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________________ प्रास्ताविक निवेदन. प्रकाशन-प्रस्तुत वसुदेवहिंडी ग्रन्थने “श्रेष्टिवर्य श्रीमान् देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंड" तरफथी प्रसिद्ध करवाना इरादाथी तेना कार्यवाहकोए न्याय-व्याकरणतीर्थ पं० बेचरदास जीवराज भाई दोसीने पसंद करी तेना संपादनने लगतुं सर्व कार्य तेमने सोंप्यं हतुं. परन्तु पाछळथी र्थिक प्रश्नने कारणे ते कार्य उपरोक्त फंड तरफथी पडतुं मूकाता सं० १९८२ मां अमे तेनी तयार थएल कॉपी पं० बेचरभाई पासेथी लइ लीधी, अने तेना सम्पादननो सर्व भार अमे स्वीकारी लीधो. आजे चार वर्षने अंते अमे तेना प्रथम खंडना प्रथम अंशने विद्वानोना करकमलमां अपीए छीप. वसुदेवहिंडी अने तेना कर्ता-प्रस्तुत ग्रंथ बे खंड, सो (१००) लंभक अने तेना अंतमां उल्लिखित ग्रन्थाग्रं (श्लोकसंख्या) ने आधारे २८००० श्लंकमां समाप्त थाय छे पहेलो खंड २९ लंभक अने ११००० श्लोक प्रमाण छे तथा बीजो खंड ७१ लंभक अने १७००० श्लोक परिमित छे. बन्ने य खंड एक आचार्यना रचेला नथी परन्तु जुदा जुदा आचार्ये रच्या छे. प्रथम खंडना कर्ता श्रीसंघदास गणि वाचक छे अने द्वितीय खंडना कर्ता श्रीधर्मसेनगणि महत्तर छे. अत्यार सुधीना अमारा अवलोकनने आधारे एम जणाय छे के-प्रथम खंड वचमा तेम ज अंतमा खंडित थइ गयो छे. प्रथम खंडना अंतमा जे ११००० श्लोकसंख्या नोंधवामां आवेल छे ते अमारी अक्षर अक्षर गणीने करेल नवीन गणतरी प्रमाणे लगभग १००० श्लोक जेटली ओछी थशे. आ उपरथी एम अनुमान करी शकाय के--प्रथम खंडमां खूटतो भाग तेटलो ज होवो जोइए जेटलो अमारी नवीन गणतरीमा तूटशे. अत्यारे प्रसिद्ध करातो प्रथम अंश श्रीसंघदासगणिवाचककृत प्रथम खंडनो अंश छे. आ खंडनो तेम ज तेना कर्तानो परिचय द्वितीय अंशमां आपवानो अमारो संकल्प छे. अहीं टुंकमां फक्त एटलुं ज निवेदन करीए छीए के-प्रस्तुत प्रथम खंडना कर्त्ता आचार्य, भाष्यकार पूज्य श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण पहेला थइ गया छे. आ वात आपणे भाष्यकार विरचित विदोषणवती ग्रन्थमां आवता प्रस्तुत ग्रन्थना उल्लेखने जोइने जाणी शकीए छीए. प्रथम अंश-अत्यारे प्रकट करातो प्रथम अंश सात लम्भक सुधीनो छे. अर्थात् अन्धकारे प्रस्तुत ग्रन्थना आरम्भमां (पृष्ठ १ पंक्ति १७) जे मुख्य छ विभागो पाड्या छे ते पैकी कहुप्पत्ती पेढिया मुहं अने पडिमुहं आ चार विभागो पूरा थई पांचमा सरीर विभागना २९ लभक पैकी सात लम्भकोनो आ अंशमा समावेश थाय छे. धम्मिहिंडी-प्रस्तुत ग्रन्थy नाम वसुदेवहिंडी छे छतां आमां धम्मिल्लहिंडी अने वसुदेवहिंडी एम बे हिंडीओ वर्णवायली छे. कहुप्पत्ती पूर्ण थया पछी लागली ज धम्मिल्लहिण्डी चालु थाय छे. छतां ग्रन्थनो वधारे भाग वसुदेव हिण्डीए रोकेल होवाथी आ ग्रन्थनुं नाम वसुदेवहिण्डी कहेवामां आवे छे. प्रतिओ-आ ग्रन्थना संशोधनमा अमे नीचेनी प्रतिओनो उपयोग करेल छ १ लीम्बडीना संघना भंडारनी ली० संज्ञक. २ त्रिस्तुतिक उपाध्यायजी श्रीमान् यतीन्द्रविजसजी महाराजनी य० संज्ञक. ३ अमदावादना डेलाना भंडारनी डे संज्ञक. . आत्रण प्रतिओ परस्पर समान होवाथी पाठांतर लेती वेळा वारंवार ली० य० डे० लखवू में पडे माटे एनी टुंकी संज्ञा अमे ली ३ राखी छे. १,प्रवर्तक प्रज्ञांश श्रीमान् लाभविजयजी महाराजनी क० संज्ञक. २ पाटणना मोदीना भंडारनी मो० संज्ञक. ३ पाढणना संघना भंडारनी सं० संज्ञक. आ अण प्रतोनी टुकी संज्ञा के ३ राखवामां आवी छे. १ गोघाना संघना भंडारनी गो० संज्ञक. २ पाटणना वाडीपार्श्वनाथना भंडारनी वा० संज्ञक. ३ खंभातना शेठ अम्बालाल पानाचन्दनी धर्मशालाना पुस्तकसंग्रहनी खं० संज्ञक. आत्रण प्रतिनी टुंकी संज्ञा मो ३ सखेल छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001888
Book TitleVasudevhindi Part 1
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1930
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size18 MB
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