप्ताचार्यविरचितवीरस्तोत्रे मङ्गलरूपा दृश्यते, प्रक्षिप्ता चेयं तत्रापि गीयते बुधैः, उद्बुध्यत इदं स्तोत्र मञ्चलगच्छीयैस्तृतीयस्मरणरूपेण । तथा धर्म सेनगणिमहत्तरविनिर्मित वसुदेवहिण्डिद्वितीयखण्डे इत्थंप्रकारा मङ्गलगाथा वरीवृत्यते-“जयइ नवनलिणिकुवलय वियसि यवर कमलपत्तलडहच्छो । उसभो सभावसुललियमय गलगइललियपत्थाणो ॥” इति ॥ 5 10 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडी [ कहुप्पत्ती ] तस्थ ताव 'सुहम्मसामिणा जंबुनामस्स पढमाणुओगे तित्थयर चक्कवट्टि-दसारवंसपरूवणागयं वसुदेवचरियं कहियं' ति तस्सेव पभवो कहेयवो, तप्पभवस्स य पभवस्स त्ति । जंबुसामिचरियं [ जंबुसामि - 5 अत्थि मगहाजणवओ धणधन्नसमिद्धदाणसद्धियगहवइकुलबहुलगाम सतसन्निमहिओ, छायापुप्फफलभोज्जतरुगणसमग्गवणसंडमंडिओ, कमलकुमुद्रकुवलयसोहिततलागपुक्खरिणिवप्पसाहीणकमलानिलओ । तत्थ मगहाजणवए रायगिहं नाम नयरं दूरावगाढवित्थयसलिलखातोवगूढदढतरतुंगपराणीयभयदपागारपरिगयं, बहुविहनयणाभिरामजलभारगरुयजलहरगमणविघातकरभ10 वणभरियं, अणेगैवापरिमाणपर्वैयं (?), दिवाचारपर्भेवं, भंडसंगहविणिओगखैमं, सुसील - माहणसमणसुसयर्णैअतिहिपूर्यैनिरयवाणियजणोववेयं, रहतुरयजणोघजणियरेणुगं, मयगलमातंगदाणपाणियपसमियवित्थिन्नरायमग्गं । तत्थ रायगिहे नयरे सेणिओ नाम राया, 'पयासुद्दे सुहं' ति ववसिओ, पडिहयपडिवक्खपणयसामंतमउडमणिजुइरंजियसुपसत्थचरणकमलो, 'सीह - समुह-ससि - सूर- धणदाण 15 सत्त-गंभीर-कंति-दित्ति - विहवेहिं तुल्लो' त्ति लोकमुहसतविमलविभाज्जभाणकित्ती । तैस्स य रायणो पट्टमहादेवी चिल्लणा नाम । ताणं पुत्तो कोणिओ नाम । तत्थ य * मगहापुरे पुवपुरिससमज्जियधणपगब्भो, विणयविज्जवियक्खणो, दयापरो, सच्चसंधो, दायवेकबुद्धी, अरहंतसासणरओ उसभदत्तो नाम ईन्भो । तस्स य निरुवयफलिहमणिविमलसभावा, सीलालंकारधारिणी धारिणी नाम भारिया । सा 20 कयाइ सयणगया सुत्त- जागरा पंच सुमिणे पासित्ता पडिबुद्धा, तं जहा- विधूमं हुयवहं १, पउमसरं वियसियकमलकुमुदकुवलयउज्जलं २, फलभारनमियं च सालिवणं ३, गयं च गलितजलबलाहकपंडुरं सैमूसियच उविसाणं ४, जंबूफलाणि य वण्णरसगंधोववेयाणि ५ त्ति । जहा दिट्ठा य णाए उसभदत्तस्स निवेइया । तेण वि भणिया - पहाणो ते पुत्तो भवि ॥ ६ °णसुअति ली ३ । 'जाति' उ० ॥ १ ली ३ गो ३ विनाऽन्यन्त्र — तस्सेसो प° मो० सं० । तस्स सो प° क० । तस्सेसे प° उ० ॥ २ गवाह ली० य० ॥ ३ खं० विनाऽन्यत्र - व्वय दिव्वाचार क० उ० | 'स्वयदिवावार ली ३ गो ३ मो० सं० ॥ ४ भवभंड° ली ३ क० मो० ॥ ५ खमसुसी क० मो० ७ °या° डे० उ० ॥ ८ लोगसुह° उ० विना ॥ ९ 'इव्वमा मोसं० विना ॥ १० उ० विनाऽन्यत्र - तस्स य राइणो वेलणा पट्टमहादेवी । ताणं पुसो कोणिओ नाम राया क ३ । तस्स य चेल्लणाए देवीए पुत्तो कोणिओ नाम राया ली ३ गो ३ ॥ ११ इब्भपुत्तो उ० विना ॥ १२ समूसियं चउ° मो० । सत्तसमूसियचड° डे० संसं० ॥ ** मगधापुरं राजगृहमित्यर्थः । तथाहि सुत्तनिपाते - "पावं च भोगनगरं वेसालिं मागधं पुरं । ” ५-१-३८. अत्थ संखित्तपदवण्णना- "मागधं पुरं मगधपुरं - राजगहं ।” इति ॥ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरियं ] कहुप्पत्ती। स्सति जहा वागरिओ अरहया । तओ तीसे परितोसविसप्पियहिययाए 'एवमेयं जहा भणिहि'-त्ति अहिलसिओ। आहूओ से गब्भो देवो बंभलोगचुओ । समुप्पन्नो य से दोहलो जिणसाहुपूयाए, सो य विभवओ सम्माणिओ। पुण्णदोहला य अतीतेसु नवसुमासेसु पयाया पुत्तं, सारयससि-दिणयराणुवत्तिणीहिं कंतिदित्तीहिं समालिंगियं, सुधतवरकणगकमलकेणियारसरसकेसरसवण्णं, अविसैन्नपुरवणं, 5 पसत्थलक्खणसणाहकरचरणनयणवयणं । कयजायकम्मस्स य से जंबुफललाभ-जंबुद्दीवाधिवतिकयसन्नेज्झनिमित्तं कयं नाम 'जंबु'त्ति । धाइपरिक्खित्तो य सुहेण वहिओ। कलाओ य णेण अणंतरभवपरिचिताओ दंसिअमेत्ताओ गहियाओ । पत्तजोवणो य 'साणुकोसो, पियंवओ, पुवाभासी, साहुजणसेवगो' त्ति जणेण परितोसवित्थिन्ननयणेण पसंसिजमाणो, अलंकारभूओ मगहाविसयस्स जहासुहमभिरमइ । 10 ___ तम्मि य समए भयवं सुहम्मो गणहरो गणपरिखुडो जिणो विव भवियजणमणप्पसादजणणो रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए समोसरिओ। सोऊण य सुहम्मसामिणो आगमणं, परमहरिसिओ बरहिणो इव जलधरनिनादं, जंबुनामो पवहणाभिरूढो निजाओ। नाइदूरे पमुक्कवाहणो परमसंविग्गो भयवंतं तिपयाहिणं काऊण सिरसा नमिऊण आसीणो। __ तओ गणहरो(रेण) जंबुनामस्स परिसाए य पकहिओ-जीवे अजीवे य; आसवं, बंधं, 15 संवरं, निजरं, मोक्खं च अणेगपजवं । तं सोऊण भयवओ वयणवित्थरं जंबुनामो विरागमग्गमस्सिओ, समुट्टिओ परं तुढिमुबहतो, बंदिऊण गुरुं विन्नवेइ-सामि! तुब्भं अंतिए मया धम्मो सुओ, तं जाव अम्मापियरो आपुच्छामि ताव तुब्भं पायमूले अत्तणो हियमायरिस्सं । भयवया भणियं-किच्चमेयं भवियाणं। तओ पणमिऊण पवणमारूढो, आगयमग्गेण य पट्ठिओ, पत्तो य नयरदुवारं । तं च 20 जाण®यसंबाधं पासिऊण चिंतेइ-जाव पवेसं पडिवालेमि ताव कालाइकमो हवेजों, तं सेयं मे अन्नेण नयरदुवारेण सिग्घं पविसिउं । एवं चिंतेऊण सारही पभणिओ-सोम ! परावत्तेहि रहं, अन्नेन दुवारेण पविसिस्सं । तओ सारहिणा चोइया तुरया, संपाविओ रहो जहासंदिटुं दुवारं । पस्सइ य जंबुनामो रजुपडिबद्धाणि सिला-सतग्घि-कालचक्काणि लंबमाणाणि परबलपहणणनिमित्तं । ताणि य से पस्समाणस्स चिंता जाया-'कयाइ एयाई 25 पेंडेज रहोवरिं, तओ मे विसीलस्स मयस्स दुग्गइगमणं हवेज' त्ति संकप्पिऊण सारहिं भणइ-सारहि ! पडिपहहुत्तं रहं पयट्रेहिं, गुणसिलयं चेइयं गमिस्सं गुरुसमीवे । 'तह' त्ति तेण पडिवन्नं । गओ गुरुसमीवं, पयओ विन्नवेइ-'भयवं! जावज्जीवं बंभयारी विहरिस्स' ति गिहीतबओ रहमारुहिऊण नगरमागतो, पत्तो य नियघ्भवणं । १ तीए परितोसवसविस० उ० ॥ २ कणिया° उ. ॥ ३ °सण्णं पस उ० । ससपुग्ववापस क० । सत्सपुन्नवन्नं पस संसं०॥ ४ परिक° ली ३ ॥ ५ ली ३ खे० विनाऽन्यत्र-जयग्गसंबाधं गो०वा० । जुगो. यसंबाधं क०सं०॥६क ३७० विनाऽन्यत्र ज ली ३ । जं गो ३॥ ७ पाडेज क ३ गो ३ उ०॥८°गलयणं का Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ वसुदेवहिंडीए जंबुस्स अम्मा- पिअरेहिं संवादो उन्नो, पसन्नमुहवण्णो अम्मापियरं कयप्पणामो भणइ - अम्मयाओ ! मया अज्ज सुम्मसामिणो समीवे जिणोवएसो सुओ । तं इच्छं, जत्थ जरा-मरण-रोग-सोगा नत्थितं पदं गंतुमणो पवइस्सं । विसज्जेह मं । 5 तं च तस्स निच्छयवयणं सोऊण बाहसलिलपच्छाईजवयणाणि भांति — सुट्टु ते सुअ धम्मो, अम्ह पुण पुवपुरिसा अणेगे अरहंतसासणरया आसी, न य 'पवइय'त्ति सुणामो । अम्हे व बहुं कालं धम्मं सुणामो, न उण एसो निच्छओ समुत्पन्नपुवो। तुमे पुण को विसेसो अज्जेव उवलद्धो जओ भणसि 'पवयामि' त्ति ? । तओ भणइ जंबुनामो — अम्मताओ ! को वि बहुणा वि कालेण कज्जविणिच्छ्यं वच्चइ, अवरस्स थेवेणावि कालेणं 10 विसेसपरिण्णा भवति । पेच्छ, सुणह, साहुसमीवे जहा मया अज्ज अपुत्रमवधारियंविसेसपरिण्णाए इन्भपुत्तकहाणयं 30 [ जंबुचरिए इ एगम्मि किर नयरे का वि गणिया रूववती गुणवती परिवसइ । तीसे य समीवे महाधणा राया - Sमच - इब्भपुत्ता उवगया परिभुत्तविभवा वच्चति । सा य ते गमणनिच्छए पभणइ - जइ अहं परिचत्ता, निग्गुणओ ता किंचि सुमरणहेडं घेप्पर । एवं भणिआ य ते 15 हार-ऽद्धहार-कडग - केऊराणि तीय परिभुत्ताणि गहाय वञ्चति । कयाई च एगो इब्भपुत्तो गमणकाले तहेव भणितो । सो य पुण रयणपरिक्खाकुसलो । तेण य तीसे कणयमयं पायपीढं पंचरयणमंडियं महामोल्लं दिट्ठ । तेण भणिया-सुंदरि ! जइ मया अवस्स घेत्तवं तो इमं पायपीढं तव पादसंसग्गिसुभगं एएण मे कुणह पसायं । सा भणति - किं एएणं ते अप्पमोल्लेणं ?, अन्नं किंचि गिहसु त्ति | सो विदियसारो, तीए वि दिन्नं, तं गहेऊणं 20 तओ सविसए रयणविणिओगं काऊण दीहकालं सुहभागी जाओ । एस दितो । अयमुपसंहारो - जहा सा गणिया, तहा धम्मसुई । जहा ते रायसुयाई, तहा सुर- मणुयसुहभोगिणो पाणिणो । जहा आभरणाणि, तहा देसविरतिसहियाणि तवोवहाणाणि । जहा सो इब्भपुत्तो, तहा मोक्खकंखी पुरिसो । जहा परिच्छाकोसलं, तहा सम्मन्नाणं । जैहा रयणपायपीढं, तहा सम्मदंसणं । जहा रयणाणि, तहा महवयाणि । जहा रयणविणिओगो, 25 तहा निवाणसुहलाभो ति ॥ एवं अवधारेऊणं कुह मे विसग्गं ति ॥ तओ भणंति--जाय! जया पुणो एहिति सुधम्मसामी विहरतो तथा पवइस्ससि । तओ भाइ, सुणह दुलहा धम्मपत्तीए मित्ताणं कहा इओ अईए काले किर केइ वयंसया उज्जाणं निग्गया । तेहि य णाइदूरे तित्थयरो १ भणतो की ३ ॥ २ इयत्र कसं० मोसं० ॥ ३ यं न व उ० ॥ ४ डे० विनाऽन्यत्र - जहा पायपीढ़ उ० । अड्डा - रयणपीढं ली० य० क ३.गो ३ ॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ताणं मितानं च कहाओ ] कहुपती । सुओ समोसरिओ । तओ कोऊहल्लेण पट्ठिया, पस्संति य विम्हियमणसा सीहचक्कज्झए गगणतलमणुलिहंते, धम्मचक्कं च तरुणरविमंडलनिभं, छत्ताइच्छत्तभूसिअं च णभोभागं, चामराउ य हंसधवलाउ आगाससंचारिणीउ, चेइयपादद्वं च कप्परुक्खं पिव नयण-मणहरं । अइगया य देवा-सुर- मणुयसोहियं समोसरणं, पस्संति य भयवंतं देवविणिम्मिए सिंहासणे सुहणिसन्नं । तओ वंदिऊण परमविम्हिया परिसामज्झे उवविट्ठ। । सुणंति य भयवओ 5 वयणं हियय-सुइहरं धम्मकहाँ संसिअं । तं च सोऊण परितोसवियसियाणणा वंदिऊण हिं पट्टिया । तेसिं च अंतरा कहा समुट्ठिया । तत्थेक्को भणइ-वयंस! अहो !!! अम्हेहिं मणुस्सजम्मस्स फलं सयलं गिहीयं जं णे सायसओ तित्थयरो दिट्ठो, सवभावविभावणं च परमकंतं सुयं भासियं, 'ण एत्तो अइरियं बं सोयवं च अस्थि'त्ति मे मॅयी । जो य संसारो तस्स य मुक्खोवाओ आमलगो विव 10 करतले सिओ भयवया सो तहाभूओ, न एत्थ वियारो । तं दुक्खं एरिसी संपत्ती न होहिइ, तो पवयामो अविलंबियं तित्थयरपायमूले त्तिं । अवरेण भणियं - सच्चमेयं जं तुमं भणसि, तं सुओ" ताव णे धम्मो, जओ पुणो एवं अन्नं वा तित्थयरं दच्छामो तया पवइस्सामो | ५ इयरेण भणियं अम्हेहिं कह वि ( प्रन्थाग्रम् - १०० ) तित्थयरो दिट्ठो, निरावरणो, 15 विगतविग्घ, दुग्गएहि व रयणरासी; तं कुणह ववसायं । इयरेण भणियं - कओ तुमे संदेहो तित्थयरदंसणं पडुच्च तं नियत्तामो, सवण्णू अरिहा छिंदहि संसयं । ते" गया, तित्थयरं वंदिऊण पुच्छंति-भयवं ! अतीए काले तित्थयरा आसी, अणागया वा भविस्संति धम्मदेगा ? । भयवया भणियं - भर हेरवसु ओसप्पिणि- उस्सप्पिणीणं दसमे 20 दसमे कालभागे चउवीसं तित्थयरा समुप्पज्जंति | विदेहेसु पुण जहन्नपए चत्तारि चत्तारि जुगवं भवंति, उक्कोसपए बत्तीसं । तं एवं ताव तित्थयरदंसणं दुल्लभं दंसणाउ वि दुल्लभं वयणं, पि सोऊण कम्मरुययाए कोइ न सद्दहइ, जो य कम्मविसुंद्धीय सदहेज्जा सो संजमिय निरुच्छाहो भवेज्जा । जो वा सचक्खुओ उदिए सूरिए मूढयाए निमीलियलोयणो अच्छति तस्स निरत्थओ आइश्वोदयो; एवं जो अरहंतवयणं सोउं न इच्छइ, सुयं वा न सद्दहइ, 25 सद्दहंतो वा सफलं न करेइ तस्स मोहमरहंतदंसणं । तो एवं भयवया समणुसहा ते तत्थेव समोसरणे पवइया, तो संसारंतकरा संवृत्ता || १ ए काले गग° ली ३ ॥ २° विसिय सुणंति ली ३ ॥ ३°हाभासियं क० मो० ॥ ४ गहीयं ली० य० ॥ ५ साइसओ कसं० मोसं० उ० ॥ ६ अइरित्तं कसं ० मोसं० उ० ॥ ७ मई कसं० मोसं० । मती ८ ती हो ली ३ गो० उ० ॥ ९ ले ति गो ३ सं० । 'लं ति उ० ॥। १० भो भावेण धम्मों क० सं० खं० उ० ॥ ११ ते तिस्थ° ली ३ गो ३ सं० ॥ १२ द्धीए स क ३ उ० ॥ क ३ गो ३ ॥ १४ ते सं० उ० विना ॥ १३ अच्छित्ति ही ३ उ० ॥ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [जंबुचरिए वाणरकहा एवं अम्मतातो! अहमवि सुधम्मसामिसंदेसं जइ संपइं न करेमि, तओ कालेण विसयवक्खित्तहिययस्स न मे धम्मे पडिवत्ती संभविज्जा, तं विसज्जेह मं ॥ __ तओ भणइ उसमदत्तो-जाया! अत्थि ते विउलो अत्थो विसयसंपायणहे, तं परिभुंजिऊण पगाम पवइस्ससि । सओ भणइ, सुणह5 इंदियविसयपसत्तीए निहणोवगयवाणरकहा एगम्मि किर वणे वानरो जूहवई सच्छंदपयारो परिसइ । सो कयाइ परिणयवओ बलवता वानरेण अभिभूओ । तेसिं च युद्धं लया-लिट्ठ-कट्ठ-पासाण-दंतनिवाएहिं संपलग्गं । सो जूहवई पराजिओ पलाइउमाढतो । इयरो वि अणुवइऊण दूरं नियत्तो । जूह वती पुण चिंतेइ-'सो मे पच्छओ चेव वत्तइ' त्ति पहारविधुरो तण्हा-छुहाभिभूओ एक 10 पश्चयगुहं पत्तो । तत्थ य सिंलाजउं परिस्सवति । सो भयभेलवियदिट्ठी 'जलं ति मन्नमाणो 'पाहं ति मुहं छुब्भैति । तं बद्धं, 'तं च मोएयचं' ति हत्थे पसारेइ । ते वि बद्धा, पाए छुभति । ते वि बद्धा, एवं सो अप्पाणं असत्तो मोएउं तत्थेव निधणमुवगतो । जइ पुण मुहमेत्तबद्धो पयत्तं सेसेण सरीरेण अबद्धेण करेंतो ततो निस्सरंतो दुक्खमरणं ॥ एवं अम्मयाओ ! अहं संपयं बालभावेण भोयणाभिलासी जिभिदियपडिबद्धो, सुहमोयगो 15 मे अप्पा । जया पुण पंचिंदियविसयसंपलग्गो भवेज्जा तया जहा सो वानरो दुहमरणं पत्तो, एवं अणेगाणं जम्म-मरणाणं आमागी भवेजे । ता मरणभीइरं विसज्जेह मं, पञ्चइस्सं ।। एवं भयंता कलुणं परुण्णा भणइ णं जणणी-जाय ! तुमे कओ निच्छओ, मम पुण चिरकालचिंतिओ मणोरहो-कथा गुं ते वरमुहं पासिज्जं ति। जइ तुमं पूरेसि तो संपुण्णम णोरहा तुमे चेव अणुपञ्चइज्जा । भणिया य जंबुनामेणं-अम्मो! जइ तुम्मं एसोऽभिप्पाओ 20 तो एवं भवउ, करिस्सं ते वयणं, ण उण पुणो पडिबंधेयचो त्ति कल्लाणदिवसेसु अतीतेसु । तओ तीए तुहाए भणियं- जाय ! जंभणसि तं तह काहामो। अत्थि णे पुश्ववरियाउ इन्भकन्नगाउ । अस्थि इह सत्थवाहा जिणसासणरया, तं जहा-समुद्दपिओ, समुहदत्तो, सागरदत्तो, कुबेरदत्तो, कुबेरसेणो, वेसमणदत्तो, वसुसेणो, वसुपालउ त्ति। तेसिं भारियाउ, तं जहा-पउमावती, कणगमाला, विणयसिरी, धणसिरी, कणगवती, 25 सिरिसेणा, हिरिमती, जयसेणा य । तासिं धूयाउ, तं जहा-समुद्दसिरी, सिंधु मती, पउमसिरी, पउमसेणा, कणगसिरी, विणयसिरी, कमलावती, जसमती य । ताउ तुहाणुरूवाउ 'पुधवरिया'त्ति करेमो तेसिं सत्थवाहाणं विदितं । संदिढ च तेसिंपवइहिइ जंबुनामो कल्लाणे निवत्ते, किं भणह? त्ति । तेसिं च णं वयणं सोऊण सह घरिणीहिं १ सचित्तस्स उ० ॥ २ सिलाजउ कसं० ली ३ उ. विना ॥ ३ भत्ति क० सं० गो ३ । भति उ० ॥ ४ से क ३ उ० ॥ ५ °जा कसं० मो० ॥ ६ भणंतो क ३ गो ३। भणिते उ० ॥ ७ णं ली ३॥ ८ तुम ली ३ । तुभं उ०॥ ९ एस अभि30॥१० जाय! जह भणसि तह तं का उ० ।। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पभवसामिसंबंधो य] कहुप्पत्ती। संलावो जातो विसण्णमाणसाणं किं कायव्वं ति । सा य पवित्ती सुया दारियाहिं । ताओ एक्केक्क(एक)निच्छयाउ अम्मापियरं भणंति-अम्हे तुम्हेहिं तस्स दिनाउ, धम्मओ सो ने य भवति, जं सो ववसिहीति सो अम्ह वि मग्गो त्ति । तं च तारिसं वयणं सोऊपं सत्यवाहेहिं विदिशं कयं उसभदत्तस्स । पसत्थे य दिणे पमक्खिओ जंबुनामो विहिणा, दारियाउ वि सगिहेसु । तओ महतीए 5 रिद्धीए चंदो विव तारगासमीवं गओ वधूगिहाति। ताहिं सहिओ सिरि-धिति-कित्ति-लच्छीहि व निअगभवणमागतो । तओ कोउगसएहिं एहविओ सवालंकारविभूसिओ य अभिणंदिओ परजणेणं । पूजिया समणमाहणा, नागरया सयणो य पओसे वीसत्थो भुंजइ । जंबुनामो य मणि-रयणपईवुजोयं वासघरमुवगतो सह अम्मापिकहि, ताहि य नववहूहि । पभवसामिसंबंधो 10 ___ एयम्मि देसयाले जयपुरवासिणो विझरायस्स पुत्तो पभवो नाम कलासु गहियसारो, तस्स भाया कणीयसो पहू नामं । तस्स पिउणा 'रजं दिन्नं ति पभवो माणेण निग्गओ, विंझगिरिपायमूले विसमपएसे सन्निवसं काऊणं चोरियाए जीवइ । सो जंबुनामविभवमागमेऊण विवाहूसवमिलिअं च जणं, तालुग्घाडणिविहाडियकवाडो चोरभडपरिवुडो अइगतो भवणं । ओसोवितस्स य जणस्स पवत्ता चोरा वत्थाऽऽभरणाणि 15 गहेउं । भणियां जंबुनामेण असंभंतेण-भो ! भो! मा छिव निमंतियागयं जणं । तस्स वयणसमं भिया ठिया पोत्थकम्मजक्खा लिव ते निचिट्ठा । पभवेण य वहुसहिओ दिट्ठो जंबुनामो सुहासणगतो तारापरिविओ विष सरयपुण्णिमायंदो। जंबु-पभवसंवादो ते य चोरे थंभिए दटूण भणिओ पभवेणं-भद्दमुह ! अहं विंझरायसुतो पभवो जइ20 सुतो ते । मित्तभावमुवगयस्स मे तुमं देहि विजं थंभिणि मोयणिं च, अहं तव दो विजाओ देमि-तालुग्घाडणि ओसोवणि च। भणिओ जंबुनामेण-पभव ! सुणाहि जो एत्थ सम्भावो-अहं सयणं विभवं च इमं विािन्नं चइऊण पभायसमए पवइउकामो, भावओ मया सवारंभा परिचत्ता, एवं च मे अप्पमत्तस्स न पभवति विजा देवता वा । न य मे सावजाहिँ विजाहिँ पओयणं दुग्गइगमणणाइगाहिं । मया सुधम्मस्स गणहरस्स समीवे 25 संसारविमोयेणविजा गहिया।तं च सोऊण पभवो परमविम्हिओ उवविठ्ठो अहो! अच्छरियं!!! जं इमेणं एरिसी विभूई तणपूलिआ इव सबहा परिचत्ता, एरिसो महप्पा वंदणीउत्ति विणयपणओ भणइ-जंबुनाम! विसया मणुयलोयसारा, ते इत्थिसहिओ परिभुंजाहि । साहीणसुहपरिचायं न पंडिया पसंसति । अकाले पपइउं कीस ते कया बुद्धी । १°या य ज ० ॥ २ स्थं उ० विना ॥ ३ क ३ विनाऽन्यत्र-व चि ते नि ली ३ । व ति नि° गो ३ । व नि° उ० ॥ ४ °च्छि गो० मो० सं० उ० ॥ ५ यणीवि० उ०॥ ६ अहो इति डे० ३० विना न ॥ ७ जइ इ ली ३ ॥ ८ एरिसा उ० विना ॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [ जंबुचरिए महुबिंदुदिट्ठतं परिणयवया धम्ममायरंतो न गरहिया । तओ भणियं जंबुनामेगं - पभव ! जं पसंससि विसयहं तत्थ सुणसु दिट्ठतंविसय सुहोवमाए महुबिंदुदितं ८ कोइ पुरिसो बहुदेस - पट्टणवियारी अडविं सत्थेणं समं पविट्ठो । चोरेहि य सत्थो 5 अब्भाहतो । सो पुरिसो सत्थपरिभट्ठो मूढदिसो परिव्भमंतो दाणदुद्दिणमुहेण वणगएणाभिभूओ । तेण पलायमाणेण पुराणकूवो तेण-दब्भपरिच्छन्नो दिट्ठो । तस्स तडे महंतो वडपायवो, तस्स पारोहो कूवमणुपविट्ठो । सो पुरिसो भयाभिभूओ पारोहमवलंबिऊण ठिओ कूवमज्झे, आलोएइ य अहो -- तत्थ अयगरो महाकाओ विदारियमुहो गसिउकामो तं पुरिसमवलोइ । तिरियं पुण चउद्दिसिं सप्पा भीसणा डसिउकामा चिट्ठति । पैरोह10-मुवरिं किण्ह-सुकिला दो मूसया छिंदंति । हत्थी हत्थेण केसग्गे परामुसति । तम्मि य पायवे महापरिणाहं महुं ठियं । गयसंचालिए य पायवे वातविधूया महुबिंदू तस्स पुरिसम्स केइ मुहमाविसंति, ते य आसाएइ । महुयरा य डसिउकामा परिवयंति समंतओ ॥ तस्स एवंगयस्स जं सुहं मन्नसि तं भणाहि ॥ ------ चिंतेऊण पभवो भणइ - जंबुनाम ! जे महुबिंदू अहिलसइ तत्तियं तस्स सुहं तक्केमि, से दुक्खं ति । जंबुनामेण भणिअं - एवमेयं । उवसंहारो पुण दिट्ठतस्स - जहा सो पुरिसो, तहा संसारी जीवो । जहा सा अडवी, तहा जम्म-जरा-रोगमरणबहुला संसाराडवी । जहा वणहत्थी, तहा मच्चू । जहा कूवो, तहा देवभवो मणुस्सभवो य । जहा अयगरो, तहा नरगै- तिरिअगईओ । जहा सप्पा, तहा कोध - माण - माया लोभा 20 चत्तारि कसाया दोग्गइगमणनायगा । जहा परोहो, तहा जीवियकालो । जहा मूसगा, तहा काल - सुकिला पक्खा राई दियदसणेहिं परिक्खिवंति जीविअं । जहा दुमो, तहा कम्मबंधणऊ अन्नाणं अविरति मिच्छत्तं च । जहा महुं, तहा सह-फरिस - रस-रूव-गंधा इंदियत्था । जहा महुयरा, तहा आगंतुगा सरीरुग्गया य वाही ॥ तस्सेवं भयसंकडे वट्टमाणस्स कओ सुहं ?, महुबिंदुरसँमाययओ केवलं सुहकपणा ॥ 25 जइ पुण पभव ! कोइ रिद्धिमं पभवंतो गगणचारी भणेज्जा - एहि सोम ! गिरह मे हत्थे, जा ते नित्थामि । भव ! सो इच्छेजा ? । पभवो भणति — कहं न इच्छिहिति दुक्खपंजराउ मोइज्जंतो ? । जंबुनामो भणइ – कयाइ सो मूढयाए मधुगाही पभणेज्जा — होउ ताव मे तित्ती मधुस्स, तो मे नित्थारेहिसि त्ति । कओ पुण तस्स तित्ती ? । परिच्छिन्नाधारो अवस्स पडिहिति अयगरमुंहे । पभव ! अहं उक्लद्धसब्भावो न भविस्सं पमादी || १°° गो ३ मो० खं० ॥ २ तिण क ३ | ३ अइगरो क ३ गो ३ ॥ ४ पारो क ३ उ० ॥ ५ गो ति° डे० विना ॥ ६ °णदाय' मो० सं० ॥ ७° सासायओ क ३ उ० ॥ ८ मधुमोही क ३ । मधुमेही उ० ॥ ९ मुद्देसु य० ० ॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ललियंगयणायं च ] कहुप्पत्ती । 1 तओ पभणइ पभवो - एवमेयं । को पुण तुव्भं निबेओ ? केण वा दुक्खेणे बाहियत्थ ? जओ अकंडे बंधुवग्गं परिचयह । जंबुनामो भणइ -- पभव ! गव्भवासदुक्खं वियाणं (ण) तो कुसलस्स किं बहुणा निधेयकारणेण ? । एत्थ दिट्ठतं सुविहिया वण्णयंतिगब्भवासदुक्खे ललियंगयणायं वसंत पुरे नयरे सयाउहो राया । तस्स ललिया देवी । सा किरै कयाइ ओलोय - 5 गट्टिया किंचि पुरिसं रूवरिंस पस्समाणी चिट्ठइ | चेडी य से 'अब्भासर्वेत्तिणि' त्ति तहागई दण चिंतेइ - किं मन्ने देवी पस्समाणी चित्तकम्मजुवई विव निञ्चलच्छी ठिया ? | ती वि अवलोइँओ, दिट्ठो य णाए सो पुरिसो चक्खुरमणो । चिंतियं च णाए – असंसयं एम्मि पुरिसे (ग्रंथा - २०० ) निवेसिया णाए दिट्ठी । वित्ता य णाए देवी - तुब्भं दिट्ठीए सविन्हओ (i) मया विन्नायं, जं आयरेण पुरिसं एयं परसह । कस्स व नाम चंदे दिट्ठी 10 न रमेज्जा ? | देवीए भणियं - साधु सबं, को पुण एस हवेज्ज धरणितलपुण्णचंदो देवो विज्जाहरो व ? ति । सा भणइ - विसज्जेह मं, जाव णं जाणामि । विसज्जिया, गहियत्था नियत्ता साहइ - इहेव नयरे समुद्दपियस्स सत्यवाहस्स पुत्तों ललियंगओ नाम कलाविहंण्णू गुणवं च । तओ सा ललिया देवी तं वयणं सोऊण भइहले! मंदभागयाए मे चक्खुपहे पडिओ, जओ अनिषुयं मे हिययं एत्थ मे चक्खु अवरज्झति । 15 चेडीए भणिया - देवी ! मा विसायं वच्चह, अहं तुब्भं पियनिमित्तं केणय अविन्नायं आणेमि । तीए भणिया - करेहि जत्तं इमस्स सरीरस्स रक्खणनिमित्तं । ' एवं ' ति वोत्तूण सा गया लेहं देविदिट्ठे गऊण ललियंगयसमीवं । निवेदिओ अ णाए देवीए दंसणुब्भवो चित्तविगारो सओ सो तं वयणं सोऊण लेहगहियत्थो य चेडिं भणइ सुयणु ! अईव मे पसाओ, चंदलेहं पुण को धरणितलं गओ छिवेजा, अनिंदिओ व सवं ( सयं ) पासेजा। ताए भणितो - ' अस - 20 हायस हत्थगतो व अत्थो नाँसेज्ज, सुसहायस्स पुण न किंचि दुल्लहं, अम्ह एस भारो' ति वो डिनियत्ता देवीए सबं कहेइ । ततो अभिगमणोवायं चिंतिऊण कोमुइयवारे 'देवी सख्य' त्ति तीसे विणोयहेडं लेप्पगपरंपरववदेसेणं पवेसितो देवीए वासघरं चेडीए । तत्थऽसंकिओ सह देवीए परिवसइ विस्तोव भोगक्खित्तो । इओ य अंतेउरमहत्तरएहिं रायविदियं च कयं । विसोहेउं 25 पयत्ता | आगमितं च चेडीए निउणाए । तओनायं दोहि वि जणीहिं अप्परक्खणनिमित्तं वीसत्थो अमेझकूवे छुहा (ढो) मज्झे पविट्ठो (?) । १ तुमं ली ३ | तुझं गो ३ ॥ २ °ण वाबाहिक ३ उ० ॥ ३ किरि ली ३ | ४ वत्तणि उ० विना ॥ ५° विचितेक ३ ॥ ६ तीए वि क ३ । तीइ वि उ० ॥ ७ इयं उ० ॥ ८ ण्णवित्ता य डे० । ष्णविया थे उ० ॥ ९ विष्णू उ० विना ॥ १० णिगओ ली ३ गो ३ ॥ ११ आनंदिओ कसं० मोसं० विना ॥ १२ वासुओ पा° ली ३ ॥ १३ नासेना ली ३ क ३ । विणसेज्जा उ० ॥। १४ डीय उ० ॥ १५ °सयोव क ३ उ० ॥ १६ ली० य० विनाऽन्यत्र - छुहामहामज्झे प° ढे० । छुहामज्झूप गो ३ ॥ ब० हिं० २ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० वसुदेव हंडी [ जंबुपभवसंवादे कुबेरदत्त 1 तं च परमासु हूण निदंतो नियगविण्णाणं परमदुक्खिओ चिंतेइ- - जइ इत्तो मे निग्गमो होज्जा तो अलं मे एरिसपज्जवसाणेहिं भोगेहिं ति । ताओ य से अणुकंपणट्ठा भुत्तसेसमाहारं पखिवंति । तं च छुहावसेण परिचयवसेण य तब्भाविओ अहिलसति । पाउसकाले मेहोण पुणो कुषो । निद्धमणोदयखायसंबद्धो उग्घाडिओ पुरिसेहिं । सलिलवेगेण निच्छु5 ग्भमाणो निग्गओ खाइतीरे । वाएण समाहओ मुच्छिओ, दिट्ठो य नियगधाईए, पक्खालिऊण संचारिओ य सघरं पवेसिओ । पडियरिओ कमेण जहापोराणसरीरो जातो ॥ अस्स दितस्स उवसंहारो - जहा सो ललियंगतो, तहा जीवो । जहा देवीदरिसणसंबंधकालो, तहा मणुस्सजम्मं । जहा सा चेडी, तहा इच्छा । जहा वासघरे पवेसो, तहा विसयसंपत्ती । जहा रायपुरिसा, तहा रोग - सोग-भय-सी- उण्हपरितावा । जहा कूवो, तहा 10 गब्भवासो । जहा भुत्तसेसाहारपंरिक्खेवो, तहा जणणिपरिणामियऽन्न-पाणा परिसवादाणं । जहा निग्गमो, तहा पसवसमतो । जहा धाई, तहा देहोपग्गहकारी कम्मविवागसंपत्ती ॥ पभव ! जइ तस्स देवी रूवविम्हिया पुणो पट्टवेज्जा तो पविसेज्जा ? । पभवो भणइ -- कहं पविसिहइ तहाणुभूयदुक्खो ? | जंबुनामेण भेणियं - अवि सो अन्नाणयाते विसयसभोगगाए य पुणो पविसेज्जा, जहा अन्नाणिणो सत्ता विसयपडिबद्धा गन्भवासं । अहं 16 पुण गहियबंध - मोक्खसब्भावो पुणो राग - दोसवत्तिणिं न पवज्जिस्सं ॥ तओ पभवो भाइ - सोम ! सुणह, जहा तुब्भेहिं कहियं तहा तं । एगं पुण विन्नवेमिलोगधमाणुवत्तिणा भत्तुणा भज्जातो पालणिया लालणिया य । तं कयवि संवच्छराणि एयार्हि समं वहूहिं सुमहविऊण तओ सोभिहह पवयंताँ । जंबुनामेण भणिओ - पभव ! न एस नियमो संसारेरे-जा इह भवे भज्जा माया वा सा भवंतरे वि, किं पुण माया भगिणी भज्जा 20 दुहिया वा हवेज्जा । एवं सेसविवज्जासो—भत्ता वि पुत्तो, पिया वि भाया परो वा, तहा इत्थि (त्थी) पुरिसो नपुंसगो य कम्मवसगो जीवो । जा पुण माया भगिणी दुहिया वा जम्मं - तरे आसी सा कहं भज्जायारेण लालणीया भवइ ? । [ पभवो भणइ - ] भवंतरगओ भावो दुविन्नेओ, वत्तमाणं पडुच्च भण्णइ - पुत्तो वि, पिया वि जओ । भणइ जंबुणामोएवमादी अन्नाणस्स दोसा, जेण अकज्जे कज्जबुद्धीअ पवत्तइ जणो, अथवा भोगलोलुयाए 26 संपइसुहमोहिओ अकज्जे पैवत्तिज्ज जाणंतो वि । तं अच्छउ ताव भवंतरगतीसंबंधो, एकभव. वृत्तं तमन्नार्णमयं सुणाहि । एगभवम्मि वि संबंधविचित्तयाए कुबेरदत्त-कुबेरदत्ता कहाण महुरा नयरी कुबेरसेणा गणिआ पढमगब्भदोहलँखेदिया जणणीए तिगिच्छियस्स सिआ । तेण भणिया-जमलगब्भदोसेण एईसे परिवाहा, नैत्थि कोइ वाहिदोसों दीसई । - १ पक्खे उ० ॥ २ भणिओ ली ३ गो ३ ॥ ३ °तो डे० मो० सं० ॥ ४ 'लोल' ली ३ ॥ ५ पवत्तेजा ली ३ ॥ ६ गतं सु क ३ उ० ॥ ७ लक्खेविया ली ३ ॥ ८ न एत्थ को उ० ॥ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुबेरदत्ताचरियं] कहुप्पत्ती। एवमुवलद्धत्थाय जणणीए भणिया-पुत्ति ! पसवणकालसमए मा णे सरीरपीडा भवेजा, गालणोवार्य गवसामि, तओ निरामया भविस्ससि, परिभोगवाघाओ य न होहिति, गणियाण य किं पुत्तभंडेहिं ? । तीए न इच्छियं, भणइ-जायपरिचायं करिस्सं । तहाणुमए ये समए पसूया दारगं दारिगं च । जणणीए भणिया-उज्झिज्जंतु । तीए भणियंदसरायं ताव पूरिजउ । तओ अ णाए दुवे मुद्दाओ कारियाओ नामंकियाओ- 'कुबेर-5 दत्तो' 'कुवेरदत्ता' य । __ अतीते दसराइए डहरिकासु नावासु सुवण्णरयणपूरिआसु छोढूण जउणार्नेई पवाहियाणि । वुभंताणि य भवियवयाए सोरियनयरे पञ्चूसे दोहिं इन्भदारएहिं दिट्ठाणि । धरियाउ नावाउ । गहिओ एगेण दारगो, इक्केण दारिया । 'सधणाई' ति तुढेहिं सयाणि गिहाणि नीयाणि त्ति । कमेण परिवड्डियाणि पत्तजोबणाणि । 'जुत्त संबंधों' त्ति कुबेरदत्ता 10 कुबेरदत्तस्स दिन्ना । कल्लाणदिवसेसु य वट्टमाणेसु वहुसहीहिं वरेण सह जूयं पयोजितं । नाममुद्दा य कुबेरदत्तहत्थाओ गहेऊण कुबेरदत्ताए हत्थे दिन्ना । तीसे पेच्छमाणीए सरिसघडणनामतो चिंता जाया-'केण कारणेण मन्ने नाम-मुद्दाकारसमया इमासिं मुद्दाणं ?, ण य मे कुबेरदत्ते भत्तारचित्तं, न य अम्हं कोइ पुवजो एयनामो सुणिजइ, तं भवियवं एत्थ रहस्सेणं' ति चिंतेऊण वरस्स हत्थे दो वि मुद्दाँउ ठावियाओ । तस्स 15 वि पस्समाणस तहेव चिंता समुप्पन्ना । सो वहूए मुदं अप्पेऊण माउसमीवं गतो । सा य णेण संवहसाविया पुच्छिया । तीए जहासुतं कहियं । तेण भणिया-अम्मो! अजुत्तं ते (भे) जाणमाणेहिं कयं ति । सा भणइ–'मोहिया मो, तं होउ पुत्त! वधूहत्थग्गहणमेत्तदूसिआ, न एत्थ पावगं । अहं विसजेहामि दारिगं सगिहं । तव पुण दिसाजत्तातो पडिनियत्तस्स विसिढे संबंधं करिस्सं ।' एवं वोत्तूण कुबेरदत्ता सगिहं पेसिया । तीई 20 वि जणणी तहेव पुच्छिया । तीए जहावत्तं कहियं । __सा तेण निवेएण समाणी पवइया, पवत्तिणीए सह विहरइ । मुद्दा य णाए सारक्खिया पवत्तिणिवयणेण । विसुज्झमाणचरित्ताए ओहिनाणं समुप्पन्नं । आभोइओ अ णाए कुबेरदत्तो कुबेरसेणाए गिहे वत्तमाणो । 'अहो! अन्नाणदोसु' त्ति चिंतेऊण तेसिं संबोहणनिमित्तं अजाहिं समं विहरमाणी महुरं गया, कुबेरसेणाए गिहे सहिं मग्गिऊण ठिया। 25 तीए वंदिऊण भणिया-अजाओ! अहं नाम गणिया कुलवहूचिट्ठिया, असंकियाउ वसहिति । तीसे य दारगो बालो, सा तं अभिक्खं साहुणीसमीवे निक्खिवइ । तओ तेसिं खणं जाणिऊण अज्जा पडिबोहनिमित्तं दारगं परियंदेइ १ °स्सामि ली ३ ॥ २ य पसवसमए क. मो० उ० ॥ ३ दत्ते गो ३ उ०॥ ४ नईए प० उ० ॥ ५ हाओ दावि डे० क. मो० । दा व(द)वावि गो ३ ॥ ६ ससवहं साहिया। तीए ली ३ ॥ ७ °सुहं क° गो ३ सं० । सुयं तहा क° उ० ॥ ८ तीए क ३। तीय गो ३ ॥ ९ वसहियं म° ली ३ ॥ १० °ह त्ति उ० ॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुवाहडीए यसुदेवहिंडीए [ जंधुपभवसंवादे ___ बालय! भाया सि मे, देवरो सि मे, पुत्तो सि मे, सवत्तिपुत्तो [ सि मे, ] भत्तिजओ सि [ मे, ] पित्तिज्जो सि [ मे; ] जस्स आसि पुत्तो सी वि मे भाया, भत्ता, पिया, पिआमहो, ससुरो, पुत्तो वि; जीसे गन्भजो सि सा वि मे माया, सासू , सवित्ती, भाउज्जाया, पियामही, वधू । 5 तं च तहाविहं परियंदणयं सोऊण कुबेरदत्तो वंदिऊण पुच्छइ-अज्जे ! कह इमं च कस्स विरुद्धमसंबद्धकित्तणं ? उदाहु दारगविणोयणत्थं अजुज्जमाणं भणियं ? । एवं पुच्छिए अन्जा भणइ-सावग! सच्चं एयं । तओ अ णाए ओहिणा दिटुं तेसिं दोण्ह वि जणाणं सपच्चयं कहियं, मुद्दा य दंसिया । कुबेरदत्तो य तं सोऊण जायतिबसंवेगो 'अहो! अन्नाणेण अपदं कारिओ' त्ति विभवं दारगस्स दाऊणं, अन्जाए कयनमोक्कारो 'तुम्हेहिं मे कओ 10 पडिबोहो, करिस्सं अत्तणो पत्थं' ति तुरियं निग्गओ, साहुसमीवे गहियलिंगा-ऽऽयारो, अपरिवडियवेरग्गो, तवोवहाणेहिं विगिटेहिं खविअदेहो गओ देवलोयं । कुबेरसेणा वि गहियगिहिवासजोगनियमा साणुक्कोसा ठिया । अज्जा वि पवत्तिणीसमीवं गया ॥ पभव! तेसिं एवं पञ्चयं सोऊण विसयरागो होजा? । पभवो भणइ-कहं भविस्सइ?। जंबुनामो भणति-अवि तेसिं 'मूढया' ऐको तू इदाणी 'परिहारो' त्ति पमत्तया होजा, 15 न य मम गुरुसयासे सपञ्चये विसयदोसे सोऊणं भोगाभिलासो हवेज्जा ।। १ संसं० विना सर्वेष्वादशेष्वयं पाठ:-पुत्तो त्ति, भत्तिजओ सि; जस्स आसि पुत्तो सो वि मे भाया भत्ता पिया पुत्तो वि; जीसे गब्भजो सि सा वि मे माया सासू भगिणी भाउज्जाया इति ॥ २ °द्धकित्त ली ३ गो ३ क ३॥ ३ °च्छिया अ° उ० ॥ ४ एवं सपच्चयं सोऊण पुणो वि० उ०॥ ५ गो ३ विनाऽन्यत्रएकोऽत्थ इ° कसं मोसं० । एको व इ° डे० । एको तत्थ इ° उ० ॥ * एतदर्थविकासका इमे हेमचन्द्रीयपरिशिष्टपर्वद्वितीयसर्गगताः श्लोकाःबुध्यते यो यथा जन्तुस्तं तथा बोधयेदिति । आर्या तत्प्रतिबोधार्थ तं बालमुदलापयत् ॥ २९३ ॥ भ्राताऽसि तनुनन्माऽसि वरस्यावरजोऽसि च । भ्रातृव्योऽसि पितृव्योऽसि पुत्रपुलोऽसि चार्भक ! ॥ २९४ ॥ यश्च ते बालक! पिता स मे भवति सोदरः। पिता पितामहो भर्त्ता तनयः श्वशुरोऽपि च ॥ २९५॥ या च बालक! ते माता सा मे माता पितामही । भ्रातृजाया वधूः श्वश्रूः सपत्नी च भवत्यहो!॥२९६॥ कुबेरदत्तः तच्छत्वा जगादाऽऽय! किमीदृशम् । परस्परविरुद्धार्थ भाषसे ? विस्मितोऽस्म्यहम् ॥ २९७ ॥ आर्योचे मम बालोऽयं भ्रातैका जननी यतः । वदामि तनुजन्मानममुं मत्पतिसूरिति ॥ २९८॥ मद्भर्तुः सोदर इति देवरोऽपि भवत्यसौ । भ्रातुस्तनय इति च भ्रातृव्यं कीर्तयाम्यमुम् ॥ २९९ ॥ पितृष्यश्चैष भवति भ्राता मातृपतेरिति । पुत्रः सपत्नीपुत्रस्येत्यसौ पौत्रो मयोदितः ॥ ३०॥ योऽस्य वप्ता स मे भ्राता माता झेका यदावयोः । अस्य तातश्च मे तातो भर्ता मातुरभूदिति ॥३०१ ॥ पितृव्यस्य पितेत्येनमुद्धोषामि पितामहम् । परिणीताऽहममुना ह्यस्मीति पतिरेष मे ॥३०२॥ ममैष तनुजन्मा च सपतीकुक्षिभूरिति । देवरस्य पितेत्येष भवति श्वशुरोऽपि हि ॥ ३०३ ॥ याऽस्याऽम्बा सा ममाऽप्यम्बा तया जाताऽस्म्यहं यतः। पितृव्यकस्य मातेति मम साऽपि पितामही ॥३०४॥ भ्रातृजायाऽपि भवति महातुर्गृहिणीत्यसौ । सपत्नीतनयस्यैषा गृहिणीति वधूरपि ॥ ३०५॥ माता पत्युर्मदीयस्येत्यसौ श्वश्रूरसंशयम् । भर्तुर्भार्या द्वितीयेयमिति जाता सपश्यपि ॥ ३०६॥ पौत्रोऽसीत्यर्थः ।। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोवदारगोदंतं ] कहुप्पत्ती। पुणो पभवो भणइ-देव! सातिसएहिं ते वयणेहिं कस्स सचेतणस्स पडिबोहो न होजा? तहा वि 'जुत्तं' ति भणामि-अत्थो महंतेण जत्तेणं संपाविजइ, सो तुभं विउलो अत्थि, तस्स परिभोगनिमित्तं संवच्छरं अच्छिज्जउ, छसूडुसु विणिजोए कए सुट्ट कयं होज त्ति, पच्छा जुत्तं पवइउं । जंबुनामो भणइ-पभव! अत्थस्स परिच्चायं पत्तेसु पंडिया पसंसंति, न कामहेउं । एत्थ सुणह अक्खाणयंअस्थविणिओगविरूवयाए गोवदारगोदंतं ___ अंगाजणवएं गोवा पभूयगोमहिसा परिवसंति । चोरेहिं गोहें पेल्लियं । एगा तरुणी रूवस्सिणी पढमपसूया दारगं छड्डावियाँ हिया । सा तेहिं विकीया नगरे गणियाहट्टे । तीए वमणविरेयणादीहिं परिकम्मेहिं परिचरिया उवयारं च गाहिया लक्खभूया जाया । सो य से दारओ वयवडिओ जोवणत्थी जातो, घयस्स सगडाणि भरेऊण चंपं गतो । विक्कीयं 10 घयं । पस्सइ य तरुणपुरिसे गणियाघरे सच्छंदं कीलमाणे । तेण चिंतियं-मज्झ य धणेण किं जइ एवं न इच्छियजुवइसहिओ विहरामि? त्ति । तस्स पस्समाणस्स गणियाउ माया चेव रुइया । तेण इच्छियं सुकं दिन्नं । सो संझाकाले व्हायसमालद्धो पत्थिओ माउगणियासमीवं । देवयाए य अणु(ग्रन्थानं३००)कंपियाए सवच्छं गावीरूवं काऊण पुरओ से दंसिओ अप्पा । 'पादो से असुइणा 15 विलित्तो' त्ति वच्छमुवरि फुसिउमारद्धो। तेण वच्छेण माणुसीवायाए भणिया गावी-अम्मो! एस को वि पुरिसो अमेझर्लित्तं मे (से) पायं उवरिं फुसति । तीए भणियं-'पुत्त! मा ते मन्नू भवउ, एस मंदभागो जणणीए समीवं अकिच्चं सेविउ वच्चइ, न य एयस्स एयं गरुयं गोवदारगस्स' त्ति अदरिसणं गया । तेण चिंतियं-'मम माया चोरेहिं हिया सुबए, किं मन्ने सा गणिया होज ? त्ति नियत्तामि । अहवा पुच्छामि णं गंतूणं' ति पत्तो गणि-20 यागिहं । तीए निमंतण-भोयण-गीय-वाइय-नच्चणेहिं हिययगहणसादराए उवगिज्झमाणो सो कजनिच्छयपरो भणइ-चिट्ठउ ताव सवं, कहेहिं, तुझं कहमुप्पत्ती ? । सा भणइ-जंनिमित्तमागतो सि धणं दाऊणं ममं महिलागुणवित्थरं पुच्छ, किं ते कुलकहाए ? । सो भणइतुज्झ उप्पत्तीए पओयणं, तं अगूहमाणी कहेहिं, कुणसु पसायं । तीए चिंतियं-कहेमि ?, से को वि दोसो हवेज्जा ? । ततो तीए सवं कहियं अम्मापिउसयणणामकालं साभिन्नाणं ।।25 पभव ! देवयापडिबोहो जइ न होतो तो केरिसो होतो अत्थस्स उवओगो तस्स गोवदारगस्स ? । पभवो भणइ-नत्थि मे एत्थ किंचि वत्तवं, जहा भणह तहा तं चेवेति । [जंबुनामो भणइ-पभव!] एवं नायपरमत्थो भोगाभिलासी भवेज्जा? । पभवो भणइ-अभावो एस । जंबुणामेण भणिओ-पडिबुद्धाणं एस विसओ, न सुत्ताणं, 'सवत्थ नाणं परित्ताणं"। 30 १ °ए गोणविभूतए गोवा डे० ॥ २ 'ल्लिय एगा ली ३ ॥ ३ °या गहिया क ३ ॥ ४ °या ह° डे० उ९ विना ॥ ५ लगा ली ३ ॥ ६ तं पायं मम उवार संसं० ॥ ७ निमंदण° ली ३ ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ वसुदेव हंडी [ जंबुपभवसंवादे महेसरदत्तस्स पुणो कयंजली विन्नवेइ पभवो - सामी ! लोगधम्मो वि ताव पमाणं कीरउ, पिउणो उवयारो कओ होइ, तेसिं पुत्तपञ्च्चयं तित्तिं वण्णंति वियक्खणा - " निरिणो य पुरिसो सग्गगामी होइ” । ततो जंबुनामो भणइ-न एस परमत्थो, पुत्तो पिउणो भवंतरगयस्स अविजाणओ उवयाबुद्धीए अवगारं करिज्जा । न य पुत्तपञ्चया तित्ती पिउणो, 5‘“सयंकयकम्मफलभागिणो जीवा " । जं पुत्तो देइ पियरं उद्दिसिऊण सा भत्ती । जहा जम्मणं परायत्तं, तहा आहारो वि सकम्मनिविट्ठो (हो) । जेय खीणवंसा ते निराधारा अतित्ता सबमणागयकालं कहं वहिंति ? । पुत्तसंदिकं वा भत्तपाणं अचेयणं कहं पिउसमीवमेहिति ?, मुद्दिस्स वा जं कयं पुण्णं ? । जो पिता पितामहो वा कम्मजोगेण कुंथु पिपीलिया वा तणुसरीरो जातो होज्जा, तम्मि य पदेसे जइ पुत्तो उद्गं तन्निमित्तं तस्स देज्जा, तस्स कह 10 परससि उवगारं अवगारं वा ? | अहवा सुणाहि लोगधम्मासंगययाए महेसरदत्त खाणयं तामलित्तीनयरीते महेसरदत्तो सत्थवाहो । तस्स पिया समुद्दनामो वित्तसंचय-सारक्खण-परिवुढिलोभाभिभूओ मओ मायाबहुलो महिसो जाओ तम्मि चेव विसए । माया वि से उवहि-नियडिकुसली बहुला नाम चोक्खवाइणी पइसोकेण भैया सुणिया जाया 15 तम्मि चेव नयरे । महेसरदत्तस्स भारिया गंगिला गुरुजणविरहिए घरे सच्छंदा इच्छिएण पुरिसेण सह कयसंकेया पओसे तं उदिक्खमाणी चिट्ठइ । सो य तं पएस साउहो उवगतो महेसरदत्तस्स चक्खुभागे पडिओ । तेण पुरिसेण अत्तसंरक्खणनिमित्तं महेसरदत्तो तक्किओ विवाडेउं । तेण लहुहत्थयाए गाढप्पहारीकओ नाइदूरं गंतूण पडिओ चिंतेइ– अहो !!! अणायारस्स फलं पत्तो अहं मंदभागो । एवं च अप्पाणं निंदमाणो जायसंवेगो 20 मतो गंगिलाए उयरे दारगो जाओ। संवच्छरजायओ य महेसरदत्तस्स 'पिओ पुत्तो मि' त्ति । तम्मिय समए पिउकिच्चे सो महिसो णेण किणेऊण मारिओ । सिद्धाणि य वंजणाणि पिउमंसाणि, दत्ताणि जणस्स | बितियदिवसे तं भैंस मज्जं च आसाएमाणो पुत्तमुच्छंगे काऊण तीसे माउसुणिगाए मंसखंडाणि खिवइ, सा वि ताणि परितुट्ठा भक्खर । साहू य मासखवणपारणए तं गिहमणुपविट्ठो, पस्सइ य महेसरदत्तं परमपीतिसंपत्तं । 25 तदवत्थं च ओहिणा आभोएऊण चिंतिअमणेणं - अहो ! ! ! अन्नाणयाए एस सत्तुं उच्छंगेण वहइ, पिउमंसाणि यखायइ, सुणिगाए देइ मंसाणि । 'अकज्जं ' ति य वोत्तूण निग्गओ । महेसरदत्तेण चिंतियं— कीस मन्ने साहू अगहियभिक्खो 'अकजं' ति यवोत्तूण निगओ ? । आगओ य साहुं गवेसंतो, विवित्तपसे दट्ठूण, वंदिऊण पुच्छइ —भयवं ! किं न गहियं भिक्खं मम गिहे ?, जं वा कारणमुदीरियं तं कहेह । साहुणा भणिओ30 साबग ! ण ते मंतुं कायवं । पिउरहस्सं कहियं, भज्जारहस्सं सत्तुरहस्सं च साभिण्णाणं १ °ला कुसला नाम ली ३ ॥ २ मुया ली ३ | ३ साउहं ली ३ गो ३ ॥ ४ मंसं वज्जियं च ली ३ ॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाणियगस्स य कहाओ ] कहुप्पत्ती । १५ जहावत्तमक्खायं । तं च सोऊण जायसंसार निवेओ तस्सेव समीवे मुक्कहिवासी पवइओ || पभव ! एरिसी लोगसुई, तं पमाणं करेंतो अन्नाणयाए माणणिज्जं वा पीलेज्जा, अकज्जे कज्जबुद्धी निवेसिज्जा, कज्जं परिहरिज्जा, न पुण नाणी । तम्हा लोगदिट्ठी विसयाणुकूलवाइणी ॥ ससारं च दुक्खबहुलं चिंतंतेण कायवो मोक्खत्थमुज्जमो । तत्थ नरगेसु निरुवमनि- 5 डिगाराणि निरंतराणि दुक्खाणि, तिरिएस सी - उण्ह - छुहादीणि सपक्ख- परपक्खजणियाणि, मणुसु य दारिद्द दोहग्ग-नीअउच्चमज्झिमभाव- परवत्तव- पियविप्पओगादीणि, देवेसु किब्बिसिया-ऽऽभिओग-पररिद्धिदंसण-चयणभयादीणि, तेसिं उविअंतेण जिणवरमुँदिट्ठो निद्वाणपहो सेवियबो । तओ पभवो भणइ – सामि ! विसयसुहस्स सिद्धिसुहस्स य किं अंतरं होज्जा ? | नामा भणइ-पभव ! सिद्धिसुहं निरुवमं, देवसुहाओ वि य अनंतगुणं अबाबा वुच्चति । जाव य सरीरं ताव य तदस्सिया पीडा हवइ, जाव मणो ताव माणसापत्तिजो य दुक्खसण्णिवाओ | 'लक्खे सरा णिवयंति' त्ति दिडंजा ( दिहंता ) य भोयण- पाण-विवणाSsसदी (दि) परिभोए सुहबुद्धी जणो परिकप्पेइ ते दुक्खं पडिकँरेंति बोहेया । 1 एत्थ यदितं सुणाहि— दुक्खे सुकपणा विलुत्तभंडस्स वाणियगस्स दितं अंबु - 10 २ ति एक कर वाणियओ कोडीभंडसगडाणि भरिऊण सत्थेण समं अडविं पविट्ठो । तस्स य एको वेसरो संववहारनिमित्तं पणाण भरिओ । तस्स य उप्पहपंडिवन्नस्स फालिओ भरओ, परिगलिआ पणा । तेण दहूण रुद्धाणि नियगसगडाणि, स मणुस्सा य पणा मग्गिऊणं पत्तो (त्ता) । पैत्ता य आइवाहिगा, तेहिं भणिओ - वञ्चंतु सगडाणि, किं कागिणिनि - 20 मित्तस्स कए कोडीं परिचयउकामो सि ? किं वा चोराण न बीहेसि ? । सो भणइ - लाभो संदिद्धो, संत कहं परिच्चइस्सं ? । गतो य सेसो सत्थो । तस्स वि चोरेहिं विलुत्तं भंडं ॥ एवं जो विसयलोभेण मोक्खसुहसाहणपमुक्तत्ती सो संसारमावन्नो बहुं कालं सोइहिति, जहा सो वांणियगो विणट्टभंडसारो ॥ तओ भवो एवमादीणि सोऊण पडिओ जंबुनामस्स पाएसु, 'अहं तुज्झं सीसो, 25 दसिओ मे मोक्खमग्गो' । तेणावि 'तह' त्ति पडिवन्नं । विसजिओ निग्गओ वेभारगिरिं समस्सिओ ठिओ । १ नामो उ० संसं० ॥ २ ति । जाव ली ३ ॥ ३ गो० वा० विनाऽन्यत्र साए त्ति जो खं० क ३ । सीए ति जो ली ३ उ० ॥ ४ वणसिणाणादी क ३ ॥ ५ ° दीण परिभोए सुहं बुद्धीअ जणो उ० ॥ ६ क्खपडिकारं ति उ० ॥ ७ पत्ताइयाइवाहि° ली ३ गो ३ मो० सं० ॥ ८ क्कभत्ती उ० विना ॥ ९ वणि क ३ गो ३ ॥ * मकारोऽत्र न विभक्त्यंशः किन्वागमिकः ॥ 15 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [जंबुचरिए पसन्नचंदविदितं काऊण पभाताए रयणीए पवजनिच्छियएहिं अम्मापिऊहिं ण्हाविओ विहीए, अलंकियविभूसिओ जंबुद्दीवाहिवैतियसकयसन्निझं पुरिससहस्सवाहिणी सीयमभिरूढो। ___ तओ कुलतिलओ विव जंबुकुमारो विम्हियमणेण जणेण पसंसिज्जमाणो मणि-कणगवरिसं वेसमणो विव वरिसमाणो मगहापुराओ महतीए इड्डीए पत्तो गणहरसमीवं । उइण्णो 5 सिबिगाओ, विसज्जियकेसाभरणो य पडिओ पाएसु सुहम्मसामिणो, 'भयवं! नित्थारेहिं मं सह सयणेणं' ति । तओ दिक्खियाणि विहिणा । जाओ वि य से भज्जाओ माया य सुबयाए अजाए समीवे सिस्सिणीओ । पभवो वि रायाणुन्नाओ दिन्नो सीसो जंबुनामस्स गुरुणा । सामाइयमाईयं च सुयं सपुवगयं नाणावरणखओवसमलद्धीए थोवेण कालेण गहियं जंबुनामेण । पभवो वि सामण्णमणुपालेइ ।। 10 भगवं पि पंचमो गणहरो सगणो विहरमाणो गतो चंपं नयरिं । समोसरिओ पुण्ण भद्दे चेइए । कोणिओ राया वंदिओ निजातो। कयपणामो य जंबुणामस्वदंसणविम्हिओ गणहरं पुच्छइ-भयवं! इमीएँ परिसाए एस साहू घयपरिसित्तो इव किसाणू दित्तो मणोहरसरीरो य, तं किं मन्ने एएण सीलं सेवियं ? तवो वा चिण्णो ? केरिसं दाणं वा तविधं दिन्नं ? जओ से एरिसी तेयसंपयत्ति त्ति । तओ भयवया भणिओ-सुणाहि रायं!, जह 15 तव पिउणा सेणिएण रण्णा पुच्छिएण महावीरसामिणा कहियंपसन्नचंद-वकलचीरिसंबंधो तम्मि समए अरहा गुणसिलए चेइए समोसरिओ। सेणिओ राया तित्थयरदसणसमूसुओ वंदिउं निग्गओ । तस्स वि अग्गाणीए दुवे पुरिसा कोडुंबसंबद्धं कहं करेमाणा पस्संति एगं साहुं एगचलणपयट्ठियं समूसियबाहुजुगलं आयावेतं । तत्थेगेण भणियं-अहो! 20एस महप्पा रिसी सूराभिमुहो तप्पइ, एयस्स सग्गो वा मोक्खो वा हत्थगओ त्ति । बीएण पञ्चभिन्नाओ, तओ भणइ-किं न याणसि ?, एस राया पसन्नचंदो, कओ एयस्स धम्मो ?, पुत्तो णेण बालो रज्जे ठविओ, सो य मंतीहिं रज्जाओ मोईजइ, सो य णेण वंसो विणासिओ, अंतेउरजणो य न नजइ किं पाविहिति ? त्ति । तं च से वयणं [ सो ॐण ] झाणवाघायं करेमाणं सुतिपैहमुवगयं । तओ सो चिंति पयत्तो-अहो !!! ते 25 अणज्जा अमञ्चा, मया सम्माणिया णिचं पुत्तस्स मे विपडिपन्ना । जइ हं होतो, एवं च चिट्ठसा, तो णे सुसासिए करितो । एवं च से संकप्पयंतस्स तं च कारणं वट्टमाणमिव जायं । तेहिं समं जुद्धाणि मणसा चेव काउमारद्धो । १°याए°क ३ गो ३ ॥ २ वतिकय° क ३ विना ॥ ३ ज्झो क३॥ ४ सिबियमारू उ० ॥ ५ उयण्णो ली ३ विना ॥ ६ णियराया ली ३ ॥ ७ बंदिड डे. उ० ॥ ८°ए एव महतीए परि° उ०॥ ९°सी रूवसंपत्ति त्ति ली ३॥ १०°ईएक ३॥ ११ भणे इयं क. मो० गो ३ । भणइ य सं० ॥१२ मोयज क ३ गो ३ ॥ १३ पदमवग ली ३ । पहमाग° उ०॥ १४ मिली ३ ॥ १५ मट्ठा चेव ली ३॥ * कोष्टान्तर्गतमिदं प्रामादिकमाभाति ॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वकालचीरिसंबंधो। कहुप्पत्ती । १७ पत्तो य सेणिओ राया तं पएस, यदिओ गेण विणएणं, पिच्छइ णं झाणनिश्चलं । 'अहो! अच्छरीयं !!! एरिसं तसि सामत्थं रायरिसिणो पसन्नचंदस्स' त्ति चिंतयंतो पत्तो तित्थयरसमीवं । वंदिऊण विणएणं पुच्छइ-भयवं! पसन्नचंदो अणगारो जम्मि समए मया वंदिओ जइ तम्मि समए कालं करेजा कं गतिं वच्चेज ? ति । भयवया भणियं-सत्तमपुढविगमणजोगो । राया चिंतेइ-साहुणो कहं नरकगमणं ? ति । पुणो 5 पुच्छइ-भययं ! पसन्नचंदो जइ इयाणिं कालं करेज, का से गई भवेज्जा ? । भयक्या भणियं-सघट्टसिद्धिगमणजोगो इयाणिं ति। तओ भणइ-कहं इमं दुविहं वागरणं नरकाऽमरेसु (ग्रन्थाग्रं-४००) तवस्सिणो ? त्ति। भयवया भणियं-झाणविसेसेणं तम्मि इमम्मि य समए एरिसी तस्स असात-सातकम्मादाणता ।सो भणति-कहं ? । भयवया भणियं-तव अग्गाणियपुरिसमुहविणिग्गयं पुत्तपरिभववयणं सोऊण उज्झियपसत्थझाणो तुमे वंदिजमाणो 10 मणसा जुज्झइ भिच्चपराणीएण समं, तओ सो तम्मि समए अहरगइजोग्गो आसी। तुमम्मि य अवगए जायकरणसत्ती ‘सीसावरणेण पहरामि परं' ति लोइए सिरे हत्थं निक्खिवंतो पडिबुद्धो, 'अहो!!! अहं सकजं पयहिऊणं परत्थे जइजणविरुद्धं मग्गमोइन्नो' चिंतेऊण निंदण-गरिहणं करेंतो, ममं पणमिऊण तत्थं चेव आलोइयपडिकंतो, पसत्थझाई संपयं। तं च णेण कम्मं खवियं असुभं, पुन्नं अज्जियं, तेण कालविभागेण दुविहगतिनिद्देसो ॥ 15 ततो कूणिओ पुच्छइ--कह वा भयवं! बालकुमारं रज्जे ठविऊण पसन्नचंदो राया पञ्चइओ ?, सोयुमिच्छं । तओ भणति पोयणपुरे सोमचंदो राया । धारिणी देवी। सा कइयाइ तस्स रण्णो उलोयणगयस्स केसे रयंती पलियं दद्दूण भणइ-सामि ! दूओ आगओ त्ति । रण्णा दिट्ठी वियारिया, नेय पम्सइ अपुत्वं जणं । तओ भणति-देवि! दिवं ते चक्टुं । तीए पलियं दंसियं 'धम्मदूतो 20 एसो' त्ति । तं च दट्टण परुण्णो राया । उत्तरीएण य से अंसूणि धरेमाणी देवी भणतिजइ लज्जह वुड्डत्तणेण, निवारिजहिति जणो । ततो भणइ-देवि! न एवं, 'कुमारो बालो असमत्थो पयापालणे होज' त्ति मे मंतुं जायं, 'पुचपुरिसाणुचिन्नेण य मग्गेण न गओ हति णे विचारो। तुमं पसन्नचंदं संरक्खमाणी अच्छसु त्ति । सा निच्छियँगमणा । ___ तओ पुत्तस्स रजं दाऊण धाइ-देवीसहिओ दिसापोक्खियतावसत्ताए दिक्खिओ चिर-25 सुन्ने आसमपए ठिओ । देवीए य पुबाहूतो गम्भो परिवड्युइ, पसन्नचंदस्स य चारपुरिसेहिं निवेइओ । पुण्णसमए य पसूया कुमारं, 'वक्कलेसु ठविओ' त्ति वकलचीरी । देवी सूइयारोगेण मया, वणमहिसीदुद्धेण य कुमारो वद्धाविजइ । धाई वि थोवेण कालेण काल १ झाणि नि° क ३ गो ३॥ २ °वस्सि सा क ३ गो ३ । वस्स सा° उ०॥ ३ गो। ततो चिं. ली ३ उ० विना ॥ ४थगओ चे उ०॥ ५ कहं क ३ उ० ॥ ६ रिअहिली ३। रिज्जिहि उ० ॥ ७ या गमणे कसं० मोसं० उ० ।। व० हिं. ३ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ः वसुदेवहिंडीए [जंबुचरिए पसन्नचंदगया । कढिणेण वहइ रिसी बैंकलचीरी। परिवटियो य आलिहिऊण दंसिओ चित्तगारेहिं. सो पसन्नचंदस्स । तेण सिणेहेण गणियादारियाओ रिसिरूविणीओ ‘खंडमयमोययविविहफलेहिं णं लोभेह' त्ति पट्टवियाओ । ताओ य णं फैलेहिं महुरेहिं, महुरेहिं य वयणेहिं, सुकुमार-पीणुन्नयथणपीलणेहि य लोभेति । सो कयसमवाओ गमणेण जावं उवगतो तावसभं5 डगं संठवेउ, ताव रुक्खाहिरूढेहिं चारपुरिसेहिं सन्ना दिन्ना 'रिसी आगतो' त्ति । तातो दुतमवर्कताउ । सो तासिं पतिवीहिमणुगच्छमाणो अन्नउ गतो । सो अडवीए परिभमंतो रहगयं पुरिसं दवण ‘ताय ! अभिवादयामि' त्ति भणंतो रहिएण पुच्छिओ-कुमार! कत्थ गंतवं ? । सो भणइ-पोयणपुरं नाम आसमपयं । तस्स वि पुरिसस्स तत्थेव गंतवं, तेण भणियं-समगं वज्ञामो रहिणो भारियं तातं' ति आलवह। तीए भणियं को इमो 10 उवयारो ?। रहिणा भणियं-सुंदरि! इथिविरहिए नूणं एस आसमपए वड्डिओ न याणइ विसेसं, न से कुप्पियवं । तुरगे य भणइ-किं इमे मिगा वाहिजंति ?। सारहिणा भणियं–कुमार! एए एयम्मि चेव कजे उवउज्जंति, न इत्थ दोसो। तेण वि से मोदगा दिन्ना । सो भणइ-पोयणासमवासीहिं मे रिसिकुमारेहिं एयारिसाणि चेव फलाणि दत्तपुवाणि त्ति । वच्चंताण य से इक्केण चोरेण सह जुझं जायं । रहिणा गाढप्पहारो कओ, 15 सिक्खागुणपरितोसिओ भणइ-अस्थि विउलं धणं, तं गिण्हसु सूर! त्ति । तेहिं तिहि वि जणेहिं रहो भरिओ। - कमेण पत्तो पोयणपुरं नयरं, मोल्लं गहाय (?) विसजिओ-'उडयं मग्गसु' त्ति । सो भमंतो गणियाघरे 'तात ! अभिवादेमि, देहि इमेण मोल्लेण उडयं' ति । गणियाए भणि ओ-दिजइ, निवेसह त्ति । तीए य कासवओ सहाविओ । तओ अणिच्छंतस्स कयं नह20 परिकम्मं । अवणीयवकलो य वत्था-ऽऽभरणभूसिओ गणियादारियाए पाणिं गिण्हाविओ। ..'मा इमं रिसिवेसं अवणेहि' त्ति जंपमाणो ताहिं भण्णइ-जे उडयत्थी इहमागच्छंति तेसिं एरिसो उवयारो कीरति । तओ य गणियाओ उवगायमाणीओ वहू-वरं चिट्ठति । - जो य कुमारोवलोभणनिमित्तं रिसिवेसेण जणो पेसितो सो आगतो कहेइ-कुमारो अडविमतिगतो, अम्हेहिं रिसिस्स भएण न तिण्णो सदावेउं । ततो राया विसण्णमाणसो 25 भणति-'अहो! अकज, न य पिउसमीवे जाओ, न इहं, न नजइ किं पत्तो होहिइ ?' त्ति चिंतापरो अच्छइ । सुणइ य मुंयंगसदं, तं च से सुइपहदूमणं जायं । भणइ य–मए दुक्खिए को मन्ने सुहिओ गंधवेण रमइ ? त्ति । गणियाए य हिएण जणेण कहियं । सा आगया, पायवडिया रायं पसन्नचंदं विन्नवेइ-देव ! निमित्तिसंदेसो मे–'जो तावसरूवी १ वट्टइ ली ३॥ २ फलेहिं महुरेहिं वय° ली ३ उ० ॥ ३ °व अइगतो उ० ॥ ४ ततो क ३ गो ३॥ ५ °णुसज्जमा ली ३ विना ॥ ६ °वेइ ली ३ ॥ ७ उडवयं उ० विना ॥ ८ ताओ डे० उ० ॥ ९ ली ३ उ० विनाऽन्यत्र-रविलो° क. मो० ॥ १० मयं ली. य० ॥ ११ °रूवो क ३ गो० उ० ॥ . * द्वितीयार्थकमेतत् पदम् , “वल्कलचीरिणम्" इत्यर्थः ॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वकलचीरिसंबंधो] — कहुप्पत्ती। १९ तरुणो गिहमागच्छेज्जा ता तस्स समागमेव दारियं देजासि , सो उत्तमपुरिसो, तं संसिया विउलसोक्खभागिणी होहिइ' त्ति । सो जहा भणिओ नेमित्तिणा अज मे गिहमागओ। तं च संदेसं पमाणं करेंतीए दत्ता से मया दारिया, तन्निमित्तं उस्सवो, नै य णायं 'कुमारं(रो) पणटुं(हो)' । एत्थ मे अवराह मरिसेह त्ति । रन्ना संदिट्ठा मणुस्सा जेहिं आसमे दिट्ठपुबो कुमारो, तेहि यँ गएहिं पञ्चभिजाणिओ, निवेदितं च पिइं। रन्ना परमपी-5 इमुबहतेण वहुसहिओ सगिहमुवणीओ । सरिसकुल-रूव-जुबणगुणाण य रायकन्नगाणं पाणिं गिण्हाविओ, कयरजसंविभागो य जहासुहमभिरमइ । __रहिओ चोरदत्तं दत्वं विक्किणंतो रायपुरिसेहिं 'चोरो' त्ति गहिओ । वक्कलचीरिणा मोइओ पसन्नचंदविदियं ति । ___ सोमचंदो वि आसमे कुमारं अपस्समाणो सोगसागरावगाढो, पसन्नचंदपेसिएहिं 10 नगरगयं वक्कलचीरिं निवेदितेहि कहवि संठविओ, पुत्तमणुसरंतो अंधो जाओ। रिसीहिं साणुकंपेहिं कयफलसंविभागो तत्थेव आसमे निवसति । - गएसु य बारससु वासेसु कुमारो अद्धरत्ते पडिबुद्धो पियरं चिंतेउमारद्धो । 'किह मन्ने ताओ मया निग्धिणेण विरहिओ अच्छइ ?' ति पियदसणसमूसुगो पसन्नचंदसमीवं गंतूण पायवडिउ विनवेइ-देव! विसंजेहिं मं, उकठिओ हं तायस्स । तेण भणिओ-समगं 15 बच्चामो, गया य आसमपयं, निवेइयं च रिसिणो 'पसन्नचंदो पणमइ' त्ति । चलणोवगओ अ णेण पाणिणा परामुट्ठो ‘पुत्त! निरामओ सि?' त्ति । बैंकलचीरी पुण अिवयासिय चिरकालधरियं से बाहं मुयंतस्स उम्मिल्लाणि नयणाणि, पस्सइ य दो वि जणे परमतुट्ठो, पुच्छइ य सबकालकुसलं । वक्कलचीरी य कुमारो अइगतो उडयं, ‘पस्सामि ताव तायस्स भंडयं अपेहिजमाणं केरिसं जायं ?' ति । तं च उत्तरीयतेण पडिलेहिउमारद्धो जई 20 विव पायकेसरियाएँ । 'कत्थ मण्णे मया एरिसं करणं कयपुत्वं ?' ति विहमणुसरंतस्स तयावरणखएण जायं जाईसरणं । सुमरति तं देव-माणुसभवे य सामन्नं पुराकयं, संभरिऊण वेरग्गमग्गमोइण्णो, धम्मज्झाणविसयादीओ विसुद्धमाणपरिणामो य बितियसुक्कझाणभूमिमइक्तो निदृवियमोहावरणविग्यो केवली जाओ, निग्गओ य । पकहिओ य धम्म जिणप्पणीयं पिउणो पसन्नचंदस्स य रणो । ते दो वि लद्धसम्मत्ता पणया सिरेहिं केव-25 १ समागमे चेव कसं० मोसं० । समगमेव उ० ॥ २ करितीए क ३॥ ३ न याणं कु० उ० ।। ४ य मणुएहिं प क ३ ।। ५ पियं उ० ॥ ६ दत्तदव्वं डे० उ. विना ॥ ७ कसं. मोसं० विनाऽन्यत्र-कढे सं० ली ३ । कहंचि सं० उ० ॥ ८ सूसगो मोसं० विना ॥ ९ जेह ली ३ विना ॥ १० अणुपे० ख० विना ॥ ११ रीयंते° ३ उ०॥ १२ °ए । 'मया कसं० मोसं० उ. विना ॥ १३ °सुज्झमा° ली ३ उ०॥ १४ हियं धडे. उ० विना ॥ * प्रथमान्तमेतद् द्वितीयार्थकमिति “वल्कलचीरिणम्" इत्यर्थः ॥ श्लिष्ट्वा इत्यर्थः ॥ धर्मध्यानविषयातीत इत्यर्थः ॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [जंबुसामिपुक्कमककहाए लिणो 'सुङ ते दंसिओ मग्गो' त्ति । वक्कलचीरी पत्तेयबुद्धो गतो पियरं गहेऊग महावीरवद्धमाणसामिणो पासं । पसन्नचंदो नियगपुरं । जिणो य भयवं सगणो विहरमाणो' पोयणपुरे मणोरमे उजाणे समोसरिओ । पसनचंदो वक्कलचीरिवयणजणियवेरग्गो परममणहरतित्थयरभासियामयवडिउच्छाहो बालं 5पुत्तं रज्जे ठविऊण पवइओ । अहिगयसुत्तत्थो तव-संजमभावियमती मगहापुरमागओ तव पिउणा सायरं वंदिओ आयावंतो-एवं निक्खंतो ॥ ___ जाव य भगवं नारगामरगतीसु उक्कोसट्टिईजोग्गयं झाणपञ्चयं पसन्नचंदस्स वन्नेइ ताक य देवा तम्मि पएसे ओवइया। पुच्छितो य अरहा सेणिएण रणा-किंनिमित्तं एस देवसंपाउ ? त्ति । सामिणा भणियं-पसन्नचंदस्स अणगारस्स णाणुप्पत्तीहरिसिया देवा उर्वयंति ।। 10 ततो पुच्छइ-एतं महाणुभावं केवलणाणं कत्थ मन्ने वोच्छिजिहिति ?। तं च समयं बंभिंदसमाणो विज्जुमाली देवो चउहिं देवीहिं सहितो वंदिउं भयवंतमुवागतो उज्जोविंतो दसदिसाओ । सो दंसिओ भगवया, 'एयम्मि वोच्छिजिहि' त्ति ॥ राया पुणो वि पुच्छइ-कहं देवो केवली होहिति ?, मणुस्से तब्भवचरिमे केवलसंभवो तुब्भेहिं वण्णिओ विसुद्धचारित्ते । भयवया भणियं-एस देवो सत्तमे दिवसे चुओ 15मणुस्सविग्गहलाभी । तओ पुच्छति-चवणसमए देवा परिहीणजुतयो भवंति, एस पुण अभिभवइ तेयसा सूरे, तं कहमेयं ? । भयवया भणियं-एस संपइ परिहीणजुई, पुवं पुण अणंतगुणविसिट्ठा से तेयलेसा आसी । राया पुच्छति-कहं पुण एएण कयं पुत्वभवे जेण परिसी से तेयसंपया? । भयवं कहेइजंबुसामिपुवभवकहाए भवदत्त-भवदेवजम्मसंबंधो 20 इहेव जणवए सुग्गामो नाम गामो । अजवो नाम रहउडो आसि । तस्स रेवती नाम भारिया । तेसिं पुत्ता भवदत्तो भवदेवो य । तत्थ जेट्ठो जोवर्णमुँदए सुट्टियस्स अणगारस्स समीवे पवइओ, गुरुसमीवे विहरइ । एगेण साहुणा आयरिया विन्नविया-णायवसहिं गच्छिउमिच्छे तुम्भेहिं अभणुनाओ। तत्थ मे कणीयसो भाया मयि अईव सिणेहसंबद्धो, दगुण पवयहि त्ति । तेहिं विसजिओ 25 बहुसुयसाहुसहाओ। टूण नायओ पडिनियत्तो गुरूण आलोएइ-तस्स दारसंगहं काउ कामा अम्मापियरो, लद्धा य से दारिया, तओ न पवइओ। भवदत्तेण भणियं-ते कहं भाउगो वरकोउगे वि वट्टमाणो भाउगं दह्ण चिरस्स पच्छओ न लग्गो ? त्ति । इयरेण साहुणा भणियं-दच्छामि तुभं (ग्रन्थानं-५०० ) भाउगं पवयंतं । भवदत्तेण भणियंजइ खमासमणा तओ विहरंति तओ भाउगं मे दच्छिह पचयंतं ।। १ ण वद्ध हे. उ. विना ॥ २ णो मणो डे. उ. विना ।। ३ 'यसव्वस्थो क ३ गो ३ ॥४वगय त्ति हे. उ० ॥ ५ °णसुहृदए ली३ । णस्सुदए कसं० उ० ॥६ यसो मयि हे... कसं० विना ।। * मकारोऽत्रागमिकः ॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भववत्त-भवदेवभवसंबंधो ] कहुपत्ती । २१ । विहरता आयरिया य मगहाजणर्वयं गया, विन्नविया भवदत्तेणं - भयवं ! नायओ दहुमिच्छामिति । ससहाओ तेहिं विसज्जिओ । भवदेवस्स य तं समयं नागदत्तस्स दुहियाए वासुगीए अत्तिगाए नाइलाए सह विवाहो' वत्तो । भवदत्तो य नायसमीवं गओ । परितुट्ठा नायओ भवदत्तागमेण । तेण य कुसलं पुच्छिया, आपुच्छिया य ' वच्चामि तु आउल' त्ति | निबंधे कए पडिलाभिओ विउलेणं भत्तपाणेणं । निवेश्यं च भवदे - 5 बस्स जेम्स भाउणो आगमणं । सो य सहिसहियं बहुं पसाहेइ । गुरुआगमणं सोऊणं च ससंभ्रममभुट्टिओ सहीहिं भणिओ-न ते अद्धपसाहियं वधुं मोत्तूण जुत्तं गंतुं । सो भगति - बालिया ! गुरुपणिवायं काऊण आगयमेव समं दच्छिहह त्ति । सो निग्गओ भवणातो, वंदिओ अ णेण जेट्ठो भाया । तेण से * घियभरियं भ्रायणं हत्थे दिन्नं । पत्थिया सावो । सो णे अणुयाइ पत्तहत्थगतो । पढमं इत्थिजणो नियत्तो, पच्छा पुरिसा थोवं - 10 तरं गंतूण, 'साहू सावज्जं वयणं न भणई' त्ति नियतह । भवदेवो उण 'अविसज्जिओ कहं नियत्तामि ?' इति उवायपुत्रं दंसे से वप्पिण - पोक्खरणि-वणसंडे नियए पराए य । सो वि भणइ 'सुमरामि जाणामि' त्ति गतो गामसीमंतं, आसन्नो य गामो । ण भणई णं भवदन्तो 'नियत्तसु' त्ति । एएण कमेण वच्चमाणो पत्तो गुरुसमीवं । दिट्ठो य बरनेव - थिओ | खुड्डेहिं भणियं - जेइज्जेहिं जहा भणियं तं कयं | आयरिएहिं पुच्छियं - किं इमो 15 आगओ तरुणो? । भवदत्तेण भणियं - ' पत्रइयु' ति । गुरूहिं भणिओ - एवं ? ' मा भाउगस्स ओहावणा होउ' त्ति तेण 'एवं' ति पडियं । पत्राविओ य साहुसंघाडण सह विसज्जिओ । आगतो य सयणो, 'कहिं गतो ?' त्ति पुच्छिएण भवदत्तेण भणियंसो पत्तमित्तो चैव नियत्तो । ते एवं वृत्ता ' धुवमन्त्रेण मग्गेण गओ होहिति' त्ति सिघं नियत्ता | भवदेवो अकामयो वंतवं (बंभवं ) चरइ भजं हियएण परिवहंतो । बहुणा य 20 काले भवदत्तो कयभत्तपरिचाओं कालगतो समाहीए सक्कसमाणो देवो जाओ । 93 93 इयवि 'सा मम भज्जा, अहं पि तीसे भत्ता पिओ, वच्चामि से वट्टमाणिं वोढुं ति थेरे अणाच्छिय गओ । सुग्गामवहिया य आययणं संवरियदुवारं, तस्साऽऽसन्ने 'वीसमा - 93 'त्ति संठित । तत्थ य एगा इत्थिया गंध-मलं गहाय एगाए माहणी सह आगया । तीर 'साहु' त्ति वंदितो । तेण पुच्छिया - साविए ! तुम्भमवस्सं जाणिहिह इह वसंती - 25 ओ, जीवइ अज्जवरट्ठउडो, रेवई वा ? । तीए भणियं - तैसि बहू कालो कालगयाणं । ततो विमणो जातो पुणो पुच्छइ - भवदेवस्स वहू नाइला जीवइ ? त्ति । तीए चिंतियं १ "वयंतं गया ली ३ ॥ २ 'हो पारद्धो ली ३ ॥ ३ गमणे डे० । 'गमे ३० ॥ ४ कसं० [सं० विनाऽन्यत्र--सघियभरियं मो० । सभक्खभरियं उ० । से भरियं ली ३ गो ३ ॥ ५ से णे क ३ गो ३ डे० ॥ ६° इ घिमिगो ३ । इनि' ली ३ । 'इ, जह नि० उ० ॥ ७ कसं० विनाऽन्यत्र - परायए य उ० । परा य ली ३ मो० सं० गो ३ ॥ ८ इ इणं भव क ३ ॥ ९ होइ त्ति उ० विना || १० सोम ! पत्तमे ली ३ । ११ यं तवं उ० || १२ ति तो थेरे ली ३ | १३ °ठित्तो ली ३ ॥ १४ तीसे ब° उ० विना ॥ १५ बहुका ली ३ उ० ॥ १६ वत्ति ली ३ ॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ वसुदेवहिंडीए [जंबुपुत्वभवकहाए माहणदारयकहा होज एसो भवदेवो, पुच्छामि ताव णं । तओ भणति-तुम्भे भवदेवं कओ जाणह ?, किमत्थं वा इहं आगया ? । सो भणइ-अहं अज्जवपुत्तो कणिट्ठो, बंधुमणापुच्छिय जेहस्स चित्ताणुवत्तीए पवइओ । भाउगम्मि उवरए ‘मा अणभिजाओ होहं' ति तं दद्रुमागतो । तीए भणियं-अहं सा नाइला, तुम्भेहिं पुण बहुं कालं तवो चिण्णो, तं दटुं जमेत्थ 5 इहमागया, ममं ता केरिसं वहुत्तणं इमेण कालेण । सुणह इदं-तुब्भेसु पवइएसु साहुणो साहुणीओ य गुरुजणेण पूइज्जमाणाइं अयंति, सगिहे वसंति । तेहिं कयाइ कहियं अक्खाणयंपमत्तयाए लद्धमहिसजम्मणो माहणदारयस्स कहा एगो किर माहणो उवरयभजो डहरगं दारगं गहेऊणं निग्गओ गेहाओ, सुद्धमोक्खमग्गमन्नेसमाणो साहुसमीवे उवलद्धसब्भावो पवइओ । सो पुण दारगो सीयभोअण-विरस10 पाणग-अणुवाहण(वाणह)-कक्खडसेन्ज-असिणाणाइसु सीयमाणो संतेण जयणाए किंचि कालं वड्ढाविओ । अन्नया भणइ-वच्चामि खंत !, अगारवासं वसामि त्ति । तेण परिचत्तो, 'अलं मे तुमे निद्धम्मेणं' । सो गतो सहवासं, तत्थ पञ्चभियाणियाओ, उवस्सिओ य एगस्स माहणस्स ठिओ घरे । केणय कालेण य से दारिया दत्ता, कुणइ कम्मं भोगपिवासितो। . विवाहकाले य चोरेहिं मिहुणगं चेव वहियं । सो भोगपिवासिओ अट्टज्झाणविसए वट्टमाणो 15 कालगतो महिसो जाओ। ___ सो वि पिया से कयदेहच्यातो गतो देवलोगं । तेण पलोइओ पुत्तसिणेहेणं महिसो जातो । सोयरियरूवं च काऊण कीओ णेणं गोवहत्थाओ । तओ लउडेणं हणमाणा णिति णं सोयरिया । खंतरूवं च काऊणं देवो दंसेइ से पुरओ अप्पाणं । तं च पस्समाणस्स चिंता जा- या 'कत्थ मन्ने एरिसं रूवं दिट्टपुत्वं ?' ति, तदावरणिजखओक्समेण जाइस्सरणं समुप्पन्नं । 20तओ 'खंत ! परित्तायसु ममं ति रवति । खंतेण भणिया समतिवियप्पिया सोयरिया एस मे खुडगो, सोयरिका! मा णं पीडेह । तेहिं भणिओ-एस तुझं न सुणइ, अवसरसु । जाहे णेण जाणियं 'पडिवज्जइ मग्गं' ति ताहे अब्भत्थिएहिं मुक्को । अणुसासिओ देवेण । दिट्ठभओ पडिवन्नो वयाणि । कयभत्तपञ्चक्खाणो सोहम्मे कप्पे देवो जाओ॥ पिउणा नित्थारिओ तिरियदुग्गईओ। तुभं पुण जेट्ठोभाया सुरलोगं गतो, तुम्भं साहुरूवे 25 दह्रण न पुण पडिबोहणे चित्तं काहिइ ? । तुब्भे य पमत्ता अणियते जीविए कालं काऊण मा संसारं भमिहह, नियत्तह गुरुसमीवं ।। ___ एयम्मि देसयाले तीए माहणीए दारगो पायसं भुंजिऊण आगतो भणइ-अम्मो! आणेह कोलालं जाव पायसं वमामि, ततो पुणो भुंजीहं अईवमिट्ठो, पुणो दक्खिणाहेउं अन्नत्थ भुंजामि । तीए भणियं-पुत्त! वंतं न भुंजइ, पुणो अलं ते दक्खिणाए, वच्छ ! अच्छ30सु सुहं ति। १ से गि° ली ३ ॥ २ °याणिओ ली ३॥ ३ हपरिच्चा ली ३ उ० ॥ ४ डेहिं ह° उ० ॥ ५ °णं । संतप्पमा ली ३।°णं । तस्स पस्समा० उ०॥६ °हणदार संसं० उ० विना ॥ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सागरदत्त-सिवकुमारभवसंबंधो] कहुप्पत्ती । तं पि से वयणं सोऊण बुद्धी जाया-सुङ भणइ माहणी 'वंतासी दुगुंछिओ होहिइ' त्ति । तओ भणइ नायलं-वञ्चामि गुरुसयासं अणुसासिओ तुमए, काहं परलोगहियं, पस्सामि ताव सयणं ति । तीए भणिओ-किं सयणेणं मे दिटेणं वाघायकरेणं? , वैचह, सकजे निच्छिओ होइहि । अहं पि साहुणिसमीवे पवइस्सं ति । तं च वयणं पमाणं कुणंतो वंदिऊण जिणबिंबाणि पडिनियत्तो । गुरुसगासे आलोइयपडिक्कतो निधियारो सामण्णम- 5 णुचरेऊण कालगतो सक्कस्स देवरण्णो सामाणिओ जातो। सागरदत्त-सिवकुमारभवसंबंधो भवदत्तो ठिइक्खएणं चुओ पोक्खलावइविजए पोंडरगिणीए नयरीए वइरदत्तस्स चक्कवट्टिणो जसोहराए देवीए गंभ उववन्नो । तीए य समुहमजणडोहले समुप्पन्ने । ततो राया महया इड्डीए सीयं महानइं समुदर्भूयं गतो । तत्थ य जसोहरा देवी मजिआ 10 विणीयडोहला तत्थेव पुण्णे पसवणसमए पसूया कुमारं पसत्थलक्खणोववेयं । तस्स य डोहलगुणसूइयं कयं नामं 'सागरदत्तो' त्ति । सो सुहेण वड्डिओ गहियकलाकलावो य पत्तजोवणो तरुणजुवइविंदसहितो वणगओ इव करेणुपरिकिन्नो अभिरमइ। . पासायगओ य कयाइ पस्सइ मेरुसरिसप्पमाणं बलाहगं नयणमणोहरं । जह कहिजइ रिसीहिं मेरू तारिसो इमो जलहरो। जइ य एरिसो मेरू तो सच्चं देवरमणो । सो य तेण 15 सपरियणेण दीसमाणो जलबुब्बुओ इव खणेणं विलीणो । तं च उवसंतो चिंतेइ-एरिसी नाम सोहा नयणामयभूया खणेण विणट्ठा, मणुस्साणं पि नूणं एरिसीओ रिद्धीओ विणासपज्जवसाणाओ । जो वि इमो सरीरसमुदाओ सो वि न नजइ, कम्मिइ समए पडिहिइ। तं जाव देहो निरुवद्दवो ताव परलोयहि कायर' निच्छियमती अम्मा-पियरमापुच्छइ । तेहिं कहिंचि विसं जिओ अणेगरायसुयसयपरिवारो अमयसागरस्स अणगारस्स समीवे 20 पवइतो, गतो य सुओयहिस्स पारं । विसुज्झमाणचरित्तस्स य से ओहिनाणं समुप्पण्णं । - भवदेवो वि देवलोयाओ चइऊण तत्थ विजए वीयसोगाए नयरीए पउमरहस्स रण्णो वणमालाए देवीए पुत्तो जाओ सिवो नाम । कमेण परिवड्डिओ, जोवणत्यो य रायसुयाहिं सरिसजोवण-लायन्नाहिं सहिओ पासायगओ अभिरमइ। सागरदत्तो य अणगारो गणपरिवुडो विहरमाणो वीयसोगाए नयरीए उजाणे समो-25 सरिओ। मासखवणपारणए य कामसमिद्धेण सत्थवाहेण गिहागओ पडिलाहिओ । तओ तस्स दव-भाव-पडिगाहगसुद्धिनिमित्तं वसुहारा पडिया । सुयं च सिवकुमारेण । सो सायरं वंदिउं निग्गओ । सागरदत्तो य चउदसपुबी सिवकुमारस्स सपरिवारस्स केवलिपणीयं धम्म आयक्खइ । संसयतिमिराणि य जणस्स जिणो विव विसोहेइ । कहंतरे य सिवकुमारो भणइ-भयवं! तुम्भं मे पस्समाणस्स सिणेहो वड्डइ, हिय-30 १ नाइलं उ० ॥ २ वच्चेह ली ३ ॥ ३ गब्भे उ०॥ ४ भूइं उ० विना ।। ५ कलाविहाणो य उ०॥ ६ अणगारस्स इति कसं० विना न ॥ ७ सुयउय° क ३॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ वसुदेवर्हिडीए [ जंबुपुवभवकहाए सागरदत्त यस्स परा निबुई, तं किं मन्ने अत्थि कोइ yaभविओ सयणसंबंधो तुब्भं मम य होज्जा ? । ततो सागरदत्तेण ओहिणा आभोएऊण भणिओ – सिवा ! इओ तइयभवे जंबुद्दीवभर महाजव तुमं सि मे भाया कणिट्ठो आसी, पाणेहि वि पिययरो | मया वि सिणेहेण मंदसद्धो वि होऊण पधाविओ | देवलोगे वि णे अणंतरभवे तहेव पीई आसी । 5 इयाणि पुण वीयरागयाए न मे विसेसो सयणे परजणे वा । तं च सोऊण सिवकुमारो भाइ – 'भयवं ! एयमेयं, जहा भणह तुम्भे अविता - इो । शेयइ मे जिणवयणं, भीओ म्हि संसरियवस्स, तं जाव ताव अम्मा-पियरो आपुच्छामि, तओ तुब्भं पायमूले हियमप्पणो करिस्सं' ति बंदिऊण सगिहमागतो, अम्मा- पियेंरो आपुच्छर -- सुतो मे धम्मो सागरदत्तस्स अणगारस्स समीवे । विसज्जेह मं, पवइस्सं । 10 तेहिं भणिओ - पुत्त ! किह तुमं अम्हे विसज्जेहामो, तुमायत्ता मे (ने) पाणा, मा मे (ने) परिचयसु । तओ सो तेहिं निरत्रभमाणो कयनिच्छयमणो मणसा परिचत्तगिहवासो 'सीसो हं सागरदत्तस्स अणगारस्स' त्ति सबसावज्जजोगविरओ मोणेण ठिओ । पसत्थज्झाणो बहुप्पयारं छंदिओ भोयणेण । जाहे न कस्सइ वयणं करेति ताहे संविग्गेण परमरणरणा सीलवणो दढधम्मो इब्भपुत्तो समणोवासओ सद्दाविऊण ( ग्रंथाग्रं - ६०० ) 15 भणिओ - पुत्त ! सिवकुमारेण पवज्जाभिलासिणा अम्हेहिं अविसजिएण मोणं पडिवन्नं, संपयं भोक्तुं न इच्छति, तं जहा जाणसि तहा णं भोयावेहि, एवं करेंतेण 'अम्ह जीषियं दिन्नं' मणे ठविऊण घत्तसुविन्नभूमिभागो असंकियं उवसप्पसु णं ति । ततो सो पणओ 'सामि ! करिस्सं उत्तं' ति उबगतो सिवकुमारसमीवं । निसीहियं काऊण, इरियापडिकतो 'बारसावत्तं' ति किइकम्मं काऊण, पमजिऊण 'अणुजाणह में ति 20 आसीणो । सिवकुमारेण चिंतियं - एस इब्भपुत्तो अगारी साहूण विणयं परंजिऊण ठिओ, पुच्छामि ताव णं । तेण भणिओ-इभपुत्त ! जो मया गुरुणो सागरदत्तस्स समीवे साहूहिं विणओ पंउज्जमाणो दिट्ठो सो तुमे पडतो, तं तुमं कहेह, किह न विरुज्झति ? । दढधम्मेण भणिओ-कुमार ! आरहए पवयणे विणओ समणाणं सावयाणं च सामन्नो । 'जिगवयणं सच' ति जा दिट्ठी सा वि साधारणा । समणा पुण महवयधरा । अणुवैरणो सावगा, 25 जीवा - ऽजीवाहिगमं बंध - मोक्खविहाणं च आगमेति । सुए वि साहवो सम्मत्तसुयसागरपारगा । तवे दुवालसवि के विसेसं ? ति । तं अहं सावगो तुमं समीवमागतो, कहेह किंनिमित्तं भोक्तुं न इच्छछ ? त्ति । सो भाइ- सावग! ममं अम्मापियरो न विसज्जंति निक्खमिमणं, ततो मया परिचत्तो भावओ गिहावासो, जाव जीवामि ताव पवइओ हं । तेण भणिओ – कुमार ! जइ तुभे मुक्कगिहावासा ता सुहु, कयकज्जस्स अजुत्ता निराहारया, १ सिव ली ३ मो० सं० उ० ॥ २ भीओ हि म्हि ली ३ | ३ च्छामो कसं विना ॥ ४ "यरमा क ३ उ० विना ॥ ५ रुज्झमा ली० य० सं० ॥ ६ जयं कसं० संसं० उ० ॥ ७ साहुवि° उ० ॥ ८ पकुञ्ज ली ३ विना ॥ ९ ज्झते ते ? । दृढ° ली ३ ॥ १० व्वयधणा सा क ३ || ११ भावओ इति कसं० उ० विना न ।। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिवकुमारभवो अणाढिउप्पत्ती य ] कहुप्पत्ती । २५ साहगस्स पुण सरीरं धम्र्मस्स साहणेहेतुं तं आहारेण विणा विणसेज्जा, तेण अणवज्जो आहारो जइजणस्स अविरुद्धो, तं तुभे फार्सीएसणिज्जं जवणमेत्तं भुंजमाणा निवाणफलसाहगा भविस्सह । ततो भणति - इब्भपुत्त ! कहमहं इहगए फासुएसणिज्जं आहारिस्सामि ? | दढधम्मेण भणिओ - कुमार ! तुब्भे साहुभूया, अहं अज्जप्पभिइ तुब्भं सीसो इह अणवज्जेणं पाण-भोयणेणं वेयावच्चं करिस्सं, कुह मे विसग्गं । तओ सिवकुमारेण 5 भणिओ—तुमं सि जिणवयणविसारतो कप्पा - Sकप्पविहिष्णू, तं जइ 'मया अवस्सभोत्त मन्नसी तो छट्ठस्स भत्तस्स आयंबिलं पारणं होउ । 'तह' त्ति दढधम्मेण पडियं । सो से बंध मोक्खहं कहेइ । पारणगकाले य जहाभणियं भत्त-पाणमुवणेति । तस्सेवं [ सिर्वैकुमारस्स ] अंतेउरमज्झगयस्स सारयगगणदेसस्सेव विमलसहावस् अपरिवडियधम्मियववसायस्स दुवालस वासाणि विक्कताणि । तओ समाहीए कयदेहप - 10 रिचाओ बंभलोगे कप्पे इंदसमाणो देवो जाओ । जारिसी य बंभस्स देवरणो जुई तारिसी तस्स वि आसि । एस दससागरोवपरिक्खएण चुओ तो सत्तमे दिवसे उसभदत्तस्स इस धारणी पुत्तो भविस्सति । एएण तवतेएण जुईसंपदा एरिसिति ॥ एवं च भयवओ सोऊण वयणं अणाढिओ जंबुद्दीवाहिवई देवो परमपरितोसवियसियहिययकमलो उट्ठओ, तिवई वंदिऊण, अप्फोडेऊण, महुरेण सद्देण भणति 'अहो !15 मम कुलं उत्तमं ति ॥ तस्स य कुलपसंसावयणं सोऊण सेणिओ राया पुच्छइ-भयवं ! एस देवो सकुलपसंसणं कुणइ केण कारणेणं ? ति । भगवया भणियं, सुणाहिअणाढियदेवस्सुप्पत्ती इहेव नरे गुत्तिमई नाम ईभत्तो आसि । तस्स दुवै पुत्ता, उसभदत्तो जिण-20 दासो य । तत्थ जेट्ठो सीलवं, कणिट्ठो पुण जिणदासो मज्ज - वेस - जूयम्पसंगी । उसभदतेण सयणविदितं काऊण परिचत्तो 'अभाया अज्जप्पभिई में' त्ति । सो अन्नया बलवइणा जयकारेण सह रममाणो आयं विसंवायंतेण आउहेण आहओ । उसभदत्तो सयणीऽणुणीतो - जिणदासं वसणदोसदूसियं परित्तायसु, तओ जसभागी भविस्ससु ति । सो गतो तस्स समीवं । तेण य तदवत्थेण भणितो - अविणीयस्स मे अज्ज ! खमसु, परलोगपट्ठियस्स 25 उवएससहातो होहि त्ति । उसभदत्तेण आसासिओ - जिणदास ! मा विसायं वच्च, अहं तह जत्तं करिस्सं जहा जीवसि । सो भणई - ' न मे जीवियलोभो, भत्तं पञ्चक्खाइस्स' ति कए । १ °म्मस्साह° उ २ ॥ २ गो ३ उ २ विनाऽन्यत्र - नाहेतुं तं क ३ । णत्थं तं ली ३ ॥ ३ तुज्झे ली ३ ॥ ४ सुयं एक ३ ॥ ५ उ २ विनाऽन्यत्र - जमित्तं भुंजह, निव्वा' ली० य० ॥ ६ कुण मे कसं ० उ० ॥ ७ सं भोत्तव्वं ति मन्नेसी उ २ ॥ ८ विइक्कं° उ २ ॥ ९ 'गक° ली ३ | १० मकालपरि° उ२ ॥ ११°ए भा रियाए पु° उ २ ॥ १२ एयं उ २ ॥ १३ वतिं छिंदिऊण कसं० उ २ ॥ १४ ° वो कुल° उ २ ॥ १५ इब्भो आ° उ २ ॥ १६ जायं क ३ ॥ १७ जणु शां० ॥ १८ °ययं मे ली ३ ॥ १९°इ अज्ज ! न मे उ२ ॥ * कोष्टान्तर्गतोऽयं पाठः टिप्पनकमन्तः प्रविष्टमाभाति ॥ व० [हिं० ४ F Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [वसुदेवचरियउत्पत्ती निबंधे वोसहारंभपरिग्गहो विहीए आराहियपइन्नो कालं काऊण जंबुद्दीवाहिवई जातो। 'जेहस्स मे भाउगस्स चरमकेवली पुत्तो भविस्सइ'त्तिं बुद्धीए कुलप्पसंसणं काऊण गतो त्ति । विजुमालीदेवे य गते देवीओ पसन्नचंदं केवलिं पुच्छंति-भयवं! अम्ह इओ विज्जुमालिणा देवेण विउत्ताणं होज पुणो समागमो? त्ति । तेण भणियाओ-'तुब्भे 5 इहेव नयरे वेसमण-धणद-कुबेर-सागरदत्ताणं इब्भाणं धूयाओ भविस्सह, तत्थ भे एतेण य देवेण मणुस्सभूएण सह समागमो भविस्सइ, सह तेण य संजममणुपालेऊण गेविजेसु देवा भविस्सह'त्ति वागरिए वंदिऊण गयाओ । वसुदेवचरियउप्पत्ती तवविभूइं च से सेणिओ राया सोऊण पुच्छइ–भयवं! केवइया जीवा तवं इहं 10 काऊण तब्भव एव फलमणुभविसं ?, परभवे वा केवइया सुकयफलं? ति । भयवया भणिओ-'इहलोगफलतवस्सिणो धम्मिल्लाइणो अणेगेऽइकता, परलोगे सुर-मणुयसुहं तवमोल्लकीयं ओस प्पिणिकाले वसुदेवाई' त्ति भणिए समुप्पन्नकोऊहल्लो पणतो पुच्छतिकहं भयवं! वसुदेवेण सम्मत्तं लद्धं ? कहं वा तवो चिन्नो ? कहं तस्स फलं सुर-नरेसु पैत्तं ? ति कहेह । ततो भगवया सेणियस्स रण्णो सबन्नुमग्गेण वसुदेवचरियं कहियं । 15 तं च पयाणुसारीहिं अणगारेहिं अभयाईहि य धारियं। ततो धम्म-अत्थ-काम-मोक्खे उवदंसयंतेहिं कहियं जहाधरियं अज वि धरइ त्ति ॥ ATAN ॥ एसा कहाउप्पत्ती ॥ MKORA अं०६५६अ०१७ १ पयत्तो (लो) कसं० उ २ विना ॥ २ त्ति तुहीए उ २॥ ३ °स्सं ति प° शां० विना॥ ४ल्लादी अणेगा अइ° उ २ ॥ ५ भुत्तं उ २ ॥ ६ °क्खेहिं उवदंसिथं तेहिं उ २ विना ॥ ७°ती सम्मत्ता ३२॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिल्लहिंडी। ततो भयवं सेणियस्स रन्नो सबण्णुमंग्गेण धम्मिल्लचेरियं कहेउमारद्धो । तं ताव तुमं पि अवहिओ मुहुत्तागं निसामेहि त्तिधम्मिल्लचरियं ___ अत्यि कुसग्गपुरं नाम नयरं बहुदिवसवन्नणिजं । तत्थ य जियसत्तू नाम राया। तस्स य देवी धारिणी नाम । तत्थ य नयरे अन्नकुडंबिजणमणोरहपत्थणिज्जेवित्थिण्णविहवसारो, 5 धण-सील-गुण-सुएहि य सकम्मवित्थारियकित्ती, सुरिंदसारसरिसरूवविहवो सुरिंददत्तो नाम सत्थवाहो । तस्स य भज्जा कुलाणुरूवसरिसी धम्म-सीलसंपण्णा नामओ सुभद्दा नाम । तीसे य किल उउकालविसेसेण गब्भो संभूओ । कमेण य से दोहलो जातो-सबभूतेसु अभयप्पयाणेणं, धम्मियजणेण वच्छल्लया, दीणाणुकंपया बहुतरो य दाणपसंगो । ततो सो नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वितीकंताणं जातो।10 णामधेयं च से कयं, जं से माऊए धम्मे दोहलो जातो तेण होतु 'धम्मिल्लो' त्ति । ततो पंचधावीपरिग्गहिओ सुहंसुहेण वड्डिओ। कालेण य लेहाइयासु गणियप्पहाणासु सउणरुयपज्जवसाणासु बावत्तरीसु कलासु अभिगमो णेण कतो। उवारुहंतनवजोबणस्स य से अम्मापिऊँहिं कुल-सीलसरिसाणुरूवा तम्मि चेव नयरे धणवसुस्स सत्थवाहस्स भजाए धणदत्ताए धूया निययमेहुणया जसमती नाम दारिया 15 सिरी विव पउमरहिया, सिरिसमाणवेसा । तीसे सह कल्लाणं से वत्तं । ततो माणुस्सयभोगरइपरम्मुहो सत्गहणरत्तहियओ कमेणं कालं गमेइ । ततो अन्नया कयाइ सस्सू से धूयदसणत्थं सुयाघरमागया । सम्माणिया य घरसामिणा विहवाणुरूवेणं संबंधसरिसेणं उवयारेण । अइगया य धूयं द₹ण, पुच्छिया अ णाए सरीरादिकुसलं । तीए वि पँगतविणीयलज्जोणयमुहीए लोगधम्मउवभोगवजं सवं जहाभूयं 20 कहियं । तं जहा १मएण ली ३ ॥ २ °चलियं शां०॥३°त्तू रा° उ २ विना॥४रे इब्भकुटुं० ली ३ ॥५जविह उ २ विना ॥ ६ जणे व० सं० उ २॥ ७ मादये शां०॥ ८ °ण संव° उ २॥ ९ ऊणं कुल उ२॥ १० जाए धूया उ २ विना ॥ ११ नियकप्पेधुणया शां०॥ १२ थाराहण° उ २ विना ॥ १३ , पु० उ २॥ १४ पगतिवि° उ २॥ ___ * सर्वेष्वादशेषु क्वचिदू "धम्मिल्ल" क्वचिच "धम्मिल्ल" इति पाठो दृश्यते। अस्माभिस्तु सर्वत्र प्रसिद्धः "धम्मिल" इत्येव पाठ उपन्यस्तः॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मल्ल हिंड [ वसंततिलयाप संगो पौसि कैप्पि चउरंसिये रेवाय (प) यपुणियं, सेडियं च गेण्हेप्पि ससिप्पभवण्णियं । मई सुयं पि एक्कल्लियं सयणि निवण्णियं, सवरत्तिं घोसेइ समाणसवणियं ॥ २८ तो सा एयं सोऊण आसुरुत्ता रुट्ठा कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणी इत्थीसहाववच्छल्लया पुत्तिसिणेहेण य माऊए से सगासं गंतूण सवं साहिउं पयत्ता । जहाभूत्थं तं 5 सोऊण से माया आकंपियसरीर हियया बाहंसुपप्पुयच्छी णिरुत्तरा तुहिक्का ठिया । पच्छा य णाए ससवहं पत्तियाविया । ततो सा तं धूयं आसासिऊण अप्पणा नियघरं गया । माया य से इणो मूलं गंतूण सवं जहाभूयं परिकहेइ । तेण य भणिया - अजाणुए ! जव बाल विज्जा य अणुरत्तबुद्धी णणु ताव ते हरिसाइयवं, किं विसायं वच्चसि ? । अहिणवसिक्खिया विज्जा अगुणिज्जंती णेहरहिओ विव पईवो विणासं वच्चइ, तं मा 10 अयाणुगा होही । जाव बालो ताव विज्जाउ गुणेउ । तीए पुत्तवच्छलाए भणियं - किं वा अब पढिएणं ?, माणुस्सयसुहं अणुभवउ । 'उवभोगरइवियक्खणो हो' ति चिंतेऊण पणा वारिज्जतीए वि ललियगोट्ठीए पवेसिओ । सो य अम्मा-पिउलावो धाईते से सबो कहिओ । तओ सो गोट्ठियजणसहिओ उज्जाण - काणण-सभा-वणंतरेसु विन्नाण-नाणाइंस एस अण्णोष्णमतिसयंतो बहुं कालं गमेइ । I 15 वसंततिलयागणियापसंगो ओ सो सत्तुदमणो राया केणइ कालेण वसंतसेणागणियाधूयाए वसंततिलयाए पढमं नट्टविहिदंसणं पेच्छिउकामो गोट्ठियजणमहत्तरए भणइ - वसंततिलयाए नट्टविहिदंसणविणिच्छयं दट्टुकामो, पासणिए देह त्ति । तेहि य धम्मिल्लो नट्टपासणितो दिन्नो । अन् य रणो आयरिया (?) । ततो सहोवविट्ठेसु राया उवविट्ठो । ततो तम्मि मणोरहदंसणीए 20 नट्टपसत्थे भूमिभाए केयलायण्णसिंगाराभरणविलासावेसमहुरभणियणट्टपसत्थं, सत्थोवंदिट्ठपयनिक्खेवं, वण्णपरियट्टयं हत्थर्भमुहामुहं, बिब्बोय-णयणसंचारणजुत्तं, पत्थना - अच्चब्भुअं, हत्थकरणसंचारणविवििहत्तं, तंती - संरे - ताल - गीयसद्दसम्मीसं सा पणच्चिया वसंततिलया । तहिं च दिवसमाणे णट्टावसाणे णच्चिए संवपासणिएहिं 'अहो ! ! ! विम्हउ' त्ति सहसा उक्कुट्टं । रण्णा य पुच्छिओ - धम्मिल्लै ! केणं पगारेणं णच्चिय ? त्ति । तेण य 25 णट्टगुणेण ( ग्रंथाग्रं - ७ ० ) पसंसिऊण विन्नविओ - देव ! सुरवहूणट्टसमाणं णच्चियति । -७०० १ कप्प उ २ विना ॥। २ °सिउ खोययपु° उ२ ॥ ३ ली ३ उ० विनाऽन्यत्र - तो सा एणं सोऊ शां० । तं सोऊ° वा० ॥ ४ पयणो डे० ॥ ५ अजाणए ली ३ ।। ६ उ २ विनाऽन्यत्र – °हिये उ° क ३ गो ३ । °हिय उ° ली ३ ॥ ७ य रिउआय° शां० ॥ ८ णोहरसुहदंस उ २ ॥ ९ कयरूयला उ२ ॥ १० वादि ली ३ ॥ ११ भमुहं ली ३ ॥ १२ 'सुर' ली ३ ॥ १३ सव्वपासव्व ( स्थ) पासिएहिं ली ३ ॥ १४°ल्लो उ० ॥ * पार्श्वे कल्पयित्वा (स्थापयित्वा ) चतुरत्रिकां ( पट्टिकां ) रेवापयःपूर्णिकाम् (?), सेटिकां च गृहीत्वा शशिप्रभवर्णिकाम् । सुप्ताम् एकाकिनीं शयने निर्वर्ण्य अपि, सर्वरात्रि घोषयति खमानसवर्णितम् ( समान - सवर्णिकम् ) ॥ इति च्छाया ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोंकणयबभणकहा ] धम्मिल्लचरियं। ततो राइणा परितुटेण रायाणुरूवेणं पूआभिसक्कारेणं संपूइया वसंततिलया विसजिआ 'सयं भवणं वञ्चसुत्ति । तीए धम्मिल्लो सविणओवयारं विण्णवेऊणं पवहणे आरुहाविओ, अप्पणा वि य आरूढा, गतो य तीए घरं । तओ सो तीए हसिय-भणिय-गीय-रेमिय-कलागुणविसेसेसु य कलागुणे अणुभवमाणो, नवजोबणगुणे य सोवयारे अणुभवमाणो अइकंतं पि कालं न याणइ। 5 ततो से अम्मा-पियरो नियगचेडीए हत्थे पैइदिवसं अद्धसहस्सं वसंततिलयामाऊए विसजति । ततो से अणेगपुवपुरिससमजियविउलो कुडुंबसारो तस्स भवियवयाए सुक्क-सण्हवालुयामुट्ठी विव घिप्पंतो चेव ओसरिओ। सुरिंददत्त-सुभदाणं परितावगब्भो आलावो ततो सा पुत्तवच्छला अम्मया दीहं निस्ससिऊण 'हा पुत्त! हा पुत्त!' विलवित्ता 10 परुण्णा । सत्थवाहेण भणिया-पुत्तवच्छले! किमिदाणिं रोदसि ?, ममं तदा न सुणेसि भण्णमाणी । ततो सा रुवंती भणइ-मया पुत्तवच्छलअइरित्तहिययाए न नायं, अहो! मे वंचिओ अप्पा। तओ तेण भणिया-अइ पुत्तवच्छले! उज्जुया सि, तओ तणारयं गहेऊण पलित्तं अभिगम्मइ, मा संतप्पसु । अप्पणा चेव य ते कओ दोसो, जहा तेण कोंकणएण बभणएण कयं । ततो तीए संलत्तं-किं वा कोंकणएण बंभणेण कयं ? । ततो तेण 15 लविआ, सुणसुसकयकम्मविवागे कोंकणयबम्भणकहा अस्थि मगहा नाम जणवओ । तस्संतिए पलासगामो नाम गामो । तत्थ कोंकणओ नाम बंभणो परिवसति । तेण य खेत्तब्भासे समिरुक्खो रोविओ । तत्थ य तेण देवया ठविया । सो य बंभणो वरिसे वरिसे तम्मि देवयाए रुक्खमूले बंभण-किवण-वणीमगाणं 20 पभूयमन्न-पाणं देइ, छगलं च निवेदेति । एवं च सो कालेण बहुएण कालगतो। ततो गिद्ध-गढित-मुच्छित-अज्झोववण्णो तवत्तियाए य तिरिक्खजोणियनिवत्तियाउओ अप्पणो चेव घरे छगलियापुत्तो जातो।। ततो केणइ कालंतरेण तस्स पुत्तेहिं 'अम्हाणं उवरओ ताओं' त्ति काऊणं भोयणं सज्जावियं । ततो ते मित्त-बंधवसहिया उवाइउं जंइउं गया । छगलो वि य मंडेउं तत्थेव नीओ। 25 गंध-पुप्फ-मल्ल-पूयाविसेसेण य अच्चिया देवया । घरमहत्तरएहि य भणियं-छगलओ उवणिजउ । ततो तसं पुत्तो देवयदिण्णो णाम छगलयं आणेउं गतो । सो य तं गलए बंधिऊण बेबयंतं आणेइ । १परमतुडे° उ २ विना ॥ २ रसिय° ली ३ ॥ ३ पयदि डे० ॥ ४ अट्ठस डे० उ २॥५°जिमओ वि. उ २॥ ६ भारं ग° उ २ विना ॥ ७ भणेण ली ३ शां० ॥ ८ विसरुक्खो शां०॥ १ जजिय - २॥ १० स्स देव उ २ विना ॥ ११ °ण बुब्बुयंतं शां० विना ॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० धम्मिल्लहिंडीए [वसुभूइबंभणक्खाणय तेण य समएणं समणा समियपावा साहुजोग्गदेसभाए रुक्खाभासे वीसमंति । सो य तेण पएसेण आणिजइ । ततो अइसयसमावण्णेणं तत्थ साहुणा भणिओ सयमेव य रुक्ख रोविए, अप्पणियाए वितड्डि कारिया । उवाइयलद्धया य से, किं छगला! 'बे बि' त्ति वाससे ॥ 5 तं च साहुणो वयणं तस्स पुत्तेण सुंयं । सो य छगलओ तुहिक्को ठितो । ततो से पुत्तो साहुसगासे उवगंतूण भणति-किं भयवं! तुब्भेहिं एस छगलओ भणितो जेण तुण्हिक्को ठितो ? । ततो तेण साहुणा अणलियवयणपरमत्थेण भणिओ-देवाणुप्पिया! एस छगलओ तुभं पिया भवति । एय तुम्भं साहति-अहं ते पिया, मा मं मारेह त्ति । तुब्भे न परियच्छह । ततो तेण बंभणपुत्तेण साहू भण्णत-किहे पुण अम्हेहिं पत्तियवं ? 10जहा 'एस अम्हं पिया भवति' त्ति । ततो सो साहू पुबबुत्तंतं साहइ, सहेउयं सकारणं साभिण्णाणं से परिकहेइ । ततो से पुत्तो तद्दरिसाविओ पायवडिउट्ठिओ य, तेसिं भाउयाण सवं जहाभूअत्थं साहइ। ततो ते परमविम्हयसमावण्णा साहुणो पायमूलं गंतूण वंदित्ता, मित्त-बंधव-सयण-परियण सहिया सवे संवेगसमावण्णा सीलबयाई घेत्तूण छगलयं च सघराइं गया। छगलओ वि 15 साहुपसाएण मुक्को । ताणं चिय तप्पभिई अरहंतदेवया, साहुणो य दक्खिणेया ॥ तं एयं जहा तेणं कोंकणयबभणेणं सयंकयकम्मविवागजणियं दुक्खं संसारों य संपत्तो, एवं तुमए वि अप्पणो पुत्तो सयमेव संसारमहाकडिल्ले छूढो ॥ __ ततो तीए बाहभरंतनयणाए सगग्गरकंठाए महयादुक्ख-सोगाभिभूयाए भण्णति-न मए नायं, जहा वसुभूयस्स बंभणस्स पजतो भविस्सइ त्ति । ततो गैहवइणा भणिया20 को वा वसुभूयस्स बंभणस्स पजतो त्ति ? । ततो सा भणइ-सुणसु अजउत्तचिंतियत्थविवज्जासे वसुभूईबंभणक्खाणयं ते णं काले णं ते णं समए णं नंदपुरं नाम नयरं । तत्थ वसुभूई नाम बंभणो अज्झावओ परिवसइ । भज्जा य से जन्नदत्ता नाम । तीसे य दो पुत्तभंडाणि-सोमसम्मो पुत्तो, धूया य से सोमसम्मा। रोहिणी य से गावी । सो य बंभणो दरिदो । तस्स य 25 इक्केण धम्ममइणा गिहिणा खेत्तनियत्तणं दिण्णेल्लयं । तेण य तहिं साली रुत्तो । रोवेऊण य पुत्तं संदिसइ-पुत्त ! अहं नयरं गच्छामि, चंदग्गहणं भविस्सइ । तत्थ किंचि साहुपुरिसं दबनिमित्तं पत्थेमि । तुमं पुण एयस्स सोहणं परिरक्खणं करेज्जासि । ततो एएणं धण्णेणं, जं च आणेहामि, तेण तुब्भं सोमसम्माए य विवाहधम्मो कीरिहि त्ति । रोहिणी य वियाइस्सइ त्ति । एवं वदित्ता गतो सो।। १ग्गे दे° उ २ ॥ २ अयस क ३ गो ३॥ ३ सुणियं शां०॥ ४ °णत्ति ली ३ ॥ ५ °ह भण उ २ विना ॥ ६°हावुत्तं सा उ २ ॥ ७ तयष्प उ २ ॥८ भतेणं ली ३॥९°रो त सं० शां०॥ १०वि भइउजुयाए अप्प उ२॥ ११ भूताए ली३॥ १२ भूइस्स उ २॥ १३ गिह ली ३॥ १४ भूइबंउ २॥ १५ सम्मयाए गो ३ क ३ ॥ १६ कीरइ त्ति उ २ विना ।। Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसंतसेणाए वसंततिलयासण्णवणं] धम्मिलचरियं । तत्थ य अन्नया कयाइ नडो आगतो। सो य तस्स पुत्तो नडसंसग्गीए नडो जातो। धूया य से वंठेण पडिवण्णा गुविणी जाया । रोहिणीएं वि उकंतर्गहाए गब्भो पडिओ खेत्तसाली वि अक्कमिऊणं असोहिजंता तणा जाया । सो वि य बंभणो अकयपुन्नयाए रित्तओ चेव आगओ सालिखेत्तस्स रोहिणीए य आसाए । बंभणी य दीणवयणा परितप्पंती अच्छइ । बंभणेण घरं पवितॄण दिहा । सा अब्भुट्ठिया, दिण्णासण-पायसोएण 5 पुच्छिया बंभणी-कीस दुम्मण ? ति। ततो ताए नीससिऊण जहाभूयत्थो परिकहिओ। ततो णेण विसण्णहियएण बंभणी भणिया–पिच्छसु कयंतस्स परतत्तीतत्तिल्लस्स, अम्हं च भवियवयाए अण्णहा चिंतिया अत्था अण्णहा परिणामिया । ___ 'साली रुत्तो तणो जातो, रोहिणी न वियाइया । सोमसम्मो नडो जाओ, सोमसम्मा वि गम्भिणी ॥' 10 ततो सो एवं भणिऊण सुबहुयाणि य चिंतेऊण ठितो तुण्हिक्को ।। एवं मए वि अत्था अण्णहा चिंतिया अण्णहा होय त्ति-जहा वसुभूइबंभणस्स ॥ ततो सा गहवइणा भणिया-भद्दे ! पुवकयाणं निययाणं कम्माणं सुभा-ऽसुभफलविवागो होति । ततो सो गवती पुत्तविओगसोगसंतत्तहियओ कालगतो । माया वि य पुत्तविओयदुहट्टिया पइमरणेण य बलिययरं सोयदुक्खसंतत्तहियया पइमग्गगामिणी जाया । 15 जसमई वि घरं विक्केऊण कुलहरं गया । सवाभरणाणि य पडलए काऊण णियदासचेडीए हत्थे सेयर्वत्थपच्छादिते गणियाघरं विसज्जेइ । दिट्ठा य ते वसंतसेणाए । पुच्छिया य णाए दासचेडी-ए! किमेयं ?' ति । तीए भणियं-धम्मिल्लस्स भजाए पेसियं । ततो ताए विचिंतियं—एत्तिओ धम्मिल्लस्स घरसारो त्ति । 'किं मे आभरणेणं ?' ति दासचेडी भणइ-वञ्चे, तहेव धम्मिल्लस्सेव भजाते घरं । ततो अंगपडियारेण पल्लवएणं धम्मिल्लस्स 20 वित्तपरिक्खयनिमित्तं, पिउमाउविपत्तिकारणं, घरविक्कयं, जसमईए कुलघरगमणं, आभरणपेसणं च वंसततिलयाए सिटुं । पैच्छा धम्मिल्लेण सुयं । वसंतसेणाए वसंततिलयासण्णवणं तओ अन्नया कयाइ गणियामाया वसंततिलयं भणइ-पुत्ति ! निष्फलं दुमं पक्खिणो वि परिच्चयंति, परिसुक्के य नइ-दह-तलायादी हंस-चक्कवायप्पभियओ सउणगणा परिचयंति, 25 किं पुण अम्हाणं गणियाणं निवेणं पुरिसेणं ? । ता एस धम्मिल्लो खीणविहवो जातो परिच्चइजउ त्ति । ततो तीए लवियं-अंबो! मम अत्थेण न कज़, तम्मि गुणाणुगतो १ ए च उ° क ३ गो ३ उ २ ॥२ 'गब्भाए उ २॥ ३ य णं बं० डे० ॥ ४ हृय शां० ॥ ५ °भविवागा होति त्ति शां० ॥ ६ °वसणप° ली ३॥ ७°डी 'कि ली ३ उ २॥ ८ ताहे ताए ली ३ । ततो तीए गो ३॥ ९ च णेहि ध° उ २ ॥१० क ३ डे० विनाऽन्यत्र-चित्तपरिक्खयनि ली. य. गो ३ । चित्तपरिक्खणनि उ०॥ ११ एत्तो ध° ली ३ ॥ १२ भितओ उ २॥ १३ निद्धणेणं क ३ ॥ १४ अंब! क ३ । अम्मो ! उ २॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ धम्मिल्लहिंडीए [वसंतसेणाए वसंततिलयासण्णवण 1 अधिकतरो य सिणेहो मे । सेल-काणण-वणसंडमंडियाए पुहवीए एयस्स सरिच्छयं अहमन्नं न पेच्छामि । किं वा अत्थेणं मलसमेणं ? । अज्जउत्तमंतरेण य मा मं किंचि पुणो भणेज्जासि, जइ ते मए जीवंतीए कज्जं । एयस्स विप्पओगेणं हसिय-भणिय-रमिय-चंकमिते य से सुमरमाणी न जीविज्जा हं । एएण य विरहियाए मम जीविउवायं चिंतेहि त्ति । गणिया 5 भणइ - इ - होउ पुत्ति !, अलाहि, मज्झ वि य परमो मणोरहो, 'जो तुज्झं पियो सो मज्झं पिययरउ'त्ति वायाए सकलुसा भणिऊण, हियतेण बहुनियाड-क -कवड - मायाकुसला छिड्डोवाया मग्गमाणी विहरइ । I ततो य काले वच्चमाणे अण्णया कयाइ वसंततिलया व्हाया सुइपयाया भवित्ता आदसैणहत्थगया अप्पाणं पसाहेइ । माया य णाए भणिया – अम्मो ! आणेहि ताव अत्यं 10 ति । ततो सो तीसे निव्वुसणलत्तओ पणामिओ । ततो सा भणइ - अम्मो ! किं एस अलतओ नीरसो ? । ततो सा भणइ -पुत्ति ! किं एएण कज्जं न कीरइ ? । तीए भणिअं - भणइ -पुत्ति ! जहा एस नीरसो एवमेव धम्मिल्लो वि, नत्थि कति । ततो तीए लवियं - अम्मो ! एएण तुमं न जाणसि किं पि कजं कीरइ ? ति । [सा भइ - ] आमं, न याणामि । तीए भणिया - अयाणिए ! एएणं वत्ती वलिज्जइ, 15 ततो दीवओ बोहिज्जइ, मा अयाणिया होह, किह न कज्जं ? ति । एवं भणिया निरुत्तरवयणा हिक्का ठिया । आमं, अम्मो ! । तओ सौ ततो कइवएसु दिवसेसु गएसु सुहासणवरगयाए वसंततिलयाए पंडुच्छुक्खंडे पीलेऊण उवणेइ । ताए य गहिया, खाइउं पयत्ता, नर्थिं य सिं कोइ रसो । ततो सा भणइ - अम्मो ! किं एए नीरसा ? । ततो तीए लवियं- जहा एए नीरसा एवमेव धम्मिल्लो 20 वि । ततो तीए भणिया-अम्मो ! एएहिं ताव कज्जं कीरति । [सा भणति - ] किह कीरइ ? ति । ततो जाए भणिया - देवकुल- घराईणं लिप्पणत्थं चिक्खल्लो संखोहिज्जइ, तत्थ उवओगं वञ्चति त्ति । एवं भणिया निरुत्तरवयणा तुहिक्का ठिया । ततो पुणो वि काले वच्चमाणे तिलपूलयं सुज्झोडियं काऊणं उवट्ठाइ । ततो सा तं गहेऊण उच्छंगे झोर्डइ, नत्थि एक्को वि तिलकणओ । ततो मायरं भणइ - अम्मो ! नत्थि 25 तिला, कीस ते एस तिलपूलओ आणिउ ? त्ति । 'तीए भणियं - जहा एस पूलओ 'झोडियपप्फोडिओ वि, एवमेव धम्मिल्लो वि । नत्थि एएण किंचि कज्जं, ता अलाह एएणं । ततो सा भणइमा एवं भण, अम्मो ! एएहि वि कज्जं कीरइ ( ग्रन्थानं - ८०० ) 1 तीए भणियं – कहं ? । सा भणइ - अग्गिणा डहित्ता खारो कीरइ, ततो वत्थादीणं सोहणनिमित्तं उवउज्जइ । १ जीवेंतीए ली ३ ॥ २णि निय° २ ॥ ३ सयह' कसं ० उ २ ॥ ४ निच्छूस उ २ ॥ ५ सा डिभ° उ २ ॥ ६°त्थि एसि क ३ ॥ ७ सुज्झांडि° खं० ॥ ८ झाडे ली ३२ ॥ ९ ततो सा भणति जहा उ २ ॥ १० झाडि उ २ विना ॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायसक्खाणयं] धम्मिल्लचरियं । - ततो एवं भणिए पडिभणइ–किं तव पुरिसा न भविस्संति ? वसंततिलयाए भणियाअहो तुमं सि कयग्घा, जहा वायसा तह त्ति । ततो तीए लवियं-कहं वायसा कयग्ध ? त्ति । ततो वसंततिलयाए भणिअं-अम्मो! सुणसु लोइअसुईकयग्घयाए वायसक्खाणयं इओ य किर अतीते काले दुवालसवरिसिओ दुभिक्खो आसी । तत्थ वायसा मेलयं काऊण अण्णोण्णं भणंति-किं कायबमम्हेहिं ?, वड्डो छुहमारो उवढिओ, नत्थि जणवएसु वायसपिडियाओ, अण्णं वा तारिसं किंचि न लब्भइ उज्झणधम्मियं, केहियं वच्चामो ? त्ति । तत्थ वुढेवायसेहिं भणियं-'समुद्दतडं वच्चामो. तत्थ कायंजला अम्हं भायणेजा भवंति, ते अम्हं समुद्दाओ मच्छए उत्तारिऊणं दाहिंति. अण्णहा नत्थि जीवणोवाओ' संपहारेत्ता गया समुद्दतडं । ततो तुट्ठा कायंजला, सागय-ऽब्भागएण य सम्माणिया, कयं च तेसिं पाहुण्णयं । 10 एवं ततो तत्थ कायंजला मच्छए उत्तारित्ता देंति । वायसा तत्थ सुहेण कालं गति । __ तत्तो वेत्ते बारससंवच्छरिए दुभिक्खे जणवएसु सुभिक्खं जायं । ततो तेहिं वायसेहिं संपहारेत्ता वायससंघाडओ 'जणवयं पलोएह' त्ति पेसिओ, 'जइ सुभिक्खं भविस्सइ तो गमिस्सामो' । सो य संघाडओ अचिरकालस्स उवलद्धी करेत्ता आगतो। साहति य वायसाणं, जहा-जणवएसुं वायसपिंडिआओ मुक्कमाणीओ अच्छंति, उठेह, वच्चामो त्ति। ततो ते संप-15 हारेति-किह गंतवं ? ति । 'जइ आपुच्छामो नत्थि गमणं' एवं परिगणेत्ता कायंजले सद्दावेत्ता एवं वयासी-भागिणेजा ! वच्चामो। ततो तेहिं भणियं-किं गम्मइ ?। ततो भणंतिन सकेमो पइदिवसं तुम्हं अहोभागं पासित्ता अणुट्ठिए चेव सूरे । एवं भणित्ता गया । ___ एवमेयं तुमं पि वायससरिसौ. जाणामि, धम्मिल्लसंतिएण अत्थेण उद्धृया समाणी भणसि 'छड्डेह धम्मिलं' ति । एवं च तीए भणिया लजिया तुहिक्का ठिया । 20 ततो तीए धुत्तीए अइरागरत्तं वसंततिलयं जाणिऊण 'न तीरइ मोएउं' ति परिगणेऊण केब्बडदेवयानिमित्तं काऊण घरे आणंदो सैदाविओ। वसंततिलयाए य सबो सहिजणो निमंतिओ-गणियाओ दारियाओ य । आमंतियाओ य गणियाओ। ततो गंध-धूव-पुप्फ-भत्तेणं जहेसु घरदेवएसुं पच्छा धम्मिल्लो ण्हाओ पयओ, परमसुईभूओ, सबालंकारभूसियसरीरो लट्टे भोयणमंडवे खज-पेज-भोजावसाणे सजिए (?) सहियाजणपरिवारिओ वसंततिलयाए 25 सहिओ पाणं अणुभवति ।। धम्मिल्लनिवासणं तच्चिंता य ततो अइपाणपसंगेण अचेयणभूओ जाओ, परिदुब्बलएगवत्थो य नयरबाहिरियाए अ १ इयं सुई शां०॥ २ ते दुवा कसं० उ २ विना॥ ३ °हामा० उ २॥ ४ वासपिं० ली ३॥ ५ ली ३ विनाऽन्यत्र-कहिं व उ०। कहं व क ३ गो ३ ॥ ६ कागेहि ली३ विना ।। ७°ति सं° उ २ ॥ ८च सिं ली ३ शां० ॥ ९ वित्ते क ३॥ १० सं जाणामि ली ३॥ ११ विलया तु° उ २॥ १२ गो. वा. विनाऽन्यत्र-कवडदे कसं० संसं० ख० उ २ कडदे ली ३ मो०॥ १३ सजावि° उ २॥ १४ °यादा उ २॥ व.हिं. ५ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ धम्मिल्लहिंडीए [धम्मिल्लनिवासणं तचिंता य. दूरसामंते नेऊण छड्डिओ । पाभाइयसीयलेणं वाएणं आसासिओ समाणो परिबुद्धो अप्पाणं भूमीए पडिअं पेच्छइ । तओ य उढिओ समाणो चिंतिउमारद्धो-अहो! मुहुत्तंतररमणीयं गणियाहिययं विसमिव विवागफलं. सा नाम तारिसी पीई, सा मधुरया, अणुयत्तणा, पणओवैयारो य सवं कैयतवं. अवि य वेसविलयाण एसो, जाणामि कुलकमागओ धम्मो । धवलं खणेण काउं, खणेण मसिकुञ्चयं देति ॥ आसीविसर्स य भुयं-गमस्स रण्णे य वग्घपोयस्स । मचुस्स हुयवहस्स य, वेसाण य को पिओ नाम ? ॥ चोप्पडघडयं मसिम-क्खि पि रामेंति अत्थलुद्धाओ। 10 सिरिवच्छलंछियंगं, मुहाए विण्डं पि नेच्छंति ॥ अत्थस्स कए जाओ, वेसाणे वि नियमुहाई अप्पंति । अप्पा जाणं वेसो, परो गु किह वल्लहो तासिं ? ॥ एवं चिंतिऊण पच्छा गंतुं पयत्तो । बहुकालेण पुवदिद्वेण मग्गेणं किह वि निययघरं गतो। तत्थ वि अण्णाणयाए दारनिउत्तं पुरिसं पुच्छति-भाय! कस्स इमं घरं ? । तेण लवियं15 कस्स तुमं जाणसि ? [सो भणइ-] धम्मिल्लस्स त्ति । ततो सो पडिभणइ माया सोएण मया, पिया य गणियाघरे वसंतस्स ।। धम्मिलसत्थाहसुय-स्स कामिणो अत्थनासो य ।। ततो सो तं वयणं सोऊणं वजाहओ विव गिरिसिहरपायवो 'धस' त्ति धरणियले पडिओ । मोहावसाणे य उठेऊण चिंतिउं पयत्तो-'पिउ-माउविप्पओगदुक्खियस्स विभवर20हियस्स का मे जीविए आस ?' ति हियएणं सामत्थेऊणं नयराओ निग्गओ । जीवपरिचा गकयमईओ एवं जिण्णुज्जाणं नाणादुम-लया-गुच्छ-गुम्मगहणं, विविहविहगणादितं, परिसडिय-भग्ग-ओसरियभित्तिपासं मरियवनिच्छियमती तं अइगओ। ततो अयसिकुसुमसन्निकासेणं तिक्खेण असिणा अप्पाणं विवाडेउं पयत्तो । तं च से आउहं देवयाविसेसेण हत्थाओ धरणियले पाडियं । 'न वि सत्थमरणं में त्ति चिंतिऊण बहुए दारुए साहरित्ता 25 अग्गि पविट्ठो । सो वि महानदिदहो विव सीयलीभूतो । तत्थ वि न चेव मओ । ततो तेण विसं खइअं । तं पि य सुक्कतिणरासी विव हुयवहेण उदरग्गिणा से दडं । पुणरवि चिंते पयत्तो—'सत्थ-ऽग्गि-विसभक्खणेण नत्थि मरणं' ति तरुसिहरं विलग्गामि । ततो य से अप्पा मुक्को, तूलरासिपडिओ विव उवविठ्ठो ठिओ । ततो केण वि अविण्णायरूवेणं अंबरवायाए भणिओ ‘मा साहसं, मा साहसं' ति । ततो दीहं निस्ससिऊणं 'नत्थि एत्थ 30 विवाओं' त्ति चिंतापरो झियायतो चिट्ठइ । एवं च ताव एयं । १पडिबु० उ०॥२°ओ उव उ२॥ ३ कइत° उ२॥४°स्स भूयं शाविना ॥ ५०ण य नि उ २ विना॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगडदत्तमुणिसमागमो] अगडदत्तमुणिअत्तकहा । घसंततिलयाए पइण्णारुहणं __ इयरी वि वसंततिलया पभायकाले उहिए दिणयरे तेयसा जलंते मरण विप्पमुक्का समाणी मायरं भणति-अम्मो! कहिं सो धम्मिल्लो? त्ति । तओ तीए लवियं-को तेसिं जुण्णवंठाणमंतगमणं करेइ ? त्ति. पुत्ति! न याणामि ‘कहिं गतो' त्ति । ततो तीए नायं, जहा–'एयनिमित्तं चे अउबो ऊसवो कतो, तो एतीए एस दोसो' त्ति चिंतिऊण विमा-5 णिआ संती पइण्णमारुहइ एसो वेणीबंधो, कओ मए धणियसप्पइण्णाए । मोत्तबो य पिएणं, मत्तूण य आवयंतेणं ।। एवं च वदित्ता ववगयगंध-मल्ला-ऽलंकारगुणा, णवरं सरीरअणुपालणत्थं सुद्धोदयविच्छलिअंगी कालं गमेइ। 10 धम्मिल्लस्स अगडदत्तमुणिसमागमो - ततो धम्मिल्लो वि उठेऊण तहिं जिण्णुजाणे हिंडिउं पयत्तो । तत्थ य घणपत्तल-विसाल-गंभीर-तरुणपत्तपल्लवनिबद्धनिउरंबभूयस्स, कुसुमभरोनमंतसंचयस्स, भमरमुहरोवगुंजियसिहरस्स, वायवसपकंपमाणनञ्चंतपल्लवग्गहत्थस्स असोगवरपायवस्स हिट्ठा निविट्ठ, जिणसासणसारदिट्ठपरमत्थसब्भावं, बहुगुणेमणंतसुमणं, समणवरगंधहत्थिं पेच्छति । तेण य मिउ-15 महुरपुवाभिला(भा)सिणा भणिओ-धम्मिल्ल ! अबुहजणो विव किं साहसं करेसि ? । तो वंदिऊण देविं-दवंदियं तवगुणागरं साहुं। बेइ दुहिओ मि भयवं!, पुचि धम्म अकाऊणं ॥ ततो साहुणा लवियं-किं ते दुक्खं ति । [ तओ धम्मिल्लेण भणियं-] . जो य न दुक्खं पत्तो, जो य न दुक्खस्स निग्गहसमत्थो। जो य न दुहिए दुहिओ, तस्स न दुक्खं कहेयत्वं ॥ ति । ततो साहुणा भणिओ अहयं दुक्खं पत्तो, अहयं दुक्खस्स निग्गहसमत्थो। अहयं दुक्खसहावो, मज्झ य दुक्खं कहेयत्वं ॥ ततो तेण भणियं-किं पुण भयवं! तुब्भेहिं ममाओ विअइरित्तं दुक्खं पत्तं ? ति । साहुणा 25 भणियं-आमं । तओ धम्मिल्लेण जहावत्तमप्पणो सवं परिकहियं । ततो साहुणा लवियंसुणसु धम्मिल ! अणन्नहियओ सुह-दुक्खं जारिसं मए अणुभूयं तं ते परिकहेमि त्तिअगडदत्तमुणिणो अप्पकहा अत्थि पमुइयजणसवसारबहुविहनिप्पज्जमाणसबधण्णनिचओ विजाविणीअविण्णाणणा१ व एस ऊसवो कओ उ० 1 °व एस व्वेड्डुओ कओ शां० ॥ २ तो तीए शां० विना ॥ ३ °रा णव शां०॥ ४°निकुरुंब° शां०॥ ५ गुणगणं सवणं सम° उ० । गुणमणसुमणं सम° शां०॥ ६ भिकासि ली ३॥ 20 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ धम्मिल्लहिंडीए [अगडदत्तपरिचओ. णबुद्धी अवंती णाम जणवओ । तत्थ य अमरावइसरिसलीलाविलंबिया उजेणी नाम नयरी । तत्थ य जणवए पयाणं परिपालणेसमत्थो, संपुण्णकोस-कोहागारविभवो, बहुसाँहणवाहणो, अणुरत्तमंति-भिचवग्गो राया जियसत्तू नाम । तस्स य सारही ईस ऽत्थ-सत्थ-रहजुद्ध-निजुद्ध-तुरगपरिकम्मकुसलो अमोहरहो नाम नामेणं । तस्स य कुलस5 रिसाणुरुवा भजा जसमती नाम । ताण य अहं पुत्तो अगडदत्तो नाम नामेणं । ततो ममं भवियबोए गुरुययाए य दुक्खाणं बालभावे चेव पिया उवरओ। भत्तुमरणदुक्खिया ममं च सोयमाणी माया मे सुक्ककोटररुक्खो इव वणवेण सोयरिंगणा अंतो अंतो डज्झइ । तं च तहादुक्खियं सरीरेण परिहायमाणीं अभिक्खणं अभिक्खणं च रोवमाणी पासित्ता पुच्छामि-अम्मो! कीस रोवसि ? त्ति । ततो ममं निबंधे कए 10 समाणे कहिउमारद्धा, जहा-एस अमोहप्पहारी नाम रहिओ, एस ते पिउउवरयमेत्तस्स संतियं सिरिं पत्तो. जइ ते पिया जीवंतो, तुम वा ईस-ऽत्थ-सत्थकुसलो होतो तो न एस एरिससिरीए भायणं होतो, एवं वा सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-रच्छामुहेसु उवललंतो विहरेज त्ति. तं एयं पञ्चक्खकडुयं दटुं पिउउवरमं च ते सुमरमाणी अंतो अतीव डज्झामि। . ततो मैया माया भणिया-अस्थि अम्मो! अम्हं कोइ वयंसओ अण्णो ईस-ऽत्थ-सत्थ15 कुसलो? । ततो ताए कहियं-अत्थि कोसंबीए पिउस्स ते परममित्तो 'दढप्पहारि' त्ति नाम एकलेहसालिओ य, तमहं एकं जाणामि । ततो मया माया भणिता-अम्मो! गच्छामि कोसंबि दढप्पहारिस्स रहियस्स पायमूलं, ईस-ऽत्थकलाओ सिक्खिऊणागच्छामि । ततो तीए महया विमदेणं अब्भणुण्णाओ। ततो हं गतो, पविट्ठो य कोसंबिं । तत्थ य मया दढप्पहारी 'ईस-ऽत्थ-सत्थ-रहच20रियसिक्खाकुसलो आयरिउ' त्ति विणउणएण उवगंतूण पणमिओ। पुच्छिओ अहं तेणपुत्त ! कओ आगओ सि ? । ततो से मया कुलघरादीतो सबो पबंधो, पिउणो य नामधिजं, अत्तणो य आगमणं सवं परिकहियं । ततो अहं तेण पिउणा पुत्तो विव समासासिओ, भणिओ य-वच्छ! अहं ते जहासिक्खियं सवं निरवसेसं सिक्खामि त्ति । मया य विण्णविओ-धन्नो मि, अणुगिहिओ मि त्ति । ततो सो भणइ-नवरं घिति करेहि त्ति । 25 ततो सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्तदिवसमुहुत्ते सउण-कोउएहिं ईसत्थाउवविठ्ठो आरंभो कओ । कड्डिआ सिलागा, गहितो पंचविहो मुट्ठी, जियं पुण्णागं, लद्धो मुट्ठिबंधो, ठिया य जायलक्खसिग्घया, दृढप्पहारित्तं च, दुविहे ईस-ऽत्थे पांडि( ग्रन्थाय-९०० )यगे जंतमुक्के य निप्फण्णो, अण्णेसु य तरुपडण-छेज्ज-भेज्ज-जंतफारचरियाविहाणेसु अवधारिउवदिट्ठासु सस्थविहीसु। १°लावलं शां० ॥२ °णास ली ३ ॥३°सासण शां० विना ॥ ४ °गलद° उ २ विना । एवमग्रेऽपि ॥ ५ °याए कम्मगुरु° शां० विना ॥ ६ मया भणि° ली ३ उ २॥ ७ वितिं क° शां० विना।। ८ थाउ उद उ २ विना ॥ ९ पुणागं ली ३॥१. पढ़ियगे ली ३॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 अगडदत्तस्स सामदत्ताए परिचओ] अगडदत्तमुणिअत्तकहा । अगडदत्तस्स सामदत्ताए परिचओ ततो अहं अण्णया कयाई आयरियगिहरुक्खवाडियाए अइगंतूण जोगं करेमि । तस्स य गुरुभवणस्स सएज्झयभवणे एगा वरतरुणी दिवसे दिवसे फल-पत्त-सुमण-पुप्फदामखियण-लेगुएहि य मे पहरेइ । ततो तं गुरुसंकाए विज्ञागहणलोभेण य इच्छंतो वि न तत्थ अणुराग दंसेमि। ___ ततो कइवएसु दिवसेसु अइकतेसु जोगं करेंतस्स मे तत्थेव रुक्खवाडियाए पलंबलंबंतकसण-रत्ततरपल्लेवस्स, कुसुमभरोणमियअग्गसालस्स, भमर-महुकरिकुलोगिजंतमहुलउवसहकुहरस्स, रत्तासोयवरपायवस्स हेट्ठा साहं वामहत्थेण अवलंबिऊण एगुक्खित्ततरुक्खंधचिट्ठितचलणा णवसारभूयं जोवणयं वहती दिट्ठा मे तरुणजुवती । सा य नवसिरीससरसकुसुमोवमाणकंचणकुम्मसरिसएहिं चलणएहिं, अइविन्भर्मंचकिल्लएणं कयलीखंभसमाणएणं 10 उरुजुयलेणं, महानदीपुलिणेसंघसाकारएणं जंघएणं फालियमज्झमझंतरत्तंसुयसन्निभं वत्थं नियत्था, हंसायलिसद्दसन्निभेणं रसणाकलावएणं, ईसिसंजायमाणरोमराई, कामरइगुणकरेहिं उरतडसोभाकरेहिं संघसयपरिवड्यूमाणेहिं सज्जणमेत्ति व निरंतरेहि य पओहरेहिं, पसत्थलक्खणाहिं रोमोवचियाहिं बाहुलतियाहिं, रत्ततलकोमलेहिं नाइरेहाबहुलेहिं अणुपुंबिसुजातंगुलीरत्ततंबनहेहिं अग्गहत्थेहिं, नाइपलंब-रत्ताधरा, सुजाय-सुद्ध-चारुदंतपंती, रत्तुप्पलप-15 त्तसन्निगासाए जीहाए, जचुण्णयतुंगएणं नासावंसएणं, पसइपमाणतिरियायतेहिं नीलुप्पलपत्तसच्छहेहिं नयणएहिं, संगयएणं भुमयाजुयलएणं, पंचमिचंदसरिसोवमेणं निडालपट्टएणं, कजल-भमरावलीसन्निभेणं मिउ-विसँय-सुगंधिनीहारिणा सबकुसुमाहिवासिएणं केसहत्थएणं सोभमाणेणं, सबंगोवंगपसस्थ-अवितण्हपेच्छणिज्जरूवा दिट्ठा मए । चिंतियं च मे-किं नु एयस्स भवणस्स देवया होज ? उर्दीहु माणुसि ? त्ति । ततो मए 20 उवरिं होंती निज्झाइया, नवरि नयणा से णिमेसुम्मेसं करेंति, ततो मए नाया 'न एस देवया, माणुसी एस त्ति । पुच्छिया य मे-भद्दे ! कासि तुम? कस्स वा ? कुओ वा एसि ? त्ति । ततो तीए ईसीसिहसियेदीसंतरूवलट्ठसुद्धदंतपंतीए वामपायंगुट्ठएणं भूमितलं लिहंतीए अहं भणिओ-अजउत्त! एयरस सएज्झयभवणस्स गहवइजक्खदत्तस्स धूया हं सौमदत्ता नाम. दिट्ठो य मया सि बहुसो जोगं करेमाणो, संमं च मे हियए पविट्ठो, 25 तप्पभियं च अहं मयणसरपहारदूमियहियया रइं अविंदमाणी असरणा तुमं सरणं पवना. १°एहि हिययं मे क ३ ॥ २ लवंतस्स उ२ विना॥ ३°वपिजं° ली ३। वरिजंक ३ गो ३॥ ४ भविलक्खएणं उ० । मक्खिल्लएणं ली ३ क ३ गो ३ ॥५°णसंघसाका क ३ गो ३॥ ६°भं निय कसं. शां० विना ॥ ७ °सावलि°क० उ २॥८ईसिं उ२॥९°लया° उ २ विना ॥१०°पुव्व उ२ ॥ ११°द्धयारु° मो० सं० गो ३॥ १२ °णातिरेयाऽऽय° उ २ ॥ १३ विततसु शां०॥ १४ °दाहो उ २॥ १५ °सिऊण य दीसं की ३ । सियं दीसं० उ २॥ १६ °स्स महेब्भयभ° शां० विना॥ १७ प्रतिषु क्वचित् सोमदत्ता क्वचिच्च सामदत्ता इति पाठान्तरं दृश्यते । अस्माभिस्तु सर्वत्र सामदत्ता पाठ आदृतः ॥ १८ ममं च से हिय° शां० विना ॥ १९ तयप्प° उ २॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ धम्मिल्लहिंडीए [ जियसत्तुराय माय में समागमं इमं अवमण्णेज्जासि. अवमाणिया तुमे अहं तुह विरहदुक्खिया खर्ण पिहुँ न समत्था जीवितुं ति । एवं भणमाणी पाएसु मे पडिया । ततो मए उट्ठावेऊण भणियं - सुयणु ! णु एस अविणओ अयसी य, गुरुकुलपा (वा) से न खमो वियातिकमो त्ति । सा य मे पुणो भणति - भट्टिदारय ! न किर सो कामी बुच्चइ, जो जा य कुले 5 सीले य पच्चपायं चं रक्खति । मया भणिया --एवमेयं ति, किंतु मम सरीरेण जीविएण साविया कइव ताव दिवसे पडिक्खाहि, जाव उज्जेणीए गमणोवायं चिंतेमि । ततो कहे कह विससवहं पत्तियाविया गया नियगभवणं । अहमवि तं तीइ रुवाइसर्य हियएवं वहतो अनंगर्षैरिसोसियसरीरो य तं चैव मणेणं वहतो तीए समागमोवायं चिंतयंतो कह व दिवसे गमेमि, गुरुजणलज्जाए अणायारं गृहेंतो अच्छामि । 10 ओ अण्णा कयाइ गुरुजणाणुन्नाओ सिद्धविज्जो सिक्खादंसणं काउं रायकुलं गतो । तत्थ य असि - खेडयँ गहणं, हत्थिखेल्लावणं, भमंतचक्कं, गत्तंतरगयं, वाउल्लयंवेयविज्झयादीयं सिक्खियं सबं जहा पंगयं दाइयं । ततो पेच्छयजणो सो विम्हाविओ यहियओ जाओ, मज्झं सिक्खागुणे आयरिए य पसंसंति । राया भणइ - 'नत्थि किंचि अच्छेरयं' ति णेव विहितो | भइ य - किं ते देमि ? ति । ततो मया विष्णविओ - सामि ! तुब्भे मम 15 साहुकारं न देह, किं ते अण्णेण दाणेणं ? ति । ततो भणति — सिरिओ दूयाणत्ती, आसविवत्ती य कुलघरविणासो । निग्गमण खाइयाए, जा दुप्पतपणा बोही ॥ एवं च वदित्ता साहिडें पयत्तो 'सो तीतं भवग्गहणं । सुणसु देवाणुपिया !--- जियसत्तुराय पुग्वभवसंबंधो अत्थि इहेव कोसंबी नयरीए हरिसेगो नाम राया । तस्स य अग्गमहिसी धारणी देवी । तस्स य रण्णो अमञ्चो सुबुद्धी नाम । तस्स य भज्जा सिंहली नाम । तीसे य पुत्तो आणंदो नाम, सोय अहं आसी । तत्थ य मम असुहकम्मोदणं कुट्ठरोगो जातो । ततो 25 तेण रोगेणं संतप्पमाणो अप्पाणं च निंदतो आउं अणुपालेमि । 20 किं सिक्खिएण तुझं ?, मज्झं सिक्खं तु अवहिओ सुणसु । इह चेव अहं नयरे, सिंहलिसुय नंदणो आसी ॥ ततो अण्णा केइ कालेणं जवणविसयाहिवेणं संपेसिओ दूओ आगतो इमं नयरं । रायकुलं च पविट्ठो दूयाणुरुवेणं सक्कारेणं महंतेणं सकारिओ । ततो अन्नया कयाइ अम्हं पिउणा सभवणं नेऊण नाम - विभवसरिसं संपूइओ, उवविट्ठा य आलाव-संकहाहिं राय १ वमाणेजा° उ० । 'वगणेज्जा' ली ३ ॥ २ हूक ३ गो ३ ॥ ३ 'सु निवडि° उ २ विना ॥ ४ सहिया शां० विना ॥ ५ किह किह शां० ॥ ६ पदिसो क ३ गो ३ ॥ ७ 'मह' मो० सं० वा० शां० ॥ ८ 'यवेज्झया उ २ ॥ ९ पहागयं उ २ । १० सीह उ२ । एवमग्रेऽपि ॥ ११ °डवेप्प० शां० ॥ १२ हियं प शां० ॥ १३ सो बीयं भ° उ २ विना ॥ १४ णं तज्जायरोगो शां० ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ yaभवसंबंधो ] अगदत्तमुणिअत्तकहा | देस - कुसलवट्टमाणीहिं अच्छंति । अहं च णेण नियघरं पविसंतो दिट्ठो । तेण य पुच्छियंकस्सेस दारओ ? । तातेण भणियं ममं ति । ततो तेण लवियं- किं इह विसए ओसही ? art at aftथ ? त्ति । तातेण भणिओ - अस्थि ओसहीउ, वेज्जा वित्ति एयस्स पुण मंदभागया अणोसहं चैव भवइ, नत्थं य से उवसमो । ततो तेण लवियं-जो नवसंजाasiaण आसकिसोरो तस्स रुहिरे मुहुत्तं पक्खितो अच्छउ । एवं वदित्ता गतो सो । 5 मम पिउणा पुतणं राउलओ आसो मारेऊणं जहाभणियं सवं कथं । ततो पच्छा रण्णा सुयं, जहा -: - सुबुद्धिणा आसो मारिओ । तओ राइणा रुट्ठेणं सारीरो निग्गहो सकुलस्स आणत्तो । तं च सोऊण अहं खाईए पडिओ पलायमाणो परिणयवार्ड अइगतो । तेण य पण्णवाडसामिणा दिट्ठो, पुच्छिओ य- को तं सि ? कहिं वा वच्चसि त्ति ? कस्स वा तुमं ? । ततो से मया सर्व जहावत्तं परिकहियं । ततो हं तेणं साणुकंपेणं घरं 10 नीओ, आवासिओ य अच्छामि पिउ-माउ-सयण- परियणविप्पओगपरितप्पमाणसरीरो । ३९ तत्थ य इरिया-भासासमिता इह-परलोए य निरवकखा फासुयं उछं गवेसमाणा समणा भगवंतो घरं पविट्ठा, पणमिया य तेण घरसामिणा । वंदिया ततो मया, धम्मं पुच्छिया । कहिओ य तेहिं धम्मो अहिंसालक्खणो । उवगयं च मे जिणवयणं । ततो तेसिं सगासाओ सिक्खावया गहिया अणुवया य । गहियाणुवय - सिक्खावओ य कालगतो इह 15 चेव पुरवरी राया जाओ 'जियसत्तु' त्ति । साहवो य दट्ठूण जाई सरिय । ततो अहं एत्तियाए सिक्खाए रायसिरिं पत्तो ॥ अस्सिं च देसकाले सपुर-जणवएणं सो राया जियसत्तू विष्णविओ - देवाणुपियस्स पुरे असुयपुत्रं संधिच्छेयं, संपयं च बहरणं परिमोसो य केणइ कओ. तं अरिहंतु णं देवापिया ! नयरस्स सारक्खणं काउं ति । ततो आणत्तो राइणा नगरारक्खो - सत्तरत्तस्स 20 अब्भंतरे जहा चोरो घेप्पति तहा कुणसु त्ति । तं च रण्णा भासियं सोऊण मया चिंतियं'एयं पसत्थं ... .को मम गमणस्स' त्ति परिगणेऊणं पुणो वि रण्णो पायवडिउद्विओ विष्णवेमि-- जइ देवाणुप्पिया आणवेंति, पसादेण वा वट्टंति, ततो अहं सामिस्स पसादेण सत्तरत्तस्स अब्भितरे चोरं सामिपादमूलं उवणेमि । तं च वयणं राइणा पडिसुर्य, अणुमणियं च ' एवं कुणसु' त्ति । अगडदत्तस्स चोरगहणववसाओ ..... I ततो हं हमाणसो रणो चलणेसु पणमिऊण निग्गओ रायकुलाओ । चिंतियं च मया सत्थनिद्दिद्वेहिं उवाएहिं - पाएण दुट्ठपुरिस-तक्करा पाणागार - जूयसालासु कुलरियावण- पडेंग १ कुल क ३ गो २३ ॥ २ वेत्तिक ३ गो ३ । वत्ति उ २ ॥ ३ °त्थि आमओवस ली ३ ॥ ४ पक्खित्तो कसं० उ० । परिक्खित्तो शां० ॥ ५ कओ सि ली ३ विना ॥ ६ °संभो त्ति कसं० २ विना ॥ ७ जायं स कसं ० उ २ विना ॥ ८च्छेनं सं ली ३ विना । ९ हउ णं ली ३ ॥ १० ली ३ विनाऽन्यत्र - एयं पयं पत्थक्को क ३ गो ३ । एसवक्को उ० । एसव्वक्को शां० ॥ ११ रायणा डे० उ० | १२ च तया ली ३ ॥ १३ ली ३ उ० विनाऽन्यत्र - कुलूरि क ३ गो ३ । कुल्लूरि० शां० ॥ १४ ° पडरंग ली ३विना ॥ 25 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिल्लहिंडीए [अगडदत्तस्स चोरपरिवायगावसह-रत्तंबर-वट्ठ-कोट्ठय-दासीघर-आरामुजाण सभा-पर्वासु सुण्णदेउल-विहारेसु संसिया अच्छंति. तत्थ य चोरा उम्मत्तपरिवायगनाणाविहलिंगिवेसपरिच्छण्णा, बंभणवेसधारिणो, विविहसिप्पकुसला य विगयविसरूवयाए य भमंति । ततो अहं एयाइं ठाणाई अप्पणा चारपुरिसेहि य मग्गावेमि चारावेमि । चारावेऊण य उवायकुसलो निग्गओ । 5 निहाइऊण इक्कओ चेव अहं एक्कस्स नवहरियपल्लवबहुसाहसीअलच्छायस्स सह्यारपायवस्स हेट्ठा निविट्ठो दुब्बल-मइलवत्थो चोरगहणोपायं चिंतयंतो अच्छामि । नवरि य धाउरत्तवत्थपरिहिओ, एगसाडियाउत्तरासंगो, संखखंडियबद्धपरिकरो, तिदंड-कुंडिओलइयवामहत्थखंधपदेसो, गणेत्तियावावडदाहिणकरो, नवरइअकेस-मंसुकम्मो, किं पि मुणमुणायतो तं चेव सहयारपायवच्छायमुवगतो परिवायओ । विवित्तभूमिभागे तिदंडयं अवलंबेऊण, अंब10 पल्लवसाहं मंजिऊण उवविट्ठो । पेच्छामि य णं पदीहरूढणासं, उक्कुडुयसिरावेढियचलणं, उब्बद्धपिंडियादीहजंघं । आसंकियं च मे हिययं तं दळूण-तकरजणपावकम्मसूयगाई च से इमाइं जारिसयाइं लिंगाई दीसंति, नूणमेस चोरो पावकारि त्ति । भणइ य ममंवच्छ ! को सि तुमं अधितिबलसंतत्तो? किंनिमित्तं हिंडसि ? कत्तो वासी ? कहिं वा वञ्चसि ? त्ति । ततो मया तस्स हिययहरणदक्खेण भणिओ-भयवं! उज्जेणीओ हं परि15 क्खीणविहवो हिंडामि त्ति । ततो तेण परचित्तहारिणा भणिओ हं-पुत्त! मा बीहेहिं, अहं ते विउलं अत्थसारं दलयामि । मया भणिओ-अणुगिहीओ मि पिउनिबिसेसेहिं तुन्भेहिं ति । जार्वयं एवं अण्णमण्णं संलवामो ताव य लोयसक्खी अदरिसणं गतो दिणयरो। अइक्कंता य संझा । तेण य तिदंड (ग्रन्थाग्रं-१०००) गाउसत्थयं कड्डिऊण बद्धो परियरो। उट्ठिओ य भणइ मैम-अइ! नगरं गच्छामो त्ति । ततो अहमवि ससंकिओ छेयबुद्धीप20 यारेण तमणुगच्छामि । चिंतियं च मए-एस सो नयरपरिमोसओ तकरो त्ति । पविट्ठा मो य नयरं । तत्थ य उत्ताणणयणपेच्छणिजं कस्सइ पुण्णविसेससिरिसूयगं भवणं । तस्स य आरामुहेण नहरणेणं संधिं छिंदिउं पयत्तो सुहच्छेदभूमिभागे निविट्ठो । सिरिवच्छसंठाणं च छेत्तूण अइगतो मज्झ वि य जणियसंको । णीणिआओ य णेणं णाणाविहभंडभरियाओ पेडाओ । तत्थ य मं ठवेऊण गतो । ततो चिंतियं च मे-अत्तगमणं से करेमि, मा 25णं विणासे मं ति । ताव य सो आगतो जक्खदेउलाओ सत्थिल्लए दरिद्दपुरिसे घेत्तूणं । ते य ताओ पेडाउ गेण्हाविया, निद्धाइया मो नगराओ । भणइ य ममं-पुत्त ! एत्थ जिण्णुजाणे मुहुत्तागं ताव निदाविणोयं करेमि', जाव रत्ती गलइ ताव गमिस्सामि त्ति । ततो १°गवेसहरत्तवडवट्ठ उ २ विना ॥ २ °वासुण्ण क ३ उ २ ॥ ३ मि चारावेऊण ली. य. विना ।। ४ इच्चाओ कसं. उ. विना ॥ ५ यपत्तलपल्ल° उ २ ॥६°मि जाणपदी उ २ विना ॥ ७ उकुड्य° उ २ विना ।। ८ ममं भणइ य, पुच्छति, वच्छ! उ २ विना ॥ ९ कत्तो तुमं क ३ । कतो तुम गो ३ उ २॥ १००वय ए ली ३॥११ मम, नगरं अग° उ २ ॥ १२ °द्धीय प° उ २ विना ।। १३ °सओ। एवं पविउ २ विना ।। १४ सेमि गंति शां० विना ॥ १५ निदाइ° उ २ विना ॥ १६रेम शां० । रेमो उ०॥१७ तओ ग° उ२॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गहणववसाओ] अगडदत्तमुणिअत्तकहा। मया लवियं-तात ! एवं करेमो । ततो णे एक्कपासं अइकंता । ततो तेहिं पुरिसेहिं ठवियाउ पेडाउ, निद्दावसं च उवगया । सो य अहं च सेजं अच्छरिऊण अलियसइयं काऊण अच्छामि । ___ ततो अहं सइरं उठेऊण अवक्रतो रुक्खसंछण्णो अच्छामि । तेण य निद्दावसगए जाणिऊण वीसंभघाइणा निग्घिणहियएण ते पुरिसा मारिया । तो पच्छा मज्झ समीवमा-5 गतो, ममं रत्तच्छयकुसुमपत्तसत्थरे अपेच्छमाणो मग्गिउं पयत्तो । ततो मया तरुगहणसाहपच्छाइअसरीरेण पहाइऊण सिग्घयाए चक् हरिऊण मम अहिवडतो अंसदेसे असिणा आहतो । ततो सो अद्धच्छिण्णसरीरो दढप्पहारीकओ पडिओ। पञ्चागयसन्नेण य अहं भणितो-वच्छ ! मह इमो असी, एयं च पित्तण वच्च मसाणस्स पच्छिमभागं. गंतूण संतिजघरस्स भित्तिभाए सई करेज्जासि त्ति. तत्थ भूमिघरे मम भगिणी वसइ ताए 10 एयं असिं दाएजासि. सा ते भज्जा भविस्सइ, सबदबस्स य सामी भविस्ससि, अण्णं च तं भूमिघरं. अहं पुण गाढप्पहारो अइकंतजीविओ त्ति । __ ततो अहं असिजहिं गहाय मसाणब्भासे सण्णिविहँ संतिजघरं गतो। कतो य मे सहो । निग्गया य ततो भवणातो भवणवासिणी भवणवणदेवया पेच्छणिजरूवा । सा भणइ-कतो सि तुमं? ति । ततो मया से असिलट्ठी दाविओ । विसणवयण-हिययाए य 15 सोयं निगृहंतीए ससंभमं अतिनीओ संतिजघरं, आसणं च मे दिन्नं । सुहवीसत्थोवायचारुकुसलो ससंकियं से चरियं अवलक्खेमि । सा य मम अच्चादरेण कूरहियया सयणिज्जं रयइ । भणइ य-एत्थ सरीरवीसामं करेसि त्ति । ततो अहं तत्थ निहालक्खमुवगतो। वक्खित्तचित्ताए य अण्णं ठाणं गंतूण ठितो पच्छण्णं । तहिं च सयणिज्जे पुवजंतजोगसजिया सिला सा तीए पाडिया, चुणिया य सा सेज्जा । सा य हट्ठ-तुट्ठमणसा भण-20 ति-हा! हा! हतो भायघायउ त्ति । ततो अहं निदा(द्धा)इऊण तं वालेसु घेत्तूण भणामिदासि ! को मं घाएंई त्ति ? । ततो सा मम पाएसु पडिया ‘सरणागया मि' त्ति भणति । महिलासहावभयविन्भला मए आसासिया ‘मा भाहि' त्ति । ततो तं घेत्तूण रायकुलं गतो। सवं च रण्णो जहावत्तं परिकहियं । सो य चोरो विवण्णसरीरो रैण्णा आइटेण णयरजणेण दिट्ठो । भगिणी से रायकुलं पवेसिया । जहासन्निहिअं च दबजायं जणस्स समल्लावियं । ततो25 रेण्णा जणवएण य पूइतो हं । ततो पूया-सक्कारलद्धविहवो कयजयसद्दो पुरीए अच्छामि । अगडदत्तस्स सामदत्ताए सद्धिं सदेसगमणं ततो सामदत्ताए अंगसुस्सूसकारिया दीरिया संगमकारिया संगमिया नाम । सा य १रेमो। ततो णे एक्कपासं णेमो। ततो णे एक ली. य० शां० विना ॥ २ जं रइऊण ली ३॥ ३ सत्तच्छदपत° शां० ॥ ४ जाघउ २ । एवमग्रेऽपि ।। ५ भूमिगृहे मम उ २ विना ।। ६ °सेण णिवि° उ २ विना ॥ ७°णीव भव शां०॥ ८ पणहिय ली ३ ॥ ९ अयनी शां० ॥ १० ययारु ली ३॥ ११ उवल° शां० ॥ १२ सव्वाद° शां० ॥ १३ °एत्ति उ २ विना ॥ १४ रणो उ २ विना ।। १५ ण्णा पुरजण° उ२॥ १६ रिगा आगया संगम° उ २॥ व. हिं. ६ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ मलहिंडीए [ अमडलस्स समं देवगंतूण भगइ - अज्जउत्त ! मयणसरपहारदूमियहिययाए सामदत्ताए नेवसमागम - संसग्गीसंभोगस लिलोदएण आसासेहि सरीरयं किं बहुणा ? इच्छामहल्लकल्लोले आसातरंगभंगपउरे कामसमुद्दे निबुडुमाणीए समागमउत्तारणपोतो होहित्ति असरणयाए सरणं । ततो सा मए करतलसंपुडेणं घेत्तूर्ण हियए निबोदएणं (?) तीए अग्गहत्थे भणिया - 'सुयणु ! $ सज्जो हंसदेसं गंतुं ति आणेह सामदत्तं' ति भणिया । ततो सा गया, आगता य सामदत्ता । तं च अहं दट्ठण नवपाउसकालकुसुमियकलंबरुक्खो विव कँटेइयसबरोमवो जातो । ततो रूवविम्हयमयणसर संतत्तहियएणं धणियं उवगूहिया । सा वि य अणंगर्संरतावसोसियसरीरा दहमिव अंगमंगेहिं मे अतिगया । ततो सूरायवतत्तमिव वसुहं आसासेंतो तीय विम्हयणीयरूवं पेच्छंतो न तिप्पामि । समासासेऊण सामदत्तं दढ10 बंधणेमीयं, पसत्थलक्खणतुरयजुत्तं, तद्दत्तं, गमणजोगं, सबोवगरण-पहरणसज्जं रहं घेत्तूण आगओ । आरुहिया य मे सामदत्ता रहवरं । ततो मे नियगबलदप्पमसहमाणेगं जणस्स कित्तिविवरं मग्गंतेणं नामतं पगडियं - 'जो भे देवाणुप्पिया ! नवियाए माऊए दुद्धं पाउकामो सो मम पुरओ ठाउ त्ति एस अहं अगडदत्तो सामं घेत्तूण वच्चामि अणित्ता पत्थिओ उज्जेणिं विविहदबगहियपाहेओ । निया य मो नयरीओ, कतो य मे 15 दिसादेवयाणं पणामो, चोइया तुरया, तुरयवेअ - रहलहुयाए य दूरं गया मो । तत्थ य तुरगवीसामणनिमित्तं एगंते सीयलजलब्भासे [* आसे] वीसमंतो सरीरजवणत्थं आहारं थोवं थोवं च अहिलसंतो सामदत्ता चित्तरक्खणनिमित्तं । सा वि य सामदत्ता बंधववि ओगदुहियहियया मम अणुरागेणं सोयं निगूहमाणी कह कह वि आहारं आहारेइ । ततो एवं वच्चामो । पत्ता मो अंतियगामं वच्छाजणवयस्स । तस्स य गामस्स अदूरसामंते पाणि20 यसमीवे बंधावेऊण तुरए चारेमाणो अच्छामि । पिच्छामो य गामसमीवे महंतं जणसमूहं । तओ दुवे पुरिसा आगंतूण ममं भांतिसागयं सामि !, कतो आगमणं ? ति, कतो वा गम्मइ ? त्ति । ततो मया लवियं-कोसंबीओ आगच्छामि, उज्जेणीं वच्चामि त्ति । ते भांति - अम्हे वि तुम्भेहिं समं वच्चामो उज्जेणि जइ पसाओ अस्थि । मया भणियं - बच्चहं ति । ततो ते पुणो वि ममं भांति25 सामि ! सुह, इत्थ किर पंथे हत्थी मारेति, दिट्ठीविसो सप्पो, दारुणओ वग्घो, अज्जुणओ चोरसेणावई पंचहिं निअँडसएहिं सद्धिं संपरिवुडो सत्थे घाएमाणो अच्छइति किह गंतवं ? ति । ततो मया भणियं --नवरि मम छंदेण वञ्चह त्ति, नत्थि " मे पइभयं ति । एवं भणिया संता 'जहा आणवेह' त्ति भणिडं गया । तेहि य तेसिं सत्थेल्लयपुरिसाणं जहाभणियं परिकहियं । 'तह' त्ति ते भणिऊण सबे गमणसज्जा जाया । १ अवगं° उ २ विना ॥ २ भवस° मो० गो ३ | ३ 'ण हियए निवेदेऊणं तीए शां० । 'ण तीए उ० ॥ ४ समाग° शां० ॥ ५ कुंचुइ° ली ३ ॥ ६° सरसो° शां० विना ॥ ७° तं दद्दूण गम° उ २ || ८ ओ य न° उ २ विना ॥ ९ °हित्ति उ २ विना ॥ १० निम्गुडस उ २ ॥ ११ ते (भे) प° शां० विना ॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सदेसगमणं ] अगदत्तमुणिअत्तकहा । ४३ इत्थंतरेय तिदंड- कुंडियवग्गहत्थो एगो परिवायगो तेसिं पुरिसाण समीवे आगंतून भगति - पुत्त ! कत्थ भे गंतवं ? ति । तेहिं भणियं -उज्जेणिं ति । ततो सो भणइ - अहं पितुब्भेहिं समं उज्जेणीं वच्चेज्जा । तेहिं भणियं -- सामि ! अणुग्गहो णे, वच्चेह । ततो से एगं पुरिसं सत्थमहत्तरयं उस्सारेऊण भणति - ' पुत्त ! ममं एगेण भिक्खायरेण देवस्स धूमुलं पंचवीसं दीणारा दिन्ना' एवं भणिऊण धुत्तीए कूडदीनारे तस्स दाइए । ततो सो 5 सत्थमहत्तरओ भणति भयवं ! मा वीहेह, अम्हं बहुतरां दीणारा अत्थि. जं अम्हं होहिति तं तुब्भं पि होहिति । ततो सो परितुट्ठो समाणो आसीसं पउंजिऊणं मम सगासं आगंतूण तं चैव सवं परिकहेइ, कैहित्ता य गतो । ततो चिंतियं मया - 'न सोहणं एएण समं गमणं. निच्छएण एस तक्करो परिवायगो. जत्तं करेयवं, अप्पमाओ य' एवं परिगणेऊण दिवस सेसं खवेमि । अगडदत्तस्स अडवीए गमणं ततो सूरत्थमणवेलाए तुरए पाणियं पाएऊणं जोइओ रहवरो । सामदत्ता य कयसरी - रपाणियकज्जा रहं विलग्गा । ततो मे तुरया दुयं विलंबिया । ततो य मे अडविदेवैयाणं पणामो कतो, विलग्गो रहवरं, संगहियाँ आसरासीओ, चोइया तुरया, पयट्टिओ रहवरो गंतुं पयत्तो । ततो ते सत्थेल्लयपुरिसा तेण सह परिवायएणं पभूयगहियभत्त- पाहेजा रहवरं 15 मे समँलेति । समइक्कंता ये तो जणवयं, पविट्ठा य मो अडविं, अप्पसुहाहिं वसहीहिं वैस्समाणा वच्चामो । पत्ता य मो णाणादुम-लयगहण संछण्णपायवुद्देसं एगं गिरिनदिं । तत्थ मे ठविओ रहवरो रहपरिहिंडण सुहे भूमिभागे । सो वि य सत्थेल्लजणवओ अप्पणा जहिच्छियासु रुक्खच्छायासु आवासिओ । 10 १० I ततो सो परिवायओ ते भगइ - 'पुत्त ! अहं भे अज सबेसिं पाहुण्णयं करेमि एत्थ 20 य अडवीते गोडलं. तत्थ मैया पयागं गच्छंतेण उज्जेणीओ आवंतेण वरिसारतो कओ. तेय मे गोवा परिचिया, तत्थ वच्चामि तं तुभे अज्ज मा रंधण-पयणं करेज' त्ति भेणिऊण गतो । तओ मज्झह देस-काले पायस - दहि-दुद्धभंडए य विससंजुत्ते काऊणं आगतो । ते भणइ - पुत्त ! एह, देवसंतियं भत्त-पाणं भुंजह । ततो तेहिं मम समीवं एगो पुरिसो पेसिओ - सामि ! एह, भुंजह त्ति । ततो मया भणियं - सीसं मे दुक्खर त्ति तुभे पुण एवं 25 अण्णा-पाणं मा भुंजे हैं जइ मे सुणह । ततो सो पडिसेहिओ । कहियं च णेण तेसिं पुरिसाणं, तस्स य परिवायगस्स । ततो परिवायगो आगंतूण भणति - देवाणुप्पिया ! गेण्ह देवकियं सेसं ति । मया भणियं -- सविसेसं मे ण जीरइति । तत्तो सो 'महादुट्ठो अयं' १ एवं भ° क ३ गो ३ ॥ २ दाएइ उ २ ॥ ३° श्या दी° उ २ ॥ ४ कता उ २ ॥ ५ वाणं उ २ विना ॥ ६ या य मे रस्सीओ शां० ॥ ७ लंति क ३ ॥ ८ य मो ज° कसं ० उ २ ।। ९ पस्स० शां० विना ॥ १० ते उ २ विना ॥ ११ °या गंग ग° ली ३ ॥ १२ भाणि उ २ । १३ भतपाणं उ० | १४ ह ति जइ की ० ० क ३ गो ३ । १५ वा इमं चिं० शां० विना ॥ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ धम्मिल्लहिंडीए [अगडदत्तस्स ति चिंतेऊण गतो, तेसिं पुरिसाणं सुहासणवरगयाणं तं भत्तमप्पणा एव परिकरबद्धो परिवेसणं करेइ । ततो ते अण्णाणयाए विससंजुत्तं भत्त-पाणं सुहंसुहेणं उवभुंजंति । ताव य सूरो अवरदिसिं अहिलसइ । ततो ते विसपरिगयसरीरा अचेयणा ठिया । ततो तिदंडकहाओ असिं कड्डिऊण तेसिं सीसाइं छिंदित्ता असिहत्थो मम मूलं धावमाणो आगतो । 5 मम खंधे असिं निसिरंतो मया खेडएणं वंचिऊण खग्गेणं निसिट्ठमुट्ठिएण रोसेणं आहतो, जहा से ऊरुजुयलो धरणिवढे पतितो । ततो सो भणइ-पुत्त ! अहं धणपुंजतो (ग्रन्थानम्-११००) नाम चोरो, न केणइ छलियपुबो. साहु तुमं सि सुपुरिसो एक्को माऊए जातो त्ति । पुणो य मे संलवइ-वच्छ ! एयस्स पवयस्स पुरिच्छमिल्ले कोलंबे दोण्हं नतीणं मज्झदेसभाए अत्थि महइमहालिया 10 पत्थरसिला. तत्थ भूमिघरं. तत्थ मया सुप्पभूयं धणं विढत्तं. वच्च, गेहसु त्ति. मम य अग्गिसक्कार करेहि' त्ति भणित्ता कालगतो। ततो अहं दारुते साहरित्ता झामेमि. ज्झामेत्ता, हत्थे पाए य पक्खालेत्ता, रहवरं जोएत्ता पहिओ। चिंतियं च मया-किं मे धणेणं ? ति । ततो मे पंथं समोयारिया तुरया । सामदत्ताए सद्धिं वच्चामि त्ति । पत्ता य मो णाणाविहरुक्खगहणं, वेल्लि-लयाबद्धगुच्छ-गुम्म, गिरिकंदरनिझरोदरियभूमिभागं, णाणाविहस15 उणरडियसद्दाणुणाइयं, अईवभीसणकरं, भिंगारविरसरसियपउरं; कत्थइ वग्घ-ऽच्छभल्लघुरु धुरुधुरेंतमुहलं, वानर-साहामिएहिं रवमाणसई, पुक्कारिय-दुंदुयाइएण य कण्णसदालभीसणकरं; पुलिंदवित्तासिएहि य वर्णहस्थिविंदएहिं गुलगुलेंतबहुलं, कत्थइ मडमडस्सभज्जतसल्लइवणं, कत्थइ "वोच्छडियसमिति-तंदुल-मास-भिण्णघयघडिया कूरऊखलीओ य पविद्धतेल्लभायणे य बहुविधपयारे छत्तयउवाहणाउ य छड्डियाउ पासिऊण चिंतियं मया-ह20त्थिघोरभयवित्तासियस्स सथिल्लयजणस्स इह विदवो नूणमासि त्ति । तत्थऽब्भासे पेच्छंता अडवीए वच्चामो । पेच्छामि य जूहपरिभट्ट एकल्लेमहंतपलंबवालप्पमेयग पुरओ (?) मग्गब्भासे ठियं वणहत्थिं । तं च दळूण सामदत्ता भीया। आसासिया य मए सामदत्ता, भणिया य-भीरु ! अम्हं रहसदं सोऊण आलइयकण्णो रोसवसाइट्ठो आहाइउकामो अइ उग्गयाए य भूमिनिसण्णेणं जहणेण बद्धो विव दीसइ । ततो सो संवेल्लियग्गसोंडो, निदा25 रियच्छिजुयलो विरसं आरसिऊण अग्गहत्थेण भूमितलं आहंतूण मम वहाए हवमागतो । ततो मैंए आहावंतस्स सिग्घयाए अमूढयाए य तिणि सायगा कुंभीभागम्मि लाइया । तेहि य सो गाढपहारदूमियसरीरो खरं आरसिऊण तरुसाहाउ भंजतो विपलातो । ववगयभयाए य भणियं सामदत्ताए-गतो सो गयवरो? त्ति । मया भणिया-सुयणु ! गतो त्ति । १ अहिवस ली ३ ॥२ ०णियटेक ३ गो ३। ०णियले ली ३ ॥ ३ तो सो ली ३ गो ३॥ ४ कालं. उ २ विना ॥ ५ वेल्लियाब शां०॥ ६ °णत्थह° उ २ विना ॥ ७ वोच्छिदितसमि° शां० ॥ ८ बबूय शां० विना ॥ ९ °लं महंतं उ २॥ १० मे आवंत शां० ॥ ११ °णि बाणा साय° उ० ॥ १२ भंजितो २ विना ।। Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सदेसगमणं ] अगदत्तमुणिअत्तकहा । ४५ 1 ततो पट्टिया मो गया य थोवंतरं, सुणामि य लोहाकरधम्ममाणधमधमेंतसद्दं । आसंकिओ णे हियेएणं - सप्पेण य भवियवं ति । पेच्छामो य पंथम्म ठियं पुरतो, अंजणपुंजनिगरणपयासं, निल्ला लियजमलजुयलजीहं, उक्कड - फुड - वियड - कुडिल- कक्खड - वियडफडाडोवकरणदच्छं, तिभागूसियसरीरं, महाभोगं नागं । भीया य सामदत्ता, परिसंठविया य मे । तुरग-रहसद्दसंजणियरोसो आहाइओ भुयंगमो । आधावंतस्स य मया आयतजतेपमु- 5 केणं अर्द्धयंदेणं सभोगं से सिरं धरणियले पॉडियं । तओ तं परलोयपाहुणयं काऊण वच्चामो । पेच्छामो य अपरितंतकयंतनिवडियदुक्खं, पुरतो पलंबंतकेसरसढं, महल्लविफालियनंगूलं, रतुप्पलपत्तनियर निल्लालियग्गजीहं, आभंगुर - कुडिल- तिक्खदाढं, ऊसवियदीहनंगूलं, अइभीसणकरं वग्घं । अइभीसणं च तं दद्दूण सामदत्ता अदिट्ठपुत्रभया भीया थरैहरायमाणसवंगी उद्विग्गचित्ता वग्धं पलोएइ । भणिया य मे - सुंदरि ! मा बीह त्ति । सो वि 10 उच्छरंतो विव आहाइतो वग्घो । तस्स य मे आहावमाणस्स कणवीरपत्तसत्थसफला पंच बाणा मुहे छूढा । ततो सो तेहिं बाणेहिं गाढप्पहारीको विपलाओ । # ततो पुणो य पिच्छर्माणं णाणाविहपहरणावरणसंकुलं, उक्कट्ठिपडिहत्थेल्लियर वुम्मीसं विविहपहरणावरण गहियसन्नाहं परबलं च पत्तं । चिंतियं च मया - एए चोरा अम्हे परिमुसिउकामा इओ आगच्छंति । ते दट्ठूण विविहवेसधारिणो पकंपमाणसब सरीरा मममवगू- 15 हिउं पयत्ता सामदत्ता । भणिया य मया — मा विसायं गच्छाहि, पेच्छ, मुहुत्तंतरे एते पउरचोरे सवे जमनिलयं नेमि त्ति । ततो सा पयइकायरहियया मम वयणेण परिसंठविया । अहमवि तेहिं संमंतओ परिवारिओ । मए वि अत्थ-सत्थनिउणत्तणेण पडुयत्तणेण यसरपहारवित्तासिया भग्गा समंततो विप्पलाया । ततो तेसिं सेणावती वायामकढिणगत्तो धणुविकड्डूणपलंबदीहबाहु जुयलो चोरे आसासिंतो रहष्पहारजोगे भूमिभागे सण्णद्धोवेट्ठिओ 20 अज्जुणओ नाम । अहमवि तुरए आसासेऊण सवाउहपरिहत्थं अप्पाणं काऊण वाहिओ मे रहवरो ततोहुत्तो । तेण वि य महुत्तो पयट्टाविओ तुरओ । तओ सरपहकर चडगर-परंप हिं अण्णोष्णस्स छदं मग्गमाणा जुज्झामो । ततो से अंतरं अलभंतेणं चिंतियं मएसमत्थो एस चोरो. न एस सक्कइ एवं पराजिणित्ता. एस रहजुज्झकुसलो अण्णहा छलेडं न तीरइ. अत्थसत्थे य भणियं "विसेसेण मायाए सत्थेण य हंतो अप्पणो विवढमाणो सत्तु" त्ति । 'इमं च एत्थ जुत्तं' ति एसा सामदत्ता सवालंकार विभूसिया रहतुंडे पसिढिलअहो - वत्था ठायउ. एईए रूवावेसियचक्खू हंतवो । ततो मे ठविया सामदत्ता रहतुंडस्स पुरतो । ततो सो रुव-जोग-विलासविम्हियाहियतो तत्थगयदिट्ठी । ततो से मया विहलं "दिट्ठि १ यो ति सप्पे शां० विना ॥ २° तापमु उ२ ॥ ३ 'चंदे ली ३ ॥ ४ पडि° उ २ विना ॥ ५ °स्थरा° उ २ ॥ ६ ° माणो उ २ । ७ च तं उ २ ॥ ८ समं परि° उ २ विना ॥ ९ द्धो चिह्नि° उ २ विना ॥ १० ममाहु उ २ ॥ ११ दिहं जाणिडं नी° उ २ विना ॥ 25 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिल्लहिंडीए [अगडदत्तस्स जाणिऊणं नीलुप्पलसन्निगासेण आरामुहेण थणपएसे आहतो । ततो सो तुरगाओ उयरिऊण भणइ नाहं बाणेण हओ, हओ मि बाणेण मगरके उस्स । . जो भंडणे पयत्तो, महिलाण मुहं पलोएमि ॥ 5 एवं च सो वदित्ता कालगओ । ततो तस्स ते चोरपुरिसा सेगावई मारियं दणं विव. ण्णपहरणावरणा पलाया । अगडदत्तस्स गिहागमणमाइ तो हं निजियसत्तू अजुणयं हंतूण सामदत्तं च समासासेऊण पत्थिओ उजेगिं, पत्तो य कमेणं, पविट्ठो य माऊए घरं । निद्धाइया य मम आगमणं सोऊण पुत्तवच्छला 10 मे माया । रोवमाणीए य रहाओ उइण्णो अवयासिओ अग्घाइओ य सीसे । सा वि य सामदत्ता उयारिया रहातो, पडिया अम्मोपाएसुं । आगंदियहिययाए य अवयासिया, अविहवमंगलेहि य अहिनंदिया, घरं च णाए पवेसिया । सयण-मित्त-बंधुवग्गो य पियपुच्छतो आगतो जहाविहवं संपूइओ । पेसजणेण य तुरया रहो य जहाठाणं पवेसिया ओरुभिया य । सबदवा आउह-पहरणोपकरणाणि य घरं पवेसियाणि । 15 ततो अवरदिवसे मज्जिय-जिमिय-पसाहिओ रायकुलं रायदरिसणनिमित्तं गतो । तओ पडिहारसीविओ पविट्ठो । दिट्ठो य मे राया पण मिओ य । कहियं च से 'अमुगपुत्तो' त्ति । ततो परितुढेण राइणा सवं मे पिउसंतियं कम्ममणुण्णायं, दुगुणो य पूयासकारो कओ । ततो अहं लद्धरायसक्कारो नियगघरं गतो माउसुस्सूसणपरायणो सामदत्ताए समं कालं गमेमि। ततो अन्नया कयाइ रन्ना पुरस्स उजाणजत्ता आणत्ता । निग्गओ राया । जणवओ य 20 जहाविहव-इड्वि-सकारविसेसेहिं अण्णोण्णं अइसयमाणो नियगविहव-रूयए दायंतो निग्गतो। अहमवि निययमित्त-बंधुवग्गपरियरिओ सविभववियाणसूएण इड्डिविहवेण सामदत्ताए सद्धिं उज्जाणं गओ । तत्थ य विविहखज-पेज-गीय-वाइय-हासरवसद्दवोमीसेणं उजाणे पीइसुहं जणो अणुहवति, अम्हे वि। ततो जहासुहं अणुहविऊण परियणसहिओ अवरण्हवेलाए तओ अइगंतुं पयत्तो पुर25 जणो । अम्हे वि य सजा नयरं पविसिउं, ताव य सामदत्ता अइमुत्तयवल्लिदोलाए खेलंती काकोदरेण सप्पेण खइया । ततो धुणंती सा अग्गहत्थे आहाविऊण मम उच्छंगे पडिया 'अजउत्त! परित्तायह, अवरद्धा मि' त्ति भणति । ततो मया संभंतहियएण 'मा भाहि' त्ति भणिया, उवगूढा य । विसवेगपुण्णा खणेण य अचेयणा जाया । तं च ददग जीयविप्प मुक्कं मोहमुवगतो हं । पच्छाऽऽगतो य बहुं विलवामि, ताव य अत्थंगतो दिवसयरो । विस30 जिओ मे परिजणो घरं अम्माए मूलं । अइक्वंता य संझा । अहमवि तस्स उजाणदेवकु १°साहिओ शां०॥ २ राइणो क ३ गो ३॥ ३ वसूय ली. य. विना ॥ ४ वाभी ली ३ ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंहागमणभाइ ] अगड दत्तमुणिअत्त कहा । लस्स तं घेतॄण दुवारमूले अच्छामि बिलवंतो 'हो सामदत्ते ! बहुदुक्खसहाहार ! कीस ममं परिचयसि ?' त्ति सोयपुण्ण हियतो । तत्थ य अद्धरत्तवेलाए अइक्कमंतविज्जाहरजुयलस्स अम्हं चेव भवियबयाए अणुकंपा जाया । उवइयं च मिहुणयं । भणिओ य णेहिं अहं - केण एसा विवरण ? त्ति । ततो मया भणियं - अहिणा खइया । ततो तेण साणुकंपेण सहत्थेण छित्ता 'किं सुवसि ?' ति भणतेण 15 ततो सा उट्टिया । मया वि सो विज्जाहरतरुणो पणमिओ, गतो असणं गयणमग्गेणं । ४७ अम्हे वि देवडलं उवगया । भणिया य मे सामदत्ता - मा बीहेसि, अच्छ मुहुत्तं जाव मसाणाओ अरिंग आणेमि । ततो हं अग्गिं घेत्तूण आगतो, पेच्छामि य तम्मि देवकुले उज्जवं । पुच्छिया य मे सामदत्ता - किमेस उज्जोवो ? त्ति । ततो तीए लविअं - हत्थगयस्स ते अग्गिस्स देवउले उज्जोओ संकतो दीसह । ततो मया लविअं - असिलट्ठि ताव 10 गिहसु जाव उज्जवं करेमि त्ति । गहिया य तीए असिलट्ठी । ततो अहमवि अरिंग उज्जालेडं पयत्तो । अग्गओ य मे असिलट्ठी पडिया । ससंभंतेण य पुच्छिया - किमेयं ? ति । ततो तीए लविअं - संभमो मे जातो, जेण मे असिलट्ठी हत्याओ भट्ट त्ति । ततो अगि जालेऊण पविट्ठा मो देवकुलं वसिया य । गया य सा रयणी । विमलं पभायं जायं । वओ य पभायकाले' मित्त-बंधव सयण- परिजणो य सोऊण 'अणहयसरीरा जाया सामदत्त' त्ति 15 आणंदियाँ। हरिसिया येँ मो देवउलाओ घरमागया । अम्मा य ममं सामदत्तासहियं दद्दूण परं परितोसमुवगया । विसयसुहं च अणुहवंतो सामदत्ताए सद्धिं अच्छामि । अह अण्णया कयाइ रौइणा आणतो- वच्च दसपुरं अमित्तदमणस्स रन्नो दूयत्तणेणं ति । ततो हं तं आणं पडिच्छिऊणं नियगपरिवारसंपरि ( ग्रन्थायम् - १२००) वुडो गओ दसपुरं, वो य, पडिहारसविओ य रायसगास उवगतो । दिट्ठो य मे राया । पणमिऊण य 80 जहासंदेसं विष्णविओ । उवणीयाणि पाहुडाणि । दिण्णावसह लद्धसक्कारो य अच्छामि । I तत्थ य मज्झण्हदेस -याले सुतोवदिद्वेण विहिणा तस पाण-बीयरहिएणं पंथेणं जुगंतरदिट्ठी तवतणुइयसरीरो समणसंघाडगो आवास मे भिक्खानिमित्तं अइगतो, साहुजोगे य पएसभागे ठितो । ततो मया पणमिऊण जहोववण्णसाहुजोगेणं फायदाणेण पडिलाभितो, निग्गतो य । तयणंतरं च पुणरवि बिइओ संघाडगो आगतो, दिण्णा य से भिक्खा, ततो 25 विणिग्गया । मुहुत्तंतरस्स पुणरवि तइओ संघाडगो पविट्ठो । चिंतियं च मया - किं मण्णे मग्गपरिभट्ठा, उदाहु मंदभिक्खयाए, घरगंभीरत्तणविवज्जासेण वा पुणो पुणो आगच्छंति इमे साहू ? । ततो मे भिक्खं दाऊण विन्नविया - भयवं ! कहिं परिवसह ? । तेहिं भणियं– उज्जाणे त्ति । एवं भणिऊण पडिगया । अहमवि मुहुत्तंतरेण कयभत्त-पाणा-SS 1 १ हे उ २ विना ॥ २ °ले मे सम्बं° र २ विना ॥ ३° यह उ २ विना ॥ ४ क० मो० विनाऽन्यत्र - य माइघर ली ३ गो० शां० । य मो घर° उ० ॥ ५ रायणा शां० । रण्णा की ३ ॥ ६ साहिओ शां० ॥ ७ 'वासघरे भि० शां० विना ॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ धम्मिल्लहिंडीए [ दढधम्माइमुणिसंबंधो स्सए जाणिऊण एक्कओ चेव गओ उज्जाणं । पेच्छामि य ते तवसा सूरो इव दिप्पते । उवगंतुं पणमिया मे, उवविठ्ठो य तेसिं पायमूले। पुच्छिया य मे-भगवं. भगवंतो को धम्मो ?। ततो तेहिं अहिंसादिलक्खणो साहुधम्मो सावयधम्मो गुत्तिमूलो य संखेवेण कहिओ । ततो मे अमयमिव कण्णंजलीहिं पाउं विम्हियहियएण पुच्छिया-कत्तोच्चया भयवं! तुब्भे ? 5 किह वा पवजाभिमुहा जाया ?, सरिसरूवधारिणो य पढमजोवणे वट्टमाणा दीसह, परमो य मे विम्हओ तुब्भे दटूण जाओ त्ति । ततो ताण जेद्वेण लवियं । सुण सावय ! अवहिओदढधम्माइमुणिछक्कसंबंधो ___ अत्थि विज्झगिरिसन्नि विट्ठा अमयसुंदरा नाम चोरपल्ली । तत्थ य चोरसेगावती अणेगपल्लिगयप्पयावो अजुणओ णाम । सो य बहुसमरलद्धलक्खो पल्लीजणमणुपालेतो परिवसइ । 10 अहऽण्णया कयाइ कोइ रहेण तरुणीसमग्गो तरुणो अडवीए अइक्कमति । ततो तेण सेणावइणा अभिभूओ । तेग य रहचरियाकुसलेण विवाडिओ, सो य अम्ह जेट्ठो भाया । ततो अम्हे छ ज्जणा भाउसोयसंतत्तहियया, विसेसओ य इत्थिजणेण नेब्भच्छियंता तं रहमग्गेण अणुसरंता उजेणिं गया भाउघाययं मारेउं । 'एसो से' त्ति तस्स य छिदाइं मग्गंता अणुगच्छामो। 15 ततो अण्णया कयाई उजाणजत्तं गतो। चिंतियं च अम्हेहिं- एत्थ वीसत्थो हतबो त्ति । उज्जाणं गया मो, तत्थ य कणिट्ठो मे भाया अहिमरो पउत्तो, अम्हे वि एगते अच्छामो । ततो सबजणे नियत्ते तस्स भजा सप्पेण खइया, उवरया य सा । तेण य सबो नियगजणो विसजिओ । एक्कओ चेव देवउलँदुवारमूले घेत्तूण विलवंतो अच्छइ । अम्ह य भाया दीवसमुग्गयहत्थो पुवपविट्ठो तम्मि देवउले तं 20मारेउं कयववसातो। ततो तहिं विजाहरेण अइक्कमंतेण जायाणुकंपेण सा जीवाविया, उट्ठिया य । ततो य से तरुणो तं तरुणिं देवउले ठवेऊण अग्गिकारणा गतो । ताव य अम्ह भायणा अग्गिसमुग्गो उग्घाडितो । सा य भणिया-अहं ते भत्तारं विवाडेऊण तुम घेच्छामि. जइ य रहस्सेभेयं करेसि ता तुम पि नत्थि त्ति । तीए भणियं-अहं चेव णं मारयामि । ततो तेण अम्ह भाउणा लवियं-किह तुमं मारेहिसि ? । तीए भणियं-एस 25 अग्गि घेत्तूण एहिति, मम य हत्थे असिलहिं दाहिइ, ततो अहं तस्स अग्गि जालिंतस्स सीसं छिंदामि त्ति । तओ अम्ह भाउणा अन्भुवगयं । आगओ य सो अग्गि घेत्तूण। भणइ य-किं देवउले उज्जोउ ? ति । ततो तीए लवियं-तुह हत्थगयस्स अग्गिस्स एस उज्जोउ त्ति । ततो तेण लविया--एयं ताव असिलट्ठी गिण्हसु ति, जाव अग्गि जालेमि त्ति । गहिया य ताए असिलट्ठी । सो य अग्गि जालेउं पयत्तो । सा य असिलहिँ कड्डिऊण 30 आतुं पयत्ता । ततो अम्ह भाउणा चिंतियं-'अहो!!! साहसं महिलाणं ति हियए चिंति - १ सूरा उ २ ॥ २ पीओ ली ३ विना ॥ ३ °सो सु त्ति उ० ॥ ४ °ले बार ली ३ क ३ गो ३ । °ले दुवार° उ० ॥ ५ °स्सभंगं क° शां० ॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९ अगडदत्तमुणिअत्तकहुवसंहारो] धणसिरीणायं । ऊण हत्थे आहया। पडिया य सा भूमीए असिलट्ठी । संभंतो सो तरुणो पुच्छइ-किमेयं ? ति । ततो तीए लवियं-मोहो मे जाओ, तेण असिलट्ठी हत्थाओ भट्ट त्ति । ततो ते रत्तिं खवेऊण णाइप्पभाए घरं गया। ___ सो य मे भाया पडिमापडिच्छादितसरीरो रत्तिं गमेऊण आगतो अम्ह पासं सवं जहावत्तं साहइ । ततो अम्हे छ वि जणा इत्थिजणसाहसं दट्ठण विरत्तघरवासा, इत्थिजणं 5 च निंदता, निबिनकामभोगा पवइया जिणसासणधम्म सोऊण दढचित्तस्स पायमूले | तेणे य गुरुणा संवेगं जाणिऊण नामाणि कयातिं, तं जहा-दढधम्मो, धम्मरुई, धम्मदासो, सुबओ, दढवओ, धम्मपिउ त्ति ॥ . ततो तेहिं साहूहिं एवं कहिए धम्मिल्ल! मया पणमिऊणं विण्णविया-'भयवं ! अहं सो तुभं भायघायओ म्हि. जहाकहियं च तुब्भेहिं सवं मए अणुभूयं. जं तीए साहसं 10 तुज्झ समीवाओ उवलद्धं, इत्थीजणसद्धा य मे नट्ठा. तं मम पसीयह, संसाराडवीकडिल्ले पणस्संतस्स जिणमग्गदसणेणं अणुघेत्तुं सहत्थनित्थारणं करेह' त्ति वोत्तूण चलणेसु निवडितो । ततो तेहिं अहं धम्मे ठविओ। दिण्णा य मे महत्वया, धम्मोवगरणं च ।। एवं मया संसारवाससुलहं सुह-दुक्खमणुभूयं. तं मा अबुहजणपत्थणिज्जासु बुहजणपरिवज्जियासु महिलासु अतीव रइपसत्तो होहि. अवि य 15 गंगाए वालुयं सा-यरे जलं हिमवतो य परिमाणं । जाणंति बुद्धिमंता, महिलाहिययं न याणंति ॥ तं एवंगुणजाइयासु वेसविलासिणिमहिलियासु को ते एत्तिओ अणुराओ ? जं अप्पाणं परिश्चयसि. विरमसु महिलाजणवग्गाओ 'इह-परलोएँ वि दुहावहाउ' त्ति परिगणेऊणं ॥ ततो धम्मिल्लेण अगडदत्तो विण्णविओ-भयवं! न सबो इत्थिजणो एवंगुणजाइओ 20 त्ति. सोर्हणाओ वि अस्थि, जहा सा धणसिरी परपुरिसविदेसिणी अप्पाणं सारक्खमाणी बारस वरिसाणि अच्छिया. तारुण्णए वि वट्टमाणीए न चेव सीलवयाणि खंडियाणि । ततो भयवया अगडदत्तेण भणितो-का सा धणसिरी? किह वा बारस संवच्छराणि अप्पाणं सारक्खमाणी अच्छिय ? त्ति । तेण भणियं-सुणह भयवं!दढसीलयाए धणसिरीणायं 25 __ अत्थि अवंती नाम जणवओ। तत्थ उज्जेणी नाम नयरी रिद्धिस्थिमियसमिद्धा । तत्थ राया जियसत्तू नाम । तस्स रण्णो धारिणी नाम देवी । तत्थ य उज्जेणीए नयरीए दसदिसिपयासो इभो सागरचंदो नाम । भज्जा य से चंदसिरी । तस्स पुत्तो चंदसिरीए अत्तओ समुददत्तो नाम सुरूवो । सो य सागरचंदो परमभागवउदिक्खासं १ वित्तिस्स डे. गो ३ । ढधितिस्स शां० ॥ २ ०णेय णे गरु उ२॥ ३ से उ २ विना ।। ४°लुयाण य सायरजलहिमव क ३ ॥ ५०एय अहितावहाउ शां०॥६°हणो वि क ३॥ व०हिं०७ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिल्लहिंडीए [समुद्ददत्तस्स थीजाई पइ विरागया पत्तो भगवयगीयासु सुत्तओ अत्थओ य विदितपरमत्थो । सो य तं समुददत्तं दारगं गिहे परिवायगस्स कलागहणत्थे' ठवइ, 'अन्नसालासु सिक्खंतो अण्णपासंडियदिट्ठी हवेजा'। ततो सो समुददत्तो दारगो तस्स परिवायगस्स समीवे कलागहणं करेमाणो अण्णया कयाइ 'फलगं ठवेमि' त्ति गिहं अणुपविट्ठो । नवरिं च पासइ नियगजणणी तेण परिवाय5 गेण सद्धिं असब्भमायरमाणीं । ततो सो निग्गतो इत्थीसु विरागसमावण्णो 'न एयाओ कुलं सीलं वा रक्खंति' त्ति चिंतिऊण हियएण निबंधं करेइ, जहा-न मे वीवाहेयवं ति । ततो से समत्तकलस्स जोवणत्थस्स पिया सरिसकुल-रूव-विहवाओ दारियाओ वरेइ । सो य ता पडिसेहेइ । एवं तस्स कालो वञ्चइ । अण्णया तस्स सम्मएणं पिया सुरदुमागतो ववहारेणं । गिरिनगरे धणसत्थवाहस्स 10 धूयं धणसिरि पडिरूवेणं सुंकेणं समुद्ददत्तस्स वरेइ । तस्स य अन्नायमेव तिहिगहणं काऊण नियनगरमागओ । ततो तेण भणितो समुद्ददत्तो-'पुत्त! मम गिरिनयरे भंडं अच्छइ, तत्थ तुमं सवयंसो वच्च. ततो तस्स भंडस्स विणिओगं काहामो' त्ति वोत्तूण वयंसाण य से दारियासंबंधं संविदितं कयं । तओ ते सविभवाणुरूवेणं निग्गया, कहावि सेसेण य पत्ता गिरिनयरं । वाहिरओ य ठाइऊणं धणस्स सत्थवाहस्स मणुस्सो पेसिओ, 15 जहा 'ते आगओ वरो' त्ति । ततो तेण सविभवाणुरूवा आवासा कया, तत्थ य आवा सिया । रत्तीए आगया भोयणववएसेणं धणसत्थवाहगिहे, धणसिरीए पाणिग्गहणं कारिओ । ततो सो धणसिरीए वासगिहं पविट्ठो । ततो णेणं पइरिकं जाणिऊण तीसे धणसिरीते चम्मदि दाऊण निग्गओ, वयंसाण य मज्झे सुत्तो । ततो पभायाए रयणीए सरीरावस्सकहेउं सवयंसो चेव निग्गतो बहिया गिरिनयरस्स । तेसिं वयंसाणं 20 अदिट्टतो चेव नहो । ततो से वयंसेहिं आगंतूणं [*सागरचंदस्स*] धणसत्थवाहस्स य परिकहियं 'गतो सो' । तेहिं समंततो मग्गिओ, न दिट्ठो । ततो ते दीणवयणा कइवयाणि दिवसाणि अच्छिऊण धणसत्थवाहमापुच्छिऊर्णं गता नियगनयरं । ___ इयरो वि समुद्ददत्तो देसंतराणि हिंडिऊण केणइ कालेण आगंतो गिरिनयरं कप्पडियवेस छण्णो परूढनह-केस-मंसु-रोमो। दिट्ठो णेण धणसत्थवाहो आरामगतो । ततो तेणं पणमिऊणं 25 भणिओ-अहं तुभं आरामकम्मकरो होमि । तेण य भणिओ-भणसु, का ते भती दिजउ ? त्ति । ततो तेण भैणियं-न मे भईए कजं. अहं तुझं पसादाभिकंखी. मम तुट्ठीदाणं देजह त्ति । एवं पडिस्सुए आरामे कम्ममारद्धो काउं । ततो सो रुक्खाउवेयकुसलो तं आरामं कइवएहिं दिवसेहिं सबोउयपुप्फ-फलसमिद्धं करेइ । ततो सो धणसत्थवाहो तं आरामसिरिं पासिऊणं १ ली ३ विमाऽन्यत्र-त्थे उवणइ अन्न क गो ३ । रथे उवणीओ अन्न उ २ ॥ २ नसिप्पेसु ली ३॥ ३ निययघरमा उ २॥ ४ °णसत्थ° उ २ ॥ ५ चम्मलुि दा शां० ॥ ६ °ण सागर चंदो गतो निय कस० विना॥७°तो नियगनयरं शां० विना ॥ ८ मकरो उ २ विना ॥ ९ ते वित्ति दि° शां० विना ॥१० लवियं उ २ ॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धणसिरीए दृढपइश्वयया ] धणसिरीणायं । परं हरिसमुवगतो।चिंतियं च णेणं-किमेएणं गुणाइसयभूएण पुरिसेण आरामे अच्छंतेण ?. वरं मे औ(अ)वारीए अच्छउ त्ति । ततो एहविय-पसाहिओ दिण्णवत्थजुयलो ठवितो आवणे । ततो तेण आय-वयकुसलेणं गंधजुत्तिनिउणत्तणेणं पुरजणो उम्मत्तिं गाहितो । ततो पुच्छितो जणेणं-किं ते नामधेयं ? । पभणइ य–विणीयओ' त्ति मे नामधेयं । एवं सो विणीयओ विणयसंपन्नो सबनयरस्स वीससणिज्जो जातो । ततो तेण सत्थवाहेण चिंतियं-5 न खमं मे एस आवणे य अच्छंतो. मा एस रायसंविदितो (ग्रंथानम्-१३००) हवेज, ततो रायणा हीरइ त्ति. वरमेस गिहे भंडारसालाए अच्छंतो । ततो तेण सगिहं नेऊण परियणं च सद्दावेऊण भणियं-एस वो विणीयओ जं देइ तं भे पडिच्छियवं, न य से आणा कोवेयव त्ति । ततो सो विणीयओ घरे अच्छइ, विसेसओ य धणसिरीए जं चेडीकम्म तं सयमेव करेइ । ततो धणसिरीए विणीयको सबवीसंभट्ठाणितो जातो। 10 ___ तत्थ य नयरे रायसेवी एक्को य डिंडी परिवसइ । इओ य सा धणसिरी पुवावरण्हसमए सत्ततले पासाए अट्टालगवरगया सह विणीयगेणं तंबोलं समाणयंती अच्छइ । सो य डिंडी व्हाय-समालद्धो तस्स भवणस्स आसण्णेण गच्छति । धणसिरीए तंबोलं निच्छूढं पडियं डिंडिस्सुवरि । डिंडिणा निज्झाइया य, दिट्ठा य णेणं देवयभूया । ततो सो अणंगबाणसोसियसरीरो तीए समागमुस्सुओ संवुत्तो।चिंतियं च णेणं-एस विणीयओ एएसिं 15 सबप्पवेसी, एयं उर्वतप्पामि. एयस्स पसातेणं एतीए सह समागमो भविस्सइ त्ति । ___ ततो अण्णया तेण विणीयगो नियगभवणं नीओ। पूया-सक्कारं च काउं पायपडिएण विण्णविओ-तहा चेट्ठसु, जेण मे धणसिंरीए सह संजोगं करेसि त्ति । ततो सो ‘एवं होउ' त्ति वोत्तूण धणसिरीते सगासं गतो। पत्थावं च जाणिऊण भणिया णेणं धणसिरी डिंडियवयणं । ततो तीए रोसवसगयाए भणिओ-केवलं तुमे चेव एवं संलत्तं, अण्णो 20 ममं न जीवंतो त्ति। ततो सो बिइयदिवसे निग्गतो, दिट्ठो य डिंडिणा। भणितो णेणं-किं भो वयंस! कयं कजं? ति । ततो तेण तवयणं गूहमाणेणं भणियं-घत्तीहं ति । तओ पुणरवि तेण दाण-माणेणं संगहियं करेत्ता विसजिओ। ततो सो आगंतूण धणसिरीए पुरतो विमणो तुण्हिक्को द्वितो अच्छति । ततो तीए धणसिरीए तस्स मणोगयं जाणिऊण भणि ओ-किं ते पुणो डिंडी किंचि भणइ ? । तेण भणियं-आमं ति । तीए निवारितो-न ते 25 पुणो तस्स दरिसणं दायचं ।पुणो य पुच्छिन्नमाणो तहेव तुहिको अच्छइ । ततो तीए तस्स चित्तरक्खं करेंतीए भणिओ-वच्च, देहि से संदेसं, जहा-असोगवणियाए तुमे अज १°मेवंगुणा उ २ विना ॥ २ आवणे अच्छ° ली ३ ॥ ३ यं सच्चो विणी उ २ विना ॥ ४ मोसुओ शां० ।। ५ णिय उ२ विना । एवमग्रेऽपि क्वचित् कचित् ॥ ६ ली ३ विनाऽन्यत्र-वसप्पा उ २ कसं० मोसं०॥ ७ सिरिए उ २ विना । एवमग्रेऽपि कचित् कचित् ॥ ८ °यमंतरेण । ततो ली ३ उ २॥ ९ °णो तु° उ २ विना॥ * अवारीए आपणे इत्यर्थः । तथाहि-“आवणे अवारो अवारी अ" देशीनाममाला १-१२॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ धम्मिल्लहिंडीए [ धम्मिल्लस्स तवासेवण पओसे आगंतवं ति । तेण तहा कयं । ततो सा असोगवणियाए सेज पत्थरऊण जोगमजं च गिण्हिऊण विणीयगसहिया अच्छइ । सो आगतो । ततो तीए सोवयारं मजं से दिण्णं । सो य तं पाऊण अचेअणसरीरो जाओ। ताते तस्सेव य संतियं असिं कड्डिऊण सीसं छिण्णं । पच्छा विणीयगो भणिओ-तुमे अणत्थं कारिया, तुज्झ वि सीसं छिंदामि त्ति। 5 तेण पायवडिएण मरिसाविया । विणीयगेणं धणसिरिसंदिटेणं कूयं खणित्ता निहिओ। ततो अन्नया सुहासणवरगया धणसिरी विणीयगेण पुच्छिया-सुंदरि! तुमं कस्स दिन्ना ? । तीए भणियं-उजेणिगस्स समुददत्तस्स दिण्णा । तेण भणियं-'वच्चामि, अहं तं गवेसित्ता आणेमि' त्ति भणिउं निग्गओ । संपत्तो य नियगभवणं पविट्ठो, दिट्ठो य अम्मापिऊहिं, तेहि य कयंसुपाएहिं उवगूहिओ । ततो तेहिं धणसत्थवाहस्स लेहो 10 पेसिओ 'आगतो मे जामाउओ' त्ति । ततो सो वयंसपरिगहिओ माता-पितीहि य सद्धिं ससुरकुलं गतो । तत्थ य पुणरवि वीवाहो कओ । ततो सो अप्पाणं गूहेंतो धणसिरीए विणीयगवेसेणं अप्पाणं दरिसेइ । रयणीए य वासघरं गतो दीवं विज्झवेऊण तीते सह भोगे भुंजइ । ततो तीए तस्स रूवदसणनिमित्तं पच्छण्णदीवं ठवेऊण तस्स रूवोवलद्धी कया । दिह्रो य णाए विणीयओ । ततो तेण सबं संवादितं ॥ तं भयवं! अणेगंतो एस महिलाणं ति ॥ धम्मिल्लस्स तवासेवणं तवफलपत्ती य मम पुण माउ-पिउ-विभवविओगविहुँरियस्स दुक्खियस्स उवायं साहिउं पसीयह, जेण अहं विभवं पोवेमि. अवितिण्हकामभोगो इहलोइयसुहाई इच्छामि त्ति । ततो तेण लवियं-'अत्थि जिणसासणे बहवे उवाया दिट्ठा विजाफल-देवयप्पसाया य. तत्थ देव20 याओ उववासेहिं भत्तीए य आराहियाओ जहाचिंतियं फलं देंति. विजाओ य पुरचर ण-बलिविहाणेहिं सिझंति. उववासविहीओ य बहुविहँप्पयाराओ, जा इहलोए परलोए य फलं देति. तत्थ पुण अमोहं उववासं साहुणो भणंति. जो छम्मासे आयंबिलं करेइ तस्स इहलोइया इच्छियफलसंपत्ती होइ' त्ति भणिए तेण भणियं-भयवं! अहमायंबिलं करेमि त्ति । ततो सो तेण दवलिंगं गिण्हाविओ, अणुरूवं च उवगरणं दत्तं । ततो उव25 वासं (आयंबिलं) काउं पयत्तो । फासुएणं भिक्खा-पाणएणं अइकंता य से छम्मासा । ततो तेणं तवचरणेणं किलामियसरीरो परिचत्तोवगरणो अगडदत्तस्स पाए पणमिऊण निग्गओ । वच्चंतेण य एगं भूर्यघरं दिलु, तत्थ य पविट्ठो अच्छइ, ताव य सूरो अत्थमिओ । तवकिलामियसरीरो पसुत्तो। देवयाए य लवियं आसस वीसस धम्मिल!, लैंब्भिसि माणुस्सए तुम भोए । बत्तीसं कण्णाओ. विज्जाहर-राय-इव्माणं ॥ १. १ कहियं शां०॥ २ सो अप्पाणं न दरिसेइ । रयणी उ २ विना ।। ३ स्स रूवस्सख्वदं० उ २ विना ॥ ४ विरहिय शां० विना ॥ ५ पावामि उ २ ॥ ६ भत्तीय य शां० ॥ ७°विधप्प° उ २॥ ८ बिले शां०॥९°यगघरं उ २ विना॥१० लहिजसि क ३ ॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तव फलपत्ती य]. धम्मिल्लचरियं । ५३ ततो सो तं अमयमिव आसासकरं देवयाए वयणं सोऊण पडिबुद्धो विगयसोग- परिस्समो जाओ । परिमुहुत्तंतरस्स य ततो पासइ रहवरं अवगुंठियपहरणं, तत्थ आगयं, धवलतुरगसुसंत्तं । ततो रहवराओ एगा इत्थिया ओयरिऊण पुच्छइ - एत्थ धम्मिल्लो ? ति । ततो तेण लवियं - इमो त्ति । ततो तीए भणियं - ऐहि एहि त्ति । ततो सो निग्गओ । दिट्ठा य णेणं रहतुंडनिविट्ठा कुप्पासयपिहियकाया तोत्तयगहियवावडग्गहत्था । तो तीए 5 भणितो- आह रहवरं, पयट्टेहि य । ततो सो विलग्गो, पेच्छइ य एवं तत्थ वरतरुणिं सियदुगूलसंवरियदेहं । ततो तेण पयट्टाविओ रहवरो, वञ्चति य सुहेणं चंपापुरिमग्गमोइण । ततो सा तरुणी धम्मिल्लरस रूवदंसणकोऊ है हुस्सुयहियया रयणीए खयं उवेहमाणी वञ्चइ । पभायं च खगदाए । एगत्थ पदेसे दुगसमीवे तुरगवी सामणनिमित्तं परिसंठियाई, सोइया तुरया धम्मिल्लेण वीसामऊण पयत्तो । दिट्ठो य तीए तरुणीए 10 तवसोसियसरीरो, दट्ठूण य विरागमावन्ना | अवि य तवसा सुसियसरीरं, पागडसिरजाल - ण्हारुपरिणद्धं । दहूण किलामिययं, लुक्कविलुक्कं च लोएणं ॥ भणइ य-किं ते अम्मो ! पिसाओ विलइओ रहं ?, दहूणं पि मे अणिट्ठो, किं पुण एए परिभोगो ? । ततो सा भणइ - हा हा ! कुलदूसणी ! न जुज्जइ ते नियत्तणं ति. 'जाव- 15 ज्जीवं च ते पिउ-माउ-बंधवजणाओ परिभवो भविस्सइ' त्ति वरं ते अन्नदेसगमणं, न य ते पिउधरगमणं. किं अन्नत्थ पुरिसा नत्थि तो नियत्तेसि ? वच्चामो एएण समं अप्पणो कज्जनिमित्तं चिंतयंता अइक्कंतकंताराए य जइ न रुच्चिहिइ ततो अप्पणो जं इच्छियं तं करेहिसि त्ति । तं च धम्मिल्लेण सुणतेणं तुण्डिक्केण जोइया तुरया । ततो ताओ आरूढाओ, पयट्टा विओ रहवरो, पत्ता य अंतिमगामं । रहवरं च बाहिं ठवेडं वसहिमग्गणहेडं धम्मिल्लो गंतुं पयत्तो | 20 तस्स य गामस्स अब्भासे पुरिसपरिवारिओ गामसामी आसं गहाय अच्छइ । ततो तस्स सयासे गंतूणं कओ णेण अंजली, पुच्छिओ य-किमेस आसो अच्छइ ? त्ति । ततो सो भइ - मम वं गयस्स एस आसो कंडेण विद्धो, अंतस्सल्लो न य से दीसइति । तेण लवियं-- किं इहं विज्जा नत्थि ? । 'नत्थि' त्ति भणिते तेण भणियं - पेच्छामो ताव णं । गामसामिणा भणियं - पेच्छ, पसायं मे करेह जहा जीवइ त्ति । तओ तेण निज्झाइओ, 25 दिट्ठो य गूढसलो । तओ खेत्तमट्टियं आणावेऊणं सबो आलित्तो । मुहुत्ततरस्स य सो सल्ल एसो सुक्को । तओ तं पएसं फालेऊणं कड्डिओ सल्लो । घयमहुणा तस्स मुहं भरेत्ताणं कथं से वणरोहणं । सत्थो जाओ । परितुट्टो गामसामी भणइ - कहिं गंतवं ? ति । तेण भणियं - १ एहि णीहि त्ति शां० विना ॥ २ रुह र शां० विना ॥ ३° हलुस्सुया रय° उ० । हलसहिया रय° ली ३ क ३ गो ३ ॥ ४° च उ २ ॥ ५ आसइ उ २ ॥ ६ उ २ विनाऽन्यत्र - कूवियागय कसं० । कवियागय° ली ३ गो ३ ॥ ७ क. ३ विनाऽन्यत्र —– सायं च तह करे शां० ॥ ८ हुत्त मंतर उ २ ॥ ९ 'हुस्स भरे क ३ विना ॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ धम्मिल्लहिंडीए [ विमलसेणापरिचओ अहं समाणुसओ चंपं वच्चामिति । ततो तेण परितुट्ठेण दवाविया वसही, पवेसिओ य रहवरो, ओइन्नाओ य ताओ, मोइया य तुरया जवसजोग्गासणे य लंभिया । ततो गामसामिणा तेसिं सामिसरिसो उवयारो कओ' । तओ सा तरुणी इच्छियजणस्स अलंभेण पच्छाताव- परिस्समेण य चिरं जग्गिऊण निद्दावसमुवगया । सो वि य ताए महत्तरियाए 5 समं उल्लोवेडं पयत्तो । सा भणइ, सुणह अज्जउत्त ! - विमलसेणापरिचओ अत्थि इहेव नयरे अमित्तदमणो नाम राया । तस्स य धूया विमला नाम । सा पुरिससंसगिंग परिहरइ, कहाए य रोसं गच्छइ । ततो राईणा परिचिंतिऊण रायमग्गस्स अभासे पासाओ कारिओ । तत्थ य बहूहिं वयणकारियाहिं मए य सद्धिं अच्छइ बहुरू10ववेससंछन्ने पुरिसे पिच्छंती । चेडीहि य उल्लावियतं सुयं, जहा - इह मगहापुरे बहुरुवगुणसंपन्न धम्मिल्लो नाम सत्थवाहदारओ परिवसइ । सो य तीए अन्नया कयाई रायमग्गेण वञ्चंतो अवलोइओ, पुच्छिओ य ' को एसो ?' त्ति । ताहिं कहियं - सामिण ! एस सो धमिलो । तत एयं सोऊण पेसिया दासचेडी, पडिनियत्ता य गयसंदेसा भणइसामिण ! मया जहावत्तं सवं भणिओ सो इहं नयरे विच्छिन्नविहवस्स समुद्ददत्तस्स 15 सत्थवाहस्स पुत्त धम्मिल्लो. तेण य भूयघरे संकेओ कओ त्ति । एसा य ममं भणति - कमलसेणे ! किं एत्थ जुत्तं ? ति । मया चिंतियं - एस अच्छेरयं, जं एयाए पुरिसो वरिओ । 'पाव ताव इच्छियपुरिससमागमं ति परिगणेऊणं मया भणिया-सुंदरि ! एवं भवउ. वच्चामो, जत्थ तेण संगारो कओ । ततो अम्हे दो वि जणीओ रहवरमारूढाँओ भूयघरमागयाओ | मैयहरओ य णे वक्खेवपुत्रं विसज्जिओ, नियत्तो य । तत्थ य अम्हेहिं 20तुमं दिट्ठो । ततो एसा पुवगयनेहाणुरागेणं 'सो एस' त्ति पभाए दट्ठूण विरागमुवगया ॥ तं अज्जउत्त ! एस जियस तुस्स रण्णो धूया विमला नाम तह ते अणुणएयबा जह मए समं आणत्तिकारिया होहि त्ति । ततो धम्मिल्लेण करयलसंपुढं रएऊण भणिया-कमलसेणे ! तुज्झायत्तो मणोरहो. तहा कुणसु जहा से ममोवरिं चित्तोवसमो समारुहइ. अहं प से आराहणापरोति । ततो तेसिं उल्लाव - (ग्रंथाप्रम् - १४००) समुल्लावेण गया सा रयणी । 25 कमेण य विमलं पभायं । तओ पभाए पुच्छिओ गामसामी । कयपाणीयकज्जेण य चोइओ रहवरो, आरूढो य गंतुं पयत्तो । अवकंता गामाओ अडविं संपत्ता अणेगभीम-अज्जुणरुक्खगहणं, बहुसावय-सउणगणसेवियं, बहुसरजलाउलं । ततो थोवंतरागया य पेच्छंति पंथब्भासे महाभोगं, गुंजद्धरागरत्तनयणं, वायपुंजमिव गुमगुमायंतं, निल्लालियजमलजुयलजीहं १ ओ । तरुणी य इच्छि° उ २ विना ॥ २ 'लवियं पशां० ॥ ३ विमलसेणा नाम क ३ ॥ ४ पुरिसकहाए उ २ || ५ रायणा शां० ॥ ६ °तो ताएयं ली ३ विना ॥ ७ °ढा य भू° उ २ विना ॥ ८ घरं ग २ । ९ महत्तर° २ । १० 'लसेणा ली ३ गो ३ ॥ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ताए एसह चंपागमणं च] धम्मिल्लचरियं । भुयंगमं । दटूण य कमला विमलसेणा य भीयाओ । धम्मिल्लेण य आसासिऊण साहुजणपरंपरागयाहिं उस्सारणीहिं मग्गाओ दूरमुस्सारिओ । ___ अयकता पेच्छंति नर-मियसोणियमंसरसलुद्धं, जिभाए उढे पलिहतं, विफालियवयणं, तिक्खदाढं वग्धं । पुणो वि ताओ भीयाओ महिलासहावहिययाओ । तओ पुणरवि समासासेऊण मंतप्पभावेण वग्यो उसारिओ । गंतुं पयत्तो । पुरओ य पेच्छंति-कालमेघमिव गुलगुलायंत(तो), नवपाउसदुदिणेण विय पच्छापउरदाणसलिलेणं भूमिं आसासेंतो, आलइयदंतमुसलग्गहत्थो हत्थी पंथं रंभिऊण अच्छति। द₹ण य तं गयवरं भणिया णेणं कमला-सुंदरि ! पेच्छह मुहुत्तंतरं जाव णं खेल्लावेमि त्ति । एवं च भाणिऊण उइण्णो रहवराओ । तओ य विमलाए चित्तहरणं करेंतो पोत्तवेंटलियं काऊण हक्कारिओ णेण हत्थी । तओ सो ऊसवियवालो पलाइऊण पाएण भूमिं 10 अग्गहत्थेण य ओहंतूण सुरियत्तग्गहत्थो तस्स वहाए हवमागतो । ततो तेण तस्स पुरओ उत्तरिजं अवक्खडियं, तत्थ सो निवडिओ । तओ य से लहुयत्तणसिग्घयाए य दंतमुसले पाए काऊण खंधे आरूढो । ततो सो परिकुविओ आरडइ, धावइ, विधुणइ, निवडइ, अग्गहत्थेण उसुंभिउं इच्छइ । सो य णं सिक्खालाघवेणं खेल्लावेइ । तओ पाय-दंतमुसलअग्गहत्थ-बालेहिं पहंतुं इच्छंतो न चएइ तं घाएउं । ततो सच्छंदवणविचरणसुकुमा- 15 लियसरीरो पमुक्को गयवरो खरं उरसिऊणे तरुगहणं भजतो पलाओ । सो वि हसिऊण रहवरं समारूढो । कमलसेणा-विमलसेणाओ वि य परं विम्हयं गयाओ। तओ पयट्टिओ रहवरो । पेच्छंति य पुरओ महंतमासरासिसंकासं, विसमतडवम्मीयघायतिक्खग्गसिंगं, पुरओ अवक्खुरायंतं, महंतकायं, पासिल्लियदिट्ठीयं महिसं । तओ चिंतियमणेण-तुरयपहरणत्थं जाव एस इमं भूमिभागं न पावइ ताव उयरिऊण एयस्स 20 पलायणोवायं चिंतेमि । उइन्नो य रहाओ । गंतूण रुक्खंतरेहिं तस्स पच्छिमभाए विसमभूमितरुगहणेगदेसभाए संठिएणं महंतो सीहनाओ मुक्को । तओ सों सीहसहसंजायमओ गुम्म-वल्लि-लयागहणेहिं लग्गंतअग्गसिंगो पलाओ । सो वि रहवरब्भासमागओ । __ पेच्छइ य बहुपहरण-खग्ग-सत्ति-फलए, णाणाविहदेसभासाविसारए, दवदवस्स इंते, दतॄण य कमला विमला य तकरे वेविउं पयत्ताओ । ततो तेण आसासियाओ ‘मा 25 वीहेह'त्ति भणिऊण मग्गभासे ठितो।लउडं च णेण गहाय फलय-सत्तिहत्थो धाविऊण एको तकरो एक्केणं लउडपहारेण पाडिओ । तंफलय-सत्ती अणेण गहिया। तं च गेहियाउहं च दटूण सहसा सूरभडा भडवायं वहंता आवडिया । तेण वि य फरचरियसिक्खागुणेणं मज्झमभि १°सनिद्धं क३॥ २ आगंतूक ३ गो ३ ॥ ३ °ण तुरिय...च्छह ली ३१°ण तुरियग्गच्छजह क ३ । °ण तुरियग्गत्थह° गो ३॥ ४ °णाइ उ २ विना ॥ ५ °ण वणगह ली ३ शा० विना ॥ ६ °तमसिरा ली ३॥ ७°यपायं तिक्खसिंगं उ २ विना ॥ ८ सो संजायसीहसहभओ उ २ विना ॥ ९ ली ३ विनाऽन्यत्र-गहियं हयं च क ३ शां० । गहियाहयं च गो ३ ॥ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ धम्मिल्लहिंडीए [धम्मिल्लस्स चंपापुरिगमणं, गंतूणं पहया दिसोदिसिं विकिण्णा, फलह-सत्ति-तोमर-आउहाइं छड्डेऊण पलाया तकरा । तेसु य पलायंतेसु चोरसेणावती गजंतो आगओ 'पहर पहर' त्ति नाम सांधेतो । सो वि तेण जियकरणेणं मायाए जंतमिव भमिऊण, छिदं च लहिऊण, एकाए चेव सत्तिपहाराए घाइओ। तं च दट्टण पडियं पलाया हयसेणावइया चोरा । 5 ततो सो पडिनियत्तो रहन्भासमागतो, आरूढो य रहवरं । सुणइ य पुलयायमाणसरीरं कमलसेणा(णं) गुणपरिकित्तणं करेमाणी । ततो विमलसेणाए लवियं __ मा मे दमगस्स कहं, कहेसि मा गेण्ह नाममेयस्स । जाणामि अहं अम्मो !, तुम पि अच्छीहिं मा पेच्छ ।। एवं वोत्तूण तुण्हिक्का ठिया। तेण वि य पर्यंट्टिओ रहवरो। पुरओ य पडह-भंभारव-संख10 सद्दवोमीसं, विजयवेजयंतीय सोहियं, भडकिलिकिलरवोमीसं उक्कट्ठिसहं सुणेइ । चिंतियं च णेणं-नणु हएल्लियाणं चोराणं अणुबलं आगयं ति । ततो तं च दह्ण दुगुणतरागं भीया रायधूया विमलसेणा कमलसेणा य । तेण य समासासियाओं-न मए जीवंतेणं परस्स परभवणिया होहि त्ति जाव ताउ परिसंठवेति ताव ताउ परबलाउ बद्धपरिकरो, एक्को पडिमल्लो, पडिभणियवयणउत्तरकुसलो, विणीयवेसगहणो, विक्खित्तपहरणो पुरिसो 15 तस्स सयासमागओ । तओ तेण चिंतियं-नूण एस दूओ होहिइ त्ति । तेण य दूरट्ठिएण विणयरइयंजलिणा विण्णविओ-अजउत्त ! अम्ह सेणावती अजियसेणो णाम अंजणगिरिदरिसन्निविट्ठाए असणिपल्लीए अहिवई विण्णवेति. जहा, सुयं मए-तुमए किर अजुणओ नाम चोरसेणावती मारिओ, बहुभयजणणो य इमो मग्गो खेमीकओ. अहो ! परितुट्ठो मि. सो य अज्जुणओ मम वेरिओ होइ. तओ अहं अच्छेरयं मन्नंतो तुज्झ 20 दंससद्धाकंखिरो इहमागतो. कोऊहल्लेण मे जाओ, तं अभयं ते, मा बीहेहि, वीसत्थो होहि इत्ति । ततो सो तं वयणं सोऊणं हद्वतुट्ठमाणसो गतो ततोहुत्तो । तेण वि य पच्चोइओ तुरओ, उइण्णो आसाओ । ततो सो वि रहवराओ उयरंतो चेव अवयासिओ । मत्थए अग्घाइऊण भणिओ-वच्छ ! अहो ! ते साहसं कयं, जं एस अम्हेहिं अवाहियपुत्रो, अण्णेहि य बहूहिं, मग्गो ते वाहिओ. खेमो य कओ अजुणयमारणेणं ति । ततो 25 तेण भणियं-तुम्भं पापभावेणेति । अभिनंदिओ य तं घेत्तूण पल्लिं पविट्ठो । दिण्णाव सह-भत्तयाविसेसो य तत्थ सुहं परिवसइ । सा य तओ कमलसेणा विमलसेणं गमेइ तस्स गुणकित्तण-पसंसणाहिं । तओ सा लवइ मा मे दमगस्स कहं, कहेहि मा गेण्ह नाम एयस्स । अच्छीहिं वि तेहिं अलं, जेहि उ दमगं पलोएमि ।। ... १सावेतो शां० ॥ २ °यसेसिया शां० ॥ ३ पलोए य शां० ॥ ४ यहो रह° उ २ विना ॥ ५°वोम्मी उ २ विना ।। ६ धयविजउ २॥ ७°ओ भणिआओ न उ० ॥ ८ हिइत्ति उ २॥ ९ °णसवाए कंक ३ गो ३ । °णसव्वए कंली३ ॥ १० लवियं उ २ ॥ ११ पसादेणं ति उ २ ॥ १२ °हभत्तभूयावि° शां० । हपूयावि° उ० ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सागडिअस्सोदतं ] धम्मिल्लचरियं । तओ कवि दिवसेसु गएसु तेण पेल्लिसामी विष्णविओ - वच्चामि चंपंनयरिं, विसज्जेह मं ति । ततो तेण पूया-सकारिओ विसजिओ विमल कमल सेण सहिओ पत्थिओ चंपापुरिं । ततो सुहंसुहेणं गामंतरवसहीसुं वसंता संपत्ता चंपानगरीए अवभासं । तत्थ य नाइजणाणे उज्जाणव्भासे रहूं ठवेऊण भणिया णेण कमलसेणा - अच्छह तुभे हं, जाव अहं चंपं गंतूणं आवसहं गवेसित्ता आगच्छामि । ततो कमलसेणाए 5 भणिओ - अज्जउत्त ! पारणं पुर-नयर जणवएसुं अइसंघओ जणो परिवसइ, तं कय- विक्कयो वि सागडिओ जहा न छेलेज्जासि तहा अपमन्तो होज्जासि त्ति । ततो तेण भणिया कमलसेणा -- कहं कय- विक्कयलुद्धो सागडिओ ? । तओ सा भणइ --सुणह अज्जउत्त ! - नागरियछलिअस्स सागडिअस्स उर्दतं अस्थि कोइ कहि गामेलओ गहवती परिवसइ । सो य अण्णया कयाई सगडं 10 धण्णभरियं काऊणं, सगडे य तित्तिरिं पंजरगयं बंधेत्ता पट्टिओ नयरं । नयरगतो य गंधि पुतेहिं दीसइ । सो य तेहिं पुच्छिओ - किं एयं ते पंजरए ? त्ति । तेण लवियं- तित्तिरि त्ति । तओ तेहिं लवियं-- किं इमा सगडतित्तिरी विक्कायइ ? । तेण लवियं- आमं, विक्कायइ । तेहिं भणिओ - किं' लब्भइ ? | सागडिएण भणियं - काहावणेणं ति । ततो तेहिं काहावणो दिण्णो, सगडं तित्तिरं चं घेत्तुं पयत्ता । ततो तेणं सागडिएणं भण्णति - 15 कीस एयं सगडं नेहि ?त्ति । तेहिं भणियं - मोल्लेण लइययं ति । ततो ताणं ववहारो जाओ, जितो सो सागडिओ, हिओ य सो सगडो तित्तिरीए समं ॥ तं अज्जउत्त ! एवं जाणिऊण अवहितो होज्जासि त्ति । सागडिअस कुलपुत्तदंसियपगारेण नागराणं छलणं ५७ ततो णेण कमलसेणा भण्णइ कमलसेणे ! सो सागडिओ हियसगडोवगरैणो जोग - खेम - 20 निमित्तं आणिऍल्लियं बइल्लं घेत्तृणं विक्कोसमाणो गंतुं पयत्तो, अण्णेण य कुलपुत्तएणं दीसइ, पुच्छिओ य - कीस विक्कोससि ? । तेण लवियं - सामि ! एवं च एवं च अइसंधिओ हूं । ततो तेण साणुकंपेण भणिओ -- वच्च ताणं चेव गेहं एवं च एवं च भणाहि त्ति । ततो सो तं वयणं सोऊण गओ, गंतूण य तेण भणिआ -- सामि ! तुभेहिं मम भंडभरिओ सगडो हिओ ता इमं पिबइल्लं गेण्हह. मम पुण तप्पणादुया ( पा ? ) लियं देह, जं घेत्तूण वच्चामि 25 त्ति. न य अहं जस्स व तस्स व हत्थेणं सत्तुयादुया (पा ? ) लियं गेण्हामि, जा तुज्झ घर पाणेहि वि पिययरी सवालंकारभूसिया तीए दायवा, ततो मे परा तुट्ठी भविस्सइ. जीवलोगब्र्भतरं व अप्पाणं मन्निस्सामि । ततो तेहिं सक्खी आहूया, भणियं च एवं होउत्ति । ततो तणं पुत्तमायान्नुयादुया (पा?) लियं घेत्तूण निग्गया, तेण सा हत्थे गहिया, घेत्तूणय तं १ पल्लियासा शां० ॥ २ जाए स° ली ३ गो ३ ॥ ३ अ उ २ विना ॥ ४° इणि शां० ॥ ५ इहेव उ २ ॥ ६ छलिज्जासे शां० ॥ ७ लविया उ २ ॥ ८ र ति उ २ विना ॥ ९°विओ शां० ॥ १० किह ल लो ३ । कित्तिएण ल' उ०। ११ चाऽऽयाउं प उ १ विना ॥ १२ को एगं रूवयं बद्दलए य घेत्तू' ली ३ ॥ १३ °णियल्लियं बयलं" उ २ विना ॥। १४ ताणं तुज्झ मया सत्तु उ २ कसं० विना ॥ व० [हिं० ८ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिल्लहिंडीए [धम्मिल्लस्स चंपापुरिगमणं, पहिओ।तेहिं वि भणिओ-किमेय करेसि? । तेण भणियं-सत्तुंदुया(पा?)लिय नेमि । ततो ताणं सद्देण महाजणो संगहिओ, पुच्छिया-किमेयं ? ति । ततो तेहिं जहावत्तं सवं परिकहियं । समागयजणेण य मज्झत्थेणं होऊँण ववहारनिच्छओ सुओ, पराजिया य ते गंधियपुत्ता । सो य किलेसेण य तं महिलियं मोयाविओ, सगडो अत्थेण सुबहुएण सह परिदिण्णो । 5 तं कमलसेणे ! एरिसओ अवरो जो होहिइ सो किह वंचिजिहिइ ? त्ति । ततो कमलसेणा तं सोऊण पहसिया । भणिओ य णाए-वच्चह पुणरागमणाए विजएणं ति । ततो कमलसेणा विमलसेणं भणइ-विमले! पेच्छसु इमस्स पुरिसस्स विण्णाणं ति । ततो विमलाए संलविया वेसा मे पेसकहा, पेसस्स य जंपियं च मे वेस्सं । 10 जत्थ वि य ठिओ पेसो, सा भूमी होइ मे वेसा ॥ ततो सो तं वयणं सोऊणं गंतुं पयत्तो । चंपाए नयरीए अब्भासे चंदा नाम नदी, तहिं जलव्भासे मुहुत्ततरं निविट्ठो, ततो य नलिणिपत्ताई घेत्तूण अणेगविहिप्पयारं पत्तच्छेज्जं च काऊण सुक्रुक्खछल्लिणावियाए नदीए छूढा, वुज्झमाणा (ग्रंथानम्-१५००)य गंगं संपत्ता।तं च छोढूण नाणाविहाइं छेज्जाइं करेंतो अच्छइ, 15 ताव य नदीतडेणं तुरियं तुरियं दोन्नि जणे इजते पिच्छइ । ते य तस्स समीवमागंतूण पुच्छंति-सामि! केण एवं पत्तच्छेज्जं कयं? । ततो तेण भणियं-मए त्ति । ततो तेहिं लवियं-सामि ! अत्थि इह नयरीए कविलो नाम राया. तस्स पुत्तो जुवराया रविसेणो णाम. सो वि ललियागोट्ठीए समं गंगाए खेल्लइ. तेण य खेल्लंतेण पत्तच्छेजं दिह. तं च दद्दूण अम्हे पेसिया-जाणह, केण इमं पत्तच्छेजं निउणेण कयं ? ति. तं अम्हेहिं दिट्ठो सि, पसीयह 20 रायपुत्तसयासं गंतुं । ततो सो गतो, पुवाभासिणा य ससंभमं आभासिओ। तेण वि सवि गयंजलिउडेण संपूइओ । ततो तेण पुच्छिओ-कत्तो वच्चंति अजमिस्स ? त्ति । धम्मिल्लेण विण्णवितो-कुसग्गपुराओ सपरियणो अहं ति । तओ तेहिं गोट्ठिएहिं आणत्तो सिग्धं आवसहो से सब्जिओ त्ति । तओ गोट्ठियमहत्तरएहिं 'सज्जो आवसहो' त्ति निवेइओ । तओ . परितुढेण य सो भणिओ-उटेह, वच्चामो माणुसगाणं सगासं, पञ्चुगच्छामो त्ति । तओ 25 सो सवगुढिसंपरिखुडो धम्मिल्लेण सद्धिं हत्थिखंधमारूढो गतो माणुसगाणं सगासं । आणियाओ य कमल-विमलसेणाओ, पविट्ठा आवसहं । ततो सो जुवराया गोट्ठियमहतरए संदिसिऊण 'सवं से कजं करेह, जहा य एस दारगो दुक्खिओ न होइ' त्ति भणिऊण नियगभवणं गओ । गोट्ठियमहत्तरएहिं जं जं कायवं तं तं सवं कंजं काऊण सए सए आवासए गया। सो वि य तत्थ सुहसहेण अच्छइ। भणिओ य कमलसेणाए-अजउत्त! १०भियं उ २ विना ॥ २ तुयालि ली ३॥ ३ होइऊ शां० ॥ ४ किर वं शां० विना ॥ ५ °पान उ२॥६°णयं पंज° क ३ ॥ ७ जिजउ त्ति शा० ॥ ८ सजं शा० ॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 विमलासण्णवणत्थं वसुदत्ताआहरणं] धम्मिल्लचरियं । हिजो तुब्भे एजंते दखूण विमला भणइ-के एते आगच्छंति ? त्ति. मया भणिया-धम्भिल्लो एस आगच्छइ. ततो भणइ मा मे दमगस्स कहं, कहेहि मा गेह नाम दमगस्स । __ अच्छीणि ताणि मा हो-ज जेहिं दमगं पलोएमि ॥ ततो मए उवालद्धा. एवं च तीए पसादिजंतीए दिवसा वचंति । अह अन्नया कयाइ रायपुत्तेण गोट्ठियसहिएण तस्स परिक्खणनिमित्तं 'ईसालुओ' ति उजाणजत्ता समाणत्ता, जहा–सत्वेहिं गोढिएहिं सकलत्तेहिं निग्गच्छियत्वं ति । ततो तेण कमलसेणा भणिया-कमलसेणे! किं काय? ति. एए मम निमित्तं उज्जाणं वच्चंति, 'किं एसा एयस्स भज्जा होइ ? उयाहु न होइ ?' ति. तं जाणह 'किं कायचं ?' ति । . ततो सा कमलसेणा एवं भणिया तस्स सयासाओ उठ्ठिया तीए सगासं गंतूणं अणु 10 मुहुत्तस्स आगया भणइ-सुणह अजउत्त!, मए भणिया-विमले! हिजो किर रायउत्तो ललियगोट्ठीए समग्गो उज्जाणजत्तं णीहिइ. वच्चामो अम्हे वि तत्थ उज्जाणं. मा अयाणुगा होहि अणुणिजंती तं. जइ ते एसो न रोयइ ततो तत्थ उज्जाणे अप्पणो हियइच्छियं वरं वरेहिसि. अवि य अप्पच्छंदमईया, पुत्तय! मा होह मा विणस्सिहिहै । जह नहा वसुदत्ता, असुणंतो वा वि रिवुदमणो । ततो सा ऐयं सुणिऊण भणइ-अम्मो ! का सा वसुदत्ता? किह वा नट्ट ? त्ति. तओ सा मए भणिया-सुण सुयणु !सच्छंदयाए वसुदत्ताआहरणं अत्थि उज्जेणी नाम नयरी । तत्थ य वसुमित्तो नाम गवई परिवसति, भजा से 20 धणसिरी नाम, पुत्तो से धणवसू , धूया से वसुदत्ता । तेण य वसुमित्तसत्थवाहेण कोसंबीवत्थवस्स धणदेवसत्थवाहस्स वाणिजपसंगेण आगयस्स धूया वसुदत्ता दिण्णा । सो य वत्तकल्लाणो तं घेत्तूण कोसंबिमागओ, पिउ-माउसहिओ सुहं परिवसइ । ___ तम्स य कालेणं धणदेवस्स वसुदत्ताए दोन्नि पुत्ता जाया । तइएण य गन्भेणं आसण्णप्पसवा । भत्ता य से पवसिओ। सुयं च णाए-उज्जेणिं सत्थो वच्चइ । सा य पिउ-25 माउ-बंधवाणं उक्कंठिया गंतुमणा सस्सू-ससुरमापुच्छइ-उज्जेणि वच्चामि त्ति । ततो तेहिं भणिया-पुत्ति ! एकल्लिया कहिं वञ्चिहिसि ?, भत्ता य ते पवसियओ, पडिच्छ जाव आगच्छइ, ततो गच्छसि । सा भणइ-वच्चामि, किं मम भत्ता कहेहि ? त्ति । तेहिं पुणो वि वारिजंती निच्छइ सोउं । सच्छंदा गुरुजणाइक्कमकारिया पुत्ते घेत्तूर्णं पत्थिया । ते वि य १ अध शां० ॥ २ पुत्त उ २ ॥ ३ हह उ २ विना ॥ ४ रिउद° उ २ ॥ ५ एनं सोऊण शां० । एवं सोऊण उ० ॥ ६ णगरी उ २ ॥७°बीए व उ २ विना ।। ८ देववसु उ २ विना ॥ ९ पुत्त शां० ॥ १० कहं शां० ॥ ११ करिहिति शां०॥ १२ धारि° शां० ॥ १३ णेच्छति उ २॥१४ °ण गया उ२॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिल्लहिंडीए [विमलासण्णवणत्थं वसुदत्तापरिहीणकुटुंब-विहवा 'अम्हं न करेइ वयणं' ति तुण्हिक्का ठिया । सा वि य मंदभग्गा गया, ताव सत्थो दूरमतिकतो । सा वि सत्थपरिब्भट्ठा अन्नेण मग्गेण गया । भत्ता य से तद्दिवसं चेव आगओ । पुच्छिया तेण माया-अम्मो ! कहिं वसुदत्ता गय? त्ति । ताए य भणिओ-पुत्त! उजेणीसत्थेण समं अम्हेहिं वारिजमाणी वि गय त्ति । ततो सो 5 'अहो ! अकजं कयं' ति भणेऊण पुत्त-कलत्तबद्धनेहाणुरागो गहियपत्थयणो मग्गतो अन्नेसंतो गतो । अणुसरंतेण य सा अडवीं अंइंती दिट्ठा भममाणी । तोसिया अणेणं पुणरवि अणुणेउं, पत्थिया पविट्ठा य अडविं महल्लं, अत्थमिए दिणयरे आवासिओ। तम्मि य समए वसुदत्ताए पोट्टे वेयणा जाया । ततो धणदेवसत्थवाहेण रुक्खसाहापल्लवे भंजिऊण मंडवो से कओ । तत्थ य वसुदत्ता पसूया दारयं पयाया । तत्थ य अंध10 कारे रत्तिं रुहिरगंधेणं मिगमंसाहारो अडवीसावयखयंकरो महापइभओ वग्यो आगतो । तेण य सो धणदेवो वीसत्थो चेव गलए घेत्तूण नीओ। सा वि य पइवियोगजणियदुक्खा भय-कलुण-सोगसंतत्तहियया रोयमाणी 'तं जायमेत्तयं अभवो' त्ति भणंती मोहं गया । ते वि य कलुणा असरणा भयवेवियसबंगा बाला मोहं गया । सो वि य तदिवसं जायओ दारओ थण्णं अलभमाणो उवरओ । सा वि य चिरेण पञ्चागयचेयणा समाणी परिदेवंती 15 पभाए पुत्ते घेत्तूण पत्थिया । अकालवरिसेण गिरिनदी पुन्ना । सा य तं दतॄण एगं पुत्तं उत्तारेऊण बितियं उत्तारेती विसमसिलातले निसिरियचलणा पडिया । दारओ य से हत्थाओ पन्भट्ठो । सो य अवरो दारओ उदगम्भासे ट्ठिओ तं मातं पाणिए पडियं दळूण तेण वि यं जले अप्पओ छूढो । __सा वि य तवस्सिणी चंडवेगवाहिणीए गिरिनदीए दूरं यूँढा, तत्थ य नदीकूले पडि20 यस्स पायवस्स साहाए लग्गा, मुहुत्तंतरस्स य आसत्था सेइरं उट्ठिया । तत्थ य सा अच्छंती नदीतडे वणगोयरेहिं तक्करपुरिसेहिं गहिया, पुच्छिया य आणीया सीहगुहं नाम पल्लिं, अल्लिया य चोरसेणावइस्स कालदंडस्स । तेण य सा 'रूवस्सिणि' त्ति काऊण भजा कया, अंइनीया य अंतेउरं । सा य सवाणं सेणावइमहिलाणं अग्गमहिसी जाया । तओ ताओ तक्करमहिलाओ पइणो सरीरपरिभोगमलभमाणीओ उवायं चिंतिंति-किह25 मेयं परिचएज्ज ? त्ति । तस्स य तीसे कालेण पुत्तो जातो, सो य माउंसरिसओ । तओ ताहिं सेणावई विण्णविओ-सामि ! तुम अइवल्लभाए इमाए चरियं न याणसि. एसा परपुरिसासत्तहियया. एस य से पुत्तो अन्नेण जायओ त्ति. जइ ते विपञ्चओ, अप्पाणं एयं च पेच्छह त्ति । तेण कलुसहियएण खग्गं कड्डिऊण अप्पा जोइओ, दिदं च णेण मुहं । - १°या य ण शां० ॥ २ ताए उ भ° उ २ विना ॥ ३°णि सशां० ॥ ४ गंतो उ २ ॥ ५ °डविं उ २ ॥ ६ अयंती शां० ॥ ७ बीयं उ २ विना ॥ ८ छूढा ली. य. शां० विना ॥ ९ सयरं उ २ विना ।। १. अयणीया शां०॥ ११ ऊए सठ २ विना ॥ १२ क ३ विनाऽन्यत्र-'लन्भेणं इमा° ली ३ । 'लभेणं इमा गो३ उ २ ॥ १३ चाणे क ३॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहरणं रिवुदमणणायं च] धम्मिल्लचरियं । . विच्छिन्नं, महंतविहत्तगंडलेह, रत्तीयंबविसालनयणं, विगित-दुग्गम-वक्कनासं, विष्फालियथूल-लंबोटं आपणो मुहं दट्टण तं च दारयं 'एवमेयं ति भणति । ततो तेण य अपरिच्छियबुद्धिणा पावेण तेण य खग्गेणं दारओ मारिओ।सा वि य वेत्त-कसप्पहाराभिहया मुंडेऊण तक्करे समादिसइ-वाह, भो! एयं रुक्खे बंधह त्ति । ततो ते तक्करपुरिसा तं गहाय दूरं गया । तत्थ य ते पंथन्भासे एगम्स सालरुक्खस्स मूले रज्जुए वेढिऊण कंटयसाहा समं-5 ततो परिक्खिविऊण नियत्ता । सा वि वराई पुवकम्मनिवत्तियं दुक्खमणुभवंती बहूणि य हियारणं चिंतयंती अणाहा असरणा य अच्छति । तत्थ य तीए भागधेजेहिं उज्जेणिगमणीओ सत्थो तत्थेव तम्मि चेव दिवसे पाणियसुलभे पएसे आवासिओ । ततो सत्थाओ तण-कट्ठ-पत्तहारया केइ दूरं गया । तेहि य सा कंटकसाहाहिं रुद्धा रज्जुपरिवेढियसरीरा रुक्खमूले एकलिया दिट्ठा, पुच्छिया य । 10 तीए य सकलुणं रोयंतीए सवा अण्णहदुक्खपरंपरा परिकहिया । ततो सा तेहिं जायाणुकंपेहिं मुक्का, तं च घेत्तूण सत्थं गया, सत्थवाहस्स जहावत्तं परिकहियं । ततो सत्थवाहेण समासासेऊण दिण्णऽच्छायण-भोयणा भणिया-पुत्त! सत्थेण समं वच्चसु वीसत्था, मा बीहेह त्ति । ततो सा आसासिया वीसत्था तेण सत्थेणं समं उज्जेणिं वच्चइ । तेण य सत्येण समं बहुसिस्सिणिपरिवारा जिणवयणसारदिट्ठपरमत्था सुबया नाम गणिणी 15 जीवंतसामिवंदिया वञ्चइ । सा य तीसे पायमूले धम्मं सोऊण सत्थवाहेणाणुनाया पवइया, नामं च से 'कंटियजय' त्ति । ततो सा ताहिं अजाहिं समं उजेणिं पत्ता, पिउमाउ-बंधुवग्गेण य सहमल्लीणा । कहेऊण य अप्पणो दुक्खं दुगुणजायसंवेगा सज्झाए तवे य उजुत्ता धम्मं करेइ ॥ __ ततो हं सुंदरि! तुम भणामि-एयाणि अण्णाणि य अप्पच्छंदमइया बहूणि दुक्खाणि 20 पाति. ता मा तुमं अयाणिया होहि. ममं सुणसु-मा ते वसुदत्तापज्जतो भविस्सइ त्ति. ___ ततो सा भणइ-एवं ताव वसुदत्ता नट्ठा, रिउदमणो उण कहं नट्ठो?. ततो सा मए भणिया-सुण सुयणु !--- सच्छंदयाए रिवुदमणनरवडणायं ___ अत्थि तामलित्ती नाम नयरी । तत्थ रिवुदमणो नाम राया, भज्जा य से पियमती 25 नाम । तम्स य रन्नो सहपंसुकीलियओ महाधणो धणवती नाम सत्थवाहो । तत्थ य नयरीए धणओ नाम कोट्टाओ परिवसइ । तस्सऽण्णया कयाइ पुत्तो जातो । ततो सो धणओ परिदरिदो, भज्जा य से परिखीणविभवा, चिंताए दो वि कालगया । सो वि य १ "तायतवि शां०॥ २ विमिंदवुग्गमंडुक्कनासं ली ३ गो ३ । विसिवुग्गमंडुक्कनासं क ३ ॥ ३ विसालि° उ २ विना ॥ ४ संदि शां० ॥ ५ जणा बंधिऊण ली ३॥६ जाहिं उ २ विना ॥ ७ पुत्ति शां० विना॥ ८ जीवसा संसं० शां० विना ॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ धम्मलहिंडी [ विमलासण्णवणत्थं से पुत्तो धणवइस्स घरे संवडिओ कंडियसालाए कुक्कुसे खायमाणो अच्छति, नामं च से कयं 'कोक्कास' त्ति । एवं च सो संवडिओ | अण्णया य धणवतिसत्थवाहस्स पुत्तो धणवसू नाम । तस्स य जाणवत्तं जैवणविसगमणजोग्गं सज्जियं । तेण य पिया विन्नविओ - एस मे कोक्कासो दिज्जउ, मए समयं 5 जैवणविसयं वच्च त्ति । ततो तेण विसज्जिओ । संपत्थिओ वहणो समुदवायाणुत्रायणं इच्छियं पट्टणं संपत्तो । लंबियाउ नंगराओ दिसासुं, ओसारिएस सियवडेसु उइन्ना संजत्तयवाणि (ग्रंथाग्रम् - १६००) यया । अंतेवासिणो य भंडयं उयारियं, दिण्णा य रायदाणा । तत्थ य संजत्तयवाणियया ववहरिडं पयत्ता | अह सो कोक्कासी एज्झयस्स सत्थ-संजत्तयकुलस्स कोट्टागस्स घरं गंतूण दिवसं खवेइ । 10 तस्सय पुत्ता नाणाविहाई कम्माई सिक्खति । तेण य पिउणा सिक्खाविज्जंता न गेण्हति । ततो तेण कोकासेण भणिया - एवं करेह, एवं होउ त्ति । ततो तेण आयरिएण विम्यिहियण भणिओ - पुत्त ! सिक्ख उवएसं ति. अहं ते कहेहामि । तओ तेण भणिओ - सामि ! जहाऽऽणवेह त्ति । ततो सिक्खिउं पयत्तो । आयरियसिक्खागुणेणं सवं कट्ठकम्मं सिक्खिओ । निष्फण्णो य गुरुजणाणुण्णाओ पुणरवि सो वहणमारुहिऊण तामलित्तिं गतो । I 15 तत्थ य खामो कालो वट्टइ । ततो तेण अप्पणो जीवणोवायनिमित्तं रण्णो जाणावणत्थं सज्जियं कपोत जुवलयं । ते य कपोइया गंतूण पइदिवस आयासतले सुक्कमाणं रायसंतियं कलमसालिं चित्तूण एंति । ततो रक्खवलेहिं धण्णं हीरमाणं दहूणं रण्णो सत्तुदमणस्स निवेदितं । तेण य अमचा आणत्ता - जाणह त्ति । ततो तेहिं नीइकुसलेहिं आगमियं, निवेदितं च रण्णो – देव ! कोक्कासघरस्स जंतकवोयमिहुणयं घेत्तणं णेइ । राइणा आण20 त्ता - आणेह त्ति । आणीओ य सो पुच्छिओ । कहियं च णेणं सवं रण्णो अपरिसेसं । तओ राइणा परितुट्टेण संपूइओ कोकासो, भणिओ य-आगासगमं जंत सज्जेहि त्ति. ते दो वि जणा इच्छियं देसं गंतुं एमो ति । ततो तेण रण्णो आणासमकालं जंत सज्जियं । तर्हि च राया सो य आरूढो इच्छियं देसं गंतूण इंति । एवं च कालो वच्चइ । तं च दणं राया अग्गमहिसीए विन्नविओ - अहं पितुब्भेहिं समं आयासेण देसंतरं 25 काउमिच्छामि । ततो राइणा कोक्कासी वाहरिऊणं भण्णइ - महादेवी अम्हेहिं समं वच्चउ त्ति । ततो तेण लवियं - सामि ! न जुज्जइ तइयस्स आरोढुं दोन्नि जणे इमं जाणवत्तं वहइ त्ति । ततो सा निब्बंधं करेइ वारिज्जंती वि अप्पच्छंदिया, राया य अहो तीए सह समारूढो । ततो कोक्कासेण लवियं-' पच्छायावो भे, खलियमवस्सं भविस्सइ' त्ति भणि १ कुकुसे ली ३ उ २ ॥ २ सर्वेषु लिखितपुस्तकादर्शेषु कचित् कुक्कुसो कचित् कुक्कसो कचित् कुक्कासो क्वचित् कोक्सो क्वचित् कोकसो कचित् कोकासो कचित् कोक्कोसो कचिच्च कोक्कासो इत्यभिधानपाठान्तराणि दृश्यन्ते, भस्माभिस्तु कोक्कास इत्येव पाठ आदृतः ।। ३-४ जावण ली ३ गो ३ ॥ ५ °हिएण भ° क ३ विना ॥ ६ °यमहागुणे° उ २ ॥ ७°जुयल° उ २ ॥ ८ वालएहिं उ२ विना ॥ ९ सजिहि शां० ॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिखुदमणणायं] धम्मिल्लचरियं । ६३ ऊण आरूढेण कड्डियाओ तंतीओ, आहया जंतकीलिया गगणगमणकारिया, तो उप्पइया आयासं । वञ्चताण य बहुएK जोयणेसुं समइकतेसु अइभरकताउ छिन्नाओ तंतीओ, भैह्र जंतं, पडिया कीलिया, सणियं च जाणं भूमीए ट्ठियं । सो य राया देवीसहिओ असुणंतो पच्छायावेण संतप्पिउं पयत्तो । ततो सो कोक्कासो रायं भणइ-'मुहुत्तंतरं एत्थ अच्छह, जाव अहं तोसलिं नगरि अइगंतूणं जंतसंघाउवगरणं मग्गामि' त्ति भणिऊणं गतो । राया 5 देवीए सहिओ अच्छा। सो य वड्डइघरं गंतूण वासिं मग्गति । णाओ य णेण 'सिप्पियपुत्तो' त्ति । तेण य सो भणिओ-सुतुरिएण रण्णो रहो सज्जेयबो, तेण वासी नत्थि त्ति । कोकासेण य भणिओआणेहिं, सेजामि त्ति । ततो तेण तस्स वासी अप्पिया । गहिया य णेण वासी । जाव य सो वक्खित्तचित्तो ताव य मुहुत्तंतरेण संजोइया दो वि चक्का । ततो सो विम्हिओ जाओ,10 नाओ य णेण 'कोकासो' त्ति । तेण य सो भणिओ-मुहुत्ततरं ताव पडिक्खह जाव घरा ओ आगच्छामि अन्नं वासी गहेऊण. तओ वासिं घेत्तूणं वञ्चिहह । ___ ततो सो काकजंघस्स रण्णो समीवं गंतूण सवं परिकहेइ । गहितो कोकासो रन्ना, पूइओ य विउलाए पूयाए । पुच्छिओ य रण्णा-कहिं तुमं एहि ? त्ति । तेण सत्वं रत्नो परिकहियं । आणिओ य राया अमित्तदमणो सह देवीए । ततो रायं बंधेऊण देवी 15 अंतेउरे पवेसिया । कोकासो वि भणिओ-कुमारे सिक्खावेहि त्ति । ततो तेण लवियंकिं कुमाराणं एयाए सिक्खाए ? त्ति । तओ राइणा वारिजंतेण वि बलाकरणिं काराविओ। सो य ते सिक्खाविउं पयत्तो । घडिया गेण दो घोडगजंता, सजिया य आगासगमा । ततो तस्स काकजंघस्स रण्णो दो पुत्ता जाव आयरिओ सुतओ ताव जंतघोडए आरूढा, ते य उप्पीलियजंततुरया आगासं उप्पइया । आगएण कोकासेण पुच्छिया-कहिं अच्छंति 20 कुमारा? । ततो तेहिं लवियं-कुमारा आरुहिऊणं गया । ततो तेण भणियं-अकजं कयं, विणट्ठा कुमारा, पेरायत्तणकीलियं न याणंति त्ति । राइणा सुयं, पुच्छियं च कहिं ते कुमारे ? त्ति । ततो तेण भणियं-गया सह घोडएहिं ति । रुटेण रण्णा कोकासस्स वहो आणत्तो । तं च तस्स एगेण कुमारेण परिकहियं ।। ततो तेण तं वयणं सोऊण चक्कजंतं सज्जियं । भणिया य णेण कुमारा-सवे तुब्भे 25 आरूढा अच्छह. जाहे अहं संखसदं करेमि ततो तुझे समगं मज्झिमखीलयस्स पहारं देजह. ततो आगासं उप्पिहिइ जाणं ति । ततो ते ‘एवं' भणित्ता चक्कजंतमारूढा अच्छंति । कोकासो मारेउं नीओ । मारिजंतेण य संखो आपूरिओ । ततो तेहिं संखसई सोऊण आहओ मज्झिमखीलओ । भिण्णा ते य सवे सूलेसु । कोकासो य मारिओ । पुच्छियं च रत्ना-कहिं ते कुमार ? त्ति । किंकरपुरिसेहिं से परिकहियं-सवे चक्कजंते सूले 30 १°खीलि° उ २ । एवमग्रेऽपि ॥२ भिन्ना ली ३॥ ३ भग्गं अंतं ली ३॥ ४ रधो शां० ॥ ५सजेमि उ २॥ ६ बासिं उ२॥७°उरं ली ३ उ२॥८पणमो शां०॥ ९ परिय° उ २॥ १०'मार उ २॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ मल्ल हिंडीए [ धम्मिल्लस्स विमलाए पाणिगहणं भिण्णा । ततो सो राया कागवन्नो सुन्नो 'हा हा ! ! ! अकज्जं' ति भाणिऊण सोयसंततहिओ विलवंतो चेव कालगओ ॥ सोय सत्तुदमणो या कुमारा य अप्पच्छंद्रेण विणडा. ता तुमं पि विमले ! अप्पच्छंदिया मा होहि, मा एवं विणस्सिहिसि एस य सबकलापत्तट्ठो नवजोवणो तरुणी, 5 अन्नो को एत्तो लट्ठयरो धम्मिल्लो ? त्ति. सवं च णाए पडिवण्णं । ततो धमिलो - तुट्ठमणसो सवं जहावत्तं सोऊण । अइक्कंते य तम्मि दिवसे, समइच्छियाए रयणी, पभाए विमले, सबलोयर्सेक्खिम्मि उग्गए दिवसयरे जुवराया ललियगोट्ठीए समग्गो निग्गतो सकलत्तो उज्जाणं । ततो सोऊणं धम्मिल्लो वि णाणाविहमणिरयणपच्चोवियाभरणो, विविहरागवत्थवेसधारी अप्पाणं काऊण कमल-विमलसेणाए समं 10 रहवरं समारूढो उज्जाणं गतो, पविट्ठो य उबवणं । ताव य किंकरजणेण ऊसवियाओ दूसकुडीओ, विरइयाsतुला मंडवा, परिवेढिया य अप्पणो पच्छायणानिमित्तं पडिसरा, पडिवोक्खिया य कुलवधूसयणिज्जा । जुवरण्णो य आणत्तीए विरइओ भोयणमंडवो सुभूमिभाए, कुंभग्गसो विन्नो कुसुमोवयारो, रइया य जहारिहं आसणा, गहियगंध-वत्थ-मल्लाssभरणा गोट्ठीए अप्पणो अप्पणो सविभवेणं जाणुण्णायं जुयरण्णा णिविट्ठा मणिभूमि15 या विहरे, कणग- रयण-मणिनिम्मियाणि दिण्णाणि य भायणाणि । ततो धम्मिल्लो वि पियाए विमला समं निविट्ठो, पासे य से कमलसेणा । तओ पकए हत्थसोए णाणाविहं खज्जभोज-पेज्जं दिज्जउमादत्ता । एवं च ते अण्णोणेणं समं पीइविसेसं अणुभवंति । जुवराया समं गोट्टिएहिं धम्मिल्लं विमलाए समं पेच्छंतो न तिप्पति, परं च विम्हयमुवगओ | तओ य तत्थ मदर्भिभलस्स जुवईजणस्स नश्चिय - गीय-वाइयावसाणं पेस्सिऊण धम्मिल्लं च 20 अभिनंदतो गोट्ठीए सहिओ उद्वितो जुवराया, जाण - वाहणारूढो य पत्थिओ सभवणं । ततो सो विमल - कमलसेणाए समं रहवरारूढो सभवणं गतो । पढमसमागमसमुस्सुएणय हियण विमलसेणाए सह दिवसावसेसं गमेइ । ततो अइच्छिए दिवसयरे, समshare संझाए पज्जालिएसुं पईवेसुं, रइए य सयणिज्जे, गहिए रइजोग्गे कुसुम-गंध-मल्लाऽलंकारे, तओ कमलाए विमलसेणाए नववहूवेसाऽलंकारो कओ । तओ सा लज्जोणयमुहिं 25 गहाय धम्मिल्लसगासमइगया । भणिओ य णाए -अज्जउत्त ! रायधूया ते पोलेणिज्जति । एवं भाणिऊणमवक्कंता । ततो तेणं देवाधिदेवाणं पणामं काऊण दाहिणेणं हत्थेणं हृत्थं से दाहिणं घेतॄण अंके निवेसिया, उवगूढा य धणियं । सा वि सवंगेण कर्णेतितरोमकूवा नवपाउसमेघधाराहिहया इव धरणी सहावमउयंगी अंगेहिं से समं हिययमइगया । तओ तेण १ 'वन्नो हा हा कसं० उ २ ॥ २ रायकु उ २ विना ॥ ३ तुट्टो सव्वं उ २ विना ॥ ४ °सक्खम्मिक ₹ गो ३ ॥ ५ गए सूरे शां० विना ॥ ६ भूसणोली ३ ॥ ७ रण्णा य आणत्तो विरउ २ विना ॥ ८ °रयतम शां० ॥ ९ साणे क ३ गो ३ । १० पसिऊ उ २ कसं० विना ॥। ११ उ २ विनाऽन्यत्रकमलविमलाए ली ३ गो ३ । कमलाविमलाए क ३ । १२ °लणेज ली ३ गो ३ ॥ १३ णयत उ २ ।। Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ नागदत्तापाणिग्गहणं च] धम्मिल्लचरियं । रइरसायणतण्हाइएणं पाविया रइसुहं रायकन्ना । एवं च तेसिं रइपसत्ताणं अइकंता सा रयणी। अन्नोन्ननेहाणुरागरत्ताण य सुहेण अइक्कमइ कालो। ___ अह अन्नया कयाइ रइरसायणपणयसंधिविग्गहकुवियं विमलं पसायंतेण भणिया-पिए वसंततिलए! मा अइरूसणा होही, भत्ते जणे अणुग्गहं पसायं च करेहि त्ति । ततो सा अपुत्ववयणो ईसारोससंजायवेविरसवंगी 'अणज्जव ! कहिं सा ते वसंततिलय? त्ति । बाहा-5 गयलोयणाए य पुनसगग्गरहिययाए, ईसिंदंतग्गदट्ठाहराए, तिवलितरंगभंगुरं निडाले भिउडिं रएऊण अबत्तक्खरं भणंतीए, आकंपिउत्तमंगाए, वियण्णकेसहत्थाए, पडंतउँकायंतकुसुमाए, समोसरंतरत्तंसुयविलग्गंतमेहलादामकलावाए; विविहमणिविचित्तमुत्तियाउत्तजालोवसोहिएणं, संसद्दरुंदतनेउररवेणं, अणुपुबसुजायअंगुलीदैलेणं,कमलदलकोमलेणं, रत्तासोयथवयसन्निभेणं, चंगालत्तयरसोल्लकोववससंजायसेएणं चलणेणं आहओ । रोसपरायत्तहिययाए य भणिओ-10 बच्चह ता, सा चेव वसंततिलया ते परित्तायउ त्ति । ततो सो तीसे ईसारोसवक्खेवजणियतुट्ठी अभितरासुहेणं हियएण हसिऊण निग्गओ घराओ, उवडिओ रायमग्गं, अपच्छिमजामवेलाए य पेच्छइ रायपहब्भासे अद्धपिहियकवाडदुवारं दीवलंबंत-सुरहिडझंतकालागुरुपवरधूयं नागघरं । तओ सो तहिं पविट्ठो पणमिऊण नागदेवयाणं निविट्ठो अच्छति हियएण बहुविहाई चिंतयंतो । पेच्छइ य गहियप-15 डलग्गहत्थं पडियारियाए समं इंतिं तरुणिं सरसुभिजंतनवजोवणं दारियं । सा य देवउले अञ्चेउमागया, धोयहत्थ-पाया य पविट्ठा नागघरयं, अच्चिओ य णाए नागिंदो, पणमिऊण य भणिओ-भयवं! सुपसनो होहि त्ति। ततो तेण भणिया-सुंदरि ! हियइच्छिया ते मणोरहा पूरंतु त्ति । उट्ठिया य ससंभंता, पेच्छइ य धम्मिल्लं । तेण वि य दिट्ठा (ग्रंथानम्-१७००) नवजोधणसालिणी, समुभिजंतरोमराई, आपूरंतपरिवड्डमाणपओधरा, तुंगायतेणं नासावंसएणं, 20 अभिनवनीलुप्पलपत्तसच्छहेहिं नयणेहिं, बिंबफलसुजायरत्ताधरणे , सुद्धदंतपंतिएणं, समत्तपुनिमायंदसरिसेणं वयणेणं । तं च दळूण परं विम्हयमुवगतो । तीए य भणिओ-कत्तो अजगिस्सा एंति ? । ततो तेण लविया-सुंदरि ! कुसग्गपुराउ त्ति । ततो सा सविम्हयं तं पेच्छिऊण हरिणवधुसरिसनयणा नीससिऊण अहोमुही वामंगुट्ठएणं भूमि विलिहमाणी संठिया । भणिया णेण-सुंदरि ! कस्स तुमं? ति । ततो तीए महुरंभासिणीए भणियं-अजउत्त ! 25 अत्थि इह नगरीए सत्थवाहो नागवसू नाम, भज्जा य से नागदिण्णा, तीए धूया हं नागदत्ता नाम, भाया य मे नागदत्तो. अहं च नागेंदाओ हियइच्छियं वरं पत्थेमि, इहइं च अञ्चणं काउं पइदिवसमागच्छामि. ततो मम भागधेजेहिं तुब्भे इहमागया, दिट्ठ १ होहि उ २ ॥ २ °णई० ली ३ उ २ ॥ ३ वियस उ २॥ ४ शां० विनाऽन्यत्र-विइण्ण° उ०। विवण्ण ली ३ क ३ गो ३ ॥ ५ उक्कयंत क ३ गो ३ ॥ ६ समहरुद्ददत्तनेउर° उ २ विना ।। ७°लीएण उ २ ॥ ८ °यपलवचयस ली ३॥ ९ उव्वडिय रा° शां० विना ॥ १० पूरउ त्ति उ २ विना ॥ ११ पदिवद्धमा उ २ विना ॥ १२ रेणं अधरेणं सुद्ध° उ २ ॥ १३ रवयणभासिणीए लवियं उ २ ॥ १४ तीसे य अहं सुया नाग° उ २ विना ॥ १५ अहं च ली ३ । इहं च क ३ गो ३ ॥ व० हिं०९ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिल्लहिंडीए [धम्मिल्लस्स कविलाए पाणिमेत चेय मे हिययं पविद्वा. पुण्णो य मे मणोरहो' ति भाणिऊण नियघरं गया । तत्थ य णाए मांऊए सवं परिकहियं । परितुहा य से माया पिति-सयण-परियणो य । वित्तं से कल्लाणं णगरीऐ पगासं । .. तत्थ य नयरीएं कविलस्स रन्नो धूया कविला नाम, सा य नागदत्ताए वयंसिया । 5 ताए य सुयं, जहा-नागदत्ताए वरो लद्धो, कल्लाणं च से वत्तं ति, सो य किर पुरिस गुणनिहाणभूओ नवजोवणो य । ततो ताए मयणसरसोसियहिययाए माया भणिया-अम्मो ! पसायं करेह, सिग्धं मे सयंवरं पयच्छह त्ति । ततो तीए वि धूयवच्छलाए राया विण्णविओ-कविलाए सयंवरो दिजउ त्ति । ततो तेण लवियं-एवं कीरउ । तओ रण्णा सोहणदिणे आणत्तो सयंवरो कविलाए। ठाविया य सविभववेसालंकिया ईसर-कुडुंबियपुत्ता, 10 अण्णे य जहाविभववेसधारिणो इब्भपुत्ता, धम्मिल्लो वि य विणीयवेसाहरणो तहिं गतो । ततो सा रायकन्ना पउमसंडवत्थवा विव लच्छी जणस्स रूव-कंतीहिं दिहिँ सारंधाणी व आगया सयंवरामंडवं । दिट्ठा य धम्मिल्लेणं रूवाइसयसंपन्ना रायकण्णा । तीय वि य देवकुमारोवमसिरीओ धम्मिल्लो निद्ध-महुराए दिट्ठीए अवलोइओ। ततो सा मदणसराहयहियया तस्स सगासं गया । ततो से सुरभिपुप्फदाम सेवासं(?) उरे उलएइ, अक्खए य 15 से सीसे छुहइ । तओ तं दट्टण परं विम्हयं जणो उवगओ । वत्तो य सयंवरो, रणो य आणत्तीय अइणीओ भवणं । तओ रायकुलाणुरूवं वत्तं से कल्लाणं। एवं च ताव एवं(यं)। तओ विमलसेणा तस्स विओगेण परिदुबलखामकवोला सोगसागरसंपविट्ठा अच्छइ । तओ सो बितियदिवसे रण्णो सम्मएणं सह कविलाए परियणेहिं हिंडाविओ। सो य सविड्डि-सविभवेण हिंडमाणो विमलसेणाए घरस्स अग्गदारं संपत्तो । ततो भिञ्च-परियणो 20 से रॅण्णो धूया केण परिणीय ?' त्ति सोऊण निग्गओ, नवरि य धम्मिल्लं पेच्छंति, ससंभमं तेण य गंतूण विमलाए कहियं-सामिणि! धम्मिल्लो रण्णो जामाउओ जाओ। तओ सा तं वयणं सोऊण ईसासवेविरेसरीरा सुपरिगणियं हियए काउं 'किं मम इह अच्छियवेणं ?' ति हत्थे पाए य पक्खालेऊण सुद्धवासाभोगा सोवण्णेणं गयमुहेणं भिंगारेणं अग्धं घेत्तूण निग्गया । पयक्खिणं जाणयं काऊण ततो णाए तस्स दाहिणो हत्थो ऊसवेऊण 25 भणिओ-भट्टिदारग! दिट्ठा ते" विहि त्ति । ततो तेण सा तम्मि चेव हत्थे घेत्तूण जाणयं विलईया, पत्तो य रायघरं, उईण्णो जाणाओ, कयकोऊयमंगलो य कमलाए विमलाए य समं सुहं सुहेणं अणुभवंतो चिट्ठइ। अह अण्णया कयाई रण्णो आसो उवणीओ । सो य तं दमेउं पयत्तो । ततो य आसपडिचारगेहिं दिण्णे मुहमंडणे, समारोविए खलिणे, सँवसज्ञत्तयवद्धे पडताणे, उप्पीलिए .१ "मित्ता य तुमे शां० विना॥ २-३ रीये शां० ॥ ४ सवारं उरे शां० ॥ ५ पडिदु० उ २ विना ॥ ६ बितइयदि शां० विना॥ ७ रायधूया ली ३ ॥८°वेस ली ३ ॥ ९ °वियस उ २॥ १० ते चिहि त्ति शां० ॥ ११ पत्ता क ३ विना ॥ १२ °इण्णा क ३ विना ॥१३ °हमहणे उ २ विना ॥ १४ सत्तसंजुत्त शां०।। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 ग्गहणं, आसेण रण्णे णयणं च ] धम्मिल्लचरियं । उरपट्टए, लंबियासु कणयासु, बद्धासु मुहसोहियासु चामरासु, कए पंचत्थासकमंडणामंडिए; तओ सो कुप्पासयसंवुयसरीरो, अद्धोरुयकयबाहिचलणो, सुरहिकुसुमबद्धसेहरो, विचित्तसोभंतसबंगो, कयवायामलघुसरीरो विहगो विव लीलाए आरूढो । गहिओ य णेणं वामहत्थेणं वग्ग रज्जुमंडियं (?), विसेदमउय(?)दाहिणेणं कसा, उप्पीलिय आसणं, संगहिओरुजुयलेणं संवाहिओ थोवंतरं । कुलिणयाए य सारहिचित्तरक्खीए णायं च से तेण चित्तं । 5 ततो अक्खित्तो तालिओ य कमेणं पयट्टो य महुरेसंदाइऊणं(?) अइकतो य पंचमधारं अप्पडियारो आसायणो जाओ । ततो तेण चिंतिऊणं तस्स वसाणुवत्तणं कयं । सो वि दूरं गंतूण विसम-समभूमिभाए अइक्कमेऊण कणगवालुयाए नदीए अदूरसामंते अप्पणो छंदेणं परिसंठिओ। ततो सो सइरमोइण्णो, छोडियं च से पडताणं, ऊसासिया से जहाजंतिया पएसा, विसजिओ सो तुरओ, आलइयं रुक्खसाहाए सबं तुरयभंडयं ।। ___ ततो सो अणवैयक्खंतो य पट्ठिओ दक्खिणं दिसाभायं । अइक्कमिऊण य कणगवालुयानदीप्पएसं, पेच्छइ रुक्खसाहालंबियं सुबद्धमणिविचित्तलट्ठमुहिँ गेवेजविचित्तितं पक्कबदरसच्छवि कमलोगुंडियं असिं । चिंतियं च णेणं-कस्स इमो होहि ? ति । दिसावलोयं च काऊण गहिओ णेण असी, घेत्तूणं विकोसीकओ। दिट्ठा य तिलतिल्लधारासच्छमा, अयसिकुसुमअच्छिनीलसप्पभा, अच्छेरयपेच्छणिज्जा, भमति व पसण्णयाए, उप्पयति व लहु-15 ययाए, विज्जुमिव दुप्पेच्छा दरिसणिज्जा य । दट्टण य असिरयणं विम्हिओ जाओ। चिंतियं . च णेणं-तिक्खयं च से परिक्खामि त्ति । आसण्णो य कढिण-परूढ-निरंतरमूलबद्धअइकुडिलजालपउरो दिट्ठो वंसगुम्मो, अन्नोन्नसंवट्टियघणवंसो, पलंबसाह-पत्तोछाइयपेरंतो। तस्स अब्भासं गंतूणं वइसाहट्ठाणढिएणं बद्धघणमुट्ठिणा वाहिओ असी । कयलिगंडिया इव सहि वंसा असिलट्ठिणा अइप्पमाणप्पएसा, ते य छिण्णा दट्टणं विम्हिओ जाओ। 'अहो!!! 20 एयस्स असिस्स तिक्खया, अवि भंगे वि अपडिहय'त्ति चिंतेऊण पयाहिणं च वंसीकुडंगं करतो गंतुं पयत्तो । पिच्छइ य कस्सइ पुरिसस्स सकुंडलं सरुहिरं सीसं छिण्णं, तस्स वंसीकुंडगस्स मज्झदेसभाए धूमकुंडं । ततो तेण चिंतियं-'अहो! अकजं कयं' ति हत्थे धुणिऊण, असिलहिं च पबंधिऊण 'अहो! असिजंतस्स बहुदोसकारग' त्ति भाणिऊण अइक्कतो। पेच्छति य पुरओ हरियपत्त-पल्लव-साहं बहुरुक्खोवसोहियं वणप्पएसं, नाणाविहविहग-25 मुहलसद्दालं कमल-कुमुदोप्पलोवसोहियं पैसण्ण-सच्छ-सीयलजलपाणियं वावी, तस्स य तीरे अच्छेरयपेच्छणिज्जरूवं दारियं । ततो चिंतियमणेणं-किं इमस्स वणसंडस्स देवया होज ? त्ति । एवं चिंतयंतो उवागतो तीए सगासं । दिट्ठो य तीए । पुच्छिया य णेणं-सुयणु ! का सि तुमं? कत्थ वा अच्छसि ? कओ वा एसि ? । ततो तीए महुर-मिउभासिणीए भणिओसुण अजउत्त! 30 १ °पट्टए उ २ विना ।। २ °सदं मउयवाहणेणं क ३ उ २॥ ३°णाए उ २ विना॥ ४ °रमंदा गो ३ उ २॥ ५ असायणो उ २ ॥ ६°मभाए उ २ विना ।। ७ फेडि° उ २॥ ८ सव्वं आसभंड° उ २॥ ९ वएक्खं. ली ३॥ १० पसत्थस शां० ॥ ११ यलपाणियं उ २॥ १२ दिवा य णेणं, पुच्छिया य-सुंदरि ! का सि उ २ विना ॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ धम्मिल्लहिंडीए [धम्मिल्लस्स सिरिचंदाइकन्नगाणं अत्थि इह दाहिणल्लाए विजाहरसेढीए संखउरं नाम विजाहरनयरं । तत्थ य राया पुरिसाणंदो नाम, तस्स भजा सामलया, तीसे पुत्तो कामुम्मत्तो नाम, तस्स य दो धूयाओ-विज्जुमती विजुलया य । ततो किर अण्णया कयाइ विजाहरसेढीए कणगनिरिसिहरे समोसढो धम्मघोसो नाम चारणसमणो, सो य अइसयनाणोवगतो । ततो 5 तस्स आगमणं सोऊण सवे विजाहरा वंदया निग्गया । तत्थ य धम्मवच्छल्लयाए कोहिलेण य विजाहरी सामलया गया। तं च भयवंतं दमियराग-दोस-मोहं वंदिऊणं धम्मं सोउं पयत्ता। कहावसाणे य पुणरवि वंदिऊण चारणसमणं पुच्छइ–भयवं! धूर्योते मे भत्ता को भविसइ ? त्ति । ततो तेण अइसयनाणविसेसेण आभोएऊण लवियं-जो ते कामुम्मत्तविजाहरं घाएहिति तस्स भारियाओ भविस्संति । ततो सा साहुवयणं सोऊण हरिस-विसायव10 यणा वंदिऊण नियगभवणं पडिगया । सो य विजाहरो भगिणीहिं समं विजाउवचरणत्थं इहागतो वणसंडे । कणगवालुयापडिवेसेणं एत्थ य तेण विजाए भवणं विउवियं । ततो खेड-नयर-पट्टणे हिंडंतो राय-सिहि-इब्भ-सत्थवाहंसुयाओ सोलस जणीओ आणेइ । 'सिद्धविजो य एयासिं पाणिग्गहणं काहामि' त्ति अम्हे इहं ठवियाओ । अण्णया य इहं अम्हं सुहोवइट्ठाणं भगिणीय से विजुमतीय सर्व निरवसेसं परिकहियं, जं ते अजउत्त! मए सिहँ । 15 अम्हाणं च सवाणं पढमा सिरी विव रूवेणं सिरिचंदा नाम १ सवंगसुंदरी वियक्खणा २ सिरीसेणा [य] ३ गंधवगीयकुसला सिरी ४ नट्ट-गीय-वाइयवियाणिया सेणा नाम ५ गंधवरयणकुसला विजयसेणा ६ मल्लसंजोयणकुसला सिरीसोमा ७ देवसुस्सूसणरया सिरिदेवा ८ सेज्जारयणवियाणिया सुमंगला ९ अक्खाइयापोत्थयवायणकुसला सोममित्ता १० कहाविण्णाणअइसयनदृवित्तवियाणिया मित्तवई ११ सयणोवयारनिउणा जसमती १२ 20विविहवक्खाणयवियाणिया गंधारी १३ पत्तच्छेन्जरयणवियक्खणा सिरीमई १४ उदग परिकम्मकुसला सुमित्ता १५ अहं च मित्तसेणा १६ । तओ अजउत्त! अम्हे इह भवणे अच्छामो । 'जया किर तेण विज्जाओ साधियाओ होहिंति तया अम्ह पाणिग्गहणं काहिति' त्ति भगिणीओ से एवं भणंति । अम्हे वि य सवाओ नवजोवणाओ, ईसीसिसमुभिजमाण १०गिरि समो° उ २ विना ॥ २ वंदया आगया ली ३ गो ३ । वंदिउं आगया क ३॥ ३ °उहल्लेण उ २। ऊहलगेण ली ३ ॥ ४ 'याय मे उ०॥ ५स्सत्ति त्ति शां० ॥ ६ हधूया. उ २ ॥ ७°मदत्ता उ २ विना ।। * आसां षोडशकन्यकानामभिधानान्याऽऽञ्चलिकजयशेखरसूरिविहिते धम्मिल्लचरित्रे एवम्मन्त्रीभ्यखेचरक्ष्मापवंश्याः कन्याः स षोडश । मेलयित्वाऽत्र सश्रीका विद्यादेवीरिवामुचत् ॥ श्रीचन्द्रा श्रीश्च गान्धारी श्रीसोमा च विचक्षणा । सेना विजयसेना च श्रीदेवी च सुमङ्गला ॥ सोममित्रा मित्रवती श्रीमती च यशोमती । सुमित्रा वसुमित्राऽहं मित्रसेनाऽसि षोडशी ॥ तथाऽन्यदीयलघुम्मिल्लचरित्रे एवम्एकदैकत्र गोष्टयां नो विद्युन्मत्यब्रवीदिति । अस्मन्नामानि चैतानि समस्तानि विदांकुरु ।। श्रीचन्द्राऽऽया सुनन्दाऽथ श्रीसेना च सुमङ्गला। सेना विजयसेना च श्रीः सोमा च यशोमती ।। श्रीदेवी च सुमित्रा च श्रीमती मित्रवत्यपि । सोमदत्ताच गान्धारी मित्रसेनाऽहमन्तिमा ॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिचओ, पउमावइपाणिग्गहणं च ] धम्मिल्लचरियं । ६९ रोमईओ, समुण्णमंतथणजुयलाओ, कामरइरसायणकंखियाओ तस्स विज्जाहरस्स सिद्धिं कंखमाणीओ अच्छामो । सो य एत्थ वंसीकुडंगे अच्छइ । तओ धम्मिल्लेण चिंतियं - सो चेव विज्जाहरो जो मए मारिओ त्ति । ततो (ग्रन्थायम् - १८००) तेणं सा लविया - सुयणु ! मए सो छिज्जकोऊहल्लेण छिण्णो मारिओ य । ततो सा तं सोऊण विसण्ण- दीणमणसा मुहुत्तागं विसायमुवगया । लेवियं च णाए - नत्थि पुत्रविहियाणं 5 कम्माणमइक्कमो त्ति । ततो तेण लवियं -सुंदरि ! मा विसायं गच्छोहि । तीए लवियं'अहो !!! अपडिक्कमणिज्जं साहुवयणं, न अण्णहा होहिति त्ति; तं अज्जउत्त ! अहं वच्चामि, इमं वृत्तंतं तस्स भगिणीणं निवेदेमि. तओ जइ तुज्झ अणुरत्ताओ होहिंति ततो अहं भवणस्स उवरिं रत्तं पडागं उस्सवेहामि, अह किंचि विरागं वचिहिंति ततो सेयं पडागं उस्सवेहामि, ततो तुमं अवक्कमिज्जासि' त्ति भाणिऊणं गया । ततो सो तीइ पडागपरियत्तिपरायणो भव - 10 णाभिमुो अच्छति । मुहुत्तंतरस्स य दिट्ठा 'सेता पडागा । ततो सो 'तातो ममोवरिं विरत्तभावाउ' त्ति जाणिऊणमवक्कंतो कणगवालुयनदिमणुसैरंतो संपत्तो संवहणाम अडविकब्बडं । तत्थ य सुदत्तो नाम राया चंपेज्जयस्स रन्नो भाया कविलाए अत्तओ परिवसति, भज्जा य से वसुमती, धूया य से पउमावई नाम । तं च सो कब्बडं पविसइ, पेच्छइ य-एगा इत्थिया सूलरोगेण परिवेवंती अच्छति । तं च 15 दहूणं जायाणुकंपेणं वायै- पित्ताणुलोमियं जाणिऊणमणुकुलमोसहं दिष्णं । तेण य सा परिनिबुया जाया । ततो विट्ठो तं नयरिं । सुयं च रण्णा पुत्रतरागं तस्स कम्मादायं । ततो राणा भवणं नीओ, नेऊण य अप्पणो धूया परमावती तज्जायरोगेण विरुवियसरीरा तस्स समप्पिया, लविओ य-अज्जउत्त ! एयं तुमे चोक्खीकरेहें त्ति । ततो तेण सुंदरतिहिकरण-मुहुत्ते समाढत्ता किरिया । अप्पणो कम्माणमुवसमेणं दवजणिएणं च पोराणयसरीरा 20 सिरी विव रूवस्सिणी जाया । ततो तेण राइणा तुट्ठेणं तस्स चेव दिण्णा । सोणे दिवसे पाणिग्गणं कयं । ततो तीए समं इट्ठे सह-फरिस - रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सर कामभोगे पञ्चणुभवमाणो अच्छइ । तओ अन्नया कयाइ सो राया भणइ - को मे भाउणा सद्धिं संधिं करेज ? त्ति । ततो तेण विष्णविओ - सामि ! अहं करेमि साम-भेदोवप्पयाणेहिं उवाएहिं. वीसत्थो होहि त्ति 125 ततो राइणा परितुट्टेण मत्थए अग्घाइऊण विसज्जिओ, पियजणदणूसुओ पत्थिओ । तओ गामंतरबसहीहिं वसंतो संपत्तो चपं नयरिं । ततो सुसउणपूइजमाणहियओ अइगतो नगरिं, रायमग्गमोगाढो वच्च । I १ भणियं की ३ ॥ २°च्छत्ति ली ३ ॥ ३°जा साहुवयणा ण अण्णहा होंति त्ति उ २ ॥ ४ सेयपडा° शां० विना ॥ ५° सरितोक ३ गो ३ ॥ ६ वासं नाम शां० विना ॥ ७ वायुपि उ २ विना ॥ ८ बिउरू उ २ विना ॥ ९ °हित्ति शां० ॥ १० हणदि उ २ विना ॥ ११ जंति उ २ विना ॥ १२ सणसमुस्सुओ क ३ गो ३॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिल्ल हिंडी [ धम्मिल्लेण देवइआईणं विज्जु 3 तत्थ य जणकोहल छुट्टि सीहनादियं च पुरओ निसामेति । पुच्छियो य णेण एगो नयरजुवाणो - वयंस! किं एस सदो ? त्ति । ततो तेण लवियं - एस रण्णो मत्तकरी इह अच्छति, आलाणखंभं भंजिऊणं च पत्तो । ततो सो तं सोऊण वीसत्यो पयाओ, पेच्छइ य तत्थ एगस्स नायरजुवाणयस्स इब्भपुत्तस्स अट्ठहिं इब्भकुलबालियाहिं समं मंगलेहिं 5 को ऊयसयविसिद्धेहिं ण्हाणयं कीरइ । पुच्छियं च गं - कस्स इमो वीवाहो ? ति । ततो एक्केणं वियाणएणं भणिओ - इंददमसत्थवाहपुत्तस्स सागरदत्तस्स पिउणो मणोरहेहिं इब्भकुलकन्नर्गीहिं समं वीवाहो कीरइ, तं जहा - देवईए १ धणसिरीए २ कुमुदाए ३ कुमुदादा ४ कमलसिरीए ५ पउमसिरीए ६ विमलाए ७ वसुमतीति ८ त्ति । जाव य सो परिकइताव य वाइयकोलाहलरवेणं जुगंतकालपुरिसो विव संपत्तो मत्तहत्थी तं पएसं । 10 विपलाओ य समंतओ सो वेवाहियजणो । सो विय वरो ताओ दारियाओ छड्डेऊण पलाओ। ताओ विय रूवस्सिणीओ वागुरपविट्ठाओ विव हरिणीओ समंतओ उद्विग्गमाणसीओ, जीवियस निरासाओ, पलोएमाणीओ, भयभीयसमुप्पिल्लियहिययाओ, गंतुं अचायमाणीओ तत्थेव द्वाणे ट्ठियातो । हत्थी य ताण अवभासमागतो । ततो तेण लवियाओमा बीह त्ति । हॆत्थे य घेत्तूण सयं घरमुवणीयाओ । ठविऊण य ताओ पुणरवि निग्गओ, 15 दिट्ठो य णेण गयवरो, तं च हत्थिसिक्खाकुसलो खेल्लावेऊण उवरिमारूढो गतो संधपएसं । ततो हत्थी धुणियं पयत्तो, तेण य आसणथिरयाए कंठम्मि से रज्जु छूढा, गहिओ अंकुसो, आणिओ य वसं । उवगर्यां य गणिया य गणियारीउ च हत्थिग्गणनिमित्तं । तओ सो वाइयकणेरुगंधो(धओ) परिसंठिओ, आरूढो सिरारोहो । ततो धमिलो उइण्णो । राइणा य सुयंसामि ! गहिओ मत्तहत्थी अकालवहो धम्मिल्लेणं ति । ततो विम्हयं गतो राया नायरजणो य 20 'अहो !!! अच्छेरयं' -भणंतो पुणो पुणो अहिनंदति । ततो राइणा पूइय-सम्माणितो विसज्जितो सभवणं गतो विमल - कमलदंसणुस्सुओ । समागमणेणं परो आणंदो घरजणस्स जातो । ततो तेण पच्छा सुयं - तेहिं किर वैरइत्तएहिं पुणो परिणेऊण आढत्ताओ पुववरस्स ताओ वहूओ । ताहिं किर भणियं - अम्हे परिचत्तातो एएणं, छड्डेउण णं पलाओ. तं अलाहि अम्ह एएण नाममेत्तपदिणा. जेण मे (ने) जीवियं दिनं सो णे भत्ता होउ ति । ततो किल ताणं 25 ववहारो रायकुले जातो, जिंत्तं च ताहिं । ततो राइणा धम्मिल्लगिहे विसज्जियातो, सबो य संसण-परियणो आगतो, वत्तं च ताहिं समं कल्लाणं । जुवराया गोट्ठियमित्तजणो य eat आनंदिओ । ७० ओ धम्मिल्लेण संवाहपइणो रन्ना सह संधी काराविया । ततो तेण परमावती पेसिया, तीए य सह समागमो जाओ । ततो धम्मिल्लेण विमलाए पायतालणी- णिग्ग २ १ उक्किसीहनायं उ २ विना ॥ २ °विसेसेहिं उ० ॥ ३ °हिं अट्ठकुल शां० ॥ ४° गाण समं उ विना ॥ ५ °स्थेण घे उ २ विना ॥ ६ °याउ गणियारीओ हत्थि शां० विना ॥ ७ वारत्तएहिं उ २ विना ॥ ८ सो अम्हाणं भत्ता क ३ ॥ ९ जितं ली ३ उ० ॥ १० हणप उ २ विना ॥ ११ शां० विनाऽन्यत्र'णातणिग्ग क ३ गो ३ उ० । तणिमग ली ३ ॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ मतीमाईणं च कन्नाणं पाणिग्गहणं] धम्मिल्लचरियं । मणप्पभिई सत्वं निरवसेसं पुणरागमणं च वयंसयाणं परिकहियं । एवं च सो चंपापुरीए राइणा कविलेण सुपरिगहिओ सुहं भोए अणुभवंतो अच्छइ ।। अण्णया कयाइ आगासतलए सुहनिविट्ठस्स एक्का आगासतलेण विजाहरदारिया आगया । सा य से पुरतो ठिया विजुलया विव दुप्पेच्छणिज्जा तेय-रूवसंपयाए । ताते य भणियंअज्ज उत्त! उवलद्धं तत्थ मे-किर अम्हं भाया विजाहरो नियमत्थो अणवराहो चेव विणि-5 वाइओ, तं जुत्तं नाम तुझं साणुकोसस्स पयइवच्छल्लहिययस्स अणवराहं हंतुं ? । ततो तेण लविया-सुंदरि ! अकामकारणेणं अयाणयाए य वंसगोच्छो छिण्णो, तत्थ य सो तुम्हं भाया भारिओ. तत्थ ममं नस्थि दोसो, भवियत्वयाए कम्माणं सो विवन्नो । ततो तीए लवियं'अजउत्त! एवमेयं. मम वि य दारियाए सवं निवेदितं. ततो सा अम्हेहिं भणिया-सुंदरि! आणेहि णं ति. ताए य तुझं पुव दिण्णसण्णाए हरिसंतुरियाए सेया पडागा ऊसविया. ततो 10 तुमं दट्टण तमपकतो. तओ 'अइचिरायसि' ति काऊण अम्हाहिं सवाहिं ससंभंताहिं मग्गिओ, न चेव दिट्ठो. ततो ताहिं अहं पट्टविया-वच्च तस्स पुरिसस्स मग्गण-वेसणं करेहि त्ति. ततो हं तुम्भं गामा-ऽऽगर-नगर-खेड-कब्बड-मडंबेसु उत्थाय त्थाणमग्गण-गवेसणं करेमाणी इमं चंपाउरि संपत्ता. दिट्टो सि मया पुबसुकयावसेसेणं. आणत्तिकारिगा य ते अहं सह भगिणीए, ताओ य सोलस कन्नया'त्ति भाणिऊण नीलुप्पलदलसन्निगासं आगासं उप्प-15 इया । गंतूण य मुहुत्तंतरेण पडिनियत्ता तस्स सगासमागया । ताहि य सबाहिं समं वत्तो वीवाहो । वत्तकल्लाणो य ताहिं समं पीइसुहमणुहवंतो अच्छइ । ततो अन्नया कयाइ विजुमतीए परिहासपुत्वं विमला लविया-जुत्तं नाम विमले! तुमे अजउत्तो ईसारोसमुवगयाते पाएणं आहेतुं ? । ततो तीए लवियं-हला विजुमती! किं व न जुत्तं अण्णमहिलाकित्तणं करेमाणस्स? । ततो विज्जुमतीए लवियं-जुत्तं वल्ल-20 भस्स सुहयस्स जणस्स नामं घेत्तुं. तुझं पुण पायतालणाणुरूवो दंडो कीरउ ति । ततो विमलाए हसिऊणं भण्णइ-हला विजमति ! जइ मे अजउत्तो पाएण न तालिओ होतो तओ तुम्हे अजउत्तरइरसायणपाणयं कत्तो पांविताओ? त्ति. तं तुन्भे सबाओ वि ममं पायस्स पूया-सकारं करेह त्ति । ततो ताओ सबाओ हसिऊण तुहिकाओ ट्ठियातो । ततो वित्त परिहासे विज्जुमतीए लवियं-अजउत्त! का सा वसंततिलया नाम ?। ततो तेण लविय-25 विज्जुमइ ! बीहेमि तीए नामं गेण्हमाणो. रूसणो इहं जणो परिवसति । ततो हसिऊण विमलाए भणियं-अइभीरुओ इयाणिं, सुहयजणो कयावराही होहिइ ता मा बीहेह. अभयं ते. वीसत्थो साहेहि । ततो तेण विज्जुमई लविया-सुण सुयणु १°सेण वि० उ २॥ २०रिसियतु शां०॥ ३ °मइक्कं उ २ विना ।। ४ राइयसि शां० । 'राएसि उ० ॥ ५ करेह त्ति उ २ विना ॥ ६ शां० विनाऽन्यत्र-उत्थाय मग्ग° क ३ गो ३। उट्ठाणमग ली ३। उत्थाय उत्थाय मग्ग° उ०॥ ७ आहतो क ३॥ ८°णमयं शां०॥ ९पावतीओ उ २॥ १० वत्ते उ २॥११ श्या क ३॥ १२ °रू इ उ २॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ धम्मिल्लहिंडीए [धम्मिल्लस्स सनगरगमर्ण अत्थि कुसग्गपुरे नयरे अमित्तदमणस्स रन्नो गणिया वसंतसेणा नाम । तीए धूया वसंततिलया नाम रूय-लायण्ण-विण्णाणोवयारेहिं समंति (समत्ते) चेव कामभोग-रइविसेसे जाणइ। ततो विज्जुमतीए लवियं-वञ्चामि तीसे अजाए वट्टमाणीं वोढुं, जइ अजउत्तस्स सा रोयइ । ततो तेण भणिया-रोसणो जणो पुच्छियबो त्ति । ततो तीए लवियं5 किं पभायं सुप्पेण छाइजइ ? त्ति । ततो गया आगया ये आगासपरिकम्मेण । अजणुवइओ य राया अहयं जोवण्णदरिसणीयं जुवाणरूवं संसहवित्थरोववण्णं गणि. यासु जोग्गं काऊण अइगया ताए भवणं । दिट्ठा य वसंततिलया उम्मुक्कसबाभरणा, पियविरहदुब्बलंगी, मइल-परिजुण्णवसणा, तंबोलपरिवज्जिएण, बाहभरंतनयणा, खामकवोला, परिपंडुरेणं वयणेणं, एगवेणिबद्धेणं केसहत्थेणं जुण्णभुयंगेमायमाणेणं, केवलं मंगलनिमित्तं 10 दाहिणहत्थेणं खुडुएणं । संभासिया य मे 'सुहं ति ?' ति । चित्तकम्मलिहिया विव जक्ख पडिमा एकचित्ता अच्छइ । चिंतियं च मे-'अजउत्तगयहियया एस तवस्सिणि त्ति पुरिससंकित्तणं पि न सम्मण्णइ' त्ति भावं से जाणिऊण पुरिसवेसं विप्पजहाय परिणतमहिलारूववेसधारिणीए पुणो वि से संभासिया-वसंततिलए !, सुंदरि!, धम्मिल्लो ते खेमकुसले वट्टाणी पुच्छइ त्ति । ततो सा संजायहरिसरोमकूवा, पवेयमाणगायलट्ठी, हरिसाग15 यबाहपप्पुतच्छी, तुझे चेव चिंतयंती सहसा अब्भुट्टिया; सगग्गरं 'पिययमे !-त्ति भणंती धाविऊण धणियं मं अवगूहिऊण एवं परुण्णा जहा णाए मम वि आकंपियं (ग्रंथानम्-१९००) हिययं । सुचिरं च रोयइतूणं पुच्छति मं सा हरिसिया-सामिणि! कहिं सो जणहिययहरो अइसोहगमतो अजउत्तो अच्छइ ? त्ति । ततो से मया परिकहियं-चंपापुरीए अच्छइ ति। ततो तीए ममं अजउत्तगयं विप्पजोगजणियं दुक्खं परिकहियं ।। 20 ततो सो विजुमईए तं वयणं सोऊण दसणसमुस्सुओ जाओ । ततो विजुमतीए असु यहिययं जाणिऊणं भणिओ-'अजउत्त! कुसग्गपुरंगमणुस्सुओ दीससि ?' त्ति । ततो तेण लवियं-सुंदरि! एवं मे मणो परिसंठिओ जइ तुम पसन्ना । ततो विजुमतीए सवपियाजण-परिजणसहिओ आमंतियसवजणो अपणो विजारिद्धिविसेसेण विउविएण नगविमा णेणं मुहुत्तंतरेण कुसग्गपुरं नीओ, पवेसिओ य वसंतसेणाए भवणं । इणा य अमि25 त्तदमणेण सबं सुयं। ततो रन्ना परितुढेण तिभाओ रजस्स दिण्णो, भवणं च सबविभवसं पन्नं कारियं, जाणवाहणं परियणो य जहाविभवाणुरूवो दिण्णो । ततो सवपियासहिओ य पविट्ठो भवणं । धणवसुसत्थवाहो पहट्ठो धम्मिल्लस्स आगमणेणं ति, तेण वि सा जसमती आणिया । ततो सो सवपियाजणसहिओ आयंबिलतवफलविसेसे इहलोए चेव अणुहवंतो अच्छइ अमरजुवाणो विव अमरभवणेसु । १°वरागेहिं ली ३ क ३ गो ३ । वगारेहिं शां० ॥ २ य से परिकम्मेण ली ३ गो ३ शां० । य से परिकहियं कम्मेण उ०॥ ३ विमुक्क° उ २ विना ॥ ४ °लपरि° उ २॥ ५ गायमा शां० ॥ ६ °माणं शां०। माणिं उ०॥ ७ हपप्पु० उ २ विना ॥ रदंसणूसुओ उ २ विना ॥ ९ °से ण इह शांविना॥ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेहमालाए पाणिग्गहणं] धम्मिल्लचरियं । अन्नया कयाइ पियजणसहिओ अभितरिल्ले चाउसाले अच्छइ । वसंततिलयाए भणिओ-अजउत्त! अपुरो हु ने हिजो वेसालंकारो इह अइंतेण कामभोगरमणीओ कओ त्ति । ततो तेण चिंतिऊण आसंकियहियएण भणिया-सुंदरि ! तुम्हं विम्हावणनिमित्तं ति । एयं च भणंतो निग्गओ । ततो तेण चिंतियं-नूणं खु अण्णपवेसो इहं भवणे नत्थि. तओ मझ पडिरूववेसधारी विजाहरो भविस्सति । तस्स य वहणोवायं चिंतेउं सवैभवणप्पएसेसुं सिंदूरो5 विकिन्नो, गहियपहरणो य तस्सागमणं पडिच्छमाणो अच्छति । ततो मुहुत्तंतरस्स दिट्ठो य णेणं तस्स पयसंचारो । ततो य पयमग्गमणुसरंतेण वाहिया असिलट्ठी । ततो छिण्णो दुहाकओ पडिओ धरणियले, दिट्ठो य विजाहरो विसज्जाविओ, सकारिओ य सो भूमिप्पएसो। ___ तओ धम्मिल्लो पुरिसवधासंकियहियओ रइं अविंदतो अण्णदिवसे अप्पणो उववणं पविट्ठो, उवविठ्ठो य सद्दलॅसच्छमे असोयसमल्लीणे पुढविसिलापट्टए पच्छातावसंतत्तहियओ 10 तं चेव चिंतयंतो अच्छइ । ताव य असोयमंजरीहिं सॉपच्छाइयसरीरा, नवजोबणसालिणी, थणभरोनमियगायलट्ठी, पीवरजहणभरं समुबहमाणी, सणियं चलणे समुक्खिवमाणी, रत्तंसुयएकवसणा, अच्छेरयपेच्छणिज्जरूवा, थेव-महग्घाभरणा उवागया तस्स सेमीवं । दिट्ठा य णेण अविइण्हपिच्छणिजरूवा-ऽतीवग्गरत्तबिंबाहर-सुद्धचारुदंतपंती पसन्नदसणा । सा पुण-'अजउत्त! अवहियो सुण-अस्थि इह चेव वेयडपब्वयस्स दाहिणिलाए सेढीए 15 सन्निविटुं विजाहरनयरं असोगपुरं । तत्थ य विज्जाहरराया मेहसेणो नाम, भज्जा से ससिप्पभा नाम, ताण य दुवे पुत्तभंडाणि-मेहजवो पुत्तो, अहं च मेहमाला । तओ विजाहरराया अम्ह माऊए सह संपहारेइ-को मम इह अवसाणे राया भविस्सइ ? । आभोएऊणं विजाए दह्ण भणिया णेण अम्मा-'एस अविणीओ मेहजवो मेहमालाए भत्तारेण विणासिजिहि त्ति अण्णो य इहं राया भविस्सई' त्ति भणिए अम्मा विसण्णा 120 सो वि मेहजवो मज्झं नेहाणुराएण उज्जाण-काणण-नदि-गिरिवरे रमणीयाणि खेल्लणयाणि पइदिवसमाणेइ, मुहुत्तं पि मम विरहं नेच्छइ । अहमवि भाउणो नेहाणुरत्तहियया तस्स विरहे सुदंसणूसुया होमि । एवं च णे वच्चइ कालो । ततो अज सो ततिए दिवसे निग्गतो ममं पुच्छिऊण 'मेहमाले ! कुसग्गपुरं वच्चामि त्ति । ततो अहं तस्स अणागमणलोभेण इहमागता । सुयं च मे, जहा—विजाहरो धम्मिल्लेणं मारिओ त्ति । ततो अहं संजायरोसा 25 इहं असोयवणियमुवगया । ततो तुम मए दिट्ठो, दिढे य समाणे णट्ठो मे रोसो, लज्जा य मे संजाया, तं पसीयह, ममं असरणाए सरणं होहि' त्ति भाणिऊण चलणेसु से निवडिया । सा य णेणं वरहत्थीहत्थसण्णिभाहिं बाहाहिं छित्ता गंधणं विवाहधम्मेण विवाहिया, रतिविणोएण य धणियं उवगूढा । तो सा ववगयभाउसोगा जाया, पाविया य मणुस्सयसोक्खसारं । ततो तं गहाय नियगभवणं पविट्ठो। 30 १ ने दिवो ये ली ३ ॥ २ मम प° शां० ॥ ३°वेसु भ° क ३ ॥ ४ °लच्छलस शां० विना ॥ ५ सगासं उ २॥ ६ एवं ताण व° ली ३ ॥ ७°ण य विवाहेण विवाहधम्मे° उ २ विना॥ व.हिं० १. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिल्लहिंडीए [धम्मिल्लपुत्वजम्मकहाए __ ततो तत्थ सवपियाजणसहिओ अवितण्हमोइयवो कालं गमेइ । बहुए वि काले समइक्कते विमलसेणाए रायधूयाए पुत्तो जाओ, नामं च से कयं 'पउमनाहो' त्ति । सो य कमेण संवडिओ, गहियविजो य पिउणा पुवकम्मपुण्णोदयनिविट्ठ() अप्पणो य सुकयकम्मविसेसोदयं अणुहवंतो अच्छइ । एवं च से मित्त-बंधु-पुत्त-पियाजणसहियस्स सुहेण कालो वोलेई । 5 अह अन्नया कयाई बहुजणवएसु विहरमाणो जिणोवइटेण विहिणा, सबजगजीवसारणीओ, सुओवइटेणं विहिणा धम्म उवदिसंतो, बहुसीसपरिवारो, समणगणगामणी धम्मरुई नाम अणगारो कुसग्गपुरं नाम नगरं आगओ, वेभारसेलसिहरे समोसढो, साहुजोग्गे फासुए देसभागे अहापडिरूवं उग्गहं ओगेण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणो विहरइ । सुयं च रण्णा अमित्तदमणेणं-अन्ज किर चउनाणोवगओ भयवं मेघदुंदुभि10 समनिग्घोसो धम्मरुइमणो धम्मरुई नाम अणगारो इहं समोसढो त्ति । ततो हरिसवस समुल्लसियरोमकूवो धम्मरागमती कोऊहल्लेण गतो राया णगरजणो य । धम्मिल्लस्स वि य तस्स भयवओ आगमणं कोडुंबियपुरिसेहिं निवेइयं । तओ सो हट्ठमणसो संभंतो नियगपरिवारसंपरिखुडो पत्तो वेभारगिरिसमीवं, पेच्छइ य तव-चरण-करणोवसोसियसरीरेहिं उवसोहियं गिरिसिहरपायमूलकंदरं समणगणेहिं, ते य भयवंतो पणमंतो पणमंतो अइक्क15 मति; पेच्छइ य पुरओ समणगणगंधहत्थिं मिउ-विसद-महुर-मणहरेहिं वयणेहिं धम्म परि कहेंतं, उवगंतूण य णेणं पणमिओ । ततो तेहिं भयवंतेहिं समग्गसग्गसोवाणभूऍहिं धम्मेणं बद्धावितो, कहिओ य णेहिं सबजगसुहावहो धम्मो । कहावसाणे य धम्मिल्लेणं वंदिऊण तवविहिं पुच्छिओ भयवं तीय-पडुप्पन्नम-ऽणागयजाणओ-किं मया पुत्वभवे कयं जेण अहं सुह-दुक्खपरंपरं पत्तो मि ? । ततो साहुणा भणियं20 धम्मिल्लपुवजम्मकहाए सुनंदभवो धम्मिल्ल! तुम इओ य तईयभवे-इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे भरुयच्छं नाम नयरं । तत्थ य राया जियसत्तू नाम, भज्जा से धारिणी नाम । तत्थ य नगरे गहवई कुल-रूवाणुविहवो महाधणो नाम जिणसासणसुइपरिवज्जियमईओ, तस्स य भज्जा सुनंदा नाम, तीए पुत्तो-सुनंदो नाम नामतो आसी । कमेण य परिवड्डिओ सातिरेगमट्ठवास25 जायओ अम्मा-पिऊहिं कलायरियस्स उवणीओ। तत्थ य जहाणुरूवो कलासु अब्भासो कओ। तओ केणइ कालंतरेण तस्स दारयस्स अम्मा-पिऊणं पुवसंगया पियपाहुणया आगया। ततो तेहिं ससंभमं उवगूढा, आभासिया य निद्ध-महुरेहिं वयणेहिं, कुलघराइणायखेम-कुसलेणं संपूइया, विदिण्णाऽऽसणा य उवविठ्ठा, दिण्णपायसोया य सुहंसुहेण वीसत्था अच्छंति। ततो सो दारओ पिउणा भणिओ-पुत्त! सोयरियपाडयं गंतूणमामिसं आणेहि त्ति । ततो 30 सो पाहुणयपुरिससहिओ मोल्लं गहाय गतो सोयरियपाडयं । तत्थ य तदिवससंपत्तीए १°विरहमोउ २ विना॥ २ लेह अण्णजणमणोरहपत्थणाहो असमुदयसुहो। अह अन्नया शां. ली ३॥ ३ एणं घ. उ२॥४ पत्तो त्ति उ२॥५यसोहिया पिशा॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुनंदभवो सरहभवो य] धम्मिल्लचरियं । आमिसं न जायं । ततो सो पाहुणयमणुस्सो तं दारगं भणइ-सामि! केवट्टवाडयं वच्चामो त्ति । तेण य पडिस्सुयं । तत्थ पंच मच्छया जीवंता चेव लद्धा। ततो तेण पाहुणगमणुस्सेणं वारिज्जंतेण वि गहिया। घेत्तण य मच्छए पडिनियत्ता जहागयमग्गेणं । ततो सो जलभासे तं दारगं भणइ-एए मच्छए घेत्तूण वच्च, ममं अग्गओ पडिवालेज्जासि, जाव अहं सरीरोवरोहे वञ्चामि । ततो सो दारओ ते मच्छए जलब्भासे फडफडायंते दट्टणं जायाणु-5 कंपो भवियद्ययाए कम्मोवसमस्स पाणिए विसजेति । ते वि य मच्छए निवाणं पिव खीणकम्मंसा लहुयाए गया । सो य पुरिसो आगतो तं दारगं पुच्छइ-कहिं ते मच्छय ? त्ति । ततो तेण पडिभणिओ-पाणिए छूढ त्ति । तओ तेण भणियं-सामि ! 'अकजं कयं ति पिया ते रूसिहि त्ति । ततो ते दो वि जणा घरं गया । ततो सो पिउणा पुच्छिओ-आणीयं आमिसं ? ति । ततो तेण कम्मगरपुरिसेण भणिओ-आमिसस्स अभावे जीवंतया मच्छा 10 आणीया, ते य एएणं आणतेणं पाणिए छूढ त्ति । ततो सो दारगो भणिओ-किं तुमे मच्छया मुक्क ? त्ति । ततो तेण भणियं-अणुकंपा मे जाया मच्छएसु फडफडायंतेसु, तो पाणियम्मि मुक्का. करेह जं इदाणिं कायवं ति । ततो सो एवं भणिओ मिच्छत्तोवहयबुद्धी आसुरुत्त-कुविय-चंडिकिओ तिवलितं भिउडिं निडाले काऊण निराणुकंपो तं दारगं लयाए. हंतुं पयत्तो, वारिजंतो वि मित्त-बंधव-परियणवग्गेणं नेव विरओ, नवरि अप्पओ कम्मेणं 15. विरओ हंतवाओ। ततो सो दारगो सारीर-माणसदुक्खसंतत्तो, तेण बहूहिं तजण-निब्भच्छणा-ऽवमाणणाहिं निब्भच्छिज्जतो, परिहायमाणसरीरो कालगओ। धम्मिल्लपुव्वजम्मकहाए सरहभवो ___ ततो सकम्मनिवत्तियाउओ विसमगिरिकडयनिविट्ठा[इ]महल्लदुग्गकंदरापरिखित्ते, रुक्खलया-वंसगुम्मगहणे, पावजणावासकम्मनिलए, एगस्स वि य दुग्गमो होइ संपवेसो, तत्थ 20. संनिविट्ठा अस्थि विसमकंदरा नाम चोरपल्ली । तत्थ य पल्लिगणगामकूडो चोरसेणावती सकम्मवित्थारियपयावो मंदरो नाम नामेणं, तस्स य भज्जा वणमाला नाम, तीसे उदरे आयाओ । कालेण य पुण्णेण जातो, णामं च से कयं पिउणा 'सरहो' त्ति । ततो सो सुहंसुहेण परिवड्डिओ वाहपुत्त(ग्रंथानम्-२०००)परिवारिओ य सकम्मनिरओ अच्छइ । ततो सो अण्णया कयाइ तस्स पिया आसुकारमरणरोगेणं कालधम्मुणा संजुत्तो। पुत्तेण य मित्त-25 बंधवसहिएणं सक्कारिओ, लोइयाणि य किच्च-करणिज्जाणि कयाणि । ततो सो दारओ पल्लिमहत्तरएहिं पल्लिसेणावई अहिसित्तो, परिवारिओ य सयण-परियणेणं पल्लिजणमणुपालयंतो सुहंसुहेण कालं गमेइ । ___ अह अण्णया कयाई तस्स सुहोवविट्ठस्स चिंता समुप्पन्ना-बाहिं ता निग्गच्छामि । ततो सो एगवत्थो धणुं गहाय पल्लीए नाइदूरं गतो, पेच्छइ य परिदुब्बलसरीरे केणावि 30 वावडग्गहत्थे मग्गपरिभढे पुरिसे परिभमंते । चिंतियं च णेणं-के एते भविस्संति ? १°तयाओ उ २ विना ॥ २ कारमणारोगेणं उ २ विना ॥ - Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धम्मिल्लचरियं । [धम्मिल्लहिंडीउवसंहारो त्ति । ते अणाउहहत्थे परिकलिऊण अणायरो से जाओ, अब्भासं च गओ । ततो तेहिं भगवंतेहिं सग्गमग्गसोवाणभूएहिं हिय-सिव-सुह-नीसेसकरेहिं महुर-पुत्वभासीहिं धम्मलाभिओ। ततो पणमिऊण पुच्छिया अणेणं-के तुब्भे ? कओ वा ? कहिं वा वच्चह ? ति । तेहिं भणियं-सबारंभविरया धम्मट्ठिया 'समण' त्ति वुच्चामो । तेण य भणिया-को धम्मो ? 5 त्ति । तेहिं भणियं-परस्स अदुक्खकरणं । ततो तेण ते समणा पहं समोयारिया गया य । सो वि य पल्लिं पविट्ठो।। ततो कयवएहिं दिवसेहिं वइक्कंतेहिं चोरवंद्रपरिवारितो गामघायं काउं णिग्गओ, गओ जणवयं । तत्थ य गामब्भासे दिवसावसेसवंचणनिमित्तं एगम्मि विसम-दुग्गमग्गगहणे अच्छति । चिंतियं च णेणं-'अहम्मो परदुक्खस्स करणेणं, धम्मो य परस्स सुहप्पया10 णेणं' ति समणा एवं भणंति. ततो 'किं मम परस्स दुक्खकरणेणं दिण्णेणं ?, तं मे होउ जं परस्स सुहप्पयाणेणं' ति चिंतिऊण सबप्पहरणाणि परिच्चइऊण जणवयं सो उवगतो । ततो सुहसीलसमुदायारो साणुक्कोसो अमच्छरी सबसत्तेसु साणुकंपो कालगतो समाणो इह कुसग्गपुरे नयरे सुरिंददत्तस्स सत्थवाहस्स सुभदाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए पञ्चायाओ। ततो तुझंगभगयस्स समाणस्स धम्मकरणे माऊए दोहलो जातो। ततो तुमं विणीयदोहलाए माऊ15 याए णवण्हं मासाणं अट्ठमाण ये राइंदियाणं सुरूवो दारओ जातो । ततो तुझं अम्मा-पिऊहिं निवत्तबारसाहस्स इमेयारूवं गोणं गुणनि'फन्नं णामधेयं कयं-जम्हाणं अम्हं इमम्मि दारए गभगए धम्मदोहलो आसी, तं होउ णं एयस्स दारगस्स नामधेयं 'धम्मिल्लो' त्ति । तमेवं तुमे धम्मिल्ल! पुत्वभवे जीवस्स रक्खणबीएणं इमा एरिसी मणुयरिद्धी लद्ध त्ति ॥ ततो तस्स धम्मिलस्स साहुसगासाओ तं वयणं सोउं ईहा-ऽपूह-मग्गण-गवेसणं 20 करेमाणस्स सण्णिस्स पुबजाईसरणे समुप्पण्णे । ततो सो संभारियपुबजाईसरणो दुगुणाणि यतिवसंवेगजायसद्धो आणंदसुपुण्णनयणो अणिञ्चयं बहुदुक्खयं च माणुस्सं संजोगविप्पओगे य चिंतिऊणं निविण्णकामभोगो तस्सेव पायमूले पवइओ, सामाइयमाइयाणि एकारस अंगाणि अहिजिओ। ततो बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अ. प्पाणं झोसेत्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता अच्चुए कप्पे देविंदसमाणो बावीससागरो 25 वमट्टिइओ देवो जाओ । ताओ य देवलोयाओ चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिति ॥ एवं खलु धम्मिल्लेणं तवोकम्मेणं सा इड्डी लद्धा ॥ ॥धम्मिल्लहिंडी सम्मत्ता ॥ धम्मिल्लहिंडीग्रन्थानम्श्लो. १३७७ अ० २०. सर्वग्रन्थाग्रम्श्लो० २०३४ अ० ५. TES MORE १ पिच्छिऊण ली ३ क ३ गो ३ । पिक्खिऊण उ०॥ २ °हेत्ति क ३ गो ३॥ ३ य दिवसाणं सुरू° उ २ . Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [पेढिया।] * इयाणि 'वसुदेवेणं कहं परलोगे फलं पत्तं' ति पुच्छिओ रण्णा भगवं परिकहेइ । * इयाणि पेढिया, एवमहांतो(महतो) इतिहासपासाइस्स पेढभूया ॥ पज्जुण्णसंवकुमारकहासंबंधो __ अत्थि पच्छिमसमुद्दसंसिया निउणजणवन्नियगुणा चत्तारि जणवया । तं जहा-आणट्ठा 5 कुसट्ठा सुरठा सुक्कर? त्ति । तेसिं च जणवयाणं अलंकारभूया, सुट्टियलवणाहिवदेवदत्तमग्गा, धणवइमइनिम्माया, चामीयरपायारा, नवजोयणवित्थिण्णा, बारसजोयाँयता, रयणवरिसयाय दुरुज्झियदारिददोसा, रयणप्पहापडिहयतिमिरी, सुरभवणपडिरूवचक्कबहुभोमपासायसहस्समंडिया, विणीय-विण्णाणबहुल-महुराभिहाण-दाण-दय-सुवेसभूत-सीलसालिसज्जणसमाउला नयरी बारवती नाम । तीसे य बहिया रेवओ नाम पवओ रयणकं-10 तिदित्तसिहरकरविलिहियगगणदेसो । सो य नंदणवणगुणगणावहासिणा जायवजणमणाऽऽणंदणेणं नंदणवणेण उज्जाणेणं मंदरो इव सुरनंदणेणे परिक्खित्तो । बारवईए नयरीए धम्मभेया इव लोगहिया दस दसारा परिवसंति । तं जहा समुद्दविजयो अक्खोभो, थिमिओ सागरो हिमवं । अयलो धरणो पूरणो, अभिचंदो वसुदेवो त्ति ॥ तेसिं च सम्मओ उग्गसेणो राया सुराण विव सक्को अणइक्कमणीओ । तत्थ समुद्दविजयस्स रण्णो नेमि-दढनेमिप्पमुहा पुत्ता, सेसाणं उद्धयाई । वसुदेवस्स य अकूर-सारणग-सुहदारगादिणो । तेसिं च पहाणा राम-कण्हा निजल-सजलजलदच्छविहरा, दिवसयरकिरणसंगमावबुद्धपुंडरीयनयणा, गहवइसंपुण्णसोम्मतरवैयणचंदा, भुयंगभोगोवमाणसुसिलिट्ठसंधी, दीहधणु-रहजुग्गबाहू, पसत्थलक्खणंकिय-पल्लवसुकुमा-20 लपाणिकमला, सिरिवच्छ्रुत्थइय-विउलसिरिणिलयवच्छदेसा, सुरेसरायुधसरिच्छमझा, पयाहिणावत्तनाहिकोसा, मयपत्थिवत्थिमिय-संठियकडी, करिकरसरिसथिर-वट्टितोरू, सामुग्गणिभुंग्गजाणुदेसा, गूढसिर-हरिणजंघा, समाहिय-सम-सुपइट्ठिय-तणु-तंबनखचलणा, ससलिलजलदरवगहिर-सवणसुहरिभितवाणी । 15 १ शां० विनाऽन्यत्र-एवं महतोत्तो इति° ली ३ मो० गो ३ । एवं महत्तो इति° कसं० संसं० । एवं महंतोत्तो इति° उ० ॥ २ °सायस्स शां० ॥ ३ अणहा कुणहा शां० ॥ ४ निम्मविया ली ३ ॥ ५ सायरपा ली ३ ॥ ६ °णायामा ली ३॥ ७ सय(ए)ण दुरु° शां० विना ॥ ८ रसु उ २ ॥ ९ °ण देउज्जाणेण परि० गो ३ उ०॥ १० विय शां० । विअ उ० ॥ ११ निजल° क ३ गो ३। विजल शां०॥ १२ चंदवय° उ २ विना ॥ १३ च्छोच्छइ शां० ॥१४ ०णिमुग्ग° शां० विना ॥ * फुझ्यन्तर्गतोऽयं पाठः सर्वेष्वपि लिखितपुस्तकेषु "धम्मिल्लहिंडी सम्मत्ता" इत्यस्यार्वागू वर्तते ॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ वसुदेवहिंडीए राम-कहाणं अग्गमहिसीणं परिचओ तत्थ रामस्स बलदेवस्स रेवई अग्गमहिसी । सा उण रेवयस्स माउलस्स दुहिया रती विव रूवरिसणी । 5 कण्हस्स उग्गसेणस्स दुहिया सच्चभामा णाम सची विव सकस्स बहुमया १ । रिट्ठपुरे य रुहिरस्स रण्णो देवी सिरी, तीसे दुहिया पउमावती । तीसे य पिडणा सयंवरो दिण्णो त्ति । वासुदेवस्स चार पुरिसेहिं निवेइओ सयंवर दिवसो । देवदिष्णेणं रहेणं दारुगसहाओ गओ सयंवरभूमिप्पएसं । निग्गया य कुमारी सहिजणकयपरिवारा | मंचारूढा य रायणो तीसे दंसणूसुया ट्ठिया । उइण्णो य कण्हो रहाओ । दिट्ठा य ण पउमावती परमवणनिग्गया इव पउमनिलया, पउमवरमणहरमुही, कण्णा लक्खणविण्ण10 पूजित कोमलचलणारविंद - जंघोरु सोणिमंडला - नाभि - मज्झ थणजुयल - बाहुलतिका-करतलकिसलय-सिरोधरा-दसर्णवसण-ऽच्छि- कण्ण-नासा - कवोल - सिरकेस-गमण-भासित- हसिया, कयली-लवंगकंती । रुइया य से दिट्ठीए नवजलदावली विय मयूरस्स । तीसे वि सो चक्खुविसयमागतो । चिंतियं च णाए – कयरो मण्णे एस देवो सयंवरे को ऊहल्लेण इहमागतो ? । जाव सा एवं संकप्पेइ ताव कण्हेण रूवाइसैयविम्हिय हियएणं भणिया पउमावती15 अहं वसुदेवसुतो हरामि त्ति न ते भाइयां ति । वणलया इव वणगएण उक्खित्ता दुयं विलइया रहं । ततो दारुगसारहिणा घोसियं -सुणंतु सयंवरेंस मागया खत्तिया !, दसारकुलकेऊ वासुदेवो हरइ कुमारिं. जो न सहइ सो पच्छओ लग्गड त्ति । तयणंतरेण दामोयरेण कुसुमकलावधवलो पंचयण्णो संखो उद्धतो । तं च सद्दं सुणंती परमावती सहसा भीया कण्हरस वच्छत्थलमल्लीणा, तेणॆ य समासासिया । अपुत्रसहसम्मोहिया य 20 खत्तियसेणा । पउरा य मण्णंति - किष्णु परियत्तइ भूमी ? जोइसचक्कं व निवडइ धरविट्टे ? समुद्दो वा वेलमइक्कमइ ? त्ति । जाव ते सत्था न भवंति ताव बहूणि जोयणाणि वइक्कंतो, निवाघाएण पत्तो बारवतिं । रोहिणी - देवईहि य परितुङमाणसाहिं बहुसक्कारेण य सक्कारिया पउमावती । दत्तो से पासाओ देवनिम्मिओ परिचारियाओ य । पिउणा वि पेसिओ अत्थो विउलो किंकरीओ य २ । [ पज्जुण्ण संबकुमार कहा संबंधे 25 सिंधुविसए वीइभयं नगरं । तत्थ य मेरू राया, चंदमती देवी, तीसे दुहिया गोरी । तेण य रण्णा पेसियं कुलगराणं - कण्हस्स कुमारिं देमि, संबंधाणुग्गहेण मं अणुहह ति । तेहिं अभिचंदो पेसिओ । सो विउलकोस-पेसवग्गं गहेऊण आगतो । वासुदेवो य तीसे पाणिं गाहिओ वुद्धेहिं कुलगरेहिं । तीय वि दिण्णो रयणपासाओ ३ । गंधार जणवर पोक्खलावईनगरीए नग्गई नाम राया, देवी य मरुमती, सीसे वीस30 सेणो पुत्तो जुवराया, तस्स भगिणी गंधारी रुववती रूवगए गंधवे य परिणिट्ठिया । वीस १ सवण शां० विना ॥ २ 'राकुतूहलेन इहागउ ? ति शां० ॥ ३ सयहिएणं शां० विना ॥ ४ रमा शां० विना ॥ ५ण सा यः डे० ॥ ६ चारओ य शां० विना ॥ ७ तीए क ३ ॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामकण्हऽग्गमहिसीणं परिचओ] पेढिया । सेणाणुमईए रामसहिओ कण्हो गंधारिं सपरिवारं गहाय वारवतिमुवगतो । सा वि बहुसक्कारेण पूइया जऊहिं । दिण्णो से पासाओ विमाणोवमो ४ । सिंहलदीवे राया हिरण्णलोमो, तस्स देवी सुकुमाला नाम, तेसिं दुहिया लक्खणलया लक्खणा णाम, पुत्तो य तस्स रण्णो जुयराया दुमसेणो । दूओ य पेसिओ कण्हेण सिंहलदीवं, सो आगतो कहेइ-देव ! हिरण्णलोमस्स रण्णो दुहिया देवया विव रूव-5 स्सिणी, सा तुम्ह जोग्गा. सा य किर दाहिणवेयालीए समुद्दमजणं सेवमाणी देवचणवक्खेवेण मासं गमेहिइ दुमसेणेण सारक्खिया. ता कीरउ आयरो रयणसंगहस्स । तस्स वयणेण राम-केसवा गया समुद्दतीरं, दुमसेणं तुं सपरिवारं लक्खणकुमारिं गहाय सपुरिमागया । हिरण्णलोमेण य रण्णा विउलो अत्थो पेसिओ, 'पुवचिंतिओ मे मणोरहो संपुण्णो त्ति पणओ हं आणाविधेउ' त्ति ५। 10 अरक्खुरीए नयरीए रट्टवद्धणो राया, तस्स देवी विणयवती, पुत्तो णमुई नाम जुवराया, तस्स भगिणी सुसीमा सुसीमा इव वसुमती मणोहरसरीरा । सा सुरट्ठाविसए पभासतित्थं मजिउं गया णमुइसहिया।सा कहिया चारपुरिसेहिं माधवस्स । गतो रामसहिओ, नमुई हंतूण सपरिवारं सुसीमं घेत्तण लच्छिं पिव वितियं जायवपुरीमागतो। सा वि सकारिया कुलगरेहिं, दिण्णो य पासादो ६ । गगणनंदणे (ग्रंथानम्-२१००) नयरे जंबवंतो राया विजाहरो, तस्स य भजा सिरिमई, पुत्तो जुवराया दुप्पसहो नामा, धूया य से जंबवती। सा चंदा-ऽरविंदाणि मुहसोहाए अइसयति, णयणजुयलेण य सभमरकुवलयजुगलं, थणजुयलेण य पीणुण्णय-निरंतरेण बालतालफलसिरिं, लताओ य सपल्लवाओ बाहाजुयलेण, मझेण य तिवलि विभंगुरेण वजमझं, जहणवित्थारेण भागीरहिपुलिणदेसं, ऊरुजुयलेण गयकलभनासाभोगं, जंघाजुयलेण 20 कुरुविंदावत्तसंठिति, कमजुयलेणं कुम्मदेहागिति, सुकुमालयाए सिरीसकुसुमसंचयं, वयणमहुरयाए वसंतपरहुर्यवायं । सा चारणसमणेण 'अद्धभरहाहिवभजा भविस्सइ' त्ति आदिहा। ततो सो जंबवंतविजाहरराया 'तं गवेसिँस्सामि' त्ति गंगातीरे सनिवेसे सन्निविट्ठो।सा य कुमारी अभिक्खं गंगानदि मजिउं एइ सपरिवारा। विजाहरेण य इक्केण सेवानिमित्तं कण्हस्स निवेदिता । सो अणाहिहिसहिओ तं पएसं गतो, दिट्ठा अणेण गंगापुलिणे कीलमाणी, 25 रूवमुच्छिएण य हिया । निवेइया रण्णो, सो रूसिउ आगतो सयं, जुज्झिउं च अणाहिट्टिणा सह संपलग्गो । भणिओ य णेण राया-अयाणुगो सि तुम, कण्हस्स वासुदेवस्स नेऊण कुमारी देया, तं जइ तेण सयमेव हिया णणु सोहणं. किं न याणसि से पहावं ? देवप्पसायं च ? त्ति । ततो सो उवसंतो, भणितं [च सुट्ठ कुमार ! भणसि. मम वि चारणसमणादेसं पमाणं करेंतस्स एसेव अहिप्पाओ आसी. तं अहं तवोवणं गमिस्सं, दुप्पसहो 30 15 १ या लक्खणा शां० विना ॥ २ मणह शां०॥ ३ सिरी शां० विना ॥ ४ यणिणायं ली ३ ॥ ५ सिस्सं ति त्ति शां० ॥ ६ याणासि शां०॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए । पज्जुण्णसंबकुमारकहासंबंधे ते य परिपालणीओ, खमह मे अयाणओ अतिक्कम । तओ ते जंबवती धितिं पिव बितियं गहेऊण बारवतिमुवगया। पूइओ य जायवेहिं सभारिओ । दुप्पसहो य कुमारो जंबवईपरिचारियाओ विउलं च वित्तं गहाय उवगतो, पणओ राम-केसवाणं । तेहि वि बंधुववहारेण पूइओ गतो सपुरं । जंबवतीए दत्तो पासादो कण्हेण ७ । 5 वियब्भाजणवए कुंडिणिपुरं नाम नयरं । तत्थ भेसगो राया, विजुमती देवी, तेर्सि पुत्तो रुप्पी कुमारो, रुप्पिणी य दुहिया । सा य वासुदेवस्स नारएण निवेदिता, भणइकण्ह ! सुणाहि-मया रायंतेउराणि बहुयाणि दिट्ठाणि. जारिसी पुण कुंडिणिपुरे रुप्पिणी नाम कण्णया तारिसी बीया नै होज त्ति तक्केमि । सा सहस्सरस्सिरंजियसयवत्तकंतवयणा, वयणकमलनालभूयचउरंगुलप्पमाणकंधरा, मउय-सुवट्टित-सिलिट्ठ-संठिय-तणुय-सुकुमाल10 सुभलक्खणसणाह-किसलयुज्जलबाहलतिका, करपरिमिय-वट्टहारपहसिय-पीणथणजुयलभार सीदमाणवलिभंगवलियमज्झा, ईसिंमउलायमाणवरकमलवियडणाभी, कण्णालक्खणवियक्खणपसंसियमदणसरनिवारणमणुज्जसोणिफलका, खंभणिभ-परमसुकुमाल-थिर-वरोरू, सुलीणजाणुप्पएसा, गूढसिर-रोमगोपुच्छसरिसजंघा, नवनलिणिकोमलतल-कमलरागसप्पभन हमणिभासियपसत्थचलणा, सवण-मणग्गाहिरिभितवयणवियक्खणा, आलओ गुणाणं । 15 एवं च नारदो रुप्पिणि कण्हस्स हिययसाहीणं काऊण उप्पइओ । रुप्पिणीए अणेण वासुदेवगुणा कहिया । एयम्मि य देसयाले रुप्पिणी सिसुपालस्स दमघोससुयस्स दत्ता । रुप्पिणिपिउच्छाए य एवं पवित्तिं सोऊण विरहे भणिया-पुत्ति रुप्पिणि! सुमरसि जं सि बालभावे दो वि अइमुत्तएण कुमारसमणेण णभचारिणा भणिया 'वासुदेवस्स अग्गमहिसी भविसति' त्ति ?। 20 तीए भणियं-समरामि । सा तं भणइ-पुत्त! जह वागरियं तेण मुणिणा तहा तं, न एत्थ संसओ. बलदेव-वासुदेवा अवरंते सुवंति, समुद्देण किर से मग्गो दिण्णो, धणदेण णयरी णिम्मिया बारवती, रयणवरिसं च बुढे. 'वासुदेवो य किर सिसुपाल-जरासंधे वहेहिं' त्ति वाओ पवत्तइ त्ति. चेइपंइणो य तुमं सि दत्ता रुप्पिणा. सिसुपालं हंतूण वि तुमं कण्हो गेण्हंतगो, तं मा ते वयणीययं होहिति. जइ तवाणुमयं दामोयरस्स पेसेमि 25 अहं ति । रुप्पिणीए भणिया-पिउच्छा! तुन्भे ममं पभवहा पिउणो अणंतरं, जं च मे हियं तत्थ तुब्भे मे पमाणं। ततो तीए पच्छण्णं पुरिसो पेसिओ बारवती लेहे गहेऊण, ते विवाहदिवसनिरुत्तपट्ठिओ वित्थिजत्ता कुमारीदाणस्सफला, सिसुपालवंचणनिगूढवयणा य लेहा उवणीया कण्हस्स । 'वरदानदीतीरे य नागघरचणववदेसेण कुमारिनिग्गमो, तत्थ मिलियवं' ति कहियं तेहिं १°वती डे० शां० विना ॥ २ कुंडिणपु° शां० विना॥ ३ न दि त्ति ली ३॥ ४ °लउज्ज° उ २ ॥ ५ °गकलि° शां० ॥ ६ °ण भवारिणा उ २ ली ३॥ ७°स्ससि त्ति शां० विना ॥ ८ पुत्ति क ३ ॥ ९ उ. विनाऽन्यत्र-हि त्ति वाओ, चेइ शां० । हिति चेइ ली ३ क ३ गो ३॥ १० °पयणो शां० ।। ११°त्तपवत्तिजुत्ता कु° उ २ ॥ १२ वरगाण° उ २॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेढिया । ८१ रामकन्हग्गमहिसणं परिचओ ] पुरिसेहिं । आगया य कुंडिणिपुरं वण्ण-चिंधपभावा य कहिया णेहिं कुमारीए सपिउच्छाए, ' निच्छियाऽऽगमणं कण्हस्स । बहुमाणं सिसुपालो आगतो द्विओ वरदानदीपुवतीरे । पमक्खिया रुप्पिणी सवालंकारभूसिया नीणीया नागघरं भद्दगमहेतरगपरिवुडा । सा अच्चगच्छलेण पुणो पुणो नीइ । दिट्ठा य णाए ताल - गरुडज्झया जहा कहिया दूएहिं । तुट्टाए य भणिया रुप्पिणी पिउच्छाए - एैहि पुत्त ! पसण्णाणि ते देवयाणि ऐहि, कुणसु पइक्खिणं 5 देवउलस्स मंद मंदं परीति । वासुदेवेण य कुमारिं दट्ठूण भणिओ दारुगो-तूरह तुरगे । तेण य चोइया नागघरंतेण । कण्हेण य तीए पैमाणं करेंतेण आरोविया रहं । ठिया य भद्दगेण विज्जुलया इव नवजलदल्लीणा दिट्ठा | आफालियं च णेण धणुं । 'कहिं वच्चसि सूर ! कुमारि गद्देऊणं ?' ति भणतो भणिओ कण्हेण- - मा मर, वच्च, रुप्पिस्स पवित्ति नेहि. किं ते उज्जमेण ?, भण - 'राम- गोविंदा रुप्पिणिकुमारिं हरिंति' त्ति । सो भीओ रवंतो 10 गओ रुप्पिसमीवं । दो वि सपरियणा निग्गया । रुपिरण्णा पइण्णा कया-भगिनिं अमोएउ न पविसिस्सं नयरिं । पत्थिओ महता बलसमुदपणं रहमग्गेण । रुपिणी य विमणा पुच्छिया कण्हेणं - किं देवि ! नाभिरुइयं ते मया सह गमणं ? | सा भणइ - देव ! सुणह, मम भाया धणुनही, सबलो य आगतो. तुब्भे पुण दुबे जणा, तत्थ भे पीलं आसंकामि । कण्हेण भणिया- देवि ! न जुत्तं इत्थिसमीवे अप्पा विकत्थेडं, तह वि पुण तवाssसासण- 15 निमित्तं भणामि - परस मे बलं । तत्थ नाइदूरे महापरिणाहा पायवा पंतीए ठिया, ततो णेण एकसरेण विणिभिण्णा । अणंतरिया य जे जे तीए संदिट्ठा ते ते विदारिया । वरं च से अंगुलिमुद्दाए चूरियं अंगुइंगुलिसन्निवाएणं । पत्तं च अग्गाणीर्यं । भणिओ य बलो कण्हेणं - भाउ ! तुम्हे सुहं गहाय वञ्चह, अहमेते णिवारेमि । रामेण भणिओ - कन्ह ! तुमं वहुसहिओ वच्च वीसत्थो. अहं एयं कागबलं पोएमि । ततो रुप्पिणीए जायभयाए 20 विष्णविओ कहो - देव ! जहा मे वयणीयं न होइ - 'भाउगं मारावेऊण गय' त्ति, तहा कुणसु पसायं. सत्ता तुज्झे सक्कं पि जेउं । एवं विण्णविएण दामोदरेण रामो भणिओभाग ! सुहा ते भागस्स अभयं मग्गति. कीर से पसाओ । रामेण य से 'तह' ति पडिवन्नं । रुप्पिभूपबलं च बलदेवमभिभविउमारद्धं । तेण य देवदिष्णो संखो समुद्धृतो । तस्स सद्देण निङ्कुरगज्जिय-खुभियमगरागरसरिच्छेण बलतिभाओ निराणंदो उज्झियाउहों 25 ठितो । रुप्पी य अणुयाति अमरिसिओ, दूरं गंतूण य सरजालं पवुट्ठो रोहिणि सुयरहवरोवर । तेण य' लहुहत्थयाए छिण्णा सरेहिं सरा, तुरगा सारही य पडिविद्धा । विणासियरहो वि जाहे न मुयइ धिट्टयाए ताहे से धणुं विणासियं, अंगुट्ठो य दाहिणो विद्धो । ततो सुहीहिं कहिं कहिं वि निवारिओ - 'सामि ! एस रामो पभवंतो वि ते न विणासेइ, अलं जुज्झेणं' ति नियत्तिओ । पइण्णापूरणत्थं भोजकडं नयरं निवेसेइ । इयरे वि सिद्धकज्जा 30 1 १ वरगान उ२ ॥ २ 'हत्तरपरि° शां०॥ ३-४ एहिं उ २ विना । ५ दारगो शां०। एवमग्रेऽपि । ६ पणामं करेंतीए आरो° क ३ ॥ ७ पिणा प° क ३ विना ॥ ८ यं सिन्नं । भ° क ३ ॥ ९ °तो विणा शां० विना ॥ व० [हिं० ११ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [पअण्णकुमारजम्मो परं पीइमुखहंता अणुविग्गा वचंति, कहियं च रुप्पिणीए-अणहसरीरो ते भाया नियत्तो सयं जणवयं । दसिंता पुर-पवय-देसे य रुप्पिणीए पत्ता एगं सन्निवेसं। तत्थ कण्हो जेट्ट भणति-रमणीयमुववणमिणं, वसामु इहं ति। तेण 'तह' त्ति पडिस्सुयं, संदिवो ये सिद्धत्थो सारही-वच्छ! भणसु पउरवग्गं, सिग्धं विवाहगभंडगं उवणेह त्ति । सो गतो । जाव 5 नागरा सजेति ताव य जक्खेहिं वधू-वरं वेवाहिगेण सक्कारेण पूइयं । पत्ता नागरया, दद्दूण विम्हिया । तं च देवतानयरं जायं । पउर-जक्खपरिगयाण य अतिच्छिया रयणी । कमेण य पत्ता बारगं । दत्तो य रुप्पिणीए सभवणस्स उत्तर-पुरच्छिमो पासाओ ८।। रोहिणी-देवगीहिं वत्था-ऽऽभरण-पडिचारिकाजणेण पूइया । देविपरियणस्स य पडिसिद्धो पवेसो । भणिओ य सच्चभामाए वासुदेवो-देव ! दरिसिजउ कुमारी जा तुठभेहिं 10.आणीया । सो भणइ-का कुमारी ? कओ वी ? जओ पहस्सह । जाहे निबंध करेइ ताहे णेण भणिया-रेवयपवयसमीवे गंदणवणे दच्छिह त्ति । संदिट्ठो अणेण लेप्पकारो-उज्जाणे सिरिघरे सिरिपडिमं अवणेऊण पेढिगं लहुं सन्जित्ता आणं पञ्चप्पिणाहि त्ति । तेण जहाणत्तं अणुट्टियं । दिण्णा य आणत्ती अंतेउराणं उजाणनिग्गमणे । पञ्चूसे रहे करे ऊण रुप्पिणिं दारुगसहिओ गतो नंदणवणं केसवो। सिरिघरे य ण ठविया रुप्पिणी, 15भणिया-'देवि ! देवीणं आगमणसमए पेढियाए निचला अच्छसु जाव निग्गयाउ' त्ति वोत्तू णमवक्रतो रहसमीवे चिट्ठति । पत्ताणि य अंतेउराणि, सच्चभामा पुच्छइ-देव ! कहिं सा कुमारी ? । भणिया-गया सिरिघरं, वच्चह, तत्थ णं दच्छिह । ताओ गयाओ 'अहो ! भयवतीए रूवं णिम्मवियं सिप्पिण' त्ति भणंतीओ पणयाओ। उवाइया य सच्चभामाए'भयवइ ! कुमारी आगंतुगा हिरि-सिरिपरिवजिया होउ, ततो पूयं करिस्सं' ति निग्गया, 20 मग्गिया य समंततो। चेडीओ भणंति-सामिणीउ ! सा कस्स इ] अडविराइणो धूया हो. हिति. का सत्ती तीए तुझं पुरओ ठाइउं ?. गुम्मे कम्मि वि लीणा ठिया होहिति । गयाओ य कण्हसमीवं भणंति-देव ! न दीसए सा तुम्भं वल्लहा । तेण भणियाओ-अवस्सं तत्थेव होहित्ति, वच्चामो, दच्छिह णं । गओ य केसवो देवी (ग्रंथानम्-२२००)सहिओ सिरिघरं । सा उट्ठिया, 'देव ! संदिसह, काओ पणमामि ?' त्ति । तेण सच्चभामा दंसिया। रुप्पिणी 25 य तीसे पणया। सा भणति-तुमं सि अम्हेहिं पुवं वंदिया । वासुदेवेण भणिया-कह कह ? ति। सच्चभामा भणति-'जइ अम्हेहिं भगिणी वंदिया तुझं किं इत्थ वत्तवं ?' ति। सकलुसाए वि वत्था-ऽऽहरणेहिं पूइया । पज्जुण्णकुमारजम्मो तदवहारो गवसणा य . रुप्पिणी कयाइं च सीहं मुहे अइगच्छमाणं सिमिणे पासित्ता कहेइ । केसवेण पहाण १य सा शां० विना ॥ २ वच्च, भ° शां० ॥ ३ °णीए देवगीए य वत्था शां० ॥ ४ वा कुमारिं जओ शां० विना ॥ ५ लिप्पारो क ३ गो ३ ॥ ६ °उरीणं ली ३ ॥ ७°तो रेवयसमी शां० विना ।। ८ सुमि° शां० विना।। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तदवहारो गवसणा य] पेढिया। पुत्तलभेण अभिणंदिया। पुणरवि य उजाणं गतो सउरोहो माहवो । वियरमाणीए य रुप्पिणीए दिह्रो णहचारी समणो झाणनिच्चलणयणो, पुच्छिओ य णाए वंदिऊण-भयवं! उदरे मे साहह किं होहिइ ? त्ति। सच्चभामाए वि तयणंतरे पुच्छिओ तहेव । सो झाणवाघायभीरू 'कुमारो होहिति' त्ति भणंतो अदरिसणं गतो । ततो तासिं विवाओ समुप्पण्णो-अहं पुत्तलंभेण मुणिणा आदिवा, अहं आदिट्ट त्ति । रुप्पिणी भणइ-मया पढमं 5 पुच्छिओ । इयरी भणइ-सच्चं, तुमे पढमं पुच्छिओ, न पुण तेण किंचि भणियं. मया पुढेण वागरियं ति, तेण ममं पढमं पुत्तो होहिति, ण तुहं ति। एवं तासिं विवदंतीणं सच्चभामा भणति-जीसे पढमो पुत्तो जायइ तीसे वरकोउए इयरीए केसेहिं दुब्मकजं कायवयं ति। रुप्पिणी य पच्छण्णगब्भा, ततो णं सच्चभामा बाहइ। निबंधे य कए पडिवन्नं-एवं नाम भविस्सइ त्ति । ततो दो वि जणीओ गयाओ वासुदेवसमीवं । कहिओ अणाहिं चार-10 णादेसो पणयं च । वासुदेवेण भणियाओ-तुझं दुण्ह वि जणीणं कुमारा होहिंति, अलं विवाएणं ति । ताओ निग्गयाओ । तासुं च निग्गयासुं दुजोहणो उत्तरावहराया सेविउमइगतो दामोयरं । कहियं च अत्थाणीगयाण राईणं कण्हेण देविविवायवत्थु । दुजोहणेण भणियं-देव ! जीसे पढमं पुत्तो जायइ तस्स मया धूया दिण्णा । एवं परिहासे कए अइगओ बारवतिं सपरिवारो जउणाहो। रुप्पिणी य पुण्णे पसवणसमए पसूया पुत्तं । कयजायकम्मस्स य से बद्धा मुद्दा वासुदेवनामंकिया, निवेदितं च परिचारियाहिं कुमारजम्मं कण्हस्स । सो रयणदीविकादेसियमग्गो अइगतो रुप्पिणिभवणं । चक्खुविसयपडिओ य से कुमारो देवेण अक्खित्तो । कओ य अकंदो चेडीहिं-कुमारो केण वि हिओ त्ति । रुप्पिणीय कण्हं दट्टण मुच्छिया, सत्था पुत्तसोगदुहिया विलविउमाढत्ता-देव ! निही मे दिट्ठ-नहो जातो. मे मंदभागाए अन 20 नवुग्गतो बालचंदो राहुणा घत्थो. निरालोयासु दिसासु कत्थ णं मग्गामि ?. परित्तायसु में सामि !. देवताण मे को कओ अवराहो जेण मे पुत्तको अवहिओ ?, न याणं, मरिसिंतु। तो एवं च रोवमाणी देवी आसासिया जउपइणा-'देवी मा विसायं वच्च, गवेसामि ते पुत्तगं. जेण ममं परिभविऊण हिओ तस्स दिट्टमेत्तस्स अणप्पिणंतस्स मारं विणयं करिस्सं' ति बोत्तूण सभवणमुवगतो। 25 __ तत्थ सकुलगरो चिंतापरो अच्छइ । नारओ य पत्तो तं पएसं । वक्खित्तचित्तेण ये चिरस्स दिट्ठो, भणिओ य णेण-सागयं रिसिणो ?, चिंतापरेण ण मए त्थ दिट्ठा। सो भणइ हसमाणो-कण्ह ! महती ते चिंता-कस्स मण्णे राइणो कण्णा रूवस्सिणी होजा ? रयणं वा ? को वा न सेवइ ? को वा जरासंधपक्खिओ ति ? । सो भणइ-न एयं, सुणह कारणं-रुप्पिणीए जायमेत्तओ केणावि हिओ कुमारो, तस्स परिमग्गणनिमित्तं मे महती 30 १ विहर क ३॥ २ °णो निचलज्माणणय शां० विना ॥ ३ होतगा, अलं शां०॥ ४ वि हरिओ के ३n ५ को हिओ उ २॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [ पजुन्न-संवकुमारचिंता । नारओ दंतप्पभापरिभिन्नक्खरं भणइ-कण्ह ! सोहणो संधी जाओ, जओ सच्चभामाए आसण्णो पसवणकालो. तीसे य चारणोवदिट्ठो धुवं कुमारो होहिति, ततो रुप्पिणीए केसमुंडणं दूरओ परिहरियं । ततो वासुदेवेण भणिओ-अलं परिहासेण, वञ्चह , देवी धीरवेह त्ति । ततो सो तत्थेव परिहसंतो गओ, रुप्पिणीए भणिओ'-अन्ज ! आसि 5 मे आसा 'तुम्भे मे पुत्तगस्स पवत्तिं आणेहि' त्ति. तं जइ तुम्भे एवं आणवेह, निराणंदा मि संवुत्ता । ततो जायाणुकंपेण नारएण भणिया-रुप्पिणि! मुय सोगं. अहं तव पुत्तस्स गवेसणं अकाऊण न ते पुणो दच्छामो. एस निच्छओ त्ति । उप्पइओ कसिणकुवलयपलासरासिसामं गगणदेसं । सीमंधरजिणं पइ पज्जुण्णवहारविसया नारयस्स पुच्छा 10 चिंतियं च णेण—'अण्णया अइमुत्तो कुमारसमणो इहं अइसयनाणी संसयपाडिपुच्छा दायगो आसी, संपयं पुण अवरविदेहे सीमंधरो नाम तित्थयरो विहरति, तं गच्छामि तस्स पायमूलं. सो में एयमहं वागरेहिइ'त्ति संकप्पेऊण गतो खणेण अरहओ समीवं । तिगुणपयाहिणपुवं च वंदिऊण पुच्छति-भयवं! बारवतीए कण्हस्स वासुदेवस्स रुप्पिणीए अग्गमहिसीए पुत्तो जायमेत्तओ हिओ केण ? त्ति । 18 भयवया भणियं-धूमकेउणा जोइसियदेवेण पडिणीययाए अवहरिऊर्ण भूयरमणाड बीए सिलायले उझिओ एत्थ एसो सूरायवेण सोसं गमिस्सई' त्ति । विजाहरमिहुणं च पचूसे तस्सोवरिएण समइच्छइ-कालसंवरो कणगमाला य । तस्स य दारगस्स चरिमसरीरनिप्फत्तिभवियबयाए तेसिं गती पडिहया । ताणि संकियाणि 'किं मण्णे एत्थ कोइ अणगारो तवरओ संठिओ होजत्ति उवइयाणि, पस्संति बालं सतेयसा मुद्दारयणमरी20 इपयरेण य दिप्पमाणं परमदंसणीयं । 'अहो! अच्छेरं एरिसेण रूवेण तेयसा य न होइ एसो पाययावच्चो' त्ति पसंसमाणो भणइ कालसंवरो देवि ! वचामो त्ति। सा न चलइ । तो विजाहरेण भणिया-किं देवि! एएण ते अट्ठो देवकुमारसप्पभेणं दारगेणं ? ति । सा भणइअजउत्त! तुम्हेहिं दिजंतेणं ति। ततो तेण तुटेण से अंके निक्खित्तो 'एस ते पुत्तो मया दत्तो' त्ति । ताणि तं गहेऊण निहिमिव दरिदाणि गयाणि । वेयवदाहिणसेढीए पच्छिमदिसंतेणं 25 मेहकूर्ड नाम नयरं अमरावतीदेसो, कओ य ऊसवो, पयासियं च-कणगमालाए. देवीए तिरिक्खरणीविजाए पुवं पच्छाइओ गब्भो, संपयं जातो कुमारो दित्तो, 'पज्जुन्नओं' त्ति य से नाम कयं । सो सत्थं परिषड्डइ ।सोलसवरिसो अम्मा-पिऊहिं सह समेहि त्ति । पज्जुण्णपुव्वभवपुच्छा पुणो पुच्छइ–भयवं! कह तस्स जायमेत्तगस्स पडिणीओ उप्पन्नो ? त्ति । भयवया भणिओ १ हयवं ति । त° शां० ॥ २ °ओ अस्थि मे शां०॥ ३ आणेह शां० विना ॥ ४ उ २ विनाऽन्यत्र"सणं काऊण ते ली ३ ॥.५ अयमु शां० ।। ६ °पडि° उ २ ॥ ७ मे पयडमहं क ३॥ ८ °ण भीसणाड° ली ३॥ ९ °ययो बालो त्ति ली ३॥ १. त्थ धरे वड' क ३ उ० ॥ ११ समं स क ३॥. Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुषभवचरियं. महिसाहरणं ] पेढिया। नारओ-अणाइसंसारवत्तिणो जीवस्स तासु तासु जोणीसु कारणवसेण सवे सत्ता बंधवा आसी सत्तू य. पुण तस्स दारगस्स सम्मत्तलंभकाले जो पिता तम्मि समए आसी, सो से जहा जम्मतरे पच्छा सत्तू जातो तं सुणपज्जुषण-संबपुव्यभवकहाए अग्गिभूइ-वाउभूइभवो भरहे मगहाजणवए सालिग्गामे मणोरमुजाणं । तत्थ सुमणो नाम जक्खो, तस्स 5 असोगपायवसंसिया सिला सुमणा, तत्थ णं जणा पूर्यति । तत्थ य गामे सोमदेवस्स माहणस्स अग्गिलाए भारियाए दुवे पुत्ता अग्गिभूइ-वाउभूई अणेगसत्थऽप्पयमतिणो, तम्मि मंडले लद्धपंडितसद्दा, बहुजणसम्मया परिवसंति। - तम्मि य काले पंदिवद्धणो अणगारो चोदसपुबी समुप्पण्णोहिनाणी समणो विहरमाणो मणोरमउजाणे समोसरिओ । तस्स य समीवे समंततो जणो आगम्म केवलिपन्नत्तं 10 धम्म सुणइ, संसए य पुच्छइ । सो य भयवं जिणो विव अवितहं वायरेइ । तं च तहा जणमुवसेवमाणं उवलद्भूण सोमदेवपुत्ता भणंति-अयाणओ एस लोगो अम्हे वइक्कमिऊण समणसमीवमुवंगम्मति. कयरं तं नाणं जं अम्हं अविदितं ? ति । तेहिं पिया आपुच्छिओ-ताय! मणोरमे उजाणे मुणी किल कोई हितो, तत्थ लोगो वच्चइ. तं तेण सह वार्य करेमु, अणुजाणह त्ति । तेण भणिया-तुब्भे मया उवज्झाए अत्थदाणतोसिए काऊण सिक्खा-15 विया, कीस परिभवं सहह ?. पराँएह समणं । ते गया जणपरिवुडा णाइदूरहिया भणियाभो समण! तुमे समं वादत्थी आगया अम्हे. भण, किं जाणसि ? जा ते पडिवयणं देमो त्ति । तेसिं च आयरियाणं सीसो सच्चो नाम ओहिनाणी वादलद्धिसंपण्णो सुमणसिलासमीवे पसण्णचित्तो अच्छइ । तेण सहाविया-भो माहणा ! मा होह महिससमाणा. जंभे पत्तवं तं भणह । इओ ते गया तस्स समीवं भणंति-भो समण ! किं भणियं होइ 'महि.20 ससमाण' त्ति ? । सच्चेण भणिया-सुणहमहिसाहरण । एक्कम्मि रणे पाणीयं एकमेव, तं चउप्पयाणि आरण्णाणि तण्हाभिभूयाणि आगम्म आगम्म तद्देस ट्ठियाणि पीयपाणियाणि निबुयाणि जहागतं वचंति । महिसो पुण तत्थावगाहिऊण सिंगेहि आहणइ ताव जाव कलुसितं। ततो ण वि तस्स, ण वि अन्नेसिं पाणजोग्गं 25 होइ । एस दिढतो। जहा सा अडवी तहा संसाराडवी, उदगसरिसा आयरिया, मिगसरिसा धम्मसवणाभिलासिणो पाणिणो ॥ सुन्भे वाघायं धम्मकहाए करेमाणा महिससरिसा मा होहि-त्ति मए एत्थ सदाविया ॥ ___तओभणंति एएण मुणिणा सह वायत्थी आगया. जइ तुमे पराजिए एस ते गुरू पराजिओ होइ, तो तुमे सह जुत्तो आलावो. इहरहा हि महिससरिसा अम्हे तुमे कया सीह-30 १ वहम्म° शां० ॥ २ कोयि हितो शां० । कोइ पत्तो ली ३॥ ३ °राजए ली ३ ॥ ४ मे धम्मकहावाघायं करे ली ३॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ वसुदेवहिंडीए [पजुण्ण-संबपुश्वभवचरियं. सरिसा कयाइ भवेजामो । सच्चेण भणियं-एवमेयं जइइ म । ते भणंति-जियस्स को निग्गहो ?। साहुणा भणियं--जो तुम्हं रुइओ । ते भणंति-जइ अम्हे जिणसि तो ते वयं सीसा. तुमे पराजिए तुम्भेहिं सबेहिं निग्गंतवं इओ । एवं ठिए समाणे पासणिगसमीवे सच्चेण भणिया–पुच्छह ममं जं ते अहिप्पेयं । ते भणंति-अम्हं न कोइ संसओ विदित5 वेदाणं. तुमं पुच्छ जं ते पुच्छियवं । साहुणा भणियं-जइ मया पुच्छियवा, कहेह-क ओ त्थ इहमागया?। ते भणंति-अम्हे इहेव संवुत्था. जो चंदा-ऽऽइच्चे ण याणइ सो अम्हे न याणिज्जा । साहुणा भणिया-जाणामि, जहा तुम्भे सोमदेवस्स माहणस्स पुत्ता अग्गिलागब्भजाय त्ति. एयं कहेह-तं गभं कओ त्थमागया?। ते भणंति-एयं पि किं कोइ जाणइ ?। साहुणा भणियं-बाढं । ते भणंति-जइ तुमं जाणसि एयं तो जिया णाम 10 अम्हे. सुणामु । सच्चो भणइ-तुब्भे दो वि जणा अणंतरभवे सियालपिल्लका आसी । ते भणंतिको पञ्चओ ? । भणइ सञ्चवादी सच्चो-अत्थि पञ्चओअग्गिभूइ-वाउभूइपुवभवसंबंधो इह नाइलो नाम गहवती। तस्स कम्मकरेहिं छेत्ते हलनाडो पम्हुट्ठो नग्गोहपायवम्स हेहा, सत्ताहिगा य (ग्रंथानम्-२३००) वदला जाया। तुब्भे सीयवायहया तं निग्गोहम15 स्सिया । छुहावसेण य भे सो नाडो खइओ। तस्स अपरिणामेण विसूइया जाया । तेण परितावेण दो वि मया अग्गिलागव्भे दो वि जमला जाय त्थ । न एत्थ संदेहो ॥ तं सोऊण संकिया । भणियं च पासणिगेहिं-पुच्छिजउ नाइलो । गया य पुच्छगा । कहियं गहवइणा-अस्थि वत्तपुवं, नाडो अद्धभक्खिओ य, सियालजुयलं च दिवपुवं मयं दुदिणंते । ततो ते माणुस्सा आगच्छमाणा भणंति--जिया माहणदारगा अइसयनाणिणा। 20 आगएहिं कहियं जहाभूयं । साहुणा भणिया-बितियं पञ्चयं सुणह---- राहुगबलामूगकहासंबंधो । उज्जेणीओ पंच पुरिसा इहमागच्छति । तेसि च तिन्नि इन्भदारगा, दुवे जत्ताभयगा। इब्भंसुओ एगो अवदायसामो राहगो नाम बलामूको सेयंबरो, दुवे अवदाया चीणपिट्ट रंजितवसणा । कम्मगरा य काल-सामा, तत्थेगो कंबलेण पाहेयं वत्थाई पोट्टलबद्धाइं च 2वहइ इयरो अ दसिपूरवत्थेणं । जो सो मूओ सो मया अणुसहो इहं उल्लवेहिइ पञ्चयस्सइ ___य । जेण पुण कारणेणं इमं देसमागतो तं अहं कहेमि जाव इहं न पावेइराहुगपुवभवकहा उजेणीए तावसो नाम सेट्टी आसी। तस्स तिगिच्छिए अत्थि कोसल्लं । सो आयधयपरियट्टी करिसणारंभवक्खित्तचित्तो अट्टज्झाणी कालगतो सूयरो जाओ। सरए य 30सो जूहेण सह सालिभक्खणनिमित्तं खेत्तं पुवभुत्तमागतो। तावसकालसुएण य सदो कओ, पलायं तं जूहं, सो य सूयरपिल्लओ अवलोइंतो पुत्तं दट्टण समुप्पन्नजाईसरो तस्सेव १ वहिहा शां० विना ॥ २ भेसु एगो शा० ॥ ३ अम्हे कहेसु ज्ञान शा० ॥ ४ छाप शां० विना ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेढिया । राहुगबलामूक कहा संबंधों ] सभीवमागतो । तेण अणुकंपाए ण धाडिओ, दिण्णो य से खीरोदणो, पुवसिणेहाणुरागेण य पुत्तमणुसरंतो' नयरमागतो परिवडिओ | अण्णया बद्धो पसुत्ते जणे साणेहिं मारिओ, रेसंतो रोस संपलित्तो तत्थेव नयरे सप्पो जाओ । परिभमंतो य तं घरं जणं च दिट्ठपुत्रं परमाणो जाईसरो जाओ । न मुयइ य तं पएसं ममत्तेण । संचरंतो दिट्ठो लउडेहिं घाइओ पुरिसेहिं । तदवत्थो जीवियत्थी अवसरिओ, तं वेदणं सारीरं वेतो चिंतेइ - को एएसिं5 दोसो ?, अहिजाई भयजणणी अहवा सयं कथं भ्रूण कम्मं परपीडानिमित्तगं, तं अणुभबामि । एवं मद्दवमुवगतो कालगतो पुत्तस्स पुत्तो जातो । सुमरियपुवभवो य तं जणं परसमाणो चिंतेइ कहं पुत्तं 'ताओ ति भणिसं, सुहं वा 'अम्मो' त्ति, तं सेयं मे मूयत्तणं । विडिओ य सणस आउरम्स तेइच्छं लिहिऊण उवदिसति, सम्मओ पूयणिज्जो य जातो ! एयम्मि देसयाले एगो देवो सोहम्मकणवासी नंदीसर महिमाए अवइण्णो विदेहे केवलिं 10 पुच्छइ - भयवं ! अहं किं भविओ ? सुलहबोही ? दुल्लभबोहिओ वा ? । केवलिणा भणिओतुमं सि भविओ, किं पुण तुमे गुरू अच्चासादिओ तेण दंसणमोहणिज्जं अज्जियं ते दुल्लहबोहिगत्तणहेऊ । सो भणति -- कहं पुण बुज्झिज्ज ? त्ति । अरहया भणिओ --तुमं इओ चऊण उज्जेणीए जंबुद्दीवे भरहवत्तणीए बलामूगस्स राहुकरस इव्भपुत्तम्स भाउपुत्तो होहिसि. सो ते अव्भत्थिओ बोहेहि त्ति । एवं सोऊण गतो देवो राहुगसमीवं । तस्स णेण 15 अत्थो दिष्णो । भणिओ य-अहं तब भाउगस्स पुत्तो भविस्सं मम माउए अकाले अंबफलदोहलो होहिति, तीसे तुमे इमेहिं ओसहेहिं फलपागं काऊण तेइच्छं करिज्जासि. 'समए जो इत्थ दारगो जायड़ सो मम दायवो' त्ति पडिवण्णेसु पडियारं करेज्जासि जायं च ममं साहुसमीवं अभिक्खं अभिक्खं नेजासि । 'जइ न बुज्झेजा तो इमाणि कुंडलाणि मे नियगनामंकियाणि दंसेज्जासि' ति वेयडपवयसिद्धाययर्णसमीवे पोक्खरिणीए पक्खित्ताणि नेऊण 20 तं पएस 'पुणो सुमरेज्जासि' त्तिः पुणो स नयरे साहरिओ । ८७ जहासंदिट्ठो य डोहलविणोओ कओ दारगलंभस्सफलो । जायं च तं साहुसमीवं नेइ कीलावंतो।सो दद्दूण साहवो महया सहेण रसति । ते भांति गं - सावग ! सज्झाय-ज्झाणवाघायं करेइ एस बालो । ततो सो तस्स बोहणत्थं इहं एइ । अन्नया तन्निवेएण तवं चरिसति । पवइओ य थोवं कालं साहुधम्ममणुपालेऊण देवो भविस्सइ । संगारं च सुमरिऊण 25 उज्जेणिमागतूण साइरेगट्ठवासजायस्स रोगं उदीरेहिति । वेज्जपडियाइक्खियं सयं तिगिच्छगरूवं काऊण भणिहिति - जड़ णं मम देह सीसगं तो णं नीरोगं करेमि त्ति । तेहि य पडिवन्ने हट्ठस्स सत्यकोसं वोज्झगं देइ । सो य सिलागुरुगो, सो णं ण तरति वोढुं, 'उवज्झाय ! ण मे सत्ती एरिसं भारं पदमवि संचारेउ' ति । ताहे भणिहिति -- जइ समणो पबयाहिसि तो ते विसज्जेमि त्ति । बहुप्पयारं भण्णमाणो न पडिवज्जिस्सइ । एवं कयपयत्ते 30 १ तओन शां० ॥ २ सं० विनाऽन्यत्र मरंतो ली ३ । सरंतो क० मो० गो ३३२ ॥ ३ तं चेच वेक ३ ॥ ४ नूणं ली ३ ॥ ५ भासिओ शां० ॥ ६ ते भा° क ३ ।। ७ गिजा० शां० ॥ ८ णस्स य समी० शां० ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૮. वसुदेवहिंडीए [ पज्जुण्ण-संबकुमार तो वेडुं ऊ कुंडलाणि दंसिहिति । ततो सो सुमरियपुत्रभवो जायतिवसंवेगो दारओ सामण्णमणुरिहिति । एयम्मिय कहाववच्छेदे आलोइया पुरिसा कोऊहलिका य गया तेसिं समीवं । जहकहिया य साहुणा दिट्ठा, पुच्छिया मूयं दंसेंति जहाभणियं । 'पराइया माहण' त्ति भणता 5 पुरओ परिसमुवगया जहादिट्ठे-सुयं कहिंति । ते वि पुरिसा कमेण पत्ता, वंदिऊण आसीणा । भणिओ य मूओ साहुणा - राहुग ! पुवभवतावस ! मरिऊण सूयरो सि जाओ. तत्थ विसाणेहिं रसमाणो वहिओ उरगो सि जाओ. तओ लउडेहिं हम्ममाणो नट्ठी मओ, तओ पुत्तस्स पुत्तो माणेणं अम्मा-पियरो नालवसि. एवं ते कालो गओ. ततो 'देववयणं काय' ति इहागओ सि. संसरमाणस्स य ऐगमेगस्स जंतुणो तिरिय- मणुयभवैसु अम्मा10 पियरो सवे जीवा आसी, देव नारैएस नत्थि, एत्थ सेंट्ठी वि. जहाणुभूया य से (ते) जातीतो [*साहुणा *] सपच्चयं कहियाओ. तावसकाले जा ते माया आसिति तं कह जाणासि जहा एसा जम्मंतरेसु वि आसि ? त्ति. संसरमाणेण जंतुणा सवसंबंधा अणुभूयपुवा. एस सभावो । सोऊण उद्धुसियअंसुपुण्णणयणो पडिओ साहुणो पाएसु-भयवं ! विदिया तुझं सवसंसारगयति । तस्स य वयणं सोऊण सहायपुरिसा परमविम्हिया 15 भांति - अहो !!! अच्छेरियं, एस अम्हं सह वड्डिओ जम्मप्पभिइ मूओ इयाणिं साहुवयणं सोऊण उल्लवेडं पयत्तोति ॥ भणिया य ते अग्भूिय-वाउभूई सच्चवाइणा सच्चेणं-- एस बितिओ पचओ, जहा भेसियाला आसित्ति । पासिणिगेहि वि 'तह' त्ति पडिवन्नं । विमणाय ते माहणा भणंति--नित्रयणा वयं, छिण्णो संसओ, जियं समणेणं भवंतरवियाणएण | पसंसंती सवा 20गया परिसा । तेहिं सोमदेवस्स अग्गिलाए य कहियं । ताणि रोसपलित्ताणि भणंतिपुत्ता ! जेणं वो समणेणं महाजणमज्झे ओहामिया तं पच्छन्नं जीवियाओ ववरोवेह । तेहिं भणियं - किह एरिसो महप्पा तवस्सी वहिज्जइ ? । ताणि भणंति--अम्हं वज्झा, मा पडिकूला होहि-त्ति । ते तं पमाणं कुणंता निसीहे गया तं पएसं । सच्चो य सुमणसिला एसे सबराइयं पडिमं वोसट्टकाओ टिओ । वहपरिणया य जक्खेण भासिया - ' दुराचारा ! रिसि25 घायगा ! विणट्ट' त्ति भणतेण थंभिया लेप्पकम्मनरा इव । पभाए जणेण दिट्ठा तदवत्था, बंधवजणेण य । सच्चो जाइओ - महरिसि ! खमह, से कुणह य जीविएण पसायं ति । सारयसरसलिलविमलहियएण य साहुणा भणियं - णाहं कुज्झामि एएसि, सुमणो जक्खो कुविओ, तेण थंभिया । पसाइजमाणो य जक्खो भणइ - एएहिं एत्थ सुसियां पावकम्मे हिं, नत्थ से जीवित । भणिओ अदिट्टो भासमाणो ओहिदंसणिणा सच्चेण - एए जिणव30 यणबाहिरा अण्णाणिणो, खमसु से, मुयसु कोवं ति । ततो उवसंतो । जाया य साभाविया । १ इं सुशां० विना ॥ २एगेग शां० विना ॥ ३°रओ न° शां० विना ॥ ४ सेट्ठा शां० ! सेढी क ३ ।। ५ शां० विनाऽन्यत्र - कुब्वंति, ते निसी' ली ३ क ३ ।। ६ °यब्वं ति शां० ॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुनभवचरियं ] पेढ़िया । ८९ चिंतियं चाणेहिं - अहो ! साधवो दयासारा. अम्हारिसेसु वि निग्घिणेसु साणुकंपा वत्तंति. एस सिद्धिमग्गो जं एते दुर्सेति त्ति । पडिया सच्चस्स पाएसुं, यया - भयवं ! तुज्झ संतिया पाणा. अज्जप्पभिई च तुज्झ सीसा मो. सत्ता पालेडं, गिहिधम्मं पुण गिण्हामो । ततो अणुबयधरा सावया जाया, जिणवयणममयभूयं । गया साहुणो विहरमाणा । भांति य सुद्धहिसाहुधम्मं पुण न अहिगया य विसीलरया जिणपूयारया अम्मा-पियरो पण्णवेंति - पडिवजह मग्गं अरहंतदेसियं ति । ताणि भणति - पुत्ता ! गया य ते समणा, जाणं ते भएण पडिवन्नो धम्मो. अलं भे तेणं ति। तेहिं भणि॑ियं-निगुणेसु अम्म- ताय ! पडिनिवेसो मूढया. सञ्चो अविसंवादी नेवाणसंपावओय जिणवरदेसिओ धम्मो मा होह अयाणुयाई. पडिवज्जह सप्पहं. मा दुग्गतिं वश्च्चिहह त्ति । ताणि भणति -तुभे ताण समणाणं सोऊण अम्हे कुलधम्माओ वेत्ताओ फेडेडं 10 इच्छह. जइ एवं पडिवन्ना कुगई वच्चामो, गया णाम त्ति । ताणि ण पडिवज्जंति तेहिं पुत्ते हिं उवइस्समाणं । ते पुण दृढधम्मा कालगया सोहम्मे पंचपलिओ मट्टितीया देवा जाया । पज्जुण्ण-संवपुव्वभव कहाए पुण्णभद्द - माणिभद्दभवो ततो चुया गयपुरे जियसत्तू राया, धारिणी देवी, अजियसेणो जुवराया | सेट्ठी पुण अरदासो, तस्स भज्जा पुप्फसिरी, तीसे गन्भे जाया जिट्ठ-कणिट्ठगा पुण्णभद्द-15 मणिभदति । कयाइ महिंदो नाम अणगारो सगणो हत्थिणाउरे समोसरिओ । तस्संतिए धम्मकहं सोऊण राया सेट्ठी य पवइया । अजियसेणो य राया जाओ, पुण्णभद्दो सेट्ठी । साहवो विहरिऊण बहुणा कालेण पुणरवि गयपुरमागया । पुण्णभद्द-माणिभद्दा य वंदिउं पत्थिया, अंतरा य परसंति सोवागं सउणपंजरं खंधे काऊण पिंगलाए सुणिगाए अणुगम्ममाणं । तेसिं च ताणि दट्ठूण अतीव सिणेहो जाओ । ततो से चिंता 20 जाया - किं मण्णे एस दट्ठूण सिणेहो वइ ?, पुच्छीहामो गुरुवो त्ति । सो य हिं सोवागो भणिओ - जाव अम्हे साहुसमीवं वच्चामो नियत्तामो य ताव य पडिवालेहिं, तो ते किंचि दाहामो | सो 'जहाऽऽणवेह' त्ति द्वितो । ते गया महिंदं अणगारं वंदिऊण विणएण पुच्छंति - भयवं ! सोवाए सुणियाए य परो सिणेहो, कहेह कारणं ? । ओहिणा सुदिट्ठ च साहुणा कहियं, जहा - तुब्भं पुत्रभवे अम्मा- पियरो आसी. बहुं पावं समज्जिणित्ता काल - 25 (ग्रन्थाग्रम्-२४००) गयाणि सप्पावत्ते नरए पंचपलिओवमाणि दुक्खमणुभविऊण उबट्टाणि इहाऽऽगयाणि । सपच्चयमेयं सोऊण समुप्पण्णजाईसरणा वंदिऊण सोवागसमीवमागया । ओ अहिं सहिं, कहियं च पुत्रभवचरियं । सोवागेण सुणिगाए य सुमरियं । भणिओ य णेहिं सोवागो - अम्हे ते वित्तिं देमु जेण जीवसि, अलं ते पावजी विएणं, मा पुणो नरगे वञ्चिहिसि । ततो सो अंसूणि मुयमाणो भगइ - णाऽहं सत्तो इयाणिं गरहियाए जातीए 30 कालं गमेउं कयभत्तपरिचाओ मरिस्सं । कए निब्बंधे तेहि दिनपञ्चकखाणो द्विओ । पिंगलाए उवणीयं भोयणं, सा णाऽभिलसइ । ततो भणिया सेट्टिणा - पिंगले ! तुमे विभत्तं १ साहवो वि° शां० ॥ २ याणि - गुणेसु अम्मतात ! पडिवेसो शां० ॥ ३ पोम्मसिरी शां० ॥ व० हिं० १२ 5 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [ पजुण्ण-संबकुमार. पञ्चक्खायं जओ न भुंजसि ?। ततो णाए सीसं कंपियं । सा सत्तरत्तस्स कालगया। सोवागो अट्ठारसण्हं दिवसाणं नंदीसरे दीवे देवो जाओ । सुणिया अजियसेणस्स रण्णो दुहिया जाया सुदरिसणा णामं । तेहिं पुण्णभद्द-माणिभद्देहि सिणेहेण सूइया । कालेण य 'अग्गिले ! पिंगले!' त्ति आलवंतेहिं बोहिया। सेठ्ठी य रण्णो सरीरभूओ, तओ तेण चो5 इया पवइया पियदंसणागणिणीसमीवे, काऊण सामन्नं गया देवलोयं । ते य पुण्णभद्दमाणिभद्दा सावयधम्ममणुपालेऊण समाहीए कालगया गया सोहम्मं ।। पज्जुण्ण-संबपुवभवकहाए महु-केढवभवो तत्थ दो सागरोवमाइं दिवे भोए भुंजिऊण चुया गयउरे विस्ससेणस्स रण्णो सुरू. वाए देवीए पुत्ता जाया जेट्ठ-कणिट्ठा महू केढवो य । कमेण य महू राया जातो । नंदी10 सरदेवो वि संसारं भमिऊण वडपुरे कणगरहो नाम राया जाओ । सुदंसणा वि संसरिऊण तस्सेव भारिया चंदाभा नाम जाया । महू अहिराया, तस्स आमलकप्पाहिवो भीमो नाम राया आणं न सम्ममणुपालेइ । तेण जत्ता गहिया, वडपुरं च पत्तो । कणगरहेण य बहुमाणेण सगिहमाणीओ। कणगभिंगारेण य उदगमावजिउं चंदाभा देवी पादे धोवइ । ततो महू तीसे रूवे पाणिपल्लवफासे य रजमाणो वम्महवत्तबयमुवगतो, 15 संवरंतो आगारं किह वि अच्छिओ, जह व तह व भुत्तभोयणो निग्गतो गतो आवासं । निउणेण य मंतिणा पुच्छिओ-सामि ! अण्णारिसी भे मुहच्छाया लक्खिजइ. अइवीसंभमाणा मा छलिया होजह. कहेह, भे सरीरे वियारो । सो भणइ-साधु तकितं, कारणं साहेमि ते-कणगरहस्स देवी चंदाभा, सा मे हिययमइगया. 'जइ सा नत्थि अह मवि नत्थि' त्ति णिच्छओ. एतीए चिंताए विवण्णया वयणस्स तुमे दिट्ठा । तेण भणिओ20 सामि ! बलक्कारेण कणगरहस्स भारिया जइ हीरइ तो अम्हे एक्कलगा वज्झा होहामो. 'तं विण्णवेमि-उवाएण चंदाभा घेप्पहिति. पणओ वड्डाविजउ कणगरहेण समं, अंतेउरा पेसिजंतु, अकल्लगं च दरिसिज्जउ. ततो गइरागैईए वीसंभे य संजोगो निरवाओ भविस्सइ। तहा य कयं । अकल्लं तं सोऊण कणगरहो सह चंदाभाए अभिक्खणं एइ । भीमो य कणगरहसम्माणं सोऊण उवइओ। नियत्तो महू गयउरं गओ । कणगरहो भणिओ25 किंचि कालं समयं अच्छिऊण सनयरं मे (से) नेहिसि त्ति। तेण 'तह' त्ति पडिवन्नं। केसु वि दिवसेसु गएसु गयपुरं गया रायाणो कयपूया सभारिया विसज्जिया। अंते कणगरहो पूइओ, चंदाभा आभरणसज्जणववएसेण रुद्धा। सुयं च णाए, जहा-नत्थि मे निग्गमो त्ति। ततो णाए पञ्चइया दासी पेसिया कणगरहसमीवं । सो यणायपरमत्थो भीओ अवकंतो पु सस्स रजं दाऊण तावसो पञ्चइओ। चंदाभा चंदप्पभा इव चंदस्स महुस्स बहुमया जाया। 30 बहुणा य कालेण कणगरहो तावसरूवधारी गयउररायमग्गे दिट्ठो चंदाभासंतिगाए चेडीए, निवेइयं च णाए-सामिणीओ! मया राया अजं दिट्ठो त्ति । तीए भणिया-कया १ पूइया गो ३ विना ॥ २ मधू शां० । एवमग्रेऽपि ॥ ३ जियं चं० शां० विना ।। ४ ते शां०॥५°ओ वधारिजउ शां० विना ॥ ६ गईय पीइवी शां० ॥ ७°टो दासीए चंदाभासंतिगाए, निवेशां०॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेढिया । ९१ पुवभवचरियं ] पुण तुमं रायं न पेच्छसि ? । सा भणइ - सामिणि ! कणगरहो नाम तावसो । तीए भजिया - कहिं ?, दंसेहि मे । तीय चि तर्हि ठियाए दाविओ । सा चिंतावरा अप्पाणं निंदंती अच्छइ - अहो ! एस राया मम मंदभागाए दोसेण एरिसीं अवत्थं पत्तो त्ति । महूय पत्तो तं पएसं, पुच्छियाय णेण-देवि ! किं आयरेण निज्झायसि ? त्ति । तीए तत्थुप्पण्णं भणिओदेव ! एते नगरस बहिया सुत्तविभत्ता इव के दीसंति त्ति चिंतेमि । राया भणइ – देवि ! 5 एयाणि जणस्स नयरवासिणो खेत्ताणि आजीविओसहिसंपोइणनिमित्तं । सा भणति - देव ! एत्थ अहं कयरं खेत्तं ? । सो भणति - जाणि परससि सुत्ताणि विभयमाणाणि ताणि अम्हं खेत्ताणि । सा भइ - एए एवंतणुपसु किं होहिति जेण जीवीहामो ? | राया भणइ - एस मज्जाया 'मेर' त्ति वुच्चति. जो एयं भिंति सो अवराही . ततो से विणयत्थं दंडो दोसाणुरूवो, सो अहं कोसं पविसइ. रायाणो मज्जायारक्खगा । ततो तीए हिंसग-मिच्छावादि - तेण - पार - 10 दारिगाण निग्गहो पुच्छितो । कहिए य णं भणइ - देव! तुब्भेहिं जाणमाणेहिं कणगरहस्स दारहरणं करेंतेहिं अजुत्तं कयं । ततो गाए दाइओ तावसो संचरंतो - एस अम्ह कए एरिसं दुक्खमणुभवइ । महुणा य पडिवन्नं- आमं देवि !, अजुत्तं मया कयं । चंदाभा भणइ - मम दोसो, न तुज्झं, जो णं जीवं तया न परिच्चयामि, ता विसज्जेह मं, करिस्सं परलोगहियं । तेण भणियं - अहं पि परिच्चयामि रज्जसिरिं ति । केढवो सद्दाविउँ निमं- 15 तिओ रज्जेण भइ—तुमं अणुपबइस्सं । ततो पुत्तसंकामियरिद्धी महू सह केढवेण चंदाभाए य विमलवाहणस्स अणगारस्स समीवे पवइओ; गहियसुत्तऽत्थो संविग्गो, दुवालसहित जुत्तो बहुं कालं संजमिऊण कालगतो महासुक्के इंदो जातो । सो पुण केढवो तस्सेव सामाणो जातो । देवी सोहम्मे उववण्णा । कणगरहतावसो कालगतो धूमकेउविमाणे देवो जाओ । वेरमणुसरंतो महुं अवलोएइ, न य णं पस्सइ अप्पिड्डित्तणेण 120 इंदो महू सत्तरससागरोवमक्खएण चुओ रुप्पिणीए कण्हऽग्गमहिसीए कुच्छिसि पुत्तत्ता ज्ववन्नो | कणगरहदेवो विपुलसंसारं भमिऊण पुणरवि तम्मि काले धूमकेऊ देवो जाओ । सुमरियपुववेरेण अणेण महू आहोइओ जायमेत्तो । तओ णेण जायरोसेण अक्aतो उज्झतो सिलायले, विज्जाहर मिहुणेण णीओ सपुरं । एस पडिणीयया ॥ ततो नारतो छिण्णसंसओ आगतो रुप्पिणिसमीवं । तीए य णेण कहिओ - पुत्तो ते 25 देवि ! जीवति, विज्जाहरपरिग्गहिओ वड्डइ । समागमकालो य णेण सिट्ठो भयवया जहा भणिओ । ततो नारदो उप्पइओ । पज्जुनो विज्जाहरपुरे वढइ, कला य णेण उदीरियमेत्ताओ पुवभवपरिचियाओ गहियाओ । आपूर माणजोबण-लायण्णं पज्जुण्णमायवत्तसमसिरं, अवभासियपुंडरीयनयणं, जणनयणवीसामभूयं, दिवाय रकिरणालिंगियणलिणमणहरमुहं, सिरिदुमछण्णवच्छयलं, आयत- 30 पसत्थबाहुजुयलं, दससतणयणकरकमलसंगम सुभगवज्जमज्झं, मिगवइसरिसकडिदेसं, करि १ एए उ पुरस्स शां० विना ॥ २ पायण ली ३ शां० ॥ ३ जीविस्सामो शां० ॥ ४ जा अहं जीवंतया तं परि° ली ३ । जा इ (य) अहं जीवं तथा न परि° क ३ गो ३ ॥ ५ ० विन्तु नि° ली ३ ॥ ६ तुज्झे अ० शां० ॥ ७ जायारो क ३ गो ३ उ० ॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ वसुदेवहिंडीए [ पज्जुन्नोवरि विज्जाहरीमाऊए. अणुराओ कलभससणसमऊरुजुयलं, महुरसिर-तणुकपरूढरोमाणुगतवट्टजंघ, सोभगलक्खणसमुचितसुकुमालपायपउमं, सुइसुह-गंभीरभासणं, हंससमगमणं च पस्समाणी कणगमाला चिंतेइ-पज्जुण्णसामिणो रूवसरिसो विजाहरलोए बितिओ पुरिसो न हु होजा. जय णं कामिज ततो मे सफलं जीवियं होजा. सो पुण विणीओ वियक्खणो य पावगभीरू, ण 5 इमं इच्छेजा. कहेमि से सब्भावं, तं पि पत्तिइज्ज वा न वा । एवं मयणपरवसा संकप्पेमाणी अगल्लिगा जाया। पुच्छिया य पज्जुण्णेण-अम्मो! का भे सरीरपीडा जेण असत्थाओ दीसह ? । सा भणइ-सामि ! मा मं 'अम्मोत्ति भणाहि. जीय सि पुत्तो सा ते अम्मा । सो भणइ-कीस विवरीयाणि जंपेसि ? कीस वा अहं न पुत्तो जमेवं ववदिससि ? । सा भणइ---सुणाहि, अम्हेहिं तुमं दोहि वि जणेहिं सिलातलुझिओ वासुदेवनामंकमुद्दसहिओ 10 दिट्ठो, आणीओ य गिह. सुणामि पुण 'कण्हऽग्गमहिसीए रुप्पिणीए पुत्तो जायमेत्तो चेव केण वि हिओ' तं कालो संवयति. मुद्दा य कण्हसंतिगा, तेण जाणामि तीसे पुत्तो त्ति. इमा य पुण मे अवस्था तुम अहिलसमाणीए । ततो पज्जुण्णेण भणिया-अम्मो! न मया सुयमेयं जं तुब्भे भणह. धुवं ते धातुविसंवादो जं तुज्झे अजुत्तं जंपह। ततो भणइ-हरिदिण्णग! मरामि जइ मं अवमण्णसि । तेण भणिया-तुभं किं मरियवं ?, ममं मारावे 15 इच्छहा? जओ एवं संलवह । ततो भणइ–कि रण्णो वीहेसि ? । तेण भणिया-बीहेमि । कणगमालाए भणिओ-किह बीहेसि ?, सुणाहि-अस्थि णलिणसहं नयरं, तत्थ राया कणगरहो नाम, मालवई देवी, पुत्तो कणगकेऊ, अहं च कणगमाला दुहिया. सो राया पुत्तस्स रज्जं दाऊण तवोवणं गतो. ममं च वड्डियाए दिण्णा णेण विजा सिद्धा चेव पण्णत्ती. तं ते कुलपरंपरागयं देमि जहा दुद्धरिसो भवसि । पजुण्णेण भणिया-एवं, 20 कुणसु मे पसायं । सा पहला ग्रहाया कयबलिकम्मा । दिण्णा य से तीए सिद्धा पण्णत्ती। तओ सा भणइ–इच्छसु मं इदाणिं ति । तेण भणिया-अम्मो ! दुब्भासियं ते, पढमं ताव त्थ तुब्भे मम मायाओ. अहवा जा जीवियं देइ सा किह ण माया ? जइ वि तुझं उदरे ण वुच्छो मि. बितियं विजापयाणेण गुरू त्थ. मुयह एयं विगारं । ___ तओ सा रुट्ठा 'हयों मि रागेणं' ति कंचुइज भणति-कहेहि रण्णो, एस पज्जुण्णो दुट्ठों 25 इच्छइ ममं लंघेलं, कीरउ से णिग्गहो त्ति । राया तं सोऊण वयणं पज्जुण्णस्स विणयप चएण न कुविओ । तओ णाए कालसंवरसुयाणं कहियं-एस राया विवरीओ जो दिण्णगं न निगेण्हइ. अपत्थियपत्थगं तुब्भे णं लहुं विणासेह त्ति । तेहिं दोहिं कवडुज्जएहिं पडिवण्णं 'सह' त्ति । भणिओ य णेहिं पज्जुण्णो कलंबुगाए वावीए सूलं णिहंतूण-एहि, मजामो समगं ति । तेण भणिया-तुब्भे सुहिया, वच्चह, मजह. ममं किं जणणीए दूसियस मजि80 एणं ? ति। तेहिं भणिओ-रोसेण जं देवी भणइ को तं पत्तियत्ति ?. एहि, वच्चामो (ग्रंथा १°तबद्ध शां० कसं० विना ॥ २ कस्स वा अहं पुत्तो शां. विना॥ ३ °लिणीसहन शां० ॥ ४ ली ३ विनाऽन्यत्र-ओणं भ° शां० गो ३ । °ओ तं भ° उ० ॥ ५ या निरागो ३ ॥६°सुयस्स क कसं० गो ३ उ० विना ॥ ७ दाहिकबहुजए° ली ३ विना॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जुण्णस्स अम्मापिउहिं समागमो] पेढिया । ९३ ग्रम्-२५००) त्ति । णीओ य तेहिं । सा य वावी अंतो विसाला, मुहे संकुचिया, मज्झे य हिं पज्जुण्णो ठविओ, 'समगं पवायं देमो' त्ति दिण्णो । पजुण्णो [*पण्णत्ती*] सूलल्लीणो ठिओ।चिंतियं च णेण-सूला मारेउकामेहिं ममं ठविया होज त्ति । पण्णत्तिं चिंतिय भणिया य-भगवइ ! होउ पिहं जाव से चेट्ठियं पस्सामो त्ति । तहा कयं पण्णत्तीए । इयरे उत्तिण्णा, 'धुवं सो सूले लग्गो' त्ति पासाणवरिसं मोत्तूण 'हओ सि वल्भ!' इत्ति पट्ठिया । 5 पज्जुण्णग पच्छओ ट्ठिएण भणिया-सूरा होह, इयाणि विण त्थ. पहरह जो भे पाणो। परावत्ता, 'एस अविज्जो' त्ति वीसत्था सवे जुझंता बहिया। कालसंवरो सुयवहपरिकुविओ पट्ठिओ, भणिओ य देवीए-कुणसु पयत्तं । सो भणइ-सो धरणिगोयरो किं करिस्सइ मे ? त्ति । तीए पण्णत्तिदाणं कहियं । निवारिओ य मंतीहिं-देव! सुयमारणं ण जुज्जइ राईणं कुलतंतुरक्खणनिमित्तं । सो य पज्जुन्नो चिंतावरो अच्छति-कयावराहस्स मे 10 पिउसमीवं गंतुं जुज्जइ ? न जुजइ व? त्ति । पजुण्णस्स अम्मापिऊहिं सह समागमो ____ इओ य बारवतीए सच्चभामा देवी दुजोहणरायदुहियाए सह सुयस्स विवाहारंभ काउमारद्धा । रुप्पिणीए नारओ भणिओ-अज! इमो सो तुब्भेहिं मम पुत्तस्स समागमकालो निदिह्रो. सच्चभामासुयस्स वीवाहो, तं जइ सञ्चं तुभेहिं भासियं तं कुणह 15 पसायं. दंसेहि मे पज्जुण्णं पुत्तगं । एवंभणिओ नारदो भणति-देवि ! अजेब पुत्तं आणीय दच्छिह ति । उप्पइउ गगणपहेण विजाहरगईय पत्तो य मेहकूडं । दिट्ठो णेण पजुण्णो एगागी, आभट्ठो य-कुमार! किं विमणो दीससि ? त्ति । तेण से कयप्पणामेण भाउमरणं कहियं, 'महंतो अवराहो कओ' त्ति वाउलचित्तया मे । नारएग भणिओजे तुमं मारेउं चिट्ठिया ते सत्तू, ण भायरो. किंच सुणाहि-तुम सि कण्हस्स वासुदेवस्स 20 पुत्तो रुप्पिणीए देवीए पुत्तगो जायमेत्तओ अवहिउ धूमकेउणा सिलाए उज्झियओ सि, एएण कालसंवरेण सभारिएण गहिओ 'पुत्तो' त्ति. तव पुण गब्भत्थस्स मायाए सह सच्चभामाए सवत्तीए पणीयं आसि–'जा पढमं पुत्तं पयाइ सा इयरीए तस्स कल्लाणदिवसे केसमुंडणं कारइ' त्ति. तुमं च जायमेत्तो हिओ. सच्चभामा न सद्दहइ. तीसे पुत्तो जाओ. तं अज दिवसो जणणीय ते जसो वड्डेयवो. वच्चासु सिग्धं कणगमालापुवकहि-25 यकारणो । सो भणइ-नारदसामि! एवं एयं जहा भणह तुब्भे. किह पुण अम्मा-पियरो ममं जाणिहिंति ?। नारएण भणिओ-मया तेसिं पुवं कुमार! कहियं जिणोवदेसेण. अविलंबियं गम्मउ त्ति । नारएणं विमाणं विउवियं, पत्थिया ओलोयंता भरह, दंसेइ य से नारओ नगरा-ऽऽगरा-ऽऽसम-जणवए । पस्संति च खइराडवीए खंधावारं । पुच्छियं च पज्जुण्णेण-कहिं मण्णे एस खंधावारो वञ्चइ ? त्ति । तेण भणिओ-दुजोहणेण रण्णा 30 १दिण्णा य पण्णत्तीए पजुण्णो सूल° कसं० उ० ॥ २ °उ ति अहं ली ३॥ ३ लभो त्तिक ३ उ २॥४°मो मासो तुक ३ ११५ पुन्वं कहि शां०॥ ६ ति धवखइ उ २ विना ॥ ............ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [ पज्जुण्णस्स अम्मा पुत्तनिमित्तं विवायं वासुदेवकहियं सोऊण तव एसा दत्ता गव्भत्थस्स य. एसा पुण संपयं सच्चभामा सुयस्स भाणुस्स णिज्जए तव माउकेसहारिणी । ततो कुद्धो भणइ - परसह करेमि सेति । विविणेण णिवहणं पडिलोमं । तत्थ माहणो सूकरजाणविलग्गो विगयरूवो खरकुकुडजाणसहिओ । कुमारीसंतगेहिं भणिओ - वेयालरूव ! मा अभिमुहं एहि, 5 अवसर अप्पसत्थ त्ति । सो भणइ - जइ अहं अमंगलो को हु कल्लाणो ? त्ति जस्सेसा समीवं निज्जइ भाणुस सो किं ममाओ पइविसिट्ठो ? । ततो ते पुरिसा निभच्छंति णंबडुक ! अवसर, मा पलवसु बहुयं ति । ततो णेण पुलिंदा विउविया । तेसिं भएण दिसो - दिसिं नीओ खंधावारो । नारओ अणेण भणिओ-तुभे ममं माउसमीवमुवगंतूण मेलाहिह. अहं ता पस्सामि परिजणं, कुमारे य भाणुसहाए । 'एवं होउ ' त्ति सो अकंतो । 1 10 पज्जुणेण य बारवतिबाहिं एगत्थ वणसंडे वाणरओ दंसिओ रक्खापुरिसाणं । भणिया अणेण - एस वानरो च्छाओ अहिलसउ एत्थ फलं पुष्कं वा । ते ण सम्मण्णंति - निवहणगं इह, ण वीस मियां ति । तेण से सुवण्णखंड दिण्णं । कयविसग्गेण वाणरेण खणेण णिपुप्फफलो कओ । तओ रक्खपुरिसा चिंतेंति - अइरा अम्हे विणासिय त्ति । पज्जुण्णेण भणियाण जायइ तित्ती कविस्स, किं भणह ? त्ति । ते वि विष्णविंति विमणा-देव ! जारिसी 15 एयस्स सत्ती दीसति एस बारवतीए विण तित्तो होज्जा. अम्हं पुण रायकुलाओ विणासो मक्कडरूवी उवट्ठितो. अलं णे सुवण्णेण, पलामो ति । भीए जाणिऊण ते भणिया - अच्छह वीसत्था, जहापुराणो वणसंडो भविस्सइ त्ति । तदवत्थो य जाओ । थोवंतरेण घोडगो बीयवालाण दंसिओ- चरउ त्थोवं छाओ आसो । णिवहणववएसेण ण देंति, ते वि तहेव लोभिया, मुहुत्त्रेण णित्तणं कथं करणं, पण्णत्तिमायाए पणयाण कयं साभावियं । वाविमु20 वगतो - पिबउ पाणीयं आसो त्ति । न देंति, सुवण्णलोहीए पडिवन्ना, मुहुत्तेण कया णिरोदया, भीया उ, जाया साभाविया । थोवंतरे भाणुकुमारो बहुजण परिवारिओ बारवतिबाहिं कीलति । पण्णत्तीए कहिओ य दिट्ठो पज्जुण्णेणे । भाणुणा य सपरियणेण पज्जुपणो दिट्ठो उत्तमतुरयारूढो मंदरूवो परिणयवओ । पुच्छिओ कुमारेहिं-अज्ज ! विक्कायइ आसो ?, घडासु मोल्लं । पज्जुण्णेण भणिया-वोज्झं आसस्स मोल्लं करेइ, परिच्छह 25 ताव । ते आरूढा कमेण, इच्छियं वहइ आसो । भाणू विलग्गो, भणिया य पन्नत्ती पज्जुण - जह न विणस्सइ तहा होउ भयवति ! । समकडकीमाणं कडिल्लं (?) तहा अक्खित्तो जहा जातो सोइयो परियणस्स । पच्छागए य मुक्का तुरगतत्ती । पज्जुण्णो बारवतिमुवगतो, पविट्ठो य वसुदेवघरं मेंढुल्लगं गहेऊण । कयपणिवाओ य पुच्छिओ वसुदेवेणंदारग ! किमागमणं ? । भणति - देव ! तुम्हे मिंढगलक्खणं जाणह. जइ पसत्थो एस उरब्भो 30 तो णं गेण्हिस्सं । तेण णिज्झाइओ, भणइ — दारग ! लक्खणजुत्तो । 'सत्तं से परिच्छामि' त्ति अंगुलीए आगारिओ णेण । पज्जुण्णमएण य आसणाओ पाडिउ, दूमाविओ जाणु ९४ १ रूओ मा शां० कसं० विना ॥ २ण भाणुकुमरो । भाणुणा क ३ ॥ ३ ताणं । ते शां० ॥ ४ उ विसमकंड शां० । उ भयमति ! समकंड कसं० ॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिउहिं समागमो] पेढिया। देसे । भणिओ तेण-देव! पुणो विण्णाणं अक्खह त्ति । हसिऊण अइगतो गिह । पज्जुण्णो माहणदारगरूवं काऊण सञ्चभामागिहमुहे मालागारेण दिण्णपुप्फापीलो खुजाए विखुजीकयाए विलत्तो, भत्तं मग्गमाणो णिवेदितो चेडीहिं सच्चभामाए-को वि माहणदारगो स्वस्सी तेयरासी भोयणं मग्गइ त्ति । तीए भणियं-भुंजउ अइनेहेणं । वद्धावेऊण य भणति देविं-जइ मे तित्तीए भोयणं अइभुक्खियस्स दिजइ तो अॅजिस्सं । तीए भणियं-5 कामओ जिमेहिं । निविट्ठो आसणे, उवणीया कंचणपत्ती, भिक्खा दिण्णा दिण्णा पंखइतो भणइ य-देवि! एयौओ चेडीओ सयं खायंति, मझं ण देति । तीए संदिट्ठाओ-देह से जाव इच्छइ । ताओ भणंति-सामिणि! वलवामुहं माहणरूवं एयं भवणं पिते गसेज त्ति तमो । एयम्मि अंतरे सुयं देवीए सच्चभामाए-निवहणं पुलिंदेहिं विद्धंसियं ति । भणिया य पज्जुण्णेण-देवि ! जइ मे न दिज्जइ तित्तीय भोयणं तो वच्चामि रुप्पिणीए भवणं । 10 तीए भणिओ-अण्णेण कजेण अहं आदण्णा. 'तुमं रुप्पिणियाए वो सुवणियाए वा गिहं वच्चाहि' त्ति दत्तायमणो णिग्गतो, खुडुगरूवी अइगतो रुप्पिणीए समीवं । तीए वंदिओ' आमंतिओ य–किं दिजइ खुड! ? त्ति । सो भणइ-साविए ! मया महंतो उववासो कयल्लओ. चिंतेमि, माउए वि मे थणो न पीयपुछो त्ति. पारणगनिमित्तं देहि मे पायसं दुयं ति । तीए भणियं–एवं होउ, वीसमसु मुहुर्तगं जाव, नत्थि, सह त्ति । सो वासुदेवसीहासणे 15 उवविठ्ठो । भणिओ य रुप्पिणीए-खुडग! एयमासणं देवयापरिग्गहियं, मा ते को वि उवघातो भविस्सति, अण्णम्मि आसणे णिसीयं त्ति । सो भणइ-अम्हं तवस्सीणं ण पभवति देवता । आणत्ता य चेडीओ देवीए-सिग्धं पायसं साहेह, मा किलम्मउ तवस्सी । पज्जुण्णेण य अग्गी थंभिओ, न तप्पती खीरं । कासवगो य सच्चभामाए पेसिओ विण्णवेइ-देवि! देह किरि केसे त्ति । पजुण्णेण भणिओ-कासव ! जाणसि मुंडं काउं ? । सो 20 भणइ-आमं । तेण भणिओ-बदरमुंडं जाणासि ? । सो भणइ-न याणामि । कुमारेण भणिओ-एहि, जा ते दाइजउ । ततो से अणेण सचम्मगा वाला अवणेऊण सिराओ हत्थे दिण्णा, 'एरिसं बदरमुंडं वञ्चति' । सो रुहिर किण्णसरीरो गतो । देवी य खुड्डेण सह आलावं करेंती तूरावती य चेडीओ आगयपण्या पफुल्ललोयणा संवुत्ता, खुड्डुगो य मायं पस्समाणो पफुल्लमुहो। जायववुड्डा य कासवगसहिया उवागया, दत्तासणा पभणति-देवेण पट्टविया मो,25 देह किर देवि ! केसि त्ति । रुप्पिणीए भणियं—जाव खणिगा होमि ताव दिजंति केसा. अतीह तुब्भे त्ति । पज्जुण्णेण भणिया-भो! पुच्छामि ताव, जायवाणं एस किं कुलायारो केसेहिं विवाहे कोउगाणि कीरंति ? । ते भगंति-खुड्डुय! ण एस आयारो, पणियं किर देवीणं आसी । ततो लग्गाणि से आसणाणि किर वत्थेसु । खुड्डेण भणिया-किं लेसियाणि १णं दुक्खियस्स क ३ गो ३ उ०। णं अइदुक्खियस्स ली ३॥२ परिक्खित्ता भ° शां०॥ ३ या चे° क ३ विना ॥ ४ केमु शां० ॥ ५ °वासुदेवपत्तियाए गिहं शां० ॥ ६ °त्तावमाणो ली ३॥ ७°ओ य अइगतो य-किं उ २ विना ॥ ८ तं निविस त्ति । सो शां० ॥ ९ यह । सो शां० विना ॥ १० देविं ली ३ विना ।। ११ रखीणस कसं० विना ॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ वसुदेव हिंदीए [ पज्जुण्णस्स अम्मापिउहिं समागमो भे वत्थाणि आसणहरणनिमित्तं ? । ततो ते विलक्खा विणिग्गया । ण्हाविया णेण वुत्ताअरे ! जं त्थ देवीए आणत्ता मुंडणं तं करेह सिग्धं । ततो ते मोहिया अण्णोष्णं मुंडेउमारद्धा, चीरिकामुंडा अद्धमुंडिया खंडदाढिगा केसहत्थगया निग्गया ओह सिजंता चेडीहिं । तयतरं णारओ उवट्ठिओ । भणिओ य रुपिणीए- -अज ! अलिगभाणग त्थ संवृत्ता । 5 नारएण भणिया – देवि ! किं कीरउ ? जइ पासगयं पुत्तं न याणसि । ततो पज्जुपणेण सकं रूवं दंसियं, पणओ य अंसुपुण्णणयणो । माऊए चिरकालरुद्धं च वाहं मुयंतीए अवतासिउ, 'सागयं पुत्त, जीवसु बहूणि वाससहस्साणि' त्ति अभिनंदिउ, उच्छंगे निवेसाविऊण दिण्णो I थो | देविपरियणो य पायपडिओ परुष्णो । णारएण य भणिओ- - मा कुणह कोलाहलं. सुण कुमार ! - न जुज्जइ तुब्भं पागइयपुरिसस्सेव पिउसमीवं गंतुं । पज्जुण्णेण भणियं10 किह उण गंतवं ? । भणइ - देविं हरा, ततो जायवचंदं पराजेऊण (ग्रन्थाग्रम् - २६००) पगासो कुलगरवंदणं करिस्ससि । रुप्पिणीए भणियं - अज्ज ! बलवंतो जायवा. मा कुमारस्स सरीरपीला भविस्सइ. अलमेएण मम पवाएणं ति । नारएणं भणिया-देवि ! न याणसि कुमारस्स पभावं. एस पण्णत्तिपरिग्गहिओ सएण वीरिएण मया य सहाएण समत्थो स पत्थवे जोहे, किमंग पुण जायवे ? मा भाहि, एवंकए उज्जलओ मेलओ होहिति पिया-पु15 ताणं । णारयमयाणुवत्तीए य पडिवन्नं देवीए । विउरूविओ रहो नारदेण, विलग्गा रुप्पिणी सह परिचारिगाहिं । आघोसियं नारएणं महया सण-रुप्पिणी हीरइ, दंसेईउ बलं रुहित्ति । गय-तुरय-रहेहि य निजाया जायवजोहा । पण्णत्तीपभावेण य से पज्जुण्णो कुइ यहिए कुंजर - तुरंग, आउहाणि अमोहाणि । ततो ते अभिभविडं अचएंता विरहा पेच्छगा विवद्विया । वासुदेवो य पत्तो, गहिओ णेण संखो । पण्णत्ती संदिट्ठा पज्जुण्णेणं-वालु20 काएं भरेहिं संखं ति । असद्दो य पविट्ठो [णेण] । ततो सो सरेहिं छाएडं पवत्तो । कुमारो य से खुरप्पऽद्धचंदेहिं खंडाखंडि करेइ । रुसिएण य कण्हेण चक्कं मुक्कं । भीया देवी नारएण भणिया - मुय विसादं, चक्कं कुमारसरीरे णावरज्झइ त्ति । सुदरिसणं पज्जुण्ण रहं पयक्खिणीकाऊण नियत्तं । वासुदेवेण भणियं - अकयकज्जं कीस मम समीवे एसि ? त्ति । चक्काहिट्ठिणा जक्खेण भणिओ-देव ! मा कुप्प, आउहरयणाणं एस धम्मो - ' सत्तू विवाडेयो, 25 बंधू रक्खियवो सामिणो त्ति एस य तुब्भं पुत्तो रुप्पिणीए देवीए अत्तओ नारयरिसिणा अज्ज आणीओ. तस्स य मएण देवी अवहिआ । उवसंतो कण्हो 'करिस्सं ते पूयं पियनिवेद्गस्स' त्ति वोत्तूण संठिओ पीईय पिबंतो विव पज्जुण्णं । नारएण भणिओ - पज्जुण्ण ! भिण्णं रहस्सं चक्करयणेण उवसप्पसु पियरं ति । ततो नारयसहिओ उवगतो त्ति । पणमंतो आणण पिउणा अंकमारोविउ अग्वाओ य सिरे, अभिनंदिओ य महाफ30 लाहिं आसीसाहिं, महया इड्डीए पवेसिओ नयरं । कुलगर-जायवपत्थिव जणनयणमालाविलुप्पमाणरुवो रुप्पिणिभवणं च आइञ्चजसो विव भरह गिहमणुपविट्ठो । ठविओ जुवराया । दुज्जोहणदुहिया अणेण भाणुस्स विसज्जिया । सच्चभामाए विलयाए पूइओ । 2 १ सेउ बलं भणति गय० शां० विना ॥ २°ए पूर संखं शां० विना ॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पज्जुण्णेण सच्चभामाए वंचणं] पेढिया। ततो 'रूवस्सी विउसो विणीओ पियाभासी सत्तजुत्तो सरण्णो दाया पज्जुण्णो' त्ति बारवतीजणेण पसंसिज्जमाणो जहासुहमभिरमति । कण्हेण वि अणिच्छंतो वि परं पीइमुबहतेण विजाहर-धरणिगोयरपत्थिवकण्णाणं सरिसजोवणगुणाणं पाणिं गाहिओ पासायगतो दोगुंदुगदेवो इव भोए भुंजमाणो निरुश्विग्गो विहरइ । ___ कयाइं च सच्चभामा कण्हं सगिहगयं विन्नवेइ-देव! जा किर इत्थिया भत्तुणो ण 5 बहुमया तीसे अवञ्चाणि मंदरूवाणि णित्तेयाणि भवंति. जा पुण वल्लभा तीसे भत्तारसरिसरूव-गुणाणि. तं अहं तुभं वेसा, रुप्पिणी भे गोरविया, तेण से तिसमुद्दपरिगयाए मेइणीए तिलयभूओ पुत्तो दत्तो । वासुदेवेण भणिया-देवि! मा एवं जंपसु. तुमं सि सबतेउरजेट्ठा, कीस एवं संलवसि ? । तो भणइ-जइ एवं तो पज्जुण्णसरिसं पुत्तं देह । कण्हेण भणियं-देवि ! जइ तुब्भं एरिसो अभिप्पाओ तो आराहेमि देवं हरिणेगमेसिं, 10 जहा तुमं सफलमणोरहा होहिसि त्ति । कुलगरविदितं काऊण द्वितो पोसहसालाए अट्ठमेण भत्तेण । आकंपिओ देवो भणइ-वरेह वरं, जम्मि ते सुमरिओ। सो भणइ-देवी पज्जुण्णसरिसं पुत्तं इच्छेइ, कुणसु पसायं । णेगमेसी भणइ-जीए देवीए सह पढमसमागमो ते तीए पज्जुण्णसरिसो पुत्तो होहिति. इमो य हारो से दायवो त्ति । गतो देवो । विदितं च एयं कारणं कयं पण्णत्तीए पज्जुण्णस्स । पारियतवो य कण्हो वासघर-15 मुवगतो । पज्जुण्णस्स चिंता जाया-सच्चभामा अम्मयाए सह समच्छरा. जइ तीसे मम सरिसो पुत्तो होइ ततो तेण सह मम पीई न होज, किह कायवं ? चिंतियं चाणेण-जंबवती देवी अम्माय माउसंबंधेण भगिणी, तं वच्चामि तीसे समीवे । गंतुं जंबवइभवणं पणओ, दत्तासणो भणति-अम्मो! तुम्भं मम सरिसो पुत्तो रोयइ ? त्ति । तीए भणियं-किं तुमं मम पुत्तो न होसि ?. सच्चभामानिमित्ते देवो नियमेण द्वितो, किह मम तव सरिसो 20 पुत्तो होइहि ? त्ति । सो णं विण्णवेइ-तुझं अहं ताव पुत्तो, बितिओ जइ होई णणु सोहर्णयरं ।सा भणइ-केण उवाएण ? पजुण्णेण भणिया-'तुम्भं सच्चभामासरिसं रूवं होहित्ति संज्झाविरामसमए जाव पसाहण-देवयञ्चणविक्खित्ता ताव अविलंबियं देवसमीवं वच्चेजाहि-त्ति वोत्तूण गतो नियगभवणं पर्जुण्णो। पण्णत्तीए य जंबवती सच्चभामासरिसी कया। चेडीए भणिया-देवि! तुब्भे सच्चभामासरिसी संवुत्ता । ततो तुट्ठा छत्त-चामर-भिंगा-25 रधरीहिं चेडीहिं सह गया पतिसमीवं, पवियारसुहमणुभविऊण य हारसोहिया दुतमवर्कता। सच्चभामा य अलंकिय-विभूसिया कयकोउय-मंगला उवगया कण्हसमीवं । भणिया य गेणं-देवि ! किं इमं परियट्टियनेवत्था सि पुणो आगया ?। सा कुविया-नूणं का वि ते कयसंकेया हिययसाहीणा आगया, जओ मं उवालभत्ति । तेण भणिया-देवि! परिहासो कओ,मा कुप्प, का सत्ती अण्णाए अन्ज इहागंतु? । ततो पसण्णमुही संवुत्ता, वसिऊण य गया भवणं । 30 वासुदेवेण विचिंतियं-वंचिया कीय वि तवस्सिणी, उवलभामि ताव त्ति। अंतेउरमवलोइउमारद्धो । पत्तो य कमेण जंबवतिसमीवं, पस्सति सरयकालतिपहगं विव हंसावलिसो१ इ दाई ण° ली ३ ॥ २ °णयं शां० विना ॥ ३ °सारि क ३॥ व०हिं० १३ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ वसुदेवहिंडीए [ पजुण्णस्स वेयभीए हियं हारेण विरायमाणिं । पणया य णं विण्णवेइ-देव ! सुणह, मे अज जारिसो सुमिणो दिट्ठो । तेण भणिया-कहेहि । सा भणइ-अहं किर तुज्झ समीवमुवगया, तुभेहि य मे हारो दिण्णो, पडिबुद्धा य जाव हार उरम्मि पस्सामि. साहह सुमिणफलं । तेण चिंतियं--- पज्जुण्णचिट्ठियमिणं । ततो तेण भणिया जंबवई.-देवि! जायवकुलम्स अलंकारभूतो ते भवि5 स्सइ पुत्तो। सा कयंजली भणइ–देव ! अवितहमेयं जं जंपह त्ति । केढवदेवो य तीसे गन्भे उववण्णो। पुण्णेसु य मासेसु पयाया पुत्तं पसत्थलक्खणं कियपाणि-पायं, विबुद्धपोंडरीयलोयणं, णवचंदमणोहरवयणचंदं । तं समयमेव मइसायर-अजियसेण-दारुगाणं पुत्तजम्मं निवेदितं च कण्हस्स । जंबवइसुयाणंतरं भणिया य ते—एते वयंसमणुस्सा जंववइदेबिनंदणस्स त्ति । कयजायकम्माणं कयाणि नामाणि संबो बुद्धिसेणो जयसेणो सुदारगो त्ति । ततो 10 संबो देवकि-रुप्पिणि-जंबवतीहिं पज्जुनसिरिणा य लालिजमाणो सुहेण परिवड्डइ । कयाइ वासुदेवपायवंदओ णीओ, खेल्लावेइ णं कण्हो । कालिंदसेणा सुहिरण्णं दारियं पाएसु पाडेइ । पुच्छिया य वासुदेवेणं-कालिंदसेणे! इमा तव दारिया ? । तीए 'जहाऽऽणवेह' त्ति पडिवन्नं । भणिया य-निक्खिव ता णं कुमारसमीवे । तीए पायपीढसमीवे ठविया । कीलंतेहि य एक्कमेको अवतासिओ । कण्हेण मंती पलोइओ। तेण भणिओ15 जुत्तं ति । कालिंदसेणाए य लद्धपसराए विण्णवियं-देव! एसा दारिया हेमंगयस्स कंच णपुराहिवस्स दुहिया. जइ मम पसाओ अस्थि तो कुमारस्स सुस्सूसिगा होउ । कण्हेण ‘एवं' ति पडिस्सुयं, कोडुंबिया य संदिट्ठा-सुहिरण्णा दारिया मम सुण्हा, कुमारसरिसीए पडिवत्तीए णं उबक्खेयवा । विसजिया वड्डइ । संबो तेहिं वयंसएहिं समेओ सुमुहस्स कलायरियस्स उवणीओ सिक्खइ कलाओ। 20 पज्जुण्णो य माउपायवंदओ गतो पस्सइ अंसूहिं रोवंती रुप्पिणीं । पुच्छिया अ णेणे-अम्मो! साहह देवं मोत्तूण जेण भे मंतुं कयं, जेण तं सासेमि । तीए भणिओपुत्त! मया ते रुप्पिस्स माउलस्स पेसियं. तस्स दुहिया वेयब्भी नाम सुया मया रूववती. सो भणइ-'अवि य णं अहं पाणाणं देमि, न य रुप्पिणीसुयस्स' त्ति. तो मे मण्णु जायं । पज्जण्णेण भणिया-अम्मो! मा अधिई करेह , दाहिति णं पाणाणं । गतो य संबं 25 गहाय भोजकडं नगरं, पाणणेवत्थिया ट्ठिया उदट्ठाणब्भासे, गायंतेहिं णं विम्हयं नीओ लोओ। हत्थी य मत्तो तेणेव मग्गेण पाणियं पाउकामो आगतो, आरोहेण य भणियाहरे पाणा ! अवसरह सिग्धं, मा हत्थिर्णां चढिजि हि-त्ति । तेहिं भणिओ-मा छुटमैं इओ एतं भेडहत्थिं, मा कुक्कुरेहिं खजिहिति । ततो रुट्ठो, छूढो णेण हत्थी । पण्णत्तीवसेण य कुक्कुरा से समंतओ विलग्गा, तेहिं कवोल-मुह-नासापएसेसु खजमाणो सहारोहेण परा30 भग्गो । तेण य अण्णे हत्थी भीया, तेण परोप्परं भमंता, सूरत्थमणवेलाए य घर-कडग १ हारं हियए पशां०॥ २°णावि अ°क ३॥ ३°स्संते पे शां० ॥४ इंद° शांसं. विना ॥५ अरे शां० विना ॥ ६ °णाऽवमहिन्जिहिह-त्ति उ २ विना ।। ७ भउ एतं भिंडह शां० विना॥ ८ हत्थी। संबेण य कुक्कुरा समंतओ विलइया, तेहिं ली ३ ॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाणिग्गहणं ] पेढिया। .९९ पडलाणि भंजमाणा, पाउसकालबलाहगा इव गुलगुलेमाणा, नयरजणं खलिय-पडिय-विसंठुलं हय-विहलवयणं वीसरसरोरसियं ‘सामि !, भाय!, मातुल! परित्तायसु' त्ति पलायणपरं कुणमाणा समंततो परिभमिया । रुप्पिणा ससंभमं पुच्छियं-को इमो नयरस्स खोभो ?। ततो से कहियं उवलद्धकारणेहिं पुरिसेहि-देव ! चंडालकुक्कुरेहिं हत्थी खडओ, तेण भीएण पलायमाणेण हथिणो भीया. तेहिं भीएहिं परिभमंतेहिं परियत्तियमिव नयरं । तओ 5 चिरेण पसंतं । मूसएहिं खइयाओ वरत्ताओ हत्थीणं, तओ ते उद्दामा भमिउमाढत्ता । कुमारपाणेहि य वरत्ताओ दंसियाओ, ताओ महग्याओ पणेत्ता पकासा जाया।संबस्स न बुड्डिगारूवं कयं, पविट्ठा य रुप्पिसमीवं । पण्णत्ती य संबस्स निस्सिया भणइ-देव ! सुणह, सुयमम्हेहिं-तुब्भे किर वेदभि कुमारिं पाणाण देह त्ति. ण य खत्तिया मिच्छावाई. जइ य अवस्सं पाणाणं दायवा कण्णा, मज्झ दारयसरिसं वरं न लब्भिहिह अण्ण. जंपह जं पत्तं ।10 ततो रोसरत्तनयणो भणइ-वञ्चह, अतीव, चिंतेमि ताव त्ति। अवगएसु य पडिहारो सद्दाविओ, भणिओ य-कीस ते पाणा पवेसिया ?। सो भणइ-देव! न पासामि णं पविसंते, केवलं अइगया( ग्रन्थाग्रम्-२७०० )दिट्ठा । सभागया मणुस्सा भणिया-पाणा इह कण्णानिमित्तं पलवंति, ण कोइ णे ते निब्भच्छेइ ?। ते भणंति-सामि ! तीसे पाणथेरीए अच्छीहिंतो मसगवट्ठीओ निग्गच्छंति, तेहिं मसगेहिं णे नयणाणि छाइयाणि, तेहिं खज्जमाणा 15 मूगा इव संवुत्ता मो. मायंगवुड्डीए सह गया मसगा। ततो तस्स रण्णो मंतीहिं सह समवाओ जातो---पाणरूवी को होज सो तरुणो ओयंसी ?. हत्थी कुकुरेहिं तस्स संतिएहिं भग्गो । तत्थ केइ भणंति–देव ! कोइ देवो विजाहरो वा एएण वेसेण कुमारिं वरेइ. अइंतो निग्गच्छंतो वा न दीसति, नत्थि एत्थ संसओ. न फरुसेयवो सो पाणो, किंचि उवघायं करेज त्ति । 'को पुण उवाओ तेसिं निवारणे ?' त्ति राया पुच्छइ । मंतीहिं भणियं-20 'कुमारी दिण्णसयंवरा अम्ह' त्ति वत्तत्वं । बितियदिवसे रयणहत्था वुड्डा पुरतो ट्ठिया राइणो, गिहीयाणि रयणाणि अहिगतेहिं । मायंगवुड्डा भणति-देव! किं चिंतियं ते ?, भणह, तो सकाले अण्णत्थं चिंतियं काहामो । रण्णा णिज्झाइया सभा, मुणवयधरी दिट्ठा । ततो णेणं भणिया मातंगी-विदिण्णसयंवरा कण्णा वेदब्भी, तीए ण पभवामि अहं । मायंगवुड्डाए भणियं-जइ एवं पस्सउ मे दारगं, सा णाम पमाणं । रण्णा भणियं-एवं होउँ त्ति, अतीह 25 त्ति । अदिट्ठाणि णिग्गयाणि पाणाणि । पुच्छिया सभागया रण्णा-कीस भे किंचि न भणह ? । ते भणंति-देव! किं भणामो ?, इदाणिं अम्हे सचेयणा संवुत्ता. देव! एएण रूवेण छलिउकामो न फरुसेयबो । पज्जपणेण य वेयब्भीए दसिओ अप्पा । तीए दिट्ठा दो वि जणा । पुच्छिया अणाए-के तुन्भे देवरूविणो इहमइगया ? किम वा ? । ते भणंतिअम्हे पज्जुण्ण-संवा जइ ते सुया. मातुलेण भणिया-'पाणाणं देमि वेयभि, न य पज्जु-30 १यमाणं नयरं कु° शां० विना ।। २ शां० विनाऽन्यत्र-हत्थी खोभिया, तेहिं पुरं परिययंतेहिं परियत्तियमेवं । तओ क ३ उ० ॥ ३ °मारद्धा शां. विना ॥ ४ पत्तता प° शां० विना ॥ ५०थ चित्तं का शां०॥६ तेण शां०॥ ७ होहि त्ति शां०॥ ८°दाणी म्ह सशां०॥ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [ पजुण्णस्स वेयन्मीए पाणिग्गहणं ण्णस्स' त्ति. ततो अम्हेहिं पाणवेसेहिं जाइओ भणति-दिण्णसयंवरा कण्णा. तं जइ ते रुइयं अम्हेहिं सह गंतुं, भण णं, हरामु अम्हे । ततो पज्जुण्णरूवमोहिया भणति-पिउणा विसजियाए तुब्भे मे पभवह त्ति। ते निग्गया, पुणो रायं चोएंति-पुच्छिजउ कुमारी, किं चिरेणं ति ? । सदाविया वेयब्भी, पाणे पस्सइ साभाविए, एवं पुच्छिया-पुत्त ! एतं पाणं 5 वरेहि जय ते रोयइ ।सा भणइ-तुब्भेहिं अहं पुत्वमेव दत्ता पाणाणं, इयाणिं किं पुच्छिज्जामि ?. धुवं मण्णे-पाणीए होयवं, जओ तुम्भं एरिसी वाया निग्गया । ततो रुसिएण रुप्पिणा भणिया--जइ ते एरिसं चित्तं, वच्च, मा मे पुरओ चिट्ठसुत्ति । ततो सा एवंभणिया रुप्पिणो भवणाओ निग्गया पउमसंडाओ विव सिरी पणमिय पिउणो, पज्जुण्ण-संबसहिया गया पाणकुंडं । दीसंताणि य जणेण रूव-गुणयहियएण तिन्नि वि जणाणि भोयकडाओ निग्गंतूण 10 विज्झगिरिसमीवे पण्णत्तीए उवणीयभोयणाच्छायाणि वुत्थाणि। पजुण्णेण य पाणिग्गहणत्थं विउव्वियं दिवभूतिजुयं रयणमंडियं पासायं । पट्टविया य आभरण-वसणपहाणभूसिया पुरिसा। ते रायाणं सपरिवारं माहण-णागरे य निमंति—कल्लं तुन्भेहिं आगंतवं वहूए अक्खए छोढुं, जइ अम्हेहिं सह संबंधो इच्छिज्जइ पीई वा । ते गया। छूढा य चारपुरिसा । तेहिं दिट्ठो पण्णत्तीपरिवारो, विम्हिएहि य कहियं रण्णो जहादिहुँ । माहणाणं णागराण य सम15 वाओ-रण्णो जामाया अवजाणिओ मा रुसिँहिति अम्हे, कुद्धो विणासेज, वच्चामो त्ति । रणो विदितं माहणा णागरा ईसरा य गया, संपूइया वत्था-ऽऽभरणेहिं, भुत्तभोयणा नियत्ता पाणगुणगणविम्हिया । इयराणि गयाणि बारवतिं खणेण । संबेण य भणिओ पज्जुण्णो-देव! पाणीवेसेण वेदम्भी अइणिजउ बारवति ततो मे पीई भविस्सइ, जहा वयं भोयकडे चंडाला आसी । वेदब्भी भणइ-संवसामि! किं मया चंडालो कओ जओ 20 एवं जंपसि?. पसिय, मा मं विडंबेहि इहमाणेऊण । ततो भणति-अम्मासमीवे मुहुत्त मेत्तं कीरउ से चंडालवेसो, विक्किणउ तंतीओ। पजुण्णेण भणियं-एवं होउ त्ति । दंसिया वेदब्भी रुप्पिणिभवणदुवारे । संबो अइगतो कयप्पणामो भणइ-अम्मो! एस चंडाली दुवारे ट्ठिया तंतीउ विकिणइ । तीए भणिओ-पुत्त ! केण एसा एत्थ अइणीया ? । चेडीहिं दिट्ठा, निवेइया य देवीए-सामिणिओ! जइ एरिसी सिरीभयवतीओ तो अच्छेरं, पेच्छह 25 ताव मायंगि त्ति । तीए अवलोइया, पजुण्णो य पडिओ माउपाएसु भणइ-अम्मो ! दि ण्णा मामेण वेयब्भी पाणाणं ति । पुच्छिओ 'किह ?' त्ति जहावत्तं कहेति । विदितं कयं केसवस्स, तुट्ठा य रुप्पिणी, तेण वि 'पियपुत्तओ' त्ति बहुमैओ, कओ सकारो वहूए । संबो कलाओ आगमेइ सवयंसो । कमेण य पत्तो जोवणं बितियवासुदेवोवमो । बुद्धि १ भेणेह त्ति शां० ॥ २ रायं जपंति ली३। राइं चोएंति शां० ॥ ३ कुंडी शां० विना ॥ ४ °णाणि पजुण्णेण य पाणिग्गह क ३ गो ३ । णादिग्गह° ली ३ ॥ ५ °मंडवं पह° शां० ॥ ६ हिलि शां० विना ॥ ७ पाणवेशां० विना॥ ८ °सी भयवती सिरीओ तो शां०॥ ९ °हित्तिक ३ गो ३ ॥१० °मयं शां० ॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१ पुरिसभेया ] पेढिया । सेणो य परिवासियं पुरफसेहरगं कुमारसंतियं मग्गिऊण णेइ कहिं पि, तहा वत्थपरियट्ट, मोदके य भुत्तसेसे एगते' खाइस्सं ति । एवं वच्चइ कालो। ___ कंचुकीओ य आगतो रहं गहाय विण्णवेइ-कुमार! संदिढ देवेण-रयणकरंडए उज्जाणे गणियादारिगाओ सुहिरण-हिरण्णाओ नटुं उवदंसेहिन्ति, तत्थ भे पासणिएहिं गंतवं । तुट्ठो संबो सवयंसो आरूढो रहं, सुदारओसारही, मग्गे जाणस्स अक्खो सजिजइ।5 तत्थेगा पडिरूवा कण्णा, तीए संबकुमारस्स कओ पणामो । बुद्धिसेणेण य कुमारो सणियगं भणिओ-अजउत्त! मउडस्स पयरगाणि ललंति, दोहि वि हत्थेहिं णं उण्णामेहि त्ति । तेण तहा कयं । जाणे हयसहो जातो, पडिच्छिओ संबेण, पुच्छिओ य बुद्धिसेणो-का मण्णे एसा जाणे पगासा चिट्ठति ? । तेण भणिया-कुलकण्णा होहिति त्ति । गया उज्जाणं, सभाए उवविठ्ठा पासणिया । तहिं नालियागलएहिं सबा नट्टविही उवदंसियत्वा । हिरण्णाएं 10 दंसिया । उदयपरिक्खए सम्मत्ते सुहिरण्णा दंसेउं पयत्ता । बुद्धिसेणो हितो संबस्स पुरओ, जयसेणेण भणिओ-अवसर एकपासं । सो भणइ-एए ममं पेच्छगा पेल्लंति । विहीए दंसिया सुहिरण्णाए बत्तीसतिनट्टभेया । नालिगासेसेण उदएण उवज्झाएण पहविया । अवसरिओ बुद्धिसेणो । दिट्ठा य कुमारेण सिरी विव कयाभिसेगा, तीय वि सायरं दिवो रईए विव कामो । पत्थिओ य पुरि रहारूढो सवयंसो संबो। 15 पुरिसभेया __ जयसेणो भणइ-अजउत्त ! बुद्धिसेणो तवस्सी अप्पपाणो वयणसारो, जो पेल्लणं न सहइ कुपुरिसो त्ति । तेण भणिओ-तुमं पुरिसविसेसं न याणसि अंघो इव रूवविसेसं । जयसेणेण भणिओ-तुम जाणसि, निउणो सि, कइ पुरिसा ? भणसु, ततो विण्णाणं पगासं होहिति ? । सो भणइ-अत्थ-धम्म-कामेसु पुरिसविभत्ती चिंतिजइ, उत्तम-20 मज्झिमा-ऽधमा. तत्थ अत्थे उत्तमो जो पिउ-पियामहऽजियं अत्थं परिभुजंतो वड्डावेइ, जो ण परिहावेइ सो मज्झिमो, जो खवेइ सो अधमो. धम्मे दुवे पुरिसा-उत्तमो मज्झिमो य, सयंबुद्धो बुद्धबोहिओ य. कामे वि तिन्नि-जो कामेइ कामिजइ सो उत्तमो, जो कामेजइ ण कामेइ सो मज्झिमो, जो कामेइ न कामिजइ सो अधमो । जयसेणेण भणिओ-एएसु अजउत्तो कयरो? । सो भणइ-अत्थ-धम्मसु न ताव पारं वच्चइ, कामे पुण मज्झिमो 125 सो भणइ-तुमं कयरो? । सो भणइ-अहं उत्तमो । सो रुट्टो-अरे पंडितमाणि! अप्पसंभाविओ सि. सामि भणसि ‘मझिमो' त्ति, कायवो ते विणओ। बुद्धिसणो भणइ-तुमं अयाणओ सि, जो कामेजमाणो न कामेइ सो मज्झिमो होइ । सो भणइ-साहु, को कामेय णं?।सो भणई-न कहेमि, जदि मं सयं पुच्छिति तो साहामि । कुमारेण भणिओकहेहि । सो भणइ 30 १ ते खाइ क्खाइ° उ २ विना ॥ २ यं भ° शां० विना॥ ३ °सु चिंति° शां. उसं० संसं० विना॥ ४ ली ३ विनाऽन्यत्र-मो सि काय क ३ गो ३ उ० ॥५°इ क° उ० विना ॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ वसुदेवहिंडीए [संबकुमारस्स सुहिरण्णाए अहं कयाइ देवं सेविऊण निग्गतो पस्सामि पत्तलिवासणहत्थे पुरिसे। ते भणंति-संदिट्ठा मो देवेण 'बारवतीए पंडिए मुक्खे य लिहिऊण साहेह में' त्ति. तं एसो बुद्धिसेणो एयं रहं जइ दुरुहति तो णं पंडियाण अग्गलेहे लिहामि, जइ णारोहति तो मुक्खाणं ति । मया चिंतियं-एयं लेहं देवसमीवे वाइजंतगंजइ मुक्खपुरओ लिहंति मं तो मे उहावणा उ होजा. 5 को वा दोसो रहाऽऽरोहणे ?' त्ति विचारेमि । रहसारहिणा भणियं-अजउत्त ! विलग्गह रहं ति। आरूढो मि पस्समाणो णयणाभिरामाणि रूवाणि । पुरतो मत्तगयारूढो आधोरणो भणति-अज्ज ! उसरह, अविहेओ मे गओ त्ति । सारहिणा तत्वयणं सोऊण परावत्तिओ रहो गणियाऽऽवासगमज्झेण पत्थिओ, ईसित-खिन्जित-पसाइताणि सुणमाणो तरुणवग्गस्स पत्तो य एगं भवणं सतोरणं कयबलिकम्मं, भणिओ-ओयरह. अईह भवणं ति । अइगओ 10 मि, दिट्ठा मया कण्णगा चेडीहिं परिवारिया सरस्सती विव विजाहिं । तीय वि कयप्पणामो आभट्ठो-बुद्धिसेण ! सागयं ? ति । कयपायसोयं च आसणगयं पुच्छति-बुद्धिसेण! कओ आगच्छसि । मया भणियं-देवपायमूलाओ । तओ णाए ततोमुही अंजली कया । ततो पुच्छति-बुद्धिसेण! केण विणोएण दिवसे गमेह ? । मया भणियं-कलापरिचएणं ति । तत्थ चेडीओ पासवत्तिणीओ, तासु मे दिट्ठी न पसज्जइ । ततो अण्णा आगया, 'सा 15 पडिरूव' त्ति तीए मे दिही निवेसिया । ततो णाए भणिओ मि-बुद्धिसेण! गुरुजणसमीवं न गंतवं, वीसमसु, एसा भोगमालिणी ते चिंतेइ त्ति । अइगयाय भणिओ य भोगमालिणीए-अजउत्त! रहजाणेण त्थ परिस्संता, गब्भगिहे सयणीयं, एत्थ वीसमह त्ति । पविट्ठो मि, सयणगयस्स मे पाए संवाहिऊण भणइ-अजउत्त! वच्छत्थलं भे संवाहामि । मया चिंतियं-निउणा चेडी, जा पाए संवाहिऊण उरं इच्छति छिविउं । तो भणइ-'थणेहिं वो 20 उरं संवाहिस्संति पीडेइ थणेहिं । अत्थि महंतो विसेसो करयलसंवाहणाओ वि पओहर फरिसे । एवं उवाएणि मिणा य कणेरुयाए विव वणगतो रइं कारिओ मि । कमेण य निग्गतो, पणयपडिबंधेण य अभिक्खणं वच्चामि तं भवणं । अण्णया भणइ मं भोगमालिणी मणोणुकूल-महुरभासिणी-अजउत्त ! जाणह कारणं जेणेथमाणीया ? । भणिया मया-ण याणं, कहेहि सुंदरि ! त्ति । भणइ-सुणह, 25 अम्ह सामिणी सुहिरण्णा बाला चेव कुमारस्स दिण्णा संबसिरिणो । देवं च पस्सइ पगाम, पवड्डिया कमेण, देवेण य आणत्तं-कालिंदसेणे ! दारिया ममं अब्भतरो(ग्रन्थाग्रम-२८००)वत्थाणे पस्सउ इयाणिं ति। कयाइंच पत्थिया अम्माए समं. तीए निवारिया 'न ते गंतवं' ति । ततो णाए गयाए अम्माए विरहिए गब्भगिहे वेहासीकओ अप्पा। मया य देवनिओएण दिहा उवउक्खित्ता, रज्जुपासं उझिऊण सयणीए निक्खित्ता आस30त्था । णाए पुच्छियं–कहि म्हि भोगमालिणि !। मया भणिया-सयणीए सयणहिदएसु य । १गमेसि ली ३ ॥ २ शां० विनाऽन्यत्र-णी एवं ते इत्तिक ३ गो ३ ॥ ३ °ण तुब्भे परि० ली ३ ॥ ४ ता रहगिहे ली ३ ॥५°णिमेण य ली ३॥ ६ 'त्य इहमा शां० ॥ ७ देवं च पहाइ पगा° शां० ॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेढिया । १०३ पाणिग्गहणं गणियाणं उप्पत्ती य ] पुणो पुच्छति—केण त्ति इहमाणीया ? | मया भणिया- देवतेहिं मया य । ततो मया भणिया - सामिणि ! मरियबे किं कया बुद्धि ?, कहेह मे । [ सा भणइ - ] सुण सहि !, अहं किर बाला चेव कुमारस्स दत्ता. वड्डिया य देवोपत्थाणे कयाइ कुमारं गया परसामि . 'इयाणि मे दहुंपि ण लब्भइ' त्ति निच्छओ कओ । मया भणिया - सामिणि ! अलं विसाएण. सुणह - तुभेहिंतो अण्णा कण्णा कयरी विसिरूवा जा से हिययसाहीणा 5 भविस्सइ ? अचिरेण से हियइच्छियमणोरहसंपत्ती भविस्सइ । एवं आसासेऊणं णं अम्मा कमि । तीए य मित्तेहिं सह हत्थारोह - लेहएहिं समवाओ कओ । ते भांतिअम्हे देवरस बीहामो. बुद्धिसेणो कुमारस्से पच्चयभूओ, सो कण्णागुणे निवेदेतो सोभइ. अम्हे णं णं उवाणं इमं आणेम, तुब्भे णं उवाएणं गेण्हह, सो कज्जं काहति त्ति । ततो त्थ रहिणा लेहएहिं महामत्तेण य उवायपुव्वं पवेसिओ । मा य भे चित्तं ठाउ ' एसा 10 गणिगादारिय'ति । सुणह— गणियाणं उष्पत्ती । सिकिर पुवं भरहो नाम राया मंडलवती, सो एगाए इत्थीए अणुरत्तो । सामंतेहि य से कण्णाओ पेसियाओ, ताओ समगं पेसियाओ । दिट्ठाओ य पासायागयाए देवीए सह राणा । पुच्छिओ अाए राया- कस्स एसो खंधावारो ? । तेण य से कहियं - कुमारीओ 15 मम सामंतेहिं पेसियाओ । तीए चिंतियं - ' अणागयं से करेमि तिगिच्छियं, एत्तियमिती कयाइएगा बहुगा वा वल्लभाओ होज 'त्ति चिंतिऊण भणइ - सामि ! मुयामि पासाङ अप्पाणं । तेण भणिया कीस देवि ! एवं भणसि ? । सा भणति - एयाहिं इहमेतिगयहिं सोयग्गिणा डज्झमाणी दुक्खं मरिस्सं । राया भणइ - जइ तुज्झ एस निच्छओ तो न पविसिहंति हिं । सा भणइ - जइ एतं सच्चयं तो बाहिरोवत्थाणे सेवंतु । तेण ' एवं ' ति 20 पडिवण्णं । तो छत्त- चामरधारीहिं सहियाउ सेवंति । कमेण गणाण विदिण्णाओ । एसा गणियाजणस्स उप्पत्ती ॥ इमा पुण अमियजसाए पसूइबहूसु य अईयासु कालिंदसेणाए दुहिया हेमंगयस्स रणो. जहा कुमारो से जाणइ तत्तिं तहा करेह | मया पडिवणं - पुप्फ-गंध-वत्थ- तंबोलाणि णेमि तासिं पत्तियावणहेउं जा उज्जाणे 25 दिट्ठा सा विसा चैव जं पि अज्जउत्तपुरओ ठिओ मि नच्चमाणीए तं कारणं सुणहसामिणि (णी) अज्जउत्तनिवेसियदिट्ठी मा नट्टविहिकम्मं चुक्केज्ज त्ति । तीए य कहाए पत्ता आवासं । पओसे य संबो बुद्धिसेणं भणइ - वञ्च, आणेहि णं तं सुहिरण्णं. अहं पि उत्तमो होमि, कामेमिणं ति । तेण भणिओ-महं ताओ न पत्तिज्जिहिन्ति, जयसेणो मे 30 सहायो दिज्जउ त्ति । गया दुवग्गा वि । बुद्धिसेणेण भणियाओ चेडीओ - पट्ठविओम १ ° स य कायभू° शां० ॥ २° मयग° शां० ॥ ३ सिहींति शां० विना ॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ वसुदेव हिंडीए [ उवसंहारो कुमारेणं, गंतवं सामिणीए । तातो भांति — को तुझं पत्तियइ ? त्ति । तेण से जयसेणो सिओ । तेण वि कहिओ कुमारसंदेसो । विदितं च कयं कालिंदसेणाए । तीए भणियं -- वीसमह मुहुत्तं जा पसाहिज्जति दारिया । सा गया जंबवइसमीवं, निवेदितं च तीए । देवी परिचिंतेऊण गया कण्हसमीवं, कहिओ संबाहिपाओ । तेण भणिया- पच्छा रायदार5 गाहिं सह सक्कारो कीरहि त्ति, सेवतु णं सुहिरण्णा । विसज्जिया कालिंदसेणा जंबवतीय । कयविसग्गाय पेसिया दारिया पवहणेण । बुद्धिसेणेण कुमारस्स निवेदितं, भणिओ य णेण - अज्जउत्त ! निउणा होज्जह । तेण भणिओ-कहमणुवत्तीलक्खणा पीई ? | सा अगा वासगिहं, उवविट्ठा सयणीए । निग्गतो बुद्धिसेणो संवरियदुवारं काऊण गभहिं । सा य केस-वसण-भूसणं संबस्स जं जं पउंजइ तं तं संबो वि अणुकरेइ । ततो तीए सुय 10 इव सारियाए सेहविओ । गया से रयणी परमपीइमुहंताणं । उवगतो बुद्धिसेणो, भगिओ संबे-निज्जउ एसा मे गिहं अविण्णाया गुरुजणेणं ति । पत्ता यं पइकम्मयारीओ देवीए पवियाओ पाहण - सुवण्णवत्थाणि गहेऊणं दोन्ह वि जणाणं । ततो 'विदियमागमणं तीसे अम्मा' त्ति वीसत्थो संबो । तीए य सह मणाणुकुलवत्तिणीए पंचलक्खणविसयसुहमोहियस्स वच्चइ कालो ॥ ॥ एसा पेढिगा ॥ 15 पेढिगाप्रन्थानम् - श्लो० ८१० अ० १२. सर्वग्रन्थाग्रम् श्लो० २८४४ अ० १७. Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐतो मुहं - संब-सुभाणूर्ण कीडाओ [ मुहं ] संब-भाणूर्ण कयाइ सभाएं कीलंताणं पणी (णि) यं समुप्पण्णं - - जस्स सउणो विचित्तं वासति सो जिति कोडिं ति । ठविया पासणिगा | बितियदिवसे भाणुणा सुओ आणीओ, 1 संवेण सारिगा पॅज्जुण्णगिहला लिया कंतसंजोइयसुहुम विविह्वण्णपिच्छच्छयणा एगदेसुद्वियंरोमखयखारसेगा । सुगो पकडिओ सिलोगजुयलं— सतेसु जायते सूरो, सहस्सेसु य पंडिओ | वत्ता सयसहस्सेसु, दाया जायति वा ण वा ॥ इंदियाण जए सूरो, धम्मं चरति पंडिओ | वत्ता सञ्चवओ होइ, दाया भूयहिए रओ || त्ति भणिउ ओ ठिओ । सारिया संबेणं सियं । सा भणइ - चोइया - मयणे ! भणसु तुमं किंचि सुभा सबं गीयं विलवियं, सवं नट्टं विडंबियं । सबै आभरणा भारा, सबे कामा दुहावहा ॥ 15 ततो खारसिते पसे छित्ता र सिउमारद्धा, भणइ य रसियावसाणे - देव ! को वि मं पीलेइ, परित्तायसु, मरामि मा मं उवेक्ख. तिगिच्छगा सर्वांविजंतु लहुं ति, ते मे परिबाधा डिगारं करेंति, नेहि मे देविसमीवं । एवमाइ कलुणं विलवंती पुणो वि चोइयासुंदरि ! अलं विसाएण, भणसु किंचि, ततो जं वोच्छिसि तं सवं कीरइ । ततो भइ — उक्कामिव जोइमालिणिं, सुभुयंगामिव पुष्फियं लतं । विबुधो जो कामवत्तिणि, मुयई सो सुहिओ भविस्सइ || खारे छक्का पुणो रसइ विलवइ य । पुणो भणिया- पढसु ताव किंचि । ततो भगति-न सुयणवणं हि निडुरं, न दुरहिगंधवहं महुप्पलं । न जुवइयियम्मि धीरया, न य निवतीसु य सोहियं थिरं ॥ १ एतो शां० विना ॥ २ भासु की ली ३ ॥ ३ कोडित्ति उ २ विना ॥ ४ पच्छण्ण उ २ विना ॥ ५ शां० ॥ ६ हविगो ३ शां० ॥ ७°लवति शां० ॥ ८ उ० मे० विनाऽन्यत्र - पदं म° ली ३ ॥ व० [हिं० १४ 5 10 'एवं सा विचित्तं वासइ' त्ति जियं संबेण । 'सुओ सिलोगजुयलमेव लवई' त्ति परा- 25 जिओ, भोयणवेलाए य सहाविओ सुभाणू रुद्धो 'पणिए कोडिं देहि 'त्ति । सुयं सच्चभामाए, कयं च कण्हस्स विदियं । पेसिओ कंचुकीओ संबं भणइ – कुमार ! सुबउ, ' भाणू भुत्तभोयणो दाहिति'त्ति देवो आणवेइ । संबो भणति - जो सिणेहिओ सो दाऊण णं नेउ, 1 20 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ वसुदेव हंडी [ संब-सुभाणूर्ण अधवा एस जाणइ जं कायवं । सुभाणू भएण ण वञ्चइ, णिवेइयं कण्हस्स, दिण्णे विसजिओ | दुहंता पूइया संबेण, पियपुच्छगाण य दीणाणाहाण य दत्तं वित्तं । I वि दिवसे गते पुणो भाणू भणइ - संब! होउ पणीयं, जस्स उक्कडा गंधा सो जिणइ दोन्नि कोडीउ । संबो भणइ – अलं तुमे सह पणिएण. तुमं जिओ देवस्स कहे सि । 5 सो भणइइ- अंबाए कहियं देवस्स, न मया । ततो 'एवं होउत्ति कया सक्खी । संबेण चिंतियं - गंधजुत्तीसु भाणू न जिणिज्जा, देवसंतएहिं गंधेहिं सो विलिंपिज्जा करेमि घाणपडिलोमदवसंजोगं ति । ततो णेण पलंडु-लसुण-वेकड - हिंगूणि छगलमुत्तेण सह रुइयाणि सरावसंपुडेण आणीयाणि । सुभाणू य पुत्रपविट्ठो सभं सुरहि विलेवणो । पसंसिओ गंधविणकुलेहिं । संबो य सभादुवारे विलित्तो घाणपडिकूलेणं लसुणादिजोएण । तेण य 10 गंधेण परभाहतो सभागओ कुमारलोओ संवरियनक्कदुवारो समंतओ विपलाओ-संबसामि ! अइउक्कडा गंधा, पसीय, विसज्जिज्जंतु, कुणह पसायं । तेण भणिया-भणह निबयणं । ते भांति - जियं तुमे । भाणू भणइ - दुरहिंगंधा एयस्स । संबेण भणियं उक्कडस् पणियं, न य विसेसो सुभा-सुभेसु कओ । पासणिएहिं संबपक्खो उक्खित्तो । जिओ भाणू रुद्धो । देवीए रडंतीए वासुदेवस्स कहियं । तेण पेसिएण मुक्को, दिपणे विस15 जिओ । संबेण परियणस्स दिष्णो विभत्तो अत्थो, दिण्णं दुर्द्दताण य । 1 I I पुणो के वि दिसु गएसु भाणू संबं भणइ - होउ पणियं चउसु कोडीसु, जस् जुती अइसति विभूसणाणि सो जिणइ । संबेण भणिओ - अलं तुमे समं पणिएण, देवसि उवद्वायंतओ जिओ वि । निबंधे कए पडिवन्नो संबो । निरूविया सक्खी । गतो य संबो पज्जुण्णसमी, कहिओ य णेण पणियालावो । तेण भणिओ - होउ कुमार ! जिओ 20 तुमे सुभाणू. जइ तुमं जिंप्पि हिसि इयाणि तो दिजिहिति से जहा भणियं । संबो भइदेव ! भाणुकेण जियस्स किं मे जीविएण ?, कुणह पसायं जहा मे जओ होइ । पज्जुपडवन्नं - एवं कीरहिति, अच्छह जहासुहं ति । गतो य पज्जुन्नो सिवाए महादेवीए पायमूलं, कहियं च से संब- सुभाणुपणियं, विण्णविया य णेण -- अज्जिए ! देह जाइतगाणि आभरणाणि, जाणि अम्ह चुल्लपिउणो सामिणोऽरिट्ठनेमिस्स देवेहिं दत्ताणि । 25 तीए भणिओ - पुत्त पज्जुण्ण न तव किंचि अदेयं, ताणि भूसणाणि चुल्लपिउणो ते ण खत्तिए पिणज्झंति, तेण जाइयगाणि णेहि, इहरहा दत्ताणि णाम तव त्ति । पणओ घेत्तूण गतो, संवस्स य णेण दत्ताणि, तेहिं विभूसियदेहो गतो सभं । पुत्रपविट्ठो य सुभाणू महग्घाभरणमंडिओ पसंसिओ पासणिएहिं - धुवं तुमं इदाणिं जिणिसि ति । संबकुमारो य नक्खत्तमालाविराइयवच्छत्थलो सोभिओ विज्जुलयालंकिओ इव बलाहगो, तस्स य 30 भूसणजुईय सूरप्पभाए इव खज्जोयजुती पडिया सुभाणू ( णु) भूसणच्छाया । 'जियं संवेणं' ति विक्कोसियं पासणिएहिं । सुयं च सच्चभामाए, विष्णविओ कण्हो रोवंतीए - संबो १ अम्माए शां० ॥ २ जिणिहि° शां० ॥ ३ णेहिं शां० विना ॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जू कीडाओ ] १०७ तुज्झच्चएण वल्लभवाएण ण देइ मे दारयस्स जीविंडं निवारिज्जउ जइ तीरइ । एवं विष्णविए पेसविओ कंचुगी । तेण संबो भणिओ --- कुमार ! 'मुयह सुभाणूं (ं), माणं बाहह' एवं देवो आणवेइ । संबेण भणियं - पणिए जिओ, एत्थ किं देवस्स वा दाणवस्स वा वत्तवं. अवराधी वियो पभुणा, णायकारी पालेयवो । कंचुकी गओ, कहियं तेण संबवयणं । देवी भइ कन्हं - देव ! सबस्सेण वि मे मोइ ( ग्रंथाग्रम् - २९००) जउ दारगो जइ अत्थि पसादो 15 तीए चोइओ गओ कण्हो सभं । पुच्छिया य तेण सभासया । तेहिं संबजओ कहिओ । दिट्ठो य णेणं संबो सुरवई इव पसाहियसरीरो । भणिओ तेण - विसज्जेहिं सुभाणुं, अम्हे दा हामो पणियं । संबेण भणियं - सीहस्स दंता केण गणेयबा ?, जइ 'वल्लहो' त्ति निजइ णीओ णाम. जया मज्जाया भविस्सति तदा दाहिति । कण्हेण भणिओ-मज्जाया तुमम्मि इयाणिं, sorत्थ. ण देसि एयस्स दारयस्स जीविउं, एसो तुमे खलीकओ वि न विरज्जइत्ति - 10 निग्गओ सहाओ फरि सेऊण णं । दिण्णे कोडिचउक्के विसज्जिओ भाणू । बितियदिवसे संबो गतो सच्चभामाभवणं केसवसिरिमुहंतो नक्खत्तमालाविभूसिओ य, तीए आलोए ठिओ खुज्जं अंगुलीए सद्दावेइ । सो य ' कण्हस्स वेस-भासावण्णा-ऽऽगितीहिं बहुसरिसो' त्ति न निबडिओ तीए । भणिया अणेण खुज्जा - मया सुमिणो दिट्ठो तस्स पडिघाओ कायवो. देवि भण-' पंचगवेणं मं अर्तितयं वारेंतं पि पहाणेह' 15 त्ति—अवकंतो । तीए तुरियं संपाइओ संदेसो । अतो य कण्हो 'घ (घ) डउ' त्ति चेडीए च्छादिओ 'किं इमं करेह ?, अवसरह' त्ति भणतो । ततो पच्छा मंगलेहिं ण्हाविओ । परिसंठिएय परियणे भणिया सच्चभामा कण्हेण- - मया तुमं सवंतेउरपुज्जा ठविया, अइसिरिओ उलट्टंतीमिच्छसि तो मया खेल्लसि । तीए भणिअं - देव ! कीस मं एवमुवालभह सयं आणवेऊण ? । कण्हेण भणिया- कया मया भणिअं ? अलिअं भणसि । सा भणइ-खुज्जा मे 20 सद्दाविऊण संदिट्ठा. मया पुण दिट्ठ त्थ नक्खत्तमालाविभूसिओरत्थला. सो भे फेडिया (यो) एत्तिओ वि संवाओ। तत्तो कण्हो पहसिउ भणइ - संबसिरी होहित्ति 'सो कल्लं मया फरुसिओ' त्ति । तं च सोऊण रुट्ठा देवी भणइ - ' - ' अहं पुत्तभंडाण खेल्लावणिया संवुत्ता, किं मे जीविएणं ?' ति जीहं पकड्डिया । कहिंचि निवारिया य, भणिया य कण्हेण - देवि ! अविणीस कल्लं काहं निग्गहं, वीसत्था भवति । 25 जंबवती सदाविया, भणिया य-तुज्झ पुत्तेण वि अहं ओहामिओ । सा भणइ - तुमं जाणसि अत्तणो पुत्तस्स चरियं । देवेण भणिया-तुमं पि जाणावइस्सं । अण्णदियहे गोउलियवेसं काऊण जंबवइसहिएण दिट्ठाँ (हो) । रूवरिसणी संवेण पुच्छिया - तक्कं लब्भेइ ? | सा भइ - आमं । 'गे৺हामि णं' हत्थे गहिया । देवो रूवं दंसेइ, संबो पलाण, न एइ य देवसमीवं । बितिय दिवसे कुलगरसमक्खं संबो सदाविओ । सो खादिरसंकुं नखरणेण 30 १० वियं शां० मे० विना ॥ २°भाणू ली ३ विना ॥ ३ भागया शां० मे० ॥ ४ 'जओ णी० शां० मे० विना ॥ ५° सिरिओ उल्लदंती ली ३ । °सिरिं उल्लइंती' शां० ॥ ६° ढाई रु° शां० विना ॥ ७ गिहामि शां० मे० विना ॥ ८ खायरं सं० शां० ॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [सुभाणुनिमित्तं संगहिआणं तञ्छितो अतिगतो सभं । वासुदेवेण पुच्छिओ-संबसामि ! किं इमं ? । सो भणइ-जो पज्जोसियं आलावं करेइ तस्सेसो मुहे संकू आहम्मइ त्ति । वासुदेवेण भणिया कुलगरामुयं भे, अहं एएण हिजो पंचगवेग पहाणाविओ. तं किर अहं तुझं जइ कहेमि तो मे संकू मुहे आहम्मइ. तो निग्गतो जं काहिसि तं काहिसि, मा वस बारवतीए । वसुदेवेण 5 भणियं-कण्ह ! खमाहि, सो एस केलीकिलो अम्हाणं कुलस्स अलंकारभूओ, जह रिसीणं णारदो । ततो कण्हो भणइ-एस तुब्भेहिं उविक्खिओ, जेण मया वि खेलेइ. न इहं वसियत्वं । कुलगरेहिं भणिओ-संब ! निग्गमउ नयरीओ । सो भणइकालो ठविजउ, जञ्चिरं मया बाहिं अच्छियत्वं । कण्हेण भणियं-निच्छुभंतस्स को काल परिच्छेदो ? । सो भणइ–'तुब्भे इहं सबे वसह, मया पुण अपरिमियं कालं बाहिं अच्छे10 यवं' ति अणवट्ठिए काले ण णीमि त्ति । कण्हेण भणियं-जया ते सच्चभामा अहं च अब्भत्थेऊण अईणेमु तदा बारवइं अईहिसि । - ततो 'एवं' ति वोत्तूणं पियामहाण कयपणिपातो निग्गतो गतो पज्जुण्णसमीवं । कहियं च णेण निबिसयकारणं सावराहं । तेण भणिओ-पियरं अच्चासायंतेण ते महंतो अव राहो कओ. वचसु ताव. उवसंतं देवं विण्णवेहामि त्ति । ततो संबो भणइ-देव ! जइ 15 तुब्भेहिं पि विसजिओ ता मे पण्णत्तिं जाइयं देह । पजुण्णेण भणिओ-पण्णत्तिपरि गहिओ किंचि काहिसि दुण्णयं, ततो मज्झ वि उवालभं होहिति त्ति । ततो संबो भणइन करेहामि अविणयं, कुणह मे पसायं । दिण्णा य से पण्णत्ती-भयवइ ! बहिवसंतस्स संबस्स होहि सहायिगा । ततो तस्स कयप्पणामो विसज्जियदुईतो निग्गतो एगागी सुरट्ठाविसए विहरइ । 20 कहेइ से बारवइवट्टमाणिं पण्णत्ती, जहा-देवीए सच्चभामाए वासुदेवो विण्णविओ जाव संबो निग्गतो ताव सुभाणुस्स एगदिवसे अट्ठसयाणं रायकण्णाणं समयं वीवाहो होउ निविग्धं ति। ताण य सत्तुत्तरसयं कुल-रूव-विण्णाणसालिणीणं मेलावियं ति। सत्थो य बारवतिं वच्चइ, पण्णत्तीसंगहिओ कण्णास्वधारी सत्थवाहमल्लीणो धाइसहिओ । सोधाईए भणिओ-एसा गणियादारिया इच्छइ तुझे संसिया बारवतिं पविसिउं. तत्थ एगस्स इच्छि25 यस्स भत्तुणो भारिया होहिति त्ति । सत्थवाहेण परिग्गहीया पत्ता बारवति । दिट्ठा सु भाणुमणुस्सेहिं, निवेइया णेहिं कुमारस्स । सो रूवाइसयसवणविम्हिओ आगओ, तस्स दंसिओ अप्पा ईसि त्ति सो उम्माइओ, पुणो तं पवदति । सा वि "संदेसेइ अप्पाणं 'गणियादारिंग' ति, पविलोभावेऊँणं विभवेणं मरिउ ववसति । न इच्छइ य जाहे ताहे सभवणे पडिसिद्धभोयणो ठितो । उवलद्धं च . देवीए, तीय वि महत्तरगा पेसिया । तेहिं 30बहुप्पयारमणुणीया न पडिवज्जइ । ततो उग्गसेणो सच्चभामाए पायवडियाए विण्णविओ १णीम सि शां० मे. विना ॥ २ °इनेहामो तदा शां० विना ॥ ३ हितओ क ३ ॥ ४ सो अम्मा शां० मे. विना ॥ ५ से दंसे शां० विना ॥ ६ वेति णं शां०॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कण्णगाणं संबेण परिणयणं ] मुहं । १०९ गओ संबदारिगासमीवं । तेण वि कुल-रूव विभवे सुभाणुस्स वण्णंतेण विलोभिया तव मरणं ववइसइ, भणइ य - अजय ! तुम्हं देवतब्भूयाणं जइ वि य वयणं करेज्ज तो ताहिं राधूयादा सीहिं 'खोट्टीहिं तुल्ला एस'त्ति परिभविज्जिस्सं, तुम्भे कत्थगए उवद्वावेज्जा ?. तं अतीत, मा मं धम्मं जाणंता अग्गिम्मि छुहह । ततो सो गतो । सच्चभामाए य कण्हो अब्भत्थिओ - दारगस्स जीवियहेउं भण्णउ सा दारिगा । कहं वि कण्हेण पडिवन्नं । गएहि 5 य अब्भत्थिया सच्चभामाए - पुत्ति ! पुत्तभिक्खं मे देहि । सा भणइ मया तुब्भं वयणेण छूढो अप्पा बंधणे. 'अहं पुण कुमारेण सबबाहिं ठविजं' ति जातं मे सलं को अवहिति ? । तेहिं भणिया-तुमं पुत्त ! दारयसमीवे, सेसा तुब्भं अवसाणे । ' एवं नाम' ति अइणीया कुमारिमज्झं, लद्धपसरा य भणइ – अहं ताव गणियादारिया बला वि आणिजामि तुभे णाम रायधूया होइऊण अण्णेसु जायवकुमारेसु देवरूवीसु विज्जमा - 10 सु सुभाणुगस्स दिज्जियैवा । अईयमज्जाया ताओ णं भांति - तुमं सच्छंदा, अम्हे अम्मा-पिउवसाओ, किं करेमु ? । ततो सा संबगुणे वण्णेइ । तओ तीए कहाए रज्जमाणीए जाणिऊण काहिंचि सयं रूवं दरिसेइ । पाणिग्गहणदिवसे भाणुसमीवे ठविया, सेसा पंतीए । सो रूवविम्हिओ निज्झायि णं, संबं पस्सइ, अवसरइ य 'एस संबोि जंपमाणी, पुणो कण्णं पासइ । सा रोवइ - अहं किर संबो परिजणेण भण्णइ. संबं कत्थ 15 विगयं उप्परसय त्ति । पुणो पुणो एवं दंसेइ से, परिजणस्स अंतरियस्स दंसेइ रूवं अप्पाणं च । निवेदितं कण्हस्स । सो भणइ - इ - रुप्पिणि जंबवई च सदावेह. जदि संबो होहित्ति दंसेहिति से अप्पाणं । कहियं च, ताओ इत्थियाओ आगंतुं जायववुड्ढा य आगया । सिओ णेण अप्पा । पुच्छिओ तेहिं - संघ ! कीस इहं अइगतो ? । [ सो भणइ - ] देवेण अम्माए य बला अइणीओ मि, तो पत्थिओ सगिहं । भाणू भणिओ - पट्टए ठिओ पहायसु 20 वहुसहिओ ति । सो भणइ - अलं मम एयाहिं, संवेण एयाओ उद्दालियल्लियाउ ति । तो सप्पहासेहिं कुलगरेहिं संबो सुहिरण्णयासहिएण अट्ठसण कण्णाणं हविओ । दिण्णा से कण्हेण पण्णा कोडीओ सुवण्णस्स, वत्था - SSभरण-सयणा-ऽऽसण-जाण-वाहण-भायणविही- परिचारियाओ । ततो सो पासायगतो ताहिं रायतणयाहिं सहिओ निरुस्सुओ नाडहिं उवगिज्जमाणो दोगुंदुगदेवो विव निरुब्बिग्गो माणुस्सए भोए भुंजमाणो विहरइ त्ति ॥ ॥ मुहं कहाए ॥ I मुहग्रंथाप्रम् श्लो० १३४ अ० १२. १ खुडतु° ली ३ । खुड्डुहिं तु क ३ गो ३ मे० । खुड्डाहिं तु उ० ॥ ३ मारी, लमज्झपस शां० ॥ ४ यब्वं ली ३ विना ॥ ५ अइम० शां० ॥ सर्वप्रथाग्रम् श्लो० २९७८ अ०२९. २ अतीव ली ३ मे० विना ॥ ६°एहिं क० शां० मे० विना ॥ 25 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [पडिमुहं ] पडिमुहमओ केसु वि दिवसेसु गएसु पज्जुण्णो गतो वसुदेवघरं, अभंतरोवत्थाणे य वसुदेवख्वं काऊण उवविठ्ठो आसणे। देवीहिं कयप्पणामाहिं परियंचिओ पुच्छिओ य-देव! कत्थ अ5 च्छिय त्थ ? । भणइ-गओ मि जेट्ठस्स राइणो गिहं । ताओ भणंति-का तत्थ कहा आ सी । भणइ-तत्थ चारणसमणो णभंगणाओ उर्वइओ, वंदिओ संभंतेहिं,कट्ठासणे आसीणो। पुच्छिओ राइणा-कओ भयत्रं आगओऽत्थ ? । सो भणइ-राय! धायइसंडदीवभरहाओ। 'तं केरिसं ?' ति पुच्छिओ साहइ-जो चक्खुणा पस्सेज त्ति किंचि खेत्तं पवयं वा सो ण जाणइ विक्खंभा-ऽऽयामपरिमाणं पि. जहा सबन्नू वण्णेति तहा साहामि-लवणसमु10 द-कालोद-उसुक्कार-चुल्लहिमवंतपरिक्खित्ताणि दुवे भरहाणि चत्तारि चत्तारि जोयणसय सहस्साणि आयामेणं, लवणसमुदंतेण छ जोयणसहस्साणि छच्च सयाणि चोहसुत्तराणि जोयणाणं सयं च एगूणवीसं दुसत्तबारसुत्तरभागाणं, कालोदसमुदंतेणं एगूणवीसं जोयणसहस्साणि तिन्नि य सथाणि एगाणउयाणि एगूणसत्तरं च भागे। एवं च कहेइ ।। वसुदेवो य अतिगतो निवारिओ अभंतरपडिहारेहिं-अम्हं राया अंतेउरगतो, तुम्भे15 के तस्स सरिसरूवा ?, ण भे पविसियवं ति । ततो सो भणइ-किं पलवह ? ति–बला अइगतो, सुणइ य गंभीरसदं । दिट्ठो य पजुण्णेण, साभावियरूवी य पडिओ अजगस्स पाएसु। कयासीसो भणिओ-नत्तुय ! अज्जियाहिं सह को कओ आलावो? । भणइ-तुब्भं परिवालेंतेगं तुझ रूवेणं मोहियाओ मुहुन्तं । तओ पहसियाओ भणंति–णत्तुय ! देवो विव इच्छियरूवधरो सि, जीव चिरं बहूणि वाससहस्साणि । ततो भणति-अजय ! तुब्भे20 [हिं] वाससयं परिभमंतेहिं अम्हं अज्जियाओ लद्धाओ. पस्सह संबस्स परिभोगे, सुभा णुस्स पिंडियाओ कण्णाओ ताओ संबस्स उवट्ठियाओ । वसुदेवेण भणिओ पज्जुण्णोसंबो कूवदहरो इव सुहागयभोगसंतुट्ठो. 'मया पुण परिव्भमंतेण जाणि सुहाणि दुक्खाणि वा अणुभूयाणि ताणि अण्णेण पुरिसेण (ग्रन्थानम्-३०००) दुक्कर होजत्ति चिंतेमि । ततो पणओ पज्जण्णो विण्णवेइ-अजय ! कुणह मे पसायं, कहेहैं जहा हिंडिय स्थ । भणइ25 कस्स वा कहेयचं ? को वा मे तुमाए विसिट्ठो नत्तुओ?, किं पुण तुमं सि अण्णेसिं साहिंतओ, तो मे पुणो बाहिहिंति ते ; तो जस्स जस्स अस्थि इच्छा सोउं तं तं मेलावेहि. ततो तुमं पुरओ काऊण कहेहं । ततो तेण तुद्वेण कुलगरा अकूरा-ऽणाहिट्ठि-सारणगणा य राम-केसवादी य निमंतिया । ते समेया सहाए पहट्ठमणसा । तेसिं च मज्झगओवसुदेवो बहस्सती विव कोविदाणं पज्जुण्णपमुहाणं धम्म-ऽत्थ-काम-लोग-वेद-समयदिट्ठ-सुता-ऽणुभूयं 30 पकहिओ सुयणसवणणंदिणा सरेणं । सुणह १गदेसु शां० ।। २ °वदिओ शां०॥ ३ दुवे हिमवयम्गाणि भर ली ३॥ ४ हेहि शां० विना ।। ५°माओ वि० शां० विना ।। ६ कहेमि शां० ॥ ७ 'मए दिदं सुता शां० विना ॥ . Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११ अंधगवहिपरिचओ] पडिमुहं । अंधगवहिपरिचओ इहं आसी हरिवंसगगणचंदा-ऽऽदिच्चा दुवे भायरो-सोरी वीरो य। तत्थ सोरिणा रण्णा सोरियपुरं निवेसियं, वीरेण पुण सोवीरं । ते य अण्णोण्णाणुरत्ता अविभत्तरजकोस-कोट्ठागारी वुहाहंकारा णिरुवदुयं रजसिरीमणुभवमाणा विहरति । तत्थ सोरिस्स राइणो पुत्तो अंधगवण्ही पहाणो, भद्दा देवी य, दस पुत्ता समुद विजयाइणो; दुवे य 5 दुहियाओ-कोंती मही य । वीरस्स भोयवण्ही पुत्तो, तस्स उग्गसेणो, उग्गसेणस्स बंधू-सुबंधू-कंसमादीया। सुपइट्ठो य अणगारो गणपरिखुडो विहरमाणो सोरियपुरस्स णाइदूरे सिरिवणे उज्जाणे समोसरिओ। सोरी वीरो य दो भायरो तस्सागमणहरिसिया निग्गया वंदिउं, पणया य सुणंति साहुमुहनिग्गयं नमिजिणमयं, जहा-जीवा राग-दोसवसगया बहुं पावं 10 समजिणित्ता नरग-तिरिय-कुमाणुस-देवदुग्गतीसु सारीर-माणसाणि दुक्खसहस्साणि अणुभवमाणा बहुं कालं किलिस्संति. कम्मलाघवेण य अरहंतवयणं भवसयसहस्सदुल्लहं सुणित्ता सद्दहति. सद्दहमाणा य संवरियासवदुवारा बज्झ-ऽभंतरतवविधिविसोधितमला सिद्धिवसधिसाहीणा भवंति, सावसेसकम्मा वा केइ विउलं सुरसुहमणुभविऊण परित्तेण कालेण दुक्खसमुद्दपरतीरगामिणो भविस्संति । ततो ते एवं विहं सुपइट्ठमुणिवयणं 15 सोऊण जायतिधसंवेगा पुत्तेसु संकामियरजसिरी पवइया, अप्परिपडियवेरग्गा जहोवइ8 गुरुसंदेसं संपाडेमाणा विहरंति । बहुणा य कालेण गुरुसहिया सोरियपुरमागया । वंदिया य परमपीइसंपउत्तेण अंधगवण्हिणा, उवासिऊण य गतो सपुरं। साहुसमीवे अडरत्तसमए देवोवयणनिमित्तं उपिंजलओ आसि । ततो अंधगवण्ही जायकोऊहलो निजाओ, विणयपणओ पुच्छइ सुपइट्ठमणगारं-भयवं ! किंनिमित्तो देवु-20 जोतो आसी ? । साहुणा भणियं–एगस्स साहुस्स पडिमागयस्स सत्तरत्तंतराओ देवो पडिणीओ उवसग्गं कासी य. ततो तस्स विसुज्झमाणलेसस्स अज ओहिणाणं समुप्पन्नं, तन्निमित्तं परितुढेहिं देवेहिं महिउ पराजिओ पडिणीओ. एयं उज्जोवकारणं । ताहे पुच्छति-किंनिमित्तं कहं वा तेसिं वेरं आसी ? । सुपइटेण मुणिणा भणिओ-वच्चसु, सो चेव साहू सयमणुभूयं णाणेण व उवइ8 साहेति त्ति । ततो गया सत्वे वि तस्स समीवं, 25 वंदिऊण य विणएण राया पुच्छइ वेरकारणं । साहू भणइ-सुणाहि राय !उप्पन्नोहिणाणिणो मुणिणो अप्पकहा ___ कंचणपुराओ दुवे सामवाइगा वाणियगा लंकादीवे रयणोपादाणं काऊणं पच्छण्णाणि य आणेऊण संझाकाले कंचणपुरं संपत्ता । ततो तेहिं 'अवेलाए मा पमाओ होहित्ति' त्ति रिवाइंगणिमूले णिक्खित्ताणि, अइगया य ते रत्तिं सगिहाणि । ताणि पुण मूला वाणिय-30 १ रा य होहंका° शां० मे० विना ॥ २ आवासि ऊण अतिगतो शां०॥ ३ °मये दे° शां० ॥ ४ वयरं शां०॥ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ वसुदेवहिंडी [ अंधगवहिपुचभवकहा. 1 गेण पहाए गहियाणि । ते आगया रयणाणि अप्पस्समाणा अण्णोष्णं संकिडं पवत्ता । तेसिं फरुसवयणावसाणे कर-चरण- दंत - पत्थर निवाएहिं तिब्बरोसपरिगयाणं जुद्धं संपलग्गं । ते रोद्दज्झाणा मया समाणा रयणप्पभपुढवीनेरइया जाया । तत्थ दुक्खबहुला उबट्टिया सवहिसा जाया; कमपरिवड्डिया अण्णोष्णदंसणरूसिया सिंगग्गोवसग्गियदेहा तिवे5 यणाभिभूया मया समाणा गंगातीरे जोयणंतरिएस गोट्ठेसु वसहा जाया; परोप्परदंसणजायतिकोवा सिंगनिवायजज्जरियसरीरा कालगया कालंजरवत्तिणीए वाणरजूवयिणो जाया; वियरंता य जम्मंतराणुसारेण अमरिसेण णह-दसण-कट्ठ- पासाणेहिं अभिहणमाणा अण्णोष्णसंभिन्नमत्थगा रुहिरपरिसित्तगत्ता पडिया महीयले । विज्जुपार व चारणसमणो तम्मि पएसे उवइओ, दिट्ठा य णेण तद्वत्था, भणिया 10 य-भो वाणरा ! किं भे कयं कोववसट्टेहिं ?, सच्छंदपयारस्स तिरियविसयाण य अणाभागी जात त्थ, तं मुह वेराणुबंधं, मा णरय - तिरिय - कुमाणुसेसु दुक्खसंकलापडिबद्धा चिरं किलिस्सिहिह, उवसमह, जिणवयणं पवज्जह, उवसंता य पाणाइवाय मुसावाया ऽदिण्णादाणाओ नियत्तह, तो सुगइगामिणो होह । एवंभणिए एगो उवसंतो पडिवण्णो जिणमयं, 'साहु भइ एस मुणि' त्ति कथंजली ठितो वेयणाभिभूओ वि । ततो से दिण्णाणि वयाणि, 15 भणिओ य - परिचयसु आहारं सरीरं जूहं भावओ त्ति । सो पडिवण्णो । गओ चारणो । सो वाणरो पसन्नचित्तो कालं काऊण सोहम्मे देवो जातो । इयरो सामरिसो बहूणि तिरियभवग्गहणाणि संसरिओ । सोहम्मदेवो चुओ माणुसं विग्गहं लहिऊण गुरुसमीवे जिणवयणं सोऊणं समणो जातो, सो अहं । जो सो तिरियगतिवत्तिवाणरो सो अकामनिज्जराबण आणिओ जोइसियदेवो जातो, सो मे सामरिसो भयजणणेहिं सरीर पीडाकरेहि य 20 रूवेहिं पीडेइ । अहं अविचलियपसत्थसंकल्पो अहियासेमि । तओ मे अज्ज ओहिणाणं समुप्पण्णं, सो पराजिओ, देवाऽऽगमणं च तन्निमित्तं । एवं पडणीयकारणं ॥ पुणो राया पुच्छर - किं मण्णे मया सम्मत्तं लद्धपुत्रं ? को वा अहं आसी ? । ततो साहुणा आभोएऊण भणिओ - सुणाहि अंधव हिपुचभव संबंधो 25 सहस अरहओ तिथे साकेए नयरे धणदत्तो सत्थवाहो सावगो, तस्स णंदा भारिया, तेसिं पुत्तो सुरिंददत्तो । तत्थेव नगरे बहस्सई नाम माहणो, तस्स सोमिला भज्जा, सिं पुत्तो रुद्ददत्तो । सुरिंददत्त - रुद्ददत्ता बालवयंसा । सुरिंददत्तो वहणेण समुदमवतरिका 'बहुपञ्चवाओ पवासो' त्ति चिंतेऊण रुद्ददत्तस्स हत्थे तिनि कोडीओ 'जिणाययणे पूयाउवओगं नेयबाओ' त्ति दाऊण गओ संववहारेणं दीवंतराणि । रुदद30 तेण तं धणं जूय- वेसपसंगेण णासियं । तओ चोरियं पकओ जणविदिट्ठो उक्कामुहचोरपल्लि पविट्ठो, कालेण तेसिं अहिवती जातो निग्घिणो निस्संसो । परिवारेण य तेण साकेयं १ सिंगंगोवग्गिय भे० विना ॥ २ सारिणा अ° उ २ ॥ ३ण सुगुरु क ३ ॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवपुवभवपुच्छा ] पडिमुहं। ११३ पिल्लिय निसीहे, आदीवियाणि घराणि । दिट्ठो संचरंतो नागरेहिं, 'इमो रुदत्तो अम्हं विणासाय उवहितो, ने एस पमादियवो' त्ति निच्छियं जुझंतेहिं मारिओ । तेण य जं सुरिंददत्तनिसिटुं चेइयहाए दवं तं विणासिंतेणं जे जिणबिंबपूयादसणाऽऽणंदितहिययाणं भवसिद्धियाणं सम्मदसण-सुय-ओहि-मणपजव-केवलनाण-निवाणलंभा ते पडिसिद्धा; जा य तप्पभवा सुर-माणुसरिद्धी, जो य महिमासमागयस्स जणस्स साहुजणाओ धम्मो-5 वएसो तित्थाणुसज्जणा य सा वि पडिसिद्धा । ततो णेण दीहकालठितीयं दसणमोहणिजं कम्मं निबद्ध असातवेयणिज्जं च । रोदज्झाणमस्सिओ य संगिहीयनिरयाऊ अपतिहाणे नरए उववण्णो । तत्थ दुक्खमविस्सोमं अणुभविऊण मच्छो जातो । ततो नरग-तिरियभवे फासिंतो बहुणा कालेण मगहाजणवए सुग्गामे गोयमस्स माहणस्स अणुहरीए भज्जाए पुत्तो जातो । गब्भत्थस्स य पिया मतो । ततो 'निस्सिरीयगोयमों'त्ति वड्डइ । छम्मास जायस्स य 10 माया मया । माउँच्छियापइणा य सगिहमइणीओ । तीए भणिअं-मा मेतं अलक्खणं. गिह पवेसेहि, अच्छउ बाहिं ति। एवं सो अणाढिओ कह वि जीविओ, कमेग य जोवणं पत्तो, साहुसमीवे सुयधम्मो पवइओ, अलाभपरीसह सहति । विसुद्धमाणलेसस्स य सेअपरिवडियवेरग्गस्स चत्तारि लद्धीओ समुप्पण्णाओ-कोहबुद्धित्तं खीरासवत्तं अक्खी णमहाणसियत्तं पयागुसारित्तं ति । ततो पण्णरस वाससहस्साणि कयसामण्णो महासुक्के 15 कप्पे देवो इंदसामाणिओ जाओ। तं राय! एवं जाण-जो य रुददत्तो जो य णिसिरीयगोयमो जो य महासु-: कसामाणो सो तुमं ॥ वसुदेवपुवभवपुच्छा ततो वंदिऊण पुणो पुच्छति-भयवं ! जो मे एसो दसमो पुत्तो वसुदेवो, एस सय-20 णस्स परियणस्स य अईव वल्लहो, किं अणेण सुकयं कयं पुवभवे ? साहह त्ति । ॥ एयं पडिमुहं ॥ पडिमुहग्रन्थानम् सर्वग्रन्थाग्रम् M श्लो. १०७ अ० १२.. Payted श्लो. ३०८६ अ० ९. १ मा से पमा° शां० मे० विना ॥ २ °च्छिउं जु° ली ३ ॥ ३ लाभा उ २ बिना ॥ ४ जा य शां० विना ॥ ५ °स्सामो अ° ली ३ विना ॥ ६ °णुदरी ली ३ । गुंधरी शां० । गुदरी मे० ॥ ७ °उस्सियापयणा य स° उ० । उस्सियाए यणायं स क ३ गो ३ । उलियाए य णायं स ली ३॥ ८ हमाणी शां० मे० विना॥ व. हिं० १५ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ सरीरं ] पढमो सामाविजयालंभो. अओ सरीरं - साहुणा भणिओ-सुणाहि- समुह विजयाईर्ण नवहं वसुदेवस्स य पुत्रभवचरियं 5 विंझगिरिपायमूले सीहगुहा नाम चोरपल्ली आसि । तत्थ अपराजिओ सेणाहिवो आसी, तस्स वणमाला भारिया, तीसे दस पुत्ता-सुरुवो विरूवो मंदरूवो सज्झो अझ दाहो विदाहो कुसीलो विसीलो करको ति । पत्तेयं कयसन्निवेसा बहु पाषं समज्जिणित्ता सत्तमाए पुढवीए नेरइया जाया । ततो उबट्टिया तिरियभवंतरिया सबपुढवीओ फासेऊण अल-थल - खहयरतिरिएसु चउरिंदिय-तेंदिय - बेंदिएसु य तव्भवजोग्गाणि 10 दुहाणि भोत्तृण साहारणबादरवणस्सतीसु उबवण्णा; तत्थ बहुं कालं वसिऊण पतणुकयकम्मसंचया भद्दिलपुरे मेघर हो' राया, तस्स सुभद्दा देवी, देहरहो पुत्तो । तत्थेव नयरे धणमित्तो नाम सेट्ठी समणोवासगो, तस्स भज्जा विजयनंदा, तीसे गन्भे ते साधारणपणस्स तिजीवा एगरहिया कमेण णव पुत्ता जाया, तेसिं नामाणि - जिणदासो जिणगुत्तो जिणदेवो जिणदत्तो जिणपालिओ अरहदत्तो अरदासो अरहदेवो 15 धम्मरुइ यति, पियदंसण-सुदंसणाओ दुवे दुहियाओ । 1 तम्मि य समए मंदरो नाम अणगारो सगणो भद्दिलपुरे सीअलजिणस्स जम्मभूमीए समोसरिओ । ते य नव भायरो सह पिउणा तस्स समीवे पवइया । राया सपुत्ते कयरज्जनिक्खेवो (ग्रंथाप्रम्-३१००) निक्खंतो । विजयनंदा अंतरवत्ती धणदेवं पुत्तं जणेऊणं, बारस वासाणि पाऊणं, लद्धसेट्ठिट्ठाणं च निक्खिविऊण सह धूयाहिं पवइया । सेट्ठी 20 राया य यकम्मा निव्वुया । सेसाणि अच्चुए कप्पे उववण्णाणि । विजयनंदा 'होज मण्णे एहिं मे पुत्तेहिं धूयाहि य पुणो वि संबंधों' त्ति सिणेहाणुराय पडिबद्धा तस्स ठाणस्स अणालोइअ - sपडिकंता कयसरीरपरिचागा अच्चुए कप्पे सह धूयाहिं देवत्ताए उववण्णा । ततो चुया पुत्रं महुराए नयरीए अइबलस्स रण्णो सुणेत्ताए देवीए भद्दा नाम दारिया जाया, परिवड्डिया तव दत्ता; तीसे गब्भे अच्चुया देवा चुया कमेण य पुत्ता जाया समुद्द विजयाई; 25 दुवे य धूयाओ - कोंती मद्दी य, पंडु-दमघोसाणं दत्ताओ । वसुदेवपुवभव कहाए नंदिसेणभवो जे पुण ते पुबकहिया दस साधारणबादरवणस्सइजीवा तत्थेगो उबट्टिओ मगधाजणवए पलासपुरगामे दरिद्दस्स क्खंदिलस्स माहणस्स सोमिलाए भारियाए पुत्तो जातो नंदिसेणो नाम । बालस्स चेव य से अम्मा-पियरो कालगया, 'सो अप्पसत्थो' त्ति परिहरिओ 30 जण | बिंडोलगत्तणेण य से कम्मिं वि काले गए माउलगेण अल्लियाविओ; तस्स य तिन्नि १ कुत्ति शां० ॥ २° हो ति रा ली ३ | ३ दढरोधो पु० शां० । दढरहो मे० ॥ ४ णो पुणो सं क ३ गो ३३० ॥ ५ °म्मिय का शां० विना ॥ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवपुधभवपरियं] पढमो सामाविजयाळंभो । धूयाओ अणुमग्गजायाओ । माउलगेण भणिओ-नंदिसेण ! अच्छ पीसत्थो, अहं लव धूयं दाहामि, गावीण वित्तिं वहसु त्ति । सा य दारिया पत्तजोवणा 'दमगस्स दिजामिति सोऊण भणइ.-जइ एयस्स एवंगयस्स दिजामि त्ति तो मारेमि अप्पाणं । सुयं च नंदिसेणेण । भणिओ य माउलगेण-पुत्त! मा अधिति करेहिं . जा तुमं निच्छइ किं च तीए तुझं ?. अहं ते बितियं दाहामि त्ति । पत्तसमए वीयाए वि नेच्छिओ । एवं ततियाए वि5 निच्छिओ । माउलेण पुणो भणिओ-जइ वि सि तुम तिहिं वि निच्छिओ, तं मा बाहिरभावो होहि. अहं तव अण्णत्तो वि विसिट्ठतरं संबंधं काहं. निव्वुओ होहि । ततो नदिसेणेण चिंतियं—जो हं एयाहिं वहहिं निच्छिओ, पराओ ममं किह इच्छिहिंति ? । परमेण मणसंतावेण निग्गओ गामाओ रयणपुरमागतो, वसंतो य वट्टए, पस्सए य तरुणे इच्छियजुवइसहाए उववणेसु रममाणे । ततो निंदमाणो अप्पाणं 'अहो! अहं दूभगसेणा-10 वती, किं च मे एयारिसेणं जीविएणं ?' ति संपहारेऊण जायनिच्छ ओ एग उववणं नगरस्साऽदूरे असंपायं रुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लयागुविलमइगओ। ___ तत्थ य एगम्मि लयाहरे सुट्टिओ नाम अणगारो साइसयो पसत्थज्झाणोवगतो चिट्ठति । नंदिसेणो य तं अपस्समाणो मरिउकामो तस्साऽऽसण्णे लयापासं बंधति । साहुणा य साणुकंपेण निवारिओ-नंदिसेण! मा साहसं ववससु त्ति । तेण समंतओ अबलोइयं 15 जायाऽऽसंकेण-गामाओ मे कोइ पच्छओ आगओ होजा जो मं पडिसेहति । अपस्समाणो य कंचि पुणरवि बंधेऊण पवत्तो, पुणो वि वारिओ, सद्द दिसाभाएण तं पएसं गतो, अभि. वायणं काऊण आसीणो। भणिओ नियमसुट्ठिएणं सुट्टिएणं-सावय! अकयधम्मो गती परलोयं दुक्खनिविण्णो किह सुही भविस्ससि ? ति । ततो भणइ-को पञ्चओ जहा अधि परलोगो? धम्मेण वा कएण सुहं लब्भइ? त्ति । ततो साहू ओहिणाणपगासियभावो 20 भणइ-अत्थि पञ्चओ, सुणाहिपरलोगपच्चए धम्मफलपच्चए य सुमित्ताकहा वाणारसीए हयसत्तू राया । तस्स दुहिया सुमित्ता बालभावे गिम्हे पुवावरण्हकाले भुत्तभोयणा पसुत्ता, पाणियपडिफोसियतालविंटेण वीइजमाणी सीयलजलकणगसित्ता ‘णमो अरहताणं'ति भणंती पडिबुद्धा, पडिचारिगाहिं पुच्छिया-सामिणि ! के अरहंता ? जेसिं 25 - भे नमोकारो कओ । सा भणइन याणं, अवस्सं पुण नमोकारमरिहति । ततो णाए धाई सदाविया, भणिया य-अम्मो! गवेसेसु ताव के अरहंत ?'त्ति । तीए पुच्छंतीए समणीओ दिट्ठाओ अरहंतसासणरयाओ, आणियाओ य कुमारिसमीवं । पुच्छियाहिं अणाहिं कहियाभरहेरवयवासे विदेहवासे य संभवो धम्मादिकराणं, इमं च विमलस्स अरहओ तिथं । ततो सा भणइ-अज मया पडिबुझंतीए कओ नमोकारो । ततो ताहिं भणिया-तुमे अ-30 रहंतनमोकारप्पभावेण इमा रिद्धी पत्ता णूणं, जओ ते पुखभावगाए कओ नमोकारो । 'एवं ति १ °वासविदेहवाससंभ शां० ॥ २ 'त्य ति । तो सा उ २ विना ।। Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए .. [वसुदेवपुवभवकहाए सुमित्ताए पडिसुणित्ता पडिवन्ना जिणदेसियं मग्गं, पवयणकुसला य जाया। वड्डियाए य से सयंवरो दिण्णो पिउणा । ततो णाए उभयलोगसुहोवलंभिणी इमा गीइगा पिउणो निवेदिया--. किं नाम होज तं कम्मयं, बहुनिवेसणिजं अलजणिज्जं च । पच्छा य होइ पच्छ (त्थ)यं, न य नासइ नढे सरीरयम्मि ? ॥ 5 ताय! जो मे एईए गीइगाए अत्थं सुणावेज तस्स भे अहं दायवा । तओ पगार्सियाए गीइयाए णाणाविहाणि वत्थूणि सुणाविति विउसा, तीए अहिप्पायं न लहंति । एगेण य पुरिसेण सुणाविया ___कमैयाण तवोकम्मयं, बहुनिवेसणीयं अलज्जैणीयं च । . पच्छा य होइ पच्छ(त्थ)यं, ण य णासइ नट्ठए सरीरयम्मि ॥ 10 पुच्छिओ भणइ-तुब्भे जाणह जो भावत्थो. मया पुण त्थ सुणाविया । भोयाविओ मजाविओ य पुच्छिओ भणति-रयणउरे पुरिसपंडिएण एवं भणियं. मे का सत्ती वुत्तुं ?। ततो पूइओ 'दूओ सि तुम'। तीए विसजिओ । सुमित्ताए य पिया विण्णविओतात! पुरिसपंडिएण लक्खिओ ममाऽहिप्पाओ. जइ मं अत्थेण पत्तियावेइ ता अहं भज्जा नाम तस्स, न सेसकाणं । गया य रयणउरं बहुपरिवारा, आवासे पुवसजिए ठियो । 15 सद्दाविओ गओ य पुरिसपंडिओ सुप्पभो, पुच्छिओ य-कहं तवो बहुणिवेसो सलाहणिजो? पच्छाकाले य पच्छो(त्थो) ? सरीरविणासे य फलं पइ(य)च्छइ ? त्ति । तेण भणिया- सुणाहिइन्भदारयदुगकहासंबंधो इहं दुवे इन्भदारया-एको सवयंसो उजाणाओ नयरमतीति, अण्णो रहेणं निग्ग20 च्छइ । तेसिं नयरदुवारे मिलियाणं गयेण ओसरिउमणिच्छंताणं आलावो वहिओ । तत्थेगो भणति-तुमं पितिसमजिएण अत्थेण गविओ, जो सयं समत्थो अजेउं तस्स सोहइ अहंकारो । बितिओ तहेव । तेसिं च अत्तुक्करिसनिमित्तं जाया पइन्ना-'जो अपरिच्छओ निग्गओ बहुधणो एइ बारसण्हं वासाणं आरओ, तस्स इयरो सवयंसो दासो होहिति' त्ति वयणं पत्ते लिहिऊणं णेगमहत्थे निक्खिविऊणं एक्को तहेव निग्गओ; विसयंते 25 फलाणि पत्तपुडे गहेऊण पट्टणमुवगतो, कयविक्कयं करेंतो जायपक्खेवो संजत्तगमस्सिओ, पोएण ववहरंतो पेत्ते विउले धणसंचए मित्ताणं पेसेइ । बीओ पुण वयंसेहिं चोइजमाणो न नीइ ‘सो तवस्सी जं बहुणा कालेणं विढवेइ तमहं अप्पेणं' ति । बारसमे संवच्छरे तस्साऽऽगमणं सोऊण दुक्खेण निग्गओ घराओ चिंतेइ-मया किलेसभीरुणा विसयलोलुएण य बहुकालो गमिओ. इयाणिं संवच्छरब्भंतरओ केत्तियं समैजेहं ? ति, तं सेयं मे सरीर १०सिए गीयए शां० मे०॥ २ °म्माण तवो शां० विना ॥ ३ जणिजं च ली ३॥ ४ अहं दत्ता ना शां० विना ॥ ५ °या निवेइए सहा शां० विना॥ ६ °ओ ति । त° शां० भे० विना ॥ ७°पत्तलिहियं नेग शां० ॥ ८ °डे भरेऊ शां० विना ॥ ९ पत्तविउलधणसंचओ मि° शां०॥ १० बितिओ शां०॥ ११ जेहिइ?, तं शां०॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इभदारयाणं च कहाओ ] पढमो सामाविजयालंभो । परिचायं काउं' ति कयसंकेओ साहुसमीवमुवगतो सुयधम्मो पव्वइओ । विकिद्वतवोकम्मपरिक्खवियसरीरो कयभत्तपरिचागो नवमासपरियाओ कालं काऊण सोहम्मे देवो जाओ । ओद्दिविसया उवलद्धकारणो य विसयंते सत्थं विउरुव्विऊणं पेसइ मित्ताणं । ते असद्दहंता चारपुरिसं पेसेंति । तेणोवलद्धकहियवित्तवित्थारा गया तस्स समीवं । पूइया वत्थाssभरणेहिं पत्ता सनगरं । इयरेण पुव्वागग राया दिट्टो, धणं च सभंडमाकलियं । देव- 5 दव्यं पुण बहुगुणं इयराओ, तेण राया रयणोवणएणं तोसिओ । जो बारस वासाणि किलिट्ठो सो जिओ समित्तो । ऊसवे समत्ते देवसत्थवाहेण मित्ता भणिया - जाणह जह मया वित्तं दव्वं ? । ते भति-न याणामु । तेण कहियं तवेणं ति । दासभावपडिया वि तमत्थं बोहिया दिव्वं प्रभावं दंसेऊण, भणिया- जइ पव्वयह विसज्जामि । तो तेहिं समित्तेहिं तव - भावविहिहिं पणएहिं देवो भणिओ - अइ भे कओ पसाओ सपञ्चक्खं तवविभूतिं 10 संतेहिं. जइ सचेयणा भविस्सामो काहामो हियं । बोहेऊण गतो देवो । ते सुट्ठियस्स अणगारस्त समीवे पवयंति संपयं । एएण कारणेण तवो बहुनिवेसो पूयणिज्जो य तवस्सीणं, सरीरविणा से य तवफलं सुरलोए; इयरस्स अप्पनिवेसं कम्मं, सरीरणासे य णासइत्ति ॥ एवं ते नंदिसेण ! रस (से) कहियं । कुमारी य ताणि सर्वाणि वि इहं दट्ठूण पत्तियतिअस्थि परलोगो, अत्थि य धम्मफलं ॥ एवं कहिए पत्ता इन्भसुया साहुसमीवं पबइया य । कुमारी वि साहुं वंदिऊणं सुप्पभं विष्णवे – तुम्भे मम पभवह, धम्मकामाए मे विग्घो न कायो त्ति । तेण 'तह'त्ति पडिवन्नं । गतो नयरं रायसुओ सह कुमारीए ॥ ११७ नंदिसेणो दिट्ठपचओ पवइओ परमसंविग्गो अहिगयसुत्तत्थो पंचसमिओ तिगुत्तो ' पुज्जओ विवडमाणसद्धो अपरिवडियवेरग्गो विहरति । लाभंतरायखओवसमेण य जं 20इच्छति जहा य जत्तियं च तं लभति । गहिओ य णेण अभिग्गहो - वेयावच्चं च मया काय सत्ती ति । एवं सो महातवस्सी खाओ भरहे । 15 सक्को य देवराया सभागतो तस्स कथंजली गुण कित्तणं पकओ - नंदिसेणो वेयावच्चु - ज्जओ न सक्को देवेहिं वि खोभेउं दढववसायो । तं च वयणमसदहंता दो देवा कयसाहुरूवा उवागया । एगो सन्निवेसबाहिं गिलाणत्तणविलंबगो, बितिओ गतो नंदिसेणवसहिं । तेण 25 य खर- फरुस - निहुँरेहिं वयणेहिं निव्भच्छिओ, भणिओ अणेण – बाहिं गिलाणो अच्छइ, तुमं वेयावच्चअभिग्गहं गहेऊण सुवंतो अच्छसि । तओ उट्ठिओ संभंतो-संदिसह जेण कज्जं । तओ देर्वंखमणो भगइ - अइसारगहिओ तिसाभिभूओ बाहिं गिलाणो अच्छइ, जं जासि तं करेहित्ति । ततो अकयपारणो 'पाणगं गवेसामि'त्ति निग्गतो । अणुकंपाssकंपियहिययो देवो असणं करेइ । तं च जिणेऊण गहियपाणगो गओ गिलाणसमीवं । तेण 30 १ व्वाणवि शां० मे, विना ॥ २° तो य उज्जुओ शां० विना ॥ ३ द्धो पडिचरितवेर शां० ॥ वय शां० ॥ ५ णो चिह्नति, तुमं शां० ॥ ६ वसम° क ३ गो ३ 1 उ० मे० ॥ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ वसुदेवहिंडीए [वसुदेवपुलभवकहा. अक्कुट्ठो-अहमेरिसीए अवत्थाए तुम उदिसिऊण आगतो. तुम मुंजियबलोलो न मं अवलो. एसि, 'वेयावच्चकर'सद्देणं तूससि मंदभाग! त्ति । ततो पसण्णचित्तेण पणएण विण्णविओ-- खमह (ग्रन्थानम्-३२००) अवराह, कुणह मे विसग्गं, करेमि परिकम्मं ति ।धोओ णेण मलमलिणो, भणिओ णेण-णेमि मे उबस्सयं, तहा करिस्सं जहा नीरोगा भविस्सह । ततो तेण 5 उक्खित्तो पए पए अक्कोसइ-दुक्खावेसि मं, धुणसि, विसमं गेण्हसि त्ति । सो जंतिओ जयं रीयति । देवेण य तस्सुवरिं परमदुभिगंधी उच्चारो कओ, 'वेगविघाओ ते कओ, दुट्ठ! मारेसि मं'ति । सो पसण्णमुहवण्णो 'कह गिलाणस्स सुहं होज?'त्ति मणसा चिंतेइ, न गणेइ कडुयवयणाणि, न वा तविहं गंधं, भणइ य-कहं भे ठवेमि?, संदिसह, किं वा कीरउ ? त्ति, धोवामि वा?। ततो देवेण साणुसएण सो असुभपोग्गलोपचओ खणेण अव. 10 हिओ, घाण-मणसुहा य पुप्फबुट्ठी मुक्का । विसज्जियसाहुरूवा य देवा दिवरूवी भवित्ता तिगुणं पयाहिणं काऊण पायवडिया पुणो पुणो खमाति, बेंति य–भयवं! तुझं सक्को देवराया गुणकित्तणं करेइ तं असद्दहंता वयमागया परिक्खनिमित्तं, तं सच्चं भणियं मघवता. वरेह वरं, किं पयच्छामो ? त्ति । तेण भणिया-जो परमदुल्लहो मग्गो जिणपण्णत्तो मोक्खस्स य सो मया लद्धो. न मे केण वि पओयणं ति । ततो वंदिऊण देवा गया। 15 इयरो वि नंदिसेणो लाभंतरायखओवसमेणं वेयावचं करेमाणो जो जं साहू ( जो साहू जं) इच्छइ तस्स तं लभ्रूण देह । एवं तस्स संजम-तव-भावणाए गयाणि पणपण्णं वाससहस्साणि सामण्णमणुपालेमाणस्स । सुभग-सुस्सर-सुभा-ऽऽदेय-जसनामकम्मोवचिओ भत्तपरिण्णाकाले चिंतेइ-'अहं तिहि वि दारिगाहिं दोहग्गदोसेण न इच्छिओत्ति सुमरि ऊण नियाणं करेइ-'जइ अत्थि इमस्स तव-नियम-बंभचेरवासस्स फलं ततो आगमिस्से 20 मणुस्सभवे रुवस्सी इत्थीजणवल्लहो य होमि'त्ति वुत्तूणं कालगतो महासुक्के कप्पे इंदसामाणो देवो जातो । ततो चुओ तुब्भं पुत्तो जातो दसमो त्ति ॥ एवं सोऊण संसारगतिं राया अंधगण्ही जेट्टपुत्ते संकामिय रायलच्छिं पवइओ, विसुज्झमाणचारित्तो अपरिवडितवेरग्गो खांवेयघाँइकम्मो समुप्पण्णकेवलनाणविधुतरय मलो परिनिव्वुओ ॥ 25 ततो अहं अट्ठवासो जातो कलायरियस्स उवणीओ, विसिट्ठमेहा-मतिगुणेण य तोसेमि गुरवो । रसवाणियगेण य मे दारगो उवणीओ 'कुमार! एस कंसो सेवउ तुन्भे'त्ति । मया पडिवन्नो सह मया कलासंगहं करेइ । जरासंधेण य दूओ पेसिओ अम्हं गुरुणो जेहस्स-सीहपुराहिवं सीहरहं जइ गेण्हसि तो ते जीवजसं दुहियं नगरं च पहाणं पयच्छामि त्ति । तं च पवत्तिं सोऊण मया कंस30 सहिएण राया विण्णविओ-देव ! विसज्जेह मं, सीहरहं बंधिऊण उवणेमि तुभं ति । रण्णा १°भागो त्ति शां० विना ॥ २ °णुणएण उ २ विना ॥ ३ ता इहमाग शां० विना॥ ४ ०णो जं क ३ गो ३ ॥ ५ गय रा° शां० ० विना ॥ ६ °वायक' उ २ ॥ ७ °सजा शा०॥ ८ °हियमईव पहा ली ३ ॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवस्स गिहचाओ] पढमो सामाविजयालंभो । भणियं-कुमार ! अदिवसंजओ सि, अलं ते गएणं । निच्छए कए विसजिओ मि बहुपरिवारो। सीहरहेण वि अम्हं आगमणं सोऊण मेलावियं नियगबलं । संपलग्गे य जुज्झे वारेंति ममं रायसंदिहा महत्तरा । सीहरहो सीहो विव गयजूहं विगाहमाणो मदीयं बलं विक्खोभेइ । तदवत्थं च सीयमाण नियगवाहिणिं दह्रण कंससारहिपरिग्गहिओ रहो मया सीहरहाभिमुहो पयट्टिओ । जुज्झेउं पयत्तो मि सह तेणं । सो य 5 कयकरणो विसेसिओ मया लहुहत्थयाए । विद्धा य से तुरगा ससारहिया । कंसेण य से फलिहप्पहारेण रहधुरातुंडं भग्गं । सो य उक्खि विऊण णियगरहमाणीओ । ततो भग्गं से बलं । लद्धजओ य तं घेत्तूण कमेण सपुरमागतो मि । पूइओ रण्णा तुटेणं, कहेइ य मे विरहिए-कुमार! सुणाहि-कोहकिनेमित्ती पुच्छिओ जीवजसाकुमारीए लक्खणविणिच्छयं. तेग में कहियं-सा उभयकुलविणासिणी, तो अलं ते कुमारीए त्ति । मया विण्ण-10 विओ-कंसेण देव ! सीहरहो गहेऊण मम उवणीओ, तं कहं तस्स पुरिसयारो नासिजइ ? । ततो राइणा भणियं-जइ वि एवं, कहं रायसुया वाणियगदारगस्स दिजिहिति । 'एयस्स य परक्कमो खत्तियस्सेव दीसइ, ता भवियवं एत्थ कारणेणं ति सद्दाविओ रसवाणियओ-कहेहि दारय उत्पत्ती । ततो पणओ विण्णवेइ–सामि! एस मया बुझंतो जउजाए कंसमंजूसगतो दिट्ठो, एसा य मुद्दा उग्गसेणणामंकिया, एत्थ सामिणो पमाणं । ततो 15 कुलगरेहिं वियारेऊण नीओ रायगिहं । जरासंधस्स य मया कंसपरक्कमो कहिओ। 'एस उग्गसेणरायसुओं' त्ति सपच्चए कहिए तुट्टेण दिण्णा जीवजसा कुमारी । सोऊण 'उझिओ अहं जायमेत्तो' त्ति रूसिउंवरेइ वरं महुरानयरिं । पओसेग य तेण पियरं बंधेऊण रज पसासति । वसुदेवस्स गिहच्चाओ 20 अहमवि जोबणस्स उदये नवनवेहिं तुरग-झय-णेवत्थेहिं विसामि निजामि उजाणसिरिमणुभविऊण नागरजणेण विम्हयवियसियणयणेण पसंसिज्जमाणो रूवमोहियजुवइयणदिहिपहकराणुबज्झमाणो । अण्णता य मं जेठो गुरू सदावेऊणं भणइ-मा कुमार ! दिवसं भमाहि बाहिरओ, धूसरमुहच्छायो दीससि, अच्छसु गिहे. मा ते कलाओ अहुणागहियाओ सिढिलियाओ 25 होहिं ति । ततो मया ‘एवं करिस्सं ति पडिस्सुयं । कयाइं च रण्णो धाईए य भगिणी खुजा गंधाहिगारणिउत्ता वण्णगं पीसंती मया पुच्छिया-कस्स इमं विलेवणं सजिजइ ? त्ति । सा भणइ-रणो । मया भणियं-अम्हं किं न होइ ? त्ति । सा भणइ-कयावराहस्स राया तुम्भं ण देइ विसिह पि वत्थमाभरणं विलेवणं व त्ति । गहिओ से बला वण्णओ वारंतीए । सा रुट्ठा भणइ-एएहिं चेव 30 १ म्हागम° उ २ विना ॥ २ ह िनिमित्तं पु० शां० विना ॥ ३ °ण तो पिय° शां० ॥ ४ से विले.. वणी वारं० ली ३॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० वसुदेवहिंडीए [ वसुदेवस्स गिहचाओ आयारेहिं रुद्धो, तहावि न विरमसि अविणयाओ। मया पुच्छिया-साह, केण अवराहेण रुद्धो मि ? । सी न साहइ 'रण्णो वीहेमि' त्ति । अंगुलियगदाणे]णं अब्भत्थियाऽणुगमिया साहइ-राया विरहे णेगमेहिं विण्णविओ-देव! सुणह, कुमारो सारयचंदो विव जणणयणसुहओ सुद्धचारित्तो जाए जाए दिसाए निजाइ ततो ततो तरुणिवग्गो तेण समं 5 तकम्मो भमति. जा य तरुणीओ ताओ वायायण-गवक्खजालंतर-दुवारदेसेसु 'नियत्तमाणं पस्सिस्सामो' त्ति पोत्थकम्मजक्खीओ विव दिवसं गति. सिमिणायंतीओ वि भणंति'एस वसुदेवो, इमो वि वसुदेवो' त्ति. जातो पत्त-साग-फलाणि गेहंति ताओ भणंति 'कइ वसुदेवो देसि ?' ति. दारगरूवाणि कंदमाणाणि वि कुमारदिण्णदिट्ठीओ विवज्जत्थं गेण्हंति-'बुट्टे (छुट्टो) वच्छो' त्ति दामेहिं बंधति. एवं देव ! उम्मत्तओ जणो जातो घरकजमुक्क10 वावारो देवा-ऽतिहिपूयासु मंदायरो, तं कुणह पसायं, मा अभिक्खं णीउ उज्जाणाणि त्ति। रण्णा भणिया-वञ्चह वीसत्था, णिवारेमि णं ति । भणिओ य जो तत्थाऽऽसि परियणो, जहा–कोइ कुमारस्स न कहेइ एयं परमत्थं । तं निहुओ होहि त्ति, ततो रण्णो उवालंभो न भविस्सइ । मया भणिया–एवं करिस्सं ति । चिंतियं च मे पुणो–'अहं जइ पमाएण णिग्गतो होतो तो मि बंधं पावेतो. अहवा 15 एस बंधो चेव, तण्ण मे सेयं इहमच्छिउं' ति संपहारेऊण सर-वण्णभेयगुलियाओ काऊण वल्लहेण दारगेण सह निग्गतो संझाकाले नयरबाहिं । सुसाणासण्णं च अणाहमयगं दळूण भणिओ मया वल्लहओ-गेण्हसु दारुगाणि, सरीरपरिचायं करिस्सं । तेण आणावियाणि कहाणि, रइया चिया, भणिओ य वल्लहओ-वच्च सिग्धं, रयणकरंडगं मम सयणिज्जाओ आणेहिं. दाणं दाऊण आग्गिं पविसिस्सं । सो भणइ--जइ एस निच्छओ भे तो देव! अहं 20पि अणुपविसिस्सं । मया भणिओ-जं ते रोयइ तं करिस्ससि, मा य रहस्सं भिंदसु, सिग्धं च एहि त्ति । सो गतो 'जहा आणवेह' त्ति वोत्तूण । मया वि अणाहमयगं पक्खिविऊण आदीविया चियगा, सुसाणोज्झियमलत्तगं गहेऊण खमावणलेहो लिहिओ गुरूणं देवीण य'सुद्धसहावो होऊण णागरेहिं मइलिओ' त्ति निवेदणं काऊण 'वसुदेवो अग्गि अइगतो'। मसाणखंभे पत्तं बंधिऊण दुयमवकतो, उम्मग्गेण य दूरं गंतूण वेगेण मग्गमोइण्णो। 25 जाणेण य एगा तरुणजुवई ससुरकुलाओ कुलघरं निजइ, सा ममं दण बुड्ढे वितिज्जियं भणइ-अम्मो! एस माहणदारगो परमसुकुमारो परिस्संतो आरुभउ जाणं. अम्हं गिहे वीसत्थो अन्ज सुहं जाहिइ त्ति । भणिओ य मि वुद्धाए-आरुहह सामि! जाणं, परिस्संत स्थ । मया चिंतियं-'जाणहितो पच्छण्णं गमिस्संति-आरूढो मि । पत्ता सुगामं सूर-- स्थमणवेलाए । तत्थ मज्जिय-जिमिओ अच्छामि । तस्स य गिहस्स नाइदूरे जक्खाययणं, तत्थ 30 लोगो संठिओ । आगया य नयराओ पुरिसा, ते कहंति-सुणह जमज्ज वत्तं नयरे-वसुदेवो कुमारो अग्गि पविट्ठो. तस्स वल्लभगो नाम चेडो वल्लभगो. सो किर चितं जलंति १ सा भणइ-रण्णो शां० ॥ २ °रुणा जु° क ३ गो ३ शां० । 'रुणी जु° उ० मे० ॥ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाविजयापरिचओ] पढमो सामाविजयालंभो । दट्ठण अक्कंदमाणो पुच्छिओ जणेण भणइ-वसुदेवो कुमारो अग्गिमइगओ जणवायभीओ. तस्स य वयणं सुणमाणो समंतओ जणो कंदिउमारद्धो. 'तं च रुण्णसई सोऊण रायाणो व वि भायरो निग्गया. दिहं च णेहिं कुमारस्स हत्थलिहियं खमावणपत्तं. तं च वाएऊणं रूवंता घय-महुणा परिसिंचित्ता चितं, चंदणा-ऽगुरु-देवदारुकतुहिं छाएऊणं पुणो पज्जालिउ कयपेयकज्जा सगिहमणुपविह त्ति । तं च मे सोऊण चिंता समुप्पण्णा-गूढो संधी, निवि-5 संका मे गुरवो 'मओ' त्ति परिमग्गणायरं न काहिंति. ततो सच्छंदं निविग्धं जायं वियरियवं ति। रत्तिमतिवाहयित्ता अवरेण पट्ठिओ, कमेण पत्तो विजयखेडं नयरं । नातिदूरे य नयरस्स समासण्णे एगम्मि पायवे दुवे पुरिसा चिट्ठति, ते मं भणंति-सामि ! वीसमह त्ति । अहं संठिओ। ते पुच्छंति-के तुब्भे ? कओ वा एह ? । मया भणिया-अहं माहणो गोयमो, कुसगपुराओ विजागमं काउं निग्गओ. तुब्भे पुण किंनिमित्तं पुच्छह ?। ते भगंति-सुणह- 10 सामा-विजयापरिचओ इह राइणो जियसत्तुस्स दुवे धूयाओ-सामा विजया य, रूवस्सिणीओ गंधवे नट्टे य परिणिहियाओ विदिण्णसयंवराओ. तासिं पइण्णा-जो णे आगमेण विसेसिज्जा सो णे भत्त त्ति. तओ रण्णा चउसु वि दिसासु मणुस्सा संदिट्ठा-जो जुवाणो रूवस्सी सविज्जो माहणो खत्तिओ (ग्रन्थानम्-३३००)वा सो भे आणेयबो त्ति. तं अम्हे रायनिओएण इह 15 अच्छामो. तुझं पुण जइ अस्थि समो गंधवे पट्टे वा ततो णे सफलो परिस्समो होज्जा । मया भणिया-अवस्सं समयमित्तं जाणिस्साम । ततो तेहिं तुढेहिं नीओ मि नयरं, दंसिओ रण्णो । तेण वि परिओसपुण्णहियएण पूइओ मि। पत्ते य अणि(णु)ओगदिवसे दिट्ठाओ मया कण्णगाओ सामा-विजयाओ मिउ-सुहुम-कसिण-निद्धसिरयाओ, सरसतोयरुहरमणिजमुहीओ, विच्छिण्णणयणजुयलाओ, णातितुंगसंगय-20 जासावंसाओ, पवालदलदालिमप्पसूयसण्णिहोहीओ, कोमल-तणुक-णमिरबाहियाओ, सुकुमाल-सतंबकरजुयलाओ, निरंतरूसिय-पीण-पिंजरपओहराओ, कालसुत्तसरिसरोमराइरंजियकरसंगिज्झमझाओ, पिहुलसोणिमंडलाओ, गयकलभनासाकारसुकुमारोरूओ, गोपुच्छसंठियगूढसिररोमजंघाओ, सूरमिरीइपरिलीढकमलकोमलचलणकमलाओ, कलहसललिअगमणाओ, फलरसपुट्ठपरपुट्ठमहुरभासिणीओ । ताओ य मया गंधव-नट्टसमयनिउणाओ 25 वि नट्टे गीए अ विसेसिआओ। ततो तुढेण रण्णा सोहणे दिणे तासिं पाणिं गाहिओ मि विहिणा, अद्धं च रजस्स निसिहँ । ततो अहं ताहिं सहिओ वणगओ विव कणेरूहिं सच्छंद विहरामि । परिचयं च कुणमाणं संगामिआसु विजासु भणंति मं-अजउत्त! जइ तुब्भे माहणा कीस संगामिआओ भे कलाओ गहिआओ ? । मया भणिया-सवे वि आगमा बुद्धिमओ न विरुद्धा । रूढपणयाण य तासिं 'अरहस्संति छलनिग्गमो कहिओ । तओ 30 तुट्ठीय वसंतमासचूअलयाओ विव अहिअंसोहिआओ। कमेण य विजया आवन्नसत्ता जाया, १ तओ रुण्ण शां० विना ॥ २ मारसयंब शां. विना ॥ ३ रम्गगि शां०॥ ब० हिं० १६ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ वसुदेवहिंडीए [सामलीअविमाणितडोहला काले पसूआ कुमारं । तस्स कयजायकम्मस्स कयं नाम 'अकूरो'त्ति । ___ तत्थ य मे वसंतस्स समतिकंतं वरिसं । समतिच्छिों उजाणं च निगच्छमाणो ममं देसिको पुरिसो दट्टण बितिअस्स साहति-अहो अच्छरियं ! ! ! एरिसी नाम सारिक्खया भवति । तेण भणिओ-कस्स ? ति । सो भणइ-वसुदेवस्स कुमारस्स ति । तं च 5 सोऊण मे चिंता जाया-न मे सोभइ इहं अच्छिउं, अवकमामो त्ति । ॥इति श्री(सिरि)संघदासगणिविरचिते(रइए) वसुदेवहिंडौ(डीए) सामा-विजयालंभो पढमो सम्मत्तो॥ सामा० प्र०-२३६-२४. सर्वग्रं०-३३२३-१. बीओ सामलीलंभो 10 ततो अहं ताओ वीसंभेऊण एगागी निग्गओ, मग्गं मोत्तूण दूरमइवइओ उत्तरदिसिं। हिमवंतपवयं पस्समाणो य पुबदेसं गंतुमणो कुंजरावत्तं अडविं पविहो। महंतमद्धा. णमइवाहेऊण परिस्संतो तिसिओ य एगं सरं पत्तो विगयपंक पंकयसंछण्णतोयं वारिचरविहगमणहरभणियं । चिंतियं मया-अहं परिस्संतो जइ तण्हावसेण उदगं पाहामि तो मे अपरिडिओ मारुओ सरीरे दोसं उप्पाएजा. वीसमामि ताव मुहुत्तं, सिणाओ पाणियं पाहिं(हं) 15 ति । एयम्मि अंतरे हथिजूहं कालमेहवंद्रमिव पाणियं पाउकामं सरमवइण्णं, कमेण पीओदगं उत्तिण्णं । अहमवि मजिउं पवत्तो । जूहवई य कणेरुपहिओ ईसिंमदजलदीसमाणसुरभिकपोलदेसो सरमवइण्णो । निव्वण्णिओ य मया उत्तमभद्दलक्खणोववेओ । सो गंधहत्थी गंधमणुसरंतो ममं अणुवइउमारद्धो । चिंतिअं च मे-जलेण तीरिहिति गओ जोहेर. एस उत्तमो आसण्णे पत्तो विहेओ होहिति । तओ उत्तिण्णो मि । सो वि मे 20 पच्छओ लग्गो । मया य करमग्गं वंचेऊणं गत्ते अफालिओ, सिग्घयाए य णं वंचामि । सो मं सुकुमालयाए कायगरुयाए य ण संचाएइ गहेउं । तहिं तहिं चेव मया छगलो विव भामिओ । परिस्संतं च जाणिऊण उत्तरीयं से पुरओ खित्तं, तम्मि निसण्णो । अहमवि अभीओ महागयस्स दंते पायं काऊण आरूढो तुरियं । पत्तासणस्स य सुसीसो इव विधेओ जाओ, उत्तरीयं च गिण्हाविओ, वाहेमि णं जहिच्छं ति । गहिओ य मि आका25 सत्थिएहिं दोहिं वि पुरिसेहिं बाहासु समगं उक्खित्तो, णिति णं गगणपहेण कहिं पि । चिंतियं च मया-एए ममाओ किं मण्णे अहिया ऊण ? त्ति । दिट्ठा य दिहि साहरंति, ततो 'ऊण' तिं मे ठियं। सदयं च वटुंति 'साणुकंपत्ति संभाविया। उप्पण्णा मे बुद्धी-जइ मंगुलं काहिंति तो णे विवाडिस्सं, अलं चावल्लेण । आरुहिओ मि तेहिं पवयं, उजाणे णिक्खित्तो, पणया य नामाणि साधेऊण-पवणवेग-ऽच्चिमालिणो अम्हे त्ति । तओ दतमवक्ता। १०णं ममं गच्छमाणं समं देसि ली ३ क ३ गो ३ उ.1 °णविनिगच्छमाणं ममं भे०॥ २ सामाविजयालंभो सम्मत्तो इत्येतावन्मात्रैव पुष्पिका शां० ।। ३ °कं विकसियपंक मे०॥ ४ ट्ठिए मारुए सरी शां०॥ ५ सो हत्थी शां० ।। ६ तहाग° शां०॥ ७°त्ति निच्छियं । स ली ३॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिचओ] बीओ सामलीलंभो। १२३ सामलीपरिचओ मुहुत्तंतरेण य इत्थिगा मज्झिमे वए पवत्तमाणी सित-सुहुमदुगुल्लपरिधाणुत्तरीया आगया, पणया य नाम साहिऊण-अहं मत्तकोकिला रणो असणिवेगस्स दुहियाए सामलियाए विज्जाहरकण्णाए बाहिरिया पडिहारी. सुणह देव!-राइणो संदेसेणं सचिवेहिं पवणवेग-ऽच्चिमालीहिं आणित त्थ. रण्णो दुहिया सामली नाम माहवमाससंझाकुवलय-5 सामा, लक्खणपाढगपसंसियसुपइट्टियसभावरत्ततला, तलाऽणुपुत्ववैट्टियंगुलीतंबनहपायजुयला, दुधिभावणीय-पिंडिय-वट्ट-सुकुमाल-गूढरोमजंघा, पीणसनाहितकतलीखंभसन्निभोरू, पीवर-थिरनितंबदेसपिहुलसोणी, दाहिणावत्तनाही, मंडलग्गयतणु-कसिणरोमराईपरिमंडियकरमितमज्झा, पीणुण्णयहारहसिरहितयहरसंहितपओहरा, गूढसंधिदेससण्णिभूसणमाणसंगयबाहुलतिका, चामर-मीणा-ऽऽयपत्तसुविभत्तपाणिलेहा, रयणावलिसमुचितकंबुकंधरा,पयो- 10 . धरपडलविणिग्गयपुण्णचंदसोमवंदणचंदा, रत्तंतधवलकसिणमज्झनयणा, बिंबफलोवमरमणिजाऽधररूवगा, कुंडलोवभोगजोगसंगयसवणा, उण्णयपसत्थनासावंसा, संवणमणसुभगमहुरभणिया, परिजणनयणभमरपिज्जमाणलायण्णरस त्ति. तुम्हं राया दाउकामो, मा सुगा होह। तत्थ य वावी आसण्णा, खारका य आकासेणं तं वाविं उयरंति । मया चिंतियं-किं मण्णे सिरीसिवा विजाहरी होजा, जओ इमा खारका आकासेणं वच्चंति । मत्तकोकिला 15 य मम आकूयं जाणिऊण भणइ-देव! न एस खारका विजाहरी. सुणध कारणं-एसा वावी झरिम-मिट्ठ-पत्थपाणिया 'मा चउप्पयगम्मा होहिति' त्ति फलिहसोमाणा कया. जइ य पाणियं पाउं अहिलसह तो उयारेमि ते । मया 'आमंति भणियं । ततो हं तीए समगं तं सोमाणवीहिं उइण्णो वाविं । पीयं मया पियवयणामयमिव मधुरं गुरुवयणमिव पत्थं तिसिएणं पाणियं । उत्तिण्णो मि । आगओ परियणो रायसंदेसेणं ण्हाणविहि-वत्था-ऽऽभ-20 रणाणि य गहेऊणं । णयरदुवारे य कलहंसी नाम अब्भंतरपडिहारी, तीए एहविओ सपरियणाए, अलंकिओ पविट्ठो नयरं जणेण य पसंसिजमाणो । दिट्ठो मया राया असणिवेगो, फओ य से पणिवाओ। तेणं अब्भुढेऊणं 'सुसागय'ति भणंतेणं अद्धासणे निवेसाविओ । सोहणे मुहुत्ते दिहा मया सामली रायकण्णा जहाकहिया मत्तकोकिलाए । तीए वि तुट्टेण राइणा पाणिं गाहिओ विहीए, पविट्ठो गन्भागारं। वत्तेसु य कोउगेसु विरहे मं सामली विष्णवेइ-अजउत्त ! विण्णवेमि, देहि मे वरं । मया भणिया-पिये! विण्णवेयवा, जं तुमं विण्णवेसि सो ममं पसाओ । सा भणइअविप्पओगं तुम्भेहिं समं इच्छामि त्ति । मया भणिया-एस मज्झं वरो न तुझं ति । सा भणइ-कारणं सुणह 25 १ यमालसामा शां०॥२ वढियं गो ३॥ ३°समाहिली ३॥४°यहारहरिसिरहितयहरिसितपओ शां०। यतिसरइहारसहितपओ० उ०॥ ५ देसामणिभूली ३॥६वयणयंदा शा०॥ ७ सउणगणसुशा० विना ॥८त्ति शां० विना ॥ ९भचासपणे ली ३ ॥ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ वसुदेवहिंडीए [ अंगारकपरिचओ अंगारकपरिचओ ___ इहं वेयड्दपव्वयस्स दाहिणल्लाए सेढीए नयरं किण्णरगीयं नाम, तत्थ राया अच्चिमाली विव पावगो तेयस्सी अच्चिमाली णाम, तस्स देवी पभावती नामं, तीए दुवे पुत्ता जलणवेगो असणिवेगो य । जलणवेगस्स विमलाभा नाम महादेवी, तीए अंगारको 5 कुमारो । असणिवेगस्स सुप्पभा देवी, तीए अहं दुहिया । कयाइं च अच्चिमाली राया सह देवीए वेयडसिहरितले विहरिऊण नियगपुरुजाणे उवइओ, एगपएसे सुहासीणो मिहो कहाहिं अच्छति । नाइदूरे य से हरिणो ठितो अच्छति । रण्णा सायगो खित्तो मिगस्स, पडिनियत्तो य, न य चलिओ मिओ । ततो अमरिसेणं बितियं संधेमाणो अदि. हाए देवयाए बोहिओ अचिमाली-नंद-सुनंदा भयवंतो चारणा एत्थ पसत्थज्झाणो10 वगया लयाघरे चिट्ठति, तेसिं आसण्णो तुमे मिओ तक्किओ. रिद्धिमंतो अणगारा जंतुसयं रक्खंति. तत्थगए य जो सत्ते विवाडेज्जा तस्स जइ कुप्पंति णे य णं देवा वि परित्तायंति. जाहि, खामेहि चारणे, मा विणस्सिहिसि-त्ति भणिओ भीओ गओ चारणसमीवं । वंदिऊण भणइ–भयवं! मरिसेह, मया मिओ तुब्भं पायसमीवं ठिओ विवाडेउं तकिओ। तओ गंदेण साहुणा भणिओ-राय! कीलमाणा पाणिणो अट्ठाए अणट्ठाए य पाणिवहं 15 काऊण अहरगइं गया बहुं कालं विवसा दुक्खसहस्साणि पावंति, तं विरमह पाणिवहाओ. विगयवेरो भविस्ससि. अवराही(हि)जीवं जो वहिज सो वि ताव पावसंचयफलं भवसपहिं न नित्थरइ, किं पुण जो अणवरद्धकुद्घघायगो ? । ततो सो एवंविहोपदेससंजणिअवेरग्गो जेसुयस्स जलणवेगस्स पण्णत्तिं रजं च दाऊण पवइओ संविग्गो विहरति । घहुणा य कालेण विहरता पुणो वि भयवंतो णंद-सुणंदा किन्नरगीयमुवगया। जलण20 वेगो निग्गओ वंदिउं । तओ चारणेहिं अणुसट्ठो अणिच्चयं विभूति उवदंसंतेहिं, निधिण्णकामभोगो य डहरगं च भाउयं सद्दावेऊण भणति-अहं विरागमग्गमोइण्णो पवइउकामो, तुमं पण्णत्तिं रज्जं वा वरेहि त्ति । ततो णेण भणियं-कुमारो बालो, न जुत्तं ममं वरग्गहं गहेडं. सो ताव गिण्हउ जं से अहिप्पेयं । सो सहाविओ, पुच्छिओ य भणइ-जं अम्मा निदिसिहित्ति तं गिहिस्सं । तीए भणिओ-पण्णत्तिं 'गिहिजाहि, जो विजाहिको सो 25 रजसामी । तेण माउउवएसेण पण्णत्ती गहिया । असणिवेगो राया जातो । विमलामा य जहा पुरा पगतीओ करं गिण्हति । ततो रायाणमुवट्ठियाओ-देव! अम्हे सुप्पभाए देवीए संपदं उवायं करेमु, विमलामा वि मग्गइ करं, दो पुण अप्पत्ता अम्हं संदिसह त्ति । सा सद्दाविया-(प्रन्थानम्-३४००)मा पगतीओ बासु त्ति । भणइ-अहं पुत्तमाया भरि हामि उवायस त्ति । वारिजमाणी पीलेइ, पुत्तं च से दीवेइ । सो बलकारेणं से 30 रोचइ तं भुजइ । एवं विरोधे वड्डमाणे विजाबलेण असणिवेगं मम पियरं पराजेऊण णिवत्तो। कयाभिसेओ ममं सहावेऊण भणति-सामलि ! अच्छसु तुमं वीसत्था, भाउगसिरि १य सिहरिणो ठतो मिगो अच्छ° शां० विना ॥ २ ण तं देशां०॥ ३ द्धो घा° शां० मे० विना ॥ ४ गेण्ह, जो शां०॥ ५ हितो सोशाक मे० विना ॥ ६ भयेप्प शां० मे.॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगारएण क्सुदेवस्स संहरणं] बीओ सामलीलभो । अणुभवाहि, न ते किंचि परिहाहिति । मया भणियं-देव! पावासंकीणि बंधुहिययाणितुम्हे त्थ मया संगामाओ पडिनियत्ता अक्खयसरीरा दिहा. तुम्हेहिं विसज्जिया तातं पस्सेज ति । अंगारओ भणति-वच्चसु, जदा रोयति तदा एजासि । सपरिजणा य म्हि अट्ठावयपवयसंनिविट्ठ तातं मिलिया । कतिवासरेण य जिणायतणे अंगीरसो नाम चारणो वंदिऊण तातेण पुच्छिओ-भयवं! अत्थि मे पुणो रजसिरी होजा? संजमं वा अणुपाले-5ऊणं जोग्गो होजामि ? त्ति । एवं पुच्छिएण चारणेण भणिओ राया-अच्चिमाली रायरिसी मम धम्मभाया ततो ते कहेमि-न ताव ते पबजाकालो, रज्जं पुण ते होहिति । रण्णा पुच्छिओ-भयवं! कहं होहिति रजसंपय ? ति । साहुणा अहं दंसिया-एतीए सामलीए कण्णाए जो भत्ता तओ ते पुणो रायसिरी होहिति, सो अद्धभरहाहिवपिया । पुणो राया पुच्छति-भयवं! कहं सो मया वियाणियो ? । साहुणा भणिओ-जो कुंज-10 रावत्ताडवीए सरसमीवे सह वणगएण जुज्झिहिति सो जाणियबो । तं च वंदिऊण कुंज. रावत्ते ठिया मु । पइदिवसं च दुवे दुवे पुरिसा तम्मि पदेसे संचरंति रायसंदेसेणं । तहिं च भे दिहा जहादिट्ठा साहुणा, आणीया य । एसो य आएसो अंगारगस्स मम भाउगस्स कण्णपहमागतो । ततो सो पदुट्ठो तुम्हे पमत्ते विवाडेज । अम्हं च विजाहराणं समओ नागराइणा ठविओ-जो किर अणगारसमीचे जिणघरे भज्जासहियं वा सुत्तं विवा-15 डेजा सो भहविज्जो होहिति । एएणं कारणेणं विण्णवेमि ‘मया सहिए तुम्भे सो न लंघेई'। .. मया य भणिया-अंगारको न किंचि मम करेइ, वायाए बाहेज. जं पुण तुन्भं रोयह तं मया कायचं ति । एवं तीए सहिअस्स मे सुरपइणो विव इच्छियविसयसुहनंदणोवगयस्स वच्चइ कालो । गंधवं च सविसेसं सिक्खिओ मि सामलियाए अहं, दुवे विजाओं सिक्खाविओ, बंधणविमोक्खणि पत्तलहुइयं च ।ताओ य मए दुवे वि सरवणे साहिआओ । 20 वीसत्यो होमि हितगारिणीए सामलीए सह पसुत्तो हीरमाणो विबुद्धो, पस्सामि य : पुरिसं, सामलिमुहाकारसारिक्खयाए य तकिओ मया 'अंगारको होज'त्ति । तओ मया चिंतियं-जो सत्तुं विवाडेइ सो उत्तमो, जो तेण सह विवजइ सो मझिमो, जो सत्तुणा विवाडिजइ सो अधमो; तं ताव मज्झिमो होमि, सह णेण विवजामि. मा य ऊणो-त्ति पहरिउमणो अभियगत्तो अहं न संचाएमि। चिहिउँ भणइ में अंगारगो-कुमार ! भुयंममं 25 को अविज्जो गेण्हेइ ? , थंभिओ सि मय त्ति । एयम्मि देसकाले सामली उवागया भणति-देव! नारिहसि मे भत्तार विणासेड, तुम्हं एस पुजो त्ति । हुंकारेण निब्भच्छिया पुणो अणुणेइ-मुयह मे भत्तारं, जइ न मुयह अहं सयणधम्म छडेमि । ततो रहेण अहं पविद्धो पडिओ मि पलालपरिपूरिए जिण्णवे, पस्सामि जुज्झमाणाणि भाउभंडाणि । तओ असिणा सामली दुवे खंडाणि कया अंगार-30 १ अंगरिसी नाम शां० विना ॥ २ °ए य चा शां० विना ॥ ३ माया कसं० संसं० उ० ॥ ४ लियं भ. शां० विना॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [वसुदेवस्स गंधवएण । मया चिंतियं-अइनिग्धिणो भगिणीघायगो त्ति । तओ दुवे सामलीओ जायाओ। तीय वि आहतो खग्गेण, सो वि दुवे अंगारगा जाया । मया चिंतियं-माया एसा एएसिं, न विणट्ठा सामलि त्ति । गयाणि य अदरिसणं जुज्झमाणाणि । अहं पि दवओ निसणं भावूसियं काउस्सगं ठिओ निरुवसग्गनिमित्तं । ततो विजादेवया हसिऊण अदरि5 सणं गया। अहमवि जालंतरगयं दीवुज्जोवं पासमाणो चिंतेमि-एस वग्यो त्ति । ततो मे पुणो चिंतियं-जइ एस वग्यो होतो तो पडियं ममं लंघेतो, न एस वग्यो त्ति. निस्संसयं नाइदूरे पासाएण होयचं ति, जओ एस दीवुजोतो निब्बुडिउ त्ति । पभाए उत्तिण्णो मि त्ति ॥ ॥ इति संघदासगणिविरंइए सामलिलंभो 'बिइओ॥ सामलीलंभग्रं०-११८-४. सर्वग्रं०-३४४१-५. 10 तइओ गंधव्वदत्तालंभो उत्तिण्णो मि कूवाओ, दिट्ठो मया मणुस्सो मज्झिमे वयसि वट्टमाणो, सो मे पुच्छिओसोम ! किनामो जणवओ ? नयरं वा इहं किं नामधेयं ?। सो भणइ-भद्दमुह ! कमेण जणो जणवयाओ जणवयं संकमइ, तुमं पुण किं आगासाओ पडिओ ? जओ पुच्छसि जणवयं नयरं च त्ति । मया भणिओ-सुणाहि, अहं मागहो गोयमसगोत्तो खंदिलो नाम माहणो. 15जक्खिणीहिं समं मे पणओ, ततो एगाए निजमाणो इच्छियं पएसं बिइयाएँ ईसायमा जीए अणुपइऊण सा गहिया. तासि कलहंतीणं अहं पडिओ, तेण ण जाणामि भूमीपएसं । सो भणइ ममं अवलोएऊण-होज, न अच्छरियं, जं तुमं जक्खिणीओ कामेंति त्ति । तेण मे कहिओ-अंगा जणवओ, चंपा नयरी । ततो दिहं मया आययणं, तत्थ भयवओवासुपुज्जरस अरहओ पयकिति पायपीढे नामंकियं परसामि । तं च बहुमाणप20णओ पञ्चक्खमिव तित्थयरं वंदिऊण कयत्थमिव अप्पाणं मण्णामि ।। निग्गओ य म्हि आययणाओ । पस्सामि य वीणाहत्थगय तरुणजणं किंचि सपरिवार, वीणासगडं च बहुजणपरिवारियं विक्कयनिमित्तं । ततो मे पुच्छिओ एको मणुस्सो-किं एस विसयायारो ? उदाहु कारणं ? जेण वीणासवावारो दीसति लोगो । सो भणइ-इहं चारु दत्तसिट्ठिणो धूया गंधव्वदत्ता परमख्ववती गंधव्ववेदपारंगया. सो य इब्भो बेसमणस25 माणो. तं तीसे रूवमोहिया माहण-खत्तिय-बइसा गंधव्वे रत्ता. तं च जो जिणइ सिक्खिउं तस्स भजा होहिति पुण्णभागिणो. मासे मासे गए य अणुओगं देइ विउसाणं पुरओ. कल्लं च समुदओ आसी, पुणो मासेण भविस्सइ ति । मया चिंतियं-बहुदिवसा गमेयव्वा, पुच्छामि ताव णं-भो! अत्थि इहं उवज्झाया गंधव्वपारगा? । सो भणइ--- अत्थि, तेसिं पुण पहाणो सुग्गीवो जयग्गीवो य । १ वुस्सि ली ३ ॥ २ रचिते सा क ३ गो ३ ली ३ मे । रचिते वसुदेवहिंडौ सा° उ०॥ ३ बीओ सम्मत्तो उ०॥ ४०ए संविइयाए ई उ २ विना॥ ५०णिए शां० विना ॥ ६ पइकि° शां०॥ ७ तं हिययबहु° ली ३ ॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sभासकीडा ] तइओ गंधवदत्तालंभो । १२७ I ततो मे बुद्धी जाया - तेसिं गिहे अविरुद्धा दिवसा गमेमि । आभरणाणि पच्छण्णे भूमिभाए णिहिएऊणं अइगओ मि नयरं । पत्तो उवज्झायगिहं मुक्खत्तं विलवंतो । कयपणिवाओ भणिओ तेण 'सागयं' ति, पुच्छिओ य - कओ एसि ? किंनिमित्तं वा इहागओ सि ? त्ति । कहियं च से मया - णामं खंदिलो त्ति, गोयमो पुण गोत्तेणं, गंधव्वं सिक्खेज्जा । तेण 'जड्डो' त्ति अवण्णा कया । मया माहणीए कडयं दिनं पहाणरयणदीवियं । सा तं 5 दहूण भइ - पुत्त ! चितिं करेहि, अक्खाहिं अ जं ते अभिप्पेअं भोयण- ऽच्छायण-सयसु, न काइ चिंता । तेण कहिअं । भणिओ अणाए सुग्गीवो - सामि ! सिक्खा - वेहि खंदिलं, मा अच्छउ रिक्को । सो भणइ - एस जड्डो, किं एस सिक्खिहि ? त्ति । तीए भणियं - मेहावीहिं न मे पओअणं, एयस्स करेहिं पयत्तं - ति कडगं से दंसेइ । ततो पडवन्नो, तुंबुरु- नारयाणं कया पूया । ततो अप्पिया मे वीण चंदणकोणं च, भणिओ 10 य - छिवसु तिति । मया तहा आहयाओ जहा छिण्णाओ । उवज्झाओ माहणिं भणति - पस्स ते पुत्तस्स खंदिलस्स विण्णाणं । सा भणति - एयाओ जुण्णाओ दुब्बलाओ, कीरंतु थूराओ सिं अण्णाओ थिराओ, से कमेण णाहिति त्ति । ततो सज्जियाओ से सीसेहिं थुलाओ तंतीओ । भणिओ य उवज्झाएण-सणियं छिवेसु तंतीओ । तओ दिण्णं च गीययंअट्ठ नियंठा सुरहं पविट्ठा, कविट्ठस्स हेट्ठा अह सन्निविट्ठा । पडियं कविट्ठ भिण्णं च सीसं, अवो ! अवो ! त्ति वाहरंति हसंति सीसा ॥ 1 ते मया पुच्छिया-सा इब्भकण्णा गीयगं एयं जाणति ? न जाणइ ? त्ति । ते भतिन जाणति । मया भणियं - जिणामि एएण गीयएणं ति । ततो एरिसेहिं वयणेहिं हसा - वैमि । वञ्चंति दिवसा । पत्तो अणुओगसमओ । ससीसो उवज्झाओ वञ्चति, ममं भणति - तुमं अण्णम्मि काले वच्चिहिसि । मया भणियं - जइ सा अण्णेण जिप्पइ अहं कीस 20 सिक्खामि ? ति वच्चामि त्ति । ते न दिंति गंतुं । मया बितियं कडगमाणेऊण माहणीए दत्तं । सा तुट्ठा भणति - जइ ते निवारेंति किं तुहं तेहिं ?, वच्चसु, जिणसु तयं ति । दिण्णं च णाए पंडरं महग्घं च वत्थजुयलं समालभणं पुप्फ- तंबोलाइ । " 15 ततो नियत्थ-पाउओ गओ सभं चारुदत्तसंतियं । आसणेसु रइएस सभाए आसीणा विसा, इयरो जणो भूमीए । उवज्झाओ ससीसो णिज्झाइ मं ससंकिओ - मा ममं पास - 25 वेहित्ति । अहं सभमुवगतो । तत्थ य चारुदत्तो नयर पहाणमणुस्ससहिओ अच्छति । हूण य सभासन्निवेसं मया भणियं - विज्जाहरलोए एरिसो सभागारो, न इहं ति । ततो निज्झाइऊणं तुट्ठेण मे दिण्णमासणं । आसीणो मि । पस्सति मं जणो विम्हयविकसमाणयणो । दिट्ठे च मया भित्तीए हत्थिजुयलं लिहियं । भणिओ य मे सेट्ठी - कीस मन्ने एस हत्थी चित्तकम्मकरेहिं अप्पाऊ लिहिओ ? । सो भणइ - सामि ! किं चित्तकम्मे वि 30 १ णीयकशां० ॥ २ रेधिशां० ॥ ३ अप्पाद्दि शां० ॥ ४ शां० विनाऽन्यत्र णा चंदणाकोयणयं च क ३ । णा दणकोयणयं च गो ३ उ० मे० । णा वादणकोयणयं च ली ३ ॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२९ वसुदेवहिंडीए [विण्हुकुमारचरियं आउपरिक्खा अत्थि ? । 'आम' ति मया भणियं-जइ संदेहो आणिजउ पाणीयं बालरूवाणि य । ठवियं पाणियभायणं भित्तिसंसियं । कीलंतेहिं बालेहिं उदगं गहेऊण हत्थी फुसिओ । उक्कुटुं सभागएहिं पुरिसेहिं-अहो ! अच्छेरियं ति । उवज्झाओ विम्हिओ। आगया य गंधवदत्ता जवणिअंतरिया ठिआ।न वि को वि उच्छहति वीणं छिविउं ति। 5 चारुदत्तेण य सेट्ठिणा वागरियं-अईति हु दारिगा, जइ न कोइ उवट्ठाइ गाइडं ति। तो चिरं अच्छिऊण विदुसेहिं भणियं-अईउ त्ति । तम्मि समए मया भणियं-कीस अईइ? पासामु से सिक्खियविसेसं । ततो पेच्छगेहिं दिट्ठीहिं अणुबद्धो मि 'न एस धरणिगोयरो, एस देवो विजाहरो वा अइपगब्भो तेयस्सी रूववंतो' त्ति । ततो सेट्ठीवयणेण उवणीया वीणा, अप्पिया य पुरिसेहिं, सा मया पडिसिद्धा 'एसा सगब्भा, ण य जायइ छिविउं' ति, 10'तीमिया तंती, दंसिआ वाला । अण्णा उवहविआ, 'दवग्गिदड्डाओ दारुओ निम्मविआ फरससहा एसा' । सिप्पिणा पुच्छिएण कहियं 'सच्च' ति । अण्णा उवह विया, सा जलनिबुड्डदारुनिम्मविआ 'गंभीरसदा न होई' त्ति पडिसिद्धा । विम्हिया परिसा। ततो आणीया घीणा कयचंदणचच्चा (ग्रन्थानम्-३५००)सुरभिकुसुमदामालंकिया सत्तसरतंती। तं द₹णं मया भणियं-उत्तमा वीणा, आसणमिणं अणणुरूवं । तओ उवणीयं महरिहमासणं । 15 ततो भणति सेट्ठी-सामि! जइ जाणह विण्हुगीयगं तो गिजउ । मया भणियं जाणामि । ततो सभागया पुच्छंति-किं विण्हुगीयगं ? । मया पुण साहूणं रिद्धीसु गिजमाणीसु पुर्व सुयं विण्हुमाहप्पं गीयगं च । ततो पकहिओ मि-सुणहविण्हुकुमारचरियं विण्हुगीइगाए उप्पत्ती य आसि हत्थिणापुरे नयरे पउमरहो राया, तस्स लच्छिमती देवी, विण्हू महा20 पउमो य दो कुमारा । धम्मस्स अरहओ पओप्पए सुबओ नाम अणगारो, तस्स समीवे राया सह विण्हुकुमारेण पवइओ । महापउमो राया रजं पसासति । पउमरहो परमसंविग्गो विधुतरयमलो परिणिबुओ। विण्हुकुमारो वि अणगारो अपरिवडियधम्मसद्धो सहि वाससहस्साँई परमं दुच्चरं तवमणुचरति । ततो से लद्धीओ समुप्पण्णाओ-विउव. णिड्डी सुहुम-वादर-विविहरूवकारिणी अंतद्धाणी गगणगामिणी ।। 25 महापउमस्स रण्णो णमुई पुरोहिओ । सो साहूहिं महायणमज्झे वादत्थी सत्थेण पराजिओ, पदुट्ठो रायं तोसेऊण लद्धवरो रायत्तं वरेइ । वासारत्ते ठिया साहू गयपुरे। सो कयाभिसेओ पगतीहिं माणिओ समणे सद्दावेऊण भणइ-अहं तुम्हं असम्मओ, जओ मं न जयावेह ? । साहूहिं भणिओ-किं अम्हं वयणेण तुम्ह जओ होहिति ण वा ?. सज्झाय-ज्झाणवक्खेित्तेहि य न याणिओ तुम्हं अहिसेउ त्ति सम्भावो । सो भणति-किं 30 बहुणा ? मम रज्जे ण वसियचं तुम्हेहिं । ते भणंति-रायं! वासासु विरुद्धं संकमिउं, १ सीमि° उ २ कसं० विना ॥ २ °यं 'एवं' ति शां० ॥ ३ °त्तरसतं मे० विना ॥ ४ °ई अणुहवमाणो पर शां० विना ।। Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विण्हुगीइगाए उपत्ती य] तइओ गंधवदत्तालंभो । अम्हे सरदे गमिस्सामो । सो भणइ-सत्तरत्तस्स परओ जो अच्छति सो मे वज्झो । तेहिं भणियं-समवाएऊणं तुम्हें कहेहामु त्ति । तेहिं मिलिएहिं थेरेहिं संदिटुं-अजो! जस्स भे रिद्धी अत्थि सो कहेउ, संघकजं गुरुकमुप्पण्णं । तत्थेगेण साहुणा भणियं-मम आगासगमणसत्ती अत्थि, आणवेह जं करणिजं । संघथेरेहिं भणियं-वञ्च तुम अजो!, विण्डं अंगमंदराओ कल्लं आणेहि । सो 5 'तह'त्ति पडिसुणेऊणं खणेणं गतो । निवेदिया णेण संघाणत्ती । विण्हुणा भणियं-वीसमह भंते !, हिजो जाइस्सामो। पसुत्तं च तं गहेऊण गतो गयपुरं । कहिओ य से नमुइपुरोहियनिच्छओ 'निव्विसया होहि'-त्ति । विण्हुणा विण्णविओ-संघो सुनिव्वुओ होउ, मज्झ भारो इयाणि ति । गतो य णमुइसमीवं । अब्भुडिओ नमुइणा । ततो भणइ विण्हूअच्छंतु साहू वासाकालं । ततो नमुई भणति-तुम्हे सामी महापउमस्स रण्णो, किमंग 10 पुण ममं ?. तुम्हे ण भणामि, 'समणा मया निव्विसया कायव्वा' निच्छओ । विण्हुणा भणिओ-पाणबहुला मेइणी इमम्मि समए, विरुद्धं जइजणस्स संचरित्रं. जइ तवाणुमए उजाणगिहेसु वासाकालं गमेऊणं पुरमपविसमाणा परदेसं वच्चिहिंति तो वि ते मम वयणं कयं होहिइ । नमुई भणति–जे मम घाएयव्वा ते उजाणेसु मे कहिं वसिहिंति ? त्ति । विण्हुणा भणिओ नमुई-भरहादीहिं राईहिं साहवो पालिया, विसेसेण पूइया य.15 तं जइ न पूएसि णाम, जं पुण भणसि 'वहेयत्व'त्ति तं ण रायचरियं. दस्सूणं पि एयं न दीसए. उवसम, गए वाससमए विहरिस्संति अण्णपत्थिवरजाणि त्ति । ततो भणति-जं भणह 'न एवं रायचरियं, पुवपुरिसा य साहुपूअगा आसित्ति तं जो रायसुओ पिउपियामहपरंपरागयं रायसिरिं अणुभवति तस्सेसा धम्मया होज. अहं पुण पढमराया नियगवंसे, किं मम परचरिएणं ?. न मे कजं समणेहिं. सत्तरत्तपरओ जं पस्सामि संचरंतं न 20 सो जीविहिति. अतीह, तुब्भे न भणामि किंचि, सेसाणं नत्थि जीवियं इओ वि परउ ति। तओ अणगारो विण्हू चिंतेइ-अहो! नमुई दुरप्पा साहू वहेउमिच्छति, न मे जुत्तं एसा संघपीडा उवेक्खिय् ति । ततो ण णमुई भणिओ-नमुइ! जइ सि एवं ववसिओ तो मे एक वयणं करेहिं-देहि मे विवित्ते पएसे तिन्नि विक्कमे, तस्थ तवोहणा ठिया पएसे पाणपरिचायं काहिंति. न से कप्पइ इमम्मि काले विहरिलं. एवंपमाणे भूमिपदेसे 25 दिण्णे मम वयणं कयं होइ, तव य वहपइण्णा णाम । ततो परितोसवियसियच्छो भणति-जइ सच्चमेयं, ततो भूमिपमाणाओ जीवंता जइ न निग्गच्छंति तो देमि । विण्हुणा सामरिसेणं 'तह' त्ति पडिस्सुयं । निग्गया य नयरबाहिं । नमुइणा 'बत्त मया, मिणासु' त्ति उदाहरियं । विण्हुणा बि पडिच्छियं ति । ततो रोसवसपजलिओ मिणिउकामो विउवियसरीरी पवडिओ, उक्खित्तो य चलणो । नमुई भयमोहिओ 30 १ भणगारं मंद° उ० ॥ २ भरो ली ३ विना ॥ ३ °णा भणियं दत्तं शां० विना ॥ ४ °मिण उ२ विना॥ व.हिं० १७ - - Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [विण्हुकुमारचरियं पायवडिओ लग्गो पाए-खमह मे भयवं! अवराह ति । तेण धुओ पढिओ, खणेण य दिवरूवो संवुत्तो-मउडेण मणिमऊहरंजित दिसामुहेण गिम्हे मज्झण्ह दिवसो विव दुप्पिक्खो, कुंडलजुयलेण दोलायमाणेण उभयपासगतो इव गहभोइओ सम्मत्तमंडलो, हारेण धवलमहाभोगिभोगसच्र्छमेण विच्छिण्णवच्छयलविलसिरेण सारइय5 बलाहगसणाहसाणुदेसो इव मंदरो, कडग-केयूरभूसियभुयाजुयलो य इंदायुधचिंधित इव गगणदेसो, पालंबोचूलरइयमुत्ताविहाणो य जोइसमालाधरो इव तिरियलोओ। वड्डमाणं तं पस्सिऊण भयविसंठुलो अंतरा सिलाजालाणि पव्वयसिहराणि महंते पायवे पहरणाणि य खिवंति । ताणि य हुंकाराणिलसमुद्भुयाणि समंतओ पणिवयंति । तं च अदिद्वपुव्वं महाबोंर्दि पस्समाणा किण्णर-किंपुरिस-भूय-जक्ख-रक्खस-जोइसालया महोरगा भीय-हित्थ-प10 त्थिया विलोलनयणा गलियाभरणा अच्छरासहाया 'को णु मो ? कत्थ पत्थिओ ? किं च का उकामो ?'त्ति कायरा विरसमालवंता परोप्परं तुरियमुबहता; तेहि य वेवंतसवगत्तेहिं संचारिमो मंदरो व विम्हियमुहेहिं खहचरेहिं दिस्समाणो खणेण जोयणसयसहस्ससमूसिततणू जातो। केहिय रिद्धिबहुलयाए जलियजलणसंघायभूओ दिट्ठो, केहिं पि सारदसमत्तमंडलमियंकमणहरतरसोमवयणचंदो। विवड्डमाणस्स य जोइसपहो उरदेसे णाभिदेसे कडिभाए जा15 णुदेसे य आसी। तओ चलिया भूमी । कओ य णेण मंदरसिहरोवरि दाहिणो चलणो। परांवत्तेण य समुद्दजलं उल्ललियं । समाहया दो वि करतला, तेण सहेण वितत्था आयरक्खा । ___ एयम्मि देसयाले चलियासणेण विपुलावधिविसयविण्णायकारणेण मघवया देवसमक्खं भणिया गंधव्व-नट्टाऽणीयाहिवइणो-भो! सुणह-एस भयवं विण्हुअणगारो नमुइ पुरोहियाऽणायारपरकमकुविओ समत्थो तेलोकमवि गिलिउं, ता णं साणुणएण उवसमेह 20 गीय-नट्टोपहारेण तुरितं । ततो सोहम्मवइणा समाणत्ता पणच्चिया तिलोत्तमा-रंभाँ मेणोव्वसीओ चक्खुविसए मुणिणो, पवादिआणि य वादित्ताणि, पगीया तुंबुरु-णारदहाहा-हूहू-विस्सावसू य सुतिमहुरं सवणासण्णं थुणमाणा 'उवसम भयवं!' ति जिणणामाणि खमागुणे य वणेता। महिड्डिया य वेयड्डसेढीनिवासिणो विजाहरा देवसमूहं सुरवतिसहियं भयवतो विण्हुकुमारस्स पसायणनिमित्तं समागयं दिवमइचोइया विजाणिऊण 25 दुयं सुरसमितिमुवगया। ते वि तहेव थुणंति, आगमाणुरूवाणि गीयगाणि य गायंता चल णमुक्खित्तं कमलदलसंचयच्छविधरं कमलमिव रसमुच्छिया महुयरा समुल्लियंता । तुडेहि य तुंबुरु-णारएहिं भणिया-अहो! अच्छरियं, अहो! माणुसमित्तेहिं नाम होइऊण देवेहिं सह कओ संथवो दच्छया य दंसिय त्ति । विजाहरा भणिया-करिस्सं भे पसादं गंधवे तो परा रती भविस्सत्ति. सर्तसरतंतिनिस्सियं गंधारगाम मणुस्सलोगदुल्लहमिदाणि विण्हु30 गीयकोवनिबद्धं उवहारेह १ पडिओ शां० विना ॥ २ दुण्णिरिक्खो ली ३ ॥ ३ भोगभोगिस शां० ॥ ४ °च्छ हेण ली ३ मे० ।। ५ ला वि अं० शां० मे०॥ ६ राहत्ते उ २ मे० विना ॥ ७°भासोमोव शां० । भासमोव क ३ गो ३ ली ३॥ ८ तरसतं. उ२ मे० ॥ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विण्हुगीइगा] तइओ गंधवदत्तालंभो। १३१ उवसम साहुवरिट्ठया!, न हु कोवो वण्णिओ जिणिंदेहिं । हुंति हु कोवणसीलया, पावंति बहूणि जाइयवाई ॥ गीतिका ।। तेहिं पणएहिं 'परो णे अणुग्गहो' ति गहियं गीयगं ।। राया य महापउमो भयवओ विण्हुस्स तहागयचिट्ठियं नमुईपुरोहिअदुण्णयनिमित्तं सोऊण, दण य दिवविउव्वियमहासरीरेण गगणतलमप्फुण्णं, भीओ सपुरजणवओ कंठ-5 गयप्पाणो गतो सरणं संघ, भयगग्गिरंगिरो भणइ-मम सरणं संघो. अहं कयाणुवओ समणोवासयो सुवयस्स भयवओ अणगारस्त सीसो. परित्तायह मं । तओ संघेण भणिओ'अपत्तं रज्जे ठवेसि, न य वुत्तंतं वहसि, पमत्तो सित्ति भणंतो विमलसहावो समणसंघो-खमियं अम्हेहिं रायं!. अवसाणं अम्हं एयं, तव विसयपमत्तस्स अणुपेक्खओ विसमं जायं कारणं, जेण तेलोकं पि संसइयं. उवसमेसुं विण्हुकुमारसमणं । संठिया य कर- 10 यलंजलिपुडा---उवसम विण्हु !, खमियं संघेण महापउमस्स, साहर रूवं, मा य चलणं फंदेहि, चलइ महियलं तव तेयप्पभावेण पविसइ रसायलं, अइपुरहिओ ते चलणन्भासे समणसंघो । तं च साहुजणोदीरियं वयणं न सुणइ अइकंतसोयविसयरूवो भयवं कुमारसमणो विण्हू । ततो महंतेहिं सुयधरेहिं भणियं-न सुणइ सदं नूणं दुवालसजोयणपरओ. कम्हिय गगणभाए सोतिंदियं से वट्टति, जओ न सुणइ. परं च जोयणसयसहस्स-15 मूसिया विउवणा, जओ तत्तियं अइगतो ततो रूवविसयो वट्टइ. अप्फालेह से पायं, ततो अवस्स अवलोएहित्ति. दळूण य समणसंधं पजुवासेंतं उवसमिहिति । ततो जमगसमगं अप्फालिओ चलणो साहूहिं । फासिं दियलद्धसण्णेण विण्हुणा महरिसिणा अवलोइयं धरणियले । दिट्ठो य णेण महापउमो राया सओरोहो सपरिवग्गो सरणमुवगतो संघस्स, साहुणो य कयंजलिपुडा पवाहरंता 'उवसमेह' त्ति । ततो गेण चिंतियं-णवणीयमिव 20 मिदुसहावा, चंदणमिव सीयलहियया, महापउमस्स रण्णो सपरिवारस्स पीडं परि(ग्रन्थाग्रम्-३६००)हरंतेहिं खमियं णेहिं असंसयं. न जुज्जइ संघं वइक्कमि ति । देववयणेहि य मउईकयहियओ संघगुरुयाए उवसंह रिउ साहरिउं रूवं वसुहातले संठिओ सारइयचंदो इव सुहदसणो । देव-दाणवगणा य सविजाहरा पणया भयवओ विण्हुस्स, कुसुमवरिसं मुइऊणं गया य सयाणि ठाणाणि । ___ ततो सहावडिओ खिजिओ, महापउमो राया भणिओ य–णाऽरिहसि रजसिरिं। पुत्तो य से पेण संदिट्ठो-पियरं बंधिऊण नाएण पयापालणं कुणसु त्ति, धम्मे य सायरो होहि त्ति । सो पयाहिं परिग्गहिओ कयपसाओ भयवया । नमुई मारिजमाणो निवारिओ साहुसंघेण निविसओ कओ । विण्हू वि अणगारो वाससयसहस्सं तवमणुचरेऊण धूयरओ समुप्पण्णकेवलनाण-दसणधरो परिनिव्वुतो ॥ 30 १ °ब्वयाई शां० मे० विना ॥ २ ली ३ विनाऽन्यत्र-रसरो शां० संसं० ॥ ३ °सयं जा गो ३ ३०॥ ४ तेण सुयधरेण भ° शां० ॥ ५ °णाभोए उ २ विना ॥ 25 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [वसुदेवेण गंधवदत्तापरिणयणं ___जं च गीयं विण्हुकुमारनिस्सियं देव-गंधव मुहुग्गयमवधारियं विजाहरेहिं, त पहाणेसु रायकुलेसु धरेइ. तं च मया सामलीए समीवे वट्टमाणेण पुवसिक्खियं गीइयं सत्तसरतंतीयं वीणापरिचियाए. तं में परिकहियं विण्हुगीइयं ॥ तओ तं विण्हुगीइयं गंधवदत्ता अहं च वीणं छिवित्ता गंधारग्गाममुच्छणाए पगीया 5मो रत्तं तिहाणकरणसुद्धं ताल-लयगहसमं । अवसाणे गीयस्स घुटुं नागरेहिं-अहो! समं सुकुमालं च वाइयं गीयं च त्ति । ततो पुच्छिया परिओसविसप्पियमुहेण सेट्ठिणा तम्मि अहिगारे निउत्ता आयरिया-केरिसं गीयं वाइयं च ? त्ति । ततो तेहिं भणियं-जं अज दुहियाए गीयं तं वाइयं पडुजाइणा, जं गीयं पडुजाइणा तं वाइयं अज दुहियाए त्ति । ततो उसारिया अभितरजवणिया। भणियं नायरएहिं-ठिओ दाणिं संघसो, खीणो 10 ऊसवो नयरस्स, नियत्तो वीणावावारो, पत्ता भत्तारं गंधव्वदत्ता । ततो गायरा सेट्टिणा परेण सक्कारेण पूइत्ता विसज्जिया ।। ... अहं चारुदत्तेणं भणिओ-तुब्भेहिं दिवेहिं पुरिसक्कारेणं लद्धा दारिया गंधवदत्ता. एईसे दाणिं अविग्घेणं पाणिं गेण्हह. एसा लोगसुई-माणस किल चत्तारि भारियाओमाहणी खत्तिणी वइसी सुदि त्ति. 'एसा पुण भे अणुरूवा भारिया, कारणओ पुण विसिहतरी 15 व होज' तकेमि । ततो मे चिंता समुप्पण्णा-केण मण्णे कारणेण भणियं सेट्टिणा 'इमा विसिहा दारिय' त्ति? । पवेसिओ य म्हि अभितरि, उवट्ठियाओ पडिकम्मकारिगाओ, ताहिं मे कयं रायाणुरूवं पडिकम्म, दिण्णाणि अहयाणि वत्थाणि, तओ म्हि परिहिओ, कयाणि य वरकोउगाणि, आगओ मि बुड्डजणपरिवारो चाउरंतगं आकुलं बंधुवग्गेण सेट्ठि स्स । पसंसइ मं इत्थियाजणो-जइ वि चिरस्स लद्धो वरो गंधवदत्ताए तो वि अणुरूवो, 20 अहवा निरुवमरूवो कामदेवो एसो त्ति । ततो मे आणीया गंधवदत्ता सरस्सती विव रूववती, तरुणरविमंडलप्पहासा, कुंडलजुयलप्पभाणुलित्तनयणलोभणवयणकमला, महानिवेसनिरंतरहारपरिणद्धतालफलाणुकारिपओहरा, पओहरभरविलसमाणवलिसोहियतणुयमज्झा, पउमिणिपलासपिहुल-मंसलसोणिफलगा, पउमपत्तसुकुमाल-सहिय-पीवरोरू, पउमतंतुकळावमउयभूसणुजलमणहरतरहत्थकिसलयबाहुलइया, पासत्तसणाहगूढसिरजंघदेसा, 25 सरससररुहकोमलपसत्थचलणा, समदललितकलहंसगमणा । अण्णिजमाणी इव लज्जाए पासे य मे कया अम्मगाहिं लच्छी इव कुबेरस्स । भणियं च सेट्ठिणा-सामी! किं तुम्भं कुलगोत्तेण? हुबउ हुयवहो उदाहो दारिगा य त्ति । ततो मया चिंतियं—एसा इन्भदुहिया, केण मण्णे कारणेण सेट्ठी एवं भासइ ? त्ति । मया विम्यं काऊण भणिओ-एत्थ कारणे तुमे पमाणं । ततो सो गहियाकारो ममं भणइ-सामि! कहिस्सं भे कारणं, जेणेत्थ मया 30विण्णविया. आभरणथाणमपत्तं रयणं विणासियं होइ । तओ विहिणा हुओ हुयवहो । गा १गीययं शां० । एवमग्रेऽपि ॥ २ °त्तरसतं. शां० ॥ ३ भो ली ३ विना ॥ ४ ओसा° शां० ॥ ५ 'तरं शां० ॥ ६ मज्झं भ° शां० ॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाहदत्तस्स अत्तकहा ] तइओ गंधवदत्तालंभो । १३३ हिओ मि पाणि गंधवदत्ताय सेट्ठिणा । मंगलेहिं अइणीओ मि गन्भहिं सह पियाए । मुदितमणस्स य मे पवियारसुहफला अइच्छिया राई | 1 गएसु य वरकोउयदिवसेसु सुग्गीव-जसग्गीवा उवट्ठिया चारुदत्तसमीवं, तेहिं भणियं– गहवति ! सामा विजया य दारियाओ गंधवदत्तए सहीओ, तीसे अणुमए भयंतु ते जामाउयं । ततो तेण मम निवेदितं कारणं, मया च पिया कया पमाणं । तीसे 5 अणुमा वि बहुसकारं पाविया दो वि । रमामि य तिहिं वि सहिओ भारियाहिं, विसेसओ पुण गंधवदत्ता वड्ढइ मे पीती, गुणा मं रमाविंति न किंचि परिहायइ परिभोगस्स । गएसु बहू दिवसेसु कयाइ भुत्तभोयणो अच्छामि आसण्णगिहे सावस्सयासणनिसण्णो । ततो उवगतो सेट्ठी चारुदत्तो, सो मं अंजलिकम्मेण पूरंतो लवति --- जयंतु सामिपाया !, वाससहस्साणि वो पया आणं पालेंतु सह पियाहिं । ततो मया पूइओ गुरुभावेण विदिण्णे 10 आसणे णिसन्नो । ततो मं भणइ - सामि ! जं मया पुवं वृत्तं 'एसा दारिया तुम्हें अणुसरिसी विसिट्टा वा होज' त्ति तं कारणं कहइस्सं संदिसह । मया भणितं - सउवग्घायं कहसु त्ति । ततो भणिओ - सुणह सामि ! - — चारुदत्तस्स अप्पकहा गंधव्वदत्तापरिचओ य आसी य इह पुरीए चिररूढपरंपरागओ उभयजोणिविसुद्धे कुले जातो सेट्ठी भाणू 15 णाम समणोवासओ अहिगयजीवाजीवो साणुकोसो । तस्स तुल्लकुलसंभवा भद्दा नाम भारिया, सॉ उच्चपसवा पुत्तमलभमाणी देवयणमंसण- तवस्सिजणपूयणरया पुत्तत्थिणी विहरइ । > कयाइं च सेट्ठी सह घरिणीए पोसहिओ जिणपूअं काऊण पज्जालिएसु दीवेसु दब्भसंथारगओ थुइमंगलपरायणो चिट्ठइ | भयवं च गगणचारी अणगारो चारुनाम उवइओ । सो कय जिणसंथवो कयकायविउस्सग्गो आसीणो, सेट्ठिणा पञ्चभिण्णाओ । ततो ससंभममु - 20 ट्ठिएण सादरं वंदिओ 'चारुमुणिणो' ति भणतेण । तेण वि महुरभणिएण भणिओ - सावग ! निरामओ सि ? अविग्धं च ते तव वयर्विं हिसु ? त्ति । सेट्टिणा भणिओ - भयवं तुम्ह चलणप्पसाएणं । *तित्थयरस्स नमिसामिणो चरियसंबद्धं कहं कहिउमारद्धो । अत्थि णे विउलो अत्थो. जो कतरे यघरिणीए कयंजलिवुडाए विष्णविओ - भयवं ! तस्स भोत्ता कुलसंताणहेऊ लोगदिट्ठीए सो णे पुत्तो होज ? संदिसह तुभे अमोहदंसी | 25 ततो भयवया चारुमुणिणा भणिया- 'भद्दे ! भविस्सइ ते पुत्तो अप्पेणं कालेणं' ति वोत्तूण 'सावय ! अप्पमादी होज्जासि सीलबएस' त्ति गतो अदरिसणं । ततो केणइ कालेण घरिणीए आहूओ गन्भो । तिगिच्छगोपदिद्वेण भोयणविहिणा वडओ गन्भो । अविमाणियडोहला य पसवणसमए पयाया दारयं । कयजायकम्मस्स य नामकरणदिवसे कयं च से नामं 'गुरुणा चारुमुणिणा वागरिओ दारओ भवउ चारुदत्तो' 30 १ सुहित° क ३ गो ३ ॥ २° त्ताय स० शां० ॥ ३ सोवग्धायं कहह त्ति शां० ॥ ४ सा हुव्व० शां० ॥ ५ मुणित्ति शां० विना ॥ ६ °विधेसु शां० ॥ * अत्र कियाँश्चित् पाठत्रुटित इति सम्भाव्यते ॥ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ वसुदेवहिंडीए [ चारुदत्त स त्ति । ततो धाइपरिक्खित्तो परियणेण लालिज्जतो मंदरकंदरुग्गओ विव संताणर्कपायवो निरुवसग्गं वडिओ | तस्स य सिट्ठिस्स वयंसा सरीरस्सेव पंच भूया निरंतर सोहिया पंच रूवाइगुणा इव संबद्धा । तेसिं पुत्ता मम सहवड्डिया परूढसिणेहा, तं जहा - हरिसी हो वराहो गोमुह तमंतगो मरुभूइगो । तेहिं सह कीलमाणो रमए चारुदत्तो, तं ताव 5 मं जाणह चारुदत्तो त्ति । ततो सामि ! कलोरियस्स उवणीओ, गहिया य मे कलाओ । गहियविज्जो य पिउणा सावयधम्मं गाहिओ वयंससहिओ अच्छामि त्ति । कयाइं च कोमुइयाचाउमासिणीए कोऊहल्लेण जिणपुप्फोरुहणनिमित्तं निग्गओ मिसवयंसो अंगमंदिरं उज्जाणं । तत्थ चेइयमहिमा वट्टए । आणाकरदारय- पुप्फचय कुमारसहिओ य पादचारेण परसामि उववणाणि रमणीयाणि परसवणाणि य, वणराईओ मेहनिउरुंबभू10 याओ सउणगणमहुरभासिणीओ । दंसणलोलुयाए य दूरम्मि गया रुक्ख गुच्छ लयागहणं पसन्नसलिलवाहिणीं सहिण-धवलवालुयं रयतवालुयं नाम नदीतीरं पत्ता मो । गहियाणि पुष्पाणि इच्छियाणि । विसज्जिया दासचेडाँ - वच्चह, अंगमंदिरे उज्जाणे आयतणसमीवे पडिवालेह त्ति । ते गया । अहमवि सवयंसो नदीतीरे ठितो । मरुभूई उइण्णो भणइ - उयरह, कीस विलंब ह ? 15ति । गोमुहेण भणिओ - तुमं न जाणसि कारणं । सो भणति - किं ति णं ? । गोमुहेण भणियं - तिगिच्छगा वण्णंति-अद्धाणं परिक्कमिर्य ण सहसा जलमवयरियवं. दुवे किर पायतलसंसियाओ सिराओ उड्डगामिणीओ गीवं पाउणिय भिजंते. तत्थ दुवे नेत्तगामिणीओ, तासिं रक्खणट्ठा उसिणाभितत्तसरीरेण नावयरियवं जलं. अवतरंतो वा विरुद्धयाए खुज्जत्तं बधिरत्तं अंधत्तं वा पाविज्जत्ति, एएण कारणेण वीसमंतेण उयरियवं ति । 20 ततो भइ मरुभूई- बहुकुहुंबिओ गोमुहो, उयरह, धावह पाए ति । ततो म्हे पक्खालिय चलणा की लिउं पवत्ता एगदेसतिसंसियाणि पउमाणि गहेऊण पत्ताण य सच्छंदर्मईवियप्पियपत्तछिज्जेहिं रमिमो । ततो अण्णं नंदीसोत्तं अइगया मो । गिहीयं गोमुहेण पउमपत्तमब्भंतरयं पाणिपुडाभोगसंठियं निक्खित्तं सोए, दिण्णा एत्थ जुत्तपमाणा सिकया, वञ्च्चइ य नावा विव सिग्घं । मरुभूइएण वि पउमपत्तं गहियं, छूढा बहुसिकया, 25 भारेण य निब्बुडा तस्स कमलपत्तनावा, हसिओ वयंसेहिं । ततो लद्धोवाएण अन्नं कमलपत्तं निक्खित्तं, सोतँसिग्घयाए य जिओ गोमुहो । न पावइ मरुभूई पउमपत्तणावं, अइवयंतीं दूरं गतो पहरिसेण वाहरति सो - एह एह सिग्घं, च्छह अच्छरियं ति । ततो मया भणियं - सुंदर ! साहस केरिसयं ? भिर उ२ विना ॥ ६ °यणवा° शां० ॥ ७° चेडी शां० विना ॥ शां० विना ॥ १० ° मयवि० शां० ॥ ११ दीसुतं शां० विना ॥ शां० ॥ १४ पेच्छ ली ३ ॥ १ कप्पपा० शां० विना ॥ २°लायरि० शां० ॥ ३ प्फाभरण० शां० ॥ ४ च्चय० शां० विना ॥ ५ णा८ °मिड ण शां० विना ॥ ९ ताणि स° १२ त्थ पत्त शां० मे० ॥ १३ 'ते सि Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्तकहा ] तइओ गंधवदत्तालंभो । १३५ I ति । ततो भणइ - चारुसामि ! एरिसं मे न दिट्ठपुत्रं, जइत्थ दहुकामा इहमागया दच्छिहि-ति । ततो भणिओ गोमुहेण - चारुसामि ! न एत्थ अच्छरियं, धुवं एएण उवलंतरविणिग्गयं पायवमूलं दिट्ठ होहिति, ततो से बुद्धी उप्पण्णा -- ( प्रन्थानम् - ३७०० ) २) एवं कोमलेण कहं भिण्णो पासाणो ? ति अथवा मराली पिल्लकाणि चारिती दिट्ठा होज्ज, ततो बहुत्तयाए विम्हिओ. अहवा झिल्लिगारवं निसुय ' डहरियाए एवं महंतो सद्दो' त्ति अच्छेरं मण्णए । ततो 5 पुच्छिओ मया - एत्तो अन्नतरं होज्ज ? त्ति । सो भणइ-जं अच्छेराणं पि अच्छेरं, एवं किं भे विचारेणं ? दच्छिहिह त्ति । तस्स य बहुमाणेण गया मो तं पएसं । दाएइ य मरुभूतीओ सोयसलिलपरिक्खित्तं अचंतसुहुमसिकया पुलिणं पावरणंतर विणिग्गयमिव जावयरसपंडुरं जुवतिहरं । ततो गोमुहेण भणिओ - पुलिणखंडे किं अच्छरियं ? संति एरिसाणि उदगपरिणद्धाणि त्ति । ततो भणति -जमेत्थ अच्छेरं तं परसह-त्ति पयाणि दंसेइ दुवे । ततो 10 भणिओ - जइ एयाणि अच्छेरयं ततो अम्हं जाओ पयवीहीओ ताओ अच्छेरगसयाणि त्ति । ततो भणति – एयाणि साणुबंधाणि बहूणि पयाणि, इमाणि पुण वोच्छिष्णमग्गाणि ति ततो ताणि आयरेण पस्सिमो । ततो हरिसीहो भणति - - का एत्थ चिंता ?, जइ पुण कोइ पुरिसो एयं तीरजायं रुक्खमारुहिय साहाओ साह संकॅमंतो लयामउयाए पुलिणं अवइणो, पुणो पायवं चेव आरूढो ति । ततो गोमुहेण भणियं वियारेऊण – न एवं 15 जुज्जइ. जइ पायवाओ अवइण्णो होंतो ततो हत्थ -पायसंघट्टणापरिसडिएण तरुण- जरढपरिणएण पत्त- पुप्फ-फलेण पुलिणं सलिलं च अफुण्णं होतं । ततो भणिओ हरिसी हेण - इमाणि पाणि ? त्ति । ततो भणियं गोमुहेण - आगासगामिस्स पयाणि ति । ततो भणियं हरिसीण - किं देवस्स ? रक्खसस्स ? चारणसमणस्स ? रिद्धिमतो रिसिस्स ? | भणियं गोमुहेण - देवा किर चउरंगुलभूमिं न छिवंति रक्खसा महाबोंदी, तेसिं महप्प - 20 माणाणि पदाणि, पिसायाणि जलबहुलपदेस भीरूणि, ण वियरंति इमम्मि पदेसे. रिसी तव - सोसितसरीरा, तेसिं किसयाए मज्झदे सुण्णयाणि होंति. चारणा द्गतीरे जलचरसत्तपरित्तासं परिहरंता न संचरंति । भणियं हरिसी हेण - - जइ न एएसिं पदाणि, कस्स णं इमाणि पयाणि ? ति । गोमुहेण भणियं - विज्जाहरस्स त्ति । हरिसीहेण भणियं - जइ पुर्ण विज्जाहरी होज । ततो भणियं गोमुहेण - पुरिसा सत्तवतो उच्छाहगामिणो, तेसिं हिययगरु - 25 या पुरओ पयाणि पीलियाणि भवंति इत्थीणं पुण कलत्तगुरुयताए पन्हियासु उविद्धाणि भवंति, तेण कारणेण ण इमाणि विज्जाहरीए । पुणो भणति गोमुहो - चारुसामि ! तस्स विज्जाहरस्स भारो अत्थि । पुच्छिओ हरिसीहेण - किं पवओ सो भारो होज ? उदाहु सज्जजुवणो पादवो ? आउ पुवावराही छिद्दे आसाइओ अरी होज ? । भणियं गोमुहेण - जइ गिरिसिहरं होज्ज तओ गुरुययाए णिमग्गाणि पदाणि होज. जइ पायवो होज्जा ततो 30 1 १ 'वको शां० विना ॥ २ धारंती शां० ॥ ३ सुतं ड° शां० विना ॥ ४ °ओ सलिलसोयप० शां० ॥ ५ अच्छत्तं सु० शां० विना ॥ ६ °रिद्वाणं ति ली ३ क ३ । °रिद्वाणि त्ति शां० ॥ ७ कम्मं क ३ गो ३ मे० ॥ ८ णु शां० ॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [ चारुदत्तस्स महियलपत्ताहिं साहाहिं बहुनिक्खेवो होजा. न य अरी रम्मं अवकासमाणिज्जति । ततो भणियं हरिसीहेण-जइ वि हु एत्तो एकतरं पि कारणं ण होइ, को हु से भारो अस्थि ? त्ति । भणियं गोमुहेण-अम्मय त्ति । हरिसीहेण भणियं-न जुजइ एस भारो त्ति, विजाहरीओ वि आगासगामिणीउ त्ति । भणियं गोमुहेण-सा धरणिगोयरी पिया 5 तस्स त्ति, ततो तीए सह रमणीयाणि थाणाणि संचरति । भणियं हरिसीहेण-जइ से पिया, कीस णं विजाओ न गाहेइ ? त्ति । भणियं च गोमुहेण-मच्छरी सवाहिसंकियकामो 'मा साहीणविजा सच्छंदगमणा होहिति' त्ति न गाहेइ णं विजाओ । भणियं हरिसीहेण-एयं पुण कहं जाणसि-अम्मगा से अत्थि अविजाहरी य? त्ति । भणइ गोमुहो-इत्थीओ अधोकायगुरुईओ, पणयग्गणदच्छो य वामहत्थो, ततो एयं किंचि 10 उविद्धं वामपादं । हरिसीहेण भणियं-जइ इत्थीसहिओ, कीस णेण इमं उवइऊण मुकमपरिभुत्ता? । गोमुहो भणइ-इमं पुलिणं आलोकरमणीयं सलिलपरिक्खेवं पायवंधकारेण य हरियमणिवेइयालंबणपरिक्खेवमिव पत्तेणं चिंतियं अजोग्गं रतीए. अविकिण्णमप्पयाए अवस्सं तेण आसण्णेण होयव्वं. रमणीओ अयं पएसो दुक्खं परिचइउं. मग्गेजइ से वीहि त्ति । दिहाणि य अण्णत्थ अवगासे चत्तारि पदाणि, दंसियाणि से । विभत्ताणि 15 गोमुहेण-इमाणि इत्थिपयाणि खिंखिणिमुहनिवडियाणि पण्हत्थणूपुरैकिंचिबिंबाणि य दीसंति. इमाणि विभत्ताणि पुरिसस्स त्ति । ततो तं मिहुणपयपंति अणुसज्जमाणा गोमुहवयणविम्हिया वच्चामो । दिट्ठो य णेहिं कुसुमिओ सत्तिवण्णो पायवो भमरभरिओ अंजणधाउकुम्मासो इव रययपव्वओ सरयकालसस्सिरीओ । भणियं च गोमुहेण-चारुसामि! इमं पत्ताए सत्तिवनं तीए इत्थीए इमीए साहाए गुलुको पिच्छिओ. अपावंतीए पिओ 20 पणइओ । मया भणिओ-किह एयं ? ति । भणति-इमाणे से पयाणि मुक्कपण्हियाणि गुलुकं कंखंतीए त्ति. विजाहरो य वरारोही, गहिओ णेण अयत्तेण गुलुको, जम्हा से अभिण्णलेहाणि पदाणि पुलिणे दीसंति. सो य दाणिं अणेण भत्तुणा ण दिन्नो तीसे. न य चिरकालवइक्कतो लक्खिजइ, जेणेत्थ परभंजणपवत्ता अन्ज वि खीरं मुयंति पुष्फविट त्ति। ततो भणिओ हरिसीहेण-गोमुह ! जुजइ कारणं अचिरभग्गस्स थवगस्स. ण उ तीसे 28 अम्मगाए ण दिण्णो त्ति, कहं पियाए पणइओ न दाहिति ? । भणियं गोमुहेण-कामो पणय लोलो, तीए य मण्णे ण किंचि पणइयपुव्यो, ततो णं रमते जायणालोलं पस्समाणो. सा वि णं सबओ परीइ 'देहि मे पिय !' त्ति जायमाणी. एयाणि तस्स पयाणि तीसे पयपरिक्खित्ताणि दीसंति. चारुसामि!सा तस्स विजाहरस्स अविजाहरी कुविया पडिहयपणय त्ति । हरिसीहेण भणिओ-एयं किह जाणसि ? त्ति । भणइ गोमुहो-एयाणि तीसे पदाणि 30 कोहसमुत्थाणि विणिक्खित्ताणि, इमाणि य विजाहरस्स अणुधावमाणस्स, तं एसा विकिट्ठयरपयसंचारा पयपद्धती तीसे य पंथं रुद्धंतस्स. ओसक्कियवीसमणपीलिएण य पंथो रुद्धो. १०रिवुत्तं शां. विना॥२ कंचि शां०॥ ३ °यणभं शांविना ॥४°णीए एया गो० बिना ॥ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्तकहा ] तइओ गंधवदत्तालंभो। १३७ इमं च सा अइगया सहासनिरुद्धं गयपञ्चागया वाणी. अण्णं च मया चारुसामि! सुट्ठ भणियं ‘सा अम्मगा अविज्जाहरि' त्ति. एयाणि से पदाणि गय-पञ्चागयाणि. जइ विज्जाहरी होति(ती) कुविया आगासेण वच्चंती. दिण्णो य से तेण कोहसमुत्थाणे सत्तिवण्णगुलुक्को. सो अणाए गहेऊण तस्सेव उरे पुप्फोकओ (पुष्कोडिओ), समं च कोहेण अवकिण्णो, पडिओ य से पाएसु. एस से दीसए तीसे पदसमीवे मउडगंठिनिपीलिओ सिकयासंचओ. सा 5 य सुकुमालकोपता जं च लहुं से पसण्ण त्ति लक्खिजति, जओ से अडंताणं पुलिणे अहिलिहियाणि विय पयाणि दीसंति पदपज्जाय. चारुसामि! तीसे सक्कराय पाओ परिक्खित्तो विजाहरं पस्समाणीय. सा य 'वेयणापरिगेय' त्ति तेण संभमेण से उक्खित्तो चरणो. तीय वि य वेयणागुरुययाए अंसेऽवलंबिओ. एवं दीसए-अम्मगाय एगं पदं, दुवे विजाहरस्स त्ति. ततो गेण अवणीया सा सरुहिरा सकरा । भणिओ हरिसीहेण-जइ पुण केणइ 10 अलत्तगरससम्मोइया अवछूढ त्ति ।गोमुहो भगति–कडुओ अलत्तगरसो, न तत्थ मच्छियाओ नीलिंति. विस्सं मधुरं मंस निस्संदसजक्खयसोणियं, ततो महुरकवलयमिव एसा सक्करा गहिया मच्छिगाहिं. चारुसामि! तेण विजाहरेण सा उक्खित्ता अम्मगा बाहूहिं । हरिसीहेण भणियं-किह जाणसि ? त्ति । भणियं च गोमुहेण-वोच्छिण्णा णि एयाणि पदाणि इत्थीए, पुरिसपयाणि दीसंति त्ति. किंच चारुसामि! एस मम बुद्धी-जो एसो अम्हं पुरओ 15 भमरगुंजमाणकुसुमलयापरिक्खित्तो समभूमिभागत्थिओ आवासो विव सिरीए लयाघरओ, एत्थ तेण विजाहरेण सजुवइएण भवियत्वं. इहेव हिया भवामु । 'न जुज्जए रहोगतो टुं' ति ठियामो त्ति । तओ य कस्सइ कालस्स लयाघराओ बहुवण्णपिंछच्छादितो मयूरो निग्गतो सह सहचा(च)रीए वणपरिचयनिस्संको। ततो भणियं गोमुहेण-चारुसामि!न इत्थ लयाहरए विजाहरो । भणिओ हरिसीहेण-एत्तियं वेलं 'सदुतिउ' त्ति वोत्तूण भणसि 'नत्थि' त्ति । 20 ततो भणति-एस मोरो निम्वियारो निक्खंतो. जइ मणुस्सो एत्थ होतो ततो भयत्थयाए सवियारो ऐतो । तओ हं गोमुहवयणं पमाणं करेंतो [गतो] लयाहरं सवयंसो, पस्सामि यऽत्थ मंदरमणीयं कुसुमसत्थरं अचिरकालभुत्तत्तयाए अब् ससत्तमिव । ततो भणियं गोमुहेणअचिरकालनिक्खंतो इओ विजाहरो, एयाणि से दीसंति तस्स पत्थियस्स पदाणि. अवस्सं खु तेण इहाऽऽगंतवं. इमं से पादवखंधलग्गं दीविचम्मकोसरयणं खग्गं, एएसिं कजे अव-25 स्स निवत्तियत्वं । तं च पदपद्धति निज्झायंतो गोमुहो भणइ-चारुसामि ! महंते हुसंसए वत्तए सो विजाहरो, अवि णाम न जीवेज त्ति । पुच्छिओ मया गोमुहो-कहं ? ति ।भणति-एयाणि किण्ण पस्सह अदीसमाणनिग्गमाणि आगासउप्पयणेण ऊसियसिकयाणि अवराणि दुवे पयाणि?. सो नूणं विजाहरो इह पाडिओ, एस से अक्खित्तपाडियस्स सरी १°या मो हासं नि क ३ ली ३ गो ३ । 'या साहसं नि मे० ॥ २ रे णिपु° उ २ ॥ ३ जत्ति शां०॥४०णे आलियाणि शां० विना ॥ ५ गहिय उ २ विना ॥ ६ ली ३ विनाऽन्यत्र-मो तत्तिए । त° शां० °मो त्ति । एत° क ३ गो ३ उ. मे० ॥ ७ °रमाणी° उ २ मे० विना ॥ ८ भुसंतमि शां० ॥९ ते उवसो वत्तए उ० मे०॥ व. हिं०१८ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ वसुदेवहिंडीए [चारुदत्तस्स अत्तकहा रबिंबदसणकओ अवगासो. दोण्ह वि मग्गसूयगो य सिकयाविक्खेवो दीसए इओ पकड्डिओ, इमाणि इत्थिपदाणि उवयंताणि दीसंति, ततो साणुकंपा अणुवयामु कणिमग्गं । दिट्ठाणि य पकिण्णाणि भूसणाणि, मारुयाकंपिओयंसब्भावोच्छेओ य इव पीयकं खोमं । ततो भणति गोमुहो-अहो चारुसामि ! सो विजाहरो पच्छा अवरेण अरिणा समासाइओ 5 वीसत्थो. सा य भारिया से अविजाहरी असमत्था पइकारे धरणिगोयरएणं भावेणं ति । भणिओ य मया मरुभूइओ-गेण्हसु एयाणि खोम-भूसणाणि, एयं च चम्मरयणं खग्गं. जहिं दच्छीहामो तहिं से अप्पिस्सामो त्ति । पत्थिया मो कट्टणिं अणुसज्जंता, अण्णत्थ सल्लइकोहरे दिट्ठा लग्गा मुद्धजा। भणिओ गोमुहेण हरिसीहो-अग्घायसु त्ति । ततो तेण अग्याइया, थिरगंधा य ते, आयवैतत्ता य णीहारि त्ति । गोमुहेण भणियं-चारुसामि! 10 इमे केस-वत्थत्थाइणो गंधा दीहाउणो समुप्पण्णस्स. इमे य मुद्धया सुगंधा (अन्यायम्३८००) सिणिद्धा अणुक्खयमूला य, तेण कारण सो विज्जाहरो दीहाऊ उत्तमो य. अणेण रायाहिसेओ पावियबो, तं अणुमग्गामु णं । ततो अम्हे पत्थिया । दिट्ठो य विज्जाहरो कयंबपायवसंसिओ पंचहिं आयसेहिं खीलेहिं विद्धो पंचहिं व इंदियत्थेहिं अंतराया-एको मउडसंधिम्मि, दो दोसु हत्थेसु, दो दोसु पाएसु । तस्स य मे दुक्खं दलूण अत्तणो मे 15 दुक्खं जायं । ततो मया तस्स वेयणापरिगयस्सावि णिज्झाइया अविवण्णा मुहच्छाया, सोम्मा गत्तच्छवी, आयसकीलुप्पालिएसु वि हत्थपाएसु लोहियं न निग्गच्छति, तिबवेयणापरिंगयस्स वि अमंदो ऊसासो । ततो हं एगंते निसण्णो पायवच्छायाए, भणिया य मया वयंसा-सुयपुवं मया साहुसमीवे विजाहरकहासु पवत्तासुं-विजाहराणं किल चम्म रयणमंडुक्कीसु ओसहीओ चत्तारि अत्ताणं रक्खिउं. ततो चम्मरयणमंडुक्की निज्झायह । 20 ततो सा वयंसेहिं विघाडिया, दिट्ठा ओसहीओ, न उण जाणामि विसेसं, ततो मया भणिया वयंसा-ओसहीओ सिलासु घसिऊणं खीररुक्खे सल्लं निवेसेह. तत्थ परिच्छिऊण विज्जाहरं जीवावेह । ततो तेहिं परिच्छियाओ सण्णायाओ य-इमा विसल्लकरणी, इमा संजीवणी, एसा संरोहिणी । ततो ते गया उवट्ठिया विजाहरं ओसहीओ पत्तपुडेसु काऊण, तस्स य जो पाणहरो कीलो उत्तमंगे सो मक्खिओ विसल्लीकरणीए, ततो पडिओ महीतले आयवतत्तं पिव कमलं, अणोयत्तं च से वयणकमलं. ततो तं अवलंबियं मरुभइएण । ततो लद्धबुद्धिविसेसेहिं दो वि वाम-दाहिणा हत्था मोइया, ते अवलंबिया हरिसीह-तमंतएहिं । सो य अरिणा मम्मत्थाणाणि परिहरंतेण बद्धो परिकेसबुद्धीए, तेण सो न विवण्णो। ततो पाएहिंतो विमोतिओ, कयलिपत्तसत्थरे य सन्निवेसिओ पीयंबरुत्तरीओ। अहं पुण गोमुहसहिओ पुरथिमेण णाइदूरे अवकमिऊण ठिओ पायवंतरिओ, दत्ता य 30 सरोहिणी वणेसु । भणिया य वयंसा–कयलिपत्तेहिं णं सलिलकणेहिं वीएऊण लद्धसणं नाऊण मम समीवं एजह त्ति । तेहिं जहा भणियं तं कयं । पञ्चागयसण्णो य सहसा १°वत्तामु शां. विना ।। २ °कंपियं सम्भा० उ २॥ ३ वे त° शां० विना ॥ ४ सारो शांविना ॥ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३९ अमिअगतिपरिचओ ] तइओ गंधवदत्ताभो । उद्घाइओ, भणियं च णेण गंभीरेण सरेण - ठीहि ठाहि धूमसिह !, दुरायार ! हिं गओ मुचिहिसि ? । ततो तं न परसति जस्स कुद्धो, अपडिसूरं च गजिऊण विलिओ । अम्हे पुण णीसहा ठिया । ततो दिसावलोयं काऊण के वि अपस्समाणो कमलसंड मंडियं तदासणं सरमवतिष्णो, उत्तिष्णो य व्हायसरीरो तहेव पीयंबरो कणगाभरणभूसिओ अब्भुजलिओ विय कोमुइसमओ । कओ य णेण उत्तरदिसिमभिमुद्देणं कस्स वि नमोक्कारो | 5 गोमुहेण भणियं - चारुसामि ! इदाणिं जाणति मित्ता ऽरिविसेसं ति । कओ अम्हे हिं आलावा अण्णोण्णसद्धिं । ततो सो उवगतो अम्ह समीवं, भणियं च णेणं - भो ! अहं अरिणा बद्धो के मोइओ ? त्ति । भणिओ गोमुहेण - अम्हं इब्भपुत्त्रेण चारुसामिणा साहुसमीवाओ विणायओसहिपभावेणं ति । ततो तेण कओ मम पणामो, भणियं च पेण-अहं तव जीवियकयकीओ दासो त्ति । भणिओ मया - मा एवं भणसु, भाया सि 10 ममं । अहिनंदिओ य निसण्णो धरणियले, पुच्छिओ हरिसीहेण - केण इमं सि आवतिं पाविओ ? केण वा कज्जेणं ? ति । ततो पवत्तो कहेअमियगतिविज्जाहर परिचओ अथ दाहिणाए सेटीए सिवमंदिरं नाम नयरं, तत्थे विज्जाहरराया लोयबहुमओ महिंदविक्कमो नाम, तस्स देवी सुजसा नामा, तीसे पुत्तो गहियविज्जो आगासगमण - 15 दच्छो अभियगती नाम, तं ताव जाणह ममं ' अमियगतिं 'ति । सो हं सच्छंद्गमणलालसो अण्णा कयाइ वेयड्डपायमूले सुमुहं नाम आसमपयं धूमसिह - गोरिपुंडेहिं वयंसेहिं सह गतो । तत्थ मम मायाए जेट्ठो भाया खत्तियरिसी हिरण्णलोमो नाम तावसो, सोय मया वंदिओ । सो भणइ - 'पुत्त ! अमियगति ! सागयंति त्ति भणतेण रूवसंपण्णा सहावसिद्धिगत्ता सिरिसमुदए वत्तमाणा उवणीया कण्णगा । भणियं च णेण - 20 अभिगइ ! एसा मम दुहिया सुकुमालिया नाम दारिया. जइ रोयइ एसा तो मए दत्त त्ति । तं च रुवस्सिणिं दट्ठूण मया अम्मा- पिऊहिं अणुष्णाए रागेण भणियं - पडिच्छिया मया गुरुवयणं पमाणं करेंतेणं ति । ततो विहिणा गहिओ से मया पाणी । कुलधम्मेण रमौमहे सह तीए, आणीया य नयरं, पूइया य राइणा । ण तं विज्जाओ गामि 'मा सच्छंद्गमणा होहिति' त्ति । धूमसिहो य मम विरहे समयणो बुग्गाहेइ सुकुमालियं । 25 साविक तर विकारा - ऽऽकार - भासियाणि, अहं न सदहामि, अत्थि पुणो मे संका । 1 कयाइं च कयपडिकम्मस्स मे केसे संठवेइ पिया धूमसिहो य, अहं पुण सयं आयंसकं धरेमि । पिटुओ य ठितो धूमसिहो अंजलि करेइ से पत्थणापुत्रं । सो मया आयं - सयच्छाया दिट्ठो । ततो मया रूसिएण भणिओ - अणर्जेस रिसो ते मित्तभावो, अवक्कम, । विवाहं । सो पडिभिण्णो संकिओ निग्गओ, न मे दंसणमुवेइ । सह पियाए 30 १ जाहि जाहि ली ३ । थाहि थाहि शां० मे० ॥ २थ राया विज्जाहरलोय' शां० ॥ ३ 'मामि य सह ली ३ ॥ ४°ज ! एरि° ली ३ ॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [ चारुदत्तस्स उदुसुहाणि य अणुभवमाणस्स अप्पमत्तस्स वच्चए कालो । अन्ज म्हि सदारो इहमागतो, ओवइओ दट्टण आलोयरमणीयं इमीए नदीए पयोधरभूयमिव पुलिणखंडं। ओवतियस्स अपजत्तीखमं रईय त्ति परिचत्तं । ततो गोमुहपरिकहियं सर्व परिकहियं--पय-कुवियपसादित-रमणीयाणि जाव लयाघराओ निग्गतो. समासादिओ मि विजाविरहिओ सत्तुणा 5 धूमसिहेण बद्धो. नीया य सुकुमालिया विक्कोसमाणी. तुब्भेहिं अम्हे सयाए बुद्धीए ओसहिबलेण जीवाविया. तं तुम्हे त्थ मे चारुसामी परमबंधू. आणवेह किं पियं उप्पाएमि? लहुं च मे विसज्जेह. सा (मा) तवस्सिणी सुकुमालिया मम जीवियनिरासा मायामयं तेण उवणीयं ममं कलेवरभूयं पस्समाणी पाणे परिचएज, तं परित्ताएमि णं, तस्स य धूमसिहस्स पडियरेज त्ति । ततो मया भणिओ-'वच्च, समेहि भारियाए सह, सुहय10 सोहणेसु कजेसु सुमरिज्जासु' त्ति विसजिओ ममं पणमिऊण उप्पइओ ॥ __ अम्हे वि उट्ठिया उज्जाणविभूतिं पिच्छमाणा णिग्गया वणाओ, उवगया अंगमंदिरं, पविट्ठा जिणाययणं, 'चेडेहिं उवणीयाणि पुप्फाणि, कयमच्चणं पडिमाणं, थुतीहिं वंदणं कयं, निग्गया मो जिणभवणाओ, पत्थिया मो नयरं। ततो हरिसीहो लवइ-चारुसामि णा अमियगति मोयंतेण धम्मो पत्तो जीवियदाणेण । गोमुहो भणइ-सच्चं धम्मो पत्तो, 15 अधम्मो वि पुणेत्थ दीसए-अमियगती गतो धूमसिहं साणुबंधं विणासिजति । तमं तगो भणइ-अत्थो हु पत्तो चारुसामिणा मित्तमूलो । गोमुहो भणइ-सचं एयं, अणत्थो य दीसति धूमसिहपक्खाओ । हरिसीहो भणति-तो किं खु पत्तं ? । गोमुहो भणति-कामो त्ति । तेणं भणियं-कहं ? । भणइ-कामो नाम इच्छा, अमियगतिजीवि यमिच्छियं चारुसामिणा, तं णूणं पत्तं जीवावितेण । एरिसीए कहाए पत्ता मो भवणं, 20 अवगयपरिस्समा ण्हाया कयबलिकम्मा, भुत्तभोयणाणं गतो दिवसो, वञ्चइ य उऊ सुहेणं । __ अण्णया कयाइ अम्मा गया भाउयस्स सबढस्स गिह, तस्स य दुहिया मित्तवती नाम रूववती, भोयणकाले य अम्मा रुब्भंती य सगिहं पत्थिया 'बहुं मे काय'ति भणंती। माउलेण भणिया-कीस एवं निसिणेहा सि?, जइ वि भाउजायाए सह न ते समाही मम पसायं करेहि त्ति । सा भणइ-जइ मे दारियं देसि तो संठिया पीई, इहरहा 25 वोच्छिण्णा इहं पीई संपयं । तेण पणएण भणिआ–को अण्णो पभवति तुमं मोत्तूण दारियाए ? जओ एवं भणसि. जइ पुण मम पसण्णा सि तो दिण्णा मय त्ति । एवं भणिए परितुट्ठा भुत्तभोयणा सभवणमागता । संदिट्ठा य णाए घरमयहरया ठियपडियानिमित्तं । ताओ पुण तं समयं रायकुले अच्छांते । ततो पियपुच्छयजणस्स दिजए गंधपुप्फं । तातो गिहागओ वद्धाविओ जणेण दारियासंपयाणेण य पसंसावयणेहिं । पुच्छियाए य 30 अम्मयाए से कहियं-मित्तवती सबढेण दत्त त्ति । तातेण भणियं--दुहु ते कयं दारियं पडिच्छंतीए, चारुसामिणा अहुणा गहियाओ कलाओ, विसयपसत्तस्स य से सिढिलाओ १ उववह उ. २ मे० विना ॥ २ चेडीहिं शां. विना॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्तकहा] तइओ गंधवदत्तालंभो। १४१ होजा। अम्माए भणियं-कहं कण्णं लद्धं अवमण्णेसि ? त्ति । तं च मे कहियं चेडीहिं । ततो सोहणे दिवसे संवच्छराणुमए य मुहुत्ते पाणं गाहिओ मि विहिणा तातेण । मित्तवतीय कयाणि कोऊयाणि कुलसरिसाणि । रमामि हं गंधवे नट्टे आलेक्खे य। ___ कयाइं च मित्तवती सगिहं गया, तत्थ · माउलाणीए य नियगाणि भूसणाणि दाऊण मज्जिय-पसाहिया-जिमिया विसज्जिया, अम्ह संतगाणि आभरणाणि तत्थेव ठवियाणि, 5 गिहागयस्स माउलगस्स दंसियाणि विकाले-इमाणि मित्तवतीए ससुरकुलसंतगाणि भूसणाणि, मया से अत्तयाणि दत्ताणि त्ति । तेण भणिया-कीस न पेसियाणि वीवाहिणीते ? भणिही 'परियट्टएण दिण्णाणि आभरणाणि' त्ति। तीए भणियं-पञ्चूसे सयमेव पञ्चप्पिणिस्सं ति । तस्स य वयणेण माउलाणीया पभायसमए अम्ह घरमागया। अहं उवज्झायसमीवं गतो। पडिबुद्धा य मित्तवती उवगया माउंयाए समीवं । पञ्चप्पियभूसणाए य माउलाणीए 10 दिट्ठा अपरिमलियविलेवणा, ततो णाए पुच्छिया-पुत्ति ! चारुसामी किमिह अज न वुच्छो ? अथवा कुविओ ते ? कीस एगागिणी वुच्छा ?। ततो तुहिक्का चिरमच्छिऊणं भणइ-पिसायरस दाऊणं बाहसि मं । तं च अम्माए सोऊणं सरोसं भणियं-हला ! वावत्तरिकलापंडिओ वि चारुसामी तव पिसाओ ? । सा भणइ-पिउच्छा ! मा कुप्पह, जो विरत्ते वि एगागी नच्चइ, गायइ, साहुक्कारे कस्स वि देइ, हसइ य, सो किह साभा-15 विओ ?. अहं छिण्णि कजे र्विं पस्समाणी पिसाएण कह विन घेप्पामि त्ति । तं च वयणं सोऊण अम्मका से रुदंती अम्म भणइ-तुम्हेहिं जाणंतीहिं मम वेरनिज्जायणं कयं, जं पुवं न कहिओ दारगस्स दोसो । अम्माए य भणिया-होउ, सह धूयाए अवत्तवाणि वदसि, न ते (ग्रंथाग्रं-३९००) सोहणं भवति. जह चिरं सोचिहिसि तह करेमि. वच्च, मा मे दंसणपहे ठाह त्ति । ततो सा विमणा सभवणं गया । तीसे य मएण माउलो सव्वट्ठो 20 आगंतूण अम्मं किर भणति-कीस दारगस्स चारुसामिणो ताणे किरिया ण कीरति ? कीस उवेक्खह ? त्ति । ततो अम्माए फरुसिओ-धूयं भजं च रक्खसु त्ति जहा पिसाएण ण घेप्पंति. घरिणीए सोऊण ममं पलीवेसि. वच्च, अवेहिं, मा छलिओ सि नामं ति । सो गतो । एयं पि मे सेजापालीए कहियं सपरिहासं। __ ततो अम्माए कुवियाए मम वयंसा गोमुहादी सद्दावेऊण भणिया-कुणह मे पियं, 25 चारुसामी गणियाघरे पवेसह त्ति । गोमुहेण भणियं-अम्मो ! ताओ णेण रूसिहिति, वसणपडिओ य दुम्मोयओ य होहिति, अलं गणियाघरपवेसेणं ति । ततो भणति-जइ सेट्ठी रूसिहिति मझं रूसिहिति. तुम्हे अपडिकूला मम वयणं करेह. किंच वो वसणदोसकहाए ?. "वसणी अत्थं विणासेज' त्ति सो मण्णे मम चिरचिंतिओ मणोरहो 'पुत्तो मे अत्थपरिभोत्ता कहं होज ?' ति. सो जातो. जति वित्तं विणासेइ वेसवसं 30 १०णिधेति प° शां०॥ २ °उलगासमी शां०॥ ३ अधवा उ० मे०॥ ४ विसप्पमा शां० ॥ ५पसा क ३ शां०॥ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ वसुदेवहिंडीए [ चारुदत्तस्स पत्तो ततो पुण्णो मे मणोरहो । ततो तेहिं पडिवण्णं । मम य कहिओ एस संलावो चेडीए-अजउत्त! इदाणि किर तुम्भे गणियाघरे वसिहिह ततो अम्हं दुल्लहदसणा होहिह त्ति । गएसु य कइसु वि दिवसेसु विण्णाविंति मं वयंसा-चारुसामि ! बच्चामो उजाणं, तत्थ भुत्तभोयणा कीलिऊण एहामो त्ति । मया भणिया-जइ भोज कीस ममं पढमं 5 न कहियं ? । ते भणंति-अण्णवक्खेवेणं, तं वा तुह किण्ण होइ जओ विहत्तं करेसि ?। ततो हं तेहिं सह पत्थिओ, पत्ता य मो उजाणं, 'आयवदोसेण तिसिओ मि' त्ति भणंतो ठितो मि पायवसंसिए पएसे वीसामकयबुद्धी । ततो हरिसीहो समीवपोक्खरणिमवतिण्णो, मुहुत्तमेत्तं अच्छिऊण वाहरति मं-एह, अच्छेरयं पेच्छह त्ति । गओ मि तस्स वयणेण, अवइण्णो पोक्ख रिणिं, भणिओ य-साह, किं ते अच्छेरं दिखै ? ति । 10 ततो तरुणिजुवतिवयणलावण्णचोराणि पउमाणि दंसेइ-पस्सह, पउमेसु कमलरागच्छवी रसो अदिट्ठपुवो मया, को होज ? त्ति । गोमुहेण णिज्झाइऊण चिरं भणियं-एयं पोक्खरमधु देवोपभोग्गं इह किह वि संभूयं. गिण्हह णं अविलंबियं पउमिणिपत्तपुडेहिं ति । तओ गहियं, जाओ य से समवाओ-एयं मणुस्सलोयदुल्लहं, किं काय ? ति । हरिसीहेण भणियं-रण्णो उवहवेमु, ततो काहिति तुट्ठो वित्तिविसग्गं 15 ति । वराहो भणति-रायाणो दुक्खं दीसंति, दिट्ठा वि लहुं न पसीअंति. अमञ्चस्स देमु, सो णे कजकरो भविस्सति । तमंतगेण भणियं-किमम्ह अमच्चेणं ?, अमच्चा राइणो कोसबुद्धिसमुज्जया वित्तेण सका तोसेउं, न दुल्लहदवेणं ति । मरुभोईतो भणति-नयरगुत्तियस्स देमु, सो विकालचरियाए कजकरो मित्तत्तं उवेहिति त्ति । ततो गोमुहेण भणिया-अयाणगा तुम्हे . अहं राया अमच्चो आरक्खिओ य चारुसामी 20 सबकजसाहगो. एयस्स एस दुल्लहवस्स भायणं, एयस्स चेव पसाएणं अम्हे हिं' वटुंति । ततो जेहिं सवेहिं भणिओ मि-पियसु कल्लाणेहिं ति । मया भणिया-किन्न जाणह ममं मधु-मंस-मज्जाणं अविण्णायरसे कुले पसूयं ? तो मं महुँ पजेउं इच्छह त्ति । गोमुहेण भणि-चारुसामि ! जाणामु एयं, किह व अकिच्चे तुम्हे निओएमु ?, न एयं मज, अमयं ति सुवति देवेपाओगं. मा ते अण्णहा बुद्धी भवउ. अपडिकूलेंतो मंगलबुद्धीए पियसु, 25 ण ते आयारातिकमो । ततो हं सामिपाया ! तेसिं अत्तसमाणं वयणेणं पडिवण्णो पाउं । पक्खालियपाणि-पाओ य आयंतो य पाईणमुहो पीओ य पउमिणिपत्तपुडएणं 'अमयं' ति मण्णमाणो । तं च सत्वगत्तपल्हायणं पीयस्स तुट्ठी जाया । आयंतो य भणिओ वयंसेहिंवच्चह ताव पुरओ वीसमंता, अम्हे पुप्फाणि गेण्हिस्सामो त्ति । ततो पत्थिओ मि । अपुवयाए य पाणस्स मयसमारंभंते भमंते इव पायवे पस्सामि, चिंतेमि य-किं मण्णे 30 अमियस्स एरिसो परिणामो ? उदाहु उवायपुवं महुँ पाइओ मि ? त्ति । एवं च चिंतेमि ताव असोयपायवसंसिया दिहा य मया अम्मया महग्घभूसणालंकियसरीरा, सुद्धाणि १०हिं चिट्ठति गो ३ । हिं दिलु ति उ. मे०॥ २ °वोपओ° उ २ मे०॥ ३ अमयकस्स शां०॥ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्तकहा ] तइओ गंधवदत्तालंभो । १४३ खोमाणि परिहिया, पढमे ए वत्तमाणा । सा मं वाहरइ अग्गंगुलीहिं, गतो मि से पासे, 'रुववती का एस ?' त्ति चिंतेमि । सा ' सागयं' ति भणति । पुच्छिया मया - भ ! का तुमं ? ति । सा भणइ - इब्भपुत्त ! अहं अच्छरा देवरण्णा तुह समीवं पेसिया सेविउं । मया भणिया-ममं देवराया कहं जाणइ ? जओ तुमं पेसेइ त्ति । सा भइ महागुणो त पिया पयासो, तस्स पीइनिमित्तं पेसियं जाणसु. मा य ते संभमो 5 होउ, अम्हे सबस्स ण दंसणं देमो, ण वा अकयपसाओ अम्हे मस्सो परिसउं समत्थो त्ति. जइ न पत्तियसि एए तव वयंसा ममं न पस्संति, तुमं पि मम पभावेणं ण दच्छंति, केवलं तुण्हिको होहि त्ति । तो ते पासगयं पि ममं अपस्समाणा पुणो पुणो वाहरमाणा अइच्छिया, थोवंतरगया पडिनियत्ता 'नत्थि पुरओ, उबत्तो मण्णे होहिति' त्ति 'चारुसामि ! कत्थ सि' त्ति जंपमाणा । ततो सा भणइ–पेच्छ मे पहावं, इयाणि तुमं परसंतु 10 त्ति । ततो दिट्ठो' मि हिं । भणति — कत्थ सि अच्छिओ ? अम्हेहिं इओ वोलंतेहिं न दिट्ठोत्ति । मया भणिया- -इहेव द्विओ मिति । ततो भणति वश्चामो त्ति । पत्थिओ मि, खलइ मे गती मयदोसेण । सा मं भणति - वयंसा ते ममं न पस्संति, वीसत्थो होहि । अवलंबिओ मिणाए दाहिणेण हत्थेण बाहू, सीसं । मया वि य खलंतगतिणा कंठे अवलंबिया । गत्तफरिसेणय 'वासव अच्छरा एसा धुवत्ति संजायमयणो कटयियसबंगो तीए 15 परिग्गहिओ पत्तो मि सवयंसो कम्मगरपुरिससज्जियं भोयणत्थाणं । निसण्णाण य दिष्णं भत्तं पत्तेयं सवेसिं, सा मया सह निसण्णा आसणे, भुंजामि, निद्दाए बाहेज्जामि, मयदोसेण सिमिणायमाणो इव सुणामि तेसिं वयणं - एसो ते अप्पिओ अम्हेहिं । ततो य [चिंतेमि] पवहणमारुहिय नीओ सह तीए, पत्तो भवणं, अवयारिओ य तीए पवहणाओ, सरियाहिं तरुणीहिं परिवितो मि । सा मं भणइ - इव्भपुत्त ! आणीओ सि मे विमाणं, 20 अणुभवसु मया सह विसए निरुस्सुओ । ततो ताहिं समेतो गतो व कणेरूहिं महुरवाइणीहिं ताहिं मि पाणिं गाहिओ । अइणीओ गव्भगिहं गायमाणीहिं । ' अच्छरे' त्ति निच्छिओ रइपरायणो पत्तो, विबुद्धो मयपरिणामे, परसामि य वसंततिलयाभुवणं । सा मया पुच्छिआ - कस्स इमं गिहं ? । सा भणइ - इमं विमाणं मम । मया भणियामाणुसगिहसरिसं न एयं देवभवणं ति । सा भणइ - ' जइ हु एवं तो सुणाहि जो इत्थ 25 सब्भावो - इब्भपुत्त ! अहं वसंततिलया गणियादारिया कण्णयाभावे वत्तमाणी कलासु प्रसत्ता गमेमि कालं. न मे धणे लोभो, गुणा मे वल्लहा, तुमं च मे हियएण वरिओ, ततो अमाणुमण गोमुहादीहिं तव वयंसेहिं उज्जाणे उवायपुत्रं मम समपिओ सि' त्ति भणंती उहिया, कओ य वत्थपरियट्टो, उवगया य ममं कतंजली विष्णवेइ - इब्भपुत्त ! अहं वो 1 १ परिहाणि पढ° उ २ मे० ॥ २ समीचे ली ३ ॥ ३ संसओ उ० मे० ॥ ४ ओ अजउत्तो म° ली ३ संसं० ॥ ५ मे इमं पली ३ । मे इ प° क ३ गो ३ शां० ॥ ६°ट्ठो मडणेहिं ली ३ क ३ गो ३ ॥ ७ रुहिओ मिणी उ० भे० । रुहिऊण य णी क ३ ॥ ८ °हिं वि पा० शां० विना ॥ ९ 'रत्तनि' शां० ॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ वसुदेवहिंडीए [चारुदत्तस्स सुस्सूसिया, पडिच्छह मं भारियाधम्मेण, एयाणि वो खोमाणि कण्णाभावदंसियाणि, अहं ते जावज्जीविया उवायकारिणि त्ति। ततो मया संबंधरागेण भणिया-भद्दे ! तुमं सि मे सवसस्स अवसस्स वा मे भज्जा । ततो तीए सहिओ सच्छंद विहरामि, परिभोगं च अम्माविसज्जियं जोग्गं दंसेइ मे वसंततिलया, दक्खिणं पि सहस्सं अट्ठहियं, ऊसवेसु पुण सयसहस्सं अट्ठ5 संहस्साहियं । एमेव ताए सह रममाणस्स विसयसुहमोहियस्स गयाणि दुवालस वरिसाणि । अण्णया पाणं पाऊण सह पियाए पसुत्तो, विबुद्धो य सीयमारुयवीइओ न पस्सामि वसंततिलयं । उढिओ मि ‘कत्थ मण्णे वतामहे' त्ति चिंतयंतो पस्सामि भूयघरगं रच्छामुहकयं । पञ्चभिणायं च पुवदि8, 'उज्झिओ हं गणियाए, जाव न कोइ पस्सति ताव सगिहं वच्चामि' त्ति । पचूसो य वट्टए, पत्थिओ मि, पविसंतो य नियगभवणं 10 निवारिओ दारट्टिएण-मा पविस, को तुमं? । मया भणिओ-सोम! कस्सेयं भवणं ? ति । सो भणइ-इब्भस्स रामदेवस्स त्ति । मया भणिओ-न सेट्ठिणो भाणुस्स ? । सो भणइ-तस्स सेट्ठिस्स दुपुत्तो जाओ चारुदत्तो, सो गणियाघरं पविट्ठो, तस्स सोएण सेट्ठी परिचत्तगिहो पबइओ. खीणे य धणे घरणीए घरं आडतं, गया य भाउगस्स गिहं सबट्टस्स त्ति । सो य आलावो सुओ रामदेवेण अब्भंतरगएण । पुच्छिओ अणेण 15 दारिट्ठो-को एसो ? त्ति । तेण कहियं-कोइ भाणुसेट्ठिस्स भवणं पुच्छइ, होज से पुत्तो त्ति । सो भणइ-अलच्छीओ मा मे घरं पविसउ त्ति । ततो हं लजिओ दुयमइकंतो सोगभरसमुच्छओ गतो भवणं सबस्स त्ति । पविट्ठो य, दिट्ठा य मे अम्मा दरिद्दवेसा दीण-विमणवयणा । ततो से चलणेसु अहं पडिओ, तीए पुच्छिओ-को तुमं? ति । मया भणियं-अहं चारुदत्तो त्ति । ततो तीए अवलंबिओ, परुण्णा मो । रुदितसद्देण 20 उवगतो सबद्रो, सो वि य परुण्णो । ततो संठविया मो परियणं । दिट्ठो मि मित्तव तीए तक्खणमलिणवसणाए, भट्ठचित्तभित्ती इव गयसिरीया पायपडिया मे रुयइ । सा वि मया भणिया-अलं रुदितेण, सचेट्ठिएण सि किलिट्ठा । भणिया य संठिया । वीहीओ निप्फावे आणेऊण सज्जियं भोयणं । भुत्तभोयणेण य पुच्छिया मया अम्मा-अम्मो! किं सेसं धणस्स ? त्ति । सा भणइ-पुत्त ! अहं न याणं निहाणपउत्तं वा वड्डिपउत्तं वा परि25 जणपवित्थरपउत्तं वा. सेट्ठिम्मि गए पवइउं विणढं दासी-दासगयं, तुझ परिभोगे सोलस हिरण्णकोडीओ भुत्ताओ, अम्हे जहा तहा वट्टामो त्ति । ततो मया भणियाअम्मो! इहं 'अपत्तं' ति दाइजमाणो जणेण न सत्तो परिवसिउं. वच्चामि दूरं, अजेऊण विभवं आगमिस्सं, तुझं पादप्पसादेण अवस्सं उवजेहं ति । सा भणइ-पुत्त! तुमं अखे दण्णो ववहरिलं, विदेसे कहं वसिहिसि ?. अम्हे दुवे जणीओ तुम अणिग्गयं वट्टावे30 हामि-त्ति । मया भणियं-अम्मो! मा एवं (ग्रंथानं-४०००) संलवह, अहं भाणुसेहिस्स पुत्तो एवं वट्टीहामि ? त्ति. मा तुम्हं एयं मणसी होउ, विसजेह मं । तओ भणइपुत्त! एवं होउ, संपहारेमि ताव सबढेण समं ति। १ मे उ० मे०॥ २ °सयसाहि° शां० ॥ ३ °पणा सा । रु° ली ३॥ ४ याणामि नि° उ २ विना ॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्तकहा ] तइओ गंधवदत्तालभो। १४५ कयनिच्छओ य सह माउलेण दिग्गओ नयराओ पायचारेणं बहुं चिंतयंतो वेसवासदोससंबद्धं । पत्ता मो उसीरावत्तमंतिमासणं गाम । तस्स बहिं ठविओ मि माउलेण । अतिगतो य सो गामं, कस्सय कालस्स निग्गतो पुरिसेण अब्भंगणा-ऽऽच्छादणा-लंकारवत्थहत्थेणाणुगम्ममाणो । ततो पहायो मि नदीये, कयपणामो लोगुत्तमाणं जिणाणं । अइगया मो गामं, पस्सामि य कम्मंतवावारे गामे पउट्ठिए य देस-कालनिवेसे विपणीए 5 उववणेण नयरमिव सो गामो लक्खिजति । पविट्ठा य मो एग विभत्तरच्छंतरं गेहं । विसमावकासे कयपायसोया भोयणत्थाणे गामवाससुलभं भोयणं गोरसबहुलं भुत्ता मो । रत्तिं च चिंतापरो तत्थ वुत्थो, खयं गया य संवरी । भणिओ मि माउलेण-चारुसामि! इमो दिसासंवाहो गामो ककुहभूओ जणवयस्स. विसिट्ठो य ववहारो इहं ववहरिजउ. इहं च ते तायस्स कम्मतसम्बद्धा अस्थि कुडुम्बिणो, जेहिंतो सक्का हिरणं घेत्तुं ति । मया पडि- 10 वनं-एवं होउ त्ति । ततो अंगुलेयगकीएण भंडेण तत्थ ववहरंतो बहुमओ मि जाओ जणस्स गामवासिणो । उवछुभति भंडं माउलो सबविदेससंठियं सुत्तं रूओ य । अण्णया य विगाढे पंओसे मूसगेण वत्ती हरतेण रुओ पलीविओ। कहंचि निग्गओ मि आवणाओ । बहूदड्डा य आवणा परित्ताइयं जणेण जं सावसेसं । पभाए समासासिओ मि गामेयगेहिं । पुणो क्वहरतेण संपिंडियं सुत्तं रूओ य, भरियाणि सगडाणि, गया मो सत्थेण 15 समं उकलविसयं, तत्थ गहिओ कप्पासो, भरियाणि सगडाणि, पत्थिया मो तामलित्तिं, कमेण पविट्ठा मो अडविं, संठिओ य सत्थो गहणासण्णपएसे, अइवाहियबलेण वीसत्थो जणो । सूरत्थमणे य ओवइया तकरा, उद्धंताणि अणेहिं सिंगाणि, आया पडहा, मुहुत्तं धरिया अइवाहिएहिं, विहग्गा य सह सत्थिएहिं, पुणो य विकाले पलीवियाणि सगडाणि, विलुपंति भंडाणि चोरा । तम्मि य संभमे अहं गहणमतिगओ सबटुं न पस्सामि । वंसलयाए 20 अंधकारस्स धूमेण पच्छाइयासु य दिसासु वग्घगुंजियसद्दपरिभूओ य अवकंतो ततो पदेसाओ । दवम्गिणा परिवड्डमाणेण य भयदुयकप्पडियसहायो य किच्छेण अइच्छिओ अडविं। न जाणं पुण 'कहिं गतो सबट्ठो?" त्ति । चिंतियं च मया-न सक्का अपरिचएणं गिहं दटुं, उच्छाहे सिरी वसति, दरिदो य मयसमो, सयणपरिभूओ य धी जीवियं जीवइ, सेय चिहिउं ति । जणवयाओ जणवयं संकम्मतो कमेण पत्तो पियंगपट्टणं । हाओ य अतीओ 25 वीहिं पस्समाणो आभट्ठो वणिएणं मज्झिमे वए वट्टमाणेणं सोमदसणेणं-भो इन्भपुत्त! चारुदत्तो भवसि तुमं ? ति । मया भणिओ-आमं, होमि त्ति। ततो परितुढेण भणिओ-आरुहसु आवणं ति । आरूढो मि आवणं, अवतासिओ गेण अंसूणि मुयमाणेण । निसण्णो आवणे। भणइ य ममं वणिओ-अहं चारुसामि! सुरिंददत्तो नाम नावासंजत्तओ तुम्हं १०वरिया। म° शां० विना ॥ २ पदेसे शां० विना ॥ ३ रूवो प° शां. विना ॥ ४ उकूल शां. विना ॥ ५ समए अ° शां० ॥ ६ रिभीओ शां० ॥ ७ का प° शां० ॥ ८ सेउं चि° शां० विना ।। ९ रुदत्तसामि ! रुद्ददत्तो उ १० विना ॥ व. हिं० १९ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ वसुदेवहिंडीए [ चारुदत्तस्स 1 अंतेवासी. सुयं च मया 'सेट्ठी किल पवइओ, तुमं गणियाघरे वट्टसि' त्ति, तं कहेहि इह - मागमणकारणं ति । ततो से मया कहिओ सबो पबंधो । ततो तेण अम्हि भणिओ-मा वच्च विसायं, इमो विवो तव, अहं च ते विधेयो त्ति । नीओ य अणेण सिंह, व्हायजिमिएण य मया भणिओ-ता देहि मे सतसहस्सं पक्खेवं, सेसं तुम्हं ति । तेण दिण्णं 5 तुट्ठेण । ततो नियगघरे इव वसंतेणं सज्जियं जाणवत्तं, भरियं भंडस्स, गहिया किंकरा सह संजत्तएहिं, पेसिया य खेमवट्टमाणी सबट्टस्स, गहिओ य रायसासणेण पट्टओ, अणुकूलेसु बात-सउणेसु आरूढो मि जाणवत्तं, उक्खित्तो धूवो, चीणथाणस्स मुक्कं जाणवतं, जलपण जलमओ विव पइभाइ लोगो, पत्ता मु चीणत्थाणं । तत्थे वणिज्जेऊण गओ मि सुवणभूमिं । पुवदाहिणाणि पट्टणाणि हिंडिऊण कमलपुरं जवणदीवं सिंहले य 10 बलंजेतूण, पच्छिमे ये बब्बर- जवणे य अजियाओ अट्ठ कोडीओ । भंडलग्गाओ ताओ नलपहगयाओ दुगुणाओ हवंति, ततो जाणवत्तेण सोरहकूलेण वच्चमाणो आलोइयकूलस्स य मे उप्पाइयमारुयाहओ विणट्ठो सो पोतो, मया चिरेण पत्तं आसादियं, अवलंबमाणो वीइपरंपरेण विच्छुग्भमाणो सत्तरत्तस्स उंबरावइवेलाए विच्छूढो म्हि समुओ उत्तिणो, खारसलिलपंडरसरीरो, संठिओ कुडंगस्स हेट्ठा, निसण्णो वीसमामि । उवगतो य तिदंडी, तेण उवणीओ गामं अवलंबतेण, नियगावसहे य दिण्णो अब्भंगो, पुच्छियं इमं - कहं इब्भपुत्त ! इमं आवतिं पत्तो सि ? । मया निग्गमो विणिवाओ य संखेवेण कहिओ । ततो रुट्ठो भणइ-हुँ, मे णीहि आवसहाओ अलच्छीउत्ति । निग्गतोय तम्मि विवणे, थोवंतरं च गतो नियत्तिओ त्ति - पुत्त ! मया विणयणत्थं निव्भच्छिओ. अजाणओ सि जो मच्चुत्थाणे छुभसि अप्पाणं. जइ धणत्थिओ सि अम्ह विहे - 20 ओ होह. उवासतो ते अकिलेसेण होहिति वित्तं ति । तओ व्हविओ मि तस्स किंकरेण मस्सेण, पीओ जवागुं, एवं मे गया कइवइदिवसा । संधुक्कियमग्गिं काऊण ममं भणइ परिवायगो—पेच्छ । तओ णेण काललोहं मक्खियं रसेण, छूढं अंगारेसु, धंतं भच्छएण य जाये पहाणं सुवण्णं । ततो भणइ - पुत्त ! दिट्ठे ते ? । मया भणियं - दिहं अचम्भुयं ततो भणति—अहं जइ अहिरण्णो सुवण्णिओ य महंतो. तुमं पुण मे दट्ठूण पुत्तसि 25 जातो. तुमं च अत्थनिमित्ते किलिस्सासि, तं गच्छामि तव निमित्तं. रसं आणेमु सयसहसवेहिं ततो तुमं कयकज्जो सगिहं गमिस्ससि त्ति एस पुवगहिओ रसो आसी ईसि त्ति । ततो हं परितुट्ठो लुद्धो - तात ! एवं कीरउत्ति । तेण य सज्जिया उवक्खरा पाहेयं च । ततो कालरत्तिं निग्गया गामाओ पैत्ता अडविं सावयबहुलं, रत्तिं गच्छामो, दिवा पच्छणा अच्छामो पुलिंदाणं भएणं । कमेण य पबयकंदरं विणिग्गया पत्ता मो एक्कं तण30 पच्छण्णं कूवपदेसं । तत्थ चिट्ठितो परिवायगो, अहं पि णेण भणिओ - वीसमह त्ति । 15 १ थ वलंबेऊण शां० विना ॥ २ य पचasa शां० ॥ ३हूं ? । तो म° शां० ॥ ४ पवण्णा अ° शां० ॥ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्तकहा ] तइओ गंधबदत्तालंभो। १४७ ततो सो चम्मकुप्पासयं परिहिऊण पविसिउमारद्धो । मया भणिओ-किं इमं ताय ! ? त्ति । सो भणइ-पुत्त ! कूवो तणच्छण्णो अहोमुहमल्लगसंठिओ. एयस्स मझे वइरकुंडं, तत्थ सो रसो निस्संदति. अहं उयरामि, तुमं ममं लंबेही आसंदगोपलग्गं, पच्छा तुंबं अहं भरेमि रसस्स त्ति । मया भणियं-अहं उयरामि, मा तुन्भे । तेण भणिओ-मा पुत्त! बीहेजासि त्ति । मया भणिओ-न बीहेमि । पविट्ठो मि चम्मकुप्पासयं । तेण य5 जोगवत्तिं पलीवेउ उलंबिओ मि, पत्तो मि तलं कूवस्स, दिटुं रसकुंडं, लंबिओ तेण तुंबो, मया कडुच्छएण भरिओ, छूढो आसंदए, उक्खित्तो परिवायगेण चालिए रज्जुम्मि । अहं पडिच्छामि-पुणो आसंदयं ओलंबिहिति मम निमित्तं ति । अहं वाहरामि-तात! अवलंबेहि रज्जु ति । दूरमोगाढो कूवो, गओ य परिवायगो ममं महापसुं पक्खिविऊण कूवस्स । मया वि तओ चिंतियं-मओ मि अहं लुद्धो, जो न मओ सागराओ । विज्झायाओ 10 जोगवत्तीओ दीवियाओ । ततो विभाए ण दीसति रवी, मज्झण्हे य पगासिओ कूवो । परसामि य हेट्ठा अईव वित्थयं संकुचितमुहपएसं । चिरस्स य निज्झायंतेण दिह्रो नाइदूरे कुंडस्स पुरिसो किंचिसेसप्पाणो। सो मया पुच्छिओ-किहि सि इहागतो सि ?त्ति । तेण महया दुक्खेण भणिओ-अज! परिवायगेण । मया भणियं-अहमवि तेणेव । तओ पुच्छिओ मया-वयंस! होज कोइ उवायो निग्गंतुं ? ति। सो भणइ-इहं रविरस्सिप-15 गासिए कूवे महती गोहा आगच्छति ऐतंसि विवरए उदयं पाउं, तेणेव चिय मग्गेण णीइ. अहं भीरू असाहसिओ य खीणपायपाणयाए न निग्गतो. जइ साहसं भयसि तीए पुच्छे लग्गसु, तो होज निग्गमो त्ति। ततो अहं उदयसमीवे पडिच्छामहे गोहं, आगया य महंती विकिट्ठवट्ठा गोधा सुरंगादारेण, पीयं जलं, निग्गच्छंती य मया पुच्छे अवलंबिया । ततो सुरंगाविलेण कंडकगतीए सा ममं कटुंती दूर गंतूण निग्गया । चम्मकु-20 प्पासगुणेण म्हि निच्छोडिओ । ततो मुक्कगोहापुच्छो विमग्गामि कूवं, न पस्सामि, रत्तिं आणीओ न याणामि पएसं ति । ततो हं विमग्गमाणो लोभाभिभूओ वणमहिसेण लंघिओ, सो मं पंधावेइ, तस्स पलायमाणो आरूढो महंतं सिलासंचयं अगम्मं महिसस्स। सो कुद्धो, अमरिसेण महंतेण आहया णेण सिला, तस्स पहाराभिधारण णिग्गतो महंतो अयगरो, तेण गहिओ महिसो पच्छिमभाए, ठितो निट्ठरो। अहमवि भीओ महिसस्स 25 सिरे पायं दाऊण लीणो एगते । ___ तओ पलाओ वणे कंटकेसु परीमि तण्हा-छुहाभिभूओ, दळूण चउप्पहं संठिओ, 'अवस्सं एत्थ मग्गेण कोइ एहि' त्ति । दिट्ठो य मया रुद्ददत्तो, सो मं पाएसु पडिऊण परुण्णो भणइ-तुब्भं अहं अंतेवासी, कओ सि इहमागतो चारुसामि ! त्ति । ततो से मया सवो १ति । सो गतो, अहं शां० विना ॥२ मुओ शां ॥ ३रे। वि शां०॥ ४ किहमिहा शां० ।। ५°एतम्मि शां०॥६°ती कविडवण्णा गो शां० विना॥ ७ परिधाडेइ शां० विना ।। ८ क ३ विनाऽन्यत्रनिष्फरो शां० ॥९°ण दीणो शां० विना ॥ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ वसुदेवहिंडीए [चारुदत्तस्स वुत्ततो कहिओ अइक्कतो । ततो दिण्णं करगोदगं तेण, पाहेयं च णेण । सत्थं च मर्म भणइ-अहं भे इदाथि पडियारंगो, कीरउ वाणिजं, वच्चामु रायपुरं ति । ततो गया रायपुरं रुद्ददत्तमित्तघरे वीसमामु । गहियं भंडं रुद्ददत्तेण–पडिसिराओ, मंडणगं, अलतगा, रत्तेल्लगाणि पोत्ताणि, कंकणाणि त्ति । भणइ य ममं-चारुसामि! मा विसायं 5 वच्चह. तुम्भं भागधिज्जेहिं अप्पेण पक्खेवेण सरीरचिट्ठागुणेण बहुं दवं उवजेयवं. एस जणो दव्योवजणाए सत्थो गच्छति, उढेह, अम्हे वि तेण समं वच्चामो त्ति । ततो मिलिया मो, पाविया य सत्थं, कमेण उत्तिण्णा मो सिंधुसागरसंगमं नदिं, वच्चामो उत्तरपुवं दिसं भयमाणा, अतिच्छिया हूण-खस-चीणभूमीओ, पत्ता मो वेअड्डपायं संकुपहं, ठिया सत्थिया, कओ पागो, वणफलाणि य भक्खियाणि, भुत्तभोयणेहि य कोट्टियं (ग्रन्थानम्-४१००)तुंबर10 चुण्णं सत्थिगेहिं । भणिया पुरंगमेण-चुण्णं परिगेण्हह, परिकरेण बंधह चुण्णस्स उच्चोलीओ, भरेह भंडं पोट्टलए, कक्खपएसे बंधह. ततो एतं छिण्णटंकं कडयं विजयाण दिदहं अत्थग्घमेगदेसे संकुकयालंबणं संकुपहं कमिस्सामो. जाहे हत्था पसिजंति ताहे तुंबलं परामुसिज्जइ, ततो फरुसयाए हत्थाणं अवलंबणं होइ, अण्णहा उवलसंकूओ नीसरिय निरालंबणस्त छिण्णदहे पडणमपारे भविज त्ति । ततो तस्स वयणेण तुंबरुचुण्णाइगहणपुर्व सवं कयं, 15 उत्तिण्णा मो सवे संकुपह, पत्ता मो जणवयं, ततो पत्ता मो उसुवेगनदि, तत्थ ठिया, पक्काणि वणफलाणि आहारियाणि । ततो पुरंगमेण भणियं-एसा नदी वेयड्डपबयपवहा उसुवेगा अत्थग्घा. जो उत्तरेज सो उसुवेगगामिणा जलेण हीरिज, न तीरए तीरिच्छं पविसिउं ति. एस पुण पहो गम्मइ बेत्तलयागुणेण. जया उत्तरो वाऊ बायइ ततो पवयं तरविणिग्गयस्स मारुयस्स एगसमूहयाए महंता गोपुच्छसंठिया सभावओ सिउ-थिरा 20 वेत्ता दाहिणेण णामिजंति. नामेजमाणा 'उसुवेगनदीए दक्खिणकूलं संपावेंति' त्ति अवलं. बिज्जति. अवलंबिएसु वेलुयपॅव्वाउदरा छुब्भंति. ततो जओ दाहिणो वाऊ अणुयत्तो भवइ ततो सो उत्तरं संछुभइ. संछुब्भमाणेसु वेलुपवसरणेसु पुरिसो उत्तरे कूले छुन्भइ त्ति गेण्हइ वेलुपव्वे. मारुयं पडिवालेह त्ति । तस्स मएण गहिया वेलुपव्वाउदरिया, बद्धं भंडं परिकरा य । मारुयं पडिवालेता जहोपदेसं दक्खिणवाउविच्छूढवेत्तवंसोवतरणेण ठिया मो उत्तर25 कूले । वेत्तलयागुविलं च पव्वयकडगं सोहयंता मग्गं अइच्छिया, गया टंकणदेसं । पत्ता मो गिरिनदीतीरं, सीमंतम्मि संठिओ सत्थो । भुत्तभोयणेहिं पुरंगमवयणेण नदीतीरे पिप्पिहं विरइयाणि भंडाणि, एगो य कट्टरासी पलीविओ, अवता य मो एगंतं, अग्गि सधूमं दट्टणं टंकणा आगया, पडिवणं भंडं, तेहिं पिं कओ धूमो, ते गया पुरंगमवयणेणं नियगट्ठीणं, निबद्धा छगला फलाणि य गहियाणि सथिएहिं । तओ पत्थिओ सत्थो १ कट्टहडगंतेण शां०॥ २ अम्हे इदाणिं पडियारगा शां०॥ ३ रणिगो ली ३ ॥ ४ °रसमं शां० विना ।। ५ °बरचुली ३ शां० । एवमग्रेऽपि ॥ ६ उवेली ली ३ गो ३ । उखेली क ३॥ ७ पुव्वा शां० विना । एवमग्रेऽपि ॥ ८ णेण पु° शां० विना ॥ ९ पिहो की शां० विना ।। १० ठाणनिविद्वा छ° शां०॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्तकहा ] तइओ गंधवदत्तालंभो। १४९ सीमानदीतीरेण, पत्ता मो अयपहं, वीसंता कयाहारा पुरंगमवयणेण अच्छीणि बंधिऊण छगलमारूढा वज्जकोडीसंठियं पव्वयं उभओपासछिण्णकडयं अइक्ता। सीयमारुयाऽऽहयसरीरा संठिया छगलगा, मुक्काणि अच्छीणि, वीसंता समे भूमिभाए, कयाहारा य भणिया पुरंगमेण-मारेह छगले, चम्मभत्थे सरुहिरे ठवेह, अयमंसं पइत्ता भक्खेह, बद्धकडिच्छुरिया भत्थगेसु पविसह. तओ रयणदीवाओ भारुडा नाम सउणा महासरीरा इहाऽऽग-5 च्छंति चरिउं. ते इहं वग्घ-ऽच्छभल्लहयाणं सत्ताणं मंसाई खायंति, महंतमंसपेसी निलयं नयंति. ते वो सरुहिरे भत्थगपविढे 'मंसपेसि' त्ति करिय उक्खिविय इस्संति रयणदीवं. निक्खित्तमेत्तेहि य भत्थया फालेयव्वा छुरियाहिं. तओ रयणसंगहो कायव्वो. एस रयणदीवगमणस्स उवातो त्ति. रयणसंगहं च काऊण वेयड्डपायसमीवे सुवण्णभूमिमागम्मत्ति. ततो जाणवत्तेण पुव्वदेसे आगम्मइ त्ति । ततो सत्थिया तस्स वयणेण छगले 10 मारेउं पवत्ता । मया भगिओ रुद्ददत्तो-नाऽहं एरिसं वाणिजं जाणामि. जइ जाणंतो न एतो. तं ममं छगलं मा विवाडेह. एएण अहं कंताराओ नित्थारिओ, तो एयस्स उवयारो जुत्तो । रुद्ददत्तो भगति-किं तुम्हे एगागी करिस्सह ? । मया भणिओ-विहीए देहपरिचायं करिस्सं । ततोसो ममं मरणभीरू सत्थियसहिओ तं छगलं मारेउकामो। अहमेगागी न समत्थो निवारेउं । सो पुण छगलो ममं निवारणुजयं दीहाए दिट्ठीए निझाएइ एगग्गचित्तो। 15 ततो मया भणिओ-हे छगल! असत्तो हं तुहं रक्खिउं. सुण पुण-जइ ते वेयणा, अत्थि तुमे पुवकओ नूणं मरणभीरूणं सत्ताणं वहो. ततो सयंकडकम्माणुभवणं, ण ते पओसो निमित्तभूए कायवो. भयवंतो अरहंता वीयराग-दोस-मोहा अहिंसा सच्चं अदिराणदाणविरती बंभचरियं निम्ममत्तं च संसारवोच्छेदं भासंति. तं सवं सावजं जोगं वोसिर सरीरमाहारं च, 'नमो अरहंताणं' ति य वयणं चित्ते निवेसेहिं, ततो ते सोग्गती 20 भविस्सति । एवं च भणंतस्स य मे छगलो अंसुपुण्णमुहो पणओ ठिओ। मया वि से उच्चारियाणि वयाणि, पञ्चक्खायं भत्तं, अरहंतनमोकारो य सिद्ध-साहुसहिओ उदीरिओ। ततो सो संविग्गो चित्तलिहिओ विव निप्पकंपो विवाडिओ तेहिं । कया भत्था, रुद्ददत्तेणं पायवैडिएण पवेसिओ भत्थं, सत्थिगा वि पविट्ठा णियगे । ततो कीय वि वेलाए उवतिया सउणा, ते सदेण तकिया, तेहिं आमिसलोलेहिं उक्खित्ता भत्थगा, अहं पुण 25 दोहिं भारंडेहिं गहिओ । कहं पुण जाणामि?, आगासे हल्लाविजमाणो कंदुगो विव उवायो पाएहिं निजामि, दूरं च णीओ । भंडमाणाणं तिवामरिससंपलग्गाणं पडिओ वयणाओ महदहे । पडतेण य मए भिण्णो भत्थओ छुरियाए, पवंतो उत्तिण्णो जलाओ । ततो गगणं निज्झामि, पस्सामि य सथिए गच्छमाणे विहंगभत्थजाणेहिं । मदीयं च भत्थं सउणा गहाय गया । चिंतियं च मया-अहो! कयंतो मं बाहति, अहवा पुरादुच्चरिएण 30 मे इमा अवत्था । ततो मे चिंता जाया-न मे खमं पुरिसगारस्स, अहं मरिउ आरुहामि १णेस्सं शां० ॥ २ °ज्झायत्ति शां० ।। ३°वडणेण शां० विना ॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [ अमिअगतिसेसपरिचओ पवयं, जओ समो भूमिभागो तओ पवजिस्सं । ततो कयववसाओ दुरुहिउमारद्धो पक्वयं, साहामिगो इव हत्थ-पाएहिं लग्गमाणो कहंचि पत्तो सिहरतलं । निज्झायमाणेण य मया दिढ सेयं वत्थं चलंतं मारुएण । चिंतियं च मया-कस्सेयं वत्थं होज ? त्ति । निवण्णयंतस्स य मे उवागया सण्णा-एस साहू एक्कपादो ऊसवियबाहू 5 आयावयंतो चिट्ठइ त्ति । चिंतियं च मया-सफलो मे पुरिसयारो साहुदसणेण जातो त्ति। परितुट्ठो पत्तो मि साहुसमीवं, निसीहियं काऊण तिगुणपयाहिणापुवं वंदिऊण संठिओ मि से अभिमुहो पसंसंतो हियएण-अहो!!! कयत्थो जोगपट्टिओ त्ति । सो मं चिरं निज्झाइऊण भणति—सावय ! तुमं चारुसामी इब्भस्स भाणुणो पुत्तो होजासि ? त्ति । मया भणिओ-भयवं! होमि त्ति । ततो भयवया भणियं-कहं सि इह आगओ ? ति । 10 ततो से मया गणियाघरपवेसादी पबयारहणपजंतं सवं परिकहियं । ततो साहुणा समत्तनियमेण आसीणेण भणियं-ममं जाणेह ?, अहं अमियगई, जो तुन्भेहिं मोइओ मरणाओ त्ति । मया भणियं-भगवं! किं ते पच्छा कयं ?, कहेह मे । ततो मे कह्यतिअमियगतिणो अवसेसो परिचओ अहं तुम्ह सयासाओ उप्पइओ, आवाहिया य विजा, कहियं च मे तीए-वेयड्डप15 बए कंचणगुहाए ते पिया अरीहिं समं अच्छए। ततो गओ मि कंचणगुहं । दिट्ठा मया सुकुमालिया मिलाइमाणी इव पुप्फमालिया दुक्खसमुद्दमवइण्णा । वेयालविजाए मम सरीरं मयं दंसेऊण भणइ-एसो ते भत्ता अमियगई, ममं भजसु त्ति, अहव जलंतं पावयं पविससु त्ति । सा भणइ-अणुसरामि भत्तारं अमियगतिं ति । तेहिं महंतो कओ कट्ठरासी, दिण्णो पावगो, सवं पक्खित्तं, पिया सवं परिसजिऊण निसण्णा । 20 तंसि वेलाय अहं पत्तो, मया य हुंकारियं, पलाया ते, उक्खित्ता पिया चितगाओ, विम्हयं गया 'अहं जीवामि'त्ति । ततो मया ते निद्धाडिया पविट्ठा महण्णवं । ततो हं नियत्तो गतो पिउसमीवं, कहियं तायस्स । ततो पिउणा मे धूमसिहो णिकायवुड्डेहिं असंभासो कारिओ विज्जाहराणं । एवं अहं अच्छामि। अण्णया य मे पिउणा विजाहररायसुया मणोरमा नाम कण्णा आणीया । कयपाणि25 ग्गहो हं भजाहिं सह रमामि । तओ य मइ रजधुरं निसरिऊण हिरण्णकुंभ-सुवण्णकुंभचारणसमणाणं समीवे पव्वइओ णिसंग्गो तवरओ विहरति । ममं च सीहजसवराहगीवा दुवे पुत्ता जाया, दारिया गंधव्वदत्ता । अहमवि सीहजसस्स रजं दाऊण सुयपिउपरिणेव्वाणो पव्वइओ तेसिं चेव समीवे चारणसमणाणं । अहिगयसुत्तो अहं कंठयदीवे कंकोडयपवए आयावयामि, रत्तितेण गुहाए परिवसामि । 30 तं सुटु जं सि भद्दमुह ! इह मिलिओ मया सह । इयाणिं ण ते किंचि परिहाहिति । १पव्वयं, आरूढो य जइ समं भूमिभागं पव° शां० विना ॥ २ गो व्व ह° शां० विना ॥ ३ रीरगं पदं० शां० ॥ ४ ते धाडि शां० विना ॥ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलायस्स अहवेयस्स य उप्पत्ती ] तइओ गंधवदत्तालंभो । १५१ मम सुया इहं दिणे दिणे वंदगा आगच्छंति, तो ते सुता इह सनयरे सुस्सूस करिस्संति, चंपं च विउलेण अत्थेण सह नइस्संति त्ति || एवं च मे भयवं कहेइ अचिरस्स त्ति पत्ता य विज्जाहररायणो सीहजसो वराहगीवो य, तेहिं पिया पयक्खिणीकओ वंदिओ य । साहुणा भणिया-पुत्ता ! तायस्स भे चिरस्स ताव कुह पणामं, किह वि एस इहाऽऽगतो । ततो ते भांति - तात ! किं एस चारु - 5 सामी भविज्ज ? त्ति, जं भणह 'सो भे धम्मओ पिय' त्ति । तओ तेण भणिया - आमं, एसो थाण-घणपरिभट्ठो मम दंसणमागओ चिरस्सति । सवं तेसिं तेण परिकहियं । तओ तेहिं अहं पिउसरिसीए पडिवत्तीय वंदिओ, वीसमंतो य, भणिओ य - इदाणिं अहे दुप्पडियारस्स दुमोक्खस्स तातजीवियदाणोवकोरिस्स सत्तीए पंच्चुवगारं करिस्सामो. अम्हं भागधिजेहिं तुभे इह आणीया; वोलीणो भे इदाणिं किलेसो । एवं च ते संलवंति । 10 1 देवो य पडिरूवो रुचिराऽऽभरणभूसिओ अरयंबरो तेयवं उवगतो । सो मं हरिसा - यंतो 'नमो परमगुरुणो'त्ति वंदतो पणओ । पच्छा णेण अमियगई वंदिओ । पुच्छिओ य विज्ञाहरेहिं – देव ! कर्म पुच्छामो - किं साहू पुवं वंदणीया ? उयाहु सावय ? ति । तेण भणिया- साहवो वंदणीया, पच्छा सावगा. अहं पुण भत्तिरागेण कमचुको. एएसि मया पसाएण इमं देवसरीरं लद्धं रिद्धी यत्ति । विज्जाहरेहिं पुच्छिओ - कहं ? ति । तओ भणइ - 15 अहं छगलभावे जाइस्सरो छ जम्माणि सुमरमाणो एतेहिं धम्मे निजोजिओ. सुणह - पढमं तव अहं अयपत्तेहिं मंतनिओगेहिं आहूओ जलणे पंचवारा, छटुं वणिएहिं मारिओ त्ति । तओ पुच्छिओ विज्जाहरेहिं - (ग्रन्थानम् - ४२०० ) देव ! कहं अहव्वेओ समुप्पण्णो ? केण वा कओ ? ति । तओ भगति - महाकालो नाम देवो परमाहम्मिओ, तेण सगरपउट्ठेण पसुबहो तस्स निरयगमणहेऊ पगासिओ. सो य पिप्पलाएण परंपरा सेण गहिओ. 20 तओ णेण तैन्निस्साए अहव्वेओ पणीओ. सुणह य पिप्पलाय भवं— पिप्पलायस्स अहव्वेयरस य उपत्ती अथ वाणारसी नाम नगरी, तत्थ सुलसा नाम परिवाइया बहुसिस्सिणीपरिवारा बागरण-संखसत्थकुसला बहुसँम्मया परिवसइ । जन्नवक्को य तिदंडी वायत्थी वाणारसिमागओ । तओ तेसिं आलावो जाओ । तओ सुलसा नाणमएण भणति जन्नवकं - 25 जई स मं जिणसि वाए तओ छम्मासे पाउयाओ वहामि त्ति । जाओ य पासणियसमक्खं वाओ । सा जिया सदसत्थे जन्नवक्केण | माणं अवकिरिय सुस्सूसं पबत्ता काउं । तओ सिं भिन्नकहासु पवत्तासु अभासजोएण वैयकरो जाओ । तओ सिस्सिणीहिं परिचत्ता 'असील' ति । एगा नंदा नाम चिरसंगया भगिणीभावे वट्टमाणी ठिया । सुलसाए १ कारस्स शां० विना ॥ २ भत्तीए उ० मे० ॥ ३ अब्भुव° ली ३ शां० विना ॥ ४ रागमेण ग° शां० ॥ ५ तस्स निस्सा शां० ॥ ६ पसवं शां० ॥ ७° समया क ३ शां० विना ॥ ८°इ ममं शां० ॥ ९ व शां० ॥ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ वसुदेवहिंडीए [चारुदत्तअत्तकहाए गम्भो आहूओ। सा ‘मा पगासगम्भा परिभूया भविस्सं' इत्ति तित्थजत्ताववएसेण निग्गया नंदाए संदिसिऊण ठाणं । गंगातीरे सह जन्नवक्केण पिप्पलपायवस्स घणकुडंगपरिक्खित्तस्स अहे ठिया अच्छति । नंदा य से उदंतं वहइ । सा जाव पसवण दिवसा इंति ताव निविण्णा । जन्नवक्कसुस्सूसाए काले पसूया दारगं, 'तं सि ण्हायं जन्नवकस्स पासे 5 ठाविऊण गंगातित्थे उयरामि' त्ति अवता । 'किं मे दारगेणं? ति, अलं च मे जन्नवकेणं' ति चिरावेंतीए दारगो रोवइ । जन्नवक्केण अवलोविया उचिए तित्थे, 'णत्थि, गय' त्ति चिंतापरो 'कहं पासेमि णं ?' ति अच्छति । वायचलिओ पिप्पलो पडिओ मुहे दारगस्स, तेण सो आसाइओ, संठिओ रुत्तुं । चिंतियं जन्नवक्केण उज्झिउकामेण-इयाणिं आहारं काउमारद्धो पिप्पलं अयइ, 'पिप्पलाओ भवउ' त्ति नामं सिलाए आलिहिऊण 10 गओ । इओ नंदा सिणेहेण पसवण दिवसे जाणिऊण धयं गहेऊण तं पएसं पत्ता । सो दारगस्स पिप्पलो भट्ठो मुहाओ चलमाणस्स, पुणो रोवइ, सुओ सदो नंदाए रुण्णस्स, चिंतियं च णाए-पसूया सुलस त्ति । तुट्ठा आगया कुडंगमंडवं, दिट्ठो अणाए दारगो, नामं च वाइयं 'पिप्पलाओ' त्ति, न पस्सइ य दो वि जणाई, परिमग्गिऊण 'गहिओवक रणाणि गयाणि' त्ति अणुकंपाए दारगं गहेऊणं अइगया वाणारासिं। दिण्णपीहई कहेइ 15 आसण्णजणस्स-गंगातीरे दिह्रो पहाइउं गयाए । तेहिं भणिया-साहु कयं, अम्हे ते उवग्गहे वहिस्सामो । जत्तेण से कओपग्गहो वडाविदो तीए, अहि जिओ अक्खरसंजोग, गहिया अणेण वेया सहंगेहिं । ___ तओ वणिगाए कलहसीलो बालभावे नंदाए णं भण्णइ-अण्णेहिं जणिओ मम बाहकरो जाओ त्ति । तओ तेण पुच्छिया-अम्मो! कहय कस्साऽहं पुत्तो ? ति । सा 20 भणइ-ममं ति । निबंधे कए कहिओ पभवो । तओ सो पदुट्ठो माया-पियरस्स, कओ अणेण अहव्वेओ, मातुमेह-पिउमेधा विकप्पिया, अभिचारुगा मंता, सो य लोकबहुमओ समिद्धो जाओ। पुणो य जण्णवको आगतो, सो य पिप्पलादेण अहिणवबुद्धिणा पराजिओ, नीओ सगिह सम्माणिओ अच्छति । पुच्छिओ-कस्स तुमं पुत्तो ? सो पि. प्पलं साहइ । तेण णाओ-एसो मम पुत्तो त्ति, कस्सऽण्णस्स एरिसी सत्ति ? ति । 25 तेण भणिओ-अहं पिप्पलं जाणामि, जइ पुण तुम्भं पुत्तो त्ति तो कयत्थो मि । सक लुसो य णं उवचरति । कालेण य बहुणा सुलसा नंदाए वट्टमाणी वोढुमागया, दिट्ठा अणाए नंदा पिप्पलायभवणे संकंता । पुच्छंतीये से कहिया पिप्पलायपरिवड्डी । तस्स च्चिय नंदाए विदिता कया-एसा ते पुत्त ! माया सुलस त्ति । तेण माया वि मिच्छोव चारेण उवचरिया । भणिओ अणेण जण्णवक्को–ताय ! तुब्भे महंता पिउमेहेण दिक्खि30 जह त्ति । तेण भणिओ-पुत्त ! जं मे हितं तं कुणसु त्ति । ततो दिक्खिओ विजणे गंगा १ कयं पा ली ३ क ३ उ० ॥ २ वद्धाविओ ती शां० विना ॥ ३ हंगएहिं शां० विना ॥ ४ °ओ छणिगाओ क शां०॥ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिप्पलायस्साहवेयरस य उप्पत्ती] तइओ गंधवदत्तालंभो । १५३ तीरे जंतिओ, भणिओ य-जीहं तात ! दंसेहि त्ति । सां य से लहुहत्थयाए कत्तरी छिण्णा । ततो अवायरस खारसित्तेहिं सरीरावयवेहिं कण्ण-णासोट्ठ-कर-चरणादीहिं अग्गीहुओ, साविओ - दुरायार ! किं मया तव जायमेत्तेण अवरद्धं जं विजणे उज्झिओ मि ? त्ति कीस कस्सइ न कओ विदितो जहा जीवांवित्ति ? तुमं सि मे सत्तुति । निचिट्ठो छूढो गंगाजले, गंधोदयसित्ता य कया भूमी, पयासियं च 'गतो विमाणेणं' ति । 5 एवं सुलसा विवाडिया । एवं तस्स पिउ - मायघायगस्स पिप्पलादस्स अहं सिस्सो वद्दली नाम, सोहं अविदू माहणे पाढेमि, मओ य छगलो जातो । ओ महिला जणगो राया । तस्स सुणगमेधो तावसो उवज्झाओ । तेण अहं पुरोहिएण रन्नो संतिनिमित्तं हतो पुणरवि जातो छगलो । एएणं पंचवारे सुणकमेघेण हुआ । सुमरामि यद्दलिप्पभवाओ जातीओ । पुणो टंकणदेसे छगलो जातो । वणि- 10 एहि यतम्मि हम्मामि त्ति एएण मे उवइट्ठो अहिंसाचिंधो धम्मो । ततो मे चिंतियं - होइ एसो सुद्धो उवएसो धम्मस्स, वेदसत्थोवदेसस्स फलं इमं छटुं मरणमणुभवामि त्ति । एएण वयणं जिणदेसियं भावेण रोइयं, ठिओ मि वोसकायो अरहंतनमोक्कार परिणओ, मारिओ वणिएहिं । ततो हं नंदीसरदीवे जातो देवो । तमहं इब्भपुत्तस्स गुरुपूयं कार्डेकामो आगतो ॥ ततो विज्जाहरेहिं भणियं - देव ! अम्हे पुत्रं करेमु पूयं चारुसामी अम्हं तायस्स 15 जीवियदायगो, पच्छा तुब्भं धम्मोवदेसगो त्ति । सो भणइ-अहं ताव पूएमि, ततो तुब्भे काहिह सम्माणं ति । विज्जाहरेहिं भणिओ - देव! तुब्भेहिं पूयाए कयाए का सत्ती अम्हं अतिसएडं ? अम्हेहिं पुण पूइयस्स सुस्सूसापुवगं तुब्भे काद्देह पूयं. कुणह पसायं ति । एवं देवं अणुमाणेऊण णीओ हं विज्जाहरेहिं सिवमंदिरं नगरं । देवो वंदिऊण 'चारुसौमि ! चंपागमणूसुओ ममं सुमरसु' त्ति गतो । ततो हं नियगघरे इव सीहजस - वराहगीवेहिं 20 पिउसम्माणेण उवयरिज्जमाणो अच्छामि । अण्णा य भणिओ मया राया-सुमरामि अम्माणं, गच्छेर्मु ति । ततो मं भणति दो वि जणा - तात ! ण भे गंतुमणे धारेउ जुत्तं अम्हं, जह तुब्भं समाही तह होउ. एकं पुण सुह - इहं तातेण अमियगइणा इहगएण धूयाए विजयसेणाँदेवी अत्तियाए कारणे नेमित्ती पुच्छिओ. तेण आदिट्ठा - 'उत्तमपुरिसभारिया भविस्सत्ति, जो सविज्जा - 25 हरं दाहिणभरहं भोच्छिंहिति. सो य चंपाए एयं दारियं गंधवेण जिणेहिति चारुदत्त - गिद्दे ठियं. चारुदत्तो य भाणुसेट्ठिपुत्ती कारणेण इहं एहिति, तस्स समप्पिया तं पाविहिति तं कहं नज्जिहिति ? - गयमिहुणस्स चित्तकम्मलिहियस्स आउविसेसं नाहिति, वीणाओ यसो दूसेहिति सकेसतंति-दड्डु-उद्गहतदारुनिम्मियाओ, सत्तसरतंती मग्गिहिति, एवं नायबो' तं नेह दारिगं ति । मया पडिवण्णं । ततो णेहिं दिण्णो धरणिगोयर - 30 १ सयं से उ० मे० ॥ २ 'वामि त्ति शां० ॥ ३ एतेहिं मे शां० ॥ ४ उं आग शां० विना ॥ ५ °सामि ली ३ शां० विना ॥ ६ कछेज्जसु त्ति शां० ॥ ७ जाए देवीए अ० शां० विना ॥ ८ °च्छिहत्ति शां० विना ॥ व० [हिं० २० Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ वसुदेवहिंडीए [चारुदत्तस्स अत्तकहा दुल्लहो रयण-हिरण्णरासी । पत्थाणकाले य विजयसेणाए देवीए सुया मे अप्पिया सपरिच्छदा सदास-पडिचारगा 'गंधवदत्ता एसा धूया राइणा पवयंतेण संदिट्ठा, तुभं धम्मेण धम्मनिक्खेवो' त्ति ।। चिंतिओ य मया देवो सणियमेणं उवागतो। विमाणेणं तेण आणिओ पुरि चं 5 सविह्वो सह गंधवदत्ताए परिचारिगासहियाए अद्धरत्ते । दिण्णो णेण विउलो अत्थसारो त्ति निक्खित्तो उववणे पुरिबाहिं, पडमंडवेसु य पसुत्तो परिचारियवग्गो । 'रायं संदिसामि तव निमित्ते, कज्जे य मे सुमरिजासि' त्ति वोत्तूण गतो देवो । विजाहरदेवदिण्णा वेसर-खरा उट्टा य संठिया, सगडाणि य ठवियाणि विविहभंडोवक्खरभरियाणि । देवसंदिट्ठो य राया आगतो पञ्चूसे दीविगापरिविओ अप्पपरियणो । मम 10 निवेदितं, पूइओ अग्घेणं, "तं णाहं परिस्संतो, इयाणिं तुम्भेहिं अहं सणाहो गिहं पविसिजउ, मोएमि णं अहं ति । उइए आइच्चे सुयवुत्तंतो माउलो आगतो, सो मे परिस्संतो, भणियं च णेण-अहो! ते कुलं उण्णामियं, कओ ते पुरिसयारो । पुच्छिओअम्माणं को पंचतो? । साहइ-सुणह-तुब्भेसुं पवसिएसु वसंततिलयाँ तुन्भे अपस्समाणी गिहे, असोगवणियं च हिंडिऊण पुच्छिया चेडिगाओ-कहिं गओ चारुसामि ? 15 त्ति. ताहिं कए निबंधे कहियं-अम्माहिं 'अत्थहीणो' त्ति काऊण उझिओ जोगपाणपीओ भूयगिहे. ततो उवलभिउं वत्तं गया घरिणिसयासं. अपस्समाणीय तुमं बद्धो वेणीबंधो, दिण्णो निक्कओ रण्णो, पडियग्गया घरिणिं, मित्तवती य वयं रक्खमाणी अच्छइ त्ति, राइणा य मोइयं गिहं । ततो हं पहट्ठो पवेसिओ नेगमेहिं पूइज्जमाणो नियगघरं, वंदिया अम्मा, मित्तवती उवगूहिया, वेणीबंधं मोइया वसंततिलया, धरि20 याणि य रयणाणि भंडगिहेसु । संपुण्णजोवणा य गंधवदत्ता कमेण जाया । ततो मया सभामंडवो कारिओ, गंधवइणा(गंधवपइण्णा) य दारियाए पगार्सिय तुम्हं परिमग्गणत्थाय गयमिहुणं कारियं, "सिप्पिणा य लेक्खं कारियं । ततो हं कुलधम्माणुवरोहेण भोगे भुंजमाणो विहरामि, मित्तसुयविजाहरसंदेसं च मासे मासे अणुढेमि । तं एसो अत्थो जं मया तदा भणियं-दारिगा कुलेण तुम्भं समौ वा विसिट्ठा वा होज 25 त्ति, अग्गिहुणणकारणं च पुच्छिया ॥ एवं सोऊण मया सेट्ठी पूइओ विसजिओ य । अहमवि भुंजामि भोए गंधवदत्तं लालंयतो, तीसे अणुमयाओ य सामा-विजयाओ सामबहुल-मिय-महुरभासिणीओ कलासंपुण्णाओ । एवं मे सिढिभवणे निरुवसम्गं वच्चइ कालो। १ मेवं उ० शां० विना ॥ २ °चारगव शां० ॥ ३ रेजासु त्ति शां०॥ ४ तेणाहं शां० ॥ ५ सोम प० शां० । सो मं प० उ० मे.॥६ पच्चंतो शां०॥ ७°या उ तु° शां० विना ॥ ८ च्छति इत्ति ली ३ । छति इति क ३ गो ३ ॥ ९ °ओ गिहं ने शां० विना ॥ १० वयणा य दा° शां० विना ॥ ११ सियं शां० विना ॥ १२ सेहिणा उ २ विना ॥१३ समाणा वि° ली ३॥ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसंतजत्ता] __ तइओ गंधवदत्तालंभो। 155 उवत्थिओ य पहाणो रिऊ वसंतो, संसाहिओ सिसिरो, भमइ कुसुमसुरभिरओ, सुबए सवणसुहयं परहुयारुयं, सुहोपभोगाई सललियाई मयणवसमुवेइ तरुणसत्थो, घुट्ठा य सुरवणे जत्ता / चंपाहिवस्स पुवकराइणो देवीए समुद्दमजणदोहलविणोयणत्थं सरो संचारिमसलिलवित्थरिओ 'समुद्दो' त्ति दंसिओ उवायपुवं / तीए संपुण्णदोहलाए पुत्तलभपरितोसपुण्णमुहीय विणोयत्थाय संवच्छरजायं (ग्रंथाप्रम्-४३००) पुत्तं गहाय 5 पउरसहियाए किर पवत्तियाय अणुवत्तए बहुं कालं / ततो सिट्ठिणो अणुमए कयं मे उउगुणसाहारणं परिकम्मं / आगया गंधवदत्ता महरिहाऽऽभरण-वसणा परियणाणुबद्धा, वंदिऊण पासे मे निसण्णा। सेट्ठिसंदिहं च मे पवहणं उवट्ठियं, उवगतो मि बाहिं भवणस्स, आरूढो य समं गंधवदत्ताए, गहिया वुड्डण से रस्सीओ, पत्थिओ मि रायमग्गेण, वाहण-पुरिससंबाहेण किच्छेण निग्गओ नयरीओ / 10 अणुबद्धं मे पवहणं परियणेण, थिमियं गम्मए पस्समाणेहिं कित्तणाणि / वच्चंति णागरया विभवे दंसेंता / कमेण उववणपरंपरदसणमणो पत्तो जणो महासरं / तत्थ वासुपुजस्स अरहओ आयतणं, तत्थ पहाणो जणो कयपणिवाओ संठिओ तेसु तेसु पदेसेसु सँरासण्णकुसुमियपायवगणेसु / अहमवि सेहिस्स पाइदूरे अवइण्णो पवहणाओ सह गंधव्वदत्ताए, पुवसज्जिए आसणे ठितो, वीसंताण य दिजए अण्ण-पाणं, विहिए उवभुंजामहे सह 15 परिजणेण / भुत्तभोयणो य सह पियाए पस्सामि वसंतकालजणियसोभे सहयार-तिलयकुरुबय-चंपगपायवे, ते य दंसेमि गंधवदत्ताए / दिडं च मे असोगपायवस्स अहे सण्णिसण्णं नागकुलमिव चण्डालकुलं / मायंगे तत्थ मल्लदामालंकिए, चंदणाणुलित्ते, चुण्णभुक्खंडियबाहु-सीसे, कुवलयकिसलयतणसोल्लियकयकण्णपूरे मत्ते विय मायंगे पासामि / तेसिं च मझे कालिया सिणिद्धछविया सुहभा-20 विया वुद्धा य पसत्थगंभीरा दसिणासंघायसुकुमालाणि वत्थाणि परिहिया दिट्ठा य मया पीढिकासण्णिसण्णा रायलच्छीविहूसिया / अण्णम्मि य अवगांसे सममऽसमीवे दिहा य मया कण्णा कालिगा मायंगी जलदागमसम्मुच्छिया विव मेघरासी, भूसणपहाणुरंजियसरीरा सणक्खत्ता विय सबरी, मायंगदारियाहिं सोमरूवाहिं परिविया कण्णा / ततो मम पस्समाणी संठिया, भणिया य सहीहिं-सामिणि ! नट्टोपहारेण कीरउ महासरसेवा / 25 ततो धवलदसणप्पहाए जोण्हामिव करेंतीएं ताए भणियं-एवं कीरउ, जइ तुम्हें रोयइ त्ति / कुसुमियअसोगपायवसंसिया मंदमारुयपकंपिया इव लया पणच्चिया / ताओ वि गं निसण्णाओ महुयरीओ विव उवगाइउं पवत्ताओ सुइमधुरं / ततो सा धवलेण लोयणजुयलसंचारेण कुमुयदलमयं दिसावलिमिव कुणमाणी, पाणिकमलविच्छोभेण कमलकिसलयसिरिमावहती, कमागयपाउद्धारेण सारसारससोभमुबहती नच्चइ / 1 सवरणे (सरवणे) शां० विना // 2 °मुप्पण्णदो ली 3 // 3 सागरास शां०॥ 4 °सुमिएसुपदेसेसु सनयरासण्णकुसुमियपाय शां० विना // 5 °से मम ली 3 शां० मे // 6 °ए णाए शां०॥७°णं कोम शां० विना // 8 रिमोहावंती शां०॥९ण सरससोभक 3 गो 3 / ण सरसरससोभ° ली 3 मे०॥ 30 Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ वसुदेवहिंडीए [उसमसामिचरिए ___ तं च मे दटुं चिंता समुप्पण्णा-अहो! इमा मायंगदारिया समयं अमुंचमाणी सिक्खियगुणे इंसेइ. रूवस्सिणी वियक्खणा य जातीए दूसिया. कुडिला कम्मगती, जेण इमं रयणं अत्थाणे णिक्खित्तं । अहं च तीए रत्तहियओ पस्सामि । पुच्छइ य मं किं पि गंधबदत्ता, मया य तं नट्टगुण-गीयसदेण न सुयं । ततो कुविया 'मदवसेण मायंगी पस्समाणो 5ण मे पडिवयणं देहि'त्ति आवासमतिगया । अहं पि लजिओ कहंचि मायंगकण्णगाओ दिहिं निवारेऊण आवासमतिगतो । सा वि दारिया ममं पस्समाणी सह सहीहिं नियगत्थाणमुवगया, मायंगवुड्डा य पणमिऊण संठिया । ततो अवरं पतिलंबिए दिणयरे गंधवदत्ता परिजणेण आरोविया पवहणं, पयक्खिणं पत्थियं पवहणं । कमेण अतिगतो मि पुरि सह सेट्ठिणा, पञ्चुवगतो परिजणेणे, ओरुभिया 10 गंधवदत्ता, अइगया वासघरं, ठियाय सयणीए। भणइ मं गंधवदत्ता-दिट्ठा ते चंडाली ? सा य वुड्डा ?, न रमति किं कमलवणे हंसो ? त्ति । ततो मया सा ससवहं पसाहिया–सुंदरि! नहें विसेसओ दिडं मया गेयं च सुयं, न मायंगि त्ति । एवं मे सा रयणी अइच्छिय त्ति ॥ ॥ इति श्रीसंघदासगणिविरचिते वसुदेवहिंडौ गंधव्वदत्ता लंभो तइओ सम्मत्तो॥ गंधव्वदत्तालंभग्रं० ८९४-१३. सर्वग्रं० ४३३९-१८. 15 चउत्थो नीलजलसालंभो. पभायाँए य सव्वरीए कयपरिकम्मोअत्थाणगिहे अच्छए । उवढिओ मंदाराहिगतोसामि ! देवीओ भे दंसणं अभिलसंति, संदिसह त्ति । मया भणितं-पस्संतु छंदओ। ततो हं मुहुत्तमेत्तस्स पस्सामि पुव्व दिडं मायंगबुड्ढे । सा भणइ-'पुत्त ! सुहं ते ?, जीव 20 बहूणि वाससहस्साणि' त्ति वोत्तूण पडिचारगोपणीए आसणे असंकिया आसीणा । ततो मया चिंतियं-'किं मण्णे राइणो एसा कयप्पसादा, जओ जणगिहाणि पविसइ ? त्ति, आसणेसु निवेसइ ?' एवं च चिंतेमि । वुड्ढों य पभणिआ गंभीरमहुराए सरस्सतीएमहमुह ! जा ते सरमहे नञ्चमाणी दिट्ठा कण्णगा तं मे दाउकामा अहमागया. पडिच्छसु णं ति, जया एसा जोग्गा तव त्ति । मया भणिया-सरिसवण्णसंबंधं पसंसंति पंडिया, 25 असमाणगोत्तं न पसंसंति । ततो भणति-जयइ भयवं सुरासुरपइपूइयपायपउमो आइगरो वंसाणं उसभजिणिंदो. तस्सेव चलणाणुग्गहेण परिवड्डियविमलकित्तिसमुदओ अम्हं वंसो जयति । ततो मया भणिया–को तुब्भं वंसो ? त्ति। ततो भणइ-सुणाहि, जहा मया सुयं पुव्वपुरिसपरंपरागयं पढमजिणचरियवण्णणाहिगारेण । मया भणिया-कहेह । ततो भणइ १हणं कमेण शां० विना ॥ २ °ण उरूढो पवहणाओ परिजणेण ओरु शां० विना ॥ ३ °यायं च सम्वरी कयं कय क ३ गो ३ ॥ ४ 'बुद्धिं शां० विना ॥ ५ ड्राय पभणियं गं० ली ३॥ ६ णं। सा तह' त्ति मया भणिया शां० विना ॥ ७ °सजणसं ली ३॥ ८ परिपू० ली ३ । रपइयपू. उ २ ॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुलगराहिगारो] चउत्थो नीलजसालंभो। उसभसामिचरियं इहेव भरहे इमाए ओसप्पिणीए छ कालभेदा, तं जहा-सुसमसुसमा १ सुसमा २ सुसमदूसमा ३ दूसमसूसमा ४ दूसमा ५ दूसमदूसम ६ त्ति । तत्थ जा य तइया समा तीसे दोसागरोवमकोडाकोडीपरिमाणाए पच्छिमतिभाए, नयणमणोहर-सुगंधि-मिउ-पंचवण्णमणि-रयणभूसियसरतलसमरम्मभूमिभाए, महु-मदिरा-खीर-खोदरससरिसविमलपाग-5 डियतोयपडिपुण्णरयणवरकणयचित्तसोमाणवावि-पुक्खरिणी-दीहिगाए, मत्तंगय-भिंग-तुडिय-दीवसिह-जोइ-चित्तंग-चित्तरस-चित्तहारि-मणियंग-गेहसत्थमत्थमाधूतिलगभूयकिण्णकप्पपायवसंभवमहुरमयमजभायणसुइसुहसद्दप्पकासमल्लयकारसातुरसभत्त-भूसण-भवण-विकप्पवरवत्थपरिभोगसुमणसुरमिहुणसेविए काले बहुकालवण्णणिज्जे विदेहिका दुवे सत्थवाहपुत्ता सह वड्डिया, सह पंसुकीलिया, निरंतरसिणेहसंबद्धा, सहियसंववहारिणो, पगइभद्दया; 10 एगो पुण कारणे कम्हिइ माती । ते सहावभद्दया कालगया समाणा अद्धभरहमज्झदेसे एगो जातो मिहुणपुरिसो, बीओं पुण मायापहाणयाए तहिं चेव धवलो हत्थी जाओ। कमेण पत्ता जोवणं । सातिसयसाहुपुत्बकहियपउमसरसमागया अण्णोण्णदसणविवड्डियपीइजोगा जाईसरा जाया । ततो तेण करिणा पहरिसपुण्णहियएणं नरमिहुणं खंधे समारोवियं । तेण य एरावणरूविणा चउदंतेण हत्थिरयणेण वियरमाणो सो पुरिसो 'विमल-15 वाहणे एस अच्छति, एसो एइ ?' त्ति मिहुणेहिं विम्हियमुहेहिं दीसमाणो पगासो जातो, उत्तमसंघयण-संठाण-लक्खणोववेयदेहो, नवधणुसयसमुस्सिओ । कालाणुभावेण य मणुयाणं तेसिं 'मम इमा, ण तव भूमी; मम इमो गेहागारो पुवं अहिडिओ फलदुमो पुक्खरिणी वत्ति । कयाइं च विमलवाहणपुण्णोदयचोइएहिं मिहुणेहिं समागएहिं कयंजलिपुडेहिं विण्णविओ-विमलवाहण! अजो! होहिति णे पमाणं णिग्गहा-ऽणुग्गहेसु. तव संदेसेण 20 वट्टिस्सामो. न मो वयं सत्ता परोप्पराभिभवं निवारेउं. तुमं पभवसि णे जीविदाणं, कुणसु पसायं ति । ततो तेण 'तह' त्ति पडिस्सुयं । विभत्ता य मज्झदेसवत्तीणं नरमिहुणाणं भूमिभागा दुमा य वावीओ य । भणिया य—सम्मए परेण उवकसियवं, न विक्कमेणं ति। जो य मज्जायमतिक्कमति तं विमलवाहणो मिहुणसमक्खं हक्कारेइ । ततो सो हक्कारओ आमरणंतं दंडं सुमरमाणो नातिकमति । विमलवाहणस्स भारिया चंदजसा चंदप्पहापयर-25 विमलजसा दसभागावसेसजीविया पसूया मिहुणं चक्खुमं च चंदकंतं च। विमलवाहणो कुलगरो पलिओवमदसभागं जीविऊण कालगतो । चक्खुमं कुलगरो सुराण वि चक्खुहरसुंदररूवो हक्कारदंडणीतीये सविसेसतरं मिहुणेहिं पूइज्जमाणो असंखाओ वासकोडीओ सामित्तं करेमाणो विहरइ । ततो चंदकंता वि चक्खुमंतो भारिया नियगाउदस १°खोहर गो ३ ॥ २ 'सोवाण° ली ३॥ ३°म्हियि मा क ३ गो ३॥ ४°ओ मिहुणहत्थी। कमेण शां० ॥ ५ °सादुपु क ३ गो ३॥ ६ विचरमा ली ३ । विरायमा° शां०॥ ७ °सो चरइ त्ति ली ३॥ ८°तीए स° ली ३ उ० । 'तीय स° शां०॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ वसुदेवहिंडीए [ उसभचरिए मरुदेवा सुमिणदंसणं भागसेसे जसभायणं जसवंतं रूवसालिणिं च सुरूवं ति मिहुणं पसूया । चक्खुमं अट्ठधणुसयसमुस्सिओ जसमंतं कुलगरवावारे णिजुंजिऊणं समाहीए कालगतो । का य मिहुणा हक्कारठितिं भिदंति, जसवया मक्कारो दंडनीई पउत्ता । सुरूवा वि चंदमिव मिहुणणयणानंदणं अभिचंदकुमारं पडिरूवं च रूविणं मिहुणं पयाया । जसवं असंखेज5 वासकोडिजीवी सत्तधणुसयमूसियतणू अभिचंद संकामियाहिगारो अतिक्कंतो । अभिचंदो हक्कार-मक्कारेहिं मिहुणाण सासणं कुणमाणो सुहेण विहरति । पडिवाए य मिहुणनयणकुमुदसरयचंदो पसेणई नाम कुमारो, सुरवहूणं पि चक्खुरमणरूवा चक्खुकंता य नाम कुमारी मिहुणं जणियं । अहिचंदो वि कुलगरो अद्धसत्तमधणुसयवरुचदेहो गणणातीतवासकोडीपरिमियाऊ कालगतो । पसेर्णेतिणा य हक्कार - मक्कारवइक्कमे 10 धिक्कारो तैइया दंडनीती पत्ता । तस्स भारिया चक्खुकंता कमेण य मणुयदेवं मरुदेवं नाम कुमारं, सिरिकंतं च सिरिमिव रूविणिं कुमारिं मिहुणं पसूया । पसेणई कुलगरो छद्धणुस्सउविद्धदेहो असंखिज्जवासजीवी सभारिओ मरुदेवसंकामियसिरी सुद्देण कालगतो । मरुदेवकुलयरो अद्धच्छट्ठधणुसयपमाणतणू तिहिं दंडनीतिहिं मिहुणाणि पालयेतो सुंर इव मणुयभोए भुंजइ । सिरिकंता य कंतरूवं मणुयलोकनाभिभूयं नाभिकुमारं, 15 मरुदेवी य देववहुपरिवंदियगुणं कुमारी मिहुणं पसूया । ततो मरुदेवो कुलगरो (ग्रन्थाग्रम् - ४४००) संखातीतवासकोडीजीवी नाभिसमप्पियपयापालणवावारो कालगतो । णाभी तिहिं दंडनीतीहिं फरुसवयणाहियाहिं रक्खइ मिहुणजणं, पणुवीसाहिगपंचधणुसऊसियमणोहरसरीरो संखे ज्जवासकोडीजीवी सुहेण विहरति सत्यवाणी । मरुदेवाए सुमिणदंसणं उसहसामिजम्मो य कयाईं च भयवती मरुदेवा महरिद्दे सयणीते सुहपसुत्ता सिमिणे पासति वसभं नहंगणाओ उवयमाणं । ततो चिंतेइ - किं संचारिमो रययपवओ होज्जा ? अहवा धवलो बलाँहओ होज्ज ? त्ति । पत्तो य समीवं, पिच्छइ य णं पसत्थमुह नयण-कण्ण-खुर-सिंगककुह-पुच्छं मणोहरं विम्हिया, जंभायंतीए मुहमतिगतो । तओ चिंतेइ य - "एवं सुंदररूवो महमाणो वसो मुहमतिगतो, इमेण मे न काय पीला सरीरस्स, परमा य निव्वुइ' त्ति 25 पडिबुद्धा १ । पुणो य सिमिणे तदणंतरं गलियजल जलधवलतरदेहमूसियं, चउविसाणं पिच्छइ एरावणं गयवरं २ । ततो य हारनियरच्छविं, जलणकविलकेसरविराजितं, सुपसत्थरूवं सीहं सम्मुहं नियच्छए सा ३ । अभिसिंचइ य विगंसितसतपत्त सुहनिसणं, दिसागयंदेहिं चउहिं लच्छि णभंगणाओ उवयंतं ४ | दामदुयं पवरकुसुम संचयनिम्मवियं, सुरभिगंधवासिय दिसा विभागं ५ । उदिते, जोन्हाप करेंत दित्ति निलये, सकले जुगवं च 20 १ ° भागे से ली ३ क ३ ॥ २° समंतं शां० ॥ ३ 'कारियाठि° शां० विना ॥ ४ इणा शां० विना ॥ ५ ततिया शां० ॥ ६ सुरवइ व्व मणु° ली ३ । सुरो इव मणु° शां० ॥ ७ लाओ उ २ मे० विना ॥ ८ पेच्छति शां० ॥ ९ वियसियस्यवत्तपत्त शां० विना ॥ १० भाकीरंत' ली ३ ॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिसिकुमरिकओ जम्मूसवो] चउत्थो नीलजसालंभो। 159 चंद-सूरे पेच्छइ 6-7 / सक्कज्झयं च गगणतलमणुलिहंत, मणिरयणोच्चितविसिट्ठकुडभीसहस्समंडियाभिरामं महप्पमाणं च 8 / कणगकलसं जलभरियं, कमलमुट्ठियं, पंकयपिहाणं 9 / ततो सरं कमल-कुमुद-कुवलयसितसोमयरदरिसणिजं, कुसुमासवलोलभमरपरिभुजमाणसुभगं 10 / पुणो समुदं च कुंद-कुमुददलनियर-रजतसमवण्णसलिलं खीरोदं, मउयमारुतेरिततरंगहत्थेहिं नच्चमाणं 11 / तओ य सुंदरमुहीहिं सुरसुंदरीहिं सेविजमा-5 णमुत्तमं, कंचण-मणिजालभासुरं विमाणं पेच्छइ; नागभवणं च सुनिपुणनागवधूगीयसहमुहलं 12 / ततो ससि-सूरकंत-फलिह-कमलरायिंदणीलबहुलं रासिं रयणाणं मंदरसमं 13 / पेच्छइ य विधूमं जलणमाहुतिपदिप्पमाणं महप्पमाणं 14 / ___ दट्टण य एरिसे विबुद्धा चोदस सिमिणे पसण्णचित्ता। ततो चिंतेइ-एरिसयं अब्भुययं अज्जस्स कहेमि, सो फलं नाहिति / कहियं च णाए नाभिस्स सुभिणदंसणं / तं च सोऊण 10 नाभी परं परितोसमुवगतो समतीए विचारेऊण भणति सुइरसायणं वयणं--अजे ! तुमे उत्तमा सुमिणा दिट्ठा, धण्णा, मंगला. तुमं नवसु मासेसु अतीतेसु अम्हं कुलयरपुरिसप्पहाणं, भरहवासतिलयं, तिलोगपयासं पुत्तं पयाहिसि। ततो तीए परितुट्ठाए ‘अज्ज ! एवमेयं, जं तुमे वयहि'-त्ति पडिस्सुयं / ततो भयवं उसभसामी पुग्भवे वइरनाभो तित्थयरनामगोयकयसंगहो सव्वट्ठसिद्धाओ विमाणाओ तेत्तीसं सागरोवमाई विसयसुहमणुत्तरं अणुहवि-15 ऊण मरुदेवाए कुञ्छिसि उववण्णो उत्तरासाढजोगजुत्ते निसायरे / ततो नाभिकुलयरपत्ती मरुदेवा देवेहिं देवीहि य पूइज्जमाणी सुहेण तित्थयरगन्भं परिवहइ / पुण्णे समये पसूया चे. त्तबहुलट्ठमीए विस्सदेवानक्खत्ते पुत्तं पुरिसाइसयं, सबमंगलालयं, तत्ततवणिज्जपिंजरसरीरं / दिसाकुमारिविणिम्मिओ उसभसामिजम्मूसवो ततो अहेलोगवत्थवाओ दिसाकुमारीओ चलियासणाओ ओहिणा तित्थयरजम्मं जाणि-20 ऊण तक्खणमेव भोगंकरा भोगवती, सुभोगा भोगमालिणी। तोयधारा विचित्ता [य], पुप्फमाला अणिंदिया / अट्ठ वि जोअणप्पमाणेहिं आभियोगदेववेउविएहिं विमाणेहिं सामाणिय-महत्तरिया-परिसाऽणीका-ऽऽयरक्खपरिवियाओ उक्किट्ठाए दिवाए देवगतीते गेहाकारमणुपत्ताओ। तित्थयरं म-25 रुदेविं च वंदिऊण विणएण जम्मणमहिमनिमित्तं संवट्टगवायपूयं जोयणपरिमंडलंतं पएसं काऊण परिगायमाणीओ चिट्ठति। ततो उड्डलोगवत्थवाओ अट्ठ दिसाकुमारिमहतरियाओ मेहंकरा मेहवती, सुमेहा मेहमालिणी / सुवत्था वत्थमित्ता य, वारिसेणा बलाहगा। एयाओ वि तेणेव कमेण समागयाओ गंधोदगं वरिसिऊण तहेव परिगायमाणीओ चिट्ठ-30 ति / तहेव पुरित्थिमरुयगवत्थवाओ, तं जहा१°यवियसियगोल शां० विना // 2 समं तीए शांविना॥ 3 अहरुयगव शां०॥ ४°ण आग शा०विना / / Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [उसभसामिचरिए देवविहिओ नंदुत्तरा य नंदा य, आणंदा गंदिवद्धणा। विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया // ताओ वि तहेव पणमिऊण आयंसहत्थाओ गायमाणीओ चिट्ठति / तओ दाहिणरुयगवत्थवाओ समाहारा सुप्पतिण्णा, सुप्पसिद्धा जसोहरा / लच्छिवती सेसवती, चित्तगुत्ता वसुंधरा // एयाओ विणयपणयाओ भिंगारहत्थाओ चिट्ठति / ततो पच्छिमरुयगवत्थवाओ इलादेवी सुरादेवी, पुहवी पउमावती। एगणासा णवमिगा, भद्दा सीया य अहमी // 10 एयाओ वि तहेव उवागयाओ तालियंटगहत्थाओ विणएण संठियाओ। ततो उत्तररुयगवत्थवाओ अलंबुसा मीसकेसी य, पुंडरिगिणी य वारुणी / हासा सबप्पभा चेव, सिरी हिरी चेव उत्तरओ // ताओ वि य चामरहत्थगयाओ चिट्ठति / ततो रुचगविदिसिवत्थवाओ चत्तारि विज्जु15 कुमारिमहत्तरियाओ चित्ता चित्तकणगा सतेरा सोतामणी। ताओ य तेणेव विहिणा चउसु विदिसासु दीवियाहत्थगयाओ परिगायमाणीओ ठियाओ। तओ य रुयगमज्झवत्थवाओ दिसाकुमारीओ चत्तारि येगारु रुयगसहा सुरूवा रूयगावती। 20 ताओ वि भवपञ्चइओहिनाणोवयोगविदियतित्थयरजम्मणाओ जाण-विमाणरयणारूढा__ ओ, सपरिवाराओ दुतमागंतूण कयवंदणाओ जिणजणणीए निवेइयागमणकारणाओ तित्थ यरस्स चउरंगुलवजं णाहिं कप्पेंति, कप्पेत्ता निहणंति, रयणपरिपूरियं ततो दुव्वावेढं बंधंति / ततो य मरगयमणिसामले कयलिघरे तिदिासं विउध्विति दाहिण-पुरस्थिमुत्तरथाणे भूसणभूसिए गेहागारदुमस्स कयलीघरमझदेसेसु य हेमजालालंकियाणि चाउसालाणि विउव्वंति / ततो एताओ तित्थयरमायरं ससुयं मणिकिरणकरंबियसीहासणसुट्ठियं कमेण सिणेहऽभं(भं)गुव्वट्टियं काऊण, दाहिण-पुरत्थिमे तिविहसलिलण्हायं सुमणसं काऊण, उत्तरचाउस्साले गोसीसचंदणारणिसंभवं अग्गि हुणंति, कयरक्खाकम्माओ जम्मणभवणे साहरंति / ततो मंगलौणि गीयाणि उदीरेमाणीओ ठियाओ। देवविणिम्मिओ उसभजम्मूसवो 80 तम्मि य समए सक्को देवराया, बालरविमंडलजुइणा पालएण विमाणेण वितिमिरं गग 1 सुणंदा शां०॥ 2 मितके ली 3 / सेसके क 3 गो 3 // ३°डरिगी य शां० विना // ४°णीओ शां० विना // 5 रुयंगा रुयंसा य सुरू° शां० विना // 6 °णिकरकरं शां०॥ ७°ल्लाणि ली 3 // Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्मूसवो वंसट्ठवणा य] चउत्थो नीलजसालंभो। 161 णदेसं कुणमाणो, सपरिवारो जिणजम्मभूमिमुवगतो; तित्थयरजणणिं सुइमणहराए भारहीए संथुणित्ता, 'दिण्णावसोवणीऐ मरुदेवीए कुमारपडिरूवए विउव्वियपासथिए वीसत्थाए परमादरविहियपंचरूवी भयवंतं करकमलपुडसुपरिग्गहियं काऊण, मंदरगिरिवरचूलामणिभूयाए चूलिगाए दाहिणदिसाभायपइट्ठियाए अइपंडुकंबलसिलाए खणमेत्तसाहरियं, चउविहदेववंदकयसण्णेझं भयवंतं सासयसीहासणसुहासीणो सहस्सनयणो ठितो / ततो। अच्चुइंदो परितोसवियसियमुहारविंदो विहीए खीरोयसायरसलिलभरिऍण कणयकलसट्ठसहस्सेण अहिसिंचए, कमेण सव्वोसहि-तित्थोदएहि य अहिसिंचइ / अहिसिंचेंते य लोगणाहे देवा पसण्णहियया रयण-मणि-कुसुमाणि वरिसंति / अच्चुइंदो भयवंतं विहीय अहिसिंचिऊण, पयओ अलंकिय-विहूसियं काऊण, ततो मंगलाणि आलिहइ सोत्थियादीणि; धूवं घाण-मणदइयं संचारेऊण, सुइमहुरं थोऊण भयवंतं पजुवासति / एवं पाण-10 यांदिया वि सुरपइओ भत्तिवसचोइया धुयभयं भवियकुमुदचंदं सबायरेण पूएऊण परमसुमणसा थुइपरायणा ठिया / ततो सक्केण तेणेव विहिणा खणेण भयवं जम्मणभवणे माउसमीवे साहरिओ / अवणीयसुयपडिरूवगा य पडिबुद्धा देवीहिं कयजयसदा मरुदेवी / खोमजुयलं कुंडलजुयलं च ऊसीसगमूले निक्खिवइ सुरवती, सबविग्घसमणं सिरिभायणमिव सिरिदामगंडं दिद्विसमासासणकरं उल्लोयंसि निक्खिवइ, विउलं रयणरासिं 15 दाऊण रक्खानिमित्तं घोसेऊण मघवं गतो सणिलयं / देवा सेसा य जिणप्पणामसमन्जियपुण्णसंचयाँ गया णियहाणाणि / ततो भयवओ(व) पलिओवमट्ठितियाए देवयाए सुरवतिसंदिट्ठाए परिग्गहिओ कुरुसंभवफल-रससुरवइविदिण्णकयाहारो वड्डइ सुहेण मिहुर्णंगणकुमुबालचंदो / सुमिणदंसणनिमित्तं अम्मा-पिऊहिं कयं नाम 'उसभो' त्ति / भयवओ संवच्छरजायगस्स य सहस्सन-20 यणो वामणरूवी उच्छुकलावं गहेऊण उवढिओ नाभिसमीवं / भयवया य तिविहणाणप्पहावेण विण्णाओ देविंदाहिप्पाओ / ततो गेण लक्खणपसत्थो हत्थो दाहिणो पसारिओ। सतो मघवया परितुद्वेण भणिओ-किं उच्छु अगु? त्ति / अंगु भक्खणे य धाऊ / जम्हा य इक्खू अभिलसिओ तम्हा 'इक्खागुवंसो' त्ति ठाविओ / ततो भयवं सुमंगलाए समं वडइ / तम्मि समए मिहुणं जायमेत्तयं तालरुक्खस्स हेट्ठा ठवियं, तत्थ दारगो ताल-25 फलेण विहाडिओ, सा दारिया विवड्डिया णाभिस्स निवेइया य / सा ये उक्किट्ठसरीरा देवकण्णगा विव णाभिणा सारक्खिया / तप्पभिई च अकालमनू पवत्तो। जंभगेहिं लोगतिएहि य समाणरूवेहिं सेविजमाणो परिवहति / कुलगरा य चक्खुमं जसमं पसेणई य पियंगुसामा कुलगरभारियाओ य; सेसा सुधंतकणगप्पहा / उसभसामी पत्तजोबणो १०दीए क 3 गो 3 // 2 दिण्णोव शां०॥३°णीते ली 3 // 4 °ए कण° ली 3 विना ।।५°मयाणि कु. उ 2 संसं० विना॥६°यादी वि शां. विना // ७°या सयाणि ठाणाणि शां० विना // ८°णमण ली. य.क 3 गो 3 / णजण डे० ॥९°णो बंभणरू° ली 3 // 10 त्ति पगासिओ शां०॥ 11 °य अइउकिली 3 // * "अगु भक्खणे य धाऊ" इत्येतत् टिप्पनकमन्तः प्रविष्टमाभाति // ब० हिं० 21 Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ वसुदेवहिंडीए [ उसहसामिरज्जाभिसेओ य छत्तसरिससिरो, पयाहिणावत्तकसिणसिरोओ, सकलगहणायगमणोहरवयणो, आयतभुमयाजुयलो, पुंडरियवियसियनयणो, उजुयवयणमंडणणासावंसो, सिलप्पवालकोमला. (ग्रन्थानम्-४५००)ऽहरो, धवल-विमलदसणपंती, चउरंगुलप्पमाणकंबुगीवो, पुरफलिहदीहबाहू, लक्खणजालंकियपाणी, सिरिवच्छंकियविसालवच्छो, गयवजमझो, अकोसप5 उमनाभी, सुबद्ध-वट्टियकडिप्पएसो, तुरगगुज्झदेसो, करिकराकारोरुजुयलो, निगूढजाणुमंडलो, कुरुविंदावत्तसंठियपसत्थजंघो, कणयकुम्मसरिसपाद्जुयलो, मधुरगंभीरमणहरगिरो, वसभललियगमणो, पभापरिक्खित्तकंतरूवो । ततो देवराइणा सदारेण आगंतूण भयवओ विवाहमहिमा कया। ततो फिट्टिओ मिहुणधम्मो । गयाणि य छ पुवसयसहस्साणि । देवोवणीय परिभोगसुमणसस्स उसभस्स सुमंगलाए देवीए भरहो बंभी य मिहुणगं जायं, बाहु10 बली सुंदरी [य] सुनंदाए । पुणो य एगणपन्नं पुत्तजुयलकाणि सुमंगलालया सुमंगला पसूया । वीसं च पुवसयसहस्साणि वचंति सुहसागरगयस्स उसभसिरिणो । उसहसिरिरज्जाभिसेओ कुलगरपउत्ताओ य दंडनीईओ अइक्कमंति कालदोसेण पुरिसा, उवट्ठिया य भयवया भणिया-इमम्मि राया जइ होइ तस्स उग्गा दंडनीई होइ. तीए य पया पालेउं सक्का । ते 15 पुच्छंति-केरिसो राया ? किह वा सो उवचरियो ? । ताहे कहेइ विहिं सोवयारं । ते भणंति-होह राया, तुब्भे जोग्गा । तओ नाभिसमीवं पेसिया । तेणे भणियं-उसमें रायाणं ठवेह । ‘एवं होउ' त्ति गया। [भयवया भणियं-] गच्छह पउमसरं, पउमिणिपत्तेहिं जलमाणेऊणं जाव अभिसिंचह मं, जयसदं च पउंजह । ते जाव गया तमाणं संपाएउं ताव सक्केण लोयपालसहिएण रायाभिसेएणं अहिसित्तो, सवालंकारभूसिओ य । दिट्ठो अ20णेहिं परिओसवियसियमुहेहिं देवसंपरिखुडो । चिंतेऊण पाएसु सलिलं छोढूण कयजयजयसदा ठिया कयंजलिवुडा । 'अहो! विणीया इमे पुरिसि'-त्ति चिंतेऊण संदिट्ठो सकेण वेसमणो-'इमेसिं विणीयाणं विणीयं रायहाणिं णिम्मवेह. जं च रायजोग्गं तं च सवं पहुणो विहेहि'-त्ति संदिसिऊण कयपणामो गतो सुरवती । वेसमणेण य दुवालसजोयणायामा णवजोयणवित्थिण्णा निम्मविया नयरी। ततो पढमं राइणा विहत्ता चत्तारि गणा25 उग्गा भोगा राइण्णा नागा । जे उग्गा ते आयरक्खा, भोगा भोगे भुंजंति, राइण्णा जे सामिणो समवयसा, णागा जे कजनिवेयगा। एवं च गणसमग्गो कोसलाजणवयं पालेइ । ततो जणवयसयं पुरसयं च पुत्ताणं विदिण्णं । कयाँ य संबद्धा सम्माणिया य सुयाहिं समं पुत्ताणं। __ उवहियाओ पयाओ-ओसहीओ णे ण परिणमंति, संदिसउ पहु त्ति । भयवया 30 भणिया-पाणीहिं परिमलिय णीतुसाओ आहारेह त्ति । पुणो कालंतरेण उवट्ठिया भणिया १ सिरओ शां० ॥ २ °णऽणुषणाएण भ° शां० विना ॥ ३ °वयंसा समाणा, जे कजणिवेयगा ते णागा । एवं शां० विना ॥ ४ यायि सं° शां० विना ॥ ५ णित्तुसा ली ३ शां०॥ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 उसहसामिपवजा ] चउत्थो नीलजसालंभो। १६३ णितुसाओ पत्तपुडेसुं तीमियाओ पत्तपुडेसुं उम्हवियाओ आहारेह त्ति । पुणो उवट्ठिया, भयवं च हत्थिखंधवरगओ निग्गओ, अग्गी अ पादवसंघरिससमुडिओ निवेदिओ। भणिया य मणुया-एस अग्गी इयाणि समुट्ठितो. एसो पयण-पयासण-दहणगुणो उवगाराय वो संवुत्तो. उवणेह य मट्टियं । तेहिं पुक्खरिणीओ मिउपिंडो उवणीओ, हत्थिकुंभे य आहतो। भणिया य जिणेण-एरिसयाणि पत्ताणि काऊण अगणिदड्ढाणि, ततो उदयसंजु-5 त्तपरिकम्मवियाओ ओसहीओ पयह. ततो उवउत्ताओ सरीरपत्थाओ मे भविस्संति त्ति । तेहि य मेहावीहिं बहुप्पयाराणि वियप्पियाणि, तत्थ कुंभगारा उप्पण्णा।जे य अय-रयय-सुवण्णाईहिं भायणाणि वियप्पेंति, [तत्थ लोहगारा उप्पण्णा] । वत्थरुक्खेसु पखीणेसु कुविंदोपदेसो कओ, तेहिं वत्थविहीओ वियप्पियाओ । गेहागारदुमपरिक्खए वडगीओ कम्मगरो । ण्हाविओ रोम-णह-परिवड्डीए । एयाणि य पंच मूलसिप्पाणि, एक्ककं वीसइभेदं । 10 कम्माणि तणहारगादीणि ततो चेव उप्पण्णाणि । विभूसा वि, राइणो विभूसं देवेहिं विहियं दद्वण लोगो वि तहेव चेहति । बंभी-सुंदरीणं भयवया संकमुवट्ठियाणं दाहिण-वामेहिं हत्थेहिं लिवि-गणियाणि उवइहाणि । रूवं भरहस्स उवइह । चित्तकम्म बाहुबलिस्स, लक्खणं इत्थि-पुरिसाईणं । कमेण य कलाओ कुमाराणं मणिरयणायभूसणेसु मोत्तिगादीण य । रोगतिगिच्छा वाणिज्जाओ य पवत्ता अयरिभूतचित्तपडियारा य ।। उसहसिरिपवजा __ एवं च भरहे गामा-ऽऽगर-नयरमंडिते तेवहिँ च पुवसयसहस्साई रजपालणवावारं काऊण, संवच्छरं किमिच्छियं दाणं दाऊण, लोगंतियपडिबोहिओ भरहादीणं पुत्ताणं रजं दाऊण, कच्छ-महाकच्छादीणं खत्तियराईणं चउहिं सहस्सेहिं समं सुरोवणीयाए सुदंसणाए सिबियाए सिद्धत्थवणे एकं देवदूसमायाय पवइओ भयवं मोणेण विहरइ । 20 पारणगकाले भिक्खत्थे पविट्ठस्स कण्णगाओ कणग-दूस-भूसणाणि आसे हत्थी य जणो णीणेइ । ते छुहाभिभूआ वयणं पि अलभमाणा णिविण्णा माणेणं भरहस्स रण्णो भएण अरण्णेसु मूल-फलाहारा ठिया तावसा वक्कला अजिणधरा जाया ।। नमि-विनमीणं विज्जाहररिद्धिपत्ती नमि-विनमी य भयवओ संबंधिकुमारा अत्याणिवेलासु दो वि खग्गपाणिणो सेवंति 25 अपरितंता । धरणो य नागराया तित्थयरवंदणरयो पस्सइ णं विणएण पजुवासमाणा । कोऊहलेण य पुच्छिया-किमत्थं सेवह सामि ? ति । ते भणंति-सामिणा पुत्ताणं खत्तियाण य विदिण्णाओ भूमीओ, अम्हे पुण दूरत्था आसि, तं इयाणि सेवंताणं काहिति णे पसायं पहु त्ति । एवं भणिए ईसिं सप्पहासो भणइ पण्णगवई-भो सुणह-भयवं गयरोस-तोसो, सरीरे वि णिम्ममत्तो, अकिंचणो, परमजोगी, निरुद्धासवो, कमलपलासनिरु-30 १°य मे सं° शा० ॥ २ तत्थ रु° ली ३ उ २ मे० ॥ ३ सअंक ली ३। समक° गो ३ शां० ॥ ४ बंधे कु° ली ३ शां० ॥ ५ स्थाणे वे शां० विना ।। Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ वसुदेवहिंडीए [सिज्जंसस्स भिक्खादाणं वलेवचित्तो. चिरं जं भे उवासिओ तस्स भे फलं देमि-वेयड्डपवओभयपासट्ठियाओ दुवे विजाहरसेढीओ दोण्ह वि जणाणं. ताओ य न सका पादचारेण गंतुं, ततो भे गगणगमणजोग्गाओ विजाओ देमि, ताओ य महप्पभावाओ. विजाहि य विलोहेऊण जणं णेहि-त्ति । ते एवं भणिया पणया भणंति-पसादो णे, देह विजाओ । ततो तेण गंधव5 पण्णगाणं अडतालीसं सहस्साणि दिण्णाणि, महारोहिणी-पन्नत्ती-गोरी-विजुमुही-महाजाला-तिरिक्खमणि-बहुरूवाइयाओ । ततो ते लद्धपसाया वयड्ढउत्तरसेढीए विणमि स िणगराणि गगणवल्लहप्पमुहाणि निवेसेइ, णमि दाहिणसेढीए रहणेउरचक्कवालादीणि पण्णासं णिवेसेइ । जे य जओ जणवयाओ आणीया मणुया तेसिं तंनामा जणवया जाया वेयड्ढे । विजाणं च सन्नाहिं निकाया जाया, तं जहा-गोरीणं गोरिका, मणूणं मणु10 पुवगा, गंधारीणं विजाणं गंधारा, माणवीणं माणवा, केसिगाणं केसिगपुव्वगा, भूमीतुंडगविजाहिवयओ भूमीतुंडगा, मूलवीरियाणं मूलवीरिया, संकुयाणं संकुक्का, पंडुगीणं पंडुगा, कालगीणं कार्लंगेयाँ, मायंगीणं मायंगा, पवईणं पवएया, बंसलयाणं वंसलया, पंसुमूलिगाणं पंसुमूलिगा, रुक्खमूलिगाणं रुक्खमूलिया, कालि याणं कालकेसा, एवं एएहिं विणमिणमीहिं विभत्ता अट्ठ य अट्ट य निकाया । तओ 15 ते देवा इव विजाबलेण सयण-परियणसहिया मणुयदेवा भोए भुंजति । पुरेसु य भयवं उसहसामी देवयं सभासु ठाविओ, विजाहिवती य देवया सगे सगे निकाए । दोहि वि जणेहि य विभत्ताणि पुराणि सुयाणं खत्तियाण य संबंधेणं । सिजंसस्स उसभसामिणो इक्खुरसदाणं भयवं पियामहो निराहारो परमधिति-बल-सत्तसागरो सयंभुसागरो इव थिमिओ 20 अणाउलो संवच्छरं विहरइ, पत्तो य हत्थिणारं । तत्थ य बाहुबलिस्स सुओ सोम पहो, तस्स य पुत्तो सेजंसो। ते य दो वि जणा गयरसेट्ठी य सुमिणे पासंति तं रयणिं । समागया य तिण्णि वि । सोमस्स समीवे य कहेइ सेजंसो-सुणह अज मया जं सुमिणे दिटुं-मेरु किल चलिउ इहाऽऽगतो मिलायमाणप्पभो, मया य अमयकलसेण सित्तो साहाविओजातो. पडिबुद्धो। सोमप्पभो कहेइ-सुणाहि सिजंस ! जं मया दिटुं25 सूरो किर पडियरस्सी जातो, तुमे य से उक्खित्ताओ रस्सीओ, ततो पभासमुदयो जातो । सेट्ठी भणति-सुणह जं मया दिट्ठ-अन्ज किर कोइ पुरिसो महया. दस्सुबलेण अभिभूओ, सेयंससामी य से सहाओ जातो, ततो णेण पराजियं परबलं. एयं दट्टण पडिबुद्धो। ततो ते सुमिणफलनिप्फत्तिमविंदमाणा गिहा निग्गया। १ ह त्ति शां० । हेत्ति मे० ॥२ विजामुली३। विजमु० उ० । विजमु शां०॥३°या णी शां० ॥ ४ °णं विज्जागं शां० विना ॥ ५ कुआली ३। कुका शां०॥६ कसं० उ० मे. विनाऽन्यत्र--- 'लगया ली ३ मो० सं० गो ३। लगा शां० ।। ७°या, सामगीणं सामगा, मायं शां० विना ।। ८°सारो शां०॥ ९ मप्पभसमी शा०॥१० सोमो कशा० विना ।। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 सिज्जंसक्खायं पुवभवचरियं] चउत्थो नीलजसालंभो। भयवं पि अणाउलो सेयंसगिहमतिगतो । ततो सो पासायगतो आगच्छमाणं पियामहं पस्समाणो चिंतेइ–'कत्थ मण्णे मए एरिसी आगिई दिट्ठपुत्व?'त्ति, मग्गणं करेमाणस्स तदावरणखओवसमेण जाईसरणं जायं । संभंतो उढिओ 'एयस्स सवसंगविवजियस्स भत्त-पाणं दायवं' ति भवणंगणे पस्सई इक्खुरसकलसे पुरिसोवणीए । तओ परमहरिसिओ पडिलाहेइ सामि खोयरसेणं । भयवं अच्छिद्दपाणी पडिगाहेइ । ततो देवेहिं मुका पुप्फ-5 वुट्ठी, निवडिया वसुधारा, दुंदुहीओ समाहयाओ, चेलुक्खेवो कओ, 'अहो! दाणं' ति आगासे सद्दो कओ। जत्थ य पदेसे भयवं संठितो पढमजिणो तत्थ णेण मणिपेढिया कारिया 'गुरुचरणथाणं पूर्वणिजं' ति । तत्थ भोयणकाले अञ्चणं करेइ । तओ लोगो वि जत्थ जत्थ ठिओ भिक्खं गेण्हति तत्थ तत्थ णं मणिपेढिगाओ करेइ । एत्तो पाएण बंभत्थलपवत्ती जाया । सेयंसो इमीए ओसप्पिणीए पढमजिणभिक्खादाया । सिजसं पइ सोमप्पभादीणं भिक्खादाणविसया पुच्छा तं च जिणपूयणं सेयंसस्स सोऊण रिसओ रायाणो य सोमप्पभादयो परमेण कोउहल्लेण पुच्छंति सेयंसकुमारं-सुमुह ! कहं तुमे विण्णायं जहा 'भगवओ परमगुरुस्स भिक्खं दायवं?' ति. कहेहि णे परमत्थं । ततो भणति-सुणह जह मया जाणियं अण्ण-पाणं दायत्वं पभुस्स त्ति । सेयंसो पकहिओ सवणसुइसुहेण सद्देण-मम पियामहस्स दिक्खियस्स रूवदसणे 15 चिंता समुप्पण्णा-'कत्थ मण्णे एरिसं रूवं दिट्ठपुवं?' ति. विचारेमाणस्स बहुभवियं जाईसरणं समुप्पण्णं. ततो मया विण्णायं भयवओ भिक्खादाणं । ततो ते रायाणो परमविम्हिया भणंति-(ग्रन्थानम्-४६००) साह, केरिसो सि केसु भवेसु आसि ? । तओ भणतिसिजंसक्खायं उसभसामिसंबद्धं पुवभवचरियं इओ सत्तमे भवे मंदर-गंधमादण-णीलवंत-मालवंतमझवत्तिणीए सीयामहा-20 नदीमज्झविभत्ताए उत्तरकुराए अहं मिहुणइत्थिया, भयवं पुण मिहुणपुरिसो आसी । ततो तम्मि देवलोयभूए दसविहकप्पतरुप्पभवभोगोपभोगपमुइयाइं कयाइ उत्तरकुरुदहतीरदेसे असोगपायवच्छायाए वेरुलियमणिसिलायले नवनीयसरिससंफासे सुहनिसण्णाई अच्छामु । देवो य तम्मि हरए मजिउ उप्पइओ गगणदेसं । ततो णेण णियगप्पांवेण दस दिसाओ पभासियाओ । ततो सो मिहुणपुरिसो त उपिंजलकं पस्समाणो किं पि चिंते-25 ऊण मोहमुवगतो । इत्थियाए य ससंभमुट्ठियाए पत्तपुडगहिएण सलिलेण सित्तो लद्धसण्णो भणइ-हा! सयंपभे! कत्थ सि ? हा! सयंपभे! कत्थ सि ?, देहि मे पडिवयणं ति । तं च तस्स पडिवयणं सोऊण इत्थी वि 'कत्थ मण्णे मया सयंपभाहिहाणं अणुभूयपुवं?' ति चिंतेमाणी तहेव मोहमुवगया, पञ्चागया भणति-अज्ज! अहं सयंपभा, जीसे भे १°सभवणमति शां०॥ २ °इ खोयरस शां०॥ ३ °यइतब्वं ति ली३॥ ४ भासेण शां०॥५तं च उर्षिक ३ । तमुपिं० शां०॥६ति । तओ तस्स शां० विना ॥ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ वसुदेवहिंडीए [ सिजंसक्खायं उसभसामि गहियं नामं ति । ततो सो पुरिसो परं तुट्ठिमुहंतो भणति - अजे ! कहेहिं मे, कहं तुमं सभा ? । ततो सा भणइ - कहेस्सं भे, जं मयाऽणुभूयंमिणित्थियाssवेइया पुत्रभविया अत्तकहा अथ ईसाणो णाम कप्पो, तस्स मज्झदेसाओ उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए सिरिप्पभं 5 नाम विमाणं । तत्थ य ललियंगतो नाम देवो पभू, तस्स य सयंपभा अग्गमहिसी बहुमया आसी । तस्स य देवस्स तीए सह दिवविसय सुहसागरंगयस्स बहू कालो दिवसो इव गतो । कयाई चिंतावरो पायमल्लदामो अहोदिट्ठी ज्झायमाणो विष्णविओ मया सह परिसाए - देव ! कीस किं विमणा दीसह ? को भे मणसंतावो ? । ततो भणति - मया yard थोवो कओ तवो, तओ मे 'तुब्भे विप्पयुंजामि' त्ति परो संतावो । ततो अम्हेहिं 10 पुणरवि पुच्छिओ-कहेह, तुम्भेहिं कह थोवो तवो कओ ? कहं वा इमो देवभवो लद्धो ? त्ति । ततो भणति — ललियंगयदेव कहिया पुवभविया अत्तकहा जंबुद्दी अवरविदेहे गंधिलावतिविजये गंधमादण - वक्खारगिरिवरासपणे वेयause गंधारओ नाम जणवओ । तत्थ जणसमिद्धसेवियं गंधसमिद्धं नयरं । राया 15 राजीवविबुद्धवयणो जणवयहिओ सयबलस्स रण्णो नत्तुओ अइबलस्स सुओ महाबलो नाम; सो अहं पिउ - पिया महपरंपरागयं रज्जसिरिमणुभवामि । मम वि बालसहो खत्तियकुमारो सयंबुद्धो जिणवयणभावियमती; संभिण्णसोओ पुण मे मंती बहुसु कज्जेसु परिपुच्छणिजो । समतिच्छिएकाले बहुम्मि कयाइं गीय-वाइयपडिरओ नच्चमाणिं णट्टियं परसामि । सयंबु20 ण य पण्णविओ - देव ! गीयं विलवियं विजाणउ पुरिसस्स, नट्टं विडंबणा, आभरणा भारा, कामा दुहावहा, परलोगहिए चित्तं निवेसेयव्वं, अहिओ विसयपडिबंधो असासए जीविए त्ति । ततो मया रागेण भणिओ - कहं गीयं सवणामयं विलावो ? कहं वा नहं नयन्भुदयं विडंबणा ? कहं वा देहभूसणाणि भारं भाससि ? लोगसारभूए कामे पीइकरे दुहावह ? त्ति । ततो असंभंतेण सयंबुद्धेण भणियं - सुणह सामि ! पसन्नचित्ता जहा गीयं पलावो25 जहा काइ इत्थिया पवसियपइया पइणो सुमरमाणी तस्स समागमकखिया समतीय भत्तणो गुणे वियप्पमाणी पओस-पच्चूसे दुहिया विलवइ । भिचो वा पभुस्स कुवियस्स पसायणनिमित्तं जाणि वयणाणि भासइ पणओ दासभावेण अप्पाणं ठाविऊण, सो य विलावो । तव इत्थी पुरिसो वा अण्णोष्णसमागमाहिलासी कुवियपसायणनिमित्ते जातो काय-मण-वाइगीओ किरियाओ पउंजियाओ कुसलजणचितियाओ विविधजाइनिबद्धाओ 30' गीय' ति वुच्चइ । तं पुण चिंतेह सामि ! ' किं विलावपक्खे वट्टइ ? न वट्टइ ?' त्ति ॥ 1 १ ° श्रय° शां० ॥ २ शां० विनाऽन्यत्र - पजुजीहामि कसं० संसं० उ० मे० ॥ ३ 'नय° शां० ॥ ४ सुहयं ली ३ ॥ ――― Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ____10 संघद्धं पुषभवचरियं ] : चउत्थो नीलजसालंभो । १६७ इदाणिं णटुं सुणह जह विडंबणा-इत्थी पुरिसो वा जो जक्खाइट्ठो परवत्तबो, मजे पीए वा जातो कायविक्खेवजातीओ दंसेइ, जाणि वा वयणाणि भासति सा विलंबणा । जइ एवं, जो य इत्थी पुरिसोवा पहुणो परिओसनिमित्तं निजोजिउ धणवइणो वा विउसजणनिबद्धं विहिमणुसरंतो जे पाद-सिर-नयण-कंधरादि संचालेइ सा विलंबणा परमत्थओ ।। __ आभरणाणि भारो त्ति गहेयवाणि-जो सामिणो निओए कडकाईणि आभरणाणि 5 पेडागयाणि वहेजा सो अवस्सं पीडिजइ भारेण । जो पुण परविम्हयनिमित्तं ताई चेव जोगेसु सरीरत्थाणेसु सण्णिवेसियाणि वहति सो रागेण णं गणेइ भारं, अत्थि पुणो से। जो य परपरिओसनिमित्तं रंगयरो नेवत्थिओ सुमहंतं पि भारं वहेज 'न मे परिस्समो' भावमाणो । कजगुरुययाए ण मण्णेज वा भारं, तत्थ वि भारो परमत्थओ ॥ कामाणं दुहावहत्तं कामा दुविहा-सहा रूवा य । तत्थ सद्दमुच्छिओ मिगो संदं 'सुह' ति मण्णमाणो मूढयाए अपरिगणियविणिवाओ वह-बंध-मरणाणि पावइ । तहेव इत्थी पुरिसो वा सोर्तिदियवसगतो सदाणुवाई सद्दे साहारणे ममत्तबद्धबुद्धी तस्स हेउं सारक्खणपरो परस्स कलुसहियओ पदुस्सइ, ततो राग-दोसपबंधपडिओ रयमाइयइ, तन्निमित्तं च संसारे दुक्खभायणं होइ गीयरागा । तहा रूवे रत्तो रूवमुच्छिओ साहारणे विसयसमुहे ममत्तबुद्धी 15 रूवरक्खणपरो परस्स पदूसइ, संकिलिट्ठचित्तो य पावकम्मं समजिणइ, तप्पभवं च संसरमाणो दुक्खभायणं भवइ । एवं भोएसु वि गंध-रस-फासेसु सज्जमाणो परंसि पदूसंतो मूढयाए कम्ममाययति, तओ य जम्म-जरा-मरणबहुलं संसारं परीइ । तेण दुक्खावहा कामा भोगा य परिचइयवा सेयत्थिणा ॥ __एवं भणंतो सयंबुद्धो मया भणिओ-मम हिए वट्टमाणस्स अहिओ सि, दुहमई 20 वट्टसि, जो मं संसतियपरलोगसुहेण विलोभेतो संपयसुहं निंदेतो दुहे पाडेउमिच्छसि । ततो संभिन्नसोएण भणिओ-सामि! सयंबुद्धो जंबुग इव मच्छकंखी मंसपेसिं विहाय जहा निरासो जातो, तहा दिट्ठसुहं संदिद्धसुहासया परिच्चएंतो सोइहिति । सयंबुद्धेण भणिओ-जं तुमं तुच्छे-कप्पणामेत्तसुहमोहिओ भणसि, को तं सचेयणो पमाणं करेजा ?. जो कुसलजणसंसियं रयणं सुहागयं कायमणियमणुसरंतो न इच्छइ 25 तं. केरिसं मण्णसि ?. संभिण्णसोय! अणिञ्चयं जाणिऊण सरीर-विभवाईणं धीरा भोए पंजहिय तवस्सी संजमे य निवाण-सुरसुहसंपायगे जयंति । संभिण्णसोओ भणति-सयंबुद्ध ! सका मरणं होहिति सुसाणे ठाइउं तुम. जहा टिटिभी गगणपडणसंकिया धरेउकामा उद्धपाया सुयइ तहा तुमं किर 'मरणं होहिति' त्ति अइपयत्तकारी संपयसुहं परिचइय कालियं पसंसेसि. पत्ते य मरणसमए परलोगहियं आयरिस्सामो । 30 १°ण जाणइ ली ३॥ २ सद्दो शां० विना॥३ °सपंथप शां० विना ॥ ४०रिचियब्वा शां०॥५ च्छकसुह ली ३ विना ॥ ६ को ते स शां० विना ।। ७ कुज्जा ली ३ शां० विना ।। ८ पयहिय शां० विना ॥ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ वसुदेवहिंडीए [सिजंसक्खायं उसहसामिसयंबुद्धेण भणिओ-मुद्ध ! न जुद्धे संपलग्गे कुंजर-तुरगदमणं कजसाहगं, ण वा णगरे उवरुद्धे जवसपत्तिधणोपायाणं, ण य गिहे पलित्ते कूवखणणं कजकरं. जइ पुण दमणभरण-खणणाणि पुवकयाणि भवंति, ततो परबलमहण-चिरसहण-जलणणिवावणाणि सुहेण भवंति; तहेव जो अणागयमेव परलोगहिए ण उज्जमति सो' उक्कमंतेसु पाणेसु, 5 छिज्जमाणेसु मम्मथाणेसु विसंवदितदेहबंधो परमदुक्खाभिभूओ किह परलोगहियं अणुहेहिति ?. एत्थ सुणाहि वियक्खणकहियं उवएसंवायसाहरणं एक्को किर हत्थी जरापरिणओ उम्हकाले किंचि गिरिनइं समुत्तरंतो विसमे तीरे पडिओ । सो सरीरगुरुयाए दुब्बलत्तेण य असत्तो उठेउं तत्थेव य कालगतो। वृग-सियालेहि 10य अवाणदेसे परिखइओ, तेण मग्गेण वायसा अतिगया मंसमुदयं च उवजीवंता ठिया । उण्हेण डझमाणे कलेवरे सो पवेसो संकुचितो । वायसा तुट्ठा-अहो! निराबाहं जायं वसियत्वं । पाउसकाले य गिरिनदिवेएण निछुभमाणं महानइसोयपडियं पत्तं समुई, मच्छ-मगरेहि य छिण्णं । ततो ते जलपूरियकलेवरातो वायसा निग्गया तीरमपस्समाणा तत्थेव णिधणमुवगया । जइ पुण अणागयमेव निग्गया होता तो दीहकालं 15 सच्छंदप्पयारा विविहाणि मंस-सोणियाणि आहारता ।। एयस्स दिटुंतस्स उवसंहारो-जहा वायसा तहा संसारिणो जीवा । जहा हथिकलेवरपवेसो तह मणुस्सबोंदिलाभो । जहा तदभंतरं मंसोदगं तहा विसयसंपत्ती । जहा मग्गस्स निरोहो तहा तब्भवपडिबंधो । जहा उदयसोयविच्छोहो तहा मरणकालो । जहा वायसनिग्गमो तहा परभवसंकमो॥ 20 एवं जाण संभिन्नसोय! जो तुच्छए निस्सारे थोवकालिए कामभोगे परिचइत्ता तव. संजमुज्जोयं काहिइ सो सुगतिगतो न सोचिहिति. जो पुण विसएसु गिद्धो मरणसमयमुदिक्खइ सो सरीरभेदे अगहियपाहेज्जो चिरं दुहिओ होहिति. मा य जंबुक इव तुच्छकप्पणामेत्तसुहपडिबद्धो विपुलं दीहकालियं सुहमवमण्णसु । संभिण्णसोओ भणइ-कहेहि णे, का जंबुकसुहतुच्छकप्पणा ? । सयंबुद्धेण भणिओ-सुणाहि25 जंबुकाहरणं ___ कोयँ किर वणयरो वणे संचरमाणो वयत्थं हत्थिं पासिऊण विसमे पएसे ठितो । एगकंडप्पहारपडियं गयं जाणिऊण धणुं सजीवर्मवाकरिय, परसुं गहाय, दंत-मोत्तियहेलं गयमच्छियमाणो हत्थिपडणपेल्लिएण महाकाएण सप्पेण खइओ तत्थेव पडिओ । जंबुएण य परिब्भमंतेण दिट्ठो हत्थी मणुस्सो सप्पो धणुं च । भीरुत्तणेण य अवसरिओ, मंसलो30लुयाए पुणो पुणो अल्लीणो 'निज्जीवं' ति य निस्संको तुट्ठो अवलोएइ, चिंतेइ-'हत्थी मे १ सो अक्क शां० ॥ २ °ओ उन्हका क ३ गो ३ । ओ गिम्हका शां० ॥ ३ वाइसा शां० ॥ ४ कोइ कि. शां० विना ॥ ५ °णो वणहत्थिं पस्सिऊ° शां०॥ ६ मवकिरि शां०॥७°णावपे ली ३ ॥ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संबद्धं पुचभवचरियं ] चउत्थो नीलजसालंभो । १६९ जावज्जीवियं भत्तं, मणुस्सो सप्पो य किंचि कालं होहिति, जीवाबंधणपदं ताव खायामि' तं वरओ मंदबुद्धी धणुकोडीए छिण्णपडिबद्धाए तालुदेसे भिण्णो मओ । जइ पुण अप्पसारं छड्डेउं हत्थि मणुस्सोरगकलेवरेसु सजतो तो ताणि अण्णाणि य चिरं खायंतो । एवं च जो माणु- (ग्रन्थाप्रम् - ४७००) स्सए सोक्खे पडिबद्धो पर लोग साहणनिरवेक्खो सो जंबुक इव विणस्सिहिति ॥ जं पि जंपह 'संदिद्धं परलोयं, तप्पभवं च सोक्खं तं अत्थि सामि ! तुब्भे कुमारकाले सह मया णंदणवणं देवुज्जाणमुवगया. तत्थ य देवो उवइओ. अम्हे तं दहूण अवसरिया देवो य दिवाए गतीए खणेण पत्तो अम्ह समीवं भणिया अणेण अम्हे सोमरूविणा - ' अहं सयबलो, महब्बल ! तव पियामहो रज्जसिरिं अर्वेज्झिऊण चिण्णवओ भलोए कप्पे अहिवई जातो, तं तुब्भे वि मा पमाई होह, जिणवयणेण भावेह अप्पाणं, 10 ततो सुगतिं गमिहह' त्ति एवं वोत्तूणं गतो देवो. जइ सामि ! तं सुमरह ततो 'अस्थि परलोगो' त्ति सहहह । मया भणिओ - सयंबुद्ध ! सुमरामि पियामहदरिसणं । लद्धावकासो य भणति पुणो वि सबुद्धो - सुह पुत्रवित्तंमहाबल-सयंबुद्धपुचजाणं कहासंबंधो 5 तुन्भं को राया कुरुचंदो नाम आसि, तस्स देवी कुरुमती, हरिचंदो कुमारो । सो य राया णाहियवादी, 'इंदियसमागममेत्तं पुरिसकप्पणा, मज्जंगसमवाए मय संभव इव, न तो परभवसंकमणसीलो अत्थि, न सुकय-दुक्कयफलं देव-नेरइ कोइ अणुभवई' त्ति ववसिओ, बहूण सत्ताण वहाय समुट्ठिओ, खुर इव एकंतधारो, निस्सीलो, निबओ । तओ तस्स एयकम्मरस बहू कालो अतीतो, मरणकाले य 20 असा यावेयणीय बहुल्याए नरयपडिरूव पुग्गलपरिणामो संवृत्तो - गीयं सुइमहुरं 'अक्कोसं' ति मण्ण, मोहराणि रुवाणि विकिताणि पस्सति, खीर खंड- सक्करोवमं 'पूँई' ति मण्णइ, चंदणाणुलेवणं मुम्मुरं वयइ, हंसतूलमउयं सेज्जं कंटगसाहासमाणं वेदेइ । तस्स य ताविहं विवरीयभावं जाणिऊण कुरुमती देवी सह हरिचंदेण पच्छण्णं पडियरइ । सो य कुरुचंदो राया एवं परमदुक्खिओ कालगतो । तस्स य नीहरणं काऊण हरिचंदो सयं 25 नयरं गंधसमिद्धं नाएण अणुपालेइ । ततो य तहाभूयं पिउणो मरणमणुचिंतयंतस्स एवं मती समुप्पण्णा - अत्थि सुकय-दुक्कयफलं ति । ततो णेण एगो खत्तियकुमारो बालव - १ दं चेव शां० विना ॥ २ कसं० उ २ भे० विनाऽन्यत्र त्ति णबउव मो० सं० गो ३ । त्ति ण उव ली ३ | ३ णं णामुजा ली ३ | ४ वइज्झि० शां० विना ॥ ५ विक्कियाणि शां० विना ॥ ६ पूयं ि उ २ विना ॥ ७ चंदरा० शां० विना ॥ ८ हइसु उ २ मे० विना ॥ व० हिं० २२ सो संदिट्ठो - भद्दमुह ! तुमं पंडियजणोवइटुं धम्मसुयं मे कहयसु, एसा ते सेव त्ति । तओ सो तेण निओगेण जं जं धम्मसंसियं वयणं सुणेइ तं तं राइणो निवेएइ । सो वि 15 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० वसुदेवहिंडीए [सिजंसक्खायं उसभसामिसदहंतो सुसीलयाए तहेव पडिवजति । कयाइं च नगरस्स नाइदूरे तहारूवस्स साहुणो केवलनाणुपत्तीमहिमं काउं देवा उवागया । तं च उवलभिऊणं सुबुद्धिणा खत्तियकुमारेण रण्णो निवेदितं हरिचंदस्स । सो वि देवाऽऽगमणविम्हइओ जयणतुरगारूढो गतो साहुसमीवं, वंदिऊण य विणएण निसण्णो सुणइ केवलिमुहुग्गयं वयणामयं । संसारकहं 5 मोक्खसुहं च से सोऊण 'अत्थि परभवसंकमोत्ति निस्संकियं जायं । ततो पुच्छइ कुरु चंदो राया-मम पिया भयवं! कं गइं गतो? त्ति । ततो से भयवया कहियं विवरीयविसउवलंभणं सत्तमपुढवीनेरइयत्तं च-हरिचंद! तव पिया अणिवारियपावाऽऽसवो बहूणं सत्ताणं पीडाकारी पावकम्मगुरुत्ताए णं णरगं गतो. तत्थ परमदुबिसहं निरुवमनिप्पडियारं निरंतरं सुणमाणस्स वि सचेयणस्स भयजणगं दुक्खमणुभवति । तं च तहाविहं 10 केवलिणा कहियं पिउणो कम्मविवागं सोऊणं संसारभीरू हरिचंदो राया वंदिऊण पर मरिसिं सनयरँमइगतो। पुत्तस्स रायसिरिं समप्पिऊण सुबुद्धिं संदिसति-तुम मम सुयस्स उवएसं करेजासि त्ति । तेण विण्णविओ-सामि! जदि अहं केवलिणो वयणं सोऊण सह तुब्भेहिं न करेमि तवं तो मे न सुयं. जो पुण 'उवएसो दायबो' त्ति संदिसह तं मम पुत्तो सामिणो कहेहि त्ति । राया पुत्तं संदिसइ-तुमे सुबुद्धिसुयसंदेसो कायवो 15 धम्माधिकारे त्ति । तुरियं निग्गओ सीहो व पलित्तगिरिकंदराओ, पवइओ केवलिसमीवे सह सुबुद्धिणा, परमसंविग्गो सज्झायपसत्थचिंतणपरो परिखवियकिलेसजालो समुप्पण्णनाणांतिसओ परिनिव्वुओ त्ति । सुणिमो-तस्स य हरिचंदस्स रायरिसिणो वंसे संखातीतेसु नरवईसु धम्मपरायणेसु समतीतेसु तुम्भे संपदं सामिणो, अहं पुण सुबुद्धिवंसे। तं एस अम्ह नियोगो बहुँपुरिसपरंपरागतो धम्मदेसणाहिगारो॥ 20 जं पुण त्थ मया अयंडे विण्ण विया तं कारणं सुणह-अज्ज अहं नंदणवणे गओ आसि, तत्थ मया दिट्ठा दुवे चारणसमणा आइच्चजसो अमियतेओ य. ते मया वंदिऊण पुच्छिया-भयवं! महाबलस्स रण्णो केवइयं आउं धरइ ? त्ति. तेहिं निदिहोमासो सेसो. ततो संभंतो मि आगतो. एस परमत्थो. ततो जं जाणह सेयं ति तं कीरउ अकालहीणं । ताणि य उवसमवयणाणि सयंबुद्धकहियाणि सोऊण अहं धम्माभि25 मुहो आउपरिक्खयसुतीय आममट्टियाभायणमिव सलिलपूरिजमाणमवसण्णहियओ भीओ सहसा उहिउ कयंजली सयंबुद्धं सरणमुवागतो-वयंस ! किमियाणि मासावसेसजीवी करिस्सं परलोगहियं ? ति । तेण म्हि समासासिओ-सामि! 'दिवसो वि बहुओ परिचत्तसवसावजजोगस्स, किमंग पुणो मासो ? । तओ तस्स वयणेण पुत्तसंकामियपयापालणवावारो ठिओ मि सिद्धाययणे कयभत्तपरिचाओ संथारगसमणो सयंबुद्धोपदिट्ठजिण30 महिमासंपायणसुमणसो अणिञ्चयं संसारदुहं पाउवगमणं च वेरग्गजणियाणि सुणमाणो कालगतो इह जातो। एवं थोवो मे तवो चिण्णो त्ति ॥ १°णुप्पायम शां०॥ २ जवीण शां०॥ ३°लहणं शां० ॥ ४ रमुवगक ३॥ ५ काहे शां० ।। ६ कारि त्ति शां० विना॥७°णाइसेसो प० शां०॥ हवंसपरं शां० विना ।। Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संबद्धं पुवभवचरियं] चउत्थो नीलजसालंभो। १७१ एवं च अजललियंगएण देवेण कहियं मम सपरिवाराए । ईसाणदेवरायसमीवाओ य दढधम्मो नाम देवो आगतो । सो भणइ-ललियंगय ! देवराया नंदीसरदीवं जिणमहिमं काउं वञ्चति त्ति गच्छामि अहं, विदितं ते होउ त्ति । सो गतो । ततो अहं अन्जललियंगयदेवसहिया 'इंदाणत्तीए अवस्स गमणं होहि ति इयाणिं चेव वच्चामों' त्ति गया पुण नंदीसरदीवं खणेण । महिमा कया जिणाययणेसु, तिरियलोए 5 य तित्थयरवंदणं करेमाणो सासयचेश्यपूयं च चुओ ललियंगओ। परमसोगग्गिडझमाणहिययघरा य अहं विवसा गया सपरिवारा सिरिप्पमं विमाणं । परिहायमाणसोहं च ममं दट्टण आगतो सयंबुद्धो देवो भणति-सयंपभे! जिणमहिमं कुणसु, चयणकालो, बोहिलाभो भविस्सइ त्ति । तस्स वयणं परिग्गहेऊण नंदीसरे दीवे तिरियलोए य कयपूया अहमवि चुया समाणी जंबुद्दीवकविदेहे पुक्खलावइविजए पुंडरगि-10 णीए नयरीए वइरसेणस्स चक्कवट्टिस्स वसुमतीए देवीए दुहिया सिरिमती नाम जाया। सा हं पिउभवणपउमसररायहंसी धावीजणपरिग्गहिया जमगपवयसंसिया इव लया सुहेण वड्डिया । गहियाओ य कलाओ अभिरामियाओ। कयाइं च पओसे सवओभङ्गं पासायमभिरूढा पस्सामि नयरबाहिं देवसंपायं । ततो चिंतापरायणाए मे सुमरिया देवजाती, सुमरिऊण य दुक्खेणाऽऽहया मुच्छिया । परि-15 चारिगाहिं जलकणपडिसित्ता पञ्चागयचेयणा चिंतेमि-'कत्थ मण्णे पिओ मे ललियंगतो देवो ? त्ति, तेण य मे विणा किं जणेण आभटेणं ति मूयत्तणं पँकयं । भणइ परियणो–जंभएहिं से वाया अक्खित्ता। कओ य तिगिच्छएहिं पयत्तो, कयाई बलि-होम-मंत-रक्खाविहाणाई । अहं पि मूयत्तणं न मुयामि, लिहिऊण य आणत्ती देमि परिचारियाणं । उववणगयं च ममं अम्मधाती पंडिया नाम विरहे भणति-पुत्त सिरिमइ ! जइ कारणेण केणइ 20 मूई ततो मे अजंतिया साह, ततो सत्तीए कजसाहणे पयइस्सं. अत्थि मे विजाबलं, जेण मणुस्सलोए साहीणं पयोयणं संपाइस्सं. अह पुण सच्चमूई देवदोसेण तो किं सका काउं ? । तीय वि एवं भणिए मया चिंतियं-सुट्ठ भणइ धाई, मम हिययगयं अत्थं को साहेइ ? तं कहेमि से सम्भावं । तओ मया भणियं-अम्मो! अत्थि कारणं, जेण संपइकालं मूयत्तणगं करेमि त्ति। ततो सा तुहा भणति-पुत्त! साहसु मे कारणं, तं च सोऊण 25 जह भणसि तह चेहिस्सं ति । ततो मया भणिया-सुणाहिसिरिमइनिवेइया निण्णामियाभवसंबद्धा अत्तकहा __ अत्थि धायइसंडे दीवे पुचविदेहे मंगलावइविजए नंदिग्गामो नाम सण्णिवेसो । तत्थ अहं इओ तइयभवे दरिदकुले सुलक्खण-सुमंगल-धणियाउज्झिगाईणं छण्हं १चहि त्ति शां०॥ २ अहं वंदितुं तं ते शां० बिना ॥ ३ रिगणा डक ३ गो ३ उ० मे० ग्गिणा पड° ली ३॥ ४ पकारियं शां०॥ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ वसुदेवहिंडीए [सिज्जंसक्खायं उसभसामिभगिणीणं पच्छओ जाया, न कयं च मे नामं अम्मा-पिऊहिं निन्नामिय'त्ति भण्णामि । सकम्मपडिबद्धा य तेसिं अवसाणं जीवामि ।। ऊसवे य कयाई अड्डकडिंभाणि नाणाविहभक्खहत्थगयाणि सगिहेहिंतो निग्गयाणि । ताणि य द₹ण मया माया जाइया-अम्मो! देहि मे मोयगे अण्णं वा भक्खयं ति, 5 डिंभेहिं समं रमामि त्ति । तीए रुवाए हया निच्छूढा य गिहाओ-कओ ते इहं भक्खा ?. वच्चसु अंबरतिलयं पवयं, तत्थ फलाणि खायसु मरसु व त्ति । ततो रोवंती निग्गया मि । सरणं विमग्गमाणीए दिहोय मया जणो अंबरतिलयपबयाभिमुहो पत्थिओ।गया मि तेण सहिया। दिहो य मया पुहवितलतिलयभूओ, विविहफलभरनमिरपादवसंकुलो, कुलहरभूओ सउण-मियाणं, सिहरकरेहिं गगणतलमिव मिणिउं समुन्जओ अंबरतिलगो गिरिवरो। 10 तत्थ य गेण्हइ जणो फलाणि, मया वि पक्क-पडियाणि सादूणि फलाणि भक्खियाणि । रमणिज्जयाए य गिरिवरस्स संचरमाणी सह जण गंभीरं सुणिमो सदं अइमणोहरं । तं च अणुसरंती गया मि तं पदेसं सह जणेण । दिट्ठा मया जुगंधरा नाम आयरिया, विविहनियमधरा, चोदसपुवि-चउणाणिणो, तत्थ य जे समागया मणुया देवा य तर्सि जीवाणं बंध-मोक्खविहाणं कहयंता, संसए य विसोधिंता । ततो हं तेण जणेण सह पणिवइऊण 15 निसण्णा एगदेसे सुणामि तेसिं वयणं परममहुरं । कहंतरे य मया पुच्छिया-भयवं! अत्थि ममाओ कोइ दुक्खिओ (प्रन्थानम्-४८००) जीवो जीवलोए ? त्ति । ततो तेण भणियं-णिण्णामिए! तुम सदा सुभा-ऽसुभा सुतिपहमागच्छंति, रूवाणि य सुंदर-मंगुलाणि पाससि, गंधे सुभा-ऽसुभे अग्घायसि, रसे वि मणुण्णा-Sमणुण्णे आसाएसि, फासे वि इट्ठा-ऽणिढे संवेदेसि, अत्थि य ते पडियारो सी-उण्ह-तण्हा-छुहाणं, निदं सुहागयं सेवसि, निवाय20पवायसरणासओ वि य ते अत्थि, तमसि जोतिप्पगासेण कजं कुणसि. नरए नेरइयाणं निचं असुभा सद्द-रूव-रस-गंध-फासा, निप्पडियाराणि परमदारुणाणि सी-उण्हाणि खुहा. पिवासाओ य, न खणं पि निदासुहं दुक्खसयपीडियाणं, निचंधयारेसु नरएसु चिट्ठमाणा निरयपालेहिं कीरमाणाणि कारणसयाणि विवसा अणुहवमाणा बहुं कालं गमयंति. तिरिया वि सपक्ख-परपक्खजणियाणि सी-उण्ह-खु-प्पिवासादियाणि य जाणि अणुभवंति, ताणि व25हुणा वि कालेण न सका वण्णेउं. तव पुण साहारणं सुह-दुक्खं. पुबसुकयसमजियं अण्णेसिं रिद्धिं पस्समाणी दुहियमप्पाणं तकेसि त्ति. जे तुमओ हीणा बंधणागारेसु किलिस्संति, जे य दास-भयगा परवत्तवा णाणाविहेसु देहपीडाकरेसु कम्मेसु णिउत्ता किलिस्संति, आहारं पि तुच्छमणिहें भुंजमाणा जीवियं पालेंति, ते वि ताव पस्ससु त्ति । मया पणयाए 'जहा भणध त्ति तहा' पडिसुयं । तत्थ धम्मं सोऊणं केइ पवइया, केइ गिहवास30जोग्गाणि सीलबयाणि पडिवण्णा । मया वि विण्णविया-जस्स णियमस्स पालणे सत्ता मि तं मे उवइसह त्ति । तओ मे तेहिं पंच अणुवयाणि उवइहाणि । वंदिऊण परितुट्ठा १ पाला कीलमाणा कार शां० बिना ॥ २ विउं पा ली ३ विना ।। Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संबद्धं पुवभवचरियं] चउत्यो नीलजसालंभो। १७३ जणेण सह नंदिग्गामं गया, पालेमि वयाणि संतुट्ठा । कुडुंबसंविभागेण य परिणयाय संतीय चउत्थ-छट्ठ-ऽढमेहिं खमामि।। ___ एवं काले गए कम्हिइ कयभत्तपरिचाया राईए देवं पस्सामि परमदंसणीयं । सो भणति-णिण्णामिए ! पस्स मं, चिंतेहि य 'होमि एयस्स भारिय' त्ति, तओ मे देवी भविस्ससि, मया य सह दिवे भोए भुंजिहिसि त्ति । एवं वोत्तूण अदंसणं गओ । अह-5 मवि परिओसवियसियहियया 'देवदंसणेण लभेज देवत्तं ति चिंतिऊण समाहीए कालगया, सणियाणा ईसाणे कप्पे सिरिप्पभे विमाणे ललियंगयस्स देवस्स अग्गमहिसी सयंपभा नाम जाया । ओहिणाणोपओगविण्णायदेवभवकारणा य सह ललियंगएण जुगंधरगुरुवो वंदिउमवइण्णा । तं समयं च तत्थेव अंबरतिलए मणोरमे उजाणे समोसरिया सगणा य। तओ हं परितोसविसप्पियमुही तिउणपयाहिणपुवं गमिऊण णिवेइयणामा णट्टोवहारेण 10 महेऊण गया सविमाणं, दिवे कामभोए देवसहिया णिरुसुगा बहुँ कालं अणुभवामि । देवो य सो आउपरिक्खएण अम्मो ! चुओ ण याणामि कत्थ गओ ? त्ति । अहमवि य तस्स विओगदुहिया चुया समाणी इहाऽऽयाया, देवउज्जोवदंसणसमुप्पण्णजाईसरणा तं देवं मणसा परिवहंती मूयत्तणं करेमि 'किमेतेण विणा संलावेणं कएणं ?' । एस परमत्थो॥ लद्धमणुस्सजम्मणो ललियंगयदेवजीवस्स गवेसणा 15 तं च सोऊणं अम्मधाई ममं भणति-पुत्त ! सुट्ठ ते कहियं. एतं पुण पुवभवचरियं पेडे लेहिऊणं तओ हिंडावेमि. सो य ललियंगओ जइ माणुस्सए भवे आयाओ होहित्ति तओ सचरियं दट्टण जाई सुमरिहिति. तेण य सह णिव्वुया विसयसुहमणुभविस्ससि त्ति। तओ तीए मएणाऽणुसजिओ पडो विविधवण्णाइं पट्टियाहिं दोहि वि जणीहिं । तत्थ य पढम णंदिग्गामो लिहिओ, अंबरतिलगपवयसंसियसुकुसुमियाऽसोगसण्णिसण्णा गुरवो य, 20 देवमिहुणं च वंदणागयं, ईसाणकप्पे सिरिप्पभं विमाणं सदेवमिहुणं, महब्बलो राया सयंबुद्ध-संभिन्नसोयसहिओ, णिण्णामिगा य तवसोसियसरीरा, ललियंगओ सयंपभा य सणामाणि । तओ णिप्फण्णे लेक्खे धाई पट्टगं गहेऊण 'धायइसंडं दीवं वच्चामि' त्ति तीसे विजापभावेण आगासगमणं उप्पत्तिया जुवतिकेसपास-कुवलय-पलाससामं नहयलं। खणेण य पञ्चागया पुच्छिया मया-अम्मो ! कीस लहुं णियत्ता सि ? त्ति । सा 25 भणइ-पुत्त ! सुणह कारणं-'इहं अम्हं सामिणो तव पिउणो वरसवट्टमाणिणिमित्तं विजयवासिरायाणो बहुका समागया, तं जति इहेव होहित्ति ते हिययसाहीणो दइओ तओ कयमेव कजति चिंतिऊण णियत्ता. तम्मि य जइ ण होहित्ति इह परिमग्गणे करिस्सं जत्तं ति। सुट्ठियहिययाँ मया भणिया।अवरज्झ(ह)ए गया पट्टगं गहेऊण पञ्चावरण्हे आगया पसण्णमुही भणइ-पुत्त ! परिणेव्वुया होहि, ट्ठिो ते मया सो ललियंगओ। मया 30 १°वभाव शां०॥ २ पडि ले ली ३ उ. विना ॥ ३ सुडिहिया मो० सं०गो ३ उ २ सुद्धहियया कस० ।। Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ वसुदेवहिंडीए [सिजंसक्खायं उत्तभसामिपुच्छिया-अम्मो ! साहह-सो कहं ? ति । सा भणइ-पुत्त ! मया रायमग्गे पसारिओ पट्टओ । तं च पस्समाणा आलिक्खकुसला आगमं पमाणं करेंता पसंसंति, जे अकुसला ते वण्ण-रूवाणि पासंति । दुमरिसणरायसुओ दुइंतो कुमारो, सो मुहुत्तमेत्तं पासिऊण मुच्छिओ, खणेण आसत्थो पुच्छिओ मणूसेहिं-सामि ! किं थे मुच्छिया ? । सो 5 भणइ-चरियं नियगं पट्टलिहियं द₹ण य मे सुमरिया जाई-अहं ललियंगतो देवो आसि, सयंपभा मे देवि त्ति। मया पुच्छिओ-पुत्त ! साहसु को सण्णिवेसो ? । भणइपुंडरिगिणी नयरि त्ति । पवयं 'मेरु' साहति, अणगारो को वि एस विस्सरइ से नाम, कप्पं सोहम्मं कहेइ, राया मंतिसहिओ को वि एस त्ति, का वि एसा तवस्सिणी न जाणं से नामं ति। ततो 'उंचावगो' त्ति जाणिऊण मया भणिओ-पुत्त ! सच्चं सच्चं, जं ते जम्मंतरे 10 वीसरियं तेण किं ?. सच्चं तुमं सि ललियंगतो.सा पुण सयंपभा नंदिग्गामे पंगुली केण वि कम्मदोसेण जायाँ. एयं च णाए चरियं लिहियं तव वत्तमग्गणहेउं. मम य धायइसंडगयाए दिण्णो य पट्टओ. मया य अणुकंपाए तीसे तव परिमग्गणं कयं. एहि पुत्त ! जाव ते नेमि धाइसंडं ति। अवहसिओ मित्तेहिं, 'गम्मउ, पोसिजउ पंगुलि' त्ति । तओ अवकतो। मुहुत्तमेत्तेण आगतो लोहग्गलाओ धणो नाम कुमारो, सो धावण-लंघणा-ऽऽच15 रणेसु असमाणो त्ति वइरजंघो भण्णइ । सो उवागतो पट्टगं दळूण ममं भणति–केणेयं लिहियं चित्तं ? ति । मया भणियं-किंनिमित्तं पुच्छसि ? । सो भणइ-ममं एवं चरियंअहं ललियंगतो नाम आसि देवो, सयंपभा देवी. 'असंसयं तीए लिहियं ति, तीए य वा उवदेसेणं' तकेमि । ततो मया पुच्छिओ-जइ ते चरियं, साहसु य को एस सन्निवेसो? । सो भणति-नंदिग्गामो एस, पबओ अंबरतिलओ, जुगंधरा य आयरिया, एसा 20 खमणकिलंता णिण्णामिया, महब्बलो राया सयंबुद्ध-संभिण्णसोएहिं सह लिहिओ, एस ईसाणो कप्पो, सिरिप्पभं विमाणं; ऐयं सवं सपञ्चयं परिकहियं तेण । तओ य मया तुहाए भणिओ-जा एसा सिरिमती कुमारी पिउच्छाए दुहिया सा सयंपभा, जाव रण्णो णिवेएमि ताव ते लब्भइ ति सुमणसो गतो । ततो मि कयकज्जा आगया। पुत्त ! रण्णो निवेएमि, ततो ते पियसमागमो भविस्सइ त्ति । एवं वोत्तूण गया। निवेदितमणाए रण्णो। 25 ततो हं सदाविया रण्णा, देवी य वसुमई । तओ दोण्ह वि राया पकहिओ-सुणह, जो सिरिमतीए ललियंगओ देवो आसी. जहा णं अहं जाणं ण तहा सिरिमतीवइरसेणकारिओ ललियंगयदेवपरिचओ इहेव जंबुद्दीवे अवरविदेहे सलिलावतिविजए वीयसोगा नयरी, जियसत्तु नाम १ कहह ली ३ ॥२ आलेख शां० ॥ ३ दुमसेणराय ली ३ । दुमविसणराय मो० सं० गो ३ ॥ ४किं व मुक३। किं पमुली ३ ॥ ५ श्यं पि नि शां० विना ।। ६ उब्भाव° ली ३॥ ७°या आग. मेसु कुसला एयं शां०॥ यं चित्तियं ति ली ३ ॥ ९ एव स° शां०॥१० विजयस शां०॥ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संबद्धं पुवभवचरियं] . . चउत्थो नीलजसालंभो। राया, तस्स मणोहरी य केकई य दुवे देवीओ, तासिं अचलो विहीसणो य पुत्ता । उपरए पिउम्मि विजयद्धं भुंजंति बलदेव-वासुदेवा। मणोहरी य बलदेवमाया कम्मिय काले गए पुत्तं आपुच्छति अयलं-अणुभूया मे भत्तुणो सिरी पुत्तसिरी य. पच्चयामि, परलोगहियं करिस्सं, विसजेहि मं ति । सो नेहेण न विसज्जेइ । निबंधे कए भणति-अम्मो ! जइ निच्छओ ते कओ तो मं देवलोयग-5 याए वसणे पडि बोहेयवो त्ति । तीए पडिवन्नं । पवइया य परमधितिबलेण एगारसंगैधरी वासकोडी तवमणुचरिऊण अपरिवडियवेरग्गा समाहीए कालगया लंतए कप्पे इंदो आयाओ । तं ताव जाणेह ममं । . - बल-केसवा य बहुं कालं पमुइया भोए भुंजंति। कयाइं च निग्गया अणुयतयं आसेहिं वायजोगेण अवहिया अडविं पवेसियो । गो-रहसंचारेण य न विण्णाओ मग्गो, जाव णं 10 दूरं गंतूण आसा विवण्णा, बिभीसणो य कालगतो । अयलो नेहेण न जाणइ, 'मुच्छिओ' त्ति णेइ णं सीतलाणि वणगहणाणि 'सत्थो भविस्सइ'त्ति । अहं च लंतगकप्पगतो पुत्तसिणेहेणं संगारं च सुमरिऊण खणेण आगतो बिहीसणरूवं विउव्विऊण । रहगतो भणिओ बलो-भात ! अहं विजाहरेहिं सह जुज्झिउं गतो, ते मे पसाहिआ. तुम्हे पुण अंतरं जाणिऊण केण वि मम रूवेणं मोहिया, वञ्चिमो नयरं. एयं पुणो 'अहं' ति तुब्भेहिं 15 बूढं कलेवरं, सक्कारेमु णं । तें डहिऊण रहेण सनयरमागया पूइजमाणा जणेणं, घरे य एक्कासणनिसण्णा ठिया । तओ मया मणोहरीरूवं दंसियं । संभंतो य अयलो भणतिअम्मो ! तुब्भेत्थ कओ ? । पबजाकालो संगारो य सबो परिकहिओ, बिभीसणमरणं, 'अहं लंतगाओ कप्पाओ भवपडिबोहणनिमित्तं इहमागतो, परलोगहियं चिंतेहि अणिचं मणुयरिद्धिं जाणिऊण' । गतो सकप्पं लंतगइंदो। ___ अयलो पुत्तसंकामियरायसिरी तवमणुचरिय ईसाणे कप्पे सिरिप्पभे विमाणे ललियंगओ नाम सुरो जाओ । अहं पुण सदेवीयं पुत्तसिणेहेणं अभिक्खणं लंतयं कप्पं नेमि त्ति जाहे जाहे सुमरामि । सो पुण ललियंगतो देवो सत्तनवभागे सागरोवमस्स देवसुहं परिभोत्तूणं ततो सिरिप्पभाओ विमाणाओ चुओ, तत्थ अण्णो उववण्णो । तं पि अहं पुत्तसिणेहेणं चेव लंतयं कप्पं नेमि । एवं सत्तरस ललियंगया अईआ। एसो25 वि य जो मे सिरीमतीए ललियंगओ अट्ठारसमो लंतयकप्पं नीअपुव्वो बहुसो, जाणामि णं । तओ लंतयकप्पाओ चुओ हं वइरसेणो जातो ॥ राया भणइ-सहावेह वइरजंघं ति । आणत्तो कचुंगी गतो । आगतो य वयरजंघो। दिट्ठो य (ग्रन्थानम्-४९००) मया परितोसवियसियच्छीए अच्छेरयभूओ, सरयरयणि 20 १भे शां० विना॥ २ °या वसणे पडिबोहेज त्ति शां०॥ ३ °गवी वा शां० विना ॥ ४ °तं आ° शां० विना ॥ ५ °या 1 तो रह शां०॥ ६°लो मोहे ली ३ ॥ ७°णमाग शां० ॥ ८°ओ अयलो क ३॥९तं जहि संसं० शां० विना ॥१० तव ली ३ शां०॥ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडीए [सिज्जंसक्खायं उसमसामियरसोमवयणचंदो, तरुणरविरस्सिबोहियपुंडरीयनयणो, मणिमंडियकुंडलघट्टियपीणगंडदेसो, गरुलाऽऽययतुंगनासो, सिलप्पवालकोमलसुरत्तदसणच्छयणो, कुंदमउलमालासिणिद्धदसणपंती, वयस्थवसभनिभखंधो, वयणतिभागूसियरयणावलिपरिणद्धगीवो, पुरफलिहाऽऽयामदीहबाहू, नयरकवाडोवमाणमंसलविसालवच्छो, करसंगेज्झमझदेसो, विमउलवरपंकयस5 रिसनाभी, मिगपत्थिव-तुरगवट्ठियकडी, करिकरणिभऊरुजुयलो, निगूढजाणुपदेससंगतहरिणसमाणरमणिज्जजंघो, सुपइट्ठियकणगकुम्मसरिसलक्खणसंवाहचलणजुयलो । पणओ य रायणो । भणिओ य-पुत्त वइरजंघ! पडिच्छसु पुवभवसयंपहं सिरिमति ति । अव. लोइया णेण अहं कलहंसेणेव कमलिणी । विहिणा य पाणिं गाहिओ मम ताएण 'वइ रजंघो!' त्ति महुरमाभासमाणेण, दिण्णं विउलं धणं परिचारियाओ य । विसज्जियाणि य 10 अम्हे गयाणि लोहग्गलं । मुंजामो निरुविग्गा भोए । वडरसेणो वि राया लोगंतियदेवपडिबोहिओ संवच्छरं किमिच्छियं दाणं दाऊण नियगसुएहिं नरवईहि य भत्तिवससमेतेहिं सह पवइओ पोक्खलपालस्स रजं दाऊण । उप्पण्णकेवलनाणो य धम्म देसेइ । मम वि कालेण पुत्तो जातो, सो सुहेण संवडिओ। कयाइं च पोक्खलवालस्स के वि सामंता विसंवइया । तेण अम्हं पेसियं-एउ वइर15 जंघो सिरिमती यत्ति । अम्हे विउलेण खंधावारेण पत्थियाणि पुत्तं नयरे ठवेऊणं । सर वणस्स य मझेणं पंथो पडिसिद्धो जाणुकजणेण-दिट्ठीविसा सरवणे सप्पा, ण जाति तओ गंतुं ति । तं परिहरंता कमेण पत्ता पुंडरिगिणीं। सुयं च णेहिं नरवईहिं वइरजंघाssगमणं । ततो ते संकिया पणया । अम्हे वि पोक्खलपालेणं रण्णा पूएऊण विसज्जिया, पत्थियाणि सनयरं । भणइ य जणो-सरवणउज्जाणमझेण गंतवं, सप्पा निविसा जाया, 20 केवलनाणं तत्थ ठियस्स साहुस्स उप्पण्णं, देवा य उवइया, देवुज्जोएण य पडिहयं दिट्ठीगयं विसं सप्पाणं ति । ततो अम्हे पत्ताणि कमेण सरवणे आवासियाणि । सागरसेण-मुणिसेणा य मम भायरो अणगारा सगणा तत्थेव ठिया । ततो अम्हेहिं दिट्ठा तवलच्छिपडिहत्था सरयसरजलपसण्णहियया सारयसगलससिसोमवयणा । ते य सपरिवारा परेण भत्तिबहुमाणेणं वंदिया । सपरिवारा य फासुएणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाहिया। 25 ततो अम्हे तेसिं गुणे अणुगुणेंताई 'अहो! महाणुभावा सायरसेण-मुणिसेणा, अम्हे विमुक्करज्जधुरावावाराई कया मण्णे णिस्संगाइं विहरिस्सामो ?' त्ति विरागमग्गमोइण्णाई कमेण पत्ताई सनयरं । पुत्तेण य अम्हं विरहकाले भिच्चवग्गो दाण-माणेहिं रंजिओ, वासघरे य विसधूमो पओइओ । विसज्जियपरियणाणि य विगाढे पओसे अइगयाणि वासगिह, साहुगुणरयाणि धूमदूसितधातूणि कालगयाणि इह आयाइं उत्तरकुराए त्ति । 30 तं जाणाहिं अज! जा णिण्णामिका, जा य सयंपभा, जा य सिरिमती सा अहं १ कलभेण व शां० ॥ २ तीए त्ति शां० ॥ ३ ०णे गेण्हंता अहो शा०॥ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संबद्धं पुवभवचरियं ] चउत्थो नीलजसालंभो। १७७ ति जाणेह. जो महब्बलो राया, जो य ललियंगओ, जो य वइरजंघो राया ते तुम्भे । एवं जीसे नामं गहियं भे सा अहं सयंपभा ॥ ___ ततो सामिणा भणियं-अज्जे ! जाई सुमरिऊण देवुज्जोयदसणेण चिंतेमि देवभवे वट्टाहि' त्ति, ततो य से सयंपभा आभट्ठा. तं सच्चं एयं जं तुमे कहियं । परितोसमाणसाणि पुवभवसुमरणसंधुक्कियसिणेहाणि त्ति सुहागयविसयसुहाणि तिण्णि पलिओवमाणि 5 जीविऊण कालगयाइं सोहम्मे कप्पे देवा जाया । तत्थ वि णे परा पीई आसि । तिपलिओवममियं ठितिं अणुपालेऊण चुया वच्छावइविजए पहंकराए नयरीए तत्थ सामी पियामहो सुविहिविजपुत्तो केसवो नामं जातो, अहं पुण सेट्टिपुत्तो अभयघोसो, तत्थ विणे सिणेहाधिकया। तत्थेव नयरे रायसुओ पुरोहितसुओ मंतिसुओ सत्थवाहसुओ य, तेहिं वि सह मित्ती जाया । कयाइं च साहू पडिमापडिवण्णो किमिकुट्ठी दिह्रो समाग-10 एहिं, भणिओ य पंचहिं वि जणेहिं केसवो परिहासपुवं--तुन्भेहिं नाम एरिसाणं तवस्सीणं तिगिच्छं न कायवं, जे अत्थवंता जणा ते तिगिच्छियत्व त्ति । सो भणति-वयंस ! अम्हं धम्मियजणो निरुजो कायवो, विसेसेण पुण साहवो पडिचरियवा. एस पुण साहू ओसहं पाउं नेच्छइ छड्डियदेहममत्तो, सो अभंग-मक्खणेहिं पडिचरियबो त्ति, तत्थ मम तिल्लं अस्थि सयसहस्सनिष्फण्णं, गोसीसेणे चंदणेण कजं कंबलरयणेणं च त्ति । अम्हेहिं 15 पडिवन्नं-कीरउ, सत्वं पि संपाडेमो । रायपुत्तेण कंबलरयणं दिण्णं, चंदणं च गहियं । पडिमाए ठिओ साहू विण्णविओ-भयवं ! अम्हे ते हितबुद्धीए जं पीडं करेमु तं खमसु त्ति । अब्भंगिओ तेल्लेण, तेणाऽहिगतरं किमी संचालिया, ते परमवेदणं उदीरेंता निग्गया, मुच्छिओ तबस्सी कंबलेण संवरिओ, तं सीयलं ति तत्थ लग्गा किमी, पप्फोडिया सीयले पदेसे, चंदणेण लित्तो, पञ्चागओ पुणो वि मक्खिओ, तेणेव कमेण किमी निग्गया, 20 चंदणेण सत्थो कओ, जाहे खीणा किमी ताहे चंदणेण लिंपिऊण गया मो सगिहाणि । सुयधम्मा य सबै पडिवण्णा सावयधम्म, केसवो साहुवेयावच्चपरो विसेसेण ताव उग्गेहिं सीलवय-तवोवहाणेहिं अप्पाणं भावेऊणं समाहीए कालगया अच्चुए कप्पे इंदसमाणा देवा जाया। दिवं च सुहमणुभविऊणं ठितिखएण चुया कमेण केसवो वइरसेणस्स रण्णो पुक्खलावईविजए पुंडरिगिणीए नयरीए मंगलावतीए देवीए पुत्तो वइरनाभो 25 नाम । रायसुयाई कणगनाभ-रुप्पनाभ-पीढ-महापीढा कमेण जाया कुमारा । अहं च तत्थेव नयरे रायसुओ जातो, बालो चेव वइरनाभं समल्लीणो सारही जातो सुजसो नाम । वइरसेणो वइरनाभाईणं रजं दाऊण लोगंतियदेवपडिबोहिओ संवच्छरं कयवित्तविसग्गो पवइओ, समुप्पण्णकेवलनाणो धम्म देसेइ सयंबुद्धो । वइरनाभो समत्तविजयाहिवो चक्कवट्टिभोए भुंजति । भयवं तित्थयरो पुंडरिगिणीए अग्गुजाणे समोस-30 रिओ । वइरनाभो वंदिउं निजाओ सपरिवारो, जिणभासियामयपरिसित्तहियओ समु१ काउं शां० विना ॥२ °सीसचं ली ३॥ व.हिं० २३ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ वसुदेवहिंडीए [ नीलजसापरिचओ पण्णवेरग्गो पुत्तसंकामियरज्जसिरी ससहोयरो पवइओ । अहमवि पुवसिणेहाणुरागेण वइरनाभमणुपवइओ । ततो वइरनाभो लद्धिसंपन्नो थेवेण कालेण चोद्दसपुवी जातो, कणगणाभो वेयावच्चकरो । भयवया य ' वइरनाभो भरहे पढमतित्थयरो उसभी नाम भविस्सइ' त्ति निद्दिट्ठो, 'कणगनाभो चक्कवट्टी भरहो नाम तव पुत्तो भविस्सइत्ति, 5 रुपपणाभाई एगमणुस्सभवलाभिणो अंतं करेस्संति' । पुवभवियकेसवादीणं चरियं सील - संजया संजयभावुज्जलं कहियं । ततो अम्हे छप्पि जणा बहुगीओ वासकोडीओ तवमणुचरिऊण समाहीए कालगया, कमेण य सबट्टसिद्धे देवा जाया । ततो चुया इहं जाया । मया य पियामहलिंगद रिसणेणं पोराणाओ जाईओ सरियाओ । विष्णायं च अण्णा-पाणं दायवं ति, न दवं तवस्सीणं ॥ 10 एयं च कहं सोऊण सेज्जंसो पहट्टमणसेहिं पूइओ नरवइपभिईहिं । ततो उसभसामिणो वाससहस्सेण केवलनाणं दंसणं च उप्पण्णं । सम्मत्ताइसेसपयासो भवियाणं धम्मं देसेइ | नमि विनमी य बहुं कालं देवा इव सच्छंद्गमणालया निरुविग्गा भोए भुंजंति । समुप्पण्णवेरग्गा य पुत्ताणं नयराणि संविभजिऊण जिणचंदसमीवे पवइया, जेसिं मया वंसकित्तणा कया ॥ 15 नीलजसापरिचओ मिस्स य वंसे संखातीताणि णरवतिसयाणि समतीताणि, जाणि रायसिरिं तणमिव पडग्गलग्गं पयहिऊण पवइयाणि । तम्मि य वंसे अपरियावत्ते विहसियसेणो नाम राया, तरस पुतो पहसिय सेणो णाम, तस्सोहं भारिया हिरण्णमती नाम विक्खाया विज्जाहरलोए नलिणिसभनगरसामिणो हिरण्णरहस्स सुया पीईवद्धणाए देवीए अत्तिया । ममय 20 सीहदाढो पुत्तो, तस्स य दुहिया नीलजसा दारिया पहाणकुलसंभवा कीलापुत्रं विज्जाणुवत्ती मायंगवेसा, जा तुमे दिट्ठा । एज्जासि त्ति तं पएसं, ततो ते सोहणं भविस्सइति । मया भणिया - जाणीहामो त्ति । ततो विमणा णिग्गया ' जाणिहिसि' त्ति वोत्तणं । अहमवि गंधवदत्ताकोवपसायणोवायचिंतापरो दिवसं गमेऊण पदोसे सन्निविट्ठो सयणी हत्थफासेण पडिबुद्धो चिंतेमि-अपुबो हत्थफासो, न एस गंधवदत्ताए ति । तं 25 उम्मिल्लियलोयणो दीवमणिपगासियं पस्सामि वेयालं भीसणरूवं । चिंतियं मया – सुणामि, दुवा वेयाला - सीया उण्हा य. जे उण्हा वेयाला ते सत्तुं पउंजंति विणासेउकामा . या वेयाला पुण इ आणेइ र्त्ति णितियं-ति एवं चिंतेमि । कड्डति मं वेयालो बला वि कयाइ । मम वि चिंता जाया - नेउ ताव मं, जेणाऽऽणत्तो त्ति तस्स समीवं. तेण सह जं पत्तकालं तं करिस्सं । णीओ मि णेण गब्भगिहाओ, चेडीओ पस्सामि पसुत्ताओ । चिंतेमि30 ओसोविया वेयालेण, जं पाएहिं वि छिक्का न चेतेंति । पत्तो य दुवारं, अगच्छियं णेण १ स हिरण्णमती नाम अहं भारिया विक्खा शां० ॥ २णधरस्स शां० ॥ ३ भेस° उ २ विना ॥ ४त्तिय एवं शां० । त्ति णित्तियं ति एवं क ३ गो ३ उ० ॥ ५ 'लाविला विउ २ मे० विना ॥ ६ न विइति ली ३ क ३ गो ३ । न विंदंति उ० ॥ ७ अवाग शां० ॥ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवस्स संहरणं] चउत्थो नीलजसालंभो। १७९ वीसरियाणि कवाडाणि, णिग्गएणं संमिलियं मुहं, संवरियं दुवारं । चिंतियं मया-वेयालेण कओ अवकारिणा वि उवगारो सेट्ठिभवणं संवरियदुवारं करेंतेणं ति । निग्गयस्स मे सिरिदामगंड पाएसु लग्गं, तं च चंदप्पभापगासियं दट्टणं से सोहणं निमित्तं' ति परिग्गहियं । थोवंतरे सेओ वसभो अणुलोमो दिट्ठो, तं पि से परिग्गहियं सुंदरबुद्धीए । थोवंतरे हत्थी सतीतो दिट्ठो, रायगिहे य थेरियाए सदाविओ-एहि वच्चामो, सा ते पिया पुत्त! 5 पडिच्छइ त्ति. एहिं तुमं, हथिस्स उवरिं अच्छसु मुहुत्तं जावमहमागच्छामि । सा आरूढा, उहिओ य हत्थी, सा भीआ, (ग्रन्थानम्-५०००) आहोरणेण भणिआ हसंतेण-सोभिता सि भयवति ! त्ति। ततो मे उप्पण्णा चिंता-इमो संजोयसलावो पसत्थं निमित्तं । पस्सामि य चेइयघरं, साहुसदं च सुणामि । ततो एवंविहेहिं पसत्थसउणेहिं अणुमण्णियगमणो इव नीणिओ वेयालेणं, संपाविओ पिउवणं । दिट्ठा य मया मायंगवुड्डा किं पि जंपंती । 10 भणिओ अणाए वेयालो-भद्दमुह ! संपावियं ते पयोयणं, सुट्ठ कयं ति । ततो ममं मो. तणं हसिऊण अदरिसणं गतो। अहं पि णाए आभट्ठो-पुत्त ! मा ते मणुं भवउ 'वेयालेणाऽऽणीओ.' अहं जाणामि ते सत्तं पभावं च. न ते मया परिग्गहियस्स कायि सरीरपीला. 'अवमण्णसि मम' ति तो मे एवं आणीओ. नयामि ते वेयर्बु, मा किंचि भणासि त्ति । मया भणिया-तुब्भे जाणह जं पत्तकालं । ततो अणाते उक्खित्तो । णेइ मं15 मणोणुकूलाणि वयणाणि भासंती । एगम्मि य पएसे कणयधूमं पियंतं पुरिसं पस्सामि । पुच्छिया मया-देवी ! को एस पुरिसो ? त्ति । सा भणइ-पुत्त ! एस अंगारओ विजाभट्ठो साहणं कुणति विजाए. वच्चासु से समीवं, उत्तमपुरिसदसणेण सिझंति विजाओ. पस्सउ तुमं ति, तो कयत्थो होहिति त्ति । मया भणिया-दूरेण परिहरह, न एयं दद्रुमिच्छामि । ततो तीए तं परिहरंतीए आणीओ मि खणेण वेयढे । उजाणे य निक्खिविऊण गया मं । 20 ततो मुहुत्तंतरस्स आगया पडिहारी, तीय मि सपरिचारीए कोउयसएहिं ण्हविओ, अइणीओ मि नयरं । पस्सइ मं जणो पसंसमाणो रूवाइसयविम्हिओ 'न एस माणुसो, देवाणं अण्णतरो' त्ति । पत्तो मि रायभवणं, पूजिओ मि अग्घेण, पविट्ठो मि अब्भतरोवट्ठाणं, दिह्रो य मया राया सीहदाढो सीहासणत्थो । चिंतियं मयाअवस्स गुरुजणो पूएयबो त्ति । मया य से कओ अंजली । पहढवयणेण राइणा 25 उट्ठिएण नमंतो छित्तो बाहूसु । ततो उवणीए आसणे उवेसाविओ मि रण्णा सबहुमाणं । ततो विजाहरव॒ड्वेहिं पउत्तासिस्स पुरोहिएण उदीरिओ पुण्णाहो । ततो निग्गया नीलजसा रायदुहिया णीलबलाहकसंकडाओ विव नवचंदलेहा, हंसलक्खणाणि धवलाणि खोमाणि निवसिया, सियकुसुमदुबापवालसणाहकेसहत्था, महग्धाऽऽभरणालंकिया, १°रिदत्तं गंडं पालएसु शां० विना ॥ २ °या पिया पडि शां० ॥ ३ आसाढा वेढिओ य हत्थी उ २ कसं० मोसं० विना ॥ ४ संजायसं ली ३ । संयोगसं° शां० ॥ ५०रिवाराए ली ३॥ ६ वेण प° शां० विना ॥ ७ तासीसस्स शां० ॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० वसुदेवहिंडीए [वसुदेवेण नीलजसाए परिणयण सहिजणपरिवारा दिसादेविपरिवारा इव वसुमती । संवच्छरेण भणियं-देव ! पसत्थं निमित्तं, मुहुत्तो य सोहणो, सामिपादा नीलजसाए पाणिं गिण्हसु त्ति । ततो पडुप्पाइयाणि तूरसयाणि, पगीयाओ अविधवातो, पढंति सुयमागधा । ततो हं उवगओ, विरइयं पहाणपीढं । ततो नियगपक्खेण उवणीया नीलजसा । निकायवुड्डेहिं अविहवाहि य 5 कणगकलसेहिं सुरभिसलिलभरिएहिं कओ णे अभिसेओ । हुओ हुयवहो मंतपुरोगेहिं, गहिओ मे पाणी रायदारियाए, पयक्खिणीकओ हुयवहो, पक्खित्ता लायंजलीओ, पउत्तासीसाणि हंसलक्खणाणि खोमाणि परिहियाणि, पेच्छाघरनिसण्णाण य कयं पडिकम्म, पज्जालियकणगदीवं अइगया मो वासगिहं सह परिचारिगाहिं । ततो सुरपतिनीलमणिसु कयचक्कवालं, नवकणयचियसुकयफुल्लविरत्तगंधं, नाणारागभत्तिरइयं, रयणचित्तं, चित्तक10म्मबिब्बोयणं, विपुलतूलीययवेणसमुच्चएणं(?) अच्छुयं, भागीरहिरम्मपुलिणोवमं, पीढिया परंपरागयं, अभिरोहिणीयं, सुकयउल्लोयं, आविद्धमल्लदामकलावं, महसुहं सयणीयमभिरूढो मि । अतिच्छिया मे रयणी सुहेण पवियारसुहसणाधा । पडिबुद्धो मि मंगलेहिं विभाए । कयं मे पडिकम्मं कुसलाहिं कम्मपडिगारियाहिं । निग्गओ मि पेच्छाघरं, उवढवियं मे कलमभोयणं पत्थं सुहपरिणामं च, भुत्तो मि सह पियाए, गहियमुहवासओ अच्छहे । 15 सुणामि य कोलाहलं बहुजणस्स समुद्दारावभूयं । पुच्छिया मया पडिहारी पभावई नाम-किंनिमित्तो एस समुद्दोवमो सद्दो महाजणस्स ? त्ति । सा मं विण्णवेइ सुणह सामि!, णीलगिरिम्मि सगडामुहे नयरे अंजणसेणाए देवीए नीलधरस्स विजाहररण्णो दुवे पुत्तभंडाणि-नीलंजणा दारिया, नीलो य कुमारो । तेसिं बालभावे कीलंताणं इमो आलावो आसि-अम्हं जया पुत्तभंडाणि होहिंति ततो चेव विवाहियाणि 20 होहामो त्ति । णीलंजणा य नीलंधरेण पत्तजोवणा अम्हं सामिणो सीहदाढस्स दत्ता । नीलकुमारो वि सविसए राया, तस्स नीलकंठो नाम पुत्तो जाओ। अम्हं पुण सामिणीय नीलजसा । रण्णा य सीहदाढेण बहस्सतिसम्मो नाम नेमित्ती पुच्छिओदारिगा कस्स देया ?, केरिसं वा भत्तारं पाविजा ?, तुन्भे णाणचक्खुणा अवलोएऊण संदिसह त्ति । तेण निमित्तबलेण भणियं-राय ! एस कण्णा अडभरहसामिणो पिउस्स 25 भज्जा भविस्सइ त्ति । राइणा पुच्छिओ-सो कित्थ ? किह व जाणियो ? त्ति । तेण भणियं-चंपाए चारुदत्तगिहे अच्छत्ति संपयं, महासरजत्ताए दबो त्ति । ततो देवीओ निकायसहियाओ कुमारि गहाय गयाओ, आणीया य तुम्हे इमं नीलगिरि । नीलो य निकायवुड्ढेसु उवडिओ-मम दारिया पुवदत्ता सीहदाढेण धरणिगोयरस्स दत्ता, पिच्छह नायं ति । तेहिं पुच्छिओ-किह तुहं पुत्वविदिण्णा ?, कहयसु त्ति । सो भणइ १दिसदेवयापरि शां०॥२ तूराणि शां० विना॥ ३ नियगवु शां०॥ ४ रोहिएहिं शां०॥ ५ °लीयपवेणीसमुच्चए° गो ३ उ० मे० । °लीयपावणीसमुच्चए' क ३ । °लीयणवणीयपुब्वए° ली ३॥ ६ °लिणायामं ली ३ ॥ ७°णाहो प. शां. विना ॥ ८ कत्थ कह शां० विना॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीलजसाए संहरणं ] पंचमो सोमसिरिलंभो। १८१ बालभावे अहं नीलंजणा य कीलामो. ततो अम्हं संलावो आसि-जस्स मो एगयरस्स दारिया होजा दारगो वा ततो वेवाहिगाई होहामि-त्ति. मम य नीलकंठो पुत्तो जाओ, नीलंजणाए देवीए नीलजसा दारिया जाया, सा मम समयओ अजाया चेव पुवदत्ता । तेहिं भणियं-न जुज्जइ दाणं. कण्णा पिउवसा, पिउणा अविदिण्णा न पभवति किंचि दाउं. अजाया तव कहं दत्ता दारिया ?. दिण्णा कण्णा भत्तुणो वसा ण पभवति अवच्चाणं. माया 5 उवरए भत्तुणो आभवेज. तं जइ राइणा सीहदाढेण दत्ता पुविं, पच्छा धरणिगोयरस्स देइ, ततो अववहारी होजा. मिगतण्हाए जलं पत्थेमाणो मोहं किलिस्सइ त्ति । एवं वुड्डेहिं भणिओ निवयणो ठिओ। एयनिमित्तं सामि : कलकलो आसि त्ति सा गया कहेऊण । ___ अहमवि पियाए नीलजसाए सह नीरूसुओ पंचलक्खणविसयसुहसायरावगाढो विहरामि । कयाइं च भणइ ममं नीलजसा-अजउत्त! 'तुम्भे अविज' त्ति विजाहरा परिभ-10 वेजा, तं सिक्खह विजाओ, ततो दुद्धरिसा होहिह त्ति । मया भणिया-एवं भवउ, जं तव रुयियं । ततो तीसे अणुमए विजागहणनिमित्तं अवइण्णो मि वेयड्ढे । तत्थ य रमणीयपएसे पियासहिओ विहरामि । दिट्ठो य अणाए संचरमाणो मोरपोयओ, सिणिद्धमणहरो, पिच्छच्छादणो, ईसिंविभाविजमाणचंदकविचित्तपेहुणकलावो । सो य अम्हं आसन्नेण संचरइ । तं च दणं नीलजसा भगति-अजउत्त ! धेप्पउ एस मोरपोयओ, कीलणओ भविस्सइ 15 त्ति । मया भणियं-एवं होउ त्ति । अणुवयामि णं । सो य पायवसंकडाणि वणविवराणि पविसइ, सिग्घयरं च गच्छति । ततो मया भणिया--असत्तो हं मोरं घेत्तुं, अइसिग्घयाए नस्सइ, तुम चेव णं गिण्ह विज्जाबलेणं । सा पधाविया विजापभावेण उवरि सि ट्ठिया ।मोरो य तं पिट्ठीए घेत्तूणं दूरं च गंतूण अंतरं लहिऊण य उप्पइओ। मया चिंतियं-रामो भिगेण छलिओ, अहमवि मोरेण, नूणं हिया पिया नीलकंठेण । अहं पि अडवीए हिंडामि त्ति ।। 20 ॥ इति सिरिसंघदासगणिविरइयाए वसुदेवहिंडीए चउत्थो नीलजसालंभो सम्मत्तो ॥ नीलजसालंभग्रं० ७३४ अ० १४. सर्वग्रन्थानभू-५०७४. 25 पंचमो सोमसिरिलंभो हिंडतो पत्थिओ मि एगाए 'दिसाए । दिट्ठा य मया मिगा, ते उप्पइया दूरं गंतूणं सउणा इव निवइया । ततो मे उप्पण्णा चिंता-एते वायमिगा दिट्ठा पसत्थदसणा महंतं लाभं वेदिहि त्ति सुव्वए विउसजणाओ। ते अइकतो मि । दिट्ठा य मया गावो जूहगयाओ, ताओ ममं पस्समाणीओ गंधेण उबिग्गाओ पहकरेण ममं उवगयाओ । तासिं सम्मदं १°ओवजाया शां० विना ॥ २ जाबलेण शां०॥ ३ भं देहिति त्ति सु. ली ३। भं वेदिहिति सु० उ २ मे.॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ वसुदेवहिंडीए [वसुदेवस्स वेयज्झयणं परिहरंतो अहं आसण्णं रुक्खं दुरूढो । ताओ वि परिवारेऊण उम्मुहीओ ठियाओ । ताओ तवत्था पस्सिऊणं गोवा डंडहत्था तं पदेसमुवागया । दिट्ठो य णेहिं अहं । ततो रोहिं गाओ पारद्धाओ, अहं च पुच्छिओ-कयरो सि इंदाणं ?, कहेहि अच्छलेणं ? ति । मया भणिओ-अहं माणुसो, मा भाह, इहं जक्खिणीणं दोण्हं कलहंतीणं पडिओ मि. साहह, को 5 इमो गामो ? नयरं वा आसण्णं ? ति । ते भणंति-इह वेदसामपुरं नयरं. तत्थ कविलो राया. इहं पुण समीवे गिरिफूडं नाम गामो । मया भणिया--कयरो मग्गो तत्थ गंतुं ? ।ते भणंति-न कोइ पहो, किमंग पुण जा दुद्धवाहिएहिं पैदपज्जा कया तीएऽणुसज्जमाणो वचसु त्ति । तीए पदपज्जाए पत्थिओ दूर गंतूणं वावि-पुक्खरिणि-वणसंडमंडियं पत्तो मि गामसमीवं । पस्सामि दियादओ तेसु थाणेसु समागए वेदपरिचयं कुणमाणे । गओ मि एगं पुक्खरिणिं, 10 अवगाढो तत्थ सिणाओ । आभरणाणि चेलंते बंधेऊण अइगओ गिरिकूड गाम । आय यणं च रमणीयं पस्सिऊण पविठ्ठो य । तत्थ य माहणदारया वेयपदाणि उच्चारिते खलियाणि णिएंति । ते य दळूण तहागए पुच्छिओ मया माहणो–किं एते दियादयो इह आययणे वेयपयाणि अब्भसंति ? पुणो पुणो य निग्गच्छंति खलिया ? कहेहि कारणं । सो भणति-सोम्म! सुणाहि-इह देवदेवस्स गामभोइयस्स दुहिया सोमसिरी नाम सोम15 लेह व अभिमया, मणोहरसरीरा, कमलनिलया इव सिरी कमलविरहिया, पसत्थकर-चरण नयण-वयणा. सा उत्तमपुरिसभारिया आदिट्ठा नेमित्तिणा. बुहविबुधपुरओ वेदिकपुच्छं दाहिति तस्स दायव त्ति. तओ तीसे रूवा-ऽऽगमविम्हइया माहणा वेदमागमंति. एयं कारणं । ततो मया सो पुच्छिओ-को एत्थ उवज्झाओ पहाणो ? । सो भणति-बंभदत्तो पहाणो, तस्स य सतोरणं गिहमालोयए, गच्छ, तत्थ अहीय त्ति । तओ मया चिंतियं-आगमो 20 महागुणो पुरिसेण सबपयत्तेण य आगमेयत्वो । एवं संपहारेऊण गतो मि बंभयत्तस्स गिहं, दिट्ठो य मया मज्झिमवए वट्टमाणो विणीयवेसो । मया वंदिओ 'अहं खंदिलो गोयमों त्ति (ग्रन्थानम्-५१००) भणंतेणं ति । तेण म्हि महुरमाभट्ठो-भद्दमुह ! सागयं ?, निविससु आसणे त्ति । माहणी य निग्गया गिहदेवया इव रूविणी मंगलमेत्तभूसणालंकिया । तीए मे कओ पणिवाओ । सा भणइ ममं अवलोएऊणं-जीव पुत्त! बहूणि वाससहस्साणि 25 त्ति । संदिट्ठा अणाए चेडी ममं पादसोयनिमित्तं । कयपायसोएण य मया दिण्णाणि कडयाणि माहणीए 'इमाणि मे दक्खिणाए लद्धाणि तुब्भे परिभुजह' त्ति । सा ताणि दट्टण परितोसमागया । दंसियाणि अणाए बंभयत्तस्स । सो भणइ मं-केणं सि आगमेणं ति अत्थी ? जमहं जाणामि तस्स पभवसि त्ति । मया भणिओ-वेयत्थं पढेजा तुभं अणुमए । सो भणइ-एवं भवउ, वेदा दुविहा, आरिया आणारिया य, कयरं सिक्खसि ? त्ति । 30 मया भणियं-सुणामि विसेसं । सो आयरिय(आरिय)वेदुप्पत्तिं कहेइ १°ओ त्ति । सा ली ३ ॥ २ उ० मे० विनाऽन्यत्र-हं चेव साम° क ३ गो ३ ली ३ । हं देवसाम° शां० ॥ ३ °रिकडं शा० । प्वमग्रेऽपि ॥ ४ पदकया पजा, तीए शा० ॥ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आरियवेदुप्पत्ती] पंचमो सोमसिरिलंभो। १८३ आरियवेयउप्पत्ती ___ इह किल भरहे मिहुणकुमुदचंदा कुलगरा आसि विमलवाहणादि सत्त । सत्तमस्स नाभिस्स मरुदेवा य भारिया, उसभो नाम तिहुयणगुरू इक्खागवंसतिलओ पुत्तो आसी। सो य किर जायमेत्तो चेव मेरुसिहरे सुरेहिं तित्थयराभिसेएण अहिसित्तो । विवड्डमाणो य कलाविहाणाणि सिप्पसयं पयाहिओ उवइसित्ता, रायधम्मं पवत्तेऊण, वीसं सयसहस्साणि 5 पुवाणं कुमारवासमज्झाऽऽवसिऊणं, तेवहिं पुवसयसहस्साणि रायसिरिमणुभविऊण, पुत्तसयस जणवयंसतं विभजिऊण चउहिं खत्तियसहस्सेहिं सह निक्खंतो । वाससहस्सेण य पुरिमताले उप्पाइयकेवलणाणो भरहसुयं उसभसेणं पढमगणहरं ठवेऊण, बंभी य भरहभगिणी पवत्तिणीपए, ततो भविए विबोहेमाणो सरदकाले रवी विव कमलायरे विहरति वसुहं निरुवसग्गं । 10 भरहो य भयवओ उसभस्स पढमसुओ । तस्स सामिणो केवलुप्पत्तिदिवसे रयणाणि चक्कादीणि समुप्पण्णाणि । उप्पण्णरयणेण य सट्ठीए वाससहस्सेहिं भरहमोयवियं । ततो विणीयाए महारायाभिसेयं पत्तो । भयवं च उसहसिरी चउरासीतीए रिसिसहस्सेहिं तीहि य अज्जासयसहस्सेहिं सहिओ विणीयाए नयरीए समोसरिओ । ततो भरहेण रण्णा तिन्नि सट्ठाणि सूयसयाणि संदिवाणि-जाव भयवं तित्थयरं वंदिमो जामि 15 ताव साहुजोग्गं विविहं भत्त-पाणं उवट्ठावेजाह त्ति । पत्तो य भरहो भयवंतं परमगुरुं वंदिऊण उवासए । सक्कादओ य देवा उवागया । तदंतरे उवट्ठिया महाणसाहिगया-सामि ! आणीयं भोयणं ति । ततो भरहो वंदिऊण विण्णवेइ-तात ! गिण्हंतु साहवो साहुणीओ य भत्त-पाणं ति । उसभसामिणा भणियं-भरह ! साहुनिमित्तं भत्त-पाणं एत्थेव आणीयं रायपिंडो य पीडाकरं वयाणं, न कप्पइ जईणं । एवं भयवया भणिए 'तातेहिं 20 अहं सबहा परिचत्तो'त्ति चिंतेऊण विसण्णो ठितो । सकेण य देवराइणा तस्स चित्तपसायणनिमित्तं भयवं पुच्छिओ-कतिविहो उग्गहो ? त्ति।सामिणा भणिओ-सक्क! पंचविहो उग्गहो-देविंदोग्गहो राउग्गहो गहवइउग्गहो सागारिउग्गहो साहम्मिउग्गहो । ततो भणति देवराया-भयवं! भरहे अहं पभवामि गं ? ति । भयवया भणियं-चक्कवट्टिभोयकाले न पभवति इंदो, चक्कवट्टिविरहे पुण पभवइ त्ति । ताहे भणति-जया अहं पभविस्सं 25 तया मए अणुण्णाओ उग्गहो साहूणं-दवओ जं दवं उवउज्जइ, खेत्तओ पुण जाव लोयंतो, कालओ दो सागरोवमाइं, भावओ वि सुहमा विसेसा । ततो भरहेण चिंतियं-सको जया पभविस्सइ तदाऽणुजाणिहित्ति. अहं पिताव पुच्छामि उढेऊणं । वंदिऊणं पियरं पुच्छति–ताय ! अहं पभवामि भरहे वासे कित्तियस्स ?त्ति । सामिणा भणिओ-भरह ! तुमं पभवसि सयलस्स भरहविजयस्स. तवाऽणुमए भरहे पवावेमि मणुए. अणुजाणतो तुमं विपुलेणं 30 णिज्जराफलेणं संजुन्जिहिसि. जया अचित्तं दवं समणाणं उवओगे वच्चति तस्स तुम सामी। १°यस्स सतं ली ३ शां० विना ॥२°स्सेण सह शां० ॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ वसुदेवहिंडी [ आरियवेदुप्पत्ती तओ पहट्ठो विण्णवेइ - ताय ! मया पव्वइउकामो मणुस्सो इत्थी वा अणुष्णाया, जइ इत्थीरयणं पव्वयइ, जं वा दव्वं उवउज्जति साधुवग्गस्स । एवं भणिए तित्थयरवयणामयसित्ताइं भरहस्स पंच पुत्तसयाई सत्त य नत्तुयसयाणि पव्वइयाणि सयराह; तं अब्भुयमित्र आसि । भणिओ यसको भरहेणं-देव ! अम्हं तित्थयरसमीवे वट्टमाणाणं वंदण-संसयपरि5 च्छेओ य साहीणो, तुम्हं मणुस्सलोअमागंतवं वंदिरं ति । सक्को भणइ -- जो संसओ वितिमिरो न होहिति तन्निमित्तं तित्थयरसमीवैमागतवं. जा पुण वंदण-पज्जुवासण-पूया तत्थ विसा सिद्धाययणसन्निहियासु पडिमासु पजुज्जति तित्थयरचित्तं निवेसेऊणं ति । एवं सोऊण जिणाययणाणि कारावियाणि वड्डइरयणेण । सक्कसंदेसेण य सावय 'तव - सीलकलिय' त्ति समोसरणगया भोइया साहुजणुद्देसिककडं भत्त-पाणं । 10 पुणो अणे पुच्छिओ इंदो – देव ! जारिसं तुब्भ रूवं देवलोए तं मे दंसेहिति । सक्केण भणिओ-भरह ! मम दिवं रूवं पिहुजणो न सत्तो दहुं, तुज्झ पुग एगदेसं दंसेमि त्ति । ततो णेण परमरूवस्स नियगस्स पदेसिणी सभूसणा दंसिय त्ति । दहूण यस आगिती ठाविया, महिमा य कया, ततो इंदमहो पत्तो । I सावगाणे संदिट्ठा --पइदिवस मुंजंतु मम गिहे, भुत्ता य ममं भणंतु "जितो भव' 15ति । ते परमण्णं भुंजिऊण रायरायं दाहिणहत्थेण समुस्सवेऊण भणति 'जिओ भवं' ति । ततो चिंतेइ – मया सागर - हिमवंतगिरिमेरगं निज्जियं भरहं, को मं जिणइ ? त्ति । पुणो से समतीए विचारेंतस्स एवं मणसी भवइ - सच्चं जिणंति ममं इंदियविसयपसत्तं अणिवारिया राग-दोसति । एवं च काले वज्रमाणे रायदरिसणं देवदरिसणमिव मण्णमाणो को ऊहलिंगो जणो सावगेहिं 20 समं पविसति, आसीसं पउंजति । भोयणाहिगारे य दुवारनिउत्तेहिं पुरिसेहिं ते तहागए जाणिऊण रणो निवेदितं - देव ! सावगववएसे बहुतरा भोयणत्थाणं तुभे दहुं पविस्संति, एत्थ सामी पमाणं ति । ततो भरहेण चिंतिऊण भणिया- होउ, करिस्सं विसेसणं ति । सिं च पइण्णा—ण हंतवा पाणिणो, 'मा हणह जीवे त्ति तओ माहण' त्ति वुच्चति । सदावेऊण राइणा पुच्छिया - एयाणि सीलाणि जस्स जावंतियाणि सो तावंतिगाणि कहेउ त्ति । 25 पत्तेयं कहेंति तव-सील - गुणव्वयाणि । तत्थ जे पंचाणुव्वया तेसिं एगं कागणिरयणेणं वेगच्छिगं रेहं करेति, जे य तिन्निगुणव्वय - अणुव्वयधरा तेसिं दुवे रेहाओ करेइ, जस्स अणुव्वय - गुणव्वय - सिक्खावयाणि तस्स तिन्नि रेहाओ करेइ, एवं च माहणा अंकिया पगासा जाया । तेसिं जा आयारधम्मया सा सयसहस्सेण निबद्धा । ततो ते एक्कारसउवासगपडिमा विहाणसहियं, सीलव्वय - नियमवियप्पभूसियं, मरणविहि-सुगतिगमण-सुकुलपञ्चा30 याइ - बोहिलाभ फलं, णिव्वाणगमणोवायदेसणासारं वेयमारियँ पढंति परमरिसिदेसियं । १ मीवे समागं शां० ॥ २ °या वतसी क ३ गो ३ | या बंभसी उ० मे० ॥ ३ 'णमागया' उ २ मे० ॥ ४ सह अंगुली ठा° ली ३ । सा आगती ठा० शां० ॥ ५ण आदि शां० ॥ ६णो माहणत्ति वु शां० कसं० विना ॥ ७°रिसं प० शां० ॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणारियवेदुप्पत्ती] पंचमो सोमसिरिलंभो। १८५ उसहसामिनिवाणं भयवं च जयगुरू उसभसामी पुव्वसयसहस्सं वाससहस्सूणयं विहरिऊण केवली अट्ठावयपव्वए सह दसहिं समणसहस्सेहिं परिनिव्वाणमुवगतो चोदसेणं भत्तेणं माघबहुले तेरसीपक्खे अभीइणा णक्खत्तेणं एगूणपुत्तसएण अट्ठहि य नत्तुयएहिं सह एगसमयेण निव्वुओ। सेसाण वि य अणगाराणं दस सहस्साणि अट्ठसऊणगाणि सिद्धाणि तम्मि चेव 5 . रिक्खे समयंतरेसु बहुसु । ततो भरहो राया परमसंविग्गो सुरा-ऽसुराहिवा सहस्सनयणादयो तीसु सिबिगासु थावेऊण सिद्धसरीराणि तित्थयर-इक्खागवंस-सेसाणं अणगाराणं, महया तूरनिनाएणं कुसुमवरिसाणि वरिसंता नाइदूर नेऊण, गोसीसचंदणचितीसु थावेऊण, जहाकमेण थुणंता सुतिमहुराहिं थुतीहिं पयाहिणं करेंति देव-गंधव्वा सअच्छरगणा । ततो सक्कसंदितुहिं अग्गिकुमारेहिं देवेहिं अग्गिमुहाणं विउव्विय अग्गी उप्पाइया, तप्प-10 भिई रूढं लोए 'अग्गिमुहा देव' ति । ततो सुरहिगंधव्वपब्भारं घयं महुं च पक्खिवित्ता दहति सिद्धसरीराणि देवा । उयहिकुमारेहि य खीरोदसायरसलिलेण निवावियाओ चिया ओ । गहिया य देविंदेहिं जिणसकहाओ मंगलत्थं, नरवईहि य सिद्धसरीरावयवा, जणेण माहणेहि य अग्गी नीओ चियगाहिंतो । पिहप्पिहा य थाविउ पयत्तेणं सारक्खंति । जस्स य उग्गा काय सरीरपीडा सो तीए भूईए छित्तो सत्थो भवति । ततो ते तमग्गि चंदण-15 कठेहिं सारक्खेति । भरहो य राया पूएति । तेहिंतो अग्गिकुंडउपपत्ती माहणाणं । थूभा य कारिया भरहेण जिणपरिणिवाणभूमीए, महिमं च करेइ । माहणा वि जिणभत्ति(त्ति)चक्कवट्टिअणुमतीए महेंति, समागया वि जिण-चक्कवट्टीहिया । आइच्चजसादीहि य सुवण्णसुत्ताणि दिण्णाणि माहणाणं । __ एवं आरियाणं वेयाणं माहणाणं च भरहाओ पढमचक्कवट्टीओ उग्गमो । 20 सावयपण्णत्ती वेदो कालेणं संखित्तो तुच्छो धरति । ॥ एसा आरियवेदउपपत्ती॥ खंदिल! इदाणिं सुणह अणारियाणं वेदाणं उप्पत्तिकारणंसगरसंबंधो अत्थि चारणजुवलं नाम नयरं । तत्थ अयोधणो नाम राया । तस्स दितिनाम महा- 25 देवी। तीसे सुलसा नाम दुहिया, सा परमरूववती, सुरजुवईणं पि विम्यजणणी, रूवलच्छीए लच्छी विव कमलवणविणिग्गया । तं च दवणं तहागयं जाणिऊणं पिउणा से अजोधणेण सयंवरो आदिट्ठो। विदितकारणा समागया रायाणो। अपराजित-जियभय-भीमअरिंद-सम-भीसण-मघवं-सुजात-महुपिंगल-हिरण्णवम्म-घणरहपभितओ अणेगे कुलसील-विण्णाणसालिणो समागया रायाणो। अहिराया य तं समयं साकेए नयरे सगरो नाम 30 १°ब्विया अ° शां० विना ॥२ रूढिं ली ३ उ० मे.॥३°उ चेय गं सा शां० विना ॥ ४ काइ स उ० मे०॥५'रिसाणं शां०॥ ६ रिसवे शां० ॥७°तरुभय ली ३ मो० सं० गो ३। तरभय कसं. उ० मे० ॥ ८ सम्म° उ. मे०॥९ °सुजाभमहु शां० विना ॥ १० °णधम्म शां० विना ॥ व०हिं. २४ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६: वसुदेवहिंडीए [ अणारिय राया । तस्स पडिहारी बहुमया मंदोदरी नाम । पुरोहिओ पुण बहुस्सुओ विस्सभूती । ततो सगरेण पडिहारी अयोधणगि पेसिया (ग्रन्थाग्रम् - ५२०० ) ' उवलभसु सयंवर दिवस' ति । अतिगया सा दितिदेवीहिं । साय पमयवणे सह सुलसाए आलाव करेंती अच्छति लयाहरे । मंदोदरी य देवीए परिजणेण न निवारिया पमयवणमतीति । सा 5 आसण्णा ठिया तासिं पच्छण्णा 'सुणामि ताव सिं माया - दुहियाणं रहस्सं' ति । एयमि वेलाएदिती परुदंती सुलसाए भणिया - अम्मो ! मा रोवह, कण्णा पिइ-मायाहिं दिण्णाओ अवस्स अम्मा-पिऊहिं विजुज्र्ज्जति त्ति । सा भणति – नाऽहं पुत्त ! 'तुमे विजुजेहामि' त्ति रोवेमि. 'तुहं विदिण्णो सयंवरो पिउणा, अम्हं कुलधम्मं वइक्कमेज्जासि' त्ति मे माणसं दुक्खं उप्पण्णं । कण्णाए भणिया - कीस एवं संलवसि ? अमंगलं करेहि वा ? कह10 मिहं कुलधम्मं वइक्कमंते संका ? । दिति भणति - सुण पुत्त ! - इहं सुरासुंरेदविंदवं दियचलणारविंदो उसभो नाम पढमो राया जगप्पियामहो आसी । तस्स पुत्तसयं । दुवे पहाणा- भरहो बाहुबली य । उसभसिरी पुत्तसयस्स पुरसयं जणवयसयं च दाऊण पवइओ । तत्थ भरहो भरहवासचूडामणी, तस्सेव नामेणं इहं 'भरहवासं' ति पवुञ्च्चति, सो विणीयाहिवती । बाहुबली हत्थिणाउर तक्खसिलासामी । 15 भरहस् य रण्णो आउहघरे चक्करयणं समुप्पण्णं । ततो चक्करयणदेसियमग्गो गंगाए महानेती दाहिणेण कुलेण भरहमभिजिणमाणो, पुरत्थिमेण मागहतित्थकुमारेण पूइओ ‘अहं देवस्स अंतवालो आणाकरो' त्ति, दक्खिणेण वरदामतित्थकुमारेण पणएण पूइओ, पञ्चत्थिमेण पभासेण सम्माणिओ, ततो सिंधुदेवीए कर्यपणामो, वेयड्डुकुमारपणमिओ, तिमिसगुहाहिवकयमालदेवदत्त विचारो, उत्तरडभरहनिवासीचिलाय पक्खियमेहमुहा 20 देवा मेहवरिसोवसग्गनिवारणं छत्तं चम्मरयणं संपुडकयं व खंधावारकयपरित्ताणो, हिमवंतकुमार विणयसम्माणिय- पणमिओ, उसभकूडे नियनामंकिथं सिंधु - हिमवंतंतरे सेणावति कयविजओ, नमि-विनमिविज्जाहराहिवोवणीयजुवईरयणो, गंगादेवीकयपणामो, हिमवंत वेयड्डू विवरगंगानदीविजितपुत्रभागो, खंडप्पवायगुहा विणिग्गओ, नवनिहिकपूओ, गंगा - वेडुंतरनराहिव संपेसियरयणभरियकोसो विणीयणयरिमणुपत्तो । 25 एत्तो महत्तर महारायाहिसेओ अद्वाणउतिं भायरो भणति - सट्टीए वाससहस्सेहिं निजियं मया भरहं सविज्जाहरं. तुम्हे मम विसयवासी सेवह मं, अहवा निबिसया होह त्ति । ते भणति - तातेण विदिण्णविसर्याणं अम्हं आणं दारं नाऽरिहह त्ति । जोहे सेवानिमित्तं पुणो पुणो चोएइ ताहे ते उसभसामिणो गया समीवं, पणया विष्णवेंति - ताया ! तुम्हे हिं कयपसाया, बाहति णे भरहो, संदिसह जमम्हेहिं कयवं ति । भयवया य वेरग्गजण १ रुदिता सु० शां० ॥ २ 'जहित्ति ली ३ क ३ गो ३ । जिहित्ति उ० मे० ॥ ३ जुजाहिमि शां० ॥ ४ सुरवंद्रवंदि शां० ॥ ५ 'नदीए दा० शां० विना ॥ ६ °यपंथाणो वेय' कसं० संसं० उ० मे० ॥ ७ तुत्तरे शां० ॥ ८णं तुम्हे आ° शां० ॥ ९ जाधे शां० ॥ १० करणिजं ति शां० ॥ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेदुप्पत्ती] पंचमो सोमसिरिलंभो। १८७ गेहिं वयणेहिं अणुसासिया अणुत्तरदेवभावं च संभारिया । ततो ते चरिमसरीरा तित्थयरभासियामयसित्तहियया वेयालियवित्तसंबोहिया विमुक्कवादवावारा समणा जाया । बाहुबलिस्स भरहेण सह जुझं दिक्खा णाणुप्पत्ती य ___ तओ तेसिं च पुत्ते रजे ठवेऊण भरहो तक्खसिलाहिवस्स पेसेइ-सेवसु ममं ति । वाहुबलिगा य दूओ भणिओ-होउ, जियं भरहेण भरह, को वा अण्णो अरिहति 5 पहुत्तं ?. जं पुण ममं तातेण भूमीभागं विइण्णं इच्छति सेसपत्थिवसमाणं काउं, तं न सुटु संलवइ त्ति । ततो दूओ गहियवयणत्थो गओ भरहसमीवं । निवेइयं अणेण सबं । ततो भरहो सबबलेणं तक्खसिलाविसयं पत्थिओ । वाहुबली विसयाओ विणिग्गओ। समागया उ रजसीमंते । तो तेसिं च परिणिच्छिए उत्तमे जुझे दिट्ठीपराजिओ जिओ बाहुबलिणा भरहो । तओ मज्झिमं मुट्ठीजुज्झमाढत्तं । तत्थ जियमप्पाणं जाणिऊण भरहो 10 चिंतइ-किं मण्णे अहं न होज चक्कवट्टी? बाहुबली ममाओ अहिगबलो त्ति । एयम्मि समए देवयाए से चकं करे पक्खित्तं । तं च तहागयं दद्दूण बाहुबली भणति-तुमं अहमजुद्धमस्सिओ, मुट्ठीजुद्धेण निजिओ आउहं गिण्हसि । सो भणतिन मम कामचारो, देवयाए पक्खित्तं सत्थं हत्थे । तओ भणति बाहुबली-जइ तुम लोगुत्तमसुओ होऊणं मज्जायमतिक्कमसि पिहुजणे का गणणा?. अहवा न तुमं दोसो, विसयलोलुयाए तुमं 15 सि अपदं कारिओ 'उसभसिरिसुतो' त्ति जणेण पसंसिज्जमाणो. जइ य तुम्हंविहा णं पि पहाणपुरिसा णं विसयवसगा अकजुजया भवंति तो अलं मे एरिसपजवसाणेहिं भोगेहिं । परिचत्तसबसावजजोगो ठितो। 'अहं अणुप्पन्न केवलाइसओ य कहं डहरए भाउए दच्छिस्सं ?' ति वोसहकाओ ठितो। ततो भरहो जायाणुसओ अणुणेइ । सो विभयवं मंदरो इव थिरज्झवसाओ न हु ताणि अणुणयवयणाणि पसत्थज्झाणमस्सिओ चित्तं निवेसेइ सयलेण वि भरह-20 विसएण निमंतिओ । ततो भरहो राया सोमप्पहस्स रज्जं दाऊण सनयरमागतो । सो वि बाहुबली संवच्छरं थाणूभूओ चिट्ठति, अइमुत्तयवल्लिए य समीवजायाए पायवो विव बेढिओ । भयवं च उसहसामी सगणो विहरमाणो तक्खसिलाए समोसरिओ । बंभीप य अजाए पुच्छिओ-भयवं! बाहुबलिस्स परमजोगिणो दुक्करतवुज्जयस्स पुढवी विव सबफासविसहस्स केवलं कहं नोप्पजए ?। भयवया भणियं-अजे ! तस्स माणपचयारूढस्स 25 न केवलनाणलंभो. तस्स 'कह डहरए भाउए कयकज्जा बंदिस्सं ?' ति परिणामो, ततो नियतस्स उप्पज्जइ नाणं । तीए भयवं पुच्छिओ-पडिचोइओ मया विमदो लभेज केवलनाणं? ति । ततो भयवया भणिया-आम ति । ततो बाहुबलीअवरोहसहिया बंभिभयवती गया तं पएसं, जत्थ ठिओ महप्पा बाहुबली । पडिमं ठितो दिवो य णाए तवतेयसा दिप्पमाणो तावसेहिं 'एस अम्हं देवय'त्ति मण्णिजमाणो सबहुमाणं, पलासपट्टपरिहिओ विव 30 सक्कझओ, जडाहिं भमरावलीरूवचोरीहिं कणगपवइओ इव सिरपवत्तंजणधाउधरो, १ का गण्णा गो ३ उ० मे० । का सपणा शां० ॥२ खाणू ली ३॥ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ वसुदेवहिंडीए [अणारियएक्कपोग्गलपइट्ठियविसरियनिसित व पसण्ण दिट्ठी । देवीहि य 'अहो ! अच्छरियं, सामी जं जंगमपवरो होइऊण थावरो सि जाओ, सुहोइएण य तए कहं सी-उण्ह-वरिसनिवार्य सहियं ?' करुणं भयंतीहिं वंदिओ। तओ य णाहिं वल्लीओ वेल्लिया। बंभीए सरस्सईए व पञ्चक्खेणं भणिओ-जेट्टज ! ताओ आणवेइ-न मायंगाभिरूढस्स केवलनाणसंपत्ती हवइ. 5 गम्मउ तित्थयरसमीवं । तं च से वयणं अमयमिव सुइपहमुवगयं विसुज्झमाणलेसस्स । 'दुहु कयं, जं तिलोगगुरुपादमूलं न गओ' चिंतयंतो अपुबकरणं पविट्ठो । चलियमोहावरणंतराएण य पादो चालिओ, उप्पण्णं च से केवलं, ताहिं वंदिओ। अहासण्णिएहि य देवयएहिं मुक्काओ पुप्फवुट्ठीओ, थोउं च सुतिमहुरं पवत्ता । सो वि बाहुबली सवण्णू गतो भयवतो उसभसिरिसमीवं, अइगओ केवलिपरिसं । बंभी वि सपरिवारा गया 10 तित्थयरपादमूलं साहियकज्जा ।। __ कयाई च आइच्चजसेण रण्णा सोमप्पभेण य कओ समवाओ-अम्ह रायाणो भिच्चा, जइ तेसिं धूयाओ दाहामो तओ गविया भविस्संति. अम्हं दुवे कुलाणि प्पभवंतु, परोप्परं च कण्णादाणं तओ सोहणं भविस्सइ त्ति । बाहुबलिवंसे य अंजिय-जय-संजय विजय-वेजयंत-संख-मेहरह-समबिंदु-धुंधुमारअतीतेसैं असंखेजेसु, सणंकुमार-संति15 कुंथु-अर-सुभोमेसु य चक्कवट्टीसु अतीतेसु, भवसिद्धीयनरवईसु य, पगासे बाहुबलीवंसे तिणपिंगू नाम राया आसि; तस्स अहं भगिणी। तस्स पुण तव पिउणो अयोधणस्स भगिणी सच्चजसा नाम महादेवी, तीसे पुत्तो महुपिंगलो नाम राया । तं पुत्त! एवं काले अतिच्छिए भरह-बाहुबलीवंसगामिणीओ कण्णाओ आसि. 'तुमं भरहस्स पढमचकवट्टिणो वंसे जाया, ण जाणामि कं रूवमोहिया वरइस्ससि' त्ति मे रुण्णं । 20 ततो सुलसाए भणिया दितिदेवी-अम्मो! न ममाओ.कुलधम्मो विणस्सिहिति. अहं महुपिंगलं चेव रायमज्झे वरइस्सं ति ॥ ___ एवं सोऊण मंदोदरी 'एस से परमत्थो' त्ति चिंतेऊण थोवंतरे समोसरिऊण देवीसमीवमुवगया । दितीए सभवणमइणेऊणं पूइया विसज्जिया य । सगरस्स णाए कहियंनिम्माओ देव! सयंवरो त्ति। तेण पुच्छियं-कहं ? ति। तीए जहासुयं कहियं ति। केरिसी 25 सा दारिय?' त्ति पुच्छिया साहति-तिलोयसुंदरि त्ति, न सक्का तीसे एक्काए जिभाए रूवसिरिं वण्णेउं. सिरी जइ तारिसी 'कयत्थ' त्ति तकेमि, सुरवहूणं पि विम्हयजणणी । जह जह य वण्णेइ मंदोदरी सुलसारूवातिसयं तह तह सगरो मदणबाणभायणं जातो । विस्सभूइयस्स गेण विरहितेहिं कहियं-सुलसा कण्णा जइ मम न होहिति भारिया किं मे रजेण रायभावेण य?, किं च मे जीविएण ? भग्गमणोरहो त्ति. तं चिंतेहिं, कहं मम 30 सा हत्थांसं पावेज ? त्ति. विक्कमेण ? उवादेण ? त्ति । तेण भणिओ-सुण राय!, जइ बला हरसि कण्णं तो बज्झो भविस्ससि रायसेण्णस्स. उवायं तहा ह चिंतेमि जहा तुमं १संकेओ ली ३ ॥२ °दाणं भवि कसं० शां० विना ॥ ३ अजियजस-जय-विजय ली ३ संसं० ॥ ४ सु संखे शां० विना ॥ ५त्ति तओ मे ली ३ ॥ ६ °सं भविज्ज इत्ति शां०॥ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेदुप्पत्ती ] पंचमो सोमसिरिलंभो। १८९ सुलसं कण्णं लब्भिसि. अकल्लक करेहि ततो सयंवरदिवसो अतिच्छिहिति. उवाओ य सुसंधी भविस्सति, ततो 'अकल्लो अहिराया सगरो' त्ति संविग्गो अओधणो भविस्सइ, समागओ य खत्तियंजणो त्ति । तेण विस्सभूइमएण गेलण्णं दरिसियं । इयरेण तंबपत्तेसु तणुगेसु रायलक्खणं रएऊणं तिहलारसेणे तिम्मिऊण तंबभायणे पोत्थओ पक्खित्तो, निक्खितो नयरबाहिं दुवावेढमज्झे । सगरेण य विस्सभूइमएण से उवागया रायाणो 5 भणिया-जावाऽहं सहो होमि ताव सहिया कत्थइ पदेसे वावीओ पोक्खरिणीओ खणावेह कित्तिहेउं । 'तमेवं भवउ' त्ति सबेहिं पडिवण्णं । विस्सभूइणा य निहाणभूमी दंसियाइमा आसण्णोदगा । तत्थ य णं खम्ममाणे कलसो दिट्ठो । आणीओ य रायसमीवं । 'किं होज एत्थं ?' ति उग्याडिओ,(ग्रन्थानम्-५३००)दिट्ठोय पोत्थओ। 'धुवं एत्थ निहीपरिमाणं लिहियं' ति उग्घाडिओ पोत्थओ, परिमजिओ वाइओ य विस्सभूइणा । तत्थ लिहियं-10 कंको रिसी जयसत्तुणा पोयणाहिवेण रण्णा पुच्छिओ 'भयवं! जयनामा चक्कवट्टी वोलीणो, पुरओ केरिसा रायाणो भविस्संति आगमिस्से जुगे ?' भणति-सागेयाहिवो सगरो नाम राया भविस्सति। तस्स य जा सरीरागिती सा लक्खणसंजुत्ता वणिया।[* सगरो हिईणिरक्खियं च *] तस्स य सुलसा नाम अग्गमहिसी भविस्सइ अओहणरायदुहिया, सा य मंदोदरीजहाकहिया वण्णिया । जे य पहाणा रायाणो जेसु जेसु देसेसु तेसिं पि य जहादिहाणि 15 पसत्थाणि लक्खणाणि निबद्धाणि । महुपिंगलो य सबहा णिलक्खणो वण्णिओ खुज-काणगाण, मूर्य-ऽध-बहिर-वडभेहिंतो [महु]पिंगलो अहमो विणीणिओ अब्भसिउ ण सको त्ति । __ ततो 'महुपिंगलो राया पुवरिसिनिदिओ' त्ति निभच्छिओ परिसामञ्झे लज्जिओ निग्गतो । सगरो राईहिं पसंसिओ । खत्तियाणुमए य 'सुलसा पुवरिसिनिदिह' त्ति दिण्णा सगरस्स । महुपिंगलो वि तेण निवेएण पुत्तस्स रजं दाऊण तावसो पबइओ, तवमणुचरि-20 ऊण जमस्स लोगपालस्स अमच्चो परमाहम्मिओ महाकालो नाम देवो जाओ । सगरो य सुलसाए सह भोगे भुंजति । महाकालो देवो विण्णायकारणो पदुट्ठो सगरस्स य, राईणं च जेहिं निब्भत्थिओ, विस्सभूइस्स य, सुलसाए य 'जं इमिणाए पढमो वरिओ, जा मम गती तीए सा अणुयत्तियवा होइ, असमत्थयाए वा पाणपरिचाओ कायवो' त्ति पदुट्ठो वहेउकामो वि 'थोवदुक्खाणि मारिन्जमाणाणं होहिंति' त्ति नरयगमणहे तेसिं 25 चिंतेंतो उवेक्खति दलियं विमग्गमाणो । नारय-पव्वयग-वसूणं संबंधो ____इओ य चेईविसए सुत्तिमतीए नयरीए खीरकर्यबो नाम उवज्झाओ। तस्स य पवयओ पुत्तो, नारओ नाम माहणो, वसू य रायसुओ। सेसा (सीसा) य ते सहिया वेयमारियं पढंति । कालेण य विसयसुहाणुकूलगतीए कयाइं च साहू दुवे खीरकर्यबघरे भिक्खस्स 30 ठिया । तत्थेगो अइसयनाणी, तेण इयरो भणिओ-एए जे तिण्णि जणा, एएर्सि एको । १यगणो शां०॥२°ण सिंचेऊण शां० विना ॥३०पिंगो वि शांविना ॥ ४ बस्स घ° शां०॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० वसुदेवहिंडीए [ अणारिय या भविस्सइ, एगो नरगगामी, एगो देवलोयगामि त्ति । तं च सुयं खीरकदंबेण पच्छण्णदेसट्ठिएण । ततो से चिंता समुप्पण्णा - वसू ताव राया भविस्सइ. पवय - नारयाणं को मण्णे नारगो भविस्सइ ? त्ति । तेसिं परिच्छानिमित्तं छगलो णेण कित्तिमो कारिओ । लक्खरससगब्भं च कारिऊण णारओ णेण संदिट्ठो - पुत्त ! इमो छगलो मया मंतेण 5 थंभिओ, अज्ज बहुलट्ठमीएं संता (झा) वेला, वच्चसु, जत्थ कोइ न परसति तत्थ णं वऊण सिग्धमेहित्ति । सो नारओ तं गहेऊण निग्गओ 'निस्संचाराए रच्छाए तिमिरगणे पच्छणं सत्थेण वहेमि' त्ति चिंतेऊण 'उवरिं तारगा नक्खत्ताणि य पस्संति' त्ति वणगहणमतिगतो । तत्थ चिंतेइ – वणस्सइओ सचेयणाओ पसंति । देवकुलमागतो, तत्थ वि देवो परसति, ततो निग्गतो चिंतेति - भणियं ' जत्थ न कोइ पस्सति तत्थ णं वयबो' तो अहं 10 सयमेव पस्सामि . 'अवज्झो एसो नूणं' - ति नियत्तो । उवज्झायरस जहाविचारियं कहेइ । तेण भणिओ - साहु पुत्त ! नारय ! सुट्टु ते चिंतियं वच्च, मा कस्सइ कहयत्ति एवं रहस्सं ति | बितियराईए य पत्रयओ तहेव संदिट्ठो । तेण रत्थामुहं सुण्णं जाणिऊण सत्थेण आहतो, सित्तो लक्खारसेण 'रुहिरं' ति मण्णमाणो सचेलं पहाओ, गिहमागतो पिणो कहेइ । तेण भणिओ - पावकम्म ! जोइसियदेवा वणफतीओ य पच्छण्णचारिय15 गुज्झया पसंति जणचरियं सयं च पस्समाणो 'न परसामि त्ति विवाडेसि छगलगं. तोसि नरगं. अवसर त्ति । नारदो य गहिअविज्जो खीरकयंबं पूएऊण गओ सयं ठाणं | वसू दक्खिणं दाउकामो भणिओ उवज्झाएण - वसू ! पवयकस्स समाउयस्स राभावं गतो सिणेहजुत्तो भविज्जासि. एसा मे दक्खिणा, अहं महंतो त्ति । वसू य राया जातो चेईए नयरीए । अडवीए य वाहेण 'मिगं वहेमि' त्ति सरो छूढो । आगास20 फलिहपत्थरंतरिओ मिगो न विद्धो, नियत्तो सरो । संकिएण वाहेण सरपहजाइणा विष्णाओ फलिहो । 'एस रायजोग्गो' ति रुक्खे तच्छेऊण अभिण्णाणनिमित्तं वसुमतिस्स कइ । तेण पूइओ | आणाविओ फलिहपत्थरो । तत्थ ठवियं रायसिंहासणं । जेहिं आणीओ मणी ते सदारा विणासिया रहस्स भेदभीएण मंतिणा । सीहासणट्टितो य आगासत्थिओ दीसइ जणेणं । ततो खाइं गतो 'उवरिचरो वसु' ति । खीरकदंबो य कालगतो । पत्र25 यओ उवज्झायत्तं करेइ । पवयसीसा य कयाइं णारयसमीवं गया । ते पुच्छिआ नारएणं वेयपयाणं अत्थं वितहं वण्णेंति, जह - 'अजेहिं जतियव्वं' ति, सो य अजसदो छगलेसु तिवरिसपज्जुवसिएसु य बीएस वीहि-जवाणं वट्टए, पद्ययसीसा छगले भासति । नारएण चिंतियं वच्चामि पवयसमीवं. सो वितवादी चोएयव्वो, उवज्झायमरणदुखिओ य 1 goat-त्ति संपहारिऊण गतो उवज्झायगिहं । वंदिया उवज्झायिणी । पवयओ य संभा30 सिओ - अपसोगेण होएयव्वं ति । कयाइं च महाजणमज्झे पद्मयओ 'रायपूजिओ अहं' १ क ३ विनाऽन्यत्र - भीए संता वेला व° ली ३ । भी पसंता वेला व° गो ३ उ० मे० । भीए संतवेलाए व शां० ॥ २ बोहेयब्वो शां० ॥ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेदुप्पत्ती] पंचमो सोमसिरिलंभो। १९१ ति गविओ पण्णवेति-अजा छगला, तेहि य जइयव्वं ति । नारएण निवारिओ-मा एवं भण, समाणो वंजणाहिलावो, अत्थो पुण धण्णेसु निपतति दयापक्खण्णुमतीए य त्ति । सो न पडिवजति । ततो तेसिं समच्छरे विवादे वट्टमाणे पवयओ भणति--जइ अहं वितहवादी ततो मे जीहच्छेदो विउसाणं पुरओ, तव वा । नारएण भणिओ-किं पइण्णाए ?, मा अधम्मं पडिवजह. उवज्झायस्स आदेसं अहं वण्णेमि । सो भणति-अहं वा किं समईए भणामि ?,अहं 5 पि उवज्झायपुत्तो, पिउणा मम एवमातिक्खियं ति। ततो नारएण भणियं-अस्थि णे तइयओ आयरियसीसो खत्तियहरिकुलप्पसूओ वसू राया उवरिचरो, तं पुच्छिमो, जंणे सो लवति तं पमाणं । पवइएण भणियं-एवं भवउ ति । ततो पवएण माऊए कहियं विवादेवत्थु । तीए भणिओ-पुत्त! दुटु ते कयं. नारओ पिउणो ते निचं सम्मओ गहण-धारणासंपण्णो। सो भणति-मा एवं संलवसि. अहं गिहीयसुत्तत्थो नारयकं वसुवयणपैडिहयं छिण्णजीहं 10 निवासेमि. दच्छिहिसि त्ति । सा पुत्तस्स अपत्तियंती गया वसुसमीवं । पुच्छिओ य तीए संदेहवत्थु-किह एवं उवज्झायमुहाओ अवधारितं? ति । सो भणति-जहा नारओ भणति तह तं, अहमवि एवंवादी । ततो सा भणति-जइ एवं तुमं सि मे पुत्तं विणासेंतओ, तओ तव समीवे एव पाणे परिच्चयामि-त्ति जीहं पगड्डिया। पासत्थेहि य वसू राया भणितोदेव! उवज्झाइणीए वयणं पमाणं कायवं. जं चेत्थं पावगं तं समं विभंजिस्सामो 15 त्ति । सो तीसे मरणनिवारणत्थं पासत्थेहि य माहणेहिं पवयगपक्खिएहिं गाहिओ। ततो कहंचि पडिवण्णो 'पवयपक्खं भणिस्सं ति । ततो माहणी कयकजा गया सगिहं । बितियदिवसे जणो दुहा जातो—केइ नारयं पसंसिया, केइ पवयं । पुच्छिओ वसू-भण किं सचं ? ति।सो भणति-छगला अजा, तेहिं जइयचं ति। तम्मि समए देवयाए सच्चपक्खिकाए आहयं सीहासणं भूमीए ठवियं । वसू उवरिचरो होऊण भूमीचरो जातो । अवलो-20 इया णेण पोत्थाहका दिया। तेहिं भणियं-सोचेव ते वाओ अवलंबियो त्ति ।सो मूढयाए भणति-जं पचओ भणति तहा सो अत्थो । नारएण भणिओ-राय ! अणुयत्तिओ पवओ. इयाणि पिसच्चमवलंबह ढिओ य धरणिवढे। ततो दियचोतिओ 'ते उद्धरामो अम्हे' त्ति भणंतो चेव रसातलं अहिगतो। धिक्कारिओ पवओ ‘विणासिओ णेण राय'त्ति । तदंतरे अवकंतो नारओ।कुमारा य वसुसुया अट्ठ कमेण अहिसित्ता विणासिया देवयाए। एयम्मि 25 समए महाकालो देवो 'लद्धो सहाओं' त्ति माहणरूवं काऊण पवयसमीवमुवगतो।रोयमाणो पव्वयकेण पुच्छिओ-किं रोवसि ? त्ति ।सो भणति-सुणाहि पुत्त!-विण्हु उदंको पव्वतो खीरकयंब संडिल्लो त्ति गोयमस्स सीसा पंच. तत्थ अहं संडिल्लो त्ति. मम य खीरकयंबस्स य अतीव पीई आसि, तं मयं सोऊण तुह समीवमागतोऽहं. जं तेणाऽऽगमियं तं ते गाहेमि त्ति । तेण 'तह' त्ति पडिवण्णं । ततो देवो सुत्तिमतीए मारिं उवदंसेइ, पसुवहमंते य 30 १°लए वसू शां० विना ॥ २ दत्थं । शां०॥ ३ पडिच्छयं हयं उ २ मे० विना ॥ ४°भतिस्सा शां.॥ ५ तेहि य चोदितो शां० Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ वसुदेवहिंडीए [ अणारियवेदुप्पत्ती रऊण भणति -पव्यय ! पुत्त ! संतिं करेहि जणस्स, इमे पढसु मंते त्ति । सद्धिं च देवसहस्साणि आभिओग्गाणि पव्त्रयगपच्चयए तया संसिया कहेंति - पसू अम्हे देवा जाय त्ति । विमाणगया दंसेंति अप्पाणं । विम्हिओ जणो-अहो ! अच्छरियं ति । मारी पसरिया घरे घरे । वसु विय ससरीरो दरिसिओ जणस्स । मंतप्पभावपडिरत्तो पडिओ संडिल5 देवरस पव्वयगस्स य । ततो सगर विसए मारी विउविया । सुयं च सगरेण - चेदी विसए माहा संतिक अस्थि त्ति । अब्भत्थिया य गया पव्वयग-संडिल्ला । तत्थ य पसू हिं संती कया । दसैंतिय आहिओग्गा देवा - अम्हे पसवो आसी, पव्वयसामिणा मंतेहिं हया देवा जायति । सगरो दट्ठूण पाडिहेरं भणति - सामि ! जहा हं सुगतिगामी भवामि तहा कुण सायं । डिल्लेण भणिओ - तव रज्जं पसाहमाणस्स बहुं पावं. सुण, विहीए 10 जहा सग्गगामी भवंति मणुस्सा । ततो अस्समेह-रायसुयाइहिं कया विहाणरयणा, सुणाविओ य सग्गगमणफलं च । जायसद्धो सगरो सेसया रायाणो विस्तभूती य । सगरो आसमेहेण दिक्खिओ, सुलसा य पत्ती; विस्सभूती उवज्झायो सत्ताणं च बहूणं व काराविओ | अंतेय सुलसा आसंमेहेण भणिया - जोणि फुस, तो विमुक्कपावा सग्गगामिणी भविस्ससि त्ति । देवेण य(ग्रन्थाग्रम् - ५४००) तेणे गहिया, सुमराविया य सयंवरम हुपिंगुज्झणं । 15 सा तिव्ववेयणापरिगया मउयसहावयाए धरणग्गमहिसी जाया । रायसुएण य दिक्खिओ सगरो । जण्णसंभारं च गंगा-जउणसमागमे दिवायरदेवो रायसुओ नारयवयणेण गंगाए पक्खिवति । संडिल्लो पुच्छिओ - को संभारं अवहरइ ? त्ति । भणइ - रक्खसा देवपीणगं असता अवहरति थावेज्जर उसभसामिपडिमा । थविया य जण्णरक्खणनिमित्तं । ततो दिवायरदेवो नारयं भणति - अज्ज ! इयाणिं मम एएसिं पावकम्माणं न जाइ विग्घो काउं. 20 विज्जापडिघाओ भवति विज्जौहराणं जिणपडिमा अवराहं करेंताणं तं इयाणि मज्झत्था होहो. किंवा अम्हे एएहिं दुक्कएणं संबज्झिरसामो- त्ति ठिओ सह नारएण । ततो सो संडिल्लो सगरं भणति - कीरंतु मे इट्टया, कलेवराणि जंगमाणं सत्ताणं विविणि पक्खिविऊण कमवावसु, कुहियाणं अट्ठीणि उद्धरिज्जंतु; जाहे किमिपुंजा इव जाया तो तीए मट्टियाए य इट्टां किजंति अक्खनिबंधपमाणाओ, तओ अंगुलं सेसपागेहिं हीणाओ 25 भवंति । गाहाविओ सगरो । ततो घय-महु-वसाओ आवागे रयंतेहिं पक्खिप्पंति थैरे थरे । तेण वीसगंधेण सिरीसिवाणि अइति किमि - पिपीलिका य । ताहि य इट्टकाहिं चिती की इ अग्गपैंयपयट्टियपुरिसपमाणा । छगला आसा पुरिसा य वहिज्जंति पयाग-पइट्ठाणमज्झे 1 90 १ कसं० संसं० विनाऽन्यत्र ससेहेण मे० । ससेफेण शां० । ससोहण ली ३ मो० गो ३ ॥ २ 'ण महि कसं० संसं० मो० गो० वा० विना ॥ ३ संगमे शां० ॥ ४ जाथंभणं जि० शां० ॥ ५ शां० विनाऽन्यत्र - कीरेतु ली ३ क ३ गो ३ । कीरउ उ० मे० ॥ ६ 'हाणं प० शां० विना ॥ ७ उवरि शां० ॥ ८ °तो तेवत्तिकाय इट्टि शां० ॥ ९ गा विजनं उ २ मे० ॥। १० निबद्धपशां० ॥ ११ थरं थरं शां० ॥ १२ अइति क ३ गो ३ उ० मे० ॥ १३ पयवहिडिय० शां० ॥ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवरस वेयज्झयणं परिक्खा य] पंचमो सोम सिरिलंभो । १९३ गूणपणं दिवसे । कल्ला कल्लिं च पंच पंच वडुंति; बितिओ आएसो - चउसंझायं पंच पंच भ्रğति सत्ताणि । दक्खिणलोभीय य समागया बहवे दिया पसंसंति पद्मय - संडिले । नारएणय भणिओ सगरो राया - पवयगेण वसुराया णिहणमुवणीओ. मा एतस्स कम्मस् सोऊण पाणवहं करेह ति । सो भणति - संडिल्लसामी पव्वयओ य मम हिया कामं, जं एते उवदिसंति तं मे पमाणं, तव न करेमि वयणं. जेण सि अत्थी तं गि-5 हिऊण वैच्च, अवसर त्ति । सो एवभग्गपणओ दयाए दिवाकरदेवेण सह रायसुएण अवकंतो । सगरस्स य दढकरणत्थं रातीण य वसू महाकालेण दंसिओ विमाणगतो । वीसभूती य ‘बिहि” त्ति पुबं पज्जाइओ । सगरं पि गहिय निरयगतिसंबलं जाणिऊण, 'ससरीरं सग्गं मिति भावेऊणं, संभारिय वैरकारणं निवाडेति अंकमुही सेणमुही महाचुली य किररूविणीओ । तत्थ य सोमवल्ली, तं छिंदिऊण सोमपाणं । एत्थ य किल पयारया बहुका 10 तं ' दितिपयाग 'न्ति वुञ्चति तित्थं । परमत्थमयाणमाणेहिं य 'पयागं' ति पयासियं । दिवागरदेवो य कुमारो य वेदसामपुराहिवो जातो । बुह विबुहाणं च साहूणं तमि समए गिरितडे केवलनाणुप्पत्ती । अहासन्निहिया य देवया य महिमानिमित्तं उवागया । देवज्जो विहिओ य दिवाकरदेवो राया नारयसहिओ तमुवगतो । वंदिय केवलिं पुच्छइ सगरगतिं । केवलीहिं य से नरगगमणं वेरनिजामणं च महाकालदेवपत्तं कहियं । तं 15 च सोऊण णारओ पवइओ भीओ संसारगमणस्स | सिद्धा य बुह विबुहा केवलिणो । इहेव नारयसुयाणं दिवाकरदेवेणं गिरितडग्गामो दिण्णो । तेहिं बुध - विबुहबोहियाओ पडिमाओ थावियाओ आययणे । एवं महाकालदेवचरियं इह परंपरागयं ति । जा संडिल्लऽट्टाणुमयाणुसारिणी गंथरयणा सो अणारिओ वेओ ॥ वसुदेवस्स वेयज्झयणं तप्परिक्खा य इहं च आसि नारओ, तस्स सुओ सारओ, ततो बहुरओ, परओ मरुमरुओ मरुभूई नारओ वीसदेवो सूरदेवो त्ति परंपरेण सामिणो इमस्स ग्रामस्स. ततो खंदिल ! देवदेवस्स सुया सोमसिरिदारिया परमरुववती न सक्का पागयमाणुसेण बुह विबुहपुरओ वेयं समज्जिणंति (ती) । तओ मया भणिओ - वेयं दुविहं पि पढामि त्ति, कुणह पसायं ति तेण 1 25 तहवभेय (?) समागएसु वेयवाईसु ममं पस्सिऊण देवदेवो बंभदत्तं पुच्छति — कओ एए आगय ? त्ति । तेण भणियं - मम गिहे सज्झायपसंगेण चिट्ठति मागह त्ति । तेण भणियं - दुट्टु कयं जं न ममं कहियं । तओ न कोइ वेयविऊ अणुओगं दाउमिच्छति । तुसिणीया परिसा थिमियसागरो इव द्विया । भोइएण भणियं - जइ ता कोइ न उच्छहइ वुत्तुं, गच्छंतु जहागयं माहणा. पुणो समागमो भविस्सइ त्ति । ततो मया भणियं - पुच्छंतु अहि- 30 कया, कयाइ अम्हे भणिस्सामो । पुच्छिओ य । मया सरोववण्णं अखलियं भणियं, तस्स I १ वयसु ली ३ ॥ २°ह त्ति मुकं प० शां० ॥ व० [हिं० २५ 20 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ वसुदेवहिंडीए [वसुदेवेण सोमसिरीए पाणिग्गहणं परमत्थो अवितहाणुवाई अत्थो त्ति । तओ' भोइएणं लवियं-भो ! सुणह वेयपारगा!, जो वा अहियविजो, अब्भुवगच्छउ इमेसिं वेयपारगाणं वुड्डाणं पुरतो पुच्छं णिवत्तेउ । ततो न कोइ वेयदिऊ अणुओगं दाउमिच्छति । तुसिणीया परिसा थिमियसागरोवमा ठिया । तओ अहं लविओ उवज्झाएणं-भद्दमुह ! पावसु पुच्छाए कन्नारयणं ति । तओ 5 समुडिओ, कओ मे पणामो जिणाणं । दिह्रो हं बहुजणेण अणुओगसमागएणं कोमुइचंदो गीवासमुल्लसंतजन्नोइयपवित्तो । तओ मे लविया वेयत्थपारया वुड्डा-पुच्छह वो जत्थ संसओ, जत्थ जं वा पुच्छेयवयं । तओ गंभीरयानिग्घोसवायं सोऊण विम्हिया अणुओगगया लवंति-सम्माणिओ एएणं पुच्छाहिकारो त्ति कहेइ से इमा फुडविसयक्खरा वाय ति । तओ हं लविओ बुड्ढेहिं–भो पियर्सरूव! कह्यसु, को वेयस्स पर10 मत्थो ? त्ति । ततो मया लवियं-नेरुत्तिया भणंति-विय जाणे; तं वियंति, तेण वा विदंति, तम्हि वा विदंति वेओ भण्णति. तस्स परमत्थो अवितहाणुवाई अत्थो चि। तओ परितुट्ठा वेयपारगा, लवियं च तस्स किं फलं ? ति । मया लवियं-सो विनाणफलो त्ति । तेहिं लवियं-विण्णाणस्स किं फलं ? । मया लवियं-विरई फलं ति । तेहिं लवियं-विरई किंफला ? । मया लवियं-संजमफला । तेहिं लवियं-संजमो किंफलो? । 15 मया लवियं-अणासवफलो। तेहिं लवियं-अणासवो किंफलो ?। मया लवियं-तवोफलो। तेहिं लवियं तवो किंफलो ? । मया लवियं-तवो निजराफलो । तेहिं लवियं-निजरा किंफला? मया लवियं-केवलनाणफला। तेहिं लवियं-केवलनाणं किंफलं? मया लवियंअकिरियाफलं । तेहिं लवियं-अकिरिया किंफला ? । मया लवियं-अओगफला । तेहिं लवियं-अओगया किंफला ? मया लवियं-सिद्धिगमणपजवसाणं अवाबाहसुहफला व त्ति। 20 तओ परितुट्ठा वेयपारगा। जमगसमगं मम साहुकारेण पूरियं गगणं परिसापहाणेहिं । तुडेण भोइएण 'देवाण नूणं एक्को तेत्तीसाए' त्ति पसंसिजमाणो नीओ घरं, पूइओ वत्था-ऽऽभरणेहिं। सोहणम्मि य दिणे सोमसिरी दिक्खिया, अहं च । उवणीयाणि मो चाउरंतयं । दिट्ठा य मया सोमसिरी पसत्थमुह-नयण-दसण-कर-चरण-जहण-थणकलस मजणविहीए। तीसे पाणिं गाहिओ मि । रमामि य तीए सहिओ रईए विव कामो । पस्सइ मं माहणो देवय25 मिव । बुह-विबुहाण य णिकेते कयाइ दियादओ पुच्छंति य मं आगमेसु । अहमवि पभवंतो चउगयस्स भणामि निन्नयं । एवं मे तत्थ गिरितडे वसंतस्स वच्चति सुहेण कालो त्ति ॥ ॥ इति सिरिसंघदासगणिविरइए वसुदेवहिंडीए सोमसिरिलंभो पंचमो सम्मत्तो॥ सोमसिरिलंभग्रं० ३९८ अ० ९. सर्वग्रन्थानम्-५४७२-९. १ ली ३ विनाऽन्यत्र-ओ भाएणं क ३ गो ३ उ० मे० । ओ भाणएणं शां०॥ २ भो! ज° शां० ।। ३ °ओ जं शां० ॥ ४ °सुरू° शां० विना ॥ ५ °या पु° शां० विना ॥ ६ रिकूडे क ३॥ ७ सोमसिरि. लंभो पंचमो सम्मत्तो इत्येवंरूपा पुष्पिका शां०॥ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवस्स विजासाहणं] छट्ठो मित्तसिरि-धणसिरिलंभो । १९५ छट्टो मित्तसिरि-धणसिरिलंभो कयाइं च पस्सामि बहिया गामस इंदजालियं । तेण णागकुमारा णग्गोहपायवमस्सिया दंसिया । मया चिंतियं-एस विजाहरो केणइ कारणेण इहागतो, एएण सह कायवो संगमो त्ति । पुणो य मे बुह-विबुहायतणे य दिट्ठो । सो मं आयरेण पुणो पुणो निज्झायइ । मया पञ्चभिन्नाओ-एस सो विजाहरो त्ति । पुच्छिओ य--भगह किमाग-5 मणं ? किं वा कीरउ ? त्ति । सो पुण सुणेऊणं विरहे ममं भणति-भद्दमुह ! अहं विज्जाहरो, अत्थि मे दुवे विजाओ सुहसाहणाओ सुंभ-निसुंभाओ उप्पय-निप्पयणीओ, ताओ तव देमि. तुमं सि तासिं भायणं. जं पुण बलिविहाणं तं अहं सवं उवणेमि. तुमं कालचउद्दसीए एगागी ममं मिलसु. अट्ठसहस्साऽऽवत्तिया य ते विजा सिज्झिहिति त्ति । मया पडिवण्णं । चउद्दसीए य उववासिओ । गहियाओ विज्जाओ । भणिया य मे सोमसिरी-10 नियमो मे को वि, आययणे वसिरसं ति । सोमसिरिं आपुच्छिऊण 'मा कस्सइ कहेज्जासु' त्ति निग्गओ वियाले । तेण णीओ मि पबयविवरं छिण्णकडगसंसिएँ य पएसे । कयं बलिविहाणं । भणति-आवत्तेह विजं, अहसहस्से य पुणे विमाणं उवयति तं आरुह णिस्संको. सत्तद्वतलग्गाणि उप्पइओ य इच्छाए निवत्तणि आवत्तेति ततो उवयइ. सिद्धा एय ते विजा. अहं नाऽइदूरे रक्खानिमित्तं अच्छिस्सं-ति अवक्रतो । अहं ि15 जवामि एगचित्तो। उवइयं च विमाणं घंटाजालकणरवंतं विविहकुसुमदामसुरहिगंधं । तत्थ य मज्झे आसणं। मया चिंतियं-सिद्धा य मे विजा, आरुहामि विमाणं-ति संपहारेऊणं आसीणो आसणे। उप्पयत्ति य सणियं सणियं । थोवंतरमुप्पइयं तं पबयकडगाणुसारेण 'पत्तं समं तितकेमि । पउत्तं एक्कदिसाहिमुहं, णीणुन्नएसु खलंतं वञ्चति । उप्पण्णा मे चिंता-जहा पवयभित्तिमणुसरति, णिण्णुण्णयं च गच्छति खलमाणगतियं, तहा कोइ पओगो 20 होजा. तो उवयणिं आवत्तेमि त्ति । आवत्तिए वि वञ्चति । मणुस्साण य परिस्समजणियमुस्साससदमाकण्णेमि । विभायं च, दिट्ठा य मया तत्थऽवक्खेवेण मणुस्सा कहं पि मं निति । चिंतेमि-रजूओ ओसारियं नृणं एयं कित्तिमं विमाणं केण वि पुरिसेण पउत्तं कस्स वि मएणं ति। अवइण्णो मि विमाणाओ । पच्छओ य मे लग्गा मणुस्सा 'देव! मा भाहि, मा पलायसु, कहिं वा गच्छसि त्ति अम्हेहिं अणुबज्झमाणो ?' त्ति जंपमाणा । अहं पि सिग्धं 25 पलायामि। जत्थ मंदायति तत्थ वीसमामि। एवं तेहिं चिरं अणुगतो, न चातिओ गहेउं । दूरं च भमिऊण अवरण्हे सूरत्थमणवेलाए परिस्संतो तिलवत्थुगं नाम सन्निवेसं पत्तो । दुवारं च संवरियं । न देंति मणुस्सा पवेसं । मया भणियं-अहं माहणो अद्धाणेण परिस्संतो, देह मे पवेसं ति । ते भणंति-(ग्रन्थानम्-५५००) अम्हे पोरिसायस्स बीहेमो. १°स्स आगई इंद° शां०॥२ शां० विनाऽन्यत्र-निपयणी उ० मे० । निओयणी क ३गो ३ ली ३॥ ३ सियवं शां०॥ ४ सियए पए° शां० ॥ ५ ०पणे अपुषणे वा बिमा शां०॥६ पिझाएमि शां०॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ वसुदेवहिंडीए [ वसुदेवेण पुरिसायस्स विणासणं माहणो समणो वा होहिति, अवेलाए जो संचरति सो रसंतो खज्जति रक्खसेणं ति । एवं निरणुकंपे जाणिऊण गामेयगे, णातिदूरे गामस्स आययणं, तत्थ य मि गतो । अइगंतूण य संवरियदुवारो पत्तो मि । अड्डरते आगतो पुरिसो, सो उ महया सद्देण भणति - उघाडे दुवारं पहिय !, मा ते कवाडं भंजेऊण वहिस्सं ति । तेण सद्देण परिबुद्धो मि । 5 मया भणियं - अवसरह, मा मे उण्णिदयं करेह, मा ते सिक्खावयं काहं ति । ततो रुट्ठो सुयरं वति । मया य उग्धाडियं दुवारं । परसामि य पुरिसं लउडहत्थं, महाकार्य, अचेलं, परूढनह-केस-मंसुं, भायरदसणं च नरवसाविस्सगंधियं, खंधेण गहिरतरदंसणं । महया केसभारेण विलुलिएण तेण मे लउडो मुक्को, सो मया वंचिओ । गीवापएसे य पराहुत्तो, ततो मुट्ठिजुद्धं लग्गो । आहम्ममाणो य मया महया सद्देण रसति, ओस10 रिओ य पुणो पुणो अभिद्दवति । अहमवि तस्स गायफरिसं परिहरंतो मुट्ठीय अग्गहत्थेहिं निवारेमि । गामणो य तेण रवियसद्देण पडिबुद्धो पडहसदं कलकलसद्दं च कैरेइ । गहिओ य अणेण अहं । मया 'एस णं परिभवियवो' त्ति पुरिसाओ बाहु जुयलेहिं पीलिओ रुहिरं वमंतो महया सद्देण रसंतो पडिओ | अहमवि देवकुलमतिगओ, 'पभाए हाइस्स' तिट्ठिओ । " 1 संझाकाय साउहो बहुओ गामलोओ निग्गतो । दिट्ठो य णेहिं पुरिसादो बाहि 15 देवकुलस्स गओ विंव गेरुयधाउभूसिओ पडिओ । सदो य णेहिं कओ । मया य अवलो - इओ जणो, निग्गतो हि । समकं तेहिं मे कओ पणामो - 'देव ! जीवह बहूणि वाससयसहस्साणि' त्ति । भणति - अम्हेहिं नायं - माहणो रक्खसे खइओ 'रवंतो भवसि' त्ति. तं सामी ! तुम्हे देवा, जेण इमस्स विसयस्स अकालमच्चू पुरिसादो विणासिउत्ति । ततो हिं सन्निवेसबहिं परितुट्ठेहिं इमस्स कलसहसएहिं पुत्रिं माहणेहिं हविओ मंतपूरण य 20 वारिणा, पच्छा बुड्ढाहिं धवलपडसंवुयाहिं । ततो पच्छा कण्णाहिं विचित्तवत्थ-मल्ला-ऽणुवाहिं दिसावयाहिं विव समागयाहिं वत्था ऽऽभरणभूसिओ, तुडियनिनाएण य महया रहं सेयबलिवद्दसंपत्तं आरोविओ मि । मंगलवयणाभिनंदिओ कयतोरणविभागं च पडागमालो सोहियं पविडो मि तिलवत्थुयं । कयवंदणमाला - पुण्णकलससस्सिरीए आवासपडिदुवारे अवइणोमि रहाओ । अइगओ आवासं वित्थिण्णसयणा - Ssसणं । आसीणो मि 25 आसणे । ततो महत्तर एहिं समवाएऊणं कण्णाओ रूववतीओ सदक्खिणाँ मालंकियाओ उवट्ठवियाओ । विष्णवेंति य ममं - सामि ! तुम्हेहिं परित्तातिओ इमो जणो तुहं इयाणि आणाविहेओ अज्जप्पभिति एयाओ दारियाओ पहाणकुलसंभूयाओ, ताओ भवंतु सुस्सूसिकाओ. पसायं कुणह त्ति । ततो मया भणियं - सुणह, अहं माहणो सज्झायनिमित्तं निग्गओ. अलं मम दारियाहिं. पूजिओ नाम अहं एतीए य पडिवत्तीए एसा मे तुट्ठी I १ ली ३ विनाऽन्यत्र - 'रिसो मह° शां० । 'रिसो उ मह क ३ । 'रिसाओ मह° गो ३ मे० ॥ २ खंधियगंधेण गहिर° उ २ मे० विना ॥ ३ करोति शां० ॥ ४ 'हुयुगले' ली ३ क ३ गो ३ ॥ ५ ° से हिं खट्ट° शां० विना ॥। ६ मि सयणासणे शां० कसं० विना ॥ ७ णमो अलं० शां० विना ॥ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोयासपुरिसायरस उत्पत्ती ] छट्टो मित्तसिरि-धणसिरिलंभो । १९७ जं तुम्हें सिवं विसज्जिया य मया सुहभागिणीओ होंतु-त्ति कण्णावंदं विसज्जियं । ताओ ममं पुप्फेहिं देवमिव अवकरेऊण गयाओ सगिहाणि । पच्छिमकाले य अन्नेसिं दिज्जमाणीओ विन इच्छंति भत्तारं 'अम्हं स एव भत्ता' । पुच्छिया मया बुड्ढा - को एस पुरिसाओ ? ति । ते भांति - सुणह1 सोयासपुरिसायरस उप्पत्ती I 1 कंचणपुराहिवस्स रणो एस पुत्तो सोयासो नाम मंसलोलो । रण्णा य कयाई अमाघाओ घोसिओ । तओ सोयासमणूसा वंसगिरीओ मऊरे आणेंति कुमारस्स मंसनिमित्तं । सूयस्स य वक्त्रित्तस्स कपिओ मऊरो बिरालेण हितो । सो भीओ कुमार स निग्गतो मंसहेउं - - कत्थ लभेज्ज भक्खमभक्खं वा ? । तेण बालरूवं परिहाए सेज्जमयमुज्झियं दिट्ठ, तस्स मंसं सक्कयं, भोयणकाले कुमारस्स सोयासस्स दिण्णं । 'रसियं' ति 10 भुत भोयणो सूयं भणति - तुमं जाणमाणो अण्णया मम एरिसं न पयसि कीस ? त्ति । तेण अएण विष्णविओ - देव ! विरहे वो कारणं कहतिस्सं ति । तेण कथंजलिणा सब्भूयं कहियं । सो तुट्ठो, पूजितो तेण सूदो भणिओ य - सोम्म ! अलं अण्णेण मंसेण, पइदिवसं कीर जत्तोति । ततो सयंमयाणि दाररूवाणि गवेसेंति से मणूसा, अलभंता य पच्छण्णं वहंति बालाणि । सो य गिद्धो माणुसमंसस्स सेसाण न इच्छइ । पउरउवदवे य 15 रण्णा पच्छण्णं रक्खपुरिसा ठविया । तेहिं गहिया कुमारमणूसा । तेहिं पुच्छिएहिं कहियं - सोयासस्स सामिणो नियोगेण अम्हे अणाहमयगाणि जीवंताणि य विवाऊण सं उवणेमो त्ति । परिचिंतेऊण रुद्वेण रण्णा निबिसयो आणत्तो । एगागी मारेऊणमाऽऽमगं पडलियगं च माणुसमंसं खायइ । रक्खसेण अहिट्टितो भमंतो इमं भूमिमागतो । विसओ तस्स भएण इहमावासिओ । तो जं पस्सति तं एक्केणेव लउडप्पहारेण मारेऊण खायति 120 साहं पि जणं न गणेइ । तो तुम्हेहिं जणो परित्ताइओ त्ति || 1 वणीयं मे भोयणं । समागयाणं दीणा - ऽणाहाणं दिण्णं भोयणं, दिण्णसेसं भुंजामि । वसिऊण य तत्थ निम्गओ, गओ मि अयलग्गामं । तत्थ रायपछे एकस्स सत्थवाहस्स आवणं अल्लीणो । तेण अब्भुट्ठेऊण दिण्णं आसणं । मुहुत्तंतरेण य लाभो महंतो लद्धो । तेण वि नीओ सगिहं । मज्जिओ मि सोवयारं । भुत्तभोयणस्स य मे पणओ कहेइ - 25 सुह सामि ! - अहं धणमित्तो नाम वइसजाइओ, सिरी मे भज्जा सरिसकुलसंभवा, तीसे दुहिया मित्तसिरी दारिया । सा मया नेमित्तियस्स कहिया - पस्स ताव दारिकं, केरिसी से भवियया ? । तेण लक्खणाणि परिसऊण भणियं - एस पुइपइणो भारिया भविस्सति । मया भणिओ - कत्थ सो ? कहं वा विण्णायो ? त्ति । सो भणति - जम्मि ते पाट्ठिएससहस्सगुणो लाभो भविस्सति, तक्खणादेव तं जॉणिजासिति । तं एस 30 दारिया तुम्हं सुस्सूसिया होउत्ति । १ ततो शां०॥ २ सयंमय ली ३ ॥ ३ सोते दु० शां०॥ ४ 'हवीपतिभा शां० ॥ ५ जाणेजा शां० ॥ -- 5 Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 १९८ वसुदेवहिंडीए [वसुदेवेण मित्त-धणसिरीणं पाणिग्गहणं ततो सोभणे दिवसे पाणिग्गहणवेलाए आणिया मित्तसिरी सिरीसकुसुमसुकुमालसरीरा, सरससररुहनयणलोभणमुही, मुहकमलभूसणकसणतारकालंकियनयणजुयला । विहीय पाणिग्गहणे वित्ते उवट्ठविया सोलस कोडीओ सत्थवाहेण । ततो रमामहे सह तीए महुर तरभासिणीए। 5 तस्स य गिहस्स समीवे सोमस्स माहणस्स दइया सुनंदा नाम माहणी । तीसे पंचण्हं दारगाणं अणुंमग्गजाया भगिणी धणसिरी नाम दारिया । पुत्तो य से एको, सो मेहावी लल्लो । ततो मे कहेइ मित्तसिरी-अजउत्त ! सोमस्स सुओ एस दारओ असत्तो वेयं पढिउं, तेण दुक्खियाणि माहणाणि. सक्केज वो तिगिच्छं काउं जेण अज्झयणजोग्गो भवे? । मया भणिया-तव पियनिमित्तं घत्तिस्सामि त्ति । ततो से मया कत्तरीए जीहा10 तंतु सिग्घयाए कसिणा छिण्णा, रोहणाणि से पउत्ताणि । ततो विसवाणी संवुत्तो । तुढेहि य मे धणसिरी महुमासवणसिरी विव रूविणी उवणीया-देव! जीवाविया अम्हे दारयं तिगिच्छंतेहिं । सो य मे दारओ वेयं पाढिओ, थोवेण कालेण बहु गयं । ततो हं दोहिं वि मित्तसिरी-धणसिरीहिं सहिओ कीलमाणो तत्थ वसामि किंचि कालं ति ॥ ॥ इति सिरिसंघदासगणिविरइए वसुदेवहिंडीए मित्त सिरि-धणसिरिलंभो छटो सम्मत्तो॥ मित्तसिरि० ग्रन्थाग्रम्-१००-६. सर्वग्रन्थानम्-५५७२-१५. सत्तमो कविलालंभो उप्पण्णवीसंभाण य सिं दोण्ह वि जणीणं कहिओ मे पुच्छंतीणं पभवो सच्छंदविहारो य । ततो परिओसविसप्पमाणसोभासमुदयाओ संवुत्ताओ। अण्णया य पयहिऊण निग्गतो 20 मि गओ वेदसामपुरं । तत्थेव बहिया 'वीसमामि' त्ति उजाणमतिगतो । पस्सामि य तरुणजुवतिं एक्काए वुड्ढाए डहरएहि य चेडरूवेहिं सहियं उववणदेवयामिव किं पि हिययगयमत्थमणुचिंतयंती लेप्पयजुवतिमिव निचलच्छी झायमाणी अच्छइ । ततो साममं पस्समाणी सहसा उहिया, कंठे गहेऊण परुदिता-सहदेव ! वल्लह ! देवर ! कओ सि ? त्ति । ततो कुसुमियाऽसोगच्छायासण्णिसण्णस्स मे कहइ रोवंती-इहं कविलस्स रण्णो महऽस्सपती 25 पिया मे वसुपालिओ नाम, तस्साहं दुहिया वणमाला णाम. सा हं पिउणा कामरूवातो नरवइनिओएण कयाइं दोच्चेण रा(आ)यस्स सुरदेवस्स कामरूवगस्स दिण्णा, सो मम गहेऊण सगिहमागतो. ततो हं सहदेव! तुमंसि पवसिए कहिं पि सुरदेवेण कुलघरस्स सुमरमाणी कस्सइ कालस्स इहाऽऽणिया. थोवस्स य कालस्स सो ताहे सुरदेवो अप्पणो मम वा मंदभागयाए पाणेहिं विउत्तो. ततो हं परमदुक्खिया गिहे रति अविंदमाणी 30 इमीए बहिरवुड्ढाए बालरूवेहिं सहिया उज्जाणमिहमागया सोगविणोयनिमित्तं. तुमं च १'णुपुत्वजा° शां० विना॥ २ मित्तसिरि-धणसिरीय लंभो छटो सम्मत्तो शां० ॥ ३ मि पत्थिओ मि वेद शां० ॥ ४ चिंतिजंती शा० ॥ ५ °णी पिच्छइ शां० विना ॥ ६ बहिं वुशां० विना ॥ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कविलाकए नेमित्तिस्स पुच्छा ] सत्तमो कविलालंभो । १९९ मे दिट्ठो, इयाणि धिइं लभिस्सामो-त्ति एवं कहेइ । अहं पिणं 'हुं हुं' ति करेमि । चिंतियं च मया-कयमिमीए देवरनाडयं, तं पस्सामि ताव से परिणाम ति । सा य भणतिवच्चामो गिहं ति । ततो पत्थिया मो वेदसामपुरमझेण । विम्हितो जणो पेच्छति मं 'को णु एसो देवरूवि ?' त्ति । अइगतो मि वसुपालियगिहं ति । वणमाला कहेइ घरजणस्स-एस मे देवरो सहदेवो चिरपवसिओ दिट्ठो त्ति । तुटेण य घरजणेण अच्छेर-5 यमिव दिस्सहे । कयपायसोयस्स य सिणेहऽन्भंग-सम्मदण-पघंसण-सिण्हाणाणि वणमाला करेइ सयं । सिणेहऽभंगगत्तस्स परिहियवत्थस्स य चिरायमाणे वसुपालिए उवणीयं मे भोयणं । भुत्तभोयणो य आसणगतो अच्छामि । आगओ वसुपालिओ। तेण मे कओ पैणिवाओ दंसणेणेव । कहियं च से वणमालाए–ताय! एस मे देवरो सहदेवो त्ति । सो भणति-सागयं ते ? त्ति । पुणो पुणो य मे पस्सति । तीए य भणिओ-ताय ! 'तुब्भे 10 चिरायह' त्ति भुत्तो सहदेवो. कहाऽवक्खेवो आसि ? त्ति । सो भणति-सुङ कयं जं भुत्तो, मम पुण वक्खेवं सुणाहि कविलो राया भिगुणा नेमित्तिणा अण्णया भणिओ-राय ! कविला कण्णा सत्थकाराऽणुमयलक्खणोववेया अड्डभरहाहिवपिउभज्जा भविस्सति । रण्णा पुच्छिओ-कत्थ सो होज्जा ? कहं वा नायबो ? त्ति। सो भणति-निमित्तबलेण भणामि-(ग्रन्थानम्-५६००) 15 जो फुलिंगमुहं आसं दमेहित्ति तं जाणसु. सो पुण गिरितडे संपयं अच्छति देवदेवस्स गिहे । तं वयणं परिघेत्तूण महरिहवत्थाऽऽहरणा जे कुसला मणुस्सा ते भणियाको तं गिरितडाओ इहाणेज्जा अविजाणियं ?। तत्थ इंदसम्मेण इंदजालिएण पडिवणंअहं आणेमि तं तव नेमित्तीकहियं जामाउगं ति । सो सपरिवारो गतो अज बहुयस्स कालस्स आगतो कहेइ राइणो देव! अहं गतो गिरितडं, दिट्ठो य मया सो पुहवितलेति-20 लओ मणस्स अच्छेरयभूओ. विजासाहणववएसेण य निणीओ गामाओ पवयकडयसंसिए य पएसे. विमाणं जंतमयं रज्जुपडिबद्धं विलइओ राओ. ततो णं गगणगमणसंठियं निस्संदं नेमो. विभाए च नाऊण 'हीरामि' त्ति पलाओ, महाजको न सकिओ गहेडं. इमो य मे कालो परिभमंताणं, ण य से सुती वि लद्ध त्ति निवत्ता मो । तं एयमहँ सोऊणं राया विमणो 'कहं तस्स पडिवत्ती होज ?' ति वियारेमाणो अच्छति। तस्स समीवे अहं आसि ।25 ऐसाऽवक्खेवो-त्ति तेण वणमालाए कहियं । तं च वयणं सोऊण मे चिंता जाया-जातं इहं अच्छियवं ति । अवरजुके य वसुपालियसमक्खं वणमाला ममं भणति-सहदेवसामि! सकेह फुलिंगमुहं आसं दमेऊणं ?। मया भणिया-आसं दद्दूण तस्स पगती विण्णायए । वसुपालिएणं भणियं-पस्सह आसं १ गगत्तस्स उम्मद्द° शां० विना ॥ २ थनियत्थस्स शां० ॥ ३ पणामो दसणेण । क° शां० विना ।। ४°ति सुरदेव शां० ॥५ °लसं(म)गलतिल° शां० ॥ ६ मणुस्सअ° शां० ॥ ७ उ० मे० विनाऽन्यत्र-सि. यपए ली ३ शां० सियए य पएक ३ गो ३॥ ८ से पउत्ती वि क ३ गो०॥ ९ एसो व शां० विना ।। Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिंडी । [ वसुदेवेण कविलाए पाणिगहणं सच्छंदेणं । दिट्ठो य मया फुलिंगमुहो बालकुमुयपत्तरासिवण्णो, उक्किटुप्पमाणो, पण्णत्तारं अंगुलाणि ऊसिओ, अट्ठसयंगुलपरिणाहो, बत्ती संगुलिवयणो, आवत्तसुद्धो, पसत्थखुर-कण्णकेस-सर-संठाण-णयण-जंघो, अतितेयस्सियाए अणारोहणीओ । तं दट्ठूण य मया भणिओसक्का आसं दमेऊणं ति । वसुपालितो भणति -रण्णा पुत्र संदिट्ठो मि-जो इच्छति सं 5 दमेण तस्स वियरह कामओ. दमियं च मम निवेदेसुं त्ति तं संदिसह जं एत्थं कायव्वं । मया से बलिविहाणं संदिट्ठ, कुंचमुहीओ संकला पडिबद्धाओ 'सूईओ चत्तारि कारह' त्ति । तेण जहासंदिट्टं कयं । अहं पि कयमंगलो फुलिंगमुहमभिरूढो । सूईओ संकलिय पल्ला - णस्स चउसु अंगेसु सन्निवेसियाओ । जओ पडिउमिच्छति ततो सूतीपडिपेल्लिओ ठाति । उद्धाइओ निवारिज्जइ, न य से खेयं होति । ततो ठाउं इच्छति, तं वहिउमारद्धो । राया 10 अवलोयगतो परसति । वायगजणो य सिक्खाकुसलो विम्हिओ य पसंसति साहुकारमुहलो । तओ मया तोसिओ य राया, दमिओ फुलिंगमुहो । इंदसम्मो य परिसऊण ममं पडिओ पाए - खमह जं अम्हेहिं तुम्हें भवियवं अयाणमाणेहिं चेट्ठियं गिरितडे । २०० ततो सोहणे दिवसे कविला रायकण्णा दिक्खिया, अहं च । उवणीया य में समीवं कण सुधोयनिम्मिया विव देवया, निश्वयणिज्जमणोहरसरीरा, सरयपसाहियसर को मलकम15 लवयणा । तओ हुआ विहिणा हुयासणो पुरोहिण । गाहिओ मिपाणि कविलाए रायवरकण्णाए कविलेण । ततो मे परमपरितोसविसप्पियनयणजुयलेण पयक्खिणीकओ जलणदेवो, छूढा लायंजलीओ । उवणीया बत्तीसं कोडीओ विलिएण कविलेण । धुवदंसणसुमसोय कविलाय सह मुदितो वसामि कविलरायगिहे । तस्स य सुओ अंसुमंतो नाम कुमारो, सो मं सेवति विणीओ । गाहेमि णं कलासु विसेसं । कविला गुणपरित्त 20 निरुस्सुयरस य मे वच्चति कालो । जणेमि णं तत्थ हूं कविलं नाम कुमारं ॥ ॥ इति सिरिसंघदासगणिविरइए वसुदेवहिंडीए कविल (ला) लंभो सत्तमो सम्मत्तो ॥ कविलालंभग्रन्थाग्रम् - श्लोक ६३ अ० १७. सर्वग्रन्थाग्रम् - श्लोक ५६३६. १ °देण य | दि° शां० विना ॥ २ वेदिय त्ति शां० विना ॥ ३ णगो प० शां० ॥ ४ कविलालंभो सत्तमो समत्तो इतिरूपा पुष्पिका शां० ॥ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंबर For Private & Personal use only www.jainelinery.org