Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
yanmandirakobaturth.orgATALARY IIIIIIIIIII 049893
अथश्रीनन्तराध्ययनसूत्रटवामूखमागधलापाअर्थगुजरातीसहित अध्यन३६.
वीर मुगत पाम्पा २५२२ बरस पुस्तकारुढ १५२. लस्भग्रहचनत्या ५२२ वरस. (बॉम्बेसिटीप्रेसमा उपाव्योबे.) मुंझमध्येशाः रवेत्सी जीवराज जैनपुस्तकवाला विकाणो पुखनुपर शेव लींमजी शामजीनोनवोमालोबीजेदारे. पुस्तकनीकीमतअगानुरुप पनीरु०१७। उपान्यो सुधकरीघएीमतो मेखवी घरापंमित्ताने पूरी तयामक्दावादवासाबाबूजना भतुसायतपाजूनीपतोसायेजोईत पासी यथाजोगशोधीनेलव्यूजीवाने सुखलथावानेवास्ते.पूर्वे एवी प्रतऐसीनहती तेथीघगी महेननपम्याथीमततयारथईचे. तेजतनासहितराषवीवांचवी बपावनारेंसरकारनाधाराम माणेहकराष्योडे. संवत् १९५२ कार्तकशदरनेत्रादित्य. शाके १८१७ सने १८९०५ इ.
REATRNARRAR
For Private and Personal Use Only
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
प्रस्तावना. आ नुत्तराध्ययनसूत्र लगवंतमहावीरस्वामीएमुगतविराजता बेसाअवसरें अढार देसनाराजावेगेरेने नुपदेस दीपो. ते साधुश्रावकनेजरूर बांचवो.जोश्एमूसअर्यवांचवायी सुखलबुधि वृद्धिथाय जीवादिक-जापापफ षट् व्य पटलेस्या बगेरे ऽव क्षेत्रकोसमाव' सुद्द श्रद्धासहितग्नाननी प्राप्तीथाए. सकलशास्त्रनो तात्पर्य प्रयमज्ञान पत्रे क्रिया एबुंदे. तेदसइष्टाने फुर्सत्नपामीने वृयागमावबुं नहिं. जाणापपुंजरूर करघुजोइए. हासकास शेव सासकार जैनधर्ममा घणादेवायचे ते ने ज्ञाननी वृद्धि करवी जोइए. तेरीतदेस कुसपरं पराएं कारजक्रिया आवे तेवेसाएं संसारनी सोलानीमंने पैसा खर्चायले पण पुस्तकरकिरवी ते रीन हास देषाती नयी. पाजो प्रयिमनी रीत काढीने ज्ञानशाखा बासकोने लावासास तया ज्ञानलंमारा जेकोईने पासे पुस्तक न होय तेने वांचयालरावा काम यावे. प्रयमनी घणी प्रतोजोतां घणा अशदेखवामांन्यावे । तस्वनारें तो पैसानासोलथीलरवी.पणापैसा आपनारेबीजीप्रतसायें मेसबीशुद्ध करवी जोइए. तेशद्द करनाराबपायीप्रसिद्ध करनार घएपी प्रतोसायेंमेसबनारने मदद आपवी जोइए मदद आपपायी बीजीमतोशुकरीने उपावेजेम कोइ काशी देसमा ब्राह्मए लपवागयो तेने अन्नवस्त्रनी मदद मसयाथी लगोजेने मददनहिमले ने खोन टमागीनेपेटपूरोनहियाय तो लऐ ? नेयी पुस्तक सरवाववानेकरतां उपावचाथी घणुफायदोथायडे तेथीजोबीजावरवत अमोनेप्रयमयी आसरे पापसोतोघपासूत्रपाबीसुद्धकरी प्रसिद्ध करवामां आवसे.बपाबनारएनअरजकरेले. शा. वेनसी जीवराज.
-
For Private and Personal Use Only
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobaith.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
रवाइ । मददापवावासानेनुं नाम |शेजसूरतफतेत्नाश् हरिदासहस्सेनगीनदास. शेव रामजीमादवजीहस्नेहेमकुबा शेउ ताराचंदवासजी शेर नगवानजी विसनजी. शेव पुनातरफुकमचंदनपुनवानगरवासा. |" दामजीसरयमीचंदअफीएावाखा. 7 मादवजी गोवंदनी. " सीखाघरन मोनजीगिरगांम." मूलचंदनयाजीचनतम् चत्तरत्नुजगोवंदजी | कालिदासलखमीचंद... पीतांबर मोनजी धारशीनुलाया गिरगांम , अनयचंददेवजी पोरबंदरना.
" स्युशाललाई तथा चतरनुज | " जगजीवन धरमचंद बीजपारलाश्कानजीठाकरबाग जवराजजेग पोरबंदरना. | वसनजी अमरचंदलासजी.. " धरमसीमाश्नारापाजी 7 स्वीमचंदजवेरहामोदनसास लगवानजी जीवराज कतजार
मदनजीजूग | " चतरलुजनेमचंदः । तथापनुदास माई. लगुनाश्ता हीरात्माई, सुरतूना मा || In नेमचंदविसनजी. .सोमचंदनुत्तमचंद. श्रीकमजीनगरचंद तेजसीतगंगाजीबास. यात्माश्वकासका | अमरचंदवीरजी " मेगनाईयोधवजीनत्तम देवजीमोनसी हीरात्नाइहेमा पोरबंदरनी नशापानरंफयी | सोमचंदमीण पेक्षात्नाईबरसंग कानुजवीरचंदखेंगार राज मांगरोसबंदर जैनशासातरफथी. | कानजीजीवाहस्तेकडवाना । नेपाशी साधानीमसीसव” कलमांमवीनयुत्लाईखेतसी. वेरावला जैनशालातरफयी मदनमीजूग 17 वीरजीभाईलधा . देअनगंगाजरहीरार्जुत्माया परमसीरायचंदकलमांची, " महासनरसीलाइज़गजीवनहस्तेपीतांबरनाम् " मूरजाहरखचंद मांगरोल." हंसरांजवालजी " कबजार करमचदमादवजी' धनराजबीयराजयपूरवाला.
For Private and Personal Use Only
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
शेर नरसीलाइ केशवजी शेग्नुधवजीनाराएाजी बंगासी शेवचापसीत्माराहस्तेखासजी. शेग्यासनजी क्रसनजीत रामदास 7 लीमजीशामजीसासजीशा " फतेसासमास्तरजामनगरना सस्वमसीनपुनेपासी केशवजी पमु परेल. करगुदारावासा. " हीरजीत्नाईहंसराज. - मानवता रायचंदवजीकवी रवजीत्नाविन्लेमीबजार | कलकता जतीजी नदे चंदजी.
मारमसत्नाई रतनसीवकीस वीरचंदीपचंदवीस्चंदरोगवजी 7 मुंगरसीनेजुगरसीदेवा. 27 लोकागबअधिपतिखूबचंदजीकल्याएाचंद " जेवत वसया हस्ते देवजी " रतनसीजीवराजापरेस देयसीनयाकेसब कचरा. लोकागबभूज्यनरपनसंगजी कलकत्ता.
बेसजीलानाथापरबतमा हरचंदनापा दाश्त्याआशम संघाकल्याए नेरुदानजीवीका नेरवालाशेग्या. 7 खेतसीकरमन गपापतत्भारमलगए कपागंजसोभाचंदसुराणा लोपालचूनीसासमूलचंदरखजानगी." In देसजीहीरजीधेलामाइधुना ” मएशीवागाशीपजी हंसराज "जेपुरबीनराजनीबारिया जतीगोरधनजीदेवचंद कालिदासपरसोतम " गोवंदजी नयुखोजपारलेजु " हीरजीरतनसी. सुजाएगमरतनचंदतामा रनसामगोमाजीमयाजी.हीराचंदहररमचंद. " गोवंदजीवापानी पोरबंदरना "सगनाथलाई मूसजी. विदासरसोमान्चंदवागापी जैनकस्तुरचंद मनासाल.
धरमसीजगजीवन "इंदरजीजूठाहीराकचरा 7 मुंबश्हेमसजजीनीमाएीिफलोजोधपूरक्रसनचंदजीत कानमजीत्नमा 27 नमीदासहेमचंदाबाईनात्रष्टी जपार मोपाशी. सरदारसेढेरशेग्जेमसजीगया बुरुसागरमलजीत सरदारमलजी बोरपार सीमा देवजीजूण | शिवचंदनसिंगीसं. विकानरपादमसजावगवा राजगंजबजाराजपबगानमीचंदसगी.
For Private and Personal Use Only
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
उत्त.
श्रीवीतरागने नमस्कार करूंडं.
| नमः सिद्ध श्रीवीतरागायनमः ॥ संयोगाविष्पमुक्कस्स ॥
विविनयने
पा० प्रगट करीस्य अनुक्रमे
नि० निरवद्यभि का प्रवर्तयानो स्वभाव बेजेतेने नि कहिए एवा साधुनो. भिस्कूष्णो ॥
नि० तह
दृष्टीनें
www.kobatirth.org
संग बाह्य अभ्यंतरसंजोग बाह्यते मातपिताप्रमुष अभ्यंतर ते मिथ्यात्तविषयादिक सं० संजोगधी वि० विशेष मूकाएगा बे
गुरुनी o समीप रहे बानी. का करहार
२१
कहीस.
विएयं पानुकरिस्सामि ।। अणुपुविं
इं० शरीरनीचेष्टाइ करीयामि ते इंगित
इंगियागारं माझानी हतनी गुरु गुरुनी
दृष्टीने
कराहार
उ
निदेसकरे ॥ गुरुरणमुववायकारए |
त तेवी नितशिष्य इ० इम कहिए
चइ ॥ २ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
म० नथी आगार जेने विषे ते एागार
॥ प्रागारस्स सुसांभसमुज कहि- प्रा० गुरू ताथका १ नीमाझाने
सोहमे ॥ १ ॥ आशा
सं० शरीरना भावी मुडाई
करी जालि मननो अभिप्राय एवं जाएापो करी सहि संपन्ने ॥
समीपरवान
सेविशिएत्तिषु
प० प्रत्यनीकं बैरी
करणहार
का. करणहार सरो.
आएणानिद्देसकरे ॥ गुरुणमडर्णुक्वायकारए ॥ परिणि ॥
प्र.१
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobaith.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
काननी
उत्त-|| अन् तत्त्वनो अ अधिनित इ. इम कहिए ३ जन्जेम सूरु कूतरीको
ह्यामिक काढीने स सर्व धानकथी जिहां पर अजाए
जाएतिहां कोई पेसवा असंबुडे ॥ अविणि इतिवुच्चई॥३॥ जहा सूएीपूइकन्नी । निक्कसिधइ सबसो ॥ नदे एक एणे दृष्टांत दु अविनीत मुक मुषभरि निरुका भसी ककएना च बांमीने प० मत्यनीक रीजेनो ने मुषरी संपदाथी ५ कएसमाने
असंकारे। एवं . इसीखपमीपीए । मुहरी निक्वसिद्य॥ ॥काकुंमगं चइत्ताए ॥ वि०विष्टाने नुः भोगवे सूत्र एक एपी सी विनयने असं श्य विनयने रख रनिपामे मिन्मृगपशुसमान सुरु सांपाए सूयर परे. जामीनें कारे. विषे राचे विनित्त५ भतीने विवंचुंजइ सयरे एवं सीखंचइत्ता ए इस्सीसे रमई मिए ॥५॥सुणि भा. दृष्टां सात कूतरीनो चीजो सु ना बीजो अविनित विच बलि पिनयने विषे अस पोताना इ. वांबतो हि हिन पो
अरनो२ मनुष्यनो ३। थापे आत्माने यको तानाआत्माने | २ या भाव ॥ सागस्स॥ सुयरस्स नरस्सय ॥ विगए नविध अप्पाएं।तो हियमप्प
For Private and Personal Use Only
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
त ते मारे वि०विनयने सी नबोभाव पपामे जे विनय कीधा बु. याचा पुल पुत्रसरखोचलंभ नतेची मिन अ.
ए गये तथा आचार पीते केचो होई नो. होइनि० मोझनोऽर्थ शिष्यवेन एगो॥६॥तम्हा विषयमेसिया सीखं पनि भेजन बुडं पुत्तनियागठी ननिकसिय लौनकाटेनकरीइवेगलोककोइक नि:निरंतर संसांत सांतहोइ बु अाचारजने अंसमीपे सदाए अ. सूत्रसिद्धानना श्रुतपदास्थयकी । जर अमुपरी
रहितथिका
अर्थ जजे कन्झई ॥ ७॥नि संतेसिया ऽ मुहरी बुद्धाणं अंतिए सया अवजुत्ताणि अर्थ कहीवा मेलवा नि निरथक शास्त्र व वर्जे असिषामयादेतां न कोप नकरे स्वं कमाने सेन्सेवे आदरे नी जुक्ति सिषे नं बसि
थका
पं पंमित्त विनीत सिरकेद्या निरवापिन वद्यए॥५॥अणुसासिन नक्क पेद्या ॥ खंति सेविय पंमिए । रघु इव्ये बाल सं ते संघाने हा कोई संघाते
माल रघे सपुच्चयचं चंते क्रोधा बघए। आटांमार तथा बासनाव संसंसर्ग परिचय हासने कीमाने च वसीबर्जे दिकने बसे अन्जुगे बोलवोकरे पूर्णे.
केहि ॥ सहसंस गं ॥ हासंकीमंचवद्यए ॥५॥ मायंचंालियं उकासी बझयमाय
For Private and Personal Use Only
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
नत्त. | याच बोखे का सूत्रने अ० सूत्रने अधि नभतिचार सा ध्याएडे एकसो १८ श्रा० कदाचित् चंचक्रोधा जुगेबो- अर . कासे यवली नि भएगीने परे
दिकने बसे अच् सीवोक आसवे कासेगय अहिचित्ता नजे शाइयएग्गः ॥ १॥ श्राहचं चंमा उलियंकट्टा न न सवे गुरु- काकिबारे कर कीपू का इश्म कहे अन अएकीधाने नोच नेथी कीधु ११ मा रपे गधि | वादिक आगसे पण. याने .
या घोमानी परें निन्हिवेद्य कयाइवे॥ कलंकमी इति भासिया ॥ अकर्मनो कमिइतिय॥११॥मागझिय
कप चावषा व वचनने पुच वारं वार का चावषाने द. देषीने .पा प्रमादादिकने सर्वथायर्ने १२ ॥ _ रूप... यांचे . स्सेव कस्सं॥वयामि पुगोपुरो॥कस्संव द
.. जेम_श्रा जातयंत पोमो
माइन्ने पावगंपरिवद्यए॥१२॥ अब गुरुनावचननो अपासांनस थूः मोटा बोसो आसपासनो मि प्रकृति सुहासागुरुनेपणे. सी पूर्वेकह्या नेवाअ- चित्रि नार तहलनो अप करणहार बोराणहार कु० अपिनिनमागसनावनोधएगी. च क्रोधी अतिहेंकरे यिनिन शिष्य नमनने ||५ अपासवा ॥ थूखचयाकुसीसा ॥ मिजुपि चं पकरंती सीसा ॥ चित्ता
For Private and Personal Use Only
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ब
अभिप्रायें चालणहार द० विसंबरहित कारजनो करण फ असन्त्र ले तेवि निन पुराराध क्रोध । शीघ्र हार इत्यादिगुणें करि सहित करे शिष्य निश्चै नगुरु १३ रण्यास पुरकोववेया ॥. पसायए ते ऊं दुरासयपि ॥ १३ ॥ नाव अएबोलाव्यो किंकिंचित्भात्र थोश बोलाव्यो थको को क्रोध असत्य कुकरे क्रोधक्से कोई आसपा थकोन बोले
सकीधोने तमिगमिक्रम केचि पुलोयानाखियंवए ॥ कोई असनं। | धा मनने किए विनयनोकरतव्य ते मुजने मियकारी अात्मा रेच पूर्ण एक एये पकारें अात्मा जे वनिमैं विषे धारे मने अविनयपएं मुमने श्रप्रियकारी.
दमवो भएी धारेघा पियमपिय ॥१५॥ अप्पा चेव एदमेयव्यो अप्पाउं रवधु 5. दमतां अन् आत्मा दन्दमतो स सुषी होश् अन् इहसोकने पर परलोकने व प्रधान मे अनात्माने दंव्दम्याच | दोहियो थाय विषे दिने १५
मझने उट्टमो॥ अप्पा दंतो सुहाहो ॥ अस्सिसोयं ॥ परचय॥१५॥वरं मे अप्पा दंतो ॥
थको
For Private and Personal Use Only
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मार
नुत्तः सं संजमे तपेकरी उपासासजम तपकरी
दादमतो बं बंधनेकरी व वधेकरी पप्रत्यनीक चाप | करि बली पन्ने थको
यसी १६ बैरीपणं संजमेण तवेणय ॥ माहंपरेहि दम्मतो बंधणेहि बहेहिय॥१६॥पमिणियं चबुद्धाणं वा० बचने अन्अयवा कायाए करी आ. फट वा अयवा यद्यपि समुच्चये एक निश्चे कुनकरेकिबारे ७ करी करतव्ये करी
प्रगट
गनो वाया अमूवकम्मुगा ॥ आया वाजवारहस्से ॥ नेवं कुद्याकयाईवि॥१७॥ ना नबेसे गुरुने नेकन वेसेगुरुने एनबेसेगुरुने पुति अविनयपऐनव जुनकरे संघटगुरुनी करी संयाराने विषे बेगेथको ___ बरोबर सामोनिश्चै ।
सधि सेना पोतानी साथसे नपररकने नपूरन नेव किच्चाए पिहने नजुधे जरणाचरं ॥ सयणे मो. गुरुने प्रत्यत्तरकहे एनिने पर वस्वनीपसागचासीगुरुने पद बांहनी पलानीबालीने सं.संजती पार पगने समीप नबेसे. नसे
साफ सांबाकरीने नसे नोपकिरुणे॥१८॥नेएवं पव्हजियंकुचा ॥ परकपिमंच ॥ संजए । पाएपसा
For Private and Personal Use Only
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
उत्त. ๆ
| रिग्
पण
www.kobatirth.org
| याइवि अथवा न बेसीरहे
बा॰ अथवा न नरहे एमगुरूने समीपे पानिकों
१.३
आचार्य
वादि ॥ नचित्रे गुरुणंतिए॥ १९ ॥ प्रायरियहि वाइतो फगुरुमुनुपरे म प देषएाहारमोन्दनी जुo रहे साद करे एहबानो अर्थी
गुब् गुरुनी समीपे
पसाय पेहीनियागवा नववि क. किवारेपण च मूकीने
वा. बोलायोथको तु माबोल्यो 'न नरहे - १
क० किवारे
धको सिणिन्
नक
च्या० गुरु एकवारबोने० वारंवार बो
सावे बसे
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सं० सदाइ २० सावे ते
गुरु संया ॥२०॥ आसवं तेजवं यासने धीर्यवंत जo जनावंत जुन साबधानपणे सांभसे २१ बुडवत
थको
तेवा ॥ ननिसिद्य कयाइ ॥ चना आसा धीरो ॥ जने ० पोताने मासने ग० न नपूबे प्रमादिक. ए० निश्वे नं. से. संथारे क० कि पारेपणा प्रा० गुरुनीसमीपे
For Private and Personal Use Only
जुत्तपति सये ॥ २१ ॥
बेगेनपू.
नोको
पु० पूबाई साग ॥ नद्या ॥ नैवसिवागनुं ॥ कयाइवि ॥ त्र्ागमुकुकुन॑संतो ॥ पुबेद्या
J
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शिष्यने
अरचने
जुत्त पंच बेहाथ जोमीने २२ एएणिपरे वित्त विनयजुक्त - सुरु सूत्रपाउ अरथवली तक सूचना पुत्र पूबता सी शिष्यने अर
पंजसिममो २२ एवं विणयजुत्तस्स सत्तं अखंच तनयं पुढमाएस्ससीसस्स। कान कहेगुरु जजेम साभाल्यो म मृषाने बजै. भिल साधु न न निश्कारणी भाषाने भा भाषाना दो फ त्यने होइ नेम २३ यसी. न बोसे
घने वागरेचं जहारूयं २३ ॥ मुसंपरिहरे भिस्तू ॥ नयनहारिणिवए ॥ भासादोसं परिहो। मात्र मायाने दली व वर्षे सदाई २५ ननबोले पुन बोसो सा सावध नानि नबोले नानप्रयोजनअर्थविना । क्रोधादिकने . व्योयको भाषाने
नबोले म मर्मक्चने अर मायंच वद्यएसया॥२४ान सविधं ॥ पुछो सावधं ॥ ननिरई ॥ नमम्मयं ॥ अपोताने अर्ये अयया परनेअर्थ जज विशुने अथै विनामजोग थोमू सर सोहारप्रमुषनी असुनाघरनेवि सं बेधरनी संधि
पणा अथवा नबोले २५ सालाने विधे ने विधे बसी || प्पागठा परवावा ॥ जनयरसंतरेगया॥२५॥ समरेसु ॥ अगारेस ॥ संधिस||
For Private and Personal Use Only
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
उत्त.
যে
www.kobatirth.org
नो
म० राजपंथ
एक
सी० अ.१
मोटापंथ विषे एकलो साधु एकसी स्त्रीसंघातें
सीमा दिए
कीमत
यं महापए एगो एमबिएसद्धि || नेवचित्रे नसंसवे॥ २६ ॥ जमे बुद्धा पु सायंति ॥ सी
वचने करि फ० कंवावचने करि म माहरा
पतिले सावधान के
अ० गुरुनी
या अथवा लान्सामनेऽर्थे एहबीबुद्धेकरी
सीष
फ सांभले २७ एएा फरुसेवा ॥ ममसालोइति पेहाए ॥ पयत्तं परिसुो ॥ २७ ॥ ऋणु सास साकर्तव्यनी दु० पापकरतव्यनो चोटाला हि० तेसिषामा हितकारी प-प्रज्ञा के द्वेषहोई सा उपाय जे. बसी हार करीमाने धने २०
पंत
एामो जुवायं
डुक्कमस्सयं चोयां ॥ हियंतंमन्नई पन्नो ॥ वेस होई असा
त तेसिषामा होई सू० मूठमविनीतने तहोई मूढाए ॥
न० नबोले २६ ॐ० जे मुनेगुरु
हि० शिष ने हितकारी माने वि० बिसेषेग्योने क० करएापो प्र० गुरुनी सीषामा के द्वेष भय जेही तत्त्वनो जांए शिष्य
एगो २८ हियंविगय नयाबुद्धा ॥ फरुसंपि
कारणी
एफ सासणं ॥ वेसं
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
त.
खं०क्षमा
मननी निर्मलता ए बिक पदा- प्रा० मादीप्रमुख आसननेविषे १० स्थानी करनारी बसी ज्ञानादिकनो पद धानकडे २९५
बेसे
खंनि सोहिकरंयथं ॥ २९५ ॥
स
म० प्रयोजन नृपने नि० न प्रयोजन नि० बेसे हाथपण प्रमुष पण थोरुं जुबे बे
चसी
काले
केवे यासने
हसावताथको
बिना
कुचेष्टा नकरे. ३०
पुनाई ॥ निरुहाई ॥ निसिब पक्कुक्कुए ॥ ३८ ॥ कासेण का. कालवेलाई प० पाबोचले अन्यकासनेजे का क्रियाने अवसरे भणी वर्जी ने
का
परिकम्मे || मकासं विवचित्ता कालेकालं चिनुभो रहे साधू दगृहस्थ दीधा प्रहारने विधे ए क साधूने विषे गवेषीने
क
न चिट्ठेद्या ॥ भिरकू दत्ते एसएांचरे लिइसेवे परि रुवेएा एसित्ता ॥ मियं
० गुरुने उंचेयासनेनदिवसी अ० शब्द प्राथा ते निश्व निर्मल
एफचे कुथरे सन का० गोचरीया नि निकसेन दिकने विषे कासवेवाई) साधु
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
निरकमे भिकू ॥
किया अनुष्टानना स० समाचरे पर जमवोपान बे काने ३१ बीहोई चिहा
समायरे ३१ परिवादिए। का माहारकरखी
मि० मर्यादाई
ने काल
का
ऋ. १
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
म जमे ३२ नार अप्ति हेचेगसो चनो नरहे प्रतिहे नव नुमोरहेनही अनेरा एक रागद्वेष चिः नुनोरहे
ट्रॅकमो नमो नरहे. निक्षा चरादिक फागोचरीफरसता रहिन .. आहारादिकनेऽथी। मरकए ३२ जाईपुरम एासन्ने नन्नसिंचस्कृ फास। एगो विरोध भत्तवा॥सं जुनुसंघीने ते भिक्षाचरादिकने नाव दातारथी अतिनंचे थानके नानीचयानके भो रहीनेनार अथवादातारने अनि ||
अब आघोप्रवेशनकरे. ३३ . एनिमें ढूंकमांअनियेगझोरहीनेसनोनिज्ञानसिप तोकेमसिए घिन तातनकम्मे॥३३॥ नाइजचे एव नीएवा ॥ नासन्नेनाईदुरले फा मासुफ पपरनेकानें कीचोहोई आहार तेने ग्रहे संघ संजती ३५ नोहे पापबेडियादिक पापा अब नोहे बीज तिहा अचित्त फारूयं पर्कपि।पनि गाहिय, संजए॥३॥ अप पाएं, अप्पबीयंमि।। पर नुपरे ढांच्या होइ संचोकफेर टाक्यो सपोताना मनसरयो मलबेजे साधूनी ते जरजबार्यन आहारने अपानापतो सुध रुमोकी
.. होए एवा थान्कने विपे साफसहित संजतीसाफ जमे थको घिीधान्यादिक सुपके नलोपाको || ११ पमिबन्नंमि ॥ संवुमे ॥ समयंसंजए मुंगे। जयंअप्परिसामिय॥३५॥ सुकमि
For Private and Personal Use Only
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
त. इ० इमक
१२
इ
बि० नसो बेद्यो सनेह फ० नसो हरयो गो कीधी माथी आत्मा म ० से मुन पंकित मर- अ.१ एणे फ० नसे निपजान्यो संवरयोग सुरु भलो मनोगत ने साधुनो वेष जेनो तिरूपकित्ता ॥ सुबिन्ने सुहमेमने ॥ क० नली कीधी ए भोजन शाकादिक फ० नसीहस्थी एजमाने विषेशासा० सावद्य क सब भलो एहनो धनहस्यो इ० इमनकहे फ० समोपच्यो एघृतादिक घेवर भाषा बर्जेसाधु ३० इमनकहे सु० रुमो बेद्यो एपत्रशाकादिक क० जसे मूल घीसाकादिकनेविषे सनिहिए सुजद्वेति ॥ साव असानीपना मोदकादिक ॥
क. नसीमनोझ कन्या इत्यादिक प्रकारनी.
www.kobatirth.org
३६
वद्यए मुणी ॥ ३६ ॥ बा. विनितने सन गुरु सिषामा
देता का बासं ॥ समई
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२० रतिपामे गुरु पं० विनितशिष्य सा० सिषामा ह० नदजातनाघोमाने व व लावतो असवार रतिपामे सास रमए पंकिए काह वहए ॥ सा० सर्व पाने गव गलियाघोकाने जेंम पेलावतां खुटाकरमारे च चपेटादे असवार बेद पामे ३१ मुऊने बे सुने || १२ खुकुयामे चामे ॥
द
सासंतो ॥ गतियस्सववाहए॥३७॥
For Private and Personal Use Only
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नव-||अगासदेचे कधक मे. क. कल्याए असीधामा देता- पापापष्टि अ.अविनीत पु पुश्मी पार भाइ भान्नातनी||अर
. रेगे मुझने कारणी . का ... इश्मकरीमाने , नीपरे परेगुक्त अ-|| अकोसाय वहाय मे कलापमफसासंतो पावदिष्टित्तिमन्नई॥३८॥ पुत्तोमे नाइ नाइति. ऊने हिन साक्ने चिनिन शिष्यहोई पाक अधिनितहोए अपोताना अात्माने सिरयामण देतांयकां | करे ये का सिषामएने कल्याणकारीमाने ने पुनः . दासपणाने इमकरीने ३९०
... साझकल्याणमन्नई पावदिचिने अप्पारणं सासंदासित्तिमन्नई॥३९॥ नानकोपये आo आचार्यने अमात्मानेपणा न. नकोपर्व कु गुरुना घातनो न होई नहोइ तो. गुरुना बिड्नो ग० गवेष
करणहार
पहार॥४॥ नकोषए, आप्रियं अप्पाणंपिं: नकोवए बुधोवपाश्यं नसिया नसिया तोनगवेसए॥४॥ आ प्राचार्यनै कु० कोप्यंजाएगीने प० प्रतितकारी प. प्रसन्न विक जेमअनिने पंव बेहाय जोगीने व घोसे नहि पु० वषी अविनय
कलं एहश्मक पदपूर्ण ॥ १३ आयरियं कुविधेनचा पनिएणं पसायए विशविन पंजधिनमो वएधन पुणोत्तिय ४१
For Private and Personal Use Only
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नुतः|| धन्दशविध न सुपराज्योप बुठ तत्त्वनोजाएाते सब स- तक तेशुद्ध व्यवहार ग हीसाने नाउ नपामे ॥५२॥ ममनो-अ१ | धर्मकरी . दपूरएा व्यवहार व्यवहारने अादस्यो दाए आचरतीयको
गतनाधम्मनियंचववहारं।बुद्धे आयरियं सया॥तमायरंतोवहारं गहरं नानिगराइ॥५२॥ मगो बने य वचन बोषा जाजा श्राच् श्राचा उनकारथी तंब्ने अनिमा क काया उनिफ्नावे ५३ ___ये जाएयाअभिमा एपीने ... ने कायगतनावने यनेतहनकरीने एंकरि
गयं वक्तगयं ॥ जात्तिायरियस्सन ॥ तैपरिगिनवायाए ॥ कम्मुणा ययायए ॥४३॥ |विक पि 'अकअपामेत्यो जो चिंतित रिचव शीघ्र होइ सुन्गुरु ए रूकीपरें जा जेमगुरूएजे कार्य करोडे नेते सु प.गुरुकहे एम नितशिष्य कार्य करे सदाए
सिषवने थके तिमहिज करे एते कार्य रूको कीयो वित्ते अचोइएनिच्चे ॥ खिप्पंहवई सचोइन ॥ जहोवश्वं सकयं ॥ 'किं किंचित उपजता स सदाए एवा विन- नच जाएगीने मे बुद्धिवं. खो खो कि कीर्ति ते विनित होई किन किंचितन कार्य करे या गुण नियवंत होइ त कनेविषे गुरुना अनुष्ठाननो पजतां कार्य करे. किं चइ कुच्चइसया ॥४॥ नच्चानमइ मेहावी॥सोए कित्ती सेजायइ ॥ हवइकिच्चाएं
For Private and Personal Use Only
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
उत्तः || स०आ भु पापीने जक जेम आधारभूत पुछ गुरुजेचीनितने पर प्रसन्न संच गुरुतत्त्वना जाएगले पु० पूर्व सेवाकरि ||अ.१ धारभूत प्रथवी
परिचय मूकाव्यावे. सरणं ॥ भुयाएवं जगइजहा ॥५५॥ पुषाजस्स पसीयंति॥संबुद्धा पुब्बसंथुया ॥ पाएवागुरु सात लाभपमामे चित्र विपुल अच् मोक्षादिकरुषपांमयानो अर्यहेतु पुपूज- सन्शास्त्रजेना एवो सु अनिहेटाख्यो प्रसन्नययथिका दिए पो दे जेहने विधेएवो जैतेविनि नीकडे होश्यसीकेवो होइ. बे संदेहजेणें पसन्ना साभेस्संति॥ विनसं अञ्चयसुयं ॥५६॥ तशिष्यसपुधं सन्चे सुविगिसंसए। .म. गुरु नामनी चिंच तेमप्रवर्ने वस्ती फ० क सं संपदा सक्षमी जेहने त तपदस संक संध्या ने आश्रव जे जेमरुचि होई. नेहज साधुनीकर विधसमाध तेणेकरी मगोरुई चिवई कम्म संपया ॥ नवो समायारिं समाहिसंबने ॥ म मोटी लपलब्धिरूप पं पांचमहा पाऊ पाखीने ५ सच्तेचि दे॰ ज्योतषिचे मानिकदेव पू-पूज्यावे चक्रव. चा डांगीने शरीर ज्योतिकांतीजेनेविष व्रतने विषे.
गंगंधर्वादिकच्यंतर.
दिक मनुष्य महधुई। पंचपवयाई पाखिया ॥४॥ स देव गंधवमफस्सपूइए ॥ चइतुदेहं
तव्ये
एवादिानत.
For Private and Personal Use Only
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ.२
मन- म० मानुरु- फ चापy चीर्यवे पूर्वकाराजे सिसिद्ध हरू होइ अथवा दे देवता होइ अन्थोमारह्या बे मन्मोटी ऋदिना . | धिर एनसेनेहयीनुपनूएवा देनें गंगीने पूर्णे
कर्म जेनेएवा धपी होइ इ इमऊं मस पकपुश्वियं ॥सिद्धेवाहवईसासए देवेवा अप्परएमहिहिए इतिबेमि कऊं ॥४८॥ इएविनयसमाधि प्रयम अध्ययन संपूर्ण थयु॥१॥ हवे बीजू सु० सां मेर आद हे आनुषावन क _ विनयचन सहेपमे ते माटे परिसह अध्ययन प्रारंभेडे..
नष्यो मे ते भगवं | ॥॥ इति विणयसमाहिपमं अक्षयएं सम्मतं ॥१॥ सयं मे आनसंतेथून नेज्ञानवंते ए एमकह्यो. इए बार बावीस परिसह सच तपसि ज्ञानवंतें मक महावीरे काच कासवगोत्री
जिनसासनने विधे गवयाएवमस्कायं इहवस बावीसंपरिसहा ।। समोणं नगवया महावीरेएं कासवेष फप्रकण्यकिया अपजे निसोधु सोच गुरूनीसमीपे ना जाएीन परिचत करीने अच परिसह नि गोचरीने विषे. प. मवर्ततोयको ___जाएी कोई सानसीने अभ्यासकरीने जीतीने पवेश्या । जे भिरकू सोच्चा नच्चा जिच्चा ॥ अभिनूयभिरकायरियाए। परिचयंतो
For Private and Personal Use Only
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मुना अ.अणखान्यानो परिसह १५ रोख रोगनो परिसह १६ तणनाफरसनो परिसह १५
जक मेसनो परिसह १८ समर
अलानपरिसहे॥१५॥ रोगपरिसहे॥१६॥ नएाफासपरिसहे॥१७॥ जलपरिसहे ॥१८॥ स सत्कार सन्माननो परिसह १९० ५० प्रज्ञा नुत्कर्षनी परिसह २० अ अजाएपएानो परिसह २१ दं समकिनधी मोक्षेनेदंस
एनेनी परिसह २२ कारपुरकारपरिसहे॥१९॥पन्नापरिसहे॥२०॥अन्नाएपरिसहे॥२१॥ दंसपपरिसरा२२॥ पए २२ परि के जूदी जूदी का काश्यव
तंत्र ने विचारणा कुँ तुमने आ. अनुक्रमें स. सहनी विचारणा गोत्री महावीरे परूपी
कहीस... सांभस एक परिसहाणं पविनत्ति कासवेणं पवेइया ॥ तंभेजदाहरिस्सामि ॥ आएपुचिस कहेतां १ दिन भूषव्यायेने दे सरीरने तनपसी नि साधु था सैजमने न नदे न०पचेनहि अनादिक
विषेबलवंत नरेदावे ने पोते, ऐहमे ॥१॥ दिगंगपरिगएदेहे तवस्सि भिस्कू थामवं नदिं नबिंदावए ॥||
For Private and Personal Use Only
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उक्त
काषाए
| न पचावेनही परभ्याहे. २ का कामनी फ देग सत्तेहनोमध्य नाग तेयो अगर नेसरीरनो अंगवे जेहनापां || अ-२ नपए नपयावए ॥२॥ कासी जाग पड़ग संकासे पातलो. किसेधम्मपिसंतए । तलाअथवा काकाकजंघा वनस्पतिनी गांर असं सरपा बचएगप्रमुष जेहना कि सरीरेडर्बसाधनसाजलेंकरि संव्याप्त के मान मर्यादानो जाएामन्मन जेनो एवोयको प्रवर्ने ३ हवे तृपानो परिसह कहेजे.अ. आहारपापीनोनयीदीनान तिगरपगफर मायन्ने असएपाएस्स ॥ अदीएमएसोचरे ॥३॥ तने पुरोपिवासाए दो अपाचारनी पुगंबनो करपहार संच संजती सीन्सचित्तपाएगीने सेवे नहि
च प्रवर्ने । बिक बेदागो दोगुबीसधं संजमनीसाजधरनो संजए। सीनंदगंनसेविद्या ॥ वियमंसेसएंचरे॥४॥ बिन्ना बें आलोकना आवागमनने पं.पंयनेविषे आ. अत्यंत आकुसव्याकुल शरीर थाएजेनो पि अतिहे दृषात खाएक जिला एवा पंथेस आनुरेसप्पिवासिए. . पर अतिसुकाएगो तं तृषाने सहे परिसडने ५ ढवे सीतनो परिसहकडेच ग्राम यादकाना भारत
माथीनिवार्ने खुपोशरीवेजे मुष जेहनो
दिकने विषे प्रवर्तता साफने 'नो एवा साधन. परिसकमुद्दादीणे॥ तंनिस्के परिसहं ॥५॥ चरति विरयंह
For Private and Personal Use Only
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तत्त | अतेने घरे संग संकाएवीतो ननजाएति नु० जुठीने अ. अनेराअकट्यनीक तुम्हये सिद्यानोपरिसह कहेनुनची अ.२ २५ सहे थको हांथी
आसनप्रते २१ प्रधानताढतापनीचारण एपीनीचीतापवा 'लिभारए संकालिई नगबेधा ॥ नवित्ता अन्नमासणं ॥२१॥ नचावयाहिसेद्याहिएएपिषे ज्या थानकेंकरितन्तप ना सजायादिकनी मरजा पा पापडष्टि विमरजादानुसंघे २२ परस्त्रियादिकरहित सि साफ था संजमनेविघे बसवंत दानुसंघे नहि. प्रमादी
उपाश्रयने पामी तयास्स लिस्कूथामवं ॥ नानीवेसंविहन्नेया॥ पावदिछि विहन्नई॥२२॥ परिक्रुवस्स ने कर सोल अ. अपवा असो कि कित्यु एक एफएसषष एकएभनिहां विषम असुषषअहिया अव
नीक लनीक मुजनेस करसे थानकनेविषे , से सहे २३ हवेअ यंसह ॥ कलाएं अडूपावर्ग किमेगराइंकरिस्सइ एवं तवं 'हियासहे ॥२३॥ क्रोसपरिसंहकहेडेअब आक्रोस के तेगृहस्बादिकाते ससरपो होई बोब्बास मुरप तक्तमाटेसाघु ना क्रोपन करे २५ | वचनेकरि गृहस्वादिक साधूने . पनकरेक्रोध कोसेद्यपरोलिरक्॥ नतेसिं पइसंजखे। सरिसोहोई बासाएं ॥ तम्हालिरकूनसंजखे॥२३
||२५
For Private and Personal Use Only
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२६
कांटासरा
रलाषा
रौड
नृत्त. सो० सां ए० प्रकारे फ० को दा०त्र्याकरो गा० इंडियना समूहने तु० अएएबोस्यो को कगेर न० ते बोसाहारप्रतेद्वेष . २. लखीने लोषाने जेषामाह नगो नकरे हवे तेवी परिसह फरुसालासा ॥ दारुणां गामकंटगा ॥ तुसिणीनुनुहिया नतानमासीकरे. | कहेले. २५ ह० हएपोधको कोपन करे 'मन्सनेपण द्वेष न करे. तंति कुमाने नत्कष्टी लिन्साधुना धर्मने विच विशेषे चिंतये।।
सोच्चा
साध
जाएगी
२६
॥
| तंतिरकं परमंनचा लिरकू धम्मं विचितए ॥ ६ ननयी जी० जीवनो विनास एक एमएऐगी परें विचरे ॥ संसाधु
॥ २५ ॥ हन्नसंजसेलिस्कू मांपिनपर्नुस सं तपस्वी संजतीदन्दम इन्हौ को कोइका तेंडीएवा साधूने नार्य किहांक ॥ समां संजय दतं ॥ होद्या कोईकन
| अ० अणगारने लिसा
हवेजाच वानी परिसह कहे इन्दोहेसोनि लो० व्यामंत्रण सदा डुकरं खकनोनिच्च गारस्स लिकूपो
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नबि जीवस्सनासोति ॥ एवंपेहेासंजए ॥ २७ ॥
नन्नथीके
अाजाच्यु २८
सन्सर्वकल्पनीक धूने बस्तु ते साधुने जाजाची होए
सबसे जाइहोई || नचिकिंचि जाइयं २०
For Private and Personal Use Only
२६
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नुत्त लोगोचरीने प प्रवेशकरता पाठ हाथ नो रूर्षेसांबान थाए से श्रेयललो अन् गृहस्वावासएका श्मसाधु नन्नचिंतये २९ | |अ.२ २७ विषे साधुने
सजाएं करि मुजने लगी | गोयरग पविग्रस्त । पाणि नोसप्पसारए । सेन अगारवासोत्ति।इइलिस्कू नचिंतए॥ हवे पनरमा असालनो परिसह प गृहरूलना लो लोगन नीपने उने जसाचे अाहारे अन् अथवा नअन्तपे नहि परनेविषे श्राहारने गयेषे
साधे जीवनेहरषविषचा २९॥ परेसघासमेसेद्या॥ लोय परिनिदिए । सइपिसे अखड़ेवा । नाकतोद्यप दनकरे पंमित ३० अाज एक कदाचितम नयी पाम्यो असंलावनाए अाहारनो साल जोजोसाधु फासोचीदीन अब
कागखे कासेसई एणीपरें मनरहित . सात्मनो | मिए॥३०॥ अये वाहंनसलामि ॥अविसालोसएसिया। जोएवं पमिसंचिरके असा परिसह नेसाधूनेन पीछे ॥३१॥ हवे सोलमो नदजाएीनेनुपनो रोगा वेदनाएफरिङधे पीमयोधको अदीनपणारहिन था. पापेश्रा परिसहके.
माने लोतनतद्यए ॥३१॥ नचानुप्पइयंडुस्कं ।। वेयपाए हेचिए । अदीपो थावए
दिक
For Private and Personal Use Only
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नुतः |पर प्रज्ञा पुरोगे फरसोयको तिहां प्रज्ञानेविषे प्रात्मा थापे तेतेपनिगएफ करावयो न अकरावे किहांथीस समाधिसहितरहे एकएपीअर
ने विषे ते अ. अहियासे षमे सहे ३२ . अनुमोदे नहि नोकरे अन् आत्मानोगवेषक विध पन्नं पुंहोतबहियासए ॥ ३२॥ तेगिबं नालिनंदिया ॥ सचिरके तगवेसए एयं जेलएगी न० ते साधुने चारित्र जं जेपनि गएफवै नपरगृहरख पाहे नकरावे हवे त्रएफासनोपरिसह सतरमोअ अल्पवस्त्रना संन्संज
पासतांसोहेलो दनकरे पोतें . ३३ घणीने तवानग्नसापूने घुघवरतीने लीने खु तस्ससामन्नं जनकुया नकारवे ॥३३॥ अचेखगस्सकहस्स . संज तन्तपस्वीने तन्तपाने विपे स. सतासा होव्होइ आव शरीरनी विराधना ३४ अाच तावमने निरूपवेकरि
धुने यस्स तवस्सिपो तोससयमाएगस्स होयागायाविराहणा ॥३४॥ आयवसनिवाएणं| ऋ. घरीहोर केपीमा एक एपीपरेंजाएगीने न लोगवेनहि तवस्त्रनी मरजादायी अधिक तथा अकल्पनिकजंजे ना
नृपों करी त० पीम्यापिका साधूने ३५ हवे१८ मोमहसपरि २८ अनुसाहवई वेयणा ॥ एवं नचा नसेवंति तं तुजतपतधिया ॥३५॥सहकहेढे.
For Private and Personal Use Only
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तः || कि व्याप्यु गाब्सरी मेमरजादासा पं सरीरने क अथवा परसेवेरजसा धिं नुनासाने सरदऋतुने सान्साता नोन्नयांबे ३५ अर २०|| मेखेकरि रत्तोहेपणा धु मेसेकरि गीतेणेकरीसमुचे
तापेकरि सुषजकरि किसन गाय मेहावी पंकेए वरएगवा घिसवापरितावेणं सायं नोपरिदेवए ॥३६ ये बेसहे निष्कर्मनि पे० बांउतो आ आर्य धर्म चारित्रधर्मने प्रधानजागीने जालनि सन्सरीर लेख विनासहोएएतसेजावजीवसुपी एम जरा थको
हां सगें नो
मेने कायाएं राषेहवेसत् वेएध निधरा पेही आयरियं धम्म मफत्तरं॥ जाव सरीर लेनत्ति जसकाएगधारए कार पुरस्कारनो वमो अन् नमस्कारनो अन्नवीनुत्नोथायो सा राजा कुकरे निच्आमंत्रण जेजेकोइस्चमतिअथवापरमति अलिवान परिसह कहेले करदो
दिक आहारादिकनो दादिक फअंगीकार करेले तेन्तेअगीका ॥३७॥ अलिवायएमझनाएगासामी कुधा निमंतणं ॥ जेताइं पमिसेवंति नतेसिपी रकरणहारने न०पी० प्रशंसेनहिं जे धन्यए साधु केहेवा अ० पातसाकपायजेने एक गवेषएाहार अन्असोसपी रच रसा | मानसन्मान पामेळे साधु होएते प्रशंसेनहि अअस्पढेवांगजेने अच् अज्ञात कुक्षेत्राद्वारनी दिकनेविषेगृहनहोएएवासाघुहोएते २५ हएमएी ३८॥
अएकसाइ अप्पिः अन्नाएसीअखोलुएारसेसुनाएगिने||
For Private and Personal Use Only
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
कुत्त
३०
ना० तपेनहि सत्कारादिक दीपे दीपेवते.
द्या ॥ नातप्पे पोलकर्तव्येकरी - फुं नरमनुष्यज्ञानने सन्मुषको जा एकमे
पाहुंनालि जाणामि ॥ | क० कर्मज्ञान फस जे जेहनी एहवा की धानिएका रा याबाधकास पहिला ते टासीनुद्यमकरो
प्रज्ञावंत ३९५
पन्नवं
www.kobatirth.org
हवे प्रज्ञा परिसह कहेजे हवे तथा जे साधु एम जाएंगे से० नौमें पु०पूर्वलवनेविषे
कर्तव्य विनयादिना ग्यान पामीएए ०२ हो फन्फज बे जेनो एवा कर्तव्य जेन्जेकम्मानाएं फलकमा जे
॥ ३९५ ॥ सेनांए पुं फुप्रमादिक पूर्वाधको के० कोइक पवने पूबाहार के को इकथानकने
अथवाहवे एतनाथकी
चिषेएम जाएी प्रज्ञावंतगर्वन करे बसी एम जाती गर्व नकरे ने कंडे ४० पबेनुदयने कर्में नदयावे
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पुच्चोकेाड़ कनडुइ ॥ ६५ ॥
asar
करमानांणफलाकमा
एक एहवा आत्माने साता गर्वमकरी जाने कर्मनीनुपराजनकीघा कर्मफल निοनिर्धक थै ताइरानृपराज्याकर्म ज्ञान एम पन्ना परिसह ६१ मोहने ॥ ४१ ॥ निरवग मोलमोनोहेतु पा वो धर्म वास्तु स्वरूप पदार्थ जेवीचे स्यापा पावर्गकर्म नरकादिकनो कारएाउल ३०
एवमस्सासि
प्रप्पाणं नच्चाकम्प विवागयं जेन्ली हो सान्दानू मगर नजापो जेधर्मक
प्र लाये एडवाचारिन मे० मिथुन धकी निययों एनसे विषयसुख विनिर्धक चली फोकट बांया सुषमादरीने
निविश्तु मेकुपान सुसंक्को को सरकंनालिजाएगामि तव धम्मं कल्यांण पावगं ४२
२
For Private and Personal Use Only
स
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नुत्ता तन्तपत्नइमहालडादिकने तपनुपनानिया प० प्रतिमा १२ साधूनी मास आदि एक ऐक्रयायें यमुटानेप. बन्ददमन ज्ञाननी श्रावरए रायताएअर ३. || नसिद्धांतसंबंधीयाविषने आदरीने दर परिवर्जी आदर करीने तिचे विचरे जेमुजने ह वो ध्याएनदि ।।४।।
तवोवहाणमादाय पमिमं परिवधन एवं पिपिहर मे उजमननिय टेई ५३ ।। एग नथीशियपरलोकल सब्धि २८ रूप दिपण नप अ अथिया मुंपवास सोचप्रभुष एड्वोलि सायु पू र्देजिन तीर्थकर | चांतरनी वांगा .. सीने नयी वांटा कप्टेंकरिशचेतस्यो लोगी नाचित ४४ पश्चिनांपरेसोए इद्विवावितवस्सिएगो अछुवा वंचिलमित्ति शलिस्कृनचिंतए ॥४॥ अनि महाविदेनीअपेक्षाए अन्अथवा नियनिनतीर्थकर मुम्भषाभूगे गीतारण एवीसाधु विनयै नहिं ५५ पूर्वेकह्याने २२ परिसहा
हसे . एवो कामतायिका एगा अविकिपा अवा वित्तविस्सई।मुसंतेएवमाहंसुइइनिरकूनचितए ॥४५॥ एएपरिसहासवे का-काश्यपगोत्रजेनोएहवोमहावीर फरस्यो पीमयो किएो २२माहिले और देशकासेविषेगो जुइयोएनसेपरिसहअध्ययननोअर्यसबसपीकया
तिपणे प्रवेद्यो प्रकाश्यो चरीप्रभुपें एहवो सुधा स्वामी जंबूमते कह परिसहसहेवाकमानेसार जीचोरंगीजीवनेऽस्मिपामयोनेकह।६३९ कासवेएंपवेश्याले निरकू नविहनिया
पुचोके इकनाइतिबेमि ॥१६॥ आषाद लूलिआचार्ये पहिलो दर्शनपरिसहनसहियोतिमनकरवो पोजिमपरिसह सह्योतिमबीजे सड़िया २२ गरिमह.
For Private and Personal Use Only
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संसार मा० मनुष्यपतं सु० सिद्धांत ०३ नुसालसवं शुद्धसद्दह्णा
नुक्त. ३० इति परिसहअध्ययां संपूर्ण ॥ २ ॥ च चार पन्नुत्कृष्टा
पु० पामतादोहिजो इ० मानं जीवने
३२
गमुक्ति पामवानां
इतिपरिसहायगं ॥ २ ॥ चत्तारि परमंगाणि
दुस्सहाणीह जंतु
॥ माएस्सत्तइस
संकारें
जानजातिविषे
सं० संयमने विषेयच्वी बी बलपराक्रमनुं सन्याम्या ए० सं० संसारनेविषे नाव नानामकारना गो० गोत्रने विषे कन्कर्मी फोरवनुं । 119 11 डा संजमंमि यावीरियं ॥ १ ॥ समावन्नाा संसारे || नाएगागोत्तासजाइस ॥ कुम्मा ना० नाना प्रकारना क० करीने पु० जूदे जूदे लवेंकरि ल० लखोजी सर्वे ॥ २ ॥ एक एकदा प्रस्ताबें दे० देव संपूर्ण लोक नृपजवेकरि सोकने विषे
न नरकने विषेप
लयापया ॥ २ ॥ एगयादेवखोंएस ॥ या जहवां कर्म करे गजीब जाय एवं एकदा खन् क्षत्रिय तेचे कर्मों क
For Private and Personal Use Only
ए
नरए रूवि होय तं ते
नाविहा कट्ट ॥ पुढो विस्सं एक एकदा एक एकदा मस्तीने मार कुमार संबंध कायने विषे
स्तावे
प्रस्तावे
वारी ३२
एगया । एगया प्रास्करं कायं हाकम्मे हि गनई ॥ ३ ॥ एगया वत्तिनुं होई ॥ तन
"
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नुत्त|| चंचमाष बुजूदीजूदीमा ते वारपनी कीमापनंगीया ।। त० नेवारपनी पि० कीमी होय ॥ ७॥ ए०एम आठ परित्नमाकरे || अ-३ ३३|| होय बापनीजातिथी ।
कुंथु
जो योनीनेवि चंमाल बुक्कसोल कीमपयंगोय ॥ तळेकुंयु पिपीलिया ॥४॥ एवं मावजोगीत पान्जीव क कर्मने कि मसेक नक निवर्तेनहि संसंसारने स सर्वअर्थनेविषेजेमरख कात्रिय क कर्मनैबुदयें| रीने विषे
राजा तृप्तिनपा,५ करि पाणिगो कम्मकिञ्चिसा ॥ ननिधिकंति संसारे ॥ सबवेसुव खत्तिया ॥५॥ कम्मसंगेहि सं मूर्य उ.कुरपी बघणी वेदना अमनुष्यनीयोनिविना नरकादि वि पिशेर्षे हणायचे पाल जीव ५ होय . थाय पामे
योनीनेविषे पीमापामे संमूढा । फुस्किया बयणा ॥ अमाएफसासजोएगीसु ॥ विणिहम्मति पाणिगो ॥६॥ का अंशुलकर्मनेतु अर्थदीपाववाने आ पहनाअपगभनटाखवेकरिक जीवएमननिश्चे
अर्थे अनेकत्लवपरित्यमणकरेतेअनुक्रमें सो विशुष्कर्मने कम्माएं तु पहागाए ॥ आएफपुच्ची कयाईने । जीवा सोही मफपत्ता ॥ आययंति
पाअंगीकारकरे
For Private and Personal Use Only
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नल मा मनुष्यपए मा मनुष्यसंबंधी शरीर सपामीने सुरसा ध धर्मनो उर्बल जेजे सोक्सां प० अंगीकार ||
लसवो
ध र्मी लसीने करे. माएफस्सयं ॥३॥ माणुस्सं विग्गहं सधु ॥सुइ धम्मस्स दुनहा ॥जं सोचा पनिवऊंति न बारप्रकारना तपने खं समाने भात कदाच सच सांत्नसधूस पा सन् शुद्द पपरम दुर्लन सोसांत्न ने मोक्ष मार्गने' अदयाने
मीने सहद्दपा
लीने तवं स्वति महिंसयं ॥७॥ग्राहंच्च सवणं सह ॥सद्धापरमडुलहा ।। सोचा नेयाजुयंमन्ग बघपा जमाती प्रभुषने बसी सु० सूत्रधर्मसांलतीने तोपएसंयमनेविषे बन्धा रो रोचनायिकापणा नोप पत्नष्ट थायने
श्रद्धापरापर वीर्य फोरवई उर्सल . बहले परित्नस्सई॥॥ सइच सडसइंच ॥वीरियंपुग इनहं ।। बहवे रोयमाएाविनोय निवर्जेनहि अंगीकारमा मनुष्यपएामाँ पाठ आव्योपको जो ध धर्मनै सोक्ता ससर्दहै तन्तपसीसंयमनेविषे नद्या करेनहीं १०
जेजीव लले
पामीने एवं परिवाए॥१०॥माएफसत्तमि पाया॥जो धम्मं सोञ्च सद्दहे।तबस्सी बीरियंसह
३४
For Private and Personal Use Only
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मु
संन्याश्रवनोरुधनार निकटासे सो कषायादिकरहित निर्मत स्रस ६० जिन लाषित धर्म सः मिथ्या निनिश्लप फलका अ-३ ... कर्म रजने ११ . एवा लूल्जीवने वादेक दीरहित चि० रहेठे पो सोमे संयुमे निडुपोरयं ॥११॥ सोही नऊय लूयस्स॥ धम्मो सुस्स पिवई। निबाएं परम
चपत सिंगोजेमअग्नि स्वस्उपएं पाभे पिच्दासोने कर्मना हेतु जे मिथ्या १० संयमने विनयने पुष्टकरे खंड पाठ पृथ्वीन ओलायनहींतेमधर्मवंतजीव निरात्तिपफ पामे, ओलायनही १२ . वादिक तेने
कमादिके करी काचुं जाई। घयं सित्तेव पावए॥१२॥ विगिंच कम्मुगोहेन । जससंचिएकरनिए ॥ पाटवं लाजनन सरिरघुसन्औ नग्चो जाइपहोंचे दिदिशीने विच्अनेकप्रकारमा सीव्रतादिक शुद्ध जन्देवता होयनु प्रधान माहे म. दारिक शरीर बांमीने
विष १३ क्रियाएकरी
प्रधान सरीर हिच्चा॥ नई पक्वमई दिसं ॥१३॥ विसायसेहिं सीहि ॥ जरका उत्तरजतरा ॥म अत्यंतरज्ज्वस चंडमासूर्यनी मन्मानतथिका अवतीअपाचचवो बांडता अढोमांडे पम्चांडे का काममो कान्जेवाचिन वे क्रिय परेंदि तेजेंकरी दीप्ता
नयी १४ देवताना गाहे रूपना करनार ५ हासकाव दिप्पंता ॥मन्त्रंता अपुराच्चयं ॥१४॥ अप्णिधादेव काम्माएं । काम रूवाविधि
For Private and Personal Use Only
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahalin Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नुत्ता
न मुंबादेवसोकने चि० रहे पु. असंख्यातापूर्वक्षगे
तन् तेविमाननेविर्ष जथास्थानकें
जल्देवताना ||अ-३
एा ॥ नटूंकप्पेस चिवति ॥पुचावाससया बङ्ग ॥१५॥ तत्वनिच्चा जहागणं ॥ जह्म आनुवानो कर्य चुप च नन्नुपजे मान मनुष्यनी जी० योनी सेन्तेपुएयवंतजीप दस अंग जेने एबा खिन्नुपानी कठाके हि.सु धयेयके वीने
प्रतें
होय १५ भूमिका साधर वर्णादिक आनुरूए चुया निवेति माणसं जोणि ॥सेदसंगेनिजायइ ॥ १६॥ वित्तंवव हिरणं धनच पर पशु दार चाकर पोन्पुरुषए च० चार का काम खं बंध समूह तक तिहां से तेनु नपजे १५ मि मित्रवान होय वसी जिहां होय
ना ज्ञातिवान् । च। पसयो दास पोरुसं ॥चत्तारि कामरबंधाणि ।। तब सेनववई ॥ १७ ॥ मित्तवं ना होय न जुंचगोत्रनो होय ब शरीरना अच् रोगरहित म०महाप्रज्ञावंत अपिनीनहोय जन् यशोवंत होयबद लोग्लोग रूमावर्णवासोहोय होय
बसवंत होय १८ वीने यवंहोई॥ नच्चागोएय वसवं ॥ अप्पायंके महापन्ने॥अलिजाए जसो बसे॥१८ ॥लोच्चा
३६
For Private and Personal Use Only
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|| मान्मनुष्यना लोगने अ. अनुपम अ० पूराभानुरखा पुत्र पूर्वत्मयने निदानरहित निर्मल शोत्मनिका केनिः केवलकलंकर अ४
भोगने . सुधी विधे धर्म पाल्यो ? अबो जीव हित जिनधर्मनाप्रति | माणुस्सए लोए॥ अप्पभिरूचे अहानयं ॥ पुत्वं विसुद्ध सहम्मे ॥ केवलं रूप बो बोध बीरपामीने ॥ १९॥ चयूर्वोक्त चार अंग पामचा संच संयमनेपपरिचर्जी अंगीका त० तकरी धु० टालंक
.लल जापान दुर्लन जाएीने
... रकरी रकरी
मरजने। बोहि बुझिया ॥१९॥ चतुरंगं असहं नच्चा ॥ संजमं परिवलिया ॥ तवसाधुयकम्म सेन्ने सिसिद्ध होय शाश्वतो
इ.इनि चतुरंगिया नामक त्रीजें अध्ययन संपूर्ण ॥३॥ अन्तुदीने . ..३० एम कुँ कऊंडं ॥२०॥
साधीन से ॥ सिडें हवई सासए तिबेमि॥ २० ॥ इति चतुरंगियतयां संमन्तं ॥ ॥ असंख ___जी० आनुघाने मा० मकर जजरावंत पुरुषनें ऊनि नानधी एएम ज न्हेजन पन्प्रमादी किंध्यत्मवि है प्रमाद त्रापासरा जाए।
चारगाविशेषे||३७ यं जीवियमापमायए जरोवणियस्स नचिताएं ॥ एवं वियागाहिजऐ पमन्ते किन्नुवि
For Private and Personal Use Only
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३८
हिं हिंसानाकर अ. अजिनेंद्री __जे जे पापकर्मे करि ध धनने म मनुष्य सा मेलेले अ-अमृतनी अ.! हार
ग कहने ग्रएाकरे ॥१॥ हिंसा अजयागहिति ॥१॥ जे पावकम्मेहि धणंमफस्सा ॥ समाययंतो अमयंग ग्रहीने रा पर जामीने ते पा० संसाररूपपासने ये बेरे बंधापाथिका नमनुष्यनरकनेविषे नपजे ॥२॥ ते चोर जेमसंच पात्रनामुषने
विषे वितरदाथिकामनुष्य हाय पहायते पासपयविएनरे वेाएकबछा नरयंजवेति ॥ २॥ तेणेजहासंधिमुहेग
स. पोतानेक कि पीमा पा० पापनोकरणहार ए एम पेपरलोकनेविषेवसि काकीधा कर्मनी मो- मूका मकार
जीव आलोकने विषे . हिए ॥ सकम्मुणा किच्चइ.पावकारि ॥ एवंपयापेञ्चश्हचलोए कमाएकम्मापन मोस्क ववाविना मूकावो सं संसार पामीने प० परने अर्थ. साद साधारण जे वली का करे कर्मने क. कर्मनै करी तेच तेक न.
मना ।। अखि ॥३॥ संसारमावन्न परस्स अवा॥साहारणंजंच करेइकम्मं कम्मस्स तेतस्स नवे
तेरोजडासिंघम थो
बोलांग
For Private and Personal Use Only
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
भोगववाना ना तेबां बं बंधवपएफ नुन पामे ४ वि० धनेकरी ता० त्राए। न नपामे ३० इहलोकने अ अ परखोकने के कालनेविषे धव
सरण प्रमादी विधे या विभे यंकाले ॥ नबंधवा बंधवयं नुवेति ॥४॥ वित्तेपा ताणं नललेपमत्ते इमम्मिलोए अदूवा परवा दीत समाकित रूपदीवो अ अज्ञाननो मोहरूपअनंती . द देषीने अ. अदीग सरषो सु. उव्यनिडाएसुतांबतां सुनायबीजा राए उते अंधकार होइ ने न्यायमार्ग
होई ५ पग प. ऽव्यनिशाएं गतोसंजमजी दीवप्पपल्वेव अपांतमोहे नेयानय दबमदवमेव ।। ५॥ सुत्तेसुयाविपमिबुद्धजीवियतव्य जीवन विसवास पं.पंमिन आ. सीघ्र घो रौप्काल अ. बखरहिन लाल मारमपंधींनी च चाले. प प्रतिहे नकरे. प्रज्ञात
स० सरीर परे । नविससे पंमिय आसपन्ने घोरामुत्ता अवलं सरीरं मारपरकीय चरे पमत्तो ॥६॥
सं संकाताधका जं. कोई सं पा०पास इ० एसंसारनेविषे मानतो लाल साननाअवसरनाविषे पपने |
. सारना स्वरूपने सरपा को जीसंजमजीततव्यनेघारीने ||३९ चरेपयाइं परिसंकमाणो जंकिंचि पास इहमन्नमाणो लालंतेजीचियबूहइत्ता पग
For Private and Personal Use Only
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-||मरणनाअवसरने मन् कर्मतथा सरीरने टाले १ पोताना नि रुधि न पामे मोक्षने आनिज जेमसीरवव्यो यः पाषरनो || अ.. ४०|| प जाएगीने गंदाने ने
थको परिन्नाय मलावधंसि ॥७॥ बंदं निरोहेए नवेइमोरकं आसे जहासिस्कियं वम्मया धरपहार पु.घरा पूर्ववरस च वित रागनेबांदे तते विक शीघ्र न पामे मोक्षने- 'सन्ते पुरष एएण्भ | थाए सुधी चाले अप्रमादी माटे तुम्हने
पुत पहिलो धर्मकरी कारें न० री पुवाइवासाई चरेप्पमत्तो तम्हा मुणि खिप्पं मुवेइमोरकं ॥८॥ संपवमेव नसले पामे पडेए सुपमा सा निश्चय चांदीने वि. विसंवाद पामे सिक्क्ष्य आनुषे का. परनन समीप सरीरनो पिन
पामे ढते
उ पोनेने उपचा ॥ एसोचमा सासयचाश्याएं विसियई सिदिले आनुयंमि कालो वणिए सरीरसता | नाशने अर्थ रिव शीघ्र न० धर्मकरी बिच बांसवानाअप तेल नेमाटे सम्यक्मकारें पर गंभीने स. सम्यक् प्रकारेंजापी लोन्सोको
___ नशके सरने पामीने सावधानथई कामनोगने नो स्वरूप समतात्नावराधे | ५५ ए ॥ ॥ विप्पं नसक्के विवेगमेन तम्हा समुबायं पहायकामे समेच्चासोगं समया ।।
For Private and Personal Use Only
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मैलाने
नमः मोटा अपुगति पमता र राषेविचरे अ. अप्रमादियकी १० मु. वारंवार मो० मोहने गुणकारोजिन्जीवपाहा अ अनेक प्रकार अ.. || पीचर पोताना आत्माने .
एवा जे शब्दादि रएवासाधुने नासाधूने सन्स महेसी अप्पाणं ररकीवचरे पमत्तो ॥१०॥ मुमुख मोहगुपोजियंते अपोगरूवा सम. जमने विषेप्रव फार शब्दादिकफरस अच्क राज. सुहासाजे तेच शब्दादिक मनेकेरी नपत देष नकरे ११ मन्मंदपामे फाशफरसे महोइ नेम नुपरे नि साधु
ब्दादिकफरस पंचरंतं ॥ फासाफुसंति असमंजसंच ॥ नसुलिरकू मएसा पनने ॥११॥ मंदाय फासा बघणुं सोच सोल नुपजावे न नथामकारना म मननकरे र नुपजतोपकोराये मा.मानने मा०मायानेन सेवे न. जीवने कामलोगनेविषे कोक्रोधनेटासे,
मे बङ सोहागिधा ॥ नहप्पगारेसु मनकुद्या ररकेधकोहंविपाएद्यमाएं ॥ मायं नसेवेद्यप "सोब सोलने १२ जे जे कोई तत्त्वज्ञानचिना तु समकिनादिकें बोलतापरनाकीधां ने ले मिथ्या दृष्टिपेच रागदेषनेहनेविषेप संसकृतलाषाना बोसएरा शास्त्रतेहनापरूपपाहार
पोतायिका परबसे पम्या बे. हेबसोहं ।।१२॥ जेसंरवया हार तुचपरप्पवाइ तेपेद्यदोसाफगयापरशा ॥
४१
For Private and Personal Use Only
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भ
|| ए एपूर्वेकह्याते अ० अधर्मना कुछ तजनांयका कवांजे जान जाय
३८इमऊं ककंबुं ॥१३॥ ३८ इरि || अ०५ हेतुकारण एचा मिथ्यानने
ज्ञानादिगुएाने जीवसुधी . सुधर्मास्वामीजंबूमनें कहेडे एएअहम्मुत्ति गंडमाएगा ॥कंगुणे जाव सरीरस्सलेन ॥तिबेमि ॥१३॥ इनिअ|ए असंरचयं चोधी अध्ययन संपूर्ण ॥॥
संसारसमुऽ म मोटालवरूपनेघ ए. एकेक महापुरुषतत्या तपनि
नेवि प्रवाहले जेहने विषे७१ तरतां दोहेलो हांदेवा. संवयन्यायएंचनथं सम्मत्तं ॥ ४॥ अन्नवंसि महोहंसि एगेतिन्निरुत्तरे तत्र दिका पदामांहे एकेकतीर्यकरादिक ... स० ले एक एवेथानकें अकया 'माद आनुषाने बेहो अ अनि | मन्महाप्रज्ञात इ. एनुपदेशने के तान्या १ एगेमहापन्ने । इमंपन्हमुदाहरे॥१॥ संतिमेयावेगएा । अरकायामारतिया अकांम साषासहिन मरण ते अकाममरा चेस बीजू अलिसापारहित बार अज्ञानीने अ. अकाम मन्मरए। अ-अनेकवारम || समुचयपदपूरणे. मरणते सकाममरण २ त तेमज
निकों खोऊए . ४२ मरएांचेव ॥ सकांममरणंतहा ॥२॥ बालागंतु अकामंतु मरणं असइलवे॥
For Private and Personal Use Only
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नः पं० पंमिनने स.सकाममरण न० उत्कृष्टपदे एकवारकेवपित्र्या ता तेबे मरणामाहे ए पहिलो ग० म०महावीरतीर्थकरे का अ५
तु पदपूर्पो . श्रील होई ३ थानक अकाम मरण देषामयो काममोम पंमियाए सकामंतु ॥ नकोसेएसइनवे ॥३॥ तचीमं पदमंगणं॥महावीरेएदेसियं ॥का नेविषे गिरगृह नि अनिहे कु० कुरकर्मन करे.५ जे जे अज्ञानी कु०पासनेअर्ये ऽव्यपास तेमृगादिक होए जेम अज्ञानी
. गृह छोइ का कामभोगनेविधे साह्रवानेऽशासमायनेमिट्यानसः मंगिड़े जहा बासे लिसंक्रूराइंकबई॥४॥ जेगिड़े कामलोगेसुएगे कमायगइनमय |ग प्रवर्ने नहि भ मे नी दीगे चष्टी दीर्ग ३० एभरपक्षर कामलोग ह. हायनेविषे इस ए कामत्नाग नेजेकामत्नोग प० परलोक
व्याधीनुपनीजेरनि ५ आव्या . कालांतरेपदासजमहिता अन जुमे दिवेपरेखोए ॥ चस्कूदिवाइमारई ॥५॥ हागयाइमे कामा॥ काबियाजे अशाग आगसेकाला को कोए जारो प० परलोक अथवे या० अथवा न नथी अथवा बखि ६ जर केनपाएकसाथैऊपए थाईस ३० एहयोग तरेपामिएनेतो या। कोजागाइ परेखोए अविवानचिवापुतो ॥६॥ जगेगसहिहोस्खामिइबाले ||
जानी ||३
For Private and Personal Use Only
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नु०प० धीगइपए का कामनोगने अप्रतिहेरागें के. कसे सं सम्यक्प्रकारे त तिवारपनि
त० सनेविषे| | अन्५ | करे विषे , करी सने पर अंगीकारकरे जे से ने अज्ञानीमनुष्य । पंगतइ ।। कामलोगा एगुराएपं ॥ केसं संपनिवधई॥॥ तन सेदंडेसमारला । तस्सेसु थार थावरनेविषे अन् पोताने अ अ अन लू० जीवना समूहने वि० विसेष हि हिंसानाकरएाहार मुसंधाबादनो मामाया
"हणे. ८ अज्ञानी बोलाहार बील ७ पिन थावरेसुय अबाएय अगाए ॥ लूयगामविहिंसई ॥ ॥ हिंसे बासे मुसावाइ माइवे पिा चामीते५ ल. नोगवतो सुन्मदिरामांसने से श्रेय लघु एएममदिरामांसनो का कायाए व बचने करीम विक धनने मॅगेच्य फतारो ६ थको
लोगवयो एम मांसने ए करी मदांधहोए विषे प्रवासी सुणे सट्टे लुंधमाणे सुरंमंसं ॥ सेयमेयंतिमन्नइ ॥॥ कायसा वयसा मन्ते वित्ते गिडे
उ. बीकुप्रकारे रागद्वेष तथा मिप्यान सिअलसिले जेमबीमकारे माटीनो संचयकरे तानिवारपी
अधिरान सं. कर्मनो संचयकरे षाए अनेसरीरे घरमे १५ पीम्योरोगेकरी .. यशवसु इहनुमस संचिगाई सिसनागोवमहियं ॥१०॥ त पुछो आयंकेएण
स्त्रीनविणे
For Private and Personal Use Only
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भि
पला
.
न. म.महर्षिक होए २५ न० सर्वथकी मो- मिथ्यातमोहनि जुज्योतिवनअ-सुधर्मादिदेवसोकथीमामिअनुत्तरविमान
प्रधान गयोबे कर्मजेहवी सुधी अनुक्रमें संव्याप्त संकीर्णदेवें करीएपांचविसेषणे कार महिहिए ॥ २५॥ नुतराइवि मोहाहि ॥ जुश्मता एपुचसो ॥
समाइना | विराजमानजे - आ आवासविमानएवा ज. जसवंत देर २६ दीदीर्घमान इविन स अतिदीपतो का काम | विमानने विषे देवताजे होए
पावंत होए
मनवांनिन किया इजस्केहिं॥ आवासाइ जसंसिपो ॥२६॥ दीहानया इहिमंता ॥ समिद्धा कामरून रूपनाकरण अततकासना नुपना संन्नेसरषा सदाए अन् सूर्यना कांतिथी अधिकप मला कांनि तातेपूर्वोक्त थानक गम्। ___ हार होए दीसे.पएा ..
जेनी २७ विमानमतें जाई विगो ॥ अगोववन्नसंकासा नुद्यो अचिमालि पला ॥२७॥ ताणिगएाएगीग
सि सिषीने "सं संजमने निसाघु वा अथवागृहस्व का पद जेन्जेकोई उपशमकरे अतिहे नि सीतली ते धर्मवंत सेवीने तपने
मूतहोए एवादेवताधाए २० ।-सोलतीने|| ति सिस्किता संजमंतवं लिस्काए वागिहल्लेवा जेसंतिपरिनिबुमा ॥२८॥तेसिसोशा
नागनिहा
For Private and Personal Use Only
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बु-इंडियाने मावस बेजेने एवा संजतिनी सुंदरगती. सी०सीसवंत ब० पंक्ति समकित इष्टि प् नेसलीने न० त्रासन पांगेम० मराने बेके चारित्रवंत होए २९५ निसंतसति मरणंते ॥ सीसवंताबरुसुया ॥२॥
लू त्यातून प्र मोहनपसमा बचेक
5. ते केहबीचे संपूजाए संजनी ५० करि सहित
सपुचाणं ॥ संजयाएं बुसीमन | तु तौसीने पर वि० विशिष्ट लला पंरितमरणाने द० दसविध यतिधर्ममांहे खं० बि० प्रसन्न करे मे बुद्धिवंत रघु करीने अंगीकार करीने मारूप धर्म करीने बिसेषे
मर्यादावंत
यत्माने ३०
वि
तुलिया विसेसमादाय || दयाधम्मस्सखंतिए ॥ विप्पसिएद्य मेहावी ॥ तहालूएां त० तिवारी मननाजोग पाहीला करते बने एतसेमननाजोग सहीणा नकरेस० श्रद्धावंत मरएनेविषे तेहवो जेबो प्रवर्जा सेवाने समर्थ हतो नेहवा प्रकृतमाटे प्पो ॥ ३० ॥ तनुकाले प्रलिप्पेएसहितासि बाजो अर्थ का० मराने बेने. समंतिए • हवे मरणाकाल सं० आवेद्यते या० समस्तप्रकारें
गुरुसमीपें | टाले
सो० सोमना तुला ले० विनासनेश कं० वांबे ३१ कांटाने ने
५०
घाघातयनको द्य खोमहरिसं ॥ लेयदेहस्स कंरकए ॥ ३१ ॥ ऋहकासंमि संपत्ते ॥ प्राधायाय समुस्सयं ॥
For Private and Personal Use Only
विएाइ
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न|| स० काम सरीरने स० तित्रामरएामांहे अंगितमरणा १ पादोपगमन २ मत्तपञ्चषाए।३ इ. ए अकाममराना मापांचमु अध्ययन | अन्५
सकाममरणा मरे अ० अनेरेएककोइकमरोमरे साफै ३० इमऊं ककुंबुं३२ १०५ सकाममरणंमरइ ॥ तिएहमन्नयरंमुगि ॥ तिमि ॥३२॥ इति अकांमसकाममरणं पंचम संम्मतं ।। ५ ।। जा जेतला अमिथ्यानि अ स सधता ते पुरष घपामवाना पु० पीमा बघणावार मिय्या
. ज्ञानिपुरुष . कारण ने पुष नोगबपाहार. पामे नीपुरुप अक्षय सम्मत्तं ॥५॥ जावंतिऽविद्यापुरिसा ॥ सचेतेदुरकसनदा ॥ खप्पति बसोमूढा ॥ सं अनंतसंसारने विषे १ स.विचरीने पं० पंमित्त तातेकार पाएमजाऐजेसंसारतेपास जा एकेंडि अन्आपदा सम्स
एलपी यादि जान पामचानो मार्ग से घपो पोते संसारंमिश्रांतए ॥१॥ समिरक पंमिए तम्हा पासजाइपहेबऊ ॥ . अप्पएा सच्च त्यमार्गनेविषे मिमित्राइलून सघसा ककरे२ माः माता पिता नालाई म मार्यापुत्र य चप्ती एक नुदस्ना न
पणं जीवने विषे मेसिद्या मिति लूएसु कप्पए ॥२॥ मायापियासा लाया ॥ लद्यापुत्तायनुरसा ॥
...
पना
For Private and Personal Use Only
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
म. म. समर्थ ते से पूर्वेकह्या ने मुजने पुपीमापामता जीवने पोताने कर्मैकरी ३ एए पूर्वेकड्या ने संज्योतानी पाच देषे ससमकितइटी अ६ ५२ मा नहि...त्राण सरणराषबाने
अर्धने बुधे . करी || ना सन्ममतापाय ॥ खुप्पंतस्स कम्मुता ॥३॥ एयमचं संपेहाए ॥ पासे-समियदंस' नि बेदे गिच विषयनागदपएाने नन बावे पुल पूर्व जेहसुपरिचयहोइ ग वृषलगाए मनमणिरत्नादिक पर हाथीप्रमुषचाकरमा संसारनास्नेहनेचसी
लेने ५ कादिकना कुंकतने समूह्सन्सईए| णे विदे गिहंसिरोहंच ॥ नकंस्के पुत्वसंधिवं ॥४॥गवासं मणिकुंमत ॥ पसपोदासपोरुकला तेने एा असंकारें संजमपासीने का० अलिसाण करे नेवा रू- रूपनो था. गृहादिक मनुष्याँदिक ध धनधान प्रमुष घरवन बांमीले
न करनार देवता थासे र निमें से ॥ सबमेयंचइताए । कामरूपिलविस्सई ॥५॥ थावरंजंगमंचेव धगधन्नंनुषस्करं प
रुपअनेकरी सका कमें ना नही पुउषयकी मुकाबचाने ६ अमननेविषे स सर्वसुपसर्वप्रकारे इष्टना संजोगयी पित्र मियचा पस्ता जीबने करी समर्थ
- रह्यो उपनो रूप ते सर्वने वसन दिन्वेषीने सुनाएयाजोंन ५२ ||चमाण सकम्मेहि नासंस्काइमोयएं ॥६॥ अज्ञवं सबले सब दिस्सपाणे पियायए |
For Private and Personal Use Only
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तान नीकलवो ते या आगमिए सु० अतिहे घणे कासेंपए १० ए० एपिपरे हारो पे० पोतानीज्ञान तु तोसीने बा० अज्ञानपएं | अब ५ ६३ | बेगतीमाहेथी का
दृष्टि आलोचीने जोजो बी पंमितपणं | नमग्गा ॥ अछाए सुचिरादवि ॥१८॥ एवं जियंसं पेहाए.॥ तुसिया बासंचपमिया मू० मूलगी पूजीमाहे ते० मा मनुष्यनीजोनीमनुष्यपणाप्रतें म मनुष्य के विविधमात्रा एनसे अनेक प्रकारे जे जे कोइमनुष्यनिन
से जीवप्रदेसकरे प पामे ते केवो होए १९ सिलऽपरिणामादिकच्यारशिष्याएं गृहस्चना लौकिका मूखयंतेपवेसंति माणुसंजोणिमंतिजे ॥१९॥ वेमायाहिं सिस्काहिं करी जेनरागिहिस
नष्पांमेपक्षना । मात्र मनुष्यसंबंधि जोनी कार सोकिककरणी साची पा पापी जीव २८ जे जे जीवने निश्चै विस्तीर्ण सिन पतीनकारीयासुवृत्ति ले जेनी ते सत्यवादी निश्चेते
सिक्षाश्होएअनु वया ॥ नुवंतिकहिएमाएसंजोणि ॥ कम्मासचाफ पाणिएं ॥२०॥ जेसितुविनखासिव्रतमाहे पृता मूळ मूलगीपुजी अ अतिक्रम्या सी अनुव्रतमहाब संप्रधानमांहे प्रधान अदीनपणारहिनयको दिकनी मनुष्यपणामने नुसंघ्या. नादिसहित युएसहित ..जापामेदेवत्तापए २१ ||५१ रका ॥ मूभियंते अशनिया ॥ सीलवंता सवीसेसा ॥ अदिएा जंतिदेवयं ॥२१॥
For Private and Personal Use Only
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| ए. एणिपरें देवपएं मन्दीनपपारहित आध्वसि आ गृहस्वजा क-केमवि नि हारयो एचो देवम नि हारनोथको न नजाऐ अपितु अ०५ || पामे ते कोण निसाफ देसवृत्ति ने चारण नुष्यपएफ
विवेकवंत जापो बोको एवंमहीणवं लिरकू॥ अागारिंचवियाणिया कहन्न जिचमेखिरकं जिचमाोनसंविदे॥ कागणि २ राजा ३ वाणिया एअष्टांत ज० जेम मालना अग्रनुपरें सो समुनापारी मि० मविषासंगें एएम मामकयाहवे ५मो कहे जे २२ पाएानो 'बिंदु संघातें नावेएसनें
- ॥२॥ दारं जहाक्रुसंगेनदयं ॥ समहेण समं मिणे एवं माग नुष्यसंबंधी काम दे देवतानाका अ. समी– २३ ॐ माननीअणि मि बिंदुमात्र सरषा सं अतिहे थोमे ___ लोग मलोगने
जपरें पाएगीना एकामलोग आनुषे बने स्सगाकामा ॥ देवकामाग अंतिए ॥ २३॥ क्रुसम्ग। मित्ताइमेकामा ॥ सनिरुइंमिया
क किस्युं हे हेतूने जो अणपामता सुदकर्मवांबना करवी तेप्रेमन नजाणे अज्ञानीजन मिथ्यातादिक
. आगसे करीने तेजोग रवे पाम्या सुधर्मनो पासबो २४ विषयादिकने विधेआसक्नुपएं हेतुइएस || ६२. नए ॥ कस्स हेर्नुपुराकाने ॥ जोगरवेमंनसंविदे॥२४॥
सारमाह
For Private and Personal Use Only
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उक्त का कामलोगथकी अनि मात्मानोअरथविपासे साल सीनेज्ञानादि मारगने जंजे लएी बतिस्त्राय थाए ते धर्मयीप अ.उ.
वा पुरुपने कामानियहस ॥ अतव्वेअवश् ॥ सोच्चा नेयानुयमन्गं ॥जंलुयोपरिलसई ॥२५॥ इ० ए संसारमाहे का काम अनिवापुरुषने आत्मानो पू-कायो देश एयोनदारिक सरीर ल होइ देवइ एममेसांनल्यो ॥२६॥ ३
लोग . अर्य मा० नदिएरासे तेनेगमचेकरी इह कामानियहस ॥ अतऽनादिरश पूई देहनिरोहेणं ॥ लवेदेवे तिमेसुयं ॥ २६ ॥ सुवर्णादिद्धि जन् जसकीर्ति ३ सरीरनोपर्ण गत्नी आरोगरहित आनुषी ५ जेम म मनुष्यपएामांहे प्रयो
सुरु युनि २ रादिगुणनीसलाधा सुः सर्व सुपए ६ बोल बसि ए ६ बोसकह्यातेजिहां न द्वि जुइ जसोवन्नो ॥ यानुसहमएकत्तरं । त्यो जब मएकस्सेस तबसे देवपदामाहे पांमे २७ होइनिहां बा अज्ञानीनु नुदेशेंबा अज्ञानपएं अंगीकार करीन चि गंमीने धर्मने अअधर्मवालो ने पुरुष नपजे अअधरमने
जेने लेनर नववधई ॥२३ ॥ बासस्सपस्सबासन्तंअहम्मं परिवधिया ॥ चिच्चाधम्मं अहामिछ ।
For Private and Personal Use Only
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मुत्तः|| ना नर्कनेविषे जुनुपजे २८ धी- धीर्यपएक देपे धीर्यपए स. षमादिक दसविध धर्मने विषे कोमलपरिणामपएरोप्रवर्तवानो सत्नाव अन्न
अ. अनुकूष जेने एवानुधीर्यपपुं देषे चिक बांमीमें | नरएस. जववद्यई ॥२८॥धीरस्सपस्सधारतं सच्चधम्मा एफवन्तिणो ॥ विच्चा अ० अधर्मने ध० धर्मवालो दे देवतानेविषे नुपजे २० तु. तोसीने जोजो वचन बाल बाल अ अज्ञानपफ चे पुनः एम चय ___ एवाजीवने
अलंकार लगी लाव पमित बागीने . ज्ञानप. अधमंधम्मिन् देवेसुनुववद्यइ ॥ २९ ॥ तुसियाग बाखलावं ॥ अवासंचेव पंकिए चइन पाने बाद बासलाव अ अज्ञानप से सेवेअंगीकार इव श्मऊक एनसयंएहये नामें अध्ययन संपूर्ण पयो
पोनर करे साधु ऊ९. ३० एगबासनावं ॥ अबावं सेवइमुपी तिबेमि ॥३० ॥ इनिएसयशयएं सत्तमंसम्मत्तं ॥ अं अयिर अ० असास्वतो उव्या सं० संसारने .यणाऽषले जेने विषे ए । विशेषग संसार कि सुं सत्नावनाए नंच ते करणी जे-जेपीक कालयी दिपदारयधी विषे ना एवा एवा संसारने विषे. ऊर रपीएकरीऊ ६४ अधुवे असासयंमि॥ संसारमि रकपनुराए॥ किन्नामहोद्यतंकम्मयं जेणाई
For Private and Personal Use Only
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| 5. पुरगनि न ननाए१ कि विशेषे हवे पु. गंगीने पहिला न० सनेहने वसतो अ० सनेहरहिन सि सनेहना करणहार पुत्र | मते
कपिलमुनिनुपदेसकेचे मानपिनादिकना न करे... होए उग्गा नगद्या॥१॥ विजहितुपुच्चसजोग नसिएोहिकहि विकुवेधा ॥ असिणेहसिणेहक कसत्रमित्रा दो इहलोकनामानसी दिकथी मूकाएसाधु तो निचारपदीकपिलमुनि ना हि हिनने निमोक्षने से सर्व जीवने दिकनेविषे सरीर पीमा .
. ज्ञानदर्शननेकरीसंपूर्णसहिन अर्थे । अर्थे । रेहिं । दोसपदोसेहिं मुच्चएलिस्कू॥२॥ तो नागदंसगसमग्गे हिय निस्सेसाण सन्चन जी.
तेश्रोताज वि० मिथ्यातादिक पासंथी विशेष ला नुपदेस कपिलमुनि केलेते विविसेषेगयोडे मोहजेहषी सः सर्वबाह्यअल्यंतर चच्च ___नने मूकावबाने अरये
केबाबेमुः साधुमाहे केवलीले ३ परिग्रहने सीक्रोधादि वाएं तेसिं विमोस्खएबाए ॥ नासई मुणिवरो विगयमोहो ॥३॥ सवगंथकलहंचन वि ठार त. तथाप्रकारना कलेसना कारपाजाएीने, स. सर्व का काममनोज्ञ शब्दादिकना जा. प्रका 'पा कमवाविपाक न नापाए
स्ने विषे
देषतोयको चिप्पजहे तहा विहं निरकू ॥ सन्चेसु कामजाएस ॥ पार
साधु
For Private and Personal Use Only
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नता. उ कायनारष लो लोगरूपान्श्रामिष वि० लेनेविषेषुतो हिदात्मानेहित निरमोदा बुध विपरीनबेजेनी बाच अजाएगाधर्मनेविष अ.
पाल . . तेहन मोटा दोष एटखे लोगरूपआमि एबेना नुन्नुपायनेविषे अनुदमी मंग्मुरष ताई ॥४॥ लोगाऽमिसदोस विसन्ने ॥ हिय निस्सेसबुद्धिवबहे बालेय मंदिएमूढ़े॥ ब. बंधाए म मापी खेषेसनेविषे बंधाएनेम अनिहेनजताई. एकामलोग ना नहि सोहसां अ अधीर्यवंत पुरुषने अन् ___जेम कामलोगनेविषेबंधाए५ - दोहेला
बांझनां बशइमज्यिा खेसंमि ॥ ५॥ फुप्परिचया इमेकामा नोसुजहा अधिरपुरुसेहिं ॥ अहवेटे सुरूमाव्रतना धर जे जेसंसारस अन्तरतांदोहेलाने एवासंसारसमुडने नावइंसमुडतरे ए० एकेकबोलतापिका पा
नार साधु जेहोए मुइनेनरे या वापियाजेम ५ स-साधुबो अम्हो हं सति सुब्बयासात जेतरति अतरं वणियावा ॥६॥ समपामु, एगेवयमाएा पाधने पिच मृग अप्रजापतायका ममद धर्मकरवा नि नरके जाए बाप्रज्ञा पार पापकरीने पु ननिश्च
असमर्थ
पाचहं मिया अयाएांता मंदा निरयं गबंनि बाला पावियाइदिष्विहिं ॥७॥नहु"
For Private and Personal Use Only
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
न. पा० प्रावधने न०प्र० नअनुमोदे मु० मूकाए क. किवारे स. सर्वदुषधी बीजो कार्य नि
६५
पारगवहं अफजाणे ॥ मुचेध कथाई सब डरकाएं | ए एम प्राचार्ये को जे. जेपी. ३० एसाधूनो धर्म परूप्यो
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
पाएबहं हिंसाने जे माजा अनुमोदे तेनसुच० नमूका . द ए एक किवारे पए सर्वदुषथी. संकार वा• बचने पा० नेमारे
प्राएाजी ना० नहरोहणावेनहि से० समतिवंत ने अनुमोदनहिते साधु
एवायरिएहित्र्रकायं ॥ जेहिं इमोसा धम्मोपन्नत्तो ॥ ८ ॥ पाएयं नाइवाएद्या ॥ सेसमि ३० एकारपल तो. बकायना त. ते समतिवंत साधुयी नि० जाए • न. पाणी ब० जेमजसकी उतरी जाए जु०जु नि० श्रश्राएवाजीएसी कहिए रषपाल ते पापकर्म तेम ए गतिनेविषे। बनेविषे किंलू
| तेषु
इतिबुञ्च ॥ ताइ तन॑से पावयंकम्मं निखाई नदयं वयसानुं ॥ ९ ॥ जुग निसिएहि, "तसं नामकर्मनेनद था० थावरनाक ते तेमाहिली न० प्र० नकरेबध म० मनेकरी के बचने का कायाए चे० नियै कसने विषे नृपना र्मनेचदयेंकरी कोएकजीवते
करी करी
६१
एहिं तस्सनामेहि बावरेहिं चनोतसि संमारंलेदमं ॥ मासा वयसा कायसा चैव ॥ १०
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नुत्त |सन् आधाकर्मादिकदोषरहिनाअाआहारनेजाएी व निश्चलथापे अपोताना जा-संजमनी घा. आहारनेग र रसनेविषे ए० || अन् ६८|ए एघणासुमतिसहितनेविषे | नेत० तेवाग्राहारनेविषे साधु आत्माने बहाने अर्थ वेषे गृह
सुद्धेसगानेनचाएं ॥ तवं ग्वेद्यालिरकू अप्पाएंजायाए घासमेसेद्या रसगिडे एगनहीए लिलिष्याने विर्षे ११ पं० निरसने चे समुचे सेवे सी सौतल पु० जूनाधा कु. अम अअथवा बु· मंग
आहारने. नने दने . कदाविलेखा सियालिस्काए ॥११॥ पंताणि चेवसेविद्या ॥ सीयंपिमं पुराणम्मासं ॥ अबुक्कसं पु. चणादिकने ज. संजमसरीरना लोगवे. मंबोरक्रुटने १२ जेजे कोइसाधु च पुनः सुपनने अंअगफरकर अथा वा. अथवा निर्वाहने अरथे.
स्त्रीपुरुषनालका पसि चानीविद्याने बाजे | पुलागंवा ॥ जवणछाए निसेवए मंथ ॥१२॥ जेवस्करां ने चसुविणंच ॥ अंगविचंचजे साधुपरूपे न नहिनिये . नकहिएएएम आन् आचार्य अ. कह्यो १३० एमनुष्य जीसं अन्नपसंजमा ते साधु
- जन्मनेविषे जमजीरतव्यने दिधएकत्सक ६७ पनि नऊ ते समपायुच्चनि एवं आयरिएहिं अस्कायं ॥१३॥ इहजीवियं अनियमित्ता
For Private and Personal Use Only
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
गृथया.
ए.
जपलष्ट स. समाधिनाजोगयी ते तेकामलोगना र रसनेवि नुनुपजे या असुरकुमार संबंधी कायने ननिहांधकी प|| अर थिया
विषे पक्षण समाहिजोगेहिं तेकामलोगरसगिहा।नववधति आसुरेकाए ॥ १५॥ ततोवियवाल निकलीने सं संसारने घएक अ. वारंवार परिश्रम एकरे बघपाकर्मना से खेपेकरि दोपॉए। बोल समकिननोला सु० प्रतिहेछ-
जीवने ल होएर्सल उबबहित्ता संसावत अफपरियटृति ॥ बकम्मं सेबसिताएबीहि होइ सुइसहा से तेजीयने १५ क संपूर्णपणा जो जे इंशादिक सो संपूर्ण वीएषकलोत्नी "ते. नेपोध सेच ते सोलीन झए
...येसमए सोकने पर प्रतिपूधिनकरी नरने नेपा.संतो पाए पिपरें नेसि ॥ १५॥ कसिणंपि जोइमंसोगं पमिपुन्नं दसधएकस्स ॥ तेणावि सेनतुसेद्या इड्डू 5. पनादिककरीपुरोकरता दोहेलोज जिम२ सालन निम २ सोल पावसाल प प्रकर्षेवघे दो बेमासासोच . आ. आत्मालोनी जीव १६ . होए होए थकी सोल . . नेकरी फुपूरए ईमेश्राया ॥ १६॥ जहासालो तहासोलो सालासोनोपवइ दोमासकयं
For Private and Personal Use Only
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
|| क. कीजीए को एवाकार्य सोयननीकोमीपणा निवयों नो० रु राकसी समानरुनीने विषे गं गुंबकास व रिदयनेविषे जेने-दषि केबी चेन्म मर
नहि मनजोत्नपकी १७ नई गिदगृहनथाएरुमीकेवीले रबी अनेक पदार्थनेविषे चित्त जेनो कधनि कोमिएविननिश्चियं ॥ १७ ॥नोररकसीसगिद्या गंग वासुगचित्तासु जा जे स्त्रिचे पु.पुरपर्नपदाअनिहेसो खे० क्रीमाकरे जज्जया दादाससंघाने जेमदास पाहेचिंतव्या ना नारी नो गृहपएं नको लादिविस्तारीने.
पटाने काम कराचीने पोते क्रीमाकरे नेमाटे विपे .. जानु पुरिसंपिलोलित्ता॥रवेखनि जहाव दासेहिं ॥ १८॥ नारीसुय नोपगिशेधा ३० स्त्रीने विविविध प्रकारें अन् साधु धब्रह्मचर्यादि च समुचे मनोगन त नेब्रह्मचर्यादिक धर्मने विषे अ आत्माने १० ___त्यजेविश्वास नाऐ धर्म ते . जाएीने निश्चलयाए साधु इति विप्पजहे. अएरागारे॥धमंचपेससंनुच्चा तब वेध लिस्कू अप्पाएं ॥ १९॥ इस एपों प्रकारे -धर्म अ० कह्या ककपिलमुनीच पदपवि० निर्मलप्रज्ञाडे न तरसे जे. जै का धर्मक तेच तेकपिल आध्या श्वरें औरणे जैनी तेरों
निश्चल रसे मुनिश्वरें राध्या|| इएस धम्मे अरकाए कविलेणं चाविसुद्दपन्नेणं तरिहिंति जेजे काहिंनि तेहिं आरा
For Private and Personal Use Only
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ.नगरीकेवी ने ३ मिमिथिला स० अनेरपुर जन् देससहि ब० बषचतुरंगीसेन्या अंतनुरपुनःसजना चि गंमीने एन- असन्मुषपनि अर नगरीमाहे नगरसहितने नवे
दिक सर्व . . सांवाना परथकी चय॥३॥ मिहिसं सपुत जएवयं बदमारोहंच परियएं सद्धं ॥चिचा अनिनिरकं | निकल्यो एक रागद्देषादिक एकांतरहित निस्पृहपणाने अ० को विसापादिकनी शब्द पाल ऊतो मिमिथिलानगरी परप्रयासेने
आनो ज्ञानवंत ५ . कोलाहलथयो... . नेपिषे बते. न० तो॥ एगं तमहिछिने लयवं ॥४॥ कोसाहसगलूयं आसी मिहिलाए पन्चयं तं तिबारे — रा राजमाहेबनापणा न नमीघरथी निकले है ५ सावधानथियो रा राजन् प. अर्जानु थानक इव्य रिपीसर नै राजऋषी
घि चीवनादिक लावधी ज्ञानामि तझ्यारायरिसिमि नमिअलिनिरकमतमि ॥५॥ अशुधियं रायरिसि पयागणमुत्तम्म दिक थानक ने थानक केबोबे नुव प्रधान सच सकेंदब्राह्मणाने रूपें एहयो यचन अन्बोसतो ऊने ५ किनकिम लो. आम एवाथानक प्रने साबधानथियाने नमि
विचारणा अग्रहो राजाएं वे अवसरे सक्को माहपारूवेणं ॥ श्मंवयमबवि ॥६॥कितु नोअद्य
For Private and Personal Use Only
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kcbatrm.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
3 बेखोक ३०श्मऊ का बु ३० एकविलियनामा श्राउमो अध्ययन संपूर्ण ८ च चवीने देवदेव अर हिया फुवेलोग तिबेमि ॥२॥ इतिकावलियंशयांअवमंसम्मत्तं ॥ ७ ॥चजगदेव सोकेयी ड. नुपनो . मा० मनुष्य सोच सोकने नु० नथीनदय मोक्र्सनमोह स० संला पोल्पाबली जानिने ।
विषेपाम्यो निकर्मजेने रीडे. खोगाने नववन्नो माएफसम्मिलोगंम्मि नवसंत मोहाणियोसरडू पोराणियं जाई॥१॥ जार जातिने संला न लगवन स स्वयमेव आफपीए अ प्रधान श्रुनचारि- पु० पुत्रने राजने अधर्म साङ्मो थाए' नन्नमी
रीने म्यानचंन प्रतिबोध पाम्यो धर्मनेविपे, थापीने विषेनि नीकसे बेघरयी राजा जाइसरितु, नयवं सहसंबुद्धो अएकत्तुरे धम्मे पुत्तंगवित्तुरखे ॥ अलिनिरकमइ, नमिरा
२ सो० तेनमीराजादे देवपोकना अंमधानअंते. व प्रधानत्लोगने लोगवीने न नमीराजा बुनत्यनो लोग्लोग या ॥२॥ सौदेवसोगसरिसे अंतेनरं वरगनवरेलोए लुंजितु नमिराया ॥ बुछोलोगेपरि
लोगचीन न० नमीराजा हुन
___ लोग सरिया लोग मिजावान नरविकता वा प्रधानलोगने
आए
ने बांगीने || ३१
For Private and Personal Use Only
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चि० बांदीने एत. म. सन्मुषधईने सांवाना
७२
घरथकी
॥
च्चिचा अलिनिरकं
उ.- नगरी के वी . ३ मि. मिथिला स० मनेरपुर ज. देससहि ब० बलचतुरंगी सेन्या त्र्यंत नरपुनः सजना नगरीमा नगरसहितबे तबे दिक सर्व चय ॥ ३ ॥ मिहितं सपुरु जण्वयं बसमारोहंच परियां सर्व्वं निकल्पी. ए. रागद्वेषादिक एकांतरहित निस्पृहपणाने को० विसापादिकनी शब्द प्रा० फुतो मि० मिथिलानगरी प० प्रवसेने श्री ज्ञानवंत कोलाहल थियो. नेविषे बते त० कोसाहसगलूयं
तो
सी महिलाए पन्चयं तं
तिचारे
न० नमीघरथी निकले के ५
• सावधान यो रा० राजऋ प० प्रवजनु धानक इव्य षि थी बनादिक लावथी ज्ञाना
॥ एवं तमहिविनुं लयवं ॥ ४ ॥ रा० राजमातांप रिषीसर तैरा मि तइयारायरिसिंमि नमित्र्मलिनिरकमंतंमि ॥ ५ ॥ दिक धानक ते थानक केवोबे नृ प्रधान सब सकें ब्राह्मएाने रूपें एवा थानक प्रते सावधानथयाबे नमि राजाएं वे व्यवस
झुच्वियं
रारिति परागणमुत्तमं
३० पहवी वचन बोलतो फुने ६ कि.किम लो० यामं
विचारणा हो सक्को माहारूवेषां ॥ इमंचयामवि ॥ ६ ॥ किंतु लोमय
For Private and Personal Use Only
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
पा० राजानाम गि
घरने विषे 9
दिरनेविषे पासाएस गिहेसुय ॥ तक तिवारी म
नमीराजा प्राजमिथिला का० कोजाहलेंकरी व्यापितचे सुच् सालसे द्वा० हृदयने मनने उद्वेग १३ नगरीने विषेशब्दे केहवी एहवा कारी शब्द
बे
ते
अ
॥
मिहिलाए ॥ कोलाहलगसंकुला सुचंति दारुणासहा ॥ ए. पूर्वेको नि० साली हे ० हेतु मानसा सोकने का० तेपरजीवने जेहथी प्रेष नृपजे विचारीने दुषनुहेतु ताहरी दीक्षा नेतोपरिभ्रम एानो कारएाएवेमेरी ७ ॥ एयम निसामेत्ता हेन arrest | तनुं नमिरायरिसि ॥ दे० देवतानी इंद्र सकेंद्र ते प्रते इमबी मि० मिथिला के उद्यानमा सी० सीतल बाया म० मनने रम प० पानमेकरी पुन्फूले तो ॥ ८ ॥ नगरीने विषे • वृत्त फूतो बे जेनीएवो एक कफकरीसहित सीयबाए मणोरमे पन्तपुष्पफलोवे ही इलावतोयको चे बननेविषे म मनोरम दु० दुनिया
देवीं दो इम्मेववि ॥ ८ ॥ मिहिलाए चेइएवढे
वा वायरे
'ब० पंषी प्रादिक घरगा जीव बघा गुनो' कराहारफूती स० सदाएं
करी
वृन्द
ए ॥ बहूणं बहुगुणोसया ॥ ९५ ॥ बाए। हीरमाएांसि चेइयंमि मनोरमे दुहिया
अ.
७२
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
नु०
ย
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
• सरएारहित अ० पीया ए० आकंदकरेबे लो० एषंषी १० ए॰ य॰ पुनः ए अर्थनि० सालती हे हेतुए कारएा चोच
थका
हो बिप्र
विचारीने
सरणान्ता एएकंटुंति लोखणा ॥ १० ॥ एयमवंनिसामिन्ता ॥ हेनुकारण चोड़
प्रेरयो त निवार न० नमिराज दे० देवेंद्र केंद्र इम बोसनो फुट ११ ए० एम ० अग्निवायरा य० पदपूरले ए दीसेले मं० मंदि थको पत्नी ऋषियतें
बसे बे
तद
र
नुं तनुं नमिरायरिसि देविंदोऽएाम्प्रववि ॥ ११ ॥ एस अम्गीयुवाने य एयमइ मंदिरं ना. नयी जोती ५ १२ ए० एकार्य नि० इत्यादि हे ० हेतुएं कारणं
लव्हेल श्रं० ते ते० नाराचच। सामाटे
गवन् नर४ नत्र्यसंकारे ।
प्रेरयोको
लयवं त्र्यंते जर तेएां किसाां नावपिरकसि ॥ १२ ॥ एयम निसामित्ता हेनु कारएा चो दे देवसकें इमतें बोल्यो १३ सु० सुष होएजेम तेम जी० जीवंबु जे० जेमंदिरमाहे ० ॐ वसूं मारो नथी.
तति नमिराजरुषीयते
चारपी
इन तनुं नमिरायरिसि ॥ देविंदेइएम ॥ १३ ॥ सुहिंसामा जीवामो ॥ जेसिमोनधि
For Private and Personal Use Only
७४
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
जेने
न कि कार मिमिथिला बसतीबती मे मारुनयी कि काए अष्यमा चबांमधा वेटाक० मार्याजेएँ ७५|| थोमएपणा .. नगरी ५१ . म बस्तूं , अपएा १५ एयासाधुने ६१ नि नयि |
किंचएं।मिहिताएरशमाएीए नमेमशई किचएं ॥१५॥चत्तपुत्त कसतस्सनिविद्या व्यापारेभि. साधुने पिएमाहीवस्तुप्रियकारी बसललो अ अमियकारी न नयी १५ बघएं मुसा . किकनयी थोट्पणा पासप्लषामही
निश्च धुने वारस्स लिस्कोपियं नविद्यएकिंचि अप्पियंपि नविधए ॥१५॥ बऊखु मुणि|| कल्याण अअपागारने नित साधुने स. सर्वया विविसेषेप्रकर्षे एॐ एक सोईएहवा एकत्व पणाने एए
प्रकारेंयारत्मपरिग्रहयी मुकाएाजे पोलह अणगारस्सलिस्कूणो । सने विष्णमुफस्स एगं तमाय स्सन ॥१६॥ एय अर्थने नि इत्यादि हे हेनुएकारो त निवार न नमिराजधि दे सकेंइएमबोसनो ऊन ११ पा प्रगट
प्रेस्योधको पनी प्रते मचं निसामित्ता हेनु कारपाचोइनानने नमिरायरिसी देविंदोश्रामचति ॥ १७ ॥ पागारं
पतोब १६
For Private and Personal Use Only
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
७६
| का करावीने पाच गो पोखिनुपतष्पराधीकमाझ उषाई सु० सोमुपनो घातकरेते ततिबा/गज्जाजो रखा हेषत्री १८ || अर
वचनासंकारें लोगलकोटनुपल्याकोगवति शतघ्नी शस्त्र करावीने रपळी कारइत्ता ॥ गोपुरुढालगाणिय॥ नुसु खगसयघीने न गबसि खत्तिया॥१८ ए०एअरथने निश्त्यादि हे हेतुएंकारए प्रेरथोथको नतिवात नमिराजन दे सकेंड एमबोलतो ऊळ १० स०)
रपनी षीप्रतें ॥ एयमचं निसामित्ता ॥ हेनुकारणचोइतने नमिरायरिसि देविंदोइएमबधि ॥१९॥स सुछ सदहएा एकिन त०१२ लेदेतपमिथ्यातादिकनोरुधयो ने संवर एनसे तप गढकरीने ति शुलमनमोगरूप ने कोगरवचन रूपएीन नगरने करीने लेकमान संवर मोगल खं समारूपीन लखो पाठ जोगरूप तेषाई२ कायजोगरूपने शतनि।
नगरं किंचा तबसंवरमंग्गसं॥ खंति निनए पागारं तिगुन्तंडुप्प,सगं ॥२०॥ एत्रिएकरीश्ने गुप्ति प्राक्रमे - जीपपाचने इसमतिरूपकरीने विवणि धीर्यवंतकमामने मुठिएं गढनरपुष्प को ध० धनुषने किंकरीने बषि सदाएं मध्यत्नागसाहवानी करीने ||७६ पोपरानव्योनजाधएक परक्कम किंचा जीवंच. इरियं सया ॥ धियंच केय किच्चा
For Private and Personal Use Only
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मल
नः || स सत्यरूपचिपमीकरीने धनुषबांध्यो त तपरूपसोहना बाए धनुषतेऐकरीने लेदीने मु साधुकेवाडे | चापमा धर्म होए ते २५ नेणेकरी जु सहित विदारीने कर कर्मरूपीया बेरीनासे साधु विवेगमोडेसं
सच्चेएं यषिमंथए ॥ २१॥ तवनारायजुत्तेपं ॥ लितुण कम्मकंचुयं ॥ मुणि विगयसं सोकिकसंग्रामधी विसेघे पोत्ताने लावसंग्रामने विषेएवासाधु ए.एअ मि इत्यादि हे हेतुएंकारपाचोमेस्य) तनि नग्न . अथवा लसंसारथी अति हे मूकाए २२ र्थने
पिको (चारपदी मिरा गामो लवाने परिमुच्चर ॥२२॥ एयम निसामित्ता हेनकारगचोइन तन नमि परुषीमतें दे सकेंड इश्मबोसता ऊवा २३ पा० सिषरबंध का कराधीने यवत्रपालू मिगोषादि सहिन बाध्य
मुंचा आवासने एअसंकारे गिव्या बालीसामान्यधर) मिसहिन पोन रायरिसि देविंदोगमबवि ॥२३॥ पासाएकारत्ताए ॥वधमाएं गिहाणियबासगा पो तसावमाह क्रीमाक/यत पूर्णीत ति गजाजेय. हेषत्री २४एएम अरर्थन इत्यादि हे हेतुएकोरणारियोधको नतिवार | राबवाना महेसाकराचीने पर्म श्याने य त गबसिस्वतिया ॥२४॥ एयमई निसामित्ता॥हेनुकारणचोलत
पठी
||93
For Private and Personal Use Only
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कारा
| नमिराजऋषि दे सकेंड प्रतें श्मयोसतो जन २५ संम् संशयनेरयन सोच तेनरकरे जोजे म० मारगने विषेघ० || अe
नि3 . मनुष्य१ . घरा नमियरिसि॥देविदोइएमबवि ॥२५॥ संसयं खलु सोक्रुपाय ॥जो मगोकुणाघरं गसेमिसेकेन इमार्थज्ञानवंतर्राज ज त निहांकरेसाश्चना मदिरने एतले सि ए अरथ नि इत्यादिक हे हेतुए मिसेतो बिहानुनिश्चैजाबाने वाले धरूपमंदिरने .२६ हाकरिखेजबवगंतुमिलेया ॥ तत्व कुविधसासयं ॥२६॥ एयमचं निसामित्ता इनकारप्रेस्योयको तातिवा नः नमिराजरुषि दे शकेड श्म बोसतो जन २५ 'आ वाटपामा सोच् यच्वपि सीन्देषिका रपडी. प्रते
चोरने . राज्याचे नेवाफासियाचीरगंगा। एचोइन । तन नमिरायरिसि देविदोश्यामववि ।। २७ ।। ग्रामोसे सोमहारेय ॥गंविः बीटोमा नः सर्वकासचोरीना करपाहार चोरने खे० कल्याए कारी तति गजाजी व हैषत्री २८ ए. ए अर्य . य पुनः निवारीने म नगरने . करीने वारपनी लेएयतकरे ॥ नगरस्स वेमका तर्ने गसि स्वतिया ॥ २८ ॥ एयमचं
For Private and Personal Use Only
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
.
वारपनी
बार
छ नि इत्यादि हे हेतुएं कारण प्रत्योषिको तति नन्नमिराजरिसि दे० शकेंऽप्रते एमबोलतो ऊ २९ अच्अनेक मन्मनुष्य अ-ए निसामिता टेनकाराणचोडन लालमिरायरिसि टेविंटोडणविरासतमासे मि० षोटोमर प्रजुजेदीए अचोरीनो अपाकरपाहारनेसरीरा बंधाएमका का चोरीनो जाइंडीनाविकारसहिनजनएन
.. दिकपुद्गल अ० ए खोकनेविषे ए. करपाहार से इंडीयनाविकार चोरनी कोइ | हिं मिबादंमोपजुंजई अकारिणोचबशंति मुच्चई कारयोजएो ॥३॥... मोहबतबांधि ए. एअये इत्यादि हे हेतुएकार मेस्योयको नतिवारपरी नमिराजरिसि देव श६ इश्मयोलतोङ न सके
प्रते एयूमचं निसामेत्ता ॥ हेनुकारणचोइन ॥ तनमिरायरिसि देविदो इएमबपि ॥ | मे ३१ जे-जेकोईराजातुजने ना. नयी नमता न हेराजन से पोताने ने० तेराजामने ननिवारपडी व हेषत्री ३२ |
बसे गथापीने असंकारें जाजो ३१॥जेकेइ पबिवातुझं नानमवि नराहिवा वसेते गवश्त्ताएं तनुगबसि वत्तिया॥३२॥
७
For Private and Personal Use Only
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तएक एअर्थ निद इत्यादि हे हेतु कारणा चीत प्रेत्यो तातिवार नमिराजऋषि दे० शकेंऽ इइम बोलतो वो ३३ जोन अन्य
थको पनी भने । एयमूहं निसामित्ता । हेनुकाराचोइन तन नमिरायरिसि देविदोश्रामबवि ॥३३॥ जो जेकोई सुल स. एसहस्त्र तेहजारगुहादसं सं संग्रामनेविषे संयामकेवोबे जीतेएवा ए ऐगोकरी नीने आत्माने ए. ___ट. साप सुत्नटने ..दु. तजुतांदोहेलोउ१ घणामले ... सहस्सं सहस्साए ॥ संगामेधएजए ... एगंजिपियं अप्पाएं ए आत्मानोजी से ते दसवाषनाजीनए हारथकी अन् आत्मासंघानेज तृतीयाप हि कि संकामडे तारे बत बाहर अ तएहार पत्क्रष्टो जीताहार ३५ तीया जुजुध करी
जुछ अज्ञान स सेपमोज ॥३४॥ अप्पाएमेवजुशाहिं . किने जुशेण बशने अ. रूपआ एक निश्चेमनजोगरूप जन्जीतीने सु. सुषने पामे ३५ पंच पीचरंडीने को काँधने मानने मा० मायानेन ते माएंकरी .. आत्मानेजीनसुं
मजवपि ||
प्पाणं मेघ अप्पाएं जइत्ता सुहमेहए ॥३५॥ पंचिंदियाणं कोहं माएं मायं नहेब,
For Private and Personal Use Only
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
म्न सो लोत्मने दोहेलो एक आत्माने जीता स० सघj जि० जीनेडे ३१ जीत्यु ए० एअर्थ इत्यादिक हे हेतु अर | जीतीने वलि . ए . आत्मा सोलंच उधयचेव अप्पाएं सबममे जिएजियं ॥३६॥ एयमई निसामित्ता ॥हेन। कारणप्रेत्योयको त निवार न० नमिराजऋषि इ. एमबोषतो ऊबो ३७ ज. करीने वि. मोटा२३ज लोन . पडी प्रते सकेंज
जज्ञने . काराचोइ तने नमिरायरिसि देविंदो इएमनि ॥ ३५ ॥ जइन्ता विनसे जन्ने ॥ लोइ मामीने स० श्रमपातपसिना द. सुवर्णादिकदा मो० वखिमनोज्ञलोगल्लोगवी त तिवारपडी हे पत्री २६ एए ___म्हाने . नदेईन . नेजि० पदपूजिन्ननेअर्थ गजाजो
अर्थ त्ता समएमाहणे ॥ दच्चा लोचायाजबाय ॥ नने गसि खत्तिया ॥३८॥एय निश्त्यादि हे हेतुइ कारणप्रेत्यो त नि न नमिरायपि दे सकेंड इमबोलतो हुआ ३९ जोजो थको वारपती
कोई|१ मई निसामित्ता ॥ हेनुकाराचोईन । तननमिरायरिसि ॥ देविंदश्एमबवि ॥३९॥नो
For Private and Personal Use Only
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुन्तः|| दातार सहस्रनेसहस्त्रगुणाकरीएं मा० महीने ग. गाएने दीए तर तेदसलाषगाएनादातारनेपणासर अगाएनाअपदनार अर एनसें १०००००० लाप
संजमनो ग्रहोतेहजसेठ श्रेयनुकारण . नेपणा सहसंसहसाए... मासेमासेग्गवंदए ॥ तस्सा विसंजमोसेने होए अदितस्सवि कि काएक योए अदानीनेपण संजम ए०एन नि इत्यादि है. हेतुएंकारा प्रेस्योयकोतति नमीराजी देशको ते श्रेयनुकारण होए ए ए रय
___ वारपनी मने . किंचएं ॥४॥... एयमचं निसामित्ता हेनुकारण चोइन तन नमिरायरिसि ॥देविंदो एम बोलतो अ५१ . घोरु चोरम दोहेलोएयोजे पां असंकारे अनिर्वहानथाएतेमाटे या आश्रमने इ० एजगृहाश्रम 'तिहेनिहाकरतां आभूमनेने अनेरु प्रवर्जारूपप वांबे
____ रह्ययिको इएमबवि ॥३१॥ घोरा समंवत्ताएं ॥ अन्नपचसि आसमं. इहेव पो० पोपधादिकनेविषे र तत्पर थान मत हे मनुष्यना ए. एअर्थ इत्यादिक हे हेतुकारणे चीन में नातिनइनमिरा अधिपति गफूर ४२.
स्यधिको ..वारपीजरुषीपने ८२ पोसहरन ॥ लवाहिमएफयाहिया ॥४२॥ एयमद्वंनिसामित्ता हेनुकारणंचोई नुनमिराज
For Private and Personal Use Only
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir
उत्तः | दे० शकेंड एम बोलतो हो ४३ मा मासमासषमाने जोर जेबासमि क्रु० मालनी अग्रअपीए नदनहिनेमिथ्यातिमा अ-ए
. पारणे याति अविवेकी आवे एततेअनेकदाचिनजमे समासषमएनोकरनार देविंदोइएमबवि ॥४३॥ मासेमासेन जोबाले ॥कुसग्गेणंतुलुंजए । नसोसुयरका रसु० सूत्राष्यानय धर्मश्रुततया अन्नपोसाइ सो सोलमिकसाएनाचे एएअर्य इत्यादि हे हेतुएंकारणास्योध
चारित्रनो यधम्मस्सकलं अग्घर सोलसि ॥४॥ एयमबंनिसामित्ता हेनुकाराचोइन तातिवार न० नमिराजक्षी दे सकेंड श्मबोलतो हतो ७५ हि घम्यो सोनाने तथारू सुद अपापम्यो सोनो तथा सर्वसौना पडी प्रतें
पाने नचंद्रकांतमपीने मुक्ताफसने तजे नमिरायरिसि देविदोश्णमबवि ॥४५॥ हिरन्नसुवन्नमणि सत्तं ॥ क-कांसानात्माजन वरूपने बलि को कोगरनेवधारीने पाक असंकारें तेच तिवारागच जाजो खच् हेषत्री ६ ए ए अर्य या अश्चादिकबाहनने
पडी कंसंचदूसंचवाहणं कोसंवढावइत्ताणं न गिबसि रयन्तिया ॥४६॥ एयमचं
For Private and Personal Use Only
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जुन्न।
रपी
पानी
| इत्यादि . हे हेतुकारए प्रेत्योयको नातिवा न नमिराजरुषी दे शर्केड श्मबोलता वा ५३ सु-सोनानोरू अ.. निसामित्ता ॥ हेनुकाराचोड्ने ॥ तने नमिरायरिसि देविंदोघणामबपि ॥३७॥ सुवन्नरू पपरवन होए निश्चै के. मेरू पर्वतसरषा अ. असंख्याता न० नरमनुषने सौली थाएने नोहेनेऐंधनेकरी आत
पोर्नुपएा तृष्णा (निय आप्पस्सयपचयात्नये सियाज केवाससमा असंखया ॥नरस्साकस्स नहि किंचि इबारेमा काससरषा अन् अनंता ले ४८" पु. सघती सा० सर्व जा सर्वदा चे शब्दधीसर्वधान' सुवर्णादिक सर्वधन
पृथवी १ सिला२ व ३ एक अवधारोहित प० सर्वचोपदादिके गाससमा अांतिया ॥४८॥ पुढवि साखिजवाचेव ॥ हिरन्नं पसुलिसह पमिपुन्नं सासहिन पर संपूर्णपोक लराए एतलो सगखो न अ तृष्णा मिटामवा ए एअर्थ इत्यादिक हे हेतुएं कारण प्रेस्यो | समर्थनही ए. एकेकसोलियामनुष्यने एबोजाएगीने त. संतोषनिवृत्तिरूपच, नासमेगस्स ॥ इइविद्यातवचरे ॥ ४५ ॥ प्राचरविवेकपंत एयमचं निसामित्ता॥हेनुकारणाचोइन|
थको
||
|
For Private and Personal Use Only
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न तिवारन नमिराय दे सकेंऽश्मबोलता हवा प्० अ० आश्चर्य अअड्तमान बनात्लोगने पर हे पार्थिव अ. काच | अर पीप्रने
. मुजनेनुपने.. तूंबामडे राजन् पडेअवता काम | तनुनमिरायरिसि देविंदोश्यामचवि॥५॥अबेरगमलुयए लोएचयसि पति या असंते कामे लोगनेवांबीस संघ संकल्पविकल्पेकरी एएअर्थ इत्यादिक हे हेतु कारणचो प्रेरयो त निवारपडीनमी दे तूं चपलमन . वि० हणाइस ५१
थको राजक्षीप्रने पबेसि संकप्पेन विहून्नसि॥५१॥ एयमनिसामित्ता॥हेनुकारणचोइन ननुनमिरायरिसि देवि सकेंड एमबोसतो हवी ५२ स० सल्पा का काम विविष आ. सर्पसरषी नुपमा कामलोगने २३ प वा अन
सरया लोगः सरपाकाम नोग ले
जनाथका जीच नयी दोइएमबवि ॥५२॥ सर्वकामा विसंकामा ॥ कामा आसिविसोपमा कामेपवेमाएा कामलोगयोतेजेनेपण वांबताथकाजीवजन अनरकादि अधोगतीने मा०मानेकरीअअधममाटीग मा० मायाए।
जनाए उपजे पुर्गतीप्रने ५३ विषेयर जाए कोन्गोधे करी . निहोए करिगन्सुधगति | कामाजंतिगई ॥ ५३ अोवयइकोहेणं ॥ मागेएं अहमागई मायागईपनि
For Private and Personal Use Only
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रूपने
मुना नोविनाश सोल खोलयकी टु हलोक परलोक लयहोए अ. नांगीने मा. ब्राम्हणाना वि० वैक्रिय करीने इथप व वांदेरे अ. होए
पाने ग्याने लोला हवो लयं ॥५५॥ अविनुशिलगमाहगरुवं विनविनए इदत्तं चंदई. अप्रस्तुति करतो इ आगले कहसु म. मधुर वचनेकरी ५५ अ० मोटापाश्चर्य नि अतिहे जीत्यो क्रोध अ आश्चर्य थको तैहने ३३
...ते मा. अलंकार अलिपुराते इमाहि माहिं घग्गुहि ॥५५॥ अहोते निधिने कोहोते मागो परा जात्यो अाश्चर्य ने नि टाप्तीदूर कीधी मायाँ अ आश्च जोलबसेकीयो ५६ अाश्वर्य अब सरलप
तास पुं लखें जिले ।। अहोते . निरकियामाया।अहोते लोलोवसीकन ॥५६॥ महोते अग्रवंसा
अत्यावर्य मामार्दव अमआश्चर्यतारुप्रधानक्षमा अत्याअर्य मुनिर्योत्नता नभधान ५७ ३ एलवनेविषेचष्म
नारु लतुं ॥ अहोतेसाहु मद्दवं ॥ अहोते नुतमारखंति ॥ अहोतेमुत्तिनुत्तमा ।।५७ ॥ इहंसिउत्तमो
"
तारी
For Private and Personal Use Only
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तः ल हेपूज्य पे परलबने होहोईस उत्तम लोक सोकमाहे नु० अनिनुत्तम सि मुक्तिपने गं गूंजा नी० कर्मरजरहितयको ५८ ए०ए अग्न
प्रधान थानक ईस
पीपरे स्तवलंते। पेचा होहिसिनुत्तमो ॥ सोगुत्तमुत्तमंनाएं सिडिंगसि नीरचे ॥५८ ॥ एवंच्या तोयको रा नमिराजर्षिन तेप्रधान चलक्तिएँ प.प्रदक्षणात्रए करतोषको पुर वारंवार व चांदे स सकें |
करि लिथुणतो ॥रारिसिनुत्तमाए साए ॥ पयाहिएंकरितो पुपोपुगोवंदइसको ॥५० नतिहापको बांदीने प० पगने पम च चक्र अंकुसादिक ससक्ष मु-मुनिवरनापग पराकासे नुतपत्यो सकें। केवोडे "सालीसा एले जेनेविषे चांदीने
सहित ततोवंदिनुएं पाए चकंकुसतस्कणे मुणी वरस्स आगासेएफप्पईचे ॥सलिय चपख कुं कुंखमुकटले जैहने ६°नन्नमीराज कपि अन् पोत्ताना स. प्रतक सकें। चोर प्रेरथो चबांमीने गे घरने विदेश _ नमाझे आत्माने
थको . देसनो अधिपनि ८ चुवकुंडतिरीमी ॥६० ॥नमीनमेइ अप्पाएं सक्कंसक्केण चोइन चाइनणगेहिंवईदेखि
केवाने
For Private and Personal Use Only
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| सा. चारित्रनेविषे नुदमवंत ऊने ६१ ए० एणिपरें निम्नेपर्फे करे संतत्वनाजाए। पं.पंमित प० प्रतिहे विचक्षणमाया पिकअ-१०
सामन्ने पकवविने ॥६१॥ एवंकरंति संबुद्धा. पंमिया पवियरकपा ॥ दि विसेषेनिवर्नेलो . लोगयी जन्जेमतेनमि राजषि
मऊ करंबु ६२ ३ एनमिपपद्यानवमुंअध्यय णियहूति लोगेस ॥ जहासे नमिरायरिसि तिबेमि ॥६२॥इतिनमीपपद्यानवम न संपूर्ण . . वृक्षतुं ११ पत्र ११पर पाना जा जेम निक पो रा रात्रदिननासमोहेने अशयांसम्मत्तं ॥ ॥ उमपत्तए पंयए जहा निवई राडगुणाए। अ अतिक्रमेडे एक एपिपरे म मनुष्य- आनघु स समयमानेपाअथवाअवसरपामीने हेगौतममा ममादी १ अब्बए एवं मायाएं जीवियं ॥ समयं गोयम मापमायए ॥१॥ कु मालनीअएीने विषे ७१ मा म उ गरनोथो थो रहेस. हासतोयको ११ एक एपिपरें मनुष्यनौ कुसग्गे जह सबिंदूजे थोवंचिव संबमाएये ॥ एवं मएमाए।
जा आनुघु स. पूर्ववत् अर्थगोव्हेगौतममथाप्रमादी मकर प्रमाद २ ३ एपिपरेंना थोमा आ. आनषाविषेजी योमाजीवनव्य 40 ||जीवियं ॥ समयं गोयममापमायए ॥२॥ श्रुत्तरियमित्रानुए जीवियए नविषेश
For Private and Personal Use Only
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
J.
बघणा कष्टले जेनेविषे ७१ वि० कर्मरूप रजने टाले पु० पूर्वकृत स० इत्यादिसमयमात्रपणा मा० मकरप्रमाद ३ दु० पामतां दोहेलोन - १० ८९० बहु पच्चवायए विरुणाहिरयं पुरेकरुं समयं गोयममापमायए ॥ ३ ॥ दुस
स
माद
श्व प्रकृतपु मा० मनुष्य संबंधिहोए चिघो काले ना० पपा सर्व पा० जीवने • करोडे विवविजेो विपाककर्मसु ते माटे स नियाने माएफसेलवे चिरकालेएाविसवं पाणियां गाढ़ाय विभागकम्मणो समयमात्र पाहे गौतम मा० मथाममादिमकरम पु० प्रथिवी कायमाहे अ गयोधिको उ० नत्क्रष्ठो जीव जीव न बसेरहे कार कालसंख्यातो मयंगोयममापमा ॥ ॥ पुढविकायम गर्नु नकोसं जीवो नसंबसे कालसंस्खाइ असंष्यातोउत्सर्पणी स तेमाटे समयमात्र पागो० हेगौतममकरप्रमादमथा या पकायमा गयोथको न० उत्कष्टोजीव नु० बसेर हे यं वसर्पणी समयंगोयममापमाय ॥ ॥ मानुकायम गर्नु ॥ नकोसंजीवो नसंवसे का० कालसंष्यातो असंष्यातोनुसर्पणी व स.समयमात्रपपा गौतममथाप्रमादी मकरप्रमाद ते एम ग्गियोधको न० नत्कष्टोजीब बच् कासंसंखाइयं सर्पणीले माहे समयंगोयममापमायए ॥ ६ ॥ तेनुकायम गर्नु नकोसं जीवो नृ | बसेरहे का काल मनतोत्रमनंती उत्सर्पणी अढी पुस परावर्त तेमाटेसं• समयमा त्रपपाहेगीतम मकरममाद 9 बा॰एमबायरासांहेगयपि ८५ संवसे ॥ कासंसंखाइयं ॥ अनंतानोऽषें अंतत्र्याचे समयंगोयममापमायए ॥ ७ ॥ वानुकीयम
प्रमादी
For Private and Personal Use Only
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नु० जुलूकष्टोनीव . न वसे रहे काल कालअनंतो अनंतीनुत्सर्पपी अदिपुगस परावर्नअनंतानो दुधेअंत सं समा अ१० में नुक्को, संजीवो नुसंवसे कार्यसंखाइयं आये तेमाटे
समा यमात्रपपा हेगौतम मकरप्रमाद ८ व वनस्पनिकायमांहे गयोयको, न नकटो जीय बसे रहे. काळ कापत्र यंगोयममापमायए ॥ ८ ॥ वास कायमगने नक्को संजीयो जुसंवसे कालम|नंनो अनंति नल्सर्पपी अहि पुद्गलपरावर्तअनंतानो पुषे 'सं-समयमात्रपपा हेगौतम मा.मकर प्रमाद ए बेडियकायमा एतंदूरतं अंत श्रावे ते माटे समयंगोयममापमायए ॥९ बेइंदियका हे गयोयको नुनुक्रष्टो जीव वसे रहे .. का कालसंध्यातीएवी सर सज्ञानामने जेनुं एतसो संख्याता हजारवर्ष नेमाटे | यमगर्ने । नक्को संजीवो नसंवसे काउंसंवेध सन्नियं स समयमात्रपणा हेगौतमभकरप्रमादमयाप्रमादी १० ते एमनेंडिकायमांहे गयोयको न उत्क्रष्टो जीव नु वसे रहे कार काससंष्या।
समयं गोयम मापमायए ॥१०॥ तेइंदियकायमइंगर्ने उनको संजीवो जसंवसे कार्य संस्थि । नोएवी संत संज्ञानामजेहनी एतलोसंष्याताज़ारवर्ष सन् समयमात्रपणागौन्हेगौतममाध्मयाप्रमादीमकरप्रमादरच० एमन्चनुरिटीलाथमा | व सन्नियं मारे समयं गोयममापमायए ॥ ११ ॥ चरिंदियकायमगले
यका
For Private and Personal Use Only
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नुत्ता
उत्कटो जीव . उ० बसे रहे का कापसंष्यांसो एवी स० संज्ञानामबे जेहलुएनसे संज्यानो ससमयमात्रपदा हेगौन अ-१० नक्को संजीवो नुसंवसे कादंसंवेद्य सन्नियं ॥ हजार वर्ष समयंगोयममापमा ममकरप्रमाद १२ पं०एमपीकायमांहेगयोथको उ नृत्ऋष्टोजीव न० वसेरहे ससानलवनत्कृष्टोसानपूर्वकोमनाया यए॥१२॥ पंचिंदियकायमगने नक्कोसंजीवोनुसंवसे।सत्तबनवगहरो उमोलवनुक्रष्टो अापल्यनो एनलेसातश्रावलवनो ग्रहए करयोत्तेमाटेसमयमात्रपपाहेगौतम दे देवतामांहे: नारकीमांहेगन्गयोपिकोन नत्क्रष्टोजीवय समयंगोयममापमायए ॥१३॥ मकरप्रमाद १३ देवोनेरइ एयमग जक्कोसंजीवो जसं सेरहे ए. एकेकलवनुग्रहणकरे नेमाटे स. समयमात्रपपाहे गौतम मकरप्रमाद मया प्रमदी १० ए०एमपूर्वोक्तमकारे ला नरकादिकना वसे एकेकलवगहो । समयंगोयममापमायए. ॥ १५ ॥ एवं लवसंसारे लवरूप | सं० संसारनेविषेपरित्नमा सु० सुत्लअसुलकमैंकरी . जी. जीवप्रमादे करी व व्यापिनपुष्टोडे ते स समयमात्रपपा हे गौतम म
संसरई करे सुहासहेहि कम्मेहि जीवोप्पमाय बझलो माटे समयं गोयम मापमा करप्रमाद मयाप्रमादी सम्पामीनेपपा मामनुष्यपणाने आचार्यपए पु. बलिपी उर्मलपामवो डेबन्जेलपी दल चोर ||५१ यए ॥१५॥ सद्धरावि माए सत्तएं आयरियत्त पुपारावि उल्लह बहुवेपणा दस्फया||
For Private and Personal Use Only
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मिमलेन्दीसेने आर्यथोमाचे स० समयमात्रपणा हेगौतमम१६ पामीनेपणा अार्यपपाने अ० संपूर्ण पंचे-म मिलस्कृया तेमाटे समयंगोयममापमायए ॥ १६ ॥ सदावि आयरियत्त अहीए पं डीपर्फ ऊनि उसलपामधुंबेते विन्हीपाशीपए याहे अपामांहेदीसे स-समयमात्रपपा गो हेगौतम मथापन चिंदिया ऊ सहा लपी विगलिंदियया ऊदीसइनेनेमाटे समयं गोयममा पमायए. मादी मकर ममाद १७ अन् संपूर्ण पंचेंडीपएफ ते तेपणाने जीव स. पामे तोपएा ना प्रधान सु. श्रुतधर्मनी सालपु निवेपुतलोन ॥ १७ ॥ अहीएए पंचिंदिय तपिसे सहे नतम धम्म सुश्ऊ पो.उत्सा कु. कुत्ती परपामीनेसेवेएवा लोक नेमाटे स-समयमात्रपपा देगौतम मा०मधाममादी मकरप्रमाद १८ सपामीने पएा मुळे प्रधान कुतिबनिसेवइजरो ॥ समयंगोयममापमायए ॥ १८ ॥ सद्धरावि उत्तम सिद्धांतने सोमलवानेस शुद्धसदहए पु-वलीपण उर्सल मि मिथ्यानने मि सेवेडे एवासोकडे प्रति हेसेवेने सम्सम सर .. सद्दहगा पुपारावि इसहा मिचन्न निसेवए जपो लोक नेमाटे समय
आहेगौतम मकरप्रमाद १९८० धर्मनेपपा निश्चै ससदहपाकरी सदधिको उपदोहेलो काकायाएकरीपारसनाएर गोयम मापमायए ॥१० ॥ धम्मपिऊ सद्दहं तया उपहा काएंऐफास,
फरसबी
For Private and Personal Use Only
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३० एसंसारनेविषे का कामगुएनेविपे मुमूर्नाएाजीवते स० समयमात्रपएागोव्हेगौतममकरप्रमाद पयाप्रमादी २० प सर्वपाप्रकारे अ-१० ४३ या इह . कामगुणेहिं मुबिया माटे समयं गोयम मापमायए ॥२०॥ परिजूरइत्तो।
जून् त्यहीपा पाएजीएथा के केस धोखा हा होयेखेतारातेथी सो० पूर्पोानेंदीनोबलहतो नेयी श्रोतेंडीनोब स तेमाटे समयमा
सरीरयंए नारुशरीर केसापंमृरया हवंतिते सेसोयबसेयहाय सहीपथाएबे समयं गोय अपएागीन्हेगौतममयाममादीमकरप्रमाद पासर्वथामकारें जु० वयहीए पाभेनेजीरएथिोएले के के सधोखा होए ताहरा सेन्तेपूर्वनेव ममापमायए ॥२१॥ परिजूर ते सरीरयंताऊंसरीर केसापंमूरया हतिते सेचस्कूबा नो बसनधी लेनेत्रनोबलनयी तैनेत्रनोबत सर्व समयमात्र गो हेगौतम मकरभमादपथाप्रमादी २२ प सर्वथामकारेंजु वयहीऐीपा
यहायई। समुचेहीणोपाएडेमाटे समयं पण गोयममापमायए ॥ २२ ॥ परिजूरइतसरीरयं ॥ मेडेजीथाएबे के केसघोसा होएले नाहरा से-नेपूर्वेघापोंदीनुबलहतुथीघ्राणेंदीनुयलहीणोधाएडे तेमाटेस समयमात्रपाहेगी
ताहरूं सरीर केसा पंमूरया हवंतिते सेघाएा बसेयहायई, समयं गोयम मापमायए ॥|| तममथाममादीमकरप्रमाद २३ प-संबंधामकारेंजू वयहीएीपामेोजीर्पा के केसधीसा होएबे तारा से नेपूर्वजिलेंजीमुंबसहनु नेथी ||५३ २३॥ परिजूरइत्ते सरीरयं थापयेतारुसरीर केसापंमूरयाहवंतिते से जिशवलेयहाई
For Private and Personal Use Only
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्त- जिलेंगीतुंबसहीपोएस०समयमात्रपन गो हेगौतममा० म करप्रमादम्याप्रमादी २५ २० सर्वथाप्रकारे वयहीणा पामेजीपी थाए उत्तारुशरीर अ-१० 4v || थाएढे तेमाटे समयं गोयममापमायए ॥ २५ ॥. परिजूरश्ते सरीरयं
के केस धोला होए ले ताहरा से पूर्व स्पर्शजीनुबलफूखनेयीस्पर्शधीनोबसंहीणो स० समयमात्रपण हे गौतम मा० मकरप्रपाद २५ केसापंरयाहवंतिते सेफासबलेयहायई थाए ले ते माटे समयंगोयम मापमायए ॥२५ ॥ प० सर्वया प्रकारे जू चयहीणपामे जीयिाए के केसघोसा हाए ताशे . से लेजे पूर्व सर्वेअवयवनुबसहीएाथाए ने | स समयमात्रपए परिजूरश्ते सरीरयं लाऊंसरीर केसा पंफूरयाहवंतिते से सबसे यहायई माटे समय गो हेगौत्तम मान्मयाप्रमादी मकरप्रमाद २५ अचिननोनद्देगा करमाप्तादिक[बमा विच अजीर्ण आज ततकालघातपामे एवो रोगवित गोयममापमायए ॥२६॥ अरई. गंमविसूश्या विशेष आयंका विविहाफुसंति अनेक प्रकारना ते तारोसरीर वि जीवरहिनयई परे रोगेकरी नारं सरीरतेमाटे स. समयमात्रपपा हेगौतम मा मयाममादीमकरप्रमादर | फरसे नेविविध सश्ते सरीरय . समयंगोयममापमायए ॥२७ ॥ वो वो बेदेटाले सि सनेहागने आत्माने कु. कमसनेमजेमसा सरदऋतुनो पा पाणीने गहीनेमण से नेहसा सर्वस्नेहेंकरी रहिन थको बिंद सिपो हमप्पणो कुमुयं सारश्यंच पापियं पण से सहासिगो हवधिए
For Private and Personal Use Only
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नुक्तः स समयमात्र एाहेगौतम मा० मकरप्रमाद २८ १५ समयं गोयम मापमायए ॥ २८ ॥
| लावलिवूपणाने पाम्यो मा० रषेवमीव पु० फरीपावि आदरे तेमाटे एागारियं वे मावत ने पुणो बियाइए
बगीने
चांदीनें अध० धनने वसी लायने प० प्रबजने पाम्यो जेहलगी चिचाणं कारें धरांच लारियं पञ्चइहिसि तूं बे स० समयमात्र पागो हे गौतम मा० मयाप्रमादीमकर प्रमाद१५ ० समयं गोयममापमायए ॥ २९ ॥ - बंधने व बलिचे पद ध० धननासमो हने संचयने रखेने बांमघापदार बिबी जीवार गवेषे बांबे ते माटे स० सम वनुझिय मित्तबंधवं विनुसंन्वेव पूरणे धरणोहसंचयं मान ने बिश्यंगवेसए सम यमात्रप गो. हे गौतम मकर प्रमादमयीप्रमादी ३० न० नहि निश्वे जि० जिनतीर्थंकरप्र० एकासने विषे दि० दीसे बेतवा व प्रणुंमानवा यं गोयममापमायए ॥ ३० ॥ नऊ जिले प्रजदिस्सई तोहेपण बल मए जगदीसे बे म० मुक्तियों चवानी मार्ग के वो दे० तीर्थकरें देवा मघोळे ते मारग एनसे जिनीक्त सं० सांप्रत संष्यातबरतमानकाले ने दिस्सई. मम्गदेसिए सिद्धांतने त्र्यधारें लव्य जीव संदेहरहितयका धर्म करते संपई न्यायमार्गनी परूपक तीर्थंकर बेलैमाटे सं० समयमात्रपरा हे गौतम मकरममाद ३१ यानुपपहे ॥ संमयंगोयममापमाय ॥ ३१ ॥
म० बांमीने क कुतीर्थीना पंथ प्रवसोहिय कंटगापहं
| པ༥
For Private and Personal Use Only
अ-१०
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मुतः| न पश्गेमु. ११ प हेगौतमपंणग्यानादिककरीमोटामुक्तिनापंथप्रवर्तवानो ग आएछे ममोक्षमार्गप्रने वित्र बिसेष विशुनिभेकरीज अ-० ए६ नतिन्नोसि पहंमहालयं पेगेटो
गसिमणं संकरीने विसोहिया थीमुक्ति पामे नेमाटे सन्समयमात्रपदा गो० हे गौतम मथाप्रमादी मकरप्रयाद ३२ अ असमर्थ ज जैम ला त्मारनो नुपामपहार विषममार्ग समयं गोयम मापमायए ॥३२॥ अबखे जह लारवाहए जइतेपश्चात्तापकरे नेमतुंरषेविक विषम मामारराने प्रवेश परूपडे प पश्चात्तापकरेरणे सन् समयमात्रपणा हेगौतम माध्मकरप्रमादम मामग्गे 'विसमो वगाहिया करीने पग पगफतावए समयं गोयम मापमायए ॥ थाप्रमादी ३३ तिन्हेगौतमनस्थोहि निश्वेचे संसाररूपसमुड़ने कि किसुपसि चिन्नलोरहेने निव समुड तीरकांगनेपाम्योथकों ३३॥ निन्नो। हिसिअन्नमहं किंपुएर चिचसि तीरमाग अन्नत्तावसोथाएपाद संसार नापारनेजावाने तेमाटे स-समयमात्रपण हेगौतम मकरप्रमाद ३५ अ सिड्यावानी वसपकोपीला अलितुरं पारगमित्तए... समयं गोयम मापमायए ॥३॥ अकले वरसेणिमा पश्रेणीने नुम् सूचीकरीने नेणेंकरीने गो हेगौतमलोल लोकप्रने गन्जाइस सिझसोकलेखचक्रादिनुपपवरहिन सन् सर्वप्रधानतमा ९६ स्सिया सिवं सिम् गोयम सोयं गबसिकेवो रखेमंच सिबं अत्तरं ॥
For Private and Personal Use Only
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
स० समयमात्रपएा गो० हे गौतममया प्रमादी ३५ बुक तत्यनोजाएाप० सीतखिलूतयको च. संजमनेविये गागांमने विषेगा गयोथको साधु .११ समयंगोयममापमायए ॥३५॥ बुधे परिनिवुझे चरे चासे गामगुए नगरेव सं ___सं दयामारगने चपूर्णे बंधारे ते माटे स०समयमात्रपणा हे गौतममा मकरममाद ३६ बुळ तीर्थकरनोसांत्नतीने लामा
जए संतिमगं, चबूहए, समय गोयममापमायए ॥३६॥ बुधस्स निसम्म त्मा पिन सिद्धांतने केहयो सु० बालो कोखे अरु अरर्थेकरिशोमित चे रा रागद्देषने बलि लिंक बेदीने "सित सिद्धगतिपते पना सियं सुकहियमंड पनवसोहियं ॥ रागंदोसंच बिंदिया सिडिगइंगए गो० हेगौतमगए पर इसकऊर्बु ३५ एमपत्तदसमुंअध्ययनसंपूर्ण१० प्रमाद तजे तेबऊश्रुत होए तेमाटै ग्यारमुं गोयम तिबेमि ॥३७ ॥ इतिडुमपत्तशयएंदसमंसमत्तं ॥१०॥ बहुश्रुतअध्ययनके सं० संजोगयी विविशेषे प्रकर्षे मूकापा ले अएवा साधुनो लिक निक्षुनो आ० आचारने पार मगरकरीस संजोगा विप्पमुक्कस्स ॥ एगाररस निस्कूपो ॥ पायारं पान करिस्सामि आप अनुक्रमें सु० सांत्मल मुजकेतापका १ जेजेकोश्चखि होए निचे श्रुतज्ञानविद्यारहित थिन अहंकारी षुरसादिनो सोलपी||svg आएपछि सुणेहमे ॥१॥ जेया विहोश निविधे यधेपुछे
For Private and Personal Use Only
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नधी शीवश जेने अ. वारंवार न असंबहलाषा एवोहोएने अविनीन अ. अब श्रुन कहिए २ अथ हवे पं पांचवाननें अ११ अणिग्गाहे ॥ अलिरकांवक्षवई
अविपिए बझसए ॥२॥ अहपंचहिंगणे जे जे कारपालपी श्रुतपामयानो रहा अने व्रतपासवानो थे. अहंकारथी को क्रोधी पबप्रमादी मांहेलाप्रमादेकरी ३ रोगकरी हिं जेहि सिरकानलझ॥आसेयनशिष्या न० नपांमे थला कोहा पमाएवं रोगेपालस्स। आससें करी जूने बोसवेकरी ३ अ अथ हवे श्राप थानकें करि सि ज्ञान अने व्रत पामबाने सि अल्ल्यासनेशिष्याइ एस्वरूपडे बु. एगाय ॥३॥ अह अहिंगणेहि सिरका शिष्याने सिसौति बुच्च॥करणी | अनेर बोसनयी इसवानो स्खलाब जेनें १ स. सदाएडीनोदमाहार न नहोएएयो समुचय म परमार्थने नानहोए सिसर्वयाचारित्रनोविरा ग्रहस्सि रेसयादत ॥ नय मम्ममदाहरे ॥४॥ मु. बोल ना सिखेनविसिस एक ननहोए देसपी न नहोए अ. अतिसोसपी ६ मा अक्रोधी सम् सत्यमारगनेविषेरातो होए सि ए गुपनोधपी सिष्याने विराधक नसिया अइसोलुए अकोहो सचरए सिरका सीखेति अल्यासनोकरणहार ५३० स्वरूपनेढलेकहिए अहये चन्द थानक प्रवर्ततीथको ... " न-पूरपो संजती साधु अविनीनाला
बुच्चर ॥५॥ अह चनुदस्सहिंगएरोहिं वहमाणे संजए अविणिए
For Private and Personal Use Only
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न.|| युग कहिए सो० तेमाटे निः मुक्तिने ज्ञानपणा ना नपांमे ६ अ. वारंवार को क्रोधी होएक्रोथ फ दीर्घकासेक्रोधने अथवा विकथाम अ.११ एलच सोनु ॥ निवाएंच नगबइ ॥६॥अलिरका कोहीहवाये- पबंधचपकुबइ . चली एक करे. मित्मसोजे साधु नेसुमतिएकरतोधको ते मित्राईने गंमे एनसे कृतनपाए ३सीधी सिद्धांतना ज्ञाननेसा असला
मितिघमागोवमई सुयंसहामध॥५॥ पामीने म अलंकार करे। अविपा | बना पच पोताना अपराधने अ. परनेमायै घासवाना स्वत्लाव जेनो अ० सलावनाएं सु.अतिहेप्रियकारी अ. पदामित्रने र एका व परिरकेवि अविमित्तेसुक्क्रप्पड़ मि. मित्रनुपरेकोधकरे सुप्पियस्सा विमित्तस्स रहे त्लान बोलेपारलूमो - प.असेंब लापा उ. डोही ० थ. अहंकारी सु० सोलपी अ. अजिनेडी १२ अ.अन्यसाधु लास पावगं ॥८॥ पश्णवाहि उहिले हेसुद्धे अणिग्गहे असंवि नो संपिलागनकरे अ अप्रतीतकारी अविनीत ३० एडयो कहिएं अ० हवे पनर पानकें ... सुरू लागी अवियत्ते अविणिएतिवुचई ॥ ॥ अह पन्नरसहिंगणेहिं सुवि मो विनीत ३९ इनकहिएं नी गुरुयकीनीचेआसने अगतिचपर थानक चपष र त्लाषाचपल ३ लावचपलपपारहित अ० मायाकपटरहिन |एर पिएंतियुच्चइ नीया वित्ती वैसे अचवसे अमाईअकुतुहसे ॥१॥३कुदहसपएारहिन कुद
हेसजूएनाह १०
For Private and Personal Use Only
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
नमाइ ॥ ११ ॥
"मित्र मित्रनु र एकांतपरपूढे क० रूमाने मिन्तस्स || रहे जाएबने अ० जातिवंत नित
नु..
अ. नकरेवति
कोइनेतिरस्कारत्र्यमूकप० दीर्घकाले क्रोधने च० पुनः नकरे ६ मि० जे साधुमित्राएपोकरतो होए तेंमित्रा सुश्रुतज्ञानने ११
१०. प्रपंचा हिरिकवर करे ५ पबंधं च नकुबइ मितिद्यमाणो लयई एकरे ६ सुयं स
पामीनेन करे अहंकार ११
कलिपा पोतानी प० परनेमधिनघाले न० बजिमित्रनुपरे कोपनकरे • मियकारीयापा
नय पावं अपराध परिस्केषि
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नयमित्ते सुकप्पइ अप्पियस्सायावि ला० बोजे १२ क० वचननोकलह ५० माऍाघात तथा तेममरवर्जएाहार बु० तत्त्वनो
बुधेय
कलाण लासइ ॥ १२ ॥ कसह रुमवचए हि० लज्जावत पर इंडियादिकनो गोपबाहार सु० रूमोहोए विनीत ३० एवी कहिए १३ बरु बसे कु० गुरु अभिजायए हिरिमं परिसंखि सुविशिएति बुच्चई ॥ १३ ॥ बसे गुरुकु नास घामाने विषेनि सदाएं जो० गुलजोगसहित ध्यानादि तपसहित पि० सर्वजीवन मियकारी पिन मियकारी वचन बोलाहार वेनिचं आज्ञारहित जोगवं पियंकरे ११ पिचाई ॥ से एवो होए ते ज्ञानग्रहणाचारित्रने स० पामीने. जोग्य होए हवे बहुश्रुत उपमाएंकरी कहेने १४
नवहाएणवं
जे० जेम संषने विषे दूध घालोयको दुबैप्रकारेपपा सोलते एबेचोषा १०० जहासंरवमप्पियं निहत्तं हनुधिविरायई उपमा
लाजनमा
| सिरकं सडुमरिहई ॥ १४
For Private and Personal Use Only
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नः नमथाए विपासे नहि बीजु संपनजातामाटे पूधजलोदीसेएबिनप्रकारे शोत्ने अनेसरवपणाऽधकरीसोत्ने एएमय श्रुतसाधूनेविषेता नेमसिहाल अ.११ । एवं बास्सुए लिरकू धम्मो तित्ति तहासयं ॥१५ ॥ व्यायको बिक्रप्रकारे सोत्ने तेए बे)
मो० दशविधयतिधर्म सोले साफरूपसंपनुजसामाटे ए ३ नुजसादीसे अने साफ चोषात्माजनमाटे एश्मसिन नघाए विपासेनहिं ए बिजप्रकार | सोले एतले साधुने विषे सिद्धांतादिक सोने तिमतिम सिद्धांतरूप दूधे लस्यो साधुपए सोले एपेसीनुपमा कही. जन्जेम ते अश्व कं कंबोजदेसना नपनाघोमामांहे आ. गुपोंकरीव्याप्त कंस प्रधान कस्यायिकी प्रासनपामेहोए जवेगेंकरीप्रधान ए एम ह-||
जहासे कंबोझ्याए ॥ आइणे कथएसिया आसे एहबीअश्वजवेए। पवरं एवंहवा होई बच दश्रुतसाधु हबेनुपमामेलेले कंबोजदेवानो नपनो ते सामान्यजिनशासनना सकलसाफमध्ये गुणें करीव्याप्त बश्रुतसाधु
ब स्स ए ॥१६॥ परतीर्थीने परिसहेकरीत्रासनपांमेलेप्रधान श्वेगतेसंवेगादिक प्रधान एबीजीभुपमा २ ॥१६॥ ज. जेमगुणवंत मश्व चयोधको सु० सुत्नटपट पराक्रमनोधणी नुः बिजपासेन बबप्रकारनापाजंत्रने घोल निघोधेकरी अययाबंदिवान जहाइएसमारूहे ॥ सूरंढपरक्कमे ॥ जलनु नंदिघोसेएं। नेपासरबादेकरी | सोत्ने कोपासत्रुएजीत्योनजाए ए एपिपरैह हीए बऊश्रुत हवेभुपमामेसेबेसिद्धांतरूप गुपावंतअश्वबजश्रुतरूपसरअसवार दिनरात्र एबि १०३ एवंहव बस्स ए ॥१७॥सनेविषे१२ अंगनी सशायरूपवानंत्रनानिर्घोकरीसोल्नेएवोबञ्जश्रुतरूपसुर्पतीिरूपशत्रुजीत्यो |
For Private and Personal Use Only
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kabatirth.org
न जाए एत्रीजी जन्जेमहायपीइ परिवत्यो हाथी... सं० साग्वरसनो बन्महावसयन अ० अनेरे हाथीएहएाएनहिं. अ-११ १०२|| नुपमा ३ जहा सेकरेएफपरिकिए कुंजरे संविहायपणे बसवंते अप्पमिहए
ए. एमहोएबऊश्रुतनुपमाए चार बुद्धिरुपहायपीएं बऊचुनरूपी ने हाथी २ साववरसरूपपुरापरिचयनो भएी ३ समकिनसहित ज जेमने | एवं हव वफस्सए ॥१८॥ श्रुतबसवंत परमतिरूपहायपीएहपाएनहीं एचोयीनुपमाकही ४ ॥१८॥ जहा वृषल्न तिळ तीस्वा वे सिंगजेहना जा- पुष्टथियो डेपंधजेनौ वि सोलेले. व वृषल जूत गाए प्रमुपजूथनो अधिपनि गकर एक एमहोष से निक सिंगे ॥जाय बंधे विराय॥ वसहेजूहाहिवर . एवं बफुश्रुत नपमाहवे समयपरसमयना जाया एबेनाजागपएारूप बेसगमातेकरी परमतिरूपनेलेदे आचारंगादि श्रुतपंप तेणेकरी पुष्टोले || हवश्बास्सए ॥१४॥ संजमरूपत्भारनिर्वाहवा बऊश्रुतरूपवृषम ३ साघसाधविप्रमुषयूथनामधिपति गकुर बिराजे एपी। नुपमा ज जैमनेहि तीपीछेदाठा जेनी नु० आरमो अाकरो पुगंजो नजाए सि सिंह नि मृगादिक अटवीना पभूमाप्र एमएम कही १९ जहासे तिरकदाढे नदग्गे पुप्पहंसए सिहे मियाएपवरे धान एवं.|| दोए वजश्रुत हवेचपमातेनैगमादिकसातनयरूपपी नीषीदाढानेपोकरी परमतीने विदारे १ तेणें करीआरमोर क्षमारूपगुणे करीसहिन नेमाटे कोलाहर
२०॥ गंजोनजाए ३ बहुश्रुतरूप सिंहपरवादीनोमनरूपमातेमाहेप्रधानएनवीनपमाकही ६ ॥२-il
For Private and Personal use only
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नु.
ब०
सं॰ संरब१ चक्र २ गदा ३ धरएाहार अ० अनेरे वैरीएं नथीहणाएं ब. बस जेनी सुलट एक एम संषचक्कगयाघरे uthor • बसे जोहे
ज० जेमतेम ते वासुदेव १०३ जहा सेवासदेवे ॥ एवं ६६ होए बऊ श्रुतहवे नृपमाबासुदेव सामान्यबद्ध श्रुनरूपी ए रथे बेसी चाले पाले कोइ परमलिए रथपानी बसाएनहीं ग्यान १ दरसन २ चा हवइबस्सु ॥ २१ ॥ रित्र ३ ९३ रूपसंरबादिक नोधरणाहार२ सुमतेकरी बलवंत ३ कर्मसत्रूने जीववासुलट ४ए १ मीनुपमाकही २१ ज० जेमते चक्रवर्ति चक्रवरतवानो स्वभावबेजेनो-च. चतुरंगी सेन्याएंकरी [अ० सत्रूनो त्र्यंतकीघोडेम • मोटीऋद्धिनोघणी च० चन्दर तनोन्म जहासेचानुरंते ॥ चक्कवहि महिहिए चनुदसरयऐगाहि
11.
ए.एम होए बहुत बेनुपमा ग्यान १ दस्सन २ चारित्र ३ तप ४ एच्यारेकरी कर्मरूपसत्रूनो अंत की धोबेजेने बहुश्रुतरूप चक्र जितनी
वई ॥ एवं हवइ बस्सुए ॥ २२ ॥ ज्ञारूपच करी वर्तिबे ने माटे
चक्रवर्ति महात्रत रूप तथा सबधिरूप महाब्रतनो धणी
महाऋद्धिनीधपी चन्द पूर्वरूप चन्द्ररत्ननो धणी अथवा १६ पूर्वाचित ज्ञानरत्नेंकरी सकल जीवनो अधिपतिनाथ ए ८मी नुपमा कही ॥ २२ ॥ ज्ञानु धळे पाच हाथने विषे पु० सत्रुनापुरनगरने स० सकेंद्रानेदेवनो अधिपति एक एम होए बहुश्रुत नुपमाऐ हवे श्रुनज्ञानरूपणी सहस्त्राक्षीबे १ १०३
to जेमते हजार ते सरषो देषवोजे जेने तेह ब० बजहा से सहसरके संकहिए
पाएगी पुरंदरे ॥ विदारणहार सक्के देवाहिवइ ॥ एवं हवइबऊस्कए ॥ २३ ॥
For Private and Personal Use Only
त्र्य. ११
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
नु. १०५
www.kobatirth.org
एवं हवई बस्तुए ॥ २८ ॥ बे ए १४ मीनुपमा जे० जेमतेमेरूपर्वतमा | कही ||१४|| २८ || जहा सेन गणपवरे
प्रतिपूरपा लस्योजेम ए० एमहीए बहुश्रुतरुवे नुपमामसेचे साधु साधवि श्रावक श्राविकाना समूहनो आधार ते रूपीनेकोग २० प्रमादादिके नदर . ११ कोवार बिराजे
एवं हवइ बहुस्कए । २६ ।। चोरादिकना लयथी धर्मध्यान लोग जकमादिकें करी लसीपरें राज्योबे | ३ नाशा मंगळपांग कालिक मुत्कालिक सूत्ररूप ज जेमते वृक्षमांहे प्रधान जंक जंबूवृन्द बीजूं नाम सुदरसन नाटियएवेनामें देवनो धने लख्यो बिराजे. ए १२ मी नृपमाकही ।। २६ । जहासा डुमाएा पवराजंबू नाम सुदंसणा ॥ एाहिय निवासचे ते अंबूवृक्ष विराजे एक एमहोएब श्रुतहवेनुपमा सामान्य साधु रूपवृन्दामांहे प्रधान बहुश्रुतरूप जंबूदृष्प सामान्यसुख रूपी या बहुस्सु ॥ २७ ॥ अमृतफल व्याप ते मारे लसादरसनमाटे मला सुदरसन २ पाटि ज० जैमने सकलनदीमा हे प्रधान स० नदी समुद्रमांगइलसी सी० सीतानदी भी ० नीलवंतप जहा सनईएपवरा सक्षिसासागरंगमा सीया नीखवंतपवहा तिथी निकसीबिराजे ए. एमहोए बहुश्रुत हवे नृपमा साधु रूपनदीमांहे प्रधान निर्मण श्रुतज्ञानरूप जपें भरी नदी २ सा० मुक्तिरूपसमुद्रमाहे मसी बहुश्रुत रूपिणी सीता मोटिमांहे ६ नीलवंत भोटा उत्तमकुलधी निकष्याने प्रगटपो प्रधान सु० विहे मोदोमंद एबेनामें पर्वत ना अनेक प्रकारनुषपीकरी देदीप्यमानवकोपि १०५ सुमहंमंदरोगिरी नाणोसहिषद्यलिया । राजे
स्स देवस्स एवं हव देवाधिदेवनो बहुश्रुतने विषेवास ए१३मीनुपमाकही || १३ ।। २७ ।।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
नु., ए. एम होएब श्रुतनुपमानग० सर्वसाधुमांहे प्रधान १ मंद० बहुश्रुतरूपी मंदरगिरी निश्वतपणा माटे २ सबधि शुकल सेस्यारूपिएसी जजेमं क्र.११
१०६ एवं हवइबस्तुए ॥ २९९ ॥ नेषधीएं करी देदीप्यमान बिराजे ए१५ मी नुपमा कही ।। १५ ।। २९५ ॥ जहा ।
ते सयत्तूरमपासमुद्र
म अपुट पाणी जेनो ना० अनेकप्रकारेने रत्नेकरि प्रतिपूर्ण भयोविराजे ए० एमहोएबहुश्रुत हवेनुपमा क
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सेसनूरमणे नदहि रकनंदा नापास्यापनिपुन्ने
एवं हवईबफ़स्सू ॥ ३९
| हेबे स्वयंलूरमए समुद्र मनिहे मोटामाटे षः ग्यानरूपी अष्ट पाएगी २ ना० अनेकगुएारूप स० समुद्र सरमा गंमीर 5० कोपरोपरालव्यो | रत्नेंकरी लग्यो विराजे ए१६ मीनुपमा कही हवेबञ्जश्रुतनागुएावषां वे ।। ३० ।। समुद्दगंलीरसमा पुराया ॥ नजाए अ० कोपोत्रासव्यो के कोपो जीत्यो न जाए. सु० सिद्धांतें करीपु० संपूएलस्योचे कि विस्तीर्ण अंगादिकेंप्रतिपूर्णता अकायना प्रचक्किया जाए के एगइ डुप्पहंसया सुयस्स पुन्ना ने विनुसस्स नाइयो रयानाकत. नेमाटे सिद्धांतनेलगीने ० मोहाने अ० अर्थज्ञा तम्हासुयमहिद्वेद्या नृत्तमनं गवेसए सि० मुक्तीनेपमाने ३० इमकजंबुं ३२ सन्दिपानद्यास तिबेमि ॥ ३२ ॥
राहार रख खपावीने कर्मने एवीजे बहुश्रुतते ग. सिद्धगतिप्रधानगति तेने विषे
खवितुकम्मंगमुत्तमं गया ॥ ३१ ॥ पड़ता ३१ | नदरसन चारित्रनो जे० जेपों सूत्रासेद्धांतें त्र्याश्रयकरीच्य= पोताना प्रात्मानेपर
ग० गवेषकं जेएप्पा परंचैव ना आत्मा
For Private and Personal Use Only
१०६
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नु०
इ० इतिबङ्गश्रुत पुच त्र्यध्ययनं इग्यारमुं संपूर्ण ॥ ११ ॥ बहुश्रुतदेवतानो पूजनीक होऐ ते हरिकेसी देवनोपूजनीक थियो सो० मा सना अ. १२ १०५ इति बहुस्सुयपुचप्रझयांसम्मत्तं ॥ ११ ॥ । तेमाटे१२ अध्ययन हरिकेसीनुं कहे कुलले विषेनुपनो गुरु ज्ञानादिक गुएामधान तेनो मु० धरणाहारसाधुह• हरिकेसी बषएवो नाम तो
११ सोवागकु लिलावलिन्तु जि. जितेंडी १ सिलिक जिइदिन
ससंलून गुणुन्तरधरेमुणि
हरिएसबलोनाम ॥
नञ्चारेसमि
५. सुमपि. एषासुमतिलाषासुमति जुनंचारादि परब्यानी सुमतिने विषे ए ४ सुमति ज० जतनावत या० न्यायाला निषेव 119 11 इरि एसला लासाए जनुं प्रयाणानि - या सुमतिनेविषे संघ संजति सु० लसीसमाधिवंत २ म मनगुप्त व० वचनगुप्त का कायगुप्त जि。 जितेंडी लि० | स्केवे संजु सुसमाहि ॥ २ ॥ मागुत्तो वयगुत्तो ॥ कायगुत्तो जिइंदिन ॥ लि लिकाने 'बं० ब्राम्हणानामज्ञबे जैन विषे ज० जज्ञानापामाने विषे सप्तमाधद्वितीया ३ त० ते साधुने पान्देषीने एक व्यावसायिका त तपेंकरी वद्या बलांम ॥
जवाब
॥ ३ ॥
तंपासनामेवतं
तवे
० मनार्यम्सेबसरा ४ जा० जातिने मदेकरि १०७
प० दुर्बसकीधो वे सरीर पं० जीए असारन० नुपाधिनुपगरा बेजेने न० हास्य करे बे परिसोसियं जेणें पंतो वहि नबम्गर
बसंत
पारिया ॥ ४ ॥ जाइमय परि
For Private and Personal Use Only
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१-८
छ । अहंकारी हिंसाना करए हार अब जितेंदी अ० अब्रह्मचारी .. बाद अज्ञानी इ० एहयो वचन ५ कोपारे |अ१२
य हाहिं सग्गा अनिइंदिया अबलचारिणो वाला इमंवयएमबवि ॥ ५ ॥ कयरे आ ये वे दि अत्यंत कुरूप ११ का वर्णेकासोर१ विहामो पो ७ बेगचीपमी नासकाले न० असार वस्त्रबेजेहना पंच रजेकरी आगवा दित्ताचे काले विकराले पोकनासे जेनी नमचेलए पंसपिपिसाबसरमो संकरमानविष नाघ्यु हो ए एई जे वस्त्र लेने धरीनेते के कंगना एकदेसने हवे ब्राम्हण कच्कोपारे ४११ ३८ एचीअन्दर सायलूए संकरसंपरिहरिय कं ॥६॥दिषेध) बोध्यो कयरे तुम इयअदं दरसन करवा अयोग्य का कोपा३३३० मे या. यासाए एसएजज्ञनापामानेविघाचीन नुकासारवेशे वस्त्रजेहना पं रजेकरी पिसाच सरषो सपिये लाए बासाए इहमाग सि नुमचेखगा एवा पंसपिसायल्लूया गत जज्ञनापामायीपाजा अमारी आगलची किसुं३. इहांनुलो ज जरा नेपो अक्सरें नितिक रु सनीवासीएतसेयझनीति गबरवसाहिकिमिहिदिनसि॥॥ रह्योचे जरकोत्तहिं तिय रुरबवासी हांवासरे आज सातानो उपजापाहारगे न लेहरिकेसी मठ महा सुनीने प. साधून सरीरे अागादिने नि० पोताना सरीरने ३०एहयो बचने करि
अफकंपन तस्स महामुपिस्स पबायत्ता २१ नियगं सरीरंइमाइवयगाई
For Private and Personal Use Only
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उ० बोलतोऊयो ८ स.साधुऊ. सं. संजनीज बं० ब्रम्हचारी विवानिवो धर धमयी प. परिग्रहपी ५१ । मुदाहरिढा ॥८॥ समपोहं संजन बंलयारी विर धपया परिणहान. प. परने अर्थ नीपनो १०० अवधारयो त्मिक निशानाअयसपने विधेनन्ग्राहारने अअ ३० इटांबायोढुं । विक तुमोजेतेदीजीएंन्दा
परप्पवितस्सने लिरकाकाले अस्स अवा इहमाग सि॥॥ वियरिया स्वच रवाषांषा लब्जेमबेकर सुगादि अ अनधएं ए० एप्रत्यक जाल मे० मुजमर्ने जाणे जा जाचकरी जी जीवबो
खधई जादि लुंजय यखि अपं लूयंलवयाएरमेयं जापाहिमे जायगा जीव जेहने से प पशेषे आहारने तन्तपसी ब्राह्मणबोल्यो १० न० सयणादिकंकरीसंस्कारथोडे एवोत्लोजन ब्राम्हएाने । गोत्ति सेसावसेसंखहने तवस्सि ॥१॥नवरब लोयामाहगाए । अ. आत्माने अर्थनीपनुइ० शहां जग्ननापामानविषे ३० इहां एक ब्राम्हएानोपन अनेरानेदेयानिश्शेअमोवो अनपापीदेसुनहीं तुम अतधियंसिहमिहेगपरक॥ ननन्वयएरि असापाए ॥ दाहामुतुशं नेविषे ३० इहां जत्नोवे हवे जनबोल्यो ११थ मुंचीभूमीनेविषे बी० बीजने व वायीने करसपी लोक त तिमहिजनीचीलमीनेविषेसीआ- घर, १०४ किमिहविलसि ॥१॥ थसेस बीयाई ववेतिकासगा तहेवानिएसय आस
For Private and Personal Use Only
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
करी एएपी श्राएं ददीए मुजने श्रा. आराधे पु० पवित्र मि० मुजरुपिन निश्रेषेत्रने १२ रखे निम्मे क्षेत्र हु वि. अ.१२ साए एयाएसडाए साहिमशं ॥ श्राराहए पुष मिएं खुखेत्तं ॥१२॥ खेतापिअम्हंवि जाएयाप्रवतेचे सोन्सोकनेविषे जे०जेषेत्रनेविषेदीधयिकाअन्नादिकनुपजेपु समस्त ने जेब्राम्हएाजाते करी विविधाएंकरी सहित होएं तान् ते मश्वे दियाणिलोए जेहिं पंकिण विरुहंनि पुरा पजेमाहणाजाई विद्योविवेया ताईतुके
सुशोलनीक १३ हवेय-कबोल्यो को क्रोधचलि मा०मानवासि व भायालोल्लू ने जे प्राम्हपाजानेएषोष मो मपानीबोन | ताइंसपेससाइं ॥१३॥ कोहोय मागोय होय जेसिं घटा साने मोसं अद अ० प्रदत्तनो सेबो चा चशब्दयी अब्रम्हन सेवतो. प० परिग्रहनो राघवो चशब्दयी रागद्देषनोकरयो एनसां नि विद्याएं करीरहिन ना. नेव तंच परिग्गहंच ॥ नेमाहपाजाइ वानाब्राम्ह पामांसालेने० ते ब्राम्हपाजति करी विद्याविरुपा ताइतु धारपो षेत्र सुन अनिहे पापनपजवा १५ तु. तुमें एसोकने विषेलो अहो ब्राम्हपात्ला० लारनाधरणहारगे अ अर्थपरमारपने न जाएो. खेताइंसुपावयाइं ॥१५॥तुझेख लोलारधरागिराएं बेदबापीना अर्चनजारोह . अलपीनपण वेदने स० मोटाकुसनेविषे अ नानाकुसनेविधे मुरु साधुनेलिप्याने विषे ताक लेनिश्चेषेत्र सु. अतिहेशोत्ननिक पहथेविप्रबोल्यो १९० अहिधवेए नुच्चेवयाऽमुपिागोचरंति प्रवर्ने नाश्तुरवेत्ताईसपेसलाई ॥१५॥
For Private and Personal Use Only
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुपाध्यायना प.हे अवगएनाबोलपहार प. बोसे कि किमअवधारणेसमीपे अमारी अ.असनाबनाएं विपिएसो| | अ.१२ अशावयाए परिकूलनासी पलाससे किंतु सगासिअम्ह अविएयं विपास . अ. अनपाणी वशिने ननदीजीएं तुलनेहे निग्रंप १५ हवे यरू बोल्यो स. मुजपांच समिकरी सुप्रतिहेंस समा में असएपाएं अप्तकारें नयणं दाहामु तुमंनियंग ॥ १६॥ समहिमशं स समाहिय धिवंत बसीयु प्रणामुकरी गुप्तने जिं जितेंडी पवामुमने जन्सोमुजनेनहिदेश अन् इहां एषापीक आहारने कि किम आज स्स् गुत्तिहिंगुत्तस्स् जिदियस्स जश्मेनदाहिब अहेसणिधं किमयजन्नास अग्नोना स. पामसोसाल १७ हवे ब्राम्हपादोड्यो के० कोएश्हांधत्री नुअग्निनासमीपनारहेनार विप्र अथवा अ० लगायनार विभवति लिनुसालं ॥१७ ।। केएन. खेत्तानवजोश्यावा
अशाहयावा । स० विद्यार्थिएंकरी सहितविप्र ने इहां अाव्योक एहने अवधारणें दंव मेकरी फ० बीसादिकफकरी हएीने कंगसानेविग्रहीने काटेजोल सहरकिएहिं एयंतु दमए फसेएहता कंमिधितृणं खते जेको बसयंतहोए ते असंकारे १८ अ अध्यापक ब्राम्हणानावचन स० सांत्नलीने उध्योया नानिहांधणाकुमार दे मां करि / १११ घजोणि ॥१५॥ अशावयाएं वयणं सुणित्ता जुधाइया तबबऊकुमारा दंहि।
For Private and Personal Use Only
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
नु. वि० वेत्रने बैंकरी क० चाबर्ष करी निवै ११२ वित्तेहिं कसेहिचेव
स० एका मिल्या. तं० तेरुषिने समागया तंसि
ता० होने मांसादिकें १७ तेणें अवसरे २० राजनी ६१ नं ० है . १२ तापयंति ॥ হয়ে।। रन्नोतहिं जनना
| मामाने विषे को० कोसलदेशना राजानी बेटी ल० लगाएवं नामें ३१ न ० नयी निंदनीक त्र्यंगजेहना तं० तेहनेदेषी सं० संजतीने ह० कोसलियस धूवा ॥ लद्दंतिनामे तंपासिया संजय हहातयिका कु० कोपर्वत कुमारने प० निवारे बे तोडा करे बे २० दे० देवताने बलात्कारें करी नि० प्रेरणों करी दि० दीया. मु०रा
दियंगी
म्ममाएं कुठे कुमारे परिनिवे ॥ २० ॥ देवालिनगेणं निएणं दिला मुर
जाएं म० पएए एएोमनेकरी झा०ध्याएनहिंबांचे न० एकेहवो बेराजानो इंडबंदनीक जे जे साधूने ॐ बमी ५० षीश्वरने स० तेएएन
मा मासाण झाया नहि नरिंददेविंदलिदिएां
निचै २१
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जेमिनाइसिएला सएसा
पूनराहार म महात्मा जि० जितेंडी सं० संजती बं ब्रम्हचारी जो० ने साधु ११ मे० मुफनेनव
॥ २१ ॥
एसोसोनुग्गनवो महप्पा जिइंदिन संजन बलयारी जोमे तथा निवारे
ने० नवीबे दिन देता का पि० पितापोते को० कोससदेसनो २२
म० महानसवंत ए. एवाम० अत्यंनसक्तिन | ११२
ई दिए || पिपासयं कीसबिएएारणा ॥ २२ ॥ महाजसो एस महा लागो
For Private and Personal Use Only
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
घो कुकररननो पर घोद पाकरामाक्रमनोधएी मा० रखेए साधुने हीव्हीसतांश्रव्हीसवाजोग्यनहीं मा० रषेसर्व तुमने ते तपनेजेकरीअ वाली अ-१२ घोरबने पाहार घोरपरकमोय माएयं हीसह अहेपणिचं मासधे तेएएलिनि। ने लस्म करे २३ ए. एपूर्वोक्त नील ते कन्यानाद ववचनने २३ सो० सांत्मसीनेनेकेचीले प० ब्राम्हपानीस्त्रीनो ललानावचनकेबुडेल या ॥२३॥ एया; तीसे वयपाइं सोचा पत्तिए लहाए सुत्लासियाए ३. रिषीनी वेवेचायचने अर्थे जजरूपपा परिवारने अर्यबऊवचनाक वि हपनाबारेने २४ ते जन्धीची सिस्स वेयावणियबकाए जरको कुमारे घणाकुमारने विणिवारयति ॥२५॥ घोरत्या हामपोरूपजेनो विचरह्या१३ अाकासनेविषे अच अमुलपरिणाममाटेअसुरा नेविद्यार्थीसोकप्रतें नेकुमारकेचाने निविदास्था देखो ग्यिअंततिरके । असरातहितंजाग तं ने जम्ननापामानविषेत तासयति ताम्हणेने तेलिादेहे साहिरी बमनाने पान्देषीने ल लडाएंबोली वली २५ गिपरवनने नर्षेकरी हपोलो असोहने दोनेकरी स्वाल पार्टी बो वमंने पासिनु लद्दाएपमाऊलुद्यो ॥२५॥ गिरिनहेहिं खपाह अयंदनेहिं रखायह, जा० अग्नि पापकरीहएो में. जे. तुम्हो साधुने अ० अपमानद्यो २६ आ सर्ष सरषो उन्मुनतपनोपी १३ जायतेहिं पाएहिं हपह जेलिरकू अवमपह ॥२६॥ आसिविसो जुगतवो
For Private and Personal Use Only
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उ.
गणिच
म. मोटोषीसर घो० मकराव्रतनो धणी घो० व्याकरामाकमनोधराहार य० वलि अशिमां हे जेमपके प० पतंगनी सेना समुह नेमरे जे०जे ऋ.१२ ११४ महेसी घोरबन परकं दपयंगसेएगा जे सी. मस्तकेंकरी ए०एमुनीनासरएाने परिबर्यो स० एकरामत्यपि एयंसरणं नवेह समागया
सीसे
घोरपरक्कमोय | तुम्हे साधुने ल० लोजननाकालने विषे होबो २५ लिकूय लत्तकाले वहेह ॥ २७ ॥ स• सर्वजेन सहित तुम्हे ज० जीवांची जी० जीवित ६० धनपू लो० सर्वसोकने पाए० एयती कु· कोप्याथिको बासे सहजणेातुझे जइबह जीवियंचा धांवा लोगंपि एसो कुविने महेद्या मस्तक जेने प० लांबी कीधीबे समासांतपदा याहा गांव ॥ २८ ॥ अवहेरिय पिचिस उत्तमंगे पसारिया बा कम्मुचिचे निले जेने नि० फटारी मांष जेहनी रु० रुधिरनेब० वूमताने २३ ८० ऊंचामुखबेजेना नि० बारनिकस्याबे जील मनेनेत्रजनाएपूर्वोकिया २९ ते नेहवा रिमबे रुहिरं बमंते निणयजीहोते ॥ 25 ॥ नेपा
२८
ननुं मुहे ते देषीने स्व० विद्यार्थीने कं• काष्ठसरषानें विमकुव्याकुलयो. विमणो बिसयो
• हवे ब्राम्हणा ११ सोच ते ३० रिषीने प्रधान कहे
सिया खंनिय कंक्लूए
महमाहणो सो इसिपलाएर
For Private and Personal Use Only
११४
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२१५
|| स सत्मारजक लार्यासहित हि. जेतुमनेहिल्यावसी नि निंदावसिषमजो हे पूज्य ३० बाबासकें ३३ मुन्मूचे जाणे १.१२ सलारिया हिसंच निदंच रवमाहलंते ॥३० ॥ बालेहिं मूढेहिं अयाएएहिं
• जेहिल्या १३ न० ते अपराधने घमोलच्हे पूज्यम० मोटानपगारी १३६० रुषीश्वरहोए. निश्चै साफे को क्रोधनविपेतत्पर | जंहीसिया तस्सखमाहलंते महप्पसायाइसिपो लवंति नसमुणि कोहपरालवंति होएनहि.३१ हवेसाधुबोख्या पु० पूर्वकालपुना वर्तमानकाले अनागनका म मुजने का अरे नहि कोषकोइअष्पमात्रपप ॥३१॥ पुत्वंच इएिहंच अपागयंच च० पूरपोप्रहेष मएपदोसोनमे अखि कोइ जस्का जहाजेलपीचे वेयावच २१ कर करे. तातेमाटे एमज ए ११ नि हएया कुमार ३२ हवे ब्राम्हएा बोल्यो अन्शास्त्रनाअपने पुनः
र वेयावमियंकरेति तम्हापा निहयाकमारा ॥३२॥ अखंचधम्मंच | वि विशेषेजतीधर्मनेजाएाता नु तुम्हे न नजकोपो लू-वृक्षवंती प्रज्ञाने नु. तुमारीनिश्पा पगनोसरपान करुनु अमो साएकग वियाएमागा तुने नकुप्पह लूइपन्नानी तुझंतु पाएसरएंजवेमो॥ समाग | | स. सर्वजने करी सहित अम्हे ३३ अपूजु अम्हे तेन्तुजसंबंधी सर्व अंगम हेमहानुलाग नन्नहींतारूंकि कारककिंचित्मात्र||१९५ या सबजोगाअम्हे ॥३३॥ अच्चेमु मुत्तेमहात्मागा नते किंचिनअचिमो
For Private and Personal Use Only
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न.
मंच
पुलूयमएां तं
तेन लोगवी लुब
सीए बे
लु० लोगवो. सा० सामना कूर नामनेक प्रकारना व्यंजन सं० सहित ३४ ११६ लुधाहि सासिमंकूरं नागावं जए संजुयं ॥ ३४ ॥ मारानुपगारने चारये ७१ बा० करु तुमारो कहए। एमकहीने एवं कर्मबांबा ल० लालपाणीने मो० मासने पूर अम्ह एहवा बाढतिपरिब तपाणां मासस्सने | पाठ पारएणाने विषे म० महात्मा ३५ तते जग्ननापापाने गं० सुगंधपाणीनो फूसनो बरसात पूगे दि० प्रधान त० तिहांज व इब्यनी पारणाए महप्पा ॥ ३५ ॥ तहियं विषे गंधोदर पुष्पवासं ॥ दिवा तहं वसुहारा प. बजादिन 5. देवी देवताएं च्या० प्रकासन विषे० प्राश्वर्यदानदीधुं ३६ निर्घोषकी धोदेवताएँ स० मन यबुवा पहचान डुलीने सुरेहिं ॥ निश्वैदीसेन तपनो विशेष न. नदी
धारा
गासे महोदारांचवं ॥ ३६ ॥ सरकं खुदस्स
जा० जालना वि विशेष को सी. चंदासनोपुत्र ह० हरिकेसीबससाधु जै जैसाधू
नोविसेससो नदिस जाइ विसेसकोड़ सोबागपुत्तं
नी
३० कुद्धि म० अतिशय सहित महातमवंत ३७ हवेसाधु किं० प्रवेस्योबा० ब्राम्हणा
रिस्सा इढि महाएफलागा ।। ३७ ।। उपवेसकेळे किमाहएगा
For Private and Personal Use Only
३० एतच पूरो मे० प्रमारे ने प० घणुं मन्नतं . १२
मे
हरिए ससारू जस्से
जो० अग्निनेत्र्यारंभतांधका
जो इस मारलंता
१११६
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-|| उ पाएीए करी सो बाह्य निर्मसपएाने३१ वि०विमार्गयथअन्वेयये जा जेमगवेपोटो बा बाहिर विनिर्मसपणाने नन्नहि ने लखोबा अ.१२
नदए। सोहिबहिया विमुग्गहा गदेषोबो जंमग्गहा बाहिरियं विसोहिं नतंसुदि निर्मलपपाने कुतीरथंकरे ३८ लुम्वतिनिश्चैकुछ मालनेपुनःजु जगननाथलने न तणाने कोष्टने अन् अग्मिने । सा० साले पुनः जन्न कुसखावयति ॥३८ ।। कुसंचजुवंतपकच्वमग्गिं । एतसांवांना धर्मने अर्थग्रहनायिका सायंच पायंच दकनेफरसनायकापा माणत्यूतने विपीमतथिका लुम्वपिनि मंसूरपयका फ० करोडो पापने ३९ हवे विमपूजे जे नद्गंफुसंता॥ पापाइल्याशविद्वेडयंता लुंधोवी मंदाप करेहपावं ॥३९॥ क-केमप्रत ने लि० साधु व अम्होजागने करुं पो० पापकर्मने २३. प. टासो केम . अ कहे . ० अम्हने स० संजनी कहंचरे लिरकू वयं जयामो पावाइंकम्माइंपगोक्षयामो अरकाहिं संजयज पूजनीक कमलसाजज्ञने कुछ तीर्थकरकहे . ब. उ जीवनिकायना अन्यारत्मना अकरनपिकामो०मृषाने अदत्त कपूश्या। कहंसजई कुसतावयंति ॥४०॥ बजीवकाए असमारंलंता मोसंप्रदत्तं च पुनः अपासेवतथिका प० परिग्रहने ३०स्त्रीनेमा मानमायाने एपपूर्व कह्यातेने प० मावाजापी पचपीनेप्रक्लैशीन्दमतोय | १९७ च असेवमाया परिग्गरं इनिन मागमायं एवं परिलोयचरेद्यदंता ॥४॥
For Private and Personal Use Only
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वो ममतालाबने करवेक अ. १२
F
सु. ललीपरें संवराव जेोंप० पांचसंबरेकरी ३० एमनुष्य जी० असंजमजीवन पायांचा का ११० सुसंबुमा
बोसरावी
पंचहिं संचरेहिं इह लोकनेविषे जीवियं व्यने अावकखमाणा वो सबकाया री सुमनजोगें करी पवित्र शुश्रूषायपाकर वैकरी तज्या बेदेह जेणें एवा साध ते म० मोटा बे कर्मशत्रूनो जय जेहनेविषे अ० एबाजग्नमांहे कायाजेों सइचत्तदेहा महाजयं जय || जन्नसेवं ॥ ४२ ॥ श्रेष्ठप्रधानजसने जय जजे ि | गमे एकवचनबे इत्यादिकनाव्यय के. कोणा तुमारे प्रग्निकोएा तुमारेयग्नीनुथानक के कोपा तुमारे चाटवा कोएा तुमारे बसि तुमारे केतेया किंचतेकारिसंगं
| तेमाटे हवे विभबोल्यो ॥ ४२ ॥ गोरसधुकए। एहा इंधावसि ते तेतुमारेको एहाय तेकयरा
hasha जोगां सं० नृपरवटासवानेशांति करवाने
क० को आतें करी होमोबो जो० अग्निने ४३ संति लिरक्कू मंत्रनी चिकोडासा कयरेएाहोमेरालासिजो५ ॥ ४३
हवे साधुबोल्यो तब नपरूप अग्नी जी० जीवते अग्निनो जो० मनवचन कायान जोगरूपते स० चाटचा संच सरीररूप तेगोरेस क० कर्मरूप धा
॥
तवो जो जीवो धानक जोड़वाएां ॥ जोगासुया सरीरंकारिसंगं धुका कम्मेपहा
सं० संजमने विषे आत्माने जमवोते • सांत करवानो मंत्रपाठ एवोहोएस० ३० रिषीस्वरोने प० लखुए करतव्य हवे विप्र बोस्या ४४ संजमजोग संति ॥
होमंझणामि होमोड इसिएं पसन्तुं ॥ ४४ ॥
For Private and Personal Use Only
११८
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| के. कोपातुमारेश्हयतिअथवा संनिवेति तीर्थपवित्र तीर्थ पुन्यछे का कोपानविषे एहा नोएयके वा अयवा वखिकहे रो० अम्हने हे सं ०१२ केतेहरए केयते संति निबे कहिंसिं एहान वस्यं जहासि आएको जति ज० हेजतनापूजनीक ३० वांडोजो ने ना जापायो ल तुमारी समीपे ४५ हये साधुचोल्यो ध० दयाधर्मरूपरहं | संजय, जरकपूश्या बामो नान लवन सगासे॥४५॥ धम्मेहरए । बब्रम्हचर्यरूपडेति तीर्थयात केवोडे आर निर्मस अ आत्माने पर लखीसेस्या शुकखादिजेने जन्जेहबादहनेविषैनायिका बले सति तिचे आएाविसे अत्त पसएसेसे विषे एवोऽहले जहसिएहाने वि. कर्ममसरहिनयको विर अतिहे सः सीततीत्मतयको प० टाल्यू डे कर्मने ४६ एपूर्वोक्त सिंच स्नान कुछ विमसो विरूडो .. सुसीइलूने पजहामिदोसं ॥४६॥ एवं सिपाएं कु तीर्थकरें दोगे म ए मोटो स्नान ३० ऋषीसरने लघु ज जिहाँ ३१ एहा नायविका विन कर्ममसरहिन वि रोगादिक सजेहिं दिवि महासिपाएं इसिएंपस जहसि एहाया “विमला विसुझा॥ कसंक म. मोटारिषीस्वर नः प्रधानथानक पाम्या ३५ इमकऊंडे ३० एतिहारेपसिध अध्ययनं सम्म बारसमं १९९० हिनयको महारिसि नन्तमंगएंपत्ते तिमि ॥४॥ इतिहरियेसीधअनयबारसम
For Private and Personal Use Only
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
काहारे निदान करो. तेरमे अध्ययनमां तेहनागुएा जा० जातिनो परालव्यो खच् निश्ों की धुं षा १२
१२० सम्मन्तं ॥ १२ ॥ पुरनेविषे
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नि० निदान तु० पूरणे ह० हस्तनाग १३
जाइपराजिन, खककासिं नियाणं तु हचिएगा चूच् चूलीराणीनी कुरवने विषे ब्रम्हदत्त ११ न नृपनो प० पद्मगुष्मा नामाविमानयी चवीने ५१ कं० कपिसपुरे चूलिए बलदंन्तो ॥
मम्मा ॥१॥ कंपिले
॥
० सेवनाने विषे ७१ वि० निर्माण ध० धर्मने सेविकुसंमि विसाले धम्मं स. एकामस्या दो० वे चित्त १ सं० संलूतर सु० समागया दोविचित्त संलूया सु
चक्रवर्ती मo मोटी ऋद्धीनो घेशी बं० ब्र
पुरंमि ॥
"वो
| सं० नुपनो ब्रम्हदत्त चि。चितरूपीनो जीवव पु० पुरिमताल नगरने विषे चित्तो सीपनो पुएराजाने पुरिमतासंमि
संलून
कं० कंपिल पुरनगर वि
सो० सालसीने पर मदर्जा दीक्षासीधी २ सोना पचने ॥ २ ॥
कंपिांमियनयरे ते० ते बे ए० एमाहीमा ३
सुषषना फस कि विपाकने क० कहे बे
हडस्कफलं विवागं कहूंति
ते एकमेगस्स ॥ ३ ॥ चक्कवहि महिडिने बल ह्मदत्त म० महायसवंत लालाई प्रते ब० घोमाने करी ३० इमवचन बोलतो लो 118 11 प्रा०ता मोलालाई १२० दत्तो महायसो लायर बऊमाणेणं इमंवयामवि ॥ ४ ॥ ग्रासिमोलायरा
For Private and Personal Use Only
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairt.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बिज अ बसता उता माहोमाहे. अ. माहोमांहे स्नेहवत अमाहोमांहे हितनावाडक ५ दादास दाद- अ.१३ दोवि अपमपावसाणुगा अन्नमन्नमपुरत्ता अपमाहिएसिगो ॥५॥दासा दस सापदिसनेविषं मि मृगलतो काँकासिंजरपर्यननेविपे हं हंसततो मन् मृतंगनदीना तीरने विषे सो० चंकालनताका कासीनी नेयासि. मियाकालिंजरेनगे ॥ हंसा मयंगतीराए ॥ सोधागा कासिचूमिए लूमीनेविषे ५ दे० देयतावनि देवलोकनेविषेशता अ० अम्हे आपण बे मोटीऋद्दी ए मतस बनीजानि । अअन्यो ॥६॥ देवायदेवतोगमि. यासि अम्हे महिदिया नापणी इमाएगो बवियाजाई अलम न्यजूजूए.3 हये चितऋषि चोख्या .क. कर्मकेवानिदानकरी प. प्रकर्षे कीपां तु तिहांतुम्हेहेराजन विशेष चिकचिंतय्या एतलेन पाजाविणा ॥७॥.. कम्मानियाग पगमा तुझेरायविचिंतिया पर्नुफातमागीनेंसी ते तेनियाएाकर्मनाफसने विपाकेकरी वि.विजोगनेपाम्यात जुजुयागया. • हवे चक्रवर्ती बोल्यो सम् सत्य सो मायासहितपत्रिकरन तेसिं फसविचागेवं विपनुगमुवागया॥७॥ सच सोय पगमा ॥ प कीधांनुपराज्यने क० करमने पू० पूर्वत्मवें ते० कर्माजमोगबुं बुंअनुप्तिष्टा कि प्रवितर्केचि हेचिततुपए तेपुन नथीलोगवनानिमकं ||१२१ कम्मामए पुराकमा ॥ तेअधपरिनुघामो ॥ किन्नूचितविसेतहा ॥ए ॥ लोगवुवु ५
For Private and Personal Use Only
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सहं
मुनिबोध्यो स० सर्व सु. हy तपादिक अाचरणास फलसहिन होएन नस फकीधाकर्मने अपात्मोगवेनच्नमूकाक्योनयी अन्ऽव्येकरी || अ.१३
सुचिन्नंसफर्सनराएं मनुष्यने सर्वजीवने कमाएकम्माए नमोस्कअति।अबेहि का शब्दादिककांमेकरीपूर्णे एविजन या. आत्मामाहरे पुन्य करी फ० फसेंकरीसहित १० जाउ जेमतुमाराआत्मानेजागोडे सं० संत्यूतमा कामेहियननमेहिं धानेकरी आयाममंपुन्नफलोववेए ॥१०॥ जापाहि संलूय माने | जे० केचाजाने मोटुंमहातमपएत मन् महर्पिकपष्टुपुष्पुन्यनेफसेंकरी नु सहित तारा आत्माने चि. चितपाजापोडे ननिमा
महापालागं महिद्वियं पुलफलोववेयं जेम एषो जागो वे चित्तंपिजापाहि नहे। हीजहेराजन् कधि जु० ज्योतित चिननेअपाजे लपीपासताएमजापो ११ वालीए गाया म मोटा इत्यादिक इव्यगुणापर्या | वरायं इति जुइतस्य वियप्पलुया ॥११॥ केहवी ने महबरुवा यादिक अर्यरूपडे . वच् वचनकरी थौमा. गा एहवीगाथा थीचरै करी न मनुष्यमांहे मनुष्यनाबूंदमाहे जंजेगाथासांत्मलीने लि चारित्रगुरु जेमांहेएगाथा वयएप्पलूयागाहाएगीया नरसंघमझे जं लिस्कूपी सीख ज्ञानएबीऊएंकरी न० सहिलडे एबा ३० एहजिनशासननेविषेज सावधानजलवंतहोतापा.१२अमएा साधु जास्त नचायोचास बीजू न ||१२२ गुंगोववेया लिकुळे ते इहजायने समएोमिजाने॥१२॥ वे चक्रवर्ती बोल्या नुचोदए दय
For Private and Personal Use Only
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
म. बीजूमधुकर कर्क चोयुवासि पाचमो ब्रम्हकयाए पांच भात आवासय० पू० रमपिएक इ पकयोगि घरने हेचित्तमलूनघपा धनने विषे ||अ-१३ | मत कक्वेयवंने ॥ पवेश्यावसहायरमा ॥ इमं गिहं चित्तधएगाप्पलयं | प० अंगीकारकरपाले गुट सर्वगुणोंकरी सहितएषा पं०पंचासदेसना ना नाटके करी गीतेकरी बा० वाजंत्रेफरी. ना. स्त्रीजनने जन्जॉपीने पपरि पसाहि पंचालगुपोववेयं ॥ १३॥ राज्यने १३ नहेहि गीएहियवाइएहि ॥ नारीजगाइं परिवार मते प्रवर्तनयिको मुस्लोगवे लो नीगने ए प्रतरु हे साधु म मुजने रो रुची बेपूर्वेकहीने पर प्रवादी पनि यंतो ॥ लुद्याहि लोगाई श्माईलिरकू मम रोय पवद्या घ्या तेज 5. कुषज १५ ट्वेचित्तरुषी ने तेराजामनेराजोपु- पूर्वत्नयनोनिः सनेहं नेपोंकरीइहां प्रेम जेपोचलिकेवोडे न अनेरा परनो अधिपनि परकं ॥ १५ ॥ चोप्या त केहयोडे 'पुवनेहेणकयाएकरागं ॥ नराहिवंकामगुएरोसुगिई. गकुर वलीकेबोबे का शब्दादिकाम ५० धर्मनेविषेरह्यो त तब्रम्हदत्तगवेषीयको चे चितऋषी ३ पहबाचचनने न बोलतोयको १५ गुपानेविषेहो एवाराजाप्रने धम्मेसिन तसहियाएपेहि चीत्तो इमवयाँमदाहरिता ॥१५॥ स. सर्व चित्र विलापसरपुं गि गीतनेतूं जागो सा सर्व३१ न० नाटकने विविटंबना जा स सर्व न्यायालरतन लालार सरपोजा | १२३ सवं विलमियं गियं सवं नई विवियं ॥ सवेलरणा नारा गो.||
For Private and Personal Use Only
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kabatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ऊस सर्वकाममोगने ३० पुषनाकारपाजापो १५ बा अज्ञानीनेच अलिरामे उहावहे सु० नस्सह नकामगुणेप राय हे राजन् विका||१३ १२० सवेकामा उहावहा ।। १६॥.. बालालिरा मे सहारहेसु ॥ नतेसहंकाम माए लवोधपोएाज जेरूप लि निकुसाघुडे तेसुषकामगुणे ते कामगुपोच्नेकामगुपानविनयी कामगुण केवाबासा अग्यानीने
या अलिभाने अलिराममनोहरवासाबे हा उषना आवहें कारया जे प्रयया उषनीप्रवाह एवाकामगुपने विषे रुपनयी साधून विक निवाजे काल कामगुण तेथी वसि ५३ केवा ले ६३ तयोउ तपरूप धन के जेने बस्ती केघाडे सी० सीखनाजे गुणे युपा रूष विस्तकामागतबोधगाणं जंलिरकूएंसीलगुएरोरयाएं ॥१७॥ लेनेविषेरया रा| ता एया साधुने १७ ना हे नरनाम
सो चासनी जातिप्रतेगयापांपाम्या पर्ने एवी आपपोधिनीनरानरिंद जाइअहमानराणं ॥ सोवागजाश्हनेगया जहिं वयंस पाच नरमनुष्यमांहे अहमान अधर्मनाइच जाननि ज. जेजातीविषे वय आपदाबेसवजपा सर्वखोकने सा० देषकारीवसी या बसतान वजास्सवेसा ॥ वसीयासोवाग निवेसएस ॥१८ ॥ तासो चालना नि घरने १८ ती तया पूरपो आ जातिनेविषे पापापकारपानेविषे यु-वस्या मु आपण बनि चालनाघरनेविषे स. सर्व लोकने तीसेय जान पावियाए बुग मुसोवाग निवेसोस ॥ सबसलोगस्स
||१२४
For Private and Personal Use Only
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
5. हीप्लनीकलता ३० नवनेपियेतुपूर्ण का श्रुत्मकरमपूर्वसर्वनेविषे १० सो तेनू संस्मूलनोजीवाइ हिवकांबोराजश्र १२५ पुगंबगिया इहंतु सिद्धपाउने काम्मापुरेकमाई ॥१९॥ सोदाणिसिरायमहाएफला
ममोटामहातमनोधएी. पुनमुन्यनो फलसदिन हर्वेडो चवांगीने लोगने अशावतो ३ आचारित्रलेचानो हेतुएं गो ॥ महिडिन पुन्नफलोववेन ॥ चश्तु लोगाई असासयाइं आयाएगहेनु अनिकली संसारथी. २९ ३० ए मनुष्यसंबंधी अप्रसास्वताजीवएआनुषानेदिघे या अनिह पूपी पु-पुन्या अनिनिरकमाहिं ॥२०॥ इह जीविएराय असासयंमि हे राजन् धणियंतु पुलाई अ० अकरनीथको पुरुष सेन्ते पुरष अ मु०मरपानेमुपपझनोथको ध धर्मने अभएकरपेकरी पपरसोकनेविर्षे सोचे २१ अकुच्चमाणो सेसोयश्चु मुहोबपिने धम्मचकानए परंमिलोए ॥ २१ ॥ जन्मइ इहलोकनेविषेसिंहमृगने गबहीनेसे गाएमच्मरणरूपसिंह नन्नरमनुष्यनेयहीने पनचाके परलोकेखे जाए तंजनि अन्न जहेहसीहोवमियं गहाय मच्च नरनेऽनअंतकालेनतस्समायावपियावत्लाया ॥ कापनविषेनहिन तेहनेमाता अयवापिता का कालनेषिय न लेपोनानाभानुपानाला लागनादेपहारहोएनहीं एतलेमाताप्रमुषपोतानामा १२५ अयिवारलाई
कासंमि तस्ससहरात्मवंति ॥२२ ॥षानोत्नागदेनहीं तेजीवतारहे .२२
For Private and Personal Use Only
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
5.
ए. एकलो पोतेज
न• नहि तेहना दुषने कि वेचिनसीए नातिसान मित्रनावर्ग समूह वेचीनले न० लाईपएस बेचीनले १२६ नतस्सुखविलयंविनायने न० बेटा बेची न लेए.
| लोगवे हो होए पुषने कं० कर्मना करएाहारमते प्र. केमे जाए कर्म २३ चफ होइडुरकं ॥ कंताइमेवं
नमित्तवग्गा नसयानबंधवा । एकोसयं प चि• बांकीने पु० मनुष्यनेवलि च० पशुम चिच्चा उपयंचनप्पयं च पुषने
कम्मं ॥ २३ ॥
स्वे० उद्यामी भूमिका गि० ६० धनने ध० साल प्रमुषने बलि सन् सर्वपदारथ ने बांकीने स० पोताना अ० श्रात्माबीजोबेजेनो एवेोविको कामच खेत्तं सिंहं घरने पांच सबं सकम्मप्पबीन कर्म अवसोपयाइ ॥ परंलवसुंद सेपरबसे जीवप० परलयमतें ११ सु० स्वर्गादिकमतेंनरका तं० नेएका तु०जीवरहित स० सरीरने तेजीवनो सरीरके वोढे क बयनेविषे ग |रंपावरांवा ॥ २४ ॥ दिकमते अथवा २४ तंएकगं तुब सरीर सेवई दहिय पोता एवासरीरने द० बालीने बलि ल० स्त्रीबलि पु० पुत्रपपावलि नाच्नातिलापूरो ना० दा० लरपोषएानो करएाहार च्प्र० मूळे तेथीकानेरो पावगेएां पा० शिकरी लद्यायपुत्तावियनायनुय ॥ दातारमलं अएफ संकर्मति ॥ २५ ॥ | केमेरह्योतेने प्र० केमेजाए तेकेने पाढावलि च्यावे धरनेविषे जीविय० कर्मकरी च्याविच मरणे निरंतर मरेले ते केम क वर्षासमारूपने १२६ च्यानुषो मराने समीपेचक त्र्याशी एके केंम अप्पमा० प्रमादविना निरंतरएनले नुवणिद्यश्जीवियमप्पमायं वलं
For Private and Personal Use Only
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
ज. जराहरे नरना राक्ष हेराजन् पं.पंशतदेसना राजा २० वचनने सालस मा मकर कर्म म मोटामांसमकणाद श्र१३ | जराहरइनरस्सरायं पंचालराया वयसपाहि माकासिकम्माइं महालयाई॥२६॥ हवेराजाकहेले अहंपणजाफंतिम जजेमएजगमाहे सापु जन्जेमुझने तुम्हे कहोडे वर वचननेएपूर्वोक्तब- मोज मोगभए
अहंपिजारगामि जहेहसात जंमे तुमंसाहसि वकमेयं चननेपण लोयाश्मे संपनिबंधना करनार होए जे जे लोगटांमतां दोहेला अ है अार्य अ० अम सरषा कायर पूषने २७ ह हस्तनागपुरनेविषे संगकरालवनि जेद्ययाअद्यो अम्हारिसेहिं ॥ २१॥ हडिएपुरंमि चिन्हे चितऋषीद देषीने असंकारेंना नरपतिराजाने म. महाकवीना भएीनै का. कामत्नोगनेविषे गृहने निः नियाए अर्की चित्ता दहएं नरवर महिद्वियं कामनोगे सुगिडे नियागमसुहंका धुं २८ नई तेनियागायिकीमुझने अनिवाँमुजनेत एप्रतक. एक एड्वों सं फसनुदय अाब्यु जे जा जाए ॥ २८ ॥ तस्समे .. अपमिकं तस्स ॥ इमं एयाणि .. .संफर जाए तोयको जेजेचारित्रधर्मनेअंगीकारकरीसकनोनयीका कामलोगनेविषे मूळयो बेतेमाटे २९ नाल हाथी जैमः | १२७ मागोवि जेधम्मं कामलोगेसुमुखिन ॥२५॥
नागोजहा
For Private and Personal Use Only
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पंच कादंवसहित पाणी ते नेषिये म० पुनोयको थलने नपा
ती. कांचाने ए० एम अम्ही कामगुएाने विषे
उ.
गिद्धको अ- १३
१२८ पंकज सावसन्नो ॥ दनुयसंनालिसमे तीरं ॥ एवं वयं कामगुणेस गिजे ॥
तिनता बसो जाए वे ते कोएा का० च्यानुषारूप
न० नहि साधूना म० मानने पामी कुनहिं वे चितरुषी कहे बे ३० मणमएफवयामो ॥ ३० ॥
नलिस्कूणो
यश कालो तरंतिराइन कालशीघ्रजाए
| वे रात्रदिन ने नहिबलि पा लोगपुरुषने नि० नित्यसदाए थिरनरहे दुषनाच्मलिप्रायविना च्यापीएं लो लोगजेते पुरुषनेब० तजेकेनीपरें। नया विलोगापुरिसाएानिच्चा जविश्व लोगा पुरीसं वयंति डुम्मं जहारबीएएफ कोएाजेम पु० फसरहिनवृक्षनै प० पंत्रीज्मतजेतेम ३१ । लो० लोगजेने बोमवाने असमर्थतो ममार्यकर्मने करणीने करे हे राजन् ध० गृहवासंपरकी ॥ ३१ ॥ इतसि लोगेचन प्रसन्तो ॥ माइकम्माई करेहिरायं धम्मे सेरहेजे ते धर्मनेविषे। स० सर्व जीवदयानो पासमाहारया तो ते आार्यकरणी माटे होइस. दे० देवता इममनुष्यनवयकी वि० वैकियशरीरनो क
विजे राधिका सङ्घपयरएफ कंपि तोहोहिसिवोनविन ॥ ३२ ॥ हार देव. ३२ न० नहि तुमने लोग गंवाने बुद्धि गि० तूं ही मारनेपरिग्रहविषे मी निफल फोकटक की धोएनलोबि वचननीवि १२८ नतुझलोगे चनाबुद्धि गिद्धोसियारंभपरिग्गहान मोहंकन एत्तिनुं विप्पसापे
साप
For Private and Personal Use Only
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ॐ
ग० प्रवर्त्योढुं ऊं सझायध्याननेविषे मार्गच्यामंत्र्याने एबोढुं ३३ पं० पंचाज देशना राजायं० पुनः बं० ब्रम्हदन्त १२०५ गवामिरायं रा० हैराजन् जिन प्रासंतिसि ॥ ३३ ॥ पंचासरायंवियं पूर्णे बलदत्तो ॥ अनुक्रमे करीनें o लोगवीने कामलोगने ० प्रधान
तनो कवचन
अ० च्यतिमोटा
निवर्तयानो लिखाषी प्रधान चारित्रवंत तपवन ममोटारूषी ऋ० प्रधान संज
तस्स वयणं त्र्यकार्नु अन्तरे लुधियकामलोगे ॥ अत्तरे सोनरए प चिपेपनों ३४ चितपाकामधी विवो ॥ ३४ ॥ चिन्तो विकामेहिं विरन्तकामो ॥ नदगचारिन्त तवो महेसी ॥ अत्तरं मनेपालीने अत्तरे साच् जमीनोएक अंतर्मुङ्कर्तना ३११३ श्वासोच्छवास थाए एबीएकसासोसासने माथे ११५६९०२५ पस्योपमफोरानरसंजमपासता अएफन्तरं सिद्धिगगन || तिबेमि ॥ ३५ ॥ कमांहे पुषपामसे पा नामा नरकावासी ए 9 मी नर कनो पांनो. तिहांनेत्रीस सागरी पमनी उत्कष्टो मानुषो बेतेने पांम्यो ब्रम्हदत्त चक्रवर्तीएं नरकावासी एक साष भोजननोले प्रधान सिधगतिमते पोतो. ३०इम कऊंबुं ५० इति चित्त संलूइ दे० देवताथईनें त्र्यं पु० पूर्व लवनेषिषे अध्ययनं तेरसमं संपूर्ण ॥ १३ ॥ तेरमेनियापानी दोष कह्योनीयानकी ने १४ मे
लंकारे
| इतिचित्तसलूश्य मझयांतेस्स्समं सम्मत्तं ॥ १.३ ॥ कहे जे देवालवित्ताएं पुरेलवंमि
For Private and Personal Use Only
सा० साधु चि०१४
साकस्स
सो. तेराजानर्कने
१२९०
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
के. केताना एफचव्या वि १ विमानना वसनार पुरु नरगनेविघे जूनो ३१नु इषुकारनामे स्या प्रसिद्ध सन् धनेकरीसहित सु. देवलोक अ.१४ केश्चूयाएग विमाएगवासी पुरेपुराणे नुरूयारनामे रवाए समिकेसरसोयर सरपो रमणिक । सन्पोतानोसुलकमतेनोंजे से शेषरह्योनेलोगवतांपू. पूर्वलवनाकीय कु. कुखनेविषेप्रधानकुलनेविषे म्मे ॥ १॥ सकम्मसे सेएापुराकएए शुलकर्मनेणेंकरी कुलेसुदगेसूयते या पूर्णत्तेबजीन नुपना. नि नदेगणम्या १३ सं० संसारनात्मययकी लोगने मीनें जिन तीर्थकरनामार्गनो सर सरणा पाम्यो. २ पसूया निविष संसारमयाजहाय. . जिणिंदमग सरपंपवन्ना ॥
'पुर पुरुषपएाने पाम्या कुमार पर पुष्पुरोहिनराजानो गुरु त्रीजो ते पुरोहितनीज जसा एवेनामें पाली यि विस्ती ॥२॥ पुमत्तमागम्म कुमारदोवि पुरोहिन तस्सजस्सायपत्ती . मार्या विसास एपिएीकि की निजेनीवेतन्लेमजइषुकारनापारा राजापांचोअत्रलदेबालबने विषेदेव प्रधान स्त्रीवके करीक जाम्जन्महाय
कितीय नहो सूयारो रायबदेवी कमला पईय ॥ ३ ॥ कमलावतीलगजीपजाजरा | स्वामरणात्मय अ पराभव्याडे पति कुमार केयाने बर मुक्तिने विषेअन्धाप्युडेचित्तजेणें संघसंसारसूपच चक्रयी पिविशेषमूकाषया १३८ | मच्चुलयाऽनिलूये बहिविहारालिलिविनुचित्ते संसारचक्कस्स विमोरकपाबा" ||
For Private and Personal Use Only
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न द देषीनेते संसारनासरूपअतंकारेने कुमार कार कामनागुणाथि पि प्रथमबे कुमारजेमवैरागपाम्याते कहेले पु० पुत्र बेएपएरामा-अ-१० १३१|| दब्रुगतेकामगुएरोविरता ॥४॥ विरक्त निवां ॥ ४ ॥ पियपुत्तगादोणिविमागास्स ब्राह्मानेयूष
सक पोतानाब्राह्मएाना कम जगनादिकहोमादिककर्मनो सलावबेजेने पो: पारसालदनितिहांज घरने विनातितेत तिमज सकम्मसीसस्सपुरोहियस्स ॥ पुत्र पुरोहितले सलारीने सरितुपोराणियतचजाई ॥ तहा सुन्लसोमाचत्यो तपसी सं संजमने संलारीने ५ ते लेबेकुमारका असन्माएफस्सए मनुष्यसंबंधीयाजेन्य वषि सचिन तवसंजमच ॥५॥ तेकामलोगे रुप्रसधमापामाएफस्सएसुजे अवि० पदादे या देवसंबंधिया कामभोगनेविषे असायपान अन्नपनीनन्त्वज्ञानपएानेविषेसन्सारंवानेकुमार बाप याविदिया थका मोहनाअलिलाय मोस्कालिकंरकी अलिजायसहा तातं चीजेने नुवागम्माइ नीसमीपेंावीने एमबोसता तयाध्यमशास्वना देषीने एमनामनुष्यपणो बच्चपाडेअंतरायविनर्मादिकरोगजेनेविषेनन्नहीं मंनुदान ॥६॥ असासयंदवाश्म विहारं बऊअंतरायं नयदीहमान वसीघणुशान तन्ने भाटे गि घरनेविषेरोगजेनेविषेरुस्तीनेन आन् पूर्बु , अम्हो चच् अंगीकार करस्युचारित्रने । अन् हवे नापिना || १३१ || तम्हा गिहंसिनरईसलामो।पाम्पो आमंतयामो चरिस्सामिमोणं ॥७॥ अहत्तान
For Private and Personal Use Only
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
१३२
बुं तेावसरनेविषे मु० ते लाव मुनीना तब मुसि ॥ जब जेमन होए
जहानहोड़
www.kobatirth.org
• तपने वा व्याघातकारी वचननेव बोलतो इ० एवी वाणीने वे० वेदना जाए। के बे . १४ वस्स वाघाय करंक्यासि ऊर्जा इमं वयं वेदविदो वयंति पुत्रियाने सो० लोक परलोक ८० लगीने वेदनेप० जिमामीने ब्राम्हणाने पु० पुत्रनेयापीने गिन्धरनेविषे
पाए। लोगो ॥ ८ ॥ महिद्यवेए परिविसविप्पे पुत्ते परिप्प हिंसि हेपुत्र लोग लोगबीने लोगने इ० स्त्रीसंघाने पर्व ० टवीनावासी होजो. जाया लोच्याएालोगे सह प्रश्चियाहि यारागाहोह
मुन्मुनिप्रशस्तलसो
मुलीसा ॥९॥
| सो • सोकरूप अपने करी आ० मात्मानागुए जेरागादिरूपें । मो० मोहरूपजे ० वायरो तेह्रयकीपर अधिक है प्रसवो जेनो तेोक।
सोयगिणा
यगुणे धोएं पंकरी मोहाँनिसा मद्यसाहिएएां ॥ री एतले बोलेकरी
सं अतितपी रहि बेला यतः करएाजेनोएवोपितामतें कुमार बोलता ऊयाए संबंध केवा ४ पितामन प० सर्वयाप्रकारें
लोलुप्पमाएां बया बझं च ॥ १० ॥
पु० पुरोहितन क अनुक्रमे सो० एम कहितोयकोसं सारी सुषने निच्या १३२ पुरोहियतं कम्म सोफ प्रांत मंत्रतीयको निमंतयंतच
संततलावं परितप्यमाणा ॥
| सरीरने विषे बोलतोला अतिघणे प्रकारें बच्घो बोसतो जेमतेम वली १०
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न सुरु बेपुत्रते जर्जयानुक्रमें कार काममोगनेगुणेकरी आमंत्रनो कुछ कुमारपचमकर्षे से विचारीने बच्चेदलएया अ-१५ १३३|| . धनेकरी
थकोयति अवधारणे एवापुरोहित यावचनने बोलताना ११ का सुएधणेणं जहक्कम्मं कामगुणेहिंचेच प्रते ते कुमारगातेपसमिखुवक्वं ॥११॥ वेया नर नहोपोत्राए नेरेशाना नु जिमान्यायका लब अंधकारमाहे अंधकार आ जा जनम्या नन्नहोएत्राए सरए
करणहार ब्राह्मण निष्पाह्रोताकरे तिरौइनरकनेविषे । बसि बेटा हियानलवंनिताएं ॥नुत्तादियानिति तमंतमेणं जायायपुत्ता नलवंतिताएं। को कोपानामते अन् तासमाने एपूर्वोक्तवचनहेतात व षिपामात्रसुरवडे बघणाकास उरवळे पनपीधणा संभावनाएं
. लोग केचा १२ जेनेविषे जेहपकी सुषजेहपकी कोनामते अएमन्ने धएवं ॥१२॥ स्वामित्त सुरका बलकासपुरका ॥पगामा ____ अ अतिहेपुखळे जेह संसंसार मो मोकनापो वि० शत्रुसमान खा रवाए अननो नएमन का कामन्नो थकी की चपहारने
गसंसारनासुपपांमवाने ||१३३ का अणिकामसोरका संसार मोरकस्स विपरकत्सूया ॥ रवाएीअपवागनकाममोगा
For Private and Personal Use Only
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न मर्ये १३ प रहो परहो फरसे संसारना म० दिवस वषि म रा० रात्र तसे दिनरात्र प० पुषे प्रति दाऊ तोयको प्र० मनेश सुषपामवांने अनी निवर्त्यो काम
१३४
सजनादिकने विषेप्य प्रति आसक्त बतो
॥ १३ ॥ परिचयं
लोग कीजे त्र्मनियन्तकामे गवेषतोयको प० पांमे मच्मर पु० पुरष पूर्वेकयुं तेजराने पामे यसि १४
त्र्यहोयरान परितप्यमाणे ॥ ५० एकवर्णादिक इ० एधरादिकमाद मे० मारेबे रेनयी
'चन्धनने
एाने
सप्पमत्ते धण इ० एघरादिकवसि मे० मा हरे करवो जो इमंच मेकि
मेसमाणे पप्पोत्ति मधु पुरिसेजरंच ॥ १४ ॥
इमंच
मंचन
इ० एव्यापारादिक जोग्य त. ते पुरुषने सा० प्रतिसास पास नए ह० दिनरात्ररूपीयाचोर ह० हरेबे मरे बे मरएापामे बेतेमाटे एमकेम
प्रमाद करवानेविषे १५
म करवानथी
ए० एमज
एवा पुरष
जो यह पुरोहित बोल्यो
धन सवर्णादिक प.धोबेापणे
इमं किंचं तंएवमेवं सोसुप्पमाएां हराहरति तिकहुं मानु॑ ॥ १५ ॥ का कामलोग प० घोडे लोको क. निमित्त त तपने गुएाने सब्जे धनने
50 त्रिक सहित तेम
तप करे
धणंपलूयं सह वियाहिं सया तहा कामगुणा पगामं तवं कए तप्पई जस्सलोगो
For Private and Personal Use Only
त्र्य. १४
१३४
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
न
१३५
www.kobatirth.org
तंत्र ते धन सर्व सा बसेबेए घरने विषे एक निश्वेतुमारे १६ साहीमिवतुझं ॥ १६॥ सजनेकरी संथाए अथवा काठ कामगुणेकरी स्याएं चेन्पूऐं एवा कामगुणेहिंचैव श्रवधारणे तेमाटे वासाधु होए अ० अंगीकार करीने निर्दोष लिक्षाने | गम्मलिरकं ॥ १३ ॥ हवेपुरोहित बोल्यो ११ जेम घरततितिसनेविषेतेस एवं एमज हे पुत्रजा०
प्र.१४.
धधकरी किं सुंथाए धर्मनोपु. लारनुपामवानो स घोण किंधम्मक राहिगारे अधिकारने विषे सयो सब साधु होएगुगुएना समूहनो धरणाहार बच्लोकोत्तर बिहारले जेनोए समणालविस्सामो गुणोहधारी बहिविहारात्र्मलि जब्जेमवसि अग्नि अमरीकी अबतामध्ये कंपना रवी० दूधनेदिवे जहाय. writerritoriat पीरेघयंति स सरीरविषे स० मा स० बतोनवोनु पजे सरीरविएासे तिबारे रहे नहीजी सरीरंसि सत्ता समुचश्नासश्नावचिने ॥ १८ ॥ रूपपणामाटे य० निजे लगी निः नित्यसदा च्यात्मातमाटे षोटोसदह अमुन्तलावाप्रमुत्तनावादि य होइनिचो मन हे निययं
१८
लमहातिले जेम एमेव जाया | हवेकुमार नो० नथी इंडियग्रहवा जोग्यमात्मा बोल्या नोइंद्रिये गि
बोते निययन विश्व अस० एजीवते बंद कर्मबंधने कवावे अव ते मिथ्यातले हेतु हेतुकारए जेनी एबीबंध होए संसार चन्वतितीर्थकरे १३५ संबंधी ॥ संसारहेतुं चवयंनिबंधं ॥ १९७ ॥ बंधबंधने संसारन् संसारमाहेपरिनमा करवानी हेतु कारएा यंत्र कहे १९
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नज जेमअम्हो ध धर्मने अजाएताथका पा. पापने पुराकर्मने आ करना या सोअज्ञानयको जन्रोस्योथको अ.१४ १३६ | जहा वयं धम्ममयागामापा पावं पुराकम्ममकासिमोहा. नरशमाएा
पर अतिरका करनायकापास त हवेनेने लुचलि विरूपापकर्मनित्रै समाचरुनही २५ सो सोकनेविषेकिल्लूने खोकेकेहवालोकनेषि परिरस्कियंता ॥तयिका तव लुजो विसमायरामो॥२०॥ अशाहयंमि सोगंमि अरु सन्मुरबपीना सन्सर्वदसविदिसने पिपै प० अतिहेयीटो घेरयोडे स्यानेकरी अन् तीरादिकनीश्रेए पनुपरेपमतीथकीने] पाम्यूठेपुनःकथनूलेजोके सच्चन परिवारिन ॥ अमोहाहि पतीहि ॥ करी तीरादिकनीश्रेण केयी अन्मोचअल्लूसिनेमाटे गि० घरनेविषेन रतीने न पा हये पुरोहितपूछेले. के कोपाहहएयोपीनयोधको लोक के कोणवलीप चौटोसोक | गिहिं नरईसले ॥ २१॥ ५
के एअशाहि लोगो केएवा परिवारिने । काच कौपावसि अन् अनूसवापानी एकहीजाम् हे पुत्र चिंचिंताकरोडो ने माटे ऊ निश्चे मेमुजप्रतेएविचार हवेकुमारकहेडे मन्मरोहणोपी कावा अमोहावुत्ता जाया चिंतावरोझमे ॥ २२ ॥ कयो २२ मच्चएााहने सो. मोसो सोलोकजराइचोटो है सोक अन्यत्नूलवाएानी श्रेणी रदिनरात्रनीकही एचएमहेनात विजाणे २३ जान्जेजेजाए। १३६
- जराएपरिवारिने अमोहारयएीवुत्ता ॥ एवंताय वियाह ॥ २३॥ जाजावच
For Private and Personal Use Only
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रात्र न तेराबनाये पाबीचसि अ. अधर्मने करता जीचने अनिफसजाए रात्र २५ मान्ने अ१५ इयणी नसापमिनियतई ॥ अहम्मंकुएमाएस्स अफलाजंनिराश्ने ॥ २५ ॥जा में जाएडे रह रात्र न० ने रात्रनावे पाबीचसी ध धर्मने कुछ करता जीवने च पुनः सच सफलसहितजाएबेरा रात्र २५ जावञ्चश्रयणी नसापझिनियत्तई, धम्मचकुएमाणस्स ॥ सफसाजंतिराश्न ॥२५॥ | एकएकथानक संपसीने कारे अम्हा आपणाबसक समकिनसहितयका पापजा
तयका पक्ष पचे जाव्हे पुत्रचिचरसुसंजमनेविषे गन एगन, संवसित्ताएं रहने सम्मत्तसंजुया... .पला जायागमिस्सामा भिक निषि निन्दा करतथिका कु० घरैघरेनतम कुमारकहे जन्जेने से मन मरणाने संघात मंत्रीमीतिज नेनेडे निरक्मागा . कुसेकुले ॥२६॥ २६ जस्सन्बा मच्चपा सरकं जस्सननी पसायए। जो जोकोई जादो नऊ मससनहीं सो० ने पुरषनिकै सुरु अागले दिने सि होएधर्म २३ अन् आज है. नात ए एमधर्मनेप० जोजाणेनमरिस्सामि सोश कंखे सएसिया ॥ २७ ॥ अद्येवधम्मं पमिवद्य अंगीकारकरसुजन आर्षात्वानजेहनो धर्म परिवाथकानही पुच्वषीलअवतरसुंलवां अ० अपपाप्युं अनधीकि । यो १३३ यामो जहिंपवन्ना नपुणझावामो नरने विषे अागर्यगोवियअनिकिचे
For Private and Personal Use Only
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नएसंसारीसुषरयो अनंतवारपाभ्यो ते धर्मकरयानी श्रद्धाकरची वन्युक्ति नपुंआपणाने विषे विन्टायें प. पुत्ररहिनमुमने हं० अ-१४ १ सहा साप विगत्तगयं ॥२॥ हवे पुरोहितलारजामतेसमजावेजे २८ पदीणापत्तस्मा | निश्चै ना नयी जुगतो गृहवासनेविषे वा बासिष्ठगोत्रनी नुपनीलि गोचरीनो का कासएनले चारित्रलेयाना सान्सारवाएंकरीवृत्त नबिवासो ॥ वासिबिलिस्कायरियाएकासो साहाहिरुखो अवसरया पूर्णावर्त सहएसमाहि | स० पामेस वि वेदे सा• साषा तर ते वसनो एमज रवा त्रुगेकाहियेसारवानी थमाने बायाएकरी| कोएअयसरेक पांकरीराहे | माधीने चिन्नाहिं साहाहि तमेव स्काए ॥२॥ २९ परकावितो . न य० समुचेजेमएसोकने विषेपंषीसोले नहीं निव सेवकेंकरी रहितजेमर संग्रामनेविषे राजासोने नहीं दिळविपागेगयोधना
वजहेहपरकी । लिच्चा विझपोखरणे नरिंदो ॥ विलसारो जेनोएरोवापिनय जेमरूपो० वापनेविषे प० पुत्ररहित ऊंपएा नेमाटे सोलुंनहीं ३० हवेमार्यावली सुमतीपरेसनांस्वाले कान वपिजेब पोए सोनेनही पहीणपुत्तो मितहाअहंपि ॥३०॥ सुसंत्निया का काम लोगनायुपशब्दादिक एमनशासम्एकनगढंगसाकीधाबेअभधानरसबेजेना पक्षधणानेहने लागवे ना तेत्लएीकाकामना |१३८ मिगुएा इमेते ॥ तुमारे सपिमिया अगर सं पल्लूया ॥ लुंजामोता कामगुऐ
For Private and Personal Use Only
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|| प० अनिहे घएो होएतेम प वृद्धावस्गनेविये गाअंगीकार पप्रधानमार्गलोगव्यावखि ३१ हये पुरोहितबोध्यो र संसारी अ५५ पगामं . . पन्बागमिस्सामो करसो पहाए मग्गं ॥३१ ॥ करस लो- हेलोगनीस्त्री ज. त्यजेचे आपणाने नजी ॐकोईसजमजीवतव्यने अन० नयी बांमतो लो। अडच नेमाटे सा लोईजहाईपोवन ॥ जोबन नजीवियबापजहामिलोए गोसंजमपासवाने खालं असावं चन् अंगीकार करतीथिको संसारादिकना सालने असाल असालने चावसि सुन् सुषने चच्चसि फु. कुपने संचि० समतापणेकरीसर चंसुहंचपुरकं ॥ संचिरकमाएो चरिस्सामिमोएं ॥३२॥ षाने च० पूऐश्वमाएो देषतोयको गवे पनोपको रागद्देष मारषे लार्या बोसी सूअसंकारे तू सोव मार्याप्रमुष संजमने संलारे जुनगरढोक हंसजेमपासामे पुरेचासतो रहितपणामाटे ३२ मात्र तुमं सोयरियाए संत्नरे ॥जुन्नेव हंसोपमिसोयगामी थकोसजनने लु लोमवे लोगने मु. मुजसंघातें 3. पुष हेनुवनिरधारनि गोचरीनेविषे विचरयो ३३ हवे पुरोहितको संमारतोयको लुंजाइलोगार मएसमाएं पुरकंरकू लिस्कायरियाविहारो ॥३३॥ त्यो ज. जेमपसिहेस्त्री तसर्पसरीरनेविषेभुपनी एपी निकांचसीनत्यजीने पानतावसेनासीजोएमु मुकाएपिकोएमए, एवो | १३५ जहाय लोई तणुयंलुयंगमो निम्मोयणिहेच्चपलेश्सत्ते एमेनेजायाकुमारहेपुत्र
For Private and Personal Use Only
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
|| पर खामे वे लोगने तेग्नोस् तर अरु बेपुत्रुकेमे नजाईस३० एकसोजाइस जश्न३५ बि. डांगीने जा मिलजुनीजसनीपरे अ.१५
पहयनिलोए तेहंकहं नाणुगेमिस्समिरको ॥ ३०॥ विदितु जाखं अबखंव रो रोहितजातना म मानसां जन्जेमजालमाथीनासीकाच कामगुपाने बांनीने धो० मारनीवहीने पोरीसरा सीन्सीलाचारजेन रोहिया मना जहा आपनमपुत्रपकामगुणेपहाय ॥ घोरेहं सीला तब नपेंकरीन प्रधान धीर धीर्यवंत जेलपी लि. चारित्रने चर आचरे डे ३५ कुमर बेतेलएी ऊपणा अंगीकारकरीस सानदारो ...घीरात लिस्कायरियचरति ॥३५॥
नहेवरकोंचासमश्क हवे पुरोहितनी नार्या केळे ना श्राफोसने विषे जेमक्रौंचपक्षी त विस्तीर्ण जान जासने दच्छेदीने हैं। हंससाजेमजाएनेम मंता पपा देसने नुसंधयेकरी विचरे. 'तयाणिजातापि दखिसुहंसा ॥ पर जाएडेपुज्बे पुत्रपुमा मारियक पूर्णम माहरा ने नेमाटे अऊ किसुंके नहिजाईसर एवषी ३५ पुन नेप्रर्जा पखित्तुपुत्ता यपईयमशं. तेहिकहं नाएगमिस्समिक्को ॥३६॥ पुरोहियं तं सोच्चा सौनतीने देवीकमलावती तन्नेराय इषुकारराजानो अनिख० वारंवार स. खेतां पुरोहितनेबोसती हवेकयत्भूतंपुरोहियं ||१५० सरुयं सदारं ससुयं पुत्रसाहिन सदारं स्त्रीसहित पुत्र सोच्चालिनिरकम्म नुपदेससलिलीनेमिनिक,
जान
For Private and Personal Use Only
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पहायक त्यजीने लोगवे कुमुबरु कुटंबने त्यजीने देवीकमलावती एहजगापानोअर्थफरीनेकहेने पुरोदिया ना ते पुरोहितने कहेबे पुरोहिन अव१० १४१ पहाएलोए ससुयं पुत्रसहित सदारंस्त्रीसहिन सोच्चा सांत्मसीने अलिनिरकमा घरपी निकषीने वाले पहायकत्यनीने लोग
बने सारंधन ने विलसं विस्तीएनुत्तम प्रधान एनलागनात्यजीने प्रवर्जालीपीगे राय मुकारराजाने अनि वारंवारसमकम्बसारं वित्तमंतं ॥ एवा पुरोहितनेसाललीनेतं ते रायंलिरकं समवाय चायन बोपनी दी एवी देवी ३५ व वम्यानाषापाहार पु० पुरुषहे राजन् न, ते पुरुष नहीए प. प्रसंसनीक माजे देवी ॥ ३१॥ वंतासि. पुरिसोराया नसोहोइ, पसंसिने माह लपशीब्राम्हपाप बामथो धन धनने आउ अंगीकार करयो ३ अन्तुम्हो वांगे जो ३८ सम्सेर्वजगत् न जो कदादिलकुमो यो परिचत्तं धणं आयान मिबसि ॥३८॥ सवंजगं जश्तुहंरपोतेहोए सन्स या अथवा कदाचिन्धघनल होर सासर्वपदा ते. तुमारी तृष्पाटालयाने समर्थनहीं " ने नहीं पाता त्रागसराने अपित सचंवा विष लवे सबंपिते अपयतं नेवतागायतंतव॥३९ ते धनादिकतपने ३९ म मरीसहेराजा जक निवारे निवारे वापूरपो म मनोहर कान्फामनागुणाने प० बानीने एकएको ११
मरिहसिरायं जयातया वा मपोरमे कामगुणे पहाय एको
For Private and Personal Use Only
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नई निश्चै ध धर्म न दे नरनादेव तान्त्रापाआधार न नहि अ. धनादिक इ. लोकनेविषेएमपपाावेजतेकांश्कत्रा ना नयीउरति अ.१५ १४२ र धम्मो नरदेव ताणं नविधइ अलमिर्देहि किंचि ॥१०॥ सरए ४० नाहरमेपरिक
पामती पंषागी पं पाजरानाचघे संक सनेहरूपएीजास बि० बेदीथकीझं चअंगीकारकरीस मो चारित्रने कथेलूतंअहअन् सुपर्णादिया णि पंजरेवा संताग बिन्ना चरिस्सामिमोएं अकिंचा रहितनु न मायारहितकरएीनाकरणाहार पविषयादिक आभिषमांसरहिनचुप परिग्रहनेमा आरत्नने निन्दो दोष
नष्पकमानिरामिसा परिन्गहारत्ननियत्तदोसा ॥४१॥ तेथी निवोढुं ॥४१॥ दन् दाबानसें करी जन्जेमअटयीने विषे म० बलते उने जन् जीयमृगादिक अ० अपाबसताअनेरास अज्ञानी प० हर्षपामे दवग्गिए। जहारन्ने नामाणेसु जंतुस् अन्ने सत्तापमोयंति रान् रागद्देवने वसे पोहता ३२ ए पो ऽशते एएमआपणामूमरची कान्कामत्लोगनेविषे मूठ मूळ पापिका मन् आषान रागदोसवसंगया ॥४२ एवमेववयंमूढा अग्यानी कामलोगेसमुचिया .. मामा क्त बसेजे लेनेदेषीने नयीयूकतोस्ये करी बसे डरा रागहेषरूपेअग्नेकरीज जक्त बसेग सेवाएतोएमकरेनेकहेवे३/लोठ लोगने लोगवीने १४२ पोनवुक्षामो रागदोसँग्गिणाजगं ॥५३॥घुपएोसंजमन लोगेनोच्चावमित्ताय वसि पवे गंगीने
For Private and Personal Use Only
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
नसन्सधुवयनीनुपमाएं वि० प्रतिबद्धपणें विहारिणो ॥
१४३ सफूलूय
मकमाई० पोतानी इबाएक प्रवरता
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
० हरष पामतायका गढ़ संजमने विषेमवृत्तिते पुरुष । दिया० पंषीनीपरें पंषी के बाबेका १४ ग्रामोयमाणा गनुंति विवेकीबे नरके हनी परें दिया कामकमाइव ५० एशब्दादिक लोगय वली ब० अनेक प्रकारें ग्रही राष्या के तेपए फंदन व रसलाव इमेय बडाफंदंति जेहनातंत्र्यथर कांमलीगमन मारातथातु
॥ ४४ ॥ हारतिमापपाइए ७४ | माराहायिप्रते द्यायतया आर्याव्यवे आपणा च बसी त्र्यासक्त बोकामलोगनेविषे ल० बांमीने होएसी जब जेनएपुरोहिता ममहद्यमागया वयंचसत्ताकामेरू लविस्सामो जहाइमो ॥ ४५ ॥ दिकसाधुययातेमा ४५ | सा० प्रामिषसहित पंषीने देवीने अनेरे पंखीएं बपीमानुपजावतां त्राने तथा नि。 च्यामिषरहितपंषीनेपीमा आएरूप प्रापरिग्रहरूप सामी सकुसलं दिस्स ग्रामिसंस श्रामिषने ससर्वने ढांकीने वि० विचरतो निरु परिग्रहादिकं यामिषरहितयका ४६ गियामिषसहित पंषीनी नृपमा बमुश्झित्ता
बझमाएोनिरामिसं जावनायका हेनाय सुषीदेषीने
विहारस्सामो निरामिसा ॥ ४६ ॥ गिद्धवमेननञ्चाएं
नेमुः समुचयन. का॰ कामलोगने सं॰ संसारवधारवानो कारएा जाती नु० सर्वगरुमपेषीनी समीपे ' सं० बीहतोय को त हजुहा १४३ जाएगीांन्त्र्यसंकारें कामेसंसारबढ नरगोसवन्नपासे ॥ जैम संकमाणो नचरे
For Private and Personal Use Only
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
कुनेमापणे संगमसमीपें यत्नाएं नाउ हार्थािनेमबंधनने बेदीने अपोनानी व अटवीप्रने जाए नेमतूंपणाहेराजापोनानीवसनि अ-१५ १४७ | ॥३७॥ रासे ४७. नागोवबंधएं बित्ता । अप्पगो यसहिंवए । प्रनेमूकीजाए ए० नेम
तुमनेको नेपणाड्येकह्यो मन्हेमहानन्हेश्पकार एवो मे सालल्यो - चपूर्व डांमीने विकविपुलमोटाराजाने का वली एयंपनमहाराय राजा निसयारैत्तिमेरुयं ॥४८॥ चश्त्ता विनुखं रडूं काम कामलोग जीतवादोहेसाएवा निविषयरहिन जयापति निधनादिकामियरहिन नि स्नेहरहित निःपरिग्रहरहितका ४० लोगेय उज्जए निविसया निरामिसा निष्हा निपरिग्गहा ॥४॥ सन्साचाधर्मने बिक जाएगीने चिनीने प्रधान कान्कामनागुणाने तीर्थकरें केद्यो नेहवीततपनेअंगीकारकरीने चिचा क
तवंपि गिशजहा प्रवर्तताफयाजीवकेबाजे घोर आकरा पराक्रमनायगी ५० एएमने ब्ए जीवअन् अनुक्रमेंदूमयो ससर्वते धधर्मने रकायं ॥ . घोरं घोर परमो ॥ ५० ॥ एवं ते कम्मसोबुद्धा एजीच सच्चे धम्म विषे पद तत्पर जन्जन्यनेम मरणनेलयेकरीउद्देगपाम्याऊउपनाअंतनागवेषणहार ५९ साउ तीर्थकरनासासनविषेपिगमोन्तार्थक १४५ परायएा जम्ममच्चुलन विग्गा उरकस्संतगवेसिएो ॥ ५१ ॥ सासणे विगयमोहा।।
For Private and Personal Use Only
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| पू.पूर्वलवनेविषे लान् शुद्दलावनाएंकरीलान्याचे अधोरेकाले एम् नि उघना अंतनेनुरूपांम्या ५२ ।। पुछलवे लाविया वास्यो मनजेने अचिरेपोवकालेणं उरकस्संतमुवागया ॥५२॥ रा राजा सन्देवीकमतायतीसहिन मा ब्राम्हणपति पुषपुरोहिन मान्ब्राह्मणी दाब्बेकुमार ६ सन्सर्वनेच्ने बएजीबसीन राया सहदेवीए॥ माहगोय पुरोहिने माहएीदारगाचेव ॥ पूरणेस सोते परिनिवुमासिबूत थयामोक्षमोहना इश्मकङबु ५३ ३० इषुकारएवेनामें चनद अध्ययनं संपूर्ण १५ चनुदमें अध्ययने उ साधु अयाते कह्यातेमाटे तिबेमि ॥५३॥ इति इषुकारिय अक्षयणं चन्दसमं सम्मत्तं ॥१४ ॥ ९एमांअध्ययनने विषेसाधूनागुणा मोच संजमनेअंगीकार कीस स पांमीने प श्रुनधर्मचारित्रधर्मने सग्यांनादिवंत सा नुमायारहिन क्रियानो चरणये १५ मोणं चरिस्सामो समिच्च धम्मं ॥ . सहिए धुसहिनजयको नियाए। करणहारनिनिया) संच संजननापरिज गरेकामलोगने अन्अज्ञातकुसनाअहारनो एगवेषणहारएम पै. प्रवर्ने जेन्जेने बिन्ने पारहिन संयवं चयने जहेद्य अकामकामे अपाय एसी परिचए जेस साधु रावराणथी जेमहीएमचा प्रवर्ने प्रधान साफ विआरंत्नथीनिवासिद्धांतनोजाएंआआत्मानोराख-|| १५५ लिरकू ॥१॥ रागोवरई चरेछ साढे विरयेवेयवियायररिकए पहार
For Private and Personal Use Only
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न. पत्रज्ञावंत
परिसहादिक जीतीने स० सर्वजी बने यात्मासमान जे० जेसाधु कोइवस्तुने विषेपपाननमूए. स० ते साधु २
मुणिचा
१४६ पन्ने अलिलूय सङ्घदंसी ॥ देषाहार जेकि म्हिवि नसुनिए सलिकू ॥२॥ अ० व्याकराव चनने वचने दिजानेते षमे धी० धीरसुलट च विचरे प्रधान नि सदाए आत्मानो गोपवहार अ० अव्यग्रहकोसवहं विदित्तु धीरे साधु नियमाय प्रवग्गमाए एयरहित मा. मनुष्यजेनुं प्रहर्षादिकै। कुलपणारहित जेव जे सर्व । महियासे ते साधुविचारे ३ पंचांत प्रांत संथारी या पाटी प्रमुषने संपकिरीया जेकसिए पहियासएसलिस्कू ॥ ३ ॥ पत्तंसयासल सेवीने सीताढताना परिसहने वि० विविधप्रकारनाचद० दंसमसाना परिसद्वैा । म अव्ययमून को यन्त्र्याकुलच्या सपा सीएहं विविहंच दिसमसंगं ॥ मीने अवग्गमणे संपि
| न्ता ॥ रहितयको जे जे सर्व पदारथने जेकसिणं
ย
सहे सनेसापू अहियासएसलिस्कू ॥ ४ ॥
नो सब सत्कारने ३० नो० नवाबेन कुपु० नी० अविन नोसक्कियमिवई नपूयं नोविय
यद वांदवाने पान चौबे से कब कि हांथी प्रशंसाने वाले सेवते सजती सु० सुवृत्ती तत्तपसी ग्यानादिक सहित प्रा० श्रात्माने गवेषे वंदणगंक पसंसं
सेसंजय संचए
नवस्सि सहिए मायगवे सए
For Private and Personal Use Only
अ.१५
१६६
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| सच ते साधु ५ जे जेणे करीबसी ठाम अन्य संजमजीयतव्यने याच अथवा मोर मोहनीकर्मन क संपूर्णनि वांधेएया नऊनरनारी अ-१५ |सलिरकू ॥५॥ जेए पुगो जहाइजीवियं ॥ मोहंवाकसिणं नियबई नरनारी नासंगनेपच्दा सन्सदाए तपसी यच्चजीकोकुतूहसनेनन्नन्नपामे ने साधू वस्त्रादिक नया अचयादिकडेदवानी विद्यानेलो. पजहे सया तवस्सी ॥ नयको हर्ष नवेश्सलिरकू ॥ ६॥ बिन्नंसरंलोमिमंतापिरक। सातस्परने धरनी हाल्यानीआकासे सुन्सफ्नसक पुरषादिकनाषषरानावरुधरकरवोनी विविद्याने प्रजुजे) अं अंगफरकवानो सका किसाकचिन्ह थाए नेना सचिए सरकांदंझवज ॥ विधनहिवसीप्रगवियारं सरस्स गादिकनास्वरने विच विचारने जे घसीविद्याएकरीना श्राजीवकानकरेसर ते साधु 3 मंत्रनेजमीबूटीने विविविध प्रकारना विना विसयं प्रजुझे नहीं जेविधाहीनजीविई, सलिरकू॥७॥ मंतमूलं विविहं वि| वैदकशास्त्र नुपधचिंता वमनने ५ विविरेचनने धु-धूपदेवाने ऽ नेठ नेत्रआंधनाअंजननेसिन स्नानने ५ तिर बेदक लगचो
द्यचितवमए वियप धूवनेतसिएाए आनुरेसरणं ॥ रोगादिकपीमाने १० तिगिनियंचा तेनेमातपिताने संत्मारखो नेपूर्वोक्ति १० बोसने पायाजागी पचपतोयको ने संजमने रखा पत्रीनासमूह जन्नयकुखनालपनाराजानापुत्र|| १५१ तंपरियायपरिबएसलिस्कु ॥ ८ ॥ विषेप्रवर्ते ने साधु ८ खत्तियगएनगारायपुत्ता ॥
For Private and Personal Use Only
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
नुः || मा ब्राह्मणालोगी पुरुष विविविधप्रकारमा बसि पिज्ञानी चि नोकतेन्तेनीक वनबोसेन्त तेसाघापूजा पापर्नुकारापन अ.१५ १०७|| माहपालोश्य विविहाय सिप्पिएो ताराप्रमुष नोनेसि वयसि लोगपूयं बोलवाते तंपरिलाय जाएीन मवर्ने सब ने साधु
गिच टास्ने पञ्चारित्रपणे दीगहोए अगृहस्पो बपि सं पस्चि परिवए सलिस्तू ॥॥ गिहिपोजे पवइएपादिछा अप्पचइएएय संथुया| यवतहोये लेतेवेभकारनाग्रहस्प संघाने रहसोकना फसने श्र जेजेपरिचयने न० नकरे ने साधु १० हवेद्या । तेसिं शहलो श्य फसच्याए जेसंयवं नकरेई सत्निरकू ॥१०॥ सोलपादिक संपारो पाट प्रमुष पापीलोजन बिन अनेक प्रकारमा स्वारयादिमसादिमनेफअ अपादेवेकरी पक्षनिषेद्यो निसा सयपासणपाएालोय ॥ विविहवाश्मसाइमं परेसिंह अदए पमिसेहिए नियं ने अजेनिहाँद्देषन करे सब ने साधु ११ जेजेकांरअसनादिक पाएी विरुअनेक प्रकारना रवा करवादिमा
॥जे तब नपर्नुस सनिस्कू ॥११॥ जंकिंचि आहारपाएविविहं ॥ स्वाश्मंसा सादिमने पगृहस्वयकीपा जोज्जेसाघुतै आहारादिक करीमनवचनकायाएंकरी साधुने संवित्मागनकरे मनवचनकायाएंकरीसंग | १५८ मं परेसिखा ॥ जो तं निविहेएं नाएक कप्पे महावयपकायस संयुझे लखो संघरचन
For Private and Personal use only
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न
हा स्त्रीसंघातेंहासकीचाहोए कि क्रीमाकीधी झएकरतिसेवीहोए २ द गनुनारया अहंकार कीपोहोए• सम्एकगबेसी निम्याहोए -१६ हासकिडु र दणं
सहसालुत्तासिया ५सिएकत्र्यासपोसूनोबेगे होए बीजोपायसहसात्कारें स्त्रीनेता सिपापियन्त्रासतपजाव्यो होएबलीबं ब्रह्मचर्यनेविषेररातोसाघुथीं। णिय जो तूं मुझसंहबकरेठे तो प्रवर्जाप्रमुषलेईस इत्यादि
बलचेररने थीएं स्त्रीना एनसांवामानासंमारेनहीं काकिबारे पपा ६ प सरस . ल मानपाएगी पूरो खिन्शीघमदनो पिर बधारणहारै बब्रह्मचर्यनेवि नाएफचिंते कयावि ॥६॥ पपीयंत्नत्तपाएंतु विप्पमय विवहां खलचेर र
रातो नि० साधु नि नित्येमनेपदाप्रपीतने वर्जे धर्म संसाधान्याहारने मिमरजादाकाले जा संजमनिर्याहनेअप ने लिस्कू ॥ निच्चसोपरिवद्यए ॥७॥ धम्मलद्धमियंकावं जतबा : पस्वस्वचित्तनो घांसाधुना नहिं अनिमात्राएंतु पूरपोनजिमे बंब्रह्मचर्यनेपि पैरातो सदाए ८ विचविभूषानेचस्ने । पिहाएवं नाश्मत्तंतुलुङ्घद्या ॥.. बुलचेर रने सया ॥७॥ विनूसं परिवले
सह सरीरनो समाचरवो ब्रह्मचर्यनेविषेरात्तो साधु सिंक भंगारने अर्थेनन्धारेनहीं. ० सम्मनोहरशब्दरूप] १६३ या। सरीरपंरिमंमएं ॥ बनचेरर लिस्कू सिंगारखंनधारए.॥५॥सद्देसूवेयगधे
For Private and Personal Use Only
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
फएकापक्तिना घणी साधु १७ ५० धर्मरूपियामारामनेविषे विचरे साधु धिः धौर्यवंत धक धर्मस्परथमवर्नवानेविगे) ध धर्मस्वपत्र्या-म१६
परिहाएवं ॥१॥ धम्माराम चरेलिरकू विश्मं धम्मसारही ॥ सारथी धम्मारामे | राममेविषे र रातो दमलेंडी ब्रह्मचर्यनेविषेसमाधिवंत देव देववैमानिक ज्योतषी देवदानवलवनपतिगंधर्व जन्झर राक्षसए
रएदंते . . बलचेरसमाहिने ॥१५॥ देवदागवगंधच्चा , जस्करस्कसकि व्यंतरनीजातिकि। बंब्रह्मचारीनेनमस्कार करे ऊउकरब्रह्मचर्यनेजेपुरषकरे पाखे ने पुरषमे एक एब्रह्मचर्यरूपधर्मधु निश्चलानिरंतरसदाए नरा नरादि बनयारी नमसंनि फुकरंजेकरंनिते ॥१६॥ एसबम्मे धुवेनियए , , ने सा शाश्वतोडे जिन्नीर्थकरें कयो बे सिम्पूर्वसीधावर्तमानकाले सीजे चाच अवधारो एवं ब्रह्मचर्य सिसिफसेआगमिएँ सासए जिएदेसिए सिहासिशंतिचापोएं
सिशिरसंतित कान तेमअनेरा इ इमाऊं कळंबु १७ एब्रह्मचर्यसमाहिगएासोस अध्ययनंसंपूएं १६ ॥ सोसमेअध्ययने ब्रम्हचर्यनी हाबरे अनंताजीव तिबेमि ॥१७॥ तिबलसमाहीअक्षय षोमसमं सम्पत्तं ॥ १६ ॥ गुप्तिकहीने तो पापथानकनेवर्जितेमाटे १७ जेजेकोश्कदीक्षालीधी साधु अधप्रथम धर्म साललीने विकविनयमार्गर||१६५ में अध्ययनमांपापग्रमानोसरूप कहे जे जेकेई पवईएनियवे चम्मरुणित्ता विएन हितमा
For Private and Personal Use Only
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
सुर अनिहे त्लि स. पामीने बोन समकिनने चारित्रने बि विचरे पन्दीकालीपापढी जन्मदिसने सुषनपनेसमन अ.१५ १६६|| ववले सानहं सहिने बोहिलालं विहरेधा पचाय पति जहा सहंतु ॥शा
से नृपाश्रय दर लखो पाम्यो पार -ढबाना वस्त्र मारेले नुमसेठे लोग जिमवाने अन्ननिमहिजपीवानेपांगीजा ॐ जाएंबं|
सेद्या दा . पानुरणंमेअनि नपबइ लोतुंनहेव पान जाणामि अंग्जेजीवादिकपदारथवते अान्हे आनुषावंतश्म किं पन्नेसत्पावना का स्योकरोसूरू सूत्रने त्मएवेकरी हेपूज्य २ जेष्जेकोई . | जंवढे पानसोति किं नामे काहामि सूएएं लते ॥ २ ॥ जेकेईए प. साधु निकनिछानो सी० सत्मावधपोचे जेनेपच्यएवषिलो जमीने पापी प्रमुषसु-सुपे सूरए पा० पापमपाकहिए पवईए निंदासीलपगामसो बारसणीसाईरहे लोच्चा पिच्छा सह सयई ॥ पावसमऐत्तिबु
३ आआचार्य न नपाध्यायगुरूने सूरू सिझनगुरूने अने विनयमारगने गा सीपयो नेर ने गुरुवादिकने चेपर च॥३॥ यरिय नवशाएहिं ॥ सूर्यविणयंच गाहियं तचेवा विसई । नेपाषावेहीले बा अ- पाच नेपापश्रमएमकहिए
आचार्य नन्नपाध्यायने गुरुने सासाचे मने.सेवानकरे ||१६६ बाले ज्ञानी. पावसमपोतिबुच्चय ॥४॥ पायरियनवशायाणं सम्मनोपकितप्प
For Private and Personal Use Only
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
अन्नपगारनमाने पूर नपा पूजाससाघानबोलेय अहंकारी ते पापअमए मकहिएं ५ सम्पगेंचांपतोयको पात्रसाएने |अ.१७ अप्पनि पूयएथडे ॥ .पावसमगोत्तिवुच्चई. ॥ ५॥ समद्दमाणे पाराणि ॥ बी. सचिनबीजने है. अंकूरादित्रणाने या पृयन्यादिकजीवने अ. असंजती संगसंजतीपषं मानतोयको 'पा पापप्रमण ३० श्मकहि बीयाणि हरियाणिय ॥ मरदतोषिको एयो असंजए संजयमन्नमाणे पावसमपतिवुच्च एं ६ संपादिकसंथा फ० पाटीयाने पीकबाजोग्ने निकायफरयाबेसवानीलूमिकाने पाठपूनणाने याविमाएनसावाना नपरे ६॥६॥ संथारं राने फसगंपीढं निसेधं . . पायकंबलं अप्पमघर बेसे पाच ते पापत्रमा र म कहिएं ७ बजतावसोनुतावतो चाले पश्यादिकनेविषे प्रमादि अन्पूरएरोवारंवार जहरूमा मारूहई पावसमपत्ति वुच्च५ ॥७॥ दवदवस्संचरई पमत्तेय अनिरकणं : उलं | कर्तव्यनो खंघपहारपती क्रोथी पाँच ने पापत्रमणा कहिये पहिलेहएकरने पर प्रमादियको करे सेन्लेकांश्कविक घणेयंचंय ... पायसमएोतिदुच्चई ॥८॥ परिलेहेई पमत्ते अवभिनय थाने निश्चे सांत्मसीने परिखेहपादिकपीनपा पसातामुपजावे नित्यपाल नेपापभ्रमणमा कहिए । पायकंबलं योगेचूके गुळगुरूलेचचनेकथनने पमिलेहएाअपानुत्ते पावसमऐत्तिबुच्चई ॥९॥
For Private and Personal Use Only
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ना प.परिहण करतेमप्रमादिपकोकरेते सेकाश्कविकथाने सांत्मसीमगु-गुरूने फअसाना निलनिस पापापमपाएम कहिएं
१
विवादजगमाने
पमिलेहेईपमत्ते सेकिंबलनिसामीया ॥ गुरुपरित्नावए निञ्च पावसमोनिबुचई ॥ १० ॥ बघणु मायाकपटकरेपणामुपयी य अहंकारी सोलीने अ- अनितडी अ साधर्मिकनेसविलागास अपनीनकारी पा पापमपाश्मकहिएं बलमाई बमुहरि ॥ यद्देसुडेलिग्गहे. असंविलागी अचियते ।। पावसमपोनिबुच्च ॥ ११ ॥ विवायचईड । अम पातानीकरी मज्ञानुजगमानेविषे वचननाकलहकेविषही गोवंश
डेरजेपेर रातोडेते अअथिरासननेविषेतया कुछ कचरता आसननेविषेजानां तिहां निच्चेसे , पावसमपत्तिवुच्च ॥१२॥ अयिरासणे, कुकुईए जन्नतब निसीयई ॥ आआसननेविधेवेसेनहिं. अरू सावधानपपारहितबेसे वारंवारहथिपगादिक पा० पापत्रमपाश्मफहिए
आस्पंमिअपानुत्ते हसावतोयको ते पावसमपोति बुच्चा ॥ १३ ॥ ससतरजपरडे पाच पगपूज्याविना संथारानपरेसुएसिन्सेजानेउपाअयादिकनेन पूजेनहिंपमिसेहेनहिं सं संथारो सावधानपएमरहिन चपलाप ||१६८ |ररकपानेसवई ॥ सिधनपमिलेहई ॥ संयारए अगानुत्ते में प्रवर्ने ।
सम्सचि
For Private and Personal Use Only
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पाउ पापश्रमणाश्म कहिएं १५ फु द्रूपदही विउ विगयने आ आहारे अरू चारचारं . अआसक्त अ.१५ पावसमत्तिवुच्च ॥ १५ ॥ पुछदही विगइठे आहारेइ अलिरकए ॥ अरएय रातोने बसि तपकर्म करवानेविषे पा० पापश्रमण म कहिए १५ अगता सूर्याय मतालीसूकसूर्य आकातवोकम्मे
पावसमपोनिच्चर ॥१६॥ अबंतं मियसूरंमि सुधी 'आहारे हारकरे अवारंवार फगुरुचादिक सीपामपादैनथिका पन्सामी सीधामपदीएपणासीपामगा। पापापश्रमपाएमकहिए १७ । ई अलिरकएं । चोश्ठ परिचोइए नमाने ले . पावसमपत्तिबुच ॥१७॥ ओ० गुरवादिकने
खोप परपापपीने सेवे . गाठ बमासमांहे एकसंघापायी गणि• बीजे संघामेजारने गोरागणिकहिए. पा. आयरिय परिवाइ परपासंहसेवणं गाएंगणिएनए उष्टलून जाएगबोते. पावं पापमपाएम कहिए। १५ सपोतानो घरमांगीने परहस्सना धरने विषेफरे संसारनो कायार्थी सोलपीषिको निव्या
समाणेत्तिबुच्चर ॥१८॥ सयगेहंपरिचज्ज परिगेहमिवावरे ॥... निमि वातीजोतिषानिमित्त पररूपयेकरी व्यनीनपार्म पाळ पापअपपा एम कहिए १०१ स पोनानीनातनो तथासंगा संबंधनो व्याहार १५९ नेण्यववहर नाकरेने पावसमाणेनिवुच ॥१९॥ सपासिंगजेमेई ॥ जमे
For Private and Personal Use Only
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|| ने नवांले सामुदापीनी आहार गिन्गृहस्वना घरे तथा गृहस्थना आसन नुपरचलि बेसे पानेपापश्रम एम कहिए अ१३ नेत्रप्सामाणियंगिदिनिसेचंचवाडेड
पावसमपतिवुच्च २० एएहयो होएने पांसगे। उसनो २ अहाउँदो ३ ससंतोष्ठ कुसीलिए तथा ग्यान १ दरशन २ सं. ई ॥२०॥ एयारिसे पंचकुसीलसंवके चारित्र ३ तप ४ वीर्य ५ एपांचनो कुसील सर्व आप्रवनो अपारु घरनार पर प्रधान साधूधी घणो हीगो आ० एलोकनेषिधे वि०विषनीपरेने पापश्रमण नन्छ आलोकनो | घरे मुणिपवराणाहिडिमे ॥ आयंसिलोए विसमेवगरहिए नसेइहं सुधीनहिएमर्न प० परोकनों पण रूषी नहि २१ जेजेबर्जे सदाए उन बासिदोषने से ने सुवृनि हो होएमुनिनाबंद नेवपरसोए ॥ २१॥ जेवद्यए एसयादेसि ॥ सेसहए होशमुएीए मध्ये एसोकनेविषे अ अमृननीपरे पूजनीक आराघेउबेलोक एहबी लोक तालिमजपरलोकनेमा मझे .॥ आयसिलोए अमयन्वपूश्ए. पाराहए उहतोगमिए तहापर निवे राधे इश्मऊंकज शनि पापंसमणिय सनरमो अध्ययनं संपूर्ण १७ ॥ सतरमाअध्ययनविषेणापथानकवरजवीततीसंजती होएलेक्रेसलं ||१७० . ||मि ॥ २२ ॥ शनिपापसमणिबंअक्षयसत्तरसम्मत्तं ॥ १७ ॥ पटपकं अनेकोधनाळांमचाधीहोएसंजतीनेलमणी ।
For Private and Personal Use Only
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१८मा अध्ययननेविषेसंजलीराजा के कपिलपुरनामानगरेनेराजा जरु नेपो राजाए पुन्यनेनुदएकरी पाम्यान चतुरंगीसे ना नामे | अ१८ १७१ || रुषीनो उदाहरण कहे ११ कंपिलेनयरेराया ॥ नहिन्नबलवाहणे न्यापासषीप्रमुष नामेएं
सं- संजयएयोनामराजानो मिन् मृगनासाहेमानिमितेनि० घरधी निकल्यो १ हन अश्वनी अणिका १ गव्हायीनी अणिकारण रयनीअपिएकांन. संजएनाम मिगवं नवेनिग्गए ॥ १॥ हयागी एगयाएीए रहांगीए नेहेव तेमज पा पायक समूहनी मणिकासहिन म मोटीऋदि स समस्त पन् परिवारै परिवस्थानीकट्यो २ मिन् मृगर्न प्रेरीने इन्धाम य पायत्तागिए . महया सधन परिवारिने ॥२॥ मिएबनित्ता हय चम्यो कंपिलपुरनगरसंबंधिन. नदानकेसरीलदानने विषे ली बीलयिको मिन् एकलाएफमृगनेनिहाँ वच् वधेवे रस गर्नु कंपिबद्यापाकेसरी
लीए संते मिए तब वहे रस नो गयको ३ अन्हवे के केसरीनुद्यानने विषे अन्अशगारतपरूपपनसहित सरुसशायधर्म मुछिए ॥३॥ ग्रह केसरिंमिनद्या ॥ अएगगारेतवो घरो ॥. सशायशा ध्यानादिक ध्यान सं० सहित धन धर्मच्यानध्याए ले एकायचिनेकरि । अरूषेकरी व्यासमा नागरबेसनाममप मान्धर्मध्यानध्याएने १७१ एसंजुत्तो ॥ धम्मंशाएोशियाय ॥४॥ अफोवमंगवति ॥ नेहेते कायश्नवियासवे
For Private and Personal Use Only
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
२० रसग्टद्ध घि जीबघातकीए ७ रसगिठेपा घितूणा ॥ १ ॥ | विनयसहित वांदेबे पापग
www.kobatirth.org
न षपाचीने या० प्राश्रव त० तेमुनीने
१९२
मि पासे मृग के बब्बध करवा मावी राजा प् तस्सा गएमिएपासं ॥ वहेइसेनराहिवे ॥ ५ ॥ खिमाचीनेतावलो सो० ते राजा तिहां ह० हया मृगने पादेषीने अमगारने खिप्पंमागम्म सोहि हुएमिएन पासिता मागारं हवे राजा तक तिहां बीतोधको इमजाले एगार थोमासुंहयो एमृगमुनीनोड्सेते म० मंदपुन्य घाणी हराया तवसंतो
हवे गोरे चमयोधिको ते राजा हा सगर्नु राया। त. तिहीं देषे ६ तपास ॥ ६ ॥
॥ लगी में थोदूं
गारोमा मा. घोमा वि० मूकीने
एएएांवंदइ पाए ॥ लुगवंएवमेवमे ॥ ८ ॥
तत्र्याएागारा० ध्याने मिश्रित
धर्म ध्यानने विषे तसा राव राजाने नदीघो मत्कत्तर रायाएांनपरिमन्ते
एागारेझाएामस्सिए सीन बे
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मासं विसबइन्ताएं ॥
प्रागारस्स सोभिवो ॥ वि
लहे लगन एक एमृगवधरूप मे० मारो अपराध षमो पहचे मो० मोन लावे सो तेलगवं मोएा सोलगवं
त० तिवारपनी राजा ललयें करी त्र्याकुल १७२ तनुं रांया लयन ॥
For Private and Personal Use Only
मएन मंदपुन्नेां ॥
बि०
साधूना ते राजा
अ१
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७३||
जः सं संजतीप्नाळु अव्हेनगवन् वा बोस_सुजने क. कोप्पोथको नपत्तेजेकरी अ० मुनिबोधे न मनु- अ-१८
संजन अहमसीति लयवं वाहराहिमे ॥ कुछतेएवं अपगारे महेध नरको ष्यनीकोमी १० अन्अत्नयहे राजा तुमने प० अन्तं पण अमयदाननो देतसथा अ. अनित्यमनुष्यासोमिन् ॥ १५ ॥ अलने पतिवातुशं ॥ अलयदायालवाहिय ॥ अणिच्चेजीव | कनेविषे कि किसुहिंसानेविपे सन्मुप थाइस ११ ज जिवारे सर्व पर मूकीनेजावो अकर्मनेचसे आपणनेवसेनहीं सोगंमि किहिंसाएपसघसी ॥११॥ जयासवं परिचय. गंतवमवसस्सते ॥ तारा अ अनित्य जी- मनुष्यलोकनेविषे किं किसु राजनेविषे आसक्त थाए १२ जी० आषो अनेरूप वि. विजसीना अणिच्चे जीवसोगंमि किरद्यमिपसबसी ॥१२॥ जीवियंचेवरूवंच विद्यसंपा चमत्कारलीपरेंचं चंचप जंजेजीवतव्यरूपनेविषे मूर्खएडे हे राजा पच परलोकनेअनाउ ढूंनयी जाएातो १३ दो मार्या य चंचसं जबन्तंमुझसीरायं . पेच्चबं नावबुशसी ॥१३ ॥ दारादित वासि सुच पुत्र पूरपो. मित्र मिनेमबंधव जी घरमो पएीजीवतांसगि अन्घरनाधएीनानुपाज्यापनादि मोगवताधिका|| ११३ य सयाचेव मित्तायतहबंधवा ॥ जीवन्मएाजीवंति मयंनाणुवयंतिया॥१५॥म घरनी |
For Private and Personal Use Only
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न धणीमुतिबारपजीतेनानी काढे म. पूयाने पुत्र पि पित्ताने होएतेहनेफ अतिघएफडषीयका पिपितापए तम्तेमजपुत्र प्रश्न १७४ केनजाएपरत्नष नीहरंनि मयंपुत्ता पियरं परमषिया ॥ पियरोवि नहापुत्ते नेमुएयक्के काटे बंगत्माईनेपालाईमुएचकेकाटेर हेराजाएमजाएीनपा त नेमुन तिवारपीते जनुपराज्या होए ने दा धनना | बंधुरायं तवंचरे ॥१५॥ चर १५ तनेतेपाजिएदेचे
दारेय | धगीचीनाथाएदा स्त्रीनेविषेघफरक्षाकीपीहोए की० नेस्त्रीसंघातें क्रीमाकरे ह तरंगमीनिसहिन ते मुझेजेना कराव्यांच्यातरण परिररिकए कीसतन्ने नदारायं ॥ अनेरानरहे राजा हवे तुच्छेमसंकिया ॥१६॥ पेरीने पुरुष संघाने स्त्रीविषयसुभलोगयेने नेमुळे तुन्गुलजे सुपकारी . . कानपशुलकर्म ते नेणेंफर्मेसहि पुरषे जे कीधाकर्म १५ तेहाविजंकंयंकम्मं सुहंयाजश्याइहं । कम्मुएा. तेएसजुत्तो नयको गम्जेमुस तेजाए प० परत्नवेएम जापीने ई हे राजा तप आचर सोन्न तीने न तेनीपासपी राजाधर्म अ. अपामार
गईआ परंलवं ॥१८॥ सोनुए तस्ससोधम्म ॥ अागारस्स नेसमीपे मम्मोटाभोझनो मालेलाषरूपसंवेग निम्मनुष्यदेवत्तादिकनाफामलोगनुपरेअरुचिरूपनिउँदनेऐं सहिनहन राजा १९ ॥१३५ अंतिए ॥ महयासंवेग निवेयं समावन्नेनराहवो ॥ १० ॥
For Private and Personal Use Only
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नः सं० संजय नेसंनयराजा च० डांगीने रान निर निकाल्यो जिजिनसासननविषे गन्गर्दनासिनाम ललगवंतपून्य || म.१८ १७५ | संजन चश्ने रई ॥ निरकंतो जिएसासणे गद्दलालितस्स लगवने.
अ. अपगारने समीपे १५ कि राजनेडांगीने पर दीक्षा लीधी रख तिहांमार्गमाहे जातां | प० संजयमुनीमनेकहेडेनन आएगारस्स अंतिए ॥ १९॥ चिच्चारजं पवेइए खत्तिनु खत्रीराजर्षी परित्नासई जहा मनालंदीसेढे विकाररहिन बाह्यरूप प्रसन्नविकाररहित तेममनप्रयतेविकाररहित२ किग्नामताहरोकिंगोत्र नेदीसश्रूवं तक जाहरु ... पसन्नत्तेतहामणो ॥२०॥ किन्नामे किंगोत्ने किसोक किस्याने अर्थ त्रिकरण शुद्ध क्रियाकरे डेमा जती कर के प्रकारे प० संघले आचार्यादिकने का किया प्रकारे विनीत शिष्यम कस्सबाए वमाहुणे पकंपादत्धुरे कहपमियस्सी बुद्दे ॥ कहंविएीएन्तिपुच्चई। कहिये २१ संजयमाहिदै संजनीराजसषी पत्री राजरुधीभनेकहैडे नतिमगोत्र गोल हेगौतम ग गर्दलालिमुनिमारोआचार्य । २१॥ संजन' नामनामेणं ना नामएनामे तहा गोतेएगोयमो गहनालीममायरि
पिक शुनज्ञान अने चारित्रनापारगामी मानविनाक्रियानाकरणहार२२ १० ८ क्रियावादि ८४ प्रक्रियावादी ३२विनयपांदीपलि १७५ या विद्याचरणपारगा ॥२२॥ किरियं अकिरियं विणयं ६७ अज्ञानवादी ४ एवं २६३ मिष्यादा।
For Private and Personal Use Only
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
म हेमहामुनी सांललो. एक एकयो ने च्यारथानकें करी क्रियावादिप्रमुष ३६३ पा | मेन्जीवादिकपदारथने कि कुदिना||अ.१८ अन्नाचमहामुएी ॥ एएहिंचनहिंगोहिं घीमिथ्यातिकेवाडे मेयन्ने किंपनासइ ।। २३॥ घिपालीपरूपएानेपर लापरूपेढे तेहयोमनि नयी ने कहतां पोताने कल्पेने शास्त्रीयीकरी अथया . . बुन्नत्वनाजाप तथापपानीजापापहारनेमेयन्ने एवामिथ्याती इ. एक्रियावादीसरूपने पा० प्रगट करना न्या. २३ श्यपानकरबद्ध ॥ ना ज्ञातषत्री महावीरसीलसिलून विशाश्क दरसन चः काश्ययाष्यात चारित्रतेसा सत्यवादीसाचामाकृतना धपीछे नायए परिनिव्वए.. विद्याचरण संपन्ने नेणेंकरीसहिनचे सच्चे सच्चपरक्कमें ॥२॥ पर नुपर्ने नम्बीहामपानरकनेविषे जे जेमनुष्यपा० पापनाकरणहारमिथ्याती दि अने प्रधान देवनया सिगातिप्रनेनुपजेजाए पनि नरएघोरे ॥ जेनुरापावकारिएो ॥ .. दिवंचगश्गचंति ॥ चरित्ताधम्मा आचरीने आर्यनीर्य करनाधर्माचरीने माठमायाकपट बुपरूपे एक एपाषंमिनोमने तुअवधारपोतेमाटे एहनीसँमृषालाषानिक
५ माया सहित साहत बुश्वमयतु मुसात्मासानिरनिया
निरर्थकलाषाएमां नयीमुक्तीनीदेतेमाटे एवो हं नयी तो झंकेयोसं निश्ये अन्नाबश्यर्यादिकसुमतीने विषे वस्तबु२५ ससर्वते पापभीवेज्जाएयावर्ते/७५ संजममाएगो विग्रहं संजमपाएततोषिकोवसामिइरियामिय ॥२६॥ सचेतेवेश्यामशंसने ||
॥
२
For Private and Personal Use Only
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
नु.
१99
www.kobatirth.org
मि० तेमिटयाष्टिकेवा के अ० वि० विद्यमान बतो परलोक मिथ्याती स० [साचे प्रकारे जाएंऊंड मन्त्रमापणीयात्मानी लावें करीना नसदेदेपा के वोढुं पूर्ववत
मिच्चादिवि प्रणारिया विद्यमाणेपरेलोए
म० महामाएानामा
विमानने विषे पांचमे देवलोके फूंतो मासी महापाऐ
| देवलोक संबंधी या मानुषाने पाले पं० देवसंबंधी १०० बरसनी उपमा रिससनु॑वमे ॥ २८ ॥
० ज्योतियंत वसोवरसनीचपमाएतले १० सागरने मानुषे
जुइमं वरिससने॒वमे
सेव्य ब. ब्रह्मदेवो कथकी
सम्म जाएगामिप्यं ॥ २७ ॥ अह जाव जेते मानुषा रूप पासी केवी सागररूपपाम मोटी पाली एदस सीदि० ब्रह्म
जासापाली महापाली दिघा व
मा० मनुष्यना लावमतेमच आव्यो
परेसिंच यानं जाए जहा तहा ॥ २८० ॥ नाएारुईचबंदंच ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
या पाम्यो संजती राजापा पोतानोव नेरानो
सेचुए बललोयाने ॥ माएस्संलवमागनं ॥ प्मणोय ०नुषो जाजायज जथातथ्ये जेटली होए तेसो जाबो बलि सजती रूप कहे
नाव मिथ्यातीनी नानाप्रकारनी सूचीने प० परिवरजेसाधु नं. बंदालायने
परिवद्येच
For Private and Personal Use Only
म. १०
193
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ० अनर्यनाकारए जे मिथ्या तादिक अपुल । एवोज्ञानेकरीसहित रुए च चालेमवते प निवरतु परमभसावद्याअ-१४ जोगवलि सहिंसादिक सर्वअनर्थने व तोऊन
निमित्तनाक संजएअपवाजेयसबना संपणएवोवू इविद्यामएफचरे ॥३०॥ पमिकमामि पसीएा | हयायी प रहनसुं मंच गुह्य सावद्यगोष्टयी अ आश्चर्यकारी संजमनेविषे न० सावधान इ० एपूर्वोक्त जाणपंमित तन्तपसंजमने
वा अथवा निवर्तुडं थको प्रयते सापु अ. रात्रदिवसने विषे आचरे पत्रिराजऋषि एमारो बिएं परमंतेहिंवापुगो ॥ अहोनचिए अहोरायं विद्यातवंचरे ॥३१ ॥ नयमार्ग लेनला सुधीसंजेयराज पबिराजऋषिनेकेले मेच मुझने पूर्वसोप्रश्नादि सब सम्यक्मकारें मनेकरी ना तुमेपूजसोते मी सपीएमपत्रीराजतषीपूबानो
अवसरे प्रत्युत्तरकह्यो जेनसिहये जंचमेपुरसिकाले ॥ सम्मंसदेणचेयसा ताइपानकरे बुझे 'जि जिनमन बीजामनमा एनमसे ३२ कि. ज्ञानसहितक्रियाते जिनमेननीज्ञानने केले अओकुचिनसमकिनसहिनं
अवधारपोरोचवेकरी घी धीर्यवंतसाथ क्रियाते मिथ्यातिक्रियाने क्जें. तंनाएं जिएसासणं ॥३२॥ किरियंचरोयएधीरे ॥ अकिरियंपरिवद्यए
For Private and Personal Use Only
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नु. दि० समकितें करी दि० ग्यानेकरी साहितयको ध० चारित्रधर्म प्रते च तुमो प्रवर्ततो एमाहरी एज्ञानसहित सु० कायरने त्र्याचरतां दो हेलो अ. १८ १७९५ दिचिए दिविसंपन्ने धम्मंचरे सीस एवोचारित्रधर्म केहीबे फडुञ्चरं ॥ ३३ ॥
लव लरतचक्रवर्ती ला लरखषेत्रने विषेचि बांकीने वसी कामलोगने प० संजमा
हे तुमसरषा सूरवीरने सोहिसोबे एन एज्ञानसहित क्रियारूप घारीने भरतादिकें संसार यूंक्यो पु० पुन्यपवित्र पढ्ने एतले शुद्ध जनमतने सोन १३ एयंपुन्नपयं सोचा सोहियं ॥ साललीने अवधारीने सं| सारमूक्यो म अर्थतेमुक्तिनारूपफल ध धर्मले जिनशासन रूपज्ञानदर्सनसहित चारित्र धर्म एबिरुंएकरी लरहोविलारहंवासं चिच्चा कामाय पच वंतथयो चारित्र आचरयो सन्सागरनामा चक्रवर्ती पुए सा० समुड्लगे त्रा दिस श्राज्ञाप्रवर्ते चोथा दिसनुस हिमवनपर्वतलगे आज्ञामवर्ते ल ए ॥ ३४ ॥ सगरोविसागरंन ॥ लरहवासंनराहियो एंवा भरतषेत्रनु राजन्न० सागरनामा राजा ५० वकुराइ के केवलसंपूर्ण बांदीने दन्दयाएं संजमेकरी प. मोदपतो च० बांदीने ला० भरतषेत्र च० चक्रवर्ती
इस्सरियकेवसंहिच्चा ॥ दयाएपरिनिधुने ॥ ३५ ॥ चत्ता लारहंवासं ॥ चक्कव ही म० मोटी रु दीनो पापी पदी का सेवाने अर्थसावधान ऊने म० मघवनामाचक्रवर्ती म० महाजसवंत ३६ 'स० सनतकुमारम नरेंद्र महिद्दिन पंचद्यममश्वगर्नु मघवंनाममहायसो ॥३६॥ सां कुमारमनुस्संदे
| १७७
For Private and Personal Use Only
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| च० चक्रवर्ती म मोटीकमीनोपदीपुठ पुत्रने राज्यनेविषे थापीने सो० नेणे रानाएं पांचसरीर असार जाएीने तपाचत्यो च जामी अ१८
चक्कवट्रिमहदिन पुत्तं रोपवेन ॥ सोविरायातवचरे ॥३३॥ . चश्त्तम। लरनषेत्रनो राज्य च चक्रवर्ती म मोटी कधीनोधएी संव सांतिनाथसांतिकराहार सोकनेविषे प० पाम्यामोक्षगती अस्म । | लारहंवासं चक्कचही महिदिन ॥ संतिसंतिकरेसोए ॥ पत्तोगईमएफ न | धान ३८ इष्वागबंसी राजामौहे व वृषत्लसमान कुं० कुंयुनामराजा विक प्रसिझकीर्ति । म लगवंतपमा रं॥ ३८॥ कागरायवसहो कुंथुनामनराहिवो विखांय किनिलयवं सेन्पो. पंच्याम्या गळ मोक्षगन अन् मयान ३९ सा० अपादिस सॉइसमें आज्ञापपर्ने एवो राज्य लक लरतषेत्रनेविषे न मनुष्यमांहेम पत्तोगश्मएत्तर ॥३९॥ सागरंतचश्ता च. गंगीने लरहनरवरीसरी धानगाकुर , अरुअरनाय अन् कर्मरूपणिरजरहिन पर पाम्या गत मोक्षगती अ प्रधान ५. चबांनीने नाक मरतषेत्र राज्य च० चक्रवर्ती
अरोयं अरयंपत्तो थईने पत्तोगमएफत्तरं ॥३०॥ चश्तात्मारहवासं चक्कवट्टी | मोटीकधीनो धपी चर डांमीनेनु, प्रधान उत्तमलोग मन् महापदम चक्रवर्ती नेपो ने नपादत्यु ५१ पदएकबत्रएवोराजा || १८० महिद्दिन ॥ चश्त्तानुत्तमे लोए ॥ महापनुमेतवंचरे ॥४१॥ एगबन्तं
For Private and Personal Use Only
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
म॰ वर्षम पृथवीना राजाना माच्माननेमरदपहार हव हरिषेणा महमनुष्यमांचक्रवर्ती समान प० पाम्यागति प्रधान
पत्तोग मफत्तरं ॥
to जयनामाचक्रवर्ती जिवजिनो
न.
प०यसकरीने
१०१ पसादित्ता ॥ महीमाएास्ससूदाणो
हरिसेणो मएफस्सिंदो
अब सहित रा० राजा सहस्त्रक
सु० लतिविधे राजांदीने द० संजम
४२ ४२ ॥ कसंजममार्ग प० पाम्यामोगती प्रधान ४३
अणि रायसहस्सेहिं
सुपरिच्चामंचरे आदी
जयनामो जिएारकायं
आस्यो पत्तोगईमएफत्तरं ॥ ४३ ॥ दसाएल नि० निकाल्यौ स प्रतदा शकेंड नलहो निरक्तो सकसकेाचो
दन्दसाए, देसेनोराजा पर प्रमादसहित च० बांकीने मुन्महाव्रतच्प्रादस्योद दसन्नरयं पमुझ्यं चन्ताएं मुणिचरे दस चोरयो ย
न नमीराजानमाम्यो० आत्माने स०
॥ ४४ ॥
नमीनमे पाए ॥ स
मतदा स सकेंद्र प्रेरथोधको
चांदीने घर विदेहराज्य साथ चारित्रने विषेप सम्यक् मकारें सावधान ऊन: कं सक्के चोइ ॥ चनुरागेहिं वदेहिं ॥ सामन्नेपकवनं ॥ ६५ ॥
क. करकंमूराजा क० कलिंगदेसने विषे पं पंचास देसने विषेदु महराजा न० नमिराजा विदेह देसने विषेबूको गं गंधार देसने विषे १८१
करकं मूकलिंगैसु पंचासेसुयडुम्महे धूण नमीरायाविदेहेस
गंधारे सुय
For Private and Personal Use Only
अ. १८
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
। न निगईराजा बूग्यो.४६ एक एमराजामाहे व० घोरी समान निउ निकल्या जिकजिनसासननेविर्ष पु.पुत्रनेराजनेविषे अ०१८ १८२ निगई॥४६॥ एतेनरिंदवसला निरकंता जिगसासऐ ॥ पुत्ररोग्वेला
थापीने साव चारित्रनेविषेसम्यकप्रकारे सावधान थया ५५ सो सिंधुसोवीरदेसनो रामा बधोरीसमान चव डॉमीने चा संजम पं. सामन्नेपछविया ॥४॥ सोवीरराय वसनो चइत्तामुणिचा आदर नः नदायणनामारांना पदीक्षातीधी प० पाम्योमोक्षगतीअ प्रधान स त तेमजकासीदेसनोराजानंदननामासासमोबददेव । रे नदायगोपवश्न पत्तोगश्मफत्तरं ॥ ४ ॥ नहेवकासीराया सेने सच्चप सद अतिप्रशंसनीक संजमनेविषे का काम नोगामीने प्रकर्षे पर हएयो कर्मरूपिन मेमोटो वन एवं नव निमज विविजय रकमो उद्यमयन या कामनोगे परिचय ॥ पहऐकम्ममहावएग ॥ ॥ नहेवविजन नामंराजा बीजोबसदेवअन्नातीगइवे अ अकीर्तिजेहनीपत निर्मलकीरतनागु न्यायकरयानाअययाने मनोहरशब्दादिकने गुपोकरीसंन्संपूर्ण
राया ॥ अपचावित्तिपथए । रचतुगुण समिदं प्रयहित्तु महायसो ॥ ५० ॥ प० एवो राज्यबांमीने मरु महायशवंतले नब तिमजनयनप करीने ' अ संजमने विपेअव्यय चिनेकरी मन्महाबसनोमारान || १८२ तेणे दीक्षाखीधी ५० नहेवने गंतवंचिच्चा अबस्किने एचेयसा ॥ महबसोयरीय
For Private and Personal Use Only
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आग्रहीने सितमस्तकमाया साथसि० सरीरनुपरें ममत्तारहितपणे संजमरूपपी पक्ष्मीअमवा कन्केमधीच || अ.१८ १८३|| रिसि ॥ आदाय सिरसासिरी ॥ ५१।। फेवग्यानरूपएीसभीग्रहीने मोझ पोहोता ५१ कहिं धी
धीर्यवतः मिट्यातिना परूप्या कुहेनतेणेकरीनुन्घेलानीपरे मतवाला यः एक एनरनादिक राजा विक ज्ञानसहिन क्रिया शुमार रोअहेनहिं ॥ जमत्तुबमहिंचरे प्रयचीनविषे प्रवर्ने एएविसेसमादाय गमो विसेष आग्रहीने एतलेसूर देखे भोक्रमना धणी थयाँ ५२ . अ अत्यंत समतादिककारणे करी कर्मरूपमसटालयाने समर्पजया नुमोजेचलिअाग सूरादढपरक्कमा ॥५२॥ अचंत्तनियाएखमा ॥ सच्चामेलासियावई सतसोसद सत्य कारी मारु भाषाकहेवाएगीग्यानसहित क्रियाकरीने तच एके कर्तुमसरपा तरेखेत्तरसे अव आगमिएकावें करकेमधीबन
अतरिकतरितेगे अब संसारसमुज्नेतरताहवा ५२ तरिस्संतिअपागया ॥५३॥ कहंधीरे - साधु अन् कुहेने करी अन् पोतानाआत्माने वसे मिथ्यानेकरी किमवसवी नहिश्त्यर्थः सर सर्वसंगयी विक मूकापो अहेनहिं ॥ अज्ञाएपरियावसे
सवसंगविणिमुक्के ॥ . सि सिदयाए नीच् कर्मरमरहितयको इ० इमऊंकडु ५० ३० इतिअठारमा अध्ययननेविषे त्भोगअनेरुद्दीनीत्यागकया तो चारित्रनेविषेर १८३ सिद्धेहवश्नीरए ॥ 'तिबेमि ॥ ५ ॥ ॥इतिसंजयनीअक्षयएअढारसमंसंमत्तं॥१८॥
For Private and Personal Use Only
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shil Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
www.kobatirth.org
भ
| अनेचारित्रनो सावधपमिगतोत्रपाकरबेकरी होएने सुछ सुग्रीवनामानगरने रमणीक काळ मोटानंघावृकतेपेसहिन नबनुयान अ५० नगएीसमानध्ययननेविषेमृगापुत्रनो संबंधकहिएडे १८ सगीवेनयरे रम्मे • काएएघाणसोहिए । तेणेंकरीयनातेनगरनेविषे रा० रागावललए मिमगानामते अन्नमहिषीपटराणी नेव नेऊनी पुत्रं बच्चसनीनामाकुमार नगरसोत्नेले रायाबसलद्दति बसलपुरनानी मियानस्सगमाहिसि ॥१॥ तेसिपुतेबससिरी पि- मृगापुत्र एहबोनामने प्रसिडे अ मातापित्ताने दह वर्षल यु युबराजा दव गृहस्पऐजनीनागुणाआव्यानेतेलेली मियापुत्तेविस्सूए ॥ अम्मापिनए दश्ए । युवरायादमीसरे ॥ २॥ यतीमाहेश्येसर नं: आनंदकारीचे तेमृगापुत्र पाल सिधरबंध प्रासादने विषे क्रीमाकरेडे घणी स्त्रीसहित देव देवदोगुंदक देवतानीपरें चेवलीअवधाएम नंदणे सोनुपासाए ॥ कीलएसहरबिहि ॥ .. देवोदोगुंदगोचेव रणोनिच्सदा निच मादसहित मामे ३ मच्चंऽकांतादिकमपी र० कर्केननादिरत्ननेणे कु. जमोडे पीटपीनुततुं पाए प्रासादना अागोपने मुश्यमाणसो ॥३॥ मणिरयणकुहिमतो पासायाखोयोचिनु विषेरह्यो आज जुएबे न० नगरमांहे पच्छ वाट एकविमिसेतिहांत्रणबाटएकविमिले तिहांधणीबाट अहवेने ७बाट प्रमुचनेविषेत्रायतोदी १८५ आसोए नगरस्स ॥ चनक्कत्तिगचंचरे ॥४॥ एकविमिलेनिहां अहंतवअहिवंतं ॥ गे|
For Private and Personal Use Only
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
| तिस्मरण स० नपर्नु
सरणे समुत्पन्ने
सीलहं गुएान्प्रागरं ॥ ५ ॥ कऊं जाए ..ए एहवी रूप कमन्नेसिं
यागर
तपेहमियापुते
न. पा. देवे स तपसीसाधु संन्सजतीने त. तप १२ लेदनालियह संसतरलेद संजमनो घरदार सी० मढारसहस्त्र सीलंगरूपीरुविंत प्र. १९० १८५ पासई समए संजयं तव नियम संजमघरं ॥ गु०ज्ञानादिकगुरानो | तब तेजतीने देषेवे मित्र मृगापुत्र दिवदृष्टि ० एमिलते के दिडिए प्रामिसाइनुं दिदीले पूर्व मच मे. पूर्वलव ६ सा साधूने दरसन एके तन्तेमृगापुत्र दिवं पुत्रमपुरा ॥ ६ ॥ साझस्सदरिस नस्स मोहगयो मोहनप सम्यो अथवा मूढने बस जात जातिस्मरज्ञान स० उपनु ७ गयस्स संतस्स पोतो तो लवें आयो
ऋष्परिणाम
सोब्सौलनिक एकेमो
झवसामि सोइ ॥ मोहं देवलोक थी चू० चव्योयको मा० मनुष्य जाइसरणां समुप्पन्नं ॥ ७ ॥ देवसोगंचून संतो ॥ माएक संग संज्ञी पंचेंडीने जे नाव ज्ञान उपजे ने ज्ञानजाति जाब्जाति सब उपनेयेके पु० पालसी जाति
जा० जा
संलवमागर्नु.
सन्नि ना। समुप्पन्ने स्मरणानुपनुं जाई सरणं पुराएायं ॥ ८ ॥ जाई पु म मोटी ना पीनेस समरीस लारी पोन पाडली जाति सा चारित्रपणापु० पूर्वेपास्युहनु" १८५ ॥ मियापुत्तेमहिढिए ॥ सरइपीराणियं जाई. ॥ सामसंचपुराकथं ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ.१०
१८६
नः|| वि विपयनेविषे अन् अपाराचतोषिको रस राचसोथको संक संजमनेविधे अन्मातापिनाने समीपें न आवीने |
विसएस अरजातो ॥ रज्जंतो संजमंमिय ॥. अम्मापियर नवागम्म २० एहबूबचन अ. बोल्यो १० सालस्योलतोपूर्व लयने पं० पांचमहाबन ना नरकनेविषे' ऊ उप निशानिर्यचने
इमंवयामंबवि ॥१॥ सूयाणिमे विधे पंचमहत्वयाणि नरएस कुस्कंच तिरिस्क विषेजेऽपत्तेपपासालच्याजता निख निवर्तचानो का आत्निसाधी पानुर्बु मंससारसमुइयी अदीक्षासेवानीआज्ञाद्यो पहंदीशाले जोणिस ते लणी निवत्तं कामोमि महन्नवाने ... अफजाएह पवश्स्सामि अ हेमाता मालाएत्मोगामंत्र्यापनी मृगापुत्रकेचे अच् हेमाताहेलान मे भोगत्मोगव्या विच विषफलविपाक कनाफलनी अम्मो ॥ ११ ॥ ११. अम्मतायमए लोगा ॥ लुत्ताविसफलोवमा नुपमाएं लोगत्लोगव्यापीक कम्याविपाकना देणहार एलोग अनिरंतर उ उपना देणहार १२ ई. मसरीर अ. अनित्य पना कंम्यविवागा॥ अएबंध हावहा ॥१२॥ श्मं सरीरं अपिच्चं ॥ अन् अचिमय शेरीर मा अरुचीधानुपनुए नदारिकसरीर अअअशास्वतो वा वासजीवने ए उघनोहैल के रोगज्वरादिक ||१८६ प्रासासया नदारिकसरीरवास
उरकं केसाए। सतुं
For Private and Personal Use Only
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
। लाजननेएसरीर अ. अशास्वनो स. सरीरनेविषे र रतिनधी पामतो पप वृक्षपणे बांसवो अपना अशास्वना लपीबाप अ.१५
लायणं असासए सरीरंमि ॥ रश्नोवललामहं पग पुरावचश्यत्वे ॥ पणेबगंयो. फे पाएीनाफेपनोबुबुद्बुदा सं सरघासरीरनेविषेशरति नथिपामतो मा० मनुष्यपणे अन् असारनेविषे वा व्यापिने कोढादि अनि फेणबुव्यसनिले ॥ १४ ॥ १० माएकससे असारंमि वाहिरोगाराआलए घपी रो रोग तेज्वरादिक । जन्जरामरणेकरी घाघेस्युंडे एवोसरीरनेविषे खचषएमात्रपणरनिनमानुस १५ मा जन्मनुप जरजराजप तेनाघर... जरामरायबंमि ॥ वपिनरमामहं ॥१५॥ जम्मरकं जरा रोज रोगमरपा
महेमाना फुपुश्नो हेतु निश्वे संसार जर जिहां की किसंसाएजीव , १६ रक ॥ रोगायमरणाणिय ॥ अहो पुरको संसारो ॥ जब कीसंति जंतुरे ॥१६॥ खेर नुघाफी श्रागासि भूमिढांकील्लूमिघरादिक पुरू पुत्रलार्यापखी बंध च नांगीने इ.एन्दारिकसरीर गंजाबो अवश्य || खेत्तं वचु हिंरपंच सुवर्णविक पुत्तदारंचबंधवा ॥ चश्त्ताणं श्मंदेहं ॥ गंतवमवस. मे में जन्जहां कि किपागवृक्षना फखनु प० परिणाम न नीललो जिम परिणामे ए एम लोगव्यालोग | १८५ स्समे ॥१७ ॥ जहा किंपागफसाएं परिणामोनसंदरो तिम२ एवं मुत्ताएं |
For Private and Personal Use Only
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१६
न
पपरिणामनयी लसो
जानोको सेतेपुरुषः षीहोए वा० व्यावित्र्याने रोगे पीमयोको २.०
० पंथ जो० जोपुरष मोटापंथ संबलरहित मोटोपंथांगीकार त्र्य. १८८ १८८ लोगाएां परिणामोनसुंदरी ॥ १८ ॥ प्रद्धा जोमहंतंतु ॥ पाहे जोपवाई करे गच मोटा पंथिने विषे जातो से० ते पुरष पुषीथाइ होए बु० दुधा तृषाएंकरी पी० पीमयोदेको १९ ॥ ए० एमपर्म म० पकीचे ते जी० गवंतो थको सेडुहिहोई बहा तहाहिंपीनि ॥ १८५ ॥ एवं धम्मं यकानां जोग जीजापरलवे पंथ जे पुरुषमोटापंय. बई परलवं गवंतो से दुहीहो । वाहिरोगेहिंपीमि ॥ २० ॥ अद्धा जोमहंतंतु सं० संबलरहित जो० मोटोपंथ अंगीकार करेग。 जातोयको ते पुरुष सुसुषीहोए ब्लूष तृषाएंकरी विरहितको २१ एक एम ॥ संपाहे जोपवाइ ॥ गवंतो सेहो बहा तहाविवधिनः ॥ २१ ॥ एवं धर्मपए का करीने जो जेजाए प० परलवे ग जातथिको से。 ने पुरष सुषी होए प्रत्यकर्म पोतेरहे म. धम्मंपि कालएं जोगबइ परन्नवं गवंतो से हीहोर अप्पकम्मे अवेयऐ सातावेदनीरहितहोए जब जेमगृहस्वनुघर पर बलतेयके तने घरोघ जागे पलितंमि ॥ तस्स गेहस्संजीपन ॥ सरिलमाइनीएो।
साबधान लब्बऊमूल्य १०८
॥ २२ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #161
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
१८
अ. अजीएविस्त्रादिक अन्चामपन्यारहिवादीए २३ एएमसोकबखनेथके जन्जराअनेमरणानेपोंकरी बसतेयके अ अ.१५ असारं अवरई ॥२३॥ एवंसोए पलित्तंमि जरायमरोगय ॥ अप्पा पोताना आत्मानेनिच्चारेले बऊमूल्य जागीने तारसे नु तुम्हेदीक्षानी आज्ञादीधेयक २७ तंत्र लेमृगापुत्रबोलतो तो ए तिरियिस्सामि ॥ तुनेहिं अएफमंन्निने ॥ २४ ॥ तंतिम्माउपियरो - पिताबोड्या सा चारित्रहेपुत्र कु०पासतांदोहक गुरु क्षमादिकगुपाना सहत्र पाच पारवा राघचा लिन यतीए, २५ सामन्नंपुत्तच्चरं गुणातुसहस्साइ चारेयवाई लिरकूएो ॥२५॥ सच समतास आपणाआत्मासरषो लाव सर्वस सत्रुमित्रनेविर्षे आपदा आत्मासरो लाववाच्यापार प्राणांतिपानपकी समयासबलूएस जीवनेविषे सत्तुमिनेऊवाजगे थवाउन सक्लायतसरी पागाइवायविरह निवर्ने जाब्जावजीवसगै उ० पासता दोहेलो एवृन मिसदासर्वकाले अ० अप्रमादीपणे मु, मृपाबादनो वरजयो माला
जाव जीवाएपुक्करं ॥ २६॥ निच्चकासप्पमत्तेणं ॥मुसावायविवधणं नासि ज्यु. हि हितकारी सत्य निच सदाए हितकारी सत्य वचननो बोलयो २५ तेजेणेकारणेसंजमकरदं दांत साघवाने ||१५५ यत्वं हियं सच्चं निच्चा जुत्ते। उक्करं ॥ २७ ॥ दंतसोहएमाश्स्स ससित्यादि ।
For Private and Personal Use Only
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
नः|| अ. अदत्तनुवर्ज— अनिरवथ्यए ए. एषणिकदोषरहित गि० पहयोनिदोष आहारसेयो अ अनि पुक्कर २८- वि० बरते अ.१६ १०० अदत्तस्स विवधएं ॥ अवधेसणिधस्स गिहाणा अविरुक्करं ॥२८॥ विरई।
अरु अब्रह्मचर्यना का कामलोगरसना जाणीने नुग्रम महाव्रत ब्रह्मचर्यरूप धारए व्रत धारवो सु अनिहे कर अबलचेरस्स कामलोगस्स नएा नग्गंमहत्वयंबलं ॥ पारेयत्वंसक्करं ॥२॥ ध० धनधान आदि पे दासनासमूहने विधे पर परिग्रहनुपरे ममतानुवर्जेबू सर सर्व पारंलनो परित्याग नि ममतारहितपएक यगधन्नपेसवगेरू ॥ परिग्गहविवधता ॥ सच्चारलपरिच्चान ॥ निम्ममनसा अनिउक्कर ३५ च अनादिकच्यारपण . रा रात्रिलोजन व० वर्जयूं सन् घीप्रमुषचासि राषयानुं संचयतेहा करं ॥३०॥ चन विहे विग्रहारे। राईलोयावधपा ॥ संनिहिसंचनचेव ॥ बच् वर्जवो सुम् अतिक्कर ३१ बुत्यूषबपि समाताडनु न नष्णानीपनो परिसह दंदसमसानी वेदना वद्ययवा सक्करं ॥३१॥ बुहां तएहायसानुएह, दसमसग्गवेयएा । अाक्रोस परिसह उन्उधकारीनुपाप्रयत० तृपानी फेरस जन मेनोपरिसह निश्वे ३२ ता चपेटादिकनो प्रहार भागसिप | १९५० अक्कोसा उरकसेधा तपाफासा जनमेवयः ॥ ३२ ॥ तासगाँतबगीचेव॥
मुपकराजल.
For Private and Personal Use Only
Page #163
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie
www.kobatirth.org
या वघबंधननो परिसह दोहेलो नि लिक्षाचारी जा. जाचनाकस्नी दोहेसो अन्जाचनाकीपापडे सापेनहिंतेम| अ.१० | वहबंधपरिस्सहा फुरकं लिस्कायरिया जायगाय असालया ।३३ ॥ सात्म | परिसह का पंपीनी परेजे २० अाहारसेवानीवृत्ति आजी केव केसनो सोच दा. कायरपुरषनाहियानेविदारनाएवोपरि सहसोच
कावोयाजा मावित्ती विकाजतीनी केसतो यदारुपो ॥ नादोहितो. उ० फुकर ब्रह्मचर्यघृत न० कर्मयेरीमतें रुड धाळ एव्रत धारयो पाखचो अधीर्यवन आत्माने अनिदोहेलो३४ सु: सुषस्नोगयवाजोग्यतुं
खंबंलवयंघोरं घारेनुग्रहमप्पगो ॥ ३३ ॥ ... सहोश्न बे हे पुत्र सुरु सुकुमाल सप्रतिहेरूमीपरेमोनकर करीने निर्मलसरीरखे तारून नथीनिकै समर्थत पत्र । तुमपुत्ता रूकुमासो सुमधिन नासिपल्लू तुमपुत्ता .. सॉर चारित्र पासवा ३५ जा जायजीवप्समें, अच नहि विसामो गु० जतीना गुपनो मोटो समूह सामन्नमएफपालिया ॥३५ ॥ जावजीवमविस्सामो ॥ गुणाएंतुमहारो गु० मारे सोच सोहना मारनी परें जोजे हेपूत्र हो होए संजमनोलार वहना अत्यंतदहिसौ अचूसहेमचन- १९५१ गुरुन सोहलारुब ॥ जोपुत्तो हाइउच्चहो ॥३६॥ ३५ अागांसे
For Private and Personal Use Only
Page #164
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न| पर्वतनुपरथीहेनतरेछेने गत तेगंगानेसामेपूरे जेमजायो दोहेलो नदीअंतविस्तार ६२ जोजन जीलविस्तार ५ जोजनजीनियांमसा ||अ.१०
आकासगंगाकहिए गंगसोनच नयी नयीनोग्रादिविस्तार जोजने नदीनोमध्यविस्तार चाल्योनधी प. जेएगी दिसथी पाएी आवतो होए निहा सामो जाएतेभने श्रोताकहिए बाग्लुजाएकरीजेमसमुइनरवो दोहेलो नेम तर पमि सोनवसत्तरो ॥ प्रतिश्रीतजावू नेम जोबनचयनेविषे संजमकर बाहाहिंसागरोचेव ॥ तरिय यो संजमनागुणरूपी समुह ३४ वा वेणुनाकबस जेम . नि निरस- संन्नेमसंजमषण अ. बो ॥ गुणोदही ॥३७॥ वाकयाकवलेचेव निरिस्साएन संजमे निरस असि. षगधारानुपरे गा चालवू दोहेसुं कुछ नेमदोहेसुंआचरतांतप १२ लेद ३८ अजेम सर्प ए० एकांतइष्टीचासे चर चारित्रनेविष धारा जेम गमगचेव उक्करंचरितवो ॥३८॥ अहिवेगंतदिछिए चरित्ते पुनेमसाधुपपाएकांतश्यसिमति चासे है पूजने लपी संजम आचरतां दोहेसुंता अत्यंतपुर . ३५ जजेम तपुच्चरे जवाखो हमर्याचेव जा जसोहमय चार चाबव-चावियचासुक्करं ॥३॥ ॥ जहा अग्निनीसिंघा सि अनिबपति पार पिनाहोए सुर अनिदोहेली न० लेमपुकार पापत्ता ला जोवनव्यनेविषे सह यतीपए ||१०२ अग्गिसिहादित्ता पानुहोइ सडक्करं नहकरं करेनंजे तारुष समपात्तए ॥ avu||
For Private and Personal Use Only
Page #165
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जब्जेम ऊपे मरयुजे हो होइ बान्धायरेकरी कोथसो. नन्तम पुषे पासवो. कील मंदसंघयपानाधणी एमंदकायरपुरषे जन्जेम अ.१९०
संजम सरू यतीपयुं पालयो दोहेलो ५१ जहाऽखलरेनुंजे होइ वायस्सकोबता सहा पुरखकरेनुंजे कीवेणंसमपन्तएं ॥५१॥ जहा तुत्राजये तोन्तोलना दोहेसो मं मेरुपर्वत तब्तेम निश्चसपणे निवसंका उ• उतर सन् दशविधयतिधर्म ४२ जन्जेम करि कुकर
रहित पालना
.. . तुलाए तोसेजे ॥मुक्करं मंदरोगिरी ॥तहानिलय निस्संकं मुक्करं समएत्तां ॥४२॥ जहा लुन् लुजाएकरितरयो.जेचनेमुक्कर सरत्ननो आगर तालेमजपशमवंतनधी नेढ्ने उच् पुक्कर दन्नुपसमरुपिने समइतरयो मु. | . स्वयंसूरमासमुड
.. पासता दोहेलोजेनणी ५३ लोगवी लूयाहि तरिन जेकरं रयपायरो ॥ तहा अएफवसंतेणं पुक्करं दमसायरो ॥ ४३ ।। लुग माळमनुष्यसंबंधियात्नोग पं शब्द १ रूप रस३ गंध मुलुक्त लोगीर्थईने तिवार बच्चारित्रधर्मनेान्याचरजे . फरस५ ए ५ पांच
हेपुत्रपठे वृद्धपणे माणुस्सए लोए ॥ पंचखस्कएएतम लुत्तलोगीत जाया ॥ पञ्जा घम्मचरिस्ससिाध
For Private and Personal Use Only
Page #166
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न सो० मृगापुत्र कहे . मातापिनामते एक एम ए तुमारुंवचन जब जेमतेम साचो कऊंटुं इ० इहलोकनेविषे नि०विषयनी तृषान हुए निस्पृह अ. १९५ १९४ सोवितम्मापियरो
एवमेयं न. नथीकाइ लिगारमात्र पाक्कर ४५ सा० वारीर मा० मानसी
जहा फु
इहलो
निष्पवासस्स होते
वेदना सातारूप पंत वार मद मे
सारीरमाएकसाचेव वेयाने प्रांतसो मए
| नचि किंचिविडुक्कर ॥ ४५ ॥ | सो० सहिलोगबीली प्रतिवेदना प्रघणीवार ० दुषच्यने ललयनी नपजावएाहारीवेदनामेलो जन् जरामरणरूपणीकंचटवी चान्धा सोढाजे भीमाने असई दुखं लयायि ॥ ४६ ॥ गवी ४६ जरामरण कंतारे नेविषे चान रगति रूपसंसारल• लयनोच्या गर। १० मे लोगच्या प्रतिरोध बेदना जब जन्ममरारूप दुष लोगव्या 89 ज० जेम ३० ए रंते लयागरे तनविधे मए सोढालिलिमाणि जम्माणिमरणायि ॥ ४७ ॥ जहा इह मनुष्यलोकमा प्रतिष्ण ए० एत्रज्ञीयी अनंतगुणो उष्णतातिहां न० नरकनेविषे वेच्वेदना उष्ण अगणित एहो एतोतगुणोतहिं नरएफ वेयपान एहा ॥ असायाचेश्यामए ॥ धद जजेमएमनुष्यलोकमा ६० एसीतवाढ एवं एला दधी अनंतगुणो सित निहा न. नरकनेविषेवेदना सीतताढनी वेदना
साना लोगवीने
१९८४
४८ ॥ जहा इह इमंसीयं एतांतगुणोत
नरसुवेयणासीया
For Private and Personal Use Only
Page #167
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
सो ॥ ५१ ॥ रसंतो करवतें करी या हि ॥ छिन्न विषेबांधीने स्वेनखरी पयो पाठ पाने बांधीने खेवियं पासबद्धेां
नसो
न.
० साता लोगवीने
ପ୯
डा
हो सिरो
• याकरतामुजने कसोहमयपचवानो संनुंचापग प्रनीचोमस्तं करीने ऊंदे. १९९ १००५ साया वेश्यामए ॥ ४५ ॥ कंदतोकंडुकुंलीस भाजनतेनेविषेनुटुपार्नु बतानीवैकियकीधी जन्जाजयमान बसतीत्र्यग्मिनेविषे व पच्यपूर्वे अनंतबार ५० सो अग्निविषे जसंतमि ॥ पक्कyat jaat ॥ ५० ॥ षी मन्मार बाविषेजेवि सुहोएते कवज्रमयवेषु क कदंबनामानदीनी येसु तेसरपीनुष्णवे वाकए कसंबुवासुयाएय
यां म मोटीदेवतानी मग्निसर मन्दवग्गिसंकासे ॥ सुनेविषेद्र बोज्यो पूर्व अनंनवार ayati
र० च्यारमतां कं०पचवानोकुं त्याजनने विषेपचवाने न. नविष्टवृन्दानामा वि
"क करवतेकरी टुके
कंतु कुंलीस अपायो नद्रबंध प्रबंधवो बंधनरहिनसांबे करवतकरक.. बिबेद्यो पूर्वे मनतवार ५२ अतितीदाएँ कं कांटाएकरी प्रान्याच्या संचासिं० सामतीवृन्दने ५२ ॥ प्रतिरक कंटगाइने तुंगे सिंबखिपाय ॥ क० माघोपाडी पाचवेकरी ७० डुषी की घो मुफने ते सहतां दोहेसी म० मोटाकोसुनेविषे १९०५ कट्टोकट्टाहि डुक्करं ॥ ५३ ॥ ५३ महाजंतेक
॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #168
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१९६
करता
नन्सेसमीश्राव्याकंद सुब्अनिरौ पी पीयोसुझने सापणे पाठ अनुलकर्मने अ. अनंतवार ५४ कुन्शब्द | अ-१९ नीपरें करतो जन उपपो. .... कर्मे करि नदएकरि । नबुवा वारसंतो फलेवं पीखिनुमि सम्मेहि पावकम्मो अपंतसो ॥ ५४॥ कुवंतो को कोखनेरुपे स्वाननेरूपे सान्सामनांमे परमाथामीएकोसनोपरमापामिएश्वाननोस्वरूपकीयानेपरमायामी पाच लूमिनुपरे पम्यो फार
स्वरूपकीपो सूक्सवसनाग | जीविस्मनी परेफामि नुनि वृक्ष कोषसएएहिं सामेहिं सबसेहिय पापिने फालिन बिन्ने ॥ वि ताफमतो
५५ अषमगेकरि अन् अससीयानावणे करि लन्मासे पन्शस्त्रविशेष विवेषंकी | पपीवार
... पा लिन्माविफुरतो अगसो ॥५५॥ असीहिं अयसीवन्नाहि ॥ लष्लेहि पहिसेहिय बिन्नो लि । राषंघपाकीधासुषमषम नन्नुपनोऊ पा० पापकर्मे करि ५६ अ परवसे सोच नुपना सोहनारयने जा बसनिसमिस घपाकीपा नरकने विषे
विषे जोतरो बसनाघुसराषिपे ||१०६ नो विलिन्नीय जववन्नो पावकम्मुणा ॥५६॥ अवसो सोहरहे जुत्तो ॥ जसंनेसमिया
For Private and Personal Use Only
Page #169
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०१
दो को वसो
सप
५८
न. जोर जो० मेोमरोहाोकरी जो जोबेकरीपीमयोरो जब जेमरोकने साक पिएकरीने हेगे पाने तेममुकने साकमीए पायो . १९७ जु ॥ चनतोतो तेहि ॥ पनीपों रोझोवाजहपारिन ॥ ५७ ॥ पापीमास्थी.. फू० देवतानी बैकिचकीपी प्रग्निनेविषे वसति चिच् एहवीचे हने विषैले सानीपरें दु बस्यौ पर यन्नस्योपच्या सेक्यो ल यासणेज संतमि बिषे नियासुमहिसोविव की परच पाठ पापकर्म नोकरएाहार रूपांम्यो एवेदना पापकरमें करीपाम्यो बाबजारकारे संन्समासषाचांचे करि सोच्योह पावकम्मेहिं पावि ॥ ५८ ॥ सरषाचांचेकरी पंषीए विच विष्णुरथो विविसविलाटकरतोडता तिवारें केहिपरिकहिं विद्युतो विसवंतो नेतृषाएपीयो ताकीसंतो धावतो पाणीएक विहा विवाइने ॥ ६० ॥
बालाजोरे संमासतुहि लोह
ट。डंकनामागृ नामापंषी अनंतवार ५९५ विलुश्योमुक टंकगिद्धे हितसो ॥ ५५ ॥
धातो ढुढतो पण्पाम्या वैतरणी नदी to पाणी पीसी एहवो चिचितवतोपको खुद बरबलानी धारास पत्तोवेयर नि जसंपिहिति चितंनो खुरधाराहिं र
० तापेंकरी
त ताप्यो पढे पायो सुरषा पानमांबे जेना असिपत्र मन्मोटोपनपायो १९०१ नएहालिं तत्तोसंपत्तो असिपत्तं महावणं असिपत्तेर्विपान में
For Private and Personal Use Only
Page #170
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१५
ॐ || प० पाने के बिन्द्यो मुज श्रअनंतिवारें. ५१ मुठ मुमनेरे मुरु शस्त्राविशेषेकरी मत्रिमूखें मुन्मुसवें गगदाएंकरी अ१५ ने पूर्व मुमगरें करी
करी करी गईबासा पतेहिं बिन्नपुवो अगसो ॥६॥ मुग्गरेहि मुसंडीहि ॥ सूखेहिं मुसहिय गयास त्रापासरपासुषनीला पर पाम्यो उप अनंतवार ६२ रखु बरयता तिम्लीक्षाघारिपाखि का कानरपीए ___गागात्र
नी. राएकरी.. एकरी करी. लग्गगनहिं पत्नपुरक अणंतसो ॥६२॥ खुरेहिं तिरकधारेहिं ॥ बुरियाहि कप्पपीहिय | कद वस्त्रनी फारु कातरपीकरी बेखमकीघा नम्षालन अन् घणी वार६३ पा पार्सेकरी कूदंसी नहिं मिम परेंकाप्यो. पालीएंकरी त्रिगेडेद्यो । तारी
नेबे गनीपरें। कप्पिन फालिन बिन्नो नक्कतोय अगसो ॥६३॥ पासेहिं कृमजासाहि मिन अन् परवश बाउ बाहिठे बांध्यो रुपि 'बघणी चेन्पू विन्जीबपी रहितसरयो ग बचएरोमन्मगरमवनेरूपेपरपएँ
राष्यो वार
रोकीयो ५४ करी माघीमीजासेंकरी ||१०८ वा अवसोअहं वाहिने बहसछोय बनसेचेव विवाश्ने ॥६५॥ गतेहिं मगरजालेहिं
राष्यो
म पिब्जीबधीरहित सरोह कृमजासाहि मिनी
वाव
For Private and Personal Use Only
Page #171
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
पानेरू
नमन्मनीपरे परयसपणे ॐ नम्बरसेकरी फाल फामयोमगरमबने) ग ग्रह्योजासे मामास्यो मुगने अनंतयार ६५ विवासिया || अ१०
ताएयो. रूपें परमाधामी । करी मोवा अवसोअहं॥ नलिने फालिने गहिन मारिनयमांतसो ॥६५॥ विदंसए करीजा जासें सि सरेसे सपंधीनीपरें गसिंचाएपनेरूपेंग्रहिने बजाकरी मात्यो मुझने अनंववार ६६ करि करी.
सन्सस्सेकरी खागोचतो. बांथ्यो. हिंजासहि॥खिप्पाहिं सनगोविव गहिन सग्गोय 'बंधोय ॥ मारिनय अपंतसो॥६६॥ | कुकुहामाफेरसी आदि तेणे वसुतारने उच्वक्षनी कुछ कुटीने नाना) फाफाम्पोछेद्यो नन्त्रीोषाखपरहीकीपी
____ करी रू परें कटका कीयां वृष्पनी परे अनंतीयार मुझने कुहारुफरसुमाइहिं वइहिं एमोश्चा ॥ कुहिन फालिन बिन्नो तबिनय अपंतसो ६३ चपेटामुवीआदिने कु. सौहार असोहनेटे नेम ताब मुद्रादिकनो प्रहार कटकाकीपाचूर्ण कीया .
करी . जेम मुझनेसोहनीपरें कीयो को नाना .अनंतपार ६५ १९९५ ॥६३ ॥ चवेममुद्विमाहि॥ कुमारेहिं अयंपिवा तामिन कुहिन लिन्नो चुन्नियअवंत
For Private and Personal Use Only
Page #172
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अतिरी
तन्तांतो नरुत्रांबोलोह त नरुने सीन्सीसुश्त्यादिक पा पाए का अत्यंतकल आपआरमतांसुर || अ.१९०
गोसी रसकरीने मुझने कसतो रस । सो ॥६८॥ तन्ताइतंबसोहाइं। तनुयाएसीसमापिय ।पाइनय कसकसत्ताई।आरसंतोसुलेर उपदों परमायामीएमबोत्या तु तुमने पूर्वनय मंमंसएम रेप मासनामकरीने मंस खान्षवराच्यो सन्आपदा अत्र
नेविषे वासलातो पचाबीने नासोक्षा करीने मुझने । पोनानासरीरनोमास भिना वे॥६॥ तुहंपियाहि मंसाइ । खमाइसोखगाणिय । खाविमिसमसाई । अग्णीव सरषोवर्णकरीअर घपी तुम्नुजनेपि० सुष्मद्य बग मेन्गोलनोनीपनोमद्यम पा एमपचाची जन्नाजसमानअग्निसरपोज
वार ३० वसलतानी मनमानो निपनोमध पायो मुझने ष्णकरीने र चरबी न्नाअगसो ॥ ७०॥ तुहंपिया सुरासीऊ । मेरयमनाणिय । पाइमि जसंनिन। वसा रु सोहीहोएएवापुद्गस निसदाएमय त्रास तेणेकरी पुषसाहिन व केंपमानसरीर पन्अनिषसंबंधी वे वेदनावेन्लोगवीमे मारासरीरनुंसोहीप्रमुष७१
नेऐंकरी
२ ||२०० रुहिराणिय।।११॥ निच्चलिएणतन्जेए । उहिएवं वहिएण्यापरमाहसंबद्धावेयगावश्यामए
॥७२
For Private and Personal Use Only
Page #173
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
. तीव्र वेदनाचं नुत्कृष्ट घो०रौऽसहिता व्यतिदोहेली
मन्मोटोलयनुप ली० सालसनांपण न० नरकनेविषे वे पूर्वेकही अ.१५ जावे. लय पजावे
२०१
पन्धी स्तिनीवेदना
वेदना
हवी
तिवचंमपगाढान् । घोराने
नए वेश्याए
स्सहा ॥ महाबाजे । लीमान् वेदना लोगवी में जा० जेहवी मा० मनुष्य सोकने विषे तो० तेहवी दिसेबे वेदनापपा ए. एममनुष्य सोकनेविषे जेवीवेदना बेते ने नरकनेवि वेदना बे वेदनाथ अनंतगुणी अधिक जारिसा माएफसे सोए । तायादीसंनिवेयणाएतोपांनगुपिया
१३
ने
५७३ ॥
। नरएक
साता वेदना १४
स सर्व लवनेविषे साता के वेदना लोगवीने
निमेषोन्मेषमात्रपरा जंब्जेलणी
स्कवेया ॥ १४ ॥ सङ्घलवेस नयी सातावेदनी १५ ते ० तेम्मृगापुत्र बोल्या माता पिता
विवेयणा ॥ ७५ ॥ तंबितम्मापियरो |
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
साता
न
साया । वेयणावेड्यामए ॥ निमिसंतरमित्तंमि । जंसायान बंग तारी बाएं पु० हे पुत्र जो तारी न० एतसो साथ चारित्र | परिगणु निοन दीक्षा सेवानी बेलोदी दासीए विशेषवली नेविषेसावध करवो २०१ बंदेणं पुपया ॥ नवरंपु सामन्ने । स्केनिप्प T
For Private and Personal Use Only
Page #174
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
२०२
विषे
| घणोदोहिलो सोन्तेमृगापुत्रबोष्यो एएमजए जन्जेमतुमें कयो पपरिगएफबैको अअटवीन विषे अर०
अन् मातापिताप्रने तेमजसाचो चचन करे . . मिमृग किम्मया ॥१६॥सोवितम्मापियरो । एवमेयंजहाफुमं ।परिकम्मकोकुएई । अरणे मियप पंषीने 33 एक एकसो अ अटवीने जा जेमविचरे मृग एक ए मृगनी आ० आचरर्स संघ १७ लेदसंजमेकरी
परें धर्म ..
. न०१२ लेद । स्किएं ॥ 3 ॥ एगलून श्ररोवा। जहानचमिगो ॥ एवंचम्मचरिस्सामि । संजमेपांतयेणया तपकरीधर्म जनजिवारें। रोग मन् मोटा अटवीमाहेरोग अब रहितहोइनिहां रुक वृ. फोगनिहांकोपाएमृगने तांद आचरसु५० मिमृगने
..उपजे, दनेहेत्रेवृसनायफनेपासे तिबारे पनिगएकंवेदूकोए। ॥१८॥जयामियस्सन्यायको॥महारन्नमिजायई ॥अचतंरकमूसंमि । कोताहेतिगिबई॥ करे ३० को कोणा नषघदेश कोल कोएते मगने पूजे कोकोपाते मगनेलात आ. आएीने आपे दीए ८० ७५॥कोवासेजेसहदेशकोवासेपुल इसुहं । कोसेल्नन्तचपाएंगवा ।अाहारित्तुपणामए॥७॥
तेमृगने
रुष
पाणी.
For Private and Personal Use Only
Page #175
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न | जगजिवारे सेन्नेरोगीमृग नातिवारे गोगोचरीमृगनुंजिहां ल० लान तृणादिक पाणीने व वनग्रहनरुत्रादिक अ-१६॥
सषीहोए जाए ,लक्ष होएतृणादिकनिहां अरयें . स जिहां भोवर || जयाय सेसुहीहोई । तयागबईगोयरं। जाए लत्तपाएस्सअजाए। वनराणिसराहोएनिहां मृग रवान् तृणादिक पाळपाएी व वनग्रह तिहांसरोवर मिन् मृगनेचरचूने मृगचर्याश्रा ग० जाए ७१ वाईने पीने नक्षत्रादिक होए नेविषे
'चरीने सेवीने गिय ॥१॥ खाइत्तांपापियंपानं । वझरेहिं सूरेहिंवा । मिग्रचारियं चरित्ताएं। ग पत्रे मिन्यापपीरहेवानी लूमि एफएमृगनी/ सन्उदमवंन जनीएमजे ' अन्धपोयानकनेफिरतोफिरतो 'मिन् मृगनी | जाधू होएनिहां ८२ परेसजमनेविषे मृगनी परें साधु . रहेअप्रतिबंधजतीले नेजागी परेनकरचा | बई मिगचारियं ॥२॥ एवं समबिए लिस्क । एवमेयअणेगसो। या मिगचा प्रतिबंध चन्गोचरीशपिचरीने जुन्देवसोकतया मोकगतीए । जन्जेमोमिन्मृगएकसोअघोगमेचरतोयकोवितेमयनीसावद्य | नहोए मृगचर्या सेवीने जाए दिनुची दिसें
टालपालपी एकघरोनिसानालिए घोमिक्षानोविचरे अन्धोध||
रेमृगवासोरहे तेमयतीपणेयानकवासरहे एकथानक पनि बधनरहे | रियचरित्ता नपक्वमदिसं ॥७३॥ जहामिएएगणेगचारीअगवासो
For Private and Personal Use Only
Page #176
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न
जेममृगासदाए दणादिकगोचरीकरे 'एएममृगनीपरें मु० साधुगोचरीएगयोथको नोउ माआहारमाटेगृहस्पने हीसे नही निघा | तेमयती सदाएनोग्गोचरीकरीने मंजम ..
.. नकरे ८५ वगोयरेय । लारनी_हकरे एवं मुणिगोयरियं पविछो। नोहीसएनोवियरिवंसएद्याप *मिन्मृगाकयुं या आचरसुमातादिकंकह्यो । एल्एमहेपुत्र जन् जेमतुमने सुष अन्मातापिनाएं दीक्षानी जनगमले, मृगचर्यारूपसंजम जोएमसंजमसीधेतूंसुषीहो तो .. थाए नेमकर आझा दीधेयकें । परिग्रह तिब ॥ मिगचारियं'चरिस्सामि॥ एवंपत्ता जहासह ॥ अमापिनहिफनान।जहाउन रपनी ८५ पि मृगचर्यासंजमरूपात याचरसु सन् सर्वअसातारूपडुरपनीमूकापए तुम्हेमानातुमेदी-शानीआज्ञादी
एममृगापुत्रेकह्यो हार मृगचर्या आचरस पी तोऊदीक्षासेसुंपडेमानापिनादि वहित ॥५॥ मिगचारियचरिस्सामि ॥ सन्तपुरक विमोरकणि ॥ तुझेहिमपान्नानु केकह्यो गजाहेपुत्रम रूपयाए नेमकर८६ ए०एमते अ मातापिनाने अदीक्षानीयाज्ञा बन्धपोमकारें म ममत्यत्मायनेदेने सगापुत्र समीपे मागीने
निबारें ||२४ गपुन्तजहासहं॥८६॥ एवंसोअम्मापियरं अपमाणित्ताराबविहं ममत्तंब्दिइताहे।
For Private and Personal Use Only
Page #177
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
म. गुरुकहे हे शिष्य सुन्सालल पपणारत्नोनो धणी राजा. सेन्श्रेणिक मगघदेशनो अधिपति वियोमा फैरवबानी भीमाने अरय || अ२० | मुझकहेतायकां.१ . पत्नूएरयगोराया ॥ सेणिने मगहाहियो ॥ विहारजनं निक निकल्यो म ममि कुषीनामा चे बननेविधे २ ना नाना प्रकारना पुनरुतसना चंपक नेणे ना नानाप्रकारनापक्षीय निकाले। मंमिकुंबिसि चेइए ॥२॥ नापामसयाइन्नं ॥ करीव्याप्त. नापापस्किनिसेवि करीसेन्मुंडे नारू नानाप्रकारनाकुसुकरी बायुं बे, नेवन न नद्यान नंदनवन सरखं के ३ तानिांसोब्ने श्रेणिकराजापा० दे यं ॥ नाणाकुरूमसंबन्नं ॥ .. नद्या नंदगोवणं ॥३॥ तन्नसोपासई साऊं। खेडे सा साधु सं. संयनि सुढ समापियन प्रत्ये नि बगेदीगे रु वृदनी हेरें सुसुकुमाल सु- सुरयोचित ।
संजयं रूसमाहियं ॥ निसन्नं रुकमूबंम्मि ॥ सुकुमाखसहाश्यं ॥४॥ न त्यनिनुरूप. पा० देपीने राब राजाने संपनिना रूपनेविषे अन् अत्यंत पत्कृष्टोऑ. ऊन अन्अनुषउपमार. तस्सरूवंतु पासित्ता ॥ राइपो तमिसंजए। अच्चंतपरमो आसी ॥ अतुसोरूब हिनरूपनोविस्मय ५ अ आश्चर्यकारी शरीरनोवर्ण, अाश्चर्यका अ० आश्चर्यकारी आर्य-सौम्यपर्फ अन्याश्रर्यकारी २०९ विलिन ॥५॥ अहो वन्नो अहोरुवं रीरूप अहो अस्ससोमया ॥अहो खंती
HIP
For Private and Personal Use Only
Page #178
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ आश्चर्यकारीनिर्योत्नता अन् विस्मयकारीलो अ० संगरहिनपएफ ६ नातेयनिना पगने बांदीने का करीने पक्ष प्रदक्षिणा || अ.२० २१०॥ अहोमुत्ती होलोगे गनेनिधे असंगया ॥६॥ तस्सपाएनुवंदित्ता ॥ कानुए यपयाहिएं।
नात अनि हरनहीं अतिदूको नहीं पंत हाय जोगीने पूढे न नरुणन्हानोवेअन्हे आर्य एचीलधुवयमांदीशाकेमलीधी लो. नाइट्ररमणासन्ने ॥ पंजसी परिपुबई ॥ ॥ तरुणोसि अकोपबश्ने ॥ लोगकासंमि भोगने अक्सरेहँसें यति सावधान नुद्यमवंतययोटो चारित्रनेविषे एक एअर्थ तुमुझने सांत्नसाव. अन्हवे मुनिकहे मिन्छ, संजया ॥ नवहिनसि सामन्ने एयमई सुगामित्ता ॥८॥ अगाहो मि अन्य नायीहतोमा हेमहाराजा. ना अएपामी यस्तु पाम्याने तेनीरक्षाकरावे एवायोगदमना अन्मुझने अनुकंपानुकरनारकोईसुल मित्र
महाराय..॥ नाहोमऊनविडई ॥ करनार महारेनहत्ता अएकंपगं सहि पण नेहतो किसगारमानना अनुकंपाएंकरी सुखनो देएाहार कोई ना लेचारपछी नेहस्योराराजा श्रेणिक मगधाधिपति. वावि ॥ किंचिनालिसमेमहं ॥३॥ नपामुं. तनुशेपहसिनराया ॥ सेमिनमगहाहियो एएम मनुष्य ३० द्धिवननेने का मनाय नहोय १० होऊनाय नमारो ल नयनोत्राएबीहीतापापीने रक्षाना ||२१० ॥ एवंते इमिंतस्स कहंनाहोनविड़ई ॥१०॥ होमिनाहोलय ताणं ॥ करनार
For Private and Personal Use Only
Page #179
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
म लोठ मोग्यलोग हे संयति म भित्रन्यानेकरी पद सहिन एवो मा० मनुष्यनोत्नवत्ने खत निमें पामयोऽर्सलडे ११ अ अ-२०
लोगलुजाहिं संजया ॥ मित्तनाइपरिमो॥ भाएफस्स खकस्सहं ॥११॥ अप्पपपापे अनायवे तुंतो सेव हे श्रेणिक मगपदेशनों गरजे मापापे अनविडतो. ककहेनो नाय लत्याइस. पावित्र्यपाहोसि ॥ सेणियामगहाहिवा अप्पयो अगाहोसंतो ॥ कुस्सनाहोलविस्तासि १२ एएमयतीले कहेयके सोच्ने न राजा सुनससन्नमचित्तेंकरी अनिविस्पय च एघुवचन पूर्वे अासानल्यु ते सालल्यु ॥१२॥ एवंवुत्तो नरिंदोसो ॥ ससमतो । तविम्हने । वयए अस्सयपुत्वं ॥ सा कोई साये नकयुं तेहचु वचन कयुंचकुं विस्मयपाम्योराजा अति अब तेत्रीशसहस्रअ भन्य, तेत्रीशा शक्रोमी म मनुष्यमा पुग साउणाविम्हयं निन ॥ १३ ॥ अघटतुं केम बोसे अस्सा हडी सहरसहाथीनेत्री मफस्सा मेहारे पर रनयाअंतेनरमहारेडै लुं लोगवुलु मा मनुष्यसंबंधि लोग आआज्ञामहारी सूसीरीने सेधक आराये जे १४ एक एपीप्रधान सं
अंतेनुरंचमे ॥ लुंजामि माएफसेलोए ॥ आपाश्स्सरियंचमे ॥ १५ ॥ एरिसे संपय संपदा स सर्व का मनोवांठित घस्तु सहित महारोमात्मा क केम अनाय थान इं. मा० रखे हे लगवंत मुसशबोसलाऊन २११ गंमि ॥ सबकामसमिप्पिए। तेलगी कहं अपाहोलपई ॥ माऊलंते मुसंवए॥१५il
For Private and Personal Use Only
Page #180
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न हवेमुनिकहे। न० तमेनथीजाएता अ अनाथपणानोअर्यनुत्पत्ति अब पन्हेराजा जन्जेमअन्अनाय होय अथवासनाय अ२०
.नतुमं जाणे अगाहस्स ॥ अबंपोउंचपबिवा ॥ जहा अएगाहोहवई ।सएन होयद न० नराधिपं १६ सु सांत्मण मुझकहेताथका हे म०महाराजा अ अव्यक्तसावधान चे चित्रेकरी जजमेमनापहोय । होवानराहिवा ॥ १६॥सणेहमेमहारायं ॥.. अवरिकत्तेगचेयसा ॥ जहाअगाहोल
.. ज. जेम में प्ररूप्यो . १७ को कोसंबीनामें नगरी ते पु० घपाकासनाकपनान ले लेदनेनुपरजाववैकरीना वई॥ जहामेय पवत्तियं ॥ १७ ॥ कोसंबीनामनयरी ॥ पुराणपुर गरतेना लेयणी ॥ तना निहांकन पिता महारो प० प्रलूतधन संचय एनाम पित्तानु १८ प प्रयमयौवनययनेंविष मन्हेमहाराजअ अतुस्यसपमारहित अन् सी पियामशं । पलूयथासंचने ॥१५॥ पट्टमेवए महारायं ॥ अतुसामे अधिवेयएा आरचनेविषेवेदनानुपनीयफविस्तीर्ण खान्दाघज्चर स सर्वशरीरनेविषे पन्हें पार्थिवेराजा १९ सशस्त्रजेम पत्र अहोचा नेवेखाएं विनुसो दाहो ॥ सत्वगत्तेस पत्निवा ॥१९॥ ॥ सद्धं जहा परम नि तीक्षा स शरीरनाविचर कानप्रमुरवमाहे आप्पीअन्धेरी कोप्यो अच्चैरीकोप्योयको एक एवी महारी अ. आरखमां | २१२ निरकं ॥ सरीरविवरंतरे ॥ श्रावी-सिका थको अरीकुछो ॥ एवंमे अचि ||
For Private and Personal Use Only
Page #181
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
२१३
वेचेघना नुपनी २० लिकेमनी मुझने अन्मध्यलागले विषेपीमा नमस्तक पीमावा लाग्यु ३ जना बजनामहारस सरषी घोर ||अ-२० | वेयएगा ॥२०॥ तियंमेअंतरिखंच ॥नुपनी जन्तमंगचपीमई॥ इंदासपी समाधोरा ।। बीजानेनयन चे बेदना पर अत्यंत दारूण २१ नळ आव्या. मेन्महारेअर/वैद्यतया व विद्याएंकरीमंत्रेकरी निचिकि पजाये तेवी वेयगांपरमदारुगा ॥ २१॥ जवनिया मेायरिया ॥विकमत , तिगिग्गा सानाकरनार अन्लयोसाडायोस. शास्त्रमांकुशल मंत्रमूलनाविशारद जाए २२ नेस्तेमहारी चिकित्सा वैदुकरे चार वैद्य माह्या ॥ अघीया सबकुसला ॥ मतमूलविसारया ॥२२॥ तेमेतिगिकुञ्चति ॥ चालप्पायं | हता जेवूऔषधजोइये तेवुहत्तुं रोगी औषधकरवानी अर्थी जन्जेमहेतहोयतेमकरे एचारमकारना पगिगाना ना नहि मूका पाहतो, रोगीनीसेवाकरनारामातादिक जोइयें नेवा हता. जहाहियं करनारेपणा नयहरका व्योमुझने पुत्वयी एक ए महारे अन्यनाथपएं हतुं २३ पिपितायें महारे सर्व सार पन दिग्दीधुं मन् महारी आ. विमोयंति॥ एसा मऊ अएगाहया ॥२३ ॥ पिया मे सबसारंप ॥ दिजाहि ममकार खनीवेदनाटासवा नोपदापिताएंजपेयीन मूकायो मुझने एक एमाहाकै अनयिपएफै २५ मान्मातामहारीहेमहाराना ||२१३ एगा ॥अर्थं नयफुस्का विमोयति ॥ . एसामक्ष अपाहया ॥२४॥ मायामेमहारायं ॥
For Private and Personal Use Only
Page #182
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नः पुत्र पुनना शोकेसरी कुकुरपीआयन लेमातायें नयूकाव्यो मोच मुमने एक एबुं महारुं अनायपएफ २५ ला- लाइमहारा| ऋ२०
पुत्तसोग हचिया ॥ नयपुरका विमोयति ।। एसामा अपाहया ॥२५॥ नायराम हे महाराजा सेगा एकन्दरना जपना महोटातथान्हागइला गए रवयी न मूकाव्यो ए एवंमहारं अनाथ महारायं ॥ सग्गा जेडकणिछगा । नय वा रिमोयंति॥ एसा मऊ अएा पए २६ . भगिनी बहेन महारी हे महाराजा सा एकचदरनी उपची महोटी हानी हत्ती तेऐमुमने उठस्वयको नमूकाव्यो हया ॥२६॥ लइएगीन मे महारायं ॥ सम्या जेबकारोडगा ॥ नयपुस्का दिमोयंति॥ एक एमहामं अनायपणं जापा २७ लावलार्या महारी हे महाराजा महारीहरे अत्यंन अनुरक्त प्रेमवत्तीपतिब्रता अन्य ऐसामझ अगाहया ॥ २७॥ मारियामे महाराय॥ अफरत्तमएचया ॥ दलील अंस सुएं पूर्णत्नरेसी और करीना हैयुमहारु सिंचति लींजवती इवी २८ अ अन्नपायी एहार अंघोस चूवाचंदनादिकाग सुगंधव्य . पुन्नेहि नयरोहिं । नरमे परिसिंचई ॥ २८ ॥ अन्नपाणंचएहाणंच ॥ बली गंघमास्तवि मासाचंदनादिकनुविनैपन मन्मुझनेमापाताअधिवाला सात तेवौवनस्त्रीनोव्नलोगवे २० स्वर क्षणमात्रपणहेमहाराजापाक पासेंधी |२१५ सेवणं ॥ मए नायमनायवा ॥साबाला नोवलुजई॥२५॥ खपिमेमहारायं पासान।
For Private and Personal Use Only
Page #183
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नजायसर्वदापासेमरहेने स्त्रीये पण पुरवयीन मूकान्यो. एबुं महारुं अनायपकं ३० न नेवारपनीऊएम कहे तो फुले | अ-२० २१५ || विनफिट्टई ॥ नयफुरका विमोयंति ॥ एसा मत अपाहया ॥३०॥ ननुहं श्रेयमाहंसु ॥
एकसुंठवजज निये वारंवार सहेनांदोहिलीएपीनेवेष्वेदना लोनवीजे संसारनो अंतनयीएवा संसारमाहे ३१ साने एकचारजो स्वमाऊपुणोपुपी ॥ वेयगा अएफनविनंजे ॥ संसारंमि अतए ॥३१॥ संईच-जई. मूकाचो वेदना । वि विस्तीर्ण आरपनी वेदनायीतोत्व समानदंइंडियनो दमनहारनिक भारत्न पन्पतिवर्जुआदान्यपागारपएक मुच्चेद्या ॥ वेयगा विनुसाई ॥ खंतो दंतो निरारंलो रहितथा पञ्चईएएगारियं | "३२ एपो वली एम चिनवीने पऊ सूतो हे न नरापिपराजा पर जेटले अतिक्रमीगइात्री नेटसे वे वेदना ॥ ३२॥ एवं च चिंतइत्ताएं ॥ पसत्तोमि नराहिवा ॥ परियतंतीइराए ॥ वेय. महारी कयगई ३३ नपारपनी का रोगरहितपयो थके प्रत्मातें आपूबीने बंबंधरमातापिता ऊक्षमावतम ||एगामेखयंगया ॥३३॥ तन कले पलायमि ॥ आपुबित्ताएं बंधवे ॥ दिसत खंतो दंता | नदियआरंलरहिनन्ले पन् परिवर्जुअपगारपणं. .३५ न नेवारपीऊं नाथथयो आपणातया परनाच्या मातोऊपए || २१५ निरारंलो ॥ पीईअपगारियं ॥ ३४ ॥ तनहं नाहोजान ॥ अप्पणोय परस्संघ ॥||
For Private and Personal Use Only
Page #184
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न|| सर्व बसी . लू जीवन्हानासोटा न० असडियादिकायावर पृथिव्यादिकनोऊनपिथियो ३५ हवे श्रेणीको नपदेशदीयेले अन्या- अ.२० २१६/ सोसिंचेवल्याएं ॥ तसाएं जीव. थावराणय ॥३५॥ राजाप्रत्येसाघु अप्पा नई वेयर
त्मान ज. नदीवैतरेगी। अ० आपणो आत्माजकूटशामली वृतनोन्नुपजावण 'अब आपपो आत्मान मनोवांडिनवस्तुरूपिया एगी। करणीनो करनार अप्पा मेकूमसामसी ॥ हार अप्पाकामाहाएक ॥ दूधनो देशहा रकामा अ० आपणो अात्माजमुमने नंदनवन ३६ अापणो आत्माजकर्मनो करणहारविकर्मनो उपचनानुपार्जननो करनार धनु अप्पामेनंदणं वग ॥ ३६॥ अप्पा कत्ता विकत्ताय रालणहार उहाणय सु० सुखना नुपार्जन करपाहार अापपोआत्माजमित्राने अमित्र एरसेवैरी. कुछ लुमे आचारै यिररह्यो सुर समाचारंपए। सहाण्य - अप्पा मित्तममित्तच ॥... उपन्त्रिय सुपचिन ॥३७॥ आत्मार ३० एनिश्चे अनाथपर्फ अ.अनेलं हे राजा तन्ने एकचित्तें विरनिश्चस थईने रू. सालस मिनिग्रंथनो यो २१ इमाफ अन्नावि अपाहया निवा ॥नमेगचित्तो निसरोहिं नियन्त्र | धर्म संपामीने पण जर जेम सी सीदायेअनुष्ठान करवानीचरचनें एवावर घणा का कायर मनुष्यजै एन्एककेटलाएककुंमरिका ||२१६ धम्म सहीयाएवी जहा ॥ सीयंति एगे बाकायरा नरा ॥३८॥ दिकचारित्रमूकीने वेषबाफीने पाना
For Private and Personal Use Only
Page #185
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|घरवासमध्येगया तथाकेटसाएकनोवेषधारणा जोजो पदीझालेश्ने म. महाबनने परिवर्जीनेसन सम्यक्मकारें सेवे पाप्रमादयकी अ-२० करीने घोटामारगनी परंपराचषाचे ३८ जो पबश्त्ताप महत्वया ॥ सम्मंनोफास प्पमाया। अं अएरावसकीधेबने अामा मधुरादिशब्दनेविषेर रसनेविघे रायका आधाकरमी आहारतथा नएबोहोय सेच तेकायरपुरुपमूख अपिग्गहप्याय रसेसगिछे ॥ थानकनी प्ररूपणाकरे घणानाघटमां मिथ्यात्य घाखे . नमूखनदिइ बंधएंसे यी चिंचेदीनशके बं० रागद्वेषरूप बंधन आ० यत्नपएं जन् जेहने को कोई सगारमात्र नन्नयी ३० इरियाने विषेरा-पाचा ॥ ३० ॥ नया कर्मबंधनं ॥ ३८॥ आत्तया जस्सयनबिकाई रियाए लासाए से इरियानशोघेत्लागतम्तेमजएषणा | याद आदानने उपगरणाखेतांनिच्चपगर कुछ मात्रादिक परग्यता चील-श्रीमहावीरादिकसत्यवतधैर्यवंनते लाधानविधे. नहेसपाए सुमिनिने आयाए निरकेव एमूकतां पुगंबगाए ॥ नवीर जायं अएफजाइ पोजेमार्गनेसेव्योन नेमार्गेचासी चित्र घपाकाससगेपण ने मुं मस्तक मूनी रुचिनला अ० अधिरजेवनजेनुं एटसेव्रतसईचसी मग्गं ना ॥ नशके . चिरंपिसे मुंगरूई लवित्ता ॥ येईने अन्चिरबए मूकेएमसमकिनविना | व्रत तन्तपनियमअलिग्रहपी ललए चि० घणावर्ष खगेंअ. आत्माने सोचादिक सेशपमानी नपारगामीनहोय निश्चयसं. २१७ यिर तव नियमेहिं नजे ॥ चिरंपि अप्पाएकिले सश्ता ॥ नपारए होई असंपराए।
For Private and Personal Use Only
Page #186
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
ङ. पो. जिननी आज्ञा मने समकेत रूपधन २१८) विनागली पोसी मूवी ज. जेमतेम असार
पोह्येवमुद्दी नहासे सारे ॥ अमर्यनीकहोय अर्थनीक नहोय ॐन जा जाएानी आग २
महग्घए होइ ऊ जाएाए
बिकारूपजी० जीवितव्य वू. वधारीने पेटलराई करीने
www.kobatirth.org
वशन कीधी होय च्यात्माजेोते कू· खोटानाशानीपरें मूल्यनपांमे
रा० काचनो वे० वैदूर्यर प्प० प्रकाश कटको नीपरें परतोदी से मयंतिए कुरुकहावोवा ॥ राढामणी वेरुसिय प्पगासे ॥ कु. पासवानोवेष इ० एमनुष्य सोकने ३० रजोहरणादिक यती विषेधारी चिन्ह तेणेकरी प्रा. माजी ॥ ४२ ॥ कुसीदसिंग इहधारइता || इसियं जीविय ० सं० कारणे पांचप्राश्रव सेववा यापतया साधूना वेषरूप सरखा याचार जमाली प्रमुषनि न्हब सरखा फेरफार मार्गना प्ररूपक नेने संयति न जाएावा. सं० फूं संयति बुं. ire संजयखप्पमाए ॥
वि० विष पीधुं ज०म कालकूट हव्हणायेमरेश श
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वृहता ॥
वि
वि० एमकहेतां प्रवर्तनामनेक प्रकारनी निंदापामे से० ते अन्यलिंगी चि० घणा काल लगें पए। ४३
स्त्र
विशिहायमागच्चाई से चिरंपि ॥ ४३ ॥ बिसंतु पीयं जहकालकूटं ॥ हणाई सत्चं
For Private and Personal Use Only
अ. २०
| २१८
Page #187
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०
नः| जन ओम कु० लूंसू ग्रह्यु ए एचसी ध हिंसादिक धर्म विक विषसहित ह ये बेताल विविधियें मंत्रजपतां जे. चिकुं विषयोप्रसन्न .. मरे वार जेम
४५ जे जह कुग्गहीयं ॥ एसोव धम्मो विसने वसलो ॥ हगाइ वेयाखईवा विवषो ॥ ४ ॥ वेषधारी सामुडिकादिक शरीरनापंसोकोनीपागल म लूमिकंपादिक अतीतकासनानिमित्तशीरचे कोच पुत्रादिकने कु. जूग ललक्षण सुरूसुपनना विचार कहेतोयको प्रवर्ते. अर्थं स्त्रीत्मरतारने एक पोतीयें स्नान कराववानेविषे अति आश्चर्यका सरकणं रुविणं प-जमाणे ॥ निमित्त कोलहलसंपगाढे ॥ आसक्त कुहेम री विद्यामंत्रादिकंकरी आ. आअव हारजे पाप न नपामे सन् शरणा आधारभूतनहोय अर अंतकासने नन् अनिअज्ञान तेनीनुपार्जना करतोथको जीवे ते मंत्रादिकथी मंत्रादिक : विषे ४५ पऐंकरी च विज्जा ऽ सवदारजीवी ॥ नगबई सरणं तंमिकाखे ॥ ५५ ॥ तमंतमे व व्यग्रनिवे' अव्-शीलरहित स० सदा पुरवी. बि विपरीत सरूपरलवनेविषेसुषमा संच निरंतर न० नरक तिच निर्यचयोनीने षधारी पए मचानी आशाहोयतेपुः जाय
विषे ||२९९९ उसे असीले ॥ •सयाही विप्परिया समुवेई खपांमें संघावई नरयं तिरस्कजोपी
For Private and Personal Use Only
Page #188
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|| मो. चारित्रपि. विरा अ असाघुरूप ४६ न नद्देशिक आधा कर्मादिक आहारस्थानकलोग कीव यतीने अ.२०
चीनेनेनासालदेरवामीने प्ररूपणाकरे तयाग्रंपकरीने रथे मूष्ये मोणं विरहित्तु असाफ रूवे ॥४६॥ नद्देसियं सालदेरवाने
कीयगर्म आएपोहायने न नमूके कि कांइसगारमात्र अपोषएी अन् अग्निनीपरेसन्सल लथईने र हांयी ग. नित्यपिंगसीये
दोष
की
चीने नियागं नमुन्ना . किंचिञपसणिज्जं ॥ अग्गिविवासबलरकी लवित्ता ॥ नेचुने ग जाय क पापकर्मकरीने ५७ नं नेटलो पामुन मिटयात्वसेवतांपकापरने मिथ्यात्व सेवरावतां जंजेरको पासुनसे.
पकां अन् बैरीकं पाएनो हणनार न न करे नेषधारी करे अन्या बई कट्टपावं ॥ ५॥ नतं अरीकंवत्ता करेई ॥
जंसेकरे अप्पपपोपो उतानो यात्मा 3. लूंगा आचारनो सेन्तेवेष ना जाएाशेम. मरणाने मु. पपश्चात्तापेंकरीद संयमरहिन
"पपी पारी, मुर पहोतो नेवारें जाएगाशे याविहीन ४८ ||२२० गिया पुरप्पया ॥ सेनाहई मन्चुमुहं तु पत्ते ॥ पञ्चागुतावेपदयाविएगों
For Private and Personal Use Only
Page #189
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|नि अर्थरहिननिफमनि० तेचरित्रादिक आदरीने त नेइन्यय जे. जे नुत्तमर्थ पिकविराये इहलो से २२१/ पश्चात्तापकरेगृहस्लमांपणजईनशके चारित्रनीरुचि निवेषधारीनी . सापेते
कपएा ने निरचिया निग्घरुईन तस्स जेनत्तमवे. विवकासमे ॥ इमेवि से नक नयीपरखोकपण बेखोकमाहे सेक् नेवेषधारीत्रष्टतायेंकरीले स्वीजे खेद पांमे एएएीपरें अन्यथाचंदे पापपए तिहां लोकने विषे
पोतानेबंदें प्रचर्नाववे करीने नचि परेविखोए. उहन वि सेललई, तबसोगे ॥ ४॥ एमेवहाबंद कुरू कुशीलीयानुं “म मार्गचिराधीने जिन जिनेनो कु. जेमपंरपएी आमिषसहिन पुरस पामे लेम निकामिर रूप
जिननुत्तमनो लोगनास्पादनविपेरसग्रह लोगना थकफोकट | कुसीलरूये॥ मग्गंविरहित्तु जिएत्तमाएं ॥ कुररी विवालोगरसाएफ़गिड़ा ॥ निर. सो शोचपश्यात्तापकरे पांमे ५० सो सांत्मलीने हवे अनायी मे बुद्धियंत एयारेणिक सु० त्यसो लारन्यो ३० अ० शिरयामए महानिग्रंथने राजापत्ये कहेले
में लांस्वीजे की || २२१ सोयापरियावमेई ॥५॥ सोच्चा ए मेहावी सुलासियंमं अणुसासणं
For Private and Personal Use Only
Page #190
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
न.
२२२
www.kobatirth.org
नाव ज्ञानगुणेंकरीसहित एषी मन्मार्ग कु० कुशीसीयानुं जननांगीने सर्व शिखामासांलखीने
नाएगुणोववेयं
च० चारित्रना या चार सेव
चरित्तमायार गुलिएतनुं ॥ एफन्तरं
पस्थापक विपुनत्तम अनंतसिद्धनुं स्थानक नित्यसदायत्वे ५२ हबेसुधर्मास्वामी के
म्मं ॥ नवेई गां विनदुत्तमं धुवं ॥ ५२ ॥ म मोटाप्रज्ञावंत म० महोटायशवंत मन्महोटा निक निर्भयने हितकारी मन् महोटाश्रुतमहा मनाथी निग्रंथ
अध्ययन
महापइले महायसे ॥ महानियंविज्जमिएां महासयं
मन्महोटा नि० निर्बंधने मार्गे तुजारोप • एपचेंजाईश . २०
तो फरची दाईश. ५१
मग्गं कुसीखाएण 'जहायसवं ॥ महानियंबाएवएपहेां ॥ ५१ ॥
० ज्ञानादिक गुणे सहित
अ० प्रधान
निळ्याश्रव सं० दकयकरीने कर्म रहिन
निरासवे संस्कवियाएक
त. महोरान पोधन महानपरूप घननाघणी मोटा मुनी तवोधणे महामुली
से० ते श्रेणिकराजाप्रत्येका. कांयनाथी महामुनि मोटेविसतारें ५३
सेकहिए महयाविच्चरेां ॥ ५३ ॥
सन्यमाख्यात
चारित्रपान पाखीने
संजमपाक्षियाणं ॥
एमपूर्वोत
कर्म शत्रुमत्यें एवुग्गदंते विमहा
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
.
२२२
Page #191
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
उ. तु० संतोष से० श्रेणिक २२३ पाम्यो
इ० इम बोल्या क० बेहाथ
• अनाथ एकं जजेमह
सुलसीपरेंमुकप्रत्येंनुव. अ. २० उपदेश्यो ५४
राजा
जोकी
तेमकहरू
होय सेशिनुराया इएामुदाऊ कयंजली || पाहतं जहालूयं ॥ सुबु मेनवदंसिं तु ताहारो लो म० मनुष्यजन्म साल, रूपप्रमुख संपदा तथा पर लेवें संबलधाय तेहबो तु तुमे
तुम्हे
साधोनि
खानपान तेल साधो मेहेम महर्षि
॥ ५४ ॥ तुखद्धंखु मएफस्सज़म्मं ॥ जालासलाय तुमे महेसि स. बांधव सहित जं. जेलसीनुमेदि• स्थित्याराता रह्याबो म० मार्गनेविषे जि० जिन नुत्तमना राम
सनाथ
तं त
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ना
साहाय सबंधवाय ॥ जंलेडिया मग्गजिएफन्तमाएं ॥ ५५ ॥ सिपाह म० मनोधना स. सर्व जीवना सं० हे संयति स्वा० ॐ ख म महा लाग्यवंत इ० ॐ बांबुडं प्र० मुकनेशिखववो एतमारी माबुबुं तुमने शिखामण ऊं कंबुबुं • ५६ पाहाणं ॥ सवलूयाए। संजया ॥ खामेमि ते महालागा. ॥ इवामि एफसासिनं ॥ ५६ ॥
૨૩
Page #192
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૨
पुन पूछीने मन्में तु तुझने जा धर्मध्याननुं विविघ्नधान जे कीपो नि आमंत्रण लोपत्नोगकैरी हे संयनि तन्नेसर्वमहारो ||अ-२०
दीर्घं तूलोग लोगव अपरायमस्तकक पुठिनणं मए तुम्नं ॥ जाण विग्घोनजोकन ॥ निमंतियाय लोएहिं ॥ तं सत्वं ससे स्वमा २७ एनएगीपरेंयु- स्लवीने स तेराजा बीजाराजामांहे अन् अएगारमाहे पनत्क्रष्टमन्त्नक्ति सक्कुटुंब
सीसिंहसमान ते सिंहसमानते एकरी परिवार रिसेहिमे ॥५१॥ एवं युणित्ता पा सराय सीहो ॥ अपगारसीहं परमाश्नत्तिए । सनरोसहिन सं० बंधवसहिन ध पमोनुरक्तयको विवनिर्मसचिन मिथ्यात्वरहित ५८ न-हर्षेकरी रोक्रोम |
पिकस्या रायनामू हो सपरियणो सबंधवो ॥ धम्माएफरत्तो विमलेण चेयसा ॥५८ ॥ नस्ससीयं रोमकू स का करीने पर प्रदक्षिणा अ. वांदीने सि० मस्तकेंकरीने अंगयो ननरापिप श्रेणिकराजा रुबीजोपणमुनी
पोताने स्थान
५९ एनीपरे गु० गुणें ||२२६ वो कानणय पयाहिए ॥ अनियंदिनुपसिरसा ॥ अश्या नराहिन ॥ ५९॥ईयरोपिगुरण
For Private and Personal Use Only
Page #193
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
न.|| करीनस्थो. नि.त्रएयगुहें तित्र विनिवत्यों विपरवीनी विर प्रतिबंधरहिन कि विचरे कपृथ्वीमाहे वि० मोहरहिन श्र.२१ . गुप्तिवंत मंधी परें
केवसीय ने समिछो ॥ तिगुत्तो तिमविरनय ॥ विहंगईच विप्यमुक्को ॥ विहरई वसुहविगयमोहो तिब ऊ कई ६० र इतिविंशमु अध्ययनं सं० २० विसमेअध्ययनें श्रेणिकराजा आगमपंचमहावनीसाधु च पानामाग
नथापधारी बताव्या नेथी २१ ने अध्ययने समुदपाससुध सापुथया ए अधिकार २१ मां कहे. रीने विपे तिबेमि ॥६॥.तिअनायिमाहानियनियंअध्ययएंविंशनिमंसंमत्तं ॥२॥ चंपाए पासिन एवे सान्यायकवान्चापीयु म श्रीमहावीरदेव लव लगवंतनो शिष्यश्रीमहावीरना सो० तेमहांतात्मानो १ ___ नामें बिस्तनो पपीथियो सार्यवाह
समझाब्यामाटे शिष्य
णी पाखीएनामं सावए आसिवाएीए महावीरस्स लगवन सीसो. सोठे महप्पगो ॥१॥ |नि निग्रंय पाल-प्रवचनसि सार श्रावकनेविसेष पो वाणेकरीव व्यापार पिपिऊने नन्नगर याव्यो पिपिऊनगर छातनेविषे . जाज करतोयको
पतो २ नेविषे ||२२५. || निग्गय पावयणे सावएसेविकोविदे । पोएणं ववहरंते । पिऊ नगरमागए ॥२॥पिऊने
For Private and Personal Use Only
Page #194
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
उ
२२६
www.kobatirth.org
व व्यापार करतां ते बा० वाणीनंदीए के धु० बेटी त गर्ल सहित प० स्त्रीने से स. व्यापापताना देसे पाखितने
• हवेपासिता . २१
इने
बकनी
ववहरंतस्स ॥ वाणिन् देश्घुवरं । तंससन्तं पगिझ ॥ ससं पच्चिए ॥ ३ ॥ ग्रहपालियत्र्य हवे पुत्र त जिहां समुद्धमा सन्समुपाल एहवोनाम जएयो तेलगी
घ० परणी स्त्री समुद्रमहे प्रसवी
कुस
|स्स घरी ॥ समुद्दम्मि पसवई ॥ महदारतहिजाए ॥ समुदपाखोतिनामए ॥ ४ ॥ खेमेां सुषोचित सुख बा. बहूत लोगववाजोग्य
संवाधेने घ० घरने विषे
याव्यो चं० चंपानगरीने सा० श्री या. वाशिन आप दोघ
वक
ततेावकना पुत्र
क
आगएचपं । साबए वाणिएघरं । संवदुई घरेतस्स । दारएसे सहोइए ॥ ५ ॥ बावन्तरि जो जीबनेकरी संसहित सुन्लसो पि० बसलबे. दरसन जेनो ६
सि० सिषव्यो नि नीतिशास्त्रनो जाऊन
जौबनवंत
रूपने
२२६
| कसान्र्य । सिस्किए निकोविए । जोवोएाय संपन्ने । सरुबे पियदंसो ॥ ६ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
खेम
Page #195
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|त. तेस १०रूपवंत नार्या पिपिताएआएी सरूपनामा प्रासादनेविघे की० क्रीमाकरेचे देदेवता दाल दोगुरुक || २२१|| मुडपासते परगावी
रुरमएीक
देवता जक तस्स रूबवाइंला ॥ पियाआरोइ रुविणीं । पासाए कीसएरम्मो । देवो दोगुंदगोज जेमरूषलांगवेजेतेमसमुदणाषअन् हवेकेतसे कापा प्रासादनेविषेत्र्याचघोषनेविषे विकस्वित्योरयो मन्तेपणेचा
धवानाया पण सुषल्नोगवे
तो तेलएगीवेला मरणकए
%3Dयरनी फूल हा॥3॥ अहअन्नयाकयाई ॥ पासाया
पनीमासाग|सैघालीनेसहितचोरकीयोबै वह एवाचोरबघवाजोग्यवयवानी सोलादेवीनेबल र तेदेपीने स वैरागनप सक्ससहपाल इ० सोचोरवघवानीसोला शेरनेवघवानीलूमिकाने विषे सेश्जाता ८
पनो. | सोलाग . . वशंपासश्वगं ॥८॥ तंपासिनासंवेगं । समपासोश श्मबोष्यो अाश्चर्य अ अकलकर्मर्नुपान्न निर पाअश्लएविपाक संन्तत्वनोजाए सोडे ते समुडपा शुलएविपाक प्रतल
चयोजातिस्मरणयथो सनिहाघोषनेविषे||२२७ एमबवि ॥ अहो अस हाएकम्माणं ॥ निद्याएं पावगंइमं ॥९॥ संबुद्धो सोतहिं
For Private and Personal Use Only
Page #196
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२८॥
लालगवनमहातमयंन संच वैरागभाव्यो आपूतीने मातपित्ताने पर परिवयं अा अागारमए १६ जन्ग-२१ | नत्क्रष्ट लगवं परमं संवेगमागने ॥ आपुच्चमायापियरो। पवइए अएगारियं ॥ १० ॥ जहि|| सं स्त्रियादित मापनश्री मोद्याफि मन्मोटा मोहनु हेतु क. संपूर्ण ला लायन हेतु पचारित्रपर्म अरुसं सजननोसंबंध खेसहोए
तेस्त्रीपनादिकगंगीने तुसंगय महाकिसं । महंतमोहं कसिएलयावहं॥ परियाययम्मंचलिरोयएद्या । व पांचमहाव्रत सी दोषरहितआहार सिएने नुत्तरे अन्दयासत्यचसी अ अदत्तनोत्याग न निवारपी अपरिग्रह गुणा महाव्रतसेवेने ५०.२२ परिसहा षमेबे ११
ब ब्रह्मचर्य नोस्याग वयाई सीखा परिसहेय ॥११॥ अहिंसस्सचंच अतेणगंच । तत्तोयबलं 'अपरिग ___पपमिवर्जीने पंच पांचमहानतने आ पाचरे पन्श्रुनचारित्ररूपधर्मनों जि तीर्थकरनो सन्सजीवनेविषे
नपदेस्योसिद्धांतनो जाग || हंच ॥ पमिवधिया पंचमहत्वयाईचरिज धर्म जिया देसियंपिक ॥१२॥ सधेहि लूएहि
|२२८
For Private and Personal Use Only
Page #197
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
व्यापार
न दिदयानेविषेश्र परजीवनेषुषदे खंभूषवचन संजती ब्रम्हचारी सा० पाप- प वर्जतोपको चयिचरे लिक साघुल अ.२१. २२६पीने कंपेपरजीवनेहेतूनोकरहार स्वमे
सी दियाएफकरवी खंतिखमेसजयबलयारी ॥ सावधजोगपरिवद्ययंतो ।चरिद्यालिरकूत स समायेकरी ३० इंडिय का काले २ का परिखेहणा र देसनेविध मसमर्य का अापणा सी० सीहनीपरें | सहित जैहने १३ दिक अनुष्टान करतोयको समर्य , जाणीने आत्माने सबीहा समाहि दिए ॥१३॥ कासेण कालविहरेछ रखेबला बजाणिय अप्पगोय ॥ सीहोवसद्धेण मोशब्दकरी न न। या अशुलीसोन्सां न अ० विरुने खूमोवचन आ. नाशुनप्रशुत्नविपाक नुदयावेतेपणा सिंजम
त्रासे बचन लतीने नबोखे शुलशन पोलानोनुपराज्याकर्मश्म विचारतोयको पासे नसतसेधा । वयोग'सोच्चा नअसामान ॥१५॥ नुवेहमाएोनुपरिबएद्या पियम पिपियकारी अप्रियकारी सर्व ग्यमे न सर्वसं स. सर्वथानकने विषे देषीने न नवांडे पूजा ग आपणे आत्मानी निंदापरानवांने
अलिलाषाकरखी
सं०संजती १५ ||२२९ प्पियं सच्चतितिरकएद्या॥ नसबसवबलिरोयएचा । नयाविपूयं गरहंच संजए ॥१५॥
For Private and Personal Use Only
Page #198
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
२३०
|| घणा में अनिमायनेइ मह जे जेलावधी स० तीर्थकरने बांदे ललय अत्यंत प्रतिद्वा महाबत ली अति
: मनुष्यलोकनेविषे पयर्ने .. साफ. बिहामएा परिचापीनपने रौपलया। अणेग बंदाश्हमारावेहिं । जेलावने संपकरेइलिरकू ॥ लयलेया तबनवेनिलीमा। दिक देवतासंबंधी म मनुष्यथाए निकलियंचसंबंधी लयजपने पपरि पु दोहेला सहनां सी० सीदाइ जनि ब पहा कायर
नतेम. परिसहनुपजे ने घमे१६ सह बावीस ... हां नराए दिवामएफस्सायनहा तिरिबा ॥१६॥ परिसहा विसहाएगे। सीयतिजना बकायरान
से. ते नुपसर्ग ननिहां नेम्पसर्गपा संप संयामने जेम ना० हाथीसरफएतेनासेनहिं नेमसमुड सिम्सीनन देव दंसममा ___ पामेचते .मैथके नबीहे साफ . पाखपरिसहनुपने षमे नासे नहिं ष्ण नाफरस रा । सेतनपत्तेनवहेयलिस्कू । संगामसीसेश्व नागराया ॥१७॥ सिजेसिएा दंसमसा आ.आरोग वि० घणा प्रेकारना दे० सरीर आ० आक्रंद नतिहांपुषनुपनेबने र कर्मरुपएीरज पु. पूर्वलवने
फरसेष अपकरतोयको उपअहियासे सहे पाने कीयां१८||२३० यफासा ॥ आयंका विविहाफुसंति देहे अकुकुने तन्नहियासएद्या ।। रयाईरवेविद्य पुरेकमाई
For Private and Personal Use Only
Page #199
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२३१
न.
प० बांदीनेरा० राग त तेम दोष मो० मोहबांनीने वली सं० निरं वि० विचक्षण ० मेरुपर्वतवायरे
कंपेनही ते समुद्र त्र्म. २१ पास निश्चलपणें
पूर
साध तर
करी
पहाय रागंच तहेवदोस ॥ मोहंचलिक्कू सययं वियरकरणो ॥ मेरुव्ववाएा
अकंपमाणो ॥ न० नवांबेपूजा ग
प्र० इव्यथीलावधी ननतपणारहित नीचो नऊए ना० दीनपणारहितम० महाऋषी
प० परिसह ० कूर्म कांच बानी परे सर्व इंडी गौपवीने च्यात्मगुप्त को त्र्यापणांच्यात्माकीयाकर्मम्युलामुलऊं लोगबुंबुंइमसमेनावे परिसहे प्रायमुत्सद्या ॥ १९७ ॥ परिसा मे पणन संसंजती सेन्ते समुड़े न० सरखत्लाव प० परिवर्जीने संजती नि० सम्यकप्रकारेंज्ञान वि० बिरतिवंत न० पामे २० प्र० संजम दर्शनचारित्र रूपमो मार्ग नेविषेरति
फन्नए नाव एम
निंदा नयाविपूयं ग
बांबे
पास
रहुंचसंजए ॥ `से · नुबुलावं परिवचसंजय निवाएामग्गं विरएनवेई ॥ २० ॥ अर
अरति स० तेबिसहेषमे संजमनेविष वि० निव मा०याप आपण प ग्रहस्परिचयथी यमात्माना हेतूए आश्रवणी
प्रधान संजमवंत
पपरमन तुष्ट अमोद बिबेद्यामिध्याता पामवानो रपज्ञानादिकपदं दिकन्योत्रपापत्र्याव नेविषे चि०तिष्ठे बाना चामराढ्या
रई सहे पहिए. सथवे ॥ विरए प्रायहिए पहावं ॥ परमनपएहिं चिवई बिन्नसोए
.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
| २३१
Page #200
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२३२
मुडपाल
अरु ममतारहिल परिग्रहरहिन २१ वि स्त्रियादि खन्नपात्र आपणा आत्मानेपुर्गती नियतीनेअग्रहसनपाश्रयप्तीपेनहिं | अ-२१
रहित परतोरापेनयानकायनीरझानो तेवा नपाश्रय समुइपास सेवे चितवीने अममेअकिंचणे ॥२१॥ विविन्न सयपाइंलरायता निरूबलेवाइ असंयमाई ॥ आपनोसा इकबीजर व जेदोपसहित नुपाश्रय सेव्या म० मोटा का कायाएं प परिसहे २२ सन्लेस धुनेनक हिनयो. घशने घपीएतेषानुपायसेप्यालेसमुऽपास करीसहे | ये. इसिहिं वन्नाइ महायसेहिं । यती काएगफासेध परिसहाई ॥२२॥ सन्ना
मुनी न्नान् ज्ञान अने क्रिया अन् महाभधानान घ० दसविष यतीनो अप्रधान ना केवलज्ञानना पर न उद्योन | | सहितं कषी आचरीने धर्मसमूह
हार जसवंत करे पन्नागोवगएमहेसी ॥ अफत्तरचरिनु धम्मसंचयं ॥ अफत्तरेनाए घरेजसंसि । नुलासई सूरु सूर्य अ आकासने विषेनुद्योत करतेम उचित प्रकारे शुल अशा प्रक निव्गनिरहितसेसेसिअवस्वाए कायादिक
ज्ञानेकरी नद्योत करेले तिषपापीने पुर पुन्यपाप नाव्यापाररहितअजोगीकेवलीस. सर्वकर्म || २३२ सूरिएवं अंततिरके ॥२३॥ विहंरचवेनपाय पुन्नपावं । निरंगो सच्चन विप्पमुस्के
For Private and Personal Use Only
Page #201
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
न त तरीने स समुदनीपरें म. संसाररू पिउँसमड स० समुड़पास मुनि अवतीसंसारमाहेआ गगनिहलोइइमाशनिया अ२२
तरित्ता समुद्दवं महालवाहें समुद्दपालो अपुणो बेनहीं गमंगए ककंडु तिबे | समुऽपाखियं अध्ययनसमा ॥ २१॥ एकवीसअध्ययननेविष स्त्रियादिक रहिन नपाश्रय यतीने सेवयो कह्यो स्त्रीसहित थानक सेवतां मि ॥२॥ शति समुद्दपाखि अझयां एकवीसमं सम्पत्तं ॥ २१ ॥ रहनेमिने अवगुणा उपनो ते रहनेमिए जेमधीर्यपफ की तैम धीर्यपगो करयो ते लपी सो० सौरियपुर नामा नगरने विषे श्रा-कतो राजा मन्मोटोकुद्धि २२मा अध्ययनने विषेरहनेमीनी संबंप कहेले सोरियपुरंमिनयरे। आसिराया महिहिए या वातदेवएवेनामें रा० राजाने सक्षणेकरीसहिन । नन्नेहनी लकलाबेलती रोगरोहिणीदेवकी नेम वासदेवेतिनामेंए । रायसरकणसंजए ॥१॥ तसनद्याश्वेयासि । रोहिणीदेवई तहा
दोन वेनापण वे पुत्र वसल बे राब्बपलप रोहिणीनोपुत्र के कृष्णयासुदेव देवकीनोफुत्र सोसौरियपुरनाम् ॥ तासि दोपहंपिदोपुत्ता। इनाराम केसवा ॥२॥ सोरिपपुरंमिनयरे ॥श्री. नगरनेविषे रामराजाम्टोऋद्धि सन् समुपदिनयनामें रा राजानेसक्षणेकरी सं- सहित ३ न तेहनी लार्या सिगसिवानामें ||२३३ || सिरायांमहिरिए । समुहविजएनाम । रायलरकांसंजए ॥३॥ तस्सलद्या सिवानाम।
For Private and Personal Use Only
Page #202
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| ती तेनापुत्र म. महायसर्वन ल लगवंत अन् अरिष्टनेमी सो सोगनोनाथि द यतीनो गकुर सोतेअरिष्ट || अ.२२ तीसेपुते महायसे । मयूवं अरिहनेमित्ति ॥ लोगनाहे दमीसरे ॥ ४॥ सोरियनेमि नेमिनपिस सन्कए साथियादिक संघ मसुस्वरकंट अ-एकसहस्त्रनुपरेआग्लासक्षणनीघरणा हारगौतमगोत्री गो. नामोन । सरकएास्स संजने । सहित अन्वसहस्स सरकाघरो । गोय . का कालीसरीरनीषासमी व वज्ररुपलनाराच संघयए। सन्समचनरसनामासंस्गननमानसानासरषाचद्रपेट | मो कालगवि ॥५॥ वद्यरिसहसंघूयो । समचनुरंसोशसोद्रे जेह त. ते नेमिनायने काजे रा० रानेमनीकन्या ललार्यापोंजान्जाचेले कृष्णायारूदेव ६ अ. हवेते राघराजवरकन्या तस्सरायमईकन्नं। लचं जायई केसवो ॥६॥ अहसारायवरकन्ना । स. सीलकीसीस चा नीचीषष्टी जुए स्त्रीनो दोष ससर्वस्त्रीनेससोकरी सं सहिन बे वि०विजलीसरपी रुसीसा वती चारुपेहिणी रहित . सबपरक्यासंपन्ना . विधु सोया| सो सोदामनीनामामपीसरी प्पालासरीरनो अ० हवे बोल्यो जपिताजेराजेमतिनो वा-बासुदेवमै महर्डिकम, २३५ मणिप्पला ॥ ७ ॥ तेजकांनि अहाह जपने तीसे वासुदेवं महिडियं"
For Private and Personal Use Only
Page #203
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न०|| ३० इहांजो कु० कुमार जा जेते स्न्याः ददन स सर्वदिद्धि जयविजयनेष कर कीयां कुसिक] अ.२२ २३५|| यावे
८ पीएंकरीनेनवराव्यो। दोप्रमुष मस्तकमांमूइहागबन कुमारो । जासेकन्नंदखामहं ॥८॥ सवोसहीहिन्हविन कयकोनुयमंग कीने कीया दिन्प्रधान वस्त्र पेस्या आाहारादिकत्र्या विविलूषावंत कीधाममातो गं गंध हस्ति वा. कृष्ण मंगलिक
लरकरी श्रीनेमिनाथ सो दिवजुयंसपरिहिन । आत्मरहिं विनूसिन ॥ ॥ मत्तंचगंधहचिंच । वासुदेव नि. साषहाथीमा. आठ तेनुपरे चढी सोनेले अन् अधिक मस्त चू चूमामणि जन्जेमसो ले तेम अ हवेमुंचे डकरी बो हाथी
केंकरी मुगट नेमिनायसोले स्स जिन्वगं। आरूढोसोहए अहियंसिरे चूमामणि जहा ॥१०॥ अहनसिएग
चा बेपासेचा सो सोत्मनीक द यादवेदसारने च० सम् स सर्व परिवार सहिन परिवस्या ११ चा च्यारप्रकार
मरेकरी दीसेरे करी ते श्रीनेमिनाथ ।। उत्तेण। चामराहियंसोहिन । दसारचक्केणयसो ॥ सच्चन परिचारिज ॥११॥ चानुरंगिणि
२३५
For Private and Personal Use Only
Page #204
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
न. से० सेन्यारवेकरी
२३६
बाज सं० शब्दकरी
दिप्रधान गo आकास - २२ फरस्पोचे
शब्देकरी
जमनुक्रमें रचीजीएंनेरचीबेहाथी एकला हाथीनीयशिका इमघोमानीत्र्मणिका २ एम एसेलाए । रश्याए जहकम्मं ॥ रथनी एमपायकनीयः तुरियाए सन्निनाएां ॥ दिज्ञेां गगनंफु १२ ए० एडवो इन्क्रेड़िए जु० सरीरनी कांति उत्तमें निवत्र्यापणा ल० लवन निनिकस्या वि० जादव पूर्वोक्त करी करी पोताना चकी माहे प्रधा
से ॥ १२ ॥ एयारिसीए इदीए । जुइए नत्तमाइए । नियगाने लवगार्नु । निद्याने ब
नपुरुषश्रीनेमनाथ
सन्प्रतिहे
थ तिहां जाता का
ने
न्हवे तिचारपची सो० तेश्रीने मना दिन्देषी पा० मृगादिक जीवने चान्दामामा लयत्नांत देवीने हिपमवेंकरी पाजरेकरी रुधीने हसतच नियंतो । दिस्स पारोलयमुए । वाहिं पंजरेहिंच । सन्निरु जी० अतिहे त्र्यं० त्र्यंतपाम्याबे जीवतव्यनुं सवाजीवने विषे
मं. मांसने लावानिमित्तें पाव्देषीने सेन्सेश्रीने मना अर्थे
मन्महाप्रज्ञावंत २३६
जीवियं तंतु संपन्ते ॥ मंसबालकियबए । पासिन्ता से महापन्ने
पुंगवो ॥ १३ ॥ सु० प्रति हेखी १
दे सुइस्किनुं ॥
www.kobatirth.org
१४ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #205
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
न.
२३७
www.kobatirth.org
क० केहने अर्थे इ० एप्रत्यक्ष जीव
एक सर्वरूषनी बांबक
shree । एसबेसएसियो । वाने
त० ते श्रीने मनायें प्रवानिवारपनी कहे.
सान् सारथीमतें इम बोल्या १५
सारहिईएमवि ॥ १५ ॥ कस्सवा पां. पांजरेकरी
सं संध्याथका रहे
१६ अन्वेसारथी
पिंजरेहिंच । सन्निरुदेयमवहिं ॥ १६ ॥ अहसारहि तु०तुमारा विवविबाहनाकार्यनेविषे
ए० ए सोलनिक मृगादि जीवेढे
एलद्दापाणि
। तुझं विबाहकद्यंमे ।
१७ सी०सालखीने तन्ते सारथीनुंते श्री ने मनाये वचन बच्घजीवनुं १७ ॥ सोनप
तस्ससोवयणं ।
चिं चिंतने म महाप्रज्ञावंत चिंतइसे महापन्ने ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
पाणि
बा० वा. २२
तनुं लाई ।
"लो. जिमावाने अथें बच्घएा लोकनेवि
लोयावे
बजां ॥
विनासकारी वचन सालवीने विणासां
जब्जोमाहरेकाजे ए
सान्दयासहित जि० जीवने विषे हेतुए १८
ह० ह
साएको
जिएहिनु॑ ॥ १८ ॥ जइमझकारणाएए। हम्म निव्नहिमुऊने ए निजीवकस्याए प० परलोकने विषे कल्याएानहि १० सी० ने मनायकुं २३१ तिक बलजिया । निमेण्यंतु निस्सेसं । परलोएलपिस्सई ॥ १९५ ॥ सोकुंलाए
एसे बच्चाजीव
Page #206
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सु. कंदोराप्रमुघम महायशवंत आ० आत्मरणा सन्सर्वमुगटबीने सा सारथीने पर दीपा. २० मन्मननो पत्र्य. २२ जुयलं ॥सुत्तगंच महायसे ॥ मालरपाणियसवाणि। सारहीस्स पगामए ॥२०॥ माप परिणामचारित्रलेवानोकीयोनेश्रीने मनाथें देन्देवतासोकांतिकादिकज जेमभाववानी वियचे तेम मनुष्यलोकमांनुनस्योसंपरिषदासहित निन्दी रिगामोयकने । एकवर्षसगेंदानदीपं देवाय जहोइयंसमोश्ना अनुक्रमें सबद्रीए सपरिसा। निसामहोत्सव तस्तेत्रीने मनायनो करवा निमित्तें दे देवता मनुष्यने प० परिपत्यो सीसिविकार जुत्तरकुराएवेनारत्न कमणं तस्सकानुंजे ॥२१॥ देवमएस्सपरिखुमो ॥ सीयारयणं नामानेविपे न तिचारपडिबेग निवानिकल्यो बा हारकाथी २०रेचतपर्वतनेविषे गिरह्यालगयत २२ न नद्यान संच पङ्कलानुनस्या तने समारूढो । निरकमिय बारगाने॥ रेवयंमि बिनेलयवं ॥२२॥ नद्याएं संपत्तो
. ननुत्तमसिविकाथी सा एक सहस्र राजकुमारसहित सा० साहसिक सहस्रजपने कुए। अवसयकन्नपुत्ताचा नईन्नो ॥ नत्तमासियान ॥ साहस्सिए परियुमो बन्तरिरामबसदेवा । पंचसय देवो भनेकस्स रामस्स ॥१॥ अवोत्नदन्तो वीरदन्तो अडारिशिवजिण नाच नग्गसैराअवपुत्तो सप्तदेवसेएमणिगया २ अन्वे वयमहाराय ॥ सबस ||२३८ तसयापएनेनुसेसान्निसयापण्यादबकुमारमुपियवा ३ एएसहस्सकुमारानिरकतरिउनमिसंजुत्तापढमंनिए सामाइचंचापरोनं
सनजास।
For Private and Personal Use Only
Page #207
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shei Kailassagarsuri Gyanmandie
| अन् हवेदीक्षालेवानेलावेघरमायी नि चि चित्रानषत्रनेविषे चंडमावरततोललो निवारे अहये सिबिकापीमतस्यापलीहवेनेत्रीने || अ-२२ २३९ || अहनिरकमईन कल्या. चित्ताहिं ॥२३॥ २३ अहसे सगंधगंथिए मनायसुगंधकरी
| तु० शीघ्र मल्सकोमलकुं० घाटलानेन्याकारेंचांकावल्यास. आपणहार्यकरी हुं लोचकरेले केसन पंपांच मुनिएंकरीीने मनायेंलोचक
तुरियं मलय कुचिए। बे केशते सयमेव स्वयमेव खंचिएकेसे। पंचमुश्विहिं समाहिने । रीदीशालीपी समाधियं वा वासुदेव इ. एक हेरें सुलोचकीयालयीसुतकेशी 'जिनितेंदीवांचित ममनोहरमोरूपोच |२४ ॥ न मने बारुदेवो इगलाइ । कत्तकेसं जिइंदियं । इनियमगोरहतुन नतावलो पाच पांमे जे ने द० यतीनागकुर २५ ना० ज्ञानेकरी दंचदंसऐंकरीच चारित्रेकरी ल तिमन खाकमाएक रियं पावेसुतं दमीस्सरा ॥२५॥ नाणं सपांच । चरित्नेणं तहेवय ॥रपतिए" पुनितोलेंकरी दे दमने डी व वृद्धवंतो थासे २६ एक एगिपरें रा० रामकृष्णा वासुदेव द० दसदसारजादवब. मुत्तिए दंतो । वमाएो लवाहिय ॥२६॥ एवं ते रामकेसवा। दसाराय बस घपासोक अ अरिष्टनेमिने बांदीने अपागवल्या. बा. द्वारकानगरीने २७ सो सालखीनेरा राजवरकन्यामा २३० जगा ॥ अरिचनेमिवंदित्ता। अगया बारगापुरिं ॥२७॥ सोकपरायवरकन्ना पिवयं |
For Private and Personal Use Only
Page #208
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| सान् ते जिननी हास्यरहिन नि० आनंदरहित सो सोकरी मुन्मूना सूर्गवंतषका २० राराजेमनिचलि चिनवेश
साजिशास्सने। निहासाय निराणंदा। सोगेराजसमन्वया ॥२८॥ रायमविचिंनेई। घिधिगसधिकारहों म०मारा जीवनव्यने ना जाने मनाय बांगीने से तेश्रय पच्दीशालीपी मुजने हवे तिचार पनी अनेराजेम पिर ममजीवियं जाहतेएं व परिचत्ता। सेयं पवश्चममं ॥२९॥ अहसा ला लमरसरिया केस कु.गुप्तढाकीलस्याने फ कांकसिएंकरीसमाराचे केस स. आपणे पोताने हाथै सयमेव तुंच्या कैस लमरसनिले । कुच्चा केस फएगयसाहिए । सयमेव कंचश्केसे। घि वीर्यवंत व धर्म करवाँ साबधान जुदमयंत थया बायासदेव ३० एम कहे जे सं झुंच्याकेस जिस जितेंदीने संत पिश्चताच वसिया ॥३०॥ वासदेवो लगाई लत्तकेसं जिदियं । सं संसाररूपी सागरोड त तरजे कन्या .सव नुत्तायसी नुतावली ३१ साच नेराजेमती प०अवर्या क्लएपके पन्दीशाली सारसागरंघोरं ॥ तरकन्ने सतखत ॥३१॥ सा पवईया संती ॥ पञ्चावेई थी त निहां घपी स्त्रीने सम् स्वजननीस्त्री पा सेयकजननीअापणीपोतानी पर सीसीसवंतीबाबतपएपीसुनाए ३२गिन्रेवनागिरनाराएवेति | २५० तहिंबत ॥ सयएं परियएचेव । बारनीस्त्रीने सीखवंता बसरूया ॥३२॥गिरिरेवंवयंजती,
For Private and Personal Use Only
Page #209
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| विलपनीहोए विषयनीचांचातेनिवरतावे लोक लो जानेमने रहनेमि पु० पुरघमाहे नत्तमपुरषों मनविषयथी निवरताव्युभएतेम मानि || अ.२३ विणि यमुनिलोगेस गथी जहासे पुरिसोन्तमो तिबेमि ।। ५१॥ इ. एमऊं कझंडे नाव ३० इतिश्रीरहनेमियअध्ययनंसम्मत्त ॥२२॥ बाबीसमा अध्ययननेविषे जेमरहनेमिएं धीर्यपपोऊन नेमने लगी केसीगौतमके कीपुत्तेमधीर्य इतिरहनेमिचं अशयांबावीसमंसम्मत्तं ॥ २२॥ पणुं अनेरेपण करचूं काने नो संशयटासवेकरी पीर्यपए कंएने | लणी केशी गौतमेंशिष्यना संशय रासबाने अधिकार २३मा जिव् रागहेषादिकजीत्यातेल्नगी जिन पा- पारस नपि अशकेंादिको लोकना अध्ययनेविषे कहेजे.
पूजनीक जिपपासेतिनामेणं ॥ एवेनामें अरहालोगैपूइए |सं सत्वनो जाएअात्मानो जाए।सब्सर्वपदारथिनोजापापधर्मरूपियातीर्थनाकरणदार तळ तेह्रनुं लोन्सर्वधूस्तमोतअलोकादिक व्याफुलेशि संबुछप्पाय सबन्नू । धम्मनिबयरेजिणे ॥१॥ जिन१ तस्स लोगपश्वस्स । आसी सी ष्य मन् महायसवंत के केसीकुमारनामा श्रमण तपसी वि ज्ञानचाउ अनेचार्चिना पारगामी २ १० अवविज्ञान स. | सेमहायसे केसीकुमारसमए । विद्याचरापारगे ॥२॥ नहिनाए ।
श्रुनज्ञान एवेज्ञानेकरीसी शिष्यसमूहतेणेकरीसम्सहिन परिवस्था गान्ग्रामानुग्रामप्रनेरीरुपिचरतायिका सा० सावयीन नगरी आव्यो ३ | एबुझे। सीससंघसमानुले ॥ गामाएफगामरीयंते ॥ सावधि नगरमागए॥३॥
For Private and Personal Use Only
Page #210
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ङ. तितिंदुकनामा उद्यान
तं. ते सावथी नगरीने मं• मंरुखस फा० प्राशुक जीव सेन्डपाश्रयनेविषे सं० तृणादिक संथाराने रहित तिंदुकंनामनुखाएं । तंमिनयरंमंगले मीपें बिषे 1 फासए से संधारे । धधर्मरूपिया तिन्नीर्थंकरना करपहार जि० ललगवंतबर्द्धमान
२४६
नुद्याननेविषेबासरया ने
हवे ते हजकालें बासमुबागए ॥ ४ ॥ महतेोवकालेएा । धम्म तियरेकिऐ ॥ नीर्थकर लगबंबद्धमाणोत्त बिच प्रसिद्ध ५ त० नेह लो. सर्व लोकादि प्रलोक, वस्त पदीवानी | मा० फूले शिष्य मन्महाजसवंत ॥ सङ्घसोगंमि विस्सु ॥ ५ ॥ तस्स लोगपईवस्स ॥ आसीसीसे महायसे ॥
स. सर्वलोकमहे
'परप्रकासना'
लगवंत गौतम ना० इंडलूतिनामें विज्ञान चारित्रना पारगामी ६
बाच्बारअंगना वि॰ गंदबाजोग्यन्मने सी० शिष्यनो समुदाय
लगवंतगौतमेनामं ॥ विद्याचारएापारगे ॥ ६ ॥ बारसंग विनबुद्धे आदरखानो सीससंघसमा तेणें करी स०परिवत्यां गान्ग्रामानुग्राम विचरताथका से० नेपा सा० सावधी नगरी न्यान्या ७ को कोट एवेनामे उद्यान नं. ते साबधी बले । गामाएफगांमरीयंते । सेवि साबच्चिमागएं ॥ ७ ॥ कोडगंनामनुचाणं तंमि, नगरीने समीपे फा० नीवर हितमाशुक सेन्से द्या पाटीप्रमुष सं० तृणादि तनि हा जब्बासोरहिबो पाम्यो ८ के० केसी कुमारनामा श्रमाने २४६
कनो संथा
नयरमंकले फासएसेब संथारे 1 "तष्ठवासमुबागए ॥ ८ ॥ केसीकुमारसमो ।
For Private and Personal Use Only
तंनिहां अ. २३
तस्स
Page #211
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२४७
गों गौतम मच महा यसबन न बेनेपणाने साथीनगरीनेविषे विविचरनाथका अन्मनपचन काया गुप्तने विधेसु० लसासमाधिसहितने अ-२३ गोयमेय महायसे । नलने वितन्न विहरिस । अलीगा ससमाहिया ॥॥ न० बेने केसीगौतमना सी शिष्य समूह संक ने शिष्यसंजनी डे न तपस्वी वे त तिहांचिंना विचारणासन्नुपनी गुन्गुएवंन नुलन सीस संघाणं । संजयाएं। तवस्सिएं तस्स चिंता समुप्पन्ना। गुएवं नी ना बकायरषपालते १० के० केहवो चली ३० एअमसंबंधि धर्म महाव्रतादि के केहवा आन् आचारसाधुनो वेषप्रमु ताणताणं ॥१०॥ केरिसो वाश्मोयम्मोय रूपइएधर्म के रिसो ॥ आयारधम्मपणि पक्रिया सहिनधर्मने इ. एअमसंबंधि क्रियासा० तेबीजावतसंबंधीक्रियाक चा० चारमहाजनरूप जो जेधर्म श्रीपारसनावि तीर्थकरे जोन हि विषे रहिवू इमावासाव केरिसो ॥ ११ ॥ हेवी ११ चानघामोय जोधम्मो कह्यो. जो जे ऐ पंपांचमहाव्रतरूप शिष्यवृतदेल्नुपदेस्यापर्म य० वर्षमानस्वामीएं पश्रीपारसनाथि मन् महामुनीश्वरें महाबनरूपधर्मनुप अ० इसो पंचसिरिकन देसिने वहमाऐएं ॥ पासेणय महामुएी ॥ १२ ॥देस्यो१२ अचे सामान्यवस्त्र अथवा मानोपेन जो जोधर्मत्तेवर्धमानस्पामीए | श्रीपारसनापिनोपदेस्यो धर्म ए एकका परिवर्जीने पवतेचे लेणेविसेषफेर |२५७ खगोय वस्मरूपअचेलक जोधम्मो उपदेस्यो जोश्मोसंतरुत्तरो मोरूपोचवानोकारजएगंकद्यपवन्नाएं।
For Private and Personal Use Only
Page #212
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२४८
किकिमए किसं कारणाडे १३ अ हवेने गौतम ननिहां सा सावपिनगरीनेविषे शिष्य विजापीने प० प्रकर्षे विवितर्कवि || अ.२३ | विसेसे किंतुकारणं ॥१३॥ अहसे तव सीसाणं ॥ विन्नाय पयियक्तियं चार पान स० मिलवानेविषे क-कीपा मन न बेने के केसीगौतम एकामठबानी मन बेले १४ गोच हेगौतम पचपिनयत्नक्ति करवानेतु पनीले समागमे कयम । जलन केसीगोयमो ॥१४॥ गोयमे परिरुवन्न जाएगजेने जेसी० शिष्यनेससमूहत्तयासमुदायनेणेकरी जे श्रीमहावीरदेव श्रीपारसनाथ पहिला या ते लएी जेवकुलयीप्रीपारसनाथना
सीस संघसमानते ॥ परिवत्या. जेवकुसमविखंतो । संत्तानियाकेसीकुमार साघुरहेढे एमजापातधिका | निनिंऽकचनें याव्या आधारयात्रीगौतम के केसीकुमार स० अमूपा गो गौतमने देषीने आच्या. पन्जेची सेवात्नक्ति तित्यवमागर्ने ॥१५॥ केसी कुमार समो। गोयमंदिसमागयं परिरुवं पनि करवाजोग्यतेवि सेवा सच्सम्यक्प्रकारे अंगीकारकरेचे प० पराल ध प्रकारना परालशालिनो १ ब्रीहीनो २ कोऽचानोरातनामायनस्पति फः | वत्ति लक्ति सम्मंसंपमिवद्यई ॥१६॥ पलासं फारूयं तुबमाशुकजीचरहित ततिहातंफुक नामावनने पं. पांचमुं मानप्रमुषने अनेरासाघुजोग्यतां गौच गौतम निम्बेसवाने अर्थं विशीघ्रं पापेबे ॥१७ ।। ||२५७ | विषे पंचमंकुसतपाणिय ॥ गोयमस्स निसिघाए । विप्पं संपएामए ॥१७॥
For Private and Personal Use Only
Page #213
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ना
के केसीकुमार स० अमएा गो गौतम म० महाजसवंत नु बिक बेगयिका सोले ले चंचं मासूळ सूर्यसरपोशोलेडे || अ.२३ || केसीकुमार समणे । गोयमेय महायसे ॥ नुलन निसन्नासोहंति । चंदसूरसमप्पत्मा ॥१८ प्पालाकानिचे | स०एकगमल्याबे घएा तिहां पा पारयंकी अन्य को कुतूहली मित्र मृगपतसरषाअजीपरपार्षमी गि गृहस्वनाम ॥सरीरनीजेने १८ समागया बतब। पासंमादरसनी कोनगामिया ॥ मिहत्वागणेगाने जनक सा सहस्र तिहा आवेडे १० दे. देवताज्योतषीदा लवनपतिगंधर्व जन्जराक्षसकिन्नरव्यंत्तरप्रमुषप्रगटदीसेब अअधी साहस्सिनेसमागया ॥१॥ देवदाएवगंधवा ॥ जरकररकसकिन्नरा ॥ . अदिसा श्यादीसे नहीं भूगलूत आज निहां एकग मिल→ २० पु पूर्बु तुमने मच् महालाग्यवंत केकेसी गौतमपने बाएयलूयाए ॥ आसीतच समागमो ॥२०॥ पुबामिते महालागा ॥ केसिंगोयममबवि | सताऊवा तानिवारपडीकेसी बोलता प्रने गोच् गौनमश्एागलेकहीसे नेमबोलताहवा २१ पुत्पूगेतेमहेनगवन् . के केसी
नने केसीबवंतंतु । गोयमो मधवि ॥२१॥ . पुचलंते जहिवते । केसि प्रनेजेमतुझनेनुपजेतेमगोगौतम श्म त तिवारपबीकेसीअगौतमें अनुशादीपेयकेगो गौतमप्रतइश्मबोख्या २२ चाच्यारमहा २०२ गोयममञ्चवि । बोल्या तनुकेसी अएन्नाए ॥ गोयमो एमबपि ॥२२॥ चीन
व्रतरूप
For Private and Personal Use Only
Page #214
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
म.
जो० जो धर्म जो० जे ए
पं० पांचमहाब्रतरूपसिषव्या धरम देव नुपदेस्यो श्रीवईमान स्वामीएं पा० श्रीपारसनाथ अ. २३ २५० खामोयजोधम्मो ॥ जोमो पंचसिरिन ॥ देसि बनाए । पासेाय म महात्रतरूपधर्मनपदेस्यो २३ एग्मोर पोचवानी उपराजपा करवानी एकसरिषाकार्य विन्याचारमां विशेष फेरबे किं० सूं ए महामुणि ॥ २३ ॥ एक कद्यपवन्नाणं ॥ प० परिवर्ज्या तेने विसेस किंतुकारणं पी विचार - सानुपजे बे ध० धर्म 50 बेप्रकारे मे हे बुद्धिवंत कन्केम वि० विस्मय तुकने नयी नुपजतो २४ त० विचारपनी कैसी बोले बेले बोसतात धम्मे विहे मेहावी । कहं विप्पच नुन्नते ॥ २४ ॥ तनकेसीबुवंतंतु ॥ गोय गो० बसी गौतमए प्रागले केहसे तेम बोलता प० बुधेकरी विचारीने धन्धर्मनं 'त तत्त्वपरमार्थकेवीचे जीवादितत्व वि० निर्णयनिश्व
मो इएमवि ॥ बा. पन्नासमिरकर धम्मं ॥ तत्तंतत्तविणिच्चियं ॥ २५ ॥ यएवो बोल्याने २५ पु०पहिला तीर्थंकरनासाधु नृ० सरसतेऐंजन | कं वांका ने पन बेला तीर्थकरना साफ मन्मध्यतीर्थंकरना 5 सरल साधुत्र्मने पुरमानजमाने ॥ भूर्ष बंकजमापतिमा ॥ मचिमा॒न॒द्युपन्नानु॑
प० प्रज्ञावंत ते तेोहेते धर्म५० बे प्रकारों कीधुं २६ जानिए तेगंधम्मे उहाकए ॥ २६ ॥
दुनिरतिचारपपो दोहे खुपाली च चर्म २५० दुविसोझोन ॥ सकेए चरिमा
पहिला तीर्थकरना सा पुरिमाएां आचार
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #215
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्तीर्थकरनासाधुपु आन्पार दोहिलोपाली का आचारमध्य तीर्थकरनासाघु सुरु अतिहे निर्विचारपणेरूषेपा० पालिसके तेत्मपी |अ.२३ २५१| पंपुरएपालन सके कप्पोमशिमगाएंतु ॥ सविसशोरू पाखन २७ मध्यतीर्थकरना |
साधुना सावलतीगौतम प्रज्ञाबुद्दि तुमारी बिच टाल्यो माहरोसं संदेहराएपूर्वकटोते अनेरोपण संन्संदेहमारी तंत्र महाव्रतरूप २७ सात गोयमपन्नाते ॥ बिन्नोमेसंसने श्मो ॥ अन्नोयि संसन मशं। नी तेमुझनेकहो गो हेगौतम २८ हवेलिंगहारकेसीगौतम अ० मानोपेत घोलावस्त्रनोपरणहार मोजे एपारसनायनासंतानीया मे केहरूगोयमा ॥२८॥ मतें कहेले अचेलगोय जोधम्मो अचेलपर्मएजे जोइमो संतसत्त सं० मानोपेतयारहित बस्नना घरणहारने लपीअंतरसहित मानोपेन घोखां वस्त्रनापरणहार या वर्धमान स्वामीएं पाश्रीपान रो देसिने श्रीमहावीर देवनो साफतेसंघाने अंतरदीसे देव अचेवधर्म नपदेस्यो वडमारोएं। पासे रसनाथम महामुनीएं मानोपेतरहिनवस्मरूपधर्म ए मोरुपोचवानी नपराजपाकरयानो ए कार्यपपरिवाजेनेतुं किं किंसकार
एय महामुणी ॥ २५ ॥ नुपदेस्यो २ एगकधपवनाएं ॥ सरषो विसेसे चौरमोफेरनैकिंतुकारणं एजेएवीवि लिगलिगयती ७० वेप्रकारें मेक हे बुद्धिवंत क० किम विस्मय तुमनेनयी उपजतो ३० केन्केसीएऐप्रकारेबोलेंगतेबोलताप|| २५१ || चारणानुपते सिंगे नोचेष फुविहे मेहावी ॥ कहं विप्पच्चनते ॥ ३०॥ केसी एवं बुवाएतु।
For Private and Personal Use Only
Page #216
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गोन्गोतम इच्ागतकहीसनेमबोलता विकविशिष्टज्ञानजे केवलज्ञानेकरीसम्यकाजापीनेतीर्थकरघ धर्मसाघवानाधर्मकरयानानुपगर अ-२३ गोयमो इएमबदि । ऊया. विन्नाणेगसमागम्म ॥प्रकारें यम्मसाहएमिबुयं ॥३१॥ पाराषचानी आज्ञा दीघी३१ पंजतीनोवेषने एजतीचे एविप्रतीतनेअर्थसोज ना नानांप्रकास्ना उपगरण वस्त्रनु विमानोपेन प्रमुषविघना जंच संज
पंचयचंचलोयस्स ॥ खोकने नापाविहं विगप्पणं ॥ नपगरणानुकर, जंत मजात्रा निर्वाहनेअर) यस्त्रादिक नपगरण राषयानी आज्ञा तीर्थकरे साधूने दीयी लोकनेविषे प्प प्रयो अ. हवे होए प० प्रति | गहराचंच ॥ लोगेलिंगप्पनयपा ॥३२॥ लिप जनीना वेषधरवानो जनबे ३२ प्रहलवेप ज्ञाआवषिष नए सगे एमजा तीर्थकरेजतीनो धर्म मो० मोक्षस सांघरोसाचो नाच ज्ञान अने दरसनने च चारित्र ने जेमाचार करोडे तेमकीपुं घटतुंचे मोरकसलूयसाहणे ॥ नाच दरसरांचा मोझनासायर निठानिश्चयएनयनेविषे कह्यु ३३ सा० नली हेगौतम प्रज्ञा बुद्धि तुमारी बिजटायोमारो संदेह एपूर्व कोते चरित्तंचेव निबए ॥ ३३॥ सात गोयम पन्नाते ॥ बिन्नोमे संसले इमो ॥ . अ अनेरापण संदेह माहरो ने मुजने कहाँ गो० हेगौतम ३५ हवे वेरीजीपुबानो अघपाचेरीनासहस्र मन्मानिष्ठेने २५२ अन्नोवि संसजे मशं ॥ तंमेकहरू गोयमा ॥३४॥ मप्रनेपरीश्रोगाणं सहस्साएं।मशेचिन्छ
For Private and Personal Use Only
Page #217
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
___गो हेगौतमतेन्तेथेरीतुमने असन्मुपगन्यांचे धाएते तुमनेजीपबाकफेमतुमेजीत्यातुमेहवेकेसीमने गौतम एक एकमात्माजीतेजी | |अ-२३ २५३| सि गोयमा ॥ तेयते अभिगवति । कहं ते निक्रियातुमे ॥ ३५॥ केडे ३५ एगे जिएजियाप
त्यापांच पं. पांचजीनेयके जीत्या दस एकात्मान्मने । कषाय ५ इंडीए १८मकारबेरीनेनिन्जीपीने सन्सर्यशत्रुजीपबा आत्मा एक क च ॥ पंचेजीए जियादस। दसहा जिणित्ता। सबसत्तूजिणामहं २६॥ पाय दी ५ ना कषायादि गौतमपूजेचे स० बेरीए किहा कह्या के हवे केसीगौनममते बोलता हवा. न. तिवारपनी कैसी | जि० पूp फं हवेकेसीप्रने ३६, सत्तूश्य केवुत्ते ॥ केसीगोयममबवि । नन केसीवंत बोखेदेतेबोलतामति गोत गौतम पागलेकहीसनेमबोलताहबाए अए जीत्यो सबू क कषाय इ.इंडी ५ नोकषायाँदिक ले. तु । गोयंमोश्णमबवि ॥ ३१॥ ३० एगप्पा अजिए सत्तू । कसाय इंदियाणिय ॥ ते से चेरीसमस्तने जीपसेना जिनशासननोन्यायविक विहरु हेसुनी ३८ सालखी गो हे गौतमप मज्ञाबुद्धि तुमारी बिन्दराख्योमेन जिणितुजहानायं ॥ विहरामि अहंमुपि ॥३०॥ सात गोयमपन्नाते ॥ बिन्नोमे माहरोसंदेश्यपूर्वेकह्यो तेपणा अन्अनेरोपण सै० संदेह माहरो ने मुझने कही. गो. हे गौतम ३५ दी दीसेने ||२५३ संसने मो॥ अन्नोविसंसनेमशं॥ तमेकहरू गोयमा ॥ ३५॥ दीसंति
For Private and Personal use only
Page #218
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उ. हवे चोथुधार केसी पासनुपूढेलेबघणा पा० पासे बांध्याडेस. जीव . मुन् पासरहित खन्वायरानीपरें अमनिबंधरहितक किम || अ-२३ २५५ | बहवे लोए ॥ पासबधा सरीरिगो ॥ .मुक्कपासे सलूने। कहं
ने विचरेछेमुसुनी ४० ते नेहो केसीमने गौतमकेने पार पास सघसा बेदीने म अनिहेहणीनेननुपायकरवाथी अभ्यास मुन तविहरसिमुएी ॥४०॥ तेपासे सवसोठित्ता ॥ निहंतुणाजवायने । करयाची मुक्त पासरहिन ल वायरानीपरें सघुसून अप्रनिबंड्यको वि० विचरुं हुं हं साधू ५१ हवेकेसी पूछेडे पापासए किहां कह्या पासो लालने ॥केसीभने गौतमकहेडे विहरामि अहंमुगी ॥४१॥ पासायश केवुत्ता ॥ केकेसीमनेगौतम बोलता हवा तं तिचार परीकेसी बु बोलेबेनेवो गोर गौतम एमागवेकहीसे ते बोलताहवाध२ रा रागदेषादियान केसीगोयममबपि । तनके सिबुवंतंतु ॥सतामनेंगोयमो इएमबधि ॥५२॥ रागदोसादने आदिशब्दयीमोहपरिग्रहत्तीन नेकनार्या पुत्रादिकनुपरस्नेहपासतेल. पणहारदेखिछेदीनेजन्जेमजिनसासननोन्यायबेनेमन्यायें करीविचलंड तिचा ॥गाढव्याकराने नेहपासालयंकरा भासनानपजा तेनिंदितु जहाँनायं । विहरामिजहवाम्म ३ ध्याउनेमाचार साल लखीगौतमप्रज्ञाबुद्धि तुमारी डिराख्यो माहरोसंसय ३०एपूर्वकयोतेअन्अनेरापपा संसय माहरो तंबने मुऊने कहा. आग्धगध सात गोयमपन्नाने ॥ चिन्नो मे संसने इमो । अन्नो विसंसने मशं ॥ तंमेकहरू
(२५४
For Private and Personal Use Only
Page #219
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गो. हे गौतम ५४ हवेकेसी गौतमप्रनेतृष्णारूपएीवेतुं पांचरांद्वार पूछेने अ मध्यहिन्हश्या ते मध्यनुपनीसच्चेसलिष्ट फ ते बेलफ चिन||अ-२३ | गोयमा ॥३४॥ अंतोहिंययसंलूया ॥ सयाचिन गोयमा ॥ गो हे गौतम फखे लेडे 'वि| विषसरषा फलेडे सा. नेवेल तुमेनुघरी केन्केपोंमकारें हवे केसीप्रते गौतमकहेजे ते तेवेल सगला छेदीने जन्न सलरकीए ॥ साननधारिया कहं॥४५॥ . . . तंखयासब्बसोबिन्ना ॥ नडू धरीने नुपानी मूरमूखसहित विविचलंबुज जेमजिनशासननोन्यायतेममूकागो विगविष फसलषवायी रुवेकेसीगौतय सकते रिता समूलियं ॥ विहरामि जहानायं ॥ मुक्खोमि बुझं विसमस्कएं ॥४६॥पनेपूडेभलया लता इस एकेही कही के केसीगौतमप्रने बोलना हवा. न. नियारपी केसी बोखेलेते बोलता गोर गौतमश्च एआगले कहीसेने
या काबुत्ता ॥ केसीगोयममबपि ॥ न केसिबुवंतंतु ॥ मते , गोयमोश्यामबवि ॥४५ मबोलताहवात्न संसारनेविषेत तृष्णारूपएीवेली ली. स्वरूपथीलययी देपहारीफ लयकारीफलान नेवेलीने सुधरीनेपाजेमजिन ॥"लवतएहालयाबुत्ता ॥ कही लीमा नीम फलोवमा ॥उच्दयबजननमुधिजहानायं ॥ शासननो न्यायडे तेमन्याएंकरी विरु विचकै मन् महामुनी साठ लाली गोव्हेगौतमपप्रज्ञाबुदितानियोमाहरोसंसंदेहश्कएपूर्वक || २५५ | विहरामि महामुगी ॥४८॥ ५८ साल गोयम पन्नाते मारी बिन्नोमे संसह श्मो । योते
For Private and Personal Use Only
Page #220
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नः अ. अनेरोपएा सं संदेह माहरो तंब्लेमुझनेक कहोहे गौतम ४९ हवे ग्गेहार केसीपूढेने सं सम्यकप्रकारे जाजष्यमान रोइ | अ-२३
अन्नोवि संसजेमशं ॥ तमे कहरूगोयमा ॥४॥... संपद्यालियाघोरा ॥ अअग्नितिष्टेने, गो हेगौतम जे अग्नि स. सरीरमाहे क. केएमकारें निच तेअनिनसची सुमे ५० हवेगौतम
अग्गिचिबई गोयमा ॥ जेमहति सरीरला ॥ कहं विद्या पियातुमे ॥५०॥ के केसीभने मन् मोटा परसातथीप नपन्युपाएीनामवाहपीगि ग्रहनेजपाएगीमांमुत्तमपाणीएं सिंक सिंच चुला सक निरंतरते अग्निदाखेनही में मुझने महामेहपसूयाने ॥ गिशवारि जकत्तमं । सिंचयामि धुंधु सययंते ॥ सित्तानेवमहंति .५१ हवे गौतम पूढेडे केसी अग्निएकेहीचीही केकेसीगौतममने बोलता हया निधारपदी केसी बोले खेने योखता मे ॥५१॥ अग्गीय केबुत्ते । केसीगोयममबपि ॥ तनु केसीबुवंतंतु ।। प्रतें गो दे गौतम र एआगसे कहीसेनेमबोलताहयाहवेकेसीमनें इ० कषायने अग्नि कहीं सूरु सिमान सील त तपरूपीने पापी गोयमो इएमबवि ॥ ५२ ॥ गौतमकहेढे कसाया अग्गियो वुत्ता ॥ सूयसील तपोजलं॥ सु तीर्थकररूपीन मेघनेयीनपनोसिद्धांत तेनी धार धाराएंकरी कषायरूपएपीअग्नीने बाले मुमने ५३ सा मस्ती ||२५६ सुयधारालिहयासंता ॥ विदारेखे ने भणी बांग्यायका सिद्धांतनीन लिन्नाशनमहंतिमे ॥५३॥ सात
For Private and Personal Use Only
Page #221
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न | गोव्हेगौतमप्रज्ञा बुद्धि तुमारी बि राख्योमारो संदेह ए पूर्वेकडोते अ- अनुरोपका सं० संदेह माहरो त ने मुझने कहे हेगौतम |२३
गोयम पन्नाते ॥ बिन्नोमेसंस श्मो ॥ अन्नोवि संसनेमशं ॥ तंमेकहरू गोय एयश्चनुसानमुंद्वारकेसीगौतम अएप्रतक साहसिक रौष ०फुट अन्य प.पूर्व दिसनेविषयाएडे डोळे जंजेष्ट अश्यनेवि मा ॥ ५५ ॥ प्रतें पूढे डे५४ अयं साहसिनलीमो । उच्चसोपरियावई॥ जंसिगोयमा गोव्हेगौतम तुमेचढाबोक केम तुम्हे पुष्टअश्वेन तुमने नन्मार्ग पोचता पप्रकर्षेपातूपकोउन्मार्गनेसन्मुरयजातोयको सुधसिद्धांतरूप रूढो ॥ कहतेएनहीरसि ॥५५॥ नयी ५५ पहावतं निगिएहामि ।निमहीराप्युडे सुयरस्सी रासमीएंकरी बांधी राष्यो पुष्ट मे मारोऽष्टमन्च नन्नन्मार्गलसोमार्ग पन्अंगीकारकरेबै ५६ हवेकेसीप्रने गौतम अन् अञ्चने समाहियं । अयपुष्टत्मणी नमेगजनजाए जम्मगं ॥ मगचपमिवद्यई ॥५६॥ कहेडे अस्सेय श्क एक के केसी गौतमप्नें बोले जे ते बोलतापने त तिवारपबीकेसी बु० बोले तेबोसना गोव गौतम एमबोलताहवा ५३ हवेगौइश केवुत्ते । केसिगोयममबवि । तने केसीबुवंतंतु ॥ भने गोयमो मञ्चवि ॥५॥ नम मे० मनसूपि अश्वसाहसिकरौड़ . ० पुष्ट प० सर्व दिसने विषेपारवेशाजे नंले पुष्टप्रश्चने सम्यकप्रकारेगिन्यत्र २५७ | बेमतो साहसिन लीमो ॥ पुच्चसो परिछापई। सम्मंनिगिएहामि बुंराषु ||
For Private and Personal Use Only
Page #222
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न धर्मनी शिष्या नेपोंकरी कं जातिवंत अश्वनीपरें मनरूपीया पुष्य- सा मलीहेगौतमप० प्रज्ञाबुदितुमारीलि टाल्योमारोसंग अ-२३ २५८|| धम्मेसिस्काए कंथगं ॥५८ ॥ वनेग्रहीराष्योडे १८ सागोयमपन्नाते ॥ बिन्नोमे संसना
संसय३० अन्अनेरोपपासंदेह माहरो नै मुझने कहो गोद हे गौतम ५६ कु० कुपंप हवेकुपंथनिराकरयाने मुंवारने इमो ॥ अन्नोवि संसनेमशं ॥ तंमेकहसु गोयमा ॥५५॥ कुप्पहाबहवेलोए रेवन् पपासोकनेविषेजेन्जेणे कुपंधेकरी जन्मलामार्गयीस्लष्ट अ लला मारगनेविषे| क० ब० बरनतोषिको सलसामार्गपी केमल्लष्टनपीथानोहेगौन जेहि नासंनि जंतूपो थायडे जीव अडाणे केम कहवतो ॥ तंननाससिगोयमा ॥६॥ महवे गौतम जे. जेको लपेमार्गे जाय जे जेब जे कोइएकनन्सन्मार्गमवाब तेर तेसघसाजाएयावर्नेले म. मुमने तोऽनेनधी कहेले ६० जेयमगेणगबंति । जेय नमम्पपलिया ॥ ते सवे वेश्यामशं ॥ नोनना नासनूलखामार्गपी मष्टयानोनयी मुन्सुनीत्यो पूबेडेममार्गए किहांकह्या केकेसीगौनममते पूढे न निवारपरी सा महामुपी ॥ ६१॥ केसीगौतमपले मग्गोयश्श्केबुत्ता ॥ केसीगोयममञ्चवि॥ तने, के. केसी बोलनामनें वषि गो गौतमरमबोलत्ताहवा ६२ हवेगौतमकेबैकु कपिप्लादिकमार्गनापापपासल्सयलाएनन्मार्गभवत् २५८ केसिबुवंतंतु ॥ गोयमो इएमन्वयि ॥६२॥ कुप्पवयण पासंगीतमा सवेलम्मम्पपलियाँ।
For Private and Personal Use Only
Page #223
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जसललोमार्ग तीर्थंकरनो परूष्यो ए- एपार्षमीना मार्गपकी प्रधान ६२ सान ललीहेगौतमपच् मज्ञाबुदितुमारी बिराल्योमारोसंसय अ-२३
समगंतुजिएाखायं ॥ एसमग्गेहिजत्तमे ॥६२॥ सात गोयम पन्नाने । चिन्नो मे संसद | इ० एपूर्वकल्याने अन् अनेरोपण संदेह मारोतंतेसुजने कहो गो देगौतम ६५ म मोटेपारीने येगेंफरी हवे मोटापायी मो ॥ . अन्नोवि संस मशं । तंमेकहरू गोयमा ॥६५॥ महानुदगवेगेणं ॥ बुश नावेगनिवारवाने नवमो हारकेने बु० तणात्ताएते स सरणाने तावानुकष्टानिचारया समर्थकए ग श्रेयवांचे तेनेगमनकरवाजोग्य पाचा मागाग पाणिणं पा० पाणीने सरांगपश्चाय ॥ नापश्मानोआधारभूतदीप केस हवेगौतमकहे |
मन्मनचे हे सुनी ५५ अ० जेएम मन्मोटोप्रसंसनीक दीयो चा पाणितमाहे विस्तीपाएपोमोटो द्वीपछे म मोटा दिवाकिंमएसेमुएी ॥६५॥ अबी एगो महादीयो । वारिमशेमहालन । महानदगवेगपाएीना बेगडेनेहमुंगगमनत्रावबोनन्तेद्दीपनेविषेकेसीपूगदीदीपएकेहोकयो के केसीगौतममने बोलताहया. तपतिवारपडी स्स। गतबनविद्याइ ॥६६॥ ६६ दीवेइइकेबुत्ते ॥ केसीगोयममबवि । नके केसीबोलेले लेबोलनापने गो गौनमश्एमबोलता हवा ६७ हवेगौतमके ले जन् जरामरप्ररूपिन पाएगीतेनेवेगेकरी खुन्तपापाशीव | २५५० | सिबुवंतंतु । गोयमो इएमबवि ॥६७ जरामर वेगेणं ॥ खुशमाएाएपाणि
For Private and Personal Use Only
Page #224
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चढोगे
ध धर्मरूपी ने दीप पन्यागना पानी परें आपार ग श्रेयवांडेतेने आदरयाजोग्यास सरपलूतरे न नु- सा मली हे गौनम | पं॥धम्मोदीवो पश्चाय । भून ले गइसरएमुत्तमं ॥६८ ॥ तमबे६८ साश गोयम प्रज्ञाबुद्धि तुमारी सिद्यो मारो संदेह एपूर्व को ते अन् अनेरोपए। संदेह माहरो तेमुझनेकहो गोव्हे गौतम ६ए पन्नाते । बिन्नोमे संसने इमो ॥ अन्नोविसंसनेमशं ॥ तंमेकहरू गोयमा ॥ ६ ॥ अन् समुडनेविषे म मोटापांपीनामवाहने नान्नाचाविसेषहवेसमुनोपारपामवाआश्रीदसमुंहार केसीपूर्वेडे नं जेनाचानेविषेहेगौतमनमो
अन्नवंसि महोहंसि । विधे नावाविप्परिधावई । बिसर्वथाप्रकारें पाए जंसि गोयममारुढो कन्केणेंमकारें समुडनेविषेगमोटापाएीनाप्रयाहनेविषेतजाएछे जा जेमोहेआ पापीमायेए बिना पान कए पाठ पारगामीने कहं पारंगमिश्स्ससि ॥ ३०॥ जाने आसा. विणिणावा नसा पारस्सगामिणी
नि. माहे आयेनहीं नाएविनाचा साच्सातपारगामीनीए ३१ हवे केसी पूढे डे नाव नाचा एकेही कहीं के जा निरस्सा विणिनावा ॥ साने पारस्स गामिणो ॥ ३१ ॥ नाचायकावुत्ता ॥ केकेसीगौतममने बोखता हवा न तिवारपरी केसीबोलेखे ते बोलत्ताने गोन्गौतम एअागलेकहीसे नेमबोलता गौतमकेसासरीरकहेती २६० सी गोयममबवि ॥ त केसिबुवंतंतु ॥ गोयमो इएमववि ॥ १२ ॥ वाढ्वे सारीरमाशनाविन
For Private and Personal Use Only
Page #225
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
____ जी जीवने चुछ कहिए. ना नावानो पेमपाहार सं संसाररूपीने समुऽ कसो जंजेसमुइमाहे तरेले मन् मोक्षनागवेषणाहार ||१२३ २६१|| ती॥ जीवोच्च नापिन ॥ संसारोअन्नयोवुत्तो . जंतरति महेसिपो॥३॥
एवामोरासाघु सान ललिहेगौतमप प्रज्ञाबुद्धि तुमारी विन्टराख्यो मारो संशय एपूर्वेकह्याते अ अनेरोपए संदेहमाहरो . ____३३ साफ गोयमपन्नाते ॥ बिन्नोमे संसने श्मो। अन्नोवि संसने मशं । तं ते मुझनेकहो गोर हेगौतम ७५ हवे अंधकारटालवा-११मुं. अं आंघने प्रवर्ने अत्यंत अंधकार चिच रहेजे जीव बघणा तमेकहरू गोयमा ॥३४ ॥कारकेसीपूछे दे अंधयारे तेमे घोरे ॥ चिचंति पाणिणो बा को० करसे , न न्योत स. समस्तलोकने विषेपाच जीवने ३५ ॥ हवे गौतमक नन्नग्यो निरमल' ला सूर्य स. सर्वलोकने | कोकरिस्सईनद्योयं ॥ सन्चलोगंमि पाणियां ॥७५॥ हे जे जग विमलो लाएक ॥ सब विषेमकासनोकरणहार सोपते मर्य करसे नु० न्योन स. समस्त लोकनेविषे पा. जीव ७६ ला तेसूर्य 'श्रुएकेहो क खोगप्पलंकरो ॥ सोकरि स्सईनुद्योयं ॥ सबलोगंमिः पाणि ॥३६॥ लाएाय इंके यो के केसी गौतममने बोलताहया. ननिवारपबीकेसी बोलेबेनेबोलताभतेचलीगोर गौतमइमबोसता हवा ७ प गौतमकेडेन नग्योतित २५१ ते ॥ केसी गोयममबवि ॥ त केसिबुवंतंतु । गोयमो श्यामद्यवि ॥३१॥ नगारकीपास||
For Private and Personal Use Only
Page #226
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie
www.kobatirth.org
|| जेनेसंसारक्षयसतेसण सम्सर्वजाणे जि जिनरूपि सूर्य सो• ने जिनकरसे सा नयोत स सर्व खोकने विषे जीयने |अ-१३
सारो ॥संसारीजन सवन्नू जिगलस्करो ॥ सोकरिसई नुद्योयं ॥ सबलोगंमि पाणि..७८ सा० लखी गोद गौतम प प्रज्ञा बुदिनुमारी लिक राख्यो मारो संदेह एपूर्वे कह्यो ते अन अनेरोपणा संदेह मारो । एं ॥७८ ॥ सात गोयम पन्नाते ॥ बिन्नोमेसंसलेश्मो ॥ अनोविसंसनेमशं॥ तं तेतुमनेकहोहगौतम ७५ हवे स्थानकाबीबारसं सा सरीरमानसी षेकरी पीमाता पाठ जीवने रकेच्या| तंमेकहरूगोयमा॥ ७० ॥ द्वारकेसी पूजेजे सारीरमाए सेपुरके । बशमाएगाणपाणिएं ॥ रकम धिरहितसर्व नुपऽवरहितअ स्वत्लाविक बाधाथिानकसं मद मनेकरीहेमुनी पन्हवे गौतमकहेरे ए एक नित्यसदाएं स्वानक लोन्सो सिवं अपाबाहं गएकि रहितएवं मन्नसे मुगी ॥७॥ अचिएगंधुवंगणं ॥ लोग कनेअग्रेनुपरेडे पु० तिहां चढवू दोहेसुळेजे जेमनपीज जराअनेम वा व्याधि वेदना नथी तः नेमकेसी पूढे २ ८१ गानस्तानक एइ० ए | ग्गंमि मुरारुहं ॥ जन्म नबी जरामच्च ॥ याहिपोवेयणातहा ॥८१॥ गणेयश्केषु के ककर्ष केकेसी गौतम बोलता श्या. त-तिबारपगैकेसीबोलेबेनेबोखतामनेगो गौत्तम ए आगल कहसे तेम अरु बोखता हवा.८२|| २६२ ते॥ केसीगोयममववि ॥ न के सिबुवंतंतु । गोयमो इरामबाप ॥७२॥
For Private and Personal Use Only
Page #227
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मापिरात
|नि कर्मरूपणी अपि जन्माषी मोक्ष अ. सरीरमांनसीपीमा सिसिद्धिकहीले खोकना अग्रनपरेडे एकनिम्बैच्यापिरहित अस्वचाविक २६३|| निवाएंति सीतसीत्यूतडे अबाहनि रहित सिदिसोगग्गमेवय। मंसिवं अएगाबाहं
ज-जेएबेधानकच जाएदे महाऋषी ८३ तं तेयानक सा सास्वतूवासढे खो खोकने अग्नुपरेवेषु तिहांचढवू दोहेसुंबे तेयानकपान जंचरंति महेसिणो ॥७३॥ तंगएं सासर्यवासं । लोगग्गंमि अरासहं । जसंपत्तानसोयंदोहे सुंजेथानके पाम्यथिका ल० च्यारगतिस्त्रपसंसार अंतनेनाकरणहारसाधू सान् लसीहे गौतम पच्मज्ञाबुद्धि तुमारी बि. टाक्ष्यो मारो संसय ति ॥ सोचे नही लयोहतकरामुपी ॥४॥८५ साल गोयम पन्नाते ॥ बिन्नोमे संसले ३०एपूर्वकटोते नन्नमस्कारहोवुझने संव्हेसंसयातीत संदेहरहित सर्वशत्रुना म. मोरासमुड़ना सर्यसूत्रनापारगामी ८५ हवे एएणि इमो। नमोते संसयातीय ॥ सच्चसुत्तमहोदही ॥८५॥ सूत्रनाकरपाहारश्रीसुधर्मास्वामीकेचे एवंता परें संदेहटादेयके केसी पो० कर्मवैरीमतें रोनाक्रममाकरणहारवेअंब्यांदीनेमस्तकेकरी गो गौनमने मम्मोटाजसवंत ८६॥ संसाबिन्ने । केसी घोरपरक्कमे ॥ अलिवंदित्तासिरसा । गोयुमंतु महायसं ॥८६॥ पंपांचमहावतरूप धर्म पर केसीकुमारश्रमापरिवर्जे डेलावधी पु-अपमतीर्थकर अने प०डेसातीथीम मारगनेविषेत तिहांचदमनेविगे |२६३ पंचमहव्ययम्मं । पमिवद्यश्लावने। पुरिमस्स पचिममि ॥ करना मग्गेतच्चसहावहे।
For Private and Personal Use Only
Page #228
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
के केसी गौतम सदाए तं ते तिंकवननेविषे या न एकगमि मुसिकांनअनेसीलगुरानीवृद्धि होए तेम अन्मोटाअर्थः अ-२५ केसीगोयम निच्चं ॥ तमी आसिसमागमे ॥ खी सयसील समुक्करिसो ॥ की, महब। विनिय निययतने शिष्यप्रमुपनो तो संतोषाए। प० परिषदा समस्त सम्मोक्षमार्गनसेघवानोस गुणनीवृद्धिकोपा संग सम्यक्षका विणिजन ॥८॥ तोसिया परिसासबा ॥ सम्मगंतु समुवचिया ॥ संघुया.. साचेमनेकरी । फह्यायिका पनुपगारनाकरपाहार ल लगवंत केसीगौतम ३०श्मनं ९ श्रीसुपर्मास्वामीजंबूमने कहजे सेवाथकीतेपूर्व तेपसीयंतु । लगवंकेसी गोयमे करूं टुं. तिबेमि ॥ ॥ हे जंबूजेम में श्रीमहावीर देयसमीपें सालप्युहत्तु नेमलं तुजमतें कझंडं ३० इतिकेसीगोयम तयएसंमत्तं ॥ १३ ॥ त्रेवीसमें अध्ययनें संसय टाखयो कह्यो
इतिकेसीगोयममलयां तेवीसमं सम्मत्तं ॥२३॥ तेतो प्रवचनधी संसय टनेतेमाटे ८ प्रवचनमातानु२५ मुंअध्ययन कहे अन् आच प्रवचनमाता . स. समिनि गुप्ति ते तेमज पंपांचएमजानवे सह समिनि तन्त्रपाय
. अपवयमायाजे॥ समिश्गुत्ति ॥ तहेवय पंचेवय समश्ले । तने मिकही ने आव नाम ए१ ३. या समिति मान्लाषासमिनिएषणासमनिआदाना उ० नुचारपासवणा पारिगवणियसन्समि २६४ गुत्तीळ आहिया ॥१॥ इरिया लासेसएा दाणे समिनि नचारे समिईश्य लिए ५ सहित |
For Private and Personal Use Only
Page #229
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ.२५
न म मनगुप्ति वचनगुप्ती का कायगुप्ती अत्रसुपती यली अ० आग्मी ए०एआर स समतिगुप्ति सम संपे || २६५ मागुत्तीवयगुत्ती । कायगुत्तीयअन्चमा ॥ २॥ २ एयान अवसमिइन । समासेए ।
वि० कही ॐ बारअंग जिन् लगबने आप्याता समाया ज.जे आप्रवचनमाताने विषेजपूपिन्सर्व आवं. दियाहिया । ज्वालसुंग जिएारवायं ॥ मायं जब नपवयां ॥३॥सिद्धांननुमाया आलंबरों बने करी काले म मार्गे जजतनाएंकरी वली च एकारणचतुःकारण परिविशुदिया श्ययाग | सुद संजती साधु
कालेए । मग्गेणं जयगाश्य ॥ चनकारापरिसई : शारीयेनगवेत् संजए रियरि र्यातमति ॥ हवे यासंबनादि त नेचारमार्यानान्भासचंना ज्ञानदर्शनचारित्र मोनोकालय बली
दिदि ए॥५॥ कलुस्वरूपके डे तबालंबा बननानापदंसां चरणंतहा ॥ कालेयदिव वसकयो मर्यानोमार्ग अपंथनुवर्जयूं पर्या संघाए नहोएद ऽवधी र्या मेथी कोन्कासपीयर्यात्मात्माघपीति तेमजाज सेवुत्ते ॥ मगोनप्पहवधिए ॥५॥ दब खेत चेव ॥ कालने लावन तहा जय
" चा च्यारप्रकारनी कही संन्ने प्रकारनीपेन्मुझनेकि कहनायका ते सात्मली दग्धव्यधीजपणातेऽष्टिकरी जीवादिकनीर- || २६५ || एा चत्तविहावुत्ता ॥ तमेकित्तयनसा ॥६॥ दबनेचस्कूसापेहे ॥ शानिमित्ते फे
For Private and Personal Use Only
Page #230
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२६६
जीवादिकने वली धूसर किषेत्रयीजयपाते का कार्ययोजयपातेनिहांसुधी दिवस चाखेचपयोगयको चासन सत्सवयी | अ __हाथप्रमाणे प्रयलोके जुगमित्तंचवित्तने ॥ कालनेजावरीएधा ॥ जवनुत्तेय लावलें ॥३॥ जयपाक | ईइंडियपाचना विषय विन्चर्जीने साचेबवली पंचहापांचप्रकारनी सप्तायंसप्तायने नासोघवाने विषेप्रवर्ने हिए | इंदियनो विकारने विवधित्ता । सभायंचेवपंचहा घरजीने ए १० चोखपर्जीने तम्मुनितप्पुरकारे। जेमूर्निसरीरएनखेा प्युपागलकरीनेनुपजोगसहितया सुमनि चाप्ले एनसेश्या सुमनिकही को क्रोधमानमायाने विषे लोन्सोल सुमतीने कहेनां जच्चनत्तेरियरिए ॥८॥ हबेबीजीत्नाषा सुमती कहे. कोहेमापोमायाय । लोले नेविषे तत्पर सावधान हा हासनेविषेत्नयनेविषेमो० सुषेकरीपणाने विविकधानेविषेना नेमज तत्पर एक क्रोधादिक अन् आउथानक यनवजत्तया । हासेलयमोहरिए । विगहासतहेवय ॥६॥ एयाई अवगएगाई प० वर्जीने , सं. साधु अपापरहित मिन्मादाए अवसरे ला निर्दोषी माषानेचीले प. प्रज्ञावंत १० हवे एषएात्रीजी परिवचित्तु संजए ॥ असावधं मियंकाले ॥ लासंलासिद्य पन्नवं ॥१०॥ सुमतिकेजे गनिर्दोषीवस्तुगवेषणानेपिणे निर्दोषवस्त ग्रहबानेविषे पर निर्दोषवस्तु लोगयवा एषएाजे आआहारन वस्त्रमघाननुपचाननेविगे। गवेसपाय गहरोय। एषणा परित्नागेंसणायजा ॥ आहारोवहि सिघाए ।पार्यः |
सि.पानब २९६
For Private and Personal Use Only
Page #231
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न पाटलाप्रमुपने ए एत्रएगवेषएादिक एषणादिक ३ नेविषेप्रत्येक विनिर्दोषकरेएतले ३ बल्लेदपाएनेकेमाहारनीग्रहपोषएा २ आहारनी अ-२४ २७ विषे एएतिन्निविसोहिए॥११॥ जग्गमुप्पायए परित्नोगेषणाएम३ नुपधिनीएम सद्यानि एनवान ना
मने आघाकर्मादिकमध्येजेदोषावेतेनुगमगृहस्वयी लागे नत्पादनदोषते । बीजीग्रहणेष | सी. सोधेबरने ए०एसंकित एषपानादोषवर्जेपर साघूयीलागे धारडई प्रमुषतेएदोपनि जानिने पढमेबीए पप्रथमबी. गानेविषे सोहिद्यएसपा ॥परिलोगंमिचन लोगबचानेविषे त्रीजीएचएगाने विषेप प्रयम गवेषणाजापावी १२ एनेएषणासमति साफुने तयादातारने सेवामाटे संका नपजेलेसंकित च च्यारदो. कं ॥ विसोहिधजयंजई ॥१२॥ पनेचर्ने तेए । संजोयपादोष १ अप्रमाएगदोष २ अगार ३ फम ए दोष सोच सोपेवर जैज जत्नात जर जतीमुद्गम १ नत्पादन २ एषपाए ३ बोलमा ९६ दोषतेमांजनदोष नः नुपधिग्रहिक नुपधिबीजी न एनुदकोपपिनको
नहोवहोवग्गहीयं ॥ एकनुपधिक तेपमिहास नुपगरण पाटीप्रमुष १ नुपग्रहिक तेपोतानोकरी आनएनयु वस्त्रादिक २ अ. थवानधिकतेने नुपगरपानामतेकयुं अनेअज्युंपणानहीं एबूं कल्पनीक संजमनी वृरिनुं हेतुनेनधिक १ नपग्रहिक २ सत्यपानामगमकरीग्रयुं कल्पनीक वृद्धि अपि अनेरापए। संजमनी ज्ञानदरसननी वृद्धिने अरसाषप्रमव्याकरणसंवरहारपहिलीलावना पांचमीए लं नपगरणाएचे प्रकारने साधु गि ग्रहतोयको सूकतोयको वली पर मजुजिनमोगवेनेनी एविय के ले १३ च०प्रयमइष्टेकरीजोईने | २६५ लंगगंछुविहंगी ॥ गिएहंतोनिस्किवंतोय । प®जियमविही ॥ १३ ॥ चस्कूसा पड़े||
For Private and Personal Use Only
Page #232
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जब्जयावंनजती सीए अधवामूके
बेनुपग्रहिकनद विन्यादाननिषेवणावंतसाफ अ-२४
न प० परिहा करे फ पूजे २६० परिसेहिता । पमजिद्यजयंज || दाणनिस्त्रिविद्यावा ॥ दूहने पीने विसमिएसिया ॥ १४ सदाहवे ५ मी पारिवा नवमीनीति पावसघु नीतिबलषो सिं० नासकानो मे सज० सरीरना अवये या महारवस्त्रादि नुपधिसरीर म.म. वशियासमति नच्चारंपासवांखेल सिंघाएाजत्रियं हनोमेल आहारं नवहीदेह ॥ त्र्यन्नं धवाथी ने पूर्णत० तेनूपरब्बा। तेनेपरववे१५०वेगसाथी कोई देषतो नयी म。 यावते तोकोनथी चेक पर होच्छे संदेषनं दूरथी वावितहाविहं ॥ १५ ॥ जोग्प१५ णावाएमसंलोए ॥ margdarsh || संजोएमा कोइ देषे नहीं कोइ पण देषतो नथी यावर आपण बेअ० अनेदेषेपाने १६ अ० मनदेधे पाने एचनलंगी मध्ये कोएा बोसबेते वाएमसंलोए ॥ प्रारएचेवड संलीए ॥। १६ ॥ marriere वेणतांनथीदेषतो सन्उंचीनीची लूमिनहिसमि भूमि परवचे अन्तएा पानमादिक कुर्सि रनहि तिहां परने का• समेन्प्रसिरेाचि ॥ चिरकालकiमिय ॥ १७ ॥
प पर जीवनात या पोतानाघात नृपजेनहीं.
परस्समएफवघाइए ।
काल थियो बे परतीनोन दि。विस्तीर्ण लूमि दू० उंची है बिचित भूमि) नाव बेगे रह्यो तिहाथी ढूंकको नही. बब्बर । तत्रसप्राणीबी बीजादिक २६८ चितथथाचे तिहां बसी विभिन्नेदूरमोगाढे थई होए निहां नासन्नेबिल बचिए || जीने परग्वे तसपाएाबीयरहिए
For Private and Personal Use Only
Page #233
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
GEU
नरहितलूमिपरग्वेए१० बोखरहिन न नच्चारादिकने वोसराये परचे१८ एकएपांचसपति ससंषेकला आचारंग विस्तारचे ३० ए || अ-२०
| शुद्ध पंक्ति नच्चाराईवोसिरे ॥१८॥ एयानुपंच समिई ॥ समासेगरियाहिया ॥ इत्तो पांच समनिकह्या परीनेत्रगुप्ति वोक अनुक्रमें प्रथम गुप्ति कहेले सत्यामुनजोग साची, मनराप्तीतिन्नेमूजासत
सकाश्कसाचोकाश्मण- जीन्यसत्यामृषामन यतने गृत्तिने । वोबामिफपचसो हास. कासचीता विमोसिसियामधामनोनित्यगामि धीही असत्यामृषा मन्मषामनगुप्ति कए। मकारनी पेणीसत्यमनगुप्तिचीथी असत्यामृषामनगुति साधूने आदरवाजोग्या सल्एनेकोरमारे असंचमोसा ॥ मागुन्ति चनबिह ॥२०॥ नहीं सच् मनभाहे एमाचिंतवबो जे एमरेतोबा संरलंसमारंले एसमारंला एनेझं मारुएबारनामा ए ३ मननै चरत तोधिको उच्पूरगो नि निवाथे पाबोवासेज जतनावंतजतीसम्साची मजमृषा यः
आरंनेयतहेवय नाविमज मएंपवत्तमाएंतु ॥ नियंनिधजयंजई ॥ २१॥ सच्चा तहेवमोसा चनगुप्ति स. सत्यामृषा बचनगुप्ति न तिमन च० चोधी अन् असत्यामृषा चवचनगुप्ति च० च्यारप्रकारनी २२ सन् एनेकोई य । सच्चामोसातहेवय । चनुन्नी असञ्चमोसाय । वयगुत्ती चविहा ॥२२॥ मारे ए समारंन , आलंमा एमकहेआरंल तन्नेमजए बचचन प्रबरनतोधिको तु पूर्णे निचरतावे जन्जननायनजनी २६९५ सरंले समारंले ॥ आरंलेयतहेवय ॥ त्रएनेविषे वयंपवत्तमाएतु । नियंनिधंजयजइ २३||
For Private and Personal Use Only
Page #234
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हवे ३ गुप्तिकहेले ग नुत्लोरह्योतिहां बेसे न निमन तु सएनिहां मुम्षप्रमुप नखंघवाने विषेप बिसेषनुषंघबापांचे शंडिय ||अ-२५
गोनिसीयोचेव ॥ तिहां तहेवयतुयहऐ। नलंघएं ॥ पक्षघएं ॥ इंदियागयनीवली न्यापारनेविषेकायगुप्तिमास-पोने मारवामुरीज़पामेस. परपाहे संज्ञाकरपी मुवीनुपमावेआपोनेमारया सुरी का एत्रपानेविषे कायापरजुंजणे ॥ २४ ॥वरनावे संरत्नसमारंले ॥ आरलेयतहेवय जपामे त• तेमज कायंपवत्तमाएंतु रतावतो नि निवरताचे जतनाचन जती २५ ए ए पांचसमनि चच्चारित्रनावस्ती प० प्रचबिचाने गुन गुप्ति निनिचर्ना थको नियतिधजयंजई ॥२५॥ एयान पंचसमिईने । चरपास्सयपवत्तो गुत्ती नियत्त बचानेविषे कही अ. अशुल मनवचनकायायीस सर्वथापकानिय एएआर प्रवचन माता जेजेकोई साचे मनेआचरेसा. ऐवुत्ता ॥ असलबेसु सचसो ॥ २६॥रताचे २६ एयापवयएमाया । जेसम्मंत्रायरेमुगी ॥ घुसेग्नेशीघ्र स. सर्व संसारथी पियूकाए पकिन सायु स्म तंकऊ९२३ शनि आप्रवचनमाना अध्ययन समुं संपूर्ण सेविप्पं सबसंसारा ॥ विप्पमुच्चई पंमिए ॥ तिबेमि ॥२३॥ शनि अपवयरामायाप्रश थयु. २४ चोचीसमें आरमवचनमाताकहीने ब्रह्मचारी समीपेमिसेतेमाटे जयघोष ब्रह्मचारीनुं मा ब्राह्मणानाकुलने विषे चपनो आसनब्राह्मणा | | २७० यणंचोवीसमंसंमत्तं ॥ २४ ॥ २५मुंअध्ययन कहेने माहणं कुलसंनून ॥आसिविप्पो
For Private and Personal Use Only
Page #235
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न | म महायसवंत जा० अतिहेजग्न करेने जा मोटाव्रत जम्ननेविषे ज जयघोष एचे नामे साफ १ २ इंदियना स अ२५
महायसो ॥ जायाजे जस्स जन्नंमि ॥ जयघोसेत्ति नामन ॥१॥ इंदियग्गा महने निन् वसनो करणहार मन् मोक्ष मारगनो गा चालणहार मोटामुनीश्वर गान्ग्रामानुग्राममतें रीमविचरत्तो थका पन्आज्या बाद मनिग्गाही । मग्गगामी महामुएी॥ गामाएगामरीयंतो॥ पत्तो या बाएारसी नगरीने बाहिर २ बा चाणारसीनगरीने बाहिर जन्नद्याननेविषे मरू मनोरम एवेनाम फानिषि धानक पाटीलपादिक
पारसिंपुरं ॥२॥ वापारसिए बहिया । नद्यामि मणोरमे फासुए सएीधे संथारे ॥तन तिहां वा वासरहिवू पामीन ३ अ. हवे तेणेंका पुरु नगर तन्तेनेविषे ब्राह्मणा विविजयघोष एवेनामे बवासमुवागए ॥३॥ अहतेणेव कालेएं । पुरीए नबामाहरो । विजयघोसेनिनामेएं ॥ जर जग्न करेले के वेदनो जाए ।त्य हवे ते तर निहां विजयघोषना जाने विषे जयघोष मा मास षमाने पारणे . जन्नंजयई वेयवी ॥४॥ अहते तब त्यागारे ॥ नामाअणगार मासरवमएपारणे॥ विविजय घोषना जज्ञनेविषे लिलिझाने अर्थे ननिहां आव्यो ५ स लिसाने अरयमाव्योतेनेत निहांजज्ञनेविष २७१ विजयघोसस्स जन्नंमि । लिस्कमहा नवहिए ॥५॥ समुचियं तहिंसतं
For Private and Personal Use Only
Page #236
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२१२
जा जागनों करणहारघोष प निषेधे नत निश्चेनन्नहि देचं ने तुऊने लिष्यालिन्हेलिषुजा जावे अविप्रविनाबी घरे अ-२५ जायगोपमिसेहए ॥ नादाहामि तेनिरकं ॥ लिरकू जायाहि अन्नने ॥६॥ ज जे वेदना जागा वि विप्रए ज जज्ञने अर्थ एजे जेविप्रजोरजोतिषशास्त्रना अनअंगविपनो शास्त्रजे पर्मशास्त्रनातेनो जेयवेयधिले विप्पा। जन्नवायजेदिया । जोऽसिंग विनजेयधम्मालपारगा॥ जागरुपात पारगामी जे जे समर्याए स संसारसमुयी नुपरयाप परजीवने अने आपणाअात्मानेतारे नेन्तेने अन्न
जेसमन्बा समुहंतु। परं अप्पागमेवय । तेसिं अन्नमिवंदेयं ॥ लोग अहो साधू स. एअनमनवंटित के रससहित ८ सो ते जयघोषनामा यतीए एगमाजा-जागनेकरणहारे अने महामुनीनेन ते | लोलिरकू सबकामियं ॥८॥सोतबएवपरिसिहो ।कारेंनिषेप्यो जायगेा महामुपी । नविरु |मुनीक्रोधनेवसेपातोनहीं न संतोषानन्मोचनागवेषणहारहर्वे मुनि बोटयान अनने अर्धनहीं पा० पाएगीने हेनने ननिर्वाहने अतेविन
छो नवितुम्बो पणनेपानुत्तमचगवेसन ॥६॥ नन्नई पापाहेजया अर्थेनहीं नचिन्निविहणाय नपदेस कहतानची तेन्ने विजयपोष वि० संसारथी सूफाववाने अर३० एअागले कहसे नेम वचन बोलताहया न० नथी जाणतोबेज्वेदमाहे| २०२ वा। तेसिंविमुरकणगए। मंचयामबपि ॥१०॥ नविजागसि वेयमुहं
For Private and Personal Use Only
Page #237
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नः || न० नथी जाए तो जं जानोजे प्रधान नन्नरुत्रमाद्देप्रयान पूरणे जंजेवलीधधर्मनु या वषि प्रधान ११ जेजेसमर्थनए अ.२५ | नविजन्ना जंमुहं । नस्कत्ताए।मुहंजंच ॥ जंच यम्माएगवामुहं ॥ ११॥ जेसमा सब संसारसमुऽथी परवा पन्परजीवनें अन् आपणाआत्मा ते ते वि० जाएाता नथी अ. जोदूं जांगडे तन्नोई कहे १२ . समुतु। परअप्पाएमेवय ॥ नीपरें नतेतुम्मं वियागाहिं ॥ अहजाएासित लणं ॥१२॥ न० ते मुनिदै प ननर अ० देवाअसमर्थवतो तजशनापामानेविषे स. परिषदासहिन पं० बेहाथ जोगी पु० पूढे, तेमन्महामु तस्स रकेवपमुस्कच ॥ अचयंतो तहिंदिन ॥ विप्र सपरि सो पंजलिहोन ॥ पुचइत्तमहामुणिं नीने १३ वे वेदमाहे चक पूर्ण मुर प्रधानले मुझनेकहे बु. कहोजन्झनाजे प्रधान ने सुझनेन नावना प्रधान कहोचूकहाँ. ध धर्मना नुपायजे ॥१३॥ वेयाएंचमुहंबूहि ॥ ब्रूहिजन्नागजमुहं। नस्कत्ताणमुहंबूहि । बुद्धिधम्माएवामुही १४ स समर्थक्लप संसाररूपीयास(पे परजीवनें अने आपणाभात्माने अर्थंए एपूर्वेकह्याचे ते संदेह साद साधूकही ॥ १४॥ जेसमद्यासमहंतु । सऽथी परअप्पाएमेवय। एवं मेसंसयंसवं 'सव सर्व साझकहय गबती १५ बेदअमाराकेवाअन् अग्निहोत्र सुः सुषप्रधान एवाचेप्रमाए। बोलजः जनतेसंजमपूर्वअग्निहोत्रक नेनीअर्जिन- २७३ पुजिने ॥१५॥ अग्निहोत्तमुहावेया बेजेनेविषेजनचीवेयगामुहं॥ नरकत्तापंमुहंचंदो तिपिसाप विजन
For Private and Personal Use Only
Page #238
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२७४ चं चंद्रमा
न. नन्नषत्रमाहेप्रधान ध० धर्मनापरूपकमांहे कान्का सबगोत्री श्रीमहाबीरमधान जजेम चंद्रमाने चिव्यहादिक तिष्ठेले पं。बेहाथजो- अ. २५ धम्माणं कासवोमुहं ॥ १६ ॥ १६ जहा चंद्गश्या चिवति पंजलिनमा ताथका वं॰ गुएास्तवताथिका नन्नमस्कार न०प्रधान विनय करवे करी हाव्हरए हारबतानिष्ठेने नेम रिषलदेवपए। पोते देवताना) अब्जज्ञत बंदमानमंसंता ॥ नुत्तमं माहारिणो ॥ १७ ॥ इंद्रादिक सेवा करे (प्रजाए त्वना जाएाबे ज• जज्ञनाबादना कितत्वज्ञान अविनीने सं• संपदा तेना जाय मू० मोहवंतत्र्मज्ञान सन् स्वाध्याय मनेत तपत्र गाजन्नवाई करणाहार विद्यामाहा संपया ॥ मूढासझायत्तवसा एकरखे जांए लालस्मराषेकरीढांकी इ० अग्निनीपरे विप्रवे १८ हवे । जे० जेकोई लोकनेविषे ब्राह्मण को ० अग्निनीपरें म० पूजनीक
लासबिन्ना इवग्गिएणो ॥ १८ ॥ सुपात्रनुरूप जेलोएबलबुत्ती !!
जब जेम अग्नितेम
अगिवामहिन
स• सदाए कु० केवलज्ञांनीकहरूं जेने ब्राह्मणा तेने व ० अ करूं ब्राह्मए १९७ जो० जेयासक्त न होए मा सयाकुसलसंदिवं त्वयं बूममाहणं ॥ १२ ॥
जोनसबागंतु
जहा ॥
| स्वजनादिकने स्थानकें। पब्बीजेथान के जातोयकोन• बेदनकरेन्प्रथवा प्रेवर्जा रुरतियांमेतीर्थ करना वचनने विषे तं तेनेामे करूं ब्राह्मण २७४ वीने पवयंतोनसोयई ॥ सेतोयको रमईत्र्मद्यवयांमि । तंबयंबूममाह ॥ २०
For Private and Personal Use Only
Page #239
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नः || जान्सुवज• जेमसमास्युंफ० वा सुवर्णानुं ज०जेममोटा अर्य के तेमजेब्राह्मएाने नि० टाल्युं ममेल पा० जेम अज्ञिएंकरी - २५ २३५ जायरूवं जहामचं सुवर्णा सरषोमोनोमोटो जे
निर्द्धतमंखपावगं ॥
वर्षानुम
| जाएगीने
तपें करी कर्ममल टाल्यो बे रा० रागदोषइहलोक | करूं ब्राह्मण २१ त तपसीडुबली दन्ईडीनोदमएाहारयन्न रागदोस लयाईवं लयरहिततेनेामे तवयंबूममाइएं ॥ २१ ॥ तबस्सियं किसंदतं ॥ अवचि पचयरहित मं मांसलोह सुन्सुवृत्ति पांप्योचे स्वस्वपए नि。स्व होए तं० तेनेत्र्यमे करूं ब्राह्मएा २२ तन्त्रसजीवने बिसेषे यमससोशियं ॥ सुवयंपत्तनिवाएं । तंवयंज़ूममाहणं ॥ २२ ॥ नसे पाविसंसंषेपे धान्यव्यादिक जीवने जो० जेहो नहिं ति मनवचन कायाएंकरी तं. तेने अमे करूं ब्राह्मएा २ याणिन्ता ॥ संगहेएाय थावरे । जोनहिंसई तिविहेां । तंवयं बूममाहणं ॥२३॥ को० क्रोधना उपल साथी मानज० जोअथवाहास लोन्सोलयकी वा० अथवालयधिकी मु० मृषान बोले ज० जे तन्तेने प्रक कोहाया जश्बाहासा थिकी लोहाचा जड़वालया ॥ मुसंनवयई जेन ॥ तंवयंममा ब्राह्मणे २७ चि०सचित मनुष्य अन् अचितसुवर्णादि ० यो अथवा जो निलिमादीयूं जे तंतेनेामे के बा० २०५ हां ॥ २४ ॥ चित्तमंतमचित्तंवा ॥ अप्यंवा जश्वाब ॥ निगिएह प्रदत्तंजेतंवयं
२५
For Private and Personal Use Only
Page #240
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नुः|| दि० देवता मा. मनुष्य तिर्यच संबंधी जो जेनसेवे मैथुन मममकायाएं बचनेकरी त नेने अकझं ब्राह्मए १२५ २७६ दिवं माएस्सतरिरकं । जोनसेवईमेएं ॥ मगसाकायवक्केणं । तंवयंबूममाहणं ॥
| २६ ज० जेम पद्मकमलपाणी जान्नुपर्नु नो नक्षिपाए वा पाणिएंकरी ए एवं कमलनेडिष्टीने अन्नलिंपाएकाम तन्तेने |२६॥ जहापन मजलेजाय ॥ नोवलिप्पइवारिएा ॥ एवं अखित्तकामेहि। लोगेकरीतंवयं अमे कक्षं ब्राह्मण २३ अन् अाहारादिकने मु० कोईनुकारजकीयाविनाआहार अन् घररहित अपागार असुवादिकाव्यरहि बूममाहए ॥२७॥ अलोकयं मुहाजीवि ॥ लिएतेमुघाजीवि-अएगारंअकिंचए ॥ त. अन्परिचयरहिन गिग्रहस्बसंघाने तथागृहस्रना रहित तैने अमेंकहं ब्राम्हणा ॥२७॥ जन्गंगीने पूरपूर्वनामानापिनादिकनेसंन्स असंसत्तं गिहरेस ॥ विषेसंबंध- तंवयंबूममाहणं ॥२८॥ . जहित्तापूबसंजोगं ॥जोगसंघ धीना मापपानालेनासंजोगसंबंधीचं नाई बांकीजो जेयासक्तनहाए एक मातापिनात्मार्यादिकने नं तैने अमै केहं ब्राह्मए पापस्सना नाइसंगेययवे । प्रमुषनासंबंध जोनसद्यईएएस । तंवयंवूममाहां ॥ २९॥ परुवा नाबंधनडे सन्सर्ववेद ज वली जागतेपा० पापकर्मना हेतुबेननएतेजागादिक ता० त्राण नमाफि० जेपसुधादिकशीतों चामवापबेने ||२७६ सबवेया। जवच पावकम्मुपा ॥ नतंतायंतिपुस्सीसं । पारने कम्माणिबिलवंतिहिं ॥३०
For Private and Personal Use Only
Page #241
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२७७।
न जागादिक त्रासरगनाएअनेवेदनाजेजाण ते सपात्र नामस्तक मुंभवेकरी अमपासाघु नाटकार लगावेकरी नन्नएमुनिअट अ-२५ | नविमुहिएसमगोनए न कारेबंलएो । ब्राह्मणानए नमुनिरन्नवासे बीनेवासेकरी कुछ लगवावस्त्र पेरवेकरी नन्नहोइ तापस जेम समणादिकास रागडेषरहितसमनापो सन्त्रमणासाधु बंब्रह्म
ए॥ कुसचीरेण नतावसो ॥३१॥ एतेकेडे३१ समयाएसमपोहोई । होए बलचे चर्यपालवेकरी ब्राह्मणाएं ना ज्ञानेकरी मुनि होए तन्तपेकरी होए तापस ३२ क ब्राह्मणानी क्रिया ब्रह्मचर्य रेगबलपो ॥ नागोपायमुएीहोर ॥ तवेहोश्तावसो ॥३२॥ कम्मुणा बलपोहोई पासवेंकरी क हापमाहे शस्त्रश्त्यादिकतेषत्रीनी करणी च० वेपारकरचे वैश्य होय. स मृत्यकर्म करे वे भड़क सेवा ब्राह्मणाहोए. कम्मुपोहोश्रकतिने। करीपत्रवइसोकम्मुरगोहोइ. सुद्दोहवश्कम्मएा शकरीब्यादिकरये एक ऋहिंसादिक भगटकरतो हबोजु तत्वनो जाए। जेजेणेकमैंकरी होए केवली सन्सर्वकर्म रहितनीपरे विन्शीप्रमो ॥ ३३ ॥करीसएएपानुकरेबुड़े ॥ सर्वज्ञ लगवंत जेहिहोसिपाय॥ सबकम्मं विणिम कापहंचे तेने अमे कक्षं ब्राह्मा ३५ एकएपूर्वेकह्युते प्रकारेगुन्अहिंसागुपादिक मलए ब्राह्मणानन्भधान सेन्सेस २७३ कुं ॥ तंवयंबूममाहणं ॥३४॥ एवं गुणासमाजुत्ता । सहितंजे जेलवंतिदि जत्तमा ॥सेसन
परय
For Private and Personal Use Only
Page #242
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मंगटकीफ'३७
||सएसंसारपीनुधरवा परजीवने आपणाआत्मा ३५ एक्संदेह टालेयेके . वि विजयघोषनामा ब्राह्मण सन्साचेम अ.२५ २७० मुबासमुझनु । परं अप्पागमेवय ॥३५॥ एवंतुसंसएबिन्ने । विजएघोसेयमाहणे। समुदा
नेजतीनावचनने नहाने तिवारपदी जन्जयघोषमहासुपीने३६ तुसंतापायो वि पिजयघोषनामाइ एअागले कहिसैनेमकहे छेकबहाय यत तंतु ।जयघोसंमहामुएी ॥३६॥ तुबोयविजयघोसेय। इसमुदाशकयंजली। माह जोमी मान्ब्राह्मणानिमनएनिमय | सुन्सोलनीक मुझनेनुव्देषामधुनुपदेस्युतु नुमेजन्जनाएहारजजज्ञनाकरणहारतुर तुम्हेवेदनाजाएगे गांनंजहाल्नूयं पासून सुबमेनवदंसियं ।। ३५॥ तुजईयाजन्ना तुझेवेयपि विळे । । जो० ज्योतिष शास्ननाअंन्ग्ग ना तुम तुम्हे धर्मनापारगामी बोतु ३० तु. तुम्हे समर्थगे सन्संसारयीनहरया प० परजीवने जोसंगविनेतुने । जापाजो तुनेधम्माएापारगा ॥३८॥ तुझेसमगसमुझंतु ॥ परंअप्पाअनेआपणाआत्माने नंग्नेलपीअनुग्रह करे अम्हने मिहेलिस तूं लिदामांहे नत्तम ३९ नानपीकार्य मयोजन मन्मुझनेत्नि
मेवयं। तंमएगाहंकरेअम्हे ॥लिरकेएलिरकूजत्तमा ॥ ३० ॥ नकामशनिरकेएं। काएं खिशीघ्रानिच्घरयीनिकली निन्दाखीएविप्रपा पहलोकादिकलयते आवर्नननीपरें घोच्यावर्तनजिहां एवात्मयापर्तपोरौइसंसाररूपि २७८ |विलिरकमसदिया । मात्ममिहिसिलयावत्ते ॥ घोरेसंसारसागरे ॥
यासमुडन विष
For Private and Personal Use Only
Page #243
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नन् कर्मनानुपचयरूपलेपहो होश्लोगनेविषेय लोगरहिननो कमैंसीपाएनहीं बंधाएनहीं लोन्लोगी होएतेल संसा अन्लोगरहि अ-२५ २७०|| बलेवोहोइनोगेस ॥ अत्मोगीनोवातिप्पई। लोगीलमश्संसारे । अत्नोगी पिप्प
कर्मबंधमुकाए ५१ नु० नीखोअने स्टुकोबेनाध्या गो गोल म. माटीना दोगविद्वेपणाच्आफतारुनीते जो जोनी मुच्चई ॥५१॥ नल्लासुक्वायदोबुढा । गोलुयामडियामया ॥ दोविआवमियाकूमे । जोनुलो एनेसोच्नेतिहांलीनेसागेयतगे २ ए एम बिलगें उ०पृष्टमेघावंतजन्जेनरकामलोगनेविषे संपट विल्कामत्नोगयीनिवनिम्ना जन सोतबलग्गई ॥५२॥ एवंलग्गति उम्मेहा। जेनराकामलालसा । "विरतानग्गनि ।ज जेम सन्सुको गोष ४३ एएपीपरेने विकविजयघोषजन्जयघोषजनीने समीपे अ जतीपासैनिक दीक्षाप्तीधीय. हा सक्वेयगोलए॥४३॥ एवंसो विजयघोसेजयघोसेस्संअंतिए । अएगगारस्सनिस्ततो ॥ यम्म अहिंसादिकधर्मसात्मली अन्मयान रबरचपावीने पू. पूर्वसांकर्म संसंनमें करीतपेकरी जन्जयघोषाने विजयघोसोच्चा अफत्तरं ॥४॥ खवित्तापुर्वकमाई । संजमेण तवेराय ॥ जयघोस विजय | सिन्मोक्ष पाम्या अप्रयांन २० श निश्रीसुधर्मास्वामीजंबूमने कहे हे जंबूजेम में ग्रीमहावीरदेवसी २०० घोसा सिछिपत्ता अएत्तरं ।। निबेमि ॥४५॥ इतिजयघोसविजयघोषनामाशयएएसं०२५
For Private and Personal Use Only
Page #244
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न सालप्युंहतुतेमकं तुजपते कहंधु ३० इनिधीजयघोषविजयघोषनामा अध्ययनंसंमत्तं ॥ २५॥ पंचीसमेअध्ययने | + रसविधसमाचा अ२६ २८० साधुलाव ब्राह्मणानागुणवएव्यावे तेतोदसचिघसाऱ्यांनी सामाचारीएलाव साधुपएं होएनेमाटे २६मेअध्ययने १०. रीवविजे सान्सामाचारि साचेमनेवाचरबीते ससर्वषविसेषेमूकावपाहारी जंजेसामाचारीने सापु
नितिन सामायारिं सामाचारीके पच्चरकामि ॥ सबपुरकविमुरकए ॥ जंचरित्ताएं निगंथा ॥ ति स्या संसंसारसमुड १ हवे १० नोनामकहेले पपहेलीसामाचारील्यान्यावासकी एyनाम बि. बीजीहोइनिसहियानांमे आ. त्रा संसारसागरं ॥१॥ . पदमायावसियानाम ॥ बिश्याहो निसीहिया ॥श्रा आपूछपा एy नामयच्चसीत्रीजी चा चोथी परिपूबएाएy नाम २ पंपांचमी बंदएyनाम श्चाकार वस्ती बाबही ससा पुवायतझ्या ॥ चनजीपरिपुचएा ॥२॥ पंचमीबंदपानाम ॥श्वाकारोयबच्चन ।सत्ततमी मिथ्याकार ततहतनुं करबूंबली आग्मी ३ अनुगनुलोपावो तेनवमी द० दसमी जन्नपसमीपेसंपदाए०ए| मोमिन्त्रकारोय ॥ तहकारोयअनमो ॥३॥ अशुचाएनवमं ॥ दसमा वसंपया । एसा १० दसप्रकारना साफ सासामाचारि पच्कही गजाँया नग्वानाअवसरनेविषेत्रान् अवश्यएमकही अबस्यके ||२८. दसांग्गासाझए ॥ सामायारिपवेश्या ॥४॥ गमएएआवसियंकुधा ॥ तांअवस्पकारजलेतेमाटेनुर्छ ।
For Private and Personal Use Only
Page #245
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
२८१
गयानकनेविषे याचे निवारें कु-काहारजने बंधने व्याव्योचे आन्गुरुनेपूढे तेपूनणाकहिएं सब पोताना कारजकरघाने पन्अनेरासाचूना कारजन गोकुरीनिसीहियं । न्यापुचएगा सयंकरणे विधेहे पूज्य अमकर करूंते प्राप्तबणा परकरणेपमिपूज करवाने विष प०कारजकरतीवेला बीजीवारा बंगुरवादिकसाधर्मिक दयाहारादिकडव्यजाते ३० पूजनीक गाये ने करोयच्वस्तीमाराकारज
पा ॥५॥ गुरूने पूजानकरे बंदणादवजाएग॥ करी चाकारोयसारो ॥ नेविषेमंत्रादिक अरंथदेशने 'मित मिश्यानिफलकर मिथ्याफुकदेवेकरीयातिनि नीनिंदानेविषेन गुरुनायचनतहनकरी प.गुरुनावचनं अ० अनिन्दमयंन । अपगारकरे मिनाकारोयनिंदाए अतिचारादिदोषरूपपोना तहकारोपमिस्सुए ॥६॥ नेसालली अझहागु थावी गुरुनाथचन सालली अन् गुरुचारिक समीचे रहिवोनन्सूत्रार्थरूपसंपदापामवात्मपीए एगीपरेंजखेपांचसहितएतलेंसान्सामाचा रुपूया ॥ अन्ननुवसंपया ॥ एवंऽपंचसंजुत्ता ॥ सामायारीपवेश्या॥७॥ री पर कही हवे दसमी सामाचारीरो वएविडे पुत्र दिवसनापहिलापुहरनाच चोथालागनेविषाँ आ सूर्यनगेबने लं वस्त्रादिकत्लप विस्तारसर्वत्नविनव्यदिनरात्रिसंबंधिनो पुधिमिचजलागे । एमालेबेघणीनेविषे आश्चंमिसमुछिए लमयंपनि गरण नेविषेप परिले चांदीने वाली ला तिवारपनी गुरुने ८ पु दिवसनापहिला पुहरनापं बेहापजो किंकित्युकारजकरबूमा में ||२८१ लेहिता हीने वंदित्तायत गुरु ॥८॥ पुबिधा पंजलिनुको मतथिको किंकायबमएशहं
For Private and Personal Use Only
Page #246
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न पकिलेहएकीघापची अवसरनेविषेशंवाचु
लंढपूज्यच्यात्मानीनयापरसाधूनी वेयावचनेविषे समझायकरयानेविषेएवे||अ.२६ २८२|| तुमारी आज्ञाएं आत्माने जोम्योपेरचोनेनेविषे चनिन इनेलते॥ यावच्चेवसाए ॥ ॥ चानानविषेनियात्माने जोनबूंबांबुचर बेचेयावचनेविषेनि अात्माने जोमये कहो काच्चेयायच करचोप्रकिसामनाभ्रेषपदारहितयकोवेयावचमध्ये सन्स
वेयावच्चंनिनुत्तेए। कायबामलिगिलायने । आहारविहारपणाचोखत्र्याचे सझा सापानि मेरवेकरी ठिपणारहित सन्सर्वस्वनीमकावणहार एनीआज्ञामागेहवे एडवांनाकरतेयके । धिकारकेडेदि दिवसना ५ लाग एवानिनुत्तेणं सशायकरे सबहरकविमुरको ॥१०॥ समुचयदिनलांगानोन दिवसस्सचनुरोलाए कु. करेसायुविचनिपुएरासाफ ल तिवारपरीमपानकारी करतव्यनेकुरुकरेअयवानुतरकहतां करीज्ञानादिककर्तव्यनेकरे दिवादि कुधानिकू वियस्कएो ॥ ननुत्तरगुपोकुद्या ॥ आगलेगुण दिगलागेसुचनरुषि नालागनेरिषेचाच्यारसामान्य व्यकेने पमयमपोरसीएं सप्लायकर बीन्बीनें पोरसीएं ध्यान ध्याइ नबीजेपोरसीएं गोचरीकरे J॥ ११ ॥ पण धपुहरनाफर्त पदमं पोरसीसमायं ॥ बीयशाएशियायई ॥ तश्याएलिरकायरियं पुज्वलीचौथीपोरसीएं सनायकर ए ४ पोरसीमध्येयेयायचादिकना प्रयोगनपरे तेपणा आठ आषाढमासनेविषेवेगपो||२८२ पुगोचनबीए सभाय ॥ १२॥ करतेनघमीगाथाएं कहीं मुफ्यूंटरपोरसीनुमामके आसाढमासे रसीपहेली
For Private and Personal Use Only
Page #247
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्र.२६
न तयापावली पो० पोसमास च्यार पग पोरसी चि. चैत्रमासे अने श्रासोजमासे नित्रणपग होए पोरसी १३
उपया । पोसेमोसेचनुप्पया ॥ चित्तासोएसुमासेस ॥तियंयाहवईपोरिसी ॥१३॥ अएक अंगुलबर्नयाघटे सब्सानअहोरात्रीप पयवासे चली ० बेअंगुलाबपाचदिपमवायी पोसरूदपूनमरूपीवघेहा०माहा मामास
अगुख सत्तरत्तेां ॥ परकेपण्यअंगुलं ॥ वहुए हायएवावि ॥दिपमपायीचति मासेए। पूर्पोचच्यारअंगुलबर्षे तयाघटेहबेजेगोमासेतिथि भाषाढनाअयारापपवामाने विषेतियि ललाइचावदि का कबदीवली' || यचरंगुरु ॥१५॥ घटेते कहे जे आसाढाबशखपरक ॥ पटे लवएकत्तिएयपोसेय॥ | फ० फागदावदो वैशाषविद ना जाएाया ३० अहोरात्रिमा एकअहोरात्रि बीएनलेबेमासे कह्यु जेजेवमासाषाढावपाएत्रामासे फग्गुणावसाहेसुय ॥ नायबानमरत्ताने ॥१५॥ एकनियिघटेएम जेगमूक्षेत्र्यासाढ॥ सावणे पोरसीमुंबअंगुप्तअपकोहोएतिवारे पात्रनी परिहा करची एतले पोए पोरसी०८+ लाश्योओसएत्रीजात्रीकनेविषेपोरसीपनिदेह || बहिं अंगुलेहिं ॥ परिखेहा ॥अचमी विश्यनयंमिडीयार्षिक तइएदस अचहिचाना
पोरसीअंगुलम र रात्रीनाप्पांच्यारत्माग लि साफ करे विविचक्षणा ततियारपळी न प्रधानगुणकारी करतव्यने करे | अधिकगयारत्तंपिचनरोलागे ॥ लिरकूकुद्या वियस्कएो ॥ तनुत्तरगुणेकुद्या॥ राश्नागेरू ||
For Private and Personal Use Only
Page #248
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२८७
हवेकोगमासकेतसीघटीदिनमानयंत्रमध्येकैले दिनमानपोरसीपगमानयंत्रदिन तेजवाफेरोवघे तथाघटेएपगबाया
अ.२६
लरीएते ए यंत्र. पीमान आषाभावालाहाबा कात मार्ग पोष माघ/फा क्षेत्र वैशाज्ये पगमानजना आ. श्रा. मा. न्या. का. माग पो. माह[ फा थे . ज्ये विदसातम
N३५॥ ॥ ३१॥ २९॥ २३॥ २५॥ २४॥ २६॥२०॥ ३०॥ ३२॥ दिसातमाशाश /१/३ / १२/२३/२४] विदअमा- ३५/३५ ३३ ३१ /२००२७ २५ २५ २७ २० ३१ ३३ विदामा २६२१०३।२/३।६।३।१०/३॥९०/३०६/३२।३।१०२।६ सुदसातमा ३०॥ ३२॥ ३०॥ २८॥२६॥ २७॥२५॥२७॥२९॥३१॥ ३३॥ शुदसानः २७२।११।३।३३।
७
/३१शलशप सुदपूनम ३६ ३०३२ २०२८ २६/२० २६ २८ ३० ३२ ३० शुदपूनम २४ २८३ २४ २ २ २० रात्रिघटी आ. पा. मा आमाकान मा पो माघीफा के ज्ये पगमानयं आ प्राव. माआ. का माग पौष माहा फाञ्च व न्य। विदसात. २५॥२४॥ २६/२८॥२०॥३२॥ ३०॥ २५॥ ३३॥ ३१॥२९॥ २७॥ विदसात EN७/२१/३३५/३ाला ||३३१/३/२०१] विदयमा २५ २५ २७ २० ३१ ३३ ३५ ३५ ३३ ३१ २९२७ विदअमा २२ । ३।२/३।६/३/१० /२००३०६/५०३ सुदसात्तमा २७॥ २५॥ २७॥२०॥ ३१॥ ३३॥ ३५॥ ३४॥३२॥ ३०॥२९ २६॥ सुदसान. २७ श६/३।२३।७३।१०५/U /11/२।९।२२।११||२८५ सुदपूनम २५ २६ २७ २०३२ ३० ३६॥२४ ३२ ३७ २८ २६ सुदपूनम २।६।२।१०|३४३८||६|धावा६/I N० शन
For Private and Personal Use Only
Page #249
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobaith.org
Acharya Shei Kailassagarsuri Gyanmandie
| चकफागपाचैत्रबैसाषएचौथात्रिकनेविषे । रारात्रीनाच्यारत्नागने प८पहिलीपोरसीएंसनायकरे बिबीजीपोरसीएघ्यानध्याई अ२६ चनुकवि ॥१७ ॥ पोरसीमापायी.। विषे रात्रि पदमपोरसीसशाय॥ बियंशाएशियाय
तन्त्रीजीपोरसीइनेंशनेबुटीसूके श्राववादीए अवधारो च चोपा पोरसीएचस्तीपणसम्मायकरे रात्रियोरसीजएाएतेकहेचे जे जेम | ई । तश्याए निद्दमुरकंतु ॥ चचिलुछो विसशायं ॥१८॥ जेनेई| नघत्रपांचाळेजेकालनेविषेराषिरानीननक्षत्रनेनेनरूत्रना आकासचोथात्लॉगनेविषेसं आचेपांमेबनेपोरसीजाणवीस सप्तायपकीपात्तसका जयारतिं । नरकत्तंमिनहचनुशाए ॥ संपत्तेविरमिद्या ॥ सशयंपने सकासंमि | नेविषे १५ तंतिमहिन बस्ती न नषत्र गआकासनेविषेचा चोथै लागे सेन्से सेषभावेपके पाबलीपोरसीजा ० विरतिपणे ॥ १८॥ तंमेवय नस्कत्ते गयएर चनलागसाब सेसंमि। बीते वेरत्तियं| _काकाल कहियेतेनेपपरिखेहीने मु० साफ सहायकरे २५ हवेवली दिवसर्नुकरतव्य पुत्र दिवसना पेहेलापोरसीनुदिव | पिकासंपमिलेहिन्ता मुगीकुया ॥२०॥ विस्तारीने कहे जे पुबिलमिचनलागे ॥समापहे| सापोरसीचच्चोथात्नागनेविषेपेली यमीनेविषेपनिखेहीनेलच्चस्त्रादिक गुरूनेबांदीने सम्झाय करे उषधीमूकावेसशाय २१ २८५ पहिलेहिन्तागलंकगं ॥ नुपगरणने गुरुवदितुसशायं ॥ कुचारकविमुस्कयां ॥२१॥ ||
For Private and Personal Use Only
Page #250
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
पोरसी
। विषे
लायांप
उ. पो. पहिला पुह्रनो च० चोयालागने विधेएतले बं० बांदीने नवतिवारी गुरुनें यानिबर्तावीनें का० सझायनाकास लान्पात्रादिक प्र. २६ २०६ पोरसीए चनलाएं वंदित्ताएं तनुं गुरु । अपनिकमत्ता कालस्स ॥ लाजनने एषघवचन जातिवाचक जाएावोपरि ५० पढ़िकं मोहपतिनु परि जेहाने पपले परहे गुलाने मिलेहए ॥ २२ ॥ जेहीने २२ मुहपत्तियंपकिलेहिता । परिसेहिधगुगं । गुजंगलश्यंगुलि ह्योछेत्र्यंगुलिनं जेणेंसाधुएं | वन्यस्त्रनेपनि लेहूं २३ हवेवस्त्र परिवानिविध कहेने बच्चे चीस न० बस्त्रचंचौ राधे धिक व्याकराय मन्चनावसो २ न
गुलगुलिय
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जे ने साधुगोडापरिहापी बच्चा परिने हए ॥ २३ ॥ पाकहिये जे २.० नरिंन्तुरियं ॥ पुताव
| सामतोथईने पनि लेहए। करे पूर्व घुरनायी
प० परिहारे ४ ए ४ पईने प्रथम परि सेहला येईने व बस्त्रने एक एमतो. ते डटीजायापती यमेव ॥ बेसावे हेपापी परिखेहेतोविश्यं ॥ बीजी परिखेहा जीव चढो जाएोतो प• बस्ने थोडूंषंधेरे नञ्चाहवेत्रीजी परिखेहणा पु० चसी पपरेतांन नतस्यां तो प• वस्त्रने पूजेजे ६ एत्रएाचीके ६ पनि लेहगा जाएावी अन्बस्त्रने तथा सरीरनेनीच पप्फोद्यातईयंच ॥ पुष्णोपमद्येद्या ॥ २४ ॥ नमस्त यी परिवहणा प्रसन्न कलेजे माञ्चावियं नहीं अण्वस्त्र ने मामले नहिं करलीन करे श्रन्थो एवस्त्र एापारिले नराधे कुंडूंनी डूंत्रीघर | बढपूर्वमायानुंठमहं कही नेने त्र्यबकहि २८६ नीए चमकारे नहीपूर्ण बप्पुरिमानव खोमा ॥ वेलेमसस्त
चलिय ||
एफबंधि प्रमोससिंचैव ॥
"
For Private and Personal Use Only
Page #251
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२८०
न नकरेपषोमा पा सादिके जीवनुचिबिसेषसोधन करेएतसे जीवदेघेतोहयेतीनपरनतारे निर्दोष परिखेह या विपरीत तथानुतावती २ पनि अ.२६
फाटकया. पाएीपापीविसोहएं ॥२५॥ गा हवे प्रसस्त उ गणे कहे रे २५ आरनमासमद्दा वद्येय लेहएाकरवीनेआरलमापनि चोखवा मरदवातेसमदा परिवहणाबरजवेवलीमो० नानीचा सेहपातन्त्रीजीपरिचर्जचे ३प बस्नेकाटकवांने बाय देहणाजीवसन्चस्मने मोसलीतश्या ॥ त्रीमान्नीतिलगायूंनमोसखीपनि पफोमपाचनुची ॥पोएापमिलेहणा चन्चोधी विढीचपनुपरेकोपी सकीनेपछि सेहगाकरेतेवेयापमिलेहएाबन्दीएन पञ्चस्माकरुनगाखेतोदोष? पन्यस्त्रसांबूराधीनेप। विस्कित्तावेश्या बन्छा ॥ २६ ॥ परिखेहणाबर्जवी अप्रसस्त कहेचे पसिदिख पखंबलोला । किसेहेनोदोषश्यो वस्त्रनीलूमिकासंघाने राषेतो दोष ३ ए. एकवार आवडष्टिफ़रसीजुएतोदोष अपरिखेहएकरताअनेफप्रकारे पापकिसेरपरजादाने पर एगामोसाएगरुव गा॥ कुंएगापमाएपमाप ॥ कुकरे संकिए गएगावगंकधा प्रमादनुढं थिरंश्त्यादिक ६ अपाचावेयप्रमुष एवंसमस्नपमिलेहएाकरतांसिंध संकानुपनेके ग अंगुलियादिके गायानामुपजोगने अबरपनि॥२७॥ कुकरेतोदोषमननेनुपजोग टालेतेमाटे तेदोष एवं १३ परिखेहरा सदोषीलीएनेहवेपमिलेहपाकेचीकरेतेके
l लेहणाधी नगीनफरे अ. अधीकपएनकरे अनविपरीतपणेत निमजवषी विपरीत करे प. भाग्पदलांगपिस्तेमधे पाए बोलसहितने प्रथम २८३ इत्तरित्तपरिखेहा। अविवच्चासातहेवय ॥पमिखेरणान पट्ठमंपयंपस सिसापिन तेनु निमें
For Private and Personal Use Only
Page #252
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
न|| अ० अप्पशस्त नजवानेाग्पदजंबथी जाएगचाप पहिलेहएा कुछ करतोयको परिखेहएाकरताए । केमि मांदोमांहेकथाबार्तान करे ||अ.२६
अप्पसबाणि ॥२८॥ २८ परिखेहएाकुरातो । तखांवानानकस्वांते मिहोकहंकुए इजएवय जि० देसकथानकरे अथवा देन्दीएकराचे वे० अथवा पंचधागनेवा अनेरा। सं० पोते चांचपी लीए २० पुः पृथ्वीकायान्अपकायतेनुअमि कहया । देड वपचरकाणवाएड नेवांचएीदीए संपबिश्वा ॥२॥ पुढवि मानक्वाए ते वा थायरो व वनस्पनि ५ नन् त्रसकाय प. पहिलंहगा प० प्रपादकरतार्थका बएबकायानोपणाविकाविरोधक होए ३० पुरुपृथवी पान वाने वएस्सई । तसाणं पमिलेहता पमत्तो बएहंपि बिराहने होइ ॥३५॥ पुदवि आ अपकाय ते. अग्निवायरो बच्चनस्पति काय तन्त्रसपरिखेहगा आव नपजोगसहित करतोयकोचाएकायनो नक्काए। तेनुवान वएसई । तसाएं पमितेहएा ॥ आनुत्तो बएहंपि आराहने पणयानुपजोगसहित करतोषको रक्षानो | तन्त्रीजीपोरसीनेविषे लानातपापी गवेषेएसमुच्चेसामान्यमारगमजोगे पहिलानुगनीनाकहीब होइ ॥ ३१॥ कराहारहोए३१ तझ्याए पोरसीए ॥ लत्तपाणंगवेसए ॥पमित्तोनिवारेखन्नमन्नयरागंमि || कारणमाहेअनेरुकोईककाकारणानुपनेबतेबाहारनेऊहयेउकारण वे कोशकमाथादूषयाममुषवेदनामियमचाने अर्थ माशोपचाने अर्धेय ||२८८ । कारणमि समुछिए ॥ ३२॥ कहेडे वेयणावेयावच्चे वैयावचकरयाअर्थमाइरियहाएय सी
For Private and Personal Use Only
Page #253
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|सं संजमपालवाने अर्थे तन्तेमज पान् आनुषानिर्वाहवाने अर्धेषुघाचेदनीमाटेड उठोकारगावसीय धर्मध्याननी विचारणाने अर्थे एडकारणे संजमचाए॥ तहपागवत्तियाए बईपुगधम्मचिंताए ॥३३॥ आहार करे . ३३ नि निग्रंथ सापुद्रवेल कारणेनकरेनेकहेले विधीयवंतनिम्साघची पानाहारनकरे बल अवधारणेना थानक ए. पण अाज्ञानो निग्गंयो विश्मंतो ॥ निग्गंधीविषयकरिध बहिचेव॥ वगगोहिन इमेहिं ॥ अपार नसंघनारनहि से नेहोएआज्ञानो मानगुहार ३५ आ ततकालकसूलादिकमरणांतक रोगनुपनेर्थक नुव्वाघप्रमुस्वनोचपसर्गचप व ब्रह्मचर्यनीयकमायसेहोइ ॥३५॥ आयंके जवसग्गे । तितिरकया मेथके निक्षुधातृषानुपम खत्मचेरगु|प्तीनेविषे पा प्राणी जीचनेनुत्पत्ति घणीजाएीन तपकत्त्याने हेतुएंसंानुपुत्लाव्यानोअवसर जाएगीनेसरीरमूकवानेअ एबकारणे आहार तीसु ॥ पाणिदयातवहे। सरीरखुबेयएनाए ॥ ३५॥ नजेलोयाज्ञाडेतजनांप्राज्ञानोत्नंगनही हवेगोचरी ने मानीविधिकहेले अन् सर्वत्नांमपात्रादिक नुपगरपने गृहीने च इष्टीकरी पमिलहे जाए पन्चत्क्रष्टोबेगानुसूची विन्याहा
अवसेसं लंमगंगिशा। चस्कूसापमिखेहए। परमह जोयगा। विहा रने विहारनेविचरे मु०साधुआहार कीघापरी ३६ चम्चोयी पोरसीनविषे नि अलगा मूकीने ला लाजनने सब सशायने ततिवारपग |२८६ रंविहरएमुएि ॥३६॥ चबीए पोरसीए ॥ निरिकवित्ताए लायएं ॥ सशायंतनकुया॥
(२५)
For Private and Personal Use Only
Page #254
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न. स. सर्वजीवादिक भाव पदारथने वि० प्रकासनोकरएाहारएवो पो० पावसीपोरसीना चच् चोथा लागबेघमीनेविषे वं० बांदीने तिवारी २९० स नाव विलावणं ।। ३७ ।। सशायकरे. ३३ पोरसीए चनुझाए । वंदिताएंणं तर्जगुरु एक निवरतावीने का सशायनाकासने सि० थानक पाट प्रमुष वस्त्रादिकने पहिले हे | पा० लघुनीति नुष्वकी नीति लूमिने पढे पनिले जनता परिकमित्ताकालस्स । सिद्यंतुपरिखेह ॥ ३८ ॥ २८ पासवानुच्चारनुमिंच । परिसेहिबज वंत धको जती का० कानुरसम्म त सामाग्रक व्यावसकना सूत्रपालएयापी का० कानुरसम्म करे इनामियां• लते तुझेहि अफ नमो मरिह यंजई ॥ कानुस्सग्गंत कुवा ॥ करेमिलने इवामिकानुस्सग्गो तस्सुन्तरी करणेएांए ५ सूत्र सच्सर्वदुख नामूकावा हारडे कानुसग्गकानुसग्गमा हे चिंतेतेकहेबे ३५ दि० दिवस संबंधी पूर्णेच्यतिचारने चिंचिंतवे प्र० अनुक्रमें यारं चिंति
ना०
देसियंच
सब रक विमुरकणं ॥ ३५ ॥ एचसो ॥ ना प्रथम ज्ञाननेविषे दं० दरसनसमकितने विषे संकादिक बसी च० चारित्रने विधे साधुने ५ महाव्रतने २५ लावना देसवृत्तिने ज्ञानना।४।१२ वृत ७५ संसेमि दंसपांचेव चरितंमि तहेवय ॥ ४० ॥ पना ५ पांच एवं श्रावकने ए ए तिमजपा० पारीने का० कानसम्म जि | नवे विषे संस्तव करवी दसविकालिकनी साथ नमोकारेएापारिता जिनसंधव ते लोगस्स चोदि संञ्चो एबीजी आवश्यक परिसेहएाकीधी लूमीप- २१०० किसेहीने सर्व संबंधी गमागमण परिक में एब ६ आवस्यक पुरयकी तो विष के तसोक कहे वे मने सूत्रपात ते आवस्यक सूत्रयी जाए।
For Private and Personal Use Only
म. २६
Page #255
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२०१
वो. फरे श्रावस्यक सामायकने के त तिवारपदी वं गुरुत्रीजीआयसकतेगुरुनेचं चांदीने चांदणादेईने तेवू सूत्र ॥ श्वामिरयमा अ.२६ समयो अहोकायं २ आबसियाए २ अहो ७ परिकमामि ५ ए लएना १२ आवर्त २५ लेद दोनयंजहाजायं कियकम्मंचारसायंचन|सिरंतिसुद्धप्पसं २ एगनिरवमए ए२५ त्रीजं आवश्यक
दिपडे दि. पयुं ॥३॥
__. पारितयकानुस्सगे वंदित्ताएं तगुरु । दिसियं बससंबंधि शुरुअागले अनिचारने या मगर श्रासोए जा ज्ञानदरमनचारित्रना अनुक्रमे ते साधूने अम्मरणासन मालकनी अतिचारखागा तु अईयारं । आलोश्धजहक्कम ॥४१॥ आगमेनिवारेयी मांफी षमाच्या सुधी... पमिकमित्ता हाएनेनो मिलामि पुक्कम देईने निगनिसलथाए। यादिकनेषमावे एतसेचोधुंश्रावस्यफच अहथेपांच लापरपककेचे त तिवारपबी |निसलो। वंदिताएं सकसजी। तगुरु। कानस्सग्गंत कुद्या ॥ गुरुनेचांदीने चांदपादेईने चांदगानुसूत्र नमोअरिहंताएं २ करेमित्मते ३श्चमि ७ कानुसरगना ॥ ससर्वषनाविक मूकावणहार बेकानुस्सग्ग एवो धर्मध्या
- सूत्रलपीने तगतिवारपनी करे। सबपुस्कविमोस्कएं॥४२॥ ननो कानुसग पा०पारीने एतसे पाचमू आयसकहरेनोआयसकततिवारपडीगुरुनेवांदगा देईने यहां पञ्चषाण करे सापुचोबिहार कीया होएनेफि | पारियकानुस्सग्गो । वंदित्ताएंन गुरु रिसंस्नारे अने श्रावकर्नजेने अशाहोएतेषां पचषापाकरे दिवसचरिमपंच
For Private and Personal Use Only
Page #256
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२९२
|| पामिश्त्यादिक यून्चकारपीजापवू बगे आवसक एमरावसककह्यापरीथुश्मगत स्तुतिमंगसतेनमोधुएं चपधाए करीने काठ करे | अ-२६ | परषापासूत्र थूश्मंगखंचकानगां॥ कार्यसंपमिसेहए ॥४३॥ का सप्तायकरचाना कासने सं साचेमकारेपकिलेहियेसाजी एहवे प. पहिली पोरसीएं समायकरे बिक बीजी पोरसीए प्यानच्याएन नीजीपोरसीएं निजानेमोकली मूके रात्रीनी विधिकहेबे पढमंपोरसी सशायं ॥ विश्यंशाएं शियाय। तईयाएनिहमोस्कंचसी सससाय करे च. चोधी पोरसीए किमकरे ४४ पो पोरसी चोधी कार कालने चली परिप्लेहीने 'स० सश तु ॥ सशायंतुचनधिए ॥५४॥ पोरसीए चनबिए ॥ कालंतु पमिलेहिया ॥ सशा यने तनिवार पनी करे अपाजगामत्तोमन्असंजतीने ५५ पोल्पालसी पोरसीने च० चोथा नागपाचति बेघगीनेत तिवारपनी यंतुननकुद्या ॥ अबोहंतो असंजए॥४५॥ पोरिसीए चनुझाए । वंदित्ताएं त गुरु गुरुनेषांदीने प निवरताचीनकाल सप्तायनाकासने का. तु. वसी दिवसे सफाय करवीले ते माटे सझायनाकालने ५० पमिलेहे पहिलीपरे पमिक्वमित्ता कालस्स। कासंतु परिखेहए ॥४६॥ गमणागमा परिकमीने सामायक आबसकनो५६ श्रा० आवेग्ने कानुस्सग्गस सर्वपुषना मूकावणहार
कानुस्सग्गने आवेबने कान्काळसग्गने ततिवारपनीकोस. २००२ || आगएकायवोसग्गे ॥ सबएस्कविमुस्कए ॥ काल सग्गंत कुद्या । सबरकवि
For Private and Personal Use Only
Page #257
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न ने कानुस्सग्गने ७५ रा. रात्रिसंबंधिवसीअनिचारने वित्रिनवे अ० अनुक्रमे नाज्ञानना १६ ने विषे द० ५समकिनना नेने | अ.२६
चअश्यार । चितिधग्रएफपवसो । नाणमिदसणमि विधे। च चारित्रनेविषे न० यत वालीतपनेविषे १२ एतलाअतिचार आचरे का कालस्सग पा पारीने सोगस्स कहीएएबीजोआ। तातिवारपनी | चरित्तमितमिय ॥४॥ चिंतये प्रथम परिय कानस्सग्गो॥ वदित्तारू बस्यकथयोहदे तयरु। गुरुनेवादादणादेइने एत्रीजूश्रावस्यक | बंधीवलीअनिच्चारने आ आलोएजज्ज्ञानादिकने मिजामिछक्कम देईने घमाबचेकरीनिसपर |राश्यतु अईयारं ॥रा रात्रिसं-यासोएचजहक्कम ॥ ४॥ परिक्कमितु निसले॥ व हितनपाए .चोथु आबस्यक नातिबारपीगुरुनेका कानुस्सग्गतिवारपली सब सर्व उषनो मूकाव हारते कानुसगमाहेरूचिंतवे ने |दित्ताणं तेनगुरु ॥ कानुस्सग्गंतनकुद्या ॥ करे सबपुरक विमोरकरां ॥ ५० ॥ कहने ५० | किं-किस्योतपने हं अंगीकार करूं एएगीपरेतम् नेकानुसगनेविषेविशेषे का कानुसगनेपारीने वली सोगस्स कहे चं वांदगा किंतवंपमिवद्यामि ॥ एवंतबविचिंतए । कानुस्सग्गतुपारिता ॥ बंद | रेइने न निवारपनी गुरुनेए पाबलावादणासलास्यापपा पाळपास्योकानुसगजेने चांदपा देइने त तिवारपवीगुतने न एपा || २९०३ इयं तगुरु ॥५१॥ नवांनजाणे ५१ पारियकानुस्सग्गो ॥ वंदित्तारूतगुरु ॥ तवे
पदपादन
For Private and Personal Use Only
Page #258
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न. बादा संख्यास्था पानवा न जाएऐ पढे तपने पर परिचजने । कर करें सिद्धनो संव संस्तव नमीयुकहे एतसे संचारनुं एवं सामाचारी
जावां
२९७ संपविचित्ता । एवो आवस्यक करिव सिद्धाणसंयवं ॥ ५२ ॥ आवस्यक एसासामायारि | स० संषेपे कहीए आवस्यकना सूत्र याक्सकथी | जं。जे सामाचारीने च्या०याचरीने ब० घणाजी व ति तस्था संन्संसार समुधी तरीने मुक्तिपदपा | समासेएावियाहिया || जं चरिन्ता बन जीवा ॥ तिन्ना संसारसागरं ॥ ५३ ॥ म्यासिद्धपैया ३० इम फूं करूंबु. ३० इति सामाचारी नामे अध्ययन २६ मुं संपूर्ण ययुं ॥ २६ ॥ बवीस मात्र्यध्ययनने विषे सामाचारी तिमि ॥ इति सामायारि झवणं बवीसश्मं सम्मतं ॥ २६ ॥ कही तेनुघुर्त पएफ बागवेकरी सामाचारी माराधे ते लपी २३ मात्र्यध्ययनने थे० धर्मने विषे थिर करे तेथी वर ग० गबना घरएए हार ते आचार्य ग० गगना विषेपुरतपए ढांमवूं कयूं मने पुरत स्वरूप कहे थेरेगएाहरेगग्गे ॥ चार्य साधुये मुशिप्रासिव
"स. समाधि संघाते आपणाश्रात्माने साधे जोदेविका बा० जेमगामा
मु० सर्वशास्त्रविषे विचक्षणव्याप्त या. याचार्यनागएानेदिषे | सारए ॥ आयन्ने गशिलामि ॥ समाहिपरिसंघ ॥ १ ॥ नेविषे बसदजोतस्यात्मारखहता विनीजवृषण अनेशामानो षेकप्रहार बिके। जो० संजमजोग व्यापारने विषे प्रव । जे विनीत शिष्याने गुरू एबेनेससं २०२४ रूपवीतकल
वाहएऐव
हमाएास्स ॥ कतार अश्वत्तई जोएवहमाएास्स नाऊ संसार वत्तई ॥२॥
For Private and Personal Use Only
म. २७
Page #259
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मोकषेतिवारेते कुशिष्यान सान्ले श्रावक मुझनेन जाणे नहि नुप्तपेनहि न तेश्राविका सुशने देसे नहि असनादिक निम्हमपणाने आ| अ-२५ मकहे नसाममवियागाई ॥ नविसामनदाहि॥ निग्गयाहो वकासे २० ऊंश्मजाफर्बु सान्साघुमुजयी अनेरोइहाएगेकार्ने जानुऊनचुंबीजोकोइ साफनयी | पे० कोइक मयोजनने मोकल्याएतिवारे | इमन्ने॥ सात अन्नोबवचन ॥१२॥ १२ पेसियापषिचंति ॥ तेप | ते कारजनिपजापक प. पूबाथका एबोलतुमने एकारज किहां कझं ऊतुंते शिष्यपयटनकरे वे बेनीपरें मानतायिका प्रवर्तक रिएति समनन सर्पदिसनेविषेनेस्या लपीगुरुनेबेसीए नो गुरुना कार्यकरचा ते राजानी रायवेतिन्वमन्नंता ॥ करि करेलिब्रीसनेवसे नमूहवंचीचढावेमुषनेविघे वाव ते कुशिष्यने शास्त्र संसाचेमने अह्या तादीका सीधीशतीचे पूरपोत्नातपाएपीएं तिमिनमिमुहे ॥१३॥ १३ वाश्वया लएव्या संगहिया चेव .
लत्तपाएगेय पो पोष्या फ़्ता जानुपनी पांघ तिवारे जन् जेमहंस प जाएापणिश्वाए दिदिसोदिसे सर्व दिसे तेमकुशिष्यपण अव्हवे | पोसिया ॥ जायपरका जहाहंसा ॥ पक्वमति दिसोदिसिं ॥ १५॥ जाए १४ अहसा सारथीनीपरे गर्गाचार्यविशेषेचितवेचे खगसियाबसदनै घेवानी परे सश्रम किंकिस्यूकरबूजे म० मुजने उष्टशिष्यअन् आत्मामे मुजनेअन् । || रहि विचिंतेए । खलुके हि समागर्ने खेद पायो किंसशवसीसेहिं ॥अप्पामेअवसीय१५//
सादा
For Private and Personal Use Only
Page #260
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobaith.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
बितेलगीएकुशिष्यने।मुझने श्रेयजान्जेहमाराशिष्यने नान् तेहवागलियामर्दन गगसियागर्दलसरघाचन्कुशिष्यनेगंगीने द० ||अ-२८ २९८ बोसरावीने विचसतो जारिसा ममसीसाने । तारिसागविगद्दहा । . गलिगइहेचइत्ताएं ॥ ददं|
गर्गाचार्य इढाकारेन- १२ त्लेवेनप १६ मिन् अंगीकार करे रे मन्सकोमख विनिन अहंकाररहिन गंगनीरसमाधिकरीसहिनवताविकचरेपृय पगिन्हएनवं ॥१६॥ मिजमद्दवसंपन्ने विदाअनेमार्दवपदोसहित गंलीरसुसमाहिए । विहर महि महांतमात्मा सी. चास्त्रिनागुणसहितबेनेलणी सीसल्लूतात्माब्तागर्गाचार्यविचरे ३० इमन्त्रीसुधर्मास्वामीकहनेहेजंबू जेममे श्रीमहा महप्या । सीखलूएए अप्पगो ॥ निबेमि ॥१७ ॥ इतिरवककियंअन्नयसनावीसमं चीरदेवसमीपे सालप्युहतु तेमतुजमनेफकडं. शनिश्रीरबलुकिय एवेनामे सताबीसमुंअध्ययनसंपू. २७ मोमोसने संमन्तं ॥ २७ में अध्ययनेअविनयपएचकबूंकझुंअविनयबांने मोसजाएतेमाटे २८ मेअध्ययनेमोक्षमार्गवरविले. मोरकमग्ग | कर्मनु षपाचवु तयाबीजोअरपसकसकर्मयी मूकावबोतेमोरुकहिये मातेहनो मार्ग जे ज्ञानादिक ने एोकरीसुन्सालसेनेतीर्यकर ला. गातचं तव्यथातथ्य सिद्धगती गगतीने सिद्धिगमनरूपते कहतामने
सोडजिएालासियंच पीकेवलीसिद्गतिकेवीटेच च्यारकारपोकरी ना ज्ञानदरसन ए २ वे सरलष्पपजेसिहगतीनामोसना नात्ययानथ्यपदारयनुजाणपण २९८ नुकारएसजुनं॥ स सयुक्त १ नाणदंसपलस्कएं ॥१॥ कारण कहेचे नाचदंसदांचेव॥ज्ञानबसी
For Private and Personal Use Only
Page #261
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नद० यथातथ्यपदारपर्नु ययानय्यसदबूतेदरसन समकित२ + जेणेनवाकर्म | त० बारलेदत्तपे पाउल्याकर्मबाखेने (ए.एम.मोन्समारग अ.२८ २९९|| बसी चरितंच चारिनवीर तीनुपाचर—तैचारित्रा नाचे तवोनहा ॥ तर तेमज एसमग्गेनिपन्न
एमपरूप्यो जिन् तीर्थकर या भयानज्ञानदरसनने धपीए.परूप्यो नाव ज्ञान १दरसन २ च चारित्र ३ तप त तेम एक चोस
तो ॥ जिपोहि वरदंसीहि ॥२॥निगाथाय नाचदंसएंचेव ।। चरित्तंचतयोतहा ॥ एयम पमार्ग अन् पाम्या जी-जीवजाए परचे सु.सुगतिमने ३ तन्ते बोसमाहि पंपांचमकारे ज्ञान सुन्यन्यदाहदोबारा गमएफपत्ता ॥ जीवागबंति सगाई ॥३॥ तवं प्रथम पंचविहंनाए । सुयंालिशिबो याएसगइयस्स तिनेवये अहवाताएअरेगं नरत्नपिंगनाएी जीवाण सवानि १ मतिअवधिज्ञान अनेसमकिन ए ४ नी यिति अत्रकयं हियं उत्कृष्टी ज्ञान अत्र कह्युपा आन् मतिज्ञान२ सोकना बंधमारे अथवा श्रुतज्ञाननुपगारीमाटे प्रथमश्रुतज्ञान पणपहिसोमतज्ञानपचे नु अपपिज्ञानत्रीचं मन मनपर्यवज्ञान चोथु छ केवलज्ञानपांचमु ५ ए०ए५ मकारज्ञान दर बव्यनुजामुनज्ञान जहिनाणंचतश्यं ॥मएनाच केवसं ॥४॥, एयंपंचविहंनाएं ॥ दबापपएफ त्रपबोस जापापफंयन्वसीडव्यनुबगुपजापापकं बइव्यनुगुपनु सर्वपदार्थना केवलज्ञानीएकयुं देन्एगाथानो सूत्राप २९५ एयगुणाएाय ॥ पयवाएंच सबेसि पर्यवनु बसी स०ए नागनापिहिदेसियं ॥५॥कह्यो ५
For Private and Personal Use Only
Page #262
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न हवे ऽव्यगुणापर्यवतेकेने गुरु चसनादिक गुएनो आअयमेने आधार त्नाजननेदक द्रव्यत्ते धर्मास्तिकायादिकच एउज्य ए एप्रत्येक अ-२८ | कहिये ले कहने. गुणागमासदत्वं ॥ एगदन्वेसिया गुणा ॥ सरकांपयवाणंतु डव्यने | विषे आन प्राधिबे गमनादिक ते गुरू गुणकहिएने उगुणनीजान सन् लक्षणअने त्रीजो बोस जेपर्यवते तो पूरणे न जुनापर्यवतया जुलनअसियानवे ॥६॥ नचापर्यव ए २ पर्यवचलने इन्यअनेगुणनेविषेललयशब्दना२ अर्यकयाअाग्राहो एवेबडव्यना| धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय २ आकाशास्तिकाय ३ अस्तिते प्रदेस अनेकायते असंष्यातादिनो समूह का कालपु नाम कहेले ६ | धम्मा अहम्मो अागास ॥ कालपुग्गसजंतवो ॥ एससोगोत्तिपन्नतो .
सास्तिकाय ज० जीवास्तिकाय एमचे ५ अस्तिकायअने अस्तिकास जिन तीर्थकरनामघानदरसनने एपीएं लोकमध्ये आकासनो | तेअस्तिकासनहि एबव्यरूप लोक खोकर श्मप० परूप्यो जिरोहिवरदंसीहि ॥॥ देसप्रदेस जाणवोपणा आकासास्तिकायनहीए लोक असोक यईने। ध धर्मास्तिकायअधर्मास्तिकाय आगासास्तिकाय द० एप्रत्येक व्यश् एकेक एम आकासास्तिकाय जाणयाहवेऽव्य संध्या | धम्मो अहम्मोआगासं
द त्वंशक्तिक्कमा करूं एनसे धर्मास्तिकायव्ययकीएक अधर्मास्तिकायडव्ययी एक २ आकासास्तिकायदव्यपीएक | काव्यपीअनंताकाष|| २०० हिय ॥ अपंताणियदद्यापि ॥ अ. अनंताडव्य कासोपुग्गसजंतवो॥६॥ पृथवी २ समय क्षेत्रमध्यौ ।
For Private and Personal Use Only
Page #263
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
३०१
| कातनो एक समयअनंतपदेसपर्ययनुपरे प्रवरनेछे नेमाटे ऽन्याश्रिन अनंताडव्य कहिएं म स. नु० मध्ये ग गतिगमनरूपपसाधन ||२८ काष जीव एक अन्य कहो ते जानिवाचक माटे पु. पुद्गल अनंताइन्यथी
गसरकएगोयधम्मो ॥ अधर्मास्तिकायअधर्मालिकायनोथिरलक्षणा ला लाजनआधारः स सर्वडव्यनुतेन आकासनेनुग्रहत्तअवग्रह आकास २ -
अहम्मोवागतरकएगो ॥ .. लायएसबद्याएं ॥ नहंगाहसरकएं । व्यथीजीवअनंता हवेब न्यनागुण कहे समक्षपाते सीतोष्णादिकने काकासमुंजीवन लन्सोगार अएगागारनपयोगस. प्रवरताचे जेसमयादिक ने बरतना स ससपा बत्तपाखरकतो . काखाजीवो नवगसरकपो॥ सक्षण तेजीव नामनिज्ञानादिक आव तेजाएापऐंकरीचक्षुकरीसुन्सुषवेदवेकरीनबीउपवेदवेकरीजपाएजीव न घरेजीयनु केमजागीए नागवंदंसगणंच ॥ आदिदरसने सुहेराय हेपाय ॥ १० ॥ षष्पएाजांगिएंने द्वारए । ना• पांच शान ३ अज्ञान ८ बोसे जे जाण च वसी चक्षुदरसनादिक च चारित्र अचारित्र रितीनोध चरिताचरिति शापपणवणार नाएपंचदंसांचव॥ पए] चरितंच चारित्राचारित्रश्नोचारित्रिनोवा-तवोतहा ॥ तर चालतप १ पं. मित्तत्तप २ ततिमजवि. बालवीर्य १ पंमिनबीर्य २ बालपंफिनबीर्य ३ अविरिया ) स.सझए जाएबोहवे पुद्गषनुसझएकहे ११||३०१ नु सामार १ अपागार २ ए २ नुपजोग वसी एक एबहार २८ वौष सर्वजीवनी वीरियंनुव गोय। एवंजीवस्सखस्कणं॥१||
For Private and Personal Use Only
Page #264
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३०२
|स भुत्लाभुलशब्दअंधकार नुनयोनरत्नादिकनो पकमलाकांति चंादिकनी डाल लायासीतसीआर यातापसूर्यादिकनीनुसनताकर एकयुंने अ.२८
सहघयारनयोन ॥ पहाबायातवेश्वा ॥. वन्नरसगंधफासा समुच्चयवार स्सगंधच फरसर पुरुपुजास्तिकायनोबपी क ए२७ भबोखरूपपझपजाणवो एग्दव्यनागुपासकाए ए० रूपीअरूपीडव्यनेविषेएग
पुग्गसाएतु सरकएं ॥१२॥ कह्या १२ हवे बद्रव्यनागुणापर्यव कहे। एगनंचपहत्तंच न-- रुपीअरूपीपर्यव एकगमिसयो ने एकत्वकहिए चच्चसी पुत्र एकगमल्यापबी | सः एवं २ जावत् असंख्यअनंतपर्यव३ सन् घणाबरणादि जूदा जूदा थाए ते पृथक् पएं कहिए. संखासंगमेवय॥ वाटला प्रमुख संगण । एमजबसी संजोगायवि।। कना एकगमिषवा ते संजोगसादि सपर्यवसिया विश्वलीते परूपीअरूपी पर्यचनुंबपी ससक्षपजापाबू एतसेबडव्य १ गुण २ ॥ लागाय वरणादिकनुजूढू थायूँने वित्मागविजोग. पद्यवाएंतुखरकएं १३पर्यवजाएगपएं तेज्ञान कहिए १३ ॥ जी असंष्यानमदेसी अरूपी सदासनुपजोगीनेजीच अनुपजोगरहिनने अजोगबं जीवनामदेसनेविषे | पुर जीवनाप्रदेसनेविधे-भुत्लाइन
जीवाजीवायबंधोय शुत्नामुलपुलनुं बंधवू बंधायक बसी पुन्नंपावासवोनहा पुदगठनो ने पुन्य पाशुलपुदगसनो बंघ नेपाप आअविरतिने अपचषकरी विषयकषायनेरसे कर्म । सन् विरनिनेपचषचे ५ नया १० आश्रयना || ३०२ नवांनुपराजवा ते आअब त तिम सं वरोनिधरामोस्को ॥ पानासांरुपवेकरी नवांनुपराजेनहि तेसंवरनि
For Private and Personal Use Only
Page #265
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जीवना मदेसयी सकसकर्मना पुदगलनु मेटवू ते निर्जरा मो० जीवनामदेसथी सकसकर्मन षपाचचुंते मोक्ष सोह शनिवशनिवयनन जासेतरुवंतुधारंति । तस्सजपजचपपत्तणं । ववहारनयोमुणेयचो ॥१॥ असत्कृतेयंगाथा ॥११॥ ५० ॥ हवे एग्यान १ दरसन २ चारित्र ३ तपध एहने विषे निश्चय १ व्यवहारादिक २५ बोलनो स्वरूप चिंतवे । सूत्रनयें करी तेएम चिंतदिए । ॥ ग्यान |चारित्र३ नपच तथा जीवादिक पदारय जतिवे तेपदारथनेविषे २५ बोसविचारिए । ते२५ बोस-निश्चय १ व्यवहार तयाडव्य लाव३ तथा अविसेष विशेष २ नयानामविशेष १ थापनाविशेष २ व्यविशेष३ लावविशेष ४ तथा इन्यथी १षेत्रयीर कासयी.३ लावधी ५ ॥ तयामतहममाएर १ अनुमानममाएा २ नुपमाप्रमाए ३ आगमप्रमारा नया नैगमनय १ संग्रहनय २ व्यवहारनय३ सजूसूत्रनय तयानैगमनय १ संग्रहनय २ व्यवहारनय ३ मजूसूत्रनय शब्दनय ५ समलिरूढनय ६ एवंनूतनय ७ ए २५ बोष प्रमुष वसीबीजाए सूत्रनीअपेक्षाएंकरीए ॥॥ इवे निश्चयअनेव्यवहारनयनो सूं पक्षण जेपदारयरुचि कहिए । नया तेहनेविषे | पदारयनोजे अल्यंतरगुणा अल्यंतररूप तेणेकरी । ते निश्चयनयकहिए ॥ययाजीव चैतन्यत्वं । अनेनेगुरारूप नेते तदाश्रित बाह्मजे प्रवर्तन ते शुहमारव्यवहार नय कहिएं । यया एकेडियादि दोसरीरादिवईनं । अनेअत्यंतर गुपारूपविनाजे बाह्यवर्तन ते अशा व्यवहारनय । यथामिय्याशिः। अत्मव्यजेनिन्हवादिषु सस्कविना चारित्रादि समतिमवतेनतेन अशद चारित्रव्यव्यव.३०३ हार एमसर्व पदारयने विजापायो ॥॥ निश्चयज्ञानते समकिनसहित । अंतरंगजीवनाप्रदेसनेविषे । यथातथ्यजीवादिकपर्यत
For Private and Personal Use Only
Page #266
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जाएपफ ने निश्चयज्ञान पदारपर्नु अल्यंतर यथानय्य सदहियूं ते निश्चयसमकिन दरसन जाएy । अने संकाकंपादिक ५ बोल | अर ३०. संशयादिक रहितयको निसंकिय निकंखियादिक शेखनेविषे प्रवर्ते समकित्तदरसननी सुद्धलायव्यवहारनय २ । समकितद
रसनसहित अतरंगत्लावे १८ पापस्थानक अविरनिनूं पचवू ते निश्चयचारित्र। अनेते सहित पांचमहाव्रत । पंचसुमतित्रए गुप्तिप्रमुषने विषे प्रवर्तवू ले चारित्रनेविये शुद्धत्लावच्यवहारनय ॥३॥ समकिनसहित एहचा चारित्रना रसनेविषे वीर्यसहित | इव्यात्मानुतलालीनपर्फ ते चारित्राश्रित सदासर्वदा निश्चयतप । अगितेकरीसहित १२ प्रकारे अएसएादिकतपनविषे । एकांतनिर्जरानेअर प्रवर्तते। गुहनावव्यवहारतप ।। ज्ञान दरसन२ चारित्र ३ तप एनोसदलाव व्यवहार नेयुक्तीन हेतु कारपा नहि तेसंसारहेतु ॥४॥ ॥ हवे अन्य १ लाचं कहिए विना समकितसुद्धसदहएाविनामिथ्यानिमुजे ज्ञान १दर/ सन २ चारित्र ३ तप ५ ते व्यज्ञान १ डब्य दरान र इन्यचारित्र३ जाएावो ॥ अथवा इहलोकादिकीर्ति नेनेअरय तेजे ए ५ तेपण व्यज्ञानादिक जापावा ११ अने जिनाज्ञा सुङ सदहणासहित । एकांत निर्जराने अर्थ ज्ञानादिक ५ ते लावज्ञान १ लावदरसन २ लावचारित्र३ लावतप ५ जाएगो २ एवं ।। हवे अविशेष । विशेष कहेडे। समुच्चेज्ञानक-३ मनपर्यव ज्ञान ५ केवलज्ञान ५ अने नापारिकहिजे । मतिज्ञान ! श्रुनज्ञान २ अवधिज्ञान ३ मनपर्यवज्ञान ५ केवलज्ञान ५ एमकहिए.। ३३४ ते विशेषज्ञान १एम समुच्चे दरसन कहिए । अविशेषदरसन १ अने क्षयोपसमकित । स्वासादन जपसम ३ वेदक ४ षायक ५/
For Private and Personal use only
Page #267
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नु. समकित ( एम नामषारी समकित कहिए ते विशेष दर्शन कहिए २ समुच्चे चारित्र ते कहिए विशेष मने सामाइकादिक चारित्र अ.२८ २०५) बेदोपस्चापनचारित्र २ परिहार विशद्धिचारित्र ३ सुषम संपरायचारित्र ॥ जयाष्यात चारित्र ५ एमनाम बारीकहिएं ते विशेष तप ४ ए
वं ब बोल दिया । बे | हवे व निषेपा कहेले । ज्ञान १ दरसन २ चारित्र ३ तप एहवो नाम दीघो जीवनी तथा याजीवनुं जे नाम । ज्ञा
ย
न १ दरशन २ चारित्र ३ तप एनांमनिषेपो जाएावो १ ९ ४ जीमथापना मांदी ते थापना ज्ञान १ दरसन २ चारित्र ३ तप एन्यापा निषेपो २ उपजोग शून्य ए ४ तथा ग्यानादिक जे व शरीराश्रित जीवमहिता ॥ मने ते जीव ते शरीरथकी चच्यो । कमे ते नो जीव सरीरे पप्यो ते सरीरने अव्यज्ञान १ इव्यदरसन २ व्यचारित्र ३, दुव्यतपध कहिएं। एड्वनिन्पो जांबी ३ एज्ञानादि क धबोसनेविषे नृपयोग सहित जीव प्रवर्ते । तपलावज्ञान १ लावदरसन २ लावचारित्र ३ लावतप ४ कहिए । एलाप कहिए। एलावनिषेपो जांए वो ४ ए४ निदेपा कया । एवं १० ।। हवे ऽव्ययी १ पेत्रथी २ कालथी ३ लावथी ४ कहिये ॥ षटू व्यनुं यथातथ्य स्वरूपनुंजाएापकं तथाकहियो ने इव्ययीज्ञान १ सर्वक्षेत्रने विषेयथातथ्यनुं जाएापकं ते बेत्रथी ज्ञान कहिये २ | सर्वकासने विषे यथातथ्यनुं जाएापकं । तथा सामाइ प्रपद्यबसिन् । ज्ञानते कालथी ज्ञान कहिएं ॥ ३ ॥ लावधी ज्ञान ते श्रवणे रसे फासे ॥ मथवा सर्वते सर्व पर्यवरूपी अरूपी पर्यवनुं रहस्य माहिसा परमारथेनुं पुबवो । परमारयनुं जाएपिएफला ३०५ वार्थज्ञान कहिए । तथा षट् इव्यनुंजाएापकं ते लावधीज्ञान कहिए | पेत्रयी दरसन कहिये २ सर्वकालने विषे तथा सामाइ
ย
For Private and Personal Use Only
Page #268
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३०६
||अपयवसित् सदहवू ने कासयी दरसन कहिए । तया त्रस थावर जीवना पारंलयी तपासर्वकाष पाश्री निवर्तते ||अ.२८ ||ऽव्ययी चारित्र १ सर्व क्षेत्रनेविषे निवर्तवू ने क्षेत्रयी चारित्र २ सर्वकाष जावजीवसधी निवरतवू ने कालयी चारित्र ३ मावची
सर्व पदार्पनेविषे मूर्गलावरहितपए । अरुवापिअवनेश्त्यादिक तेलावधी चारित्र तथा १२ प्रकारना तप समकिनसहि तपएो करवो ने अव्ययी तप १ सर्वषेत्रेकरवू तेषेत्रथीतपर यथोचिनकालममापों करचो ते कासयी तप ३ एकान निर्जराने अर्य करवू ने लावयी तपथ नया अरूपी अवन्ने इत्यादिक ने लावधी नप कहिएं ५ एडव्यादिक ४ बोस कया ॥ एवं ४ बोष थयाने हवे प्रमाए। कहिये ।। ज्ञानबे तेव्याश्रितः ॥ ऽव्यादिकनुं जाएपएं ।। यथाएयपंचविहंनाए ॥ दवाणयगुणाएय० ॥ शनिवचनात् ॥ तेमाटे एक काश्क इव्याश्रीने प्रतक्षादिप्रतकपमा चिंतये। यवासूर्यनगो विंबदीगेजांएयो । एप्रनकदम स्वने ॥ एतक ज्ञानप्रमाण १ ॥ वादलमध्ये उग्यो प्रत्यक्ष विंचनजाएयो नदीगे। सूर्यनी प्रत्लाने अनुमाने जुग्यो जाएयो ।
या समेहेसमुदएहोइपलाचंदसूराएं । तथा सूर्यनो आताप देषीने नग्यो जाएयो । एग्यानने विषे अनुमान प्रमाएग २ ज्ञानकेहबूंजे । सूर्यसरघू प्रकासनूं करए हार के । अथवा सूर्यरातो केहवो रातोही गसोवर्ष समान रे ।। एपांचनेविरे उपमा प्रमाण ॥३॥ सूर्यनं विमान केहबूंठे । सूर्यनी कदिनुवर्ण जाएगवू ।तेज्ञाननेविषे आगमप्रमाए ॥४॥ एपीर | ३०६ सी अनेरे प्रकारे २ जिम २ प्रमाण नीपजे तिम २ करिए ५ हचे दरसनना ७ प्रमाण (ज्ञानप्रमाणपत् । नवरं। एतसो विशेषजे
For Private and Personal Use Only
Page #269
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न. ज्ञानप्रमाएराने विषे जाएं कहिए अने दरसने । अने दरसने प्रमाण सद्दझं एमकाहिए । एदरसननेविषे प्रत्यक्षादि ५ प्रमाए ||२८ २०७|| सद्दहिवू ने ५ चारित्रने विषेजाए कहिए । प्रतक्षप्रमाण ने एजेसमकितसहिन सुकादिक ५ सुमति प्रादिक ध्याननेविषे मनक
दीगे ते एजे समकिन सहित सदादिक १ अनुत्तरविमाने जे देवपणे उपनावे ते जपनाजे अनुमाने जाएीए । ते एजीव पूर्वनिये | चारित्रवत झंता १५ पूर्वमध्ये पूर्वनी सप्झायकरतां । लित्यंतरी नथारात्रि सांबल्यो साधुविना पूर्व लपीनसके । ए अनुमानम्माए तथा सुधार्षिगशलितांतरने विषे । जयोक्त निनमारगपरुपतां सांत्मलीने एकोश्क चारित्रपंत दीसे । एचारित्रनु अनुमान प्रमाण २ चारित्रवंतने नुपमादीधी मेरुनी समुदनी सूर्यनी चंपृषवी वृपत्नसिंह हस्ति प्रमुषनी नुपमा दीपी । ते नुपमाएकरीनपमाप्रमा।।३। आगमप्रमाण । सूयगमांगप्रमुषधर्म पो सायुना गुणवर्णव्या । र्यादिक सहित । चाषिचवन्ने । त्यनिरवमे निदिए । इत्यादिगुणवंत चारित्रवंत फाए एआगम प्रमापा ५ साक्षात् अयसपादिक । तपकरतां दीनो एतपनेविषेमतका प्रमाएं १ घना अपगारनी परें सरीरे कत्यादिक देषी अनुमाननेकी । जे एतपनो करणहार जपाए । एअनुमानप्रमाणा अग्निजेम काष्ठने वाले तेमनपरूप अज्ञिकर्म काष्ठ नेवासे एनपमाप्रमाए ३ कनकावसिप्रमुष अनेक तपना गुणमहिमा करतन्य सूत्रनेविषे वयाए आगम प्रमाए एप्रमाए यस्वनीवषाएया अने केवली ने ज्ञानादि सर्व पदारये केवलज्ञाने प्रत ३०७ क्षप्रमाए । एनसे ४ प्रमाण कया ॥ एवं १८ बोस थया । हवे सात नय कहे । ज्ञान ने नैगमनप ।ज्ञानमुक्तिकारां।
For Private and Personal Use Only
Page #270
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|| ज्ञान से मुक्तीनू कारणचे ने कोणज्ञान । तेमिथ्यादिपांचप्रकारनं १ ते ५ पईने प्रतक १ परोकर एमध्ये समाए २ ते म- अ.२८ ३०८ तक इंडियप्रतक्ष ए ५ लेदे ३ नो इंडियमतक अवधिज्ञानादि ३ लेद ३ लव प्रत्येक १ क्षयोपसमिक आनुमामिए आदिक ५
लेद विस्तारे ४ जुमति १ विपुलमति २ सविस्तार ५ लवस्व १ सिद्ध केवलज्ञान सविस्तार ६ एप्रत्यक्ष ज्ञाननो लेद परोकना २ भेदमति १ श्रुति २ तत्र अश्रुत निश्रित तेनुत्तपातादि बुद्धि २ श्रुतमिश्रितमति ते । नग्राहादिक । नेद ३ तत्रनुग्रहना १० शहाना ६ अवायनी ६ धारपाना ६ एवं २८ लेद ७ इत्यादि षेत्रलेदे ॥ सविस्तार ध एमनिनो नैगम श्रुतज्ञानना १७ लेद अक्षर श्रुनिना |दित्नेदयावत् । सलोखक पट्ठमो ।जावत् श्रुतज्ञानवएनिाचसियनेरापण । नापी अनापीना २२५ त्नेदे शनि गमनय १ ।। एगेनाएग एक ज्ञान जागिएं । तेणेंकरीने ज्ञानजापिएं जैपकी तथा देहने विषेज्ञान ५ ज्ञाननेविषे ३ अज्ञाननेविपेान्यो एक ज्ञान एम कहियो ने संग्रह नय २ ।। ज्ञाननेविषे व्यवहारनयते । ल. श० चढे, २१ तत्र जीवना भएी कि अनापी । इत्यादि २२ वार। २५ बीसजेजेवानोजोज्ञान । अज्ञाननेविषे प्रवर्ते । नेते सर्व विस्तार जीव १ गति २ गाथापि कहिए । नेझाननेविषे व्यवहार नय ।। रुकसूत्रनये । वर्तमानकाले जेजे ज्ञानने नुपर्जागे प्रवर्ततो होए तेहज एक ग्यानी कहिएं ।यपाबद्मस्वपासि । नव ज्ञान। निहांजोमतिज्ञानने नपयोगे प्रवर्तेचे तोएममनिज्ञानीजकहिए। ययापि श्रुतमश्रीत । तोहीपण तेनुपयोगी नेणें समेने माटे ते ||३०८ ज्ञान एम ४ ज्ञान केवल तो एक जेडे पहिले समे केवलज्ञानी । बीजे समेकेवलदर्शनी पावसने अज्ञानीन कहिए ब्यस्त ।
For Private and Personal use only
Page #271
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
ज्ञाननो पएी । कोएक वेताच दरसनादिकनं नुपयोगे प्रचतेचे । पणसमकिन सहिन के निवारेपण ज्ञानीकहिए । पण अज्ञानी ||अ-२८ | नकहिए । जेत्नपी समकित इष्टि अग्यानीनहोए अत्रचाखणा । त्रपणेअग्यानाश्रीपण एमहिज जाणवो । समकिनटिन. यनो जेसमावखे । तेतिमकहे तोपावे पण सकलनयजनुपरेडष्टि रापीने सदहे नयनोसनाव कहे । तिजुसूत्रनय शब्दनय ५ समनिरूढ ६ एवं नूतनय ७ एत्रो नये ते समकिन इपीने नजाणे कहिं नाग शब्दे ८ सागरचे प्रति ५।६। 3 मानय । बे युरिसा ३ नयतनाम १ थापना २ उच्य ३ परमारथाविना ज्ञान कहि निरर्थक जागी ऋजुनयते ज्ञानपणानिरर्यक जाणे पएा कहेच पला ३ नयनाम १ थापना २ व्य३ निरधक मारे ज्ञानशब्दमाजनाणि । तेतेनी केवल समकित सहित निजज्ञान कहे १ आवस्यकवत् ॥ इति ज्ञानविषये संबताए० एकह्यायथतप पदारथ नन्नव तन्वयथातथ्य अवधारणे एक पदारथनास सप्तावे नैगमादि ७ नय पनि नया। संने एवहियानव ॥१४॥ तहियाएंतुलावाएं ॥ सप्तावे जातिस्मरणादिकदेतेभुगुरुचादिकने ला अंतःकरणारुहलावेकरीसद्दहतापका स-समकित ने एमत्तीर्घकरेंकमु १५हये प्रकारेस
जवएसएं ॥ नुपदेसे करी लावेपंसद्वहंतस्स ॥ सम्मत्तंतंवियाहियं ॥१५॥रागसमकिनतेनी २० चिकेचे नि प्रथमनिसर्गरुचि बीजीचपदेसरुचीत्रीजीआज्ञारुची चोधी सूत्ररुची पांचमी बीज रुची कि पाउमीक्रिया ३०० | निसग्गुवएसरूई ॥ आएारुश्रुत्तवीयरुश्मेव ॥ अलिगमनेवीस्ताररुची ।। किरिया रुचि
For Private and Personal Use Only
Page #272
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न०|| संन्नोमि संरखेवरुची घ- इसमी धर्मरुचिए१०नामरुचीनाकह्या प्रयमनिसर्गरुचीनुषझएकेचे लू उताअरपजापापए जी-जीवअजीच | |अर |संखेवयम्मरुप ॥१६॥ १६ हवे विस्तारकहेचे पालूयडेगाहिगया एवेज्ञानेकरीजाएया जीवाजीवाय पुः पुग्यवती पाप सजानिस्मरणादिकज्ञानेकरी आ. पानव संवरय मोक्ष र पदारपरेरोग्ययातष्पसदहे न पुरो रुचीनोधणी पुन्नपावंच ॥ सहस्संमुश्यासंवरोय ॥ शब्दयीनिर्जराष रोएशनिसग्गो ॥१७॥ निनिसर्ग जोजिए जेकोश्वीतरागेदिक दीनासर्व पदारयतेने २० च्यारप्रकारेऽव्ययी १ पेत्रयी २कासपी ३ लावधी मर सपोते जातिभ्मरणादिकें एएवीतरागे दिवेलावे॥ चनविहे सहहाइ निश्चेतेनावने सहहे सयमेव। एवमेवन कह्योने एमहिज अन्ययानहीज नेपुरपने निनिसर्गसचिश्म जाएावो १७ हवे उपदेस रुचिकहेले एक एकह्या नेपूरणे लाव्नवपदारयने । नहनिय ।इमजाणे निसग्गरुतिनायचो ॥ १८ ॥ एएचेवडेलावेडे उपदेसदीधे उते जो जे कोएक गुरचादिक सदहे उग्रस्चत्तथाकेवषिएं उपदेस दीपेडने ते उपदेससचिवन ३ मजायचो १५ वश्वेजोपरेण सहई ॥
नुमचेगाजिएगवा । नुवएसरुतिनायवो ॥ हवे आज्ञारुचि रारागद्देपमूनें अमिथ्यानादिकजने अअवगयहोइ आ० एवापुरघनी आज्ञाएंरोगरोचवतोयकोस्दा ३१० | १९॥ रागोदोसोमोहो ॥ अन्नाएंजस्स । अक्गयंहोइ ॥आपाए रोयंतोसो ॥ नविकीने
For Private and Personal Use Only
Page #273
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न. निश्वे श्रा० श्राज्ञारुचिवंतना जांएवो २० हवे सूत्ररुचि जो० जेकार
सूत्रसिद्धांतने लातोको सू० सूत्रने लावेकरी नृपा म. २० ३१ खक आशारुईनामं ॥ २० ॥ जोसुत्तमहितो ॥ सुए।नु॑गाह सम्मन्तं ॥ मे पूर्ण समकित
०माचारगादि लावे अथवा बा• गयी बाहिरते सौ० ते पुरुष सूत्ररुचीनो घणी ए बेकरी समकित पाये ना० जांए बने २१ अंगेएाबाहिरेव ॥ उत्तराध्ययनादिक सोत्तरुत्तिनाय ॥ २१ ॥ हवे धर्मास्तिकायादिकबडव्य विषे निश्चय मने व्यवहार एम विचारीएते कहेबे धर्मास्तिकाय १ अधर्मास्तिकाय २ सोकाकाश ३ एत्राने विषे असंख्यात प्रदेसात्मीक अरूपी चेतनपएफ सोका का सने विषे अनंत प्रदेश एनिश्वयप ने धर्मास्तिकायने विषे गमनगुए १ श्रधर्मास्ति कायने विषे थिरगुएा २ प्रकासनो अवकासगुएा ३ एवो प्रवर्तन ते व्यवहारनय ३ कालनेविषे एक पर्यव रूप चैतन्य एनिश्वयप ने ऋतुयन संवरादिकने विषे समयादिक व्यावलिका प्रमुष नयते व्यवहारपरकं ७ जीवने विषे असंख्यात प्रदेशात्मामरूपी शुलाशुलनुपयोग रूप चैतन्यपरकं ते निश्चय अने एकेंद्रियादि पंचेंडी तथा सरीरी जुगाइएादिकने विषे मवरतवूं ते व्यवहारनय सिनेविषे व्यवहारनथी - कर्ममाटे ५ गंध २ रस ५ फरस संगए ५ इत्यादिकनुं मत-क ग्रहपारूप प्रवर्तन ते व्यवहारनयी कर्ममाटे ५ गंव २ रस ५ फरस संगए ५ इत्यादिकनुं मततग्रहए। रूप प्रवर्तन ते व्यवहारनय ए ६ दव्यनु निश्वयव्यवहारपएफ एम चिंतवे सूत्रनानयप्रमाणें ३११ करे जाएवं एधर्मास्तिकायादि बडव्यना उव्यत्नावविशेषादिक शेष २३ बोलबीजे अंतरपत्रयी जाएवा एतसे मुक्तिनुंकारए। ज्ञाननी
For Private and Personal Use Only
Page #274
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अधिकार संपूर्ण हवे बीजूं मुक्तीनं कारण दरसन समकित वर वेळे ए० एकष्टांत एकहेतु सीषवेकरी प्र० घणापद हेतुऽष्टां- अ. ५८ ३१२ एगेएमएोगाई ॥ पयाई जोपसरईन सम्मत्तं ॥ नादिकनेविषेजो。 जेपसरे एमहिज जथाष्टांतें वे बीजी रुचि एक एकजीवादिकपदेकरीतथा नन्नदकनेविषे जेमति सौ० तेबीजी रुचीनो घणी ना० जाएावी एडीज घएानीपजे नेमारे बीज नृदएबतिघ्त्रबिंदू ॥ नेखनोबिंदू पसरे तेम सोबीयसइतिनायवी ॥ २२ ॥ रुचिकहिए हवेलिंगम रुचि सोते होए लिगम रुचीनाघणी स० श्रुतज्ञान जेणें सोहोइअलिगमरुइ ॥ सपनाएंां जेा नंदिवं ॥ इकारसमंगाई || पन्नुगं दिवि तथा तत्कालिक दिन दृष्टिवादते बारमंत्र्ांग | हवे विस्ताररुचि द० धर्मास्तिकायादि बद्धव्यना सन्गुएा | सर्वं सर्वममाते मत ममा २ आगम | वाजेय ॥ २३ ॥ नृत्कालिक वसी दवाएं सङ्घलावा ॥ पर्यवादि
० अथ दीगे इ० इग्यार अंगकासिक पर पन्नाकासिक
सबप्पमाणेहिंजस्सनुववधा
मापकरीव
प्रमाएाउ नृपमान स० सर्व नयनी विधेकरीने 9 नयतेएनैगमनय १ संग्रहनय २ व्यवहार नय ३ रुजूसूत्रनय ४ शब्दनय ५ समलिरूढनय ६ । नेजाण्यामवरते. सच्चाहि नयवितीय ॥ विचारइति नाय ॥ २४ ॥ एवंलूतनयउ सर्वसूत्रार्थविस्ता र जाणे वि० विस्ताररुचिनो घणी दं० समकितनेविषं ना० ज्ञाननेविषेचारित्रनेविषे तमविषे सच्सत्यमतिज्ञानेविषे सन् सुमतिनेविषेत्रएागुप्तिने ३१२ ना० जाए वो २४ दंसाना चरित्ते ॥ तपनेविषेविनयने- तवविएाए सच्चसमिझगुत्तीस ॥ विषे ८
For Private and Personal Use Only
Page #275
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
इत्यादिकशुपदारपनेविषेजेकि क्रियाकरयालाचयी सो तेनिने कि क्रियारुचीनो धएगी एयो जाएगयो २५ हवेसंरचसचिअन् नयी अ.२८ | जो किरियालावरुई ॥ रुचिरे सोखककिरियारु ईनाम ॥२५॥ अपनि अंगीकारकीयाज मिथ्याइष्टिपरमनिसिंन्संरचेवरुचिहोइ जाएवो वसी केबोबे प प्रवचन निनमार्गपरूपवानेविषेएनषेसदहणाभुइ गहियकुदिति ॥निन्हबादिक संरखेवरुशत्तिहोइनायचो. ॥ अविसार पवयए ॥ अगालिपणालयागण्या पोस्वसीकेवीचे जिनमतिविना अन्नयोग्रह्यो सेन्सेषकुमतनामतनेविषेयात्माचे जो-जो अधर्मास्तिकायादिन्छ ग्गहिनयसेसेस ॥ २६॥ एवो संवेव रुचीनो घणी हये धर्मरुचि २६ जोअनिकायघम्म व्यनागमनादिक सु० अंगमविष्टअनेअंगबाबजे श्रुतधर्म समकिनसरूपनारवननिश्चयवती चरि सामायकादिक सम्सदहे जिन्ती लावने सद्दहे सुययम्मखकचरित्तघम्मंच ॥ चारित्रना धर्मनासरूपनो सहहए जिकिरनो कहिए सोच ते बोसनासलावरूप धर्मरुचीनाधपी ना जाएावा २७ हवेसमकितनाचिन्हसरुपानयादेपोतूंमतेकहे निजी
पालिहियं ॥ सोयम्मरुत्तिनायचो ॥२७ ॥ चादिकना पदारयसमयने परमअरयतेने विषे परमब | संपरचयअभ्यासेकरेगुएाकीरतनकरेवा समुचेअयवाचीजेबोसेसुसहसदहणा सहितललिपरेदीएने सेन्सेवाकरवीवान्प्रयवानि ||३१३ संयवोवासदिचपरमच ॥ दीघाचे पच् जीवादिकपदारयना सरूपसमयजेणेएहचानेगुरवादिक सेवएवावि ॥
For Private and Personal Use Only
Page #276
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चार बीजेबोखे प्रथमसमकिन पामीने पविणागतेदरसनसमकिन जेनो तेनिन्हयादिक नेना संगनेवरजवा. चन्दर्जचीचसीएत्रपायथातथ्य || अ.२८ १५ वावन्नकंदंसग ॥ अनेकु, घुरथीज पोटी सदहणा जेनीतेनीपपा संगन वधएायसम्मनसहहणा॥
जेमकहतेम सन्समकिननी सद्दहएा जापाची न नहोए चारित्रसमकिनचिना समकिनन्ने नुः अवधारदोलन २८॥ हबेसमकिननुमोराश्पषं कहेठे २८ नबिचरिनंसंम्मत्तविरुणं ॥ दंसपेजलश्यचं ॥ चारित्रनीलजनाएअने नहिपण स० समकिन अनेचारित्र एबेसायेावे पु. पहिसेबषिसमकिनाचे २९ | नानोहेसमकिनपुर | सम्मत्तचरित्ताई ॥ जुगवंपुवंचसम्मत्तं ॥२९॥ पवे चारित्र अावे . नादंसपिस्स पनेज्ञान ना ज्ञानविना न होए चच्चारित्रनागुण गु. चारित्ररहितपुरषने न नहीएकर्मथीमूकाववो अन्नहिकर्मयी नाणं ॥ नाणविणानझंति ॥ चरणागुणाअगुणिस्सननिमोरको ॥ नजिअमोरकस्सा | अपामूकाणा पुरषने निमुक्तिपदनहि | नि जिनवचननेविषे संकारहित होए निक जिनमतअने परमनएबीझसरपा । धर्मसकसनासंदेह निबाए॥३०॥ ३० । निस्संकिय निकंखियनिवि ॥ नवांबेनजागोनि तिगिलास रहित झएअमनमनांतरनापामबरनथाजूदी र एनहि य किवारेपणकि होमारग षरोजसे एमूढपणो नहिन शुद्दजिनमतनागुणदीपाचेकहेथिः ||३१४ मूढदिछिया ॥ परूपणादेवीने अ-मुमा नुवहथिरीकरणे ॥ वबसप्पलावणेअञ्च ॥३१॥धर्मयीरग्याने
For Private and Personal Use Only
Page #277
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न धर्मनेविपेथिरताकरेवन्सावर्मिकनुपरेवाबसकारिहितनोकारण। एप्पन्वीतरागनावचन शुद्धपरूपवेकरी प्रवचननोआचारलूषएाजाएवा अ.२० ३१५|| अ. श्हां सामाचारित्रएनसे बीजू मुक्तीनुं कारण १८ गाथाएकरी समकितनो अधिकार कयो ३१ हवेत्रीजोअधिकार ५ चारित्रनो कहेचे.
पर प्रथम जापावू सामायक चारित्रसमीपे गन्यापधुंआत्मा दृढकरचोजेजात्रएमारग आराधबोप्रथमतीर्थकरने ल होए बीजु परिहारविसामाश्यपढ़मंचे सासन अने देखाए बेने वेदोपस्गपनी चारित्रहीएएजेदनुस्खापन चारित्र नवद्यावएलवेवी शुद्धनामा चात्रित्रत्री ए कोएक तपविसेष ले जघन्यतो चरसपी आचे निवारपरीसत्कष्टपूर्वकोकि आनषापरजतरहेजेजघनए यं परिहारविसद्वियं ॥ पूर्वनी त्रीजीवस्त नएयाहोए न० ए पूर्व पुरातेपण प्रथमचर्मतीर्थकरने सासनेहोए हा चो, चारित्राष्प संपराय दसमे गुणगणेजहोए सप्पपातसो तेसंपरायसंजसनसोमनाजदयमाटे सषमसंपराय ३२ अ०१६क |सुहमतहसंपरायंच ॥३२॥ अकसायमहरकायं ॥ पायरहिन २८ मोहनीनी प्रकृतितथानुदयलायरहित चारित्रने अव्यपाष्यातचारित्र ५yकहिए जे०११मेतया चारमे गुणगएँ बद्मस्ने होए नि० वा अथवा १३मे १५मे गुरागरो केचपीने
बनमनस्सजिएस्सवा॥ होए ॥ हवेजीवादिक व पदारपने विषे निश्यय १ व्यवहारपएफ कहे । जीचनेविषेनिश्श्यते | असंष्यातप्रदेशात्मकडव्यनुपयोगरूप चैतन्यपएकं अनेतेचैतन्यवंन एकेंद्रियादिक पंचेंद्रियपर्यंत जीवदेहधारी पोतापोता सरीरोगाहणादिका ३१५ नेप्रवर्ततेजीवने विषे व्यवहारनय एकसिद्धने विषे व्यवहार नयी अकर्मकमाटे १ अजीवधर्मास्तिकाय । अधर्मास्तिकाय र सोकासास्तिन
For Private and Personal Use Only
Page #278
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
नः काय३ ए पानेविषे निश्चय ते असंष्यानप्रदेसरूप अरूपीचैतन्यपए; असोकाकासनेविषे असोकिक अनंतपदेस पुदगपनेविषे | ३१६|| एकादिअनंतप्रदेस अचेतनपए एनिश्चय कालनेविषे एकएक पर्यवरूप अचेतनपकं कायनेविषे एक पर्यवरूप अचेतनप] ए
| निश्चय अने धर्मास्तिकायने विषे गमनगुणा १ अधर्मास्तिकायनेविषेथिरगुण २ आकासनेविषे अवकासगुण ३ युदगसनेविषे वर्ण ५. गंध २ रस५ फरस संगण ५श्त्यादिकनुं ग्रहणगुणा कासरेविषे समयादि पुदगलपरावर्तन चर्तणागुपनु प्रवते ने व्यव्यवहार नय जाणवो । यया असंष्यातेसोके अनंतीरात्रिगइ जाएबे जासे एप्रवर्तपा एव्यवहारनय २ जीवना प्रदेसनेविषे शुनपुदगसनोबंध ते निश्चेपुदगलप अनेने हनुअनुनाग लोगववारूप प्रवर्तन तेव्यवहार पुन्यपएं लोगववाने व्यवहारे जणाए । नेमारे ३ जीवना प्रदेसनेविषे पूर्व अविरनि संजोगे मेल्यां तथा वरनमान । अविरतिने संजोगे अशलपुदगलनोबंध तेनिश्चयपकं अने तेहनो लोगचयो ते तदरूपव्यवहार, ते प्रवर्तन तेब्यवहारपकं । अविरतिने अपचपकी विषयने रसेकरी जेकर्मपुदगपर्नु निश्याश्रवपर्फेअर ने अविरत्यादि विषयकषायनु प्रवर्तन ते व्यवहार ते आश्वपएं ॥५॥ अविरनिने पचषवेकरी ५ माअवतुं १० आश्रवना घमनासा पु रचा नयवांकर्मनायेने निश्चय संचरकहिए अने ने संवरनो र्याफमतिरूप प्रवर्तन ते व्यवहार संवर ६ समकितादिकनागुण सु |लचितवनाएकरी जीवना प्रदेसभी कर्म पुदगसनो विपरयो । तेसकामनिर्जरानो निश्चयपकं मरतचक्रिचत् । तेइनी विपरीत मिथ्या ||३१६ । तबाषरांकनासकामादिकनेअकामनिर्जरानो निश्चयपतो ते कर्मचंधनोहेतु जाएवो । अने समकिन सहित १ौतप१७ ले संजमनेविषेमवर्तन
For Private and Personal Use Only
Page #279
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न लरतचकिंवत् । तेव्यवहारसकामनिर्जरा निश्चयव्यवहार । ए बि संघातेजहोए । तेहयी विपरीतेव्यवहार अकामानिर्जरा । अ.२८
जीवनामदेसनेविषे पुदगसनोबंध तेनेबंध कहिए । समुच्चयजीवाश्री १ शुद्द अश६ अध्यवसाएंकरी जेमुत्माशुल बंध तेनिश्चय |बंध तिहां समकितवंतवतनापपीनो श्रुल अध्यवसायने अफलादिककर्मनी निर्जराएं शेषपातला कर्मरया तेणेशलबंधापर समकित्तादिकन करतन्यते बंधनुहेतुनहि अने सुत्माभुल अध्यवसानुं जेमवर्तन नेणेंकरी बंपर्ने व्यवहारपएं जापिएं पक्षण - जीवना सकसप्रदेशथी सकसकर्मपुदगसर्नु मूकाववू ने मोक्ष ते सिद्धपएफ एनिम्विय मोझते सिद्धानिसिघने विषेप्रवर्तनरूप व्यवहार नयी अकम्मसव्यवहारो न विद्यए एक पदारयनु निश्रय व्यवहारपएं कहां बे हवे व्य३ लाव तथा निक्षेपो । तपा
न्य १ पेत्र २ कास३ लाव ५ इत्यादि २३ बोसवीजी अंतर पत्रयी जाणचा पोनपोनाने बेकारो चिनववा ॥ १०॥ ॥ ए० एपांचचारित्र च कर्मनासमूहनेरासवाचारित्र आतीर्थकरेकह्यु हवे नप कहेढे ३३ तन्नपवसीपु बेकारनोकह्यो बान
एयंचयरित्तकर । नेहोए ए— चारिनंहोइाहियं ॥ ३३॥ तवाय विहोवुत्तो ॥ बा| बाह्यनप अन् अप्सितरतेम वा बाह्य व उप्रकारे ए०एमहिन उपकारें अत्यंतरनप ना. ज्ञानें करीजांणे लॉ० सर्वप रं सम
तप कलं. हवेधना ५ गुणा कहेडे ३५ दारयना जाएगा किनेकरीबसी ३११ हिर रोतहा ॥बाहिरोबबिहोवुत्तो ॥एमझिंतरोतयो ॥३४॥नाएोणजापाईलावे दंसो
For Private and Personal Use Only
Page #280
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobaith.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
|| सन्नेलापनेसमासदहे च. चारित्रेकरीनपांकर्मनग्रहेनचांकर्मनांचे तर नकरी प० पारसांकर्मषपावकरी आत्मासुद्द ||अ२९ ३१८ || एण्यसहहे. ॥ चरित्तेपानिगिएहाई ॥ नवेगपरिसशई ॥ ३५ ॥ पाएए तसेपाउसांकर्मेषपेरवा रखपाववाने अर्थ पुर पूर्वकृत कर्मने संज्ञानदरसनसहितसंजमेंकरीत लेपेकरीवली स. सर्वऽषपषपाव खवित्तापुचकम्मा ॥
संजमेएतवेएय॥ सवइकप्पहीएगा। प० माकमकरे ज्ञानदरसनचारित्रनपनेविषे मन्मोटारिषीसर मुक्तिने विषेपोचे सिद्ध पाए रश्मऊं कर. ३. शनिश्रीमौकमार्गनामा पक्वमंतिमहेसिपो॥ तिबेमि॥ ३६॥ तिमोरकमग्गनामाशय अबावीसमं
अशयएं सम्मत्तं ॥ २८ ॥ २८ मां अध्ययननेविषेज्ञानादिक ४ प्रकारे मोरुनो मारगको नेतो संवेगयकी सु० सालप्यु मे सम्मत्तं ॥ २८ ॥ झएनेनपी संवेगादिक ५३बोलनाफल २५ मा अध्ययनने विषे कहेने ॥२८॥ सयंमे आन्हेचिरंजीवीजंबु अथिया आनुसं एग्रामंत्रवचन | कयंतेऐलालगनए एमागणकाने एपोंमकारे इ. पानसंतेणं ॥ जंबूस्वामीप्रतेश्रीसुधर्मास्वामिए लगवयाएवमरकायं ॥ करूं शहरवकं स. सम्यक्त्व पराक्रमनामअध्ययन . सन्मपत्तपसी लालगवंत म. श्रीमहावीरदेव का• कासगोत्री पन्सयमेवअध्ये||३१८ सम्मत्तपरक्कमेनामशय ॥ समणेणं लगवया महावीरेणं । कासवेणं पवेश्या । नकयुं
AAR जनशासनावदा
For Private and Personal Use Only
Page #281
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|| जानेअध्ययन सन् साचेमने सदहिने प.मनीतआगीने रो० रोचवीनेए अध्ययननेरिषे जेमअनुष्टानकरवां कल्यांनेमअनुष्ठानन| अ-२९० ३१९|| जंसम्मंसदहित्ता। पत्तियत्तारोयइत्ता ॥ फासित्तापासश्त्ता करवाने अलिलाषक
रीनेफाइतेअनुानेसेवीनेपा पालीनेनि० तेअनुष्ठानपारपोचामी किन्ने सोच अनिचाररहीत शुद्ध अनुष्ठानकरीने आल्ने अनुष्ठानआराधीने| टानकायाएफस्सी तीरश्ता किट्टश्ता ॥ अनुष्ठाननागुणाकहीने सोहश्त्ता॥ आराहइत्ता॥ आपाए आन्तेअनुष्ठान रुनीआज्ञाए पालीने बघणाजीव सिन् सर्वअर्थनीसिद्धियाकरीसीफेन्सोनाएकर्मपीमकाए पक कर्मरूपिया दाबानस अएपासश्ता ॥ बहवेजीवासिशतिबुशतिमुचति कासोकसरूपनानाएपरिनिबायंति नेनुपसमावेकरी सीनसी लूतएसारीरीमानसी सर्वषना अंतकरेनिक ले समकत्वपराक्रमअध्ययननो ए• अागले कहीसेतेअर्थ एणेप्रकारेंयाच्कहिएनं. ३बो
सबपुरकाणमंतंकरेति ॥ तस्सणंअयमचे ॥ एवमादिधई ॥सजीमतेमअनुक्रमे-तंजहाँ सं वैरागमोरूपोचवानो अलिसाष निःविषयनुपरेरा ध धर्मकरवानीअशा ३ गुन्गुरु साधर्मिकनी सुरु भक्ति करवी । आसंवेगे १ निवेगे २ । अलिषापरहित धम्मसहा.३ गुरुसाहमियसुस्ससपाया ॥४॥पाटो पर्नुासोचवू ५ निव आपणा आत्माना दोष आत्मासंघाने गपापनीगरहवा गुरुसमीपकरे सा सामायक सावपापच्यापारनीवि ३३६६ यगया ॥ ५॥ निंदराया६ । पापनीदाकरे ६ गरहणया ॥७॥ सामाइए ८ । चवीनएल
For Private and Personal Use Only
Page #282
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प० पचषा करे १३
न तीर्थंकरने व गुरुने वंदना करे १० प० पापथी निवर्तवूं नेपकिक्कम ११ का० कानुस्सग्ग करे १२ ३२० स्तवेस्तुनिकरे बंदणे । १० । परिक्कमणे । ११ । करे कास्सगे | १२ | पञ्चस्काऐ १३ । च. संध्यावेसा परिकमएक करतां पचषाण करीने। कलेज्वनि मंगल प· बारबार फरी फरीने सूत्रगऐ | ख० खमावसुं ९६ स० सायकरवी १७ यययुइमंगले १४ । पचषाएाकरेनमथुरां कालपनि लेहपायो । १५ । खमावाया १६ । सझाए १७ । वा० वाचाणी आपवी १८ प० सूत्रादिक प्रर्यादिकना प्रश्नपूढे प• वारवार फरीफरीने सूत्रगणे २० . सूत्रार्थना त्राचितवे ध० धर्मकथाक ह वायएगयाए १८ । परिपुबाया १९५ । परियट्टाया 120 1 स्वल. एकप्पेहा २१ । धम्मकुहा सु० सिद्धांनी आराधना करे ए०एकाग्रमननी पुलस्वापन करे एगग्गमां संन्निवेसाया २४ । संजमे २५ । तवे २६ ।
स. १७ लेदेसंजम न० १२ ले तप
कि स्त्रीप पंरंग रहित
स. पाटिपाटसादिकनो सेवको
For Private and Personal Use Only
अ.२९५
।। २२ ।। सुयस्साराहाया | २३ | चो. कर्मनुं टाखवूं सु० विषयसुषनुं टासवूं २९० अ० अमतिबंधपएकं वोदा २७ । सुहसाए २८ । प्रपबिया २९ । विचित्तरायणा ३० सासेवया ॥ ३१ ॥ वि० विसेषे विषययको निवर्ते संन्यापकं प्राएयु होएजेन्याहार तेह मने बीजे जनीए। होए ते एकग करीने बेची लिए ते संलोगपचषाणक ३२० विशियहाया ३२ । संयोगपचरकाणे ३३ । आहारत्र्याएयुं नबहिपचस्काणे | ३४ । हिन्नुपधिप
Page #283
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न. • सदोष माहार सेवानो पचषाएा करे क० कषायनोपचषाएाकरे जो. शलजीगनो पचषाएाकरे स• सरीरनी शुश्रूषा करवारूप - २९० ३२१ | त्र्याहारपञ्चकाणे ३५ । कसायपच्चरका ॥ ३६ | जोगपच्चरका ३१ । शरीखं पचपाय करे
| स० कारजकामनो करपहार शिष्य ते संष्याए अनेराषावानोपचषाएाकरे.
लातपापीनो पचषाएाकरे संथारो करे ४० स० नादिका
सझायपं
सरीर पञ्चरका | ३८ | सहायपञ्चस्काणे ३२५ । लत्तंचपञ्चरका । ४० । | सनो हिंसादि करवानी स्वलावनुपचषाएा । प० मायारहित जतीनो वेष जतीने न्याचारे के गुणवंत साधूनो वेयाचच करे स० ज्ञानादिक सर्व चषा | ४१ | करे परुिवया । ४२ । बर्ते वैयावच्चे | ३ | सच्चगुणसंपन्न गुणसहित ए • रागद्वेषरहितपणे प्रवर्ते च समासहित प्रवर्ते ४६ मु० पोलरहित पोप्रवर्ते सरसपणे प्रच म० अहंकार या ॥ ४४ ॥ वीयरागया । ४५ । खंति ४६ । मुत्ती 1831 NG | मद्दवे. रहितप्रवर्ते ला॰ शुद्ध अंतःकरणाने लावसत्य || लावसच्चे 10 बर्तावे एनसेलजोगपणे प्रवर्ते गु。 पापथी निवारीनेब | वइगुत्तया ५४ । कायगुत्तया ५५ । मए समाधाराया ५६ ।
क० परिसेहण प्रमुष क्रिया जेली विध करवी कहिए जो० मनवचनकायाना| पार म० सत्यपोम | करणसच्चे ५१ । जोगसचे ५२ । जोगव्या मागुत्तया ५३. वचनपापथी निवारीने बचनगुप्तपणे प्रवर्ते का कायाते युसेकरी साहितम० मनाचे लावेयाप, ३२१ समाधारया ५७ । थापनापूर्ण
For Private and Personal Use Only
Page #284
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
दं० सम्यक्त्व सहित
.. काय साचे लावे संजमनेविषे थापना लगी प्रवरतावे ना० श्रुतज्ञानादिकेंकरी सहित नागसंपन्नया ५९ चचच्तु इंडीनोनिग्रह
दंसएणसंपन्नया ६० । चरिघानासका इंजीनो निग्रह जिवजिल
३२२|| काय समाधारएाया ५८ रित्रसहित सो श्रोतेंडीनोनिग्रह संपन्नया ६१ । सदियनिग्गहे ६२ । चरिदियनिग ६३ । घा िंदियनिग्गहे ६४ । जिझिंइंडीनो निग्रह का फरसेंडियनों निग्रह करे को को जीने मा० मानने जीने 'मामायाने जीते दियनिग ६५ । फासिंदियनिग्गहे ६६ । कोहविजए ६७ । माएाविजए ६८ । मायाविजए लो० सोलने जीते पे० रागदेष मि. मिथ्यात्व दरसनएड ने जीने से मनचचनकायाना जोगसंधीने कर्मरहित ६८५ । सोलविजए १० । पेचदोस मिचादसाविजए ७१ । सेलेसी ७२ । अम्मया ७३ । थइ मोपलचे सं० बैरागमोत पोचवानो अलि । लब्दे पूज्यजीव किसु उपराजे इमे शिष्य पूर्व फूते | स० बैराग मोन्स पोचवा अभिलाषा संवेगेनं साकरी जीवे किंजाय ॥ गुरु सवेगेणं एत्तरं धम्म
1
एंकरी प्रधान धर्मनी श्रद्धा नृपराजे अन्यधानधर्मनी श्रद्धाएं सं० वैराग्य शीघ्र यावे प स्स ंजाय ।
अएफन्तराए घम्मसद्धाए संवेगं हवमागच्छ
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
न० चा. अ.२७
अनंतानुबंधी ३२२ ॥ प्रांना बंधि
Page #285
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|| को कोषमानमाया खोल्सोलनुपसमाचवेपण नदयययोने-णेनुपसमावेअथवा झपकरेनन् अशलमकृतिरूप) तन्तेकर्मनाक्षपनिपिने अ-२५ ३२३|| कोहमाणमायं लोलेखवेइ षपावेचोघेजीव- नवंचकम्मनबंधई । नचांकर्मनबांधे तप्पच्चश्यंचएं
मिमिथ्यातनो वि० शयकरीने दं. एनले साना नव नसंघेनही एहसमुचय जाएyागसनत् दं० झापकसम्यक्त्वनो मिबत्तविसोहिकानुएं । दंसगाराहएलवई ॥ऋष्टिन्ननेमध्यमआराधनाफलकहे दंसपाविसोहिए । | वि. विशद करी विच अत्यंतनिर्मसाएकरीअ कोइकाने लेणेजलवे सिमोफजाई शाश्कचासो सो दरसननी सिधिएकरी वि० अविशछाए अगए ॥ भव्यजीयते । तेणेवलग्गहणेसिशई । सोहिएयपाविसघाए।। संतनिर्म लाएकरीकदाचित त्रीजू त्नवपणा ना० अतिक्रमे नहिं त्रीजेनवे मोरूपोंचे १ निः विषयक्षपरे अलिलाषपणेकरीरहिन लं हेतकोश्तेणेलवे मोक्षनेपहंचे तच्चंपुपालवग्गहरांनाश्वमई ॥१॥ निवेगेएलंतेजीवे किंजराई ज्य जीवकिस उपराजे एमशिष्य नि विषयचपर अलिसापरहिनपणेकरी देवता मनुष्य का कामलोगनेविषे नि- निर्यचसंबंधीयानि विषय ई पूछेहले गुरु कहेले निवेगेणं दिवंमाफूसतिरिचएस कामलोगेस ॥ निचेयं नपरे निरामितापपईंह शीघ्र आवे सह सर्वविषयनेविषे विक्वैराग्यपामनोथिको स सर्वविषयनेविषेविश्वैराग्यपामतोथिको आ आरंमपरिगहनो ३२३ हवमागबई ॥ सब विसएसु विरघई । सविसएस विरघमाणे ॥आरंलपरिग्गहं
For Private and Personal Use Only
Page #286
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न. प. त्याग करे . आर आरत्ननोपरिग्रहनोत्याग का करतोषको संमिथ्यातादिक संसारमाहे लमवानो मार्ग| सि० मोक्षनो अ-२०
परिचायंकरे ॥ आरंपरिम्गहपरिच्चायंकरेमापो । संसारमग्गंबोबिंदई । दे सिदिमाग मार्गप पनिवज्यो होए २ च धर्मकरवानी अडा लंन् हेपन्यजी जीव किक्त नुपराजे हवे उत्तर में धर्मकरवानी अाएसासापमिवन्नेयलवई ॥ २॥ चम्पसझाएगलंते जीवे किंजरायई । धम्मसहाएएंसाया तावेदनी यकी नपना रूपजेहलेविषे र ० त्याग करतोपको वैराग आ गृहस्लपएकंडा अन्जतीयको जीव. सासरीरीमान सोरवेसरधमाएगो विरद्यई। पामे आगारयम्मएचई । अणगारेणंजीवे । सारीरमा सी .. उष बेदनषगादिक ले लेदननासेकरी अ. अनिष्टादीकनो संजोग श्ष्टनो विजोग| बेदीकरे ने चेदवेकरी रासाएकाएंब्यालेयणं संजोगादीवोबेयंकरेई ॥ नेषनोयो । अन् सर्वपीमारहित पूरणे सुरु सुष निपजावे ३ गुरु गुरुसाघर्मिकनी सुत्नक्तिकरवेकरी हेपूज्यजीव किन्तेणेंकरी किसुनपराजे हवे अवाबाहंच सुहंनिवृत्ते ॥३॥ गुरुसाहम्मिय सुस्तसपायाएएलंते जीवे किंजराय उत्तर गुरु गुरुसाघर्मिकनी सुरु सेवा लक्तिकरचेकरी वि विनयपरिवज्येचे जेषे एवा
जी जीव तेणेंकरी || ३२५ गुरुसाहमिय सस्ससपायाएवं विणायपरिवत्तिजणायई । विणयपमिव तेषां । जीवे
For Private and Personal Use Only
Page #287
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shei Kailassagarsuri Gyanmandie
न
३२५
अ. अतिहेसम्यक्तादिकालनेविनासकरेतेवी आसाननान ने नारकी निर्यच अमे म मनुष्यने दे देवतानी फुरगती | अ-२५ अगासायएसीले करेएबोप्राचारजेनोने नेरश्यतिरिस्कजोगियमएफस्स देवगने नि निरंतररुंधे व कीर्ति गुरुनागुरानुदिपाचवू लगुरुत्नक्ति ब बनमानप करवाना गुण नुपराजे व कीर्नितेणेसं गुरुना | निरुत्नई वासजग लत्तिबमाएगया जएण्यश् । वलसजलाल गुणने दीपाववेकरील बबफ़मानपऐ म. मनुष्यनै दे देवता सदगनि नि निरंतरबांधे सिमोस सदमतिनामा त्ति गुरुत्लक्ति बशमाएयाए । मएस्स देवसुग्गश्च निबंध सिद्धिसोहोइंच ज्ञानदरसनादि| वि० विशुद्धकरे. प. प्रशस्त विविनयमूख . स. सर्वकार्यश्वतज्ञानादिकार्यनीपजावै अ अ||कतेहने विसोहोर ॥ पसबाचविण्यमूलाई । सबकधाईसाहेश् ॥ अन्ने|| नेरा ब० घएा जीवने वि विनयने ग्रहरावणहार । आ- आसोचवेकरी हे पूज्य ..जी० जीवसु नपराजे हवे उत्तर यबहवेजीवे विएश्त्तालवश् ॥४॥ यासोयएयाए लंते जीवे किंजयरायरी
आअसोचबे करी मा० माया अने नीयाफ मि. मिथ्यात दरसन स ससनीपरेससतेकेचाळे मोक्षमारगने विधंसना | ३२५ ॥ आलोयगयाएवं मायानियाएं ॥ मिलादंसपासनाएं मोस्कमग्गविग्याए ।
For Private and Personal Use Only
Page #288
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ग्र.२०
.
नियर5॥
.
अ.अनंना संसारना वधाराहार न नधरणकरे नतरे टाखे नु० सरखपएं पूर्णे नुपराजे जसरसपएफ परिवर्नु वे अगतसंसारबाहगाणं ॥ नहर करेइ नधुलावंच जपायई। नकलावंपमिव । जेणे जीजीय अ मायारहित स्त्रीवेद न० अनेनपुंसक वेदच पूरणे नबांये पु०पूर्व ब स्त्रीवेदनपुंसकवेदना क नए जीवे ॥ अमाईचिवेयं नपंसकवेयंचनबंध। पट म बांध्या नए तेनिर्जरे नि आपणा यात्माना दोष आत्मासंघाते पापनी निंदा करवेकरी हे पूज्य जीव नि पापनी निंदाकरकरी
५॥ ५ निंदण्याएवं लते जीवे किंजयई किस्युं नुपराजे निंदपायाए प० हाहाएएमेल्लूकीचूं एवो पश्चातापनीपजावेप० पश्चान्नापेंकरी चिपूर्वकरणी कीधीनयीते अपूर्वकरण करणेकरीगु. पढाएकं तावजएयई। पवाफतावेए विरघमाणे ॥. करगगुरासेगुणगी प० परिवज्य कर्मन्कयरूपपीस क० अपूर्वकरणा प.परिवर्जे . अ अएगार मोव दरसनमोहनी आदिकर्मने दि पमिवद्या पकरेगीपमिपर्ने करए गुपासेदि परिवन्नेय अपगारे ॥ मोहगिद्य क. ___ न कयकरे ६ गत पापनी निंदा गुरू समीपे करवेकरी लं हे पूज्यजीवरूनपराजे ग आपणआत्मानादोष|| ३२६ मंग्याएर ॥६॥ गरहगयाए । लंते जीवे किंजरायई गरहराया
For Private and Personal Use Only
Page #289
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ.२०
न|| नी निंदा गुरुसमीपे करघे अन् अात्माने हीसवानेस्वानकभुपराजे अ० सघलेही खवाना यानक पांमे तेजीवअप्रशन जो मनवचन
एवं करी आत्माने अपुरस्कारंजायई अपुरखारंगएपंजीवे। अप्पसहिंतो जोगेहितो कायाना जोगयीनिचर्तेप प्रशस्तमनवचनकायानेजोगेप्रयते. प० प्रसस्तमनवचनकायांना जोगपरिवाने जे अ. अपगारातले अव नियत्ते ॥ पसबेहियपवनई। पसबजोगपमिवणेय अपगारे ॥ ताकहीए अ० अनंत ज्ञान दरसन तेनेविनासकारीज्ञाननुपजेता अामधीलकारी एवाजेकर्म सा सामायके करी हे पूज्यजीव किस्यूं उपराजे | अपंतपाई पद्यवेववेश् ॥ ७॥ नेना पुदगल षपाचे ७ सामाइए लंतेजीवे किंजराई। सा० सामाइकें करी सा.सावद्य जोग वि० विरति नपराजे ७ च चोवीस तीर्थकरने स्तवचेकरी हे पूज्यजीवकिजकिय सामाइएएं सावधजोगविर जपायश् ॥ ॥ चनुवीसबएणं तेजीवे किंजएण्यई च० २७ तीर्यकरने स्तववेकरी दं० सम्यकत्यने विषे निर्मलपणोज नुपराजे ए वं. गुरूने चांदना करवेकरी हे जीवाकिस्युनुपराजे गुस्ने चनवीसबएणं दंसगापिसोहिंजएयई ॥ ॥ वंदपएणं लंतेजीवे किंजायई । यांदणादेवेकरी नील नीचागोत्रनी चाकुल पांमवा कर्म षपावेन उंचा कुसगोत्रपांमवाना कर्म नि० बांधेशेष नज्वसकर्म रह्या तेने संजोगे || ३२७ वंदपाएएनीयागोयंकम्मखवेई नच्चागोयकम्मनिबंधई उचा कर्म बांधे
नपराज
For Private and Personal Use Only
Page #290
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३२८
मो. सौत्नाग्यपणं सबालकुमारनीपरे नपराजे अजेने आदेसदेए ते मान्जेने आदेसदेर ते नाकारनफरे आ- आज्ञानो) दारु वचन अन्तर सोहग्गंचएं अप्पमिहयं ॥ कारन करे. आगाफलनिवत्तेइ फवनीपजावे दाहिए बोसतांबीजाजीवने सपनुपजेनेवा वचननी१० प० पापथी निवरतवो ने परिकमण करवेकरी ल हे पूज्यजीव कि किस्यु फपमिक
लावंचपंजएयई ॥१०॥ परिकमणेएलंते जीवे किंजयई पमिकमरोणं मएाकरवे करी व अतिचाररूपिया बिडपणे पि० ढांक्याडेव्रतरूपियाठिपु-वसीजीव निरुध्याले आश्रवणो जीवहिंसादि अ. सबस वयविद्याइं । पिहेपिहियवयविद्दे । पुराजीवे निरुदासवेअसबखंचरिते रहिनचञ्चारि नजेनोने अ. भावप्रवचन मा० मात्तानेनिषेनु सावधाननहोए अ. संजमजोगयी असगोनझए सुलसीपरे संजमनेविषे समाधीवंत
अवसुपवयएामायासनवनुत्ते ॥नेनपी अपहने सुप्पणिहिदिएविहरई ॥११॥ विचरे ११ का० कानस्सग करवेकरी लं. हेपूज्यजीव किस्यु नपराजे का कानुस्सग्ग करवे करीअन्नतीतनेविषेप वर्तमानकामनापा प्रायश्चित्ता कानस्सग्गे लंतेजीवकिजएयई । कानुस्सग्गेएतीयपमुप्पन्नं। पायचित्त आवेनेहवाअनिचारने वि.विशेषजीव
जीवन निरमसकर वि.विशुद्धथयोडतो पा० अनिचारपी निरमसतए तेजीव निः निवृत्तिपणासहित ||३२८ विसोहेइ विरुद्धपायचित्तेयजीवे निबुयहियए मुझे जेनो निवृत्ति हश्यानो धपीने उहरिय नन्जसारख्योलार
For Private and Personal Use Only
Page #291
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मला मारना वहगाहार नेनीपरेकर्म प० प्रशस्तध्यानपाम्यो सु० सुष पामबानी परंपराएं सुषनी श्रेणीएं करी सुषे विचरे पपचषाण कर अ-२० 3२०|| लागेवत्मारवटे लाव गाएत पसन्चनाएगोवगए सुहंसहपाविहरई ॥१२॥ १२ पच्चस्काण| वेंकरी हे पूज्यजीव कि किस्युं नूपराजे प० पचपाण करवेकरीया० आश्रवहाररूंधे प० पचपाए एलंतेजीवे किंजपयई । पञ्चकाणेणं आसवदाराई करपेकरी निसंलइ॥ पञ्चस्कारोणं ३० तृष्णारुधवानी नुपराज करे ३० तृष्णानोरूपयो ग पाम्याएवाजेजीव स- सर्वऽव्यनेविषेवि तृष्णारहितयको सी. सीनसीयूतथकोले इनानिरोहंजयई । श्वानिरोगएपंजीवे सबदवे सुविधीयतएहे सीयतलूएविहरई ॥६
थ. संध्याचेसापचपाएकरीपबेनमोथुपंकहे ने स्तवन स्तुतिमंगसिककरी ले हे पूज्य थे. स्तवनस्तुति मंगलीक करी नान ज्ञान
थियथुश्मंगलेणंलंतेजीवे किंजएयई जीव किस्युं नपराजे थयथुई मंगखेणं ॥नाए दरसन चारित्र . बो. जुद्दिनो उपराजे ना. ज्ञानदरसन च० चारित्ररूपिन बुधीनो सात्लनुपराजे नेणेकरीसहितक दसएचरिते । बोहिलालंजएयश् ॥ नागदंसएचरिन्तबोहियाले ॥ संपरजीवे । एसंने जीव मोहनी आराधनाकरेअथवा क. बारदेवसोक ए ग्रैवेयक ५ अनुत्तरविमान तेनेविषे आ आराधे १४ || ३२५ अंतकिरियं कप्पं विमापोववत्तियं न चपराजवानी आराधना आराहएं पाराहे ॥१५॥ ||
For Private and Personal Use Only
Page #292
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नु. का. स्वाधायनो प० प्रतिक्षेषवे करी ३३०|कास काल पहियाए
ल. हे पूज्य जीव किस्युं नृपराजे का स्वाधायनी काल प्रतिलेषवेकरी ना० ज्ञाना. अ. २० संते जीवे किंजाय ॥ कास परिसेहण्याएवं नाएाव वरणी कर्म ख० देपावे १५ 'पापापने वेदेते प्रायश्चित्त सीधी होए ते करवे करी ल० हेपूज्यजीव किस्युं नृपराजे रणिकम्मरखवे ॥ १५ पायचित्त करणेएलंते जीवे किंजायई । पायचिन्तकरणे पा० पापने बेदेते प्रायश्चित्तसीघो होए ते करवेकरील० हेपूज्य जीव किस्नुपराजे पा० प्रायश्चित्तनेकर ने करी म० मोर पावकम्मं दिसोहिजएयई । निरइयारेयाविलवई सम्मंचणं पायश्चित्तंपरिवद्यमाणे मगं नोमार्ग सम्यक्त्वने पूर्ण मोनो मारग सम्यक्त्व तेहना फलज्ञान या चारित्र अने चारित्रना फ० फलमोच्दा तेने प्राराधे १६ चमग्ग फसंच विसोहेइ तेनें निर्मल करे आयारंच प्रायारफसंचाराहे ॥ १६ ॥ स्वमामावबेकरी स्व. खमाववे करी चित्तनुं प्रसन्नरूप लालिमायनपराजे पचित बायाए लंबे जीवे किंजाय ॥ खमावण्याएवं पहायलावं जाई ॥ पल्हा नुं प्रसन्न रूप लालिमायपाम्योयको स० सर्वमापीलूत जी० जीवसत्वनेविषे मि० हितचितव्यारूप मंत्र लावनपजावे मि० मंत्रलाव ३३० याला वागण्य ॥ सञ्चपाएालूयजीवसत्तेरू || मिचिलावंनप्पाए । मित्तिलाव
स्व०ख
लंच हे पूज्यजीव कि० किस्नुपराजे
For Private and Personal Use Only
Page #293
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न. पाम्योयको जीव
ला॰ लावनुं वि॰ विशदपएकं रागद्वेषरहित नि करीने इहलोकादिक ७ लयविषे रहित स० सजा - २९५ ३३१ मुनु गयापिजीवे ॥ लावविसोहिकानां निझएलव ॥ ११ ॥
१७ | यकरवेकरी ल• हेपूज्य जीव किस्युंनपराजे स० सजायकर वे करी ना० ज्ञानावरणी क० कर्म षपावे १८
सझाएणं वा• चांचणी देवे
० सिद्धांतने प्रवसंबे
लंतेजीवे किंजएायई । सझाएपां नागावरणियं कम्मखवेई ॥ १८ ॥ वायुयाएकरी हे पूज्य जीव कि० किस्युं नृपराजे वा० वांचणी देवी तेणेंकरी सु० सिद्धांतनी एलंते जीवेकिंजाय । वायायाएां निध रंजय सुयस्स अएफ सज्जएगया सेवे तेहथी • आसातनाए प्रवर्तीस सिद्धातनी च्या सातनाएं सिद्धांतनेव व वर्ततोयको ति० गए। धरना याचार न्या एणासायायाएवढइ सुयरस या सर्जेराव आणासायायाएवद्रुमाणे तिचधम्मं अवलंब चरेजेमगाधर बांचणीदीएतेम अथवा सिद्धांतना सजायनेकार्थे ति गए। धरना धर्मम० म० मोटी निर्जरानो कारण होए लवना इ तिबधम्मं वसंबमाणे महानिघरे आचरतोयको मदापद्यवसाोलवई ॥१९॥ तनोकर तथा कर्मनात नोकरणहार होए प० सुत्रार्थिना प्रश्नपूब्वे करी हे पूज्य जीव किस्सुन पराजे पः सचार्यादिनापूर्व ३३१ एाहार परिपुञ्जायाएां लते जीवे किंजायई । परिपुचएायाएां सुतलया
For Private and Personal Use Only
Page #294
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
5. वि० निर्मल करे संदेहरहित टासेने कं० सूत्र अने कार्य एोप्रकारे करी युजने लएावो के लगावची इत्यादिकवांगरूपमोहनीकर्म पर वारं . २ ९५ ३३२ विसोहेड संदेहासवेकरी कंस्वामोहलिकम्वोविंद ॥ २० ॥ मिध्यातने बेदे टाले २०
परिय
वार फरीने सिद्धांतला बेकरी हे पूज्य जीव कि स्युनुपराजे प० वारंवार सिद्धांतनेफेर वे गुएोकरी अक्षरवीसरता होए तेनेच पराजे कं० अन्तरानुसार हयाएां लंते जीवे किंजाय । परियहण्याएवं जएगाइंजाय ॥ वंजालचिन सिबधि तथा पदारथानुसारएपी सधि उपजे २१ प्र० सूत्रना अर्थचिंतवेकरी ल० हेपूज्यजीवसुंनुपराजे म० सूत्रनामर्थचिंनववे करी मा० मानुषा प्पाई ॥ २१ ॥ एफपेहाएां लंतेजीवेकिंजायई । मान
स. सातकर्मनी प्रकृति
ध० गाठे बंधने बांधी ने ते
कर्मनी तिव यवधाने ।
एकपेाए । सि० [सियल बंधने बांधे ते प्रकृति करे सिढिलबंधाबद्धापकरेई । तितीरसपणे जे कर्मनी प्रकृतिबांधी नेतेमं
सत्तकम्मपगमीन धणियबंधाने । | दि० घणा कासनी स्थितीए जेकर्मनी प्रकृतिबांधी बेतेर थोमा कासनी थिति करे. दिहकासया । र॒ह॒स्सनु॑ का॒न्विश्यानु॑ष॒करेई । तिवापुनावाने मंदाएफनावा मंदरसपणे करे ब。 घणा कर्म नापुदगल एते ० थौमा पुद्गल करे ० आषाकर्म सि० कदाचित् कोइकबांधे सि० कदाचित्नबांध ३३२ नेपकरे । बरुपए सगा । अप्पपएसंगार्नुपकरे । त्र्यनुयं चांकम्मंसियबंधई । सियनोबंधई
For Private and Personal Use Only
Page #295
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न [अ०] असातावेदनीकर्म
नो०० वारंवार नुन बांधे
अ०मनादिते यादिरहितबे
इयंच
त्र्यं. त्र्यंत रहित दी ० दीर्घ अ.२७ गदगंदीह ध० धर्मकथा कहवेकरी हे पूज्य जीव धम्मकहाणं लंतेजी
३३३|| असायावेयणिचंचगं कम्मनोलुखोलूयो नवचिएगाई ॥ पंथवे चा० च्यारगतिरूप न्यावेवे जेने विषे सं० जे संसारमरवीते खिन्शीप्रजन्मनुक्रमे मोक पाये २२ मऊं चानुरंत संसार कंतारं खिमामेववीय ॥ २२ ॥ | जीव किस्युं नृपराजे ध० धर्मकथा कहवे करी नि० कर्मदाय कर वा नीविधनुपराजे प० सिद्धांतना प० प्रलावनागु करी सिद्धांतना गुए। दीपाचवे बेकिंजायई । धम्मकहाएां निरंजाय ॥ पवय ंपलावेइ ॥ पवयांपनावां प० सिद्धांतनागुणदीपावबेकरी | प्रा० त्र्यागसेलवे ल० कस्याएाहोए कर्मफलनपूराजे २३ सु० सिद्धांतनी माराधना कर बेकरी लॅ. हे याएणं जीवेयागमि सिस्सलता कम्पनिबंध || २३ || सुयस्समराहायाएां लंते पूज्य जीव पराजे सु० सिधांना रांधनी करवे करी | जीवे किंजाय ॥ सुयस्स माराहएायाए | ए० एकाग्रमननी सं०थापना नेटकरी लं. हे पूज्य जीव किस्युं नृपराजे
म० अज्ञानषपावे
न० कसेसना लोगवएाहारनहि २४
।
| एगग्गमांसंनिवेसायाएएां लंतेजीवे किंजाय
अल एां खवेई नयसकिसिस्साई ॥ २४ ॥ ए० एकाग्रमन श्रुत सं० थापना करवे करी चिनुन्माद ३३३
॥
एगग्गमणं संनिबेसणयाएएां चित्त
For Private and Personal Use Only
Page #296
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३३३
चित्त जातो कएनेहनो निरोधकरे सं. सनरत्नेद संजमेंकरी ल हेपूज्य जीवकिस्र्युनुपराजेसं ० संजमेकरी अन् आप्रवरहितपणे नपराजे २६ || अ.२९० निरोहकरे ॥२५॥ संजमगलंतेजीवे किंजयई । संजमेएवं अग एहत्तंजरायशा२६ न० वारत्नेदतपेकरी ल हे पूत्यजीव किस्युनुपराने त बार लेद नपेंकरी बोल पूर्व जेबांध्या होएतेकर्मन् वो कर्मनेटासवेकरीहपूज्यजीव किं स्लपरने तवेएलंतेजीवेकिंजपयई । तवेरांवोदाएंजएयई वोदाणेगलंतेजीवे किंजयई | चो० कर्मने टासवेकरी अ. पापनीक्रियारहितपणुं नपराजे अ. पापनी क्रिया रहितपणे थईनें ततिवारपन्नी सर्व अर्थनी सिद्धि कमाए
वोदापोएं अकिरियंजएयई । अकिरियाएलवित्ता । तपन्नासिसई कु बूझ लोकालोकनो मुन्संसारथी मूकाए प० कर्मरूपदावानसने टालवेकरी सीतस. सर्व उपनो अंतकरे. २८. सु. विषयसुषने बुझाई सरूपजाणे मुच्चईपरिनिवायई लीलून थाए सबस्काएामंतंकरेई ॥२८॥ सुहदाखवेकरी हे पूज्यजीव कि सुनुपराजे हवेनुत्तर स विषयसरवने दाखवे. अचलपणारहित अएलकपए नुपराजे साएएनंते जीवे किंजरायई। सुयसायाएवं अएफस्सयत्तंजरायई ॥ अ. अचलपपारहित अएकबकपणे करी जीव अपरजीवनेषुषीने तत्काल कंपेते अनुकंपक अव्हरपवादरहित च चारित्रमोहनीकर्म ||२३४ अएस्सुयाएपंजीवे । अएफकंपए अएफप्तमे विगयसोए सोकरहित चरितमोहणिय
For Private and Personal Use Only
Page #297
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
३३५
ख० षपावे २९ अन् अप्रतिबंडपणे ल हेयूज्य जीवस्युचपराजे अ अप्रतिबंधपणे नि स्त्रियादि| अ-२६ कम्मरखवेश् ॥२५॥ अपमिवड्याएएभंते जीवे किंजरायई। अपरिवश्याएएं निस्संग कना संगरहितपएकसपूराजे मिस्त्रियादिकनासंगरहित्तपएजीवए० एकसोरागद्देषरहिनए एकाग्रचित्तधर्मध्यानने दिवसरात्र अनस्त्रियादि तंजएय। निस्संगतएपंजीवे एगे एगगाचित्ते दियायराय असद्यमाणे करहितपणु अस्त्रियादिकरहितपणु अ० प्रतिबंदरहित वि विचरे ३० विस्त्रिपरू पंगरहितस. पाटीपाटसादिकसेववेकरीलं हेपूज्यजीव किस्युन
अपरिब याविविहरई ॥ ३०॥ विवित्तसयपासासेवरायाएलंतेजीवेकिंजय पराजे हवेनुत्तर वि० स्त्रीपरूपंगरहितपाटलादिक से सेववेकरीच चारित्ररक्षानुपराने च चारित्रनीरक्षाएं करी जीव विक विगयप्रमुषसर विवित्तसयपासएसेवण्याएवं ॥ चरित्तगुत्तिजयई । चरितगुत्तेयएंजीवे विवित्ताहारे | साइरहित दानिश्वपचारित्र ए० एनिश्रतिवंततपसंजमने मोल मोक्षसाधवाना अंतकराअलिप्रायतेपोंकरीअाव्प्रकारना कर्मनीगांउ पप दढचरित्ते नोधणी एमतएए विषे मोस्कनावपमिवणे। अवविहकम्मगनिनिधरे ॥ वे ३१ वि०विसेयेशिक विषययीनिवर्तवेहे पूज्य जीव किं फिस्युनुपराजे विविसंधे विषययकीनिवर्तवैकरी पा० पापकर्म अअएकरवेक ३३५ ||३१ ॥ विगियडएायाएएलंतेजीवे किंजपायई। विणियहएयाएवं पावाएंकम्माएं अके
For Private and Personal Use Only
Page #298
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ० धर्मकरये करी पु. पूजे पापकर्म बांध्याले जेने निः निर्जरवा तेणें करी. तं ते पापकर्मनेटाखे त तिवारपनी चाच्या अ.२० | रगयाए अनुवेइ। पुवंबहाणाय । निधरण्याए। तंनियतेइतनुपला चान रगती सं० संसाररूपणा अटवीनुसंघे मोक्ष परचे ३२ सं. आपए आपए एजे आहार ने अनेबीजेजतीएं तेएकग करीनेवेचीसी रंतसंसारकतारंबीईयवर ॥ ३२ ॥ संलोगपचरकापोरा लंतेजीवे किंजएगयई । संलोगप. एते संलोगकहिए तेसंलोगनो पचपाएकरवेकरी हंपूज्य जीवसुं उपराजे हवेनुत्तर एकग आहारकरवानो पचपाएकरवेकरी अाजे चस्कारोए प्रासंबगाववेइ । रोगीया असमर्थ होए ते बीजाजती आधार बांबे यासंबनकहिए एवाभासंबन आ गत आलंबन रहित आ० मोफतथासंजमतेनौ अरथजेने एवाजतीने संजमनोव्यापार नए स०आपपोपोताने पालेकरी सं संतोष निराखंबएस्सय ॥ आयतवियाजोगात्मवति । सएएसाले संतुसई पामे प० बीजाजतीनासालनो नो आसानकरे नो० एमुझनेदीए मनेकल्पनानकरे नो आपणा आत्मानीवांगवचने करीबीजाजतीनेजणा परस्सलालं नोआसारई । नोतकेई नोपीहेई नोपजेई नोअनिससई बेबीजाज तीकनेजावे नो अत्मिसाधानकरे प० बीनाजतीनाअ० अासाना- अं॰एमुजनेदीएएम मनेकरीकलनाप्रपाकरतोथिको अापणीवांगअाज ३३६ नहीं | परस्ससालं अपासाएमाएो करतीथको अंतक्केमागे अपीहेमाणे अपञ्चमाए करतापकाए |
For Private and Personal Use Only
Page #299
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ.बीजाजतीकने अएजाचतोयको दो वीजा सुषसज्या नु० अंगीकार करीने विचरे ३३ मुं० नुपधिनुपमरण अख
अएलिखसेमाएगे। दोञ्चसुहसिचं नवसंपधित्ताविहरई ॥३३॥ नवहिपच नो पचरवाएगाकरवेकरी हेपूज्यनीय किस्कू चपराजे हवेनुत्तर नु० सदोष आहारखेवानेपचरवाणेकरी स्वाध्यायादिकनाव्याघातरहिन स्काणेलतेजीवे किंजएयई। नवहिपचस्काएगणं ॥ अपलिमयंजएगायई पानपराजेनि | नुपधिरहितपणेकरीने जी जीवअनिसाधारहित वस्त्रादिकनी नपधि विनानम् सरीरमांनसिसंबंधिकिसेसनपामे आ. सदोषाहारने वहिएवं जीवेनि करके नवहिमंतरेगयनसंकिलिस्सई ॥३४॥ ३५ आहारपचरकाणे खेवानेतथाचथनगदिकाहारनेफ्चषाणेकरी हेपूज्यजीवकिस्युनपराजेहवेत्तर-या सदोषापचषाणेकरीजी जीवतव्यमा न्यासा एवं मंतेजीवेकिंजएगवई ॥ आहारपचस्काएगणं हारसेवाने जीवयासंसप गंवोचिंदई ।। यांना जुकरवो ते बेदे जी नीयतव्य बांगनु योन्जेदे जी जीव आहारविना न० किलेसनपांमे ३५ ककषायनेपचषाए जीवियासंसप्पलंगपोबिंदित्ता ॥ जीवेआहारमंतरेरायनयसंकिससई ।। ३५ ।। कसायपचरका करवेकरी हे पूज्य जीव किस्मुनुपराजे हवे उत्तर क० कयायपचषाए। करवेकरी वी रागद्देषरहितवीतरागलावनपराजे वी रागदेवरहितला ३३१ गेणं लंतेजीवेकिंजपयई ॥ कसायपचरकापणेणं । वीयरागंलावंजएयई । वीयरागत्लावं
For Private and Personal Use Only
Page #300
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नुः प० परिवज्र्ज्याचे ते जीव साधुने सर्वक पायनोपचषाए। बेते लागनोस• समसरळे सु० सुषपुषनेविषेहोए ३६ जो० मनबचनकायाना अशल जोग क्र.२९५ ३३८ परिवोवियजीवे ॥ समसुहस्केलवई ॥ ३६ ॥ जोगपचस्काएो।लंते जीवे किंज व्यापार तेणें पचषाोकरी हेपूज्यजीव | जो० जोगने पचषाणेकरी म० प्रयोगपएक मनवचनकायानायोग व्यापार रहिततेने अ० मनवचन एयई || किस्युं पराजे जोगपचस्काएां जोगीयां कायांना शुभयोगव्यापाररहित होए जे जीवनवां करम पु० पूर्वे जे कर्म बांध्या होए ते निर्जरे ३१ स० पचखाएा करवेकरी हे पूज्य जीव जीवे नवकम्मनबंध । नबांधे पुत्रबधंचनिद्यरेई ॥ ३७ ॥
जोगतंजयई ।
सरीरपचस्का
लं
कि राजे हवे त
स॰ शरीरनी शुश्रूषाने पचषायें करी सि० सिद्धना प्रतिसयना गु० गुएापएकं वर्ण गंधरसफरस ते जीवेकिंजाय । सरीरपचस्काोणं । सिद्धाइंसयगुएान्तं रहित तं | नि० निपजावे सि० सिद्धना अतिसय गुणगुणोंकरी सहित " जी० जीव सो० लोकाग्रमन्दन पाम्यधिको पतिसुषी होए ३८ निवत्तेशसिद्धाई ॥ सवगुणसंपलेयां जीवेलोगग्गमुवगए परमसुही लवई ॥ ३८ ॥
स. कामकार्जनो शिष्य सषाय ने राषवाने प० पचषाएाकरवेकरी हेपूज्य जीव स० समायने राघवाने प० पचषाएं करीए० एक सापएफंजन्न ३३८ सहायपचस्काणेणं लंतेजीवे किंजायई किस्युंनपराजे सहायपचस्काएां एगीलावंजाय ।
For Private and Personal Use Only
Page #301
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shei Kailassagarsuri Gyanmandie
३३९
न|| पराजे एक एकत्सापक पाग्या वे जीव एक एकलापपुस्मायतोषिको म अस्पकहतां अनावशब्दकरधो होए नहींअव्यचननोकसहकरयोनही अ-२२०
एगीलावंल्लूएपंजीये। एगग्गलावेमाएगो अप्पसद्दे अप्पऊंफे अप्पकबहे पाणवधरूप कसह करवोनहि कसायकरयोनहिं अन् तूं तूएमकरवू इत्यादिकन सं संजमघए ऊए संघ संवरघएपो होए स समाधि घणो होए
अप्पकसाहे अप्पतुमंतुमे । थाए ते जीवने संजमबझसे संवरबझने । समाहिबशाखे। स. ज्ञानादिक समाधि करी होए ३९ ला आहारपाणीप्रमुघ लातपाएीनुएतले संथारेकरषेकरी हेपूज्यजीवे किस्यु | समाहिएयाविनवई ॥३॥ लत्तपचस्कारगणं लंतेजीवेकिंजरायई । नपराजे ला आहार प्रमुषत्नातपाएीनुं पचषापो अघएा लालवना सषयकरयानो कर्मइए ते राखे। स.अनादिकापर्नु लत्तपचस्कारोए ॥ करी अगाइं लवसयाई निरुत्ल ॥॥ सझावपच हिंसादि १८ पापस्मनक्क रवानोजीवनो सत्नाव बेपचपाए। सर्वचीरनिनें करकरी स. जीवना सत्भावनु प. पचषाण सर्व पिरति स्काणेलंतेजीवेकिंजएयई हेपूज्य जीव किस्यु नुपराजे हवेनुत्तर सझावपचरकाऐएं करयेकरी अ अनुक्रमे शुक्ल ध्यानना चोथालेदते मोझनेपांम्याविनापागेवसेनहीं एवो अ. शुकसध्याननो चोयोत्नेदेने प० परिवाअ-|| ३३९ अन्नियहिजपायई । सुकसध्याननो चोयोत्लेद नुपराजे अनियहिपमिवन्नेय अणगारे।
For Private and Personal Use Only
Page #302
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जनच्यार फेवतिकर्मनाविभागनेख यमायेते ते जेमतेमअनुक्रमेकेले दे वेदनी १ आ.आनुषुर नामगोत्रकर्मझयकऐतिवारासि- अ.२०
चत्तारिकवतिकम्मंसे रववेई। जहा वेयणिचं आनयनामगोत्तं तनपवासि | सीके खु० बूझे खोकालोक सरूप जाणे स० सर्व फुपयीमूकाए प० कमी+नुपसमकरीसीततीलूतथाए स० सर्वधनोअनकर ५१ झई बुशई सुच्चाई परिनिचायई रूपियादावानस+ सव्वपुरवाएगमतेकरेई ॥३१॥ प.फटप्रगट व्यवहार सुसाधूनेवेषेकरील हे पूज्यजीव किस्युनपराजे प० मायारहित शुद्धवेषयती पणेंकरीला अन्ययी पफिरूवयाएएलंतेजीदेकिंजएयई। हवेनुत्तर पमिरूवयाएए साघवियंजराय अपनपगरपानपधि लावधी अप्रतिबंपोनपराजे त० व्ययी लावथीलपगरण अप्रमादरहित पा निश्वेव्यव ईपर्फअने सलूएएजीवे लावरहित इसयो जए तेजीव अप्पमत्ते पागमाथिंगे | हारशुधजतीनो वेषजए कि निर्मल स० सम्यक्त्वनो धणी ऊए स० सत्वनी बसवीर्यपए स. संपूर्णउजेनेतेलए। पमञ्चसिगे विछसमत्तेसत्त समिश्समत्ते । सबपाएनूय ॥ जीवसत्तेसु ससवे| प्रापालूतजीव वि० पीमानकरे ने लएगीविस्वास नपजे नेवी रूपले अ० अस्पप्रतिसेषना बेजेने थोमानुपगरण ३५० सत्यनेविषे वीसपियरूवे ॥ अप्पपरिखेहे जिदिए । एतेने योगी प्रतिखेषनाकर
For Private and Personal Use Only
Page #303
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ग्रपण
भी होएनेजितेंडी विविस्तीर्ण नयस समतिमर्जादादिके करी महिनन थाए वे प्राचार्यादिकनीचेयावतकरीहेपूज्य जीवसुंनुपरानेहवेन अ-२५ विनसतवसमिइसमन्नागएयाविलवई ॥४२॥ वेयावच्चेपांलंते जीवेकिंजगई ॥ तर वे प्राचार्यादिकभीवेयावच करबेकरी नितीर्थकरनामगोत्रकर्म नि बांधे ४३ स.सर्वज्ञानादीनुगुण संसहित ल हे पूज्यजीव किस्क वेयावच्चेपांतिपयरनामगोनकम्मनिबंधई ॥४३॥ . सच्चगुणसंपपयाएपंलंतेजीवेकि नुपराजे हवेनुत्तर स. ज्ञानादि सर्वगुण संसहितपणेकरी अं संसारमाहेवली अगावचो नपराजे मोक्षपचे अन् संसार |जयई । सबगुपसंपपयाए । अपुएरावत्तिंजाई । माहे वसिन्यगाववो प.पाम्योयकोजीब सा सरीर मानसीडुपनोलोगवणहार नहीं
वी चीनरागराग देषरहितप. रावत्तिपतएएजीवे । सारीरमाणसाणंउस्काएनोलागीलवई ॥४४॥ वीयरागया फ ल हे पून्यजीव किस्जुनपराजे इवेनुत्तर वी० पीतरागद्वेषरहितपणे नेव पुत्रादिकने विषे स्नेहबंधन ति सोत्नरूपिनबंधन एपलं जीवेकिंजण्यई। बीयरागएयाएएनेहाएफबंधगाणिय । तिएहाणुबंधगा.
वो बेदे म० मनोज्ञ अरु अमनोज्ञ स०शब्दफरसरसरूप स्वादमधुरादिरूप गंगपनि ओवैराग पामे धए रक झमाए ३०१ णिय वोविंदईमएफलामोस सद्दफरिसरसरूवंगंधेसुचवनिरधई ॥४५॥ खंति
For Private and Personal Use Only
Page #304
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
३४२
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
स्
करी हे पूज्य जीव किस्कनुपराजे हवे उत्तर खं० कमाएंकरी परिसहने ज० ते सहे ४६ ० निर्सोलपणे करी हे पूज्य जीव एएलंते जीवेकिंजाय । खंतिएपरिसहेजाय ॥ ४६ ॥ मुत्तिएलंतेजीवे मु० निर्लोकरी परिग्रहरहित पएफ उपराजे • परिग्रहरहितपणें जीव इव्यनासोसपी किंजायई । मुत्तिएां किंचां जायई । किंचयजीवे सोसाणं. चोरादिकपुरुषने म० अपात्र्ालिसाषूनिक लए परिग्रहरहितने चौरादिक सुटवानो अ० सरसपों करीहे पूज्यजीव किस्युं नृपराजे हुवे। पुरिसाएां ॥ प्वहिवई ॥ ७ ॥ लवनकरे द्यवयाएएां लतेजीवे किंजायई | उत्तर प्र० सरसपरों करी का० कायाएकरी सरसप ला• अलिप्रायनुं सरलपएफं होएलान लाषानु सरसपण होएत्र्मन् परजीवने पुषदेव ॐ० नंपराजा द्यवयाएां कानृजुयत्त लावत्र्यत्तं । लासुजुयत्तं । त्र्यविसंवायांजायई । ० परजीवने पुष न देवे नेणें करी सं० सहित जीव ६. धर्मन राधक होए
म० अहंकाररहित पोकरी
For Private and Personal Use Only
चर
मद्दवाए
विसंवाएणं संपलया एएजीवे । धम्मस्साराहएलवश् ॥ ४८ ॥ लं. हे पूज्यजीव किं० सुनुपराजे हवे उत्तर म० अहंकाररहितपणे करी . एनछनए उपराजे ० पानपतपणें करी सहित जी० जीव ३४२ लंतेजीवेकिंजायई । महवयाएां एफसियत्तंजाय ॥ सांजवे ।
Page #305
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३४३
- मिल सुहासापकं अने म. अहंकाररहिनपएफ.) अ. जानिमद १ कुसर बल३ रूपथ्यौवन ५ ऐश्वर्य ६ श्रुतऽ साल ला भुइयतका अ२६ | मिनमदृवसंपन्ने ॥ सहिन अवमयबागार्शनिवेश ॥४॥ ए८ थानक टासे पण लावसच्चयां रणेकरी हेपूज्य जीव सुनुपराजे हवे नुत्तर नाक लावशुअंतःकरणेकरी शुधअध्यवसायने जानुपराजे मास शुनावअंतःकरणेकरीक लंतेजीवेकिंजयई। मावसच्चेरालावविसोहिंजपायई। मावविसोहिएवमा वरततोयको जीव अ. अरिहंतना प० परूप्या धर्म आठ आराधनाने विषे नुदमवंत थाए अपरिहंनना प०
जीवे । अरहंतस्सपहातस्स धम्मस्स । श्राराहाण्याए अपवेड परूप्याआराधनानेविषे अ नद्यमवंत थईने प. परलोकनेविये ध० धर्मने आराधक थाए धर्म पाम ५० कन्करणासत्या पलात्तस्स आराहपायाएअनुष्ठित्तापरलोए धम्मस्सयाराहए लव ॥ ५० ॥ करणं प्रते सेषणा तेमकरेते करण सत्येकरी हे पूज्यनीव सुनुपराने क प्रतिसेषनादिकजेपी विधे क्रियाकरवीकहीले प्रत्येकरीजीवक क्रियाकर |सञ्चांनंते जीवकिजगया। हवे उत्तर करणसच्चराजीव। मकरेतेकरए करास वानासमर्यथाएक प्रतिसेषनादिक जेपी विध क्रियाकरची कहीचे तेम | जीव ज जेमवाध्वचनेकरीकहे मेक्रियाएमकरवी त० तेमजाकिया करे५१||३५३ ई करएसच्चेवट्टमाणे जीवे । करेते करणासत्पनेविषे जहावाई तहाकारियाविलवई ॥५१॥
For Private and Personal Use Only
Page #306
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३४४
जो मनवचनकायानाजोगसत्यपणे प्रवविवेकरी हे पूज्य जीवसू जोक मनवचनकायाना योगसत्येकरी मनयचनकायाना योगदोषरहि अ-२० जोगसच्चेणंलते जीवे किंजएयई । नुपराजे जोगसच्चेणंजोगेविसोहेई । ५२ ॥ नथाए ५२ म. मन जोगपापची निवरतावे गु गुसकरवेकरी हे पूज्यूजीवसुंनुपराजे म. मनपापथी निवारीने गुप्तपणेकस प्रचरनाचे ए० एकाग्रचित मागुत्तयाएणं लते जीवकिंजएयई। मणगुत्तयाएपंजीवे ... एगग्गचिन पणे नुपराजे ए. धर्मनीविषे एकाग्रचितपणे जीव म पापथी मन निवारीने गु० गुप्तपपो प्रवरनतो थिको संजपनो अाराधक होएक जगया। एगग्गचित्तेएजीवे । मागुतेसंजममाराहएयत्नवई ॥ ५३॥ श्वयन वचनपापथी निवारीने हे पूज्यजीव किं संपराजे हवे नत्तर च० वचन गुप्तपणेकरी नि. विकथानु अएकरवान उपराने निठ विकथाने | तयाएएलंतेजीवे किंजयई ॥ वयगुत्तयारणं निश्चिकारत्तंजगई . निविकार अएकरवेकरीजी जीववचनगुप्तयको अ० मननाजोग धर्म ध्यानादिक व्यापार ना सा० साधनधर्मनुपरे एकाग्रचित्तपोंस का काया एवं जीवेवश्गुत्ते। अनप्पजोगसाहएराजुत्तेयाविलवई ॥ ५५ ॥ हिन हो ए५४ कायगुत्ता सपणेकरी लं हे पूज्य जीव कि किस्म नपराजे हवेनुत्तर का० कायगुसपणे करी सं संवरनपराने सं. संवरेकरी कायगुप्तर्षिको पुथ्वीपापा. याएएलने जीवेकिंजपयई। कायगुत्तयाएपंसंवरंजरायई । संवरेणंकायगुत्तेपुणोपावा यास
||३४४
For Private and Personal Use Only
Page #307
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३५
कर्म भावाने जे ते निरुधे ५५ म०मनसाचे लावे थापचे लावेकरी लं हे पूज्यजीव सूनुपराजे हवेनुनर म० मनसाचे नावेथा || अ.२९ बनिरोहकरेई ॥५५॥ मगसमाहारपायाएगंभंतेजीये किंजयई ॥ मासमाहारण पवे लावेकरी ए० एधर्मनेविषे एकाग्रचित्तपए नुपराजीने ना. ज्ञानपर्याय नुपराजीने स० सम्यक्त्वनै वि विशेषेशुकरे मिटपिट्या || याएणं एगग्गत्तंगता। नागपद्यवेजपत्ता ॥ समत्तविसोहेई मिन्चत्तंच त्वनेटासे ५६ ० वचन वाध्यायादिकने पचन साचेत्माये वापयापरणेकरी लं हेपूज्यजीव सू नपराजे, व पचनसाचेस्वानिघरेई ॥५६॥ वसमाहारएयाए लंजीवेकिंजयई। वश्समा ध्यायादिकनेसाचेलावेथापये दं. सम्यक्त्वनात्लेदने विमसिनपएंटाले दं सम्यक्त्वना लेनेवि मसिनपणं टासे सु सुसमचाधिप हारण्याएवं ॥ दंसऐपद्यवेविसोहेई ॥ दंसपपद्यवेविसोहिता ॥ सुखनवोहि एक नीपंजाये . पुर्घत्नबोधिपएकं नि टास ५१ का कायानेस० साचैत्नाये संजमनेविषेयापयापणेकरीहेपूज्य. यत्तनिवत्तेइ । फुललबोहियत्तं निधरेई ॥ ५७ ॥ कायसमाहारण्याए मते जीवे कि जीव कि संनुपराजे कायाने साचे त्माचे संजमने विषेयोपवापरणेकरीजीव चचारित्रमा पर्याय निरमसकरे चारित्रमा ||३४५ जरायई ॥ कायसमाहारणयाएपंजीवे । चरित्तपद्यवेविसोहेई चरित्त
For Private and Personal Use Only
Page #308
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| पर्यायने निरमलकरीने भ० यपाष्यात चारित्रनापर्यायने पि० निर्मपकरे अन्ययाष्यात चारित्रनापर्यायने निर्मलकरीने ||अ.२० पद्यवेविसोहित्ता ॥ अहस्कायचरितंपद्यवे विसोहेश् । अहस्कायचरित्तपद्यवेविसोहिता ॥ च० च्यार केवखिना कर्मवित्लाग स्व सपाचे त०निवारपदी सिन् सर्वार्थसिद्धलए बु० सोक अषोक स्वरूपजाणे मुकर्मयी दावानव
चन्तारिकेवतिकम्मंसेखवेई । तपन्नासिचाईमुच्चई परिनिवायई । मकाए प-कर्मरूपिया+ सब||ने नुपसमावे करी सीतषीलूतथाए स. सर्व कुषनो ना० श्रुतज्ञानादिक ज्ञानेकरी सहितपणे करी हे पूज्यजीव किं . सं जुपराजे नाम ज्ञा | स्काणमंतंकरेई ॥ ५८ ॥ अंत करे ५८ नाएसंपन्नयाएलंतेजीवे किंजपाई॥ नाणसं नेकरी सहितपणेकरी जीव स. सर्व जीवादिकना नावनो जाएपएजानुपराजेना ज्ञानेकरीसहित झएने चा० च्यारगतिसंसाररूपकं पन्नयाएपंजीवे सवेलावालिगमंजरायई ॥ नागसंपन्नेणं ॥ चानुरंत संसारकंतारे अटवीने विषेन० विपासेनहि ज. जेमसुश्सत्रनादोरासहित प० कचरामांहे विणसे नहिं न तेमजीचपण सुरु सूत्रसहिना | नविणसई ॥ जहा सुश्ससत्ता ॥ परियाविनविएसई । तहाजीवो विससुत्तो जाणपणा सहित सं० संसारमाहे विणसेनही धर्म पांमे ना० ज्ञानवि विनयतप च चारित्रनाप्रधानन्यापार सं० पामे सापपणासिय ३५६ . संसारेनविणास्सई॥ ५० ॥ ५९ नागविएयतव चरित्तजोगो संपानराई। ससमय
For Private and Personal Use Only
Page #309
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३४३
प० परपारपंमिनाशास्त्रने सं० मेखबहार फूए ल० तेनासरूप दं दरसनसहितपणे हे पूज्यजीव कि सुनुपराजे हवेनुत्तर || अ-२० | परसमयसंघा गिधेलवई ॥ जाण जुए दंसगसंपन्नयाएएवं लंते जीवे किंजरायई॥ दं० दरसनसहिनपों करी ललवकरवानु हेतुजे मिथ्यात्व तेने टासे पन्नतूकष्टे नेए लवे केवलज्ञानपामेयकै ज्ञाननु पन्न दंसगसंपन्नयाएवं ॥ लवमिलित्तव्यएंकरेश्परंनविद्यायई ॥ सावबुनपामे परंअविनाय तको केवलज्ञाननोअप साववो| अ. प्रधानज्ञान दरसननेकरी. अ. आपणा आत्माने सन् सम्यक्प्रकारें जोमतोयकोला. मागो पामेबते . अत्तरेणं नागदंसणे अप्पाणंसंजोएमागोसम्म लावेमाणे | साचेन्नावेत्र्यापणा यात्माने त्नावतथिको ५० चारित्रसहितपणे करीहे पूज्य जी. जीव सुंनुपराजे हवेलत्तर. चाचारित्रसहितपोंकरी से विहरई ॥६॥विचरेश चरित्तस्सपलयाएवंलंते जीवे किंजायई । चरित्तसंपल्याए सेलेसि सेखकहतां पर चततेमाहे इसीकहतांगारमेरुपर्वततेनीपरे निश्चलपपोसे सेसेसिनो लाव प० पनिवज्यों ने अ० अपगार सेसेसीमावंजायई सेलेसि तेनुनाव नुपराने ... सेलेसीलावं परिवलेय अणगारे। च० च्यारकेचसिना कर्मविरमाग पपाये .. तिचारपनी सि. सर्वार्थसिड बु. बूझे मूकाए पसीनसीस्मृतथाए ससर्वधनोअंन ||३५ ] चत्तारिकेवसिकम्मसे खवेई । तपबासिनई बुशई मुच्चई परिनिहायई सबखाएमंत
For Private and Personal Use Only
Page #310
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३४८
करे ६१ सो सोनेडियमानिः निग्रहकरवेकरी हे पूज्य जीव किं० सुनुपराजेहवेनत्तर सो० सोनेडीने निगृहपणेकरी म मनोज्ञा अ०२० करे॥६१॥ सोइंदियनिग्गहेणं लंजीवेकिंजायई ॥ सोइंदियनिग्गहेणं मएन्नाम अमनोज्ञ शब्दने विषे रा० रागद्वेष कि निग्रहकरघु उपराजे न रागद्देषनिमत्तकर्म न० नबांधे पुजेकर्म एन्नेरुसद्देस । रागदोसनिग्गहिजरायई ॥ तप्पञ्चश्यंचकम्मनबंधई॥ पुचबंधच पूर्वे व बांध्यावषीर्षपाचे ६२ च० चसुइंडियने निग्रह करवेकरी लं हे पूज्य जीवसू नुपराजे हवेचनर व चरंजीननिः निग्रहकर निघरेई ॥६॥ चस्कंदियनिग्गहेगलंतेजीवेकिंजपयई। चस्किंदियानिग्गहेएमएफवेकरी म मनोज्ञ अमनोज्ञरूपनेविषे रा. रागद्देष निग्रहकरखो नुपराजे न ने रागद्देष निमत्नकर्म न. नबांधे, नामएफन्नेसरुवेस ॥ रागदोसनिग्गरंजायई ॥ तप्पञ्चश्यंचकम्मनबंधई । पु० जेकर्म पूर्व बांध्यावती षपावे ६३ पुनबंधचनिघरे ॥३॥
३०८
For Private and Personal Use Only
Page #311
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३५
पा० नासकाधीनोनिग्रहकरपेकरी हेपूज्यनीय समपराजे घा० नासकाइंडीनो निग्रह करवेकरीम० मनोज्ञ अम्नोझगंगंधनेविघेरा- अरए पाणिंदियनिग्गहेगमंतेजावे किंजपायई । घाणिंदियनिग्गहेमफन्नामणुन्नेसु गंधेसु रागदोस रागदेषनिग्रहकरयोचपराजे तक तेरागदेषानिमित्त कर्मना नबांधे पुत्र जे पूर्वे बांध्या कर्मनिरवपादे ६४ जि जीत्ननी इंजीनिग्रह करवेकरी निग्गहंजएगयई ॥ तप्पच्चश्यकम्मनबंधई पुवबउंचनिधरेई ॥६५॥ जिझिंदियनिगहेलते लंव्हे पूज्य जीवसुनुपराजे हउत्तर जि जीत्ननी इंडीनो निग्रहकरवेकरी ममनोज्ञ अमनोज्ञ र मधुरादिकरसनास्वादनेविषेराव रागद्वेषनू जीवेकिंजयई । जिझिंदियनिग्गहेणं ॥ मएन्नामफन्नेसु रसेस रागदोसलिग्गहंजए। निग्रहनुपराजे न० तेरागद्वेषनिमिन न नबांधे. पू. पूजेबांध्या एते कर्मषपावे ६५ फाल्फरसेंजीनोनिग्रह करवेकरी लंव्हे पूज्य || यई। तप्पञ्चश्यंचकम्मनबंधश् पुच्चबउंचनिघरे ॥६५॥ फासिंदियनिग्गहेलंतेजीवे जीव सुनुपराजे हवेत्तरफा फरसेंडीनु निग्रह करखे करी म मनोज्ञ अमनोजफास्फरसनेविषेरा० रागद्देषनुनिग्रहकरवा नपराजे जन्तेरागहे
। फासिदियनिग्गहएमएन्नामएफन्नेसुफाससुरागदोसनिग्गजाय। तपच्चच्या - पूर्णे कर्मनबांधे पुरुपूर्वेकर्म बांध्यो होए ने निर्जरे ॥६६ को क्रॉधने जीपवेकरी लं हे पूज्यजीव कि सुनुपराजे ||३५ चकम्मनबंधई। पुवबंधुंचनिधरे ॥६६॥ कोहविजएएनंतेजीवे किंजरायंई ॥
For Private and Personal Use Only
Page #312
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
| को० क्रोधने जीतकरीस क्षमानुपराने को क्रोध जेकर्मबांधीने दे० पठे कर्मस्लोगवे लेबाचपूरणे कर्मक्षमाएंकरीनबांधे पुल पूर्वेबांध्या अ.२९॥ ३५० कोहविजएखतिजएण्यई ॥ कोहवेयगिधंचकम्मनबंबई . पुवबंउंच निघरेई ॥ जे कर्मषपाये ६७ मा मानने जीतबेकरी हे पूज्यजीव कि सुनुपराजे हवे उत्तर मात्र माननेजीतकरी मअहंकार रहितपर्फ उपराने
मागविजएलतेजीवे फिनएयर्थ । मागविजएवं महवंजय मा० मानने करवेकरी जे कर्मबांधीने ये पोते कर्म मोगये तेबां कर्मन पु० मानेकरी जे कर्म पूरवपावे. ६८ मात्र मायाने जीपवेकरी हे मारणपेयपियकम्मनबंधश् । बांधे पुचबंधचनिधरेई ॥ ६८ ॥ मायाविजएणं पूज्य जीव किं सुनुपराजे हवे मुत्तर मा० मायाने जीतवे करीत सरस लावनपराजे मा० माया करवे करी जेकर्मबांधीनें परे लोगवेने लंतेजीवे किंजरायई। मायाविजएएनधुलावंजायई। मायावेयणिधकम्मनबंधयई। बांकर्मनबांधे. पु० पूर्व बांध्याजेकर्मषपाचे ६५ सो सोत्मनजीतबेकरीहे पू-य जीव किं. सुनुपराजे हवे उत्तर सो- सोलंकरी जेकर्मबांध्या | पुत्वबचनिधरेश्॥६॥ लोलविजएगलत जीव किजएयश् । खालविजएएसतो| जीवते संसंतोषलाब उपराजे खो खोलेंकरीजे कर्म बाध्य पढे लोगवे नेबां कर्मनबांधे पु०पूर्व जे चांध्या ते निर्जरे ७० पे रागद्वेष ||३५० सत्मावंजएयई ॥ सोनवेयंणिकम्मनबंधई । पुचबंधचनिघरेई ॥३॥पेघदोस
For Private and Personal Use Only
Page #313
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न मि० मिथ्यात्वदरसननंत जीववेकरी हे पूज्य जीव किं० सूंनपराजे हवेनुत्तर पे० रागद्वेष मि० मिथ्यात्त्वदरसन टासवेंकरी ना० ज्ञान। दं० दर्शन २ म० २९ ३५१. मित्रादंसणं विजएगंलंतेजीवेकिंजाय ॥ पेचदोसमिन्वादंसाविजएएणं । नागदंसणचरि चारित्र ने राघवाने अर्थी नदम करे ० त्र्यम्मकारनाक• जे कर्मषपावतां दोहेला कर्मनी गांठ वि० मूकाववानेत ते कर्ममोहनी
तारोहायाझुवे ॥ त्र्व विहस्सकम्मरसम्म विस्सविमोयायाए । तप्पटमारी । पहितुंषपाव्यं | ज० जैम त्र्यनुक्रमें बपाववानी बिधिबे तेम घपावे अनंतानुबंधीयाक्रोधादिषपावे पं० पांचमकारें ना० ज्ञानाव िकर्म न० नव
नथी.
जहापुपुच्वित्र्यच्चावीसविहंमोहसिकम्पं जग्घाई ॥ पंचविहंनागावरणिचं नव
प्रकारे दरसनावरिकर्म न० पं० पांच मकारना अंतराय कर्म ए० एत्रा निश्चेकर्मना अंस जु० समकाले सावज षपावे त० तिवार विहं दंसएणावरणियं ॥ पंचवित्र्तरायं ॥ एएतिणिविकम्मंसे जुगवंखवेई । तनु॑ष
पत्नी ० त्र्यंतरहित त्र्यनंत ज्ञान • सर्वपदारथनुं जाएापकं पर संपूर्णज्ञान यावरणारहित नि० व्याघात वि० अज्ञानरूप अंधकाररहि
वामांतरं ॥ अत्तरंकसिए। पनिपुलं निरावरणं निद्याद्यायं रहिन वितिमिरंविशुद्धखो
वि० [सर्वदोषरहित लोक प्रतीकमाई प्रकासना करएाहार के ० केबलमधान ना० ज्ञानदरसन सम्यकप्रकारे उपजे जा० जावंनमन वचन कायानाव्याशा ३२१ रक्त होएता० तिहा पर्यावही कर्म
गासोगप्प लावग केवलवर नाएादंसणं समुपादे । जावसजोगी लवई । तावईरिं
For Private and Personal Use Only
Page #314
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न.
न बांधे
त. ते कर्म चीजे समे षपान्यो
सु० सुषकारी जीव संघात फरसे दूषकारी नवी ५० बेसमयनी तिथीनी त. ते कर्म पहिलेसमेचां सुं तं नेकर्मबीजे - २९४ ३५२ कम्मंनिबंध | सुहफरिसं दूसमयविश्यं ॥ तंपद्रुमस्समएबंधं ॥ बिश्समयवेदियं ॥ समेत्लोगव्यों तं. तैइरियाबहि कर्म चांध्यं फुए फरस्यु एालोगव्यो के षयगयो फूए पाम्योल्लोगव्यो षयगयो त्र्यागमिएकानें अ तयसमनिचिन्नं ॥ नंबद्धंपुवंजदीरियं । नृणाम्यो वेश्यंनिविन्नं सेयकासेय प्रकम्पयाचिल | कर्मरहित चोथे समे लए ७१ ० अंतर्मु तदिक जेतसोमानुषोऊनु तेतसोपाठ त्र्यं० त्र्यंतरमुर्त प्र० च्यानुषो थाकतोज एतिवारे जो० म लोगवी अतोनूत्ताबसेसानए । जोग
| वई ॥ ७१ ॥ महानयं पालता ॥
नवचनकायानाव्यापारने रुधतोयको बंधने): | सु० सूतममनवचनकायानाव्यापार प्र० पानापरवानी व्यापार नयी एवा शुक्कुध्याननो भीजो लेद ध्या निरोहंकरेमाणे घयाव्योरह्यो सुझमकिरियं ॥ वाइय सुझाएंझायम्माणे तोथको तं. तेमां पहिजो म० मननाव्यापार रुपै म मननाव्यापार संधीने "० वचननो व्यापार व० वचननोव्यापार तंपढमयाए मएाजोगंनिरुलई । महाजोगंनिरुता । वइजोगंनिरुलई । वईजोगंनिरुं
का० कायाना जोगने रुंचे
का कायाना जोगने रुपीने
रुंधीने
यानुसास निसास रुघे प्रा० नुसासनिसास ३५२
लत्ता ॥ कायजोगंनिरुलई ॥ कायजोगंनिरुंलश्त्ता ॥ एापाए निरोहंकरेई । आएगा
For Private and Personal Use Only
Page #315
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गोत्तंचए
नः रुधीने सिगारेक प. पंचनाना अक्षर अश्नतएच्यार नचारकरे अथोगाकालसगेएवेसम अ० अरागारसन अन्२० ३५३|| पागनिरोहकरेश्त्ता॥ इसि पञ्चरहस्सस्करचारपछाएयएं सेसी परिवार ने अपगारेसमु
मनवचनकायाना व्यारबेदाणी दे कि क्रियाकर्मयकीधाविनाजे एबोसु० सुकसध्याननो चौथोलेदबे वेदनिकर्म आनुषाकर्म ना नाम बिन्न। किरियंअनियहि ॥ ध्यानपाचोचलेनही सुक्कक्षाएंशायमाणे वेयणिधे॥आनुयं नाम कर्म गोत्रकर्म च० पूर्ण एच्यारकर्मना अंसदिमाग जु० समकाले पंपावीने ७२ ततेमाटे नु० नुदारिक सरीर ते तेजससरीर के अने
म्मसे जगवखवेई ॥१२॥ तन्नराषियतेयकम्माचसवादि। कार्मणसरीरवि० ढांमवेकरी वि० बांकीने न समश्रेणीपांमे अ. आपणाजीवनी अवणाहना जेतली आकास जोशए विष्णजहएाहिं विप्पजहिता नजुसेढीपत्ते । अफूसमाएगई तेतालानुपरांत अदकीनाकास प्रदेस अपाफरसतोयको न० नचाएकसमे अवाकी अागतिकरतापग उतिहामोका सा० ज्ञानचपजोगवंततेलगवंतने सिम सिहयई सर्व अर्थ । मोक्ष जाए। उटुंएगसमए अदिग्गहे तबगतासागारोवनुत्ते सिसईबुशम |नी सिद्धि जए बु० लोकनास्वरूपने जाणे स० सर्वऽषयीमूकाए प० कर्मरूपदावानसने सुपसमाबवेकरी सीतसीलूतथाए सब हवेसुधर्माचा ||३५३ चई परिनिवायई ॥ सबपखाएंमंतंकरेई ॥७३॥ सर्वधनो अंनकरे ३३ मीजंबुप्रतेकडे
For Private and Personal Use Only
Page #316
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
० अध्ययननो अर्य
स. समपातपस्वी ल० लगवंत स. श्रीमहावीरदेवे या सामान्य प्र. ३०
न. ए. एनि सम्यक्त्वपराक्रम ३५४) एसस्वक समन्तपरक मस्स यास्स । समोएां लगवयामहावीरेणे ॥ घविए प्रकारें कयुं प० फसदेषामचेकरी जाएयोप० सरूपनेकहवेकरी परूप्या घणा लेदने देषामवे करी देषामोनि० विसेषेदेषामयो नुपदेसो ५० पन्नबिए परूविए दंसिएनिसिए नवदंसिए ॥ तिबेमि सुधर्मास्वामिएं जंबूस्वामीमतें कहे जंबूजिममे श्रीमहावीर देवसमीपें सांत्मत्युं हतुतिमफुं तुजप्रतेक ३० इति श्री सम्यक्त्व पराक्रमत्र्मध्ययनं समाप्तं ॥ २९५ ॥ नगए इतिसमत्तप्रकमनामाझयां एगुएातीसमसंमत्तं ॥ २९५ ॥ त्रीसमा अध्ययनने विषे प्रमाद बांकची कमी से प्रमादरहितजए तेोतपकरवो तेलगी तपनासरूप ज० जेपापकर्म रा० रागदेषकरीने स० प्रति हेनुपराज्या कुर्मखां ३० मा अध्ययननेविषे कहेबे जहानु॑ पावगंकम्मं । रागदोससमझियं । खवेतपा० प्राएाबध सु० मृषावाद जूगे म० प्रदत्तमैथुन परिग्रहथी ॥ १ ॥ पाएावह मुसावाया ॥ दत्तमेण परिण जी० एवो जीव हवे थाए प्र० नवां कर्म ग्रहवादी रहित २ पं० पांचसमित एतत्रए ३५४ हार्नु विराने ।। राइलोयाविरन जीवोलवई अणासवो ॥ २ ॥ पंचसमश्नुतिगुत्ते महिन्
तपेकरी साधू ते एक एकाग्र एकमनेको सालले
वसालिक ॥ तमेगग्गमणोसु
निवर्त्यो रात्री लौजनयी निवर्त्यो
गुप्तेसहित
For Private and Personal Use Only
Page #317
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
न ० कपायरहित जि० जितेंडी ३५५ कसायजिंइंदि ॥ गारवोयनिस्सो ॥ ए० एमएाबधनी विरति प्रमुष वि० विपरीत । विषे रा० रागद्वेष स० एएसिंतुविवञ्चासे प्राएाबधादिकने रागदोस समधियं लखहं शिष्यमुफने कहतार्थका ४ ज० जेम मोटा तलाव
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
म० एागार घरहित नि० भएाससरहित जी० एवो जीव हुए थाए नवां कर्मग्रहवा रहित ३
जीवोलवई पासो ॥ ३ ॥ मतिहे नृपराजा पापकर्मव० खपावे जेम
न० एकाग्र सां
॥
क० अनुक्रमे सो० पाणीनो सोषण
५.
वे जालिकू । तमेगग्ग सं॰ संघोषको ज॰ नबो पाएगीच्यावबानोन • पहिख पाणी अपने नार मोसु ॥ ४ ॥ जहामहातजागस्स । संनिरुद्धेजलागमे नृसिंचगाए तवणाएँ एक एप्रकारें सं० साधूने पण पा० पापकर्म नवां यावत रह्या एवासाधु होइतेनें कम्मे सोसावे ॥ ५ ॥ एवंतुसंजयस्सावि ॥ पावकम्मनिरासवे । लवक लवनी कोमिना सं० संच्याकर्म त तपेंकरी दय थाए ६ सो० ते तप फु 1 बेकारें को बा० बाह्य तप नेत सिंचियंकम्मं । तवसानिद्यरिधई ॥ ६ ॥ सोनवोऽविहोवृत्तो । बाहिरतिरो तहा ए० एम स्वंतर तप बाह्यतपना नाम कहेबे प्र० नमोकारसि यदि श्र० प्रासतप १ नग ३५५ एवं अंतरोतवो ॥ ७ ॥ समूएगोयरिया ॥ दरी नपर
बा० बाह्यतप ब० प्रकारें को
बाहिरी
।
For Private and Personal Use Only
अ. ३०
Page #318
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नि० आठपकारनी गोचरीनीविधिनेलिसा र रसपरित्यागतप का कायकिलेस सं० इंडीने गोपनीने राषेतेसंधीनतानप अ.३० ३५६|| लिस्कायरियायरसपरिचाने ।
कायकिलेसो संखिएण्याएबनोतवोहोई। ब-एचप्रकारेबाह्यतपहोएट ३० थोमा कालनी मर्यादा नमोकारसी प्रमुषमा मरण अणसएरा अन् अासपातपर्वप्रकारे होए योमाकासवेध ॥८॥ इत्तिरियमरणकाखानय ॥ काखनेजावजीवनु अगसणाविहालवेई । इत्तरियसाव मि.आदिकमर्यादापरीययापनी सार तेलोजनकरवानीचांडासहितजए जो जेने ३० थोमाकालनीतः सः संपेडमकार, सेम् कस्का निरवकंस्कान विधियाँ जोसोश्त्तरियतवा सोसमासेए विहो ॥ सेदि एगीनपत्ते ग २ अम्म २ दसम २ प्रमुषजायन ६ मास एकरवा करे ते श्रेणीतप प० बीजो प्रकार तपते श्रेणीगुणेकरीए निचारे प्रतर तप थाए तवोपयरतवो ॥ घगोयतवोहोइ वगोय ॥१॥ त निमहिज होए चोधो पर बीजो घनतप ते पाबल्यो प्रतर सपनेते श्रेणिगुपोकरी एतिवारे घनतपथाए एव० वरगतपने घनपनगुऐकरीए तिवारे वरगतपनीपजेसेढित्तबो २।३।४ प्रमुषसमास वगी ने एके वारीएं ते पितप १ पयरतबो श्रेणिगुपोकरीए तेप्रतरतपने प्रतरते श्रीगुणोते घनतप ३ घनघनगुएरा वर्ग वर्गवर्ग गुणो तेवर्गतप ५ ए ४ नपकासनी १ श्रेणीनेयंत्रोयंत्र. मन्मनबंबितनपएकहिए चि चित्तनेविषेजेमुगतनो अर्थडेपामिएनान्जागबोहोए||३५६ ततोयवगो वग्गेय । पंचमोनुबान पश्न्नतवो। मपनियचित्तवो ॥ नायबोहोइश्तरिक्ष
भकारना.
For Private and Personal Use Only
Page #319
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| जा० जेहये मराकाखनो अणसाकहेले सा० ते अपासा पु. बेप्रकारे कमुलगवंतें ए० एक हाथपगादिकहलायेने नायनुं पचपाए। अन् हा| अ-३८
जासापासणामरणे तपमरणाने पिपे विहासावियाहिया ॥ सवियारमवियारि॥ पगादि कहसाचे नहि तेपादोपगमना काठवू इत्यादिक कायानी चेष्टा करवी अथवा नकरथी आश्रीन अ. अथवा वस्ती बऊमकारें अपासबाजूं अपासण कायचिढ़पालवे ॥१२ ॥ एवेप्रकारअणसणा १२ अहवासपरिकम्मा ॥ एस. एकविश्रांमपादिक वेयावच अन् बीर्जुबेयावचकरवाअगसण आठ ए बेकह्यालगते नि वाघसिंघादिकने लयेकरी नुपरपारसंथारो | करवा सहित अगसपा अपरिक्कमायाहिया निहारिमनिहारि ॥ करे जीवेहारीने | जीवघाचकाटवामाटे आ० लेखेअवसरकरवाने आहारनो नोवो दो वे अपासपनेविषेपण न नपानदररापिए तेनुगोदरीनपपं० पांच
आहार यदोसुवि ॥१३॥ हवे गोदरी तप कहेजे १३ नमोयरएपंचहा प्रकारे स. संपेंकयुं लगवंत दडव्ययीर पेत्रयीर कासयी ३ . त्यावधी पपर्याययकी १५ जो नैनखोजेजीव आ-आसमासेरावियाहिया ॥ दबने खित्तकाखेणं । लावेपद्यवेहिय ॥१४॥ जोजस्सने आहारो हारथी त तेलसायाहारमांडेलांजेकरे जज्जघन्यथोलूं तेएकएकसियादिक ए. एमऽव्ययीसपोदरीतपाए १५ना० गामनेविषेन नगरनेषिपेत नेमराजाबसे ३५७ ततोनुमंतुजोकरे । जहन्नेऐगसिलाई ॥ एवंदचेपmलवे ॥ १५॥ गामेनयरेतहरायहाणी
तराजधानीनविष
For Private and Personal Use Only
Page #320
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न. नि० जिहां वालिया घणावसेतिहां प्रा० सोनारूपानात्र्यागरनेविषे प० घोवृफेंकरी खे० जिहां माटीनोगढले सामान्यनगरने विषेजलवटनोमार्ग ३० ३५८ निगमे यत्र्यागारी ॥ सहित बाम चीर पछीममुषने विषे खेमे कहने दोमुहपट्टा ॥ अथसबटनामारगने
बिषे पाटाने विषे मं० जेनेपाषतिसघर्ष २ ॥ कोसगाम हुए तेमंदबने स० पत्रियादिकना ववसे बेतिहां अथवा ' ० जिहां तापसनायाiniबाहें ॥ १६ ॥ कांश्कलयनपजे तिबारे धानप्रमुषपरवतनपरे वहिने सेइ जाए ते संवाहनेविषे श्रासमपएं विहारे |नके विषेना० नागकुमार प्रमुष धानकनेविषे सं० नानाने समानेविषे सं० पंथीजोक प्रमुषवी सामोरहेनेने सरानेविषे। थ० रंतनाऊंचा धसने विषे स्वेच्च सनिवेसे समायोसेय ॥ घो० जिहां गाएममुष गोकल रहित फूए तिहां थसिसेणाखंधारे तुरंगासिनाने | विषे कटकना उतरवाना वामतिहां सं० सार्थवाहनासाथ प्रमुषना उतरवाना गंम तेनेविषे स० लयमाटेखोक एकगं वा० बामानेविषे २० रथनी ससंहकोय ॥ १७ ॥ मलेते थानक सेनेविये को० कोटसहित गम वासुवरचासुव
तथा चक्कूटानी | घ० घरने विषे बा० अथवाए० एप्रकारें एतखाजषेत्रतिहां क० कल्पेच्या हारादिक ए० एपूर्वेकह्याने धानकत्र्यदिनमा ए सेरीनेविषे घरेसवाएवमित्तियंखित्तं कम्प एवमाई प्रमुपनेविषे त्र्यहारमससेतोलेसुं एवंरवेएगें प्रकारें क्षेत्रथीनणीदरी नपए १८ पे० पेटा नेत्र्याकारेचोषुणी गोचरीकरे ते पेकाच्य० अरघपेटीने आकारे गो० बलदप्रमुषबाटेहीमतोमात्र ३५८ तालवे ॥ १८ ॥ पेमायारूपेमा ॥ गोचरीकरे ते अरधपेमाले बीजो लेद गोमुत्ति करते मत्र्याघापावा
For Private and Personal Use Only
Page #321
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
दिसमनीश्रेणी २२४ नृपवास श्रेणी चोकडूनुमा चोके श्रेणी
पारएा
न ऊएतिहां गोचरीकरेतेगोमुत्ति ५० पतंगीयानी भ्रमबानी परे टूटकर सं० संघना त्र्यावर्तननीपरें पायामां गोचरी करे १ पाकामा बाहिरनिकलतांप तेम अ.३० ३५९७५ पयंगविहीया चैव घरे गोचरी करे
संबुकावट्टायगंतु गोचरीकरे नेम संखावर्तनो बीजीले द्गन्पार्थरुपुर थीकालगे प० पाढो बले तिवारेगोचरीकरे ते ब० बठीगोचरी ए बप्रकारनी गोचरीकरे दि० दिवसना पोरसीनुं च० च्यार पोरसीनुप जेने जं० जेनसो कोइ काल
पच्चागयाब्बा ॥ १९५ ॥ तेपा क्षेत्रथीनगोदरी तप दिवसस्स पोरसीए ॥ चनुएइंपिन
अ० अथवा
जंतिने लवेकाखो ॥ एवंचरमाणो
अहवा
पवासदिन
सर्व दिनमान
www.kobatirth.org
प्रकारें विचरतोयको रव० निश्वे कासनो प्रमाएानी नणोदरी तप जाएावी २०
खसुकासेमारांमुणेो ॥ २० ॥
श्रेणीतप १ अतरतप
चोकमा १
चोकमा ध
१॥
ย
ย
५
१६
घनतप ३ वर्गतप चोकमा १६ १६२४ चोकमा
१६ ६६
८०
वर्गवर्ग तप ५
एकतालीस साष ५४ ह. ३ से ५ ची.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१ हजार
४१ खाष ५६ हजार ३ से ४ पारा १ कीकि ६१ साष 9 F. २ सहे १६ नृपवास. वर्ष १४ मास २ कोकि एए साथ ४१ हजार ५. सहे २० दिन तहनो वर्ष ५८ दिन २० हजार २ से ५४ वर्षमास २ दिन २०
४० २६
२०
प्रमुषनो यंत्र तेथी सर्व तपनुंमान जाए।वूं ।। एतेयंत्र.
For Private and Personal Use Only
३५०
Page #322
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
ङ.
३६०
२|| बबलक्त उपवास दिन
तथावर्षमान
अष्टमलक्त नृपवासदिन तथावर्धमान
५॥ वास
उपवासलक्क वर्षमान
| ६ चउदसल उपवास दिन
वर्षमान
ॐ सोमसल उपपासादिन चरमान
२
श्रेणी मत्तर घन
२
ย
८
ย
C
१६
६ दि १२दि २४ दिन
३
যে
१२
५
२.७
| ३६ दिन
3
द
२५
| २५६
३०
६
२५
६
१
६ ३६
3
६२
3
४०
५६
२७
C
१०८ दिन
२५६
१सी २५ | १सो ५०
३६
१२५
२२
ध
३ सोध ३
३ सो (४२
원
वरगतप
६६ त्रीस ब
२५६ दिन २६ दिन
२ सहे २४३ अवम
www.kobatirth.org
७ सह २९० उपवास
९५ सहे ७२ दिन ३६ १सी २५ प्रवास
७
१५६ ६सी २५ उपवास १८ ६ 9 सी ५० दिन ह 9 सी ७६ दि. ४६ ह बसी ५६ उप. ५६४सो ३२ दिन १६ ६८ सी सीख
१ साष १७ ६. दसी १ ला ३४ है ४ सो ५६ दिन
वरगवरगतप
२२४८ बेहजार ४८ व नेपारएक पा
४००६ च्यार हजार बनु उपवास थाए
१६. १ सो ६१४४दि अनेवर्ष १७ दिन २४
१ लाष ७७ ह. १ सा ५७ अवम
| ३५ सा ३१ह छ सो ६१ उपवास थाए
9 साह ५ सो दिन
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६को ८८ खा २८ सो २५ दुवाससक्त एतसां पारणां
२४ की ५१ ला ०६. ६ स २५ नृपवास
२९७ की २९० बाष ६८ ह ५ सो ५० दिन वर्ष को १३ सा.८ पार एतसाज.
३६ को २८खाए ७ ह ५६ चन्दलक्त
२ सह १७ का ६८ ला २ ह ३ से ३६ उपवास. २ सह ५३ की ९५५ सा७७६ ३ सी ३२ सर्वदिन
१
सो [29] कामि ३७ नाष ३६ ह ७ सी १३ सोपसलक्क पारण
१ सी ३८ की १ जाप २८ हजार ७ सो २१
१५ कोमाकीकि ८१ कोकि ८ ६ साब १३६ (३ सो ४७ सर्वदिन.
For Private and Personal Use Only
अ०३०
३६०
Page #323
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बीजा पोरसीनु न० काश्क नगेयक घा. आहार एगपत्रिकांप्रवर्तच पारसीने च० चायलागतंपार अधिषापांचमेनागेनुएगापोरसी ए० ||अ३० तश्यापोरसिए ॥ नपायघासमेसंतो॥ चनुनागुगाएवां सी मुशाया एवंकासेगनलवा२१ एए0प्रकारे कासपी हवे लावयी | कहने . स्त्री अथवा पुरुष अन्यात्मरण सहित अविवाालरण नहोए अ. अनेरीकोश्कका नगोदरीनपाए २१ गुणोदरीनपश्वीवा पुरुसोवा ॥ अखंकिनवाएगसकिनुवावि अन्नयवयनोवा बासबब १ जोवनवयर वृद्धावय ३ एत्रणवयमांडे कोकवयनेविषे प्रवर्तता आहारादि देसे ते खेस अ. अनेरो कोर अकोश्क हर
॥ अन्नयरेणंचवे ॥ २२ ॥ · कपमो यचप्रमुष या वस्त्रसहिन तसेनेने हाय प्लेसं २२ अन्नेविसे पादिकसहिनइत्यादिअवस्था अनेरुकोवि० लेदअमूकमी अवस्थासहितनसेनेने नोनहिलेचश्त्यादिकत्मा लावनु अलिबहकरतो सेए ॥ बन्ने ॥ हाथेलेसुंब० कालेनथागोरेवणे दातारने दसेनासेस लावमफरूयंतेन ॥ एवं चरमा थको ए० एणे प्रवर्तनान खत निश्चै ला लावयीनपोदरीनप जाएगवो २३ ८० ऽव्ययी असनादिकनेरवे पेत्रयीग्रामादिकनविषासीप्रमुपनेविषे गो वफत्नावोमाएंमुण्यवं ॥ २३॥ दवेखेत्तेकालेका कार्यबीपीर-लामियं । लाचयी स्त्रीपुरुष आमरणादिक सहिनतयारहितइत्यादिनानिदिपिकयाजेन्नाव ए० एगोडव्यषेत्रकास लावादिसकसानुमोदीलप चचरतो ३६१ आहियानुजेलावाएएहि मचनुरं पद्यवचरनुलवेलिरकू ॥२४॥ सनात एसाधु द्वानिशाचरीकहेडे]
धकोप लावनगोदरीनविषेचना
For Private and Personal Use Only
Page #324
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३६२
अारप्रकारनुं गोचरीत्तेपेमाअडपेमादिक न० तेम सानएषणाश्रीआचारंगमाफहीजे अन् अत्निग्रह जे. जेपूर्व अलिग्रहकह्याने तेथीवली ||अ-३० अवविहंगोयरमांतु ॥ बप्रकारले तहासत्तेवएसपा अलिग्गहायजेअन्ने अन् अनेराबीजा निग्रह नि लिझाचरीत' अन् करोत्नगवंने २५ हचे रसपरित्याग स्वी० दूधदही घी आदि शब्दयी सर्व पा० पाएीनो लोजन
लिस्कायरियमाहिया ॥२५॥ लपकहेडे रवीरदहिसप्पिमा। पाणियंपागलोयां। प० एवजयूं र० रसाहारनुं लकवं लगवंतें रुएरसपरित्यागतपवरजर्बु २६ हवेकायकीप्लेस वा० काया एकगपराघवीची वीपरिवद्यणं रसाएरंतु ॥ मणियं रसविवध ॥२६॥ तप कहेडे गएगावीरासगाईवा ॥ रासनप्रमुप जी जीवनेसुमोषरूपनाआपणहारखे नुम् एतेषुका जेजेमकरयूंजे का कायाकिसत्तेतपकलं आ नगवंते २७ हवे
जीवस्सने सुहानग्गजहाधरिधति तेम कायाएकरी सेवे कायकिषेसंतमाहियं ॥२७॥ ससीनता तप कहे एक एकांतेजिहां स्त्रियादिकनुपाचवुनथी.इ. स्त्रीच्यने इ० गलिगाए प्रमुपरहितस एवानुपाश्रय याच पाटपाटलादिक
एगतमगावाए। श्वीपसचिवद्यए। सयगासासेवराया सेवबू वि स्त्रियादिकरहितस० नुपाश्रयअनेा पाटपाटणादिकएसंसीनता ए. ए पूर्वकमु बा० बाय तप स० संक्षेपें विकयो ममवते ||३६२ विवित्तसयपासणं ॥ २८ ॥ नपढे २८ एसोचाहिर नवो समासेएवियाहिने ॥
For Private and Personal Use Only
Page #325
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
न|| अन् अल्यंतरनप ए० बाह्मतप कह्यापनी हवेकहेडे श्रीसुधर्मास्वामी जंबूनतंकहठेहे जंबू नेममें श्रीमहावीरदेवसमीपें सांत्नप्युंजतु पाल्पाप || अ.३०
अनितरोतवो एत्तो। वुन्नामि अएफपुचसो ॥२५॥ लेमतुजप्रतेकडुडुअ. अनुक्रमें २० पायनि आसोचीने तालपपरिवर्जीतेप्रायश्चिननपविगुणवंतवूझावकानो विनयकरयो चकाचार्यादिकनाचेयावचकरयोत तिमहिज एअल्पतर नप। नविन ॥ वेयावच्चंतहेवसशानेशाचविनुस्सग्गे॥ स सप्तायनोकरयामा धर्मध्यानादिकनोएसो अप्निंतर
"३५ या गुरुनेसमी जे पापापोवाजोग्यात् एआदिदेश्पा प्रायश्चिनपाः दसविहातोयगा पमिकमरा २ त्मय विरेगापि लतयो॥३०॥ आलोयपारिहाश्यं ॥ पायचित्तुदसविहं ह ४ सगोए नव ६ वय ७ मूलद अपावडपाय ः पारं चियाएघेव तु० पूर्णे जे जेसाधु कायाएंकरी सेवेसाचेमने पा० पायचित्ततेका हवे विनयतपकहे अ. गुरुप्रमुषगुणायनवमासाधु तिवारे द० दसप्रकारेजे जेलिस्कूवहरसम्मंपायश्चित्तमाहियं ॥३१॥ ३३१ अनुगणं अजलिकरां नुत्नो था_अंबे नतिमजओ पाटसादिक आसन गु० गुरूनी लक्ति ला स्नावसहितगुरुनायादेस विविनयनपएका नगवंते ३२ हाय जोगबुं तहेवासगादायएं ॥ गुरुत्लत्तिलावसुरसुसा ।।प्रमाएाकरे विएन एसोवियाहिने हवे वेयावचतप कहे या आचार्य श्रादि देशनैनो वैयेयावच करे द० दसपकारें त्याचार्यादिकने श्रान्वेयावच कर—जन्मेषापायाचः ३६३ ॥३२॥ आयरियमाश्ए । वेयावच्चंमि दसविहे ॥ आसेवएं जहाथाम तेनेकन
For Private and Personal Use Only
Page #326
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
ये० वेयाचच कन्धुं न० तेनपकडे नगदतें हवे स्वाध्याय वा गुरूनासमीपे यांची सेवी संदेहनपजेतिवारेगुरूने पूववू त निमजप० फरी प्रश्न | वेयावच्चंतमाहियं ॥३३॥" नप कहेचे वायगापुरणाचेव ॥ नहेवपरियडएायएफप्पहा फरी वारंवारशास्त्र, गणामुअ. ५० धर्मनुनुपर्दसचुं स. एम्बाध्याय पं पांयकारफएड्वेयानकदेवं अ आन यानअनेक हिंसा मुत्रादिकना अग्धचिनयवा. धम्मकहा ।। सझाने पंचहानवे ॥३५॥ अहरुद्वाणिवधित्ता टिक नुरुर ध्यान तेवजीनध्यानाम इढचिनयका समाधिन ध० धर्मध्यानना ध्यायांसुः सुकप्तध्यानए २ध्या तु पूर्ण तीर्थकरएम
शाश्या। ध्याए अने रूसमाहिए । धम्मसक्काइनाणा शाराने तुबुहावए कहे ३५ हब काखनुपसर्गतप स. सुबानेविपे बेसवाने विप वा. नुला रहवानविप जेजेसाधू न हसाबवू चलावयु का काया, बोसरावून ।। ३५ ॥ कहेडे सयपासएगवा ॥ जेलिस्कूनवावरे । नकरे कायस्सविकानुस नम्नग्ग करयोज० बन्लो एअल्पनर सप प० कयु भगवनेंट मकारें बाह्यतपत्र ए २.नेदे नेपतु पूरण ले लेद जे कोई साचेमने आचरे ग्गे ॥ बोसोपरिकितिने ॥३६॥ प्रकारें अल्यंनग्नप एवंतवंतुविहं । जेसम्मं आयरेम करे सेनेशीघ्र स० संसार नरकादिक नेथिविशेप्प मृकाए पं० मिन माधु३० श्रीसुधर्मास्वामीजंबूप्रतेकहेबेहेजेबू ||३६५ एी ॥ सेविप्पं सबसंसारा ॥ विष्पमुचई पंकिए शनिबेमि ॥ ३३ ॥ जेममे श्रीमहावीरदेवसमीप
For Private and Personal Use Only
Page #327
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
सालप्यु नेमकं तुझप्रतेक शनिश्रीतपमारगनामाअध्ययनंसमाप्त ॥३०॥ श्रीसमा अध्ययननेविषे तपकर क ते लपचारित्रवनश्तकर अ-३१ ३६५ || इति तवमगनामा अभयवंतीसमं सम्मत्तं ॥३०॥ नेलपी चारित्रनी विधि ३१ मां अध्ययननेविषे कहेडे ३० |
च चारित्रविधीने कळू गुरु शिष्यमतेकहेबे जी जीवनेसुपनु आपपाहार जंजे चारित्र आदरीने बघणा जीव नि० नस्या चरणविहंपवस्कामि ॥ जीवस्सनसुहावहे । जंचरंती बशजीवा तिन्ना | सं• संसार रूपिया समुइनेविषे १ ए. एकबोलयी वि० विरतिकरे ते ए. एक बोलथी प.मबर्नवू नै केवा बोल अ. असंजमश्री
संसारसागरं ॥१॥ एग विरईकुद्या ॥ .. एगयपवत्तरां ॥ असंजमे नि० निवर्नवू सं संजमनेविषे प० प्रबर्न५ २ रा रागहेब पूरणेदो० एबे मेला ने पा० पापकर्ममिथ्यात्वादिकपः भववि नियत्तिंच॥ संजमेय पवत्तां ॥२॥ रागदोसेयदोपावे ॥ पावकम्मपवत्तणे पाहार तेने जे जेसाधू रु. असूगाकरे सदाए से. तेनरहे संसारमाहे लमे नहि ३ दमनमादिक त्राऊन गा० त्रण गारच पूर्णे स-सप्लव
जेलिस्कूरुलई निचं ॥ सेनअवश्मंगले ॥३॥ दंएंगारवाएंच ॥ सना |सी तिठत्रण त्रण जे जे साधू च० बानीने सदाए से. नेनरहे संसारमाहे त्ममे नहि ५ दिव्देषना ननुपसर्ग। || चनियंतियं । जेलिस्कू चयई निचं । सेन अबश्माले ॥४॥ दिवेयनवसग्गे||
|३६५
For Private and Personal Use Only
Page #328
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ना
| त० लेमतिर्यचनाकीधानुपसर्गमनुष्यमा जे जे साधु सहे साचेमने से० ते नरहे संसारमाहेलमे नहि ५ विक राजकथादिविकथाच्या अ३१ ३६६ तहा तेरिजमाए।से। जेलिस्कूसयशम्मं । सेनवमंगखे ॥५॥ विगहाकसा | र प्रकार स० कषाय आहारादिमां शा० आर्तध्याने अने रौध्यान एवं त नेम जे जे साधु वर्जे सदाए से नेनरहे संसा
यसन्नाणं । शापाचज्यं ध्यान तहा ॥ जेलिस्कूवद्यएनिचं ॥ सेन श्रव | रमाहे लमे नहीं ६ व पांचमहाबननेविषे ५ इंडियनान्प्ररयशब्दा, सः पांचसमतिनेविषकि काश्त्रादिक पांचक्रियानेविषेने साधु ज
इममसे ॥६॥ वएसुइंदियनेस ।। दिकनेविषे समिश्सु किरियासुय॥ जेलिस्कूज ५ पांचमहाबत समतिने पासदानेविपेनदम विषय प्रक्रियावांमवाजुदमको से. उ स्यानेचियेड वेयण यायचक इत्यादिकारणनेविषे यशनिचं ॥ करे भने ५इंडीना सेनअवश्मले सासु बसुकाएसु । बके आहारकारणे॥ जे जेसाधु ज० कृष्णानीयकापोतए पास्यानांवानेविषे नदमकरेने जो पदम सुकलएत्रपाखेस्या आदरवानोनुदमेकरे बकायने राष जेलिस्कू जयशनिचं ॥ सेनअवई मंगले॥८॥ वानेविषेलकायनो कारणे अाहारकरवाने विषे नुद्यमकरोनित सदाए ने नरहे संसारमा पिं. संसबादिक आहार ग्रहवाना अलिग्रह सातडे लनयनाथानकनेविषेस० सातानेविगे जे जेसाध संसवादि ३६६ लमे नहीं ॥ ८ ॥ पिंमोगाहपरिमास ॥ प्रतिज्ञानेविषे लयगपोसुसत्तकै जलिकूजय
अलवडकरवाने विषयमा
For Private and Personal Use Only
Page #329
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ.३१
नि सदाए सेन्तेनरहे संसारमाहे लमेनहि ५ म०जानिमदादिक आवमदनेविषेबं ब्रह्मचर्यनी नव वामन नि समादि लीप धर्म | निचं सेन अश्मंगखे ॥॥ मएसु बलगुत्तीसु ॥ पिये .. लिस्कू धम्ममि द०.दस प्रकारे तेहने जे जे साधु आवमद नामबानेविषे भववाने सेववानेविषेदसविध यतिधर्मपाल) से तेनरहे संसारमाहे नमे नहिं १० दसविहे ॥ जेलिस्कू जयनिचं ॥ यानेविषे नदमकरे निः सदाए 'सेनअबश्मरखे ॥१०॥ न श्रावकनी प० प्रतिमानेविषे लिये निकनी प० १३प्रतिज्ञानेविषे जे जे साधु श्रावकनी ११ मतिज्ञाजाण्यानेविषे निघूनी१२ । करेसदाएने नवासगाएपछिमासु ॥ निस्कूणंपरिमासुय ॥ जेलिस्कू जयशनिचं प्रतिज्ञा पाखवाने विषेच्दम सेन नरहे संसारमाहेलमेनाहिं ११ कि०५३ प्रकारेनीकियाने लु एकेडियादिक १५ अकारना प० पन्नरजातिना परमाधामीने विषे जेसाधु१५ प्रका अश्मंमसे ॥११॥ किरियास लुयगामेसु जीवने । परमाहमिए सुय । जेलिक ॥ जीवनीरझाने करवाने विषे नुदमकरे १३क्रिया थानक टालयानेविष १५ जातिना परमाधामी जेवा गा श्रीरूगमांगनापहिसाश्रुतस्कंदनेवि सेनअ॥१२॥ जापावानेधिषे नुदमकरे नि सदाए तेनरहे संसारमाहे त्नमेनहि १२ गाहासोक्षसएहि १६गपिानु सोसमुगाहानामा अध्यात तेमसतरत्नेदे संजमनेविषे जे जे साधुज सोसमें अध्ययनमानणावबाने वघे १७ स्नेदे असंजम नजवाने विधेन|३५३ बननेबिधे तहा असंजमंमिय॥ जेलिस्कूजयशनिचं ॥ दभकरे नि सदाए
For Private and Personal Use Only
Page #330
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न|| से० ते नरहे संसारमाहे लमे नहि १३ व अनेरा अाउमदंकरीना० ज्ञाताना १० मा अध्ययनने विषं ग बास थानकन अ. असमापीनेरि अ.३१ ३६८ सेनअचश्मंगखे ॥१३॥ बलंमि नायशय सु ॥ गएरोसुअसमाहिए।
| जे. जेसाधु ज. ब्रम्हचर्यपासवाने विष ज्ञाताना अध्ययनसमा सदद्दवान करे नि सदाएनेनरहे संसारमाई लमे नहि ए. चारित्रकार जेलिस्कू जयशनिच्चं ॥ विषयसमाधिनाधानकनांवानेविषेदम सेनअश्मंगले ॥१४॥ एगवीसाएस सकर तेएकवीसससा तेनेविषे बाल बाविस परिसहे जेजे साधु ० एकास सबखाटांगवान विष२ | विषेनुदमको सदाएस. नेन बसेसु॥ बाविसायपरिसहे। जेलिस्कू जयनिचं ॥परिसह सहबाने सेनबममले लमैनहि १५ ने. वीस अध्ययन सूयगमांगनाचं बेश्रुतस्कंधनेविषेसा वीसनुपरै १ अधकू कीजनो २५ फुए मु० २५ देसनवनपति ८ ॥१५॥ तेविसयिसूयगमे । रुवाहिएकुसुरेसुय व्यंतर ५ ज्योतषी एक जे वैमानिक २४ दयत्तानी जान श्रयेचा तीर्थकरजे साधु सह सुगमांगने विषेसमासदहवानविषे २४ तीर्थकर से तैनरहे संसारमाहे लमेनहि १६ प०५ महाबननी २५त्भावनानपिपे जेलिस्कू जय निच्च ॥ आराधयानविषेनि सदाएसेनअवश्ममते॥१६॥ परावीसत्मावएगाहिं। न०२६नर्देशोद दशा श्रुनस्कंधना १० नईसा लेअादिदेश्बृहत २० भद्देशानेविषे जेसाघु न० २५ लावनासमिश्राराध्यानेविष ६ मुद्देशासमा ||३६८ नदेसे सुदसाश्यं ॥ कल्पना धनुद्देशाव्यवहारना'जेलिस्कूजयशनिचं ॥ सदद्वयाने नद्यम करे निः सदाएते
For Private and Personal Use Only
Page #331
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३६
| से. ते नरहे संसारमाहे नर्मनहि२३ अ. अागारना १७ गुएनेविषे प० वप्ती आचारंगनाबे श्रुतस्कंधना २५ अध्ययननिसीयनाइए २८ || अ.३१ सेनअनमंझले॥१७॥ अएगारगुएरोहिंच । पगप्पमितहेवय । अध्ययनजिमाचारकह्याने निमज जसाधु अाराधयानेविषेदनकरेसदाए से० ने नरहे संसारमाहे लमेनहि १८ पा० २९ पापावबानासु शास्त्रनिमित नेनायाचवाना जेलिस्कूजयनिचं ॥ सेनअमंगले ॥१८॥ पावसुयपसंगेस । मोहगोसुचेवयं पर संगनेविषेमो मोहनीना३० जे० साधु ज० पापशास्त्र अने मोहनीना स्वानकांमबाने सतेनरहेसंसारमाहे नमेनहि एसिद्धमो थानकनेविषे जेलिस्क जयई निच्चं ॥विषेनदमकरे सदाए सेनअबश्मंगले ॥ १० ॥ सिहाशे रूपाम्याने आदिनुपहिजेसमयते सिहादिगुण ३१ लेनविषे जो मनवचनकायाना समाजोग व्यापारनेना ३२ लेद जे.जे साधुसिद्ध गुएराजोगेस। तिनीसासायएगासुय ॥ अालोयपादिकनेनं पिये ३३ आसाननानं विपे जेलिस्कज ना ३गुण हिवाने विषेनुद्यमकरे मनवचनकायाना ३२ जोग व्यापारमा प्रवत्ताववाने विधे नुदमकरे लेबीस सातना इ. एप प्रकारे यनिच्चं सेनयममले॥२३॥ बांगवाकरेसदाए से तेनरहे संसारमा लमे नहि २०/इतिएए एपूर्व कयानेवाः थानकनेविषे जे० अंसाधु अ० सदद्दवानजवापासवानदिपेनदम स्थित शीघ्रतेनरकादिक गतिरूप सर्वसंसायी विक मूकाए ||३६९० सुबाणेसु ॥ जेलिस्कू जयशसिया । करे सत्र सदाए विप्पसेसचं संसारा ॥ विष्णमुच्च
For Private and Personal Use Only
Page #332
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
छ| पं पंक्ति साधु नि इमऊंकबु ३० श्रीसुधर्मास्वामी जंबूप्रनेकहेलेहेजंबू जेममे श्रीमहावीरदेव समीपें सांत्मष्युहतुं नेमऊं तुझमतेकज अ-३२ २७०|| पंमिए । तिबेमि ॥ २१॥ इतिचारित्तविहि अशयांएकतीसश्मं संमत्तं ॥३१॥ई शनिश्री
चारित्रविधीनामा एकत्रीसमुंअध्ययनसंपूर्ण ॥३१॥ ३१ मे अध्ययनें चारित्रपालबुंकयु ले तोप्रमादने सारयापरित्नमणकरावे अ.अनादि त्यागे पाले तेमाटे ३२ मा अध्ययने प्रमादनापानक देषामीनेप्रमादनायांनकटालवाकहेतेमाटे प्रमादसं। तो संसार केवो अशंत | कासना समिथ्यातादिकमूक्षेकरी सहित स० सर्वच गतिरूप०अषमयसंसारखे तेनीप० मोक्ष मूकायबोतं. ते मूकावचीकेचोबेला कासस्स समुवयस्स। सबस्स फुस्कस्सनजोपमुरको तंत्नासलुमे सुमन प० प्रतिपूर्णचित्तथकी है शिष्य तुम्हो स० सांत्मलो ए. एकांतहितकारीले वलीमोझ तेने अरयबे ना ज्ञानने सर्वमतिश्रुतादि पनिरमलाकरे पमिपुन्नचित्ता ॥ सुणेहएगंतहिंयहियचं ॥१॥ जेनेविषे १ नागाससबस्सपगासगाए। अ.मति अज्ञानादिमो० मिथ्यातर्मोहनीने विच विशेषे वर्जवेकरी रा०रागर्न देषनेवली स. सम्यक् प्रकारे स्वत रखपाववकरी एक एकांतसुष
अन्नागमोहस्स विवद्यगाए ॥ रागस्सदोसस्सयसंखएवं ॥ एगंतसोखंसमुवेश नेपामे मोक्षकरेकेबोडे त नेमोक्षपामवानाएमारगगु ज्ञानादिकगुणेकरी बमातेनील वि. विशेष वर्जनाकरवी अज्ञानीजननी रयी || ३ मोस्कं ॥२॥ तस्सेसमग्गो गुरुविनसेवा ॥ क्ति करे विवधताबाखजएएस्स पूरा
For Private and Personal Use Only
Page #333
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
|| स सप्तायधकी ए० एकांत थानके मि सेवना करवी सुश्रुतसनेअर्थि सं० सम्यमकारें किंचित एकाग्रपए वसी ३ आ० वसीमोन्स अ.३२
सशाय एगंतनिसेवएगाय ॥ सुनवं संचिंतगयाधिश्य ॥३॥ आहारमि पामवानो मारगमोक्ष पामयाने अरथसाधुआहार इ. वांडेपणामि मर्यादातेपण एषणिक स० सिम्पा निक वांडे पण लता मोक्ष पांमवा दिमियमेसणिधं ॥ सहायमिन्चे निनगहबुद्धि। दि सपाश्याने निकेयमिछेद्यविवेगजोगी मा अरथनेविषे बुद्धि ले जेनी निकर हवानाथानकनेवांचे पाविक स्त्रीपरूपमगरहित तेपणरहियाजोग्य स०) न कदाचिन सा नपामे समाहिकामेसमऐतवस्सि ॥ ४ ॥ चारित्रनीसमाधीनो वांबणहार साधु तपसी ५ नवासनिया नि लसाविवेकवंत सासिष्यने नपांमे गुरु अथवा गुणेकरी अधिक गुणेकरी सरषो ने पोने ३० एफलीपण पा पापकर्मनविसेघेचन | निनुएं सहाय ॥ गुपाहियंचागुएनसमंवा ॥ कोविपावाविद्ययंती वि० बिचरे का कामत्भोगनेअ० असावधानथको प्रवर्ते ५ जे. जेमवती अंईसाथीसपना ब-पंघीया अश्मा ब-पंधीया विहरिद्य कामेस असद्यमाएगे ॥५॥ जहाय अंमपत्नवाबसागा । अंमबखागप। पनुजैमपूर्णे ए०एहीज मो० मोह नुपजवान आ. थानकए तृष्णानु विशेषएबे खु० निश्चतः तृष्णाने तीर्थफरकडे मोमोहुने बसी ३७१ | लवंजहाय। एमेव मोहायए खूनएहा ॥ मोहच्चत्तएहायपायंवयंनि ॥ ६॥ नकर कहें तीर्यकरै ६
For Private and Personal Use Only
Page #334
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रा. मायाना सोत्नलेरागदो० क्रोध मान नेद्देष अनिश्चै वसी क० कर्मनाबीजकर्मनाबली मो० मोहथीलपनु कहेतीर्थकर क०कर्म पुनः जाज- अ-३२ ३३२ || रागोयदोसोवियकम्मवीयं ।
कम्मंचमोहप्पलवं वयंति ॥ कम्मंचजाश्मरए। नममरणा, मूल उ०पने यति जा. जन्ममरण कहे , उखहणाणो जेदने मान होए मोह मो० मोहडपाणो जेडने स्समूखं । पुस्कंचजाईमरएंवयंति ॥ ॥ पुस्कंहयंजस्स नहोश्मोहो ॥ मोहोहने
न नहीए तृष्णा न० तृष्णा हपापी जेहने न नहोए खोल सो सोन हपापोजेहने न० नहोए धनपरिग्रह जस्सनहोश्नएहा। ताहाहयाजरस नहोश्ताहो। खोहोहन जस्स नकिंचपायं ८ रा रागनबषी दोन इंघनेवली तर तिमजमोहने न सुधरवान का जाचणहार पुरषेसे मूल सहित जास्त जे जेनुपाय ॥८॥ रागंच दोसंच नहेवमोहं । नछत्तु कामेणसमूखजासं । जेजे अंगीकारकरपा तेनुपायूने क हेरे अ. अनुक्रमें . ० र प्रणितपघणाघपान० नसेवया नवायापमिवधियत्वा ॥ लेकिंतश्स्सामि अहाएफपुचि ॥॥ रस्सापग्गमाननिसेचिय
पा. माहेर रसनेदि कामनेदी सनाकारणहारन० दिव्दीप्तपुरुषनेस्त्री संसामानापिपीमानुपनीएसाफु० फलं स्वादकारीयाफलेजेना ३१२ था॥ पायं रसादितिकरानराए। 'दित्तंचकामा समलिद्दवंनि । उमंजैहासाउफसपेस्की ।
यनकामकरी
ऍा षनेजमम परखी १०
For Private and Personal Use Only
Page #335
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दाबानस
२३३
ज० जेमदवनो अग्निते प० घणाएथएाकाष्ठले जेनेविघे एयावन्दननदाबानस केवाउस वायरेकरीमुदिननोऽनुन ए० एग प्रकारे इडीना अ३२ जहादवग्गी पनुरिंधरोवणे । समारून नोवसमंनुवेई विकाररूपअग्नि अपराधणावरसनालो न ब्रह्मचारी ने न हीनहाए इतने अय क कस्यचिन को ब्रह्मचारीनं विस्त्रीप गामलोश्यो। जमराहारने नबत्नयारिस्सहियायकस्सई ॥११॥ पण ११. विवित्त शुपमंगरहितासि यानक पाटिपाटप्सादिकना जं. सेवपाहारना 5 योमा आहारनाकरणहारने दः इंडीना दमएडारने न रागरूप सिद्यासजनियाए। - नेमासगाएंदमिंदियाणं ॥ नर्गिस्सा न. ध परामवनकर चि० पूर्वोक्तसाधूनाचि| प० दूरकीघोटाल्यो ने राग जेम नं नषधेकरी ते रोगवलतोदेहने जन्मबिलामीना तूरिसेशचित्तं ॥ तने पराश्नवाहिरिवोसहेहिं ॥१२॥ परात्नपेनहि १२ जहाबिराला वत्स्वाना थानक, मूसमीपेदरने व ने रहबानी जाएगान०प० लसी| ए. एइष्टांतें २० स्त्रीनानि रहिवाना घरने मांहे न० वसहस्समूले ॥ नमूंसगावसहीपसबा । नहीं एमेषशव निलयस्समझे। न - ब्रह्मचारी व नहियुक्तोलसो नि निवासरहि,१३ सः साधुतपसीहोए इठस्त्रीनासातवानाचिनासिक पोताना चिलने विनिवेसइत्ताः || ३१३ बन्नयारिस्सरवमो निवासे ॥ १३॥ नरूवतावन्नविलासहासंनजंपियंइंगियएहियंवा॥श्बीए
माला
For Private and Personal Use Only
Page #336
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
थापीने राषीने अथवा देवीनेनवसे नचिनवे अध्यवसायनाणे एवाजे 3 बानां स्मिनाबारु एमतिवेनहि तसालीनाथाएते ७ याना केवा अ-३२ चित्तंमिनिवेसश्त्ता ॥ रुवः स्त्रीरुप तेशरीरनो श्राकार १ सवएं सावन्यतेबोलवानी चतुराई २ विसामते वस्त्रादिकपेरवानी रचना ३ ह्रासक मधुरुहसवू नेहने व जंपियं मधुरयणमपाटा वचननो बोलयो ५ इंगियंअंगनुपांगनो मीमयो ६ एहियं वांकीननरेंजोवू अथवा ए श्वाना चित्तमांधारेनहिं सयाए- सदाएवं त्मचेरं ब्रह्मचर्यनेविषेरया एक राताले जेपुरष तेने विजएस स्त्रीजनने
१६ अदंसपं० सरागबुधे करीअदरसने ३० समुचे एवअवधारणो अपणं वाचका दवववस्सेसमोतवस्सी ॥१५॥ अदंसरांचेचअपनांच ।। स्त्रीनेसरागे अभार्थy२ अचिंतांचेव रथी स्त्रीनुअभिलाषानुअणकरवू अचिंतां० सरागीरूपादिकनुअगाचिंतवई -च० समुचेएब० । ए ५ वाना आयरिश्माधर्म
कित्तांचेव निश्चै अकित्तां सरागेनामइले गुणकीर्तन- अकरबूं ५ च. पदपूर्ण शनिजास्सारियना ध्यानते जोग्य सदाएहि हिननुकारण्ठे अदरसादिक ५ बोल १५ का जो कदाचिन् दे देवांगनाएं विव विरभूषाएं सहितन अशक्यनहिं यजोगा। हियंसयाबलचेरेरयाएं॥१५॥ कामंतुदे विहिं विलूसियाहि । नचाश्यावो || असंजमर्थसंजमयीषोत्लापवानेविषे तत्रा एवाएसाधुढेत- तोहेपपा एक एकांनहित कारणएमजाएगीने विडास्त्रियादिकरहिन्यानक १ संसन ३३५ लश्निगुत्ता । उसिसहिनसाधु तहा विएगंतहिनंतिनचा ॥ विवित्तवासोमुणिपापसो॥१६॥
For Private and Personal Use Only
Page #337
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मोठ मोक्षनावांबएणहार माणसन्मनुष्यनेपणसं संसारना परिलमएपिीली० बीए बेतेने विक रद्योतेने धर्म न ता लेहबो पु-दोहे || अ-३२ मोस्काभिकंखिस्सविमारावस्स ॥ संसारलीरुस्सग्यिस्सर्वम्मे । नेविषे नतारिसंशत्तर सोनयी खोकनेविषे ज. जेहवी स्त्रीमूकतां दोहिली स्त्रि कवाडे या अज्ञानीनामननी- ए०एस्त्रीसंबंधी य पूरणेसंगनेसं० नुसंघीनेनि मनिलोए। जहिचिनबालमपोहराने ॥१७॥ हरणहारी१७ एएयसंगेसमश्वमित्ता ॥ यारीने जेप्रवर्ततेहनेसु सोहषानुतरवापूरपो निश्चय होप पतसाटाली बीजारोपपदारसिकतांद्वीमा गंगासमाएं गंगानदीसरषावितर सुशत्तराचेवलवंनिसेसा जहा महासागैरसुत्तरिता । नश्लवे अपिगंगासमाएा ॥१८॥ १८ का कामलोगने विषे अ अलिलाषा प्प०नुपर्नेखु० एमजउँख + खोकने सन् देवतासहितखोकने जं मेकायासंबंधी सरीरीज्ष कामाएगिप्पलवंखुडुरकं ॥ केहनेस० सर्वम् सवस्सखोगस्ससदेवगस्स ॥ जंकाश्यमाए मा० मानसि पुरववती थीएन नेषनाअंतने गा पामेवीतरागे ल्हो१९० जे.जेमानिरधारकि कंपाकवृतना फसनेमः मननेरमणीक माएसियूचकिंचि ॥ सस्सतगंगबश्वीयरागो ॥१॥ जहाय किंपागफलामएोरमा ॥सेणेकर २० रसेंकरीवर्गीकरीय गंधे करीने एवाफलभोगवतीयको पचमापा विपाकनीयवस्थानेपाम्ययिकाएनले काठकामत्भोगव्यानावि फसनेविपेजो||३७५ रसेगवन्ने यलुंजमाएा । तिखुद्दएजीवियपञ्चमाया ॥ एनुवमाकामगुणाविवागे।
पावा २०
For Private and Personal Use Only
Page #338
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न
जे० इंडियना वि. विषय म० मनोज्ञ १३ न० ते इंडियना ला०मननेनकरे क० किवारे प्रएाय० दली
• मनोज्ञनेविषेम अ-३२ नया फन्ने
३१६ | इंदिया विसयामन्ना ॥ विषयनेविषे नतेसुल्नावनिसिरेकाई । | म. मनपान करे स समाधि का० चौबहारस० साधुतपसी २१ हवे चन्कुइं डीनो अधिकार १३ च० नेत्रने २१ रू० रूपगन्यहिमपिकुधा । समाहि कामे समवस्ति ॥ २१ ॥ काव्येंकरी कहे. चरकुस्तरुवंगहांच | बायोग्य व नीर्यकरक हे रु० रूपनेवर्यति तीर्थकर कहे चस्कु ० नेत्रने कर्यं लूर्तन० नंमएम मनोज्ञरूपने [अ०] तीर्थंकर कडेकलूनी नं. ते यंति ॥ तंरागहेतुमएफएामान ॥ मएफपहेन रामहेतु ० रागनुपजवानु हेतुत्वे तु पूरणे तंदोस दो० श्रम • मनीजरूपने मान० तीर्थकर कहे दी० द्वेष नृपजवान हेतु स० नरिषो राग द्वेषरहित ११ य० बलीजे कोई ते बेशने विषेस हेमामा !! समोयजोगे सुसवीयरागो ।। २२ ।। ते वीनरागकडे चन्द्र० मंत्रनो वर्यति तीर्थकर कहे कलून चरक रूप से रूपने ग्रह ए० ग्रहिवाजोग्यरूपस० नेत्रनंगद्० ग्रहणहार के रूवं रूपने वयति तीर्थकर कहे कलूतं चरकूस रुवस्सचस्कूगडांबयंति चस्कूसरूवंगहांवयंति ॥ नेत्रगहणं० ग्रहिवाजीग्य चस्कूस्स. नेत्रने रूपये मह ० हायेसेस ग्रहवा जोग्या रा० गगना हेतुबे ६१ स० मनोज्ञरूपनेती करकहे दो० द्वेषनाहेतुने ६३ ० मनोज्ञ नीर्येकर कहे २३ वयं तीर्थंकर कडे | रागस्स हेन समएफन्नमा ॥ अमएफन्नमाङ्ग ॥२३॥
| ३७६
दोसस्सहे
For Private and Personal Use Only
Page #339
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
(२५
२० मनोजरूपनधिपे जोर जे मूर्याने पाम तीन अ अकाले पाम ते विमरणाने रारागेकरीपीमया मन्तेजेमवा-अथवापतंग अ-३२ 333|| रुवेसु जोगिडिमुवेशनिवं ॥ अकालियंपाव इसेविएगासं॥ रागानुरेसेजहवा पयंगे॥
आ दीवादेषवानेविषे सो सोलपीयको नः पामम०मराने २४ जे० नेपणयागरूप देवीने देखने पांमेनिनी मिअवसरनेविषेस नेपामेश
आलोएलोलेसमुवेइमच्चु ॥२४॥ जेयाधिदोसंसमुवेइतिवं ॥ बने तंसिस्कऐसेचजवे एकरी स०पीनाने की जीच न कि० थोएपण २० रूपअनयी अपराधकरतो... ए०एकांतपणे र राताने स्के । फुटुंतदोसेएसएगजंतू ।। नकिंचिरुवं अवरक्षश्मे ॥ २५॥ रागतरत्तोरुरं रूमारू रूपनविषे अ. अनहिएनेविषे जैबुरूसूं मनोहररूपतालिसे रूपनेविषेकुकरे संपीमाने पांमे बा अज्ञानी मिरूवे ॥ अयालिसेसेकुएापसे । प० देषने उघसंबंधी पुस्कस्ससपिलमुवेश्चासे नन्नालंपाए ले. ते साधु बिक रागरहित २६ रूमा रूपनेविषे अ० के प्रवन एवा आसानेविषेप्रवर्तता यन्त्रसनेधावर नखिप्पश्तेएमुशिवीयरागे ॥२६॥ रुवाएफगासा एग एयजीवे ॥ जेजीब चराचरेहि ने हि हो अ० अनेक प्रकारना शस्त्रेकरी नेथावरजीवने परितापनानुपजायेचा. अज्ञा पी. पीमानुपजावे, अश्यात्मानोअर्थिगुळ ३३५ सणेगवे॥ चिंतेहिनेपरितावेषाखे ॥ नी बास के हवोडे पीवेश्अत्तंगाकिसिहा पामोटिन
For Private and Personal Use Only
Page #340
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
रु० रूझारूपनेविषेरागबे ते प. मूळनुपनेरूपवंनवस्तूनेविषे करे नन्नुपजाचवाने विधेर० तेवतीचौरादिकनालयथी राषवानेविषेसः ||अ०३२ रूवाएफवाएगापरिग्गहेणं।. नुप्पायरस्कएसंनिनगे ॥ वएविनगेहेकह। सम्यक्प्रकारेंअस्यै श्राववानेविषे विकलोगवेतेपोतानातयापरनाप्रयोजनने संमनोज्ञरूपलोगववानाका कालनेविषय वसी सहंसे ॥ पिनास थाएविएवेडने वस्ती किहांथकी सुपले रूपनारागी संलोगकायअतीनखाले॥२८॥ तृप्ती अदाकरतोथको खा० पामतेलले रू. मनोज्ञरूपनविषेशतत्तयकोय वसी तेनेविषेमूळपामे बतो अप्रतिहेआ) नन्नपामेसंतोष लोगवना तृप्तिनपांमेएबीखेकरीसुष रूवेअतीतेयपरिग्गहेय ॥ थके यवलीयासक्त सत्तोवसत्तोननवेश्तुचि
अ. असंतोषी द्वेषकरी १० पुषबतोप पारकीयस्तनेलो सोलैकरी प्रा. मेलोयको कहिएं अदत्तनेविषे २० त० तृष्णाएंकरीअर ॥ अतुधिदोसेप हीपरस्स॥ सोलाविले आययश्अदत्तं ॥२५॥ तएहालिस्य परालव्योयको चोरीनोकरणहारतेकेवो रू० रूपदेषवानेविषेअ असंतोषी रूपपंतपरिग्रहमेल मा०मायासहित मो मृषावादव
स्स अदत्तहारिगो॥ रूवेअतीत्तस्सपरिग्गहेय ॥बाने असंतोषीने मायामोसंवदृइ लोल | सोनवधेद्वेषयके तगतिहामृषाबाद बोखेडतेपणपुषयीनमूकाएनेनीव मो मृपावादबोच्यायिकीप पवेपमा पु. पहिसुवेली ||३३८ दोसा ॥ तचाविपुस्कानविमुच्चश्से ॥३०॥ २० मोसस्सपञ्चायपुरचनय। पनुगकालय
For Private and Personal Use Only
Page #341
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न ५० पुषीहोए मृषावाद बोल्यायी पुरषनएरूते मारे हु० दोहेलो ३७९ ुहिडुरंते । पुरषने अंतत्र्मावेजेने एखादुखहीए
ए० एप्रिपरें प्रदत्तने सेतो को रू० रूपनेविषे तृप्तयको ०३२ एवं प्रदत्ताणि समाययंतो । रुपेतीत्तोपुहिन प्रतिदुषी होए सजनादिकन ० मनोज्ञ रूपने विषे रातो न ० नरने एम क० किहांथी सुष होए क० किवारेपण ऋणिस्सो ॥ ३१ ॥ श्रारहित ३१ रुवापुरत्तस्सन रस्सएवं ॥ कती सुहोकयाकिंचि त० तिहो मनोज्ञरूपन लोगववाने विषेपण किलेसाने नि० नृपजावे ज० जेहने का० निमित्तें पुषने ३२ ए० एपिरें भूमास तवोवलोगेविकिलेसपुखं । पुषपांमे निवत्तई जस्सकएएडुरकं ।। ३२ ।। एमेववंं पने ग० पद्धतोयको प० द्वेषने पाये पु० दुखनासमूहनीप• श्रेणीने विषेपू प० प्रकर्षे पुष्टवित्तयको य० बली बांधकर्म ज० जे कर्मसेन्ते मगर्नुपनसं । नुवेश्स्को हपरंपरानुं । प ुञ्चचित्तोयचिणाइकम्मं ॥ जसे जीवने होए 50 दुषनुहेतु लोग वाना अवसरने विषे३३ रु० मनोज्ञरूपनेविषे बि. विरक्तरागरहित मनुष्यसोकर हित ए० पूर्वेकह्यानेॐ०
पुणोहोऽऽहंविचागे ॥ ३३ ॥ रुवेवरत्तोमा विसोगो ॥ एएएएस्कोहपरंपरे | दुधना समूहनी श्रेणीकेरी न नजिंपाए ल० संसारमाहेपण संचरहिनवतोज ० पाणिएकरी अथवा जेम पु० कमलनी पानरूंन लिपाएतेम ३७९९ एए ॥ नातिप्पन लवमशेवितो ।। जलेावा पुस्करणिपलासं ॥ ३६ ॥ ३४
१३
For Private and Personal Use Only
Page #342
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नु. सी० श्रीनेंडी सन्शब्दनेबयंति नीर्थकर कहे कथंलूनं शब्दं केवीचे शब्दसीयस ० काननेयहवाजोग्य वे सोबस० श्रोतेंद्रिय काननेशब्देवशब्द . ३२ ३८० सोत्तस्स सद्दंगहांवयंति ॥ तंरागहेतुमएएामान ॥ महवा जोग्य वे कहतिरथंकर राग जवाना हेतुबे म० मनोज्ञशब्दने च्या० तीर्थैकरकहे कथंमृतशब्द स० सरषो रागद्वेषरहित जो० जेकी ते बेलने विषे स० तंबीतराग कहिए ३५ तंदोसहेनयमसमान ॥ समोयजोते सुवियरागो ।। ३५ ।। श्रोतेंडीयनुं काननहा० ग्रह हारने व० कहे तीर्थंकर स० श सोयस्स सद्दंगहांवयंति ॥ व्दनेग्रहबाबयं तीर्थकरद्वेषनाहेतु के अमनोज्ञशब्दने या कई तीर्थंकर ३६ दोसस्सहेन अमएफएलमान ।। ३६ ।।
| स० काननेवयति तीर्थंकरककर्यपूर्त सीयस सदस्सन् शब्दने गांव सद्दस्स सोयंगहांवयंति ॥ ग्रहवा जोग्य शब्दनी सां० | तीर्थंकरक है कवलून शब्द सः काननेग्रहपाजीग्यकड़े तीर्थंकर रा०रागना रागस्सहेनुस्समसमान ॥ हेतुबे म० मनोज्ञशब्द कहे स. मनोज्ञशब्दनविषे जो० जो मूर्खाने पाने ति तीव्र अ० का पां से० ते जीवमराने रा० रागेकरी ह० हरिएप जोगिद्धमुर्वशति ॥ कालियंपावइ सेविएणासं ॥ रागानुरे हरियामिगे
सद्देसु
बनी जैम हरि केबोचे मु० अज्ञानी रा० शब्दने अतृप्ती नृन् पामे मराने जं० जेवलीपा अ० मागशब्द सांलखीने दो | तं नेत्रप्रवसरने विषे ३८० बमुड़े ॥ सद्देातीत्तेसमुवेश्मधुं ।। ३७ ।। ३३ जेयाविदोस समुवइतिवं ॥ तंसिरकोसेन
तीव्र
For Private and Personal Use Only
Page #343
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
० पाने
न.
नो पा
० नवी अपराध करती ३८ ए० एकांत अ. ३२
३८१ नवेकं ॥
5० प्रतिदो इंपेकरी पोताने की जीव तेोसेसर जंतु ॥ नकिंचिसहं वरझइस्से ॥ ३८ ॥ एगंतर घोरात स० रुमाशब्दनविष नहि हवा रूम शब्दतालिसे नेहवा एलूंमीशब्द एनले । देषने छु० दुख संबंधी पीपाने पाने बा० अज्ञानी नोरुइरंगिसद्दे ॥ तासिसेसेकुएड़पन॒सं । से• नेकु करंपरा स्कस्स संपीलमुवेश्बाने ॥ न० नलिपाए तं तेौरान पेकरी मु० साधु विरागरहितने स रूमाशब्दने या०यासानेविषे केके प्रवर्ते बखीजी च त्रसने यावरनात नलिप्पड़ तेामुििवरागे ॥ ३५ ॥ ॐ सहापुगासागएवजीवे ॥ जीव 'चराचरेहिंस |हणावा जीव हा अनेक सकारना जीवने च मनेकमकारनेशस्करी पीपीमानुपजावे किंल्लूते बाले [अ० श्रात्मानो पर गुला योगरूवे ॥ चित्तेहिंते परतावेवाले ॥ पीले त्तगुरु किषिते ॥ ४० ॥ रेबेजने कि० मइल स० रूमाशब्दने विषे प。 मूलनिपजेकरी ॐ० रूमाशब्दनेनुपजवाने विषे २० नेवली चौरादिकन। लययेकि राषवाने विषे सद्दाएवाए। परिग्रहेां । नुप्पायोररकएासन्नियोगे ॥ सं० पोतानातथापरनामयोग
प०
परिणाम सहित बं
ने सम्यक्प्रकारें रथ व विजोग या एवेने वि० विनसने वि एवं बसे य० वली क० किहां सु• सुषहोए | सं० मनोजशब्द लोगबवाना कालनेविषेय० बली ३८१ भाववाने विषे से० शब्दना राणीने सं० संयोगकालय तसाला १
'वविजयकहिं सुहंसे ॥
.
+ करीबन पामे इत्यर्थः ४१
For Private and Personal Use Only
Page #344
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नु. स० मनोज्ञ शब्दने असंतोषीयको प० मनोज्ञवीणादिकनापरिवहने विषे च्या० आसक्तान० नपांमे संतोष ३८२|| सद्दे प्रतीत्तेयपरिग्गहेय | सत्तोवसन्तो अत्यंतवासनन॑वेशद्धं ॥
संतोषीने दो दोषेकरीने ३२ दोसे
5 ० ते जीव पुषी होए पारकीची एादिक सो० सोलेकरी मतु पुष्टचित्तयको प्रा० सीएवीणादिक पारकीवस्तु त सोलेकरीपरा व्योपते उहीपरस्स ॥ शब्दसांलसीने सोलाविसे प्राययप्रदत्तं ॥ ४२ ॥ पादधुं ४ २ तएहालिलूयस्स हो ० चोरीना करए हारने स० शब्दने असंतोषीने प० परिग्रह मेलवाने विषे असं मा० मायासहित मृषावाद बोलबुबाधे लो० लोलने दत्तहारिणो ॥ सतीतस्सुपरिग्गय ॥ तोषीने मायामुसंबद्द सोलदोसा ॥ ईषयकी सोचोरी करेले पढेको श्वेतो त• तिहां पण मृषा बोसे कृते पु० पुषयीनमूकाए से० तेविषे जीव मोन्मृषाबोसे. प० पढे पश्चाताप करे मनो मायासहित मृषा बोले ताविपुस्कानविसे ॥ ४३ ॥ ५३ मोसस्त पछापुरचन्य ज्ञश |ब्द गीतादिक सांललवानी सोलपीजीब पु० पहिषुपए एवीचैितानकरे प० मृषाबोलवाने अवसरें ते एमजाएो रषे कोइ जूग बोसो जाओ ए गीत गाएबेतेना धणी प्रगले मृषाकेम बोलसुंमने केमकरस्तं पनु॑गासेयुहंुरंते ॥ तेली • कुषीोएजेन तदोहेलोपांमे एन्एपिरें प्रदतने क्षेतोयको स० मनोज्ञ शब्दनविषेय असंतोषी को पुषीयको अन्यायमारे तेनु को स० मनोज्ञशब्द ३८२
एवं दत्ताणि समाययंती || सद्देयतीतोहिणिस्सो ॥ ४४ ॥ उपरनकरे ७४ सद्दाएक
For Private and Personal Use Only
Page #345
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
२० रक्त वे जेमनुष्यने ए• एप्रकारेकिहांयीसु सुषहोएकः कहिएंपण यो एपणात निदांमनोज्ञशब्दन लोगे आववानेविषेपणाक्ति अ-३२ रत्तसनरसएवं ॥ कतोसुहंहोघकयाकिंचि । तबादलोगेविकिसेसपुरकं । किसान पामे नि निपजावे • अमनोज्ञशब्दलोगववानेकाजे पुरुषांमे एक एपिपरेंस पासूया शब्दनेविषे पत्तोयको देषत्माद जु- पामे निवत्तजस्सकएगपुस्कं ॥४५॥ ४५ एमेव सई मिग पनेसं ॥. . नई पुषनासमूहनी श्रेपीएं पदेपेकरी पृष्ट चित्र चित्तनो धणी चि बांधकर्मतेजीव पु वली होए १० उषकारियाविपाके श्हसोक परसोको स्कोहपरंपर्नु ॥ पञ्चचित्तोयचिपाश्कम्मं । जंसेपुपोहोहंविवागे ॥४६॥ नेविषे ५६ स- मनोज्ञशब्दनै बि० रागरहित एतेपनोज्ञ वि० सोकरहित एक एपू कहीले ३० उषनासमूहनी पीए न० नतिपाएनयमाएका सद्देविरत्तोमएन विसोगो। एएगापुरकोहपरंपरे।। नसिप्पई लव पए से बनो जन्मपाएगीएंकरी पुः कमलनुपपानसिपाए नहि नेमविरक्त मनुष्यनक्षिपाए ५७ घाउ नासकाने गंधकस्तूरीमा मशेविसंतो ॥ जसेएवापुस्करणिपसासं॥४७॥ हवे प्राोंडीना १३ काव्य के मुपग ग्रहवाजोग्यरेएमकहेनार्यकरनन्नेकुरगंध रागना हेतुडेजेमे मनोज्ञगंधनेविपीन नेगंधयेषहेतुडेअजेअमनोजगंयो ते ३८३
वयंति । तंरागहेनुत्तुमएसमाश ॥ आ० एमकहेतीरथंकर तंदोसहेनअमएकामा
For Private and Personal Use Only
Page #346
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सः समसरिपोलावरागहेयरहिन जो जेकोश्त लसापायागंधने गंग रूमापाझयागंपनेविषेशः नासिका ने ग्रहणहारले घा० नासकानोगंध अ-३२ | समोयज़ोतेसुसवीयरागो ॥ ५८ ॥विषेनेवीतरागम्गंधस्सघाएंगहरावयति ॥श्मकतेतर्थिकरघापास्सगंध
गऊ ग्रहवा जोन्यएमकदलीयंकर रा रागनाहेनूनअ जेमनोजगंधबे आएसकहे दो० देषनुहेतु अनेकामनोज्ञगंध लेने आएमकड़े || गहावयति ॥ रागस्सहेनु अमएकामात.॥ दोसस्सहेन अमएफएमास ॥ गं मनोज्ञगंधओ० जेकोई मूळ पांमे तीव्र अ. जेमनोज्ञतया अमनोज्ञगंधनेविषे पूर्वापो ते पुरष अकाषेपाम) रा रोगेकरीपीमयोमुग्ध गंधेसुजोगिदि मुवेशनिवं ॥ अकालियंपावश्सेवितासं ॥ ते विनास रागानुरेनसहिगंध धीनागधनी जमि प्रमुख सैनी गं गंधनेनेविषेगि गृहटनासर्प वि बिषयकीजेमान निकस्योयको जे. जेको पाया गंधने पामीनेदी० गिडे ॥ सप्पे बिसान विवनिस्कमंतो ।। ५० ॥ उघ पोमेरुरिगंधमाटे ५० जेयाविदोसंसमुवेइ दोषनेपामे नि तीब्र आकरूं न तेन्अयसरनेविषे न पामेऽपने 3० पुदीत दोष .. सह आपकीचेजीवनः किं थोएगपत्रअपराध तिवं ॥ संसिरकऐसेन नवेश्डुकं । उद्दतदोसेएसएजंतूा नकिंचिगंध अवरशईसे करतोनयी से० ले ५१ एक घएक रक्त जेजीब रु. मनोज्ञगंधने विधे अ एसरघोळूमोकाश् पीजोगंधनहीं कुछ करेएको छ-उपसंबंधी संयी ३८५ ॥ ५१॥ एगंतरत्तोसाहिसिगंधे ॥ अयालिसेसेकुएश्पर्नुसं। देषत्नाव फुत्कस्ससंपीला
For Private and Personal Use Only
Page #347
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
न.
३८५|
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भीमासारमबरते
बा० अग्यानी न० नसिंपाएन घरमाए ते० तेणें रागद्वेषरूपी एवचनेकरी ने साधु कि० रागरहित गं० मनोज्ञगंधने के प्रवर्ते प्रा० मुवेइबाले ॥ नलिप्पतेामुणिविरागो ॥ ५२ ॥ झए ५२ गंधाएगासागुगण्यजीवे चत्रसजीबने थावरजीवने हो घणाप्रकारना जीवने चि घशाप्रकारने शस्त्रेकरी ते. ते सुगंधनोकार्थीजीवपचे पी० परजीवनेपीमा न चराचरेहिंसईोगरूपे ॥ चिंतेहितेपरितावेश्बाले पनुपजायेा मज्ञानी पीलेइतव पजाए ० मापात्मानो अस्य गु० मोटोजा ने परजीवनेपीमानुपजाए गं. मनोज्ञगंधने रागेकरी मनोज्ञगंधग्रहणकरवानी मून | रुकिलिये ॥ ५३ ॥ कि० रागादिकने परिपगमे पीमयायको ५३ गंधा एफवाएएापरिग्गहीय ॥ पजेतेोंकरी ॐ० सगंध व्यकस्तूरीप्रमुषनपराज़वानेविषे र कस्तुरीप्रमुख सुगंध | सं० पातयापारकामयोजन नपजेतिबारे विच्स नृप्पायो रस्कएासनिनुंगे ॥ चौरादिकनात्मयधीराषवानेविषे। सुगंधद्रव्यर्जम लोगत्र्माववातेममवरताववाने विषे वए गंधव्यनो विनास हुए केसुगंधद्रव्यनो वि० विजोग ऊपयके सं.मनोज्ञगंधने लोगबबानो का० कालनेविषे असंतोषी हुएते विनगेय कहि सुहंसे ॥ किहांथी रूप होए सुषक्ऊए गं॰गंधऽन्यनैविधेमनोज्ञपणे असंतोषी वापीस्वयंध। स०प्रत्यंतत्र्यासक्त बतोन० नपामे संतोष अ० असंतोषीने दोन्दोषेक ३८५ ५.४ गंधेपर" "सत्तोवसत्तोननवेद्धिं ॥ तुविदोए
संलोगकालेयप्रतीतवाले ॥ ५४ ॥ कहांथी
For Private and Personal Use Only
गंध . ३२
Page #348
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न. ते जीवपुषी होए ३८६ ही परस्स ।
लो० पारकारकगंध ऽव्यदेषी ने सोलें करी मसुदुष्टचित्तयको प्रा० सीएच्या० पारकी त० तृष्णाएंकरी परालव्यो . ३२ लोलाविले प्राययप्रदत्तं ॥ ५५ ॥ सुगंधदव्यदेवीने ५५ तएहालिलूयस्समद रूप तेहने प्र० पारकी सुगंध कस्तूरी प्रमुष चोरीना करणाहारते गं सुगंधव्यने विषे असंतोषीने प० सगंध व्यकस्तूरीमा मायासहित गंधप्रतीतस्सुपरिग्गहेय ।। प्रमुपन परिग्रह मेलवाने विषे असंतोषीने मायामुसं मु० मृपाबाद बोले ब ० बाधे अथवा मृषावादबी सचाने विषे प्रवरते लो० सोलनेदोष की त• तिपणामृषाबोले कुते पु० पुषयी नमूका बहलोलदोसा ॥ लोली सगंध व्यनी चीरीकरे पत्बे कोई पूबेतो तच्चाविपुस्कानविमुंच्चईसे ॥
हारिणो ॥
ए से० तेविषे जीव मृषाबोष्या
५६ ॥ ५६
प० पढेंपश्वात्तापकरे सुगंधवास लेवानो लोसपीजीव प० पहिने अव्यनाधणी यागलेमृषाकेमबोल मोसस्सपवायपुरञ्जनय ॥ कंपाएबाविंधान करेएसुगंध पनुंगकालेय हिंडुरंते ॥ | सुप० भृषाबोलवाने का अवसरे तेमुफनेजूगबोलो ए० एशिप ० सुगंधद्रव्यप्रदत्त स० सेतोयकोगं० सुगंधनेविषे प्र० सं जारों ने लिए वसी पु० पुषी होए पु० पुषनोत्र्यंत दोहेसोपांमे एवं दत्ताणि समाययंती । तोषी को पु० पुषी होए प्र० अन्यायमाटे तेनुकी इनपर वी. गं० मनोज्ञगं धनेविषेजेर रक्त बे तेमनुष्यने ए० एएो किहांयकी सुखी ३८६ तो हिस्सो ॥ ५७ ।। नकरे ५७ गंधाएफरत्तस्सनरस्सएवं । प्रकारें क० कत्तोसु
गंधेती
For Private and Personal Use Only
Page #349
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न होए के किवारेपण थोरो त तिहां मनोज्ञगंधस्लोग प्रावधानेविषेपण कि किलेसफुष मिजे मनोज्ञगंधनोगेश्राववाने क०काजे ३८७ || होद्यकयाइकिंचि तबोवनोगविकिसजुस्कं। पामे निवत्तईजस्सएरास्त
५० ए० एपिपरें गरूमागंधनेविषे भि परतोयको ढेषत्नावल्पामेछुः पुषसमूहनीश्रेणी पुरवेषेकरीष्टचिचिननोधपीचिच्चांधे | ॥५८ ॥ एमेवगंधमिगपर्नुसं ॥ नवेश्कोहपरंपराने ॥ पञ्चचित्तोयाचगाइकम्म
कर्मजंजेकर्मने जीववली होए. पुषकारी विपाक रहसोकपरलोकना गं मनोज्ञगंधनेविषविरागरहितयको म मनुष्य विसोकाए ए ॥ जंसेपुपोहोइऽहंविवागे ॥५॥ विषेप गधेविरत्तोमपानविसोगो ॥रहित जएते एए पूर्वेकह्यानेषु पुरखनासमूहनीअगो न० नखिपाए नपरमाएल. संसारमापणानतो जपाएपीएंकरीजेमकमसनुपानसूनपिपाए ज्वे रांस्कोहपरंपरेण ॥ नसिप्पईलवमशेविसंतो॥जसेवापुस्करपिप्पलासा के जी० जीत्ननेर तीपामधुरादिक रसनास्वाउने ग ग्रहबाजोग्या तं तेतीपादिकरसना स्वादरागहेतु तु०पूरी जे. जेमन् मनोज्ञरसना
'जीहाएरसंगहरांवयंति ॥ ०एमकहे तीर्थकर 'तंरागहेनुतुमालमाऊ॥ स्वादरोगना हेतुबेतु पूरणे जे. म मनोजरसना स्वादले नेपाल एमकहेतीर्थकरनं तेरसदो० देषनाहेतुबे अमनोज्ञास समसरपुरागडेषरहितजेको नेस्तनपापाच्या २८३
दोसहेनुअमएलमा ॥ शब्दले ते एमकहे तीर्थकर समोयजोतेसुसवीयरीगो शहिये.
For Private and Personal Use Only
Page #350
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न र रूमापाझ्यारसने स्वादने जीलबे ते गरु ग्रहयाजोग्यडे जी जीननेर समापारुयारसनास्वादने रा० रागनुहेतुडे म जेमनोजरस ||अ-१२ | रसस्सजिप्नंगहरांवयंति ॥ श्मकहे तीरयंकर जिझाएरसंगहएंवयंति ॥ रागस्सहेनुसमएस नोस्वादलेतेश्मकहे दो नीषाकरूयारमनास्वादनेविषे हेतुळे अ. जे अमनोज्ञासनास्वादने जोगिम्पूर्जापामे तीन ऋअकासे मात्र ॥ तीर्थकर दोसस्सहेन अमणुपमा ६२॥ रसेसुजोगिद्दमुवेशनिवं ॥ अकाषि पामे से तेजीवमरणा रा रागेकीपीमयाँबचमसियाने काटेजेविः विधापी म०मबमाबसानोमा मांसलोगवानोगियाछ यंपायश्सेविणासं ॥ रागानुरेवझिसविलिन्नकाए। मगजहाआमिसनोगगिद्दे ।६। जे० जेकोश्चलिपणदो पाल्यारसनास्वादनद्वेषानं तेस्वादनोगववाना अवसरने विषे से० ते जीव उर्दतदोर्षेकरी स.आपकीय जेयाविदोसंसमुवेशतिर जानवतसिस्कऐसेनुनुवेशपुस्कं ॥ पामेऽध उइंतदोसेएसएजंतु
किपिरिसश्रीधरानका
नेविषेत्र्यायाक्षिसेस बकरेप एवो उ० पुषसंबंधनीसं पीमापांमै बा• अज्ञानी न० नासिंपाए ते० नेणेरागद्देषरूपिएकचरेकरी मुः साधु विरागरहिन र समारस ३८८ | देवत्नाव एकस्समंपीलमुवेश्बासे ॥नालिप्पश्तेएमपीविरागे ॥ ६५ ॥ ऊएते ६५ /रसाएँ||
गतिरपक्तिरेरसमिस
सा
For Private and Personal Use Only
Page #351
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
स्वाद के प्रवर्तेा. रूमारसत्तीषादिकनीआसाए पत्रसअने थावरजीवने हिम्हणेघणाप्रकारनाजीवने चि० घोप्रकारनेशाकरी | अ-३२ गगसाएगएयजीवे ॥ प्रयरततो जीव चराचरेहिंसऐगरूवे ॥ चित्तेहितेपरितत्तावेश्वा॥ तेषनुपजाचे पी परजीवने पीमानुपाए अ० आपणाश्रात्माने अरपेजेगु मोटाजाणेने परजीवनेपोमानुपाए र रूकारसनास्वा | बा अज्ञानी पीसेई अतवगुरुकिसिखे ॥६६॥ कि० रागादिकनेपरिणांमें पीमयोयको ६६ रसाणुवाएगा दनेविषे अच् आसक्तययोयके प० परिग्रहणकरयानी जातीषामधुरादिकरसनास्वादकारपी वस्तु नपजवाविषेसं नीषादिकरसना परिग्गहेण ॥ मू उपजे नेणेंकरी नप्पायपरस्कासंनियोगे ॥ स्वादत्मोगे श्राववापणे प्रचबिचानेविषे व विनासतेविणवेढतेवि० मनोज्ञरसनास्वादविजोग एयकेक किहायकी मनोज्ञरसनास्वादलोगववानाकालनेविषे अन् असंतोषफए वएविनगेयकहिसुहंसे ॥ रूपहोएसे तेजीव सं० संत्भोगकालेयअतीतलाले ॥६७ ॥ लेकिहांयकी रूषहोए र मनोज्ञरसनास्वादनेविषे अः असंतोषयको पव्यतीतीषादिरसना) स.आसक्तअत्यंतन नपांमेसंतोषने अन् असंतोषी ६७ रसेअतीतेयपरिग्गडंमि ॥ परिग्रहमेसवबानेविधे सत्तोवसत्तोननवेश्तुति ॥ अताउदो नेदोषेकरी तेजीवपुषीहोए पारकारसना खो० सोनेकरी आ. मसुंपुष्टचित्तयको जीए अ० अपा दीघापारका त षट्रसनेलोने ३८५ सेपाहीपरस्स ॥ स्वादनेविषे सोलाविलेाययश्अदत्तं ॥ ६८ ॥ रस ६८ तएहालिय
For Private and Personal Use Only
Page #352
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न
अ परानव्यो फुएतेनेचोरीनाकरणहारनेर० षट्रसनेविषेअरु असंतोषीने पम्पट्रसनुपरिग्रहमेसयानेविषेअसंतोषीनेमामायासहितमोग ||अ-३२ ३९० स्सअदत्तहारिणो ॥ रसेअतीतस्सपरिग्गहेय ॥ मायामुसंवश्लोलदोसा । मषावादनुचोल
बुंव० वाधेतथा मृषावादबोसवानेविषे प्रवरतेसोच सोत्मनाद्देषयी त तिहांपणामषाबोखे पुषयकीनर मोद मृषाबोस्योप पडेपश्चात्तापकरे तचाविश्कानविमुच्चईसे ॥६५॥ नमूकाएत्तेरसनो लोसपीजीव ६५ मोसस्सपबायपुरबनया रस सोसपीजीव पु०पहिहुंपणाएवी चिंता करे षट्ररसना धणी| प. मृषाबोसे का अवसरे तेएम जापोरषेकोमुजनेजूगबोलोजाणे ॥ आगसे मृषा केमबोससुं एने केम करतं. पर्नेगकासेयहीपुरंते ॥ तेलपाने फुषीहोएफु तेषनो अंत दोहे सोपांमे एक एपिापरें अन् घट् रसादिक अदत्तसेतोयकोमनोशषट्रसनेविषेत्रअ अ असतोघीयको छ उषीहोए अनन्यायमाटेरेस
एवंअदत्तापिसमाययंतो ॥ रसेअतीतोपुहिनअणिस्सो॥३०॥ कोई नपर नकरे विश्वास र मनोज्ञपट्रसनास्वादनुजेश्र अनुरक्त जे ना तेमनुष्यनेएएए प्रकारेंककि हाथकी क. सुषहोए क० कहिएं त तिहांमनोज्ञषटरस | रसाएफरत्तस्सनरस्सएवं॥ कतोसुहहोचकयाइकिंचि ॥ पण थोई एं तबोवलोगंवि - स्वादलो लोगेाववानेपएकसषपांमे नि-नीपजावेज जेमनोज्ञपटरसना स्वादलोगववानी ए० एपिपरे माष्टरसनास्वादनेलिये ३९५ | किलेसफुलं ॥ निवत्तजस्सकएएफुलं ॥३१॥ काजें उस्क ३१ एमेवरसंमिग पनस।
पताधका
For Private and Personal Use Only
Page #353
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जे० जे कर्मने जीववली हो होएपुच् दुषकारिया .३२
द्वेषपामे ५० पुषना समूहनी प० श्रेणी प० द्वेषेकरी दुष्ट चि०चित्तनो धीबांधेकर्म ३९०१) नवे पुस्कोह परंपरा ॥ पफुव्वचित्तोयचिणाङ्गकम्पं ॥ जंसेपुणोहोऽहं विवागो ॥ ७२ ॥ विपाक इहलोक २० पटरसनामनो इस्वादनेविषे बि रागादिक रहित मनुष्यशोकरहितय को ए० एपूर्वेकहाते पुपनासम् न नसिंपाएनघरमा परलोकनेविषे १२ रसेविरत्तोम॒णुन विसोगो ॥ एएएडस्कोहपरंपरे ॥ हना श्रेणी नसिप्पर ए ल० संसारमा हेपावतो ज० जेमपापीएं पु० कमखनुं प० पानऊ सिपाएनहितेमविरक्तमनु हवे फरसेंडीना १३ काका
लवमझेविसंतो ॥ जलेावापुस्करणीपलासं ॥ ७३ ॥ ष्यनसिपाए १३ काव्य कहे काय
याने ताढानुनादिकफरसगं ग्रहवा जोग्यले एमक हे तीरथंकर तं० तेरागना हेतुबे म० मनोज्ञफरसबे या० एम कहे तीर्थकर तं. ते सफासस्सगहांवयंति ॥ तंराग हेतुसमामा ॥ नंदोसहेन दोषनो हेतु मनोज्ञ फरसबेते एम कहे तीर्थकर स० समो सरषो लाब रोग परहितएँ जो० जेकौर ते लखायामया फरसनेवि समोयजोते सुसवियरागो ॥ ७४ ॥ ये ते वीतराग कहिए ७७ का० कायानीफरस ग० ग्रहबाजोग्यव० एमकहेती तं० रागनु हेतुबे पूरणे ३९१ फासस्सकायंगहांवयंति ।। एमक तीर्थकर कायस्सफासंग्रहांवयंति ॥ विकर रागहेनतुस
श्रमएफ समान !! फा० फरसताढाननादिकने का कायाएंकरी ग्रहएाहारव
For Private and Personal Use Only
Page #354
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३९२
म.मनोज्ञफरसबेने एमकहेनी तर ते डेषनु हेतु अन् अमनोज्ञफरसबे ते एमकहें तीरयंकर फाळ ताटानुनादिकफरसनेविषेजेस अ-३२ मएसमाज। रथंकर तंदोसहेजअमएपमा ॥ १५ ॥ ३५ फासेसजोगिदिमुवे कोइमू पामेनीव्र अ० अकाले पा. पामे ने मरणने रा रागैकरी पीभ्यो जे सी सीनस पापीनेविषेअरह्योडतोगाग्राह तिवं ॥ अकालियंपावश्सेविणासं ॥ रागातुरेसीयजसावसन्ने ॥ गाहगहीएमहिसे | नामाञ्सचरजीवतेणे रह्या जेमत्नेसोअटवीमा जे जेकोई पास्याफरस पामेतीन तले फरसत्लोगववाना अवसरनेविलेजीवपा विरणे ॥३६॥ मरण पांम्यो ७६ जेयापिदोसंसमुवेशतिवं ॥ तंसिस्करणेसेजनवेशएका 3. उदंतिदोर्षेकरी स. आपणो कीधेजीब न थोपफरस अ अपराधकरतोनयीले जीव 39 ए० एकांतरक्तजेजे जीव रुका उदंतदोसेएसएएजंतु ॥ नकिंचिफासंअवरईसे ॥१३॥ एगंतरत्तोरुशंमि. माताढादिक फरसनेविषेअ० एसरपोबाजूंसे ते जीव करेएवो 3. पुषसंबंधी संपीमापांमेअज्ञानी न नसिपाए नपरमाएतेने फासे अयालिसेसेकुगाईपनसं॥षत्नाव उस्कस्ससंपिलमुवेश्याले ॥नसिप्पई नेणमुगी | साधु रागरविनफुएते उ८ फारु रूमा फरसमनोज्ञअनेअन्केके प्रवरतेअरूकाफरसना आसाए च. त्रसजीवने धावर जीवनेहए
निथावर जीवनेहो ||३९२ |विरागे ॥१८॥ फासाएगासाएगएयजीवे ॥ प्रवरनतो जीवचराचरहिंसश्ऐगरूवे॥
For Private and Personal Use Only
Page #355
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
- घशाप्रकारना चि घोप्रकारने सस्त्रेकरी तेफरस लोगववानेविषेजीव पपरजीयने पी परजीवने पीमानुपाएअर आपरा आत्मानोअथ अ.३२ | जीवने चित्तेहितेपरितावेबाले ॥ अषनुपजावेबाट अज्ञानी पीतेश्अत्तगुरुकिति ॥ ७९ ॥ | गुरु मोटा जापोते परजीवने पीमानुपाए कि किसेस फा रूमाफरसमनोज्ञने रागेकरी प० परजीवने उघनुपजावेतेणेंकरी समाफरस
सहितरागादिकने परिणामें पीमयोयको फासाएकवाएपरिग्गहेरा ॥ ने ग्रहणकसानीमूनपजेनेकर | न० नवांफरसनपराजवानेविषे र० चौरादिक राषवानेविषेसंमोग व० रूमा फरसनो विनास जएयकेवि समाफस्सनाविजोगवसीक.
नप्पायरस्कासंनियोगे ॥ आययानेविषे वएविजेंगेयकहिसहंसे ॥ किहांयीसुवसेनेजीवरूमा सं० फरस लोगेाववानेविषे कान्कासनेविषे अ० असंतोषजएयक किहांयी फारूमाफरसनेविषेअअसंतोषीथकोपरूसंभोगकालेय अत्तीतलाले ॥८॥ रूप हौए ८. फासे अतीतेयपरिग्गहेय ||माफर सनोपरिग्रह सरू आसक्त अत्यंत आसक्तयकोजीव नन नपांमे संतोष अ.असंतोषदोकरी ३० तेजीब कुषीहोए पारकास्माफ मेखवानेविषे सत्तोवसत्तोननवेश्तुद्धिं ॥ अतुविदोसेगहीपरस्स॥ रसदेषीने सोनेकरीसोला ...अा मधू उष्टचित्तयकोअलीएअ. समासुंहाला तोत्नेकरीपारकारूमाफरसनीचोरीनाकरणहारनीफारूलाफरस ३९३ वितेाययईअदनं ॥५१॥ फरसदीधा ८१ तएहालिलूयस्सअदन्तहारियो॥ फासे नदिषे||
For Private and Personal Use Only
Page #356
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३५०
अ. असंतोपीने प० रूमा सुहासाफरसनु परिग्रहमेखवाने मा० मायासहित मु० मृषावादनु बोलवू चा अथवा मृषावाद प्रवरतायवानेवि || अ-३२ अतीतस्सपरिग्गडेय ॥ विषे असंतोषीने मायामसदृश्तोत्नदोसा ॥ दो दोषयी लोली पारका रूमाफरसने चोरीकरे पडे कोश्पूढे त तिहांपण मृषाबोसेफ़्ते उपयीनमुकाए तेरूमाफरसनी मो मृषावीले प.पढेपश्चा तो मायासहित मृषाबोखे तबाविश्कानविमच्चऽसे॥२॥चोरीकरणाहार जे ८२ मांसस्सपबायपुर तापकरे रूमाफरसनोगववानो सोत्नी पु० पहियुंपणाएवी चिंताकरे प० मृषाबोसुका अक्सरेएमजापोरषेकोमुजनेजूग अजेय ॥ एरूमाफरसमोगववानाधएी आगवेंकेमबोससुनेकेमयंचसु पर्नेगकालेयहीपुरंते ॥ बोलेजाएं तेल. एपीपीहोए कु० जेषनोयत ए० एपिपरें पारकारूमा फरस अदत्त स खेतथिकोरमाफरसने| उघीहोए अ अन्यायमाटेतेनुकोश्न दोहेलो पामे एवं अदत्तापिसमाययंतो ॥ विषे असंतोषीविकोफासेअतीतोशहिनेअणि परन करे विश्वास ८३॥ फा० रूमाफरसनोजे रक्तन० तेमनुष्यनेए० एरोंप्रकारें काकिहांयीरूषहीएक० काहिएपरायी ततिहारू स्सो ॥५३॥ फासाएफरत्तस्सनरस्सएवं । . कत्तोसुहंहोध कयाकिंचि ॥ तबीव माफरस लो० लोगाववाने पिषेकि कलेसषपामे निठनीपजायेज जेम मनोज्ञफरसने लोग आववानेविषे एएपीपरेफालाफर ३९५ लोगे विकिलेसफुरकं । निवत्तजस्सकएएएवं ॥ ७० ॥ क काजे पुष ७५ एमेवफासीम
For Private and Personal Use Only
Page #357
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ग पतोयको प० देषना फुचना समूहनी श्रेणी प० देबेंकरी याचित्तेकरी .. चिबांधेकर्म जनेकर्मत्तेबसी ||अ३२ ३५ गर्नुपनसं ॥बनेपामे नवेश्कोहपरंपराने । पछुवचित्तोनुचिपाश्कम्म। जसे पुयो।
होए कु. पुषकारियाविपाक इहलोकपरलोकनेविषे८५ फाळ ताढा रूमादि फरसनेविषे विपनो समूहनी पीरागर किएतेएव होउहंविवागो ॥६५॥ फासेविरत्तोमएफ विसोगो ॥ मर्नुष्य सोकरहिन एएग पपूर्वेकहीने जुषनासमूहनी श्रेएीएकरी .. ल. संसारमांपए बता जन् जेमपाएगीएंकरीपु. कमसनोपलासने पानपुस्कोहपरंपरेण ॥ नलिपाएनषरमाएनसिप्पश्नवमशेविसंतो ॥ जसेएवापुस्करणिपसासं मां नलिपाएतेमविरक्तमनुष्यनसिपाए म०मनने मा० जीवनो परिणाम आसा ते गन्ग्रहवा जोग्यवक त नेत्भाव रागनुहेतुने ५६॥ ८६ हवे मनना १३ काव्यकेले. मएस्सलावंगहवयंति ॥श्मकहेतीर्थकर तंरागहेनुतु पूर्ण मन् मनोज्ञस्यत्नावले ते श्रा० एमकहे। तं तेजीयऽषनोहेतु अमनोज्ञलावडेने आरएम स० समसरषोत्नावरागद्वेषरहिन्जेनेमएलमान ॥ तीर्थकर तंदोसहे अमएफएमाश ॥ कहे तीर्थकर समोयजोतेसुसवीयरागो || तेलसापासूयालावनेषिधे ला लावनेम मननेगन्ग्रहएकरे व एमकहेती म०मननेनावग: ग्रहवाजोग्य व एम कहेतीर ३९५ ८७॥ रूप८१ लावस्समगहवयंति । रयंकर मलास्सलावंगहरांवयंति ॥ कर |
For Private and Personal Use Only
Page #358
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairth.org
Acharya Shei Kailassagarsuri Gyanmandie
रा० रागनो हेनुढे सठ जेमनोज्ञ लावले नै प्रा० एमकहती दो टेषनो हेतुड़े अन् अमनोज्ञलाव पा० एमकहेतीर्थकर ८८ मूमन अ-३२ रागसहेनस्समएमा ॥ रयकर दोसस्सहेनुअमएकामाश ॥८॥ मोएं। जो जे कोई गृहमूळ नपामे तीव्र अ० अकालेपामेते विमरण रारागें पीमयोका रूपप्रमुषनेविषे कामभोगनेविषे जोगिडि मवेति ॥ अकालियंपावश्सेविणासं ॥ रागानुरेकामगुरोरुगिहे । गृहयको क० हाथपीकॉगपनी जिहांहतीहापणीने मिसवानी यासाएंचाल्यो म तेमारगने जे. जेको पामयात्नाव दौ० देषनावपामे करेगमगंवहिएवनागे ॥ ८ ॥ विषे अहस्यु जेम हाथी. जेयावि जाएगीने दोसंसमवेश तीव्र तं तेलाव प्रवरनवानारब० अवसरनेविषेतेजीवपांमे 5० फुति दो देषेकरी स. यापपोकीर्घजीव यो ए त्ना परिणामे | निबं । तसिस्कोसेजनवेश्श्रकं । पुष । पुरंतदोसेए सएजंतुानकिंचिलावंअव करी चिंत्तव्यापदारथनेत्नाव आस्याअ अपराध ए तेजीवघोरक्तदेजे जीव रु समात्नावनेविषेअ एसरघुबीजूंसे ने रईसे ॥६॥ करतो नयी ५० एगंतरत्तोरुहिरसिमावे। अत्तालिसेसेकापन जीवकहरेएवोदेषा ३० पुषसंबंघनीसं पीमापामे बा अज्ञानी न० नालिपाए नघरमाए ले तेरागदेषरूपीएं कचरे करीजेसाधुरागर ३७६ सं । नाव 'पुस्कस्ससंपीप्समुवेश्बाले । नतिप्पश्तेएमुगी विरागे ॥१॥ हितजए१
For Private and Personal Use Only
Page #359
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
३९५
ला. नावनेके प्रवर्तव्या रूमालावयी यासाएप्रवर्तताजीच च० त्रसजीवने थायरजीवने हो अपणा चिघपोप्रकारनेशस्त्रेकरी ||अ३२ लावाणुगांसाएगएयजीवे। चराचरेहिंसोगरूवे । कारनाजीव चित्तेहितेपरितावेइ से नावनीअरथीनीवपरजीवने फुपनुपजाचे गु० मोटाजागीने परजीवनेपीमानुपाए कि किससहितरागादिकन वाले। बा० अज्ञानी अन् आत्माने अर्थे पीखेतवगुरुकिसिल्वे ॥२॥ परिणामे पीनयोयको ला रूमाउत्तमनघादिकनेरोगेकरी प० रूमानावनेग्रहणकरवानी न कमाउपजाववाने विषैरव चोरादिक रापवानेविषे सरूमा लावाएफवाएगपरिग्गहेग ॥ नुपजें तेणेंकरी जप्पायणेरस्कासंनियोगे ॥मावनेलोगेश्राववा पणेप्रवर्तावावरूमात्नावनेविनौगथके क किहांयी सुपहोएतेजीव संग रूमात्मावत्मोगेश्राववानाकालने विषे अ० असंतोषाएपके वाने विष । वएविनगेयकहिसुहंसे । - संनोगकालेयअतीतलाले ॥ ५३॥ ५३ मा० रूमालाचनेविषे अ० असंतोषीथिको प० रूमीनटीनोपरि स.आसक्त अत्यंत आसक्तबत्तोन नपांमे 'अल् असंतोष लावेअतीतेयपरिग्गहेय ग्रहमेखवाने विषे सत्तोवसंत्तोननवेश्तुधिं ॥ संतोष अतुविदोसे देषेकरीने जीवधी होए प०पारकात्मोगदेषीसोदमेकरी , अमश्ष्ट चित्तयकोलीऐ अदत्त तलोत्नेकरीअपरा||३९५ ग उही परस्स । तोत्माविलेाययईयदत्तं ॥ ४ ॥अगदीथुए तएहामिलूयस्स ||
नव्या
For Private and Personal Use Only
Page #360
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
८. एतेहने प्र० चोरीना कर हारने ला. लावने विषे वासानेविषे प्र०
३९५८
1
संतोषीने प० परिग्रह मे तवाने | मा० मायासहित मु० मृषाबादबो . ३२ दत्तहारिणो । लावेतीतस्स परिग्गहेय । विषैत्र्यसंतोषीने मायामुसंवहईलोलदोसा लेव बाधेय वामृषावाद बोलवानेविषेप्रवरतावे सो० सोलना ० तिहापाषाोसेफूर्त प्र० पुषयकी मूकाए स० तेचोरीकरएा दोषथी लोली चोरी करेपर्बको पूर्व तोमायासहित मृषा बोले तच्चावि पुस्कानविसे ॥ ५ ॥ ने मो० मृषाबोल्याप० पत्ते पश्चात्ताप करे प० पहिलीप एएएवीचिंताकरे | प० सृषाबोसवाने वसरे एमजीपी रषेकोई पूबे जूगबोली मोसस्सपञ्चायपुरञ्जनय । च्यागले मृषा के मबोस पलंगकाले यही दुरंते ॥ जाऐ तेलपी पु० पुषी होएतेषु घनीयंत ए० एपिपरे दत्त लेतोयको ला० लावने विषे असंतोषी को पुषी होए अ० अन्यायमारे तेनु कोईनुप दोहेलीपामे एवंत्र्यदत्ताणिसमाययतो । लावेप्रती तो हिनस्सिो ॥ २६ ॥ रनकरे ०६ ला० पोताना भावनेविषेजे रक्तबे न तेनरमनुष्य एम किहायिकी क० किहां पायी एपए त• तिहां लोगेाववाने
लावापुरत्तस्सुनरस्सएवं । सुबहो कत्तोसुहंहोद्य कयाइ किंचि । तचोबिलोगेवि विषे कि० किलेस पुष्पांमे नि० नीपजाये ज० लोगे आवबाने काजें पुष २१ ए०एपिपरे, लालूंमालावने विषेकीच्या साविषे ३२०८ "किलेस स्कं । निवत्तश्जस्सकएएारकं ॥ ९३७ ॥ एमेवनावंमि गर्नुपन॒सं । नवेऽस्को हप
For Private and Personal Use Only
Page #361
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न समूहनी श्रेणी प० ईर्षेकरीष चि चितनोधएीबाधकर्म ज०जे तेजीवने पुश्वसी होए हु० पुषकारिया विपाक इहलोकपरसोक || अ-३२ ३० परंपराजे । पञ्चचित्तोयचिपाश्कर्म । जसे पुणोहोराहयिवागे ॥ ॥ नैविधे १८
ला० लापनेविषयासाने विषेर रहिन्यको मनुष्यवि सोक ए. पूर्वेकहीने उषनासमूहनीश्रेएीकरीना ननिपाए नपरमाएलसलावे विरत्तोमानविसोगो । रहिनयको एएणकोहपरंपरेए । नक्षिपई लवमशे सारमाहेपाविबनोज जमपाएगीएफु कमलनुपान; विपाएनाहे तिमविरक्त मनुष्य ए. एणिपरें पंचरंडीनाअर्यरूपन विसंतो। जलेएवापुस्करणिप्पलासं । ॥ ॥ नतिपाए ५० एविदियबायमएस्सअद्या स२ गंधक रसवलीमन अ. अरयो - अपना हेतुबे म.मनुष्यनेरा केवामनुष्यनेरा रागद्देषरूपियामनुष्यने ते तेंडियादि ॥ जे संकल्प विकल्पादिक जे ने पुरकस्सहेन मयस्सराश्यो । तेचेवयोवंपिकसायकनाअर्यि पूर्णनिय थी. थीमाएपए किवारे ० पुषनेवीयराग संद कहेवीतराग न० का कामनीगजेते सन्समतात्मावनपा स्कं ॥ नवीयगास्सकरिंति किंचि ॥१०- ॥ थो, २० नकामलोगो समयंनुविनि । मे न याच्ऽवि० भोगकामलोगपएा नुतिननुपजाये जे. जेजीवतेप्प देषकोएनुपजावेजे ते पाम्याशब्दादिकनुपरेरागीसाने ३०९ नयांविनोगविगतविति ॥ जेतप्पनसि परिग्गहेय। सोतेसु पीरागीजीयतिधनेपोधीन
'विषयन षिर्ष
For Private and Personal Use Only
Page #362
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
न.
ยอ
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ऋ-३२
मो० रागद्वेषरूपमोह्रयकी विकारने पांमेबे को० कोपनेवली मा० माननेवलित० तेमजमायाने सो० सोलने ५० पुगबानेच्य० परतिने - रतीने मोहागिन ॥ १ ॥ १ कोहंचमाांचतहेवमायं ॥ सोलंडुगंबत्र्वरंश्च ॥ वली . हा. हासने लयने सो० सौकने पु० पुरषनावेदविकारने न० नपुंसकना वैदविकारने वि。 विविधप्रकारना बली ला० हर्षविषादादिक ए १४ बोसनेमाह हालयंसोगपुमिनिवेयं । नपुंसवेयं विवियावे ।। १०२ ।। साविकारने पांसें १०२ ए. पूर्वोक्तरागदेषना विकार • अनेक प्रकारना दुषपांमेएचा का• कामलोगनागुएनेविषे सक्तझएते ए० यन्व यावद्यई एवमणेगरूवे ॥ प्रकारनाडुषुपांमेको एप एवंविहे कामगुणेसुसत्ते । ली रागदेषादिकथी पनपना बीजा विसेषे पुरगती पोचाने एवा व्यसनादिकने का दयामणी नुसीयासोदीन होएह गएएएप्पलवे विसेसे विशेषेन पांगे ते आसक्त केबो होए कारुपदाएंगे हरि सेवइस्से सजामणी होए तेने कै०त्र्याचारनेन•नवांबे स० शिष्यादिकने बांबे तोयको एत ले सेवाकरवा शिष्यने वांडेपणा प० चारित्र | देवीने द्वेषत्नाव १०३ ।। १०३॥ कप्पंन विद्ययायसि ॥ आचार पासवान बांबे पेड़ तपकी धा पत्नीबराषरो भेद पांगतो बतोवली प० पश्चात्ताप करेवेकरी ए० एवमकारना विकारने कथंभूतातविकारात प्रमाण ०० तावेयतवप्यनावं ॥ त० कर्मनिर्जराकरवी लेने नवांबे
पचाफ
एवंविकारेमियप्पकारे ॥ यावद्यई पा
For Private and Personal Use Only
Page #363
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३० इंडियरूपिया चोक चोरने वसपमयोषको त इंडियने नेहजे नपजे प हिंसादिक विषयसेववानां नि बूमामवानेकाजेंपोतानाच्या अ.३२ इंडियचोरवसो ॥ १०॥ १०७ तनसेजायंतिपनयगाइं । निमधिन मोहमहल मोहरूपीमोटासमूहने सु० संसारनासुपनोगवेषी पु० षटासवानेविषेतेहिंसादिकने प्य० नुपायने नुन्नुद्यमवंतहीए रागद्देषीथको ५ बिन्ना वंमि ॥ विधे सहेसिपो पुस्कविएायगडा। तप्पचयं नधमएयरागी ॥५॥ विरद्या वश्या पगारा जेतसामकारनाडेतेतसा प्रकारना सदाएया० शब्दादिक श्रावि० ते सघसा एपणानसन् ते विद्यमापाविषयथी निवरत्या मागस्सयशंदियबा । जे शंडिय डा० इंडीना अर्थसवे सदाश्यातावश्यपगारा ॥ नतस्ससवे जिवने _ म. रूमा शब्दादिकने रागपणाने विषे वा० अथिया नि मणुअणा त्यूँमाशब्दादिकनेविषे अ. |पणे निवर्तवंत ए. एवं प्रकारे विमएपवयंवा । निवत्तयतिअमरपायंवा ॥६॥ द्वेषपणानेनार नोपजाये ६ एवंससकं ज्ञानादिबुद्देकरी सं० तेपोतानासंकल्प अध्यवसायनेविचारणाने विषे नु० साबधानबेरुमाअध्यषसाएं प्रवर्तेतेपुरषने अरलिजी प्पविकप्पपाससंजायश्समयमुंबवियस्स। सं० मयन समलापण संजाय नुपजें अबेयस वादिकपदारथनें संचितवतात ते समताधिकी से० ते पुरपही गोफे का कामगुपनेविषेत तृष्पाहीनपमे सेन्तेतष्पानालोगवाणहारविरू| ०१ कप्पयनुतनसे । पहीपाए कामगुऐसतएहा ॥॥ 3 सेवीयरागोकय लूत
For Private and Personal Use Only
Page #364
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न|| स सर्वकारज जेणे स्वःस्वपाचेतंज्ञानावरणीकर्मने स्वच् त्यामात्रमा त० नमन मंजेकर्मचषुदरसनादिक आ याचरणजे ते एतसे || अ३२ ४०२|| सहकिच्चो । रपवेश्नापावरएखोएं। तहेव जंदंसामावरेई । दरसनावरणि
मंजे अंतरायने कर करेबेकर्म १०० स० सर्वपदारयनेत तिबारे जा आपोपा देषेबसी अमोदनीमर्मराहत नए नियं जंअंतरायंप करेश्कम्मं ॥ १० ॥ सचं तने जापईयासतेय । अमोहरोहोर निरं नरायकर्म रहित या आश्रयरहिन सा सुकलध्यानकरीअनेसन्समाधी प्रा. आनुपानेकपफनो मोल मोक्षन पांमैसुर कमरहित तराए। अपासवेशाएसमाहिजुत्ते। करीसहितयको आनुतए मोस्कमुवेश्सुद्यो ।। निमयको सोच ते मोकना पांमणहार जीवनेत स. सर्वषयों मूकापा जं जेवाएयंएप्रतकंसययं नीरंनरजीयन वाढ्य र पीन। नपाचे जेएबाउँ सोतस्ससबसहस्समको । जवाहसययजंतमय। षयी मूकापा बसी केबारे दी० सांबीयितीनाकर्मरूप विविसप्प मूकापाडे का० जेसर्वकारज जेणें तंतिवारेमुक्ति गवापनी हो होएअत्यंतरूपी सिक्थाए दीहामयं विपमुक्कोपसबो॥ प० प्रशंसा करथा जोग्य ताहोश्चत्तसुहीकयो॥१॥ १० अन् अनादिकासनु प्प नपजएसन्सर्वषना प मूकाववानो मार्ग विद्योतीर्थकरेंजे मोक्षमारगपामीने ||४०२ अपाश्कासप्पलवस्सएसो ॥ सबस्साकस्सपमोस्कमग्गे ॥ विहाहिनत्यमुविच्चसत्ता ।घमा
जापा
For Private and Personal Use Only
Page #365
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
क० अनुक्रमेएनघणुसुरखी ल० होए म कथंधु १११ ३० शनिश्री प्रमाद स्थान अध्ययन बत्रीसमें संपूर्ण ३२ | अ.३३ कम्मेणअच्चंतसुहीमवंति । निबेमि ॥१११॥ इनिप्पमायगांअभयएगबत्तीसमसंमत्त॥३२॥
३६ बत्रीसमांअध्ययननेविषे प्रमादना स्थानक कह्या नेप्रमाद अपारकर्म यो जंबूमने सुधर्मा स्वामी कहेश पकी जीवकर्मबांधे ते ३३ मा अध्ययननेविषे - कर्मनी प्रकृति कहे अनकम्माइंवोगामि। कहसुं अा अनुक्रमें ज. जेमबेआरकर्मतेमअनुक्रमें जेएकमेंकरी बंधारो एजीब सं संसारनेविषे पर लमेनयाांषे आम्जेम्पा
आएपुधिजहंकम्म। कुंकझंडं जेहिबद्दोअयंजीवो । संसारे परिवत्तई ॥ १ ॥ योध्योहा।। ना ज्ञानन आवरे लेमन्सूर्यनी कांतिने वादत ढांके लेमतो दंदरसन केहेता देवयूं ते आठ ढांके तेम वं वंदनीकर्मनमकपरमया नागस्सावरणिधं ॥ ज्ञानावररणी करम दंसगावरांतहा । + पागनीसपमा वेयणिधं तर तेममोहनीकर्ममद्यपीधीचपमा अा. यानुषाकर्मना हमेनीनुपमात तेमजएहये कमी ना. नामकर्मवीतरागनीनपमागो गोत्रक
तहामोहं। आनकम्मतहेवय ॥२॥ना नामकहेले नामकम्मंचगोतंच मनीकुंभारनी सुपमा अंतरायकर्मनी नारीनीनुपमा ए ए0प्रकारे ए सघसाएकस अन् आरकर्मसंक्षेपयकीजाणवा एमूलप्रकृतिकहबेहवेन ४०३
अंतरायंतहेवय । एवमेयाई कम्माई । अवेवनुसमासन ॥३॥ त्तरप्रकृतिकहेले ३ ||
For Private and Personal Use Only
Page #366
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
नु.
६०४
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
1
ना॰ ज्ञानाबरीकर्म पं० पांचप्रकारेंस • सिद्धांतनुंजे आचरण एते श्रुतज्ञानावरणी म० मतिज्ञाननेजे श्राचरे। ज्ञानाबरी बली चीजूं . ३३ नागावरणं पंचविहंरूयं यलिसिवोहियं । ते मतिज्ञानावरण ० अवधि नहिनाएंांचतश्य म० मन पर्यवज्ञानावरणीबसी के. केवलज्ञाना। निοसुषे जागे तेनि ७ । त० तेमजनुलावेगावे नि० दुषे जगामी पते निद्रानिड़ापनबाटे ॥ मपनाएांच केवलं ॥ ४ ॥ व निद्दातहेवपयता || तेमचलना निद्दानिहाय पयसपयसाय जातां निजामावे ते प्रचला त० तिवारपनी थि० चारथी अधकी पं० पांचमी निडाहीए जाएाबी ५. 'च० चेतूने देषवाने यावरएा ततोय थिए । निद्रा होएते विलागिडिनिडा पंचमी होइनायवी ॥ ५ ॥ चस्कूमचरकून हिस्स | तेचच्छुदर्शनावरण ०कांनेकरी शब्दसांलस्याथी जांगें एम बीजे इंडिएकरी) + फूएतंत्र्यवधि के केवलज्ञानेकरी देषवाजीग्य/ दंसो जापावानुं त्र्यावरण लए न० अवधिज्ञानेकरी देषवानुं यावर + दर्शनावरण केवलेयप्रावरणे | वरा फूएतेकेवलदर्सनावरणी एक एमबली नाज्जाएवं द० दरसनावरणी कर्म ६ वे० बेदनीकर्मपा 50 बेप्रकार सा० सातावेदनी कर्म एवंतुन विगप्पं । नायबंदंसणावरणं ॥ ६ ॥ वेयणियपियं विहं । सायमसाय ० बीजु असातावेदनी कर्मकयुं सा० सातावेदनीकर्मना ब. माव भेदजांएावा ए० एप्रकारें अ० सातावेदनीनापण ८ प्रकार ४०७ चन्द्राहियं । लगवंतें बनलेया। एमेवप्रस्मायस्सवि ॥ १ ॥ जाएवा
साय
ง
For Private and Personal Use Only
Page #367
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मो० मोहनी कर्मनापण वे प्रकार दा दरसनमोहनी अने चारित्रमोहनीकर्म तेमद दरसनमोहनीकर्म ति. अशाप्रकारे का चच्चार अ.३३ मोहणियपि विहं । दंसरोचरणेतहा। दंसपोतिविहेवृत्तं । मगवर्ने चरण त्रमोहनीकर्म कुबे प्रकारे होए ८ स० सम्यकत्ववेदनीच मि मिथ्यातेवदनी स० समकितने साथैमर्माहोयो अमितनं नथी मिट्यात
विहंलवे ॥८॥ समत्तंचेव पूरपणे मिचत्तं। सम्मामिवतमेवय । मोहे रसजीवनी एवी अंतरास मध्यमागे प्रवर्ने डे एनसे मिथ्याती रसलाव नुपनो अने समकित एक एपूर्व कहीने तिच्या प्रकृति मोर मोहनीक सामोथियोपण समकितमा याबीसक्योनथी बिचमांजतेने समामिगतवेदनीकही एयान तिलिपयमीन । मोहगिधा
दं दरसनमोहनीकर्मथीए च चारित्रमोहनीकर्म पूर्वेकडं बे प्रकारे बित्नगर्ने ककषायेमोहनीकर्म । स्सदंस॥ए॥ चरित्तमाहाकम । विहंतुवियाहियं । कसायमोहागि
च० पूरपो नो नोकपाय त तिमज १० सो. क्रोधना भ लेदअनंतानुबंधिनअप्रत्याष्पानिनुप्रत्याष्यानावरपी संजसनु । धंच । नोकसायतहेवय ॥१०॥ सोससविहंलेएए । कम्मंतुकसायश् । एममानना ४ मायाला ५ सोनना छ लेदोधकर्मपूर्ण क०कपायथी नेनुपनातेकपायमोहनीकर्म स० सातप्रकारे पापसाहास्य १ रति २ अरनि ३ मयः ||५०५ सत्तविहवानवविहवा । कम्मनोकसायजं ॥११॥ शोक ५ फुगंदाइ वेद ७ ए ७ प्रकारनाम नवलेदकीजेतोपुरुषबंदर
For Private and Personal Use Only
Page #368
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न स्त्री वेद २ नपुसकवेद ३ एम करतां । नेदनो ए (ए नोकषाययीनुपना. नारफी नुत्र्यानुषु र तिर्यचनुानुषु २ मच्मनुष्य अ३३ ८०६|| ३ दरसन मोहनी ३१६ कषाय नोकयाय १८ मोहनीनी हवे अानुषाकर्मकेने ११ नेरश्यतिरिकान॥ मग
नुअानुषु त० तेमज देश्देवनानु आनुषु ए चोथो प्रकार आनुषाकर्म च० च्यारप्रकारे १२ ना० नामकर्म तु पूरोपु० देप्रकारे सुन् सुत्न साय नहेवय देवानुयंचनबंतु ।आनुकम्मंचन विहं ॥१२॥ नामकम्मंतुविहं ॥सुहमा नामकर्म अशुलनामा कडं लगयत सुसुननामकर्मच० घपा लेढे ए० एमजन्म अरूलनामकर्मना घपणानेदो गो गोत्रक सुहंच कर्म आहियं ॥ सुत्नस्सन बशलेया। एमेव असुलस्सवि ॥१३॥ १३ गोयकम्म म ३० बेप्रकारे नु० जूंचागोत्रषत्रियादिक आठ कह्युनगवते उ० चगोत्र र प्रकारेहीए चुचीजात १mचूकुस र नुचोबत ३ मुंची तुविहं । नुच्चनीयंचाहियं । नचंअवविहंहोई ॥ रूप चीतपमुंचा सिद्धांतनाजाएगपर्फ६ मुचोखानोदय ७ मुंचीग्राश्च एरोप्रकारेंनीचगोत्रपपाच प्रकारे दा दाननेबिषे पाच सात्मनेविषे लोगनेविषेपुष्पादिकएवाएतेनेविषे एवनीयंपियाहियं ॥१४॥ कथं त्नगवंते १५ दाणे खानेयलोगेय। नु नपत्मोगनेविधेवी बलवीर्यने विषे त० तेमपंपाचप्रकारे अंतराय कर्म स० संझपे विकर लगते १५ एएगप्रकारे | ५०६ नुवनोगेवीरिएतहा। पंचविहंमतरायं । समासेएवियाहियं ॥१५॥ एयाने
For Private and Personal Use Only
Page #369
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| मूळ मूषप्रकृतिकही यावती नुत्तरप्रकृतिसरवासे हवेऽव्ययी सर्वथईने एकसोनेडा प० कर्मना पुदगल जीवकेत्तला बांधकेतलाप्रदे] अ-३३ | मूलपयमीन । नुत्तरानुय आहिया ॥ सुनेर थाएअा० कही । पएसग्गं रिवन्तकासेय ॥ सनो बंधे होए नेप्रमाणकहिएं वि० ते पुदगल कोणा घेत्रकेतदिदिसाना अाव्या होए अथवावती लात नावनेकर्मना पुदगलबांध्या ने नेग्रहीनेपण कर्मपपों बांधे का वस्तीतेकर्मनीकेतलाकाखनी यिती होए लान्यान' नावं वा नुत्तरंसुगा ॥१६॥, लोगवबानी केलसाकनुदय आवे ए ५ भुन स० सघला श्राव क० कर्मना प. पुदगलबांधैबते अनंता अनंता मत्येकर कर्मना आगषेकनं तेनसांनसहवे ऽव्ययी कहेडे १६ सबेसिंचेवकम्मापं ॥ पएसगांमधूनगं ॥ पुद्गलबांपरेतेपण पंधअनंत प्रदेसी जाएावा. ग अलव्यजीवयी अनंतगुरों अधिकसि सिद्धने अनंतमेलागेमा एमकयु एतसे कर्मना पुदगल घंध अनंत केतला गंवियं सत्ताईयं अंतो । सिद्धााहियं ॥ १७॥ अनंताबांधिए एड्व्ययी क हवे त्रयी कहेजे कोणा पत्र स० सर्व जीव कर्मबांधवानेकाजेनेपुदगल सं संग्रहकरवानेविषे प्रवर्तले पूर्व पश्चिमनुत्तरा केतली दिसना आव्यांपुदगल ने केले सहजीवाए।कम्मंतु ॥ संगहेबहिसागयं ॥ दक्षिणादिसनेविषेजे पुदगल लेकर्मबांधवानेकाजे| सब सघलाजीवना प्रदेसनेविषे सत्सर्वकर्मना पुदगल स. आपलाजीवना सघसाप्रदेससंघातें बंध कर्मनी ||३०७ ग्रहणा करे संवेसुविपएसेसुसबसवेराबद्दगं ॥ १८ ॥ बंधनोएजेमधुधिमांहेमेषीयाए|
For Private and Personal Use Only
Page #370
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| तेमदांध्यापढी न० नुत्क्रष्टी समुइसरषोनामसागरोपम ती त्रीसकोमाकोनी सागरोपमनीयिति नत्क्रष्टि यिति होए अ.३३ यिनिजेतसीहोएनेनसीकेडे. दहीसरिसनामाएं ॥ तीसरंकोमाकोमिन ॥ नक्को सियाविश्हो . अं अंतरमुर्तजघन्ययिनि १० आ ज्ञानावरणीकर्मअनेदरसनावरणिकर्मदी एबेनेनुतन वेच्वेनीकर्मनीषि ६ ॥ अंतोमुत्तंजहन्निया॥१॥ आवरणियांगदोएडंपि । ष्टि थिति वैयणिबेतहेवय। नितिमजअं अंतरायकर्मने विषे वि च्यारमकारनी यिति एत्रीसकोमाकोमीसागरौपमयिनि न समुदसरषोनाम सन्सीतेर ।
अंतराएयकम्ममि । विश्एसावियाहिया ॥२०॥ कही मग २० जुदहीसरिसनामाणं । सत्तरि कोमाकोसी मो मोहनिकर्म नु० नत्क्रष्टी अं अंतमुनि जजघन्ययिति २१ नि तेत्रीस सागरोपम । कोमाकोमिनु। मोहणिधस्स नकोसा । अंतोमुशतंजहानिया ॥२१॥ तित्तीससागरोवम । नुस नत्क्रष्टि कही लगवंते वि.थिति अानुषाकर्मनी अं अंतरमुर्तज० २२ सम्समुपसरघुनाम नक्कोसेएवियाहिया ॥ विश्ने आलुकम्मस्स । अंतोमुशतंजहन्निया ॥२२॥ नदहीसरिस
० वीसकोकाकोनि ना. नामकर्मअनेगोत्रकर्मनीनुन्नत्क्रशियितिअ० आर मुहर्तनीज. जघन्य २३ || नामाएं । वीसश्कोमाकोमीन। नामगोत्तारानुक्कोसा। अबमुशित्ताजहनिया ॥२३॥
सागर
For Private and Personal Use Only
Page #371
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
३५
न. सि० सर्व सिद्धते अनंतमें लागे जे तसाच्यनंता थाए तेतसा । अ० लोगबवाना एकसमें ल० होए एतसा लोगवे बे जिवारे पूढे तिबारेसन . ३४ ४०) सिद्धांतलागोय । कर्मना पुदगलना बंध नागलवंतिनुं । सबैसुविपएसग्गं ।। सर्व लीगव वाना पुद्गल बंधने विषे हवे बंध जेनसे परमाएफए थाए तेकह्वेबे पर जूदा २ परमाएफ गए तो स० अधिकार अनंतगुणों अधि सजीवेयिं ॥ २४ ॥ का थाए तेलपी वरतमानकाले अनुलागे लोगववाजोग्य अनंतमदेसिया बंध प्रनंत अनंता लोगवे बे एकेका बंधनेविषे अनंता २ परमाएक बे ते परमाणु सर्वजीवथी अनंत ए. पूर्वोक गुणी अधिका ने एतसा अनंता के परमा एक लोगवीने निरजरे बेए चीयालावनी बोबजाए बोली तुम्हाएएसिक कारसरूप बिजाणीने ए० एकर्मने बांधे नहीं दूर रख० कर्म खपावयाने रथें ज० दमक तत्व लागे वियाशिया । एएसि संवरेचैव ॥ खवेायजएबूही ॥
म्माएां ॥
नोजाए. ६० इम कबु २५ ३० इतिश्री यावकर्म प्रकृतिनामा अध्ययनं तेतीसमुंसमाप्तं ॥ ३३ ॥ तेत्रीसमा अध्ययननेविषेप्रावकर्मी तिबेमि ॥ २५ ॥ इतिञ्चकम्मंपयमिनामाज्ञयांतेतीसमंसंमत्तं ॥ ३३ ॥ नीप्रक्रति बंधा एतेसेस्याविकी ते लगी ३४ मांमध्य ० स्याध्ययन पकहरूं नुक्रमें जब जेमस्या मनुः बेपा ६०८५ यननेविषे व लेस्या कहिए. सेसझयां पवस्कामि । एफपुजिहकम्मं ॥ बहंपि
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #372
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
| क० कर्मलेस्याकर्मनी स्थिति निपजावे ते भएी अब तेलेस्यानोरस सुः सालस मुजनेक हेन्ते ना लेस्यानांम का खेस्यानावरि सेस्याना ||अ.३० | कम्मतेसाणं । कर्मलेस्याकहिए अएफनावेसुणेहमे ॥१॥ र नामाश्वपारसगंध । रस ३ खेस्था ना गंध । लेस्याना फरस ५ स्यानापरिणाम६ सः सेस्याना सक्षण वा सेस्यानाथानक ८ स्यानी थिनि ग लूंनीखेसाएंजुरगनिारसे से | फासपरिगामतकरीं ॥ गएं विश्गश्चान॥ मीसेस्याए सदगति आ. सेस्यानु आनषू खेसा स्याना ११ बोस सालसहशिष्यगुरू कहेमे मुजनेकहतायका कि० कृष्णास्या १ नीलसेस्याकापोनसेस्या ३ तेजुलेल्या ५ पयस्या
तुसुणेहमे ॥ २॥ हवेलेस्यानांनामकहे थे किन्हानीलाकाजतेनुपह्मातहेवय । ५ न तिमज स. सुकलॅसेस्योवलीन नए ना लेस्यानां एनाम ज० जेमतेम अनुक्रमेबीजू हारहवे खेस्याना जी मेघपाणीसाहिताएतेनि चोपमादीसे सक्कलेसान बन्नी । नामातुज़हकम्मं ॥३॥ वर्ण कहे जीमुन्तनिइसंकासा ॥तेसरथा ग०पामानासीगसरषामअरिंगसरषारवंगामानु गएाना मैलसरषा न० काजलसरपाआपनी क कृष्णालेस्यावीथी काली जाएगी। गवपरिचयसन्निला। खंजंजएनयरानिला किरहतेसा वसने ॥४॥ नी नीसोजेयो असोकवृक्ष फूएनेसरषां चाट चाषपंषीना पीछ सरषा वेमूर्यरत्नजेबू निचोपरुंदीसेतसरपुंनी नीलसेस्या ||५१० नीलासोगसंकासा। चासपिछसमप्पला। वेरुलियनिहसंकासा ।नीलसान
काकासपा
For Private and Personal Use Only
Page #373
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नवयीनीसी जाएावी ५० यमसीयाना फूल सरषा को कोइसनी पांषसरषी पा० पारेवानी ग्रीवा कोट सरषा का० कापी - ३४ २२ वा ॥ ५ ॥ प्रयसीपुप्फ संकासा । कोइलवदसन्निला | पारेवयुगीवसन्निला । कान तस्याच वर्षाथीकांइककाली कॉप कराती हि० हीगलो धा० कोशक धातुविशेष तo नुगता सूर्य सरपा ० सूमानीचांच | सावन ॥ ६ ॥ ६. हिंगुलयद्धानसंकासा । तरुणाच्च सन्निला । सुयतुंमपई सरषीप॰दीवासरषाते॰ तेजुलेस्याना व०बएयिकी एतोजाएावी : ६० हरिव्यासनाकरकासरणी ह० हसदनाकटका सरषी स० साना | वन्निला । तेनुलेसाने वसन् ॥ ७ ॥ हरियाललेदसंकासा । हसिद्दानेदसमप्पला । सा | मावनस्पती चीन वनस्पतिकु फूलसरषीपर पद्मले स्यावथी पीसी जारावी ८ सं० संख अनेकनामा रत्न खी० दूधनी पीर सरबी साकुसुमनिला । पह्नखेसानुवन्ननुं ॥ ८ ॥ संस्कंककुंदसंकासा । वीरपूरसमप्पला र० रूपांना हार सरषी सु० फकल लेस्था व थी नजसी जाएावी ए हवेसेस्याना ज. जेमका तुंबमानोरस निं०. लिंबमा तेकरु रयत्तहारसंकासा । सुक्कलेसानु॑वस॒नुं ॥ ए ॥ रसस्वादकडे जहकरूंग तुंबगनिंब रसोकनूगरी | रो० रोहिणी नामावनस्पति सरीरनो एक एकीपण अनंतगुए। २० रसना स्वादक कृष्णा स्यानो अति कमल जाएगची १० ज०जे ४११
म
हिणिरसोवा । स्वाद एत्तोविएतगुणो । रसोनकएहाएनायो ॥ १० ॥ जहा
For Private and Personal Use Only
Page #374
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
नित्रिकटुं संचपीपर अने मिस्च एत्रानु ति तीपोजवो जन्जेम. पीपरनो स्वाद ए ए एथकीपणअनंतगुएरा र अतितीको अ.३५ तिकगरसो । रसकहेतांस्वाद तिको जहति पिप्पलिएवा। एतोविअांतगुगो । रसोनी नी नीलसेस्यानो जाएायो ११ ज जेम काचोआंबानो रसस्वादकए तुंबरसनामा वनस्पतीचें कानूं फसचे जेहयोक नीलाएनायबो ॥११॥ जहतरुण अंबगरसो । तुंबरकविच सवाविजारिसन । सायसो होए नेयो स्वादकाचाकोचना ए एयकीपणा अनंतगुणोकसायसा रसनो स्वाद कायोतलेस्यानोजाणवो१२ ज० जेमपाका बाना फसनो जेबो स्वाद होए एत्तोविएतगुगो । रसोनकानुएनायबो ॥ १२॥ जहपरिणयअंबा रसस्वाद पर पाका कोचना फसनो पण जा. जेवो स्वाद नए एक एयकीपण अनंतगुणो र काश्फ पोटु कांश्क मी ते ने
गरसो । पक्ककषितस्सवाविजारिसन । एत्तोविअांतगुगो । रसोनतेनुएनायचो जुखेस्वानो जाण्याचा प्रघानवान् मदनाजेवो रस वि विविध प्रकारनाजेवोस्वाद झएआसवना जेवो स्वाद कए मन्माषीनीपायोम ॥१३॥ १३ वर वारुणिएवरसो । विविहागाव आसपागजारिस । मझमेरगस्स क मे तालवृझना भीपनामदा ए० एथिकीपणाखेस्यानो प नवक्रष्टो स्वाद रखरखजूर अमेशाषनोजेयो स्वादफ्तएखी० दूधनो जेबो स्वाद ||१२ वरसो । जेबो एतोपम्हाएपरएए ॥१४॥"खयूर मुद्दियरसो। खीररसो ए||
For Private and Personal Use Only
Page #375
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
या
प्रप्रसा
वार.जवा मगध
नखं त्वांकनो साकरनो एक एपिकीपणा अनंतगुण , रूमीगेस्वादसु सुकललेस्यानो जाएबो १५ जे जेमगाएनाममानो अ-३५
खासकरसोवा । एत्तोविअपंतगुगो । रसोनसुक्काएनायचो ॥१५॥ जहगोममस्स गंधपासून होए सु• कूतराना ममानो जैजेम सर्पना ममानो एक एयकीपए। अपांत गुपों स.खस्या अ. गंधो। सुगमम्स जहा अहिमास्स । एत्तोषिअपंतगुणो । खेसाणंअप्पस स्तकृष्णा १ नील २ कापोत ३ एनएानो| न जेमसुगंधाकु० केवमादिकनुंफूसगंधसुवास सु-सुगंधसुवासपिपिसनाबाटताए। एक एक बाएं ॥१६॥ नमोगंध १६ जहसूरहिकुरुमगंधी। गंधवासापापिस्समारगाएं। होए एतो की परा अनंतगुणो सगंध होए पर प्रसस्त स्यानो ति बणपणा तेजो १ पद्म २ सकल ३ हवे खेस्याना जमकर विअांतगुणो। पसलेसापातिएहंपि ॥१७॥ फरस कहे जे १५ जहकरग करवत्तनो जेबी फरस गोगाएना वसदनीजीमनोजेबो करण फरससासागा ए० एयकीपण अनंतगुणो करण से सेस्यात्र स्सयफासो। गोजिमाएवसागपत्ता । म एत्तीविअपंतगुगो ।फरस खेसाएं एगअन् अप्रसस्त कृष्णा १ नीस २ कापोत३ जजेमबूबूरनामा वनस्पतिनों अतिसुहासो नभ्मारखानोफर्स स० सरिसनामा ||५१३ अप्पसबा ॥ १८ ॥ १८ जहबूरस्सवफासे नवएीयस्स सरिस
For Private and Personal Use Only
Page #376
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वृक्षनापूलनाजेयो फरस ए एयकीपण अनंतगुणोसुहासोफस्स प० प्रसस्त लसीपए सेस्या निम्त्रानोपण हवे खेस्यानोपरिए। अ-३८ कुसमाए ॥ होए एतोविएतगुएो । पसबलेसागातिएहपि ॥ १७ ॥ १९ मकहेडे. जघन्य | मध्यम र नत्तक्रष्ट ३ एम ए लेदपपायाए एम२७ लेदपायाए एमकरतां ८१नेदपणयाए पृ. बसेत्रेतालीसलेदपएा थाए के से तिविहोनवविहोवा । सतावीसशविहेकासीनेवा । इस तेयालेवालेसाएं होइपरिणा स्याबनाहीएएतसापरिणाम हवेसे पं. पांच आश्रबनोसेवाहार प्रयमकृष्ण ती प्रणामनवचनकायामाहे अगुप्तौ मोकलो अन्त्रा | मो ॥२०॥ स्यानासझएकेडे. पंचासवप्पवतो । पेस्यानोष तीहिअगुत्तोसु अविरजेयनिवारला पिरतिघातनो करणहार ति तीव्रपपो खु० परिणामेकरी सहित सर्वजीवने अहितकारी साउ जीवघातकरया नि इहलोकपरसोका परिगान। आरंलनो खुहोसाहस्सिनरो ॥२१॥ साहसीक मनुष्य २१ निवसपरिकुषनापरिणाम जेनो निजीबहरातां सगरहित अनिनेंदी ए. पूर्व कह्या ने स- मनवचनकायानापापने क० कृष्णास्यानापूरणे गांमो। निस्संसोअजिदिन। एयजोगसमानुत्तो व्यापारेकरकाहसेसंतुपरिएा परिपांमेकरी परिणामे हवे सेस्याना ३० परनागुपनीअासहयोअ० घणुकदाग्रहत्तपरहितलषी मा परजीवजेचंचवानीकाञ्चना ०१५ |मो ॥ २२ ॥ सक्षपणकहेडे २२ इसाअमरिसयतयो। अविध विद्यारहित मायाप्रहिरियताय।
For Private and Personal Use Only
Page #377
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| गि० संपट विषयनो स० घनायसहित स. धुरप्रमादर रसस्वादनोसंपट सा० पोतानागयेषएाहार २३ मा प्रारंलयकी निघरत्यो अ३५ | गिधिपनसेय सढेपमत्ते। रसतोकएसायगवेसएयगुण॥२३॥ आरंमानअविर नहीं खु. सर्व जीवरहिन सा अपाविमासा कारजनो ए० एवेपापव्यापारेकरी स० सहितए नी नीलसेस्याने पूर्णे परिणम
। खुट्टोसाहस्सिनरो । करणहारनर एयजोगसमानुत्तो । जे जीव नीलसंतुपरिणाम। २७हवेकापोतसश्यानोसकणकेडेचं वाकूबोसेवांकाकार निनियम मायासहिन अापपादोषने टांके स. कपटेकरीसहित २५॥ वक्तवक्कसमायारे । जनोकरणहार निवकिल्ले अफचए। पसिञ्चस्सलवहिए । मिमिय्याइरि अ० अनार्य २५ न० मनवचनकायायी परजीवनडसेमाथे चाटवू बेत्तेवाने चोरीनोकरपाहारमअनेरीसंपदा मिबदिवि अपारिए॥ २५॥ चप्पसगववाश्य । वचननोचोपणहार तेएण्यावियमवरि ।देषीनपांसे ए. एवेन्यापारेकरी , काकापोतलेल्याने तुः पूरणे, प० परिणमे २६ हवेलेजोसेस्या नि मनक्चनकायाएंकरी नीचावर्तिमानर एयजोगसमाजत्तो। कानुलेसंतुपरिणामी ॥२६॥ नो सन्कए केजे नियाचित्तीअचवलो हिनभन्न अ० मायारहिन अ. कुतूहस रहित विनय करीने विविनय करवानेविषेद रंडीनोदमपहार जो० स्वाध्यायादिकना व्यापार सहित ५१५ अमाश् अकुतूहले। विपीयविपाएंदते॥ जोगवंनुवहाएवं ॥ २७ ॥ २३
For Private and Personal Use Only
Page #378
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
४१६
| पि० धर्म नेनेबसलबे द० धर्मनेविषे निश्च यः पापयकी बीहे हिमोचनोवांछ । जो जोगेधर्मव्यापारे करी स सहित ने तेजोस अ-३५ | पियधम्मेदढधम्मे । सफुए वद्यलीरुहिएमएँ एवं जोग समानुत्तो ॥ एतेजीब तेनुसेसंता स्याने तु पूर्णे परिणमे २८ हवे पदमले प० पानसांथोमांजने को क्रोधमान माया सो सोमपातपाथीमाळेजेनैप रागद्देषरहित | परिणमे ॥२८॥स्यानोपकरराफेडेपयफकोहमाोय। मायासोलेयपयएफए । पसंतवित्ने दंत नुपसम्युचित्तजेनाजो मनवचनकायानाजोगवसे के जेहने न सिद्धांतलगतांजेतप सध्तेम प० थीमावचननुं नु नपसात तस्यापि | प्पा । जोगवनवहाएाय ॥ २७ ॥ करवो तेतपयंत छाए २९० तहा पयएवाश्य। नवसंतेजिइंदि| सम्यो एनिजितेंडी ए० एहवेधर्मनेव्यापारेकरीसहितकएप० पदसल्याने परिणामें परिणामे ३७ हवेशकसलेस्यानो अन् आतअने ए। एयजोगसमानुत्तो। ते जीव पह्मसंतुपरिणामे ॥३॥ सरुणकहेले अहरुहाणिव. रोडध्यानव ने धर धर्मध्यानसकसध्यान ध्याए परागईषयीनपशम्यो ले चित्तजेनोर्दन्दमतेंडी स पांचसमतिवंतेगुन्नपण चित्ता । धम्मसक्काजाय। पसंतचित्तेदंतप्प। समिएगुत्तिएगुत्तिम प्तित्रागुयानेविष ३१ सागर हिनैवी वीतरागीशए नु० रागद्देषलपसाम्याचे जेणे नि जितेंडिय ए० एवा जोगगुपा ने व्यापार सकस १६ | ॥३१॥ सरागेवीयरागेवा । नवसंतेनिदिए। एयजोगसमानुत्तो
For Private and Personal Use Only
Page #379
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुरु सकस सेस्याने प० परिएमे ३२ हवे खेस्याना थानक अा असंध्यातानुत्सर्पपी जिहां समय २ चमता २ लाव ना असंध्याती अ-३० सक्कसंतुपरिणामे ॥ ३२ ॥ कहेढे असंषेद्यापोसप्पिणिणं। लेना नसप्पिणि अवसपपी जिहां समय २ पता २ लावतएतेना सं जैनला संध्याता समय थाएअने आकासप्रदेसथाएतेन्तेतलाजेस्था णं जेसमया ॥ जे जेनसासमय थाए अने संस्खाश्यासोगा । सोकनाजेतला खेसाहवंनिगराई ३३|| नाचढला भुत्लअसुन मुख अंतरमशान कासत्तु पूर्पोजघन्यस्थितिते तेत्रीससागरोपममु० अंतर्मुहर्तनपरे अधिक ननऋष्टी होश ग थानकडे ३३ मुशतकंतुजहन्ना । तेतीसंसागरा । मुशतहिया । नकोसाहोशविई ना० जापावी ककृष्णा सेस्यानी ३४ मूत अंतरमुन तु पूरपो जघन्यथिति दन्दससागरोपमप० एकपसनेअसंध्यातमे लागे नायबाकएहसेसाणं ॥३४॥ मुशतरंतुजहन्ना। दस-दहिपलियमसंखलागहिया ।धकी नुत्कृष्टिथिति होए जापायी. ना नीस सेस्यानी ३५ मु. अंतरमुशर्त पूर्णे जघन्यथिति ति त्रिपासागरोपमनुपरेप नकोसाहोबिई ॥ नायबानीलसाए ॥ ३५॥ मुत्तदंतुजहला॥ तिएफदहिपलियमसंष ख्यने अअसंष्यातमेंमागे अधिक सुन् सनकटी होएस्विति ना जाएगवी काकापोनसेस्यानी मुखअंतरमुक्त पूऐ जघन्यस्थिति दो बेसागरी ५११ मागहिया ॥ नकोसाहोशदिई । नायबाकानसेसाए ॥३६॥ मुत्तइंतुजहला । दोनदहि पम
For Private and Personal Use Only
Page #380
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न
० जघन्य
प० नेनुपरे ० असंष्यात में लागे अधिक न० नृत्ऋष्टि होए थिति ना० जाए बी. ते ० तेजुसेस्थानी ३७ मु०मुफूर्त तुपूरपोज० ज ४१८ पलियम संपलागहिया । नक्कोसाहोडिङ्ग । नायच्द्योतेनुलेसाए ॥ ३७ ॥ मुततुजला । | द० दस सागरोपमनपरे होए त्र्यंनरमुर्त अधिक जनकष्टि होए स्विति ना० जापावीप० पद्म लेस्थानी ३८ मु० अंतर्मुर्त पूर्ण दसनदही होतमुत्तहिया । नक्कोसाहोरविई । नायवोपन सेसाए ॥ ३८ ॥ मुतद्वंतुज जघन्य स्थिति ति० नेत्रीससागरोपमनुपरे अंतर्मुहर्त अधिक न० उत्क्रष्टि होइ स्थिति ना० जाएावी सु० सुकल लेस्थानी ३२५ ए०ए हला । तित्तीससागरामुतहिया । नक्कोसाहोपवि । नायवी सुकलेसाए ॥ ३५ ॥ एस निश्चे सेस्थानी Jo समुचेथीति होए कही च० च्यार गरिने विषेए० गते कही ने ले० लेस्थानी स्थिति कह खसुसेसाणं । नहेा नववन्निया होई । चन्त विगई सुएतो । ४० हवेनरकगति सेस्या स्विति दन्दसहजारबरस to कापोतले स्थापित जघन्य हो० होए ति० त्रिए सागरोपमनुपरे वामि ॥ ४० ॥ क दसवाससहसाई । कालविश्जहरिया होई । तिएकदहिपलियमस | पसनुं अ० असंष्यात लागेन• नत्कष्टो ४१ नि त्रसागरोपमने प० पष्यनोत्र्यसंष्यातमो लाग जघन्य नीन् नीस संस्थानी यितिदन्दस ४१८ लागंचनकोसा ॥ ४१ ॥ तिष्णुदहिपसियमसंखलागजहला नीसकिई । दसजदेहि
सांवन्तुव
For Private and Personal Use Only
अ०
Page #381
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
3.
प० पस्यनीयसंष्यातमो लागबसी नत्कृष्टियितिनीससेस्यानी द० दससागरीपमपन्पष्यनो संष्यात मोत्यागवली ज० जघन्य होए ६१९ पलियमसंषलागंचनकोसा ॥ ४२ ॥ दसनदहि पलियमसंषलागंच जहनिया हो । | ते० तेत्रीस सागरोपमन• उत्क्ररिहोए कृष्णाजेस्थानी ए० ए ४ ३ ए० एनारकी सघलाएनी जे० संस्थानी वि。 यिति कही होए तेती ससागराने नकोसा होइक एहानं ॥ ४३ ॥ एसानेरश्याणंसाएं । विश्नुववन्नियाहो ० तिवारी कहीस ति० तिर्यचनीम० मनुष्यनी देवतानी ४४ अन्तर्तनी अकाल जे सुस्थानी ई ॥ तेपरंबाबांमि । तिरियामएक सापादेवाएंणं ॥ ४४ ॥ अंतीमुत्तम ं । साहि ज० जेजे प्रथिवी कायने विषेजे प्रतितिर्यचच्यने सम्मूर्जित ने गर्लज मनुष्यादिकने विषे मंतर्मुगर्तलेस्यानी थिति ब० वर्जीने के जहिंजानुं । लेस्यादि तिरियांानराणंच । ववित्ता केवलसेसं ॥ ४५ ॥ केवलिने के सशुक्स संस्था बरजीने मु. अंतर्मुर्त पूज० जघन्य न० नृत्कृष्टि स्थिति होए पु० पूर्वकोमी न० नववरसे उपा ना० जाएवासु सकस लेस्पा मुत्तरं तुजहन्ना । नकोसा हो पुचकोकिन । नवहिंवरिसेहिना । नायवासुकलेसाए ॥ नीथिति केव सग्याना ए० एतिर्यच श्रनेन मनुष्यनी से संस्थानी स्थिति ज० कही होए ० तिवारी कहीस से लेस्यानीयिति ४९९५ ४६ ॥ बननी ४६ एसा तिरियनराए । तेसापांविनुवन्नियाहोई । तेएापरं वोच्खामिसाए
For Private and Personal Use Only
[प्र.३४
Page #382
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ยป
5. दे० देवता सघसानी ४७ द० दस सहस्र बरस किं कृष्ण संस्थानी यिति ज० जघन्य होएप पत्यनु ० संष्यात श्र. ३४ ४२० | देवाणं ॥ ४७ ॥ दुसवास सहरसाएँ । किएका एवं जहन्नियाहो । पलियम संरवेद्यइमो | लागेएन० ननक्रष्टिथिति होए क० कृष्णलेस्थानी ४८ जा० जे क० कृष्णा पेस्थानी पिति निम० उत्कृष्टिसा० ते सकसमयन्यपिक कोसाहो कहाए ॥ ४८ ॥ जाकहाए । नक्कोसा सानुसमर्थमडिया । ज० जघन्य नीस लेस्थानी प० पत्यनो संख्यातमी लागवाजि ० नत्क्रष्टिथिति जा० जेनीस संस्थाज्ञी थितिन • नुत्क्रष्टितै स एक जहनेएांनीखाए । पलियमसंखंचनकोसा ॥ ४५ ॥ जानिलाएविखषु । नकोसा समय | समयअधिक एतसीधिति ज० जघन्य कापोतले स्यानी जाएाबी पपस्यनो असंष्यातमोलागते जघन्य स्थिति नुपेषिकीत तिवार | मझहिया । जन्नेकाए । पनियमसंषंचन कोसा ॥ ५० ॥ धकू जाएाकूं ५० तेएापरं पबीऊं कहीस ते तेजो लेस्या जैम सु० देवताना समूह ने जेते मकर्मु शिष्या ल० लवनपति वा वाएाव्यंतर ओ० ज्योतिषवैमा बोचामि । तेनसेसाजहा सुरगणाए । मतंगुरुके लवणवईवाएणमंतर। जोइसवे निक ए । जातना देवतानीस संस्थानी स्थिति भागसे केसे वैमानिक प० पलनुजघन्यन उत्कष्टपिति सा० सागरोपम जावें २०
माफियाएांच ॥ ५१ ॥ लेस्यानीथिति कहेने ५१ पसिनुवमं जहन्नं । नक्को सान सोगरोदुन्निहिया
For Private and Personal Use Only
Page #383
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
उ.
४२१
लेस्यापितिजंत्र १
पृथिव्यादिक
समुचय३
समुचय जीव
३६
गतिमाश्री
तिर्यच प्रकारें ज०
नसंख्या १ असंध्या २ मनुष्यनी ३ प्रकार नु०
ज०
ॐ
३३ सागर
ज० १० हजारवर्ष नुपस्यपनी संख्या तभी लाग
नरकगति
कृष्ण १ अंतर्त
३३ सा० अंतर्मु ० त्र्यधिक कमी से इजाएउ मीनरके
लवनपति
व्यंतरने
ज
अंतर्मुहूर्त
अंतर्मुर्त
www.kobatirth.org
तेजो ४ पदम
नी० नीस २ अंतर्मुर्त
कापीत ३ तमुर्त
| अंतर्मुहुर्त अंतर्मुहूर्त
१ सा०पत्यत्रमसंख्या ३ सा० पस्य असं ३ सापस १० सा० 5 स लाग लोग अधिक मी लाग अधिकचीजें
नरके
|
अंतर्मुर्त
अंतर्मुर्त
संभाग ३ सा पसच्य० १०३
१० सा० असं मी
न० नपरेसमोअ पक्ष्यनो अर्स आग काश्कमोंटेरो
For Private and Personal Use Only
अंतर्मुर्त
अंतर्मुर्त
१० हजारवरस
फू देवलोक मेदेवलोके
अंतर्मु अंत
अंतर्मुर्मु
३ सा० पष्य
१०३० चरन
नीसनी नृ० तेनुप १० समगर पप्पनी असं लाग जा मोटेरा
सरनी १५५
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सकल ६
अंतर्मुर्त
१३ सागरोपमत्र्यंत फूर्त अधिक प उत्तर विमान
अंतर्मुर्त
अनु वरसईसलगा
पूरबकोमिकें
म. ३७
४२१
Page #384
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मानिक
कृष्णालेस्या नारकीना ३३ सागरनपर अंतरमुर्न अधिक अस तेजोध पदम
सकस
नहि अने देवतानी पसेस्या १८ सागर अंतरमुर्न अ. जपल्यनामालागा
धिक ६ अने शुक्ससेस्या ३३ सा. अंतरमुक्त अधिकसा नारपल्यासापर्व
मारे पाबसा लवनी सेस्या अंतर्मुलन गपीएतो नारकी देव ए बेत अंतरमात पन्योपममयम तेजूनी नाचिसापानी नथिएका ने अंतर्मुझर्ने अधिक कहोजोशए इति ॥ १२ अयिनुत्तर देवलोकें मयअन्त्रीजेदेव समयअबदीदेव
नत्तसध्यपन ३५ मुं मुक्ताई तुजहन्ना ए गाया ३४ मीथी मां२सागरपयनोऽसी १० सा अधि३३ सागरतर मीने ५५ मी गाथा सधी स्यानो यंत्र ॥१॥ जुध्यातमीमागबीने क ५ में देवलोकें मुहर्त अधिक । देवलोके
उतन्यापक
प. पल्यनु अ.असंव्यातमो हो होश्तेजोलेस्यानी यिनि हवे वैमानिक दा दससहस्त्र
ने लेजोलेस्यानीपिनिजब्जय माग अधिक आत्रीने कहेडे ५२
न्य ए लवनपनीनी अनेव्य- ०२२ पलियमसंरवेघेणं । होइलागेएतेनुए। ५२॥ दसवाससहस्साइं।नेनुएपिजहनियाहोई।
For Private and Personal Use Only
Page #385
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४२3.
| दो बेसागरोपमअने पख्यनो अ. असंख्यातमो माग अधिक चः पूरणेनन् उत्क्रष्टी ५३ जान्जेने तेजोसेस्थानीथिति | अ-३५ दोनदहिपसिनवमं । असंपलागंचनकोसा ॥५३॥ जातेछए विश्व निश्चै ननुत्क्रष्टिने एकसमय अधिक जजघन्य प. पद्मसेस्यानी यितिद० दससागरोपमने एकमुशर्तअथ | दु। नुक्कोसासानसमयमशहिया । जहन्नेणं पह्माए। दसनेमुत्ताहियाकंनक्कोन किनुत्क्रष्टिजे ५५ जाजेप० पासेस्यानी स्वितिरव निश्चैनन्नवक्रष्टि सा एक समय अधिक जजघन्य सु- सुकलस्यानी सा ॥५४॥ जापह्माएरिखा। जक्कोसासानसमयमज्ञहिया। जहाँसुकाइन ति० तेत्रीससागरोपम मुतन अधिक जेणे सेस्याएंजेगतिमानुपजे कि कृष्ण १ नील २ कापोत ३ त्रएपण ए. ए. अधर्मसे नित्तीसमुत्तमशहिया ॥ ५५॥ तेकहेले ५५ किएहानिलाकानतिन्निवि ॥ एयाने अहम्म स्या , एएो जीव.. . पुर्गती उपजे ५६ ते तेजोपद्म सुकल तिः चपापपा ए धर्म खेसान । एयाहिं तिहिविजीवो । उगाजे ववद्यई ॥ ५६॥ तेनुपह्मासुकातिन्निवि। एयानध
स्या एक एपोंतिक नील सेस्याएंजीव सोठ सदगति उपजे ७ से सेस्या स० सघसाएं प पहिलासमय ०२३ म्मलेसान ॥ एयाहिनिहिविजीवो । सोग्गश्वववद्यई ॥५३॥ साहिंसवाहि पट्ठमेसमय
For Private and Personal Use Only
Page #386
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४२४
| नेविषे मरणवेताआगला नवनीसेस्या आवेषेस्याम नयी को जीवनो पपा पपरत्नवने विषे अन्नयी को जीवने ५८ जैसे अ-३० मिपरिणयाहिंतु। परणमतीर्थसाए 'नकस्सविनववान । परनवेअबीजीवस्स ॥५८ ॥ खे| स्या .स. सघलाए च० चर्मयेखाएनेसासमयनेविषेप सेस्यापपीपामति पैसाएं नः नयीकोई जीवनेपण प. परमवनेविषे नथिजीन साहिंसवाहि। चरमेसमयंमि। परिणयाहितु नझकस्सविनववाल । उपजबो परलवेअडिजी कोश्जीवने मागला लवनी सेस्यापरिण अंअंतर्मुनत ग गएयके अंअंतर्मुशन .सेवी सेष थाकनोहोयनिचारों पे खेस्या वस्स ॥५६॥ न पची ५३ अंतोमुशतंमिगए । अंतोमुत्तमिसेसएचेव । चपूरणे खेसाहि परत्नवनीप० परिणामे में जी- जीवजाए प परलोके एनसे मध्यसमयने विर्षकात करे त० तेमाटेए से सेस्यानी अअनुत्मा परिणयाहिं। जीवागबंतिपरलोयं ॥ ६ ॥ ६ तह्माएयासि सेसाणं। अए गरसरूपले विजाएगीने अब कृष्णा र नीस २ कापोतनीष मलीनेजो १ पद्म २सकस ३ आचरेने सुपीयाए। 5-श्रीसुधर्मास्वामीजंबूमती लावेवियाणिया। अप्पसम्मानवधिना । पसन्बान अहिलेजासि। तिबेमि ॥६१॥ | केडे६१ ३० इतिश्री खेसाअध्ययन चोत्रीसमो संपूर्ण ॥ ३७॥ मां अध्ययननेविषे बालेस्यानो स्वरूपको त्रपाललिसेस्याएअप||४२५ इतिखेसायांचनुनीसश्मसंमत्तं ॥३४॥गारनागुण एतेलगी ३५मांअध्ययननेविधे अणगारनागुण कहने.
For Private and Personal Use Only
Page #387
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न सुमात्नसमुजकहतथिकाएक एकाग्रचिनेकरीमोचनो मार्ग कहे तिरपकरें नपदेस्योज० जेमोक्षमार्गाचरतोषिको उ• पुरुषभानंतनाकरए अ-३५
सुणेयमेएएगगमणा । मग्गबु हिंदेसियं। जमायरंतोलिस्कू पुस्काएांतफरोनवे हार होए १ गि घरवास गमीनें प-दीका खेड्ने मु० साघु ए आगसे कही से नेमति एम जे जे संगेकरीस. ॥१॥ गिहिवासंपरिचय । पवद्यामस्सिएमणि ॥ श्मेसंगेषियाएरोधा जेहिंसधतिमाए। स्त्रियादिकनो संग ने संसारमांहेतुडे संघाएढे जातेमजजीवघात अन् मृषावाद चो चोरीनो करवो अमैयुननो सेववो वा ॥२॥ मात्र मानुष्य ते केवा चे २ तहेवहिंसअसियं चोा। अबलसेवएं ॥ ३० अपापामी वस्तूनी ला ते काम कहिए सोच्या सः साधु एनषादाना सर्वथामकारें बरजे ३ म. मनोहर चित्राम घर,
बाकामंच लोहंच। मी वस्तूनुंग इपएं।संजनेपरिवधए ॥३॥ मगोहरंचित्तघरं। म यी फूकंकरी अने धूमरादिकने धूपेकरीवास्यो | २० कमामसहित होएप स्वेतवस्त्रेकरी विभूषेनेउपाश्रयनेविषे अथवावनमूल्य मतवेगवासिय ।सुगंधकिधीहोएतेघसकवारुपमूरुघोय। मएसाविनपथए ॥४॥वासहितघर होएते मे मैंनेंकरीपदा ई.पंचेंडी लि. साधूने नापूर्वेकलं नेवानपाअयनेविष दोहेलाडियने निवारवाकाल कामसंबी ४२५ नचांले एवो घर शंदियानिनिस्कूास्स । तारिसंमि वस्सए । पुक्कराशनिवारेन । कामराग||
पियारागन
For Private and Personal Use Only
Page #388
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वा
४२६
वि० बधारगृहारतेनुपाश्रयप स. समसाननेषिषेसु- सनापरनेविषे स. वृन्कनेसमीपें वृक्षहेत अथवाए | प गृहस्चेञ्यापपोभूपी अ-३५ | विवद्गो ॥५॥ ससाणे सन्नगारेवा । हरवमूलेवएगीएको परिकपरकमेवा ।। पशुनपुंसकरहित गृहस्वना घरची असगानुपाश्रये या रहि चनु त तिहां समसामनेविषे रहिवानी रूपीकरी फाप्रासकजीवरहिन परु नीपजाव्यो एवानपाअयनविषे वासंतबालिरोवरा ॥६॥ मनेकरी ६ फारूयमि अ० आबाधारहिन २० स्त्रीएकरी अ. नुषड्व्यरहिन त समसानादिने पूर्व कझुंतेवा नपाश्रयनेविषे| त्मिक साधु प० मोक्ष अगाबाहे । निहिं अपिलिहे । नबसंकप्पएवासं । संकल्पेवा-रहिवन लिस्कूपरमसमा नो अरथ संसाधुतेहने न० स्वयमेवपोनेंगि घरनकरे नए नहिजअनेरापास घरसाफ नकरावे कि परप्रमुषकरावा इत्यादिक ए ॥७॥ नसयगिहाकुवेद्या । नेयअन्नेहिंकारए। गिहकम्मंसमारंने नै घरनाकारजना लू. एफेडियादिजीपने दिग्दौसेडे व १५८ न० डियादित्रसनो या पृथविआदिकसुर सूकमनानाजीवनाधएी समारंलें नूयाएपंदिस्सएवहो ॥८॥ तस्साएं यावरावंच। सझमाबायराएंच बा बादरमोटा ने तेइ लए घरनासमारंल सं० साघु प. वर्ने हवेसाघुना आहारखेवानीविधि नेतेमजवतीमातपापीनेशि ५२६ घरनोजीव तम्हागिहसमारंलं । संजन परिवधए ॥ ॥ कडेने नहेवलत्तपाणंतु।।
For Private and Personal Use Only
Page #389
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|| प० पोते पचवाने विषे प० अनेरापांहे पचावया| पा० बेंडियादिकनी पृथव्यादिकनी दयानी अरन०पोतेरांधेनहिना अनेरापाहेरंधावेनड अ.३५
पयोपयावणेसय। नेविषे । पारात्यदयग्याए। नपएनपयावए।। १०॥ ज० पापीनीने श्राए बेडियादिकजीव कए धन्धान पु-यवीनी नेत्राएं सजीव एते का काट| ह. हणें ल० लातपापीने विधे जलधन्ननिसिया जीवासनानपाए+ पुढवि कच्चनिस्सिया । नेत्राएंजेनीव हम्मतिलत्तपास। त ते लपी साधु न० पोनेरांधेनहीं अनेरापाहेरंधावेनहीं अनेरोकोरां वि थीमाथीघएकं होएस० सर्वैदिसनेविषेधा सस्त्र | ब.घराजीवने | तम्हा लिकूनपवयाए॥११॥धतो होएने अनुमोदेनहिविसप्पेसघनद्धारे । धाराने विष बझपाएीवि विनासनो करणहोर नन्नयी अने अग्निसरपो सस्त्र बीजाको त नेमजोर अग्नि प्रजाखे नही १२ हि सुवर्ण पासो। नतिजोइसमेसो ।नेलगी तम्हाजोइनदीवए ॥१२॥ हिरवंजायरूपंच
मन्मनेकेरी न. नवांचे स. सरपुंजनेसे पाषापाका अनेसवलिव्एयो होएएनिचरत्यौ दिवसूलेसैबयिकी वैचवायिकी १३ । मासाविनपत्रए। समवेबु कंचऐनिस्कू ।साधू विरएकयविक्कए ॥१३॥ .. कि क्रियाखेतोयकोक क्रियाएत विकियागादिकवेचतथिकोवा योगिनक क्रियाएपदिकलेवा चवानेविषालि साधुनग्नहोए ताप्लेयो || ४२७ किमंतोकश्नहोई । विकिरांतोयवाणिजे । कयविकयमिवहृतो निस्कूनहवस्तारिसोर
18
For Private and Personal Use Only
Page #390
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२८
लिजाचीसेबीबळ मोक्षेवेचानो नलेवो मिः यतीएं लि लिक्षाने मागवेकरी वा आजीका क मोठ्यवेचातुंखेबूतर्वचयो तेमा निजानि || अ३५ लिस्कूयवंवंकेयवं । निस्कूपालिस्कवत्तियो ।नेने कयविक्कयमहादोसो ।मोटादीष निका छानी ओजीवकासुषकारीते १५ ससामुदापी निक्षाखिएतेनु योमाथीमातश्मएमाहार जैम सु० सिद्धांतमाहेजेकुलेआहार वितिसहावहा ॥१५॥ समुयाएबमेसेद्या । गवेषे ... जहासत्तमपिदियं ॥ वो कयोबेनेकिमकयोटे अनंदनीककुलेखा अाहारलीधेयके पिंच्याहारसेवाने कि विचरे डे साधु १६ असमानन्नादिनेविषेसोसपी हिता नेकहेलेमसालासात्ममिसंतुचे। पिंमवायंचरेमुणि ॥१६॥ अखोलेनरसे गिरे नयाए। नि जीत्मना मणहार अरूमाआहारना स्वादनेअरये अनादिक न लोगवे ज संजमानारनीर्वहा करवाने अरयम मोटासाधु अन्चंदनादि निशादंतेअमुनिए। नरस्साए लुंधेया। जवपाएमहामुणि ॥ १७ ॥१७ अचयए। करीपूजबोरू मामला• करबूं व बांदवोत्तयागुपनीको निनो करयो पू० वस्त्रा इ. सब धिनीऋदिस अनादिकदेवेकरी सत्कारसम्मुल्नं रयणंचेव । च पूरण वंदगपूयएं नहीं । दिवेकरीपूजवो हिसकारसम्माए ॥ थाईं ने सनमान . म एतसावानामनेकरीपणावाले नहीं १८ के. सुकसध्यान ति ध्याए अनियापारहित अन् धनरहित यो ममतानेलालेका १८ मसाविनपठए ॥ १८ ॥ सुकक्षाएशियाएया। अनियागेकिंचए। बोस्सवकाए
तातम
याबासरावान
For Private and Personal Use Only
Page #391
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobaith.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
ઇરણી
अप्रनियंधविहारे विचरे जा. जांलगे का० मरएानु प्रस्ताव आवे तांसगे १० निसलेषणा करवेकरीडांगी तेगा काल काय अ-३६ | विहरेद्या। जाव कालस्सपद्य ॥१६॥ निजुहिनाअहारं । हार कालय | नोअवसर आवेयके व बांगीने मा० मनुष्पनो सरीर प समर्यानो घएगी बिन मकाए २० निम्ममनारहिताना म्मेनुवहिए। चश्नएमाणसंबोदी । पाके विमुच्चई ॥ २०॥ निम्ममोनिर अहंकाररहित यी रागदेषारदिन अ० कर्म भाववायिकीरहिन संपांम्योयको के केवलज्ञान सा साश्वतो प. यस्योविसम्यो कर्मषपावचाय हंकारो। पीयरागोअगासयो । संपत्तो केवनाएं। सासएपरिनिबुझे ॥ तिबेमि किसीतखीलूत थाए३० श्रीसुधर्मास्वामीजंबूस्वामीप्रतेकहे हेजंबूजेममें श्रीमहावीरदेवसमीपें सांत्मप्यूहतुं तैम तुजप्रतें कशंढुं| ॥२१॥ इतिअागारमग्गनामाअायएपणतीसमंसंमत्तं ॥३५॥ इति अपागारनामारगनां में ३५ मुंअध्ययन संपूर्ण ॥३५॥ पांत्रीसमा अध्ययननेविषे अपागारनो मार्ग कयो ने अपागार जी जीव काष्ठादिक अजीव तो जीवना जाएापणाथी नए तेत्मएी ३६ मा अध्ययननेविषेजीवअजीवना लेदकहेडे. जीवाजीववित्लत्ति। लेदजूदा स० सालस अहोशिष्य मे० मुजने कहलायका एक एकाग्र जंजे जीवादिक जाएीने स.साचे सनेकरीज० दमकरेसंज|| ५२९ सहेपोहमेएगमएाइने । मनयको (जंजाणिकएसमणे। सम्मेजयश्संजमे ॥१॥
For Private and Personal Use Only
Page #392
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नजी जीवअने अन् अजीव ए एलोकने वि० कह्यो स्मगवते अ० अजीव दे० एकदेस मा श्रा० असोक विकयुं तीरर्थकरें अ-३६ च. पूरपो विषे
कासजे ते . तेदने ... २ जीवाचेवअजीवाय । एससोएवियाहिए। अजीवदेसमागासे । आसोएसेवियाहिए। दव्ययी एना एतला लेद वित क्षेत्रयी का कालथी एनी एतली यिति प० परूपएा लव्होए जी जीवएकै डिआदिका जेनलो आकास अबगाहिनेचे पूरो लात लावधीएनाएतसापर्यायडे तेहनी .... नीन्मधर्म जीवास्तिका | दवठेखित्तनचेव । काखनलावतहा । लेम परूवपातेसिलवे । जीवापामजीया यादिकनी परूपणा हवे. रू.रूपिअजीवअनेअ. अ. अजीव कु० बैप्रकारे नए अ अरूपी दसप्रकारे कह्या रूरू अजीवना इव्ययी बेदकहेबे अरूपी अव्ययी
लगवंते पीपए पाय ॥ ३॥ ३. रविणोचेवरूविय। अजीवाशुविहानवे । अरूविदसहायुत्ता । रूवि च्याप्रकारे कह्यातीर्य करेंहपहिषु १० प्रकारे धा चासवानो स्वत्मावबे तैलपी धर्म तने धर्मास्तिकायनोयोकोस्योपित्ता अरूपी अजीवनात्मेद कहे।
प्रदेस बे तेना पंप गर्दस २ तेधर्मास्तिकायनो प्रदेसको ४३० गोविचबिहा॥४॥ चम्मबिकाएतद्देसे। तप्पएसेयाहिए।
रथकर
For Private and Personal Use Only
Page #393
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
29
अस्विररेहेवानो स्वत्लाबबेतेलपी अधर्मास्ति ना ते धर्मास्तिकायनी योमोसोविमा आ आकासो त आकासनोयोमा ||३६ | काय केहेतां प्रदेसना समूहळेतना धंध ग होएतेदे सतोपदेश ५ नीस्कंध 'स्यो विलाग ने देस
अहम्मेतस्सदेसेय ॥ तप्पएसेयाहिए। आगासेतस्सदेसेय। न० नै आकासनो ... अकालतेसमयादिक अएअरूपीदस प्रकारे शए हवे षेत्र 4. धर्मास्तिकाया प्रदेस आह कयोतीर्थकरें अन्
यी बीजे बोले कहेडे ६ दिक अधर्मास्ति तप्पएसेयाहिए। अघासमएचेव। अरूविदसहालवे ॥६॥
रागमाचेव। अरूविटसहालवे ॥६॥ धम्पाँधम्माय कायादि च० सोसोकजेदमाप्रमाने सोसोकअने आकासास्तिकायजापाया असोकनेविषेस समयकालसन पूरणे . वि. कह्या तीर्थकरें मनुष्यषेत्रनेप्रमागोवेधर सापजोजनप्रमाणे गो मोहनुपसमय हविजो दोचेव। लोगमित्तावियाहिया । सोगासोगेयागासे । समएसमयरवेत्तिए ॥ ७॥ यी फैने 4 धर्मास्तिकाय आ ति . ए पोंपदा अनादिका अ. कोजेनोनथीनिश्चै स सर्वकाललगेशएविन सास्वता काशास्तिकाय सना
.. कह्या तीरथंकरें ||३१ धम्माँधम्मागासा । तिन्निविएएअगाविया ।अपयवसियाचेव। संबंतुवियाहिया ॥७॥
For Private and Personal Use Only
Page #394
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| स० समयकासपोस० ए.धर्मास्तिकायादिकनीपरें आदि आ० कोएक कार्य करवामांम संव आदिसहितकारजपूरा||अ.३६ ५३२॥ निरंतरता पाश्री रहित बे एमकर तीरयंका तिवारे तेकार्य आश्रीजोतांकाल थाए तिवारेकालअंतसहित
समएविसंतश्पप्प। एवमेववियाहिए। अाएसंपप्पसाइए। संपयवसियाविय, पपाडे या ययकी अवने अगंधे अरसेअफासे एतसे अरूपीना खंषंधनेषंधनोयोमोसोन जेमपरमायामपंधसंघाते लेदयया हवे रूपी अजीयना ५ त्नेदकहेडे प्रयमऽव्ययी रूपीने वित्मागदेस . लागो तिहाँसगे ते ने प्रदेसकाहि ॥ ॥ लैद कहे।
खंधायखंधदेसाय। तप्पएसातहेवय । एत. तेमन परमाएफ ते पंधीयकी अलगाव रूपीपणापुदगल च० च्यारप्रकारे एएक परमाएयाने एकग बे एकमा बेन थाए एहवाबो जाएावा . जापावा १० मखवानोपास्वत्मादपु० परमाएकागोयबोधछ। । रूविगोविचनबिहा ॥ १०॥ एगत्तेपुतेएं ।जूदार थावानोपावलावयेतेपोंकरीएकग लो आषालोकनेविषे तथालोकनादेसनविषेषुदगसनापंधरयाले लालजना नेपंधअनेपरमाए भतिवारेनेरचं बंधकहिएप पुदगल नेषेत्रमाश्रीनजनाकेतांएकाकासप्रदेसेपंधतएअथियानहीए अनेपरमाएतम १ अाकासमदे|| ५३२ जूदा रहनेपरमाणुयाजाएगावाहवैषेत्रा. रवधायपरमाशों थोके लोएगदेसेलोएय। लश्यबातेनुवित्त ॥११॥षजनाकही पर
For Private and Personal Use Only
Page #395
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
सुन सूकमपृथवीकायना जीव स सर्व लोकमांव्यापी दोसोकने एक देसे एकवित्नागेबाबादरपू ए० एकह्यापडीकासनीमरजा अ३६ सङ्गमासबसोगंमि। रह्याडे सोगदेसेयबायरा ।यवीकायनाजीवडे एत्तोकालविल्लागंतु। स्जितिवित्माग ते० तेषंधादिक पुदगलनाबु-शिष्यमतेंच्यामा सं बतायात्रीतेपुदगलमअनादिकालनाअन्तेपुद्गल बागले अनंतकालसगे | तेसिंवुद्धंचजन्विहं ॥१२॥ गुरूकहेडेच संतश्पप्पणाश्या । अपद्यवसियाविय । सेलेलएशी अंतरविपम् रहिन थितिआत्रीआदिसास. कासपितिनोलेमोन्याचे तेत्मणी अंतसहित अन् असंष्यातीकाल एक नामें रहबाआधीपुदगलनी ३० एकसमयजैन चसाईया । हिनने संपद्यवसियाविय ॥१३॥ १३ असंघकालमुक्कोसं । नत्क्रष्टियिनि कंसमयंजह जघन्य स्थिति अ. अनीव रूक जेरूपीपुद्गसतेनी रिएथितिकहीतीरयंका १५ अ अनंताकारुनुमुन्ऋष्टोऑनरुपमयोजिहांफ्नए। नन। अजीवापायरूविणं । विश्एत्तावियाहिया ॥१७॥ अएतकालमुक्कोसं ॥ तोपुदगल | तिहांयीबीजेगांमे रहया एकसमयजघन्यांतस . अ अजीवपुदगलरूपीतुं अंांतरू अनंताकालनुविन् कद्युतीर्थकरें आश्रीपुदगलनीठन्क्रशिपिति इकोसमजहन्नयं । अजीवापायरूविएं। अंतरेयंवियाहियं ॥१५॥ व वएयिकी पुदगल परिणाम्या बेगएमा र तीषादिरसपी फा० फरसयकी तेम सं संस्थानयकीपदावि जापावापुदगलपरिणाम्याचे पुदगलनोपरि ||५३३ वन्न गंध चेव । गंधषी रसई फासतहा। संगरायविन्नेन । पामते धादिकनीपरिणा
For Private and Personal Use Only
Page #396
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
न
४३५
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
1
सु
विहातेवियाहिया ।
सु.
रसका तीषाकया काया
पं पापकारें १६६० वर्यकी वर्षाने परिएला में परिएाम्या पं० पांचमकारेंते. तेवादिकना कयापुदगल किन कालानीला मोसिपंचहा ॥ १६ ॥ वन्ननु॑परियाजेनुं । पुदगल पंचहतेपकित्तिया । तीरथंकरें किन्हानीसाय लो० राता हो० पीस बोला त तेभ १७ गं० गंधयगंधने प० परिएाम्याबेजे 50 बेलेद तेव्तेक या तीर्थकरें | लोहिया। हासिहासुकिसात हा ॥ ११ ॥ गंधनपरिएायाजेन ! सुगंधपणें परिणम्याने पुदगल पु० रखयेकीतीषादिरसपणें परिएम्बाबे जे पुद्गल पुरगंध २० परिएम्याने जेपुदगल पं० पांचमकारें | झिगंधपरिणांमा | शिगंधा वय ।। १८ ।। पो १० रसनं परिएायाजेन । पंचहातेप ० पाटा मीठा तेम १९३ फा० फरसयी फरसने परिणांमें परि एम्बाबेजे कित्तिया । तित्तकयकसाया । बिसामराता ॥ १७ ॥ फासनपरिएयाजेन । पुग ० या प्रकारे ते फरसका तीर्थ | क० पररामा पानी परे मरुसुहासा | गे० लारीसो हनी परें स० यात्र्याकतूसनी परे नेम सी • ताढाचंदननीपरे हाते पकित्तिया । करें कवकामनयाचेव । गरूयालयात हा ॥ २० ॥ २० सीयान एहाय परे | नि० चोपपयाधीवरे त० तेमसुपारावनी परेच्या० कहानीर्थकरेशन | फा० फरसपपोंप० परिपाम्याजे पु० एकटा मेसेजूता २ पापुल ४३४ निद्राय । तहानुस्खायत्र्याहिया । इति फासपरिएायाएए ॥ पुग्गल समुदाहिया ॥ २१ ॥ सं० संस्थानच्या कारेपाप० परिपाम्याबेजेपुदगलपं• पांचप्रकारे संस्थान प्राकारेपा कृपालंगवंतें प• परिमेयस संस्थानी ने आकार व वाटली संस्थानलेला रुत्र्यानेच्या संगएापरिएायाजेन। पंचहातेपकित्तिया । परिमंमसायवहा । तंसान्चनरंसमायया ॥ २२ ॥
For Private and Personal Use Only
श्र३६
+ त्रिषुणा सिंघोमाने प्राकारे च० चनुषुएाचनरंसाने
आकारेच्या सांबा सांकमीने व्याकारे २२
Page #397
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
34
न || कवयिी जे जे एकि कालो पुदगल न नजनाए से० तेबेगंधनी सगंध र तीषादिक ५ रसनीलजना ८ फरसनीन || अ३६ | वलन जेलवेकिएहे तेमालशासेनुगंधए। अनेषुगंधपणे रसन फासनचेव । जनाचेच कामा वर्णपासेजमध तेगंध १।२।१ फाल एवं ५ संगगनहितं परमाएक लालजनाएसंस्खानपांचनी २३ वविकीजेपुदग श्राश्री गुरु २० साल्ने २० नाव साने तेबादर अनंतप्रदेसाश्रीषंध लइएसंगराजेविय ॥ २३ ॥ वदामने ख रुपनीलोतमाहे मजनानएने गं: गंधनीसुगंधअनेकुर) र रसमांहेजेकोश्क तीषादिरसए नेलपी फरसनी कएपांचसंस्थान नवेनीखे । लशएसेनगंधन । गंधपण रसने फासनचेव । लजनाट फरसनीलजनात्मइएसंगरान नीपण २५ ब० वएयिकी राताने पुदगल एनेमाहेल दमजनातेवेगंधनी र० ५ रसनी फरसनी म नजना कए५) विय ॥२७॥ वन्न सोहिएजेना लश्एसेनुगंबना रसनेफासनेचेव। लइएसंगए। संस्थाननी २५ व वयिकीपीच् पीताजे पुदगलतेमालनजना एबेगंधनी ररुपांचरसनी फरसनीम नजनाए ५ नविय ॥२५ ।। वन्ननपीयएजेन । लश्एसेनुगंपने । रसने फास चेव । लश्एसंगए संरचाननी २६ ववयिकीधाला पुदगलाएते लालजनाएनेबेगंधनी र पांचरसनी आउफरसनी लालजना ५३५ | नविय ।।२६॥ वन्न सुकिलेजेन । मांहे लश्एसेनगंपन्न । रसन फासनचेव। नएसंगएँ||
सरगना
For Private and Personal Use Only
Page #398
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ङ.
एस० ५ संस्वाननी २८ गं० गंधयकी होए वे
I
पांचनी २७ गं० गंधधकी जे पुद्गल सु० सुगंधतेमाहे ल० लजना करते पांचवर्षानी र पांचरसनी व्यावफरसनी ल० लजना ३६ ४३६ नृविय ।। २१ ।। गंधन॒जेलवेसुझि । लइएसेनवने। रसनेफासनचैव। लइएसग ल. लजना फूएते ५ वर्षानी र ५ रसनी फरसनी ल. लजनाए एानविय ॥ २८ ॥ गंधजे लवेझी । लइएसेनुवन्ननुं । रसने॒फासनु॑चेव । लएसंग सं० ५ संस्वाननी २५ २० रसकी तीषो संग्नी परे जोम लजनान ते बएनी गं० बेगंधनी ८ फरसनी ल० लजना फूए पांचसं | सनविय ॥ २९ ॥ रसØतित्तन्जेल । लइएसेनुवन्ननं। गंधफासचैव । लइएसंगएानविय स्वाननी ३७ रसयिकी करूयासी बनाए तेसरषाल लजना नए ५ वर्षानी गं. बेगंधनी फरसनी ॥ ३० ॥ रसनेकसूयएजेन । लश्एसेनुवन्न॑न॒ । गंधफासचैव । लएसंगणन वि न पांचनी११ २० रसयकि कसायलोजे ल० लजना कए से पांचवनी गं० बेगंधनी याव फरसनी ल० लजना नए सं० पांच य ॥ ३१ ॥ रसनुकसायएजेन । लइएसेनुवन्नन। गंध फासनेचेव । लइएसंगएानवि संस्वाननी ३२ २० रसकी पाटा जे ल॰ लजनानएते पांचवरएानीगं• बेगंधनी ८ फरसनी ल० लजनानएसं ०५ संस्थाननी३२, ४३६, य ॥ ३२ ॥ रसनु॑त्र्यंबिलेजे। लइएसेनवन्नगंधफासचैव । लश्एसंगएानविय ॥ ३२॥
こ
ल० लजनाए संस्वा
For Private and Personal Use Only
Page #399
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ङ. र० रसयकीमीगजे
ल० जना एते पांचवनी
गंοबेगंधनी याव फरसनी ल० लजना एपांच संस्थाननी ३४ २१ रस मरजे । लइएसेनवने । गंधूपासनचेव । लइएसंगएानविय ॥ ३५ ॥ | फा० फरसथकी पाषाएानी परेका परपराने ल० लजूना फूए ने पांचवनी गं० गंधधकी रसकी ललना सं० संस्थान (ए २५ फासनकरकमेजेन । तैाहे लइएसेनवन्नन् । घनरसनु॑चैव । लएसंगान॑वय ।। ३५ ।। फा० फरसीकी सुहाला भाषएासरषाजेल. लजनानएते ५ वर्शनी गं० बेगंघनी ५ फरसनी ल. लजनाएपांच संस्थाननी ३६ फासंमनुजे । लइएसेनवन्नन् । गंधनेरसन चेवा लइएसंगएानविय ॥ ३६ ॥ फा० फरसयिकी सी० ताढाकमलसरषाजे ल० लजनानए ते. पांचबर्फानी गं० बेगंधनी एरसनी ल० लजना नए सं० संस्थानपरोंकरी लजना फासनु॑गुरुएजेनुं । लइएसेनवन्नने। गंधनुरसचैव । लएसंगानविय ॥ ३७ ॥ | फा० फरसयकीन ० नुनासरिषाजे ल० लजनाते पांच वर्षानी गं० बेगंधनी पांच रसनी ल० लजना भए ५ संस्वाननी ३८ | फासन सीयएजेने । लइएसेनवन्न । घनरसन चेव । लइएसंगान विद्य ॥ ३८ ॥ फा. फरसकी चोपम्याजे पुदगल फूएते ल० लजना फूएते ५ वर्षानी गं० बेगंधनी ५ रसनी ल० लजनानए संस्थान पांचनी ३९ फासन्नएहएजेन। मांहे लइएसेनुवन्ननुं । गंधनेरसचैव । लइएसंगएानुंविय ॥ ३९५ ॥
For Private and Personal Use Only
प्र.३६
३५
Page #400
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| फा० फरसपकी सुलुषारापसरवाजे ल० लजनाएते ५ वर्णनीगंबेगंधनी ५ रसनी ल लजना नए संच पांच संस्थाननी ४० । ४३८|| फासन निछएजेन । लइएसेनुवन्नन । गंवरसनचेव । मएसंगगनविय ॥ ४० ॥
फाट फरसबकी खुसुषाराष सरषाजेल लजना लपते पांचवर्णनीगं बेगंधनी ५ रसनी लन्नजनाए सरसंस्ठाननी ११ फासन मुस्कएजेन । लइएसेजवपन । गंपन रस चेवालइएसंगएानविय ॥ ४५ ॥ प० यूमिनिपरे सँग संस्कानबे जेनोत्तेपुदगतमाहेल लजनाइएते ५ वर्णनी गंदर गंघनी ५ रसनीलच्नजनाप्नएफरसनीपए ५२ परिमंगलसंगाणे। लइएसेजुवपने। गंधरसनचेव । लइएफासनविय ॥४२ सं संस्थानकील झूएब वाघुयानीपर ले पुदगलनेमाहेल. त्मजनाएते ५ वर्णनीगं गंधनीर०५रसनीलजनाकपट फरसनी ५३ संगपनलवेवटे ।वाटलाजेनएसनवन्नन। गंवरसनचेव। लइरफासनविय ४३॥ सं संस्थानयकि एतं तेसियोमाने आकारेंपरे। नेमाहे ला नजनाएते ५वनीम गंधनी पांचरसनीलामजनाइएअाठफरसनीपण संगपत्नवेत्तंसे । त्रिषुपाजेजेपुट्स लजएसेनवन्नई। गंधनरसनचेव। लश्एफासनविय ॥४॥ सं०संस्वानयकीचच रसाने अाकारेचनरसबेजेपुद्गसनेमाहेला नजनाएते गं० २रांधनीनजनाइए ५ रसनीस्म नजनाकएप्फरसनीपए |५२८ संगणनयचनरंसे। लइएसेनबन्ने, गंध रसनचेव । लश्एफासढषिय ॥ ४५ ॥
For Private and Personal Use Only
Page #401
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ज जे. जेपुदगसलाकीनीपरे सं० संस्बालपणे ल लजनाफ्लएते ५ वर्णनी गं बेगंधनी पांचरसनी नलजनाए यात फरसनीपणाम३६
जेआययसंगणंलएसेनुवापन। गंधने रस येव । लइएफासनविय ॥४६॥ असं असंष्याला काल नु नत्क्रष्टो निलं ए० एकसमय जजघन्यांना अ० अजीवरू रूपीपुदगस अंआंतरूपमे विकलुतीर्थकरें ५७
खकासमुंकोसं। एकोसमं जहन्नयं । अजीवाण्यरूवीए। अंतरेयवियाहिया ॥४॥ ए• ए पूर्वेकहीते जीवनी विचारणा वो शिष्यपर्ने गुरु कहेनेझं कहाससंषेपेकहिए एएजीवनीविचारपाकया पनी हवे एसाअजीवविलत्ति। अ० अजीयनी विचारण समासेएवियाहिया। एतोजीवविलति॥
अ अनुक्रमे ८ सं. एकें डियादिक संसारीजीवसि अने सिद्ध के प्रकारें एसा० पूर्वोक्त कृष्पावना वोनामिअएफपुच्चसो । ५८ ॥ संसारबायसिकीय ।बीजाजीव पुचिहा लांगा २० जाणवा नीसवः रक्तवर्णे २० लागा. पीतवर्षे २५ मांगा स्वेतवणे माग २० शुनगंधत्नागा २३ अशुनगंधलागा २३ तितरसे मांगा २० कषायरसला गा२० अंबिसरस लागा २० मकररसे मांगा २० कर्कसफरसे लागा २३ मृङफरसेलागा २३ गुरु फरसे नागा २३ नगफरसेत्नागा २३ नुसनफरसे मागा २३ नसङफरसे लागा२३ सुषरसे मागा २३ परिमंगस संस्थान मागा २० यदृसंस्थान मागा २० त्रिससंस्थाने || ५२९ लागा२०चनुरंससंस्थानमांगा २० प्रायनसंस्थानमांगा २० पांचवानात्मागो१०० गधेलागाथ६ पांचरसेलागाफरसेत्मागा१८॥५॥सन स्वानना१०० एवं मांगास्थलतेपोंकह्या. अन्यथालांगा अनंताएएक गुपाहिगुपाआदि गएतां ॥ ॥
For Private and Personal Use Only
Page #402
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
नु.
ยย
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जी० जीव कला ती थैंकरें सि० सिद्धम० घणे प्रकारें कथा तं० तेसिना अनेक लेदनशष्यमते गुरू कहे बेमे० मुजनेकहता ३० अ. ३६ जीवावियाहिया । सिद्धागविहावृत्ता ॥
1
तंमेत्तिय ॥ काल | ३० स्त्रीमरीने सिद्ध थाए पु० पुरुषमरीने सिद्धथाए त. तेमज नपुंसक मरीने | स० स्वलिंगतेयतीने लिंगेसिद्ध० अनेरेसन्या | गिब्बस्ने लिगे इचिपुरिससिद्धाय । तहेवयनपुंसगा । सिद्धाए ससिंगे अन्नसिंगेय । सिनेविषसिद्धयाए गिहिलिंगे। त० तिमहीज ५० ॐ॰ नत्कृष्टपाचसेधनुषनी अ० अवगाहनासिद्ध थाएज० जघन्य बेहा धनी अवगाहना सिड्याए म० ज० उंचापर्य तहेवय ॥ ५० ॥ नकोस म्हणा । जहन्नमशिमाय । मादिदेईने महेयं तनपर मरीने सिद्ध थाए नी० नीचाषाम प्रमुषमाहे मरीने सिद्ध धाए । स० बेसमुड्स एण दधिसमु प्रने कसोदधि समुड़ एबेसमा तिरियंच । ति त्रिवा लोकमां मरीने सिद्ध थाए समुहंमिजलंमिय ॥ ५१ ॥ कोश्कदेवतादिकें नाष्या एतिहां मरीने सिद्ध आए ज ० नदी प्रमुषमांमरीने । द० दसजीव पुरुष नपुंसकने विषे तक्रष्टाएका बी० उत्कष्टाजीव २० २० स्त्रीने विषेसिद्ध याए बीजा पाएणीमां मरीने सिद्ध थाए ५१ दसयनपुंसएफ । समयसिद्धया वीसतिईन्डियासु ॥ पुरुसेसुँ | पुरुषनेविषेन त्कष्टा सीके तो अ० एकसो | स० नुष्टा समय ए० एकसिद्ध थाएसीफे | चन्ननकृष्टीच्यार जीव गि० गृहस्वना सिंगनेविष ४४ यावसयं ॥ उपरेट जीवसिद्धीसमए एग सिझई ।। ५२ ।। ५२ चत्तारियगिहसिंगे । एक समय सीजें.
For Private and Personal Use Only
Page #403
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ अन्यषिंगसन्यासिप्रमुषनेविषेद०१०चनुकृष्टा| सस्वसिंगेजतीने सिंगेअएकसोनुपरेपिाए स० समयएकेंसी ५३ नन्नन अ-३६ अन्नलिंगेदसेवय ।१०जीव १ समयसौंसलिगेगयअनुसयं ।जीवसिष्ठ समएएगेएसिसई ॥५३॥ नक्को कृष्टि ५०० से धनुषनी अवगाहनानाजीवासिन्नत्कृष्टासीफे तो जु० सायैएकसमयाच० च्यारजीचजघन्यबहायनी अवगाहनाना सोग्गहएाएन। सिशंतिजुगवंडुवे । बेनीवसीके चत्तारियजहन्नाए ।जीवनक्रष्टासमय सीकेज जेवनामध्यनीपरेमध्यअवगाहनानाअनुत्तष्टा च च्यारजीवमेरुपर्वतनीचूसकादिक नुपरेते अई फुच्चे| तेन्नेत्ररोजीवजन जवमशंनतरंमयं ॥५५॥ १०८ सीमे ५७ चजुरुहसोएयज्वेसमुहे। समुझनेविषेचन तनेजदेवीस नदीप्रमुषपाएगीमांहे नुनुक्रष्टाएके समे अषाफ प्रमुषअधोलोकनेविषेएकसमयसी तन्नेमजसी । विनासोकनेविषेठत्क्रष्टाससमय महेतहेवय। सरफे २०जीव सयंचअवृत्तरंतिरियलोए । एकसोनेनुपराउति समएएंगेपानसितश्य नेविषेएके सीनें ५५ क. किहा हणाणानुपरजातायता पा सिद्ध क किहां सिद्धाकह्याले अन् अनेकिह शरीर मीने' ॥ ५५॥ .. कहिंपमिहयासिद्धा। कहिंसिछापचिया । कहिंबोदिचश्त्ताएं। क० किहांजश्ने सी५६ अ अषोकनेविषेषताणा नुपरजातासिङ सोसोकनाअग्रमस्सकनेविषेप कयालेसिडर इहां ५५१ कत्वगंतूपासिझई ।। ५६॥ आलोएपरिहयासिहा ।मनुष्यसवधियिष सोएगेयपविया ॥ हंबोंदीगरी |
For Private and Personal Use Only
Page #404
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बळांमीने न० तिहां खोकने अंतेअग्रेजईने सिद्धथाए। बा० बारजोजन . स सपिसिहापिमानपीनुपरेडे ३० शसिप्रत्मारना अ३६ चश्त्ताएं। तबगंतूणसिशई ।।५७ ॥ बारसहिजोयरोहिं । सम्बन्धसुवरिभवे। सिपसारना में सिद्धसिसाढे पु० तेप्रयवीउत्रने संआकारे प० पचताप्तीस लाष जोजन
साजन .
यासांबीजे साम्तेललाजा माने। पुढवी उत्तसंविया ॥५८॥ पगयाखसयसहस्सा । जोयगाणंतुआहिया । तावहियो चम्पूरपो विपक्षापि ७५ सापजोजन प्रमापालेतिनेहनीत्रियीमारी परिधिले अन् जोजननीजामीने साब्लेसिइसिप्लाम मध्यान वैवविबिन्ना । निगुपोसाहियपरिरन ।एमा अवजोयएबाहवा । सामशंमिवियाहिया। जोजन सांबापाषाषेत्र सगै आवजोजननीजानी च० मे .. म मापीना पाषयकीन पातली जाएाबी ६८ वि० कहीपने थोक २ हाणि पांमनी पातली थाती परिहारमाणचरिमंते । मबियपतानतएफयरि॥६० ॥ अ० अर्जुन नामाधोखासु सूवर्णमयस्मतेप्रयवी निवनिर्मलबे स. स्वत्नावढेचसमाचिता ज बननेनाकारें लकहीतीर्थकरें अधुपासवन्नगमई । सापुढविनिम्मलासहावेण । जुत्ताएगायबत्तयसंवियाय । लगियाजि.
६१ ससकृषअंकनामारत्नकुं मचकुंदफूसेसरषा पंधोसानिर्मस मसालेए पकप्रमाणजोयपो तन्नेसिद्धसिसायिकी ||५४ एवरेहिं ॥ ६॥ सस्कककुंदसंकासा । पंरानिम्मलासुला। सीयायजोयणेतत्तो।
For Private and Personal Use Only
Page #405
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ.३६
प्रात 'सान
| खोल्सोकना अंतर्समो वि० कह्यो तीर्थकरें ६२ जो० एक जोजनप्रमापनिा ५० सहसनकोस थाए त तिहांसिदासिलथिकी एतसे ४७३|| खोयंतोनवियाहिने ॥६२॥ .. जोयएस्सनुजोतब । ३९ सहस्त्र अनेलगानहेगा मूकीए ते.
को कोसनु नपल्योजे ते एककोसना बगलागनेविषे सि. सिझनीन अवगाहना एनसे प्रमाणे ए६३ त तिहांमो | कोसोनवरिमोलवे। तस्सकोसस्सबनाए। सिद्धागोगाहपानवे ॥३॥ तसिहा | कनेविषे सि सिद्धलगवनम सो० लोकना अग्रनेविषे रद्यांडे ल संसारमाहे नारकीप्रमुष भवनाप्प विस्तारपैकी सूकाणायका महालागा। घणी" सोयग्गंमिपविया । लवप्पवंचनम्मका । प्रधानगति पक्ता . . सिक मोक्षरूपिणी ६५ नः सरीरनो चंचपए जा जेमनुष्यलबनोजो जेवोन लन्मनुष्यत्मवच बेसात्नवने विषे तित्रीने सिडिंवरगरंगया ॥६॥ नस्सेहोजस्सजोहो । माए होए लवंमिचरममिले। निलाग नवे हीपाथिया न मनुष्यलवनीदेहीए सि सिड्नी अवगाहना तए ६५ ए• एकलो एकसूिर सान्पादिसहि अच्छेमा हीपातत्ताय । तेथीहीएीयाए सिहायोगाहगामवे॥६५॥गनासायात अपराव। रहिन पुघरा समस्त सिद्धाश्री जोएतो अ० डेमोपण नयी ६६ अनसिद्ध अरूपीजी आंतरारहिता ५४३ सियाविय। पुझत्तेएअगाईया । अपयवसियाविय ॥६६॥ अरूवीणोजीवघए।
For Private and Personal Use Only
Page #406
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
889]
ना केवलज्ञान अने केवसदरसनतेहज स सहित सनसंज्ञाने अ० अनुसरूष पाम्याडे न नुपमा जेरूषनी नयी ६७ अ३६ | नागदंसपासन्निया ॥ऋयिवाने ज्ञानदर-अतसंसहसंपत्ता .. जुवमाजस्सनचिन॥६॥ सो खोकना एकदेसवित्मागनेविषे तेसर्व ना केवलज्ञानकेवपदरसन तेहज संज्ञाचे सं० संसार पार पाम्या नि संसार सोएगदेसतेसवे। नाएदसएसन्निया ॥ जेहने संसारपारनिनिया। सिद्धि
द्या.जेणें सि मोक रूपपी प्रधानगति प पता ६८ हवे। सं संसारमाबेहे स्वित्त्याने जेसंसारीजीव कु० बेप्रकार वि तेजीवकह्याती वरगगया ॥६८॥ संसारीक जीवनो स्वरूपकहने संसारबाजेजीवा। विहातेवियाहिया ।रयंकरें| तसअमेयावर निश्चै या यावर जीवति त्रिकप्रकारे ते त्रसपावरमाहे पुः पृथवी आ. अपकायनाजीव तस्तेमजवनस्प तस्साययावराचेव । यावरातिविहातहिं ॥ ६॥ ६९ पुढविआनजीवाय। तहेवयव तीनाजीव वनस्पती तेयावरति त्रएाप्रकारें ने नेहना बेलदस सालसमुजनेकहतायिका ७ प हवेऽव्ययी पुन्बेशप्रकारेषु एस्स। इच्चेतेथावरातिविहा । तेसिलेएसोहमे ॥ ७० ॥ पृथवीनात्मेदकहेले विहापुढ पृथवीनाजीव सु.सूक्षमबादरनिम प० पर्जाप्ता अपर्जाप्ता ए. एम एफु बेप्रकारेकया बक्षी तीरथंकरें|| ४४४ वीजीवाड। सुजमा बायरातहा । पद्यत्तमपद्यत्ता। एवमेएऊहापुगो ।। ३१ ॥
For Private and Personal Use Only
Page #407
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
४५
हादिकनो
बैंकनदी प्रमंपनी
-
बा-बादरजे पपर्याप्तापविकाय कुबेप्रकारे ते कह्या तीरयंकरें ससुहालीपृथियीत्व करणपृथवीबोजाएायी स० सुहालिसा ||३६ बायराजेनपद्यत्ता। विहातेवियाहिया। साहारवरायबोधवा । सएहासत्त सातप्रकारे तिम ५२ किन्कासी नी नीली रु० राती वली हा-पीली सुधोली तेमज पपांफरेवणे गोपीचंदनसरषीपन्थति विहातहिं ॥ १२ ॥ किएहानीसायरुहिराय । हासिदासुकिलातहा । पंपएगमडिया हे जीपी रेफीजेसचित्त व कठपायविनर बत्रिसप्रकारे कहीनीर
वी पानीमाटीसम्पुरमादिकाका ए रेफी रखराबत्तिसविहा ॥७३॥ करें३ पुढवियसकरावालुयाय"। नवलसिसायसोएएसे।। अपारी घूस ७ खोह तंत्रांबू सरूपो १२ सुवर्ण१३ वजहीरा १५ ॥ ३५ ह हरिआस १५ हिगलो १६ मन्मणासिल१७ सा रत्न अयतंबत सीसा ।रुप्पसुवन्नेयवरेय ॥७॥ हरियालेहिंगुखए। मएोसिसासा नीजात प्प परवालो अन्याललाजसकोसयालयासहित धूल वा एकबादर पृथविकायना लेद म मणिनात्लेदकेगे गो गोमि सगंजपाप्पवास। अन्नपखवाया। बायस्काएमपि विहारो॥१५॥७५ गोमिद्या यरत्न २३रुरुचकरत्न २५ अंअंकरत्न २५ फाफटिकरत २६खोहिताय मरकतरत्न २८ म. सारगलरत्नरल लुजनोचकरत्न नीच ५५५ एयरूयगे। अंकेफलिहेहिखोहिय। मरगयमसारगट्ो। लुयमोयगइंदनीदेय ६॥
जातरून सासा।
दरल२७
For Private and Personal Use Only
Page #408
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobaith.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
चंदनरत्न गे गेरूकरत्नह हंसगर्लरत्न पुःपुसकरत्न सोब्सोगंधकरत्न जाणयो -चंडात्न३५बै वैझर्यरत्न २८ ज-जषकातरत्न अ-३६ चंदागेरूयहंसगश । पुसएसोगंधिएयबाचवे । वदपत्नवेरुखिए। जबकंतेसूर ३९ मत्सरकातरत्न | ए नामम्व सहाला ७ एसर्व एतेमध्ये घटाषी चैलुया १ सैष्टर ससा ३ इदंत्रएाएकजातखोएकसेर कंतेय ॥७॥ एएरवरपुढविए । जानअन्नपफल १ अनवात १ एकजातए। रासीबाकी भगवतें। ले लेदएसर्वस्वर पृथवीबबीसकह्यातीर ए एकप्रकारें अ० फेरनथी घणाप्रकारेंनयी सुसूक्षमपंथविकायनाजीवत्तानियां पिषिकायना लेयाबत्तिसमाहिया । थंकरें एगविहमनात्ता। सऊमातन्त्रवियाहिया ॥३॥ लेदमाहेकह्या स सूक्षमपविकायनाजीव स सर्वखोकमाव्यापी सो खोकने एकेकदेसविलागेबा चादरपृथिवि ए एसूकमबादरपृथची | | तीरथंकरे ७८ समासबलोगमि । रह्याने सोगदेसेयबायरा । कायना जीव एनोकासवित्लागंतु | नोलेदकहेडेकाका तेल तेकासनो नेद वो कहे सुरुच प्र| सं.एसूक्ष्मबादर प. पृयविकायनालेद । अन् अनादिकाषनाले लेोपण जिना | सनीलेदकेने तेसिवोउंचनविहं ।।७५ कारे संतश्पप्पएाश्य । आश्री अपद्यवसियावियं । विज्ञा नुषाश्री सन्मादिसहिनसन्मानुषानोबेगो आवे तेलपीअंत बा-बावीससहस्त्र. बाच्चरसहन्ननकृष्टि थिति | ४४६ पच्चसाश्या । सपद्यवसियाविय ॥ ८॥ सहितपण्डे ८० बावीससहसाई।वासाकोसियालये।
For Private and Personal Use Only
Page #409
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आ- आनुषानीस्विनि पु-चादरपृथिवि अं अंतर्मुनत ज. जघन्यस्विनि ८१ हवेकायस्लिनिकहेले अन् असंध्यातो कापच उत्कट अ अ-३६ Ug|| | आनविश्पुढविणं ।कायमी अंतोमुशतंजहनिया ॥१॥ असंखकामक्कोसा । अंअंतर्मुलन जजघन्यस्विनि का कायस्चिनि पृथवीनी 'त. ते पृथवीना मव निरंतरकरने पृथवीनीकाय अंन्यू अञ्अनंताकालनी तोमुत्तंजहन्निया । कायविश्पुढविणं । तकायंतुअमुंचने ॥२॥काएनहिं ८२ अपंतकाव आतरोपथिवीनालवपांमवाअाश्री अंतमुहर्न जन्जघन्यांतरु विनायोयोस पोनानायविकायनाजीव पुः पृथिवीना जीवने अन् मुक्कोसं ॥ नुत्क्रष्टो अंतोमुत्तंजहन्नने । विजदंमिसएकाए। पुढविजीवांराअंतरं। पृयवीलवपांमवांनुअनिरु पके उत्क्रष्टोअनंता ए एपृथविकायनाजीववधी गंधया रसपी फरसथी संत संस्नाननात्लेदपकीपए २३॥ कालनु आंतरू प ८३ हवेमयपितिकडे एएसिवन्ननेचेव । गंधरसफांसनासंगपादेसनवावि वि० लेदनासहस्राए ८३ हवे अपकाय इव्ययी कहेले ऊ बेप्रकारेअपकायना जीव सु सूकमबादरनेम प परयाप्तात्र विहागासहस्ससो॥७॥ ५ विहाभानजीवान । सुरुमाबायरातहा। पद्यत्तमप पर्याप्ता एक एपकायनाजीव कुबेप्रकारपोंकहिए. चा बादरजे अपकायपपर्याप्ता पं. ५ प्रकारे पक्कह्यातीस्यकोसामेघनोपाएगी यत्ता । एवमेएऊहापुगो ॥८५॥८५ बायराजेनुपयत्ता । पंचहानेपकिया। सुदिएयनुस्सा
For Private and Personal Use Only
Page #410
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
| ह हरिनीला तणानुपरपाणी आवे हरलएका ८६ फ० अरहिमएकप्रकारेंचेअपकायनो अघोरासु सूक्षमनिहाअपकायनेनदीमांहेकह्या अ३६
हरतणमहियाहिमे ॥८६॥ एगविहमनाएत्ता। प्रकारेनथी सफमातवियाहिया तीर्थ हवैअपकायसु-सूक्ष्म अपकायनाजीवस सर्वलोकमांव्यापी सोसीकनाएकदेसनेविषेबा बादरअपकायनाजीव हवे संग्छता त्रयी कहेले सुकुम्मासबसोगंमि। रबाडे योगदेसेयवायरा ॥८॥ अपकायनाकासयीकहेडे संतर अाश्री डेमोपणनाएअपकायनो अ. अनादिनाडे एअपकाय नियिति आत्रीआदिसहित ले सक्नेथितिनोडेमो आवे ते लगीतसहिनप पप्पएाश्या । अपयवसियावियनो जीव। विश्पमुञ्चसाश्या। सपद्यवसियाविय ॥८॥ स. सातसहस्र वरस न उनकृष्टिनए, आ- आनुषानीयिति अपकायनी अं अंतर्मुर्तजन्जपन्यस्लिनि ८० हवे सत्तेवसहसा। वासार्कोसियालवे । आनविश्वानुएं। अंतोमुतत्तंजहलिया ॥९॥ कायास्ल अन् अनंताकासुबुष्टि अंअंतमुतन ज जघन्य का कायस्विति या आपकायनी'. अनमूकायते निकहेले असंखकापसुकोसा । अंतोमुत्तंजहलिया । कायईिआनएं । कायंतुअमुंच एनसोकापरहे ए७ अ अनंतकाल ना उत्क्रष्टा अं अंतरमुतन जघन्य विलोयिक स- पोत्तानाअपकाय आन्नापका ज॥५०॥ अपंतकासमुक्कोस । अंतीमुजतंजहलायं। विजढंमिसएकाए ।आन|
For Private and Personal Use Only
Page #411
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
vu
म जीव अपकायपामयानांतरुपले १ हवेअपकायनी एअपकायनाजीववावगंधयकीरु रसपी फरसपी सं-संस्नाननात्मेदनापा|अ.२६ | जीवाएअंतर ॥१॥नायथीकेडेर एएसिंवएजेचेव। गंधरसफासले । संगपादेसनेवावि। वि० लेदना सहस्त्रहोए पर हवेवनस्पति ऽव्ययीकेडे पुन्बेप्रकारे वनस्पतीनाजीव स सूक्ष्मन्सने बादरलेम पड़ पर्याप्ताअने विहापाशंसहस्ससो ॥४२॥ विहावएस्सजीवा। सुजमाबायरातहा । पजतमपज अपर्याप्ताए एमवनस्पनिकायबेप्रकारेपणवली जाणवा बार बादरजे प० पर्याप्ता उ० वेप्रकारेतेन्तेबादरवनस्पतिनाजीवासाच ता। एवमेएउहापुगो ॥३॥ बायराजेनुपधत्ता ।विहा नेवियाहिया सा | अनंताजीवसाधारणकसीरवंत एकसरीरमा अनंताजीवनेप-बीजाप्रत्येक प. प्रत्येकजूदा २ सरीरना घणी अनेकप्रकारेतेस. हारणसरीराया पत्तेगायतहेवय ॥ मनपत्तेयसरीराजे ऐगहातेपकितियाँ । रुका आंबादिकरीगणीसम्परा स चंपकसुनादिव० सप्रमुपनीयेसमीच्या व मेरीप्रमुषनोपन्सेलकी बांसममुषकुन्लश जन्मतमा गुखायगुम्माय । सयावलीतपातहा ॥४५॥ तेम९५ वदयापचयाकुहाए। (फोगाप्रमुषजवरूहान त नृपादिक नेम ह हरिकाय बोल जाएगवा प. प्रत्येकवनस्पनिकायना जीव० श्सकह्या तीर्थकरे। सा० अनंताजीबनेएकसुरी|| सहितएातहा। हरिकायायबोषच्चा। पत्तेयातिमाहिया ॥५६॥ साहारासरीराळ।
For Private and Personal Use Only
Page #412
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ઇપs
रहिवोले स० सरीरवंनअनंतकायने घपोप्रकारेंनेकह्या आ कंदमूलनी जातमूसों सि आफू त नेम १७ ह. हरिषि मिरिषि १६ पोगहातपकित्तिया । आलए मूलएचेव। सिंगबेरतहेवय ॥॥ हरितिसिरिषि स ससिरिसि ए प्रपाकंदमूलाजा जावोके केयकैदखीएपण कंदमूल प पसंखसएकंद एबेकंद सनी जाते कच्कंदतीय|| ससिरिखि । नी जानि 'जावश्य कदसी। पखंखसएकंदेव । कंदकु० कुरूवएएपणकंदमूखनीजान ८८ सो सोहिणी एपण कंदमूल कुंकुंदगन तेमज किकृष्णक बच्चन || सीयकुलूपए ॥८॥ खोहिणियलय। कुंदगायतहेवय। किएहेयवध कंदएपणकंदमूखक. कंदसूरए तक तेमज अ.अश्वकपीए पण कंदमूल बोल जाणवो सी. सीहकर्णि-एपणकंद | कंदेय । कंदेसूरपाएनहा ॥ ॥ अस्सकन्नीयबोधवा। सीवन्नितद्देवय। सत्त) मु मुसुढिनीति हसद एपणकंद | अघपोमकारेएआदिदेईने १०० ए. एकप्रकारे अपपोमकारेनयीसुः सूक्षम | तेमज मुरूढिहाखिदाय । मूष ऐगहाएवमायने॥ १०॥ एगविहमनाएत्ता । सझमा | तिहां यनस्पतिकह्या हवेवनस्पतिषे सुव सक्षमसर्वसोकनेविषेव्यापीरयाबे सो सोकने एकवित्मागेडेबावर १०९संवेवनस्पनिकायबला |७५० तबवियाहिया ।प्रथीकहेडे सुझमासबलोगमि । सोगदेसेयबावरा ॥ १०१॥ संतश्पप्पएगा |
-
For Private and Personal Use Only
Page #413
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३६
अन् अनादिकासनो डेमोपणनयी नित्यवस्विति आश्री आदिसहितडे सथितिपूरियाए तिबारेमा सहितपणडे २ श्या । अपद्यवसियाविय। विश्पमुच्चसाश्या । सपद्यवसियाविया ॥२॥ द दसपूरणे सहस्र हजार वा बरसन नत्कृतिथिान व वनस्पति कायर्नु आन अं अनसुन ज जघन्यस्तिति ३ | दसचेवसहस्सा। वासाकोसियानवे ।वपस्सश्एंान्तु। अंतीमुशतंजहन्नयं ॥३॥ अन् अनंतोकापनुत्क्रष्टि यिनि अंतर्मुशन ज.जघन्य स्थिति का कायस्तिति प० नीसँफूलनीगोदिया त० तेअनंतकासनीका अपामक अवंतकालमुक्कोसा। अंतोमुशतंजहन्निया । कायपिणगाणं । दिक तंकायंतुअमुंच ला असंष्याताकासनुन उत्कृएतरु अंगअंतमुर्तजघन्यांतस वि दायिक स पोतानीवनस्पती पन्नीलसप्रमुषअनंतकायनात्म
असंखकासमुक्कोसं । अंतोमुतनंजहमगं । विजहंमिसएकाए। पपगंजीवाएंअंतरंगा ए०एवनस्पतीनाजीव ब वर्गाचीगं गंधयी रसयी फार फरसपीसं संस्थानना आदेसलेदयी विक नेदना हजार १०६ एएसिवमनचेव। गंध रसफासने। संवादादेसनवावि । विहागासहस्ससो॥१६॥ ३० एपूर्वकह्याथावरजीब ति अयो। स-संपेंवि का एनाथावरजीवकयापबीन त्रसजीवनि-त्रणप्रकारेबोगशिष्यानेगुरुकहेडेमकतंबु || ४५१ श्च्छतेथावरातिविहीं समासेएवियाहिया ।एत्तोनुनसेनिविहे । वोच्चामिअणुपुत्वसो॥७॥श्र-अनुक्रमें||
वपामवाश
For Private and Personal Use Only
Page #414
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobaith.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
ते तेनुकाययानकायमा जापाया न मोटा प्रसबेंडियादिक नेम इएपूर्वेकह्यादेत नसजीवतिन्त्रणामकारेतेलेनाप्नेदरू सा || अ३६ ४५२|| तेनुवानुयबोधधा । नराखायनसानहा । श्च्चेपणांसातिविहा । तेसिनेएसुरोहमे॥
लखहेशिष्य मुजकहतयिका |ऽव्ययीकडे पु०बैप्रकारेंतेनुकायसु सूरुमबाउ बादरनिम प पर्याप्ताअपर्याप्ता एएमए उज्वेमकारे ॥ ॥ हवेतेनुकाय विहातेनजीवाजे । सुश्माबायरातहा । पद्यत्तमपधत्ता । एवमेएउहापु वली ५ बा बादरतेस कायनाजीवजेपर्याप्ता अघपोप्रकारे ते नेकह्या बसताजानतमानअंगारामुअगनिषोटमा अन्साहा पो॥९॥ बायराजेनुपछत्ता । ऐगहातेवियाहिया। इंगामुम्मुरेअगएी। सहित अविजा नपाव्यो होए तेमां अग्निहोएते अग्निनिमजमूलयीन नष्कापातनी अग्निवि विजलीनी अग्नि बीत) अ घरोपकारेंए एमन्मादिदेईने | खातहेवय ॥ १० ॥ तुटतीझापतिमज १५ नक्काविद्युयबोधधा। भारावी । “ऐगहाएवमायने। ए एकजमकारें वे बीजो प्रकारनयी सुन्सूकमन्अग्निकायनुनवि कह्यो तीरथंकरें १११ सुन् सूरुमनेनुकायनाजीवसन् सर्वसोकमाहेस एगविहमनागत्ता । सुजमातेवियाहिया ॥ १११ । सुझम्मासबसोगंमि । पलेव्यापीरयाने लोक लोकने एकावित्नागेबा बादरते। ए० एविचारकह्या पणहवे कालविलाग ते ते अग्निनु ची कहरू प्रकारथी हवे कासयी ||८५३ सोगदेसेयबायरा । काय एत्तोकासविमागंतु। तेसिंबोळचत्तविहं ॥ १२॥ कहेडे ११२
For Private and Personal Use Only
Page #415
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
८. सं. बता श्री म० त्र्मनादिकासनाने प्रग्निनाजीवबेमोपा नहियावे वि० लवयितिकायास्वति खानपानी थिनि श्राश्री | पूरुथाए निवारे म.३६ ५१ संतपप्पाश्या । प्रपद्यवसियाहिय । विपचसाश्या । सपधर्वसियाइय ॥ १३ ॥
अंतसहित ति० एा अहोरात्र ८० उत्कृष्ट वि० कही >प्रायानुषानी स्थिति तेनुकायनी अंतर्मुर्त ज० पण बे १३ तिन्नेवमहोरत्ता । नक्कोसेएावियाहिया । प्राविशतेनां । तोमुत्तं जह | जघन्यथिति १४ अ॰ असंष्याताकास नु नत्कृष्टि अंतर्मुहुर्त ज० जघन्य का कायस्थिति तेनुकाय तं तेअग्निकार्य निया ॥ १७ ॥ संषकासमुकोसा । अंतीमुत्तं जहन्निया । कायवितेनां । तंकायंतु अ० मामूकतोयको १५ अ० अनंत काल जत्कृष्टोत्र्यांतरूप अंतर्मुर्त जघन्य वि बायके स० पोतानी काया ते तेन मुंचन ॥ १५ ॥ प्रांत कासमुकोस । अंतीमुत्तंजहन्नयं । विजढंमिसएकाए । तेल कायना जीवनाते कायपणानुपजवानुं एतसुं श्रांत ए० एक अग्निनो लेदवच्चयी गंधथी रसयी फरसयी संसंस्थान जीवा त्र्यंतरं ॥ १६ ॥ परे हवे लावधी कहे १६ एएसिवन्ननुचैव । गंधरसफास । ना लेदयीपण वि. लेदना सहस्त्र हवे पान कायव्ययी के बेडु० बेमकारेवा० बालकायनाजीवसु० सूक्षम ने बाद देसने॒वाद । विहाणाई सहस्सनुं ॥ १७ ॥ विहाबानुजीवानुं । सकुमाबायरा तहा ।
संगणा
४५
For Private and Personal Use Only
Page #416
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobaith.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
ज. प. पर्याप्त अपर्याप्त ए एम एकनापु०बेप्रकारेवती बा० बादरजेवानुकायनाजीव
जन रहिरहीने | अ-३६ जापावा १८ प. पर्याप्सा पं. ५ प्रकारेनेकह्या बाय पद्यत्तमपद्यत्ता । एवमेएउहापुपो ॥१८॥ बायराजेनपद्यत्ता । पंचहातेपकित्तिया। जकषिया मं वंतोलीनुवा| घच्घनोदयिजेहेत्रे घनवा डे गु० गुंजारव शब्द सतपादिकलेजेगमेश्नाषेतेसंघरतकअन् ए एक एआते करतेगुंजावाय सुव्योमे २ बाए तेशुचाय १० घणेमकारें ए० एमआदिदेईने प्रकारचे | मंगलिया।घपागुंजासुध्वायाय ॥ १५॥ सवढंगवाएय । रोगहाएवमायने । एगवि सूकमवायनी अघपा सु० सूपम कायनाजीवने विक . “सु० सूक्ष्भवायनाजीव स. खो लोकनाएकावि प्रकार नयी
कह्या २० हवे त्रयीकहेडे सर्वलोकमांहेव्यापीरयाने माग बा. बानुका हमनागत्ता। सुरुमातेवियाहिया॥ १२०॥ सुजमासबलोगमि। बोगदेसेयबाय यना जीव ए एविचारकह्या पडीका ते तेवानकायचं कहर सं. बताआत्री अन् वानकायनाजीवअनादि
. सनो वित्माग . . ० च्यार प्रकारे १२१ . कालना ने वानकायनाजीवनीअंतपपानयीसदा|| ४५५ रा। एत्तोकासवित्नागंतु । तेसिंवोखंचनुविहं ॥१२१ ॥संतश्पप्पपाश्या ।अपद्यवसियावियीं।
For Private and Personal Use Only
Page #417
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वरस अ.३६
5. लिवयिति कार्यथिति मानुषानी स्विति श्राश्री स० त्र्यादिसहित बे मानुषु पूरुं याए तिवारे नि भए। सहस्त्र ४५५ विपचसाश्या । सपद्यवसियाविय ॥ २२ ॥ तसहित पाढे २२ तिन्नेवसहस्साएं | वासा नु० नुत्क्रष्टिहोए • मानुषानी स्थिति या चानुकायनी अंतर्मुर्त ज० जघन्य २३ • संख्याताकानीन्छ
कोसियालवे । नविवानां । तोमुझतं जहनिया ॥ २३ ॥ असंषकामुकोसा तूकृष्टि अंतमुर्त ज० जघन्य का० काय थितिवा० वानुकायनी ते.तेवानुकायनीकाया अ० मामूकतो की अन् स्वितितोमुफत्तजहम्निया । कायविवानां । तंकायंत्र्प्रमुच ॥ २४ ॥ २७ अ | नंतकालनं ० उत्कष्टोत्र्यांतरूपा त्र्यंत फूर्त ज० जपन्यत्र्यांत वि० बांदेयके स० पोतानीवालका जी० जीवने वान कायपांमवा तकासमुकोस । तोमुत्तं जहलयं । विजढंमिसएकाए । यनी वानुजीवाएात्र्तरं ॥ एन आंत हवेत्मावथी के बेएक एकायना दवन वर्षाप की निश्वगंध धीरसपी फान्फरस संग संस्थानना दीप २५ ॥ पफे २५ एएसिवन्नन चैव । धनुरसासनं । की संगएादेसने॒वाव । वि० [लेदना स० सहस्र होए २६ Joमोटात सजीव बेडियादिकने च च्यारप्रकारे का बे. बेंडी ते. तेंडी विहाणासहस्ससी ॥ २६ ॥ नरासात साजेवना चनुविहाते पकित्तिया । बेइंद्रियते दि
1
11
૪૧
For Private and Personal Use Only
Page #418
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| चन्डी पं.पंचेंडी पूरणे २५ हवेऽव्ययीक बे. बेंबीजे जीवते. मु. बेप्रकारे कह्या प पर्या ३६ | य । चनरोपंचिंदियाचेव ॥२३॥ हुने बेइंदियानजेजीवा । विहातेपकित्तिया । पब सामने अपर्याप्ता ने तेबेंदीनालेदमु सामसो सुजने कहलथिका कि सरमियाविष्टामाहे नपजेतेसोमंगवा अन्अप्पसिया मपद्यत्ता । तेसिलेएकसरोहमे ॥२८॥ २८ किमियोसोमंगसाचेवा अासामा मा जेलले असघपाकांटाकरीने लुगसीनासरा व वांससीनासरपोमुष बेजेनोलेनोनामहोकरिवासिमुहा० पूरपोसि सीयसन याहया। धरती पाएनेमा रहे वसिमुहायसिप्पिया । संस्कासंस्काएगातहा ॥ २० ॥ नानासंषमा अथवा बेंडीनीजानएपगबेंडीनीजातचे पूरऐन तेमजबकनमा जजसो जाबेंडीजात पूरये सीपनीजाति संघ २९ घलोयाअएतयाचेष। तद्देवयबरामगा। जागाजासगाचेव। चं. चंदगिया नेमज ३० ३०एणेप्रकारें बे० बेंडीए अघोप्रकारे कह्याने आदिदैईनेहवे.डी सो सोकनाए चंदपायतहेवया ॥३५॥ शनिबेशंदियाएए। ऐगहाएवमायए । क्षेत्रथीकेडे खोएगदेसते कायित्नागेस सर्वनधीसघबैंडीकह्या १३१ हवै कासयी सं० उनाश्री अ. अंतरहिन अनादिनाअंतरहितले. | ०५६ सद्दे । नसबनवियाहिया ॥१३१ ॥ संतश्पप्पएाश्या । अपद्यवसियाविय ॥
For Private and Personal Use Only
Page #419
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
- यितिच्याश्रीआदि सहित सन्यानुषं पूर्वं थाए निबारे अंतसहित ३२ बाट वरस' बार आनुषानीस्विति सनत्क्रष्टीवि कही अ६ || निश्पमुचसाश्या । सपद्यवसियाविय ॥३२॥ वासासूबारसेवजे। नकोसेराविया
बे. बेंडीना आनुषानी स्थिति अं अंतर्मुशर्त मन्जघन्यस्विति १३३ स.संख्याताकास भूननक्रष्टि अं अंतर्मुशर्त | हिया । बेइंदियानदिई । अंतोमुतत्तंजहलिया ॥१३३॥ संवेद्यकासमुक्कोसा । अंतोमुत | ज जघन्यास्चिति बे० बेंडीकायस्विति ,न ते चंडीनीकायअपामूकनोयको ३४ अ. अनंनाकाप्नुनन्ननकोबांना अंत
जहन्निया । बेदियकायविई। तंकायंतुअमुंचन ॥३४॥ अणंतकासमुक्कोसं । पके अंतोमा मत ज. जघन्य बेदीजीवने बेंडीपणुंपामबानुएतसु आंतरुपमे विकमुनीरथंकरें१३५हवेत्नावपीकेएल एबेंडीजीवनात्नेदयत्व
उत्तंजहलयं । बेइंदियजीवाएं। अंतरेयवियाहियं ॥१३५॥ एएसिवन्ननचेव का गगंधवीरसयीफरसयी सं-संस्बाननाल्नेदपकी पण विच लेदना हजार रुपये तेंदोऽव्ययीकहेडेते. तेंडीजीव गंधरसफासने । संगणादेसनवावि । बिहागासहस्ससो ॥३६॥ नेइंदियानजेजीवा। ०बेप्रकारत्त० तेकड्या प. पर्याप्ताअपर्याप्ता ने सेना लेद सु० सालसमुजनेकहता ३३ कुंकुंयाकीमीदसानडीनीजानि ||५५७ विहातेपकित्तिया । पजत्तमपजत्ता। तेसिलेएसुरोहमे ॥३७॥ कुंयुपिपिविनइंसा।
। उविहातेपकित्तियाप. पर्याप्ताअपर्याप्त । बिहागाईसहारमा हवे तेंदीदव्यधीक पासवाननचेवर
For Private and Personal Use Only
Page #420
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नु० नुकतेंडी नीजानि नदेही त नेमन० तृणाहार काष्टहार एतधीनी मा० एतेंडीप एपातेंडी ३८ क कपासएपा ३५ नकदेहियातहा । तपाहाराकचहाराय। जात मालुग्गपत्तहारगा॥३८॥ कप्पासगिमि सेंडीजीव ति निक ल तिवारपबीए तेंडी स. एजेंडीबो जाएगावा एतेंडी ३९ समोसा जाय। तिगात समंजगा। सदावश्ययगुम्मी । बोधवाइंदगाश्या ॥३॥ इंदगोवगमा एन्पादिदश्ने घोमकारेंएए आदिदेईने हवे फेर्मयी। सो सोकने एकदेसविलागेने सघसान नयीसघला लेंडीखोकनेविषेकडा १५० हवे
श्या । रोगहाएवमायने । कहने सोएगदेसेतेसवे । तेंडी नसबनवियाहिया ॥१४॥ कायीकहेले सन् तेंडीजीव पाश्री अ.अनादिना के अंतरहित ने रि स्त्रिति आश्री आदिसहित सच्छेहमासहितपालै ५१ संतश्पप्पणाहिया। अपयवसियाविय। विश्पमुच्चसाश्या। सपद्यवसियाविया ॥५॥ ए० एगुणपंचास अदिवस रात्रि जु० नुकृष्टिं कही लगवते ते. तेपीजीवनापाउपानी स्विनि अं अनर्मुशनज जघन्यस्ति | एगुगवन्न अहोरता। नकोसेएवियाहिया । तेऽदियभानविर। अंतोमुजजहसि ति ५२ सं संरख्यातोकास नत्क्रष्टिंकाय स्विति अं अंनमुफ्त जघन्यपिति ने तेंडीजीवनाकायास्वति तंज्ने दीनीका ०५८ या ॥३२॥ संखेधकालमुक्कोसा। अंतोमुत्तंजहन्नया। तेदियकायविशाकायतु।
For Private and Personal Use Only
Page #421
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shei Kailassagarsuri Gyanmandie
अ० अपामूकनोलेठीपणाभुत् अ. अनंतकालनो न नस्कृष्टोतिरूपमे अं अंतर्मुफजिजघन्य ले लेंडीजीबने तेंडीपर्युपांमवानुमं या अ३६
अमुचण ३॥ अपनकासमुक्कोसं । अंतोमुअत्तंजहन्नयं । तेदियजीवाएं। अंतरेयं तरोप उनकृशे कहो । एक एतेंडीजीवना नेदय वएयिकी गंगंधयारसपी फरसयीसं संस्बानना लेदयीपणा वि लेदना हजार वियाहियं ॥३॥ एएसिवन्ननचेव। गंघनरसफास। संगगादेसनेवावि । विहाएाइंसह
. १५५ च चनुरेंडीजे जीव वेप्रकारे कह्या प० पर्याप्ता अपर्याप्ता' ले ने चनरेंडीनालेद | स्ससो ॥१५५॥ चरिंदियाळेजेजीवा । विहातेपकित्तिया । पद्यत्तमपद्यत्ता। तेसिनेएसुहा सांत्मसमुजकहलायकाोय चौरिंडीनी जातपण चारेंडी म. माषी म. मसा तेम ल लमराकीमा चरेंगीनीजातपती दिद। मे ॥१६॥ ४६ अंधियापोनियाचेव। मबियामसगानहा । लमरेकीमपयंगेय। गीया लिंक ढिकए अनेकुंकण एबे चनुरेंडीनीजात कु. एपएा चच्रेंडीनीजानसिं एचौरेंडी न०एपपाचनुरेंडीवि विवि मोएचनुरेंडीनी विक गेकंकणेतहा ॥५॥ ५७ कुकुमसिंगिरिमिय । नंदावत्तेयविडिए । मोखलिंगारियाय । विर एचरिंडीनीजातअन्एपाचनरेंडी - अ.अलिपपाचौरिडीमा मागधनामा रोअशिरोमनामा चनरेंगीरो० बेअक्षर पाबशाप ४५६ सिंअविवेहए ॥४८॥ अडिसेमाहएअधि। चनरेंडी रोमएविचितेचित्तपए । दनाभेदकरता
For Private and Personal Use Only
Page #422
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जो अक्षिरोमनामाचनुरेंदीनीजात ज०जस एच रिंडीनी नीव एचमुरेंडीनीजानन लेपण यनरिंदीनीभातए २ एगों प्रकारेंचनरेंदीएन अ३६
नहिंजलियाजसकारियं । जान नीयाततबगाश्या ॥४॥अादिदेईनेश्चनरिंदिवाएए एपूर्वकह्याने अ० घोप्रकारेएकएकह्याआदिदेश्नेहवे क्षेत्रयी कहेडेखो लोकना ले ते सघलाचक्षरेपीकह्या १५० हवे कालपीचनरें। । रोगहाएवमायने । लोगस्सएगदेसंमि । एक बित्नाग तेसोपरिकित्तिया ॥१५० ॥डी कहेले. सं० चनुरेंडीजीवनता आत्री अयादिसहित अंतपणानयी वि स्विनि आनी सादिसहितअंतसहितपणले ५१ संतश्पप्पएगाश्या । अपद्यवसियाविय। विश्पमुच्चसाश्या । सपयवसियाविय ॥५१॥
बमासनी स्विति न नृत्कृष्टीकही वीतरागें च० चनुरेंडीयजीवना आत आजपानीस्वितिअंअंतर्मुर्तजघन्य ५२ बचेवळमासा। नकोसेपावियाहिया। चनरिंदियानविई। अंतोमुत्तंजहणिया ॥ ५२॥ सं संष्याताकालनी सूचनकृष्टिथितिक अंतर्मुर्तज जघन्यस्विति च चनरेंजीका कायूस्विति तत्तेचठरेंडीकायाअध्यानरुपलेच संरवेद्यकासमुंवोसा । अंतोमुत्तंजहन्निया । चनुरिंदियकायविई । तंकायंतुअसुंचन पा जुनुमाए । अन् अनंतकाल्नो हत्कष्टोनिस पके अंअंतर्मुर्तेलपत्यकायर्या बिळांमैय के सपोनानीकायाचनरेंदोनी आंतकंपो चनरेंगे ०६० अएतकासमुक्कास। अंतोमुत्तंजहन्निया विजदंमिसएकाए। अंतरेयवियाहिये।
For Private and Personal Use Only
Page #423
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३६
ए. ए चनरेंडीजीवना लेदध वएयिकीगंधयीररसपीफरसयीसं संस्थाननात्नेदपएा वि- नेदहनार होए ५५. | एएसिवन्ननेचेव। गंधरसफासजे । संगगादेसनेवापि । विहाएाइंसहस्ससो ॥१५५॥ पं. पंचेंडीजे जीव च० च्यारप्रकारे लेकह्या नेनारकीतिर्यंच म मनुष्य देवताया कह्या हवे नारकीदव्यपी कहेले ५६ पंचिंदिया जेजीवा। चनविहातेवियाहिया । नेरश्यतिरिस्कायामएफयादेवायत्राहिया॥५६॥ ने नारकी सात प्रकारे पुरत्नपत्मादिकप्रविवि सातने विषेर रत्नप्रला १ स० सकरप्रसार वा०वासुकप्रला३ आरु कही ५७ । नेरझ्यासत्तविहा । पुढविसत्तसुत्लवे । रयपात्लासकरालावा । सुयालायमाहिया ॥५७ ।। पं० पंक प्रत्माघधूळ धूम्रप्रत्ना५ त० तमाला न तमतमाउ एपृयविए0प्रकारेनारकीसच मकारें कह्याहवेनारकीक्षेत्रयीके पंकालाधूमाना । तमातमतमातहा। श्श्नेरश्याएए। संतहापरिकित्तिया ॥ ५८ ॥३५८ | सो सोकने एकदेसविलागेसर्वनारकी तेजलेसर्य कह्या एकह्यापबीका कासविचारने तेनारकीऊकहरू च च्यारप्रकारे पर लोगस्सएगदेसंमि । तेसवेवियाहिया। एत्तोकालविल्लागंतु ।तेसिंवोचंचनविहं॥५॥ ॥ संचनामाश्रीअनादिकासनाले अन्नारकीनाजीवनोअंतपणानयीसदा नि लवस्तिनिकॉयथिति अाजषानीयिसिंन्यादिसहितगुज ७६१ || संतश्पप्पएाश्या। अपद्यवसियाविय । ए होसे विईपमुच्चसाश्या । संपधवसियाविय॥
तिन्मात्री
For Private and Personal Use Only
Page #424
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न पूरथाएतिवारेअं। सात सागरोपमएक न० कृष्टिस्तिति चिकही प पहिली नरकनेविषेजघन्य ददसहजावर्ष ५१ अ-३६
ससहितपणाले ६० सागरोवममेगंतु । नकोसेरावियाहिया।पढमानजहन्नेएं । दसवाससहास्सया॥६॥ |नि पासागरोपमानधु उच्नुत्क्रप्टोविन् कहीं दो बीजा नर्क जघन्य ए. एकसागरोपम ६२ स-सान तिन्नेवसागरान । नक्कोसेएवियाहिया। दोच्चाएजहन्ने । एगंतुसागरोवमं ॥६२ ॥ सत्ते सागरोपमनुं आनुषुलन्युत्कृष्ट कहो त त्रीजीनरके जजघन्य निन्त्रणासागरोपम, आनुj ६३ दन्दससा वसागन । नकोसेावियाहिया । तश्याएजहन्ने तिन्नेव सागोषमा ॥६३॥ दससा गरोपमनुआनुषुनु उत्क्रष्टो विव कयो च. चोयी नरके जघन्य . स सानसागरोपमनुं ६० सन्सतर गरोवमाने। नक्कोसेएवियाहिया । चढिएजहन्ने । सत्तेवनसागरोवमा ॥६॥ सतर सागरोपमनु आनघुन नूनकृष्टो कयो . पं पांचमीनरकें जघन्य दसच पूरो सान सागरोपम १६५वान। स्ससागराच। नुक्कोसेएवियाहिया। पंचमाएजहन्नेएं । दसचेवसागरोवमा ॥१६५।। बावीस बीवीससागरोपमनु आनषचन्नत्कृष्टोका बबीनरके जघन्य स. सत्तर सागरोपम ६६ ति नेत्रीस ५६. सागराज । नक्कोसेगावियाहिया । बबीएजहन्नेए । सतरस्ससागरोवमा ॥६६॥ नित्तीस
For Private and Personal Use Only
Page #425
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सागरोपमनु आनुषु न नुनकृष्टोक ह्यो स० सालमीनरके जघन्य . बा. बावीस सागरोपम ६७ जा जेनसी अ३६ सागराने । नुक्कोसेरावियाहिया। सत्तमाएजहन्ने । बावीसंसागरोवमा ॥ ६३ ॥जाचेवा च पूरणे आ- आनुपानी स्वितिने नारकीनेकहि सा तेहजने नारकीने कायस्थिति होएजन्जघन्यनुनकृष्टिकायस्तिनि होए ६८ यानदिई । नेरझ्यावियाहिया । सातेसिंकायतिई। जहन्नकोसियालवे ॥८॥ अ० अनंताकासनोभु नत्कृष्टातिरुपफेअरु अंतर्मुशर्तजघन्य विबायकनारकीने सरू पोतानीकायने ने नारकीनेनारकीपहुं| अएतकासमुक्कोसं । अंतोमुशर्तजन्नयं। विजढंमिसएकाए। नेरश्यारांतु पामवानोएलसोतिरुपमेण्हयेनारकी| एक एनारकीना लेदवईयी गं. गंधयी सबीफरसपी सं संस्थान आदेसयकी ग्लैिंदना
अंतरं॥ ६॥ ॥ मारीयीकहेले एएसिवन्ननेचेव । गंधजरसफासन । संगगादेसनवादि । विहा सहस्र होए१३० हवेनियंचपंचेंदोऽव्ययी पपरेडितिर्यच . बेझमकारे वि० कमा सन् समूर्बिमातिनिर्यच गासहस्ससो॥ १०॥ कहेले पचिंदियनिरिखाने । विहातेवियाहिया । समुचिमतिरिखा अने गर गर्लजतिथंच ले लेम ७१ ० बेप्रकारे बेतेला झएवणाप्रकारेंज जलचर मनादियतचरघोगादिकतैमखत रखेचरपषी | ४६३ है। गलवकंतियातहा ॥७१॥ विहातेमवेतिविहा । जखयरायलयरातहा । वहयराया
For Private and Personal Use Only
Page #426
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ङ. जाएाबा
७२
I
ते० पंचेंडीनालेद सु०सालस मुजकहनायिका म० माबसानी जानक० काचबानी जात गा० ग्राह जसचरजीव म मगर मबलें ३६ ४६५ बोधवा । तेसिंलेएसोहमे ॥ ७२ ॥ मचायकचलाया । गाह्रायमगराता । सादिक | सु० सुसमारादि जसचरजीव जांएंगवा पं० पांचमकारें जसचरजीव प्र० कह्या ७३ हबेजसचरतिर्येच सो० सोकना एकदेसविलागने विषे ते तेस सुसुमाराय बोधव्वा! पंचहाजतयराहिया ॥ ७३ ॥ पंचेंीपेत्रीचे सोएगदेसतेसवे । नसबच घखाएँ जलचर जीवस• सघलेनथीका एक एका पवकासनो। ते ते. तेजसचर जीव तेयो० हूं कहतं च व्यारमकारे हवेजलचर तिर्यन्त सब्ज वियाहिया ॥ एत्तोकास विभागं । सिवोचंचनन्विहं ॥ ७६ ॥ पंचेंडी कालथी कहे संतइपप्प वियिति श्रादिसहित सानुषुपूरुंधाएतिवारे अंतसहित पाठे १७५ एाश्या । प्रपद्यवसियाविय । विपच्चसाश्या । सपद्यवसियाविय ।। १७५ ।। ए० एकपूर्वकोदी ८४ साषवर्षे एपूर्वगिते ८ ४ सामगुणाकरिऐ तो एक पूर्वीग थाए तेनासितरसाष को वर्ष अपन सहस्त्र को वर्ष होएएनेसाषा
सचर जीवतायाश्री म० यादित्र्ांतरहित
श्याजसयरा । गणांग बीजेनसे ॥ तथामनुयो
एगायपुचकोकी | नकोसेएवियाहिया ॥ गद्वारे त्कृष्टिकहीच्या मानुषानी | नर्मुर्त ज० जघन्य ७६ पू० पूर्व कोपि पु० पृथक की रमांदीने नवसगे तेप्रयकत्व पूर्वको ४६६ खिति ज० जसचरनी स्थिति त्र्तमुत्तंहशिया ॥ ७६ ॥ पूर्वकोमिपुततु । नक्कोसेरावियाहियाँ
For Private and Personal Use Only
Page #427
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५६५
चनपद पगनाधए
काकायथिनिज- जखचर जीवनीअंतर्मुशर्त ज० जघन्य 33 प्र०अनंताकासनोनन्नत्कृष्टो अं• अंतर्मुझर्न ज. जघ २६ कायविजयराए । अंतोमुऊत्तंजहन्निया ॥33॥ अएंतकासमुक्कोसं। अंतोमुत्तंजानि न्य वि वोथिके सपोनानीजलचरनी ज जलचर जीवने जप्तचरपएं पांमवानो एनसोनिरुप ७ ८ हवे तिर्यचपंचंडी ए०एवणी या। विजदंमिसएकाए। जसयराएंतुअंतरे ॥८॥ जसचर लावयी कहेले एएसिवा
.. गंगंधयी रसयी फरसयी सं संस्थान आदिदेश वि० लेद सम्हजारोगमेजए ३९ हवेजपचरडव्ययाकेजेचन न्ननुचेव। गंपनरसफासन। संगपादेसवावि। विहागाइंसहस्ससो च नप्प। नेश्नपदाप परिसर्पसु जपरिसर्प . थलचर १ अने परिसर्प ए वेप्रकारे यसरर नए चनपद च्याप्रकारे तं नेमुझनेकहतायिकासन यायप्रिसप्पा । विहायलयरालवे। चनुप्पय चनबिहा। नमेकिनियनसुए। सांत्नल्यो१८० ए० एकरचुरोजेने बेखुरचे जेने पूरणेगं हायी प्रमुषगंगीपद स नषसहित पगढ़ जेने हन्घोमादिकने एकरबरी गोल ग टायीमम १८०॥ एगस्करापुस्कराचेव। गंमीपया सगप्पया। हयमाश्गोमा। गयमाइसीह घर्गमीपदसील सिंहकूतरा सहित लूएक मुजपरिसर्प अनेबीजाचरपरिसर्पप० परीसर्प पुन्चेप्रकारे नए गो गोहगरोलीप्रमुषएलनप||५६५ माश्यो।८१॥ ८१ लूनरगपरिसप्पा । परिसप्पाविहालवे। गोहाइ रिसर्प ||
For Private and Personal Use Only
Page #428
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
ङ.
४६६
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ. सर्पममुष एनर्परिसर्प
हिमाश्या ।
३० एकेकी जानमांहे प्र० घोप्रकारे नए हवेपेत्रयीयस सो० सोकनाएकदेसविलागेनेविषे तेसघला नन्नथी .३६ इकेको हाल ॥ ८२ ॥ चरकले पर सोएगदेसते सधे । थलचर नसच्च | सघसे लोकमां कलाका० कालनोविचार ए० एका तिवारपढी ते तेथलचरनोवो. फुंकहरू च० च्यारमकारे ८३ सं. लचरता mahaari | तेसवोचंचविहं ॥ ८३ ॥ संतपप्प याश्री व नादिना तवेोपण नयी वि。 यितित्र्याश्रीयादिसहित सन् त्र्यंतसहितबे
हवेयसचरका
वियाहिया ।
८४ प० पस्योपम
या । पयवसियाविय । विश्पमुच्चसाया । सपद्यवसियाविय ॥ ८४ ॥ पसिनुवमाने
तित्रिएानी ज० नुत्क्रष्टि कही
प० पस्योपम
० त्र्यानुषानी थिति ये ० स्वचरनी त्र्यं. अंतर्मुर्ति ज० जघन्य १८५ तिन्निनु । नकोसेावियाहिय । माननियलयराएां । त्र्यंतोमुत्तं जहशिया ॥ ८५ ॥ त्रिपनी ० नुनष्टिकायथिति कही पु० पूर्वकोसी पु० पृथकबे की नवलगे ३ पष्यनुपुर पृथक्त्व पूर्वकोमी पंसिनवमानुतिन्निन । नक्कोसेनियाहिया । पुइकोमिपुफ़त्तेणं । त्र्यंतोमुत्तंजह: थलचरपकंपांमवानुत्र्यांतरं तेन एका कारन अनंताकास | अंतरंतेसिमंलवे | कासमान कोस को
अंतर्मुर्त ज० जघन्य ८६
शिया ॥ ८६ ॥
का. काय स्थिति थ० पैसचरेजीवने कायलियराएं
For Private and Personal Use Only
६६६
Page #429
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie
जअं अंनमुन जघन्य ७ बिन्जायके सपोतानीपिसचरनीकाएक थलचरने एतप्तुं आनसंपफेहवेपसचरचरनालेद ||अ-३६ ४६७/ अंतोमुत्तंजहसिया ॥७॥ विजढंमिसएकाए। सयराएंतुअंतरं । लावयी कहे एक पेषाएसि
वएपिीगयी रसयी फरसयी ८८ संस्बानयी आदिदेश दिलेदसहस्रगमेयाए हवेषेचरइव्ययीक बन्ननचेव। गंधनरसफास। ८॥ संगएादेसनेवावि । विहागासहस्ससो। हेजे च० चमाचीमप्रमुषसोन्चमीचमादि सोमपंथी तबीजापंषीस माबमानुढाकफंदीयु होएतेची पांघर्षपषीमनुष्य विज्पांघसदाए मोकसारहे ने चम्मेसोमपरकीय। तश्यासमुग्गपस्किया ॥७९॥षेत्रबाहिरप्पविययपस्कीयबोपचा। वितता पमनुष्यत्रबाहिरजापावाएपंषी च्यारप्रकारेंहदे षेच त्रयीकहेरेखोल लोकनाएकदेस। न० सघसेलोकमांहेनयी. . ए एकह्या पंथी पस्किएोयचजबिहा। सोएगदेसतेसवे। वित्नागेनेविषेसघसा नसबच्चवियाहिया ॥ एत्तो पनी कालनो विचार तेच ते पंधीना कहतुं च० च्यारप्रकारे १००हवे खेचरकासयी कहेले सं० एपंधी उता आश्री अ. अनादिकाल कालविलागंतु । तेसिवोबंचनुछिह ॥ १९॥ ॥
संतश्पप्पाश्या । अपद्य अनंताचे अंतरहित
वियिति आश्री आदि सहितः स.अंतसाहितपण्डे १९१ ६१ वसियाविया ॥ विश्पच्चसाश्या। सपद्यवसियाविय ॥१९॥
For Private and Personal Use Only
Page #430
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
प्र.३६
| प. पक्ष्योपमनो लाग . अ असंध्यातमो नागए प्रा० अानुषानी स्थिति परवेचरनी अं अंतरभुत ज. जघन्य पसिनुवमस्सलागो । असंवेधश्मोमवे । वाचविश्वहयराएं। अंतोमुजतंजहनिया ॥१२॥ अंक त्र्यसंध्यातमोत्नाग पपल्योपमनोलागत नद्कृष्टो साल एतहासुपरअपको पुः पृथक्त्व अंअंतर्मुर्तिज जपन्य असंवेद्यलागोपलियसं । नक्कोसेएाजसाहिन । पुछकोमीपत्तेएं । अंतोमुत्तंजहानिया | का कायथिति रव० स्वेचरनी अंन्यांतरुपमे पंथीनवपांमवार्नु ३० अागले काल कासअननोन उत्क्रष्ट अंतरमुर्तज जपन्य कायविश्वहयराएं । अंतरंतेसिमलवे । कहरूं तो कासमांतर्मुक्कोसं। अंतोमुत्तंजहालय। हवे षेचरयी ए एपंपीना लेदवायी गंधयी रसयी फरसयी सं संस्थानना आदिदेश विश्लेदहजार हवे मनुष्यऽव्ययी केले कहेगे १९७ एएसिवन्ननचेव। गधनरसफासन । संगएादेसनवावि । विहाएाइंसहस्ससो॥१९॥ मन् मनुष्यदेत्नेदरे तं ते मुजनेकहत्तायकासुःसांत्मसो स-एक समूर्बिममनुष्य ग. बीजागर्ल जमनुष्य तळ नेम मएयाविहलेयान । तमेकित्तयन्सए । समुचिमायमएया। गज्ञवक्वंतियातहा ॥१९६॥ गगनेजमनुष्यदे जेजेम ति नामकारे कया मकरसपादिकजिहां करयूं नयीत अकमलमानामनुष्यककरमणादिकजांकरखोगे ४५८ गतवकंतियाजेन । तिविहातेवियाहिया । अकम्मकम्मलूयाध अंतरदीवेगातेही १९७" ||
For Private and Personal Use Only
Page #431
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
यापुत्रमवीसई । स. समूर्तिमनुष्या ए० एमज एगर्लजनी परें
संखाएकम्मसोतेसिं ले लेद होए की हवे मनुष्यस्वेनथी। . लेनहोत्र्याहि । कहे सं• मनुष्याच्या १९०९० संतश्पप्पएयाश्या । यपद्यव प० पष्योपम ति त्रय
० त्रांतर
न. प पनरलेद कर्मभूमीना मनुष्यति त्रीसम्मकर्मत्लूमिनामनुष्य अच्ठावीस कहतां ५६ अंतरीपना मनुष्य संग संख्या अनुक्रमेते तेमनु ३६ ४६) पन्नरसतीसति विहा । व्यनी इ० एपोंमकारें कि कही ८ ।। इइएसावियाहिया ॥ १७८ ॥ समुबिमाए एवमेव । सो. खोकना एक देस विभागने विषे ते ते मनुष्य सघसाए समूहिमनुष्यवता माश्री लोगस्सएगदेसंमि । सवेवियाहियां ॥ १९९॥ हितबे स० [प्रादिसहितसहित सियाविय । विश्वमुञ्चसाश्या । सपबवसियाविय ॥ २००॥ पषिने॒वमानु॑ति॒न्ननु॑ । नृत्कृष्टिकही ० पानी स्थिति मनुष्यनी १ प० पस्योपम विन्त्रप |कोसेएगवियाहिं । श्रावि मया । तमुतं जहन्निया ॥ १ ॥ पविनुवमातिनि ॐ० नुवष्टि विकही पु० पृथक बेथी मांडी ( सुधी सात लवखगे एकेकी पूर्वकोनीनो मानुषी होए आसे लबे त्रयपयनयान ४६८१४ d। नकोसेएावियाहिन । पुचकोनीपुत्तेषां ॥ त्र्यंतमुत्तजहलियाँ ॥ २ ॥
वि०स्वितित्र्याश्री
२००
ज
अंतर्मुर्त जघन्य
४०
For Private and Personal Use Only
Page #432
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
का कायथिनि म मनुष्यनी अं० मनुष्यलय पांमवानुांनरंपरेने मनुष्यने आगलेकहस्ये ने नेसवेञ्जएअंन्अनंत अंअंतर | |अ.३६ कायविश्मएयाएं। अंतरंतेसिमलवे । अएतकासमुक्कोसं । कासनत्कृष्टा निरोपमे अंतोमुज मुर्तज० जघन्य ३ हवेमनुष्यमावथी ए. एमनुष्यनालेदवचिी गं गंधारसयी फरसयी स.संस्वानमादिदेश ।
जहन्नयं ॥ ३ ॥ कहेडे एएसिवन्न चेव । गंधरसफासने । संगएादेसनवावि। वि० लेद हजार थाए हुपेदेवताऽष्यपीके दे देवता चर च्यारप्रकारेकह्यान० ते मुजने कहतार्थकासुनसांना लोन्लवनपतिवाय विहागासहस्ससो॥ ७ ॥ देवाचनविहाबुत्ता । तमेकित्तयजेसुए। लोमेघवाएम. व्यंतर जोर ज्योतसी वे. वैमानिक तेम ५
ददसप्रकारे मवनपति . अ आचप्रकारेव कुतुहस्बनमाहे तर। जोश्सवेमाणियातहा। २०५ ॥ दसहालवएवासी । अनुहावराचारियो । चासेविचरे पं० पांचप्रकारेज्योतषी ० बेप्रकारे वैमानिकदेवता ते तिम ६ . अ. कुमारनीपरे क्रीमाकरेते असुरकुमा लेव्यंतरे पंचविहाजोइसिया। पुविहावेमाणियातहा ॥२०६ ॥ असुरानागसुवन्ना । नागकुमार |
सवकुमारवि. विद्युकुमारअग्निकुमारकह्यादी दीपकुमारनदधिकुमारेदि दिसा थ थनिनकुमारल मपनवासिलपनपति दुबे ५१८ विधुअणियाहिया । दीवोदहिदिसावाया ।कुमारवायुकुमारपणियालवएवासिगो ॥२७॥
तरकत
For Private and Personal Use Only
Page #433
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पि. पिसाच १ 'लून २ जक्ष ३ र० राक्षस कि किन्नर एकिंगकिंपुरुष ममहोरगॐ गं गंपर्ब ८ अ आचप्रकारें बाएव्यंनर अ.३६ पिसायनूयाजस्काय । रस्कसाकिन्नरायकिंपुरुसा । महोरगायगंधचा। अञ्चविहावाणमंतरा हवे ज्योतषीनो संबंधकहेरे चं चंडमा सू० सूर्य २८ नक्षत्रग० ग्रहअठासी तारासमूहम 'दि मनुष्यषेत्रबाहिर चा मनुष्यरक्षेत्रमाबेज्यो । २०८ ॥ २०८ चंदासूरायनरवत्ता । गहातारागपातहा । विश्याविचारिगोचेव ।नषीचाखेने पं. पांचप्रकारेंज्योत्तथी देवता जाणवा २०९ के वैमानिकदेवता कुबैप्रकारे कह्या बास्देवीकना देवता पंचविहाजाश्सासया ॥ २०॥ माणियानंदवा। विहातवियाहिया। कप्पावगायबाय जापावा कनवग्रैबेयकना अने अनुत्तरविमाननादेवता तकल्पातीनतेमजक- देवसोकेनुपनाजे देवता बारमकारे कह्या सो सौधर्मदेवसो चा। कप्पाईयातहेवय॥ २१० ॥ २१० कप्पोवगाबारसहा। सोहम्मी कना देवता तेमज स सनतकुमारदेवलोकनादेवत्ता ३ माहेंनादेवता बं ब्रह्मोकनादेवता सं खानक देवखोकना देवता साएगातहा। सांकुभारमाहिंदा। बलखोगायसंतया ॥२११ ॥ २११ फ महाशुक्रदेवखोकनास सहसारना आ आनंतना पा० मापातनानेमान्पारणदेवताअच्युतनादेवत्ताइए १२ देवलोकनाबासी ४७१ महासकासहस्सारा । आगयापापायातहा। आरएअच्च्याचेव ।श्कप्पोवगासुरो १३|
For Private and Personal Use Only
Page #434
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रकारे बे
3. क० कप्पातीत जे बारदेवलोकना देवता ते । ५० बेमकारे ते का यैवेयकादेवता तर बिमान देवता मे• यैवेयकनादेवता न• नव प्र.३६१२ कप्पाश्यानदेवा । देवता दुविहात्तेवियाहिया । गेविद्याँएफत्तराचेव । गेविद्यानवविहात१३ हे० देवला त्रिकमा हे हे• देवसुंनवत्रैवेयकमा पहिलो । है० मध्यनुं बीजायैवेयक तेना देवता नेम हेवला जन्नुपर हिं ॥ ९३ ॥ हेखिमाहेविमाचेव । तैदेवताहेग्रसानिमा हेडिमामश्माता । त्रिकमांहे हेतिमानुवरि एतले त्रीजात्रैवेयकनादेवता म.मध्यविचाले त्रिकनुहे हेग्युपतसे चौथाग्रैवेयक म० मध्यविचाले त्रिकनो म० मध्यविचले त्रिक न० नपरसोए माचैव । मशिमाविमा हा ॥ २१६ ॥१४ मझिमामझिमाचेव । मझिमानुवरि
| तसे बामैवेयकना देवता • नृपरला त्रिक हे. हम्सो एतसे सानमा ग्रैवेयकना • नृपरसा त्रिककुंम मध्यविचाले एनसेट मात्रै मातहा। तेम नवरसाहेवमाचैव । देवता नवरिमामझिमाता ॥ २१५ ॥ १५ | यकूनादेवेता | जन्नुपरक्षा त्रिकतुं न• उपरसुंएनसे | मात्रैवेयकना २० एट्रोप्रकारे प्रवेषां वि० विजयनांमा पहिला अनुत्तर विमानना देवता वे बेजयंत तेम 'नवरिमानुवरिमाचेव । इश्गेविद्यगासुरा । विजया वेजयंताय । बीजाप्रनुत्तरखीमानना देवता ज० जयंतनामात्री जामनुत्तर विमानदेवता अपरा जितनामाचोया स. सवार्थसिद्धदेवता पं० एपांचमकारें अनुत्तरविमानना देवता जयंतात्र्अप्राजिया ॥ २१६ ॥ । उत्तर विमान ३० १५ सङ्घ सिङ्गाचेव । पंचहाऐफत्तरातरा ।
1
For Private and Personal Use Only
४७२
Page #435
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
न. इ० ए| मकारें वैमानिक कह्या म घोप्रकारेंए• एत्र्यादिदेशने देवताका १७ हवेदेवतापेथी | लो० सोकना एकवि लागने विषे ते समता
४७३
इश्माणियाए । 'एरोगहाएवमायनं ॥ २९९ ॥ कहे लोगस्स एगदेसंमि । तेस
ए० कयापी हवे कालविचार
० तेदेवनानी के कहसुं च० च्यारभकारें हवेदेवताकालयी संनेदेवताताच्या तेसिबोच्चचनुविहं ॥ २१६ ॥ कहेने संतझपप्पा
१९ सा०जारासा
For Private and Personal Use Only
त्र्य. ३६
देवता का
परिकित्तिया । एत्तोकास विभागंतु ।
श्री
सतासहित
म० अनादि बेडेकोपानथी कि वितियादिसहित | श्या । प्रपद्यवसियाविय। विश्पमुच्चसाश्या । सपद्यवसियाविय ॥ २१९ ॥ साहियंसागर सोगरएक न• नत्कृष्ट मानुषानी यिनि लो. लवनपति बसेंडादिकनी ज० अघन्यस्थिति दस हजार वर २२० प० पस्योप
1
एकं । नक्कोसेांक्लिवे । लोमेद्याएं जहन्त्रेां । दसवाससस्सिया ॥ २२० ॥ पसिने म दो० बेनपाकाश्क न नृत्कष्टिबि कही म० असुरकुमारें न बरजीने बीजात्र्मसुरकुमार देवतादिकलवनपतिनी यिनि जधन्यदसहे | वमदोनणा । नक्कोसेएाविचाहिया । सुरिंदषचित्तां । जार २१ प० पस्योपमएकनी ० उत्कृष्टिथिति होए व्यं व्यंतरनी ज० जघन्य द० दशहजारवरसनी २२ १३१ पसिने॒वममेगंतु । जोसेलिवे। व्यंतराजहन्नेां । दसवाससहस्सिया ॥ २२ ॥
जहन्नादससहस्ससा ॥
६५
Page #436
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
जु प० पष्योपमनी एक एक
वरस स० एकसाष त्र्मंधकूए नृत्कृष्टि थिति प० पस्योपमानो आग्मोलाग जो ज्योतषीने विषेज - ३६ पसिने॒वम॑तुगं । वास॒सरकेएसाहियं । ज्योतषी पसिनुवमव लागो । जोइसेसुजह जघन्ययिति २३ दो० बेचे० पूरणे सा० सागरनी न० उत्कष्टी वि० कही सो० सौधर्म देवसोकनेविषेजघन्य एक एक न्निया ॥ २३ ॥ दोच्चैवसागराशं । नक्कोर्सेवियाहिया । सोहमंमिजहोए । एगंतु पस्योपम २४ सा०फाफेरा सा० सागराबे ज० नुत्कृष्टिकही 5. इसान देवलोकने विषे थिति जघा पतिने॒वम॑ ॥ २४ ॥ साहिया सागराकुन्नि । नक्कोसेएावियाहिया । ईसामिजहां सान्जारूपस्योपम २२५ सा० सागरसानी ॐ० उत्कृष्ट थितिहोए स० सनत्कुमार देवलोकने विषे साहिय॑ने॒वमं ॥ २२५ ॥ सागराशियसत्तेव । नकोसेलिवे। साकुमारे जहन्न जघन्यस्थिति 5० बेसागरनी सान फारा २६ ० त्रुष्टिथिति होए मा० मार्केऽदेव ए । पुन्निन सागरोवमा ॥ २६ ॥ साहियासागरासन्त | नकोसेएाविईलवे । माहिंदमिज लोकनेविषेजघन्य सा० फाफेरा ५० बे सागरनी २७ दं० दस पूर्णे सा० सागर 50 नृनकट स्थिति हुए मा० माहें देवलोकने ४५४ हन्नेां । साहियाडुन्निसागरा ॥ २९ ॥ दसचैव सागराई | ठक्कोसेा विश्लवे । माहिंदमि
सा० सागरसातना
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #437
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
च. विषे जघन्य
सा. जामेरापु • बेसागरनी २२८
जहन्त्रेां । साहियापुन्निसागरा ॥ २८ ॥
विषे ज० जघन्यथिति स० सातसागरनी
हन्नेां ।
६७५
www.kobatirth.org
दसचैव सागरा
२२५
च० चनुदससागरनी
सत्तनुसागरोवमा ॥ २८५ ॥
चनुदससागराई |
द० दशपूर्णे सा० सागर न० उत्कृष्ट थितिहोए क्र ब्रम्हदेव पोकने का इ | नकोसेाविश लवे। बललोएज ८० चत्कुष्टि थिति होए सं०सांतकदेव नकोसे विश्लवे । संतगंमिज | लोके देवतानी ज० जघन्यद० दससागरनी २३० स० [सतरसागरनी ० कृष्टि थिति होए म मोटा शुकनेज दससागरोवमा ॥ २३० ॥ सतस्ससागराई । नक्कोसेलवे । महाकज़ह जघन्यस्थिति च० चन्दसागरनी ३१ ० कार सागरनी छ० जनकृष्टि स्विति होए सन् सहसावलोक चनदससागरोवमा ॥ ३१ ॥ अगरससागराई । नक्कोसेलवे । सहरसा रे to जघन्यस्थिति स सतर सागरोपमनी सा० सागर गी न० चत्कृष्ट स्थिति होए मापाय देव
हन्त्रें ।
नेणं ।
जहन्ने सतरससागरीवमा ॥ ३२ ॥ सागरान एावी संतु । नहोसेराविइलवे। आायंमिज | लोकनै विषेदेवतानी जघन्ययिति प्र० अठार सागरनी ३३ वी० बीस सागर ८० उत्कृष्टिस्थिति हो पा० पाएायदेवलोकनेता ४१५ हन्ने | अगरससागरोवमा ॥ ३३ ॥ वीसंतुसागराई | नक्कोसेलिवे। पारायंमिजहन्नए ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
Page #438
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नु.
सा० सागर एगुएसवीसनी
• मार देवलोकने विषे देवतानी जन्म अ. ३६
३४
सा० सागर एकवीसनी न. नृत्कृष्टियितिकए
वी० बीससागरोपमनी
२३५
।
१६ सागरात्र्यनुवीस ॥ ३४ ॥ सागराएगवीसंतु । नक्कोसेलवे । प्रारमिजहन्नेां । धन्यथिति बा. बावीस सागरनी ० उत्कृष्टिस्थिति हो • अच्युतदेवखीकने विषेदेवतानीजघ | वीसइ सागरोवमा || २३५ ॥ बावीससागरान् । नक्कोसेलिवे। श्रन्यंमिजने । न्यस्थिति सा० सागरएकवीसनी ३६ तेवीस सागरनी ० नत्कृष्टी स्थिति होए प० पहिलाचैवेयकने विषे ज० ज सागराएकवीसई ॥ ३६ ॥ तेवीससागरा । नक्कोसेलवे । पढमंमि जहन्नेां । ॐ० प्रवष्टि थिति होए बि. बीजायैवेयकने विषे ज० बावीससागरोवमा ॥ ३७ ॥ चनुवीसंसागराएं | नकोसेलवे । विश्यंमिजहन्नेां । जघन्य ते० त्रेवीस सागरोपम ३८ प० पचवीस सागरनी ॐ० नवकृष्टिस्थिति होए बी० बीजा ग्रैवेयकने विषेदेवता स्विति तेवीसंसागरोवमा ॥ ३८ ॥ पएावीसंसागराएं । नक्कोसेांविइलये। बिश्यंमिजहन्नेषां । नि तै०चैबीससागरोपम ३८ प० पचबीस सागरोपम • नृत्कृष्टिस्थितिए तन्त्री जायैवेयकने विषे च चोबीससांगरीपन २४० तेवीसंसागरोवमा ॥ ३९ ॥ पावीससागराएं। नकोसेलिवे। तश्यंमिजहन्नेां । चनुवीसंसागरोवमा २४०
-पस्थितिबा• बाबीस सागरोपमनी ३७
च चोवीस सागरनी
७१६
For Private and Personal Use Only
Page #439
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
- बवीस सागर ज. उत्कृष्ट स्थिति होए च चौपायैवेयकनेविषे देवतानीजजा साल सागरपच्चीसनी २५१ अ-३६ बवीससागराइं । नकोसेएविश्लवे। चनुचमिजहन्नेणं । घन्यपिनि सागसपणवीसई ॥ २१ ॥ सा सागरसत्तावीसनी जननुकृष्टि स्विति होए पं. पांचमा त्रैवेयकनी जघन्य स्थिति सा० सागरब्दीसनी २५२ साल्सा | सागरासत्तवीसंतु । नकोसे विश्लवे। पंचमंमिजहन्नेणं। सागराबविस ॥ २५२॥ सागरा गरअगवीसनी न उतकृष्टि स्विति होए त० उवात्रैवेयकनेविषेज जेपन्य साठ सागसत्तावीसनी २५३ अचवीसंतु। नकोसेएंविश्नवे। बवमिजहन्नेणं । सागरासत्तवीसश॥ २४३ ॥ सा० सागर नगपात्रीसनी ' जनुनुकृष्टि स्विति होए स सातमा त्रैवेयकनेविषेजघन्य साल सागरगपीसनी २५० सागराअनुपातीसंतु । नकोसेएं विश्लवे । सत्तमंमिजहन्नेणं। सागराअचवीस ॥२४॥ तीनीस सागर .. ॐ नत्कृष्ट स्विति होए अभावमात्रैवेयकनेविषे देवतोनीजघन्यासा सागर गणत्रीस , २५५ | तीसंवसागराइं। नक्कोसेएविश्लवे। अवमंमिजहन्नेणं । स्थिति सागराअजगतीसई ॥२४५ ॥ सा० सागर एकत्रीसनीन नकृष्ट स्थिति होए ननयमअयेयकनेविषे देवतानीजघन्यनी० बीस सागरोपम २५६ |3 सागराएकतीसंतु। नकोसंपाविश्लवे। नवमंमिजहन्नेएं। तीसश्सागरोवमा॥२६॥
For Private and Personal Use Only
Page #440
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
USC
| ते. नेत्रीस सागरनी न तस्कृष्टि स्थिति होए चच्यार अनुत्तरविमाननेविषेविनय १ वायत्त जयंन३ अपराजित ४ ज जया ३६ | तेतीसंसागराई। नकोसेपी विश्लवे । चनुसुविविजयाइस। ए बिजययिमान श्रादिदेई जहन्ना न आनषानी यिति सागर एकत्रीसनी नयीजुपन्य नयीनतऋष्टीपा ने तैत्रीससागरोपमनी म भोटाविमान स. सर्वार्थ
नींनकारीपरपा पति एकतीस ॥ २५ ॥ २७७ अजहन्नम कोस । तेत्तीसंसागरोवमा। महाविमाएसंव। सिद्धनापिमाननेविषे वि. आच स्विति एकही जा जे पूरपोप्रा आजषानीथिति दे देवतानी बि कही तीर्थकरें ‘साल तेलसीजले नैदेव | विशएसावियाहिया ॥२५८१८ जाचेवयानविई। देवाएंतुवियाहिया। सातेसिंकाय तानीकायास्गिनिज जघन्यनुत्कृष्टि कायस्तिति कए २५९ अ अनंताकासनो जन् नुकृष्टि देव क थावानुं अंगअंतमुक्ति विश्। जहन्नकोसियालवे ॥२४॥ अगतकालमुक्कोस । अतिसं पके अंतोमुफ न जघन्यांतरुपमै बिज बायके स० अापणीदेवतानीकाया दे० देवनानु हो- होएएतसो निकै परे २५० अ० अनंनाकासनधन
जहन्नयं। विजÉमिसएकाए। देवाहोद्यअंतरं ॥ २५ ॥ अांतकाईमा उत्कृष्ट निरुपमे वा बेवर्षयी धुरनववर्षसगे जघन्य आंतरुपने आ० आणयाददेश्नेदे देवसोक्नेविषेगेवौवेयुकदेवतानेपरा कोस । वासपऊत्तजहन्नयं। आपायाश्णंदेवाए गेविद्योगातुअंतर
अविनाशावानएसमाजापक.
For Private and Personal Use Only
Page #441
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobairth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| सं० संध्यातासागरतुं उत्कृर आंतरं पके. वा बेवरसपीभववर्षसगेजन्जघन्यानरुपके अ. अनुत्तरविमाननादेवतानेअं एनघुयां ||अ.१६ | संवेद्यसागरुक्कोसं। वासपुऊत्तंजहन्नयं। अपात्तरायदेवाणं । अंतरंतुवियाहि तरुपमे बिक तीरपकरेंकडं ए• एदेवतानात्नेद वन्यएपिकी पूर्णगंधयीरक रसयीफरसयी संसंस्थान
वि. लेदहजा य ॥२५२॥ २५२ एएसिंवन्ननचेव। गंघनरसफासन। संगणादेसनवावि । विहागाई रगमे होए, ५३ सं संसारिक जीव अनेसिसिझनागर एवं प्रकारे जीवकह्या तर्थिकरें रू रूपिजे अजीव अरूपी सहस्ससो॥५३॥ संसारबायसिद्धाय । जीय श्श्जीवावियाहिया। रूविणोचेवरूविय । जीव अजीव बेप्रकारेकह्यातीर्थकरें इ० एवं प्रकारे जीव अनेअनीवना सो गुरूसमीपेसांत्नपीने सदहीनेस सर्वनयने अ. अजीवाविहाविय ॥५५॥५६ श्जीवमजीवेय ।लेद सोचासदविनणय। सबानयाए. अ.अनुमतमनोज्ञमानवाजोग्यर रमेमवर्ने सं-संजमनेविषेसाधु५५ त. दीक्षालेश्नविचरे निवारपडीबन्धपायर| साठ चारित्रअन्तमीपरे अएमए। रमेधा संजमेमुगी ॥ २५५ ॥ तबझाणिवासाणि । सपणे सामन्नमणुपाति पासीने प्रागखेकहसेअनुक्रमेजो नपरूपिया अापणो अात्मास देवसोकरे ऽव्ययी शरीर लावधीकषाय बान्वावरससगे ||०७२ या । श्मेएकम्मजोएणं ।व्यापार अप्पासंसिहेमुणि॥५६॥पाललाकरे साधु५६बारसेवनवासा
For Private and Personal Use Only
Page #442
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सं॰ संखेषनान, नत्कृष्टिहोए सं० एकवरसनी मा मध्यससेषनाउ डमासनीजघन्यसंखेषना ५७ प पहिलावरसच्यार |म३६ ८०|ई । सोकोसियालये। संवडरमशिमया। सम्मासायजहणिया ॥५७ ॥ पढमेवासचन
संगी वि पांचविगईनी त्यागकरे, बि. बीजीवरसच्यारसगी वि० घपोप्रकारे तपकरे ५८ ए. एकांतरचपवास कमि । विगनिजुहिएकरें। विश्एवासचनकमि । विचिंततुतवंचरे ॥ ५८ ॥ एगंतरमाया करे अनेआपारीक एवा तपकरेकरीनेसं संवबरबे ल तिवारपदीदसवर्षपदी वर्षअईबमासाकरेवी उतावमादि मं । बिस करे 'कसंवबरेज्वे। लगी न संवबरईत। सगीना नाविगिहतवंचरे
५० तन्तपत्राचे रे नहें त तिवारपीसाढा १० वर्षपनी संन्बमाससगी विबअग्मादिक पयोमा २ आंबीसकरे आत ॥ ५५ ॥ तसंवबरदंतु। विगितुतवंचरे। ता आकरो तपाचरे करे परिमियंचेवायाम। तेअशीचार्मासं०संवबरवर्षनेविषेजपरसाबमासगी को हवेबारमेवरषे धुर अनेसरषोत्नपकरेधुरे बिपकरेविचासेबीजोत
तमिसंवनरंकरे ॥ २६॥ ॥ तपकरे२६० कोमिसहियायाम । पकोडे आ. अविसकरे ले कोमिसहि तनपक एनपकरीसं-एकवर्षसगेंभु साधु मा० मास खमण करवे अधिकमास षमणाकरवेकरी या आहारादिकांमवेकरीत्तपत्रे |५८० || कहिए कहुसंवबरेमगी। मासईमासिएएंतु। आहारेतुतवंचरे ॥ २६१ ॥ २६१ ||
For Private and Personal Use Only
Page #443
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
के हास्यादिकयीकंदीदनलाथाए आ० मंत्रादिकप्रजुजेते सेवक देवतायाएकि केवषि मो. अज्ञानपणानी स्नानासानिरंतर प्रया|अ३५ कंदप्यमालिनगकिपिसियं । प्रमुषज्ञानचंतिआसातनाकरेतेकिलमषीदेवतायाए मोहमासूरतंच । एयाऽग्ग वाघएकाललगे रोष रापने कोश्ककष्टकीपायी असुरकुमारनी ३० एकुर्गनि एपी| म मरणाने अवसरे एवी लाचना आये तो मरीने एपूइन करप्सीपिकी फुरपति वांमी तत्मणी ए ऽरगति कही मरणमिविराहियाहोंति ॥२६२॥ोक्त कहीपुरगतिमामे नेलएी उरगनिकही मिमियात्वदरसननुपरे रातासः नियापासहितताए हिंजीवघातनाकरणहारएवाजीव जे मरेजीव वि०विराध कहाए मिडासारत्ता। सनियाएएफहिंसगाश्या । एणेप्रकारे जेमरंतीजीवा।
से० ले जीवनवसी उसनदीधी बीज ६३ सन् सन्यक्त्वनेविषे रख रातो अन् नियापानाकरणहासु सुक्सखेस्याना परिणांमधाए मा तसिंपुवासहाबोहि ॥ ६३॥ सम्मदंसपारत्ता। अनियाएसुक्कलेसमोगाढा । राहार श्य पोप्रकारें म० मीप सु सुपलले तेजीवने होए बोधबीज ६७ मिमिथ्यात्वनादरसननुपरेराताळे स० नियापासहितकि कृष्णसेस्या जेमरंतीजीवा । सुखहात्तेसिंत्नवेबोहिं ॥६॥ मिलादंसहारत्ता। सनियाएकिएहसेसमोगा नापरिणामनामी-
धाइयाप्रकारेंजेमरेजीव तै तेजीवनेवसीउदोहसीसलबीच्बोधीबीज जि जिनवचननेविषेत्र रातारागनावर एहार |७८९ ठा। रणहार ।श्यजेमरंतीजीवा। तसिंपुगवहाबोहिं ॥२६५ ॥१जिएवयएएफरता।।
For Private and Personal Use Only
Page #444
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नजिक सिद्धांतमांजेम करयो करोडे तेमजेकरेलाकला अमिथ्यात्वरूपियामश्वरहित किसेसरहितजीवत्तेहोए पत्थोमासंसारनो ||१३६ ४८२|| जियावयएजेकरंतिलावे । वेंकरी 'अमलाअसंकिसिखा। तेहोतिपरित्तसंसारी॥६६॥
धी६६/बा बालमरपोब घूपीवारमरतोषिकोजीब अन् मरवानीयांबाविना अकाममरण सूषवषादिके मर मन्एपीपरें जेमते तेबाप वासमरणाबिझसो। अकाममरणाणिचेवबतयाणि । सीपको घएीवार मरिहितितेवरा! मारांकश्मघपी जि जिननावचन जे जेरूमांकरीनेजा ५७ बघा आगमसिति जपापत्र्यानोचतां सालतवाजोग्य या। बार जिरावयएजेनयाति ॥६५॥ बागमविन्नागा । होएतेगुरुनागुणाकहेडे । | विजापरसब आखाए तेवर करीसमाधिनापजावएहारहोए गु.गुपनायहपहारहोए एआचार्यादिकजोग्याल समाहिमुप्पायगाय। गुरागाहीएएएकारणेएं । एपोगोंकरी सहितळे आर अरियाआसोय आलोयपासो सालखबानेजेविधिक थाए के हास्यजपजेनेवीबीखे तेवो विषयविकार नुपजे एवी कथाकहे को मांमनी |
सोन॥६८॥ ते अधिकारकेचे ६८ कंदप्पकोकुश्या । परें वचननी चेष्टाएकरी सोकने हंसावे न० लेवोआचारस तैनोस्वलावहंसवासरगोवि-विकपाकहने पमामतोषिको पपरजीवनेकण्डादिकनेहसावेएवाकंदर्पिया || तहसीससहावहसपविगहाहि करीवेक्षविस्मय विम्हावंतोयपर । कंदप्पत्नावरांकुएश॥६०||
For Private and Personal Use Only
Page #445
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| देवलाथावानी तेवी मं मंत्रप्रजुजे जोन वसीकरणकरवानेकाजेऽव्यना लू रक्षानेकाने जेराघवाप्रमुषनी नानी पोटली ||अ-३६ |लावनाकरपीकरे.६९ मंताजोगंकाक । जोगएकग करे तूश्कम्मंचजेपचंति । बांपीनेहाप बांधे ते लूतिकर्मश्त्यादिक सा० सातानुपनवाने हेतेर नीषादिक । इकडीनेहेहें आ सेवकपपादेवनाथावा
जे कोर प्रयुंजे . सायरस रसनास्वादलोगववाने हेते विहेन। अलिनगंलावां |ला लावना तेवीकरणीकरे २७० ना. श्रुतज्ञानादिपांचज्ञाननाअवबोसहारके केवसीना 4. धर्माचार्यनाअवएविाद कुपाश् ॥ २९॥ नापस्सवदीयं । अपवादना बोलाहार धम्मायरियस्ससं
प्रहार संसाधुसाधवी श्रावकाविकाएचतुर्दियसंधना अपवादना मा. मायावंतववादनो कि किसम | घसा । बोलाहार सा० साघुना अवगएनी बोलाहार माश्अवन्नवा ।बीसराहारकिञ्चिसि षिसंबंधिला लावना करपी करे ७१ अ० घपाकापसगे रो रोसनो विस्तारकहेरीस तख्तेमनि निमित्तानावाने विधेहोव्होए | यंत्लावूपाकुए ॥ ७१॥ अणुबंघरोसपसरो । राषीरहे नहयानिमित्तमिहोइपमिसेवि।। पप्रवाए बेप्रकारनीकरएीएकरी ऑ० असुरकुमारथावानी लावना करपी करे ७२ स तरवारप्रमुषशस्त्रगान्ग्रह ८३ वपाहार एएहिंकारगोहिं । आसुरियंलावपंगाई ॥३२॥ सनगाहए। एकरीनेशस्त्रम
नाबार
For Private and Personal Use Only
Page #446
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३६
वि. विषषाने मरे जअग्निमापेसीमरेपाणीमा पेसीमरे अन्जेपाचरयायोग्य नहिं एवाल नुपगरानो अन्यणा विसलकांच । जलजलपवेसोय। अायारंवंमसेविं। सेवएहार जम्मए। जन्म अने मररा बांये ३३ ३०एपूर्वेकह्याने पा० प्रगटकीघाने ना. ज्ञान कात्रिमहाबीर प०अशिनपसमावीसीना मरपाणिबंधति ॥७३॥ श्श्पानुकरेबुझे। तीर्थकरें नायए परिनिडए । जीनूतपश्ने मोद पोता बत्रीस मुत्तरप्रधान अध्ययन न नव्यजीवनेस ए३६ अध्ययननुत्तराध्ययनना
एमश्री तेणें, बत्तीसंजत्तरशाए। नवसिघियसमए ॥ वाला ए तिबेमि ॥२७॥शति सुधर्मास्वामी जंबूस्वामी ने कहे हेजंबूजेममे श्रीमहावीरदेवसमीपें सालख्यो तेमकं तुमप्रतेक बु.३० शतिश्रीजीवा
श्रीजीवाजीवविलतिशय बत्तीसश्मसंमत्तं ॥ ३६॥ जीववित्नक्ति अध्ययन ३६मुंसंपूर्ण | इति श्रीवत्तराध्ययनसूत्रसंपूर्णः ॥१॥ ग्रंथाग्रंथ ११००० ॥ कल्याएमस्त् ॥श्री..॥ श्रीः श्रीधरमसीमुनी घपापंमतसूत्रे शोधीटबाकस्या बीजी घणीमतोमा परंपरचीखुलासावगेरेंनहता। ते धरमसीमुनीए बीजासूत्रोनीमूक्षपावगामापीलव्यजीवोनेसंकारहितथावानेवास्तेयपाखुसासोक | || स्याबे घराधेकाऐमूलमापावनहोयनेकवीएपोतानामतथापवावास्तेघोटासाकस्यातेकाढीनेसुद्धकस्याने
For Private and Personal Use Only
Page #447
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir lain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SES M For Private and Personal Use Only