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________________ 8 १ अमदावादना शेठ उमाभाईना भडारनी उ० संज्ञक. भंडारनी शां० संज्ञक. आ प्रतोनी टुंकी संज्ञा उ २ राखेल छे. २ खभातना शांतिनाथना ताडपत्रीय १ लीम्बडी संघाडाना स्थानकवासी मुनि श्री मेघजी स्वामिनी मे० संज्ञक. उपर जणावेल बार प्रतो पैकी खंभातना शांतिनाथना भंडारनी प्रति ताडपत्रीय छे अने संवत् १३८६ मां लखायेल छे. ते सिवायनी बीजी बधीये प्रतो कागळ उपर लखायेल तेमज उपरोक्त ताडपत्रीय प्रति करतां अर्वाचीन छे. आ सर्व प्रतिओनो परिचय, पाठान्तरोनो क्रम, ग्रंथमां वधती अशुद्धिओ तथा पाठान्तरोना प्रकाशे अने कारणो आदि बाबतो अमे प्रथम खंडना द्वितीय अंशमां आपीशुं. अमारा संकेतो - १ प्रस्तुत ग्रन्थमां अमने ज्यां ज्यां प्रतोमां अशुद्ध ज पाठो मळ्या छे कल्पनाथी ते ते पाठोने सुधारीने ( आवा गोळ कोष्ठकमां मूक्या छे. १०- २०-२७, पृ० १५ पं० १३-१४ -२० इत्यादि. २ मूळ प्रतोमां ज्यां ज्यां पाठो खण्डित मळ्या छे तेवे स्थळे सम्बन्ध जोडवामाटे दाखल करेल पाठो अमे [ ] आवा कोष्टकमां आपेल छे. जुओ पृष्ठ १० पंक्ति २२, पृ १३ २८, पृ ३४ पं १. त्यां त्यां अमे अमारी मतिजुओ पृष्ठ ९ पंक्ति २ ३ लिखित प्रतोमां जे पाठो अमने लेखकना प्रमादधी पेसी गएल जणाया छे ते पाठो अमे प्रारम्भमां [ ] आवा कोष्ठकमां आपी टिप्पणीमां "कोष्टान्तर्गतमिदं प्रामादिकम्" एम जणाव्युं छे, जुओ पृष्ठ १६ पं २४, पृ २५ पं ९, परंतु आगळ चालतां आ पद्धतिने जती करी तेवा पाठोने अमे [ * ] आवा फूलडी सहित कोष्टकमां मूक्या छे. जुओ पृ ४२ पं १६, पृ ५० पं २०. * ४ जे जे स्थळे अमने पाठो संदेहवाळा जणाया छे त्यां अमे आवुं ( ? ) चिह्न मूकेल छे. अने ज्यां लांबा फकराओ अस्तव्यस्त जणाया छे त्यां तेना आरम्भ अने अंतमां आवुं (??) चिह्न मूकेल छे. ५ पाठान्तरोमां प्रतिओनां नाम साधे ज्यां सं० जोडायेल होय, जेम के-कसं० संसं० गोसं० आदि, त्यां समजवुं के ते पाठो ते ते प्रतिना विद्वान् वाचके मार्जिनमां अगर अंदर सुधारेला छे. ६ प्रस्तुत प्रकाशनमां घणे य स्थळे (.) कोष्टकमां आपेल मींडारूप पूर्णविराम नजरे पडशे. ते अमे एटलामाटे पसंद करेल छे के – “वसुदेवेण भणियं-" "मए भणियं" इत्यादि स्थळोमां ते ते व्यक्तिनुं कथन क्यां समाप्त थाय छे ए स्पष्ट रीते जाणी शकाय अर्थात् एक व्यक्तिनुं कथन पांच के दस वाक्यमा पूर्ण थतुं होय ते दरेक वाक्यने अंते । आवुं पूर्णविराम करवाथी केटलीक वार जे गोटा ळानो संभव रहे छे ते आ चिह्नथी दूर थाय छे. ज्यां एक व्यक्तिना कथनमां बीजी बीजी व्यक्तिओनां कथनो घणे ज दूर सुधी चालतां होय त्यां अमे पारेग्राफ पाडी चालु । आ जातनां ज पूर्णविराम मूक्यां छे. Jain Education International ७ दरेक पानाना मार्जिनमां जे इंग्लीश अंको आपवामां आव्या छे ते पंक्तिओनी गणतरीमाटे छे. ८ प्रस्तुत ग्रन्थमां स्थाने स्थाने जे लोकसंख्या नोंधवामां आवी छे ते हस्तलिखित प्रतोमां नथी, किन्तु अमारी अक्षर अक्षर गणीने करेल नवीन गणतरीने आधारे नोंधेल छे. प्रस्तुत ग्रन्थना संशोधनमां तेमज पाठान्तरो लेवामां अमे गुरु शिष्ये सविशेष सावधानी राखी छे, छतां य अमारा प्रज्ञादोषने कारणे स्खलनाओ थयेली कोइ वाचकोनी नजरे आवे तेओ अमने तृभावे सूचना करे. तेनो अभे द्वितीय अंशमां योग्य रीते उल्लेख करवा चूकीशुं नहि. निवेदको पूज्यपाद प्रवर्त्तक श्रीकान्तिविजयजी शिष्य-प्रशिष्य मुनि चतुरविजय - पुण्यविजय. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001888
Book TitleVasudevhindi Part 1
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1930
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size18 MB
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