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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org म. जो० जो धर्म जो० जे ए पं० पांचमहाब्रतरूपसिषव्या धरम देव नुपदेस्यो श्रीवईमान स्वामीएं पा० श्रीपारसनाथ अ. २३ २५० खामोयजोधम्मो ॥ जोमो पंचसिरिन ॥ देसि बनाए । पासेाय म महात्रतरूपधर्मनपदेस्यो २३ एग्मोर पोचवानी उपराजपा करवानी एकसरिषाकार्य विन्याचारमां विशेष फेरबे किं० सूं ए महामुणि ॥ २३ ॥ एक कद्यपवन्नाणं ॥ प० परिवर्ज्या तेने विसेस किंतुकारणं पी विचार - सानुपजे बे ध० धर्म 50 बेप्रकारे मे हे बुद्धिवंत कन्केम वि० विस्मय तुकने नयी नुपजतो २४ त० विचारपनी कैसी बोले बेले बोसतात धम्मे विहे मेहावी । कहं विप्पच नुन्नते ॥ २४ ॥ तनकेसीबुवंतंतु ॥ गोय गो० बसी गौतमए प्रागले केहसे तेम बोलता प० बुधेकरी विचारीने धन्धर्मनं 'त तत्त्वपरमार्थकेवीचे जीवादितत्व वि० निर्णयनिश्व मो इएमवि ॥ बा. पन्नासमिरकर धम्मं ॥ तत्तंतत्तविणिच्चियं ॥ २५ ॥ यएवो बोल्याने २५ पु०पहिला तीर्थंकरनासाधु नृ० सरसतेऐंजन | कं वांका ने पन बेला तीर्थकरना साफ मन्मध्यतीर्थंकरना 5 सरल साधुत्र्मने पुरमानजमाने ॥ भूर्ष बंकजमापतिमा ॥ मचिमा॒न॒द्युपन्नानु॑ प० प्रज्ञावंत ते तेोहेते धर्म५० बे प्रकारों कीधुं २६ जानिए तेगंधम्मे उहाकए ॥ २६ ॥ दुनिरतिचारपपो दोहे खुपाली च चर्म २५० दुविसोझोन ॥ सकेए चरिमा पहिला तीर्थकरना सा पुरिमाएां आचार Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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